Parenting Story in Hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं हैं सरिता की 10 Best Romantic Story in Hindi 2021. इस कहानियों में मां बाप के प्यार और बच्चों की कई कहानियां हैं, जिसमें हम बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर आपका बच्चा भी गलत रास्ते पर जानें लगता हैं तो उसे कैसे संभाला जा सकता है. तो पढ़िए सरिता कि Top 10 Best Parenting Story in Hindi
- मां- बाप से बेरुखी, आखिर क्यों
पता नहीं क्या हो गया है आजकल के बच्चों को, मांबाप की इज्जत करना तो जैसे वे भूल ही गए हैं. हर समय फोन पर, फेसबुक पर लगे रहना, दोस्तों को ही सबकुछ समझना, उन से ही हर बात शेयर करना, कुछ भी पूछो तो पहले तो जवाब ही नहीं देते और अगर दिया भी तो सिर्फ हां या ना में, और अगर कुछ और ज्यादा पूछ लिया तो जवाब मिलता है, ‘आप को क्या मतलब’, ‘जब आप को कुछ पता नहीं तो बोलते ही क्यों हो,’ बातबात पर चीखनाचिल्लाना, गुस्सा करना, गलत भाषा का प्रयोग करना उन के व्यवहार में शामिल हो गया है. रिश्तों का सम्मान और मानमर्यादा जैसे शब्द तो मानो उन की डिक्शनरी में हैं ही नहीं. हाल ही में अमेरिका में हुई एक रिसर्च में भी पाया गया कि पिछले 30-40 वर्षों की अपेक्षा आज के बच्चे अधिक उपद्रवी हो गए हैं.
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2. मां-बाप की डांट से खुदकुशी क्यों
कई लड़का इम्तिहान में कम अंक लाने की वजह से पिता से डांट खाने के बाद किसी पुल से नदी में छलांग लगा रहा है. किसी लड़के की मोटरसाइकिल या स्मार्ट फोन की फरमाइश पूरी करने से पिता ने मना कर दिया तो वह सल्फास की गोली खाने में जरा भी देरी नहीं करता है. लड़की के चक्कर में पड़ कर पढ़ाई पर ध्यान नहीं देने के लिए जब मांबाप किसी बच्चे को फटकार लगाते हैं तो कोई अपार्टमैंट की छत से कूद कर जान देता है तो कोई ट्रेन के आगे कूद कर. मांबाप की डांट से आहत या नाराज हो कर और बातबेबात खुदकुशी करने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं.
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3. बेहतर भविष्य के लिए जिंदगी खोते बच्चे
घर में घुसे बाजार और इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने छोटे परिवारों को ऐसे बड़े घरों के सपने दिखाए हैं जिन में सुखसुविधाओं के सभी संसाधन भरे हों. फिर अब तो घर से ले कर मोबाइल फोन तक लोन पर मिलने लगे हैं. ईएमआई ने हर घर में सेंध लगा दी है. कर्ज लेना अब गरीब होने की निशानी नहीं रह गया है, बल्कि स्टेटस सिंबल है कि फलां दंपती अपने 3+1 बीएचके फ्लैट के लिए 50 हजार रुपए की ईएमआई भर रहा है.
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4. बच्चे अलग सोएं या मां बाप के साथ
बच्चों में शुरू से ही अलग सोने की आदत डालनी चाहिए. इस से कई लाभ होते हैं. बच्चे के अलग सोने से मां का स्वास्थ्य ठीक रहता है. मां आराम से सो लेती है. बच्चा भी पूरे बिस्तर पर करवट ले कर सो सकता है. अत: दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है. आए दिन डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता. इस के विपरीत बच्चे के मां के साथ सोने से मां को बराबर यह चिंता बनी रहती है कि कहीं बच्चे का हाथ या पैर उस के शरीर के नीचे न दब जाए.
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5. हिंसक बच्चों को चाहिए मनोवैज्ञानिक सलाह, वरना हो सकता है नुकसानन
बच्चों में पनपती हिंसात्मक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार कौन है? यह पूछे जाने पर जितेंद्र नागपाल का कहना है, ‘‘हिंसा के लिए तीन-चौथाई दोषी मैं उनके माता-पिता और पारिवारिक माहौल को मानता हूं. बाकी 25 प्रतिशत फिल्में,टेलीविजन और आपका आतंकवादी माहौल जिम्मेदार है.
‘‘सब से बड़ी बात है कि अभिभावक अपने बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को छिपाते हैं या अपने स्तर पर ही समझा-बुझा कर मामला रफादफा करना चाहते हैं. वह यह मानने को कतई तैयार नहीं होते कि उन का बच्चा किसी मानसिक रोग से पीडि़त है और उसे मनोचिकित्सक की सलाह की जरूरत है, जबकि बच्चों में पनपती इस हिंसा को रोकने के लिए उन्हें मनोचिकित्सा की जरूरत होती है. दंड देना या जलील करना उन्हें और ज्यादा आक्रामक बना जाता है.
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6. बिगड़ैल बच्चों पर लगाम लगाना जरूरी
रिसर्च के मुताबिक, छोटे बच्चे जो बादशाही जीवन व्यतीत करने लगते हैं, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16 फीसदी कम जोखिम उठाते हैं. ऐसे बच्चे न कोई प्रतियोगिता करना चाहते हैं, न उन्हें अपनी तुलना करना पसंद है. ऐसे बच्चों को बस जो मुंह से निकला वह हाथ पर होना चाहिए. ऐसे बच्चे पूरी तरह से अपने पेरैंट्स पर ही निर्भर व हावी हो जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्वार्थी होते चले जाते हैं. बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं, उसे आप जिस सांचे में ढालेंगे वैसा ही उसे रूप व आकार मिलेगा. बचपन में आप अगर बच्चे को स्पैशल फील कराएंगे तो वह जीवनभर बादशाही जीवन जीने की सोचेगा. छोटा बच्चा होने तक तो आप उस की हर डिमांड पूरी करने को तैयार हो उठेंगे लेकिन उस के बड़े होने पर आप को कभी न कभी अपनी आज की गलती का एहसास जरूर होगा. इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप बचपन से ही बच्चे को ज्यादा छूट न दें. ऐसा भी नहीं कि उस के साथ आप सख्ती बरतनी शुरू कर दें.
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7. मासूम बच्चों पर पड़ता पारिवारिक झगड़ों का असर
मनोविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि परिवार और मातापिता के झगड़ों के बीच बच्चे पिसते ही नहीं, बल्कि घुटते भी रहते हैं. हजारों ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं और बच्चे सहमे और घुटते रहते हैं. एक वाकेआ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि रांची के एक पतिपत्नी की लड़ाई का मामला उन के पास आया था. घर वाले दोनों के झगड़े से तंग आ कर दोनों को काउंसलिंग के लिए मेरे पास लाए थे. उन के 2 बच्चे भी उन के साथ आए थे.
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8. जी हां…बच्चे भी करते हैं मां-बाप पर अत्याचार
बच्चे को यह नुस्खा बड़ा कारगर लगा. डांटने का सारा सिलसिला खत्म और मौजमस्ती करने की पूरी छूट. अगर कोई डांटे तो 911 पर कॉल कर पुलिस को बुला लो. किसी बच्चे को माता-पिता अथवा टीचर द्वारा थप्पड़ मारने पर उन को जेल हो जाना यहां के लोगों के लिए आम बात है, लेकिन हमारे जैसे भारतीय परिवारों के लिए मुसीबत का वारंट.न
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9. सिंगल चाइल्ड : अकेलेपन और असामाजिकता के शिकार बच्चे
7 साल का आर्यन घर का इकलौता बच्चा है. वह न नहीं सुन सकता. उस की हर जरूरत, हर जिद पूरी करने के लिए मातापिता दोनों में होड़ सी लगी रहती है. उसे आदत ही हो गई है कि हर बात उस की मरजी के मुताबिक हो. हालात ये हैं कि घर का इकलौता दुलारा इस उम्र में भी मातापिता की मरजी के मुताबिक नहीं, बल्कि मातापिता उस की इच्छा के अनुसार काम करने लगे हैं. कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि हद से ज्यादा लाड़प्यार और अटैंशन के साथ पले इकलौते बच्चों में कई तरह की समस्याएं जन्म लेने लगती हैं. ‘एक ही बच्चा है’ यह सोच कर पेरैंट्स उस की हर मांग पूरी करते हैं. लेकिन यह आदत आगे चल कर न केवल अभिभावकों के लिए असहनीय हो जाती है बल्कि बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती है.
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10. अब नहीं मिलते हिटलर पापा
घर का स्वामी जो पैसा कमा कर लाता है और जो घर को चलाता है उस को ले कर सब के अंदर एक डर सा बना रहता. पितारूपी इंसान कहीं नाराज न हो जाए, इस डर से कोई खुल कर हंसखेल नहीं सकता था. अपने मन की बात नहीं कह सकता था, कोई इच्छा प्रकट नहीं कर सकता था, घर के किसी मामले में अपनी राय नहीं रख सकता था. मां भी किसी चीज की जरूरत होने पर दबीसहमी जबान में पिताजी को बताती थी. अधिकतर इच्छाएं तो उस के होंठों पर आने से पहले ही दम तोड़ देती थीं. पिताजी की हिटलरशाही के आगे पूरा घर सहमा रहता था. जो पिताजी ने कह दिया, वह बस पत्थर की लकीर हो गई. पिताजी ने कह दिया कि लड़के को डाक्टर बनाना है तो फिर भले लड़के का पूरा इंट्रैस्ट संगीत में क्यों न हो, उसे डाक्टरी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में पूरी जान लगानी पड़ती थी.
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