अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने बच्चों के व्यवहार पर एक मजेदार रिसर्च की. रिसर्च में नीदरलैंड के 565 बच्चों और उन के पेरैंट्स पर अध्ययन किया गया. डेढ़ साल तक चले इस सर्वे में पाया गया कि जिन बच्चों के मातापिता उन्हें स्पैशल होने का एहसास कराते हैं कि तुम मेरे लिए स्पैशल हो या मेरा बच्चा बैस्ट है, ऐसे बच्चों में ज्यादा स्वार्थी व अहंकारी होने की आशंका रहती है. इस रिसर्च को करने का मकसद लोगों में होने वाली अत्यधिक स्वार्थ की वजहों को तलाशना था. ‘एक परिवार, एक बच्चा’ नीति चीन में 1979 से लागू हुई थी. चीन के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, एक बच्चे वाले परिवार में बच्चे बहुत ज्यादा लाड़प्यार मिलने से बिगड़ने लगे और एक तरह से देखा जाए तो वे बादशाही जीवन बिताने लगे. इस नीति का यहां की जनता पर मनोवैज्ञानिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. बता दें कि परिवार में अकेले पलेबढ़े होने के कारण ये बच्चे बेहद स्वार्थी होते हैं और किसी भी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहते. अमेरिकी पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित लेख में यह जानकारी दी गई है.

रिसर्च के मुताबिक, छोटे बच्चे जो बादशाही जीवन व्यतीत करने लगते हैं, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16 फीसदी कम जोखिम उठाते हैं. ऐसे बच्चे न कोई प्रतियोगिता करना चाहते हैं, न उन्हें अपनी तुलना करना पसंद है. ऐसे बच्चों को बस जो मुंह से निकला वह हाथ पर होना चाहिए. ऐसे बच्चे पूरी तरह से अपने पेरैंट्स पर ही निर्भर व हावी हो जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्वार्थी होते चले जाते हैं.  बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं, उसे आप जिस सांचे में ढालेंगे वैसा ही उसे रूप व आकार मिलेगा. बचपन में आप अगर बच्चे को स्पैशल फील कराएंगे तो वह जीवनभर बादशाही जीवन जीने की सोचेगा. छोटा बच्चा होने तक तो आप उस की हर डिमांड पूरी करने को तैयार हो उठेंगे लेकिन उस के बड़े होने पर आप को कभी न कभी अपनी आज की गलती का एहसास जरूर होगा. इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप बचपन से ही बच्चे को ज्यादा छूट न दें. ऐसा भी नहीं कि उस के साथ आप सख्ती बरतनी शुरू कर दें.

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संयुक्त परिवारों के खत्म होने और 1 या 2 बच्चों के चलन से अभिभावकों व बच्चों दोनों की परेशानियां बढ़ी हैं क्योंकि जो स्वस्थ माहौल व आपसी प्यार बच्चों को उन के बड़ों के बीच रह कर मिलेगा वैसा माहौल एकल परिवारों में होना संभव नहीं है. उन के बीच रह कर बच्चा कब बड़ा हो जाता है, यह भी पता नहीं चलता. अब अगर बच्चों को रोकाटोकी करो तो भी डर का भाव आता है कि बच्चा कहीं कुंठाग्रस्त न हो जाए. एक केसस्टडी में एक बाल मनोवैज्ञानिक के पास 6 साल का बच्चा रोहन आया. उसे डाक्टर के केबिन में रंगबिरंगे खिलौने व गुब्बारे मिले. डाक्टर ने उस बच्चे से खेलने को कहा. अब पहले बच्चे ने अपने पेरैंट्स की तरफ देखा और फिर वह खेलने गया. डाक्टर ने पूछा कि यह खिलौना तुम्हें पसंद आया तो वह बच्चा मुसकराया. यह देख उस की मां ने कहा कि यह खुश है क्योंकि इसे मनचाहा करने दिया गया. जब भी यह ज्यादा शरारत करता है तो मैं इसे डांटती व मारती हूं, इसलिए यह चुप सा हो गया है. रोहन की मम्मी की तरह आप भी बच्चे को इतना डरपोक न बना दें कि किसी बात को बच्चा अपने मन में ही दबा ले और आहत हो जाए कि वह हर काम को करने में डरने लगे. उसे आप को कोई नया काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और समयसमय पर उस का उत्साह भी बढ़ाना चाहिए.

क्यों होता है ऐसा

दादादादी नानानानी का प्यार : कभीकभी दादादादी या नानानानी का ज्यादा लाड़प्यार भी बच्चों को बिगाड़ने का काम करता है. सोनल अपने बेटे आयुष को दांत खराब होने के कारण चौकलेट नहीं दिया करती थी. उस ने आयुष को बड़े अच्छे उदाहरण के साथ चौकलेट न खाने के लिए मना भी लिया था लेकिन सोनल के औफिस जाते ही उस की दादी उसे चौकलेट दे दिया करती थीं. इस कारण आयुष के जब दूध के दांत टूट कर नए आए तो वे भी सारे खराब व कालेकाले निकले. सिर्फ यह उदाहरण ही मात्र नहीं है. कहने का मतलब यह है कि परिवार के हर सदस्य को बच्चे की परवरिश अच्छे ढंग व तरीके से करनी चाहिए. चोरीछिपे या पीठपीछे जिद पूरी करने की चाहत या आदत बच्चों को जिद्दी बना देती है. टीवी बना दोस्त : आजकल मैट्रो सिटीज की लाइफ और सोसाइटी या फ्लैट सिस्टम भी बच्चों को कहीं न कहीं बिगाड़ रहा है. इन जगहों पर रहने के कारण मांबाप बच्चों को घर से बाहर निकलने नहीं देते, दोस्तों के यहां जाने नहीं देते. ऐसे में बच्चे अपने एंटरटेनमैंट के लिए टीवी खोल कर बैठ जाते हैं. टीवी में भी बच्चों को कार्टून चैनल्स ही देखने होते हैं. कई पेरैंट्स तो बच्चों से रिमोट छिपा कर रखते हैं कि बच्चा चैनल चेंज न कर पाए या अगर गलती से रिमोट उस के हाथ लग गया तो आप फिर अपना मनपसंद सीरियल नहीं देख सकते. टीवी में आ रहे विज्ञापन देख कर बच्चे नई चीजों की डिमांड करने से भी नहीं थकते.

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स्टेटस की खातिर

अभिभावक बच्चों की हर गैरवाजिब मांग भी यह समझ कर पूरी कर देते हैं कि यह हमारे स्टेटस को मेंटेन करेगा. बच्चा किसी दोस्त के हाथों ऐक्स बौक्स सरीखी डिवाइस देखता है तो मातापिता से उसे खरीदने की जिद करता है. जबकि ऐसी गेमिंग डिवाइस से जुड़ी रिसर्च बताती हैं कि ज्यादा लाइव और बहुआयामी गेम्स बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति को जन्म देते हैं. गेम्स की दुनिया में खोए बच्चे असल जिंदगी में वैसा ही कंट्रोल चाहते हैं जैसा कंट्रोल वे चंद बटनों पर पा कर गेम ओवर में महारत हासिल करते हैं. इसी तरह, बच्चों को स्टेटस के नाम पर महंगे कपड़े, घड़ी, साइकिल, गैजेट्स या इलैक्ट्रौनिक कंप्यूटर, लैपटौप या आईपौड जैसी चीजें उन्हें बादशाही मिजाज से भर देती हैं. फिर वे बादशाह की तरह अपनी मनमरजी के मालिक बन किसी की भी सुनना पसंद नहीं करते. आज 5 से 15 साल के बच्चों के पास मोबाइल फोन्स व इंटरनैट का ऐक्सैस हासिल है. ब्रिटेन की एक सामाजिक संस्था की ताजा रिसर्च की मानें तो 8 से 15 साल के करीब 12 लाख बच्चे अपने मोबाइल फोन पर हिंसक व अश्लील सामग्री रखते व देखते हैं. जाहिर है यह मोबाइल का शाही शौक बच्चों से उन का बचपन छीन रहा है. दिलचस्प बात यह है कि यह रिसर्च बताती है कि ज्यादातर बच्चों ने बताया कि उन के अभिभावक उन्हें बिना किसी झिझक के मोबाइल देते हैं.

ऐसे में मातापिता को ही यह निर्णय लेना होगा बच्चों को स्टेटस या दूसरों की देखादेखी कौनकौन सी सुविधाएं दी जाएं और कौन सी सुविधाओं से उन्हें दूर रखा जाए. आंखें मूंद कर बच्चे की हर बात मानना कोई समाधान नहीं है. याद रहे, नाजुक उम्र में मासूम बच्चों को सहजता से मिलने वाली सहूलियतें व आजादी उन्हें बिगाड़ने में अहम रोल अदा करती है.

क्या करें और क्या न करें

बच्चों की बात जरूर सुनें : माना कि दिनभर काम कर थकहार कर आप जब घर पहुंचते हैं तो थोड़े आराम की जरूरत होती है. लेकिन चूंकि आप का बच्चा दिनभर से आप के आने का इंतजार कर रहा है तो उसे एकदम से झिड़किए मत, बल्कि उस समय उसे प्यार से समझा कर थोड़ी देर बाद उस की बात जरूर सुनें. उस के सवालों का बड़ी समझदारी व उदाहरणों के जरिए उत्तर दें. आराम करने के बाद आप उस से पूछें कि क्या बात है बेटा, बताओ. पूरी बात सुन कर थोड़ी देर उस के साथ खेलें और अच्छी बातें बताएं. आप के साथ व्यतीत किया आधा या एक घंटा उस को उस दिन के लिए तृप्त कर देगा.

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अच्छे काम के लिए हो देखादेखी

अगर आप का बच्चा दूसरों की देखादेखी किसी ऐसी चीज की डिमांड कर रहा है जो आप को उसे इस वक्त या सही उम्र का इंतजार करने पर ही दिलानी है तो उसे उदाहरण के जरिए समझाएं. कहते हैं बच्चों के साथ कभी तुलनात्मक बात या व्यवहार न करें. हां, अगर आप को अपनी बात मनवानी है तो आप को उसे प्यार से समझाना होगा. तभी आप की बात समझ कर वह बेतुकी चीजों की मांग करने से बच सकेगा. ऐसे ही, अगर आप जैसा व्यवहार घर में अपने बड़ों से करेंगे वैसा ही व्यवहार बच्चा आप के साथ करेगा.

इंतजार करना सिखाएं

देखा जाए तो कामकाजी अभिभावकों का बच्चा इंतजार करना बखूबी जानता है लेकिन फिर भी इंतजार करना सिखाने से उस के अंदर सहनशीलता आएगी जैसे आप ने टीवी पर प्रसारित हो रहे मच्छरों को दूर भगाने के एक विज्ञापन में देखा होगा कि बच्चा अपने जन्मदिन पर बैठा दोस्तों का इंतजार कर रहा होता है. वह एकदम से बतलाता है कि पापा, देखो न. उस के पापा उसे थोड़ी देर चिंतन करने के लिए कहते हैं. और उस के दोस्त आ जाते हैं. ठीक ऐसे ही किसी का इंतजार कर रहे बच्चे का ध्यान उस बात से हटा कर दूसरे कामों में लगा दीजिए.

बच्चा जब रोए तो क्या करें

बच्चा अगर किसी दर्द या अपनी परेशानी के कारण रो रहा है तो आप उस की फौरन मदद करें. उस से पूछें कि आखिर वह क्यों रो रहा/रही है. लेकिन बच्चा अगर अपनी जिद या बात मनवाने के लिए रो रहा है तो आप उस से थोड़ी देर के लिए दूर हो जाएं क्योंकि कुछ बच्चों को रोने की नहीं बल्कि रोने की आवाज निकालने की आदत होती है. ऐसे बच्चों के आंख से एक आंसू नहीं टपकता और वे बस अपनी बात मनवाने के लिए ऐसा करते हैं.

सीमा रेखा होना अनिवार्य

ध्यान रखें बच्चे पर इकलौते होने का टैग मत लगाएं. इकलौता समझ पेरैंट्स बच्चों की हर इच्छा, मुंह से निकली महंगी से महंगी डिमांड पूरी करते रहते हैं. कुछ पेरैंट्स तो रिजल्ट से खुश हो कर कहते हैं कि मांग बेटा/बेटी, तुझे क्या चाहिए. बच्चों की शुरू से ही उन की सीमाएं तय होनी चाहिए. अगर पहले से आप उस को बता देंगे तो वह समय रहते सही और गलत चीजों में अंतर करना सीख जाएगा.

अपनी बात पर रहें अडिग

बच्चे जब छोटे हों तभी उन की सीमाएं तय होनी चाहिए. ऐसा करने से बच्चा स्पष्ट रूप से समझ जाएगा कि उस की लिमिट कहां तक है. ऐसे बच्चों का व्यवहार काफी संतुलित हो जाता है. ऐसे बच्चे शरारत जरूर करते हैं पर उसे जिद या बदतमीजी नहीं कहेंगे. बच्चों की सीमाएं ऐसी हों, जैसे किसी को मारो मत, बड़ों का आदर करो, अपनी चीजों का ध्यान रखो, किसी अनजान से बात मत करो, उस का दिया खाओ मत, बड़ों के बीच में मत बोलो, अपनी चीजें जगह पर रखो, होमवर्क टाइम पर करो आदि. अगर बच्चा आप के सामने जिद को पूरा करने के लिए रोएचिल्लाए, जमीन पर लेट कर लोटपोट हो तो आप उस की तरफ ध्यान ही न दें. थोड़ी देर बाद उस की हरकतों में कमी आ जाएगी. शांत हो जाने पर उसे उस की गलती का एहसास कराएं व प्यार से बहलाएं.

मदद व शेयरिंग करना सिखाएं

घर में अगर पेरैंट्स का अपने बड़ों, रिश्तेदारों व आमजन से सहयोगात्मक रवैया है तो बच्चा भी आप को देख कर ऐसा ही करने लगेगा. जानेअनजाने ही सही, पर पेरैंट्स अपनी कुछ अच्छी चीजें बच्चों को अपनेआप ही समझा देते हैं. वहीं, बच्चों में शेयरिंग का भाव भी बेहद जरूरी है. आजकल अकेले रहने की वजह से ज्यादातर बच्चे अपनी चीजें किसी दूसरे बच्चे को देना पसंद नहीं करते. कुछ बच्चे तो दूसरों का सामान ले कर उसे वापस देने से भी मना कर देते हैं – मांगने पर वे नहीं देते और जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं. ऐसे में आप घर में ही खाने से ले कर उस के पहननेओढ़ने तक व घूमने से ले कर उस के खिलौने तक सभी की शेयरिंग कैसे व कब करनी चाहिए, सिखाएं. ऐसा करने के लिए बच्चे को अन्य बच्चों से संपर्क साधने के लिए या तो उसे कभी पार्क में घुमाने ले जाएं या उसे अपने दोस्तों के साथ कुछ वक्त बिताने दें. एकदूसरे बच्चों की ऐक्टिविटी को जज करतेकरते उस में भी वही चीज आ जाएगी.

शालीन आवाज

कभीकभी आप दूसरे के बच्चे के बोलने के तरीके से कितना प्रभावित हो उठते हैं कि घर आ कर उस की तारीफ करना नहीं भूलते पर आप को ऐसा ही अपने बच्चे से प्रभावित होना है तो आप भी उसे शुरू से ही धीरे व शालीनता से बात कहना सिखाएं. कब, कहां व कितना बोलना है, इस बात का उन्हें अच्छे से ज्ञान होना चाहिए. इसलिए शुरुआत से ही उन के सामने न तेज बोलें न उन्हें बोलने दें. आप ने ऐसे बच्चे भी बहुतेरे देखे होंगे जो बड़ों के बीच में अपनी घर की बात छेड़ देते हैं. इस से उन के पेरैंट्स को कैसा महसूस होता होगा. बस, यही फील आप को उन्हें भी समयसमय पर उदाहरणों सहित सिखाना पड़ेगा.

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