मन में फिर तर्कवितर्क का सिलसिला शुरू हो गया. उन्होंने तनमन से एकदूसरे को चाहा. 12 बरसों के आत्मीय क्षणों की याद में अब भी तो मन सुगंध में डूब कर बौराने लगता है. क्या वह राहुल के बिना जीने की कल्पना भी कर सकती है? क्या हुआ था? क्यों और कैसे हुआ? उस ने नहीं पूछा, पर राहुल ने भी तो प्रतिकार नहीं किया और न ही कुछ कहा, बस, चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया.
तनु कुछ भी तय नहीं कर पा रही थी. वह नहा कर बाहर निकली तो टहल कर लौटे बाबूजी, उसे एक लिफाफा दे कर बोले, ‘‘10 नंबर वाले अखिलेश के पिताजी ने तुम्हारे नाम से यह चिट्ठी दी है. चिट्ठी लिखने वाले ने घर का नंबर गलत लिखा है. वे लोग एक सप्ताह से अपने गांव गए हुए थे, सो यह चिट्ठी लैटर बौक्स में ही पड़ी रह गई थी.’’
तनु ने अपरिचित हस्ताक्षर वाले अपने नाम का वह पत्र खोला तो ‘शकुन’ नाम पढ़ कर उस का दिल एक बार फिर तेजी से धड़क गया. पत्र में लिखा था : ‘तनुजी, ‘सादर नमस्कार,
‘मैं ने जब पहली बार आप को देखा, तभी मु झे यह महसूस हो गया कि आप मेरे बहुत करीब हैं और मैं ने आप से एक अनाम रिश्ता जोड़ लिया था. इस जन्म के दुखदर्द की गठरी आप को सौंप कर, मेरे इस दुनिया से चले जाने का वक्त बहुत करीब आ गया है, क्योंकि पीलिया कैंसर में बदल चुका है.
‘मेरा बचपन कसक और कटुता की गुनगुनाहट था. यश और दौलत के मद में आतंकित पिता, जिन्होंने लड़के की आस में पहली पत्नी की मृत्यु के बाद मेरी मां से ब्याह किया था, मेरे जन्म के बाद कलह और अहं के टकराव के बाद मातापिता के अलगाव में सिर्फ भावनात्मक क्षति ही नहीं हुई, बल्कि मां की मृत्यु आत्महत्या से हो जाने के कारण 12 बरस की उम्र में अनाथ का दर्जा दे कर पिता ने मु झे ‘बालिकागृह’ में छोड़ दिया था. तब मैं ने अपरिचित रास्तों के सफर की कड़वाहटों के घूंट पी कर जीने का प्रयास किया. 18 बरस की उम्र में मैं ने 12वीं की परीक्षा दे कर टाइप व शौर्टहैंड सीखी और नौकरी की तलाश के दौरान मु झे प्रकाश मिले.
‘प्रकाश से ब्याह हुआ तो मैं ने सम झा कि दुखों का अंत हो गया, परंतु 3 वर्षों के सहजीवन का एकएक पल ऐसा दहशत भरा था कि दुर्घटना में प्रकाश की क्षतविक्षत लाश को देख कर ऐसा लगा जैसे मेरी गरदन पर कसती गांठ खुल गई हो.
‘आप ने मेरी मदद की, राहुलजी ने नौकरी दिलवा कर एक अच्छे मित्र की तरह संरक्षित भी किया.‘मेरे और राहुलजी के बीच कोई अनैतिक संबंध न थे और न हैं. उद्धारक तो पूज्य होता है, पर लोगों की निगाहें ‘प्रेम’ की पवित्र ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाती हैं. प्रकाश की मौत से पहले ही मेरी कोख में जीव अंकुरित हो चुका था, लेकिन लोगों ने राहुलजी को मेरे साथ जोड़ कर अफवाहें उड़ानी शुरू कीं तो मैं ने अपना तबादला अहमदाबाद करवा लिया. इसे भी कई लोगों ने सम झा कि राहुलजी से बेरोकटोक मिलते रहने की यह एक चाल है, पर ऐसी कोई भावना नहीं थी.
‘मु झे याद है वह शाम जब राहुलजी मु झे मनोचिकित्सक के पास ले कर गए थे. घर पहुंचते ही दरवाजे के पास ही मु झे चक्कर आ गया था. उन्होंने सहारा दे कर मु झे कमरे में पहुंचाया. तभी बिजली चली गई. भय से थरथरा कर मैं उन से लिपट गई थी. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा, लिटाया. मोमबत्ती की मद्धम रोशनी में मैं ने देखा कि वे दरवाजे के सामने कुरसी पर योगी की तरह ध्यानमग्न बैठे हुए हैं. राहुलजी की जगह यदि कोई और होता, जिस की नीयत बुरी होती, तो कुछ भी हो सकता था. जो भी हो, उस रात के क्षणिक आत्मीय स्पर्श से मेरे अंदर की शापग्रस्त औरत भयमुक्त हो गई.
‘यही नहीं, जब अहमदाबाद में भी उन्होंने मु झे एक बुजुर्ग निसंतान दंपती का आश्रय दिलवाया तो मैं खुद को पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने लगी थी. अंकिता के जन्म के बाद मु झे जिंदगी का नया आयाम मिल गया था, पर जब मु झे कैंसर का पता चला तो मैं अपनी बेटी के भविष्य के बारे में चिंतित हो गई. प्रकाश के मातापिता से संपर्क किया तो जवाब मिला कि लड़का होता तो वंशवारिस को अपना लेते, सो उन्होंने अंकिता की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया.
‘अगर मैं मौत से हार गई तो आप मेरी बच्ची को सहारा देंगी न, आप से आश्वासन पा कर तृप्त होने का वक्त तो मेरे पास नहीं है, पर यह विश्वास ले कर जाऊंगी कि आप मेरी प्रार्थना को ठुकराएंगी नहीं.
‘आप की शकुन.’ शकुन की चिट्ठी को हाथ में ले कर तनु न जाने कितनी देर तक निस्तब्ध बैठी रही. एकाएक प्रभा दीदी ने कंधे पर हाथ रख कर उसे सचेत किया तो मनु को समय का आभास हुआ कि आधा घंटा हो गया था. दीदी ने तनु के हाथ से वह चिट्ठी ले कर पढ़ी, फिर आत्मीय स्वर में बोलीं, ‘‘राहुल भी शायद जाग गया होगा, चाय ले कर जाओ तो, वहीं तुम भी पी लेना.’’
जब मनु ट्रे में चाय के प्याले लिए ऊपर पहुंची तब स्टडीरूम में, आरामकुरसी पर ही राहुल सोया हुआ था. पत्नीदेह की चिरपरिचित गंध राहुल की सांसों में भरने लगी तो वह जाग गया. तनु के ताजगीभरे चेहरे को अपलक निहारते राहुल से जब तनु ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘इस तरह क्या देख रहे हो?’’ तो वह कुछ आश्वस्त हो गया.
‘‘देख रहा हूं, मेरी यह तनु कल कहां खो गई थी? ऐसा उग्र रूप मैं ने पहली बार देखा,’’ राहुल बोला. प्यालों में चाय डालती हुई तनु धीमी आवाज में बोली, ‘‘मु झे उस तरह उत्तेजित हो कर नहीं बोलना चाहिए था. एक सीधी, सरल बात को मैं ने गलत सम झ लिया था. जब तुम बिना प्रतिकार किए कमरे से बाहर गए तो तुम्हारे और शकुन के संबंध का शक मेरे मन में विराट रूप धर गया.’’
तनु ने बताया कि टैलीग्राम के उस शब्द ‘आप की अमानत’ को उसी शाम क्लब में सुमेधा की बातों ने उस के मन में कैसे गहराई तक उतार दिया था. राहुल के बारे में उस ने क्याक्या सोच डाला.
तब राहुल को भी सम झते देर नहीं लगी कि ‘अमानत’ की बात को स्वीकार करते ही कैसे तीखे स्वर में तनु ने कहा, ‘जब सबकुछ हो गया, वक्त हाथ से निकल गया, तब तुम्हें गलती का आभास हो रहा है? ऐसे राहुल से मेरी कोई पहचान नहीं है. मैं कुछ नहीं कर सकती.’
राहुल उसे निहारता सोचता रहा कि प्यार हो या घृणा, तनु की प्रतिक्रियाएं कितनी विरल होती हैं. भावनाएं क्षणिक नहीं होतीं, पर इतनी तीव्र और गहरी कि कोई थाम भी नहीं सकता है.
धीरेधीरे राहुल ने वे सारी बातें बता दीं जिन की तरफ उस का ध्यान भी नहीं गया था कि वे बातें कभी तनु के मन में टूटी, बिखरी सी शकुन के बारे में शक की दरारें डाल सकती हैं. फिर धीरेधीरे अंधेरे से बाहर निकल कर जीने का प्रयास करती हुई शकुन, जिस ने मनोचिकित्सक के सामने प्रकाश के बारे में बताया, को सुन कर तनु के रोंगटे खड़े हो गए.
राहुल ने बताया, ‘‘उस दिन डाक्टर की क्लीनिक से लौटे तो शकुन को घर के दरवाजे पर ही चक्कर आ गया. उसे सहारा दे कर जैसे ही मैं ने कमरे तक पहुंचाया, अचानक बिजली चली गई. शकुन डर कर मु झ से लिपट गई.‘‘मैं ने कभी अपने पर दुर्बलताओं को हावी नहीं होने दिया, पर जब मेरे और शकुन के बारे में अफवाहें उड़ने लगीं तो मन में अपराधबोध हुआ कि अकेली, कमजोर एक लड़की मेरी वजह से बदनाम हो रही है.
‘‘शकुन की अहमदाबाद तबादले की अरजी मंजूर हुई, तब वह मु झ से मिलने आई. तभी मैं ने अपने एक परिचित दंपती का उसे पता दिया था. मैं ने उस से पूछा कि एकाएक तबादले का खयाल क्यों आया? कहीं संबंधों की अफवाह से डर कर तो ऐसा नहीं किया? तो जानती हो उस ने क्या कहा?’’इतना कह कर राहुल एक पल को रुका तो तनु ने उसे सचेत करने के लिहाज से कहा, ‘‘क्या कहा था शकुन ने?’’