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Taarak Mehta के गट्टू काका की कैंसर से हुई ऐसी हालत, फोटोज देख फैंस हुए हैरान

सब टीवी के सुपरहिट धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा दर्शको को खूब पसंद आता है. इस सीरियल में नजर आने वाले सभी कलाकारों की अपनी एक अलग पहचान हैं. इनके एक्टिंग को भी लोग खूब पसंद करते हैं. यहीं वजह है जो यह शो सालों से चला आ रहा है.

शो के मुख्य किरदार के साथ- साथ तारक मेहता के साइट कैरेक्टर भी फैंस को खूब ज्यादा पसंद आते हैं. इनमें से एक नाम है नट्टू काका का जिन्हें लोग खूब पसंद करते हैं.

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नट्टू काका इन दिनों कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. धनश्याम नायक के इस किरदार ने अपनी जगह लोगों के दिलों में खूब बना ली है. बीते साल दिसंबर में धनश्याम नायक को पता चला कि उन्हें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया है. जिसके बाद वह लगातार अपना इलाज करा रहे हैं.

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इसके साथ ही धनश्याम नायक तारक मेहता का उल्टा चश्मा की शूटिंग भी कर रहे हैं. इन दिनों शो के सेट से उनकी एक तस्वीर वायरल हो रही हैं, जिसमें वह काफी ज्यादा कमजोर लग रहे हैं. इसे देखकर फैंस भी हैरान हो गए हैं कि आखिर ये सब क्या हो गया है.

वायरल हो रही तस्वीर में वह सफेद रंग का कुर्ता पहने नजर आ रहे हैं और उनके चेहरे की चमक थोड़ी सी फीकी पड़ गई है.

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फैंस लगातार नट्टू काका की तस्वीर पर कमेंट कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर में नट्टू काका को क्या हुआ है क्यों ऐसे दिखने लगे हैं.

Bigg Boss ott: Zeeshan Khan ने घर से बाहर आते ही दिखाएं चोट के निशान, फैंस ने किया मेकर्स को ट्रोल

सीरियल कुमकुम भाग्य से अपनी पहचान बना चुके जीशान खान को लेकर बहुत बड़ी खबर सामने आ रही है, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, कुछ वक्त पहले ही जीशान खान बिग बॉस ओटीटी में शामिल हुए थें, लेकिन अब खबर आ रही है कि उन्हें मेकर्स ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

दरअसल,कुछ वक्त पहले प्रतीक सेजवाल के साथ उनकी लड़ाई चल रही थी, जिसके बाद उनकी लड़ाई काफी ज्यादा बढती गई, जिसे देखते हुए मकर्स ने यह फैसला लिया कि उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाए.

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बिग बॉस ओटीटी के मेकर्स ने इस फैसले से जीशान खान को जोरदार झटका दिया है, जिससे फैंस भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. इसी बीच जीशान खान ने अपने चोट को पुरी दुनिया के सामने साझा किया है जिसमें उन्होंने अपने चोट को दिखाया है.

जीशान खान ने अपने सोशल मीडिया पर शर्टलैस तस्वीर शेयर कि है जिसमें वह अपने चोट को दिखाते नजर आ रहे हैं. तस्वीर में जीशान खान के हाथ पर चोट के निशान साफ देखे जा सकते हैं. जीशान खान के इस पोस्ट के बाद से सोशल मीडिया पर खूब बवाल हो रहा है.

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फैंस बिग बॉस के मेकर्स को ट्रोल करना शुरू कर दिए हैं, जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कई तरह के मीम्स आ रहे हैं.

इससे पहले भी कई बार बिग बॉस शो में हंगामा हुआ जिसे लगातार दर्शक लाइव देखते नजर आएं हैं,लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ जो शो शुरू होने के कुछ वक्त बाद ही ड्रामा हो गया.

आवेश – भाग 3 : संतू और राजन के रिश्ते क्यों खराब हो रहे थें

लेखक-अरुण अलबेला

‘‘आप ने शायद यह कहा कि हरदम आप की ही नहीं चलेगी. हम ने बेटी ब्याही है, बेची नहीं है.’’

‘‘नहीं, मेरे कहने का तात्पर्य…’’ उन का स्वर धीमा हो लड़खड़ा गया, ‘‘पिछली बार मोना थोड़े दिनों के लिए आई थी, तो संतोष बाबू जल्दी ले  गए. अब भी ले जाना चाहते हैं. मोना  1-2 माह रहे तो क्या हर्ज?’’

मैं ने उन्हें लपेटा, ‘‘लगता है, आप के बोलने का ढंग ही कुछ गलत था, जो संतू को पसंद नहीं आया. उस ने अपनी मां को बताया तो न उसे अच्छा लगा, न मु झे ही.’’

राजन बाबू  झेंपे, ‘‘मेरे मुंह से अगर ऐसी कोई बात निकल गई तो उन्हें उसे भूल जाना चाहिए था. बता कर आप सब को आवेशित करने की क्या जरूरत थी?’’

उन की गोलमटोल बातें मु झे आवेशित कर बैठीं. मैं बोला, ‘‘राजन बाबू, क्या  झूठ है, क्या सच, आप जानें, पर यह सच है कि हरदम हमारी नहीं चली है, आप अपनी चलाते रहे हैं. विवाह से पहले आप स्वामीजी की बातों में आ कर अपनी मरजी हम पर लादते रहे, जैसे हम ही लड़की वाले हों. आप ने गरीबी का रोना रो कर सादी शादी करनी चाहिए हम मान गए, क्या  झूठ है?

‘‘आप ने कहा कि मंडप में 8 आदमी से अधिक नहीं खिला सकते. मैं ने यह बात भी मान ली, हालांकि मेरे रिश्तेदार मु झ पर नाराज हुए,’’ यह सब सुन कर वे चुप रहे.

मैं फिर बोला, ‘‘आप स्वामीजी की बातों में आ कर मेरे गले में पीतल का हार डाल बैठे और सब को जताया कि सोने का हार डाल रहे हैं. आप की इज्जत बचाने के लिए मैं शांत रहा. मेरे दामादों ने इसे सच सम झा और मु झे उन्हें सोने की अंगूठियां देनी पड़ीं. आप हरदम छोटीछोटी गलतियां करते रहे, पर मैं ने ध्यान नहीं दिया. कुछ ऐसी ही छोटी गलती आप संतू से भी कर बैठे हैं और वह शांत न रह कर नाराज हो बैठा है.’’

अब राजन बाबू रोंआसे हो गए, पर मैं बोलता रहा.

‘‘आप ने शायद प्यार से ही कह दिया कि बेटी बेची नहीं है, 1-2 माह रखना है. बेचने का नाम क्यों लिया? संतू ने भी खरीदा नहीं है, प्यार ही किया है. मैं मानता हूं कि मोना आप की प्यारी बेटी है, पर यह भी सोचिए कि वह संतू की प्यारी पत्नी है. हां, वह फोन पर यह तो नहीं कह सकता था, सो, बोल बैठा कि सोनू मेरा प्यारा बेटा है, जो आप के पास है. उस के अंदर मोना के प्रति बेहद प्यार है, फिर भी वह ‘तुलसीदास’ की तरह भाग कर ‘रत्नावली’ से मिलने तो नहीं आया? संयम बरता है, धैर्य रखा है. वह आप से तर्क करने भी नहीं आया और इस से बचने के लिए मु झे भेजा है ताकि संबंध मधुर रहें.

‘‘उस ने बाद में आने का वादा भी किया है. अगर मोना फोन पर आवेश में बोली न होती तो आ भी जाता. वह मु झ से कहता है कि आप मोना को ‘प्यारी बेटी’ कहकह कर सिर चढ़ा बैठे हैं, लिहाजा, वह विरोध पर उतर आई है. उसे शंका हुई है कि स्वामीजी या बड़े भैया की तरह कभी आप यह भी कह सकते हैं कि बेटी को नहीं भेजूंगा. क्या आप मोना को अपने पास रखना चाहते हैं?’’

यह सुन कर राजन बाबू ठिठके, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं. कौन बाप अपनी बेटी को अपने पास रख सकता है?’’

‘‘स्वामीजी और बड़े भैया ने रखा  ही है.’’

‘‘उन की बातें छोडि़ए. मैं बेटी को आप से विमुख कर के उसे खुशियां नहीं दे सकता. दरअसल, संतोष बाबू के मन में जो शंकाएं पैदा हुई हैं, वे स्वामीजी और बड़े भैया के चलते ही पैदा हुई हैं, जिन्होंने अपनी बेटी को अपने घर में रखा है और ससुराल भेजना नहीं चाहते. उन्हें बेटी के ससुराल पक्ष से कुछ शिकायतें हैं.’’

‘‘हम से तो आप को कोई शिकायत नहीं है न?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो मोना को मेरे साथ भेज दीजिए.’’

‘‘लोग क्या कहेंगे,’’ कहते हुए मोना की मम्मी आंखें पोंछने लगीं, ‘‘पितृपक्ष और दशहरे में लड़की नहीं भेजी जाती. संतोष बाबू को भेज दीजिएगा न.’’

‘‘बेकार बात बढ़ जाएगी. संतू जिद पर उतरेगा, विवाद का घेरा बढ़ेगा. आखिर उसे भी मोना और सोनू के साथ दशहरे की धूमधाम देखनी है. अब मैं मोना पर ही छोड़ता हूं.’’

यह सुन कर मोना संयमित स्वर से बोली, ‘‘बाबूजी, मैं आप लोगों से दूर कैसे रह सकती हूं? आप आए हैं और उन्होंने आप को मु झे लाने भेजा है, तो मैं जिद नहीं करूंगी. जब मेरे पापा मु झे आप के यहां से ला सकते हैं तो आप मु झे क्यों नहीं ले जा सकते?

मैं चलूंगी. बेटीबहू हूं, मेरा मायकेससुराल तो आनाजाना लगा ही रहेगा. मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण दोनों समधियाने का संबंध बिगड़े…’’ मोना बोलती गई, ‘‘अभी मेरा वहां रहना भी जरूरी है. मांजी को मेरी सेवा की जरूरत है. उन्हें छोड़ मैं यहां रह भी नहीं सकती. वैसे उन का आवेश भी शांत करना होगा.’’

‘‘हां, आवेश में लिया गया निर्णय और किया गया कार्य अच्छा परिणाम नहीं देते.’’

दूसरे दिन मोना मेरे साथ चल पड़ी, ससुराल की ओर.

साइलैंट मोड पर जाते रिश्ते

आज आम जीवन में रिश्तों के बीच एक सन्नाटा सा पसरता जा रहा है. लोग अपनों से दिल की बात छिपाते हैं. वे कछुए की तरह अपने कवच में घुसे रहते हैं. ऐसे में दूरियां बढ़नी तो लाजिमी हैं. आप को 1952 की फिल्म ‘पैगाम’ का वह डायलौग याद है जिस में बुलंद आवाज में दिलीप कुमार कहते हैं, ‘‘जिस धन के लिए आप दुनिया से धोखा कर रहे हैं, अपने अजीजों, अपने दोस्तों से धोखा कर रहे हैं, अपने साथियों से धोखा कर रहे हैं, उसी धन के हाथों आप खुद भी धोखा खाएंगे.’’ या 1960 में आई फिल्म ‘मुगल ए आजम’ का वह डायलौग जब दिलीप कुमार कहते हैं, ‘‘तकदीरें बदल जाती हैं, जमाना बदल जाता है, मुल्कों की तारीख बदल जाती है, शहंशाह बदल जाते हैं मगर इस बदलती हुई दुनिया में मोहब्बत जिस इंसान का दामन थाम लेती है वह इंसान नहीं बदलता.’’ 50 और 60 के दशक में दिलीप कुमार कैसे रंगीन परदे पर लंबेलंबे डायलौग बोलते थे.

फिल्म ‘नया दौर’ में उन के डायलौग कैसे लाऊड थे. चरित्र में एक खुलापन, खिलंदड़पन, उन्मुक्तता, निश्चछलता ?ालकती थी. जैसे कुछ भी भीतर छिपा हुआ न हो, सबकुछ उजागर हो. पूरा व्यक्तित्व शीशे की तरह साफ. अशोक कुमार, देवानंद, राजकपूर, अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेताओं से फिल्म निर्देशकों ने स्क्रीन पर खूब लंबेलंबे डायलौग बुलवाए. मगर 80 और 90 का दशक आतेआते डायलौग्स की लंबाई कम होती चली गई. ‘सरकार’ फिल्म में अमिताभ बच्चन के पास जैसे बोलने को शब्द ही न थे. छोटेछोटे वाक्य डायलौग के रूप में उन के मुंह से निकलते थे. आज तापसी पन्नू की फिल्में देख लें, पन्नू के मुंह से कैसे चंद शब्द ही बतौर डायलौग बाहर आते हैं. जैसे डायलौग राइटर को सम?ा ही न आता हो कि बात कहने के लिए क्या लिखे. यही वजह है कि बात कहने के लिए ऐक्टर को भावभंगिमा से ज्यादा काम लेना पड़ता है, बजाय मुंह से बोलने के.

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शब्दों की दुनिया सिर्फ फिल्मों में ही संकुचित नहीं हो रही है बल्कि आम जीवन में भी रिश्तों के बीच एक सन्नाटा सा पसरता जा रहा है. फिल्मों से बात शुरू करने का मकसद यह था कि फिल्में समाज का आईना होती हैं. जिस दौर में जैसा समाज होता है वैसी ही फिल्में बनती हैं. दिलीप कुमार के जमाने में लोग खुल कर एकदूसरे से बातें करते थे. अपने दुखसुख बांटते थे. रिश्तों में कोई दुरावछिपाव न था. यही ?ालक उस दौर की फिल्मों में दिखती है. आज लोग एकदूसरे से बात करने में ?ि?ाकने लगे हैं. अपनों से दिल की बात छिपाते हैं. परिवार में जो खुलापन था वह खत्म होता जा रहा है. सब अपनेअपने दायरे में सिमट गए हैं. वे कछुए की तरह अपने कवच में घुसे हुए हैं.

मांबाप को नहीं पता बच्चे क्या सोचते हैं, क्या करते हैं. बच्चों को नहीं पता मांबाप की जरूरतें क्या हैं. यहां तक कि पतिपत्नी तक एकदूसरे को नहीं जानतेसम?ाते हैं. इस की वजह है डायलौग्स की कमी. संवाद की कमी. रिश्तों के बीच बढ़ती खामोशी. आज अपनों के पास होते हुए भी सब अपनीअपनी दुनिया में खोए रहते हैं. डिनर टेबल हो या चाय का समय, परिवार के सदस्यों के पास एकदूसरे से बात करने के लिए कुछ होता ही नहीं है. इंटरनैट के आज के युग में अधिकांश समय तो मोबाइल फोन खा जाता है. जब थोड़ा वक्त अपनों के पास बैठने का मिलता भी है तो हम अपने दिल की बातें उन से शेयर नहीं करते हैं. पहले गांव से ताऊजी आते थे तो गांव के एकएक घर का कच्चा चिट्ठा उन के पास होता था. उन की कहानियां तो जैसे खत्म ही नहीं होती थीं. एक घर की कहानी खत्म हुई तो दूसरे घर की शुरू हो गई.

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अपने ही परिजनों की कितनी कहानियां उन की पोटली में थीं. उन कहानियों में कितना रस था. आज ताऊजी आते हैं तो सब के मुंह बन जाते हैं कि ‘लो, अब इन की बकबक कौन सुनेगा?’ दरअसल, अब हम कुछ कहना नहीं चाहते हैं, किसी को कुछ बताना नहीं चाहते हैं, सब से बातें छिपा कर रखते हैं इसलिए अब ताऊजी की बातें हमें बकबक लगती हैं. क्योंकि वे बताएंगे तो हम से कुछ पूछेंगे भी. और हम कुछ बताना नहीं चाहते. हम से एक पीढ़ी पहले तक के लोगों की ऐसी आदत नहीं थी. वे रिश्तेदारों के आगे दिल खोल कर रख देते थे. मगर आज का युवा दिल पर सांकल लगा कर बैठ गया है. इसलिए ताऊजी की जो बातें बचपन में भाती थीं, अब नाकाबिले बरदाश्त हो गई हैं. पतिपत्नी के बीच बढ़ती खामोशी यह सच है कि आज जिंदगी की रफ्तार तेज है. पतिपत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं. दोनों के पास समय की कमी हो गई है. जो कुछ खाली समय मिलता है वह अन्य कामों में खप जाता है. अब पतिपत्नी न तो पहले की तरह एकदूसरे को फोन या मैसेज करते हैं और न एकदूसरे के लिए सरप्राइजेस प्लान करते हैं. बैडरूम में भी न रोमांस की जगह बची है न ही पर्सनल बातों की. दोनों थकेहारे आते हैं और जल्दी से जल्दी सोना चाहते हैं. सैक्स लाइफ भी पहले की तरह नहीं रही. वह कनैक्शन भी फील नहीं होता जो पहले हुआ करता था.

अब एकदूसरे के प्रति इतने कैजुअल हो गए हैं कि किसी के होने, न होने से ज्यादा फर्क ही नहीं पड़ता है. आखिरी बार साथसाथ कहां बाहर गए थे या कौन सी मूवी देखी थी, इस सवाल पर बहुतेरे कपल अपना सिर खुजाते दिखेंगे. मोबाइल फोन और इंटरनैट ने जिंदगी में इतनी जगह घेर ली है कि पतिपत्नी के बीच लड़ाई?ागड़े, वादविवाद भी अब नहीं होते. पहले रूठनामनाना होता था तो उस के बाद 4 बातें भी होती थीं. मन की भड़ास भी बाहर आ जाती थी. पसंदनापसंद का खुलासा भी हो जाता था. अब यह भी नहीं होता. इसी तरह की कई छोटीबड़ी बातें हैं जो यह महसूस करने के लिए काफी हैं कि रिश्ते में खामोशी ने जगह बना ली है. तुषार और सलोनी ने कनाडा सैटल होने का प्लान बना लिया. जाने के 15 दिन शेष रहे तब मां को बताया. बेटाबहू ने कब चोरीछिपे पूरी प्लानिंग कर ली, कब पासपोर्ट बनवा लिए, कब वीजा लगवा लिया, क्यों जा रहे हैं, कब वापस आएंगे, आएंगे या नहीं आएंगे, हमें बताया क्यों नहीं, कोई बात क्यों नहीं की, क्या हम उन पर बो?ा हो गए हैं, ऐसे हजारों सवाल मांबाप को मथ रहे हैं. पूछने पर सलोनी ने सिर्फ इतना कहा कि वहां अच्छी जौब और अच्छी लाइफ है, इसलिए जा रहे हैं. नहीं जमा तो लौट आएंगे. तुषार और सलोनी अगर अपने अच्छे भविष्य के लिए कनाडा जाने का प्लान कर रहे थे तो मांबाप उन को हरगिज न रोकते. बल्कि वे तो खुश होते कि बेटा विदेश जा रहा है.

लेकिन यह तब होता जब इस बारे में घर में चर्चा होती. मांबाप बच्चों के विचारों और योजनाओं से परिचित होते. मगर ऐसा हुआ नहीं. संवाद न होने से उत्पन्न तमाम संदेहों, शिकायतों और नाराजगी के साथ अब तुषार और सलोनी कनाडा जाएंगे. कैसे बचाएं रिश्तों को ‘‘जब तक बच्चे नहीं होते, तब तक सब सही चलता है लेकिन बच्चे होने के बाद आप को एहसास होता है कि यह बराबरी का रिश्ता नहीं है. आप को लगता है कि मैं काम कर रही हूं, बीमार बच्चों को संभाल रही हूं, अपनी नौकरी से तालमेल बिठाने की कोशिश भी कर रही हूं और वह सिर्फ इधरउधर घूम रहा है.’’ ये शब्द मिशेल ओबामा यानी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी के हैं. मिशेल ने एक इंटरव्यू के दौरान यह बात बताई थी कि एक ऐसा वक्त भी आया था जब उन के और ओबामा के रिश्ते बिगड़ने लगे थे. वजह थी कम्युनिकेशन गैप यानी बातचीत की कमी. तब मिशेल ने एक मैरिज काउंसलिंग की मदद ली. मिशेल और ओबामा थेरैपिस्ट के पास गए और कई सिटिंग्स लेने के बाद धीरेधीरे उन का रिश्ता वापस पटरी पर आया. आज उन्हें परफैक्ट कपल के तौर पर देखा जाता है.

विवाह संबंधों में दिक्कत आने पर विदेशों में लोग सीधे काउंसलर की मदद लेते हैं मगर भारत में लोग काउंसलर के पास तब जाते हैं जब रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाता है या ऐसी स्थिति में काउंसलर की याद आती है जब चीजों को काबू में करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. हालांकि, पढ़ीलिखी जमात के लिए अब काउंसलर शब्द कोई हैरानी पैदा नहीं करता है. जो रिश्तों में आ रहे ठंडेपन को समय रहते पहचान लेते हैं और रिश्तों को बेहतर करना चाहते हैं वे काउंसलर के पास जाने से हिचकिचाते नहीं हैं. मिसाल के तौर पर, पिछले साल आई फिल्म ‘डियर जिंदगी’ में आलिया भट्ट काउंसलर की मदद लेती हैं. इस के अलावा ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में कंगना रनौत और माधवन को मैरिज काउंसलिंग लेते दिखाया गया है. ‘मैरिज और फैमिली काउंसलिंग’ में विशेषज्ञता रखने वाले साइकोलौजिस्ट और थेरैपिस्ट कई परेशानियों से नजात दिला देते हैं. लेकिन वहां तक जाने की नौबत न आए, इस के लिए बहुत जरूरी है कि समय रहते इस खामोशी की आहट को पहचान लिया जाए. पारिवारिक मामलों में सलाह देने वाली वकील शिफाली अस्थाना कहती हैं, ‘‘अगर आप को यह महसूस हो रहा है कि रिश्ते में सबकुछ सामान्य नहीं है तो हिम्मत जुटाएं और आपस में बात करें.

हो सकता है थोड़ी नानुकुर के बाद दिल की बातें जबान पर आने लगें और खामोशी की असली वजह सामने आ जाए.’’ शिफाली सोशल मीडिया, टीवी, फोन और लैपटौप्स के यूज को कम से कम करने की सलाह देती हैं. उन का कहना है कि औफिस से घर आने के बाद का समय अगर परिवार को दिया जाए तो बेहतर है. पतिपत्नी के रिश्ते और मजबूत होंगे यदि हफ्ते में एक बार आउटिंग के लिए जाएं. इस के अलावा मूवी प्लान करें या पूरे परिवार के साथ वीकैंड की शाम बाहर डिनर करें. अगर पतिपत्नी कभीकभार सिर्फ एकदूसरे के साथ समय बिताने के लिए ही कैजुअल लीव ले लें तो इस से रिश्ते में एक्साइटमैंट बना रहता है. एकदूसरे के औफिस में सरप्राइज विजिट देने से भी रिश्ते में उत्तेजना बढ़ती है. कभी यों ही बिना काम के भी फोन या मैसेज कर लें. ये चीजें बताती हैं कि आप अपने रिश्ते को ले कर कितने उत्साहित हैं और कितने केयरिंग हैं.

पार्टनर को यह महसूस करवाना बहुत जरूरी है कि आप की जिंदगी में उन की कितनी अहमियत है. यही बात परिवार के हर सदस्य के लिए लागू होती है. मांबाप, भाईबहन के लिए कोई सरप्राइज गिफ्ट ले आएं. उन को साथ ले कर पिकनिक पर जाएं. शाम को थोड़ी देर उन के साथ बैठें. गप्पें मारें. अपने औफिस का हालचाल बताएं. इस से रिश्तों में कभी ठंडापन नहीं आएगा. मांबाप को स्पैशल फील कराने का प्रयास बीचबीच में जरूर करते रहें. शिफाली कहती हैं कि समस्या चाहे जितनी भी गंभीर हो, कम्युनिकेशन से बेहतर समाधान कोई नहीं है. बेहतर होगा कि कम्युनिकेशन और कनैक्शन बना रहे और आप का रिश्ता साइलैंट मोड पर कभी न आए, क्योंकि साइलैंट मोड पर सिर्फ फोन अच्छे लगते है, रिश्तेनाते और दोस्त नहीं.

बातचीत खत्म होने की क्या हैं वजहें

1.लाइफस्टाइल फैक्टर एक बड़ी वजह है. खासतौर पर पतिपत्नी के बीच जहां दोनों बिजी रहते हैं. द्य समय की कमी भी एक कारण है, जिस की वजह से परिवार वालों के साथ फुरसत से बैठने के पल कम ही मिलते हैं. पतिपत्नी भी एकदूसरे के साथ समय कम बिता पाते हैं.

2. लोगों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. परिवार से ज्यादा अब कैरियर, दोस्त, बाहरी दुनिया ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गई है.

सोशल मीडिया भी बड़ा कारण है,

जिस का जबरदस्त आकर्षण आपसी रिश्तों को काफी प्रभावित करता है. जो वक्त हम अपनों के बीच बैठ कर दिल का हाल बतानेसुनने में बिता सकते थे वह वक्त इंटरनैट ने छीन लिया है.

3. लोग अनजाने लोगों से कनैक्ट कर के जो एक्साइटमैंट महसूस करते हैं, जो नयापन उन्हें लगता है वह आपसी रिश्तों में नहीं महसूस होता. ये रिश्ते उन्हें बो?िल और उबाऊ लगते हैं.

4. आजकल डिनर की टेबल हो या बैडरूम, शारीरिक रूप से वहां मौजूद भले ही हों, मानसिक व भावनात्मक रूप से वे कहीं और ही होते हैं.

5.कभी खाने की पिक्चर्स क्लिक कर के शेयर करते हैं तो कभी सैल्फी को कितने लाइक्स और कमैंट्स मिले, इस पर उन का पूरा ध्यान होता है. मां कुछ कहने या पूछने के लिए कब से मुंह देख रही है, मोबाइल में डूबे बेटे को इस का भान तक नहीं होता.

6.ऐसे में रिश्तों के लिए समय ही नहीं रहता और न ही एनर्जी बचती है.

7. औफिस से थकने के बाद सोशल साइट्स उन के लिए रिफ्रैश होने की टौनिक बन जाती हैं.

जहां अपना बचाखुचा समय व ऊर्जा बरबाद करने के बाद किसी और चीज के लिए कुछ नहीं बचता.

8.इस के अलावा औफिस में भी कलीग्स के साथ समय ज्यादा बिताते हैं, उन से इमोशनल रिश्ता भी बन जाता है, जो अपने रिश्ते से कहीं ज्यादा कंफर्टेबल और आकर्षक लगने लगता है.

9 .पार्टनर्स को लगता है कि कलीग्स उन्हें बेहतर सम?ाते हैं, बजाय पार्टनर के. द्य कई बार ये रिश्ते भावनात्मक रिश्तों से भी आगे बढ़ कर शारीरिक संबंधों में बदल जाते हैं.

10 .एक बार इस तरह के रिश्ते में बंध गए तो फिर बाहर निकलना बेहद मुश्किल लगता है. द्य ऐसे में अपने पार्टनर की मौजूदगी अच्छी नहीं लगती, उस की हर बात बेवजह की रोकटोक लगने लगती है और फिर आपसी प्यार लगभग खत्म ही हो जाता है और रिश्ता एकदम खामोश हो जाता है.

अगर आप भी छोड़ती हैं सुबह का नाश्ता तो हो सकती हैं ये 10 बीमारियां

लेखिका-रेणु गुप्ता

आज सुबह मैं ऑफिस के लिए एक  प्रेज़ेंटेशन तैयार करने के लिए लैपटॉप पर बैठी ही थी, कि मां ने चिड़चिड़ाते  हुए मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया, “इतनी उमर हो गई है. कल को शादी करके अपने घर जाएगी, लेकिन अकल कौड़ी  भर नहीं आई है. उठते ही लैपटॉप पर बैठ जाती है, मां चाहे जिए या मरे.   मेरी तो कोई परवाह ही नहीं, दिनभर रसोई में लगी रहती हूं, यह नहीं कि थोड़ा मेरा हाथ बंटा दे…,”

मां का धाराप्रवाह भाषण जारी था, जिसे देखकर मैं लैपटॉप से उठकर मां के पास गई, और मैंने उनके कंधों पर हाथ रखते हुए उनसे बेहद ममत्व  से पूछा, “मां क्या बात है? क्या आपकी तबीयत ठीक नहीं,” और इतना कहते ही मां  की आंखों में आंसू उमड़ आए, और वह बोलीं, “हां बेटा, कुछ दिनों से तबीयत ठीक नहीं लग रही. सुबह उठते ही तरोताजा महसूस नहीं करती. सुबह से थकान सी लगने  लगती  है. हर समय जी घबराता है.”

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“ठीक है मां, मैं अभी डॉक्टर स्मृति से फ़ोन पर बात करती हूं, यह क्यों हो रहा है? अभी कोरोनावायरस की वजह से उनके क्लीनिक तो जा नहीं सकते.” मैंने अपनी फैमिली डॉक्टर, डॉ. स्मृति भार्गव, एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी, ऐक्स असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, एसएमएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, जयपुर  से इस बाबत बात की. डॉक्टर स्मृति ने मां से उनके स्वास्थ्य के बारे में सवाल जवाब कर मुझे बताया, कि “उनका रोजाना सुबह नाश्ता नहीं करना ही उनकी इन परेशानियों की जड़ में है.”

उन्होंने मुझसे यह भी कहा, कि “चिंता की कोई बात नहीं है. जैसे ही वह नियमित रूप से हेल्दी और पोषक नाश्ता करने लगेंगी, तो उनकी सभी शिकायतें जल्दी ही दूर हो जाएंगी.” डॉक्टर स्मृति के कहे अनुसार मैंने सुनिश्चित किया, कि मां नियमित रूप से सुबह सवेरे एक हेल्दी और बैलेंस्ड नाश्ता लें, और ऐसा करते ही मेरी पुरानी मां वापस लौट आईं,  वही हंसती मुस्कुराती, ऊर्जा से भरपूर, खिली खिली मेरी प्यारी मम्मा. तो देखा आपने सुबह का नाश्ता अच्छी हेल्थ के लिए कितना महत्वपूर्ण है?

इस सिलसिले में मैंने डॉक्टर स्मृति  से विस्तार में बातचीत की, और उन्होंने मुझे जो बताया, वह मैं अब आपके साथ शेयर करने जा रही हूं.

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डॉक्टर स्मृति  के अनुसार रात भर सोने के दौरान हम उपवास करते हैं, और सुबह नाश्ते में कुछ नहीं खाना इस उपवास  की अवधि को बढ़ा देता है, जो ब्लड शुगर के संतुलन और इंसुलिन के उत्पादन को बाधित कर सकता है. ब्लड शुगर के स्तर के कम होने से शरीर की ऊर्जा के स्तर में गिरावट आती है. साथ ही  शरीर के कॉग्निटिव फंक्शनिंग में कमी आती है, और आपका मूड प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है. इन कारणों से आप चिड़चिड़ाहट, कमजोरी और घबराहट का अनुभव कर सकती हैं.

अतः हर व्यक्ति को, चाहे वह पुरुष हो अथवा महिला, सुबह का नाश्ता किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए. उन्होंने स्वास्थ्य की दृष्टि से एक बहुत अच्छी बात बताई, कि हमें सुबह का ब्रेकफ़ास्ट एक राजा की तरह, दोपहर का लंच एक राजकुमार की तरह और रात का डिनर एक कंगाल की भांति करना चाहिए, यानि कि हमारा नाश्ता सबसे हेवी होना चाहिए, दोपहर का खाना उससे हल्का और रात का भोजन सबसे हल्का होना चाहिए.

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नाश्ता नहीं करने के शरीर पर दुष्प्रभाव:

 

  1. सिर दर्द या माइग्रेन की शिकायत:

रात भर के उपवास के  बाद सुबह सुबह आपके शरीर में शुगर का स्तर लो हो जाता है. इस लो शुगर लेवल को सामान्य करने के प्रयास में आपका शरीर कुछ हॉर्मोंस का स्त्राव  करता है. इस प्रक्रिया को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है.

यह प्रक्रिया जहां एक और ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित करती है, वहीं दूसरी ओर इस के कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे ब्लड प्रेशर में अचानक वृद्धि, और इसके कारण सिरदर्द और माइग्रेन की शिकायत की शुरुआत हो सकती है.

2. स्ट्रेस हॉर्मोंस के स्तर में वृद्धि:

आपकी एड्रिनल ग्रंथि से तनाव की प्रतिक्रियास्वरूप स्राव  होने वाला मुख्य स्ट्रेस हॉर्मोन कॉर्टिज़ोल पर सुबह किए जाने वाले नाश्ते का पॉजिटिव प्रभाव होता है.  डॉक्टर स्मृति ने हमें बताया,  कि सुबह सवेरे 7:00 बजे के लगभग हमारे शरीर में कॉर्टिज़ोल का स्तर सबसे अधिक होता है. इस हार्मोन के ऊंचे स्तर से आप बेचैनी अथवा घबराहट का अनुभव कर सकती हैं.  सुबह ब्रेकफ़ास्ट करने से इस स्ट्रेस हॉर्मोन  का स्तर कम होता है, और आप सामान्य महसूस करती हैं.

3.वजन में बढ़ोतरी:

यदि आप अपने वजन में नियमित वृद्धि का आभास कर रही हैं, और आपको इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं समझ में आ रहा, तो इसकी वजह आपका नियमित रूप से नाश्ता नहीं करना भी हो सकता है,  क्योंकि पूरी रात के उपवास के बाद अगर आप बिना नाश्ता किए भूखी रहती हैं, तो उस स्थिति में आपका शरीर शुगरयुक्त और वसायुक्त खाने की मांग करता है.

तेज भूख लगने पर  आपको अपने सामने जो दिखता है, आप उसे अधिक मात्रा में खा लेती हैं, इस बात की बिना परवाह किए,  कि वह आपके लिए हेल्दी है या नहीं.  तो इस प्रकार अधिक मात्रा में खाना खाने से आपका वजन बढ़ सकता है.

इस संदर्भ में हुए अनेक शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं.  डॉक्टर स्मृति कहती हैं, कि एक हालिया अध्ययन के अनुसार सुबह सवेरे खाली पेट रहने के बाद  पूरे दिन ओवर ईटिंग नहीं करने पर  भी आपके शरीर की इंटर्नल क्लॉक गड़बड़ा सकती है, और वजन में वृद्धि का कारण बन सकती है .

4.मेटाबॉलिज़्म की प्रक्रिया धीमी हो जाती है:

ब्रेकफ़ास्ट करने से आपका शरीर पूरे दिन अधिक कैलोरी खर्च करता है, लेकिन यदि आप लंबे समय तक उपवास करती हैं, तो आपका शरीर उस अवधि में अधिकाधिक कैलोरी बचाना शुरू कर देता है.

इस स्थिति में मेटाबॉलिज्म का स्तर गिर जाता है, और आपकी मांसपेशियों में स्टोर किया हुआ ग्लूकोज़  भी खर्च होने लगता है.  जिसका सीधा सीधा अर्थ है, कि आपकी मांसपेशियां वेस्ट  हो रही हैं.

नाश्ता नहीं लेने की स्थिति में  उपवास  की लंबी अवधि शरीर की कैलोरी जलाने की क्षमता को कम करता है, जिससे शरीर में चर्बी जमा होने लगती है.

सुबह अच्छी मात्रा में हेल्दी ब्रेकफ़ास्ट करने से मेटाबॉलिज़्म बढ़िया होता है, और यह वजन घटाने में सहायक सिद्ध होता है. इस दिशा में अनेक शोधों द्वारा सिद्ध हुआ है कि नाश्ता नहीं  करने की प्रवृत्ति मोटापे को जन्म देती है.

5.हेयर फॉल:

नाश्ता छोड़ने से, और दिन भर में मात्र दो बार भोजन करने से आपके शरीर को तीन बार भोजन करने की अपेक्षाकृत कम प्रोटीन मिलता है. डाइट में प्रोटीन का बेहद कम स्तर शरीर के केराटिन स्तर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है. केराटिन के लो लेवल से बाल झड़ सकते हैं, और उनकी बढ़वार रुक सकती है. अतः कहा जा सकता है, कि बालों की वृद्धि के संदर्भ में एक हेल्दी  एवं संतुलित नाश्ता एक अहम भूमिका निभाता है.

 6.कैंसर का खतरा बढ़ाता है:

यदि आप सुबह बिना खाये रहती हैं,  तो आपको बाद में बहुत भूख लगेगी, और इस स्थिति में आपके ओवर ईटिंग करने की संभावना बढ़ जाती है. यह आपके बढ़ते मोटापे का कारण बन सकता है, और यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि मोटे लोगों में पतले लोगों की  अपेक्षा कैंसर होने की संभावना बहुत अधिक होती है.

7.हृदय की बीमारियों की संभावना:

नियमित रूप से ब्रेकफ़ास्ट नहीं करने से आपके वजन में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ जाती है. परिणामस्वरुप ऐसे लोगों में मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर,  अस्वास्थ्यकर   लिपिड प्रोफ़ाइल, डायबिटीज़ जैसे रोगों के होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे उनमें हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है.

अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार नाश्ता छोड़ने से हृदय की बीमारियों का खतरा तीन  गुना बढ़ जाता है. अतः हृदय के स्वास्थ्य के लिए सुबह का ब्रेकफ़ास्ट सबसे अहम भोजन होता है.

8. कमजोर इम्यूनिटी:

नाश्ता नहीं लेने से, और दिन भर में मात्र दो बार भोजन करने से शरीर को अपेक्षाकृत कम पोषक तत्व मिलते हैं, और परिणामस्वरूप आपकी  रोग प्रतिरोधक शक्ति यानि इम्यूनिटी कमजोर होती है, जिससे आप बैक्टीरिया एवं वायरस से फैलने वाली बीमारियों जैसे फ़्लू और खांसी की चपेट में अपेक्षाकृत आसानी से आ सकती हैं. आपके शरीर में उन हार्मोन का स्राव कम होने लगता है, जो हमारी इम्यूनिटी कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं.

9. मस्तिष्क की कार्य क्षमता धीमी हो जाती है:

दिन का पहला भोजन, ब्रेकफ़ास्ट नहीं करने से आपकी कार्य करने की क्षमता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है, क्योंकि आपकी ब्लड शुगर का स्तर गिर जाता है, और मस्तिष्क को  पूरी क्षमता से कार्य करने के लिए आवश्यक ग्लूकोज़  नहीं मिल पाता.

अनेक अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि एक संतुलित नाश्ता करने से आपकी कार्य क्षमता बेहतर होती है .

10. अपच की समस्या पैदा करता है:

सुबह का नाश्ता नहीं लेना एसिडिटी, पेट दर्द, खट्टी डकार, और पेट में अफारा का मुख्य कारण होता है. डॉक्टर स्मृति कहती हैं कि जब आप रात भर के उपवास के बाद सुबह भी देर तक बिना कुछ खाए पिए रहती हैं, तो उस स्थिति में पेट में गैस्ट्रिक एसिड का स्राव अधिक मात्रा में होता है. ये एसिड्स पेट की भीतरी सतह पर आक्रमण करते हुए एसिडिटी, अल्सर और पेट दर्द को जन्म देते हैं. अतः महिलाओं को सुबह का नाश्ता कतई नहीं छोड़ना चाहिए. 

नाश्ता: आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य:

नाश्ते के आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य के विषय में मैंने  दिल्ली की एक आयुर्वेदिक डॉक्टर, डॉ शालिनी बंसल, बीएएमएस, एमडी से भी बात की.  उन्होंने मुझे बताया कि अनेक महिलाएं सुबह-सुबह अपनी अति व्यस्तता अथवा भूख महसूस नहीं होने के कारण नाश्ता छोड़ देती हैं. यदि आप भी उनमें से एक हैं, तो फौरन कुछ पोषक खाद्य पदार्थ जैसे ताजे फल के सेवन से अपने दिन  की हेल्दी  शुरुआत करें .

डॉक्टर शालिनी ने मुझे बताया कि आयुर्वेद के अनुसार सुबह का समय फल खाने का आदर्श समय है. आप अपने नाश्ते में  कुछ मीठे फल जैसे केला, पीच,  नाशपाती,  आम,  कीवी,  पपीता सुबह खाली पेट खा सकती हैं.

वह कहती हैं कि आयुर्वेद के अनुसार सुबह सवेरे खाली पेट खट्टे फल नहीं खाने चाहिए. सुबह सवेरे मीठे फल खाने के आधे घंटे बाद आप अन्य खाद्य पदार्थ जैसे गर्म दलिया, उपमा, पोहा, इडली आदि खा सकती हैं.

 

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