लेखक-डा. आरएस सेंगर

खस यानी पतौरे जैसी दिखने वाली वह ?ाड़ीनुमा फसल, जिस की जड़ों से निकलने वाला तेल काफी महंगा बिकता है. इंगलिश में इसे वेटिवर कहते हैं. खस एक ऐसी फसल है, जिस का प्रत्येक भाग (जड़पुआल) फूल आर्थिक रूप से उपयोगी होता है. खस के तेल का उपयोग महंगे इत्र, सुगंधीय पदार्थ, सौंदर्य प्रसाधनों व दवाओं में होता है. तेल के अतिरिक्त खस की जड़ें हस्तशिल्प समेत कई तरह से काम आती हैं. साल में 60-65 हजार रुपए की लागत से प्रति एकड़ डेढ़ लाख रुपए तक की खस से कमाई हो सकती है. यह एक ऐसी फसल है, जो काफी कम लागत और मेहनत में किसानों को मोटा मुनाफा देती है.

खस की खेती को किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा शुरू किए गए ‘एरोमा मिशन’ के तहत पूरे देश में कराया जा रहा है, इस की खेती उन इलाकों में भी हो सकती है जहां पानी की किल्लत है और उन स्थानों में भी, जहां वर्षा के दिनों में कुछ समय के लिए पानी इकट्ठा हो जाता है यानी खस की खेती हर तरह की जमीन, मिट्टी और जलवायु में हो सकती है. भारत और बाकी देशों में खस के तेल की मांग को देखते हुए इस की खेती का दायरा भी तेजी से बढ़ा है. गुजरात में भुज और कच्छ से ले कर तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और उत्तर प्रदेश तक में इस की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. खस की खेती को बढ़ावा देने, नई किस्मों के विकसित करने के साथ ही सीमैप ने पेराई की गुणवत्तायुक्त तकनीक भी विकसित की है,

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