लेखक- वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’
कोरोना जैसी महामारी की दूसरी लहर से हमारे देश में मौतों का जो आंकड़ा सामने आया है, वह चिंता का विषय है. दूसरी लहर में होने वाली मौतें औक्सीजन की कमी की वजह से हुई हैं. गांवदेहात भी इस महामारी से प्रभावित तो हुए, परंतु अच्छे पर्यावरण और पेड़पौधों की अधिकता के चलते मौतें ज्यादा नहीं हुईं. कोरोना जैसी बीमारी ने हमें सचेत कर दिया है कि हम सरकार के भरोसे न रह कर अपनी सेहत का ध्यान खुद रखें. अच्छी सेहत के लिए हम अपने आसपास का वातावरण साफ और स्वच्छ रखें. जितना हो सके, पेड़ लगाएं.
मध्य प्रदेश के मंडला जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में इन दिनों वृक्षारोपण को बढ़ाने के लिए एक नया प्रयोग किया जा रहा है. यहां के वैज्ञानिक और कर्मचारी बीज बम बनाने में जुटे हुए हैं. बम का नाम सुन कर हम भले ही घबरा जाते हों, लेकिन यह बम प्रकृति को हराभरा करने के लिए तैयार किया जा रहा है. मानसून सीजन में इस बीज बम को सिर्फ जमीन पर फेंकना होगा और बस तैयार हो जाएंगे पौधे.
मंडला कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डा. विशाल मेश्राम बताते हैं कि वह बीज, मिट्टी, पानी और खाद को मिला कर जो गोले बना रहे हैं, ये कोई आम मिट्टी के गोले नहीं हैं, बल्कि बीज बम हैं.
दरअसल, लगातार घट रहे वनों के क्षेत्रफल और इस के चलते हो रहे वातावरण में बदलाव को देखते हुए वृक्षारोपण की सलाह दुनिया के सभी पर्यावरण विशेषज्ञ दे रहे हैं.
वैसे तो हर साल मानसून के दौरान वृक्षारोपण होते हैं, लेकिन उन में से कितने पौधे पेड़ बन पाते हैं, यह बात सभी अच्छी तरह जानते हैं. इस समस्या को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा इन दिनों बड़ी संख्या में बीज बम बना रहे हैं.
इन बीज बमों को सीड बौल और अर्थ बौल भी कहते हैं. वर्मी कंपोस्ट खाद, खेत की मिट्टी की मदद से ऐसी बौल बनाई हैं, जिन में किसी भी पेड़ के 2 बीज रखे गए हैं. खासकर इस में सामुदायिक वानिकी के तहत आने वाले वृक्ष के बीज जैसे नीम, हर्रा, बहेड़ा, जामुन, आंवला जैसे दीर्घकालिक पेड़ों को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग किया जा रहा है.
कैसे होगा बम का प्रयोग
मानसून के मौसम में 2 से 3 बरसात के बाद किसी भी ऐसे स्थान पर, जहां वृक्षारोपण करना है, वहां फेंकना है. इस के बाद ये बौल बाकी का काम खुद कर देंगे. पानी मिलते ही इस बौल के बीज अंकुरित हो जाएंगे और इस की केंचुआ खाद और मिट्टी इन्हें बड़े होने में मदद करेगी.
इतना ही नहीं, यदि आप घर में इन्हें लगाना चाहते हैं, तो केवल इसे उस जगह रख दीजिए, जहां आप पौधा लगाना चाहते हैं. यह वृक्षारोपण का सब से आसान तरीका है और नर्सरी में बीज लगाने, पौधे की देखरेख करने और फिर बाद में गड्ढे खोद कर रोपने से लोगों को राहत दिलाएगी.
वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विशाल मेश्राम बताते हैं कि इस का नाम बीज बम इसलिए दिया गया है, क्योंकि हर अटपटे नाम के पीछे यही लौजिक होता है कि इस से आकर्षण पैदा हो.
यदि अटपटा नाम नहीं होता, तो लोग कभी भी आकर्षित नहीं होते. जब लोग आकर्षित होते हैं, तो जानने की कोशिश करते हैं कि यह क्या है. इस वजह से लोगों में जिज्ञासा पैदा होती है.
विकास की अंधी दौड़ के कारण वन लगातार घटते जा रहे हैं. हमें वृक्ष बढ़ाने की जरूरत है, जो औक्सीजन हमें प्राकृतिक रूप से मिलती थी, वह मिलती रहे. वर्षा भी अनियमित हो रही है, इस से उत्पादन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है. इसलिए बीज बम बनाने का प्रयास किया जा रहा है.
बीज बम बनाना भी काफी आसान है. इस के लिए खेत की मिट्टी की आवश्यकता है. खेत की मिट्टी, पानी और खाद मिला कर गोले तैयार किए जाते हैं. इन गोलों में बीज डाल दिए जाते हैं.
यह 2 तरीके से काम करता है. इसे या तो फेंका जाता है या फिर जहां वृक्षारोपण करना है, वहां इस को रख दिया जाता है. मानसून आने के पश्चात जब इस में नमी होगी, उस से बीजों का अंकुरण होगा और पौधे तैयार हो जाएंगे. पौधारोपण की इस नई तकनीक को जानने के लिए लोगों में रुचि पैदा हो रही है.