अगर आप किचन को किचकिच रूम मानते हैं तो जान लीजिए आप गलत हैं क्योंकि रिसर्च कहती है कि कुकिंग एक स्ट्रैस बस्टर होने के साथसाथ क्रिएटिविटी निखारने का बेहतर माध्यम है. कैसे, बता रही हैं एनी अंकिता.
महिलाओं के पास टैंशन की कमी नहीं है. औफिस में काम की टैंशन तो घर पहुंचते ही पति और सास की फरमाइशों की डिशेज बनाने की टैंशन. दिनभर की थकान और तनाव के बाद महिला का किचन में जाने का बिलकुल मन नहीं करता. वह किचन को कुकिंगरूम कम, किचकिच रूम ज्यादा समझने लगती है और बेमन से खाना बनाने लगती हैं.
लेकिन यह जान कर आप को हैरानी होगी कि किचन में तनाव नहीं होता, वह तो एक स्ट्रैस बस्टर है यानी तनाव को खत्म करता है. वहां आप रिलैक्स फील कर सकती हैं, अपनी सारी थकान व मानसिक तनाव को दूर कर सकती हैं.
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लंदन के मनोचिकित्सक मार्क साल्टर के अनुसार, किचन में खाना पकाना तनाव को कम करने का एक चिकित्सकीय उपचार है. यह एक ऐसी जगह है जहां आप की सारी नकारात्मक सोच सकारात्मक बन जाती है.
साल्टर के अनुसार, कुकिंग तनाव से ग्रसित रोगियों को प्रोत्साहित करती है, उन की याददाश्त, ध्यान व फोकस को बढ़ाने में मदद करती है. इस के साथ ही, उन्हें प्लानिंग करना और सोशल स्किल भी सिखाती है. अपने कई रोगियों के लिए कुकिंग को एक थेरैपी के रूप में इस्तेमाल करने वाले चिकित्सक व मानसिक स्वास्थ्य उपचार केंद्र भी साल्टर के विचारों का समर्थन करते हैं.
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दिल्ली के क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट डा. रिपन सिप्पी कहते हैं कि हर वह काम जिसे करने में मजा आए, हमारी मैंटल हैल्थ को बेहतर करता है. महिलाओं के लिए कुकिंग भी ऐसा ही एक काम है. यह एक थेरैपी है जो शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहने में मदद करती है.
डा. सिप्पी कहते हैं, ‘‘जब हम तनाव में होते हैं तब हमारे शरीर से एटरलिन नामक एक कैमिकल निकलता है, जिस की वजह से हमें गुस्सा आता है और जब हम कटिंग, चौपिंग व आटा गूंधते हैं तो स्कीवीजिंग बौल की तरह हमारे शरीर में भी क्रिया होती है. जिस की वजह से धीरेधीरे हमारा गुस्सा कम होने लगता है और हम अच्छा महसूस करने लगते हैं.’’
कुकिंग थेरैपी के बारे में कुकिंग ऐक्सपर्ट मंजु मोंगा कहती हैं कि कुकिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे करने पर हमें खुशी मिलती है. हम नईनई चीजें सीखते हैं, जिस से हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है. हां, यह बात भी सही है कि हमारे मूड का असर हमारे खाने पर भी दिखता है, जैसे जब हम खुश होते हैं तो कुछ मीठा बनाने का मन करता है. किचन की छोटीछोटी गतिविधियां भी हमें खुश रखने में मदद करती हैं.
क्या है कुकिंग थेरैपी
कुकिंग थेरैपी एक स्ट्रैस बस्टर है जो हमें तनावमुक्त कर हमारी क्रिएटिविटी को निखारती है. यह एक कला है, जिस में हम एक जगह पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं. इस से हम मानसिक रूप से प्लानिंग और टाइम मैनेजमैंट के गुण सीखते हैं और शारीरिक रूप से हमारे हाथ, पैर, गरदन व उंगलियों का मूवमैंट होता है. एक जगह पर ध्यान लगाने की वजह से हम अपने अंदर नकारात्मक विचारों को भूल जाते हैं. यह थेरैपी हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है जिस की वजह से हम अच्छा अनुभव करने लगते हैं.
किस तरह है कारगर
रिश्तों में मजबूती :
रसोई के जरिए रिश्ते मजबूत होते हैं. यहां परिवार के सदस्य मिलबांट कर काम करते हैं, एकदूसरे की मदद करते हैं और गुपचुप बातें शेयर करते हैं.
सामाजिक मेलजोल :
आसपास के लोगों से बातचीत करने की पहल के लिए कुकिंग काफी मददगार है. जब हम किचन और रैसिपीज के बारे में किसी से बात करते हैं तो हमारा सारा टैंशन दूर हो जाता है.
गुस्से पर नियंत्रण :
जब हम गुस्से में होते हैं तब हमें समझ नहीं आता है कि हम क्या कर रहे हैं. गुस्से को नियंत्रित करने के लिए कुकिंग बैस्ट औप्शन है. किचन में ऐसी कई छोटीछोटी चीजें होती हैं जिन से हमारा गुस्सा शांत हो जाता है.
हैल्दी बौडी :
कुकिंग हमें मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार से फिट रखती है, जिस से हम हैल्दी महसूस करते हैं.
शेयरिंग हैबिट :
हम ने कुछ अच्छा बनाया तो हम अपने आसपड़ोस के लोगों को भी उस का स्वाद चखाते हैं, उन से शेयर करते हैं. इस की वजह से हमारे अंदर शेयरिंग हैबिट आ जाती है.
कुकिंग एक इलाज :
कुकिंग बीमारियों का इलाज भी है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, घर में खाना बनाना उम्र बढ़ाने में मददगार है यानी अगर आप किचन में काम करती हैं तो आप की आयु बढ़ती है. साथ ही कुकिंग तनाव, थकान, अकेलेपन जैसी कई बीमारियों को दूर भी करती है.
कुकिंग करें, खुश रहें :
कुकिंग ऐसी क्रिया है जिस में हम नईनई चीजें सीखते हैं और स्वाद से सब को खुश करते हैं.
तो फिर इंतजार किस बात का, जब भी तनाव महसूस करें, किचन में जा कर कुछ अच्छा बनाएं और तनावमुक्त हो जाएं.