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प्रमुख कीट तना बेधक

प्रमुख रूप से पीला तना बेधक आक्रमण करता है. इस कीट के प्रौढ़ लंबे, पीले या सफेद रंग होते हैं. कीट की सूंडि़यां पीले या मटमैले रंग की होती हैं, जो तने को छेद कर अंदर ही अंदर खाती रहती हैं. इस के प्रकोप से पौधे का मध्य तना सूख जाता है, जिसे ‘मृत गोभ’ कहते हैं. बाद के आक्रमण से धान की बाली बिना दाने वाली निकलती हैं. बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूख कर सफेद हो जाती हैं और दाने नहीं बनते हैं. ऐसी बालियां ऊपर से खींचने पर आसानी से खिंच जाती हैं, जिसे ‘सफेद बाली’ कहते हैं.

इस कीट का आर्थिक हानि स्तर 5-10 फीसदी मृत केंद्र या सफेद बाली प्रति वर्गमीटर आंकी गई है. प्रबंधन * पौध की 1.5-2.0 इंच ऊपरी पत्तियों को काट कर रोपाई करें, जिस से कीट द्वारा दिए गए अंडे नष्ट हो जाते हैं. * फसल पर तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप होने पर ट्राइकोग्रामा जपोनिकम नामक परजीवी (ट्राइकोकार्ड) के 1.0-1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.

* तना बेधक कीट के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों जैसे: रत्ना, पंत धान-6, सुधा, वीएल-206 को उगाएं. * 5 फीसदी नीम के तेल का छिड़काव करना चाहिए.

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* खेत में 20 गंध पास प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट किया जा सकता है.

* 5 फीसदी सूखी बालियां दिखाई देने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 फीसदी दानेदार दवा 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर पानी लगा दें या फिब्रोनिल 5 फीसदी एससी की 400-600 मिलीलिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी के साथ सरफेक्टेंट 500 मिलीलिटर घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. पत्ती लपेटक इस का प्रकोप अगस्तसितंबर माह में अधिक होता है. इस कीट के कारण खेत में मुड़ी हुई, बेलनाकार पत्तियां दिखाई देने लगती हैं जिन के अंदर सूंड़ी पत्ती के हरे भाग को खाती रहती हैं. प्रभावित खेत में धान की पत्तियां सफेद और झुलसी हुई दिखाई देती हैं. कीट की इल्लियां (सूंड़ी) अंडों से निकलने के कुछ समय बाद इधरउधर विचरण कर अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को मोड़ लेती हैं और वहां रहते हुए पत्ती को खुरचखुरच कर खाती रहती हैं. कीट के पनपने के लिए तापमान 25-30 डिगरी सैल्सियस और हवा में नमी 83-90 फीसदी उपयुक्त दशा है.

* खेत में जगहजगह प्रकाश प्रपंच लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें.

* 2 ट्राइकोकार्ड्स प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर 4-5 बार खेत में जगहजगह पर समान दूरी पर लगाएं.

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* अधिक प्रकोप होने की दशा में एसीफेंट 50 एसपी की 700 ग्राम या फिप्रोनिल 5 एसपी की 600 मिलीलिटर या ट्राइजोफास 40 ईसी 400 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. दीमक दीमक लगभग सभी फसलों में नुकसान पहुंचाता है. दीमक के परिवार में राजा, रानी श्रमिक व सैनिक सहित चार सदस्य मौजूद रहते हैं. परिवार में रानी की संख्या केवल एक होती है, जो बच्चे देने का काम करती है. दीमक का प्रकोप बलुई मिट्टी वाले और असिंचित क्षेत्रों में अधिक होता है. दीमक उन सभी चीजों को आमतौर नुकसान पहुंचाता है, जिन में सेल्यूलोज पाया जाता है. ये जड़ और तने को खा कर सुखा देते हैं. इस तरह के सूखे हुए पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है.

प्रबंधन

* गरमी में एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे, जिस से हानिकारक कवक, जीवाणु, कटुआ कीट की सूंडि़यां और सभी प्यूपे व अन्य कीटों की विभिन्न अवस्थाएं, जो जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं, जमीन के ऊपर आने से तेज धूप की गरमी के कारण और चिडि़यों के द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं.

* कच्चे गोबर को खेत में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस से दीमक का प्रकोप अधिक बढ़ता है.

* सिंचाई की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए.

* दीमक के घरों को नष्ट कर रानी को मार देना चाहिए.

* ब्यूवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 30 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला दें.

* खड़ी फसल में अधिक प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2-3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-20 किलोग्राम बालू में मिला कर उचित नमी पर सायंकाल में बुरकाव करें. धान के फुदके धान में अकसर 2 तरह के फुदके ज्यादा आक्रमण करते हैं.

पहला उजली पीठ वाला फुदका (डब्ल्यूबीपीएच) और दूसरा भूरा फुदका (बीपीएच). भूरे फुदके के प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं, जिन की लंबाई तकरीबन 3.5-4.5 मिलीमीटर तक होती है. इस कीट के नन्हे फुदके और प्रौढ़ दोनों ही पौधों की कोशिकाओं का रस चूसते हैं, जिस से पौधा पीला पड़ जाता है. इस के अधिक आक्रमण की दशा में फुदका झुलसा या हार्पर बर्न जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. शुरुआत में ये फसल के किसी एक स्थान से शुरू हो कर पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस के अलावा ये कीटग्रासी स्टंट नाम के विषाणु रोग को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

प्रबंधन

* लीफ हापर और प्लांट हापर के नियंत्रण में लाइकोसा प्रजाति की मकड़ी अधिक कारगर होती है. इसलिए खेत में मकड़ी की संख्या बढ़ाने के लिए मेंड़ पर जगहजगह धान की पुआल के गट्ठर डाल देने चाहिए. इस तकनीक का उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया, जिस से कीट व रोगनाशी रसायनों के प्रयोग तथा लागत में कमी आई और उपज में वृद्धि हुई.

* कीट का प्रकोप होने की दशा में यूरिया का खड़ी फसल में छिड़काव बंद कर दें.

* फसल में मित्र कीटों और मकडि़यों का संरक्षण करना चाहिए.

* कीटों का अधिक प्रकोप होने पर थायोमेथोक्जाम 300 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. धान का हिस्पा यह काले रंग का कीट होता है. इस के शरीर पर छोटछोटे कांटेनुमा रोएं होते हैं. इस की लंबाई 5 मिलीमीटर तक होती है. इस के गिडार और वयस्क दोनों पत्तियों को खुरच कर उस के हरे भाग को खाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं.

प्रबंधन

* रोपाई के पहले पौध के शिरों को थोड़ा काट दें. उस के बाद रोपाई करें.

* झुंड में 1-2 कीट प्रति झुंड दिखाई देने पर फ्रिवोनिल 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से या मैथोमिल 2.0 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. गंधी बग इस का वयस्क लगभग 15 मिमी. लंबा और हरेभूरे से गहरे भूरे रंग का होता है. इस कीट की पहचान इस से आने वाली दुर्गंध द्वारा आसानी से की जा सकती है. इस कीट के नवजात और प्रौढ़ दोनों ही दुग्धावस्था में बालियों से दूध को चूसते रहते हैं, जिस से बालियों में दाने नहीं बन पाते हैं. रस चूसने वाले बिंदु पर दानों में भूरा दाग बन जाता है और दाने खोखले रह जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए खेतों के किनारों से खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए, क्योंकि ये कीट इन पर पलते हैं और दूधिया दाने बनने की अवस्था में ही फसल पर आक्रमण करते हैं.

प्रबंधन

* खेत की मेंड़ों पर उगी हुई घासों की सफाई करें.

* 5 फीसदी नीम के सत का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए.

* कीट का प्रकोप 1 बग/ झुंड से अधिक होने पर इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

धान की रोपाई में काफी लागत और मजदूरों की कमी के चलते किसानों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फायदा कम ले पाते हैं. लागत कम करने के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग काफी उपयोगी है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रो.

रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि धान की सीधी बोआई वाली एक मशीन वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है, जिसे पैडी ड्रम सीडर कहते हैं. प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि जो किसान किसी वजह से धान की नर्सरी नहीं डाल पाए हैं, वे धान की कम अवधि की प्रजाति की बोआई सीधे ड्रम सीडर से कर सकते हैं. यह बहुत ही सस्ती और आसान तकनीक है. इस की बनावट बिलकुल आसान है. उन्होंने कहा कि यह मशीन मानवचालित है.

6 किलोग्राम वजन व 170 सैंटीमीटर लंबी यह मशीन है. बीज भरने के लिए 4 से 6 प्लास्टिक के खोखले ड्रम लगे रहते हैं, जो एक बेलन पर बंधे रहते हैं. ड्रम में 2 पंक्तियों पर 9 मिलीमीटर व्यास के छेद बने होते हैं. ड्रम की एक परिधि में बराबर की दूरी पर कुल 15 छेद होते हैं. 50 फीसदी छेद बंद रहते हैं. बीज का गिराव गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्हीं छेदों के द्वारा होता है. बेलन के दोनों किनारों पर पहिए लगे होते हैं.

इन का व्यास 60 सैंटीमीटर होता है, ताकि ड्रम पर्याप्त ऊंचाई पर रहे. मशीन को खींचने के लिए एक हत्था लगा रहता है. आधे छेद बंद रहने पर मशीन द्वारा सूखा बीज दर 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है. पूरे छेद खुले होने पर 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. प्रत्येक ड्रम के लिए अलगअलग ढक्कन बना होता है, जिस में बीज भरा जाता है.

मशीन में पूर्व अंकुरित धान का बीज प्रयोग में लाते हैं. बोआई के समय लेव लगे हुए समतल खेत में 2 से 2.5 इंच पानी होना आवश्यक है. एक दिन में ड्रम सीडर से 1 से 1.40 हेक्टेयर खेत में बोआई की जाती है. ड्रम सीडर की उपयोगिता धान की रोपाई न करने से बढ़ जाती है. इस में नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

20 सैंटीमीटर की दूरी पर पंक्तिबद्ध बीज का जमाव होता है, जिस से फसल का विकास अच्छा होता है और निराई व अन्य क्रियाओं में सुगमता होती है. वहीं फसल सुरक्षा पर कम खर्च आता है. फसल 10 से 15 दिन पहले पक जाती है, जिस से अगली फसल गेहूं की बोआई समय पर संभव होती है और उस का उत्पादन अच्छा मिलता है. पहली सिंचाई 3-4 दिन बाद हलकी व धीरेधीरे शाम के समय करें.

जिंदगी जीना भी है एक कला, करते रहें कुछ नया

कुशलता से कोई भी किया गया कार्य सफलता का मूलमंत्र होता है. हम और हमारा मन दोनों एक हो जाते हैं, तब जो कार्य होता है वह गुणात्मक दृष्टि से बेहतर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपने प्रति वफादार होते हैं. सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है, धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, हम उसे पढ़ते हैं, फिर भी सिगरेट जला लेते हैं. सूचना का भंडार ज्ञान नहीं होता है. ज्ञान का जन्म अनुभव की जमीन पर होता है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम अपनेआप से प्यार नहीं करते हैं. अपनेआप के प्रति, अपने शरीर के प्रति, अपने मन के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं. शरीर के प्रति सजगता ही सकारात्मक सोच के प्रति उत्साह जगाती है.

अब तक जाना गया है-अपनेआप को दुखी बनाए रखें या प्रसन्न रहें, यह आप के ही हाथ में है. मेरी प्रसन्नता जब तक बाहरी दुनिया के हाथों में होगी, मैं दुखी ही रहूंगा. बाहर जो घटता है वह निरंतर बदल रहा है. कभी मेरे अनुकूल घटता है, तो कभी मेरे प्रतिकूल. कभी मैं खुश हो जाता हूं तो कभी दुखी. हर घटना मेरी अपेक्षा के अनुसार नहीं घटती, उसे जैसे घटना था वैसे ही घटता है. मेरा सारा प्रयास बाहर जो घट रहा है, उसे बदलने के लिए होता है. ‘तो क्या मैं प्रयास करना छोड़ दूं?’ ‘नहीं, मैं जो प्रयास कर रहा हूं उस के अनुकूल कुछ होगा, प्रतिकूल भी घट सकता है या तीसरा कुछ भी घट सकता है.’ मुझे हर परिस्थितिका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. काम तो करना ही है. जब तक शरीर है, उसे क्रियाशील रखना है.

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लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है. अवसाद तो चौबीसों घंटे बना रहता है. जो अप्रिय है वह काले बादल की तरह आता है और चेतना पर छा जाता है. बाहर कितना भी प्रिय घट जाए, पर भीतर अगर नकारात्मक सोच का दंश रखा है तो वह उसे भी गंदा कर देगा. याद रखिए, एक क्विंटल दूध को एक कटोरी दही फाड़ देता है. नकारात्मकता की शक्ति ज्यादा घनी होती है. जब हम सही होते हैं, हमारी दृष्टि में उत्साह जगता है. तब बाहर का कांटों से भरा पथ भी हमें चलने योग्य लगता है, क्यों? ‘उत्साह बाहर से नहीं आता, वह भीतर की आंतरिक शक्ति है.’ हम जितना अधक सोचेंगे उतने ही नकारात्मक होते चले जाएंगे, उतने ही दुखी व अशांत. मैं ने यह जाना है, यह पाया है, अनावश्यक विचारणा ही अभिशाप है और उस से बचने का एक ही उपाय है, निरंतर कार्यरत रहें, और मन को पूरी तरह उसी काम में लगाएं. जानता हूं, यह कठिन है, पर असंभव नहीं है. यह तभी संभव हो पाता है जब हम इस के खतरे से सावधान हो जाते हैं.

यह संभव हो पाता है, जब :

जो उंगली बाहर उठती है वह भीतर की ओर भी जाने लगती है. हम बाहर से इतने प्रभावित हैं कि अपने भीतर झांक ही नहीं पाते हैं.

दूसरों से तुलना करना, असंगत कार्य है.

कुछ मिला है, वह आप के प्रयास से मिला है, आप की मेहनत से मिला है. आप ने छोटा मकान बनाया है, सोने के लिए तख्त भी ले आए हैं. छोटी बाइक भी है. बच्चा स्कूल जा रहा है. आप खुश तो हैं. पर नहीं, इधर मकान का उद्घाटन हुआ, अगले दिन से ही विचार खड़ा हो जाता है, आप के सहयोगी ने आप से बड़ा फ्लैट ले लिया है, वह छोटी कार भी ले आया है. उस ने महंगा वाला डबल बैड खरीदा है.

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आप अपने घर का, अपनी वस्तुओं का सुख नहीं ले पाते हैं, फिर एक असंतोष की आग भी आप के भीतर जग जाती है. अरे, इतनी मेहनत से आप यहां तक आए हैं, क्या खुश नहीं हैं? अगर नहीं हैं तो आप को कोई भी खुशी नहीं दे सकता है. याद रखिए, दूसरों से कभी तुलना नहीं करें. आप जो कल थे, उस से आज बेहतर हैं. तुलना हमेशा अपनी, अपनेआप से ही करें. कल से स्वास्थ्य आज अच्छा है, आज खाना अच्छा खाया है, आज नींद अच्छी आई.

हर छोटी खुशी, बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर खुशी देती जाती है.

सार सार सब ले लिया

यह आवश्यक नहीं है कि हम हमेशा सही ही हों. गलती हर इंसान से होती है. पर समझदारी इसी में है कि आप अपना मूल्यांकन खुद ही करें. हम जब दूसरों से बात करते हैं, सलाह लेते हैं, या वे स्वयं देने चले आते हैं तो हम उन्हें सुनें और विवेक की धरती पर उस का मूल्यांकन करें. हर सलाह को मानना भी उचित नहीं है और नकारना भी गलत है. तब मूल्यांकन अनवरत हो, पर अपनी सक्रियता को रोकना, स्थगन करना उचित नहीं है. जीवन में हर दिन यही क्रम रहता है. हमारे समाज में सलाह देने की बीमारी है. पर बहस न करें, मात्र सुन लें, काम तो आप को ही है. जो राह सही है, उसी पर चलते रहें.

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इस से दूसरे की प्रतिक्रिया से आप बचे रहेंगे. आप सब को खुश नहीं रख सकते हैं पर बिना बहस के उस अवांछित की सुनें. इस से आप उन की प्रियता को बनाए रख सकते हैं. इस से आप की ऊर्जा बढ़ेगी, कार्यकुशलता बढ़ेगी. बहस तो कहीं पर भूल कर भी नहीं करना है. बोलें कम, सुनें ज्यादा, क्योंकि वे जो सलाह दे रहे हैं, ये उन के अनुभव हैं, जो स्मृति से निकल कर आए हैं. आज की समस्या नई है. इस का समाधान अतीत की जानकारी में असंभव है. सो, बहस की बहुत संभावना है. पर यहां बचना है. इसलिए विचार का स्वागत करें, विवेक पर कसें अपने सोच को, निर्णय का हमेशा मूल्यांकन करते रहें. तब निराशा की संभावना कम होती चली जाती है.

क्या लागे मेरा

सक्रिय जीवन जीने के लिए यह धारणा आवश्यक है. मैं ने पाया है, मैं जहां भी गया हूं, नकारात्मक भावनाओं की अनुगूंज सुबह से शाम तक सुनाई पड़ती है. कभी भी कोई भी काम शुरू किया, पहला उत्तर यही मिला-जिन्होंने किया उन्हें क्या मिला? असफलता की कहानियां सुनाई जाती हैं. हम इतने भयभीत क्यों हैं? हर काम शुरू करने के पहले ही हमें दूसरे की असफलता का उदाहरण दे कर डरा दिया जाता है. कहने का अभिप्राय यह है कि कुछ भी करने के लिए मन बनाने से पहले ही हमें डरा दिया जाता है.

इस नकारात्मक सोच ने हमारी मानसिक ऊर्जा को सोख लिया है. हम एक पक्षी की तरह हैं, जो नकारात्मक आकाश में उड़ रहे हैं, जिन के लिए कहीं ठिकाना नहीं है. हम इस से बचें, ऐसे लोगों से बचें. हम भूतप्रेतों से बहुत डरते हैं. सवाल होते हैं, भूत होते हैं या नहीं? पर जो निरंतर अतीत में है, दुखद स्मृतियों में है, निराशा में है, वह भूत ही तो है.

उन से बचें. वे सारी मानसिक ऊर्जा को सोख लेते हैं. मन का और पानी का स्वभाव एक जैसा होता है. दोनों नीचे की ओर बहते हैं. ऊपर उठाने के लिए जोर लगाना पड़ता है. बल लगता है. इसलिए हर प्रयास के लिए प्रयास करने से पहले, जो नैगेटिव होता है, जो नैगेटिव ऊर्जा है, उस से दूर रहा जाए.

समाचारपत्रों को, टीवी न्यूज को, जहां नकारात्मकता का भंडार जमा है, उन से सुबह और रात को दूर रहा जाए. ‘हौरर शो’, ब्रैकिंग न्यूज आदि सब नकारात्मक सोच के भंडार हैं, इन से बचें. ज्योतिषियों से बचें. सुबहसुबह पंचांग देखना बंद करें. जो भविष्य वक्ता हैं, वे नकारात्मकता के व्यवसायी हैं, वे सकारात्मक खुद के लिए होते हैं, आप को अंधेरे में धकेल कर खुद उजाले में दौलत और शोहरत बटोरते हैं. दुनिया का कोई ज्योतिषी न तो अपनी न किसी अन्य की आयु का एक भी पल बढ़ा सकता है. हां, चिकित्सक अवश्य प्रयास करता है.

ये सब नकारात्मक लहरें हैं जो आप को एक कदम चलने से रोक देती हैं. प्रयत्नविमुख कर देती हैं. इन से बचाव मात्र वर्तमान में निरंतर करना है.

ताजगी और सेहत वाली, हर्बल चाय की प्याली

अकसर जब हम सुस्ती महसूस करते हैं तो चाय पीते हैं. चाय से भले हमारी सुस्ती दूर हो जाती है, लेकिन इस से पाचन संबंधी कई परेशानियां भी उत्पन्न हो जाती हैं जैसे पेट में गैस बनना, अम्लीय मात्रा बढ़ने के कारण सीने में जलन होना, खट्टी डकारें आना, भूख न लगना आदि.

तब कई बार हम सोचते हैं कि चाय पीना ही छोड़ देंगे पर आदत बन जाने की वजह से छोड़ नहीं पाते. ऐसे में अगर आप को एक ऐसी चाय मिले जिसे पीने के बाद ताजगी के साथसाथ उपरोक्त परेशानियां न हों तो आप क्या करेंगी?

जी नहीं, हम ग्रीन टी के बारे में नहीं, बल्कि हर्बल चाय के बारे में बात कर रहे हैं. यह चाय कैलोरी फ्री होती है और दिखने में आम चाय की तरह ही दिखती है. लेकिन आम चाय में जो अवगुण होते हैं वे हर्बल चाय में नहीं होते. यह कई प्रकार के फूलों, बीजों, पत्तों, जड़ों और अन्य औषधियों को सुखा कर तैयार की जाती है.

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हर्बल चाय न केवल हमें फिट रखती है, बल्कि इस के नियमित सेवन से और भी कईर् फायदे होते हैं. मसलन:

  • हर्बल चाय में ऐंटीऔक्सीडैंट भरपूर मात्रा में होता है, जो हृदय रोगों में लाभकारी होता है. अत: हर्बल चाय पीने पर हृदय से संबंधित बीमारियों का खतरा कम हो जाता है. साथ ही फ्लेवौनौयड खून को जमने से भी रोकता है.
  • हर्बल चाय शारीरिक ऊर्जा बढ़ाती है.
  • यह चाय उलटी, दस्त, कब्ज, जी मिचलाना आदि परेशानी में राहत प्रदान करती है और हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती है.
  • हर्बल चाय में विटामिन डी होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और गठिया अथवा आर्थ्राइटिस में राहत प्रदान करता है.

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  • हर्बल चाय में बड़ी मात्रा में मिनरल, आयरन, कैल्सियम और सिलिका होता है. चाय में मौजूद आयरन लाल रक्त कोशिकाओं को बनने में मदद करता है. कैल्सियम और सिलिका स्वस्थ हड्डियों, बालों, नाखूनों व दांतों के लिए बहुत जरूरी है.
  • हर्बल चाय में फ्लोराइड होता है, जो हमारी ओरल हैल्थ को सुधारता है और दांतों को सड़ने से बचाता है.
  • हर्बल चाय स्ट्रैस लैवल को कम कर के बौडी को रिलैक्स करती है. यह चिंता, अनिद्रा रोग में फायदेमंद है, साथ ही प्रारंभिक संक्रमण को भी दूर करती है.
  • आज हाई ब्लडप्रैशन अधिकांश लोगों की समस्या है. हाई ब्लडप्रैशर से गुरदों और दिल पर बुरा प्रभाव पड़ता है. हर्बल चाय प्राकृतिक तरीके से बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के हाई ब्लडप्रैशर को नियंत्रित रखने में मदद करती है.
  • हर्बल चाय डायबिटीज, मोटापा और कोलैस्ट्रौल के स्तर को संतुलित करने और पेट के आसपास की चरबी को कम करने में भी प्रभावी होती है.

बहुत वैराइटी में है उपलब्ध

हर्बल चाय भी कई अलगअलग फ्लेवर में उपलब्ध है, जैसे, अदरक, लैमन ग्रास, पिपरमिंट, कैमोमाइल, लैवेंडर, दालचीनी इलायची, लौंग इत्यादि. कई कंपनियों ने वजन कम करने के उद्देश्य को ध्यान में रख कर भी स्पैशल हर्बल चाय तैयार की है. आप अपनी पसंद व जरूरत के अुनसार इस का चुनाव कर सकती हैं.

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अकसर महिलाएं दिन में 3 बार हर्बल चाय पीना शुरू कर देती हैं ताकि वजन जल्दी कम हो जाए, लेकिन ऐसा करना हैल्थ के लिए नुकसानदायक है.

डाइटिशियन अंकिता सहगल कहती हैं, ‘‘हर्बल चाय लेने का सब से सही समय खाना खाने के बाद है. मगर ज्यादातर महिलाएं खाली पेट ले लेती हैं, उन्हें लगता है कि खाली पेट लेने से वजन जल्दी कम होगा. आप ऐसी गलती न करें, क्योंकि ऐसा करने से आप फिट नहीं, बल्कि कमजोर हो जाएंगी. इसलिए संतुलित आहार के साथ हर्बल चाय लें.’’

आखिरी खत- भाग 5 : राहुल तनु को इशारे में क्या कहना चाह रहा था

तनु के ऐसा कहते ही राहुल उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘उस ने कहा था, ‘मैं अब तक अपनी ही परिक्रमा कर के खुद को अपने अंकुश से बाहर महसूस करती रही. आप ने निर्विकार भाव से छू कर, मु झे जिंदा होने का एहसास दिला कर, मेरी कोख में पलते मेरे बच्चे के लिए संघर्ष करने की शक्ति का संचार किया है, यही आशीष ले कर जा रही हूं,’ यह सुन कर मैं निश्ंिचत हो गया था.’’

था. पता नहीं क्यों3 माह पहले जब राहुल अहमदाबाद गया था तब शकुन से हुई मुलाकात के दौरान पता चला कि शकुन को पीलिया हो गया  शकुन के मन में भय समा गया था कि वह अधिक दिन नहीं जी सकेगी. राहुल ने उसे आश्वस्त किया भी था कि वह अंकिता को अपनी अमानत सम झ, संरक्षित कर के उस का हक उसे दिलाने का यत्न करेगा.

सबकुछ सुनने के बाद तनु ने निश्चयात्मक स्वर में कहा, ‘‘आप जितनी जल्दी हो सके, अंकिता को ले कर आ जाओ.’’

यह सुन कर राहुल उसे अपलक निहारता रहा, फिर प्यार से बोला, ‘‘मु झ पर शक कर के गलती के लिए प्रायश्चित्त करने का तुम्हारे मन में खयाल तो नहीं आ गया? क्योंकि गलती का एहसास होने पर तुम खुद को सजा देती हो. तनु, हम प्रकाश के मातापिता से मिल कर, अंकिता की जिम्मेदारी उन्हें सौंप कर उसे उस का हक भी दिला सकते हैं, तब तक तो तुम उसे संभाल सकती हो न?’’

यह सुन कर तनु के चेहरे पर चमक आ गई. उस ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘शकुन की बेटी को अपनाने का निर्णय मेरी गलती का प्रायश्चित्त या सजा नहीं है, बल्कि अंकिता की जिंदगी को समाज के किसी अंधेरे कोने में खो जाने से बचाने के लिए है. मैं नहीं चाहती कि उस की मां की तरह उस का भी बचपन कड़वाहट, अकेलेपन और खामोशी से गुजरे, क्योंकि शकुन के आखिरी खत के मुताबिक प्रकाश के मातापिता अंकिता को अपनाने के पक्ष में इसलिए नहीं हैं क्योंकि वह वंशवारिस नहीं है, वह एक लड़की है.’’

फिर तनु ने राहुल को शकुन का लिखा वह आखिरी खत दिया, जिसे पढ़ कर राहुल ने सोचा कि पते में लिखा घर का गलत नंबर, उस घर के लोगों के बाहर रहने की वजह से पत्र का देर से मिलना, सुमेधा द्वारा उपजाए गए निराधार संशय, इन सब ने मिल कर तनु के मन को तो मथ ही डाला होगा. वह अकुलाए स्वर में बोला, ‘‘इस सप्ताह शुरू हुई डाक विभाग की हड़ताल में यह खत यदि कहीं खो जाता तो क्या होता, तनु?’’

तनु की गीली पलकें पलभर को फड़फड़ाईं, फिर वह बोली, ‘‘राहुल, प्यार से पहले हमारे बीच दोस्ती का खुशनुमा रिश्ता जुड़ा था और दोस्ती में ‘अहं’ कभी आड़े नहीं आता. मैं तुम से सचाई जानने का निर्णय पहले ही ले चुकी थी और उसी वक्त बाबूजी ने शकुन का खत मु झे दिया.’’

तनु की आंखों में  िझलमिलाते आंसुओं में अपना प्रतिबिंब निहारते हुए राहुल ने पूछा, ‘‘काश, यह प्रयास यदि तुम ने पहले किया होता तो तुम्हें इतनी मानसिक यातना तो नहीं  झेलनी पड़ती.’’

इतना कह कर राहुल ने तनु का माथा चूम लिया.

अपने माथे पर राहुल के अधरों के हलके से स्पर्श से तनमन पर छाती आत्मीयता की महक को महसूस करती हुई तनु बोली, ‘‘मैं ने कहीं पढ़ा था कि मानसिक यातना के क्षणों में हम अपने भीतर जीते हैं और ऐसे ही क्षणों में मु झे इस सचाई का बोध हुआ कि शादी के बाद ‘प्यार’ का अर्थ बहुत व्यापक हो जाता है. हम दोनों ने मिल कर जो सुख, स्वप्न, आकांक्षाएं संजोई थीं, उस सहजीवन में कोई भी समस्या बड़ी नहीं हो सकती है. जैसे भी हो, शकुन के आखिरी खत ने हमारी राहों को ज्यादा समतल बना दिया.’’

 

संपादकीय

चीन की सरकार को यूं तो अपनी सफलता पर गर्व करना चाहिए पर जिस तरह से वह व्यवहार कर रही है, लगता है कि उसे भविष्य की गहरी ङ्क्षचता है कि पिछले 20-25 सालों की प्रगति की दर बनी रह सकेगी या नहीं. इन 20-25 सालों में कम्युनिस्ट आवरण ओढ़े हुए भी चीन ने बेहद कैपिटलिस्ट छूटें दी हैं और वहां न केवल कुछ द्वारा अथाह संपत्ति जमा की गई, सरकार के शिकंजों के बावजूद रिश्वतखोरी जम कर पनती है. अमीर बेहद अमीर हुए हैं और उन्होंने एक छत्र राज करने वाली पार्टी की आलोकचंकित सरकार की नाक के नीचे बड़ी मनमानी करने में सफलता पाई है.

पिछले महिनों में चीन की बीङ्क्षजग सरकार ने अपने फौलादी हाथ बहुत सी गरदनों पर डालने शुरू किए है. अलीबाबा जैसी ईकामर्स कंपनियों के मुखियाओं को बंद किया गया है या गहरी जांच पड़ताल की जा रही है. सोशल मीडिया कंपनियां जैसे टिकटौक और वी चैट की कार्य पद्धति को जांचा जा रहा है.

टैक्नोलौजी के जरिए पैसे को इधर से उधर भेजने और निवेश करने की कंपनियां सरकार की निगाहों में हैं. नरेंद्र मोदी क्लबों की तरह वहां सोशल मीडिया से पैदा हुए सैलिब्रिटियों के बनाए गए फैन क्लबों को बंद करा जा रहा है क्योंकि वे एक तरह से कम्युनिस्ट पार्टी का पर्याय बन रहे हैं.

वहां चीन में भी ऐसे उद्योगपतियों की कमी नहीं है जो नाममात्र का टैक्स देकर मोटा मुनाफा बना रहे हैं. यह बिमारी अमेरिका से आई है और टैक्स ले कर देशों में पैसा जमा करने की हिम्मत चीनी कंपनियों में भी पनप गर्ई है. इन पर अंकुश लगाया गया है.

अपने बच्चों के भविष्य को तय करने के लिए चीन में भारत की तरह कोङ्क्षचग व्यवसाय खरबों डालरों का हो गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां बन गई हैं. इसी तरह बच्चों और युवाओं के माध्यम से पैसा निगलने वाली कंप्यूटर गेम्स बनाने वाली कंपनियां हर रोज मोटी होती जा रही हैं. इन पर रोकटोक लग रही है.

हाईटैक का इस्तेमाल कर के सोशल मीडिया पर लोगों को खास उत्पादन खरीदने के लिए उकसाने वाले कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करने वाली कंपनियां अब सरकारी शिकंजे में है. रीयल एस्टेट यानी भवन निर्माण के क्षेत्र में पैसा लगवा कर भाग जाने वालों की कमी चीन में भी नहीं है. आम लोगों की गाढ़ी बचत के हड़प जाना या बर्बाद कर देना एक आम बात हो गई है.

इन सब कदमों का मतलब है कि सरकार ने जो प्रेस पर प्रतिबंध लगा रखे थे उस से अंत में कोई लाभ नहीं हुआ और खुराफातियों की गिनती वैसी की वैसी ही है. चीनी कम्युनिस्ट राज ने देश के औद्योगिक राह पर तो चला कर सफल बना दिया पर मूल मानवीय प्रवृत्ति को नहीं बदल पाया.

चीन अपनी विशाल जनसंख्या के बलबूते पर सफल हुए पर इसी कुशल, शिक्षित व धर्मों के जंजाल में नहीं फंसी जनता को लूटने में वहां के सरगनों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है.

भारत के लिए यह सबक नहीं है क्योंकि हमारी सरकार तो दूसरे विध्वंस में लगी है. धर्म का नाम लेकर वह मंदिर निर्माण करा सकती है, लाखों को सडक़ों पर लाकर पूजापाठ करा सकती है, ङ्क्षहदू मुसलिम विवाद की आग भडक़ा सकती है पर उत्पादन नहीं बढ़वा सकती. उस से सरकारी कंपनियां ही नहीं चल रही हैं और धर्मकर्म में लगे लोग इन्हे बेच कर मंदिरों के गुंबदों पर सोना मढ़वाने की योजनाएं बनाने में लगे हैं.

देश के लोगों की आॢथक स्थिति मजबूत हो, उस के लिए चीन की सरकार तक ङ्क्षचतित है जब वह महाशक्ति बन चुका है. हम भूखे नंगे हैं पर हमें सुधार के नाम पर पैट्रोल गैस के दाम बढ़ाने से फुरसत नहीं है.

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