आमतौर पर हम सुनने से ज्यादा बोलने पर यकीन रखते हैं. इसलिए एक अच्छा श्रोता नहीं बन पाते और समस्या ? बोलते हैं. यकीन मानिए अगर आप सुनने को तरजीह देंगे तो आप का मार्ग पहले से साफ होगा. कैसे? जानें. आजकल के डिजिटल युग में हम सब अपने डिजिटल बुलबुलों में ऐसे कैद हैं कि कब रिश्ते हमारे हाथों से फिसल जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हम बस, अपनी बात बताना चाहते हैं, अपने विचार दूसरों के समक्ष रखना चाहते हैं चाहे माध्यम फेसबुक हो या ट्विटर. कोई भी डिजिटल माध्यम ऐसा नही है जहां पर सुनने का भी प्रावधान हो.

ऋतु जब भी दफ्तर से वापस घर आती थी, उस की बेटी दिया उस से पूरे दिन का लेखाजोखा सुनाने को आतुर रहती थी. ऋतु हर समय मोबाइल को हाथ में लिए दिया की बातों पर बस, कान देती थी, सुनती नहीं थी. धीरेधीरे दिया ने ऋतु से बातें शेयर करनी बंद कर दीं. दिया को लगने लगा था कि मम्मी के पास उस के लिए समय ही नहीं है क्योंकि ऋतु दिया की हर बात पर, बस, प्रतिक्रिया देती थी, बात को सम?ाती नहीं थी. काम्या को ऋषभ का दफ्तर से आने का बेसब्री से इंतजार रहता था. काम्या पूरे दिन का ब्योरा ऋषभ को सुनाना चाहती थी पर ऋषभ मोबाइल या टीवी में खो जाता था. बहुत बार काम्या को लगता कि ऋषभ और वह एक होटल में कमरा शेयर कर रहे हैं.

ऋषभ की इन्हीं आदतों से तंग आ कर काम्या ने अपने एक्स की तरफ कदम मोड़ लिए जो उस की बातों को तस्सली से सुनता है. किसी भी इंसान का जीवन परफैक्ट नहीं होता. हरेक के जीवन मे उतारचढ़ाव आते रहते हैं. अगर हम किसी समस्या से रूबरू हो रहे हैं तो ऐसे में हमें कोई ऐसा दोस्त चाहिए होता है जो बिना लैक्चर दिए हमारी बात को सुन ले. आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में धीरज का बेहद अभाव है. 5जी स्पीड के डेटा की तरह ही हम अपनी बात कहना चाहते हैं और उस के बाद कान बंद कर के अपनी डिजिटल दुनिया में विलीन हो जाते हैं. एक अच्छा श्रोता होना भी एक कला है. यह ऐसी कला है जो हम अपने अंदर थोड़ा सा परिवर्तन कर के आत्मसात कर सकते हैं.

अगर हम अपने अंदर इस कौशल का विकास करेंगे तो न केवल यह हमारे रिश्तों के लिए लाभदायक महसूस होगा, बल्कि यह हमारे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित होगा. ह्ल अच्छा श्रोता होना बेहद जरूरी : रिश्तों में अधिकतर गलतफहमी इसलिए पनपती है क्योंकि हम लोग बोलते तो हैं लेकिन सुनते नहीं. कोई भी बात अगर होती है तो हमें अपनी बात कहनी होती है और उस के बाद हमें कोई दूसरा क्या कह रहा है, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. अधिकतर लोग बोलने के लिए उतावले होते हैं. उन्हें लगता है, बोलने से ही उन का वर्चस्व बनेगा, इसलिए सुनने से अधिक बोलने को महत्त्व दिया जाता रहा है. परंतु रिश्तों में मिठास और मजबूती बनाए रखने के लिए एक अच्छा श्रोता होना बेहद जरूरी है.

ह्ल जिंदगी को देता है एक अलग नजरिया : जितना धीरज से आप किसी की बात सुन पाएंगे, उतना ही अधिक आप उन्हें सम?ाने में सक्षम होंगे. जितने ज्यादा आप लोगों को सुनेंगे, उतना ही अधिक आप का जिंदगी के प्रति नजरिया बदलता जाएगा. जिंदगी के बहुत सारे रंग और अनुभवों से आप सुन कर ही रूबरू हो सकते हैं. जो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा बोलता है, वह अंदर से कमजोर होता है. बोलबोल कर ही वह हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है. अगर आप बोलते हैं लेकिन सुनते नहीं हैं तो आप का नजरिया जिंदगी की तरफ बेहद लिमिटेड ही रहेगा. जितना सुनेंगे, उतना ही जिंदगी के हर पहलू में आगे बढ़ेंगे. ह्ल आप की प्रोफैशनल ग्रोथ के लिए भी है जरूरी : यह बात विभिन्न सर्वे में सामने आई है कि एक अच्छा श्रोता हमेशा अपने काम में बेहद सजग रहता है.

उस का प्रोफैशनल ग्राफ दूसरे लोगों की अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई पर रहता है. मीटिंग हो या क्लाइंट डीलिंग या फिर कोई निर्णय लेना हो तो. वह सभी काम आसानी से कर सकता है. बहुत बार दफ्तरों में देखा जाता है कि कुछ कर्मचारी अपनी शेखी बघार कर हंसी के पात्र बन जाते हैं और कुछ लोग सुन कर व सम?ा कर अपने कार्यपथ पर आगे बढ़ते जाते हैं. ह्ल जितना सुनेंगे उतना ही सीखेंगे : जीवन के जिस भी पड़ाव पर आप ने सुनना बंद कर दिया तो सम?ा लीजिए सीखना भी बंद कर दिया है. अगर बोलते ही रहेंगे तो दूसरों से सीखेंगे कैसे? हर व्यक्ति के अंदर कुछ ऐसा गुण अवश्य होता है जिस से आप कुछ न कुछ सीख सकते हैं. जरूरत है ध्यान से उन को सुनने की. ह्ल खुद के लिए खुद की भी सुनें : अगर आप के अंदर सुनने की कला विकसित है तो आप धीरेधीरे अपने को भी सुनने और सम?ाने लगेंगे. जो इंसान खुद को सम?ाने लगता है, उसे किसी और की जरूरत महसूस नहीं होती. अपने अंदर के शोर को कम करने के लिए भी खुद को सुनना बेहद जरूरी है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...