लेखक-एस भाग्यम शर्मा
लेखक-एस भाग्यम शर्मा
लेखक-एस भाग्यम शर्मा
“यह तो बहुत अच्छी बात है अर्चना. तूने तो अच्छा काम किया.” “यहीं से तो मेरी बरबादी के दिन शुरू हो गए. मैंने सबकुछ खो दिया.” “क्या कह रही है अर्चना?”
“सही कह रही हूं. अभी तक तो सब सही चल रहा था, पता नहीं कैसे एक सज्जन मुझ से टकरा गए और उन का व्यक्तित्व इतना आकर्षित था कि मैं उन की ओर आकर्षित हो गई.”
“अर्चना, यह तो कोई बुरी बात नहीं है.””सही कह रही हो नीरा. पहले मुझे भी ऐसा ही लगा था. इस में क्या बुराई है. वैसे भी तुम्हें पता है, मैं जातिधर्म, छुआछूत इन सब से बचपन से ही दूर रहती थी. पर हमारा समाज तो ऐसा नहीं है. उस ने कहा, मंदिर में शादी कर लेते हैं. मैं ने अज्ञानता में उसे स्वीकार कर लिया और अपने को भी पूरी तरह से समर्पित कर दिया. उस ने भी कहा, मैं कुछ नहीं मानता हूं, मानवता ही सबकुछ है. पर मुझे बरबाद करने के बाद वह कहता है, मांबाप से पूछना पड़ेगा? पहले क्यों नहीं पूछा? पूछूंगापूछूंगा कहता रहा. मेरे पेट में गर्भ ठहर गया. ‘अभी भैयाभाभी से मत कहना. पहले मैं अपने मांबाप से कह देता हूं, फिर तुम कहना.’ अब तो मेरे लिए रुकने का सवाल ही नहीं. भैयाभाभी से कहना पड़ा.”
“फिर?””लड़का तो उन्हें भी पसंद था. पर उस की बातें बड़ी अनोखी थीं. बारबार बेवकूफ बना रहा था. अब रुकने का तो सवाल ही नहीं था. भैया ने कहा, लड़के पर कार्यवाही करते हैं, जिस के लिए मैं राजी नहीं हुई. जिस को मैं ने एक बार चाहा उस के लिए ऐसी बात कैसे सोच सकती हूं?”
“अर्चना, यह क्या मूर्खता हुई? अबौर्शन करवा लेतीं.””भैयाभाभी ने भी इसी की सलाह दी थी. अर्चना, तू बता इन सब चक्कर मैं 38 साल की हो गई. अबौर्शन करवाना भी रिस्की था. इस के अलावा मुझे बच्चा चाहिए था. उस के जैसे आकर्षित व्यक्तित्व, सर्वगुण संपन्न और बुद्धिमान लड़का ही मुझे चाहिए था. जो मुझे सिर्फ एक बार मिला. सोचा, यही मेरी जिंदगी है. इस से लड़का या लड़की जो होगा, वैसा ही होगा, वही मुझे चाहिए था. कब मेरी शादी होती? कब बच्चा होता? इन सब बातों ने मुझे व्यथित कर दिया था. जो एक बार मुझे मिल गया, उसे मैं खोना नहीं चाहती थी. औरत अपने को तब तक संपूर्ण नहीं मानती जब तक वह मां नहीं बन जाती. तू कुछ भी कह नीरा, यह बात मेरे अंदर बहुत गहराई से बैठ गई थी. इस के लिए मैं कोई भी रिस्क उठाने को तैयार थी. सब तकलीफ बरदाश्त कर सकती थी. मैं तुझे बेवकूफ, मूर्ख, पागल या पिछड़ी हुई लग सकती हूं. पर मैं बच्चा चाहती थी. मैं ने भैया से साफसाफ कह दिया. मुझे बच्चा चाहिए.”
“फिर?””भैया ने कहा, ‘यदि तू यही चाहती है तो समाज वाले तुझे स्वीकार नहीं करेंगे? यही नहीं, मुझे भी अपनी लड़कियों की शादी करनी है. फिर मेरी लड़कियों की शादी कैसे होगी? यदि तू बच्चा ही चाहती है तो इस के लिए तुझे बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ेगा. क्या तू इस के लिए राजी है?’ मैं ने कहा, मैं इस के लिए तैयार हूं.”
“क्या भैया ने तुझे घर से निकल जाने को कहा?””नहीं, उन्होंने कहा जहां तुझे कोई नहीं जानता हो ऐसी जगह तुझे जाना पड़ेगा और किसी भी पहचान के लोगों से संबंध नहीं रखना होगा? क्या इस के लिए तू तैयार है? मैं बच्चे के लिए यह शर्त मानने को तैयार हो गई.”
“यार अर्चना, तू तो पागल हो गई थी.””अब नीरा, तू कुछ भी कह सकती है. पर मुझे जो समझ में आया, मैं ने वही किया. अब मैं कल तुम्हें बाकी बातें बताऊंगी क्योंकि मेरी एक सहेली आ गई है, उस को कुछ जरूरी काम है. बाय, बाय.”
“बाय, बाय अर्चना, कल 8 बजे इंतजार करूंगी?””बिलकुल, बिलकुल.”कह तो दिया मैं ने, पर दूसरे दिन रात के 8 बजे तक बड़े अजीबअजीब ख़याल मेरे दिमाग में आए. क्या अच्छे घर की लड़की थी और आज एक अनाथाश्रम में रह रही है? वक्त कब, किस के साथ, कैसा खेल जाए, कुछ पता नहीं चलता. मन उमड़घुमड़ कर अर्चना के आसपास ही घूम रहा था. वह सारा दिन मेरा मन किसी काम में नहीं लगा.
बारबार घड़ी की तरफ देखने लगती. अरे, यह क्या, अर्चना के फोन की घंटी है. मैं ने देखा, क्या 8 बज गए, नहीं अभी तो 7 ही बज रहे थे. मैं ने उठाते ही बोला, “व्हाट्स अ ग्रेट सरप्राइस, अभी तो 7 ही बजे हैं अर्चना.”
“तुझे काम है नीरा, तो मैं बाद में करती हूं.””अरे नहीं रे, मैं तो तेरे फोन का इंतजार कर रही थी. पर तुम ने कहा था 8 बजे, इसीलिए अभी तो 7 ही बज रहे हैं. मैं तो फ्री हूं तुम्हारी कथा सुनने के लिए. कल क्या बात हो गई थी? तुम क्यों चली गईं?”
“ऐसा है मेरे साथ इसी आश्रम में एक युवा लड़की रहती है. उस के साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. वह मुझे बड़ी दीदी कहती है. वह अपनी सारी समस्याएं मुझे बताती है. कई बार मुझ से सलाह की भी अपेक्षा करती है. जब छोटी बहन बन ही गई तो उसे समझाना और उस को उचित सलाह देना मेरा कर्तव्य तो है न.”
“बिलकुल, क्या हो गया था?””ऐसा है उस का नाम प्रिया है. बहुत ही सुंदर, प्यारी सी लड़की है. सिर्फ 30 साल की है. यहां पर वह 15 साल की थी, तब आई थी क्योंकि उस का किसी ने रेप कर दिया था. अब वह 15 साल बाद 30 की हो गई. हमारे इस आश्रम में हम लड़कियों की शादी भी करवाते हैं. पर यह किसी लड़के को चाहती है. उसे मेरी मदद की जरूरत है. अब मैं यहां इतने सालों से रह रही हूं तो मेरी बात का ये लोग महत्त्व देते हैं. उसी के लिए आजकल मैं कोशिश कर रही हूं. उस की शादी उस लड़के से हो जाए तो अच्छी बात है.”
“अर्चना, तेरी कहानी के बीच में यह प्रिया की कहानी और शुरू हो गई. अब तू बता तुम्हारी संस्था का क्या नाम है? मुझे तो पूरी रात यही बात परेशान कर रही थी?””सबकुछ बताऊंगी नीरा, तसल्ली रख. हमारी संस्था का नाम ‘श्री साईंबाबा आनंद आश्रम’ है. इस में कई संस्थाएं हैं. वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम और गर्ल्स कालेज. इस के अलावा कई तरह की ट्रेनिंग भी दी जाती है. चेन्नई शहर से काफी दूरी पर है. बस से आजा सकते हैं. इस का कैंपस बहुत बड़ा है.”
“यार अर्चना, तू तो इस की तारीफों के पुल बांध रही है.””नीरा, तुम्हें एक बात बताऊं जब मैं शुरू में यहां आई तो बहुत ही परेशान थी परंतु बाद में मुझे इस जगह से बड़ा प्रेम हो गया. अनाथाश्रम की लड़कियों को भी हम पैरों पर न केवल खड़ा करते हैं बल्कि अच्छा वर देख कर उन की शादी भी कर देते हैं. अब प्रिया की शादी जुलाई में होगी. नीरा तुम भी आना और इस बहाने मुझ से भी मिल लोगी.”
“अर्चना, तुम कहां से कहां पहुंच गईं? मुझे अपनी कहानी पहले पूरी बताओ? फिर क्या भैया ने तुम्हें निकाल दिया.””हां, हां, यही तो बता रही थी, बीच में प्रिया की समस्या आ गई थी. उसे मैं ने ठीक कर दिया. ऐसा है, मेरे भैया ने तो कह दिया, ‘तुम डिलीवरी करा सकती हो पर तुम्हें ऐसी जगह भेजूंगा कि तुम्हारा संबंध हम से तो क्या, किसी पहचान वाले से नहीं होना चाहिए? क्या इस बात के लिए तुम राजी हो?’ ‘मुझे तो बच्चा चाहिए था, मैं ने पक्का सोच लिया था. भैया ने कह दिया कि तुम्हारी मरजी, खूब अच्छी तरह सोच लो. मैं ने तो पक्का फैसला कर लिया था. तो भैया ने मुझे साउथ में एक छोटे शहर में जहां मेरी बड़ी बहन रहती थी उस के यहां भेज दिया. फिर बोले कि यहां तुम सिर्फ डिलीवरी करवाओगी. उस के बाद तुम्हारे रहने के लिए मैं दूसरी जगह इंतजाम कर दूंगा. खर्चा भी भैया ने ही भेजा. बहन से कह दिया गया, इस का आदमी अरब कंट्रीज में नौकरी के लिए गया हुआ है.”
“तुम्हारी बहन ने मान लिया?””हां, लव मैरिज कर लिया, बता दिया. फिर इस ‘श्री सत्य साईं आनंद आश्रम’ ने मुझे सहारा दिया. 3 महीने के बच्चे को ले कर मैं यहां आ गई. शुरू में तो भैया थोड़ाथोड़ा रुपए भेजते. मैं क्वालिफाइड तो थी, फिर मैं ने यहीं पर सर्विस कर ली और यहीं पर शिशुगृह भी है. बेटे को वहीं पर छोड़ देती थी. शाम को बच्चे को अपने पास ले लेती. बच्चा बहुत ही प्यारा था. हर कोई उसे उठा लेता था. इसलिए कोई ज्यादा परेशानी नहीं हुई. भैया के घर जाती तो भैया की बदनामी होती और मेरी भतीजियों की भी शादी की समस्या हो जाती.”
“जब नौकरी कर रही थी तो अनाथाश्रम में रहने की क्या जरूरत थी?””मेरी सुरक्षा का तो प्रश्न था? यहां तो बाउंड्री वाल से बाहर कहीं जा नहीं सकते थे. बेटे की सुरक्षा भी थी.”
“अर्चना, तुम बुरा मत मानना, तुम में हिम्मत की तो कमी थी. आजकल ऐक्टर नीना गुप्ता ‘मेरा बच्चा है’ कह कर रख रही है न? करण जौहर को देखो, दो-दो बच्चे.”
लेखक-एस भाग्यम शर्मा
सोशल मीडिया की यदि बहुत सी बुराइयां हम गिना सकते हैं तो फायदे भी इस के कम नहीं. राधा ने मुझे जब फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी तो मैं ने उसे एक्सेप्ट कर लिया. वह मेरे पीहर के शहर की थी तो अपनेआप अपनत्व आ जाना स्वाभाविक है. कहते हैं न, पीहर का कुत्ता भी प्यारा होता है. इस उम्र में भी पीहर का मोह नहीं छूटता.
राधा सरकारी अफसर से रिटायर हुई है. उस में पढ़नेलिखने की बहुत रुचि थी. मैं भी थोड़ीबहुत पत्रपत्रिकाओं में लिख लेती हूं. चांस की बात है, उसे मेरी कहानियां पसंद आईं. वह मेरी फैन हो गई. मैं ने कहा, ‘तुम मुंबई कैसे पहुंच गईं.’ ‘रिटायरमैंट के बाद बेटा मुंबई में नौकरी करता है तो मैं उस के साथ ही रहती हूं.’ फिर इधरउधर की गप हम अकसर करने लगे. “तुम लोग भी ग्वालियर में रहे हो न,” मैं ने पूछा.
“हां, थाटीपुर में रहे हैं.””हम भी वहीं रहते थे. फिर तो तुम अर्चना को जानती होगी.””अर्चना को तो मैं जानती हूं क्योंकि वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी. पर वह मेरे से सीनियर थी, सो बात नहीं होती थी.””अर्चना मेरी खास सहेली थी. हम साथसाथ पढ़ते थे. तुम्हारे पास उस का नंबर है?”
“नहीं, उस से मेरा कौन्टैक्ट नहीं है. परंतु उन के रिश्तेदार से मेरा कौन्टैक्ट है. आप कहें तो मैं उस से नंबर ले कर दे दूं.”अर्चना से मिले 60 साल हो गए थे. शादी के बाद कभी नहीं मिली. उस के बारे में भी मुझे कोई खबर नहीं थी. उस के नंबर देते ही मैं ने अर्चना से कौन्टैक्ट किया.
“मैं नीरा बोल रही हूं.””कौन सी नीरा?””यार अर्चना, हम नागपुर और ग्वालियर में साथसाथ पढ़े हैं. याद आया, हम ने 1960 में 10th का एग्जाम भी साथसाथ दिया.”
“अरे नीरा, तुम… इतने साल बाद, 60 साल हो गए तुम से मिले. आज फोन किया? मेरा फोन नंबर कहां से मिला? मुझे तो बहुत आश्चर्य हो रहा है. आज यह क्या सरप्राइस है. तुम ऐसे कैसे प्रकट हो गईं?”
“मेरी तो छोड़, अर्चना तुम्हें खोजने की मैं ने बहुत कोशिश की पर तुम कहीं नहीं मिलीं. तुम तो जैसे अंतर्ध्यान हो गईं. तुम अभी कहां हो?”
“मेरी छोड़ो नीरा, अपनी बताओ? कहां व कैसी हो? बच्चे सैटल हो गए?””मेरा तो सब ठीक है. 77 साल की उम्र है. इस उम्र में जैसे होते हैं, ऐसे ही हूं. मैं तो राजस्थान में हूं. तुम अपनी कहानी सुनाओ? तुम्हारे बारे में जानने के लिए मैं बहुत उत्सुक हूं. तुम कहां गायब हो गईं?”
“मेरी कहानी सुन कर नीरा तुम बहुत दुखी होगी. क्या सुनाऊं, अपनी गलती बताऊं, दूसरों का धोखा बताऊं, समय का खेल कहूं? तुम तो जानती हो कि बचपन में ही मेरे मांबाप गुजर गए थे. पर मैं हमेशा खुश रहती थी. हमेशा हंसती रहती थी. नीरा अभी भी मैं हमेशा हंसती रहती हूं.”
“मैं तो अर्चना तुम्हें जानती हूं. तुम तो बड़ीबड़ी बातों को भी हंस कर टाल देती थीं. ठहाके मार कर हंसना तो कोई तुम से ही सीखे. इस के बावजूद तुम्हारे साथ क्या हुआ जो तुम अज्ञातवास में चली गईं? मैं ने तुम्हारे बारे में जानने की बहुत कोशिश की, पर सब व्यर्थ गया.”
“तुम्हें मेरा नंबर कैसे मिला?””यह कमाल सोशल मीडिया का है. पहले तो राधा ने तुम्हारे रिश्तेदार से नंबर मांगा तो उन्होंने नहीं दिया, फिर पता नहीं क्या सोच कर दे दिया. खैर, तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ.”
“सुनाती हूं बाबा, मैं ने आज तक अपनी कहानी किसी को नहीं सुनाई. पर तुम्हें जरूर सुनाऊंगी. मुझे भी अपना मन हलका करना है. इस समय नहीं. रात को 8 बजे डिनर के बाद. तुम तो फ्री होगी न उस समय?”
“मैं तो हमेशा फ्री हूं. मैं तो अकेली रहती हूं. इसीलिए तुझे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है. बिना किसी झिझक के तुम अपनी कहानी और सच्ची कहानी सुना देना क्योंकि 60 साल मैं ने बहुत सब्र किया पर तुम्हारे बारे में कुछ भी पता न चला. आज रात सो नहीं पाए तो कोई बात नहीं. आज तो तुम्हारी कहानी सुनना ही है. मैं बड़ी उत्सुकता से रात के 8 बजे का इंतजार करूंगी. बाय, बाय.”
रात को जल्दी से खाना खा कर मैं अर्चना के फोन का इंतजार कर रही थी. क्या बात हुई होगी? अर्चना ने मन बदल लिया होगा क्या? बड़े पसोपेश में मन जाने कहां कहां भटक गया. एक बार को मुझे लगा कि मुझे उस से उस की कहानी नहीं पूछनी थी. शायद मुझ से बात नहीं करेगी. देखा, तो घड़ी में 9:00 बज गए. मैं कुछ निराश हो गई. तभी फोन की घंटी बजी. अर्चना का ही फोन था.
“हेलो अर्चना.””हेलो नीरा, मैं ने तुम्हें बहुत इंतजार करवाया. मुझे गलत मत समझना. मेरी एक सहेली है यहां पर. उस को कोई परेशानी थी. वह मुझे ही सबकुछ मानती है. सो मैं उस से बात करने लगी और उस की समस्या का समाधान भी कर दिया.”
“अरे वाह, अर्चना तुम तो दूसरों की समस्या का समाधान भी कर रही हो. बहुत अच्छी बात है.” “नीरा, मैं कभी दूसरों के भरोसे थी. अब मैं दूसरों की मदद करती हूं. जब हम सक्षम हैं तो दूसरों की मदद करना ही चाहिए. तू तो शुक्र मना नीरा, तू इस हालत में मुझ से मिल रही है. वरना पहले मिलती, तो मेरा बहुत बुरा हाल था.”
“अर्चना, अब यह बात रहने दे मुझे तो अपनी इस अचानक गायब होने की कहानी सुना. अभी तुम कहां हो?” “मैं तो अनाथाश्रम में हूं.” मैं चौंक गई, “क्या बक रही है अर्चना? ऐसा क्या हुआ? कैसे हुआ?”
“मैं सही कह रही हूं नीरा. शायद मेरे जीवन में यही लिखा था.””क्या कह रही है तू? तेरा भाई तो बहुत बड़ा अफसर था.””हां, वे तो मुझे अच्छी तरह रखते थे. मुझ से ही गलती हुई जिस का दंड मैं ने भुगता.””क्या पहेलियां बुझा रही है? साफसाफ बता, क्या हुआ? तेरी शादी हो गई थी क्या?”
“मेरा एक बेटा है जिस की शादी हो गई. अब वह विदेश में है. उस का एक बेटा और बेटी है. अर्थात मेरे पोतेपोती भी हैं. मैं दादी भी बन गई. मेरी बहू बड़ी समझदार है. बेटा भी बहुत अच्छा है.”
“सबकुछ ठीक है, फिर तुम यहां अनाथाश्रम में क्यों?””तुझे तो पता था नीरा, मेरे मम्मीपापा बचपन में ही मर गए थे जब मैं तीसरी में पढ़ती थी. यह तो तुम्हारे सामने की बात है. पहले मम्मी गईं, एक साल बाद पापा चले गए. बड़े भैया के साथ ही मैं रही. ग्वालियर से जब तुम लोग भोपाल चले गए, उसी समय भैया का ट्रांसफर हो गया और हम इंदौर आ गए.”
“यह तो मुझे पता था, उस के बाद तुम लोग भोपाल आ गए, यह तो मैं ने सुना था. पर हम आपस में मिल नहीं पाए. मेरा भोपाल आना बहुत कम हो गया था.””भैया ने मुझ से कह दिया, मैं तुम्हें 10वीं के बाद आगे नहीं पढ़ा सकता क्योंकि मेरी अपनी भी 2 लड़कियां हैं. मुझे उन की भी शादी करनी है. तुम्हें ज्यादा पढ़ाऊंगा तो उस लायक लड़का भी देखना पड़ेगा? मैं तुम्हारी शादी कर देता हूं. लड़का देखने की प्रक्रिया शुरू हो गई. हमारी जाति में दहेज की मांग बहुत ज्यादा होती है, तुझे पता है. इस के अलावा कभी लड़का मुझे पसंद नहीं आता, कभी लड़के को मैं पसंद नहीं आती. न कुछ बैठना था, न बैठा. मैं 35 साल की हो गई.”
“इस बीच अर्चना, तुम ने कुछ नहीं किया, बैठी रहीं?””नहीं नीरा, मैं कैसे बैठी रहती. पहले सिलाई वगैरह सीखी. उस के बाद म्यूजिक सीखने लगी. बीए तो मैं ने म्यूजिक से कर लिया पर आगे कुछ करने के लिए मुझे ग्रेजुएट होना जरूरी था. भाभी से मैं ने कहा. उन्होंने कहा, प्राइवेट भर दो. इंटर किया, फिर बीए भी कर लिया. एमए करने के लिए यूनिवर्सिटी जौइन की. गाने के साथ एमए भी करने लगी.”
लेखक-पिंटू लाल मीणा,
कृषि पर्यवेक्षक फल व फूल का गिरना प्रकृति का नियम है. जितने फूल आते हैं, उन में से काफी गिर जाते हैं और आम में तो 1,000 फूलों में से सिर्फ 1 फूल पर फल लग कर आम बनता है, बाकी सब आम बनने से पहले ही गिर जाते हैं. लेकिन यदि अधिक मात्रा में फूल गिर रहे हैं, तो उस अवस्था में कुछ उपाय अपना कर इस पर कुछ हद तक नियंत्रण पा सकते हैं, जो लाभकारी पाए गए हैं. इसी प्रकार अनार, अमरूद, नीबू, बेल, टमाटर, मिर्च, बैगन व अन्य पौधों में फल व फूल का गिरना एक आम समस्या है और ज्यादा गिरने या ?ाड़ने पर उचित उपाय किया जाना बेहद जरूरी है.
फल और फूलों के गिरने की वजह
* अनार में नर और मादा फूल अलगअगल होते हैं. नर निषेचन के बाद गिर जाते हैं और मादा पर फल बनते हैं.
* यदि फूल वसंत के प्रारंभ में ही गिरने लगे जाते हैं, तो उस में कीट का प्रकोप हो सकता है. जैसे सफेद मक्खी, मिली बग आदि.
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* कई बार फंगसजनित रोगों के प्रकोप की वजह से भी फूल गिर जाते हैं.
* कई बार वातावरण, जैसे वर्षा, हवा और गरमी की वजह से भी फल के गिरने की समस्या हो सकती है.
* पोषक तत्त्वों की कमी, पानी की कमी और अधिकता भी इस की एक बड़ी वजह हो सकती है. फल ?ाड़ने के नियंत्रण के उपाय
* अनार, अमरूद व नीबू में फल 3 साल बाद ही लेना चाहिए. * फूल और फल आते समय पानी न दें और बूंदबूंद सिंचाई का उपयोग करें.
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* प्लानोफिक्स 5 मिलीलिटर दवा को 15 लिटर पानी के हिसाब से मिला कर छिड़काव करें. ये छिड़काव 2 बार करें. एक बार फूल आते समय और दूसरी बार फल बनते समय. इन दोनों अवस्थाओं पर यूरिया का छिड़काव न करें.
* जितना हो सके, गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग करें. इस से कार्बन व नाइट्रोजन का अनुपात बना रहेगा. * दीमक का प्रकोप अनार में अधिक होता है, इसलिए महीने में एक बार पानी के साथ क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी दवा मिला कर पौधों की जड़ में डालें.
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* पोषक तत्त्वों का उपयोग मार्च और जुलाई महीने में ही करें. इस बारे में आप ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए अपने किसी नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के माहिर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं.
रामचरितमानस को अधिकतर हिंदू अपना धार्मिक ग्रंथ मानते हैं. लेकिन बहुत कम ही इन चीजों पर ध्यान देते हैं या पूरी तरह नजरअंदाज कर देते हैं कि यह ग्रंथ अपशब्दों से भरा पड़ा है. लेखक या कवि अपनी रचना की भूमिका में यह लिखना नहीं भूलता कि अगर पाठकों ने उस की रचना को पसंद किया है तो वह अपने श्रम को सार्थक समेगा. साथ में पाठकों के सुझाव भी आमंत्रित करता है. यदि कोई भी कवि या लेखक उस के कथन या लेखन पर विश्वास न करने वालों के लिए अपशब्दों का प्रयोग करे तो कितना अजीब लगता है.
लेकिन जो व्यक्ति तुलसीदास के रामचरित मानस के कथन पर विश्वास नहीं करता है, तुलसी ने उसे अंधा, बहरा, कौआ, दुष्ट, अधर्मी, कुतर्की आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए अपमानित किया है. ऐसे तुलसीदास को महान कवि कैसे कहा जाए, समझ नहीं आता. रामचरितमानस एक धार्मिक ग्रंथ है. उस में आदि से अंत तक तुलसी का यही प्रयास रहा है कि राम को भगवान मानने के साथसाथ लोग उन के ऊलजलूल कथन पर आंख मूंद कर विश्वास करते रहें. तुलसीदास ने सज्जन उसी व्यक्ति को कहा है जो उन के कथन पर विश्वास कर प्रशंसा से सिर हिलाता रहे, चाहे उन का कथन फीका ही क्यों न हो.
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परंतु वे यह अच्छी तरह समझाते थे कि भावी पीढ़ी उन की कवित्व शक्ति की सराहना भले ही करे, पर उन की बेसिरपैर की बातों का मजाक उड़ाए बिना नहीं रहेगी. इसीलिए उपहास करने वालों को तुलसीदास ने दुष्ट के साथसाथ कौआ की उपाधि भी दे डाली. कौआ क्या खाता है, यह सभी जानते हैं. यहां तुलसी बाबा ने अपनेआप को मीठे स्वर वाली कोयल कह डाला. देखिए : ‘‘पैहहिं सुख सुजन सब खल करिहहिं उपहास.’’ अर्थात, इसे सुन कर सज्जन सभी सुख पाएंगे और ‘दुष्ट’ हंसी उड़ाएंगे. ‘खल परिहास होहि हित मोरा. काक कहहिं कलकंठ कठोरा.’ अर्थात, ‘दुष्टों’ के हंसने से मेरा हित होगा. मधुर कंठवाली कोयल को कौए तो कठोर ही कहा करते हैं. तुलसीदास ने अपशब्द भी बहुत सोचसम? कर प्रयोग किए हैं. उन्होंने ‘विनती करो और गाली दो’ का सिद्धांत अपनाया है. तुलसी जो कह रहे हैं उस पर शंका नहीं करनी है.
जिस ने शंका की वही मूर्ख है. यहां तुलसी ने पहले स्वयं को मूर्ख कहा है, फिर दूसरों को. ‘‘समु? बिबिध बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी॥ एतेहु पर करिहिं जे असंका। मोहि ने अधिक ते जड़ मतिरंका॥’’ अर्थात, मेरी अनेक प्रकार की विनती को सम? कर कोई भी इस कथा को सुन कर दोष नहीं देगा. इतने पर भी जो शंका करेंगे वे तो मुझसे भी ‘मूर्ख’ और ‘बुद्धि के कंगाल’ होंगे. कोई रचना कैसी है, इस का मूल्यांकन रचनाकार पाठकों पर छोड़ देता है. अपनी रचना के संबंध में तुलसी का ‘नित कबित्त केहि लाग न नीका, सरस होइ अथवा अति फीका’ तक कहना तो ठीक था, परंतु अपने ग्रंथ की तुलना मानसरोवर से कर आत्मप्रशंसा करना कहां तक उचित कहा जा सकता है.
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इस मानसरोवर के उत्तम देवता वे ही मनुष्य हैं, जो इसे आदर के साथ सुनते और गाते हैं. जो इसे आदर के साथ नहीं सुनते हैं वे ‘दुष्ट’, ‘बगुला’, ‘कौआ’, ‘घोंघा’, ‘मेंढक’ आदि के समान हैं. ‘‘अति खल जे विषई बग कागा। संबुक भेक सेवार समाना।’’ (बालकांड 2) अर्थात, जो अति ‘दुष्ट’ और ‘बिषई’ हैं, वे अभागे ‘बगुले’ और ‘कौए’ हैं जो इस सरोवर के करीब नहीं आते क्योंकि यहां ‘घोंघे’ ‘मेंढक’, ‘सेवार’ के समान विषय रस की नाना कथाएं नहीं हैं. संपूर्ण मानस में यह देखा जाता है कि जो राम का भक्त है वह तुलसी के लिए प्रिय है, जो राम का भक्त नहीं है वह तुलसी का शत्रु है. जहां भी रावण का वर्णन आया है तुलसी ने वहां उसे ‘मूर्ख’, ‘दुष्ट’, ‘पापी’, ‘अभिमानी’ कह कर अपमानित किया है : मंदोदरी रावण को राम से मित्रता करने की सीख दे रही है. परंतु रावण राम के आगे आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं है.
तब तुलसी रावण को यों अपमानित करते हैं : ‘‘श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहंसा जगत विदित अभिमानी॥’’ अर्थात ‘मूर्ख’ और विश्वप्रसिद्ध ‘अभिमानी’ रावण कानों से उस की वाणी सुन कर खूब हंसा. (सुंदरकांड) अंगद-रावण संवाद चल रहा है. रावण राम को मनुष्य मानता है, तब तुलसीदास अंगद से रावण पर अपशब्दों की वर्षा करा देते हैं. (यह कूटनीतिक आचरण के भी विरुद्ध है.) इस प्रकार के अपशब्द शायद ही किसी ग्रंथ में हों : ‘‘रे त्रियचोर कुमारणगामी। खल मलरासि मंदमति कामी॥ सन्निपाति जल्पसि दुर्बादा। भयेसि कालबस खल मनुजादा॥ राम मनुज बोलत असिबानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी॥’’ (लंकाकांड) अर्थात, अरे ‘स्त्री के चोर’, अरे ‘कुमार्ग पर चलने वाले’, अरे, ‘दुष्ट पाप की राशि’, ‘मंदबुद्धि’ और ‘कामी’, तू सन्निपात में क्या दुर्वचन बोल रहा है? अरे ‘दुष्ट राक्षस’, तू काल के वश में हो गया है. राम मनुष्य है. ऐसे वचन बोलते ही, अरे ‘अभिमानी,’ तेरी जीभ क्यों नहीं गिर गई. रामचरितमानस में कवि ने ‘मानो, विचार मत करो’ का ही सिद्धांत अपनाया है. अगर विचार करने पर शक हुआ तो वह व्यक्ति मूर्ख,
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दुष्ट और अभागा है : ‘‘मायाबस मतिमंद अभागी। हृदय जवनिका. बहु बिधि लागी॥ ते सठ हठबस संसय करहिं। निज अग्यान राम पर धरहिं॥’’ (उत्तरकांड) अर्थात, जिन मंदबुद्धि अभागे लोगों के हृदय पर परदे पड़े रहते हैं वे ही मूर्ख हठ कर के ऐसा संदेह करते हैं और अपना अज्ञान राम पर थोपते हैं. लोग सगुण उपासक रह कर राम को ईश्वर मानते रहें, इस के लिए तुलसी ने कागमुशुंडि के माध्यम से खूब कसरत की है. ‘‘सुनु खगेस हरि भगति विहाई। जे सुख चहहिं आन उवाई॥ ते सठ महासिंघु-बिन तरनी। पैरिपार चाहहिं जड़ करनी॥’’ (उत्तरकांड) अर्थात, हे पक्षीराज, सुनिए, जो लोग हरि की भक्ति को छोड़ कर दूसरे उपायों से सुख चाहते हैं, वे मूर्ख और अभागे बिना नाव के तैर कर महासमुद्र पार करना चाहते हैं.
रामचरितमानस को अधिकांश हिंदू अपना धार्मिक ग्रंथ मान कर आदर के साथ पढ़ते हैं, चाहे यह रचना ‘स्वांत: सुखाय’ ही क्यों न हों, पर ऐसा नहीं है कि इस का प्रभाव पाठकों के मनमस्तिष्क पर न पड़ता हो. भारत कई संस्कृतियों का देश है. क्या तुलसी के ये अपशब्द भारत जैसे ‘महामानव समुद्र’ में विष नहीं घोल रहे हैं? (यह लेख चिरोंजीलाल श्रीवास्तव ने अपने जीवनकाल में लिखा था.)
16 वर्षीय अभिषेक को अपनी मैडिकल की कोचिंग की वजह से कानपुर से दिल्ली आना पड़ा. दिल्ली आ कर सब से पहले तो उस ने बजट में रहने की एक जगह ढूंढ़ी. उस के बाद उस के सामने समस्या थी खाने की, क्योंकि जिस पीजी में वह रहता था उस ने खाना न उपलब्ध कराने के लिए कहा. पीजी वालों का कहना था कि अगर आप खुद खाना बना सकते हों तो ठीक है वरना बाहर से मैनेज करें. बाहर से पता करने पर पता चला कि खाने का खर्च जहां उस का बजट बिगाड़ देगा वहीं रोजरोज बाहर का खाना खाने से उस की सेहत को खतरा था. आज अभिषेक को लग रहा था कि काश, उस ने भी अपनी बहन की तरह खाना बनाना सीख लिया होता तो आज यह नौबत न आती. दरअसल, भारतीय समाज में किचन का काम मुख्य रूप से लड़कियों की जिम्मेदारी समझा जाता है.
लड़कों से किचन का काम करवाना या खाना बनवाना बिलो स्टैंडर्ड समझा जाता है. यही कारण है कि लड़के खाना बनाना नहीं सीख पाते और खाने के लिए घर की महिलाओं पर निर्भर रहते हैं. बदलते समय में लड़कियों की दुनिया महज घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं है. वे घर से बाहर बड़ीबड़ी कंपनियां चला रही हैं. ऐसे में लड़कों के लिए भी कुकिंग सीखना बहुत जरूरी हो जाता है. लड़कों को कुकिंग आने के अनेक फायदे हैं, जिन्हें लड़के जान लें तो वे कुकिंग सीखने से पीछे नहीं हटेंगे.
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लड़कियां होंगी इंप्रैस
आज की कामकाजी, आत्मनिर्भर लड़कियां ऐसे लड़कों की तलाश में रहती हैं जो खुद तो खाना बना ही सकें साथ ही गर्लफ्रैंड को भी अपनी बनाई डिशेज खिला कर इंप्रैस कर सकें.15 वर्षीय वंशिका कहती है, ‘‘जब लड़कियां लड़कों के बराबर उच्च शिक्षा, नौकरी, घर से बाहर सभी कार्य कर रही हैं जो लड़के करते हैं तो फिर लड़के घर के काम यानी कुकिंग क्यों न सीखें
‘‘बाहर से आ कर लड़का क्यों आराम से बैठ कर और्डर करे और क्यों लड़की ही किचन में खाना बनाए. जब जमाना बराबरी का है तो लड़कों को भी कुकिंग सीखनी चाहिए. मेरे लिए परफैक्ट बौयफ्रैंड का पैरामीटर है कि लड़के को भी कुकिंग आनी चाहिए.’’
हैल्थ के लिए फायदेमंद
अभिषेक जैसे अनेक लड़के हैं जो उच्चशिक्षा या कोचिंग के लिए घरपरिवार से दूर दूसरे शहरों में रहते हैं. उन के लिए रोजरोज बाहर का खाना खाना न केवल महंगा पड़ता है बल्कि सेहत के लिए भी नुकसानदायक है. ऐसे में अगर लड़कों ने कुकिंग सीखी होगी तो वे खुद खाना बना कर खा सकते हैं जो हर लिहाज से सस्ता व सेहतमंद होगा.
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फ्यूचर के लिए फायदेमंद
आजकल लड़कालड़की दोनों वर्किंग होते हैं. ऐसे में अगर लड़के को कुकिंग आती होगी, तो दोनों घरबाहर की जिम्मेदारियों को बराबरी से बांट सकेंगे वरना आएदिन खाना बनाने को ले कर दोनों के बीच तूतूमैंमैं होती रहेगी.वैसे भी अगर विवाह के बाद लड़केलड़की दोनों को खाना बनाना आता होगा तो खाने में वैरायटी आएगी. दोनों मिल कर कुकिंग में नएनए ऐक्सपैरिमैंट कर सकेंगे और लड़के को खाने के लिए अपनी पत्नी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा बल्कि जरूरत पर प त्नी को भी खाना बना कर खिला सकेगा.
बनेंगे इंडिपैंडैंट
होस्टल में जहां लड़केलड़कियां इकट्ठे रहते हैं वहां अगर लड़कों को खाना बनाना न आता हो और लड़कियां कहीं चली जाएं या बीमार हो जाएं तो कुकिंग न आने वाले लड़कों के लिए मुसीबत हो जाएगी, लेकिन अगर लड़कों को खाना बनाना आता होगा तो वे लड़कियों पर निर्भर नहीं रहेंगे.
लड़कियों को मिलेगा स्पैशल ट्रीटमैंट
लड़कियों को कितना अच्छा लगेगा जब रूटीन से हट कर लड़की आराम से बैठेगी और लड़का उस के लिए स्पैशल डिश बना कर उसे खुश करेगा. इसी तरह विवाह के बाद भी अगर लड़के को खाना बनाना आता होगा तो दोनों मिल कर किचन में साथसाथ कुकिंग कर सकेंगे और साथसाथ समय बिताते हुए दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा.
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लड़के कुकिंग सीखने की शुरुआत कैसे करें
कुकरी ऐक्सपर्ट नीरा कुमार का कहना है कि लड़कों के लिए भी कुकिंग सीखना उतना ही जरूरी है जितना लड़कियों के लिए. उन का तो यहां तक कहना है कि पाक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि लड़के खाना बनाना सीख सकें. वैसे भी जब लड़कियां पढ़लिख कर खाना बनाती हैं तो लड़के भी पढ़नेलिखने के बाद खाना बनाना क्यों न सीखें. लड़के खाना बनाना सीखने की शुरुआत कैसे करें इस बारे में नीरा कुमार का कहना है कि शुरुआत में वे इंस्टैंट फूड बनाना सीखें. फिर धीरेधीरे पुलाव, पोहा, सैंडविच, पास्ता जैसी डिशेज बनाना सीखें. वे चाहें तो कुकिंग वीडियोज की भी मदद ले सकते हैं.
स्मार्टफोन की लें मदद
स्मार्टफोन का यूज सिर्फ मेल, मैसेज या वीडियोज शेयर करने के लिए न करें. आप स्मार्ट फोन में कुकिंग से रिलेटिड ऐप्स भी डाउनलोड कर सकते हैं और गुड फूड ऐप्स जैसी ऐप्लिकेशंस की सहायता से कुकिंग में आने वाली मुश्किलों का हल तलाश सकते हैं. लखनऊ के रहने वाले अपूर्व का कहना है कि कुकिंग एक आर्ट है और इसे हर लड़के को सीखना चाहिए. मैं 12वीं के बाद होस्टल और पीजी में रहा हूं, जहां हमेशा खाने की समस्या आती रहती थी, लेकिन कुकिंग मेरा पैशन है और मैं बचपन से कुकिंग में इंट्रैस्ट लेता था इसलिए मुझे अकेले रहने के दौरान कोई दिक्कत नहीं आई. मुझे कई तरह का खाना बनाना आता है. मेरा मानना है कुकिंग रिलेशनशिप व बैचलर लाइफ के अलावा शादी के बाद भी काम आती है. इसलिए लड़कों को भी बचपन से ही खाना बनाना सीखना चाहिए.
कैरियर का बेहतरीन औप्शन
आज देश के जानेमाने शैफ संजीव कपूर, विकास भल्ला, रणवीर बरार, कुणाल कपूर आदि सभी पुरुष हैं और इन्होंने महिलाओं के एकाधिकार वाले क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई है. इसलिए अगर आप का कुकिंग में पैशन है तो आप उसे अपना प्रौफैशन भी बना सकते हैं. वैसे भी सामाजिक स्तर पर जब लड़केलड़कियों का अंतर खत्म हो रहा है तो फिर लड़कों को भी लड़कियों के क्षेत्र में यानी कुकिंग में महारत हासिल कर के अपने टैलेंट को साबित करना चाहिए और यह तभी संभव हो सकता है जब बचपन से ही वे कुकिंग की ट्रेनिंग लें.
लेखिका- Suman Bajpayee
सुबह से ही घर में मिलने वालों का तांता लगा था. फोन की घंटी लगातार बज रही थी. लैंड लाइन नंबर और मोबाइल अटैंड करने के लिए भी एक चपरासी को काम पर लगाया गया था. वही फोन पर सब को जवाब दे रहा था कि साहब अभी बिजी हैं. जैसे ही फ्री होते हैं उन से बात करा दी जाएगी. फिर वह सब के नाम व नंबर नोट करते जा रहा था. कोई बहुत जिद करता कि बात करनी ही है तो वह साहब की ओर देखता, जो इशारे से मना कर देते.
आखिर वे इतने लोगों से घिरे थे कि उन के लिए उन के बीच से आ कर बात करना बेहद मुश्किल था. लोग उन्हें इस तरह घेरे बैठे और खड़े थे मानो वे किसी जंग की तैयारी में जुटे हों. सांत्वना को संवदेनशीलता के वाक्यों में पिरो कर हर कोई इस तरह उन के सामने अपनी बात इस तरह रखने को उत्सुक था मानो वे ही उन के सब से बड़े हितैषी हों.
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‘‘बहुत दुख हुआ सुन कर.’’
‘‘बहुत बुरा हुआ इन के साथ.’’
‘‘सर, आप को तो हम बरसों से जानते हैं, आप ऐसे हैं ही नहीं. आप जैसा ईमानदार और सज्जन पुरुष ऐसी नीच हरकत कर ही नहीं सकता है. फंसाया है उस ने आप को.’’
‘‘और नहीं तो क्या, रमन उमेश सर को कौन नहीं जानता. ऐसे डिपार्टमैंट में होने के बावजूद जहां बिना रिश्वत लिए एक कागज तक आगे नहीं सरकता, इन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली. भ्रष्टाचार से कोसों दूर हैं और ऐसी गिरी हुई हरकत तो ये कर ही नहीं सकते.’’
‘‘सर, आप चिंता न करें हम आप पर कोई आंच नहीं आने देंगे.’’
‘‘एमसीडी इतना बड़ा महकमा है, कोई न कोई विवाद या आक्षेप तो यहां लगता ही रहता है.’’
आप इस बात को दिल पर न लीजिएगा सर. सीमा को कौन नहीं जानता कि वह किस टाइप की महिला है,’’ कुछ लोगों ने चुटकी ली.
भीड़ बढ़ने के साथसाथ लोगों की सहानुभूति धीरेधीरे फुसफुसाहटों में तबदील होने लगी थी. सहानुभूति व साथ देने का दावा करने वालों के चेहरों पर बिखरी अलग ही तरह की खुशी भी दिखाई दे रही थी.
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कुटिलता उन की आंखों से साफ झलक रही थी मानो कह रही हो बहुत बोलता था हमें कि हम रिश्वत लेते हैं. तू तो उस से भी बड़े इलजाम में फंस गया. सस्पैंड होने के बाद क्या इज्जत रह जाती है, उस पर केस चलेगा वह अलग. फिर अगर दोष साबित हो गया तो बेचारा गया काम से. न घर का रहेगा न बाहर का.
रमनजी की पत्नी राधा सुबह से अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं. जब से उन्हें अपने पति के सस्पैंड होने और उन पर लगे इलजाम के बारे में पता चला था, उन का रोरोकर बुरा हाल था. रमन ऐसा कर सकते हैं, उन्हें विश्वास तो नहीं हो रहा था, पर जो सच सब के सामने था, उसे नजरअंदाज करना भी उन के लिए मुश्किल था. एमसीडी में इतने बड़े अफसर उन के पति रमन ऐसी नीच हरकत कर सकते हैं, यह सोच कर ही वे कांप जातीं.
दोपहर तक घर पर आए लोग धीरेधीरे रमनजी से हाथ मिला कर खिसक लिए. संडे का दिन था, इसलिए सब घर पर मिलने चले आए थे. वरना बेकार ही लीव लेनी पड़ती या न आ पाने का बहाना बनाना पड़ता. बहुत से लोग मन ही मन इस बात से खुश थे. उन के विरोधी जो सदा उन की ईमानदारी से जलते थे, वे भी उन का साथ देने का वादा कर वहां से खिसक लिए. थके, परेशान और बेइज्जती के एहसास से घिरे रमन पर तो जैसे विपदा आ गई थी.
उन की बरसों की मेहनत इस तरह पानी में बह जाएगी, शर्म से उन का सिर झुका जा रहा था. बिना कोई गलती किए इतना अपमान सहना…फिर घरपरिवार, दोस्त नातेरिश्तेदारों के सवालों के जवाब देने…वे लड़खड़ाते कदमों से बैडरूम में गए.
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उन्हें देखते ही राधा, जिन के मायके वाले उन्हें वहां मोरचा संभाले बैठाए थे,
कमरे से बाहर जाने लगीं तो रमन ने उन का हाथ पकड़ लिया.
‘‘मैं राधा से अकेले में बात करना चाहता हूं. आप से विनती है आप थोड़े समय के लिए बाहर चले जाएं,’’ रमन ने बहुत ही नम्रता से अपने ससुराल वालों से कहा.
‘‘मुझे आप से कोई बात नहीं करनी है,’’ राधा ने उन का हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘अब भी कुछ बाकी बचा है कहनेसुनने को? मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. अरे बच्चों का ही खयाल कर लेते. 45 साल की उम्र में 2 बच्चों के बाप हो कर ऐसी हरकत करते हुए आप को शर्म नहीं आई?’’ राधा की आंखों से फिर आंसू बहने लगे.
‘‘देखो, तुम खुद इतनी पढ़ीलिखी हो, जौब करती हो और फिर भी दांवपेच को समझ नहीं पा रही हो…मुझे फंसाया गया है… औरतों के लिए बने कानूनों का फायदा उठा रही है वह औरत. औरत किस तरह से आज मर्दों को झूठे आरोपों में फंसा रही हैं, यह बात तुम अच्छी तरह से जानती हो. उन की बात न मानो तो इलजाम लगाने में पीछे नहीं रहतीं. फिर तुम तो मुझे अच्छी तरह से जानती हो. क्या मैं ऐसा कर सकता हूं? तुम से कितना प्यार करता हूं, यह बताने की क्या अब भी जरूरत है? तुम मुझे समझोगी कम से कम मैं तुम से तो यह उम्मीद करता था.’’
‘‘यह सब होने के बाद क्या और क्यों समझूं मैं. तुम ही बताओ…क्यों करेगी कोई औरत ऐसा? आखिर उस की बदनामी भी तो होगी. वह भी शादीशुदा है. तुम पर बेवजह इतना बड़ा इलजाम क्यों लगाएगी? अगर गलत साबित हुई तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है या वह सस्पैंड भी हो सकती है. यही नहीं उस का खुद का घर भी टूट सकता है. मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो. पता नहीं अब क्या होगा. पर तुम्हारे साथ रहने का तो अब सवाल ही नहीं है. मैं बच्चों को ले कर आज ही मायके चली जाऊंगी. मेरे बरसों के विश्वास को तुम ने कितनी आसानी से चकनाचूर कर दिया, रमन,’’ राधा गुस्से में फुफकारीं.
‘‘बच्चों जैसी बात मत करो. जो गलती मैं ने की ही नहीं है, उस की सजा मैं नहीं भुगतुंगा, इन्वैस्टीगेशन होगी तो सब सच सामने आ जाएगा. कब से तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि मेरी मातहत सीमा बहुत ही कामचोर किस्म की महिला हैं. इसीलिए उन की प्रोमोशन नहीं होती. मेरे नाम से लोगों से रिश्वत लेती हैं. तुम्हें पता ही है एमसीडी ऐसा विभाग है, जो सब से भ्रष्ट माना जाता है. एक से एक निकम्मे लोग भी पैसे वाले बन कर घूम रहे हैं.
‘‘मैं ने कभी रिश्वत नहीं ली या किसी के दबाव में आ कर किसी की फाइल पास नहीं की, इसलिए मेरे न जाने कितने विरोधी बन गए हैं. बहुत दिनों से सीमा मुझे तरहतरह से परेशान कर रही थीं. जब मैं ने उन से कहा कि जो काम आप के अंतर्गत आता है उसे पहले बखूबी संभालना सीख लें, फिर प्रमोशन की बात सोचेंगे तो उन्होंने मुझे धमकी दी कि मुझे देख लेंगी. गुरुवार की शाम को वे मेरे कैबिन में आईं और फिर प्रमोशन करने की बात की.’’
‘‘जब मैं ने मना किया तो उन्होंने अपना ब्लाउज फाड़ डाला और चिल्लाने लगीं कि मैं ने उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. मैं उन्हें मोलैस्ट कर रहा हूं. झूठे आंसू बहा कर उन्होंने लोगों को इकट्ठा कर लिया. तमाशा बना दिया मेरा. हमारा समाज ऐसा ही है कि पुरुष को ही हर गलती का जिम्मेदार माना जाता है. बस सच यही है. इन्वैस्टीगेशन होने दो, सब को पता चल जाएगा कि मैं निर्दोष हूं,’’ रमनजी बोलतेबोलते कांप रहे थे.
ऐसे वक्त में जब उन्हें अपनी पत्नी व परिवार की सब से ज्यादा जरूरत थी, वे ही उन्हें गलत समझ रहे थे. इस से ज्यादा परेशान व हताश करने वाली बात और क्या हो सकती थी. विश्वास की जड़ें अगर तेज हवाओं का सामना न कर पाएं और उखड़ जाएं तो रिश्ते कितने खोखले लगने लगते हैं. कहां कमी रह गई उन से… राधा और बच्चों के लिए हमेशा समर्पित रहे वे तो…
‘‘क्यों कहानी बना रहे हो. इतने बड़े अफसर हो कर एक औरत को ही बदनाम करने लगे. तुम्हें बदनाम कर के उसे क्या मिलेगा. उस की भी जगहंसाई होगी… मुझे विश्वास नहीं होता. इस से पहले क्या उस ने ऐसी हरकत किसी के साथ की है?’’ राधा तो रमन की बात सुनने को ही तैयार नहीं थीं.
‘‘बेशक न की हो, पर उन के चालचलन पर हर कोई उंगली उठाता है. कपड़े देखे हैं कैसे पहनती हैं. पल्लू हमेशा सरकता रहता है, लगता है जैसे मर्दों को लुभाने में लगी हुई है.’’
‘‘हद करते हो रमन… ऐसी सोच रखते हो एक औरत के बारे में छि:’’ राधा आगे कुछ कहतीं तभी कमरे में रमन के ससुराल वाले आ गए.
‘‘क्या सोच रही है राधा? अब भी इस आदमी के साथ रहना चाहती है. हर तरफ थूथू हो रही है. बच्चों पर इस बात का कितना बुरा असर पड़ेगा. स्कूल जाएंगे तो दूसरे बच्चे कितना मजाक उड़ाएंगे. चल हमारे साथ चल,’’ राधा के भाई ने गुस्से से कहा.
‘‘और क्या. तू चिंता मत कर. हम तेरे साथ हैं. फिर तू खुद कमाती है,’’ राधा की मां ने अपने दामाद की ओर घृणित नजरों से देखते हुए कहा, मानो उन का जुर्म जैसे साबित ही हो गया हो.
आज तक जो ससुराल वाले उन का गुणगान करते नहीं थकते थे, वे ही आज उन का तिरस्कार कर रहे थे. कौन कहता है औरत अबला है, समाज उसी का साथ देता है. उन्हें पुरुष की विडंबना पर अफसोस हुआ. बिना दोषी हुए भी पुरुष को कठघरे में खड़े होने को मजबूर होना पड़ता है.
‘‘पापाजी, आप ही समझाइए न इन्हें,’’ रमनजी ने बड़ी आशा भरी नजरों से अपने ससुर को देखते हुए कहा. वे जानते थे कि वे बहुत ही सुलझे हुए इनसान हैं और जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेते हैं.
‘‘हां बेटा, रमन की बात को समझो तो… इतने बरसों का साथ है… ऐसे अविश्वास करने से जिंदगी नहीं चलती. तुम्हें अपने पति पर भरोसा होना चाहिए.’’
‘‘अपनी बेटी का साथ देने के बजाय आप इस आदमी का साथ दे रहे हैं, जो दूसरी औरतों के साथ बदसलूकी करता है… उन की इज्जत पर हाथ डालता है… पता नहीं और क्याक्या करता हो और हमारी बेटी को न जाने कब से धोखा दे रहा हो. सादगी की आड़ में न जाने कितनी औरतों से संबंध बना चुका हो,’’ अपनी सास की बात सुन रमन हैरान रह गए.
‘‘मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी मां. मुसीबत के वक्त अपने ही साथ देते हैं और जब राधा मुझ पर विश्वास ही नहीं करना चाहती तो मैं क्या कह सकता हूं. इतने लंबे वैवाहिक जीवन में भी अगर पतिपत्नी के बीच विश्वास की दीवारें पुख्ता न हों तो फिर साथ रहना ही बेमानी है.
‘‘अब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. तुम मेरी तरफ से आजाद हो, पर यह घर हमेशा से तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहेगा.’’
रमन की बात सुन पल भर को राधा को लगा कि शायद वही गलत है. सच में रमन जैसे प्यारे पति और स्नेहमयी पिता में किसी दूसरे की बात सुन कर दोष देखना क्या उचित होगा?
18 साल की शादीशुदा जिंदगी में कभी रमन ने उस का दिल नहीं दुखाया था, कभी भी किसी बात की कमी नहीं होने दी थी, तो फिर क्यों आज उस का विश्वास डगमगा रहा है… वे कुछ कहना ही चाहती थीं कि मां ने उन का हाथ पकड़ा और घसीटते हुए बाहर ले गईं. बच्चे हैरान और सहमे से खड़े सब की बातें सुन रहे थे.
‘‘मां, पापा की बात तो सुनो…’’ उन की 18 वर्ष की बेटी साक्षी की बात पूरी होने से पहले ही काट दी गई.
‘‘तू इन सब बातों से दूर रह. अभी बच्ची है…’’
नानी की फटकार सुन वह चुप हो गई. मां का पापा पर विश्वास न करना उसे
अखर रहा था. उस ने अपने भाई को देखा जो बुरी तरह से घबराया हुआ था. साक्षी ने उसे सीने से लगा लिया और फिर दूसरे कमरे में ले गई. बड़े भी कितने अजीब होते हैं. अपनों से ज्यादा परायों की बात पर भरोसा करते हैं. हो सकता है… नहीं उसे पक्का यकीन है कि उस के पापा को फंसाया गया है.
राधा और बच्चों के जाने के बाद रमन को घर काटने लगा था. इन्वैस्टिगेशन के दौरान सीमा बिना झिझके कहती कि रमन ने पहले भी उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. यहां तक कि उन के सामने सैक्स संबंध बनाने का प्रस्ताव भी रखा था.
बहसों, दलीलों और रमन की ईमानदारी भी इसलिए उन्हें सच्चा साबित नहीं कर पा रही थी, क्योंकि कानून औरत का साथ देता है. खासकर तब जब बात उस के साथ छेड़छाड़ करने की हो.
रमन टूट रहे थे. परिवार का भी साथ नहीं था, दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया था.
उस दिन शाम को रमन अकेले निराश से घर में अंधेरे में गुम से बैठे थे. रोशनी उन की आंखों को अब चुभने लगी थी, इसलिए अंधेरे में ही बैठे रहते. खाली घर उन्हें डराने लगा था. प्यास सी महसूस हुई उन्हें पर उठने का मन नहीं किया. आदतन वे राधा को आवाज लगाने ही लगे थे कि रुक गए.
फिर अचानक अपने सामने राधा को खड़े देख चौंक गए. लाइट जलाते हुए वे बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए रमन. आप पर विश्वास न कर के मैं ने खुद को धोखा दिया है. पर अब मुझे सच पता चल चुका है,’’ और फिर रमन से लिपट गईं. ग्लानि उन के चेहरे से साफ झलक रही थी. जिस पति पर वे आज तक अभिमान करती आई थीं, उस पर शक करने का दुख उन की आंखों से बह रहा था.
‘‘पर अभी तो इन्वैस्टिगेशन पूरी भी नहीं हुई है, फिर…’’ रमन हैरान थे, पर राधा को देख उन्हें लगा था मानो आसमान पर बादलों का जो झुंड इतने दिनों से मंडरा रहा था और हर ओर कालिमा बिखेर रहा था, वह यकायक हट गया है. रोशनी अब उन की आंखों को चुभ नहीं रही थी.
सीमा के पति मुझ से मिलने आए थे. उन्होंने ही मुझे बताया कि सीमा के खिलाफ वह सार्वजनिक रूप से या इन्वैस्टिगेशन अफसर को तो बयान नहीं दे सकते, क्योंकि इस से उन का घर टूट जाएगा और चूंकि वे बीमार रहते हैं, इसलिए पूरी तरह से पत्नी पर ही निर्भर हैं. लेकिन वे माफी मांग रहे थे कि उन की पत्नी की वजह से हमें एकदूसरे से अलग होना पड़ा और आप को इतनी बदनामी सहनी पड़ी.
वह बोले कि सीमा बहुत महत्त्वाकांक्षी है और जानती है कि मैं लाचार हूं, इसलिए वह किसी भी हद तक जा सकती है. उसे पैसे की भूख है. वह बिना मेहनत के तरक्की की सीढि़यां चढ़ना चाहती है.
वह रमनजी से इसी बात से नाराज थी कि वे उस की प्रमोशन नहीं करते और साथ ही उस के रिश्वत लेने के खिलाफ रहते थे. रमन सर ने शायद उसे वार्निंग भी दी थी कि वे उस के खिलाफ ऐक्शन लेंगे, इसीलिए उस ने यह सब खेल खेला. मैं उस की तरफ से आप से माफी मांगता हूं और रिक्वैस्ट करता हूं कि आप रमन सर के पास लौट जाएं
‘‘मुझे भी माफ कर दीजिए रमन. हम साथ मिल कर इस मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ लेंगे. मैं यकीन दिलाती हूं कि अब कभी अपने बीच की विश्वास की जड़ों को उखड़ने नहीं दूंगी.’’
‘रिश्तों का चक्रव्यूह’,‘मनमोहिनी’, ‘बेहद 2’और ‘सफरनामा’जैसे टीवी सीरियलों में अभिनय कर जबरदस्त शोहरत बटोरने वाले अभिनेता अंकित सिवाच इन दिनों एक तरफ यशएपटनायक और ममता पटनायक के प्रोडक्शन के सीरियल ‘‘इश्क में मरजावां 2’’ का हिस्सा हैं.तो दूसरी तरफ उनके कैरियर में एक नया मोड़ आ चुका है.बतौर अभिनेता उनकी पहली फीचर फिल्म ‘‘बनारस वेनिला’’की शूटिंग पूरी हो चुकी है.
एक तरफ अंकित सिवाच का कैरियर उड़ान भर रहा है,तो वहीं अब अंकित सिवाच ने अपनी नई कार खरीद ली है.जिससे वह बेहद खुश हैं. जी हाॅ! अंकित सिवाच ने हाल ही में खुद के लिए एक सुंदर काले रंग का ‘इसु जुडी एंडमाववी एंडक्रास¼ Isuzu D&MaÛV&Cross ½)पिक अपट्रक खरीदा है.
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खुद अंकित कहते हैं- ‘‘अगस्त माह के पहले सप्ताह में मैने नई कार खरीदी.यह विशेष मॉडल और इंजन मुंबई में डिलीवर होने वाली पहली कार है.काला रंग हमेशा से मेरा पसंदीदा रंग रहा है.मेरी पिछली कार ऑडी 5 थी, यह भी काले रंग की है. मेरामाननाहैकिरंगनिश्चितताऔरअधिकारकेसाथप्रतिध्वनितहोताहै, इसलिएसड़कपरएकमजबूतउपस्थितिहै.मैंलंबेसमयसेअपनेलिएएकपिकअपट्रकखरीदनेकीसोचरहाथा.यहमेरेलिएबहुतरोमांचकहैकियहमेरीफिल्मकीरिलीजकीतारीखकेबहुतकरीबहुआहै. ’’
तो वहीं वह अपनी पहली बाॅलीवुड फिल्म ‘‘बनारस वेनिला’’को लेकर भी उत्साहित हैं.वह कहते हैं-‘‘मेरे जन्मदिन 23 जनवरी 2021 को मेरी फिल्म ‘बनारस वेनिला’की आधिकारिक घोषणा हुई थी.इससे बड़ा मेरे लिए जन्मदिन का उपहार क्या हो सकता है?मैंने इस फिल्म में ट्यूरिस्ट गाइड का किरदार निभाया है.हमने फिल्म ‘बनारस वेनिला’की शूटिंग पूरी कर ली है.फिल्म के जल्द रिलीज होने की उम्मीद है.’’
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पहली फिल्म के प्रदर्शन से पहले इस नई कार को खरीदना तो अंकित सिवाच के लिए बड़ा उपहार है. इस पर अंकित कहते हैं-‘‘मेरे लिए तो यह बचपन का सपना सच होने जैसा है.मैं हमेशा से पिक अपट्रकों का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं, और मेरी पहली फिल्म की रिलीज से ठीक पहले इसे प्राप्त करना एक आशीर्वाद है.
अंकित को हमेशा से कारों का शौक रहा है.वह कहते हैं-‘‘मुझे सभी पीढ़ियों से कारों के वीडियो पर शोध करना, पढ़ना और देखना पसंद है, यहां तक कि उस मामले के लिए बाइक भी.सबसे आकर्षक हमेशा एक पिक अपट्रक रहा है और आखिरकार मेरे पास अब मेरे गैरेज में है.
” एक कार बहुत कुछ बोलती है कि अंदर कौन बैठा है, इसलिए एक पारिवारिक कार, एक लक्जरी कार, स्पोर्ट्स कार, एक साहसिक पिकअपट्रक आदि जैसे शब्द हैं.अभिनेता अंकित बताते हैं-‘‘तभी तो मेरा मानना है कि एक व्यक्ति के लिए कुछ ऐसा खरीदना बहुत महत्वपूर्ण है,जो उनके व्यक्तित्व से मेल खाता हो. यह कार और ड्राइवर दोनों के चरित्र को जोड़ता है.मुंबई में यह मेरी तीसरी कार है,जिसे खरीदकर मैं खुद को धन्य महसूस कर रहा हूं.”
सब टीवी के सुपरहिट धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा दर्शको को खूब पसंद आता है. इस सीरियल में नजर आने वाले सभी कलाकारों की अपनी एक अलग पहचान हैं. इनके एक्टिंग को भी लोग खूब पसंद करते हैं. यहीं वजह है जो यह शो सालों से चला आ रहा है.
शो के मुख्य किरदार के साथ- साथ तारक मेहता के साइट कैरेक्टर भी फैंस को खूब ज्यादा पसंद आते हैं. इनमें से एक नाम है नट्टू काका का जिन्हें लोग खूब पसंद करते हैं.
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नट्टू काका इन दिनों कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. धनश्याम नायक के इस किरदार ने अपनी जगह लोगों के दिलों में खूब बना ली है. बीते साल दिसंबर में धनश्याम नायक को पता चला कि उन्हें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया है. जिसके बाद वह लगातार अपना इलाज करा रहे हैं.
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इसके साथ ही धनश्याम नायक तारक मेहता का उल्टा चश्मा की शूटिंग भी कर रहे हैं. इन दिनों शो के सेट से उनकी एक तस्वीर वायरल हो रही हैं, जिसमें वह काफी ज्यादा कमजोर लग रहे हैं. इसे देखकर फैंस भी हैरान हो गए हैं कि आखिर ये सब क्या हो गया है.
वायरल हो रही तस्वीर में वह सफेद रंग का कुर्ता पहने नजर आ रहे हैं और उनके चेहरे की चमक थोड़ी सी फीकी पड़ गई है.
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फैंस लगातार नट्टू काका की तस्वीर पर कमेंट कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर में नट्टू काका को क्या हुआ है क्यों ऐसे दिखने लगे हैं.
सीरियल कुमकुम भाग्य से अपनी पहचान बना चुके जीशान खान को लेकर बहुत बड़ी खबर सामने आ रही है, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, कुछ वक्त पहले ही जीशान खान बिग बॉस ओटीटी में शामिल हुए थें, लेकिन अब खबर आ रही है कि उन्हें मेकर्स ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
दरअसल,कुछ वक्त पहले प्रतीक सेजवाल के साथ उनकी लड़ाई चल रही थी, जिसके बाद उनकी लड़ाई काफी ज्यादा बढती गई, जिसे देखते हुए मकर्स ने यह फैसला लिया कि उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाए.
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बिग बॉस ओटीटी के मेकर्स ने इस फैसले से जीशान खान को जोरदार झटका दिया है, जिससे फैंस भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. इसी बीच जीशान खान ने अपने चोट को पुरी दुनिया के सामने साझा किया है जिसमें उन्होंने अपने चोट को दिखाया है.
जीशान खान ने अपने सोशल मीडिया पर शर्टलैस तस्वीर शेयर कि है जिसमें वह अपने चोट को दिखाते नजर आ रहे हैं. तस्वीर में जीशान खान के हाथ पर चोट के निशान साफ देखे जा सकते हैं. जीशान खान के इस पोस्ट के बाद से सोशल मीडिया पर खूब बवाल हो रहा है.
फैंस बिग बॉस के मेकर्स को ट्रोल करना शुरू कर दिए हैं, जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कई तरह के मीम्स आ रहे हैं.
इससे पहले भी कई बार बिग बॉस शो में हंगामा हुआ जिसे लगातार दर्शक लाइव देखते नजर आएं हैं,लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ जो शो शुरू होने के कुछ वक्त बाद ही ड्रामा हो गया.