नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की केंद्र सरकार सीधे टैक्स लगा कर जनता के मुंह से निवाला छीनने से घबरा रही है, इसलिए वजह सरकारी कंपनियां बेच रही है. इन में एयर इंडिया, कई बंदरगाह, बीएसएनएल आदि की लंबी सूची है जिसे पूरा लिखने में पन्ने भर जाएं. इन में 42 सैनिक समान बनाने वाली कंपनियां भी हैं जिन्हें भी निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा. अब इन सैनिक हथियार बनाने वाले कारखानों के ‘देशभक्त’ कर्मचारी भाजपा सरकार की देशभक्ति के दिखावटी नारे की पोल खोलने पर उतर आए हैं और हड़ताल पर हैं.

इस में शक नहीं है कि सरकारी कंपनियां आमतौर पर निकम्मी हैं और बेहद नुकसान में चल रही हैं. जो अगर मुनाफों में दिख रही हैं तो वे नकली खाते बनाती हैं. उन का तरीका यह है कि राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से मनमाने दाम पर टैंडर ले लो और निजी क्षेत्र से काम टुकड़ों में करा कर बेच दो. राज्य व केंद्र सरकारें टैक्स से जमा पैसा इन निकम्मी सरकारी कंपनियों को देती हैं जहां यह नेताओं के भाईभतीजों वाली कर्मचारियों की फौज में खप जाता है. पर. उन्हें बेचने से क्या होगा?  इन के कर्मचारियों को निकाल दिया जाएगा. फैक्ट्रियां आधुनिकीकरण के नाम पर तोड़ दी जाएंगी. मोनेटाइजेशन के नाम पर फालतू की जमीन बेच दी जाएगी. फैक्ट्री या   ????……????   का सिर्फ कोई बनेगा, बाकी सब नया होगा, या खरीदार से किसी और के हाथ में जा चुका होगा.

कहने को तो सरकार इसे मोनेटाइजेशन का नाम दे रही है पर यह पुराने गहनों की बिक्री है जो फक्कड़ बनने के समय की जाती है.

निजी कंपनियां यह पैसा कहां से लाएंगी. बहुत सी कंपनियां बैंकों से कर्ज लेंगी. यह पैसा जनता का होगा जो बैंक आज ब्याज पर सरकारी मिलीभगत से अपने पास जमा कर रहे हैं. यह पैसा लौटाया ही नहीं जाएगा और एक तरह से बैंक जनता को चूस कर इस नुकसान की भरपाई करेंगे.

यह पैसा शेयर मार्केट से भी आएगा. वहां आम जनता मोटे रिटर्न के लालच में बचत का पैसा लगा रही है पर असल में लाभ उन सट्टे वालों को हो रहा है जो रोज खरीदबेच करते हैं. विदेशी भी कुछ पैसा लगाएंगे ताकि वे ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह जनता पर छिपा हुआ टैक्स लगा सकें. ईकौमर्स कंपनियों ने पहले ही नुकसान सह रहे किराना उद्योग को नष्ट किया और अब मनमाने दाम सुविधा के नाम पर वसूल रहे हैं. यह अंतर एक तरह से टैक्स है जो इन सरकारी कंपनियों की खरीद में लगेगा.

इस ब्रिकी से लाखों कर्मचारी लगभग बेकार हो जाएंगे. वैसे उन से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए क्योंकि वे भी जनता के पैसे को लूटते थे पर इस लूट के आदी अर्धसरकारी कर्मचारी नौकरी भी खोएंगे और बहुत से घर भी.

अगर यह बेचाबेची देश में अनुशासन और कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए की जा रही होती तो कोई एतराज न होता. पर यह तो रोजमर्रा का खर्च चलाने के लिए हो रही है. पिछले 7 सालों में आंतरिक सुरक्षा और धार्मिक निर्माणों पर टैक्स का पैसा अंधाधुंध तरीके से लगा है. यह पैसा उसी काम को और बढ़ाएगा. पुलिस वालों की गाडिय़ां नई होंगी और मंदिरों के शिखरों पर सोना चढ़ेगा, लेकिन जनता भूखी रहेगी और बेकारी बढ़ेगी.

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