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संपादकीय
मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी
मैं ने जरा टोह ली तो मालिनी से ही ब्याह... ‘‘मेरे इतना भर कहने से ही वह परेशान सा इधरउधर देखता बात घुमाने की कोशिश सी.
भाग - 1
नए शहर में नई नौकरी के साथ विहाग ने शुरुआत तो कर दी थी मगर उसे यह नहीं पता था कि सरकारी क्वार्टर पाने के चक्कर में उस की जिंदगी ही पलट जाएगी. क्या हुआ था विहाग के साथ...’’
भाग - 2
विहाग को यहां कई टेबल पर प्रवचन मिले तो कुछ टेबल पर प्रौपर चैनल से गुजर कर काम निकालने में लगने वाले समय की भयावहता का अंदाजा.
भाग - 3
धर्मसंकट की घड़ी थी. बेमतलब बेवजह विहाग उस बाला से सवाल करता रहा ताकि अजीब सा लगने वाला यह वक्त कटे. आखिर इंजीनियर साहब आए.
भाग - 4
विहाग के तनबदन में आग लग गई, परेशान हो कर पूछा, ‘‘भाई लोग आप सब यहां कैसे?’’ तुरंत बात खींच ली हो जैसे, उन में से एक आदमी ने छूटते ही कहा,
भाग - 5
मैं समझ गई महाशय बड़े मासूम से टैक्निकल हैं, इन का रोमांस जीने की जुगत से शुरू हो कर इसी में खत्म हो जाता है. अगर मैं उस की जिंदगी में आ पाई तो तेलनून में ही फूलों की खुशबू पैदा कर दूंगी.
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