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प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरी गरीबों को पक्के मकान

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज यहां इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान में देश की आजादी के अमृत महोत्सव पर ‘न्यू अर्बन इण्डिया थीम’ के साथ केन्द्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय तथा नगर विकास विभाग, उ0प्र0 के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय आजादी@75 कॉन्फ्रेन्स-कम-एक्सपो का शुभारम्भ किया. इस अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने डिजिटल रूप से प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (पी0एम0ए0वाई0-यू) के तहत बनाये गये आवासों की चाबी उत्तर प्रदेश के 75 जिलों के 75 हजार लाभार्थियों को सौंपी. उन्होंने इस योजना के तहत लाभान्वित आगरा की श्रीमती विमलेश, कानपुर की श्रीमती रामजानकी पाल तथा ललितपुर की श्रीमती बबिता से संवाद भी किया.

प्रधानमंत्री जी ने स्मार्ट सिटी मिशन के अन्तर्गत आगरा, अलीगढ़, बरेली, झांसी, कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज, सहारनपुर, मुरादाबाद एवं अयोध्या में इंटीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सेन्टर, इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेन्ट सिस्टम एवं नगरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा अमृत मिशन के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न शहरों में उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा निर्मित पेयजल एवं सीवरेज की कुल 4,737 करोड़ रुपए की 75 विकास परियोजनाओं का लोकर्पण/शिलान्यास किया. साथ ही, उन्होंने जनपद लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, झांसी, प्रयागराज, गाजियाबाद और वाराणसी के लिए 75 स्मार्ट इलेक्ट्रिक बसों का डिजिटल फ्लैग ऑफ भी किया. उन्होंने आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के विभिन्न प्रमुख मिशनों के तहत क्रियान्वित 75 परियोजनाओं के ब्यौरे वाली एक कॉफी-टेबल बुक भी जारी की. प्रधानमंत्री जी ने लखनऊ के बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में श्री अटल बिहारी वाजपेयी पीठ का डिजिटल शुभारम्भ किया. उन्होंने कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शित की गयी दो लघु फिल्मों का अवलोकन भी किया.

इस अवसर पर अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरी गरीबों को बड़ी संख्या में पक्के मकान उपलब्ध कराए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वंचित वर्गाें के लोगों को पक्का आवास उपलब्ध कराने की यह विश्व की सबसे बड़ी योजना है. इस योजना के तहत निर्मित 80 प्रतिशत घरों की रजिस्ट्री महिलाओं के नाम पर की जा रही है या वे उसकी संयुक्त स्वामी हैं.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि पहले की तुलना में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्मित घरों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरों में 01 करोड़ 13 लाख से ज्यादा घरों के निर्माण को मंजूरी दी है. इसमें से 50 लाख से ज्यादा घर बनाकर, उन्हें गरीबों को सौंपा भी जा चुका है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि मेरे जो साथी, झुग्गी-झोपड़ी में जिंदगी जीते थे, उनके पास पक्की छत नहीं थी, ऐसे तीन करोड़ परिवारों को लखपति बनने का अवसर मिला है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निर्मित आवासों में बिजली, पानी, शौचालय इत्यादि की सुविधा दी जा रही है. उज्ज्वला योजना के तहत परिवार को निःशुल्क रसोई गैस कनेक्शन भी उपलब्ध कराया जा गया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब तक देश में लगभग 03 करोड़ घर बनाए गये हैं. इनकी कीमत करोड़ों रुपये में है. एक मकान की कीमत लाखों रुपये में है. इस प्रकार यह मकान पाने वाले लोग अब लखपति बन गये हैं.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि मौजूदा सरकार से पहले, उत्तर प्रदेश की पहले की सरकारों ने योजनाओं को लागू करने के लिए अपने पैर पीछे खींचे थे. उन्होंने कहा कि पिछली उत्तर प्रदेश सरकार को 18,000 से अधिक घरों को मंजूरी दी गई थी, किंतु उस समय 18 घरों का निर्माण भी नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ जी की वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद, 9 लाख से अधिक आवास इकाइयां शहरी गरीबों को सौंप दी गईं और 14 लाख इकाइयां निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं. ये घर आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2014 से पूर्व गरीबों के लिए निर्मित किये जाने वाले घरों के आकार की कोई स्थायी नीति नहीं थी. वर्ष 2014 में केन्द्र में नई सरकार बनने के बाद गरीबों के लिए निर्मित किये जाने वाले आवासों के आकार के सम्बन्ध में एक स्पष्ट नीति बनायी गयी. इस नीति में यह निर्धारित किया गया कि गरीबों के लिए बनाए जाने वाले घरों का आकार 22 वर्गमीटर से कम नहीं होगा. आज गरीबों को अपना घर निर्मित करने और उसका डिजाइन अपने ढंग से बनाने की आजादी है. उन्होंने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार के कार्यकाल के दौरान पी0एम0ए0वाई0 के तहत 01 लाख करोड़ रुपये की धनराशि गरीबों के बैंक खातों में ट्रांसफर की गयी है. उन्होंने कहा कि शहरों में मजदूरों को किराए के आवास उपलब्ध कराने की दिशा में भी कार्यवाही की गयी है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि शहरी मिडिल क्लास की परेशानियों और चुनौतियों को भी दूर करने के लिए केन्द्र सरकार ने काफी महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं. रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी यानि (रेरा) कानून ऐसा एक बड़ा कदम रहा है. इस कानून ने पूरे हाउसिंग सेक्टर को अविश्वास और धोखाधड़ी से बाहर निकालने में बहुत बड़ी मदद की है, सभी हितधारकों की मदद की है तथा उन्हें सशक्त बनाया है.

एल0ई0डी0 स्ट्रीट लाइट के उपयोग का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि इनके लगने से शहरी निकायों के हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये बच रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब ये राशि विकास के दूसरे कार्यों में उपयोग में लाई जा रही है. उन्होंने कहा कि एल0ई0डी0 ने शहर में रहने वाले लोगों का बिजली बिल भी बहुत कम किया है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि भारत में पिछले 6-7 वर्षों में शहरी क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन प्रौद्योगिकी से आया है. उन्होंने कहा कि देश के 70 से ज्यादा शहरों में आज जो इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर चल रहे हैं, उसका आधार टेक्नोलॉजी ही है. उन्होंने अपनी संस्कृति के लिए मशहूर लखनऊ शहर का उल्लेख करते हुए कहा कि लखनऊ की ‘पहले आप पहले आप’ की तहजीब की तर्ज पर आज हमें ‘प्रौद्योगिकी पहले’- टेक्नोलॉजी फर्स्ट’ कहना होगा.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत रेहड़ी-पटरी वालों को, स्ट्रीट वेंडर्स को बैंकों से जोड़ा जा रहा है. इस योजना के माध्यम से 25 लाख से ज्यादा लाभार्थियों को 2,500 करोड़ रुपये से अधिक की मदद दी गई है. इसमें भी उत्तर प्रदेश के 07 लाख से ज्यादा लाभार्थियों ने प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना का लाभ लिया है. कोरोना काल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में स्ट्रीट वेण्डर्स को इस योजना का भरपूर लाभ मिला. प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत आज उत्तर प्रदेश के 02 जनपद लखनऊ एवं कानपुर देश में टॉप पर हैं. उन्होंने डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए वेण्डरों की सराहना की.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आज मेट्रो सर्विस का देश भर के प्रमुख शहरों में तेजी से विस्तार हो रहा है. वर्ष 2014 में, मेट्रो सेवा 250 किलोमीटर से कम रूट की लंबाई पर चलती थी, आज मेट्रो लगभग 750 किलोमीटर रूट की लंबाई में चल रही है. उन्होंने कहा कि देश में अभी लगभग 1,050 किलोमीटर से ज्यादा मेट्रो ट्रैकों पर काम चल रहा है. उत्तर प्रदेश के 06 शहरों में मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हो रहा है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि लखनऊ ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के रूप में एक विजनरी, मां भारती के लिए समर्पित राष्ट्रनायक देश को दिया है. उन्होंने कहा कि आज उनकी स्मृति में, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी में अटल बिहारी वाजपेयी पीठ की स्थापना की जा रही है. उन्होंने कहा कि अटल जी ने देश के त्वरित विकास के लिए अवस्थापना एवं सड़कों के विकास पर विशेष बल दिया. उनकी अवधारणा थी कि प्रदेश के सभी जनपदों को अच्छे सड़क मार्गाें से जोड़ा जाए.

इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश की सबसे बड़ी आबादी के राज्य उत्तर प्रदेश के लिए शहरीकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में प्रदेश में गतिमान विभिन्न विकास योजनाओं से शहरी परिवेश को बदलने एवं प्रत्येक नागरिक के जीवन में व्यापक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सफलता प्राप्त हुई है. प्रदेश सरकार ने विगत साढ़े चार वर्षाें में शहरीकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में नए भारत का नया उत्तर प्रदेश अपनी पहचान स्थापित कर रहा है. प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के विकास पर निरन्तर बल दे रही है. मार्च, 2017 से पूर्व उत्तर प्रदेश में 654 नगरीय निकाय थे. प्रदेश सरकार ने 25 हजार से अधिक आबादी के राजस्व ग्रामों को नगरीय क्षेत्र में शामिल करते हुए नगरीय निकायों की संख्या बढ़ाकर 734 कर दी है. ताकि अधिक से अधिक जनसंख्या को शहरी विकास की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हो सकें.

वर्ष 2014 से प्रारम्भ स्वच्छ भारत मिशन नारी गरिमा की रक्षा के साथ ही स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार करने में मील का पत्थर साबित हुआ है. स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्य सरकार ने युद्धस्तर पर कार्य किये हैं. प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 02 करोड़ 61 लाख से अधिक व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण हुआ है. इसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश शत-प्रतिशत ओ0डी0एफ0 हो गया. केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा 6,73,649 व्यक्तिगत घरेलू शौचालय तथा 51,524 सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालय निर्मित किये गये. वर्ष 2017 के पूर्व प्रदेश में ओ0डी0एफ0 शहरों की संख्या मात्र 15 थी. जबकि वर्तमान में 652 नगरीय निकाय ओ0डी0एफ0, 595 नगरीय निकाय ओ0डी0एफ0 प्लस तथा 30 नगरीय निकाय ओ0डी0एफ0 प्लस-प्लस घोषित किये जा चुके हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आजादी के बाद हर गरीब का यह सपना था कि उसका खुद का एक पक्का मकान हो. प्रधानमंत्री जी की संवेदनशीलता व उनके नेतृत्व का परिणाम है कि आज देश में गरीब व्यक्ति बिना भेदभाव के पारदर्शी व्यवस्था के साथ पक्के मकान प्रदान किये जा रहे हैं. प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार के सहयोग से प्रदेश के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के 42 लाख परिवारों को निःशुल्क पक्के आवास उपलब्ध कराये हैं. प्रदेश के शहरी क्षेत्र के 17 लाख परिवारों को पक्के आवास की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है, जिसमें 09 लाख आवास पूर्ण हो चुके हैं और आज प्रधानमंत्री जी की उपस्थिति में 75 हजार आवासों में गृह प्रवेश कराया गया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हाउसिंग कंस्ट्रक्शन को नई दिशा दिखाने वाली लाइट हाउस परियोजना के लिए देश के 06 चयनित नगरों में प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी शामिल है. लाइट हाउस परियोजना के तहत नवीन तकनीक से सस्ते व अच्छे आवास निर्मित कराये जा रहे हैं. लखनऊ में गतिमान लाइट हाउस परियोजना के कार्याें को तेजी के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है. इस परियोजना के ज्यादातर आवासों को आवंटित किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि अमृत योजना के तहत 60 नगरीय निकायों में 11,421 करोड़ रुपए से अधिक की परियोजनाएं स्वीकृत की जा चुकी हैं.

इसके तहत पेयजल, सीवरेज, हरित क्षेत्र और पार्क विकसित किये गये हैं. इन परियोजनाओं से एक बड़ी शहरी आबादी को सुगम एवं अच्छे जीवन स्तर को प्राप्त करने में मदद मिलेगी. केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के 17 नगर निगमों में से 10 नगर निगमों को स्मार्ट सिटी मिशन में चयनित किया गया है. शेष 07 नगर निगमों को प्रदेश सरकार स्मार्ट सिटी बनाने का कार्य कर रही है. इस प्रकार प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों में स्मार्ट सिटी मिशन के कार्य क्रियान्वित किये जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं प्रभावी मार्गदर्शन में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को प्रदेश सरकार ने राज्य में नियंत्रित किया है. वैश्विक जगत ने आपके कोरोना नियंत्रण एवं प्रबन्धन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में अब तक 11 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं और लगभग 08 करोड़ लोगों के कोविड टेस्ट सम्पन्न कर चुके हैं. प्रदेश सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना से 07 लाख से अधिक स्ट्रीट वेण्डर्स को बैंकों से लोन उपलब्ध कराने में सफलता प्राप्त की है. आने वाले समय में 1.5 लाख स्ट्रीट वेण्डर्स को और जोड़ा जाएगा. इस योजना के लाभार्थियों के चयन तथा उन्हें ऋण उपलब्ध कराने में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी की सदैव यह मंशा रही है कि देश में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था बेहतर हो. इसी क्रम में, प्रधानमंत्री जी के कर कमलों से आज प्रदेश के 07 जनपदों के लिए 75 स्मार्ट इलेक्ट्रिक बस के परिचालन की शुरुआत की गयी है. इस प्रकार, प्रदेश में वर्तमान में 115 स्मार्ट इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है. आने वाले दिनों प्रदेश के 14 नगरीय निकायों में 700 इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की कार्यवाही आगे बढ़ायी जाएगी. उन्होंने कहा कि मेट्रो रेल सार्वजनिक परिवहन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है. आज प्रदेश के 04 बड़े शहरों-लखनऊ, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा में मेट्रो का संचालन हो रहा है. कानपुर में नवम्बर, 2021 तक मेट्रो का संचालन हो जाएगा. आगरा मेट्रो का निर्माण कार्य भी युद्धस्तर पर जारी है. रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम के तहत प्रदेश में दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कॉरिडोर का निर्माण प्रगति पर है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बड़े नगरीय निकायों के विकास के साथ-साथ छोटे नगरीय निकायों में भी अवस्थापना सुविधाओं का समुचित विकास किया जा रहा है. छोटे नगर निकायों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2018 में ‘पं0 दीनदयाल उपाध्याय आदर्श नगर पंचायत योजना’ की शुरुआत की गयी है. नगरीय क्षेत्रों में अल्पविकसित तथा मलिन बस्तियों में आधारभूत संरचनाओं को सुदृढ़ करने के लिए ‘मुख्यमंत्री नगरीय अल्पविकसित व मलिन बस्ती विकास योजना’ संचालित की जा रही है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में प्रयागराज कुम्भ-2019 की दिव्यता एवं भव्यता को देश व दुनिया ने देखा है. प्रयागराज कुम्भ ने स्वच्छता, सुरक्षा व सुव्यवस्था का एक मानक प्रस्तुत किया है. प्रयागराज कुम्भ को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में नगर विकास विभाग, उत्तर प्रदेश ने प्रमुख भूमिका निभायी थी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से प्रयागराज में कुम्भ के दौरान इण्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल सेण्टर को विकसित करते हुए वहां की ट्रैफिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का काम किया गया. इससे 24 करोड़ श्रद्धालुओं को सुव्यवस्था प्राप्त हुई.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने 01 अक्टूबर, 2021 को स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) एवं अमृत योजना के द्वितीय चरण का शुभारम्भ किया है. द्वितीय चरण में नगरीय क्षेत्रों को कचरे से पूरी तरह मुक्त रखा जाए. प्रदेश के नगरों को पूरी तरह कचरामुक्त करने, शहरों को जल सुरक्षित बनाने और यह सुनिश्चित करने कि कहीं भी सीवेज का गन्दा नाला नदियों में न गिरे, इसके लिए प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में प्रदेश सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ मिशन मोड पर कार्य करेगी.

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए केन्द्रीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने न्यू इण्डिया का जो सपना देखा है, उसे पूरा करने के लिए वे मिशन मोड में कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रांे के समन्वित विकास के लिए प्रधानमंत्री जी के विजन के अनुरूप कार्य किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि शहरों का नियोजित नगरीय विकास भारत की प्राचीन परम्परा है. आज समय की मांग के अनुसार देश के नगरों का तेजी से विकास हो रहा है. लोगों को ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का लाभ नगरीय विकास के कारण मिल रहा है.

इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए केन्द्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में स्वच्छ भारत मिशन तथा अमृत योजना महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी. वर्ष 2015 से 2021 में नगरीय विकास के क्षेत्र में निवेश 07 गुना तक बढ़ा है. केन्द्र सरकार द्वारा लोगों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए स्वच्छ भारत मिशन 2.0 तथा अमृत 2.0 प्रारम्भ किये गये हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में प्रदेश में एयर कनेक्टिविटी का विस्तार हुआ है. आज उत्तर प्रदेश में 08 हवाई अड्डे काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हवाई अड्डों के विकास के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 2,000 करोड़ रुपये की धनराशि का प्राविधान किया गया है.

इस अवसर पर राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल, केन्द्रीय भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्री डॉ0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय, केन्द्रीय आवास एवं शहरी कार्य राज्य मंत्री श्री कौशल किशोर, उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य एवं डॉ0 दिनेश शर्मा, नगर विकास मंत्री श्री आशुतोष टण्डन, नगर विकास राज्य मंत्री श्री महेश चन्द्र गुप्ता, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, अपर मुख्य सचिव नगर विकास डॉ0 रजनीश दुबे, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एम0एस0एम0ई0 श्री नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

स्‍ट्रीट वेंडरों का संबल बनी है पीएम स्‍वनिधि योजना

इंदिरा गांधी प्रतिष्‍ठान में न्‍यू अर्बन इंडिया कॉन्‍क्‍लेव के उद्धाटन पर पीएम मोदी ने मंच से एक बार फिर सीएम योगी आदित्‍यनाथ के कामों को सराहा . उन्‍होंने कहा कि सीएम योगी के प्रयासों से कोरोना काल में गरीबों को संबल देने वाली पीएम स्‍वनिधि योजना के क्रियान्‍वयन में उत्‍तर प्रदेश देश में प्रथम स्‍थान पर है. उन्‍होंने कहा कि जिन तीन शहरों ने इस योजना में उत्‍कृष्‍ट काम किया है. उसमें यूपी के दो शहर लखनऊ व कानपुर शामिल है. योजना के तहत यूपी के 7 लाख से अधिक स्‍ट्रीट वेंडर को इसका सीधा लाभ मिला है, जो बड़ी उपलब्धि है. पीएम ने कहा कि रेहड़ी, पटरी व ठेला कारोबारियों को सीधे बैंक से जोड़ने का काम किया जा रहा है.

कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान देश भर के स्‍ट्रीट वेंडरों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा था. इनका कारोबार लगभग बंद हो गया था. दोबारा कारोबार शुरू करना इनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. ऐसे में केन्‍द्र सरकार की पीएम स्‍वनिधि योजना स्‍ट्रीट वेंडर के लिए बड़ा सहारा बनी. कोरोना काल के बाद दोबारा काम शुरू करने के लिए इस योजना के जरिए स्‍ट्रीट वेंडरों को दस हजार रुपए तक लोन दिया गया. ताकि वह दोबारा अपना काम शुरू कर सकें. लोन की प्रक्रिया को काफी आसान रखा गया. इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों के रेहड़ी-पटरी वालों को एक साल के लिए 10,000 रुपये का ऋण बिना किसी गारंटी के उपलब्ध कराया गया.

लखनऊ व कानपुर आगे

पीएम मोदी ने स्‍ट्रीट वेंडरों को ऋण देने में लखनऊ व कानपुर के स्‍थानीय निकायों की तारीफ की. पीएम ने कहा कि प्रधानमंत्री स्‍वनिधि योजना के क्रियान्‍वयन में यूपी अव्‍वल है. खासकर देश के तीन शहरों के स्‍थानीय निकायों ने इसमें उल्‍लेखनीय काम किया है. उसमें यूपी के दो शहर लखनऊ व कानपुर शामिल हैं. वहीं, यूपी केन्‍द्र सरकार की 41 योजनाओं के क्रियान्‍वयन में देश के सभी राज्‍यों में अव्‍वल है.

कांग्रेसी घमासान

पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाने और कन्हैया कुमार व जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल कर लेने के बाद कांग्रेस में घमासान सा मचा हुआ है. यह तो होना ही था. कांग्रेस के शीर्ष नेता सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी अपनी मिश्रित पृष्ठभूमि के कारण चाहे वर्गवादी सोच से निकल गए हों पर कांग्रेसी नेताओं का बड़ा तबका अब भी पूजापाठी ही है और कांग्रेस में तब तक ही है जब तक उस के पास सत्ता या प्रभाव है.

2014 व 2019 के चुनावों में हार के बावजूद आज भी कांग्रेस का वजूद है तो इसलिए कि देश की 80 फीसदी जनता को मनचाहे नेता भारतीय जनता पार्टी में कभी नहीं मिले. उन्हें बहका कर, भगवान का नाम सुझा कर,  हिंदूमुसलिम कर के, कांग्रेसी भ्रष्टाचार की सच्चीझूठी कहानियां सुना कर उन से वोट उन का वोट हथिया लिया पर जैसे अरसे से कांग्रेसी नेता आम लोगों से दूर रहे,  वैसे ही भाजपाई नेता भी आज आम जनता से दूर हैं. कांग्रेस का बहुजनवादी या समाजवादी कायापलट किसी को मंजूर नहीं है क्योंकि विपक्षी पार्टी कमजोर होने के बावजूद अपनी परतों में बहुत सी शक्ति छिपा कर रखती है. यह शक्ति गैरवर्णवादी लोगों के हाथों में चली जाए,  उस को मंजूर नहीं.

राहुल और प्रियंका ने पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में चरनजीत सिंह चन्नी को मुखौटे के रूप में रखा है या उसे वास्तव में हक दिया है,  यह स्पष्ट नहीं है. वहीं, उसी के बाद निचले वर्गों के युवा नेताओं को बाजेगाजे के साथ शामिल कर लेना खतरे की घंटी है.

भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि वह पौराणिक सोच से नहीं उठ सकी है. देश को आजादी मिलने के बाद जो कांग्रेस सत्ता में आई थी, वह वैसी थी जैसी आज भाजपा है. उस में संपूर्णानंद पंत, वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद,  राजगोपालाचार्य जैसे वर्गवादी कट्टरपंथी ही थे जिन्होंने कांग्रेस को पौराणिक युग में ले जा कर देश को फिर गड्ढे में धकेल दिया था. देश की प्राथमिकताएं सोमनाथ मंदिर हो गईं जवाहरलाल नेहरू के विरोधों के बावजूद. हिंदू विवाद कोड पर जो हल्ला मचा, वह आज भी नहीं सुनाया जा सकता.

राहुल गांधी का प्रयोग लीपापोती है या वास्तव में उन के गलीगली के दौरों की देन, इस पर अभी नहीं कहा जा सकता. यह स्पष्ट है कि देश की प्रगति इस के इंग्लिश माध्यम स्कूलों से पढ़ेलिखे लोगों के हाथों से तो हो नहीं सकती. देश अगर बढ़ेगा तो उन लोगों की मेहनत से जो जमीन, कारखानों में निचला माने जाने वाला काम कर रहे हैं.

राहुल के विरोध में खड़े लोगों में अधिकांश कांग्रेसी बेहद पूजापाठी हैं और अपने जन्म से मिली श्रेष्ठता पर वे गौरवान्वित हैं. उन्हें गवारा नहीं कि जिन के वोटों के सहारे वे चुनावों में जीत कर आए हैं उन्हें बराबर का दर्जा मिले. यह तो बहुजन समाजपार्टी की मायावती भी अपने संस्कृतिकरण के बाद ज्यादा दिन सह न सकी थीं और उन्होंने अपने को श्रेष्ठ कुल में पैदा हुए लोगों से घेर लिया था और खुद ने महारानियों वाली वेशभूषा अपनाई थी. आम कार्यकर्ता के लिए बहनजी भी दर्शन मात्र के लिए उपलब्ध रह गई थीं. कांग्रेसी विवाद इसी सोच की देन है.

कांग्रेसी नेता कहीं जाएंगे, ऐसा नहीं लगता. उन्हें भाजपा के अलावा कुछ चाहिए नहीं और जो भाजपा में जाता है वह अपना अस्तित्व खो बैठता है. इसलिए ये नेता कांग्रेस में रह कर शोर मचाते रहेंगे. हां,  कांग्रेस के नए प्रयोग को ये कमजोर कर सकते हैं. यह हमेशा संभव है. घर के भेदी सब से ज्यादा खतरनाक दुश्मन होते हैं.

क्या आप जानते हैं प्रैगनैंसी से जुड़े ये 7 मिथ और उनकी सच्चाई

विज्ञान ने आज भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन हमारे समाज में आज भी प्रैगनैंसी से जुड़े बहुत सारे ऐसे मिथ हैं जो न सिर्फ घातक हैं, बल्कि कई बार जानलेवा भी साबित हो सकते हैं. आइए, जानते हैं उन के बारे में और करते हैं उन का समाधान:

  1. मिथ : प्रैगनैंसी में उलटी होना एक बेहद सामान्य सी बात है.

सच्चाई : यह सच है कि प्रैगनैंसी के शुरू के दिनों में उलटियां होना बहुत सामान्य बात है, लेकिन इतनी सामान्य बात भी नहीं है जितना लोग समझ लेते हैं. सच्चाई  यह है कि ज्यादा उलटियां आने से न केवल गर्भवती वरन गर्भस्थ शिशु को भी नुकसान पहुंचता है. इसलिए बेहतर होगा कि आप डाक्टर से संपर्क करें.

  1. मिथ : नारियल खाने से बच्चा नारियल की तरह गोराचिट्टा पैदा होता है.

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सच्चाई : नारियल एक ऐसा फल है जो रेशा युक्त होता है, जिस की वजह से प्रैगनैंसी के दौरान इस का सेवन लाभदायक होता है, लेकिन इस का बच्चे के रंग से कोई संबंध नहीं है.

  1. मिथ : प्रैगनैंसी में गर्भवती को दोगुना खाने की जरूरत होती है

सच्चाई : इस दौरान दोगुना भोजन गर्भवती के वजन को बढ़ा कर डिलिवरी को कौंप्लिकेटेड बना सकता है. सच्चाई  यह है कि इस दौरान हर महिला को सिर्फ 300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत पड़ती है.

  1. मिथ : ऐक्सरसाइज से बच्चे को नुकसान होता है.

सच्चाई : यह बिलकुल गलत धारणा है. सच्चा बिलकुल इस के विपरीत है. डाक्टरों का कहना है कि इस दौरान किसी प्रोफैशनल की निगरानी में ऐक्सरसाइज करना ठीक है.

  1. मिथ : अगर आप की उम्र 30 से ज्यादा है तो आप के प्रैगनैंट होने के चांसेज नहीं के बराबर हैं, इसलिए 30 साल की उम्र से पहले ही अपना पहला बेबी प्लान कर लें.

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सच्चाई : आज महिलाएं अपने कैरियर को ले कर काफी सजग हो गई हैं. यही कारण है कि वे आमतौर पर 30 साल की आयु के बाद ही मां बनना पसंद करती हैं और अब यह उतना मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि एग फ्रीजिंग और आईवीएफ तकनीक ने इसे बेहद आसान बना दिया है.

  1. मिथ : अगर सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान प्रैगनैंट महिला कोई काम करती है तो बच्चा अपाहिज पैदा होता है.

सच्चाई : हैरानी की बात है कि आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, फिर भी कई ऐसे लोग हैं जो इस अंधविश्वास को सच मानते हैं. इस का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है

  1. मिथ : अगर डिलिवरी के बाद पेट पर कोई टाइट सी बैल्ट बांध दी जाए तो टमी फ्लैट रहती है.

सच्चाई : यह बिलकुल निराधार बात है. सच्चाई यह है कि अगर कोई महिला डिलिवरी के बाद टमी को किसी टाइट बैल्ट से बांध कर रखती है तो इस से वहां का रक्तसंचार बाधित होगा जो घातक सिद्ध हो सकता है

डा. प्रीति गुप्ता

(फर्टिलिटी ऐंड आईवीएफ ऐक्सपर्ट, फर्स्ट स्टैप आईवीएफ क्लीनिक)

पति की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी है, वे अच्छा कमाते हैं परंतु कंजूस है ऐसे में मैं परेशान रहती हूं क्या करुं?

सवाल

मैं 35 वर्षीया विवाहित महिला हूं. मेरे 2 बच्चे हैं, बेटी 14 वर्ष की और बेटा 7 वर्ष का है. पति की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी है. वे अच्छा कमाते हैं परंतु कंजूस हैं. बच्चों को कहीं खाना खिलाने या घुमाने नहीं ले जाते, कहीं खिलाने का प्लान बने भी तो घर पर ही उन्हें सब खिला कर ले कर जाते हैं ताकि बाहर जाएं तो पेट भरा होने पर कुछ खाएं नहीं. दिक्कत यह है कि मेरे साथ उन का बरताव ऐसा है कि वे मेरी और बच्चों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं. लेकिन पतिपत्नी का जो रिश्ता होना चाहिए, इमोशनल और समझदारी का, वह हमारा नहीं है. मैं इस रिश्ते से खुश नहीं हूं. क्या मेरी जिंदगी ऐसी ही चलेगी. कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?

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जवाब

35 वर्ष की उम्र समझौता कर जीने के लिए बहुत छोटी है. आप के सामने आप के बच्चे हैं जिन के प्रति आप की कुछ जिम्मेदारियां हैं. आप पहले पूरी ईमानदारी से इन जिम्मेदारियों को निभाएं. आप का कहना है कि बच्चों की जरूरतें और आप की जरूरतें वे पूरी कर रहे हैं. यह अच्छी बात है. पर आप दोनों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं, इस का कारण जानने की कोशिश करें. हमेशा पत्नी ही सही हो, जरूरी नहीं. आप पहले अपनी कमियों को ढूंढ़ने का प्रयास करें कि आखिर क्यों वे आप से कटेकटे रहते हैं. खुशनुमा माहौल रखने के लिए आप को उन्हें खुश रखना पड़ेगा. घर में भी आप बनठन कर रहें. कभीकभी पति को छेड़ें और सैक्स में अरुचि न दिखाएं. उन के मतलब की बातचीत करतेकरते आप अपनी समस्या को उन के सामने रखें और बातों को सीरियस न बनाएं. उन्हें प्यार से समझाने का प्रयास करें. उन्हें बताएं कि इस का असर बच्चों पर पड़ सकता है. आप की समस्या का समाधान आपसी बातचीत से ही हो सकता है. वैसे कंजूसी बुरी आदत नहीं, फुजूलखर्ची है. कंजूस तो पैसा अपने बच्चों के लिए जोड़ कर जाता है जिस पर बाद में बच्चे गर्व करते हैं.

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जल संरक्षण कृषि उत्पादन के लिए आज की जरूरत- भाग 2

लेखिका- पल्लवी यादव, डा. ओम प्रकाश, डा. ब्रह्म प्रकाश एवं डा. कामिनी सिंह

जल कुदरत का मानव जाति को दिया गया अनमोल खजाना है. कृषि जल संरक्षण से मतलब ऐसी कृषि तकनीक से है, जिस में उपलब्ध जल की मात्रा का कृषि में समुचित उपयोग हो, उपयोग से अधिक फसल उत्पादन मिले, कृषि में जरूरत के अनुसार उस का उपयोग हो, बरबादी कम से कम हो, मिट्टी का क्षरण रोकने, कम से कम मात्रा में सिंचाई का जल उपयोग, उचित तौरतरीके और किफायती दर से खेती में उपयोग किया जाना ही कृषि जल संरक्षण या एकीकृत जल प्रबंधन कहा जाता है. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की कुल ग्रामीण आबादी की लगभग आधे से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है. यह खेती पूरी तरीके से कुदरत पर आधारित है. सारे पानी की मात्रा का लगभग 70 फीसदी खेती के कामों में सिंचाई के रूप में प्रयोग होता है. खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादन और उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण और कृषि आधारित उपक्रमों में इस्तेमाल जैसे विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पानी का उपयोग विभिन्न माध्यमों और रूपों में किया जाता है.

आजकल खेती के पानी के इस्तेमाल का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि आज इस्तेमाल करने के तौरतरीकों में बहुत ज्यादा बदलाव होने के कारण उपलब्ध पानी का संतुलन बिगड़ चुका है. इन बदलाव के चलते जल आपूर्ति भी प्रभावित होने के संकेत मिल रहे हैं, जो भविष्य में सभी जीवधारियों के लिए अत्यंत कष्टकारी साबित होंगे, इसलिए जल संरक्षण टिकाऊ कृषि उत्पादन के लिए आज के समय की पहली जरूरत है. कृषि में जल संरक्षण का मतलब खेती के कामों में इस्तेमाल में लाया जाने वाला पानी सिंचाई जल के नाम से जाना जाता है. खेती में जल संरक्षण का मतलब है कि पानी का संरक्षण और इकट्ठा करना, ताकि इसे जरूरत के हिसाब से विभिन्न फसलों की सिंचाई के काम में लाया जा सके. कृषि जल में उपलब्ध पानी की मात्रा का सही इस्तेमाल करना, ज्यादा से ज्यादा फसल उत्पादन लेना, खेती में जरूरत के हिसाब से पानी का इस्तेमाल करना, पानी की बरबादी को रोकना, पानी का कम से कम इस्तेमाल करना, सही तरीके से वैज्ञानिक विधियों और किफायती दर से खेती में पानी का इस्तेमाल करना ही कृषि जल संरक्षण या एकीकृत जल प्रबंधन कहलाता है.

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कृषि में जल संरक्षण की जरूरत क्यों?

* कृषि जल की बरबादी को रोकने.

* खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित रखने.

* फसलों में पानी की जरूरत और संतुलन बनाए रखने.

* कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाने हेतु.

* कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने.

* पर्यावरण संरक्षण. कृषि में जल संरक्षण के लाभ कृषि में जल संरक्षण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में अनेकों लाभ हैं,

जिस में कुछ खास निम्नलिखित हैं : * सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है.

* भूक्षरण को रोकने में सहायक है.

* प्राकृतिक संसाधनों (पानी, मजदूरी और ऊर्जा) की भी बचत होती है.

* यह जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से बचाने में सहायक है.

* फसल अवशेषों का मिट्टी में नमी होने पर सड़ना आसान हो जाता है, जिस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की उत्पादन करने की शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है.

* मृदा नमी के संरक्षण से फसल द्वारा रासायनिक उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ती है और फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलती है.

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* सस्य क्रियाओं को करने में आसानी रहती है.

* भूमि के जल स्तर की बढ़ोतरी में भी मददगार है.

* इस से लाभदायक जीवजंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. कृषि जल संरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक कृषि जल संरक्षण में कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं :

* मिट्टी संबंधी कारक.

* किस्मों के आनुवांशिकीय कारक.

* वातावरणीय/जलवायु संबंधी कारक.

* खेती आधारित सस्य घटक संबंधी कारक.

* असंतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रसायनों के इस्तेमाल संबंधी कारक. कृषि जल के प्रमुख स्रोत

* बरसात के पानी को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जैसे जमीन की सतह पर बहता बरसाती पानी, मकानों की छत से गिरता बारिश का पानी और कुदरती स्रोतों से प्राप्त व बहता पानी.

* जमीन से प्राप्त भूजल.

* कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाबों में इकट्ठा पानी.

* नहरों और जलाशयों से प्राप्त पानी. ऐसे करें फसलों में एकीकृत जल प्रबंधन विभिन्न फसलों को पैदा करने में कृषि जल संरक्षण के लिए मुख्य वैज्ञानिक सिफारिशों और तकनीकियों को अपना कर पानी का सही प्रबंधन किया जा सकता है. मुख्य फसलों में कृषि जल संरक्षण के तरीकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : धान की फसल में कृषि जल प्रबंधन के उपाय

* श्री (सिस्टम औफ राइस इंटेन्सिफिकस) तकनीक अपना कर धान की खेती करने से तकरीबन 30 से 50 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत के साथ कृषि जल संरक्षण भी होता है.

* धान की खेती श्री तकनीक द्वारा करने से जल उपयोग क्षमता, मृदा की पैदावार बढ़ने के साथ फसल उगाने की लागत में भी कमी आती है.

* धान को एरोबिक विधि से उगाने पर अन्य कुदरती प्राकृतिक संसाधनों (पानी, मजदूरी और ऊर्जा) की भी बचत होती है.

* धान को एरोबिक विधि से उगाने पर बालियां निकलते समय 1.0 से 3.0 सैंटीमीटर तक पानी की सतह तक होने पर भी फसल में बालियां निकल आती हैं.

* फसल की सिंचाई गीली और सूखी पद्धति के आधार पर करने से सिंचाई जल की बहुत बचत होती है.

* कम समय में फसल पकने और पानी की अधिक मात्रा के उपयोग के कारण साठी धान की खेती करने से बचना चाहिए. (शेष अगले अंक में…) खेती में जल प्रबंधन के उपाय पिछले अंक में आप ने पढ़ा गेहूं की फसल में जल प्रबंधन

* प्राय: बौने गेहूं से ज्यादा से ज्यादा उपज लेने के लिए हल्की भूमि में पहली सिंचाई क्राउन रूट बुवाई के 22 से 25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था), दूसरी सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बार किल्ले निकालने की अवस्था पर; तीसरी सिंचाई बुवाई के 60 से 65 दिन पर दीर्घ संधि या गांठे बनते समय; चौथी सिंचाई बुवाई के 80 से 85 दिनों पर फूल आने की अवस्था (पुष्पवस्था) में; पांचवी सिंचाई बुवाई के 100 से 105 दिनों पर बालियों में दूध जैसा पदार्थ बनने की अवस्था (दुग्धावस्था) में तथा छठी व अंतिम सिंचाई बुवाई के 115 से 120 दिनों पर बाली में दाना बनते समय करने से सिंचाई के जल की बचत के साथसाथ भरपूर उपज भी प्राप्त होती है.

* गन्ने के साथ गेहूं की फसल लेने हेतु फर्ब विधि से गेहूं एवं गन्ने की बुवाई करनी चाहिए. इस तरीके को अपनाने से पानी की बचत के साथसाथ दोनों फसलों की पैदावार भी ज्यादा मिलती है. फर्ब विधि से गेहूं एवं गन्ने की बुवाई कृषि जल संरक्षण का किफायती एवं उपयोगी तरीका है. इस तरीके में औसतन 20 से 30 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है. फर्ब विधि से गेहूं एवं गन्ने की गई बुवाई के कई फायदे हैं :

* खास अवस्था में गेहूं में यदि केवल तीन सिंचाई ही कर पा रहे हैं तो यह सिंचाइयां ताजमूल अवस्था, बाली निकलने के पूर्व तथा दुग्धावस्था पर ही करने से गेहूं की भरपूर उपज मिलती है.

* दो सिंचाईयां उपलब्ध होने पर ताजमूल व पुष्पवस्था पर सिंचाई करने ही फायदेमंद रहता है.

* इसी तरह केवल एक सिंचाई उपलब्ध होने पर ताजमूल की क्रांतिक अवस्था पर ही सिंचाई करना चाहिए. गन्ना की फसल में जल प्रबंधन

* गोल गड्ढा बुवाई विधि अपनाकर सिंचाई जल की औसतन 30 से 40 प्रतिशत बचत की जा सकती है. जल बचत के अलावा जल उपयोग क्षमता में 30 से 40 प्रतिशत तथा पोषक तत्व उपयोग क्षमता में 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ती है तथा गन्ने की उपज भी डेढ़ से दो गुना अधिक प्राप्त होती है.

* गन्ने में एकांतर नाली सिंचाई विधि अपनाने से औसतन 30 से 40 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत होती है तथा जल उपयोग क्षमता में 60 से 65 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो जाती है.

* एकांतर नाली सिंचाई विधि अपनाने से फसल में खरपतवारनाशी रसायनों का उपयोग कम से कम करना पड़ता है. इसलिए इन के छिड़काव हेतु घोल बनाने के लिए पानी की भी जरूरत कम होने से पानी की बचत होती है. साथ ही गन्ने की पैदावार भी अधिक मिलती है.

* गन्ने की कटाई के बाद गन्ने की सूखी पत्तियों को पेड़ी गन्ने की नालियों के बीच में 6 से 8 से.मी. मोटी परत में बिछाने से औसतन 40 फीसदी सिंचाई जल की बचत की जा सकती है. इस के साथ ही साथ इस से मिट्टी में नमी संरक्षण के साथसाथ वाष्पोत्सर्जन भी कम होता है एवं मिट्टी की पैदावार की ताकत भी बढ़ती है.

* गन्ने की बुवाई नाली विधि से करने के बाद नालियों को पाटा लगा कर बंद करने से मिट्टी के नमी संरक्षण में मददगार साबित होती है.

* गन्ने की बढ़वार की चार अवस्थाओं के अनुसार सिंचाई (कुल 10) करने पर सिंचाई के पानी की औसतन 30-35 फीसदी बचत के साथ ही साथ जल उपयोग क्षमता 35-40 फीसदी बढ़ जाती है.

* सिंचाई के पानी की बचत के लिए गन्ने की सह-फसली खेती को वरीयता देना चाहिए. इस पद्धति से गन्ने की खेती में सिंचाई के पानी की काफी बचत की जा सकती है.

* फर्ब विधि से गेहूं और गन्ने की बुवाई कृषि जल संरक्षण का किफायती एवं उपयोगी तरीका है. इस विधि में औसतन 20 से 30 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है.

लौकडाउन के पकौड़े- व्यंग्य

भीगेभीगे मौसम में रवीना, दीपिका के गानों का मन ही मन आनंद ले ही रहा था कि पकौड़े खाने और खिलाने की धुन सवार हो गई और फिर मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ… बाहरबूंदाबांदी हो रही थी. मौसम बड़ा ही सुहावना था. ठंडी हवा, हरियाली का नजारा और लौकडाउन में घर बैठने की फुरसत. मैं बड़े आराम से अपने 7वीं मंजिल के फ्लैट के बरामदे में ?ाले पर बैठा अखबार उलटपुलट रहा था. दोपहर के 4 बजने वाले थे और चाय पीने की जबरदस्त तलब हो रही थी. मैं ने वहीं से पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘अजी, सुनती हो, एक कप चाय भेज दो जरा.’’ कोई हलचल नहीं हुई न कोई जवाब आया. सोचा, शायद किसी काम में व्यस्त होंगी, मेरी आवाज नहीं सुन पाई होंगी. अत: एक बार फिर पुकार कर कहा, ‘‘अरे भई, कहां हो, जरा चाय भिजवा दो.’’ अब की बार आवाज तेज कर दी थी मैं ने परंतु जवाब फिर भी नहीं आया.

सोचा, उठ कर अंदर जा कर चाय के लिए बोल आऊं, लेकिन इस लुभावने मौसम ने बदन में इतनी रोमानियत भर दी थी और मेरे चक्षु के पृष्ठपटल पर हिंदी फिल्मों के बारिश से भीगने वाले गानों के ऐसेऐसे दृश्य उभर रहे थे कि उठ कर एक जरा सी चाय के लिए वह तारतम्य तोड़ने का मन नहीं हुआ. आंखों के आगे रहरह कर भीगी साड़ी में नरगिस से ले कर दीपिका तक की छवि लहरा रही थी. अभी ‘टिपटिप बरसा पानी…’ की भीगती रवीना चक्षुपटल पर आई ही थी कि एक मोटी, थुलथुल 50-55 इंच की कमर वाली एक महिला मेरे आगे आ कर खड़ी हो गई? ‘‘हाय राम.’’ ऐसी भयानक काया, मैं डरतेडरते बचा… लगा जैसे किसी ने पेड़ पर बैठ कर मीठे फल खाते हुए मु?ो नीचे गिरा दिया हो. मैं ने प्रकट रूप में आ कर देखा, मेरी श्रीमतीजी हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ी मु?ा पर बरस रही थीं. ‘‘एक तो किसी काम में हाथ नहीं बंटाते ऊपर से बैठेबैठे फरमाइशें करते रहते हो… कितना काम पड़ा है किचन में…

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यह तो होता नहीं कि आ कर जरा हाथ बंटा दें…’’ कहते हुए उन्होंने पास पड़ी तिपाई ?ाले के पास खींच कर उस पर चाय का प्याला रख दिया. श्रीमतीजी का पति प्रेम देख कर मेरे अंदर से तत्काल हिंदी फिल्म का हीरो निकल कर बाहर आया और मैं ने दोनों हाथों से श्रीमतीजी की कलाई पकड़ ली. वैसे भी उस कलाई की तंदुरुस्ती मेरे जैसे दुबलेपतले इनसान के एक हाथ में तो आने वाली नहीं थी… अपनी आवाज को सुरीला बनाने की कोशिश करते हुए मैं रोमांटिक हो कर गा उठा. ‘‘अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं…’’ बदले में मेरी श्रीमतीजी ने ऐसे गुर्रा कर मेरी ओर देखा कि फिल्मों का हीरो जितनी तेजी से मेरे जिस्म से बाहर आया था, उस से दोगुनी तेजी से वह मेरे अंदर घुस कर कहीं दुबक गया. श्रीमतीजी चाय वहीं रख कर बड़बड़ाती हुईं जाने को मुड़ी ही थीं कि मेरे अंदर के पति ने एक और दांव खेला, ‘‘चाय के… साथ जरा… गरमगरम पकौड़े भी मिल जाते तो…’’ बु?ाती हुई चिनगारी फिर से भड़क उठी. जाती हुई श्रीमतीजी एकदम से पलट कर वापस आ गईं और साहब फिर जो पति के निकम्मेपन की धुलाई शुरू हुई कि पूछिए मत.

पासपड़ोस के पतियों से ले कर रिश्तेदार, परिवार, दोस्त जितने लोेगों के नाम याद थे, श्रीमतीजी ने चुनचुन कर गिनाने शुरू किए. कैसे मेरा छोटा भाई अपनी पत्नी के साथ शौपिंग पर जाता है, कैसे हमारे पड़ोसी फलसब्जियां और सामान बाजार से लाते हैं, कामवाली नहीं आए तो घर की सफाई भी कर देते हैं, मेरे एक करीबी दोस्त कैसे गहने गिफ्ट कर के पत्नी को सरप्राइज दिया करते हैं वगैरहवगैरह सुन कर मैं तो दंग रह गया. हालत ऐसी होने लगी जैसे दरवाजे पर सीबीआई वाले रेड करने आ पहुंचे हों. डर और घबराहट से मैं हीनभावना का शिकार होने ही वाला था कि मेरे अंदर के पति ने मु?ो संभाल लिया, ‘‘अरी भाग्यवान, उन की पत्नियां तुम्हारी तरह गुणवती थोड़े ही हैं न, मेरे जैसा हर व्यक्ति थोड़े ही होता है इस दुनिया में… मेरी श्रीमतीजी जैसी उन की पत्नियां होतीं तो वे ये सब थोड़े ही करते… मेरी श्रीमती तो साक्षात लक्ष्मी सरस्वती है… मु?ो उन के जैसे करने की जरूरत क्या है?’’ मैं ने मुसकराते हुए बड़े रोमांटिक अंदाज में कामुकता भरा एक तीर छोड़ा.

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मगर श्रीमतीजी ने तुरंत मेरे उफनते भावावेश पर पानी डाल दिया, ‘‘और दुर्गा काली भी हूं… यह क्यों भूलते हो? लौकडाउन में जरा फुरसत हुई तो सोचा चलो पापड़बडि़यां बना दूं, पर वह भी चैन से नहीं करने दे रहे हो… पकौड़े खाने हैं तो खुद क्यों नहीं बना लेते? दूसरों के सामने तो बड़े लैक्चर देते हो कि मर्दों को औरतों की सहायता करनी चाहिए… अब क्या हो गया?’’ श्रीमतीजी ने गुस्से से एक ही सांस में सब कह डाला. उन का यह रूप देख कर मेरे अंदर की भीगी नाजुक रवीना, दीपिका सब सूख चुकी थीं और उन के क्रोध से डर कर वे बेचारी न जाने कहां छुप गईं. अंदर का पति भी सहम गया. सोचा कि चलो आज पकौड़े बना ही लिए जाएं, फिर आगे से श्रीमतीजी को जवाब देने का अच्छा उदाहरण मिल जाएगा और फिर बड़े मुसकराते हुए मैं ने कहा, ‘‘अरे प्राण प्रिय, मेरे हृदय की रानी… तुम्हारा हुकुम सिरआंखों पर… चलो हम दोनों मिल कर पकौड़े बनाते हैं, फिर साथसाथ बैठ कर चाय व पकौड़ों का लुत्फ उठाएंगे… मैं तुम्हें खिलाऊंगा, तुम मु?ो…’’ ‘‘चलो हटो,’’ श्रीमतीजी ने मुंह बिचका कर हाथ ?ाटक कर कहा और वहां से चली गईं. गरम पकौड़े खाने की तीव्र इच्छा और रहरह कर मु?ा पर मजनूं देवता का आगमन… मैं भी पीछेपीछे रसोई में जा पहुंचा.

वहीं बाहर बरामदे में श्रीमतीजी बड़ी सी चादर बिछा कर पापड़बडि़यां बनाने बैठ गईं. आज से पहले मैं ने रसोईघर को इतनी गहराई से अंदर घुस कर कभी नहीं देखा था. ज्यों ही अंदर घुसा, श्रीमतीजी का हुक्म आया, ‘‘पहले हाथ तो धो लो, सिंक के सामने लिक्विड सोप रखा है.’’ अभी मैं अपने साफसुथरे धुले हाथों के विषय में कुछ कहने ही वाला था कि सामने चलते टीवी पर एक ऐड आया, ‘‘लाइफ बौय ही नहीं किसी भी सोप से रगड़रगड़ कर 20 सैकंड तक हाथ धोएं.’’ श्रीमतीजी ने मु?ो घूर कर देखा. मैं ने चुपचाप हाथ धोने में ही अपनी भलाई सम?ा. रसोई क्या थी, एक रहस्यमयी दुनिया थी. कहीं कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. बस, सिंक में भोजन बनाते समय उपयोग किए गए कुछ बरतन पड़े थे, जिन्हें शायद श्रीमतीजी पापड़ बडि़यां बनाने के बाद धोने वाली थीं. मैं ने इधरउधर नजर दौड़ाई पर मु?ो कुछ भी पता नहीं चला कि पकौड़े बनाने की शुरुआत कैसे करूं. श्रीमतीजी से पूछा तो कहने लगीं, ‘‘पहले यह तो बताओ किस पकौड़े किस चीज की खाओगे?’’ ‘‘बेसन के और कि के?’’ ‘‘अरे, पर बेसन में डालोगे क्या? प्याज, गोभी, आलू, मटर?’’ ‘‘प्याज,’’ मैं ने कहा. ‘‘तो पहले प्याज काट लो.’’

‘‘पर प्याज है कहां? यहां तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा?’’ ‘‘सामने ही तो स्टील के जालीदार स्टैंड पर रखा है प्याज.’’ मैं ने नजर घुमा कर देखा, कोने में स्टील की जालीदार 3-4 रैकों वाला स्टैंड लगा, जिस की रैक पर गोलगोल, लाललाल प्याज पैर फैलाए आराम फरमा रहे थे. बड़ी ईर्ष्या सी हुई कमबख्तों से. वे भी मेरी हालत पर मुसकरा उठे. मैं ने एक बड़ा सा प्याज वहां से उठा लिया तो उस ने मेरा मुंह चिढ़ाया. मैं ने सोचा कि अभी चाकू से वार कर मैं इस का अहंकार तोड़ता हूं. ‘‘पर अब काटूं कैसे चाकू तो दिख नहीं रहा.’’ ‘‘दराज तो खोलो,’’ श्रीमतीजी की सलाह आई. दराज खोला तो थालियां सजी थीं, दूसरे में कटोरे थे, तीसरे में पानी के गिलास थे… धीरेधीरे सारे दराज खोलता गया, रसोई का तिलिस्म मेरे सामने 1-1 कर खुलता रहा, लेकिन कमबख्त चाकू नहीं मिला. दफ्तर में फाइलों को ढूंढ़ने की मेरी मास्टरी यहां कोई काम नहीं आ रही थी… पता नहीं ये श्रीमतियां हर चीज इतने सलीके से क्यों रखती हैं कि कुछ मिलता ही नहीं… चीजें इधरउधर रखी हों तो उन्हें ढूंढ़ लेना मेरे बाएं हाथ का खेल था. खैर,

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नहीं चाहते हुए भी श्रीमतीजी से फिर पूछना पड़ा. इस बार फिर मैं ने अपने अंदर के पति के कंधे पर बंदूक रखी, ‘‘अरे भई कोई चीज जगह पर क्यों नहीं रखती हो? तब से ढूंढ़ रहा हूं, एक चाकू तक नहीं मिल रहा.’’ इस दफा श्रीमती ने कुछ कहा नहीं तमतमा कर उठीं और जहां मैं खड़ा था वहां ठीक सामने रखे चाकू के स्टैंड से एक चाकू निकाल कर मु?ो देती हुईं अंदर तक आहत करती हुईं कह गईं, ‘‘आंखों पर चश्मा डालो, बुढ़ापा आ गया है, लगता है कम दिखने लगा है.’’ ओह, भीतर का वीर पति फिर परास्त हो गया. मैं ने चुप रहना ही ठीक सम?ा. अब समस्या आई कि प्याज काटा कैसे जाए… पहले तो जीवन में ऐसा कुछ किया नहीं… तो छिलके उतार कर काटें या काट कर छिलका उतारें… लाचार बच्चे की तरह मैं फिर श्रीमतीजी को आवाज देना चाहता था, परंतु ऐन वक्त पर मेरे अंदर के मर्द ने ऐसा करने से मना कर दिया कि कैसे भी काटो यार, छिलके उतार कर ही तो पकाने हैं और श्रीमतीजी के प्रवचन से बालबाल बचा.

कमबख्त प्याज भी खार खाए बैठा था. चाकू रखते ही मेरी आंखें फोड़ने लगा. मोटेमोटे आंसूभरी आंखों से प्याज को छोटेछोटे टुकड़ों में काटा. काट कर अभी आंखें पोंछने ही वाला था कि श्रीमतीजी का आदेश आया, ‘‘जब काट ही रहे हो तो 3-4 प्याज और काट लेना… रात की सब्जी के काम आएंगे.’’ सच कहता हूं इस बार मेरी आंखों में आंसू यह सोच कर आने लगे कि मैं ने पकौड़ों की बात ही क्यों की… श्रीमतीजी की बात सुन कर कमबख्त प्याज बड़े व्यंग्य से मुसकरा कर मु?ो घूरने लगे और मैं उन पर अपना गुस्सा उतारते हुए उन के टुकड़ेटुकड़े करने लगा. किसी तरह आंखें फोड़तेफोड़ते मैं ने 3-4 प्याज काटे… जी चाहा, पकौड़ेवकौड़े छोड़ कर फिर वहीं ?ाले पर जूही, रवीना, दीपिका का दीदार करूं, पर अंदर के मर्द ने मु?ो फंसा दिया था… मैदाने पकौड़ों से पीठ दिखा कर जाना उम्रभर श्रीमतीजी के सामने ताने तंज की जमीन बना देता और अंदर का मर्द आंखें दिखाने से वंचित हो जाता…

इसीलिए चुपचाप डटा रहा. अब बारी आई कड़ाही की, जिस में पकौड़े तलने की व्यवस्था होती. सिंक में नजर डाली तो कड़ाही नजर आ गई पर वह गंदी थी. मैं ने किसी अनुशासित बच्चे की तरह कड़ाही लिक्विड सोप से ही साफ कर नल के नीचे धोना शुरू किया. बरतन की खटखटाहट से बाहर बैठी मलिका को पता चल गया कि सिपाही तलवारें तेज कर रहा है. लगभगलगभग हुक्म चलाती हुई बोलीं, ‘‘कड़ाही धो ही रहे हो तो बाकी के 2-4 पड़े बरतन भी धो लेना, मु?ो पापड़बडि़यां डालतेडालते देर हो जाएगी… फिर रात का खाना भी तो बनाना है.’’ अंदर से खीज खाता, पकौड़े खाने की तीव्र इच्छा पर खुद को कोसता, फिल्मी दुनिया का अभीअभी पैदा हुआ मजनूं अपनी विवशता पर कराह उठा, ‘‘क्यों वह औरतों को मर्दों की बराबरी करने की बात कहता रहता है… नहींनहीं… अब ऐसे गलतसलत सिद्धांतों पर बात कभी नहीं करनी है… बिना बात श्रीमतियों को बोलने का मौका दे देते हैं हम बेचारे पति लोग.

ये श्रीमतियां भी न… हर बात दिल पर ले लेती हैं… अरे भई, आदमी बोल देता है कि औरत और मर्द बराबर होने चाहिए पर ऐसा सच में थोड़े ही होना चाहिए. ऐसा हुआ तो प्रकृति का संतुलन नहीं बिगड़ जाएगा… कहां आदमी अर्जुन सा वीर योद्धा, देशदुनिया की सुध लेने वाला और कहां औरत नाजुक, कमसिन नरगिस, श्रीदेवी, ऐश्वर्या की तरह नृत्य करने और मर्दों को रि?ाने वाली… भला दोनों की बराबरी कैसे हो सकती है? मैं भी न बेकार ही ऐसी बातें करता हूं.’’ अब बारी थी बेसन, हलदी, नमक और पानी की… अब इन्हें कहांकहां खोजता फिरूं? पति के मन की बात श्रीमतियां बिना कहे ही जान लेती हैं, यह बात चरितार्थ इस बात से हुई कि श्रीमती ने मेरे बिना पूछे ही बाहर से पुकार कर कहा, ‘‘बाईं तरफ दूसरी दराज में छोटी पतीली रखी है और उस की बगल वाली दराज में मसालों का डब्बा है… हलदी, नमक सब उसी में है.’’ ‘‘और बेसन?’’ मैं ने तपाक से पूछ लिया. क्या पता थोड़ी देर और हो जाए और श्रीमतीजी का मूड न रहे तो बिना बात लैक्चर सुनना पड़े. ‘‘सामने ऊपर के खाने में रखा है, निकाल लो… नया पैकेट है… पास ही स्टील का डब्बा पड़ा है, पैकेट काट कर बेसन उस में भर देना.

’’ चुपचाप किसी आज्ञाकारी बालक की तरह मैं अपनी ज्ञानगुरु के कहे अनुसार करता रहा. खैर, बेसन और प्याज का घोल तैयार हुआ. कड़ाही चढ़ा दी गई पर अब तेल कहां से आए? ‘‘पकौड़ों के लिए क्याक्या पापड़ बेलने पड़ रहे हैं,’’ मैं बुदबुदाया. श्रीमतीजी का वाईफाई कनैक्शन चरम सीमा पर था. वहीं से सुन कर ताना देते हुए बोली, ‘‘पापड़ बेलने पड़े तो न जाने क्या हाल हो मियां मजनूं का… पकौड़े तक तो बना नहीं पा रहे… बारबार मु?ो डिस्टर्ब कर रहे हैं… एक भी बड़ी ढंग की नहीं बन पा रही..अब मैं इधर ध्यान दूं कि तुम्हारी बातों का जवाब देती रहूं?’’ मु?ो तो जैसे सांप सूंघ गया, ‘‘बाप रे यह औरत है या ऐंटीना, धीरे से बोलो तो भी सुन लेती है… अब परेशान आदमी भला बुदबुदाए भी नहीं. ‘‘इतना बोल गईं, बस इतना ही बता देतीं कि तेल कहां है?’’ मैं फिर बुदबुदाया. श्रीमती का ऐंटीना फिर फड़का पर इस बार मेरे काम की बात हो गई, ‘‘अरे जहां से बेसन निकाला, वहीं तो पीछे तेल की बोतल रखी है, निकाल लो… एक भी चीज नहीं मिलती इन्हें.’’ मैं ने ?ाट तेल की बोतल निकाल कर तेल कड़ाही में डाल दिया.

पर अब की बार मैं श्रीमतीजी के ऐंटीने से सचमुच डर गया, ‘मैडम के सामने धीरे से बोलना भी भारी पड़ सकता है,’ मैं ने मन ही मन सोचा. अब सबकुछ तैयार था. बस गैस जलाने की देर थी और गरमगरम पकौड़े मेरे मुंह में. मन ही मन स्वाद लेता मैं लाइटर ढूंढ़ने लगा. कमबख्त चूल्हे के नीचे पीछे की तरफ छिपा बैठा था. काफी देर ढूंढ़ने के बाद जब मिला तब लगा मैं ने जंग जीत ली. वरना बीच में तो फिर श्रीमतीजी से पूछने के भय से मेरा ब्लड प्रैशर लो होने लगा था. गैस जलाई, तेल गरम हो गया फिर श्रीमतजी की हिदायत के हिसाब से मैं ने छोटेछोटे गोले बना कर तेल में डाल दिए. महाराज, क्या बताऊं, ये पकौड़े देखने में ही छोटे थे… उछलउछल कर कैसे मेरा मुंह चिढ़ा रहे थे मैं बता नहीं सकता. मैं ने भी उन्हें खुशी से उछलता देख सोचा कि कमबख्तों को जलाजला कर लाल कर दूंगा, फिर तेज दांतों से काटकाट कर चटनी बनाबना कर खा जाऊंगा… तब सम?ा में आएगा. इतना खूबसूरत मौसम, बाहर ?ाले पर पतली साड़ी में लिपटी भीगती रवीना मु?ो खींच रही है और मैं यहां पकौड़े तल रहा हूं, बरतन धो रहा हूं… हाय री, मेरी किस्मत.’’ मेरी बेचैनी देख कर कुछ अच्छे ग्रह मेरी मदद के लिए आगे आए और तभी मेरी श्रीमतीजी अपना काम खत्म कर के रसाई में अंदर आईं. अंदर घुसते ही लगभग चीख पड़ीं, ‘‘यह क्या है? चारों तरफ गंदगी फैला दी है तुम ने… अभीअभी किचन साफ की थी. उधर प्याज के छिलके पड़े हैं… इधर बेसन जमीन पर धूल चाट रहा है…मसाले के डब्बे में नमक,

हलदी, मिर्च, पाउडर सब उलटेपलटे पड़े हैं… गैस के चूल्हे को बेसन के घोल से रंग दिया है तुम ने…चलो, निकलो रसाई से… एक काम करते नहीं कि 10 काम बढ़ा देते हो… जाओ, जा कर बाहर बैठो ?ाले पर… मैं ले कर आती हूं तुम्हारे पकौड़े चाय के साथ,’’ कहते हुए श्रीमतीजी ने हाथ धोए और फिर मेरे हाथ से करछी लगभग छीन ली और मु?ो बाहर का रास्ता दिखा दिया. मौसम वैसे अभी भी बाहर रोमांटिक था पर मैं ने इस बार कूटनीति से काम लेते हुए अपने अंदर के मजनूं को बिलकुल बाहर आने की इजाजत नहीं दी. कहीं अगर मैं प्यार दिखाने के चक्कर में यों ही कह देता कि जानेमन, मैं बना कर खिलाऊंगा तुम्हें और श्रीमतीजी मान जातीं कि ठीक है बनाओ तो? मेरा क्या होता? एक आज्ञाकारी पति की तरह बात मान कर मैं रसोई से निकल कर फिर से ?ाले पर जा बैठा. रवीना, जूही, दीपिका सब नाराजगी दिखा रही थीं, ‘‘कहां चले गए थे? ऐसी बेवकूफी भी कोई करता है क्या?

श्रीमतियों को तो आदत होती है इस तरह रसोई के कामों में पतियों को ललकारने की… पर उन की ललकार सुन कर ऐसी मूर्खता कोई थोड़े ही न करता है… आगे से ऐसी बेवकूफी मत करना… चाणक्य नीति नहीं पढ़ी है क्या?’’ उन्हें अपने लिए विकल देख कर मैं फिर रोमानी होने लगा. अभी मैं ने उन्हें अपनी आंखों में उतारना आरंभ ही किया था कि श्रीमतीजी पकौड़ों से भरी प्लेट और चाय ला कर रख गईं. इस बार मैं ने सम?ादारी से काम लिया और अपनी रोमानियत फिल्मी तारिकाओं के लिए ही बचा कर रखी, श्रीमतीजी के सामने मुंह ही नहीं खोला. श्रीमतीजी दोबारा आईं और पानी का गिलास रख गईं. मैं ने पकौड़ा मुंह में डाला तो इतने स्वादिष्ठ लगा कि पूछो मत… हालांकि नमक कुछ ज्यादा ही था पर फिर भी मैं ने श्रीमतीजी के सामने मुंह नहीं खोला. मैं चाय की चुसकियों के साथ गरमगरम लौकडाउन के पकौड़ों का चुपचाप लुत्फ उठाता रहा. बाहर बारिश तेज हो गई थी और श्रीमतीजी अंदर अपने काम में व्यस्त थीं. मेरे अंदर का मर्द बारबार मु?ो धिक्कार रहा था कि तू औरतों की बराबरी नहीं कर सकता है दोस्त, बस खयालों में खोना ही आता है तु?ो… पतियों की ख्वाहिशों को आकार केवल श्रीमतियां ही दे पाती हैं वरना तो पकौड़ेपकौड़े को तरस जाए तू. मैं सम?ादार तो हो ही चुका था, लिहाजा मैं ने तर्क न कर के चुप रहने में ही अपने भलाई सम?ा और अखबार उठा कर पढ़ने लगा.

नीरा : काव्या क्यों दीप और नीरा की शादी करा चाहती थी

एक लंबा अरसा गुजर जाने के बाद भी दीप और नीरा की शादी खुद दीप की बेटी काव्या करवाना चाहती थी. आखिर क्यों… कहानी द्य सुधा तेलंग आजनीरा का मन सुबह से ही न जाने क्यों उदास था. कालेज के गेट से बाहर निकलते ही कार से उतरते हुए एक व्यक्ति की ओर उस का ध्यान गया तो वह धक से रह गई. कार रोक कर उस ने अधेड़ उम्र के युवक को एक लंबे अरसे बाद देख कर पहचानने की कोशिश की. वही पुराना अंदाज, चेक की शर्ट, गौगल्स से झांकती हुई आंखें कुछ बयान कर रही थी. ‘कहीं ये उस का वहम तो नहीं’ ये सोचते हुए उस ने अपने मन को तसल्ली देने की कोशिश की.

नहीं यह दीप तो नहीं हो सकता वह तो कनाडा में है. वह यहां कैसे हो सकता है? कुछ पल के लिए तो अचानक ही आंखों से निकलती अविरल धारा ने अतीत के पन्नों को खोल कर रख दिया. उस ने रिवर्स करते हुए कार को वापस कालेज की ओर मोड़ा. कार पार्किंग में खड़ी करते ही मिसेज कपूर मिलते ही बोल पड़ी, ‘‘अरे नीरा तुम तो आज आंटी को होस्पीटल ले जाने वाली थी चैकअप के लिए.’’ ‘‘सौरी, डाक्टर का अपौयमैंट कल का है. मैं भूल गई थी.’’ ‘‘नीरा तुम काम का टैंशन आजकल कुछ ज्यादा ही लेने लगी हो. मेरी मानो तो कुछ दिन मां को ले कर हिल स्टेशन चली जाओ.’’ मिसेज कपूर ने नीरा को प्यार से डांटने के अंदाज से कहा. ‘‘ओ के मैडम. जो हुकुम मेरी आका,’’ कहते हुए नीरा ने व्हाइट कलर की कार की ओर नजर उठाई. तब तक दीप कालेज के गेट के अंदर आ चुका था.

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यह कपूर मैडम भी बातोंबातों में कभी इतना उलझा लेती हैं मन ही मन बुदबुदाती हुई नीरा वापस अपने फाइन आर्ट डिपार्टमैंट की ओर चली गई. देखा तो बरामदे में हाथ में फाइल लिए खड़ी लड़की ने हैलो मैडम कह कर हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुए उस से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मुझे मैडम नीरा दास से मिलना है.’’ ‘‘मैं ही नीरा दास हूं. फाइन आर्ट में ऐडमिशन लेना है क्या?’’ ‘‘अरे वाह, सही पकड़ा आप ने. पर मैम आप को कैसे पता चला कि मुझे फाइन आर्ट में ऐडमिशन चाहिए?’’ ‘‘बातें तो अच्छी कर लेती हो. मेरे पास कोई साइंस या कौमर्स का तो स्टूडैंट आएगा नहीं,’’ नीरा ने कमरे का ताला खोलते हुए कहा. तभी पीछेपीछे अंदर दीप भी आ गया और बेतकल्लुफ हो कर बिना किसी दुआसलाम कर आ कर कुरसी पर बैठ गया. काव्या को पापा का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा. पर चाह कर भी वह कुछ नहीं बोल पाई. मन ही मन सोचने लगी कि पापा की तो बाद में घर पहुंच कर क्लास लूंगी.

उस ने नीरा से कहा कि मैडम मैं फाइन आर्ट में ऐडमिशन लेना चाहती हूं. मैं उदयपुर से आई हूं, ‘‘अरे झीलों की नगरी से. ब्यूटीफुल प्लेस.’’ ‘‘आप भी गई हैं वहां पर.’’ ‘‘हां एक बार कालेज टूर पर गई थी न चाहते हुए भी अचानक उस के मुंह से निकल ही गया.’’ ‘‘अरे वाह तब तो मैं बहुत लकी हूं. आप को मेरा शहर पसंद है. मेरे पापा कनाडा में रहते थे पर अब जयपुर ही आ गए हैं पर मैं बचपन से ही अपने नानानानी के पास उदयपुर में रह रही हूं.’’ ‘‘काव्या बेटा अपनी पूरी हिस्ट्री बाद में बता देना, पहले अपना फार्म तो फिलअप कर दो,’’ दीप ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा. नीरा ने संभलते हुए कहा, ‘‘अरे आप बैठिए मैं फौर्म ले कर अभी आती हूं.’’ पास में ही पड़े हुए पानी की बोतल को मेज पर रखते हुए फोन में चाय का और्डर देते हुए नीरा ने काव्या से कहा कि पहले काउंटर नंबर 5 पर जा कर फीस जमा कर दो. पापा के चश्मे से झांकती हुई आंखों से काव्या ने पल भर में ही जान लिया कि जरूर नीरा मैडम व पापा के बीच कोई पुराना रिश्ता है. ‘

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‘पापा आप ठीक तो हैं? काव्या ने पापा के चेहरे पर छलकती पसीने की बूंदों को देख कर कहा.’’ ‘‘डौंट वरी. आई एम फाइन,’’ दीप ने रूमाल से अपने चेहरे को पौंछते हुए कहा. तभी कैंटीन का वेटर चाय ला कर टेबल पर रख गया. ‘‘ओ के पापा. मैं काउंटर से जब तक फौर्म ले कर आती हूं,’’ कहते हुए काव्या बाहर निकल गई. ‘‘सौरी, काव्या कुछ ज्यादा ही बोलती है,’’ कहते हुए एक ही सांस में दीप पूरा गिलास पानी गटागट पी गया. कलफ लगी गुलाबी रंग की साड़ी, माथे पर छोटी सी बिंदी, होंठों पर गुलाबी रंग की हलकी सी लिपस्टिक, छोटा सा बालों का जूड़ा, कलाई में घड़ी सौम्यता व सादगी की वही पुरानी झलक. आज 20 वर्षों के बाद भी नीरा को मूक दर्शक की तरह निहारते हुए कुछ देर बाद दीप ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘नीरा घर में सब कैसे हैं?’’ ‘‘तुम्हारे कनाडा जाने के बाद ही पापा का हार्ट फेल हो गया. सदमे में मां की हालत बिगड़ती चली गई. बस जिंदगी जैसेतैसे गुजर रही है.’’ ‘‘अरे इतना कुछ हो गया और तुम ने खबर तक नहीं की… क्या मैं इतना पराया हो गया?’’

‘‘अपने भी तो नहीं रहे. तुम्हारी शादी के बारे में तो मुझे पता चल गया था. फिर मेरे पास तुम्हारा कोई पताठिकाना भी तो नहीं था,’’ नीरा ने साड़ी के पल्लू से आसुंओं को छिपाने की कोशिश की. ‘‘तुम्हारी अपनी फैमिली?’’ ‘‘मैं ने शादी नहीं की.’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘क्या शादी के बिना इन्सान जी नहीं सकता?’’ ‘‘अरे, मेरा ये मतलब नहीं था.’’ ‘‘अब कूची और कैनवास ही मेरे हमसफर साथी हैं जिन में जब चाहे जिंदगी के मनचाहे रंग मैं भर सकती हूं. बिना किसी रोकटोक के.’’ बात पूरी हो पाती इस से पहले काव्या हाथों में फौर्म ले कर आते ही चहकते हुई बोली, ‘‘मैडम ये रहा फौर्म. प्लीज आप जल्दी से फिलअप करवा दीजिए.’’ ‘‘काव्या यहां बैठो मैं भरवा देती हूं. जब तक दीप तुम मेरी आर्ट गैलेरी देख सकते हो,’’ नीरा मैडम के मुंह से पापा का नाम सुन कर काव्या ने चौंकते हुए कहा, ‘‘अरे आप एकदूसरे को जानते हैं क्या?’’ ‘‘हां काव्या नीरा मेरी क्लासमेट रह चुकी हैं पूरे 3 साल तक राजस्थान यूनिवर्सिटी में.’’ ‘‘वाउ… अरे कमाल है. आप ने तो कभी बताया ही नहीं कि जयपुर में भी आप कभी रह चुके हैं.’’ ‘‘बेटा हमें जयपुर छोड़े तो 20-22 साल हो गए. कभी बताने का मौका ही नहीं मिला.

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एक के बाद एक परेशानियां जीवन में आती रही.’’ ‘‘फौर्म में दीपक बजाज के बाद लेट जया बजाज लिखते ही नीरा ने काव्या के फार्म पर हाथ रखते हुए कहा कि तुम कहीं गलत तो नहीं हो. यह लेट क्यों लिखा है.’’ ‘‘नहीं मैम मेरी मम्मी अब इस दुनिया में नहीं है.’’ ‘‘ओह, आई एम वेरी सौरी.’’ ‘‘नीरा काव्या जब 2 साल की ही थी तब ही बिजनैस मीटिंग के लिए जाते वक्त एक कार ऐक्सीडैंट में जया…’’ दीप ने रूंधे गले से कहा. ‘‘मम्मी की मौत के बाद नानानानी कनाडा छोड़ कर इंडिया आ गए तब से मैं उदयपुर में हूं. पापा से तो बस कभी साल में एकाध बार ही मिल पाती थी. पर अब हमेशा पापा के साथ ही रहूंगी.’’ काव्या की आंखों में डबडबाते आंसुओं को देख कर नीरा ने काव्या का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘सौरी मैं ने गलत टाइम पर यह बात की. चलो पहले यह फौर्म भर कर जल्दी से जमा करो आज लास्ट डेट है.’’ ‘‘मैम प्लीज आप का मोबाइल नं. मिल जाएगा, कुछ जानकारी लेनी हो तो…’’ ‘‘नो प्रौब्लम,’’ नीरा ने अपना विजिटिंग कार्ड काव्या को दे दिया.

फौर्म भर कर काव्या फौर्म जमा करने चली गई तब दीप ने अपना कार्ड देते हुए कहा कि अब मैं भी परमानेंटली फिर से जयपुर में ही आ गया हूं. कनाडा हमें रास नहीं आया.’’ ‘‘पहले जया फिर मम्मीपापा को खो देने के बाद वहां अब बचा ही क्या है? इन 20-22 सालों में मैं ने सब कुछ खो दिया है. सिवा पुरानी यादों के.’’ ‘‘ओ के बाद में मिलते हैं.’’ घर आ कर नीरा की आंखों में पुरानी यादों की धुंधली तसवीरें ताजा होने लगी. न चाहते हुए भी उस के मुंह से निकल गया मां आज दीप मिले थे.’’ ‘‘कौन दीप, वही सेठ भंवर लालजी का बेटा.’’ ‘‘हां मां.’’ ‘‘अब यहां क्या करने आया है?’’ ‘‘मां उस के साथ बहुत बड़ी ट्रैजडी हो गई. अंकलआंटी भी चल बसे और पत्नी भी. बेटी का ऐडमिशन कराने आए थे.’’ ‘‘ऐसे खुदगर्ज इंसान के साथ ऐसा ही होना चाहिए.’’ ‘‘मां ऐसा मत कहो. क्या पता कोई मजबूरी रही हो.’’ बेमन से ही डाइनिंग टेबल पर रखा खाना मां को परोसते हुए नीरा ने कहा, ‘‘मां आप खाना खा लीजिए. मुझे भूख नहीं है.

दवा याद से ले लेना. आज मेरे सिर में दर्द है मैं जल्दी सोने जा रही हूं.’’ अपने कमरे में जा कर उस ने अलमारी से पुराना अलबम निकाला ब्लैक ऐंड व्हाइट फोटोज का रंग भी उस के जीवन की तरह धुंधला पड़ चुका था. उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी में दीप के साथ की फोटो के अलावा एक नाटक हीररांझा की देख कर पुरानी यादें ताजा होती गईं. उसी दौरान तो उस की दीप से दोस्ती गहरी होती गई पर बीए औनर्स पूरा होते ही दीप जल्दी आने की कह कर अपने पापा के अचानक बीमारी की खबर आते ही कनाडा चला गया. फिर लौट कर ही नहीं आया. हां कुछ दिनों तक कुछ पत्र जरूर आए पर बाद में वह भी बंद. बाद में दोस्तों से पता चला कि उस ने किसी बिजनैसमेन की बेटी से शादी कर ली है. वह सोचने लगी उसे तो ऐसे खुदगर्ज इंसान दीप से बात ही नहीं करना चाहिए था ताकि उसे अपनी गलती का एहसास तो हो. पर मन कह रहा था नहीं दीप आज भी मैं तुम्हें नहीं भुला पाई हूं.

तुम्हारे बिना पूरा जीवन मैं ने यादों के सहारे बिता दिया. पूरी रात आंखों में पुरानी यादों को तसवीरों को सहेजते देखते कब सवेरा हो गया उसे पता ही नहीं चला. समय पंख लगा कर तेजी से बीत रहा था. न जाने क्यों न चाहते हुए भी क्लास में काव्या को देखते ही नीरा को उस में दीप की ही छवि नजर आती. उस की हंसी, बातचीत का पूरा अंदाज उसे दीप जैसा ही लगता. रविवार के दिन वह सुबह उठ कर जैसे ही लौन में चाय पीने बैठी ही थी कि बाहर हौर्न की आवाज सुनाई दी. उस ने माली को आवाज दे कर कहा कि रामू काका देखना कौन है? गेट खोलते ही देखा तो वह चौंक पड़ी देखा. दीप और काव्या हाथों में गुलाब का गुलदस्ता ले कर आ रहे हैं. ‘‘अरे आप लोग यों अचानक.’’ ‘‘ढेर सारी शुभकामनाएं. हैप्पी बर्थडे.’’ ‘‘थैंक्स, पर मैं तो कभी अपना बर्थडे सैलिब्रेट नहीं करती,’’

न चाहते हुए उस ने गुलाब के फूलों का बुके ले ही लिया. ‘‘क्या करूं बहुत दिनों से अपने मन की बात करना चाहता था. तुम से माफी मांगना चाहता था. आज रातभर काव्या ने मुझे सोने नहीं दिया. हमारे कालेज टाइम से अलग होने तक की कहानी पूछती रही. मैं तुम्हारा गुनहगार हूं. मेरी तो हिम्मत नहीं हो रही थी तुम्हारे घर आने की.’’ ‘‘नीरा मैम, आप की मैं आज पूरी गलतफहमी दूर कर देती हूं. मेरे दादाजी के बिजनैस में घाटा लग जाने पर पापा को कनाडा अपनी बीमारी का बहाना बना कर बुला लिया और वहां अपने बिजनैस पार्टनर की बेटी मेरी मम्मी से जबरन ही शादी करवा दी. यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि पापा को सोचने का टाइम भी नहीं मिला. पापा की आंखों में पछतावे की लकीरें मैं कई सालों से महसूस कर रही हूं. वह मन के तार से आप से आज भी जुड़े हैं. आप से उन का दर्द का रिश्ता जरूर है. प्लीज आप उन्हें माफ कर दीजिए,’’ काव्या ने एक नया रिश्ता जोड़ने की गरज से अपनी बात कही.

नीरा वहां बैठी मौन मूक सी आकाश में शून्य को निहारती रही. काव्या व दीप को विदा कर उस ने चुपचाप अपनी कार निकाली. यों अचानक ही दीप व काव्या के आ जाने से उस के जीवन में एक भूचाल सा आ गया था. दूसरे दिन से फिर वह ही रूटीन कालेज में क्लासेज, मीटिंग के साथ पैंटिंग प्रदर्शनियों की तैयारी में व्यस्तता. प्रदर्शनी में एक पूरी सीरीज काव्या की पैंटिंग्स की थी. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारी सशक्तिकरण व सीनियर सिटीजन थीम पर. उस की उंगुलियों में सचमुच जादू था. काव्या की पैंटिंग के चर्चे पूरे कालेज में मशहूर होने लगे. 3 साल पलक झपकते ही कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में वह और दीप बमुश्किल 5-6 बार ही मिले होंगे पर फोन में अकसर बात हो जाती थी फिर वह चाहे काव्या की पढ़ाई को ही ले कर हो. ‘‘काव्या ने बीए फाइनल ईयर आर्ट में पूरे क्लास में टौप किया. काव्या ने पार्टी अपने घर में रखी. दोस्तों के चले जाने के बाद बातों ही बातों में उस ने आखिर अपने मन की बात कह ही दी. नीरा आंटी लगता है कि अब तक आप ने पापा को माफ कर दिया होगा.

कुछ दिनों बाद मेरी शादी भी हो जाएगी और पापा तो एकदम अकेले ही रह जाएंगे. मेरे दादाजी की गलतियों की सजा पापा ने 20-22 सालों तक भुगत ली. फिर आप ने भी तो पूरा जीवन अकेले ही गुजार लिया.’’ ‘‘जीवन के आखिरी दिनों में बुढ़ापे में एकदूजे के सहारे की जरूरत होती है. चाहे वह एक पति के रूप में हो या दोस्त के रूप में हो या फिर साथी के रूप में. अगर मैं इस अधूरी कहानी के पन्नों को पूरा कर सकूं और एक कोरे कैनवास में चंद लकीरें रंगों की भर सकूं तो मैं समझूंगी कि मेरी एक बेटी होने का मैं ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया,’’ काव्या की बातें सुन कर चाह कर भी नीरा कुछ बोल नहीं पाई. काव्या की बातों ने उसे सोचने को मजबूर कर दिया. अब तो धीरेधीरे कुछ ही दिनों में काव्या ने नीरा के मन को जीत लिया. नीरा के मन में भी काव्या के प्रति वात्सल्य, अपनेपन, प्यार का बीज प्रस्फुटित हो चुका था. चंचल व निश्चल मन की काव्या की जिद के आगे उसे आखिर झुकना ही पड़ा,

अपना फैसला बदलना पड़ा. एक दिन कोर्ट में जा कर सिविल मैरिज फिर एक छोटी सी पार्टी के बाद अब वह मिस नीरा दास से मिसेज नीरा दास बजाज बन गई. बुढ़ापे में नारी को एक पुरुष के सहारे की जरूरत होती है. न चाहते हुए भी उसे अपनी धारणा बदलनी पड़ी. उस के सूने मन के किसी कोने में एक बेटी की चाहत थी वह आज पूरी हो गई थी. काव्या के रूप में उसे एक प्यारी सी बेटी मिल गई. पुनर्मिलन की इस मधुर बेला में काव्या ने अटूट रिश्तों की डोर के बंधन में बांधते हुए विश्वास, प्रेम व त्याग की ज्योति जगमगा कर अपने पापा दीप व नीरा आंटी के रंग हीन सूने जीवन को इन्द्रधनुषी रंगों से सराबोर कर दिया. द

हैप्पी एंडिंग

हैप्पी एंडिंग : भाग 2

शाम को जब सभी भाई गली में क्रिकेट खेल रहे होते, मां, चाचियां रसोई में और दादी ड्योढ़ी में बैठी पड़ोस की महिलाओं से बात कर होतीं, मुझे अच्छा समय मिल जाता छत पर जाने का… उम्मीद के मुताबिक सुमित मेरा ही इंतजार कर रहे होते… संकोच और डर के साथ शुरू हुई हमारी बात, उन की बातों में इस कदर खो जाती… कब अंधेरा हो जाता पता ही नहीं चलता.

उस दिन भाई की आवाज सुन कर मैं प्रेम की दुनिया से यथार्थ में आई, सुमित से विदा ले कर नीचे आई ही थी कि घरवालों के सवालों के घेरे में खड़ी हो गई. ‘‘कहां गई थी?’’‘‘छत पर इतनी रात को अकेले क्या कर रही थी?’’ ‘‘दिमाग सही रहता है कि नहीं तुम्हारा.’’

मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी थी, क्या बोलूं… सच बोल दूं… ‘‘आप सभी की तमाम बंदिशों को तोड़ कर किसी से प्यार करने लगी हूं, मेरे जन्म के साथ ही जिस डर के साये में दादी ने सभी को जिंदा रखा है आखिरकार वह डर सच होने जा रहा है.’’ मेरे शब्द मेरे दिमाग में चल रहे थे जुबां पर लाने की हिम्मत नहीं थी… कुछ नहीं बोली मैं, सुनती रही… जब सब बोल कर थक गए तो मैं अपने कमरे में चली गई.

ऐसे ही समय बीतता गया और मेरा प्यार परवान चढ़ता गया. 10 दिनों के बाद सुमित मद्रास के लिए निकल गए, उस दिन मैं छत पर उस की बाहों में घंटों रोती रही वह मुझे समझाता रहा, विश्वास दिलाया कि वह मुझे कभी नहीं भूलेगा, हमारा प्रेम आत्मिक है जो मरने के बाद भी जिंदा रहेगा.‘‘हमें इंतजार करना होगा रीवा, पढ़ाई पूरी करने के बाद ही हम घर वालों से बात क सकते हैं.’’

‘‘मैं तो पढ़ाई पूरी करने के बाद भी बात नहीं कर सकती, तुम जानते हो मेरे परिवार को… जिस दिन उन्हें भनक भी लग गई तो वे बिना सोचे मेरी शादी किसी से भी करा देंगे और मैं रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकती.’’‘‘हम्म… मुझे एहसास है इस बात का, मैं ने एक डरपोक लड़की से प्रेम कर लिया है,’’ हंसते हुए सुमित ने कहा तो मेरी भी हंसी छूट गई.इसी तरह 4 वर्ष बीत गए… हर गर्मियों की छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए सुमित आते हम ऐसे छिप कर मिलते फिर पूरा साल खतों

के सहारे बिताते… बीना आंटी को हम दोनों के बारे में सब पता था… मेरे खत उन्हीं के पते पर आते थे, बीना आंटी मुझे बहुत प्यार करती थी. उन के लिए तो मैं 4 साल पहले ही उन की बहू बन गईर् थी.मैं बीकौम कर रही थी उधर सुमित को डाक्टर की डिगरी मिल गई. एमडी करने के लिए वह पुणे शिफ्ट हो गया और मैं दादी की आंखों की किरकिरी बनती जा रही उन्होंने वह मेरी शादी के लिए पिताजी पर जोर डालना शुरू कर दिया था, हर दिन पंडितजी को बुलावा जाता, नएनए रिश्ते आते, कुंडली मिलान के बाद रिश्तों की लिस्ट बनती फिर शुरू हो जाता आनाजाना, मैं ने बीना आंटी से कहा वे मां से बात करें नहीं तो दादी मेरी शादी कहीं और करा देंगी.

बीना आंटी ने मां से बात की तो मां को विश्वास नहीं हुआ इतनी बंदिशों के बाद उन की बेटी ने प्रेम करने की हिम्मत कैसे कर ली वह भी दूसरी जाति में.‘‘तू चल अपने कमरे में’’ पहली बार मां का यह सख्त रूप देख रही थी.‘‘मां, मैं सुमित से ही शादी करूंगी नहीं तो खुद को मार लूंगी.’’‘‘तो किस ने रोका तुम्हें. वैसे भी मारी जाओगी इस से अच्छा है खुद को मार लो, मेरा परिवार तो गुनाह करने से बच जाएगा.’’‘‘मां’’ मैं ने तड़पते हुए कहा.

गुस्से से मां कांप रही थी उन की ममता ने उन्हें रोक लिया था नहीं तो शायद उस दिन उन्होंने मेरा गला दबा दिया था. चुपचाप मेरे लिए दूल्हा ढूंढ़ने का तमाशा देखने वाली मेरी मां… दादी के साथ मिल कर खुद दूल्हा ढूंढ़ रही थी. इस घर में एकमात्र सहारा मेरी मां मुझ से दूर हो गई थी, बीना आंटी ने सुमित से बात की… सुमित उधर परीक्षा शुरू होने वाली थी और इधर मेरी जिंदगी की.

कभी सोचती..‘‘खुद को मार लूं या सुमित के पास भाग जाऊं?’’‘‘नहीं… नहीं सुमित के पास नहीं जा सकती नहीं तो ये लोग उस को मार देंगे, बीना आंटी को भी बदनाम कर देंगे… कुछ भी कर सकते हैं.’’भाइयों को रईसी विरासत में मिली थी पढ़ाई छोड़ राजनीति और गुंडागर्दी में आगे थे.

मेरी कोई सहेली भी नहीं थी जिस से दिल की बात कर सकूं. बीना आंटी से बात न करने की मां की सख्त हिदायत थी. अब तो सुमित के खत भी नहीं मिलते, उस की कोई खबर नहीं… मैं कहां जाती… किस से बात करती, यहां सब दादी के इशारे पर चलते थे.

कालेज से घर… घर से कालेज यही मेरी लाइफ थी.आखिर वह दिन भी आ गया जब मेरी शादी की डेट फिक्स हो गई… एनआरआई दूल्हा, पैसेरुपए वाले और क्या चाहिए था इन लोगों को.

मैं एक जीतीजागती, चलतीफिरती गुडि़या बन गई थी जिस के अंदर भावनाओं का ज्वार ज्वालामुखी का रूप ले रहा था, मैं चुप थी… क्योंकि मेरी मां चुप थी. यहां बोलने का कोई फायदा नहीं सभी ने अपने दिल के दरवाजे पर बड़ा ताला लगा रखा था, जहां प्रेम को पाप समझा जाए वहां मैं कैसे अपने प्रेम की दुहाई दे कर अपने प्रेम को पूर्ण करने के लिए झोली फैलाती, यहां दान के बदले प्रतिदान लेने की प्रथा है, इन के लिए सच्चा प्रेम सिर्फ कहानियों में होता है. लैला मजनू, हीररांझा ये सब काल्पनिक कथाएं ऐसे विचारों के बीच मेरा प्रेम अस्तित्वहीन था. अब तो कोई चमत्कार ही मुझे मेरे प्रेम से मिला सकता था. हैप्पी ऐंडिंग तो

कहानियों में होती है असल जिंदगी में समझौते से ऐंडिंग होती है. फिर भी एक आस थी मेरे मन में, सुमित मुझे नहीं छोड़ेगा, वह जरूर आएगा… दुलहन के लाल जोड़े में बैठी उसी आखिरी आस के सहारे बैठी थी… कभी लगता… अभी दूसरे दरवाजे से सुमित निकल कर आएंगे और मैं उन का हाथ थामे यहां से निकल जाऊंगी… लेकिन उस को नहीं आना था और वह नहीं आया, मेरा प्रेम झूठा था या उस के वादे… दिल टूटा और

मैं रीवा… उस पल में मर गई, प्रेम कहानियों से प्यार करने वाली मैं… कहानियों से नफरत करने लगी, सब कुछ झूठ और धोखे का पुलिंदा बन गया…मंडप में बैठी मैं शून्य थी, मुझे याद भी नहीं कैसे रस्में हुई, शादी हुई… मैं होश में नहीं थी. विदाई के वक्त बीना आंटी दरवाजे पर खड़ी थीं मैं रोते हुए उन के गले लग गई… मैं ने फुसफुसा कर कहा ‘‘मेरा प्यार छिन लिया अभी कुछ वक्त पहले मैं ने सुमित को बेवफा समझा… वह वहां अनजान बैठा है और मैं किसी और के नाम का सिंदूर सजा कर खड़ी हूं.’’

 

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