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आखिरी खत- भाग 4 : राहुल तनु को इशारे में क्या कहना चाह रहा था

मन में फिर तर्कवितर्क का सिलसिला शुरू हो गया. उन्होंने तनमन से एकदूसरे को चाहा. 12 बरसों के आत्मीय क्षणों की याद में अब भी तो मन सुगंध में डूब कर बौराने लगता है. क्या वह राहुल के बिना जीने की कल्पना भी कर सकती है? क्या हुआ था? क्यों और कैसे हुआ? उस ने नहीं पूछा, पर राहुल ने भी तो प्रतिकार नहीं किया और न ही कुछ कहा, बस, चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया.

तनु कुछ भी तय नहीं कर पा रही थी. वह नहा कर बाहर निकली तो टहल कर लौटे बाबूजी, उसे एक लिफाफा दे कर बोले, ‘‘10 नंबर वाले अखिलेश के पिताजी ने तुम्हारे नाम से यह चिट्ठी दी है. चिट्ठी लिखने वाले ने घर का नंबर गलत लिखा है. वे लोग एक सप्ताह से अपने गांव गए हुए थे, सो यह चिट्ठी लैटर बौक्स में ही पड़ी रह गई थी.’’

तनु ने अपरिचित हस्ताक्षर वाले अपने नाम का वह पत्र खोला तो ‘शकुन’ नाम पढ़ कर उस का दिल एक बार फिर तेजी से धड़क गया. पत्र में लिखा था : ‘तनुजी, ‘सादर नमस्कार,

‘मैं ने जब पहली बार आप को देखा, तभी मु झे यह महसूस हो गया कि आप मेरे बहुत करीब हैं और मैं ने आप से एक अनाम रिश्ता जोड़ लिया था. इस जन्म के दुखदर्द की गठरी आप को सौंप कर, मेरे इस दुनिया से चले जाने का वक्त बहुत करीब आ गया है, क्योंकि पीलिया कैंसर में बदल चुका है.

‘मेरा बचपन कसक और कटुता की गुनगुनाहट था. यश और दौलत के मद में आतंकित पिता, जिन्होंने लड़के की आस में पहली पत्नी की मृत्यु के बाद मेरी मां से ब्याह किया था, मेरे जन्म के बाद  कलह और अहं के टकराव के बाद मातापिता के अलगाव में सिर्फ भावनात्मक क्षति ही नहीं हुई, बल्कि मां की मृत्यु आत्महत्या से हो जाने के कारण 12 बरस की उम्र में अनाथ का दर्जा दे कर पिता ने मु झे ‘बालिकागृह’ में छोड़ दिया था. तब मैं ने अपरिचित रास्तों के सफर की कड़वाहटों के घूंट पी कर जीने का प्रयास किया. 18 बरस की उम्र में मैं ने 12वीं की परीक्षा दे कर टाइप व शौर्टहैंड सीखी और नौकरी की तलाश के दौरान मु झे प्रकाश मिले.

‘प्रकाश से ब्याह हुआ तो मैं ने सम झा कि दुखों का अंत हो गया, परंतु 3 वर्षों के सहजीवन का एकएक पल ऐसा दहशत भरा था कि दुर्घटना में प्रकाश की क्षतविक्षत लाश को देख कर ऐसा लगा जैसे मेरी गरदन पर कसती गांठ खुल गई हो.

‘आप ने मेरी मदद की, राहुलजी ने नौकरी दिलवा कर एक अच्छे मित्र की तरह संरक्षित भी किया.‘मेरे और राहुलजी के बीच कोई अनैतिक संबंध न थे और न हैं. उद्धारक तो पूज्य होता है, पर लोगों की निगाहें ‘प्रेम’ की पवित्र ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाती हैं. प्रकाश की मौत से पहले ही मेरी कोख में जीव अंकुरित हो चुका था, लेकिन लोगों ने राहुलजी को मेरे साथ जोड़ कर अफवाहें उड़ानी शुरू कीं तो मैं ने अपना तबादला अहमदाबाद करवा लिया. इसे भी कई लोगों ने सम झा कि राहुलजी से बेरोकटोक मिलते रहने की यह एक चाल है, पर ऐसी कोई भावना नहीं थी.

‘मु झे याद है वह शाम जब राहुलजी मु झे मनोचिकित्सक के पास ले कर गए थे. घर पहुंचते ही दरवाजे के पास ही मु झे चक्कर आ गया था. उन्होंने सहारा दे कर मु झे कमरे में पहुंचाया. तभी बिजली चली गई. भय से थरथरा कर मैं उन से लिपट गई थी. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा, लिटाया. मोमबत्ती की मद्धम रोशनी में मैं ने देखा कि वे दरवाजे के सामने कुरसी पर योगी की तरह ध्यानमग्न बैठे हुए हैं. राहुलजी की जगह यदि कोई और होता, जिस की नीयत बुरी होती, तो कुछ भी हो सकता था. जो भी हो, उस रात के क्षणिक आत्मीय स्पर्श से मेरे अंदर की शापग्रस्त औरत भयमुक्त हो गई.

‘यही नहीं, जब अहमदाबाद में भी उन्होंने मु झे एक बुजुर्ग निसंतान दंपती का आश्रय दिलवाया तो मैं खुद को पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने लगी थी. अंकिता के जन्म के बाद मु झे जिंदगी का नया आयाम मिल गया था, पर जब मु झे कैंसर का पता चला तो मैं अपनी बेटी के भविष्य के बारे में चिंतित हो गई. प्रकाश के मातापिता से संपर्क किया तो जवाब मिला कि लड़का होता तो वंशवारिस को अपना लेते, सो उन्होंने अंकिता की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया.

‘अगर मैं मौत से हार गई तो आप मेरी बच्ची को सहारा देंगी न, आप से आश्वासन पा कर तृप्त होने का वक्त तो मेरे पास नहीं है, पर यह विश्वास ले कर जाऊंगी कि आप मेरी प्रार्थना को ठुकराएंगी नहीं.

‘आप की शकुन.’ शकुन की चिट्ठी को हाथ में ले कर तनु न जाने कितनी देर तक निस्तब्ध बैठी रही. एकाएक प्रभा दीदी ने कंधे पर हाथ रख कर उसे सचेत किया तो मनु को समय का आभास हुआ कि आधा घंटा हो गया था. दीदी ने तनु के हाथ से वह चिट्ठी ले कर पढ़ी, फिर आत्मीय स्वर में बोलीं, ‘‘राहुल भी शायद जाग गया होगा, चाय ले कर जाओ तो, वहीं तुम भी पी लेना.’’

जब मनु ट्रे में चाय के प्याले लिए ऊपर पहुंची तब स्टडीरूम में, आरामकुरसी पर ही राहुल सोया हुआ था. पत्नीदेह की चिरपरिचित गंध राहुल की सांसों में भरने लगी तो वह जाग गया. तनु के ताजगीभरे चेहरे को अपलक निहारते राहुल से जब तनु ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘इस तरह क्या देख रहे हो?’’ तो वह कुछ आश्वस्त हो गया.

‘‘देख रहा हूं, मेरी यह तनु कल कहां खो गई थी? ऐसा उग्र रूप मैं ने पहली बार देखा,’’ राहुल बोला. प्यालों में चाय डालती हुई तनु धीमी आवाज में बोली, ‘‘मु झे उस तरह उत्तेजित हो कर नहीं बोलना चाहिए था. एक सीधी, सरल बात को मैं ने गलत सम झ लिया था. जब तुम बिना प्रतिकार किए कमरे से बाहर गए तो तुम्हारे और शकुन के संबंध का शक मेरे मन में विराट रूप धर गया.’’

तनु ने बताया कि टैलीग्राम के उस शब्द ‘आप की अमानत’ को उसी शाम क्लब में सुमेधा की बातों ने उस के मन में कैसे गहराई तक उतार दिया था. राहुल के बारे में उस ने क्याक्या सोच डाला.

तब राहुल को भी सम झते देर नहीं लगी कि ‘अमानत’ की बात को स्वीकार करते ही कैसे तीखे स्वर में तनु ने कहा, ‘जब सबकुछ हो गया, वक्त हाथ से निकल गया, तब तुम्हें गलती का आभास हो रहा है? ऐसे राहुल से मेरी कोई पहचान नहीं है. मैं कुछ नहीं कर सकती.’

राहुल उसे निहारता सोचता रहा कि प्यार हो या घृणा, तनु की प्रतिक्रियाएं कितनी विरल होती हैं. भावनाएं क्षणिक नहीं होतीं, पर इतनी तीव्र और गहरी कि कोई थाम भी नहीं सकता है.

धीरेधीरे राहुल ने वे सारी बातें बता दीं जिन की तरफ उस का ध्यान भी नहीं गया था कि वे बातें कभी तनु के मन में टूटी, बिखरी सी शकुन के बारे में शक की दरारें डाल सकती हैं. फिर धीरेधीरे अंधेरे से बाहर निकल कर जीने का प्रयास करती हुई शकुन, जिस ने मनोचिकित्सक के सामने प्रकाश के बारे में बताया, को सुन कर तनु के रोंगटे खड़े हो गए.

राहुल ने बताया, ‘‘उस दिन डाक्टर की क्लीनिक से लौटे तो शकुन को घर के दरवाजे पर ही चक्कर आ गया. उसे सहारा दे कर जैसे ही मैं ने कमरे तक पहुंचाया, अचानक बिजली चली गई. शकुन डर कर मु झ से लिपट गई.‘‘मैं ने कभी अपने पर दुर्बलताओं को हावी नहीं होने दिया, पर जब मेरे और शकुन के बारे में अफवाहें उड़ने लगीं तो मन में अपराधबोध हुआ कि अकेली, कमजोर एक लड़की मेरी वजह से बदनाम हो रही है.

‘‘शकुन की अहमदाबाद तबादले की अरजी मंजूर हुई, तब वह मु झ से मिलने आई. तभी मैं ने अपने एक परिचित दंपती का उसे पता दिया था. मैं ने उस से पूछा कि एकाएक तबादले का खयाल क्यों आया? कहीं संबंधों की अफवाह से डर कर तो ऐसा नहीं किया? तो जानती हो उस ने क्या कहा?’’इतना कह कर राहुल एक पल को रुका तो तनु ने उसे सचेत करने के लिहाज से कहा, ‘‘क्या कहा था शकुन ने?’’

 

किच्छा सुदीप के जन्मदिन पर 14 भाषाओं में बनी फिल्म ‘‘विक्रांतरोणा’’ का वीडियो हुआ वायरल

कोरोना महामारी की शुरूआत होने से चंद दिनों पहले जैकलीन फर्नाडिश और किच्छा सुदीप के अभिनय वाली मेगा बजट फिल्म ‘‘विक्रांतरोणा’की शूटिंग की गई थी.

उसका कुछ हिस्सा हाल में पूरा किया गया. अब फिल्म के प्रदर्शन की तैयारियंा की जा रही हैं.फिल्म के निर्माताओं ने फिल्म के अभिनेता किच्चा सुदीप के जन्मदिन फिल्म की पहली झलक के रूप में एक वीडियो जारी किया है.जिसे देखकर दर्शकों के रोंगटे जरूर खड़े हो जाएंगें. यह झलक एक ऐसी दुनिया के वर्णन करते हैं, जहां विक्रांत रोणा के आने से उनके दुश्मनों के दिल दहल जाते हैं.

इस विजुअल में नैरेटर सुदीप के स्वैग को अंधेरे का भगवान कहता है.‘दडे ड मैन्स एंथम‘की पहली झलक निश्चित रूप से फिल्म के लिए फैंस की उम्मीदों को और बढाती है.

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फिल्म ‘विक्रांत रोणा’’के निर्देशक अनूप भंडारी कहते हैं- ‘‘हम खुश हैं कि हमें सुदीप सर का जन्मदिन ‘डेडमैन्सएंथम‘के साथ मनाने का मौका मिला,

जिसमें विक्रांत रोणा की पहली झलक दिखाई गई है. ‘विक्रांत रोणा एक रहस्यमयी किरदार है और इस पहली झलक में उन्हें देखा जा सकता है.फिल्म बनाते समय मुझे इसके विशाल पैमाने के बारे में पता था, लेकिन सुदीप सर के टाइटैनिक हीरो के अवतार ने इसे और भी बड़ा बना दिया है.’’

जबकि निर्माता जैक मंजूनाथ कहते हैं-“ यह अविश्वसनीय है और हम इस तरह की सकारात्मक शुरुआत से बेहद उत्सुक हैं.उनकी एनर्जी, पैशन और समय की कसौटी पर खरा उतरने के लिए सिनेमा बनाने की उनकी इच्छा शक्ति ही विक्रांत रोणा को खास बनाती है.”

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14 भाषाओं में बनी और 55 देशों में 3-डी में प्रदर्षित की जाने वाली फिल्म ‘‘विक्रांतरोणा’’एक्शन प्रधान रोमांचक फिल्म है.अनूप भंडारी निर्देशित इस फिल्म का निर्माण जैक मंजुनाथ और शालिनी मंजूनाथ,सहनिर्माण ‘इन्वेनियोफिल्म्स’,संगीतकार बीअजनीश लोकनाथ हैं. जबकि फिल्म में किच्छा सुदीप, निरूप भंडारी, नीता अशोक और जैकलीन फर्नांडीस की अहम भूमिकाएं हैं.

‘कॉमेडी सर्कस’ फेम Sidharth Sagar को लगी ड्रग्स की बुरी लत, मां ने इलाज के लिए भेजा रीहैब सेंटर

टीवी शो कॉमेडी सर्कस और गैंग्स ऑफ फिल्मीस्तान जैसे शो में नजर आ चुके सिद्धार्थ सागर इन दिनों बहुत ज्यादा बुरे दौर से गुजर रहे हैं.  पहले भी वह किसी न किसी विवादों की वजह से चर्चा में बने रहते थें और अब भी वह एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं.

ताजा मिल रही जानकारी की मानें तो सिद्धार्थ सागर एक बार फिर ड्रग्स की चपेट में आ गए हैं. सिद्धार्थ सागर ने एक बार फिर से ड्रग्स लेना शुरू कर दिया है. मुंबई पुलिस ने सिद्धार्थ सागर को हाल ही में मुंबई पुलिस ने बुरी हालत में पकड़ा है.

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सिद्धार्थ सागर की बुरी हालत को देखकर पुलिस ने उनकी मां को फोन किया, जिसके बाद से सारे घटना के बारे में जानकारी दी है.

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अब सिद्धार्थ की हालत को देखते हुए उनकी मां ने उन्हें रीहैब सेंटर भेज दिया है, सिद्धार्थ वहीं इन दिनों अपना इलाज करवा रहे हैं. वहीं सिद्धार्थ की मां ने खुलासा किया है कि उनका बेटा बाईपोलर डिसऑर्डर से गुजर रहा है.

जब बुरी हालत में सिद्धार्थ पुलिस के पास मिले तो उस वक्त वह सिर्फ अपनी मां का नाम और नंबर ही बता पाएं थें, जिससे समझ में आ गया था कि सिद्धार्थ की हालत सही नहीं हैं. इसके साथ ही सिद्धार्थ ने इस बात का भी खुलासा किया था कि उनकी मां उन्हें घर में कैद करके रखती है.

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ड्रग्स की बुरी आदत की वजह से सिद्धार्थ ने अपनी जिंदगी खराब कर ली है, जिस वजह से उनकी मंगेतर सुभी जोशी ने भी सिद्धार्थ से अपना रिश्ता तोड़ लिया था.

Sidharth Shukla ने लॉकडाउन में की थी Pratyusha Banarjee के पेरेंट्स की मदद

कलर्स टीवी का सुपरहिट शो बालिका वधू के लीड एक्टर शिव और आंनदी अब इस दुनिया में नहीं रहें. बालिका वधू में बड़ी आनंदी के किरदार में नजर आईं प्रत्यूषा बनर्जी ने साल 2016 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

कथित तौर पर आनंदी ने आत्महत्या कर लिया था, जबकी इस सीरियल से रातों रात स्टार बनें सिद्धार्थ शुक्ला भी इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं. सिद्धार्थ शुक्ला के जाने का गम बर्दाश्त कर पाना बहुत ज्यादा मुश्किल लग रहा है.

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सिद्धार्थ शुक्ला की मौत से मनोरंजन जगत को बहुत ज्यादा झटका लगा है, इसी बीच दिवंगत एक्ट्रेस प्रत्यूषा बेनर्जी के पापा ने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया है कि लॉकडाउन के समय में सिद्धार्थ शुक्ला ने उनके अकाउंट में 2 लाख रूपये डालकर उनकी मदद की थी.

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आगे उन्होंने कहा कि ये सब कुछ कैसे हुआ ये मैं खुद भी समझ नहीं पा रहा हूं. सिद्धार्थ के ऐसे चले जाने का मुझे काफी ज्यादा दुख है. सीरियल बालिका वधू के समय सिद्धार्थ औऱ प्रत्यूषा बहुत अच्छे दोस्त थे, तब वह मेरे घर भी आते जाते रहता था, लेकिन कुछ वक्त बाद ही उन दोनों के रिलेशन को लेकर अफवाह उड़ने लगी थी.

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जिसकेे बाद से सिद्धार्थ मेरे घर आना बंद कर दिया था, आगे उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के समय वह मुझसे वॉट्सअप के जरिए बात करता था, हर वक्त हमारी मदद को तैयार रहता था. इस बात से यह साफ पता चल रहा है कि सिद्धार्थ के चले जाने से प्रत्यूषा के माता पिता को भी सदमा लगा है.

अली मर्चेंट भी चले ओटीटी की तरफ

मुंबई में जन्में और सत्रह वर्ष की उम्र में ‘‘मिस्टार बांबे टाइटल’जीतने के बाद सीरियल ‘‘श्श्श्श्श्श्कोई है’’से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले अली मर्चेंट ने मनोरंजन के क्षेत्र में अपना एक खास मुकाम बना रखा है. ‘अंबरधारा’, ‘लूटेरीदुल्हन’,‘फिअरफाइल्स’, ‘बिगबाॅस 10’,‘साडाहक’और ‘‘विक्रम बेताल की रहस्य गाथा’सहित 35 सीरियलों में अभिनय कर चुके अली मर्चेंट बहु मुखी प्रतिभा के धनी हैं. अब अली मर्चेंट एक चैट शो के साथ ‘‘ओटीटी’ ’प्लेअफार्म पर कदम रखने की तैयारी में हैं.अली मर्चेंट के चैट शो के पहले एपीसोड में अभिनेता आर माधवन होंगें, जिन्होंने सात अलग-अलग भाषाओं में फिल्में की हैं.

पिछले कुछ वर्षों से पर्दे से दूर रहे अभिनेता अली मर्चेंट अब अपने ओटीटी पर कदम रखने को लेकर काफी उत्साहित हैं. इस पर पर टिप्पणी करते हुए अली मर्चेंट कहते हैं-‘‘मैं डीजे और संगीत निर्माण के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहा हॅूं. डीजे ने ही मेेरे अंदर अभिनय की भूख को उकसाने का काम किया और मुझे अपने पहले प्यार यानी कि अभिनय का पता लगाने के लिए कुछ समय दिया. रोमांचक भूमिका ओं की कमी के चलते मैं कुछ समय तक टीवी से दूर रहा. अब जिस तरह से ओटीटी प्लेटफार्म और ओटीटी का कंटेंट देश में आकार ले रहा है, उसने मुझे आकर्षित किया.

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जब मुझे मौका मिला ,तो मैंने इससे जुड़ना सहर्ष स्वीकार कर लिया. यह बिना किसी प्रतिबंध के रचनात्मक काम करने का एक बड़ा अवसर है . मैं हमे शाटे ली विजन उद्योग से परे मनोरंजन की जगह तलाशता रहा. भीड़ को नियंत्रित करना और डीजे के रूप में प्यार फैलाना बिल्कुल अलग अनुभव है.

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मैं भाग्यशाली रहा हूं कि यह अब तक एक अद्भुत यात्रा रही है.मैं ओटीटी पर काम करने जा रहा हॅूं, मगर मैं टेलीविजन और फिल्मों को अलविदा नही कह रहा हॅॅू. जब भी मुझे अच्छे किरदार निभाने के अवसर मिलेंगे, मैं फिल्म या टीवी पर काम करना चाहॅूंगा.मैं यथार्थवादी और चुनौती पूर्ण किरदार निभाना चाहता हॅू.मैं इन किरदारों को अपने अभिनय से संवारना चाहॅूंगा ,जो मेरे व्यक्तित्व के अनुरूप हों. जब भी मुझे टेलीविजन पर ऐसी भूमिकाएं मिलीं, मैंने उन्हें लपक लिया. अब ओटीटी के बड़े पैमाने पर उदय के साथ यह एक गेम-चेंजर बन गया है.भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय सामग्री के बीच की खाई तेजी से भर रही है.हमारे दर्शक हमेशा से इस तरह की यथार्थवादी सामग्री देखना चाहते थे और यह एक ताजा बदलाव है. ’’

 

एग्रो फोरैस्ट्री: खेती की जमीन से दोगुना मुनाफा

महंगी होती इमारती व फर्नीचर की लकड़ी, कागज के बढ़ते दाम, जंगलों का घटता क्षेत्रफल, खाने के लिए सब्जियों व खाद्यान्न की मांग में बढ़ोतरी व खेती योग्य जमीनों का घटता रकबा, ये सभी समस्याएं एकसाथ ही उभरी हैं. एक तरफ वन क्षेत्रों के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण को होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं, वहीं कागज निर्माण उद्योग व फर्नीचर उद्योग में लकड़ी की मांग में तेजी से उछाल आया है, इसलिए घटते जमीन के रकबे को देखते हुए अनाज, फल, सब्जियों व पेड़पौधों की खेती को एकसाथ करने पर जोर दिया जा रहा है. इसे एग्रो फोरैस्ट्री के नाम से जाना जाता है. एग्रो फोरैस्ट्री के तहत किसान अपने खेतों में इमारती लकड़ी वाले पेड़ व अनाज, फल व सब्जियों की खेती साथसाथ कर सकते हैं.

किसान एग्रो फोरैस्ट्री अपना कर एक ही खेत से न्यूनतम लागत में ज्यादा लाभ ले सकते हैं. कैसे शुरू करें एग्रो फोरैस्ट्री? किसानों द्वारा अकसर सहफसली खेती के तौर पर अनाजों व फलसब्जियों की खेती की जाती रही है, लेकिन इमारती लकडि़यों वाले पेड़ों के साथ अनाज कम पैदा होता है, पर हाल के सालों में इमारती लकडि़यों की उन्नत प्रजातियों का विकास हुआ है, जो कम छायादार होने के साथ ही कम समय में तैयार हो जाती है. किसानों को चाहिए कि वे एग्रो फोरैस्ट्री के तहत अनाज व पेड़ों की खेती एकसाथ करने से पहले यह तय कर लें कि जो पेड़ एग्रो फोरैस्ट्री के लिए चुन रहे?हैं, वे तेजी से बढ़ने वाले हों और उन में टहनियां व पत्ते भी कम हों. एग्रो फोरैस्ट्री में लिए जाने वाले पेड़ 5-10 सालों में तैयार हो जाने चाहिए. पेड़ों का चयन व रोपण एग्रो फोरैस्ट्री के लिए यूकेलिप्टस व पौपलर सब से अच्छे पेड़ होते हैं. इन के साथ अनाज व सब्जियों की खेती तो की ही जा सकती है, इस के अलावा पेड़ों के बीच में सामान्य पौधों व औषधीय पौधों की भी फसल ली जा सकती है. आजकल पेड़ों के पौध ऊतक संवर्धक विधि से तैयार किए जा रहे?हैं, जो काफी तेजी से बढ़ते हैं.

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इन पौधों को किसी खास देखरेख की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही, ली जाने वाली अनाज की फसलों को दी जाने वाली खाद, उर्वरक व सिंचाई से इन को पोषण मिलता है. जिस खेत में आप पहले से धान, गेहूं, मटर या अन्य फसलों की खेती कर रहे हैं, उस की बोआई से पहले यूकेलिप्टस या पौपलर के पौधे, जो नर्सरी में तैयार किए गए हैं, उन्हें तैयार खेत में 3×3 मीटर की दूरी पर रोपें. उस के बाद तुरंत सिंचाई कर दें. गरमियों में पौध रोपण की दशा में हर 2 दिनों पर पौधों को पानी देते रहें. बारिश के मौसम में पौधों की सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है. सर्दी के मौसम में पौधों को 15 दिनों पर पानी देना चाहिए. यूकेलिप्टस व पौपलर के पेड़ों को मेंड़ों पर रोपते समय यह ध्यान रखें कि पौध रोपण की दिशा पूरब से पश्चिम में हो, जिस से अनाज वाली फसलों को धूप मिलती रहे.

पेड़ों के साथ अनाज की फसल एग्रो फोरैस्ट्री में किसान 5 सालों तक गेहूं, धान, मटर, चना, जौ, सरसों, औषधीय पौधे, केला, टमाटर, बैगन, गन्ना, अलसी सहित तमाम फसलें ले सकते?हैं. इन फसलों को यूकेलिप्टस या पौपलर के साथ लेने पर फसलों की जंगली जानवरों से भी हिफाजत हो जाती है, क्योंकि मेंड़ों पर लगाए गए पेड़ बाड़ के रूप में काम करते हैं. ठ्ठ एग्रो फोरैस्ट्री में अनाज वाली फसलों के साथ पेड़ों की खेती करने से पहले यह तय कर लें कि जिन पेड़ों को लगाया जा रहा?है, वे तेजी से बढ़ने वाले हों और कम छायादार हों. साथ ही, पेड़ों के बीच की दूरी इतनी रखें, जिस से?ट्रैक्टर जैसे कृषि यंत्रों को खेत में आसानी से मोड़ा जा सके, ताकि जुताई में खलल न पड़े. एग्रो फोरैस्ट्री से होने वाले लाभ एग्रो फोरैस्ट्री में किसान अनाज और फलसब्जियों का उत्पादन तो कर ही सकता?है, साथ ही अतिरिक्त आमदनी भी हासिल कर सकता?है. ??किसान एग्रो फोरैस्ट्री से बिना अनाज बेचे द्दद्ध सिर्फ तैयार लकड़ी से शादीब्याह, जमीन खरीदना, मकान बनवाना जैसे बड़ेबड़े कामों को आसानी से कर सकता है.

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एग्रो फोरैस्ट्री के अन्य फायदे : एग्रो फोरैस्ट्री में किसान खेत का पूरा इस्तेमाल कर पाता है. चूंकि यूकेलिप्टस व पौपलर का कागज निर्माण उद्योग में सब से ज्यादा कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होता है. लिहाजा, उस से बढ़ती कागज की कीमतों पर लगाम लगाई जा सकती है.

इस के अलावा एग्रो फोरैस्ट्री से दूसरे लाभ भी लिए जा सकते हैं :

* खेत में तैयार पेड़ों से ईंधन प्राप्त कर के गोबर का प्रयोग खाद के रूप में किया जा सकता?है, जो मिट्टी की उत्पादन कूवत को बढ़ाने में सहायक होता है.

* एग्रो फोरैस्ट्री में किसान बंजर व कम उपजाऊ जमीन से भी ज्यादा लाभ कमा सकता है.

* बाढ़, सूखा, ज्यादा बारिश की दशा में फसल का नुकसान होने पर पेड़ों को बेच कर पैसा कमाया जा सकता है.

* पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता?है.

* यूकेलिप्टस व पौपलर की कटाई और परिवहन के लिए वन विभाग से किसी परमिट की जरूरत नहीं होती है.

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* इमारती लकड़ी की उपलब्धता आसानी से हो जाती है, जिस से प्राकृतिक वनों की कटाई पर रोक लगाई जा सकती है.

* यूकेलिप्टस व पैपलर की कटाई के बाद जड़ों से फिर से कल्ले निकल आते?हैं, जो दोबारा 5 से 8 सालों में नए पेड़ों को तैयार कर देते हैं.

* खेत में लगाए गए पेड़ों पर रहने वाले पक्षी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों, चूहों वगैरह को खत्म करने में मददगार होते हैं.

* फसलों को दी जाने वाली सिंचाई व उर्वरक से पेड़ों को भी पूरा भोजन मिलता?है, इसलिए कोई अतिरिक्त भार किसानों पर नहीं पड़ता है.

* खाद्यान्न, फलसब्जी की खेती से मिलने वाली उपज की मात्रा में कोई कमी नहीं आती है. इस से एक ही जमीन से दोगुना मुनाफा लिया जा सकता है.

हर रंग की है अलग परिभाषा, समझिए इंटीरियर का हैल्थ कनैक्शन

दफ्तर की दिनभर की थकावट के बाद हर कोई घर लौट कर राहत की सांस लेना चाहता है. मगर मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली स्मिता जब अपने घर लौटती है तो बिखरा घर, अव्यस्थित फर्नीचर, कम रोशनी और दीवारों पर पुते गहरे रंग उसे अवसाद में खींच ले जाते हैं. कुछ ऐसा ही मोहिता के साथ होता है जब उस की नजरें अपने बैडरूम की दीवार से सटे भारीभरकम फर्नीचर पर पड़ती हैं.

स्मिता और मोहिता की तरह कई महिलाएं हैं, जिन्हें अपने घर पर सुकून न मिलने पर वे शारीरिक और मानसिक तौर पर अस्वस्थ हो जाती हैं. न्यूरो विशेषज्ञों की मानें तो घर की संरचना और सजावट का मनुष्य की शारीरिक और मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ता है. यदि घर का इंटीरियर सही न हो तो तनाव, बेचैनी और अवसाद की स्थिति बनी रहती है.

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हर रंग की है अलग परिभाषा

इस कड़ी में दीवारों पर किए गए रंग बड़ी भूमिका निभाते हैं. आर्किटैक्ट नीता सिन्हा इस बाबत कहती हैं, ‘‘जिस तरह मनुष्य का चेहरा उस के व्यक्तित्व की पहचान होता है उसी तरह घर की दीवारों पर किया गया रंग घर की खूबसूरती की पहली झलक होता है.’’

रंगों की अपनी एक अलग खूबी होती है. वे व्यक्ति के मन के भावों को प्रतिबिंबित करते हैं. इस में अपनी सहमति जताते हुए इंटीरियर डिजाइनर नताशा कहती हैं, ‘‘रंगों का प्रतिबिंब व्यक्ति को तनावमुक्त भी कर सकता है और अवसाद भी दे सकता है. इसलिए इन का चुनाव सावधानी से होना चाहिए.’’

कौन सा रंग किस भाव को परिभाषित करता है, यह बताते हुए नताशा कहती हैं, ‘‘गहरे रंग जैसे लाल, नीला, गहरा, हरा गरमाहट महसूस कराते हैं. मगर सेहत के लिहाज से किसी खास कमरे जैसे बैडरूम में इन का चुनाव ठीक नहीं होता.’’

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एक अध्ययन के मुताबिक लाल रंग जहां ब्लड प्रैशर और हार्टबीट बढ़ा देता है, वहीं गहरा हरा रंग तनाव बढ़ाता है. गहरा पीला रंग भी व्यक्ति को चिड़चिड़ा बनाता है. यह रंग बच्चों को भी मानसिक तनाव देता है, उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है.

मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लोग इन रंगों का भी शौक से चुनाव करते हैं. हर व्यक्ति की पसंदनापसंद अलग होती है. इसलिए जरूरत है कि रंगों के बीच सही तालमेल बैठाया जाए. गहरे रंगों के साथ हलके रंगों को क्लब कर के एक अच्छी थीम भी तैयार की जा सकती है. ट्रैंड के मुताबिक आजकल काला, मैरून और गहरा भूरा रंग चलन में है. इन के साथ गोल्डन और सिल्वर का कौंबिनेशन भी बहुत ही रौयल लुक देता है.

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लाइट की सही सैटिंग भी जरूरी

रंगों के साथ इंटीरियर का दूसरा प्रमुख हिस्सा होती है रोशनी, जिस में अकसर महिलाएं कंजूसी दिखाती हैं. खासतौर पर होम मिनिस्टर कही जाने वाली गृहिणियां घर पर बिजली का इस्तेमाल करने में इतनी कंजूसी करती हैं कि जैसे सारी सेविंग्स बिजली का बिल कम कर ही की जा सकती है.

नीता सिन्हा कहती हैं, ‘‘अब ऐसे अपार्टमैंट्स बनाना बड़ा मुश्किल है, जिन में बड़े रोशनदान और खुली बालकनियां हों, क्योंकि लोग ज्यादा हैं और रहने की जगह कम. ऐसे में घर पर प्राकृतिक रोशनी की कमी होती है, इसलिए पर्याप्त इलैक्ट्रिक लाइट्स का होना आवश्यक है. खासतौर पर लिविंगरूम और रसोई में लाइट्स की सही व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है, क्योंकि ये वे स्थान होते हैं जहां गृहिणी और परिवार के अन्य सदस्यों का सब से अधिक समय बीतता है.’’

लाइट इंटीरियर को उभारने का काम करती है और मूड को रिफ्रैश करती है. मगर एलईडी लाइट बचत के लिहाज से आजकल काफी प्रचलित है. लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल है कि एलईडी लाइट की कम रोशनी इंटीरियर और सेहत के लिहाज से सही नहीं है.

मगर घर में अधिक इलैक्ट्रिक लाइट भी नुकसानदायक हो सकती है. स्किन विशेषज्ञों का मानना है कि घर में इस्तेमाल किए जाने वाले बल्ब और ट्यूब लाइट्स से भी यूवी किरणें निकलती हैं, जिन से त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा रहता है.

इस बाबत नताशा कहती हैं, ‘‘हम जिस स्थान पर खड़े हों वहां से आसपास की सभी वस्तुएं हमें आसानी से दिखनी चाहिए. फिर चाहे किसी भी तरह की लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा हो. बात यदि एलईडी लाइट्स की है, तो इन की सैटिंग्स पर ध्यान देने की जरूरत होती है. इस से इंटीरियर और सेहत दोनों से जुड़ी समस्याओं का हल किया जा सकता है.

‘‘नए ट्रैंड के मुताबिक आजकल ओवर हैड लाइट्स, फ्लोर लैंप्स और सैडो लाइटिंग्स का काफी क्रेज है और इन सभी में एलईडी लाइट्स का ही प्रयोग होता है. इस तरह की लाइट्स जगह विशेष पर फोकस करती हैं और पर्याप्त प्रकाश की जरूरत को भी पूरी करती हैं. जहां एक तरफ इन से इंटीरियर को एक नया स्वरूप दिया जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ लाइट्स की सही सैटिंग्स आंखों को भी प्रभावित नहीं करती है.’’

फर्नीचर का सही चुनाव और प्रबंधन

सेहत पर अच्छा और बुरा प्रभाव घर में मौजूद फर्नीचर से पड़ता है. खूबसूरत फर्नीचर की मौजूदगी घर के इंटीरियर पर भी असर डालती है. फर्नीचर इंटीरियर को खूबसूरत भी बनाता है और उसे व्यवस्थित रखने में भी मददगार होता है. मगर जब इसे सही स्थान पर नहीं  रखा जाता है तो इस का सेहत पर असर भी पड़ता है. उदाहरण के तौर पर यदि बिस्तर के सिरहाने की तरफ वाली दीवार पर भारीभरकम वुडनवर्क है तो सिर में हमेशा भारीपन बना रहेगा. इसलिए सिरहाने की तरफ वाली दीवार को हमेशा खाली रखना चाहिए.

बैडरूम में भारी वुडनवर्क भी नहीं होना चाहिए, मगर स्टोरेज की सही व्यवस्था जरूर होनी चाहिए. पूरी दीवार को वुडन स्टोरेज में ढकना पुराना फैशन हो चुका है. अब ट्रैंड में ऐसा फर्नीचर है जिस में स्टोरेज की भरपूर जगह होती है.

यदि घर छोटा है तो फर्नीचर के चुनाव पर और अधिक ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि छोटे घरों में अधिक फर्नीचर चलनेफिरने में परेशानी बन जाता है. जरूरी नहीं कि बैडरूम में ड्रैसिंग टेबल ही हो. एक डिजाइनर सिंगल मिरर से भी जरूरत पूरी हो सकती है और यह ज्यादा रोचक भी लगता है. इसी तरह यह भी जरूरी नहीं कि लिविंगरूम में सोफा सैट ही रखा जाए. थ्री सीटर सोफे के साथ 2 हाई बैक चेयर्स भी सिटिंग अरेंजमैंट के लिए काफी होती है.

महिलाओं के लिहाज से देखा जाए तो उन्हें घर में चल कर बहुत सारे काम करने पड़ते हैं और सेहत के लिए चलना अच्छा भी होता है, इसलिए घर में फर्नीचर की भीड़ करने से अच्छा है कि जरूरत भर का और स्टाइलिश फर्नीचर ही लिया जाए.

इस तरह घर की सजावट पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो घर आने पर दिन भर की थकावट से राहत मिलती है.

उतरन – भाग 2 : पुनर्विवाह के बाद क्या हुआ रूपा के साथ?

लेखिका- कात्यायनी सिंह

तेरे वादों पर हम एतबार कर बैठे

ये क्या कर बैठे, हाय क्या कर बैठे

एक बार मुसकरा कर देख क्या लिए

सारी जिंदगी हम तेरे नाम कर बैठे…

सपनों के साये तले रात और दिन बीतते रहे. समय पंख लगा कर उड़ रहा

था. पर उस के दिमाग में रहरह कर यही सवाल कौंधता कि कौनकौन होगा उस के घर में… सोचती… पूछूं या नहीं?

परएक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘रचित, हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए हैं, पर अभी तक मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती. अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ न?’’

‘‘क्या जानना चाहती हो? यही न कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं, बच्चे हैं या नहीं…? हां बच्चे हैं. पर शादीशुदा होते हुए भी मैं अकेला हूं, क्योंकि पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. मेरे साथ मेरी मां और मेरा बेटा रहता है.’’

रूपा ने आंखें बंद कर लीं. यह सुख का क्षण था. सपने अभी जिंदा हैं… कुछ देर की मौन के बाद रचित ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मेरी भी एक बेटी है? मैं एक तलाकशुदा हूं. क्या तुम्हारी फैमिली मुझे और मेरी बेटी को स्वीकार करेगी? सपनों की दुनिया बहुत कोमल होती है रचित. पर वास्तविकता का धरातल बहुत कठोर. अच्छी तरह सोच लो. फिर कोई निर्णय लेना,’’ इतना कहती गई, पर मन के किसी कोने में कुछ नया जन्म लेती महसूस कर रही थी रूपा.

कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है

हर बात खयाली है, हर बात रूहानी है

मिल जाए कभी जो हम, तो हर बात सुहानी है…

रूपा के गोरे से मुखड़े पर अठखेलियां करती लटों को हाथों हटाते हुए रचित ने उस के गालों को अपनी हथेलियों में समेट लिया और उस की मदभरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं अब तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता रूपा. मैं सब ठीक कर दूंगा. बस तुम हां कर दो.’’

महीनों से चल रही मुलाकातों की फुहारें रूपा को आश्वासन की मधुर चासनी में सराबोर कर चुकी थीं. वह अपनेआप से अजनबी होती जा रही थी. कभी तो मन मचलता कि बारिश की बूंदों को अपनी हथेली में समेट ले. और कभी समंदर की लहरों के साथ विलीन हो जाने की विकलता. भावनाएं तूफान की तरह प्रचंड, उद्वेलित अंतर्मन की छटपटाहट ने आंखों में पानी का उबाल ला दिया. सामान्य गति से बीतते वक्त की चाल बहुत धीमी लग रही थी रूपा को, और सांसें धौंकनी की तरह तेज.

सांसों में बसे हो तुम

आंखों में बसे हो तुम

छूओ तो मुझे एकबार

धड़कन में बसे हो तुम…

समय गुजरते देर नहीं लगती. दोनों ने शादी कर ली. हालांकि रचित की मां बहुत मानमनुहार के बाद राजी हुई थीं और इस शर्त पर कि रूपा की बेटी कभी इस घर में नहीं आएगी. रूपा को बहुत बड़ा झटका लगा था. एक बार फिर से पुराने घावों का दर्द हरा हो गया था.

अचानक ही आए इस झंझावात ने रूपा के सपनों को चकनाचूर कर दिया. विचलित सी वह सन्न रह गई. पर रचित ने यह समझा कर शांत कर दिया कि वक्त के साथ सब बदल जाते हैं. मां को हम दोनों मिल कर मना लेंगे. रूपा ने गहरी सांस ली. उस ने बड़ी मुश्किल से दिल को समझाया, होस्टल से तो बच्ची महफूज है ही. जब मन करेगा जा कर उस से मिल लूंगी. सुखद भविष्य की कामना लिए रूपा को क्या पता था कि नियति क्याक्या रंग दिखाने वाली है.

डूबता हुआ सुर्ख लाल सूरज उसे माथे की बिंदिया सी लग रही थी. एक बार फिर से सब भूल कर उस ने रचित के प्यार भरोसा कर लिया. सुख की अनुभूतियां वक्त का पता ही नहीं चलने देती. सपनों के हिंडोले में झूलते 10 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘‘कल घर लौटने का दिन है रूपा,’’ रचित ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘प्यार ने हम दोनों को बांध रखा है, वरना हम तो नदी के दो किनारे थे.’’

रूपा आसमान की ओर देखती हुई बुदबुदाई.

रचित उस की आंखों में देखता कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहा. फिर उस ने मन में अंदर चल रहे द्वंद्व को परे झटक कर रूपा की खूबसूरती को निहारने लगा. पलभर के लिए तो लगा कि काश, यह वक्त यही ठहर जाता. पर वक्त भी कभी ठहरता है भला.

साथ तुम्हारे चल कर यह अहसास हुआ

दरमियां हमारे सिर्फ प्यार, और कुछ नहीं…

अंधेरा चढ़ता गया और दोनों महकते एहसास के साथ सपनों सरीखे पलों की नशीली मादकता में विलीन. थकान से चूर कब दोनों की आगोश में समा गए, महसूस भी न हुआ. सुबह का सूरज नया दिन ले कर हाजिर हो गया. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दोनों गाड़ी में बैठ गए और चल दिए घर की ओर.

घर पहुंचते ही सब से पहला सामना रचित के बेटे प्रथम से हुआ. उस की नजरें क्रोध और हिकारत से भरी हुई थीं. दोनों को देखते ही वह अंदर के कमरे में चला गया. रूपा के चेहरे पर सोच की लकीरें उभर आईं. तो क्या प्रथम की रजामंदी के बगैर शादी हुई है? जबकि मैं ने तो अपनी बेटी को बताया था कि रचित की मम्मी शादी के लिए तैयार हैं, पर शर्त रखी है कि तुम मेरे साथ उन लोगों के साथ नहीं रहोगी. ये सुन कर भी मेरी बेटी ने तो नाराजगी नहीं जताई. बल्कि उम्मीद से कहीं आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मां, अभी भी तो हम साथ नहीं रहते. तुम मुझ से मिलने होस्टल तो वैसे भी आती रहती हो.’’

बच्ची को याद कर के रूपा की आंखें भर आईं. धीरेधीरे खुद को सामान्य कर सास के पास गई. लेकिन सास की बेरुखी ने तो दिल ही बैठा दिया. एक बार फिर से रूपा ने दिल को बहलाया. कोई बात नहीं. रचित तो समझता है न मुझे. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

रूपा एक सपना देख रही है. वह है, उस की बच्ची है, रचित और प्रथम है. एक बहुत ही प्यारा सा, रंगीन सा प्रथम और बच्ची गोद में सोई है. रचित और मां उस के बगल में बैठे हैं. सभी बहुत खुश हैं.

अचानक नींद से जग जाती है रूपा. चारों तरफ देखती है…

ऐसा सपना, जिस का जाग्रत अवस्था से कोई संबंध नहीं. लेकिन सपने की खुशी उस के चेहरे पर झलक आती है. कभी न कभी यह सपना भी सच होगा, जरूर होगा.

देखती है पलट कर रचित को. नींद में बच्चों सा मासूम, प्यार से अपने गुलाबी होंठ उस के माथे पर टिका देती है. रचित के माथे पर भावनाओं का गुलाबी अंकन देख कर खुद शरमा भी जाती है रूपा. फिर उठ कर चल देती है किचन की ओर. नजदीक पहुंचते ही बरतनों की आवाज सुन कर चौंक गई. अंदर घुसते ही देखती है कि रचित की मां नाश्ता बना रही हैं.

‘‘मां, मैं बना देती हूं न…’’ सुनते ही सास किचन से बाहर निकल गई. सब समझते हुए भी रूपा ने खुद को संयत रख कर बाकी काम निबटाया और नाश्ता ले कर प्रथम के कमरे में दाखिल हुई. बेखबर सो रहे प्रथम को कुछ देर अपलक देखती रही. फिर बड़े प्यार से धीरेधीरे बाल सहलाते हुए बोली, ‘‘उठो प्रथम बेटा, स्कूल नहीं जाना क्या आज?’’ रूपा की आवाज कानों में पड़ते ही वह घबरा कर जाग गया और अजीब सी नजरों से घूरने लगा. पता नहीं क्यों इतना असहज कर रहा था उस का इस तरह घूरना? नफरत ऐसी कि आंखों में अंगारे दहक रहे हों.

Satyakatha: दूसरे पति की चाहत में

सौजन्या- सत्यकथा

21अप्रैल, 2021 को सुबह के यही कोई 6 बजे थे. तभी गांव सबरामपुरा के रहने वाले राकेश
ओझा के घर से रोने की आवाज आने लगी. घर में एक महिला जोरजोर से रोते हुए कह रही थी, ‘‘अरे मेरे भाग फूट गए रे…मेरे पति ने फांसी लगा ली रे…कोई आओ रे…बचाओ रे…’’ रुदन सुन कर आसपड़ोस के लोग दौड़ कर राकेश ओझा के घर पहुंचे. तब तक मृतक की पत्नी मंजू ओझा ने कमरे में पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बना कर झूलते मृत पति को फंदे से नीचे उतार लिया था.

राकेश ओझा की लाश के पास उस की पत्नी मंजू सुबकसुबक कर रो रही थी. मृतक का बड़ा भाई राजकुमार ओझा भी खबर सुन कर वहां पहुंच गया था. वह भी भाई की मौत पर आश्चर्यचकित रह गया.
राजकुमार ओझा ने यह सूचना थाना कालवाड़ में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

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घटनास्थल की जांच कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराई गई. मृतक की पत्नी मंजू ओझा से भी पूछताछ की गई. मंजू ने बताया कि रात में राकेश ने किसी समय साड़ी का फंदा गले में डाल कर फांसी लगा ली. आज सुबह जब मैं उठ कर कमरे में आई तो इन्हें फांसी पर लटका देख कर नीचे उतारा कि शायद जिंदा हों. मगर यह तो चल बसे थे. इतना कह कर वह फिर रोने लगी.

पुलिस ने वहां मौजूद मृतक के भाइयों और अन्य परिजनों से भी पूछताछ की. पूछताछ के बाद पुलिस को मामला संदिग्ध लग रहा था. आसपास के लोगों ने थानाप्रभारी को बताया कि राकेश आत्महत्या नहीं कर सकता. उसी समय मंजू रोने का नाटक करते हुए पुलिस की बातों को गौर से सुन रही थी. पुलिस वाले जब चुप होते तो वह रोने लग जाती. पुलिस वाले आपस में बोलते तो मृतक की पत्नी चुप हो कर सुनने लगती.
थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने संदिग्ध घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे कर दिशानिर्देश मांगे. जयपुर (पश्चिम) डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा के निर्देश पर एडिशनल डीसीपी राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोटवाड़ा) हरिशंकर शर्मा ने कालवाड़ थानाप्रभारी से राकेश ओझा की संदिग्ध मौत मामले की पूरी जानकारी ले कर उन्हें कुछ दिशानिर्देश दिए.

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थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. मृतक राकेश का शव ले कर उस की पत्नी मंजू ओझा अपने देवर, जेठ वगैरह एवं तीनों बच्चों के साथ अपने पति के पुश्तैनी गांव रुआरिया, मुरैना लौट गई.

गांव रुआरिया में राकेश का अंतिम संस्कार कर दिया गया. राकेश ओझा बेहद जिंदादिल इंसान था. ऐसे में उस के इस तरह आत्महत्या करने की बात किसी के भी गले नहीं उतर रही थी. राकेश ओझा की मौत पुलिस को संदिग्ध लगी थी. पुलिस को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो शक पुख्ता हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक राकेश को गला घोंट कर मारा गया था. तब डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा ने एक टीम गठित कर निर्देश दिए कि जल्द से जल्द राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया जाए. टीम में एसीपी हरिशंकर शर्मा, थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी रामसिंह शेखावत के हाथों सौंपा गया. पुलिस टीम ने साइबर सेल की मदद लेने के साथ मृतक के पड़ोस के लोगों से भी जानकारी ली. पुलिस टीम को जानकारी मिली कि मृतक की बीवी मंजू के पड़ोस में रहने वाले बीरेश उर्फ सोनी ओझा से अवैध संबंध थे. राकेश और बीरेश ओझा दोस्त थे और दोनों पीओपी का काम करते थे.

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बीरेश अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आयाजाया करता था. लोगों ने यहां तक कहा कि बीरेश जैसे ही राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर जाता, मंजू और बीरेश कमरे में बंद हो जाते थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मंजू और बीरेश उर्फ सोनी ओझा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि जिस रात को राकेश की हत्या हुई थी, उस रात 10 बजे मंजू और बीरेश के बीच बात हुई थी. उस के बाद भी हर रोज दिन में कईकई बार बात होती रही. राकेश की हत्या से पहले भी मंजू और बीरेश के बीच दिन में कई बार बात होने का पता चला. पुलिस को पुख्ता प्रमाण मिल गए थे कि राकेश की हत्या कर के उसे आत्महत्या दिखाने की साजिश रची गई थी. इस के बाद पुलिस ने बीरेश ओझा की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए. मगर वह कहीं चला गया था. कुछ दिन बाद वह जैसे ही अपने घर आया, कांस्टेबल सुनील कुमार को इस की खबर मिल गई. तब पुलिस ने 27 अप्रैल, 2021 को उसे हिरासत में ले लिया.

बीरेश को थाना कालवाड़ ला कर पूछताछ की गई. पूछताछ में वह ज्यादा देर तक पुलिस के सवालों के आगे टिक नहीं पाया और अपनी प्रेमिका मंजू ओझा के कहने पर राकेश ओझा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी मंजू को भी गिरफ्तार कर लिया. मंजू ओझा और बीरेश ओझा उर्फ सोनी से पूछताछ के बाद जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है—

राकेश ओझा मूलरूप से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव रुआरिया का रहने वाला था. वह काफी पहले गांव से जयपुर आ कर पीओपी का कामधंधा करने लगा था. राकेश की शादी मंजू से हुई थी. मंजू गोरे रंग की अच्छे नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. शादी के कुछ महीने बाद राकेश पत्नी मंजू को भी अपने साथ जयपुर ले आया था.

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राकेश तीजानगर इलाके के सबरामपुरा में किराए का घर ले कर बीवी के साथ रहता था. वक्त के साथ मंजू 3 बच्चों की मां बन गई. इन में एक बेटी और 2 बेटे हैं, जिन की उम्र 7 साल, 4 साल और 2 साल है.
राकेश पीओपी का अच्छा कारीगर था. इस कारण उस की मजदूरी भी अच्छी थी. वह महीने में 20-25 हजार रुपए आसानी से कमा लेता था. इस कारण उस के परिवार कागुजरबसर अच्छे से हो जाती थी. राकेश का छोटा भाई घनश्याम और बड़ा भाई राजकुमार भी जयपुर में काम करते थे. ये भी अपने परिवारों के साथ अलगअलग किराए पर रहते थे.

राकेश के पड़ोस में बीरेश उर्फ सोनी ओझा भी रहता था. बीरेश भी पीओपी का काम करता था. इसलिए दोनों दोस्त बन गए. बीरेश कुंवारा था और देखने में हैंडसम था. दोस्ती के नाते वह राकेश के घर आनेजाने लगा. बीरेश की नजर राकेश की बीवी मंजू पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन पर मर मिटा. मंजू की उम्र उस समय 33 साल थी और वह उस समय 2 बच्चों की मां थी. इस के बावजूद उस की उम्र 20-22 से ज्यादा नहीं लगती थी.

मंजू का गोरा रंग व मादक बदन बीरेश की निगाहों में चढ़ा तो वह मंजू के इर्दगिर्द मंडराने लगा. बीरेश अकसर मौका पा कर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आता और मंजू की खूबसूरती की तारीफें करता. मंजू समझ गई कि आखिर बीरेश उस से क्या चाहता है. राकेश ज्यादातर समय अपने काम पर बिताता और रात को घर लौटता तो खाना खा कर सो जाता. पत्नी की इच्छा पर वह ध्यान नहीं देता था. ऐसे में मंजू ने अपने से उम्र में 6 साल छोटे बीरेश से पहले नजदीकियां बढ़ाईं और फिर अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद यह सिलसिला चलता रहा.

बीरेश नई उम्र का जवान लड़का था. ऊपर से वह कुंवारा भी था. ऐसे में मंजू उसे पति से ज्यादा चाहने लगी.
काफी समय तक दोनों लुपछिप कर गुलछर्रे उड़ाते रहे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. मगर जब अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में बीरेश उस के घर आ कर दरवाजा बंद करने लगा तो आसपास के लोगों में कानाफूसी होने लगी. इसी दौरान मंजू तीसरे बच्चे की मां बन गई.

मंजू और बीरेश की बातें और आपस में व्यवहार देख कर राकेश को उन के संबंधों पर शक होने लगा था. ऐसे में राकेश को एक पड़ोसी ने इशारों में कह दिया कि बीरेश से दोस्ती खत्म करो. उस का घर आना बंद कराओ. यही तुम्हारे लिए ठीक रहेगा. इस के बाद राकेश ने मंजू से सख्ती करनी शुरू कर दी तो मंजू बौखला गई. उस की आंखों में पति खटकने लगा.

मौका मिलने पर मंजू अपने प्रेमी बीरेश से मिली. दोनों काफी दिनों बाद मिले थे. मंजू ने बीरेश से कहा, ‘‘राकेश को हमारे संबंधों पर शक हो गया है. वह तुम से बात करने की मनाही करता है. लेकिन मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी. राकेश हम दोनों को जीने नहीं देगा. ऐसा कुछ करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’ ‘‘मंजू, मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. राकेश को रास्ते से हटा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद हम अपने हिसाब से मौजमजे से जिंदगी जिएंगे.’’ बीरेश बोला. ‘‘मैं भी तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर यह राकेश की मौत के बाद ही संभव है. हमें ऐसी योजना बनानी है कि राकेश की हत्या को आत्महत्या साबित करें. बाद में जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तब हम शादी कर लेंगे.’’ मंजू ने कहा.

इस के बाद दोनों ने योजना बना ली. 20 अप्रैल, 2021 की रात मंजू ने तीनों बच्चों को खाना खिला कर कमरे में सुला दिया और उन के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया. मंजू ने राकेश को खाने में नींद की गोलियां दे दी थीं, जिस से वह कुछ ही देर में गहरी नींद में चला गया. फिर रात 10 बजे मंजू ने बीरेश को फोन कर घर बुला लिया. बीरेश और मंजू राकेश के कमरे में पहुंचे. बीरेश ने राकेश के गले में कपड़ा लपेट कर कस दिया. थोड़ा छटपटाने के बाद वह मौत की आगोश में चला गया.

राकेश मर गया. तब बीरेश और मंजू ने साड़ी राकेश के गले में लपेट कर उस के शव को पंखे के हुक से लटका दिया ताकि लोगों को लगे कि राकेश ने आत्महत्या की है. इस के बाद बीरेश अपने घर चला गया और मंजू सो गई. अगली सुबह 6 बजे उठ कर मंजू ने योजनानुसार राकेश के कमरे में जा कर रोनाचिल्लाना शुरू कर दिया. तब रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग और मृतक के भाई वगैरह घटनास्थल पर आए. तब तक मंजू ने राकेश का शव फंदे से उतार कर फर्श पर रख लिटा दिया था.

इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई और पुलिस ने काररवाई कर राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश किया. पुलिस ने राजकुमार ओझा की तरफ से मंजू ओझा और उस के प्रेमी बीरेश ओझा उर्फ सोनी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. आरोपियों से मोबाइल और गला घोंटने का कपड़ा व साड़ी जिस का फंदा बनाया गया था, पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद मंजू और बीरेश को 28 अप्रैल, 2021 को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिराससत में भेज दिया गया.

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