क्या आपका बच्चा अपने साथी बच्चों से मारपीट, दांत काटने जैसी हरकतें करता है? गुस्से में आप (माता-पिता), नौकर, बड़े भाई-बहनों से भी मारपीट शुरू कर देता है? हर बात में जिदबाजी करता है? अगर हां, तो उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास ले जाएं.
‘‘कुछ समय पहले एक बच्ची ‘नेहा’ के अभिभावक मेरे पास आए थे. नेहा बेहद हिंसक प्रवृत्ति की थी. पहले वह साथ खेलते बच्चों को पीटती थी बाद में घर के नौकरों, बड़े भाई और माता-पिता को भी उसने मारना शुरू कर दिया. हर बात में जिद करती, कोई उस की बात नहीं सुनता, तो दांत काट लेती थी. घर वालों की हरसंभव कोशिश के बाद भी जब नेहा सुधरी नहीं, तो किसी की सलाह पर उसके अभिभावक उसे लेकर मेरे पास आए. इतनी छोटी बच्ची से बात करना और उस के मन का हाल समझना मेरे लिए बड़ा मुश्किल था पर मात्र 4-5 सिटिंग में ही मैं ने उसे पूरी तरह ठीक कर दिया और अब नेहा बिलकुल ठीक है,’’ यह बताते हैं विम्हांस के प्रमुख मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर जितेंद्र नागपाल.
ये भी पढ़ें- बिगड़ैल बच्चों पर लगाम लगाना जरूरी
बच्चों में पनपती हिंसात्मक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार कौन है? यह पूछे जाने पर जितेंद्र नागपाल का कहना है, ‘‘हिंसा के लिए तीन-चौथाई दोषी मैं उनके माता-पिता और पारिवारिक माहौल को मानता हूं. बाकी 25 प्रतिशत फिल्में,टेलीविजन और आपका आतंकवादी माहौल जिम्मेदार है.
‘‘सब से बड़ी बात है कि अभिभावक अपने बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को छिपाते हैं या अपने स्तर पर ही समझा-बुझा कर मामला रफादफा करना चाहते हैं. वह यह मानने को कतई तैयार नहीं होते कि उन का बच्चा किसी मानसिक रोग से पीडि़त है और उसे मनोचिकित्सक की सलाह की जरूरत है, जबकि बच्चों में पनपती इस हिंसा को रोकने के लिए उन्हें मनोचिकित्सा की जरूरत होती है. दंड देना या जलील करना उन्हें और ज्यादा आक्रामक बना जाता है.
‘‘सामाजिक हिंसा और उस से पड़ने वाला असर भी बच्चों को आक्रामक बनाता है. समाज में फैली जातिवाद की भावना, अमीरी-गरीबी का भेद,बच्चों की अंतरात्मा को छलनी कर देता है. दूसरों के द्वारा महत्त्वहीन समझा जाना उसमें एक प्रकार की हीन भावना भर जाता है जो उसके हिंसक बनने का मूल कारण बनता है.
ये भी पढ़ें- बेहद काम के हैं खुश रहने के ये 11 टिप्स
‘‘गरीब, बेघर, समाज द्वारा दुत्कारे बच्चों में समाज के प्रति एक तरह का आक्रोश पैदा हो जाता है. यही आक्रोश हिंसा के द्वारा बाहर जाहिर होता है. हर क्षण अपने अस्तित्व को साबित करने की लड़ाई ज्यादातर आक्रामक साबित होती है.
‘‘शारीरिक और स्वभावगत कठिनाइयां, बनते-बिगड़ते बंधन या रिश्ते, पारिवारिक कलह, अभिभावकों का बच्चों के साथ असामान्य व्यवहार बच्चे के स्वभाव में अस्थिरता ला देता है. बच्चे के साथ दुर्व्यवहार जिसमें शारीरिक यातना, यौन उत्पीड़न, उपेक्षा, भावनात्मक उत्पीड़न आदि कई प्रमुख कारण पाए गए हैं ऐसे युवाओं में जिन्होंने बालपन में या किशोरावस्था में हत्याएं की हैं या हिंसक अपराध किए हैं. इस हिंसा का सब से दर्दनाक मूल्य इनसानी जान से हाथ धो बैठना है. इस के साथ ही इतनी कम उम्र में बच्चों का आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाना, ड्रग्स की खरीदफरोख्त या उन का सेवन, हथियार रखना व अन्य कई तरह के आपराधिक मामलों में शामिल हो जाते हैं या फिर स्थानीय गुंडों की शागिर्दी में आ कर गलत काम करते हैं.
‘‘पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर बाल अदालतें, इन्हें अवयस्क होने के कारण सजा न दे कर सुधरने के लिए सुधार गृहों में भेजती हैं. सुधार गृहों की भयानक स्थिति में ऐसे बच्चे और अधिक आक्रोश में आ कर बड़े अपराधी बन जाते हैं.
ये भी पढ़ें- खाना हो तो मां के हाथ का
‘‘अपराध करने वाले इन बाल अपराधियों को सुधारघरों में समाज से अलग कर के सुधारा जाना संभव नहीं है. इन्हें सुधारने के लिए इन की मनोवैज्ञानिक चिकित्सा अति आवश्यक है. वयस्कों में भी हिंसक प्रवृत्ति होने के मनोवैज्ञानिक कारण ही होते हैं फिर बच्चे तो बच्चे ही हैं. वे अपनी मानसिक कमजोरी के चलते ही हिंसक हो उठते हैं अपराध हो जाने के बाद ही वे समझ पाते हैं कि उन से कोई भयंकर भूल हो गई है.’’
डॉक्टर नागपाल का कहना है, ‘‘12 साल का बच्चा यदि किसी का खून कर रहा है या किसी और अपराध में शामिल है तो इस का यह अर्थ कदापि नहीं है कि यह हिंसक भावना उस में अचानक ही आ गई है. ऐसी सोच उस में बचपन से ही होती है. उपेक्षित बच्चे, मांबाप या रिश्तेदारों का ध्यान आकर्षित कर के व अधिक लाड़- चाव वाले बच्चे हठधर्मिता के द्वारा अपनी बात मनवाना जानते हैं.’’
यदि बच्चा हिंसक हो रहा है तो उसका कारण जानने का प्रयास करें. उसे वक्त दें. उस की बात सुनें. उसे अहसास दिलाएं की वह कीमती है, फुजूल नहीं. उसकी सोच को भटकने न दें. व्यक्तित्व में स्थिरता लाने का प्रयत्न करें. फिर भी यदि बच्चा आपके नियंत्रण में नहीं आता है तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह अवश्य लें.