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Bigg Boss 15 : Devoleena की वजह से रूका ‘टिकट टू फिनाले’ का फैसला तो घरवालों ने मचाया बवाल

बिग बॉस 15 अपने आखिरी पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है और  घर के सभी कंटेस्टेंट का गेम एक -दूसरे पर भारी पड़ता नजर आ रहा है. सभी कंटेस्टेंट एक दूसरे से आगे जाने के लिए एक दूसरे के साथ गेम खेलते नजर आ रहे हैं.

बिग बॉस 15 के अभी तक के एपिसोड में दिखाया गया है कि टिकट टू फिनाले का टॉस्क दिया गया है, जिसमें एक -दूसरे के बीच टकराव पैदा होता नजर आ रहा है. प्रोमो में दिखाया गया है कि टिकट टू फिनाले का टॉस्क करते हुए सभी कंटेस्टेंट को दिखाया गया है लेकिन करण कुंद्रा कुछ और कहते दिख रहे हैं. ऐसे में यह साफ पता चल रहा है कि वीआईपी की वजह से कंटेस्टेंट में आपस में जमकर टकराव होने वाला है.

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तभी प्रतीक सहजपाल कहते हैं कि अगर कोई फिनाले तक पहुंचता है तो ट्रॉफी एक ही होगी, जिसके बाद से देबोलीना भट्टाचार्जी कहती हैं कि टिकट टू फिनाले में कोई भी विनर नहीं है. तभी बिग बॉस भी देबोलीना भट्टाचार्जी को अपना फैसला सुनाते हैं.

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इसी दौरान देबोलीा भट्टाचार्जी को लोगों पर गुस्सा आ जाता है और वह अपना आपा खो देती हैं. जिसके बाद से उनके फैसले पर घर के सभी सदस्य उनपर उंगली उठाते नजर आते हैं. जिसके बाद से देबोलीना घरवालों पर चिल्लाने लगती हैं और कहती हैं कि रश्मि मैं अपना आपा खो रही हूं और वह अभिजीत बिचकूले पर आरोप लगाती हुई नजर आ रही हैं.

इसी बीच राखी सावंत और रश्मि देसाई भी उनपर आरोप लगाती नजर आ रही हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अभिजीत बिचकूले और कई सारे कंटेस्टेंट का आपस में टकराव हो चुका है.

Udaariyaan : फतेह से बदला लेगी जैस्मिन, टूटेगा तेजो-अंगद का रिश्ता

कलर्स टीवी सीरियल उड़ारियां में इन दिनों ट्विस्ट आया है, फतेह सभी तरफ से घिरा हुआ नजर आ रहा है. तेजो ने तो पहले से ही फतेह का साथ छोड़ दिया है उसके बाद से अब जैस्मिन को वह अच्छे से समझ गया है जिसके बाद से वह जैस्मिन का साथ भी छोड़ चुका है.

अब उसके मन में एक ही सवाल है कि वह अपने परिवार वालों को इसके बारे में क्या बताएगा. हालांकि फतेह को अपनी गलती का एहसास तो ही चुका है. जिस वजह से उसने जैस्मिन से अलग होने का फैसला लिया है. वहीं दूसरी तरफ जैस्मिन को उसके परिवार वाले अपनाने से इंकार कर देते हैं.

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परिवार का यह तेवर देखकर जैस्मिन एक बार फिर से गुस्से से लाल हो जाती है. इसी बीच जैस्मिन एक नई साजिश को अंजाम देने वाली है. जिसमें जैस्मिन स्वीटी के घर पर पनाह लेगी. पहले जैस्मिन खुद को संभालेगी और उसके बाद से वह खुद से वादा करेगी कि वह अपना बदला लेकर रहेगी.

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अब जैस्मिन ठान लेगी कि वह फतेह से बदला लेकर रहेगी, वहीं दूसरी तरफ फतेह लोगों से मारपीट करता हुआ नजर आएगा, फतेह अपना पूरा गुस्सा लोगों पर निकाल देगा. वहीं अंगद मान तेजो से बात करने की कोशिश करेगा, तभी तेजो उसे याद दिलाएगी कि वह इस बात को न भूले कि यह सगाई नकली है.

तेजो अंगद मान को हर वक्त इस बात का एहसास दिलाती रहेगी कि वह उससे दूरी बनाकर रखें. अंगद मान तेजो को समझाने की कोशिश करेगा लेकिन वह नहीं समझेगा.

हेल्दी बॉडी और स्किन के लिए जरूरी है बैलेंस डाइट, ऐसे करें फॉलो

बैलेंस डाइट जहां इनसान को स्वस्थ रखती है, वहीं उस की कार्यक्षमता को भी बढ़ाती है. बावजूद इस के कई महिलाएं अपने खानपान के प्रति सचेत नहीं रहतीं. वे असंतुलित डाइट लेती हैं, जिस का असर उन के स्वास्थ्य के साथसाथ उन के काम पर भी पड़ता है. इसलिए चाहे गृहिणियां हों या कामकाजी महिलाएं, बैलेंस डाइट लेना उन के लिए बेहद जरूरी है.

बैलेंस डाइट का महत्त्व

  • संतुलित डाइट स्वस्थ रखने के साथसाथ स्टैमिना भी बढ़ाती है. 
  • बैलेंस डाइट का मतलब ऐसा फूड जो ऐनर्जी से भरपूर हो और आप की बौडी को मजबूत बनाए. इसलिए अपनी डाइट को 3 हिस्सों में बांट कर लें.
  • अगर आप चाहती हैं कि आप का शरीर स्वस्थ और फिट रहे तो इस में डाइट चार्ट आप की सहायता करेगा.
  • डाइटीशियनों के मतानुसार, हर महिला को अपनी डाइट में विटामिन, प्रोटीन और कैल्सियम भरपूर मात्रा में लेना चाहिए.
  • भोजन में अंकुरित दालों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए.
  • ऐनर्जी फूड में गेहूं, चावल, जौ, गुड़, घी, तेल, मक्खन, आलू आदि का इस्तेमाल पर्याप्त मात्रा में करें. ये आप को स्वस्थ रखने के साथसाथ आप की कार्यक्षमता को भी बढ़ाते हैं.

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स्ट्रौंग फूड

  • स्ट्रौंग फूड महिलाओं को ऐक्स्ट्रा ऐनर्जी देता है. स्ट्रौंग फूड्स में मेवे, दालें, दूध आदि आते हैं. मेवे, ड्राईफू्रट्स और दूध का ज्यादा सेवन करने से शरीर तंदुरुस्त रहता है.
  • अगर आप चाहती हैं कि आप बीमारियों से भी दूर रहें तो विटामिंस, मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर चीजों का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें. दूध, पनीर, हरी सब्जियां आदि पर्याप्त मात्रा में अपनी डाइट में शामिल करें. 
  • कामकाजी महिलाओं को औफिस में घंटों सीट पर बैठ कर काम करना पड़ता है, जो कई बार उन में थकान के साथसाथ तनाव भी पैदा कर देता है. कामकाजी महिलाओं का यह शैड्यूल उन्हें अनहैल्दी बना देता है. ऐसे में शरीर को विटामिंस व मिनरल्स की सख्त जरूरत होती है, क्योंकि ये शरीर को ऐनर्जी देते हैं. इसीलिए इन का पर्याप्त मात्रा में सेवन जरूरी है.
  • ऐनर्जेटिक रहने के लिए दूध, दलिया को अपनी डाइट में शामिल करें. फलों का भी इस्तेमाल जरूर करें.
  • डाइट में एक फल का होना बहुत जरूरी है. सेब, पपीता, आड़ू आदि में विटामिन ए की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए इन फलों का इस्तेमाल ऐनर्जेटिक बौडी के लिए बहुत जरूरी है.

खाने में रखें इन बातों का ध्यान

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  • डाइटीशियन सुनीता के अनुसार, मैंटली स्ट्रौंग रहने के लिए दूध के साथ ड्राईफू्रट्स का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. इन का ज्यादा इस्तेमाल आप को मानसिक व शारीरिक तौर पर ज्यादा फिट रखेगा.
  • लंच में जिंक की मात्रा अधिक लें. यह बौडी को फिट रखता है.
  • खाने में हरी सब्जियों और सलाद का ज्यादा सेवन करें.
  • पानी खूब पीएं.
  • रात को लाइट डाइट लें.
  • रोटी के साथ कम मसाले वाली सब्जी खाएं.
  • खाने से पहले सूप पीएं.
  • अगर आप मांसाहारी हैं तो लाइट डाइट में इन का सेवन करें.
  • अंडा खाती हैं तो अंडे की सफेद जर्दी को हलके तेल में फ्राई कर भुजिया बना कर खाना भी फायदेमंद रहेगा.

सही दिनचर्या

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बैलेंस डाइट के अलावा सही दिनचर्या भी स्वस्थ व चुस्तदुरुस्त रहने के लिए जरूरी है. यह भी आप की कार्यक्षमता को बढ़ाएगी. इसलिए टाइम से सोएं और टाइम से उठें.

हलकी ऐक्सरसाइज करना भी बहुत जरूरी है. यह आप को मानसिक व शारीरिक तौर पर फिट रखती है.

दायम्मा – भाग 3 : 20 साल पहले दायम्मा का बेटा घर क्यूं छोड़ दिया था

‘तब तो घर के काम के लिए जो नौकरनी तुम ने उट्ठा पर रखा था, उसे तो तुम ने उठा दिया होगा?’ मैं ने पूछा.

‘जी हां, अब उस की क्या जरूरत. पिछले महीने का दरमाहा दे कर मैं ने उसे विदा कर दिया. आप ने तो देखा ही है कि सारा काम इस ने अच्छे से संभाल लिया है. दोपहर को ये मां के पैर भी दबाती है. अपने व्यवहार से इस ने मां का दिल तो जीत ही लिया है, दोनों बच्चे भी इस के मुरीद हो गए हैं. गुड्डी और गिल्लू का खूब खयाल रखती है- खासकर गिल्लू का. अब तो स्कूल से आने के बाद वह इस के पीछेपीछे ही मंडराता रहता है. जाने इस ने उस पर क्या जादू कर दिया है. दालचावल में घी डाल कर रोज दोपहर उसे बड़े प्यार से कौरकौर कर के खिलाती है. उस के इतने नखड़े यही उठा सकती है, मेरे बस का तो नहीं बाबा. कौन रोज उसे कौरकौर कर खाना खिलाए.

‘अच्छा है, ये आ गई है. अब अच्छा से खाएगा तो बदन को भी लगेगा,’ नंदिनी  ने खुलासा किया.

मेरी बेटी गुड्डी यानी गायत्री 10 साल की है और बेटा गिल्लू यानी गौतम 6 साल का. दोनों पास के ही एक स्कूल में पढ़ने जाते थे.

‘पर, तुम्हें नहीं लगता कि स्वच्छता के लिहाज से यह सही नहीं है. तुम गिल्लू को समझाओ,’ मैं ने प्रतिवाद किया. मेरा मानना था कि स्कूल लाने व ले जाने तक तो धाय पर निर्भरता ठीक थी, किंतु धाय से एक दूरी बना कर रखना भी तो जरूरी था. यह अतिरिक्त सहृदयता अनावश्यक था. खानपान में अंतर तो होना ही चाहिए, ऐसा मेरा मानना था. यों भी बच्चे दादी मां और मां के आंचल की छांव में महफूज ही थे.

‘मैं क्या करूं?’ नंदिनी ने मानो हथियार डाल दिए.

‘धाय के खानेपीने का क्या प्रबंध है?’ मैं ने पूछा.

‘वह अपना खाना दोनों टाइम खुद से अलग ही बनातीखाती है. उसी भूसीघर में वह अपना चूल्हा अलग जोड़ती है. मकई और जौ का आटा, साठी लाल चावल और बगीचे की सागसब्जी पर उस का गुजारा चल जाता है,’ नंदिनी ने खुलासा किया, तो मैं ने चैन की सांस ली.

अगले दिन दोपहर के भोजन पर नंदिनी ने खिचड़ी के साथ जब तिलौड़ी, बड़ी और पापड़ आदि परोसे, तो मुझे पुनः मां के बनाए ये घरेलू व्यंजन याद आ गए. मां कभी इन्हें घर पर ही बनाती थी. निश्चय ही धाय ने ही बनाया होगा, क्योंकि मां तो अब अधिक उम्र होने की वजह से ये सब बना नहीं पाती और नंदिनी को पापड़ अथवा तिलौड़ी पारना आता नहीं.

मैं ने यह भी गौर किया कि टेबल पर व्यवस्थित तांबे, कांसे और पीतल के सारे बरतन और डोंगे चमाचम चमक रहे थे यानी यहां भी देसी उपायों से धाय ने सारे बरतन चमका डाले थे. इमली अथवा नींबू का रस, खाने वाला सोडा और कोयले की राख को मिला कर पुआल के स्वनिर्मित ब्रश से रगड़रगड़ कर कोयले की कालिख से गंदे बरतन को चमकाने की कला अनूठी है.

बरबस ही गोसाईं की रचित  रामचरितमानस की ये पंक्ति याद हो आई, ‘धूम कुसंगति कारिख होई, लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई. सोइ जल अनल अनिल संघाता, होइ जलद जग जीवन दाता.’ यानी कुसंग के कारण धुआं कालिख कहलाता है, वहीं धुआं सुसंग से सुंदर स्याही हो कर पुराण लिखने के काम में आता है, और वही धुआं जल, अग्नि और पवन के संग से बादल हो कर जगत को जीवन देने वाला बन जाता है.

‘तुम ये सब बनाना सीख क्यों नहीं लेती? मां को बिठा कर उन से सीखना तो अब संभव नहीं. तुम सीख लोगी तो ये पारंपरिक व्यंजन अगली पीढ़ी में भी हस्तांतरित हो जाएंगे, वरना हमें भी बाजार के व्यावसायिक तरीके से बनाए पापड़ और बड़ी खा कर ही संतोष करना पड़ेगा,’ मैं ने नंदिनी से निवेदन किया, तो वह मुसकरा पड़ी.

‘ये मैं ने ही धाय के साथ मिल कर बनाए हैं. मुझे पता है, आप को उड़द दाल, तिल और हींग की तिलौड़ी और साबूदाने के पापड़ बहुत पसंद हैं. किंतु पहले समय नहीं मिल पता था. इस के आने से अब समय ही समय है. इसलिए इस बार जब आप शहर गए, तो मैं ने ये सब बनाने की सोची.

‘मैं बारबार मांजी से पूछती थी, तब धाय ने आ कर मेरी मदद की और ये बन पाए. इस साल मैं ने धाय की मदद से आम और नींबू के अचार सीखने की भी सोची है,’ नंदिनी ने खुलासा किया.

मैं भोजन कर ही रहा था, जब दोनों बच्चे धाय के साथ स्कूल से वापस लौटे. हाथमुंह धो कर और कपड़े बदल कर गिल्लू  ‘दायम्मा’, ‘दायम्मा’ पुकारता हुआ धाय के पास रसोई में चला गया.

थोड़ी ही देर में एक कटोरे में दालचावल ले वो रसोई से बाहर आया और धाय की गोद में ही बैठ कर खाना खाने लग गया.

धाय के लिए ‘दायम्मा’ संबोधन ने मुझे चौंका दिया. इतनी जल्दी उस के वात्सल्य ने नन्हे गिल्लू के हृदय में इतना गहरा प्रभाव जमा लिया था कि अबोध गिल्लू के दिल में उस की छवि मां के समकक्ष ही यानी ‘अम्मां’ की बन गई थी. ‘प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हात बिकाय, राजा, प्रजा जो रुचे शीश देय ले जाए’.

गिल्लू अपनी ‘दायम्मा’ के प्रेम और वात्सल्य में बिना मोल बिक गया था. धाय उसे प्रेम से निहारती रही, जैसे वो उस का ही बच्चा हो.

नंदिनी मुझे ही देख रही थी, मानो आंखों ही आंखों में पूछ रही हो कि अब मना क्यों नहीं करते. मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं एक मां के वात्सल्य में विघ्न डालने के पाप का भागी बनूं. ‘प्रेम भाव इक चाहिए, भेष अनेक बनाए’. यहां प्रेम ‘दायम्मा’ के स्वरूप में मेरे समक्ष था.

जल्द ही मैं ने देख लिया कि उत्तमा मईया वास्तव में अपने कार्यों के प्रति ही नहीं वरन इस घर के प्रति पूरी तरह से समर्पित और वफादार थी. जिस भूसी वाली कोठारी में उस के रहने का इंतजाम किया गया था, उसे उस ने इतने अच्छे तरीके से सजा दिया था कि लगता ही नहीं था कि यह गायबैल का चाराभूसी का भंडार था. भूसी को एक ओर समेट कर बाकी कमरे को उस ने अपना छोटा सा आशियाना बना डाला था. उस का भाई बिसेसर अकसर उस से मिलने आता और अपनी बहन को खुश देख कर नंदिनी और बच्चों को आशीष देता.

उत्तमा मईया को इस घर में काम करते एक युग बीतने को आया. उस ने कभी पैसे नहीं मांगे. इसलिए उस की सारी जरूरतों का हम विशेष ध्यान रखते थे. इन 12 सालों में प्रत्येक माह मैं उस के महीने का दरमाहा निकाल कर अलग रख देता था, जिस में प्रत्येक वर्ष का इजाफा भी जोड़ता जाता था. एक न एक दिन तो उसे जाना ही था. मेरा अब भी ऐसा मानना था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. इतने वर्षों में धाय घर के सदस्य जैसी ही हो गई थी. गुड्डी की पढ़ाई समाप्त हुई और मैं ने उस की शादी तय कर दी.

गुड्डी की शादी में भंडार की सारी जिम्मेदारी उत्तमा मईया पर थी. मां के लिए भंडार का हिसाबकिताब रखना संभव नहीं था और नंदिनी शादी के विभिन्न कार्यक्रमों में व्यस्त थी. रिश्तेनाते के किसी संबंधी को यह जिम्मेदारी देता तो वो शादी का आनंद उठाने से वंचित रह जाते. ऐसे में मां के आदेश पर भंडार की चाबी और जिम्मेदारी उत्तमा मईया को सुपुर्द कर हम निश्चिंत थे. इतनी बड़ी जिम्मेदारी उस ने सही तरह निभाई. क्या मजाल कि हलवाई उसे बुद्धू बना दे. शादी की किस विध में किन सामग्रियों की जरूरत पड़ेगी, वो पहले से तैयार रहती थी.

हैरान करने वाले फायदे हैं हल्दी के, आप भी जनिए

हल्दी हमारे घरों के किचन का बेहद जरूरी हिस्सा है. सेहत के लिहाज से ये काफी फायदेमंद होता है. स्वाद के साथ साथ सदियों से कई सेहत संबंधित कई समस्याओं के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही है. कई स्टडी में इस बात की पुष्टि की गई है कि हल्दी के सेवन से शरीर और दिमाग दोनों को फायदा पहुंचता है. हल्दी जोड़ों और गठिया के दर्द में भी बहुत फायदेमंद होती है.

इस खबर में हम आपको हल्दी से होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे. तो आइए शुरू करें.

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दिमाग के लिए है फायदेमंद

हल्दी में एरोमेटिक टर्मिरोन कंपाउंड पाए जाते हैं, दिमाग के लिए ये तत्व बेहद फायदेमंद होता है. इससे दिमाग की स्टेम कोशिकाओं की मरम्मत होती है. इसके अलावा हल्दी में मौजूद कर्क्यूमिन भी दिमाग में पाए जाने वाले प्रोटीन को बूस्ट करता है.

वजन कम करने में है असरदार

आज बहुत से लोग हैं जो अपने बढ़े हुए वजन से परेशान रहते हैं. हल्दी के सेवन से आप अपने वजन को काबू में रख सकते हैं. हल्दी शरीर में बनने वाली फैट टिश्यू को बनने से रोकता है जिससे वजन बढ़ता नहीं है.

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बेहतर होता है पाचन

अगर आप पेट से संबंधित परेशानियों से जूझ रहे हैं तो हल्दी आपके लिए काफी फायदेमंद होगा. एंटी औक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेट्री गुणों से लैस हल्दी डाइजेशन को बेहतर करती है. स्टडीज की माने तो हल्दी के सेवन से गैस की समस्या दूर होती है.

स्वस्थ त्वचा

बढ़ती उम्र के साथ चेहरे पर झुर्रियों को दूर करने में हल्दी बहुत कारगर है. इसमें एंटी औक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेट्री गुण पाए जाते हैं. रोजाना हल्दी का सेवन करने से चेहरे पर निखार आता है.

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अच्छी होती है इम्यूनिटी

हल्दी में एंची बैक्टीरियल, एंटी वायरल और एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं. इसके सेवन से शरीर की इम्यूनिटी बेहतर होती है. इसके अलावा आप कई तरह से इंफेक्शन से बचे रहते हैं. रोजाना एक गिलास गर्म दूध के साथ एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से सर्दी, जुकाम, फ्लू आदि समस्याओं से ऱाहत मिल सकती है.

दायम्मा – भाग 2 : दायम्मा के बेटे ने घर क्यूं छोड़ दिया था

इस घटना के दूसरे ही दिन मुझे कोर्टकचहरी के चक्कर में शहर जाना पड़ गया. दरअसल, मेरे अभ्रक खान के खनन पट्टे की अवधि समाप्त होने पर थी. इस के नवीनीकरण के लिए जिला खनन कार्यालय व स्थानीय कोर्ट में कुछ हलफनामा और करारपत्र आदि दाखिल करने थे. मेरे वकील ने मुझे बताया था कि इन समस्त कार्यवाही में तकरीबन एक महीने का समय लगना था.

मैं ने नंदिनी से साथ चलने की पेशकश की तो उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि कल ही उत्तमा मईया काम पर लगी है और वो मांजी को उस के भरोसे अकेले छोड़ कर नहीं जा सकती.

‘अरे, तुम भी अहमक हो. उस लाचार सी औरत से मां को क्या खतरा?’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘न बाबा न, आप ही जाएं. मैं फिर कभी चली जाऊंगी.’

नंदिनी अपने निर्णय पर अडिग रही. बहरहाल, मैं अकेला ही शहर जाने की तैयारी करने लगा.

एक महीने बाद जब मैं घर लौटा, तो पोर्टिको में गाड़ी खड़ी करने से पहले सामने के लौन से गुजरते हुए मुझे आभास हुआ कि लौन में घास बड़ी तरतीबी से लगी हुई थी. क्यारियों में फूल के पौधे के आसपास भी काफी साफसफाई थी. इस बगीचे की देखभाल की जिम्मेदारी बिहारी की थी. मैं ने बिहारी को काम से जी चुराते हुए कभी नहीं पाया, किंतु उस के काम में इतनी सुघड़ता भी मैं ने कभी नहीं देखी थी. अतः आश्चर्य हुआ. चलो अच्छा है. देर आए दुरुस्त आए. यह सोच कर मैं मां के कमरे में उन के चरण स्पर्श को प्रवेश किया, तो वहां उत्तमा मईया को देख दूसरा आश्चर्य हुआ. वो मां के पैर दबा रही थी. मेरी उम्मीद से परे एक महीने बाद भी वो इस घर में मौजूद थी, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था.

उसे मां के पैर दबाते देखना अपनेआप में एक सुखद अनुभूति थी. मैं ने झुक कर ज्यों ही मां के पैर छुए, तो वो उठ गईं. शायद हलकी नींद में थी अथवा उस के आराम का समय पूरा हो चुका था.

‘बेटी जा, जरा बहू को खबर कर दे कि मालिक आ गए हैं. और फटाफट 3 कप चाय भी बना ला. बाहर से आया है. थक गया होगा,’ मां ने उत्तमा मईया से कहा.

मां के मुंह से धाय के लिए बेटी संबोधन सुन मैं विस्मित हुआ, ‘एक महीने में ही तुम ने इसे अपनी बेटी बना लिया? यह कैसा चमत्कार है?’ मैं ने पूछा.

‘बेटा, जो लड़की बेटी की तरह सेवा करे, उसे बेटी कहने में क्या हिचक. जब ये यहां काम मांगने आई थी, तब हम इस के स्वभाव से परिचित नहीं थे, किंतु यह तो खरा सोना है. आदमी की सूरत और सीरत में बड़ा फर्क है. सूरत से किसी की सीरत का अंदाजा लगाना गलत है. मैं मानती हूं, तब मैं गलत थी.’

मां ने स्पष्ट किया. मां के पास बैठते हुए मैं ने मां से उस के घुटनों के दर्द के बारे में पूछ बैठा.

‘अरे बेटा, धाय के हाथों में तो जादू है. बिसेसर से कह कर इस ने न जाने कौन सा तेल मंगवाया है. उसी तेल से मेरे पैरों की मालिश करती है. कुछ उस तेल का असर और कुछ इस के हाथों का जादू, अब घुटनों के दर्द में बहुत आराम है.’

मां घुटने के दर्द से नजात पा काफी खुश नजर आ रही थी. यों तो मैं ने नंदिनी को भी यदाकदा मां के पैरों को दबाते देखा था, किंतु मां की यह परेशानी बनी हुई थी और लगता नहीं था कि इस का कोई इलाज भी होगा.

तभी चाय के साथ नंदिनी ने कमरे में प्रवेश किया. चाय पी कर मैं अपने कमरे में चला आया.

दो घड़ी आराम करने के बाद मैं ने स्थानीय दुर्गामंडप देवी दर्शन के लिए निकलने लगा, तो नंदिनी  से भी चलने का आग्रह किया.

‘इन दिनों मैं मंदिर नहीं जा सकती,’ नंदिनी ने मंदमंद मुसकराते हुए कहा. इसलिए मुझे मंदिर अकेले ही जाना पड़ा. मंदिर जाना आवश्यक था, क्योंकि अगले माह पड़ने वाले चैती दुर्गा पूजा की तैयारियों के लिए गठित कमेटी का मैं एक सक्रिय सदस्य था.

मंदिर से लौटा तो मैं ने अपने बेटे गिल्लू को उत्तमा मईया से बाहर वाले बरामदे में जमीन पर आमनेसामने बैठ कर बातचीत में मशगूल देख मुझे आश्चर्य हुआ कि इन दोनों के बीच बातचीत का मुद्दा क्या हो सकता था. किंतु मैं ने उस समय उन्हें टोकना सही नहीं समझा. मैं अपने कमरे में आराम करने चला आया, तभी नंदिनी मुझे रात्रि भोजन के लिए बुलाने चली आई.

‘ये गिल्लू और उत्तमा मईया के बीच क्या गुफ्तगू होती रहती है?’ मैं ने नंदिनी से पूछा.

‘धाय उसे कहानी सुनाती है. इसी वजह से वह उस के साथ चिपका रहता है. शाम को खेल कर वापस आने के बाद होमवर्क करता है और फिर रात्रि भोजन से पहले वह रोज ही धाय से कहानी सुनता है. वह जो सुनता है, वो मुझे भी सुननी पड़ती है. कभी राम की कहानी तो कभी कृष्ण के बचपन की. कभी राजारानी की सामान्य कहानी. दोनों में काफी दोस्ती हो गई है,’ नंदिनी ने बताया.

रात्रि भोजन के लिए बैठते ही बैठते कटहल की सब्जी की खुशबू ने मेरी भूख बढ़ा दी.

‘तो आज खाने में मां की बनाई कटहल की सब्जी है. खुशबू ऐसी है मानो मटन बना है. बहुत दिन बाद वैसी ही खुशबू की अनुभूति हो रही है. अच्छा है, महीने के कुछ दिन तुम रसोई से दूर रहती हो. इसी बहाने कभीकभी मां के हाथ का बना खाना भी खाने को मिल जाता है,’ मैं ने मुसकराते हुए कनखियों से नंदिनी की ओर देखा.

‘धीमे बोलिए. आप भी हर चीज का समाचार बना देते हैं,’ मंद स्वर में मुझे प्यार से झिड़कते हुए नंदिनी ने स्पष्ट किया, ‘सब्जी मांजी ने नहीं, वरन धाय ने बनाई है.’

यह सुन कर मुझे ताज्जुब हुआ. बिलकुल वही छौंक और स्वाद, जिस से बचपन से अवगत था.

अगले दिन सुबहसवेरे जब मैं लौन में टहलने निकला तो देखा कि उत्तमा मईया तन्मयता से क्यारियों में लगे फूलों के पौधे को संवारने में लगी है. तत्काल मैं ने जान लिया कि लान के कायाकल्प में उत्तमा मईया का हाथ था, न कि बिहारी का. तब तक नंदिनी टीपोट में चाय ले कर वहां आ गई.

‘अरे, इतनी जल्दी तुम चाय बना कर भी ले आई. अभीअभी तो तुम मेरे पास से उठ कर गई थी,’ मैं ने अचरज से पूछा.

‘इस में इतना आश्चर्यचकित होने की क्या बात है. उत्तमा मईया सुबह 4 बजे ही उठ जाती है. फ्रेश हो कर और नहाधो कर सुबह से ही वो घर और रसोई के काम में लग जाती है. बिना स्नान किए तो वो रसोई में प्रवेश नहीं करती. कोयले का चूल्हा जोड़ती है और एक चूल्हे पर दाल और दूसरे पर चाय का गरम पानी चढ़ा देती है. जितनी देर में हम सब उठते हैं, तब तक तो ये सब्जी काट चुकती है, गागर में कुएं से पीने का पानी भर कर रख देती है, पीछे दालान में झाड़ूबुहारू कर डालती है और जरूरत पड़ी तो गोबर से दालान लीप भी देती है. आधा काम तो ये हमारे उठने से पहल ही कर डालती है. चाय बनाने में फिर देर कैसी जब चाय का पानी गरम हो कर तैयार रहे. इस के बाद ये इस सामने वाले लौन को संवारने में लगती है या फिर पीछे किचन गार्डेन में सब्जियों की देखरेख करती है,’ नंदिनी ने विस्तार से धाय के कार्यकलापों की जानकारी दी.

मोल सच्चे रिश्तों का

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

ट्रिंग ट्रिंग..

‘सुबह सुबह फ़ोन..ओह..जरूर रिया होगी’

आरव ने कहा.

‘हा..रिया..यार टैक्सी बुक कर के आ जाओ ना, मैं रीति को छोड़ कर एयरपोर्ट नही आ सकता’

‘हेलो..सर, मैं इंस्पेक्टर राठौड़ बोल रहा हूं, आपकी वाइफ मिसेज रिया को एयरपोर्ट मेडिकल ऑथिरिटी ने क्वारंटाइन के लिए स्टैम्प किया है इन्हें हम शहर से थोड़ी दूर बनाये गए वार्ड में पंद्रह दिन रखेंगे, पंद्रह दिन के बाद टेस्ट किया जाएगा..सब ठीक रहा तो घर जाएंगी नही तो आइसुलेशन में रखा जाएगा’

इंस्पेक्टर एक साँस में बोल गया.

ये सुन कर मेरे होश उड़ गए, हाथ से मोबाइल गिरते गिरते बचा.

‘सर..क्या मैं एक मिनट अपनी पत्नी से बात कर सकता हूं’

‘यस..श्योर’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘हेलो..रिया..डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा..मैं रीति को तुम्हारी माँ के पास छोड़ कर आता हूं’

‘नो..आरव, तुम्हें अभी मुझसे मिलने की परमिशन नही मिलेगी, तुम रीति के पास रहो, मैं वार्ड पहुंच कर तुमसे बात करती हूं, अभी मुझे कुछ समझ नही आ रहा’ रिया ने रोते हुए कहा.

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ये क्या हो गया?

मैं कैसे संभालूंगा इधर पांच साल की छोटी बेटी उधर पत्नी जो इस समय जिस अवस्था में है उसकी कल्पना भी करना आत्मा झिंझोड़ कर रखने वाली है.

मेरी पत्नी रिया जो एक मल्टीनेशनल कंपनी की मार्केटिंग हेड है, अक़्सर अपने कंपनी के काम से विदेश यात्रा करती है,आज करीब बीस दिनों के बाद लंदन से वापस घर आ रही थी.

‘क्या करू..मुझे वहाँ जाना तो होगा ही, रिया को मैं ऐसे अकेले नही छोड़ सकता’ खुद से बात करते हुए मैंने रिया की माँ को फ़ोन किया, पता चला वो ख़ुद कुछ दिनों से बीमार है ऐसे में रीति को संभालना उनके लिए मुश्किल है, उसके भाई,भाभी से कभी आत्मीयता थी ही नही तो उनसे कोई उम्मीद नही है.

सिर पकड़ कर वही बैठ गया, मेरी रीति..वो मेरे साथ रहने की इतनी आदी है और किसी के पास रहना उसके लिए वैसे भी मुश्किल है, ऐसे में किसी अपने के पास ही रीति को छोड़ सकता हूं…

‘माँ या भाभी को फ़ोन करू’

किस मुँह से उनसे सहयोग के लिए कहूँ जब ख़ुद मैंने और रिया ने उन लोगो से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे, रीति पांच साल की हो गयी उसने शायद एक बार अपनी दादी की शक़्ल देखी होगी और आज मैं मुसीबत में हुं तो दादी को उनका फ़र्ज़ याद दिलाऊँ?

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मानव कि प्रवृति है….अपने द्वारा बनाये गए झूठ, स्वार्थ,अभिमान के खूबसूरत जाल में ऐश करता है, जब परेशानी उसके दरवाज़े पर आती है तो वो अतीत में झाँकता है..’आख़िर उससे ऐसा क्या गुनाह हुआ था जो इस मुसीबत में पड़ा’ आज मैं भी इसी परिस्थिति में हूं, कोरोना बीमारी अभी तक मेरे लिए महज़ एक खबर थी, और आज मेरे साथ है.

रीति सो रही थी, मैं भी उसके पास जा कर लेट गया.

अतीत के पन्ने आंखों के सामने एक एक कर के खुल रहे थे, उच्चवर्गीय आधुनिक विचार की लड़की रिया से मैंने प्रेमविवाह किया था, मेरे मध्यमवर्गीय परिवार में उसकी तालमेल कभी नही बनी,भाभी और माँ को हेय दृष्टि से देखती थी और ठीक उसके विपरीत वो दोनो रिया को पलकों पर बिठा कर रखे थे, रिया की माँ चाहती थी हम दोनो परिवार से अलग हो जाये, उन्होंने ने द्वारिका में 3बीएचके का एक बड़ा फ़्लैट रिया के नाम से ले लिया.

पिता जी के गुज़रने के बाद भैया ने मुझे पढ़ाया लिखाया, एम टेक करने के लिए मुझे बाहर जाने का मौका मिला लेकिन पैसे की कमी के कारण मैंने घर में बताया नही, ना जाने भैया को कैसे पता चल गया, उन्होंने भाभी के सारे ज़ेवर गिरवी रख कर मुझे विदेश भेज दिया,वही पहली बार रिया से मिला था.

भाभी भी बहुत अमीर घराने की उच्चशिक्षित बेटी है,पर उनका रहन सहन सादा था अमीरी के चोंचले से दूर रहती थी, पैसे रुपये से ज़्यादा उनके लिए रिश्तों की अहमियत थी, उनके दिल में सब के लिए प्रेम है..इस कारण वो सबकी चहेती है, रिश्तेदार, पास पड़ोस, सभी भाभी की तारीफ़ करते ना थकते, ये सब देख रिया ईर्ष्या से भर जाती … उस दिन भी भाभी ने बड़प्पन दिखाया… घर छोड़ते समय रिया ने उनका कितना अपमान किया था उनको भला बुरा कहा लेकिन वो चुप थी आंखों से गंगा जमुना की धार बह रही थी, तटस्थ खड़ी रिया की बक़वास सुन रही थी.

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शायद रिया से ज़्यादा उन्हें मुझसे तकलीफ़ हुई थी, वो पराई थी मैं तो उनके लिए उनके अपने बच्चों से बढ़ कर था उस समय मेरी चुप्पी सिर्फ़ भाभी को नही पूरे घर को खली थी, मेरी चुप्पी रिया के ग़लत व्यवहार को सही ठहरा गए थे, मेरा मुँह रिया के प्यार और हाईक्लास लाइफस्टाइल ने बंद कर रखा था.

उस दिन के बाद रीति के जन्म के समय माँ हमसे मिलने आयी थी उस दिन भी उनके प्रति हमारा ठंडा रैवया उन्हें समझ आ गया था इसलिये जल्दी ही बिना किसी को अपना परिचय दिए निकल गयी थी.

उनके दर्द को उनके आंखों में मैं साफ़ देख रहा था पर सो कॉल्ड हाई स्टेटस फ्रेंड सामने बैठे थे तो माँ के प्यार को अनदेखा कर दिया.

आज पापा की बहुत याद आ रही थी उनके दिए संस्कारो की तिलांजलि देकर मैंने सच्चे रिश्ते खो दिया, आज जब मुसीबत पड़ी तो अपने याद आ रहे है..कितना स्वार्थी हो गया हूं मैं जिनके त्याग और प्यार को ठुकरा कर आगे बढ़ गया था, मुश्किल वक्त आया तो मुझे उनकी जरूरत महसूस हो रही है…अतीत के पन्नों को बंद करना ही बेहतर होगा.

रीति भी उठ गयी थी, सोचा..उसको प्ले स्कूल में डाल कर रिया से मिलने की कोशिश करता हूं.

‘साहब, रीति बेबी का स्कूल तो बंद हो गया है’ सुनीता ने कहा

‘ओह..हा, मैं भूल गया था’

‘क्या हुआ साहब, आप की तबियत तो ठीक है’

‘हा हा..मैं बिल्कुल ठीक हूं, ऐसा करो..रीति के लिए कुछ खाने को बना दो, मुझे भूख नही है’

‘साहब, और मैडम के लिए..वो भी तो आज आएंगी’

मैं चुप..क्या जवाब दूं?

‘नही, आज नही आएगी..तबियत ख़राब है इसलिए डॉक्टर के यहाँ है’

‘साहब..टीवी देखो..क्या क्या दिखा रहा है, कोई बीमारी उन चीनियों ने भेजी है, सब मर रहे है..मेरा आदमी भी बोला..अब मैं काम पर ना जाऊ’ सुनीता ने कहा.

‘कोई नही मर रहा..सब ठीक हो जाएगा, तुम अपना काम ख़त्म करो’मैंने खींझ कर कहा.

अकबक सी खड़ी थोड़ी देर देखती रही फ़िर काम में लग गयी.

सुनीता की बातों ने मुझे और व्यथित कर दिया था, मैं कमरे में चला आया ‘रिया को कुछ नही होना चाहिए..हे प्रभु..हमारी गलतियों की सज़ा मेरी बेटी को ना देना’ अब तक काबू रखा दिल अकेले में चीख पड़ा.

‘डैडी..डैडी’ रीति की आवाज़ सुन खुद को सयंत किया.

सभी करीबी दोस्तो को फ़ोन किया, हर किसी ने अलग अलग मज़बूरियां बताई..किसी को रीति की जिम्मेदारी नही लेनी थी इसके लिए रीति नही भय था कोरोना बीमारी.

सभी संक्रमित हुए किसी भी परिवार से दूरी बनाये रखना चाहेंगे…इसके लिए मैं उनको ग़लत भी नही कह सकता.

‘साहब, मैं घर जा रही..सब ठीक रहा तो शाम में आऊंगी नही तो आज से मेरी भी छुट्टी समझो’ सुनीता ने जाते हुए कहा.

रिया को फ़िर फ़ोन किया..

‘ रिया..कैसी हो, मैं कुछ करता हूं..थोड़ा इंतजार कर लो’

‘आरव..प्लीज़ डोंट वरी..आई एम फाइन, मैं अभी इंफेक्शन के फर्स्ट स्टेज़ पर हूं, डॉक्टर ने कहा है कुछ दिन मैं यहाँ रहूं तो मैं पूरी तरह ठीक जाऊंगी’ रिया की आवाज़ से लग रहा था वो संतुष्ट है.

‘मैं तुम्हें इस हालात में ऐसे कैसे अकेले छोड़ सकता हूं’ मैं बेसब्र था

‘आरव..प्लीज़ अंडरस्टैंड, यहाँ किसी से मिलने की परमिशन नही है, मेरे पास फ़ोन, लैपटॉप, इंटरनेट सब है मैं अपना काम करती रहूंगी और तुम दोनो से वीडियो चैट भी’ रिया ने हँसते हुए कहा.

मैं जानता था उसकी हँसी सिर्फ़ मुझे

तसल्ली देने के लिए है.

दिन बहुत भारी था, किसी तरह बीता..रात तो वक़्त की पाबंद होती है अगले दिन सूरज की रौशनी के साथ नया दिन..परेशानी वही की वही

सुबह सुबह रिया ने वीडियो कॉल किया..रीति बहुत ख़ुश थी, रिया देखने में स्वास्थ्य लग रही थी, बीमारी के ज़्यादा कुछ लक्षण नही थे, हल्की खांसी थी, बुख़ार अब नही था.

‘आरव..क्या मुझे मम्मी जी का नंबर दोगे?’ रिया ने कहा.

‘मम्मी..मेरी मम्मी का नंबर ?’ मैंने चौंक कर कहा.

रिया के आंखों में आंसू थे, मेरी तरह शायद वो भी अतीत में कि गयी अपनी ग़लतियो के पश्चताप से जूझ रही थी.

‘रिया, नंबर तो है..हिम्मत नही है’ मैंने कहा.

शाम के चार बज़ रहे थे, रीति खेलने में व्यस्त थी, लैपटॉप लेकर मैं भी वही बैठ गया..

डोरबेल बज़ी

माँ, भाई और भाभी सामने खड़े थे.

मैं अवाक खड़ा था.

‘आरव..रिया कैसी है ? बेटा, कुछ ख़बर मिली, आज टीवी पर देखा उसे, तो पता चला’ माँ ने कहा.

‘हा माँ..वो ठीक है, आप लोग बाहर क्यों खड़े है, अंदर आइए’ मैं सामने से हटते हुए कहा.

‘भैया, इतनी परेशानी अकेले सह रहे हो, एक बार फ़ोन तो कर दिया होता,क्या इतने पराए हो गए हम’? भाभी ने रीति को गोद में उठाते हुए उलाहना दिया.

‘नही भाभी..ऐसी बात नही’ मैं ख़ुद की नज़रों में  बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

भाभी ने आते ही, घर की सफ़ाई के साथ साथ बढ़िया खाना भी तैयार कर दिया.

रिया का वीडियो कॉल आया.

भाभी की गोद में रीति को देख रिया फुट फुट कर रोने लगी.

‘माँ, भाभी, भैया प्लीज़ मुझे माफ़ कर दे..दो दिनों की अकेलेपन की सज़ा ने मुझे मेरी गुनाहों का अहसास करा दिया है.

‘अब ज़्यादा कुछ सोचो नही, हम सब उस दिन से तुम्हारे है जिस दिन तुमने आरव का हाथ थामा था, गलतियां सभी करते है, अपनी ग़लती से सबक ले कर आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है’ भाभी ने कहा ‘बेटी रोना नही, रीति और आरव की फ़िक्र मत करो, ख़ुश रहो..मुश्किल वक़्त है निकल जाएगा, शीघ्र स्वस्थ्य हो कर घर आओ,तब तक मैं यहीं रहूंगी’? माँ ने बड़ी ही आत्मीयता से कहा.

‘मम्मी जी, भाभी, भैया.. मेरी एक विश है’ रिया ने कहा.

‘हा, बोलो..बताओ हमें..क्या चाहिए’?  भैया ने कहा.

‘भैया..जब मैं घर आऊं तो क्या आप मुझे मेरा परिवार वापस देंगे’ रिया ने हाथ जोड़ कर कहा .

‘रिया..बेटा,तुम्हारा परिवार तुमसे कभी दूर नही गया था, जो हुआ उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो, स्वास्थ्य पर ध्यान दो, घर आओ..हम सब बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहे है ‘ भैया ने कहा.

कभी कभी बुरा वक़्त भी अपने पीछे तमाम खुशियां ले कर आती है..मैं ख़ुश था..हम सब ख़ुश थे.

जली रोटी से तली पूरी तक, पिता की रसोई यात्रा

“यार मैं तुम्हारे बिना बच्चों को 10-12 दिनों तक अकेले कैसे संभालूंगा? क्या यह टूर इतना जरूरी है? कोई बहाना नहीं बना सकती ?”

“मेरे प्यारे पतिदेव यदि टूर पर जाने के लिए बौस का इतना दबाव न होता तो मैं नहीं जाती. वैसे यह भी सो तो सोचो कि इस तरह के असाइनमेंट्स से ही मेरी स्किल डेवलप होगी और फिर इसी बहाने मुझे बाहर जाने का मौका भी मिल रहा है. बस 10 -12 दिनों की बात है. वक्त कैसे गुजर जाएगा तुम्हें पता भी नहीं चलेगा.” नैना ने मुस्कुरा कर कहा पर मैं परेशान था.

“खाना बनाना, बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजना और फिर बच्चों की देखभाल… यह सब कौन करेगा?” मैं ने पूछा.

“देखो खानेपीने की चिंता तो बिल्कुल भी मत करो. मैं ने लाजो से कह दिया है. वह रोज सुबहसुबह आ कर नाश्ताखाना वगैरह बना देगी और बच्चों को तैयार कर के स्कूल भी भेज देगी. बच्चों को स्कूल से ला कर उन्हें खिला कर और फिर रात के लिए कुछ बना कर ही वह वापस अपने घर जाएगी. शाम में तुम आओगे तो सबकुछ तैयार मिलेगा. रही बात बच्चों के देखभाल की तो यार इतना तो कर ही सकते हो. वैसे बच्चे अब बड़े हो रहे हैं. ज्यादा परेशान नहीं करते.”

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“ओके डार्लिंग फिर तो कोई दिक्कत नहीं. बस तुम्हें बहुत मिस करूंगा मैं.” मैं ने थोड़े रोमांटिक स्वर में कहा.

“जब भी मेरी याद आए तो बच्चों के साथ खेलने लगना. सब अच्छा लगने लगेगा.” उस ने समझाया

मैं ने नैना को बाहों में भर लिया.  वह पहली बार इतने दिनों के लिए बाहर जा रही थी. वैसे एकदो बार पहले भी गई है पर जल्दी ही वापस आ जाती थी.

अगले दिन सुबह नैना की फ्लाइट थी. 10 बजे के करीब मैं उसे विदा कर घर लौटा तो देखा कि बच्चे स्कूल से वापस लौट आए थे .

“पापा हमारे स्कूल 31 मार्च तक बंद हो गए हैं”. तान्या ने खुश हो कर कहा तो हर्ष ने वजह बताई,” पापा टीचर ने कहा है कि कोरोनावायरस से बचने के लिए घर में रहना जरूरी है.”

“ओके तो फिर ठीक है. पूरे दिन घर में रहो  और मजे करो. मगर थोड़ी पढ़ाई भी करना और लाजो दीदी की बात मानना. मैं ऑफिस से जल्दी आ जाया करूंगा.. ओके.” मैं ने तान्या को गोद में उठा कर पप्पी दी.

“ओके पापा” दोनों बच्चों ने एक साथ कहा.

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मैं फटाफट तैयार हो कर 11 बजे के करीब ऑफिस के लिए निकल गया. पूरे दिन बच्चों का ख्याल आता रहा. दोतीन बार फोन कर के बच्चों का हालचाल भी लिया. शाम में जब घर पहुंचा तो बच्चे टीवी खोल कर बैठे हुए थे.

“…और बताओ, कैसा रहा आज का दिन?” मैं ने पूछा तो हर्ष ने जवाब दिया, “अच्छा रहा पापा. हम ने पूरे दिन मस्ती की. लाजो दीदी ने आलू की रसदार, चटपटी सब्जी के साथ पूरियां तल कर खिलाईं. मजा आ गया.”

“मगर मम्मी याद आ रही थीं. .”तान्या ने कहा.

“हां वह तो है. मम्मी तो मुझे भी याद आ रही हैं. चलो अब मैं कपड़े बदल कर चाय बना लूं फिर बातें करेंगे ”

कपड़े बदल कर मैं किचन में घुस गया. किचन बिल्कुल साफ़ सुथरा था और फ्रिज में खाना बना कर रखा हुआ था. मैं निश्चिंत हो गया और चाय बना कर ले आया. बच्चों के साथ थोड़ी मस्ती की, थोड़ा ऑफिस का काम देखा और टीवी देखतेदेखते खापी कर हम सो गए.

सुबहसुबह लाजो के द्वारा दरवाजे की घंटी बजाने से नींद टूटी. वह अपने काम में लग गई और मैं जल्दीजल्दी तैयार होने लगा. इसतरह 7-8 दिन तो अच्छी तरह गुजर गए मगर फिर उस रात प्रधानमंत्री ने कोरोना के कारण अचानक लौकडाउन की घोषणा कर दी. मेरे तो हाथपांव ही फूल गए. अब नैना कैसे आएगी. मैं ने तुरंत उसे फोन लगाया तो वह खुद घबराई हुई थी.

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“मैं खुद समझ नहीं पा रही कि अब यहां से कैसे निकलूंगी. मेरे साथ औफिस के जो लोग आए हुए थे सभी रात में ही रिश्तेदारों के यहां जाने को निकल गए हैं.  मैं भी अमृता के घर जाने की सोच रही हूं.”

“अमृता कौन?”

“अरे वही मेरी सहेली… मैं ने तुम्हें मिलवाया था न .”

“अरे हां याद आया. ठीक है उस के घर चली जाओ. यह ठीक रहेगा. मगर मैं क्या करूंगा? तुम यहां तो आ नहीं सकोगी. सारी ट्रेनें और फ्लाइटस सब बंद हैं.  लाजो का भी फोन आया था. कह रही थी कि कल से नहीं आ सकेगी. अब मैं खाना कैसे बनाऊंगा? ”

“अब जो भी करना है तुम्हें ही करना है. देखो कोशिश करोगे तो कुछ न कुछ बना ही लोगे. प्लीज़ बच्चों का ख्याल रखना. अब मैं निकलती हूं वरना रात हो जाएगी.”

“ओके बाय” कह कर मैं ने फोन रख दिया.

अब मेरे सामने बहुत विकट समस्या खड़ी थी. क्या बनाऊं और कैसे बनाऊं? लग रहा था जैसे इस से कठिन परिस्थिति तो जिंदगी में आ ही नहीं सकती.

अगली सुबह उठा तो फ्रेश हो कर एक नईनवेली दुल्हन की तरह दबे पांव सब से पहले किचन में घुसा. दबे पांव इसलिए ताकि बच्चे न उठ जाएं. मेरे लिए मेरा ही किचन बिल्कुल अजनबी था. काम तो सारे नैना करती थी. मुझे तो यह भी नहीं पता था कि कौन सा सामान कहां रखा हुआ है.

मैं ने सब से पहले नैना को वीडियो कॉल किया और एकएक कर के समझने लगा कि कहां क्या चीज रखी हुई है.

इस के बाद नैना के कहे अनुसार मैं ने 4 कटोरी आटा निकाला और उस में एक कटोरी पानी मिला कर आटा गूंथने लगा. नैना ने बताया कि पानी ज्यादा लग रहा है थोड़ा आटा और डालो. मैं ने ऐसा ही किया और अच्छी तरह गूंथने की कोशिश करने लगा .

अब फोन रख कर मैं सब्जी काटने बैठा. मुझे बैगन काटना सब से आसान लगता है. इसलिए 2 बैगन और 4 आलू निकाल लिए. बड़ी मुश्किलों से आड़ीतिरछी कर के मैं ने सब्जी काटी. बनाने के लिए फिर से नैना को फोन किया. वह बताती गई और मैं बनाता गया. सब्जी नीचे से लग गई थी पर यह बात मैं ने नैना को बताई नहीं. गैस बंद कर के एक चम्मच में सब्जी निकाल कर चखी तो मेरा मुंह कसैला हो गया. एक तरफ तो सब्जी में जलने की गंध आ रही थी उस पर लग रहा था जैसे नमक का पूरा डब्बा उड़ेल दिया हो. मैं सिर पकड़ कर बैठ गया.

यह तो पहला दिन था. पता नहीं आगे क्याक्या होगा, यह सोच कर ही मुझे चक्कर आने लगे थे. अब मेरे सामने एक एक और बड़ा टास्क था और वह था रोटी बनाना. मैं ने जिंदगी में आज तक रोटियां नहीं बेली थीं. किसी तरह खुद को तैयार किया और आटे की लोई बना कर उसे चकरे पर रखा. नैना को फिर से मैं ने  वीडियो कॉल कर लिया था ताकि वह मुझे डायरेक्शन देती रहे.

मैं ने ठीक से आटे का परोथन नहीं लगाया था इसलिए रोटी चकरे से चिपक गई थी. नैना ने मेरी गलती की ओर मेरा ध्यान इंगित किया,”लोई को अच्छी तरह परोथन में लपेट कर फिर बेलो वरना यह चिपक जाएगी.”

मैं ने फिर से लौई बनाई और खूब सारा परोथन लगा कर रोटी बेलने लगा. मगर रोटी की हालत देखने लायक थी. रोटी के नाम पर तरहतरह के नक्शे और पशुपक्षियों की आकृतियां बन रही थीं. 2 रोटियां जल चुकी थीं. तीसरी पर काम हो रहा था. तभी तान्या आ गई और हाथ में रोटी ले कर नाचने लगी,” हरषू देख पापा ने कैसी रोटी बनाई है. जली हुई टेढ़ीमेढ़ी”

“दिखा जरा ” दौड़ता हुआ हर्ष भी आ गया और रोटी देख कर हंसने लगा फिर बोला, “पापा आप हमें यह खिलाओगे ? मैं तो नहीं खा रहा. आप मेरे लिए आमलेट तैयार कर दो.”

हर्ष की फरमाइश सुन कर मेरा मुंह बन गया था. जैसेतैसे अपने लिए 4 रोटियां बना कर मैं बच्चों के लिए किराने की शॉप से ब्रेड अंडा लेने चला गया. अंडा बॉयल किया. ब्रेड सेक कर बटर लगाई और बच्चों को दे दिया.

मैं ने नैना को फिर कॉल किया,” यार नैना कोई सब से आसान चीज बनाना बता दो मुझे.”

“ऐसा करो, दालचावल बना लो. कुकर में 2 गिलास पानी, एक कटोरी धुली दाल, हल्दी और नमक डाल कर चढ़ा दो. 2 सीटी आने पर गैस बंद कर देना. फिर करछुल में घी, जीरा और हींग रख कर गर्म करना. जीरा चटकने की आवाज आने पर दाल में छौंक लगा देना.” कह कर वह हंसने लगी.

मैं ने ऐसा ही किया. दाल और चावल बना दिया. यह बात अलग है कि दाल में नमक हल्का था और चावल नीचे से लग गए थे. बच्चों ने मुंह बनाते हुए खाना खाया और मैं इस चिंता में डूब गया कि कल क्या बनाऊंगा?

अगले दिन मैं ने बच्चों को सुबह नाश्ते में तो ब्रेड अंडा दे दिया मगर दोपहर के लिए मैं ने एक बार फिर रोटीसब्जी बनाने की सोची. भिंडी की सब्जी बनानी थी. मैं पहले भिंडी काटने बैठ गया. काट कर जब धोने के लिए उठा तो हर्ष चिल्लाया,”अरे पापा यह क्या कर दिया आप ने ? ममा तो भिंडी धोने के बाद उसे काटती थीं वरना वह लिसलिसी हो जाती है. यह बात ममा ने बताई थी मुझे”

“तो बेटा आप को पहले बताना चाहिए था न. अब मुझे इन को धोना तो पड़ेगा ही.”

जाहिर है उस दिन भिंडी कैसी बनी होगी आप समझ ही सकते हैं. रोटियां भी नक्शों के रूप में ढलती गईं. यह बात अलग है कि मैं ने उन्हें जलने नहीं दिया. बच्चों ने थोड़ा नानुकुर कर के आखिरकार दही के साथ खा लिया.

तीसरे दिन सुबह मैं ने एक्सपेरिमैंट करने की सोची. मेरी मम्मी बेसन का चीला बहुत अच्छा बनाती हैं . सो मैं ने भी वही ट्राई किया. मगर शायद तवा गलत हाथ लग गया था. मैं ने नॉन स्टिक नहीं बल्कि लोहे का तवा ले लिया था. चीला तवे में बुरी तरह चिपक गया. किसी तरह खुरचखुरच कर टूटाफूटा चीला निकाला तो बच्चे ताली बजाबजा कर हंसने लगे. अब तो वे मुझे खाना बनाता देख जानबूझकर कर किचन में आ धमकते और मेरा मजाक उड़ाते.

नैना से सलाह मांगी तो उस ने बताया कि तवा बदलो और पहले पानी छिड़को फिर थोड़ा तेल पसार कर डालो. इस के बाद चीला बनाओ. ऐसा करने पर वाकई अच्छे चीले तैयार हो गए. यानी तीसरे दिन मैं ने कुछ काम की चीज बनाई थी जिसे बच्चों ने भी बिना कुछ कहे खा लिया. दोपहर में मैं ने फिर से दालचावल ही बना दिए.

चौथे दिन मैं ने तय किया कि बच्चों को कुछ अच्छा और पौष्टिक भोजन खिलाऊंगा. रात में मैं ने साबुत मूंग और काले चने पानी में भिगो कर रख दिए थे.

सुबह उन्हें कुकर में डाल कर झटपट एक सीटी लगाई और फिर उस में प्याज, टमाटर, धनिया पत्ता, गाजर, खीरा, अनार के दाने आदि मिला कर टेस्टी स्प्राउट्स का नाश्ता तैयार कर दिया. बच्चों ने स्वाद ले कर खाया. दोपहर में रोटी के बजाय मैं ने आलू के परांठे बनाए. परांठे भले ही टेढ़ेमेढ़े थे मगर दही के साथ खा लिए गए. रात में खिचड़ी बना दी.

एक बात तो मैं बताना ही भूल गया. खाना बनाने के बाद ढेर सारे बर्तन मांजने और फिर किचन की सफाई का काम भी मेरा ही था. कपड़े भी मुझे ही धोने होते थे. यानी कुल मिला कर मैं फुलटाइम कामवाली बन गया था. पूरे दिन व्यस्त रहने लगा था.

पांचवें दिन सुबहसुबह मैं ब्रश करता हुआ सोच रहा था कि आज क्या बनाऊंगा. अचानक दिमाग में सैंडविच का आइडिया आया. मैं ने तुरंत आलू उबालने रखे और इधर ब्रेड सेक कर तैयार कर लिए. साथ ही साथ आलू में प्याज, धनिया पत्ता, अदरक, मिर्च आदि डाल कर उसे अच्छी तरह मैश किया और ब्रेड में भर कर सिंपल सैंडविच तैयार कर दी. इसे सॉस के साथ बच्चों को परोस दी. बच्चों ने खुश हो कर खा लिया.

अब मैं गहरी चिंता में था कि दोपहर में क्या बनाऊं. तभी मेरी ऑफिस कुलीग अविका का फोन आया, “हाय देव क्या कर रहे हो इन छुट्टियों में ? घर से काम करने का अलग ही मजा है न यार.”

“ऑफिस के काम का तो पता नहीं यार पर मैं घर के कामों में जरूर बुरी फंसा पड़ा हूं. कभी आड़ीतिरछी रोटियां बनाता हूं तो कभी जलीपकी दाल. कभी खिचड़ी बनाता हूं तो कभी चावलदाल. कभी बर्तन मांजता हूं तो कभी झाड़ू लगाता हूं.

मेरी बात सुन कर कर वह ठहाके लगा कर हंसने लगी, “मिस्टर देव कहां तो आप ऑफिस में जनरल मैनेजर के पोजीशन पर काम करते हो और कहां घर में रसोईए और सफाई वाले बने हुए हैं. ढंग से काम करना भी नहीं आता.”कह कर वह फिर हंसने लगी.

मैं ने नाराज होते हुए कहा,” हांहां उड़ा लो मेरा मजाक. मेरी बीवी ऑफिस टूर पर मुंबई गई हुई थी पर लौकडाउन में वह वहीं फंस गई और मैं बच्चों के साथ यहां.”

“चलो मैं तुम्हारी हेल्प कर देती हूं. तुम्हें कुछ ऐसे लिंक भेजती हूं जिन के जरिए तुम्हें खाना बनाने की बेसिक जानकारी मिल जाएगी. साथ ही कुछ अच्छी चीजें सिंपल तरीके से बनाना भी सीख जाओगे. ध्यान से यूट्यूब पर यह सारे कुकरी वीडियोज देखो और फिर सीखसीख कर चैन से खाना बनाओ.”

कह कर अविका ने मुझे कई लिंक्स और वीडियोज भेज दिए. उस ने मुझे कुछ डिजिटल पत्रिकाओं के ऑनलाइन कुकरी टिप्स और व्यंजन बनाने के तरीकों के लिंक भी भेजे. मैं दोतीन घंटे कमरे में बंद रह कर ये वीडियोज और लिंक्स देखता रहा. मुझे काफी जानकारी मिली, मैं ने कुकिंग के ने तरीके सीखे और बेसिक किचन टिप्स समझे.

अब मैं तैयार था. मैं ने वीडियो देखदेख कर पहले कढ़ी बनाई और फिर चावल बनाए. कढ़ी बहुत स्वादिष्ट तो नहीं बनी मगर कामचलाऊ बन गई थी. धीरेधीरे मुझे नमक का अभ्यास भी होने लगा था. अब मेरी रोटियां भी नहीं जलती थी.

छठे दिन मैं ने यूट्यूब चैनल पर देखदेख कर पुलाव बनाया. पुलाव काफी स्वादिष्ट बना था. बच्चों ने भी स्वाद लेले कर खाया. अब तो मुझे खुद पर काफी कॉन्फिडेंस आ गया था.

नैना हालचाल पूछती तो मैं कह देता कि हालात पहले से बेहतर हैं. मुझे अब उस से मदद लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी.

सातवें दिन मैं ने बच्चों को नाश्ते में सांभर और चटनी के साथ इडली बना कर खिलाया. शाम में इडली के टुकड़े कर और उन्हें कड़ाही में प्याज,राई,करी पत्ते और कुछ मसालों में डाल कर भून दिया. उन्हें हरी चटनी और सौस के साथ बच्चों को खिलाया तो वे खुश हो गए. अब मुझे एहसास होने लगा था कि मैं कुछ बचे खाने को क्रिएटिव रूप भी दे सकता हूं.

आठवें दिन मैं ने राजमा चावल बनाया और रात में उन्हीं चावलों को प्याज, टमाटर और मटर आदि में फ्राई कर के फ्राईड राइस तैयार कर दिया. बच्चे अब मेरी कुकिंग को एंजॉय करने लगे थे. मैं उन्हें नईनई चीजें बना कर खिला रहा था.

नवें दिन मैं ने उन्हें नाश्ते में उपमा और खाने में मटर पनीर की सब्जी खिलाई तो वे उंगलियां चाटते रह गए.

दसवें दिन मैं ने बच्चों से पूछा,” आज मैं तुम्हारी पसंद की चीज बनाऊंगा. बताओ क्या खाना है ?”

“आलू की रसदार चटकदार सब्जी और पूरियां.” हर्ष ने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा,

“ओके डन.”

मैं किचन में घुस गया और सब्जी बनाने लगा. पूरियां गोल बनाने के लिए मैं ने एक नुस्खा अपनाया. इस के लिए स्टील की नुकीले धार वाली बड़ी कटोरी उलट कर रखता और आड़ीतिरछी बेली हुई पूरी में से गोल पूरी निकाल लेता.

1 घंटे के अंदर सब्जी और पूरी खाने की टेबल पर पहुंच गया. बच्चे खुश हो कर खाने लगे. तभी नैना ने वीडियो कॉल किया. बच्चों को खाता देख कर उस ने पूछा,” आज क्या बनाया पापा ने और दिखाना कैसा बनाया है?”

हर्ष ने गोलगोल पूरियां और सब्जी दिखाते हुए कहा,” ममा सच बताऊं, आज तो पापा ने कमाल कर दिया. जानते हो ममा पापा ने लाजो दीदी से भी अच्छी पूरियां बनाईं हैं और सब्जी भी बहुत टेस्टी है. मम्मा मैं तो कहता हूं पापा ने आप से भी अच्छा खाना बनाया है.”

पीछे से तान्या बोली,” पापा किचन किंग हैं”

यह सब सुन कर नैना हंस भी रही थी और चकित भी थी. जबकि मैं अपने बच्चों के द्वारा दिए गए ऐसे कांप्लीमैंट्स पर फूला नहीं समा रहा था. आज तक मुझे जिंदगी में कितनी ही सारे कांप्लीमैंट्स मिल चुके थे मगर आज से ज्यादा खुशी मुझे कभी नहीं हुई थी. क्योंकि मैं ही जानता था कि जली रोटी से तली पूरी तक का मेरा सफर कितना कठिन था.

Bigg Boss 15: Karan Kundra की इस हरकत से नाराज हुईं सारा अली खान, बताया कमजोर

बिग बॉस 15 में इन दिनोॆ धमाल मचा हुआ है. इसका अंदाजा हाल ही में वायरल हुए नए प्रोमो से पता चला है. इसका अंदाजा आप नए प्रोमो वीडियो से लगा सकते हैं.

इस वीडियो में दिखाया गया है कि सारा अली खान घर में आती हैं और घरवालों को नए-नए टॉस्क देती हैं. टॉस्क करवाने के दौरान सारा अली खान को कुछ ऐसा दिखता है जिससे वह गुस्सा हो जाती है. और वह अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पाती हैं और कहती है कि तुम अपना मुंह इसी में मार लो.

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सारा घर में एंट्री के दौरान अपने हाथ में सेल्फी सेल्फी स्टीक पकड़ी होती हैं और सेल्फी स्टीक के साथ ही सभी घरवालों से बात करती हैं. इस दौरान वह घरवालों को कई अलग- अलग टॉस्क देती नजर आएंगी.

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इसके साथ ही सारा अली खान राखी सावंत और तेजस्वी प्रकाश के बीच में लावणी डांस कम्पटीशन करवाती नजर आ रही हैं. इन दोनों को इस डांस पर थिरकते देख घरवाले भी जमकर एंजॉय करते हैं.

इसके बाद सारा घरवालों को एक टॉस्क देती है और यह टॉस्क दोनों घरवालों के बीच में बांट देती हैं. ह टॉस्क काफी ज्यादा मजेदार होता है. जिस भी कंटेस्टेंट का नाम लिया जाएगा उसके मुंह पर केक लगाना होगा. टॉस्क में तेजस्वी और उमर रियाज कुर्सी पर सामने बैठे रहते हैं और फिर करण कुंद्रा को बुलाया जाता है, जब उनसे पूछा जाता है कि इन दोनों में कौन सबसे ज्यादा कमजोर खिलाड़ी है तो ऐसे में करण पहले थोड़ा कंफ्यूज होता है और फिर दोनों के मुंह पर केक लगा देता है.

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करण की इस हरकत को देखकर सारा अली खान नाराज हो जाती  है और उन्हें सेल्फ प्लेयर कह देती हैं. सारा की इस बात को सुनकर घरवाले भी उनसे नाराज हो जाते हैं.

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