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आवेश – भाग 2 : संतू और राजन के रिश्ते क्यों खराब हो रहे थें

लेखक-अरुण अलबेला

तभी संतू कुढ़ जाता, ‘मां, तुम्हारा और बाबूजी का प्यार पा कर ही मोना आलसी बनी रहती है. बाबूजी तो हरदम उस का पक्ष ले कर हमें धिक्कारतेडांटते रहते हैं. उसे अपना स्नेह दिखा कर सिद्ध करना चाहते हैं कि एक ससुर अपनी बहू को बहुत मानता है. मोना तो कभी इन का सिर भी नहीं दबाती, बेशक ये कराहते रहें. वह ऊंचा नहीं बोलती, इसी पर बाबूजी खुश रहते हैं.’

इस पर मैं कहता, ‘इस जिंदगी में किसी को क्या डांटना… क्या बोलना… घर में सोनू को ले कर हम 5 ही तो हैं. प्यार से मिल कर रहना है.’ मगर एक दिन संतू आवेश में बोला, ‘मेरे ससुरजी आप के सीधेपन का ही फायदा उठाने लगे हैं. फोन पर अब बढ़चढ़ कर बोल रहे हैं. उन के यहां फोन होता तो न जाने रोज क्याक्या बोलते. एसटीडी बूथ  पर रुपए लगेंगे, सो हमें ही फोन  करना पड़ता है. यही हाल रहा तो एक दिन वे लोग मु झे ही अलग रहने को कह देंगे.

संतू की इस बात पर ममता बिगड़ उठी, ‘तुम अलग होने की नहीं सोचोगे संतू, तुम क्या किसी के भड़काने से भड़कोगे? बीवीबच्चे को ले कर तुम और लड़कों की तरह मांबाप से अलग रह सकते हो क्या? बेटा, तुम ही तो हमारे एक हो… तुम क्या सह सकोगे कि सोनू बड़ा हो कर तुम से अलग रहे? तुम्हारे लिए हम ने लाखों जमा कर रखे हैं. जीप, बस खरीद दी है. तुम्हें एक तरह से मालिक बनाया है पूंजी निवेश कर के. किसी का नौकर नहीं बनने दिया है.’

‘मां,’ संतु बिफरा था, ‘मैं जयदेव चाचा के लड़के की तरह अलग रहने की नहीं सोच सकता. तुम्हें बेहोशी का दौरा जल्दी आता है. दिल की मरीज हो, मैं तुम्हें मारना नहीं चाहता, पर मैं ऐसा कुछ होने देना भी नहीं चाहता कि मेरे ससुराल पक्ष से तुम्हें या बाबूजी को दुख पहुंचे. हां, मैं मोना को खोना भी नहीं चाहता और न सोनू को.’

एक दिन हम बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां ले रहे थे. तभी संतू ने आशंका जताई, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मोना के मातापिता उसे अब सोनू सहित हमारे यहां भेजना नहीं चाहते? कहीं मेरे ससुरजी अपने ‘बड़े भाई’ की कहानी तो नहीं दोहराना चाहते?’’

यह सुन कर मैं चौंक पड़ा था. मु झे याद आया कि राजन बाबू के बड़े भैया किसी विवाद के कारण अपनी विवाहिता बेटी को उस की ससुराल नहीं जाने देते. दामाद ले जाना चाहता है, पर उन की बेटी उन्हीं की बातों में आ कर मायके में पड़ी रहती है. उस का भी 5 साल का बेटा है. तभी मैं ने लरजते कहा, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए उन्हें.’’

‘‘बाबूजी, उन पर अपने मित्र ‘स्वामीजी’ और ‘बड़े भाई’ का प्रभाव भी तो पड़ सकता है,’’ संतू गुर्राया.ममता के चेहरे पर भी भय व्याप्त हो गया. हम ने महसूस किया कि संतू के अंदर भी एक भय व्याप्त हो रहा है कि कहीं मोना सोनू को ले कर मायके में ही रहने की न सोचे.

दूसरी ही दिन संध्या को मोना का आवेशभरा फोन आया. वह संतू से बोली, ‘‘क्या आप को पापा से बात करते वक्त रिसीवर पटकना चाहिए था? आप ने क्या सम झ कर पटका? पापा का अपमान नहीं हुआ क्या? मैं इसे नहीं सह सकती.’’

संतू नरम लहजे में बोला, ‘‘मोना, तुम्हारे पापा को भी वैसा नहीं बोलना चाहिए था.’’ ‘‘मेरे पापा कुछ गलत नहीं बोल सकते.’’ ‘‘देखो, तुम्हें हमारे साथ रहने की बात सोचनी चाहिए. तुम्हें हम ने कभी दुख नहीं दिया है. तुम इसे  झुठला भी नहीं सकतीं. हम पर कोई आरोप थोपना गलत होगा.’’

‘‘आप 24 को आइए.’’‘‘क्या अकेला?’’ ‘‘नहीं तो क्या?’’ संतू को गुस्सा आ गया कि कहां हम सब जीप से उन के यहां जाना चाहते थे, कहां वह अकेले बुला रही है. फोन करने से बात साफ नहीं हो सकी. इत्तफाक से बारिश हो गई. टैलीफोन खराब होने से फोन खराब हो गया. आज ठीक होगा, कल ठीक होगा, यही लगा रहा. टैलीफोन एक्सचेंज में शिकायतें होती रहीं.

एक दिन संतू ने ही कहा, ‘‘बाबूजी, मैं तो जाने से रहा. आप ही जाइए और मामला सुल झाइए, कहीं बात गंभीर मोड़ न लेले.’’ इस पर मैं बोला, ‘‘मेरा जाना ठीक नहीं रहेगा. तुम उन के दामाद हो, तुम ही जाओ तो ठीक…’’ ‘‘तो क्या आप उन के समधी नहीं हैं? जाइए, मोना को लेते आइए. न आएगी या उन्होंने नहीं भेजा तो मामला गंभीर ही सम िझए. हमें सम झना होगा कि वे आवेश में बात क्यों करने लगे हैं?’’

ममता और संतू के दबाव के आगे मु झे  झुकना पड़ा. बस से धनबाद पहुंचा. बाजार के निकट ही राजन बाबू मिल गए. उन्हें पूरी आशा थी कि दामाद आएगा, सो दामाद के लिए मिठाई ले रहे थे. मैं ने ही पुकारा. वे निकट आए. हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा, पर टैंपो में मेरे साथ अपने दामाद अर्थात संतू को न देख कर स्तब्ध हुए.

उन का चेहरा उतर गया. वे पूछ बैठे, ‘‘संतू बाबू नहीं आए क्या?’’यह सुन मु झे लगा कि मेरे आने से उन्हें खुशी कम हुई, पर संतू के न आने से गहरा दुख हुआ. मु झे  झुं झलाहट हुई कि संतू को जरूर आना चाहिए था, मु झे व्यर्थ भेज दिया है. मैं बोला, ‘‘आप सब्जी ले कर आइए, मैं घर पहुंचता हूं.’’

मैं जब घर पहुंचा तो संतू के बदले मु झे देख अपनी माताजी के साथ मोना भी उदास हो गई. मेरे पैर छुए, फिर सहज भाव से मुसकराते हुए स्वागत कर सोफे पर बैठने का आग्रह किया. सोनू निकट ही खेल रहा था. उस का उछलनाकूदना अच्छा लग रहा था. वह मु झे पहचान नहीं पा रहा था और पहचाने भी कैसे, आखिर 14 माह के बच्चे में सम झ होती ही कितनी है. मैं ने उसे गोद में लेना चाहा, पर नहीं आया, मोना के निकट भाग गया.

तभी मोना की मम्मी अभिवादन करते पूछ बैठीं, ‘‘आप ने क्यों कष्ट किया, संतू बाबू क्यों नहीं आए?’’ मैं बोला, ‘‘आप लोग जानिए.’’ ‘‘हम से तो ऐसी कोई गलती नहीं हुई.’’ ‘‘गलती हुई है, तभी तो वह नहीं आया.’’ ‘‘उन्हें आना चाहिए था, हम ने रोका नहीं, बुलाया ही था.’’

‘‘हां, पर वह नहीं आ सका. मु झे ही भेज दिया.’’ फिर मैं ने माहौल हलका करने को कहा, ‘‘मान लीजिए, वह नहीं आया, तो क्या मोना नहीं जाएगी?’’

इस प्रश्न का जवाब मोना की मम्मी नहीं दे सकीं. तभी सोनू हंसा और प्लास्टिक का बैट उठा कर फर्श पर दे मारा तो मोना बोल उठी, ‘‘बाबूजी देखिए, यह कितना नटखट हो गया है.’’ इस के पापा कहते हैं, ‘‘ननिहाल में यह ‘मौनीबाबा’ बन जाएगा. यहां सब कामभर ही बोलते हैं.’’

यह सुन कर मैं हंस पड़ा. बोला, ‘‘क्या हम बकरबकर करते रहते हैं? हां, संतू की माताजी अवश्य बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हैं, जोर से हंसतीबोलती हैं. संतू भी खूब बोलता है, मैं भी कम नहीं.’’

वह हंसने लगी. माहौल बदला तो  मैं ने पूछा, ‘‘बहू, मान लो, संतू को समय नहीं मिला तो क्या मेरे साथ चल सकोगी?’’ यह सुन कर वह छत को ताकने लगी और बात बदल कर बोली, ‘‘बाबूजी, आप सब किसी शादी समारोह में जाने वाले थे न?’’

‘‘हां, इधर से किसी ने हमें बुलाया नहीं, न उत्साह दिखाया. हम चाहते थे जीप से आएं और तुम सब को भी  लेते चलें.’’इस पर मोना सफाई देने लगी, ‘‘सोनू के पापा ने ऐसा नहीं बताया. सिर्फ यही कहा कि 10 तारीख को लेने आ रहे हैं. इस पर मेरे पापा ने विरोध किया कि हर बार 10-15 दिन में उठा ले जाते हैं. आना हो तो 24 के बाद आइए, तब उन्होंने चोंगा पटक दिया.’’

‘‘नहीं, तुम्हारे पापा ने आपत्तिजनक 2-3 वाक्य और कहे, जो नहीं कहने चाहिए थे.’’तब तक मोना की माताजी किचन में चली गई थीं. तभी राजन बाबू मार्केटिंग कर के आ गए और प्यार से मिले. स्वागतसत्कार किया, जलपान की व्यवस्था की.

हम सब इतमीनान से बैठे तो राजन बाबू ने संतू के न आने का कारण जानना चाहा, ‘‘संतोष बाबू क्यों नहीं आए?’’‘‘आप जानें,’’ मैं ने कहा, ‘‘आप ने शायद फोन पर कुछ कड़े वाक्य कह दिए थे.’’

‘‘नहीं, हो सकता है संतोष बाबू मेरी बातों को सही रूप से नहीं ले सके. बाहर से उखड़े मूड में तो नहीं आए थे?’’

 

बिना जीवनसाथी कैसे जिया जाए

लेखिका- रितु वर्मा

धीरज और रुचि की जिंदगी में सबकुछ परफैक्ट था. 2 बच्चे, अच्छी नौकरी, अपना घर और क्या चाहिए किसे जिंदगी से? पर फिर एक रोड ऐक्सिडैंट में धीरज ने रुचि को खो दिया. बदहवास धीरज ने जिंदगी को ही त्याग दिया. आज रुचि की मृत्यु के 3 वर्षों बाद धीरज की बेटी आन्या ने घर छोड़ दिया क्योंकि वह अपने घर के बो?िल वातवरण से तंग आ गई थी और उन का बेटा समर खुशी को तलाशते हुए ड्रग्स की दुनिया में खो गया है. धीरज को जब तक होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. काश, धीरज रुचि के दुख को अपने ऊपर हावी न होने देता. मिथलेश 36 वर्ष की थी जब दुखों का पहाड़ उस के ऊपर टूट पड़ा था. उस के पति की अचानक मृत्यु हो गई थी. एक महीने तक तो मिथलेश को होश ही नहीं था पर जब उस का 12 वर्ष का बेटा अनिकेत चोरी करते हुए अपने नाना के घर पकड़ा गया तो मिथलेश ने बच्चों की तरफ ध्यान देना आरंभ किया.

मातापिता के कहने के बावजूद मिथलेश ने मायके में न रह कर किराए पर छोटा सा घर ले लिया था. छोटी सी नौकरी से शुरुआत की और धीरेधीरे तरक्की करती गई. मम्मी को मेहनत करते हुए देख कर बच्चों ने भी हौसला दिखाया और आज उन का परिवार सब रिश्तेदारों के लिए एक मिसाल है. पर हर औरत या आदमी के हौसले मिथलेश जैसे नहीं होते. रेखा के पति राजीव की मृत्यु होते ही वह बच्चों के साथ मायके आ गई थी. शुरू में तो भाईभाभी ने पान के पत्ते की तरह प्यार फेरा पर बाद में रेखा और उस के बच्चे उन के लिए एक बो?ा बन गए थे.

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आज रेखा और उस के बच्चे एक परजीवी की तरह पल रहे हैं. अगर रेखा ने मेहनत व हौसले की राह अपनाई होती तो आज उन लोगों की जिंदगी की दिशा ही अलग होती. जिंदगी के सफर के उतारचढ़ाव आसानी से तय हो सकते हैं अगर आप के साथ आप का हमसफर हो. पर अगर आप इस सफर में अकेले भी हैं तो भी हिम्मत और हौसले को अपना साथी बना लें. परजीवी की तरह आरामदायक जिंदगी जीने से कहीं बेहतर है अपने घर में नमकरोटी अपने बच्चों के साथ खा लें. हमारे समाज में आज भी पति और पत्नी के रोल अलगअलग होते हैं. घर की आर्थिक जिम्मेदारी आज भी पति के हाथों में ही होती है तो पत्नी का रोल सामाजिक होता है. ऐसे में अगर जीवनसाथी का हाथ छूट जाए तो जिंदगी का पूरा समीकरण गड़बड़ा जाता है. अगर आप या आप का कोई अपना जीवनसाथी के बिछोह से गुजर रहा है तो निम्न छोटेछोटे सु?ाव आने वाले सफर की राह को आसान बना देंगे :

1. विक्टिम कार्ड न खेलें : अगर जीवन मे कोई दुख आया है तो डट कर उस का सामना कीजिए. विक्टिम बन कर जिंदगी गुजारना कायरों और कामचोरों का काम है. अपनी जिंदगी की कहानी के हीरो बनें, विक्टिम नहीं. विक्टिम बन कर आप, बस, कुछ देर के लिए दूसरों की सहानुभूति के पात्र बन सकते हैं. अच्छा होगा कि आप थोड़ा हौसला दिखाएं और जीवन की राह पर आगे बढ़ते जाएं. आत्मसम्मान के साथ जीना ही असली जीना है.

2.रिश्तों की गरिमा बना कर रखें : आप को आप के भाईबहन या और भी दूरनजदीक के रिश्तेदार सहारा देने की कोशिश करेंगे. मदद अवश्य लें पर बस, उतनी ही जितनी जरूरी हो. अपने भाईबहन या अन्य रिश्तेदारों की आर्थिक स्थिति का फायदा उठाते हुए उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल मत करें. ऐसा करने से भले ही वे मदद कर दें पर आप की गरिमा धूमिल हो जाएगी.

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3. बनें दूसरों के लिए रोल मौडल : अगर किसी मुश्किल परिस्थिति में आप फंसे हुए हैं तो यह आप का फैसला है कि आप को हार मान कर घुटने टेक देना है और बाकी जिंदगी घुटघुट कर रोतेबिसूरते बितानी है या फिर अपने अंदर शक्ति का संचार कर डट कर मुकाबला करना है. ऐसी ही स्थिति में आप के अंदर के गुणों का आकलन होता है. अपने साहस को जाग्रत कर के आत्मसम्मान के साथ जिंदगी गुजारिए.

4. स्वीकार करें और आगे बढ़ें : सपनों की दुनिया में आंख मींच कर रहने से अच्छा है कि आप जमीनी हकीकत को स्वीकार करें और शांति के साथ जिंदगी गुजारें. बहुत बार देखने में आता है कि हम अपने साथ होने वाले हादसे को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. उस हादसे से उपजी विषमताओं को अगर आप नजरअंदाज करेंगे तो आप को ही आगे और मुश्किल होगी. बेहतर होगा कि आप शांतचित्त से स्थिति को स्वीकार करें और आगे बढ़ें.

5. राजदार बनाएं मगर सोचसम?ा कर: अकेलापन बहुत बार अंदर से कचोटता है और इंसान बेबस हो कर किसी के साथ अपने दिल की बात बांटना चाहता है. अपने मन की बात किसी के साथ शेयर करने में कुछ गलत नहीं है परंतु सोचसम?ा कर ही अपने दिल की बात शेयर करें. ऐसा न हो कि आप के राज बाद में आप को हंसी या दया का पात्र बना दें.

6. दोस्तों का दायरा बढ़ाएं : सच्चे दोस्त जरूर एक या दो होते हैं परंतु जरूरी नहीं कि वे हर समय मौजूद रहें. इसलिए अपने दोस्तों का दायरा बढ़ाएं. जरूरी नहीं ये दोस्त आप के सच्चे साथी हों पर बाहर घूमनेफिरने के लिए अच्छे हों. जितना बड़ा आप के दोस्तों का दायरा होगा उतना ही आप सुरक्षित महसूस करेंगे.

7 जीवन चलने का नाम : जीवन में अगर किसी भी घटना को पकड़ कर रखेंगे तो जल्द ही किसी बीमारी का शिकार हो जाएंगे. जीवन का दूसरा नाम ही आगे बढ़ते जाना है. रुके हुए पानी की तरह ही रुके हुए विचारों में भी सड़ांध आ जाती है, इसलिए न रुकें, न थमें, धीरेधीरे अपने पथ पर चलते चलें.

अफगानिस्तान और दुनिया

अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा हो गया है और इस से उन्हें कोर्ई फर्क पड़ता कि भारत सरकार या दुनिया की दूसरी सरकारें उन्हें मान्यता दें या नहीं. चाहे कहने को कोई देश अकेले में नहीं रह सकता पर जहां न खून की कीमत हो न जान की वहां बाहरी लोक ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. अमेरिका पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राष्ट्र संघ फिलहाल उन्हें नैतिक मान्यता नहीं दे रही पर भारत पर दबाव पड़ रहा है कि हम दें ताकि हमारा व्यापार चलता रहे.

केवल व्यापार के लिए अफगानी हमारी मान्यता की इंतजार नहीं करेंगे. पाकिस्तान और फिर पाकिस्तान से मिडिल ईस्ट और वहां से भारत सामान पहुंचता रहेगा और बदले में पाकिस्तान से उन की खुली सीमा से सामान जाता रहेगा.

मान्यता की ङ्क्षचता वे सरकारें करती हैं जो जनता की भलाई के लिए बनी हो. यह तो कबिलों की मलाई सत्ता और धर्र्म प्रचार का मामला हैं. इन्हें न भारत की जरूरत न दूसरे देशों की. पहले ब्रिटिश, इंडिया फिर रूस और अब अमेरिका को खदेड़ कर इन्होंने साबित कर दिया है कि आपस में चाहे अफगानी कितना लड़ते रहें, बाहरी दखल तो ये सहेंगे ही नहीं चाहे इन की ङ्क्षजदगी जैसी भी हो. इन की औरतें हर अत्याचार सहने को तैयार है चाहे दुनिया भर की औरतें इन अफगान औरतों के लिए आंसू बहाती रहें. वैसे भी जहां धर्म हावी होता है वहां औरतों को आजादी कब मिली है.

अफगानिस्तान दुनिया के लिए आतंक का केंद्र बन सकता है. अफीम के बाद यह आंतक का निर्यात खुलेआम कर सकता है और चीन भी अब इन से 2-2 हाथ करने से बचेगा. अफगानिस्तान में बैठ कर ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका पर हमला किया था और आज 20 साल बाद उस के बदले का बदला ले लिया. आतंकवादी हवाई जहाज ही नहीं, परमाणु बम भी पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया जैसे देशों से न आएं पता नहीं.

अमेरिका ने हजारों उन अफगानों की शरण दी है जो 20 सालों से अमेरिकियों को सहयोग दे रहे थे. वे कब आतंकवादी बन जाएं कहां नहीं जा सकता. भारत जैसे सभी देशों को अफगानिस्तान से होशियार रहना पड़ेगा. यह होशियारी कितने काम की होगी, पता नहीं.

मोदी सरकार और मीडिया

लेखक- रोहित

हाल ही में दुनियाभर में प्रैस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘रिपोर्ट्स विदाउट बौर्डर्स’ ने 37 ऐसे राष्ट्राध्यक्षों यानी सुप्रीम नेताओं के नाम प्रकाशित किए जो उन के मुताबिक, प्रैस की आजादी पर लगातार हमले कर रहे हैं. ऐसे नेताओं को प्रैस की आजादी के लिए पूरी दुनिया में सब से ज्यादा खतरनाक माना गया. इस लिस्ट में 2 दशकों से ज्यादा समय से प्रैस का दमन करने वाले पुराने नेताओं के नाम तो थे ही, साथ ही, नेताओं की नई खेप भी जोड़ी गई. यानी सीधा मतलब है कि हाल के वर्षों में विश्व में बोलने की आजादी पर बाधा डालने वालों की नई खेप पैदा हुई. 7 जुलाई को अपडेट की गई यह लिस्ट ‘रिपोर्ट्स विदाउट बौर्डर्स’ (आरएसएफ) द्वारा 5 वर्षों बाद जारी की गई. इस से पहले यह 2016 में जारी की गई थी. इस रिपोर्ट के अनुसार, जारी की गई 37 नेताओं की लिस्ट में से 17 नाम पहली बार जोड़े गए. हमारे देश के लिए ध्यान देने वाली बात यह है कि इन नए जोड़े गए नामों में एक नाम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इन नेताओं ने न सिर्फ अभिव्यक्ति पर रोक लगाने का प्रयास किया है बल्कि पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल भी भेजा है. इस लिस्ट में 19 देशों को लाल रंग से दिखाया गया, यानी इन देशों को पत्रकारिता के लिहाज से खराब माना गया. जबकि, 16 देशों को काले रंग से दिखाया गया, जिस का अर्थ उन देशों में स्थिति बेहद चिंताजनक है. खास बात यह रही कि इस लिस्ट में नेताओं के प्रैस पर नियंत्रण लगाने के तौरतरीकों का विवरण भी जारी किया गया जिस में नेताओं के यूनीक तरीकों के बारे में ब्योरेवार बताया गया. आरएसएफ के महासचिव क्रिस्टोफ डेलौयर ने कहा, ‘‘इन में से प्रत्येक नेता की अपनी विशेष शैली है. कुछ सत्ताधारी नेता तर्कहीन और अजीबोगरीब आदेश जारी कर मीडिया की आवाज कुचलते हैं. कुछ शासक कठोर कानूनों के आधार पर सावधानीपूर्वक बनाई गई रणनीति अपनाते हैं. हमें उन के तरीकों को सामान्य नहीं बनने देना चाहिए.’’

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प्रधानमंत्री मोदी के अलावा सूची में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नाम उल्लेखनीय हैं. लिस्ट में उन के नाम भी रहे जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तानाशाही का परिचायक माना गया है. उत्तरी कोरिया के किम जोंग-उन को हम घरबैठे भूरिभूरि गालियां देते रहे हैं, आज उसी के समतुल्य प्रधानमंत्री मोदी भी खड़े हैं. इस लिस्ट में 2 महिला नेताओं के नाम भी जोड़े गए. ये दोनों एशिया की हैं. एक हौंगकौंग की चीफ एग्जीक्यूटिव कैरीलैम, जो 2017 से चीन सरकार द्वारा हौंगकौंग में स्थापित की गई हैं और शी जिनपिंग की कठपुतली की तरह शासन कर रही हैं. दूसरी, बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, जो 2009 से देश की बागडोर संभाल रही हैं और अपने कार्यकाल में 70 से अधिक पत्रकारों पर मुकदमा चलवा चुकी हैं.

मोदी के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम पहली बार इस सूची में शामिल किया गया है. यहां तक कि उन के 2014 में कार्यभार संभालने के बाद से उन्हें मीडिया की आजादी पर रोक लगाने वाला सम?ा गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में आरएसएफ का कहना है कि मोदी का प्रमुख हथियार उन के अरबपति व्यवसायियों के साथ घनिष्ठ मित्रता होना है. ये वे व्यवसायी भी हैं जिन के पास विशाल मीडिया साम्राज्य हैं. मोदी अपनी राष्ट्रीय लोकलुभावन विचारधारा को सही ठहराने के लिए भाषणों और सूचनाओं के फैलाव के लिए इन मीडिया साम्राज्यों का इस्तेमाल करते हैं. यह रणनीति 2 तरह से काम करती है. एक, प्रमुख मीडिया आउटलेट्स के मालिकों के साथ प्रत्यक्षरूप से खुद को जोड़ना. दूसरे, इन मीडिया आउटलेट्स में विभाजनकारी और अपमानजनक भाषणों या सूचनाओं को प्रमुखता से कवरेज देना, ऐसी सूचनाएं जो दुष्प्रचार से भरी रहती हैं.

इस के बाद मोदी के लिए जो कुछ बचा है, वह उन मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों को बेअसर करना है जो उन के विभाजनकारी तरीकों पर सवाल उठाते हैं. सवाल उठाने वाले पत्रकारों को बेअसर करने के लिए मोदी कानूनी प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं, जिस में गंभीर कानूनों के सहारे ऐसे पत्रकारों के खिलाफ षड्यंत्र चलाए जाते हैं, जिस में सर्वाधिक कोशिश ऐसे पत्रकारों को मानसिक यातनाएं देने की होती है. उदाहरण के लिए, पत्रकारों पर राजद्रोह के ?ाठे आरोपों के तहत उन्हें आजीवन कारावास की संभावना की तरफ धकेलना है. गौरी लंकेश, जिन्हें सितंबर 2017 में उन के घर के बाहर गोली मार दी गई थी, इस बात का सब से सटीक उदाहरण है क्योंकि वे हिंदुत्व कट्टरपंथी राजनीति पर सवाल उठा रही थीं.

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आरएसएफ का मानना है कि ‘‘एक नियम के रूप में, कोई भी पत्रकार या मीडिया आउटलेट यदि प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय-लोकलुभावन विचारधारा पर सवाल उठाता है, तो उसे जल्दी से ‘सिकुलर’ के रूप में ब्रैंडेड किया जाता है.’’ ‘सिकुलर’ शब्द को सम?ो जाने की जरूरत है. यह शब्द कट्टरपंथी संगठनों द्वारा प्लांट किया गया है. यह ‘सिक’ और ‘सैक्युलर’ से मिल कर बनाया गया है. जिस का अर्थ है ‘बीमार धर्मनिरपेक्ष’. दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा गढ़ा गया ‘सिकुलर’ शब्द उन लोगों को टारगेट करता है जो लोग सामाजिक भाईचारे और भारतीय संविधान की बात करते हैं. दक्षिणपंथी संगठन आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल ‘भक्तों’ को अपने नियंत्रण में बने रहने के लिए करते हैं. फिर यही ‘भक्त’ पूरा दिन सोशल मीडिया पर उन लोगों को टारगेट करते हैं जो आपसी सद्भाव की बात करते हैं.

आरएसएफ ने 12 मार्च को 20 ऐसे राजनीतिक तरीकों की लिस्ट तैयार की जो पत्रकारों की जासूसी और उन्हें परेशान करने के लिए डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और इस तरह समाचार और सूचना प्राप्त करने की क्षमता को खतरे में डालते हैं. इस लिस्ट में ‘मोदी वारियर्स’ का नाम शामिल किया गया, यानी ‘मोदी के सिपाही.’ सोशल मीडिया पर गालीगलौज, रेप और जान से मारने की धमकी इत्यादि जैसे तरीके इन सोशल मीडिया कर्मवीरों द्वारा अपनाए जाते हैं. ये ट्रोलर्स जो या तो स्वेच्छा से अपनी सेवाएं देते हैं या सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पेडवर्कर्स होते हैं. कुछ बोला तो सम?ा गए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की भाजपाई सरकार थोड़ा सा भी सच बरदाश्त करने की कंडीशन में नहीं है.

वह डरती है कि अगर कहीं से भी थोड़ा सा सच बाहर आ गया तो वह खुद का कुरूप चेहरा नहीं ?ोल पाएगी. आरएसएफ की यह रिपोर्ट हवाहवाई नहीं, बल्कि इस में मौजूदा सरकार की विषैली ?ालकियां खुद ब खुद दिख जाती हैं. पिछले माह जुलाई मध्य में ‘पैगासस प्रोजैक्ट’ नाम से दुनियाभर के 17 खोजी मीडिया संस्थानों ने सनसनी खबर ब्रेक कर दावा किया कि, इसराईली कंपनी एनएसओ की मदद से दुनियाभर की विभिन्न सरकारें अपने देश के 50 हजार से अधिक नागरिकों की निगरानी करवा रही हैं. यह निगरानी बैडरूम, बाथरूम तक पहुंच रखती है. इन निगरानीकर्ता में मुख्य वे देश शामिल हैं जहां लोकतंत्र खत्म हो गया है या खत्म होने की कगार पर है. इसी में भारत का नाम भी शामिल है.

सनसनीखेज दावे के मुताबिक, भारत में 300 भारतीय नागरिकों की गैरकानूनी ढंग से सूक्ष्म निगरानी सरकार द्वारा की गई, जिस में विपक्षी नेता, मंत्री, जज, सामाजिक कार्यकर्ता इत्यादि तो हैं ही, साथ में 40 से अधिक पत्रकार भी शामिल हैं. ये वे पत्रकार हैं जो समयसमय पर सरकार से सवाल करते रहे हैं या संवेदनशील विभागों को कवर करते रहे हैं. पत्रकारों की इस तरह की निगरानी किया जाना बेहद खतरनाक बात है. ऐसे में कोई भी पत्रकारों के सूत्रों, उन की जानकारियों, उन की खोजबीन को आसानी से अपने अनुसार मोल्ड कर सकता है, खासकर जब सरकार घेरे में हो तो. पत्रकारों की इस तरह की निगरानी कर खबर को असानी से प्रभावित किया जा सकता है, मीडिया सुबूतों को मिटाया जा सकता है और खोजबीन में बाधा पहुंचाई जा सकती है. पैगासस लिस्ट में आए नंबरों में कुछ लोगों की डिवाइस में पैगासस वायरस डाले जाने की पुष्टि हो चुकी है.

हैरानी यह कि विश्व के अलगअलग देशों में इस जासूसी कांड की जांच शुरू हो गई लेकिन भारत में सरकार इसे मुद्दा तक नहीं मानती. न सरकारी नियंत्रण वाली मीडिया इसे दिखाना चाहती है, भले सरकार से डर उन्हें भी लगने लगा हो. इस खबर को भारतीय पटल पर लाने वाले डिजिटल मीडिया पोर्टल ‘द वायर’ के अनुसार, जब यह खबर उन्होंने ब्रेक की उस के बाद पुलिस की एक टीम उन के दफ्तर में रूटीन चैकिंग के बहाने घुसी और ऊलजलूल पूछताछ करने लगी, मानो यह सरकार द्वारा किसी प्रकार का संकेत हो. ठीक इसी दौरान ‘दैनिक भास्कर’ अखबार और ‘भारत समाचार’ चैनल के अलगअलग दफ्तरों में आईटी की रेड डाली गईं. ध्यान रहे, ये वे मीडिया माध्यमों में से हैं जो हाल के समय में सरकार पर तीखे सवाल खड़े करते देखे गए हैं.

ठीक इसी प्रकार की रेड हाल ही में मीडिया वैब पोर्टल न्यूजक्लिक के दफ्तर में भी डाली गई थी. माना जा रहा है कि सरकार द्वारा की गई यह कार्यवाही इन एजेंसियों का सरकार पर आलोचनात्मक रवैया बनाए रखने के चलते हुई है, जिस का एकमात्र उद्देश्य पत्रकारों को डराना था कि वे शांत हो जाएं. प्रैस फ्रीडम इंडैक्स में स्थिति खराब इसी वर्ष अप्रैल में वर्ल्ड फ्रीडम इंडैक्स की रिपोर्ट पब्लिश हुई थी. उस के अनुसार, 180 देशों की लिस्ट में भारत शर्मनाक 142वें स्थान पर था जिसे आजाद पत्रकारिता के लिहाज से खराब माना गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘सरकार समर्थक मीडिया ने प्र्रौपगंडा का एक तरीका पैदा किया है, जबकि सरकार की आलोचना करने की हिम्मत रखने वाले पत्रकारों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों द्वारा ‘राष्ट्र विरोधी’ और यहां तक कि ‘आतंक समर्थक’ करार दिया जाता है.’’ एशिया पैसिफिक क्षेत्र की बात करें तो भारत म्यांमार से भी नीचे आंका गया.

म्यांमार को 140वां स्थान मिला, श्रीलंका को 127 और नेपाल को 106. विश्व प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत वर्ष 2016 में 133वें, वर्ष 2017 में 136वें, वर्ष 2018 में 138वें, वर्ष 2019 में 140वें तथा वर्ष 2020 में 142वें स्थान पर रहा. सूचकांक में भारत की स्थिति खराब होने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम किस दिशा की तरफ लगातार बढ़ रहे हैं. यह गौर करने वाली बात है कि रिपोर्ट में इस वर्ष महज 7 फीसदी देशों को ही पत्रकारिता के लिहाज से अनुकूल माना गया, जो पिछले वर्ष 8 फीसदी था, यानी साल दर साल देशों में प्रैस की आजादी को संकुचित किया जा रहा है. पिछले वर्ष भारत का स्थान 2 पायदान खिसका था, इस साल भारत खिसका तो नहीं लेकिन भारत के संदर्भ में गंभीर बात यह रही कि, रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है. कितने आजाद पत्रकार भारत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति और मीडिया पर एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 2010 से 2020 के बीच 154 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. इन में से 40 फीसदी मामले अकेले 2020 में सामने आए. यह रिसर्च ‘बिहाइंड बार्स: अरैस्ट एंड डिटैंशन औफ जर्नलिस्ट्स इन इंडिया 2010-20’ नामक शोध में सामने आई.

देश में पत्रकारों की जान भी जोखिमभरी हो चली है, लेकिन दिक्कत इस से अधिक न्याय मिलने की है. 2010 के बाद मारे गए पत्रकारों में से महज 3 मामलों में ही अब तक अपराधियों को दोषी ठहराया गया है. 2014 के बाद तो एक भी पत्रकार की हत्या के मामले में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सका है. ‘गेटिंग अवे विद मर्डर’ नामक अध्ययन के अनुसार, 2014-19 के बीच पत्रकारों की देश में 40 हत्याएं हुईं. इन में से 21 पत्रकारों की हत्या उन की पत्रकारिता के चलते हुई. इन वर्षों में देश में पत्रकारों पर 200 से अधिक गंभीर हमले हुए. अध्ययन के अनुसार, हत्याओं और हमलों के अपराधियों में सरकारी एजेंसियां, सुरक्षा बल, राजनीतिक दल के सदस्य, धार्मिक संप्रदाय, छात्र समूह, आपराधिक गिरोह और स्थानीय माफिया शामिल थे. इस के अलावा इस अध्ययन में सरकार द्वारा उचित कार्यवाही न किए जाने की बात की गई.

यानी प्रशासन जानबू?ा कर मामले को दबाने की कोशिश में रहा. 11 अगस्त को दिल्ली प्रैस समूह की चर्चित पत्रिका ‘द कैरेवान’ के 3 पत्रकारों (शाहिद तांत्रे, प्रभजीत सिंह, एक महिला पत्रकार) पर दिल्ली में हुए भीषण हमले और उत्पीड़न के बाद शिकायत दर्ज करने के बावजूद पुलिस अपनी कार्यवाही करने में असफल रही है. पत्रकारों पर बढ़ता खतरा नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए. साल 2019 में देश में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज हुए और इन में 96 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन 96 में से 76 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई और 29 को बरी कर दिया गया.

इन सभी आरोपियों में से केवल 2 को अदालत ने दोषी ठहराया. इसी तरह साल 2018 में जिन लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया, उन में से 46 के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और उन में से भी केवल 2 लोगों को ही अदालत ने दोषी माना. वर्ष 2010 से वर्ष 2020 तक कुल 816 राजद्रोह के मामलों में 10,938 भारतीयों को आरोपी बनाया गया है. इन में 65 फीसदी मामले मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान एनडीए सरकार के समय में दर्ज किए गए. इसी प्रकार ऐसे गंभीर कानूनों का इस्तेमाल अस्पष्ट मामलों को दर्ज कर के ऐसे पत्रकारों के खिलाफ हथियार के तौर पर किया जा रहा है जो सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. हाल के महीने में दिल्ली प्रैस ग्रुप के संपादक/डायरैक्टरों, पत्रकार विनोद के जोस, इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई, सिद्धार्थ वरदराजन, मृणाल पांडे, जफर आगा जैसे प्रमुख संपादक और पत्रकारों पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए या एफआईआर दर्ज की गईं जिन पर देशविदेश के मीडिया संगठनों ने भारी आपत्ति जताई थी.

ये दर्ज मामले स्पष्ट दर्शाते हैं कि ये सब सरकारी षड्यंत्र का हिस्सा हैं. इसी प्रकार पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराई गई थी. उन पर भी आरोप लगा कि उन्होंने फर्जी खबर फैलाई जिस के बाद उन के एफआईआर में देशद्रोह की धारा जोड़ी गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. इन सभी पत्रकारों के समर्थन में हर जगह से लोकतांत्रिक आवाजें उठीं. मीडिया संगठनों और बुद्धिजीवियों की तरफ से सरकार को चौतरफा विरोध ?ोलना पड़ा है. इस से पहले पिछले साल अक्तूबर में उत्तर प्रदेश पुलिस ने केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन और 3 अन्य पर राजद्रोह समेत अन्य धाराओं में मामले दर्ज किए थे. ये मामले तब दर्ज किए गए जब कप्पन एक दलित लड़की के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले की जमीनी रिपोर्टिंग करने के लिए हाथरस जा रहे थे. इस सरकार में कार्टूनिस्ट पत्रकारों के खिलाफ भी मुकदमे चलाए जा रहे हैं. कई पत्रकारों को पुलिस द्वारा कवर करने के चलते खुलेआम पीटा गया जिस में हालिया नाम मंदीप पुनिया का जुड़ा.

वहीं ताजाताजा ब्लौक प्रमुख चुनाव कवर करते कृष्णा तिवारी भी रहे, हालांकि अगले रोज वे पीटने वाले पुलिस के साथ मिठाई खाते भी पाए गए. इस वर्ष जून मध्य में 3 पत्रकारों, राणा अयूब, सबा नकबी और मोहम्मद जुबैर के ऊपर उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘आपराधिक साजिश’ के बेतुके आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज की. पत्रकारों को ‘षड्यंत्र’ रचने के कथित आरोपों के तहत आरोपित किया गया. इन पर ऐसे गंभीर आरोप लगाए गए जिन में दंगा भड़काने, धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, धार्मिक विश्वासों का अपमान करने, सार्वजनिक शरारत, आपराधिक साजिश और अपराध करने की मंशा शामिल हैं. जबकि इस पूरे मामले में देखने में आया कि इन्हें चयनित तौर से आरोपित किया गया. ऐसे कई पत्रकार हैं जिन्हें बेवजह इस तरह की यातनाएं ?ोलनी पड़ रही हैं. इसी प्रकार अक्तूबर में मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद वांगखेम पर सोशल मीडिया पोस्ट को ले कर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया.

उन्हें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर टिप्पणी करने को ले कर एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया था. ये वही पत्रकार हैं जिन्हें साल 2018 में पहले भी राजद्रोह की धारा में गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस के बाद मणिपुर उच्च न्यायलय ने उन के खिलाफ आरोपों को खारिज किया और वे जेल से रिहा हुए. यही नहीं, आंध्र प्रदेश के 2 टीवी चैनलों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप लगाए गए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को दंडात्मक कार्यवाही करने से रोकते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 124ए की व्याख्या करने की जरूरत है. भक्त मीडिया और अंधभक्त जनता भारत का मीडिया क्षेत्र बहुत वृहद है, शायद दुनिया में सब से बड़ा हो. हजारों समाचारपत्र, हजारों पत्रिकाएं, डेढ़ सौ से अधिक टैलीविजन समाचार चैनल और दर्जनों भाषाओं में अनगिनत वैबसाइटें. इस के अलावा कितने ही फेसबुकिया, यूट्यूबर हैं जो न्यूज परोसते रहते हैं. इस में कोई संदेह नहीं कि सरकार के इस व्यवहार को समाज पर थोपने में मीडिया की एक विशेष भूमिका रही है और इस मीडिया का एक हिस्सा, जो दबने को तैयार नहीं हुआ, उसे अपने ही बेईमान भाई के कृत्यों का खमियाजा भुगतना पड़ रहा है.

आज जिस प्रकार से मीडिया ने सत्ताधारियों के साथ मिल कर मीडिया का गला दबाने का कृत्य किया है उस की सचाई तरहतरह की रिपोर्टों से सामने आ रही है. इस में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि देश में लगातार सूचनाओं के जाल को योजनाबद्ध तरीके से कुतरा जा रहा है. सरकारी मंत्रालयों की डैस्क से निकल कर सूचनाओं की कटाईछंटाई हो रही है. खास तरह की सूचनाओं को ही चलाया जा रहा है, जो खुली पक्षपाती हैं. सूचनाओं में विशेष समुदाय और तबके पर खास टारगेट किया जा रहा है. जो खुलेतौर से सत्ताधारी पार्टी द्वारा प्रायोजित है. आज मीडिया जिस दौर में है उस दौर को ले कर कई नामी लोगों ने इसे आपातकाल से खराब माना है. आपातकाल में कम से कम पत्रकार विरोध करते थे. सरकार और पत्रकार के बीच लकीर स्पष्ट थी. लेकिन इस समय देश की स्थिति हर क्षेत्र में चरमराने के बावजूद अधिकतर मीडिया हाउस सरकार के आगे नतमस्तक हैं. वे खुद ‘भक्त मीडिया’ व ‘गोदी मीडिया’ के नाम से जाने जा रहे हैं. ऐसे में मोदी समर्थकों का बना जन गुट बिलकुल भी इस तरफ ध्यान नहीं देना चाहता. इस भक्त मीडिया ने मोदी को अंधभक्त जनता के आगे इतना महान बना दिया है कि वे देखना ही नहीं चाहते कि देश को कितना नुकसान हो गया है.

7 वर्षों पहले जिस महंगाई पर वे सड़कों पर बिफर पड़ते थे, अब वे मोदीभक्ति के आगे महंगाई का घूंट पीने को मजबूर हैं. लोगों की स्थिति चाहे जितनी पतन की तरफ जा रही हो, उन्हें रात के प्राइम टाइम में हिंदू-मुसलमान, देशभक्ति-देशद्रोह, भारत-पकिस्तान की बहस में ही मजा आने लगा है. लोगों का दिमाग भक्त टीवी चैनलों ने इतना ढीला कर दिया है कि वे इन 7 सालों में कितना ही नुकसान ?ोल चुके हों, नौकरियों/रोजगारों से हाथ धो चुके हों, परिवार में किसी का शोक मना चुके हों, पर फिर भी वे सरकार के खिलाफ तनिक भी मुंह नहीं खोल रहे. ऐसा क्यों? क्योंकि देश में प्रैस की आजादी खरीदी जा चुकी है, और देशवासी उन गुलाम चैनलों को देख रहे हैं जो पीछे वाला सरकारी रिंग मास्टर उन्हें दिखाना चाहता है.

आवेश – भाग 1 : संतू और राजन के रिश्ते क्यों खराब हो रहे थें

लेखक-अरुण अलबेला

मेरे बेटे संतू के चेहरे पर अकस्मात उभरा आवेश मैं ने अच्छी तरह महसूस किया था. वह चोंगा पटक कर गहरी सांस लेने लगा था.

धनबाद से मेरे समधी राजन बाबू का जब दोबारा फोन आया तो चोंगा मैं ने ही उठाया, ‘‘हैलो.’’‘‘नमस्कार, भाईसाहब,’’ उधर से राजन बाबू बोले.

‘‘नमस्कार भाई,  जब से मोना बहू आप के यहां गई है, संतू का मन नहीं लगता. वह उसे दशहरे से पहले लाना चाहता है.’’

‘‘एक माह भी तो नहीं हुआ बेटी  को आए हुए,’’ राजन बाबू का स्वर  उखड़ा, ‘‘आप संतोष बाबू को  फोन दीजिए.’’

तब तक संतू मेरे निकट आ चुका था. रसोई में ममता, मेरी पत्नी रात के खाने की तैयारी में लगी थी. वह आटा गूंथती हांफ रही थी क्योंकि कुछ दिनों से वह बीमार थी. छाती में कफ जम गया था, सो ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी. अस्पताल में भरती थी, तब औक्सीजन लगवानी पड़ी थी. डाक्टर ने आराम करने को कहा था. सांस उखड़ने पर वह ‘एस्थेलिन इनहेलर’ इस्तेमाल करती थी. ऐसे में मोना बहू का यहां होना जरूरी था.

कभीकभी मु झे भी रसोई संभालना पड़ जाती थी. यह सब संतू को अच्छा नहीं लग रहा था.

मोना डेढ़ माह के लिए कह कर मायके गई थी. अभी 25 दिन ही हुए थे. उस के बिना संतू को दिन काटने मुश्किल हो रहे थे. वह चाहता था, जितनी जल्दी हो, मोना आ जाए. दूसरा कारण था, अपने 14 माह के बेटे सोनू से अत्यधिक लगाव.

सोनू की उछलकूद सभी को अच्छी लगती थी. वह चलने लगा था. पापापापा कहता फिरता था. सोनू का खिलखिलाना, तुतलाना अच्छा लगता था.’

हम सब उस की हरकतों पर हंसते… गोद में ले कर चूमते… उस के साथ बच्चे बन जाते. उस के साथ खेलने में मजा आता. हम चाहते कि वह सदा हमारे सामने रहे.

ऐन वक्त पर राजन बाबू सोनू

सहित मोना को ले गए थे. मोना उन की एकलौती बेटी थी, सीधीसादी, सरल स्वभाव की. उस में मायके के प्रति जबरदस्त आकर्षण था. वह मायके में 1-2 माह रहना चाहती थी. कहती थी, ‘मम्मी के हाथ का बना खाना अच्छा लगता है. उन की बनाई खिचड़ी मैं छोड़ती नहीं.’

शादी के 2 साल हुए. इस बीच वह 5 बार मायके जा चुकी थी. संतू को उस का जल्दीजल्दी जाना अच्छा नहीं लगता था.

संतू उसे बेहद प्यार करता था. उस का विवाह ‘लवमैरिज’ नहीं था पर मेरा और ममता का चुनाव उस ने स्वीकारा था.

दरअसल, ‘यौवन और आकर्षण’  होता ही ऐसा है जो पत्नी को दूर रहने नहीं देना चाहता. सामने रहने वाली अंजली ने संतू को शुरू से ही अपनी ओर खींचना चाहा था. विवाहोपरांत पुत्रवती होने के बाद भी वह उसे खींचना चाह रही थी. संतू अपनी या उस की बदनामी नहीं चाहता था, लिहाजा, मोना को साथ रखना चाहता था ताकि वह ढाल बनी रहे.

मोना के मम्मीपापा तथा भाई यहां मिलने आते रहते थे, फिर भी उसे अपने यहां 1-2 माह रखना चाहते थे और  संतू उसे 15-20 दिन से ज्यादा छोड़ता नहीं था.

हम भी चाहते थे कि तीजत्योहार पर मोना हमारे यहां रहे. संतू कहता था, ‘मायके में एक सप्ताह काफी है,’ तो ममता भी उस का समर्थन करती, ‘पर्वत्योहार में बहू को अपने घर रहना चाहिए. कब तक मायके के प्रति आकर्षण पाल कर वहां पड़ी रहेगी?  अब उसे यहां का कार्यव्यवहार सीखना चाहिए.’

वैसे, मोना को लाने की इच्छा इसलिए भी बलवती हो रही थी कि हम ने जीप खरीदी थी और पहली बार उसी से मोना और सोनू के साथ जीप से धनबाद होते हुए वहां एक शादी समारोह में शामिल हो जाएं. हमारा यह प्रस्ताव संतू को भी पसंद था.

सो इस की जानकारी राजन बाबू को दे दी गई थी. उसी संदर्भ में राजन बाबू का फोन आया था, जिसे सुन संतू आवेशित हो उठा था.

इसीलिए मैं ने संतू से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, चोंगा क्यों पटक दिया?’’

‘‘उन्होंने बात ही ऐसी कह दी है…’’

आवेश से वह बिफरा.

‘‘ऐसा क्या कह दिया,’’ ममता ने भी जानना चाहा. उस के स्वर में भी आवेश  झलक उठा.

संतू ने आवेश पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘वे कहते हैं कि क्या हरदम आप की ही चलेगी? मोना मेरी प्यारी बेटी है. मैं ने उसे बेचा नहीं है. बाद में आइए.’’

‘‘ऐसा कह दिया,’’ ममता क्रोध से भड़क उठी, ‘‘हम ने या संतू ने कब अपनी चलाई है? लड़के वाले हो कर भी उन पर तो कभी रोब भी नहीं गांठा. मोना उन की प्यारी बेटी है तो क्या संतू हमारा प्यारा बेटा नहीं? उन्होंने ‘बेटी बेचने’ का नाम क्यों लिया? क्या उन्होंने संतू को खरीदा है जो अपनी बात मनवाना चाहते हैं? क्या दामाद से ऐसी बातें की जाती हैं?’’

संतू के चोंगा पटकते वक्त की बात मु झे याद आई जो उस ने आवेश में कही थी, ‘आप को अपनी बेटी प्यारी है तो मु झे मेरा बेटा, सोनू प्यारा है.’

मु झे भी ये बातें सालती रहीं कि राजन बाबू ने ऐसा क्यों कह दिया, जबकि हम ने तो उन पर अपना रोब कभी नहीं गांठा. वे तो सीधेसादे व्यक्ति हैं. जब बुलाया, आए हैं. कहीं ‘स्वामीजी’ ने उन्हें हमारे खिलाफ बरगलाया तो नहीं? स्वामीजी बाल की खाल निकाला करते हैं. अपने प्रवचन से लोगों का दिमाग फेरते रहते हैं.

अब स्वामीजी के प्रति कुछ आशंकाएं मेरे दिमाग में करवटें लेने लगीं. स्वामीजी अपनी बेटी को उस की ससुराल जाने नहीं देते. ब्यूटीशियन बना कर मायके में ही रखा है, तो क्या राजन बाबू भी… नहीं… उन्होंने संबंध पक्का और मीठा बनाने में अब तक सहयोग दिया है. सोनू के जन्म पर सपरिवार आए थे,  वैसे और कई बार आ कर 4-6 दिन भी रह गए थे.

उन की बातों का हम मंथन करने लगे. जब भी ‘लंच’ या ‘डिनर’ पर साथ बैठते, हम चर्चा छेड़ बैठते. ममता कहती,  ‘हम ने कभी उन्हें नहीं दबाया. उलटे, वही हमारा सीधापन देख कर अपनी मरजी चलाते रहे हैं.

गरमाती धरती कहर के करीब

प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि दुनियाभर में देखी जा रही है. अमेरिका और रूस के जंगलों में भयानक आग दहक रही है और पश्चिमी यूरोप के हिस्से विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित हैं. इन में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स ने भी भारी बारिश की मार ?ोली है. मध्य चीन के कुछ हिस्सों में मूसलाधार बारिश के कारण भयंकर बाढ़ आई हुई है. हेनान प्रांत में अभूतपूर्व बारिश से हालात बिगड़ गए हैं. हेनान की राजधानी ?ोंग?ाउ में बाढ़ के कारण 60 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. यह चीन में 1,000 वर्षों में हुई अब तक की सब से भारी बारिश है.

इटली, रोमानिया जैसे देशों में आबादी को भंयकर गरमी की मार पड़ रही है. कनाडा जैसा ठंडा क्षेत्र गरमी की मार ?ोल रहा है. पिछले वर्ष यूरोप में गरमी से करीब एक लाख 40 हजार लोग प्रभावित हुए थे. आने वाले वक्त में परिस्थितियां और भी ज्यादा बुरी होंगी. बीते साल अमेरिका में कैलिफोर्निया के जंगल आग की ऊंचीऊंची लपटों में घिरे रहे. आग तब भड़की जब पश्चिम में तापमान अत्यधिक बढ़ गया. आजकल अमेरिकी राज्य ओरेगन के जंगलों में आग लगी हुई है. इसे देश की सब से भयावह आग बताया जा रहा है. इस आग की चपेट में जंगल की 3 लाख एकड़ जमीन आ चुकी है.

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अमेरिका के अलगअलग 13 राज्यों में 80 जगहों पर आग लगी है. हीटवेव और तेज हवाओं के कारण लगी आग पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है जो स्थिति को खतरनाक बनाता जा रहा है. आस्ट्रेलिया के लिए जंगलों में भी आग लगना कोई नई बात नहीं है. बढ़ते तापमान और सूखे की वजह से आस्ट्रेलिया के अलगअलग हिस्सों के जंगलों में कई बार आग भड़क चुकी है. बीते साल करीब 5 महीने तक जलती रही आग में 50 करोड़ से ज्यादा जानवरों की मौत हुई है. आग कितनी भयावह थी इस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस आग से एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जल कर राख हो गया. वहीं, जरमनी के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं और वहां 160 से ज्यादा लोग अब तक बाढ़ के कारण जान गंवा चुके हैं. सौ से ज्यादा लोग लापता हैं.

जरमनी की चांसलर एंजेला मार्केल भीषण बाढ़ की त्रासदी से अपने लोगों को बचाने व उन की हिम्मत बढ़ाने के लिए लगातार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रही हैं. उन का कहना है कि 700 सालों में यह जरमनी में सब से बुरी बाढ़ है. बेल्जियम में भी बाढ़ की चपेट में आ कर 31 लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों लापता हैं. दुनिया का कोई भी कोना ऐसा नहीं बचा है जहां मौसम के मिजाज में परिवर्तन न हो रहा हो. कहीं धीमे तो कहीं बहुत तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिस के चलते जीवजंतु, वनस्पति, मनुष्य और पक्षी सभी प्रभावित हैं. वजह है ग्लोबल वार्मिंग ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन मोनोऔक्साइड, कार्बन डाइऔक्साइड और मीथेन) के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोतरी होना. इसे सब से पहले न्यूजर्सी के साइंटिस्ट वैली ब्रोएक्केर ने परिभाषित किया था.

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ये गैसें वाहनों, कारखानों और अन्य कई स्रोतों से उत्सर्जित होतीं हैं. ये खतरनाक गैसें पृथ्वी के वातावरण में मिल कर तापमान में वृद्धि कर रही हैं. आज हमारी धरती ताप युग के जिस मुहाने पर खड़ी है, उस विभीषिका का अनुमान काफी पहले से ही किया जाने लगा था. इस तरह की आशंका सर्वप्रथम 20वीं सदी के प्रारंभ में आर्हीनियस एवं थौमस सी चेम्बरलीन नामक 2 वैज्ञानिकों ने की थी. किंतु इस का अध्ययन 1958 से ही शुरू हो पाया. तब से कार्बन डाइऔक्साइड की सघनता का विधिवत रिकौर्ड रखा जाने लगा. भूमंडल के गरमाने के ठोस सुबूत 1988 से मिलने शुरू हुए.

नासा के गोडार्ड इंस्टिट्यूट औफ स्पेस स्टडीज के जेम्स ईण्हेन्सन ने 1960 से ले कर 20वीं सदी के अंत तक के आंकड़ों से निष्कर्ष निकाला है कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री सैल्सियस बढ़ गया है. भारत में सैंटर फौर साइंस एंड एनवायरनमैंट के सीनियर डायरैक्टर सुपर्णो बनर्जी कहते हैं, ‘‘ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जलवायु बहुत तेजी से गरम हो रही है जिस का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन से जगहजगह तूफान, बाढ़, जंगलों में आग, सूखा और लू के खतरे, उष्णकटिबंधीय चक्रवात बढ़ते ही जा रहे हैं.

इस के अलावा वन्य जीवों का विलुप्त होना, जीवों के आचरण में बदलाव, उन के प्रवास स्थलों का बदलना जैसी बातें सामने आ रही हैं.’’ सुपर्णो बनर्जी आगे कहते हैं, ‘‘वातावरण में गरमी बढ़ने पर वायुमंडल समुद्रों से अधिक पानी एकत्र कर लेता है जिस के कारण भयंकर बारिश और सैलाब का मंजर पैदा होता है. दूसरी ओर, ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है. यह वृद्धि 2 तरीकों से हो रही है. एक ओर गरम तापमान के कारण ग्लेशियर और भूमि आधारित बर्फ की चादरें पिघल रही हैं और यह पानी समुद्र में जा रहा है. ‘‘दूसरी ओर, ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री सतह का तापमान भी बढ़ रहा है क्योंकि पृथ्वी के वातावरण की अधिकांश गरमी समुद्र द्वारा अवशोषित होती है.

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गरम समुद्री सतह के कारण तूफान का बनना आसान हो जाता है. तूफान से वर्षा की दर बढ़ती है जिस से दुनियाभर में सैलाब की त्रासद घटनाएं हो रही हैं. ‘‘धरती के जो हिस्से समुद्र के किनारे हैं वे धीरेधीरे पानी में समा रहे हैं. बंगाल के सुंदरवन के डेल्टा के आसपास के द्वीप डूब रहे हैं. ओडिशा के तटीय गांव डूब गए हैं और सरकार गांव वालों से उस डूबी भूमि का भूटैक्स चार्ज कर रही है जो गांव हैं ही नहीं. यही हाल कोलकाता, मुंबई और चेन्नई आदि का होने वाला है.’’ सिकुड़ते ग्लेशियर पृथ्वी पर लगभग एक लाख 98 हजार ग्लेशियर हैं जो करीब 7 लाख 26 हजार स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं. हमारी जलवायु काफी हद तक ग्लेशियरों पर निर्भर करती है तो वहीं साफ पानी का सब से बड़ा स्रोत ग्लेशियर ही हैं.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं और इस के भयावह परिणाम दुनियाभर में नजर आने लगे हैं. आइसलैंड के सब से प्राचीन ग्लेशियरों में से एक ‘ओकजोकुल ग्लेशियर’ पूरी तरह सूख चुका है. 700 साल से ज्यादा पुराने उस ग्लेशियर से ग्लेशियर का दर्जा तक ले लिया गया है. यह असर जलवायु परिवर्तन के कारण ही हुआ. 2 अगस्त, 2019 को आइसलैंड के इतिहास में एक दिन में सब से ज्यादा व तेज बर्फ पिघलने की घटना दर्ज की गई थी. उस दिन वहां 24 घंटे में 12.5 बिलियन टन बर्फ की चादर पिघल गई. ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक की बर्फ समय से पहले पिघल रही है और वसंत के दौरान पौधों में पत्ते जल्दी आ रहे हैं. साथ ही, टुंड्रा वनस्पति नए क्षेत्रों में फैल रही है. एक तरह से आर्कटिक में तेजी से तापमान में बदलाव आ रहा है. इस से हरियाली को पनपने में मदद मिल रही है. नासा की सैटेलाइट तसवीरें बताती हैं कि अंटार्कटिका में बर्फ की चादर के नीचे 130 ?ालों का निर्माण हो चुका है.

वहां बर्फ का रंग बदल रहा है. उन इलाकों में समुद्री एल्गी उग रही है जिस से बर्फ का रंग हरा पड़ने लगा है. वैज्ञानिक ग्रीनलैंड को ले कर भी चेतावनी जारी कर चुके हैं. उन का कहना है कि यदि जलवायु परिवर्तन ऐसे ही जारी रहा तो एक दिन ग्रीनलैंड केवल घास का मैदान बन कर रह जाएगा. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वैंशन 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वर्ष 2100 तक 80 फीसदी ग्लेशियर पिघल कर सिकुड़ सकते हैं और समुद्र का स्तर 2100 तक 2000 के स्तर से 8 फुट से अधिक बढ़ सकता है. भारत में जलवायु परिवर्तन हिमालयी ग्लेशियरों को निगल रहा है. ये ग्लेशियर हिमालय के क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर 2,000 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं जो बढ़ते तापमान के कारण 21वीं सदी की शुरुआत की तुलना में आज दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं.

लगभग 4 दशकों में इन ग्लेशियरों ने अपना एकचौथाई घनत्व खो दिया है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ये ग्लेशियर पतली चादर में परिवर्तित हो रहे हैं और उन में टूटफूट हो रही है. गंगोत्री ग्लेश्यिर, जहां से भारत की सब से बड़ी नदी गंगा का उद्गम होता है, तेजी से पिघल रहा है. गंगोत्री ग्लेशियर प्रतिवर्ष 30 मीटर की दर से सिकुड़ रहा है. यह एक भयावह अनुमान है कि वर्ष 2030 तक गंगा सूख सकती है. गौरतलब है कि उत्तराखंड की कोसी नदी पहले ही सूख कर ‘वैश्विक तापमान’ की व्यथा अभिव्यक्त कर रही है. देश के विभिन्न क्षेत्रों में भूजल स्तर में तीव्र गिरावट दर्ज की जा रही है जिस के कारण खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लग गया है. पानी के अभाव में खेती घाटे का सौदा बन गई है. हाल ही में सेडार ने भी एक रिसर्च कर बताया था कि हिंदूकुश हिमालय तेजी से सिकुड़ रहा है. इस से ‘इंडियन हिमालयन रीजन’ सहित 8 देशों में जल संकट गहरा सकता है.

भारत, चीन, नेपाल और भूटान जैसे देशों के करोड़ों लोग सिंचाई, जल विद्युत और पीने के पानी के लिए हिमालय के ग्लेशियरों पर निर्भर हैं. इन ग्लेशियरों के पिघलने से आने वाले वक्त में इस पूरे क्षेत्र के जलतंत्र और यहां रहने वाली आबादी का जीवन प्रभावित हो सकता है. हाल के शोध में पता चला है कि दुनियाभर में ऊंचाई वाले ग्लेशियल ?ालों की संख्या और आकार में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. दुनिया में बाढ़ के सब से बड़े खतरों में से एक ग्लेशियरों के पिघलने से बनी ?ालों को माना जाता है. इन ?ालों के टूटने से भारी तबाही होती है. तेज गति में ऊंचाई से आता पानी रास्ते में आने वाले गांव, जंगल, शहर सब तबाह करता हुआ समुद्रों में जा गिरता है जिस के कारण समुद्र का आयतन और जलस्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है.

भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद हुई त्रासदी और 16 जून, 2013 की केदारनाथ आपदा, जिस ने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, की भयावहता आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. आसमानी आफत ने केदार घाटी समेत पूरे उत्तराखंड में बरबादी के वे निशान छोड़े जिन्हें अब तक नहीं मिटाया जा सका है. आपदा को 8 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी यह सवाल जिंदा है कि क्या उस त्रासदी से आम जनमानस और हमारी सरकारों ने कोई सबक लिया है? पिघलती बर्फ बढ़ते खतरे जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता को सम?ाने के लिए बर्फ के सब से बड़े भंडारों की परिस्थितियों को देखना और सम?ाना होगा. दुनिया में बर्फ के सब से बड़े भंडार अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में हैं. इन का पर्यावरण ही दुनिया की जलवायु परिवर्तन का सूचक है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार यदि ग्रीनलैंड की पूरी बर्फ पिघली तो समुद्र स्तर में 8 मीटर तक की बढ़ोतरी होगी और मालदीव, मुंबई जैसे अनेक शहर समुद्र के पानी में डूब जाएंगे.

वर्ष 2100 तक 23 डिग्री अक्षांश पर स्थित समुद्रों के पानी के तापमान में 3 डिग्री सैंटीग्रेड की वृद्धि होगी. तापमान की वृद्धि के कारण वर्ष 2080 तक पश्चिमी पैसिफिक महासागर, हिंद महासागर, पर्शिया की खाड़ी, मिडिल ईस्ट और वैस्टइंडीज द्वीप समूहों की कोरल रीफ के 80 से 100 प्रतिशत तक लुप्त होने का खतरा है. अम्लीय पानी के असर से ठंडे पानी की कोरल रीफ और खोल वाले समुद्री जीवों के अस्तित्व को खतरा बढ़ रहा है. समुद्र में औक्सीजन की कमी वाले क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है. यह संख्या 149 से बढ़ कर 200 हो गई है. इस बदलाव के कारण इन क्षेत्रों में मछलियों की पैदावार कम हो गई है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण बदलती जलवायु के प्रभाव पर गहरी नजर रखने वाले पर्यावरणविद सुपर्णो बनर्जी के मुताबिक जलवायु में यह बदलाव दुनिया को कई तरह से प्रभावित कर रहा है. उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के भयंकर प्रभाव के चलते मनुष्य अपनी जगहों से बहुत तेजी से विस्थापित हो रहे हैं. वर्ष 2020 की पहली छमाही में लगभग 10 मिलियन लोग बड़े पैमाने पर जलवायु आपदाओं के कारण विस्थापित हुए थे.

पशुपक्षी और पौधे बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने की सख्त कोशिश कर रहे हैं और जब वे कामयाब नहीं हो पाते तो मर जाते हैं. उदाहरण के लिए, अंटार्कटिका में एडेली पेंगुइन की आबादी उन के आवास से बर्फ के खत्म होने के कारण लगभग 90 प्रतिशत तक गिर गई है. हर साल धरती पर बढ़ रहा है 6 गीगाटन कार्बन सैंटर फौर साइंस एंड एनवायरनमैंट की एक रिपोर्ट कहती है कि पृथ्वी पर हर साल करीब 6 गीगाटन कार्बन बढ़ रहा है जिस का भार इंसानों के भार से 12 गुना ज्यादा है. यह जानकारी हाल ही में चीन के ग्लोबल कार्बन डाइऔक्साइड मौनिटरिंग साइंटिफिक एक्सपैरिमैंटल सैटेलाइट (टैनसैट) द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है. शुष्क हवा के साथ कार्बन कैसे मिश्रित होता है, इसे सम?ाने के लिए वैज्ञानिकों ने मई 2017 से अप्रैल 2018 तक एकत्रित आंकड़ों का उपयोग करते हुए दुनिया का पहला कार्बन के प्रवाह का डेटासैट और मानचित्र तैयार किया है. इस से जुड़ा शोध 22 जुलाई को ‘एडवांसेस इन एटमौस्फेरिक साइंसेज’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता यांग डोंगक्सू के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसों के आदानप्रदान की प्रक्रिया के दौरान सौ गीगाटन से भी ज्यादा कार्बन का आदानप्रदान जीवधारियों और वनस्पति के बीच होता है. लेकिन धरती पर जिस तरह से कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है उस के कारण हर वर्ष करीब 6 गीगाटन कार्बन वातावरण में जुड़ रहा है, जोकि जलवायु परिवर्तन की वजह बन रहा है. जंगलों के कम होते जाने से अतिरिक्त कार्बन का अवशोषण नहीं हो पा रहा है. खेती को नुकसान जलवायु परिवर्तन से वर्षा आधारित फसलों को अधिक नुकसान हो रहा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण वर्षा की कम मात्रा से किसानों को सिंचाई हेतु पर्याप्त जल ही उपलब्ध नहीं है. इस के कारण रबी की फसल पर ज्यादा मार पड़ती है. एक अध्ययन के अनुसार, यदि तापमान में 2 डिग्री सैंटीग्रेड के लगभग वृद्धि होती है तो गेहूं की उत्पादकता घट जाएगी.

भारत, जोकि एक कृषि प्रधान देश है, में तापमान के एक डिग्री सैंटीग्रेड बढ़ने पर ही गेहूं के उत्पादन में 4.5 करोड़ टन की कमी हो जाएगी. यही नहीं, वर्ष 2100 तक फसलों की उत्पादकता में 10 से 40 प्रतिशत तक कमी आने से देश की खाद्य सुरक्षा के खतरे में पड़ जाने की प्रबल संभावना है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण कच्छ और सौराष्ट्र, जो गुजरात के कुल क्षेत्रफल के 25 प्रतिशत तथा राजस्थान के 60 प्रतिशत अंश में फैले हुए हैं, में जल संकट की तसवीर विकराल हो जाएगी जिस के कारण कृषकों की आजीविका पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा. यही नहीं, माही, पेन्नार, साबरमती तथा ताजी नदियों में भी जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जबकि दूसरी तरफ गोदावरी, महानदी तथा ब्राह्मणी में ‘भीषण बाढ़’ के हालात पैदा हो जाएंगे. जिस से कृषकों को भारी तबाही का सामना करना पड़ेगा.

बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते उद्योगों एवं विध्वंस होते वनों व जंगलों के कारण विश्व बढ़ते तापमान एवं जलवायु परिवर्तन जैसी ज्वलंत समस्याओं से जू?ाता हुआ विनाश की कगार पर खड़ा है. वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण संपूर्ण पृथ्वी में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिखने लगे हैं. चिंताजनक तथ्य यह है कि 21वीं सदी में तापमान में वृद्धि 3 से 5 डिग्री सैल्सियस होगी जोकि समस्त विश्व के लिए खतरनाक स्थिति होगी. भारत में बाढ़ और लैंडस्लाइड का भयावह रूप ग्लोबल वार्मिंग का असर भारत पर भारी वर्षा, बादल फटने और पहाड़ों के दरकने के रूप में सामने आ रहा है. लोगों के घर, दुकानें, खेत तबाह हो गए हैं. लाखों लोग घर से बेघर हो चुके हैं.

भारत के कई राज्यों में इस बार मानसून की बारिश पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा है जिस के चलते उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मूकश्मीर और सिक्किम से ले कर महाराष्ट्र और बंगाल तक से भयावह दृश्य सामने आए हैं. इन राज्यों में बारिश के साथ लैंडस्लाइड और बादल फटने की घटनाओं में अब तक 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. अकेले महाराष्ट्र में ही 150 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. सिक्किम में लैंडस्लाइड के कारण एक रेल सुरंग में काम कर रहे तमाम मजदूर बह गए. ममखोला में सेवक-रंग्पो रेल परियोजना पर काम के दौरान सुरंग के आसपास पहाड़ से चट्टानें गिरने लगीं और करीब 10 मजदूर सुरंग में फंस गए. उन का अस्थायी कैंप पानी में बह गया. स्थानीय लोगों ने 3 मजदूरों को रैस्क्यू किया. एक का शव मिला है और बाकियों का कुछ पता नहीं चला.

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर में भी भारी भूस्खलन हुआ है. वहां पहाड़ का बहुत बड़ा हिस्सा टूट कर गिरा है, जिस के चलते पांवटा साहिब से रोहड़ू जाने वाला नैशनल हाईवे 707 बड़वास के पास पहाड़ समेत नीचे धंस गया. हादसे के दौरान सड़कों से अनेक वाहन गुजर रहे थे. हालांकि, पहाड़ दरकने की आहट मिलते ही वाहनों को दोनों तरफ से रोक लिया गया. पश्चिम बंगाल में भी भारी बारिश ने कहर बरपाया है. वहां बारिश के कारण पहाड़ों में दरार आने से मलबा सड़कों पर आ गिरा. लैंडस्लाइड के कारण कलिम्पोंग के पास नैशनल हाइवे-10 की सड़क पूरी तरह से बंद हो गई. कोलकाता और हावड़ा शहर में भी भारी बारिश के कारण सड़कें पानी में डूब गईं. इस बार की असामान्य बारिश से सब से ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र को हुआ है.

रत्नागिरी समेत 10 जिलों में बारिश के बाद लैंडस्लाइड, मकान गिरने और बाढ़ जैसी घटनाओं से 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. चिपलून जैसे शहर तो बाढ़ में डूब गए. वहीं, मध्य प्रदेश में ग्वालियरचंबल अंचल के 1225 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. करीब 2 हजार लोगों को रैस्क्यू करने में सेना जुटी हुई है. मध्य प्रदेश के ग्वालियरचंबल अंचल के शिवपुरी, श्योपुर, दतिया, भिंड, मुरैना और ग्वालियर बाढ़ से बेहाल हैं. सब से ज्यादा प्रभावित 90 गांव शिवपुरी के हैं. रोजीरोटी की तलाश में अब हजारों लोगों का पलायन शुरू हो गया है. बाढ़ से ग्वालियरचंबल अंचल के 6 बड़े पुल और 2 दर्जन से ज्यादा पुलिया बह गई हैं. इन के बहने से करीब 4 सौ करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है. राजस्थान में भी मानसून कहर बन कर टूट रहा है. कोटा, बूंदी और धौलपुर में बाढ़ ने जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया है. कोटा में हुई 8 इंच बारिश ने 43 साल का रिकौर्ड तोड़ दिया है. इसी तरह उत्तर प्रदेश के भी 9 जिलों में बाढ़ जैसे हालात हैं. विलुप्त होते जीव जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण मानव एवं पशुओं की दिनचर्या एवं जीवनचक्र असंतुलित होता जा रहा है. धरती पर से छोटे जीव निरंतर विलुप्त होते जा रहे हैं और 26 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक वनस्पतियों और प्राणियों का अस्तित्व लगभग समाप्त होने को है.

जीवों के व्यवहार में परिवर्तन धनबाद के जयप्रकाश नगर की वैज्ञानिक डा. सोनल चौधरी ने अपने शोध में पाया है कि बर्फ पिघलने से उत्तरी ध्रुव के भालुओं के व्यवहार में बदलाव आ रहा है. वहां वे अपने बच्चों को मार कर खाने लगे हैं. ध्रुवीय भालू, जो बर्फ छोड़ कर इधरउधर नहीं जाते थे, अब जमीन और पहाड़ों पर चढ़ कर पशुपक्षियों को भी निशाना बना रहे हैं. यही हाल रहा तो धु्रवीय भालू की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी या उन के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आएगा. वहीं गरमी बढ़ने से परिंदों के अंडे जल्द परिपक्व हो रहे हैं. फूलों के रंग बदल गए हैं. डा. सोनल ने शोध के लिए उत्तरी ध्रुव पर कई महीने गुजारे हैं. उन का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से उत्तरी ध्रुव पर तेजी से पारिस्थितिकी परिवर्तन हो रहा है. ठोस पहल न हुई तो 21वीं सदी के खत्म होने के साथ समुद्र का जलस्तर इतना बढ़ जाएगा कि न्यूयौर्क और मुंबई जैसे कई शहर पानी में डूब जाएंगे. दुनिया को बचाने के लिए वातावरण के बढ़ते तापमान को रोकना होगा. कार्बन डाइऔक्साइड व अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम कर हरियाली धरती पर बिछानी होगी. वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट औफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के ताजा शोध के अनुसार हिमालयी बेसिन और मध्य हिमालय में तापमान में वृद्धि के कारण ठंड पसंद करने वाले जानवर ज्यादा ऊंचाई वाले स्थानों में पहुंच गए हैं.

जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगली जानवरों के व्यवहार में भी बदलाव हो रहे हैं. मसलन, जो लंगूर गरम इलाकों में रहते थे, वे अब लेह लद्दाख के साथ ही केदारनाथ में भी दिखने लगे हैं. यहां तक कि कई जगह तो 4,876 मीटर या 16 हजार फुट तक भी लंगूर दिखा है. इसी तरह कई जंतु हैं जो पहले निचले इलाकों में ही पाए जाते थे, अब उन में से कुछ ऊंचाई वाले इलाकों में पहुंच चुके हैं. गरमी में निकलते चूहे और सांप ग्लोबल वार्मिंग के कारण आस्ट्रेलिया में चूहों की संख्या अचानक बड़ी तेजी से बड़ी है. अलमारी खोलिए तो चूहा दिखेगा, सड़क पर चूहों की कतारें, खेतों, घरों, गराज यानी हर जगह सिर्फ चूहे ही चूहे हो गए हैं. इतना ही नहीं, इस से ज्यादा बुरी स्थिति उन लोगों की है जिन के घरों में चूहों का आतंक फैला हुआ है. चूहों का मल साफ करने में लोगों को 6-6 घंटे लग रहे हैं. यह सचाई है आस्ट्रेलिया के पूर्वी इलाके की. वहां पर चूहों का आतंक बहुत ज्यादा फैल गया है. सब से बुरी हालत क्वींसलैंड और न्यू साउथ वेल्स की है. आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड और न्यू साउथ वेल्स में तो चूहों की इतनी ज्यादा संख्या हो गई है कि लोगों और प्रशासन के हाथपैर फूल गए हैं.

किसानों, दुकानदारों और गृहिणियों के लिए ये एक बड़ी समस्या बन गए हैं. किसान तो इसे चूहों का प्लेग कह रहे हैं क्योंकि कई दशकों से चूहों की इतनी ज्यादा आबादी यहां के स्थानीय लोगों ने नहीं देखी है. कुछ किसानों की तो पूरी फसल चूहों ने खराब कर दी है. क्वींसलैंड और न्यू साउथ वेल्स के कई होटल बंद कर दिए गए हैं. राशन की दुकानों पर काम करने वालों का कहना है कि वे एकएक रात में 600 चूहों को पकड़ते हैं और चूहों के काटने के कारण लोगों को अस्पताल जा कर इंजैक्शन लगवाने पड़ रहे हैं. इधर जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गरमी के असर से मुंबई में सांप निकलने लगे हैं. धरती के भीतर तापमान बढ़ रहा है जिस के चलते गरमी के कारण जहरीले सांप और बिच्छू बिल से बाहर निकल रहे हैं. यहां आएदिन 5-6 जहरीले सांप पकड़े जा रहे हैं. इस की मुख्य वजह तापमान का लगातार 30-32 डिग्री रहना है. इतने ज्यादा तापमान में सांप बिल और जमीन के अंदर से बाहर निकलने लगते हैं. ठंड के दिनों में सांप अपनी ऊर्जा बचाने के लिए जमीन के भीतर ही रहते हैं. इस समय जमीन का तापमान ज्यादा होने के कारण वे बाहर निकल कर घूमनेफिरने और अपना भोजन तलाशने लगे हैं.

कुछ समय पूर्व पर्यावरण विज्ञान के पितामह जेम्स लवलौक ने चेतावनी दी थी कि यदि दुनिया के निवासियों ने एकजुट हो कर पर्यावरण को बचाने का प्रभावशाली प्रयत्न नहीं किया तो जलवायु में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप 21वीं सदी के अंत तक 6 अरब व्यक्ति मारे जाएंगे. संसार के एक महान पर्यावरण विशेषज्ञ की इस भविष्यवाणी को मानवजाति को हलके में नहीं लेना चाहिए. द्य जलवायु शिखर सम्मेलन : ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी करने को तैयार हुई दुनिया अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 22 अप्रैल को जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन कर जलवायु को एक बार फिर से वैश्विक फलक पर महत्त्वपूर्ण मुद्दे के रूप में स्थापित किया है. साथ ही, सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए भी बाध्य किया है. अमेरिका ने सम्मेलन के समापन के अवसर पर पेरिस सम?ाता 2015 के आधार पर अपने नए राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों को भी घोषित किया. अमेरिका ने अपने नए और दोबारा से तय किए गए एनडीसी लक्ष्यों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बड़ी कमी का ऐलान किया है.

नए एनडीसी लक्ष्य के मुताबिक, अमेरिका ने कहा है कि वह वर्ष 2005 के जीएचजी उत्सर्जन स्तर की तुलना में 2030 तक 50 से 52 प्रतिशत की कमी करेगा. इस के अलावा अमेरिका ने साल 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को ‘नेट जीरो उत्सर्जन’ तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता भी जाहिर की है. इस सम्मेलन में जापान ने साल 2030 तक जीएचजी के उत्सर्जन के स्तर में 46 प्रतिशत तक की कमी लाने की प्रतिबद्धता जाहिर की. कनाडा ने उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कमी लाने तो वहीं यूरोपीय संघ (ईयू) और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ने उत्सर्जन को कम करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य की घोषणा की है. जोकि क्रमश: साल 2030 और 2035 तक 1990 के उत्सर्जन स्तर से 55 और 78 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. भारत ने अपने नए एनडीसी लक्ष्यों की घोषणा नहीं की है, क्योंकि भारत का वर्तमान एनडीसी पहले से ही क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (कैट) के मानक के अनुरूप 2 डिग्री सैल्सियस निर्धारित है. लेकिन भारत ने स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश जुटाने के लिए एक नई भारत-यूएस जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा सा?ोदारी 2030 घोषित की है. अमेरिकी राष्ट्रपति, जो बाइडेन का पेरिस सम?ाते को एक बार फिर से स्वीकार करना, अपने व्यक्तव्यों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को केंद्र में रखना और अमेरिकी नौकरियों की योजना के माध्यम से घरेलू संरचनात्मक नीतियों को जलवायु अनुकूल बनाने पर जोर देने के साथ ही अन्य बड़े देशों से संवाद और कूटनीति कायम करना, जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाए जा रहे सराहनीय कदम हैं.

अमेरिका में ऐसा कुछ बेहतर काम डोनाल्ड ट्रंप के विज्ञानविरोधी और जीनोफोबिक गतिविधियों के दुखद 4 वर्षों के बाद हो रहा है. जो बाइडेन की ओर से जलवायु परिवर्तन की दिशा में किए जा रहे प्रयास, पिछले किसी भी राष्ट्रपति के प्रयासों की तुलना में अधिक बड़े और प्रभावशाली हैं. सुपर्णों बनर्जी कहते हैं, ‘‘सभी वैश्विक सम?ातों और वार्त्ताओं का मतलब अच्छा है लेकिन क्या वे वास्तव में उस रिजल्ट को हासिल कर पा रहे हैं जो उन्होंने करने के लिए निर्धारित किया था? पहले के सम?ातों आदि का हश्र हमारे सामने है, जैसे क्योटो प्रोटोकौल और कोपेनहेगन सम?ाता. ‘‘ऐसे समय में जब जलवायु संकट तेज हो रहा है, तब सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को गैस, गरमी, ऊर्जा का उत्सर्जन कम करने की तरफ तेजी से प्रयास करने होंगे, वरना कमजोर प्राणी, मनुष्य, पौधे और नन्हे जीव हमारी पृथ्वी से खत्म हो जाएंगे, जिस का परिणाम पूरी मानवजाति के लिए भयावह होगा.’’

कंगना रनौत ने की ‘शेरशाह’ की तारीफ , सिद्धार्थ और पूरी टीम को दी बधाई

बॉलीवुड  एक्ट्रेस कंगना रनौत हमेशा अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं. कंगना रनौत और करण जौहर के बीच में हमेशा विवाद बना रहता है. दोनों एक -दूसरे को हमेशा तंज कसते रहते हैं. जिस वजह से वह दोनों हमेशा चर्चा में बने रहते हैं.

एकबार फिर कंगना रनौत करण जौहर को लेकर चर्चा में आ गई हैं, लेकिन इस बार पॉजिटीव तरीके से आईं हैं. कंगना ने अपने लेटेस्ट पोस्ट में करण जौहर की प्रोडक्शन में बनी फिल्म शेरशाह की तारीफ की है. जिसके बाद से यह पोस्ट काफी ज्यादा चर्चा में आ गया है.

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धर्मा प्रोडक्शन के तहत बनी फिल्म शेरशाह से कंगना काफी ज्यादा इंप्रेस हैं. शेरशाह देखने के बाद कंगना ने कैप्टन बात्रा को श्रद्धांजलि दी है. वहीं उन्होंने अपनी दूसरी पोस्ट में शेरशाह की पूरी टीम की खूब तारीफ की हैं.

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कंगना ने विक्रम बात्रा को याद करते हुए लिखा है कि विक्रम हिमाचल के पालमपुर का लड़का था, जो बहुत लोकप्रिय और पसंदीदा सैनिक था, जब उसके शहीद होने की खबर मिली तो उस वक्त हिमाचल के गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई, तब मैं बच्ची थी, लेकिन इस खबर के बाद से मैं भी कई दिनों तक दुखी थीं.

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आगे कंगना ने लिखा कि सिद्धार्थ मल्होत्रा और पूरी टीम को बधाई इस शानदार प्रदर्शन के लिेए. फिल्म शेरशाह को लोगों ने खूब प्यार दिया है, इसके गाने और कहानी सभी को खूब पसंद आ रहे हैं. कियारा अडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा की जोड़ी को खूब पसंद किया गया है, इस फिल्म में.

नरेंद्र मोदी: विपक्ष के सम्मान में जुड़े हाथ

कहते हैं ना, ऊंट चाहे जितना ऊंचा हो, अपने को ऊंचा ऊंचा समझे, एक दिन जब पहाड़ के नीचे आता है तो उसे अपनी असलियत का पता चल जाता है. आज की राजनीति के प्रधान पुरुष नरेंद्र दामोदरदास मोदी को भी अंततः एहसास हो गया की विपक्ष का साथ लेकर ही देश और दुनिया में एक सकारात्मक संदेश दिया जा सकता है.

यह सच, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के मसले पर सारी दुनिया और देश ने देख लिया.
सन् 2014 में जब देश की जनता ने नरेंद्र दामोदरदास मोदी को भारी बहुमत देकर दिल्ली भेजा, तो उनके तेवर देखने लायक थे. विपक्ष को तो मानो वह पैरों से कुचल देने की मंशा के साथ उन्होंने वह सब किया जो लोकतंत्र में सत्ता पर काबिज एक सहृदय राजनेता और पार्टी को नहीं करना चाहिए.

लोग भूले नहीं हैं, उन्होंने कांग्रेस का नामोनिशान मिटा देने का ऐलान किया था. उन्होंने विपक्ष को कौड़ी की भी इज्जत नहीं दी. जबकि देश के ऐसे अनेक मसले उनके इस 7 साल के कार्यकाल में आते रहे. जब विपक्ष के साथ बैठकर उन समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए था.
मगर नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को हमेशा दरकिनार कर दिया हाशिए पर डाल दिया. परिणाम स्वरूप विपक्ष ने भी सत्ता की सही गलत बात पर आंख तरेरी, परिणाम स्वरूप देश ने देखा कि किस तरह एक तानाशाही पूर्ण लोक तंत्र की और भारत देश धीरे धीरे बढ़ रहा है.

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अभी कुछ समय पहले ही कश्मीर के मसले पर विपक्ष को बातचीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आमंत्रित किया था. मगर यह भी सच है कि इसके पीछे प्रधानमंत्री मोदी की यह मंशा थी कि विपक्ष को अपने पाले में दिखाकर अपने मन की साध पूरी कर लेंगे. मगर कांग्रेस और दिगर पार्टियों ने सारे पत्ते खोल कर मोदी को कटघरे में खड़ा कर दिया.

सोचने और समझने की बात यह है कि जिस विपक्ष को नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार लगातार नकारते रही. आज उसी विपक्ष ने उनके साथ बैठक में शामिल होकर के उनकी इज्जत को एक तरफ से बढ़ा दिया है.

राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि अगर विपक्ष एक होकर के अफगानिस्तान के मसले पर या कश्मीर के मसले पर प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक को यह कहकर नकार देता कि आपको अब हमारी सुध आई है! तो नरेंद्र मोदी पानी पानी हो जाते. जिस तरह देश में विगत 7 महीने से किसानों की समस्या मुंह बांए खड़ी है, किसानों के तीन अध्यादेश के मसले पर मोदी सरकार अड़ी हुई है वह भी देश ने देखा है कि विपक्ष के लाख कहने के बावजूद सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है.

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भारत मान्यता कैसे दे सकता है
अफगानिस्तान के मसले पर भारत के सामने आज दुविधापूर्ण स्थिति है… पाकिस्तान को हर मंच पर आतंकवादी कहने वाला भारत,तालिबान द्वारा आतंक के बल पर स्थापित देश को मान्यता कैसे दे सकता है.

विरोध करने का दुस्साहस तो भारत को दिखाना ही होगा. क्योंकि देर सबेर भारत और तालाबानियों से आमना सामना तो होना तय माना जा रहा है.चीन और पाकिस्तान का तालाबानियों की मदद के पीछे कारण को समझने की कोई बड़ी बात नहीं है. विदेश मंत्रालय द्वारा, विपक्ष को अफगानिस्तान के मामले बैठक बुलाई जिसमें 31विपक्षी पार्टियों ने भाग लिया.

दरअसल, इसके पहले चीन के सीमा विवाद के बारे में विपक्ष द्वारा जानकारी मांगने पर उसे देशद्रोही कहा गया था. रूस से प्रधानमंत्री की टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का बयान आया कि जिससे जरूरत होगी उससे बात की जायेगी. स्प्ष्ट है कि भारत ,तालाबानियों के विरूद्ध नरम रुख अपनाना चाहता है.सरकार पर नरम रुख अपनाने के लिए कोई दोषारोपण विपक्ष न करे,इसलिए विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई .

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देश के विकास और शांति के लिए सभी राजनीतिक दलों से विचारविमर्श, प्रजातंत्र की स्वस्थ परम्परा है.लेकिन इसका पालन नरेन्द्र मोदी सरकार ने नहीं की. यहां तक, अपने ही पार्टी के लोगों को विश्वास में नहीं लिया. केवल दो या तीन शख्सियतें ही केंद्रीय सत्ता की धुरी हैं. यह भी सच है कि विदेश संबंधित मामलों में सरकार को ही स्वतंत्र निर्णय लेना पड़ता है, क्योंकि बहुत सारी ऐसी बातें होती है जिसे सरकार साझा नहीं कर सकती.इसलिए इस सर्वदलीय बैठक में सरकार की दुविधा पूर्ण स्थिति से उबरने की रणनीति शामिल हैं.

अफगान मामले के जानकार पत्रकार व अधिवक्ता राजेंद्र पालीवाल के मुताबिक बकरे को मारना बलि और हिरण को मारना अपराध, यही स्थिति पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर है. सरकार को जो फैसला लेना है, देशहित में लिया जाना चाहिये. लाख टके का सवाल है भारत, तालाबानियों के प्रति आज नरम रुख दिखाता है तो भविष्य में क्या परिणाम होगा. सांप को अगर पूंछ से पकड़ा जाता है तो वह काटता है.अगर सपेरा होशियार न हो तो सांप पकड़ने के चक्कर में उसकी मौत सुनिश्चित है.अगर सांप को पकड़ना जरूरी ही है तो मुंह पर वार किया जाता है.

मेरा पिछले महीने ब्रेकअप हुआ है जिससे मैं बहुत परेशान हूं मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

सवाल

मेरा पिछले महीने ब्रेकअप हुआ है. मुझे लगने लगा है कि मैं डिपै्रशन में जा रही हूं. जिस से मेरा सब से ज्यादा बात करने का मन करता है उसी से बात करने में मैं सब से ज्यादा असमर्थ हूं. मैं न रात में सो पा रही हूं न मुझे दिन में किसी तरह का चैन आता है. खानेपीने और बाकी दिनचर्या पर भी असर पड़ा है. कुछ भी करती हूं तो बस उसी का खयाल बारबार आता है, उस के साथ बिताए पल ही याद आते हैं. मेरी अपने दोस्तों से भी लड़ाई हो गई है क्योंकि उन्हें लगता है मैं उन से बात नहीं करती या बदल चुकी हूं. कालेज के असाइनमैंट भी अब तक नहीं किए. कुछ करने का मन नहीं करता, बस बेसुध पड़े रहने को मन होता है. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा है.

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जवाब

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दिल टूटने पर अकसर यही होता है, मन किसी और चीज में नहीं लगता और बेचैनी बढ़ती जाती है. आप को इस स्थिति से खुद को निकालना ही होगा. खुद को समझाएं कि जो जा चुका है उस के लौटने की उम्मीद छोड़ दें. आप के दोस्त आप के साथ नहीं न सही लेकिन कोई तो होगा जो आप की बात सुनता होगा, उस से बातें कर अपना मन हलका करने की कोशिश करें. बात करने के लिए कोई न हो तो अपने दिल का हाल कागज पर लिखें, इस से जो बातें आप के अंदर भरी पड़ी हैं वे निकल जाएंगी. कुछ करने का मन न करे, तब भी खुद को फोर्स करें उस काम को करने के लिए, जैसे आप का असाइनमैंट या खानापीना.

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अपने दुख को इतना न बढ़ने दें कि वह अवसाद बन जाए. आप को शायद अभी एहसास न हो रहा हो लेकिन आप अपनी जिंदगी के अच्छे पलों और अच्छे दोस्तों को किसी और के गम में नजरअंदाज कर रही हैं. दुखी होना जायज है लेकिन इतना नहीं कि आप खुद को बरबाद ही कर लें. प्यार में हारजीत नहीं होती, रिलेशनशिप में आना और ब्रेकअप होना जिंदगी का एक हिस्सा मात्र है, इस से निकलने की तरफ ध्यान दें, यादों में डूबी न रहें.

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