लेखिका- नीलम चंद्रा

आएशा का सपना था कि वह बड़ी हो कर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम कमाए. इसी सपने को ले कर वह अपने गांव से इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध कालेज पहुंची थी, पर वहां सीनियर्स को देख कर अचकचा गई. उसे कुछ ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे सब उस से अलग हैं. उन के व्यक्तित्व के आगे वह खुद को बौना महसूस करती. उस के पास गिनेचुने 3-4 सलवारसूट थे. अन्य लड़कियां जींस और टौप पहन कर घूमतीं.

आएशा को अंगरेजी उतनी ही आती थी जितनी कंप्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिए जरूरी होती है जबकि उस के अन्य सहपाठी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते. लड़कियों के बाल भी मौडर्न स्टाइल में कटे होते. आएशा के बाल लंबे थे. वह 2 चोटियों के अलावा कोई और स्टाइल बनाना जानती ही नहीं थी.

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अपने इन खयालों की वजह से वह किसी से बातचीत करने में भी अचकचाती थी. वैसे भी हौस्टल में उस की रूममेट आलिया को किसी कारणवश कालेज जौइन करते ही घर जाना पड़ गया था. पहले से वह किसी को जानती नहीं थी, इसलिए ज्यादातर वह अकेली ही रहती. कक्षा में अन्य छात्र उसे अकसर चिढ़ाते. कभीकभी सीधे कटाक्ष भी करते थे. वह काफी उदास रहने लगी. हालांकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी, पर उस का ध्यान इन चीजों की वजह से पढ़ाई में लगना कुछ कम हो गया था.

एक दिन आएशा अपने कमरे में इसी तरह उदास बैठी थी कि अचानक दस्तक हुई. ‘उस के कमरे में कौन आ गया’, यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उस ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, आई

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