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TV की नागिन Sayantani Ghosh बनी दुल्हन, जानें कौन है दुल्हा

टीवी की नागिन सयंतानी घोष भी अब अपने मैरिड लाइफ को एंजॉय कर रही हैं. बीते दिन ही वह अपने बॉयफ्रेंड अनुराग तिवारी के साथ सात फेरे लिए हैं. सायंतनी की शादी बेहद सादगी तरीके से हुई है. जिसमें उसके कुछ परिवार के सदस्य और करीबी दोस्त रिश्तेदार ही मौजूद नजर आएं हैं.

शादी की रस्मों से फ्री होने के बाद सायंतनी ने अपने सोशल मीडिया पर अपनी शादी की कुछ खास तस्वीरे शेयर की हैं. जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं. शादी की फोटो में सायंतनी अपने पति के साथ पोज देती नजर आ रही हैं.

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बता दें कि सायंतनी ने अपनी शादी अपने होमटाउन कलकत्ता में जाकर की है. जहां पर उनके घर और परिवार वाले मौजूद थें. वहीं तस्वीर में सायंतनी मंगलसूत्र पहनकर अपने पति के साथ पोज देती नजर आ रही हैं.

सभी तस्वीर में सायंतनी घोष और उनके होने वाले पति बेहद प्यार से शादी की रस्में निभाते नजर आ रहे हैं. शेयर की गई तस्वीर में सायंतनी की खुशी देखने लायक है. सोशल मीडिया पर सायंतनी घोष और की तस्वीर लोगों को खूब पसंद  आ रही है. जिसे देखकर फैंस उन्हें लगातार शादी की बधाई देते नजर आ रहे हैं.

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लोग लगातार टीवी पर नए नवेले जोड़े को बधाई देते नजर आ रहे हैं. फैंस को उनके शादी के बाद का लुक काफी ज्यादा पसंद आ रहा है. सायंतनी ने सोशल मीडिया पर अपनी शादी की तस्वीर को लेकर बहुत बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया कि मैंने अपने शादी की मेकअप की शुरुआत कुमकुम से कि थी.

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कुछ समय पहले ही दोनों ने सगाई की थी. उसके बाद से उन लोगों की शादी हुई है. फैंस काफी ज्यादा एक्साइटेड है इन दोनों की शादी को लेकर.

सूखता सागर: करण की शादी को लेकर क्यों उत्साहित थी कविता?

लेखिका- Dr Kasma Chaudhary 

भैया का ड्राइवर कार से स्टेशन तक छोड़ गया था. अटैची, बैग और थैला कुली को दे कर कविता छोटू और बबली के हाथ थाम प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गई. बैंच पर बैठने के बाद कविता सोच में डूब गई कि लो भतीजे करण की शादी भी निबट गई. इतने महीनों से तैयारी चल रही थी, कितना उत्साह था इस शादी में आने का. पूरे 8 वर्ष बाद घर में शादी का समारोह होने जा रहा था. भैया ने तो काफी समय पहले ही सब को बुलावे के पत्र डाल दिए थे, फिर आए दिन फोन पर शादी की तैयारी की चर्चा होती रहती कि दुलहन का लहंगा जयपुर में बन रहा है… ज्वैलरी भी खास और्डर पर बनवाई जा रही है… मेहमानों के ठहरने की भी खास व्यवस्था की जा रही है…

इस में संदेह नहीं कि काफी खर्चा किया होगा भैयाभाभी ने. उन के इकलौते बेटे की शादी जो थी. पर पता नहीं क्यों इतने अच्छे इंतजाम के बावजूद कविता वह उत्साह या उमंग अपने भीतर नहीं पा सकी, जिस की उसे अपेक्षा थी. एक तो चलने के ऐन वक्त पर ही पति अनिमेष को जरूरी काम से रुकना पड़ गया था. वह तो डर रही थी कि पता नहीं भैयाभाभी क्या सोचेंगे कि इतने आग्रह से इतने दिन पहले से बुला रहे थे और दामादजी को ऐन वक्त पर कोई काम आ गया. पूरे रास्ते वह इसी भावना से आशंकित रही थी. मगर कानपुर पहुंचने पर जैसा ठंडा स्वागत हुआ उस से उस की यह धारणा बदल गई.

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यहां भी तो स्टेशन पर यही ड्राइवर खड़ा था, उस के नाम की तख्ती लिए हुए. ठीक है भैया व्यस्त होंगे पर कोई और भी तो आ सकता था, लेने. घर पहुंचने पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया कि वह अकेली ही बच्चों के साथ आई है.

‘‘चलो कविता आ गई, बच्चे ठीक हैं, ऐसा करो श्यामलाल को साथ ले कर अपने कमरे में सामान रखवा लो, वहीं तुम्हारा चायनाश्ता भी पहुंच जाएगा. फिर नहाधो कर तैयार हो कर नीचे डाइनिंगहौल में लंच के लिए आओगी तो सब से मिल लेना,’’ भाभी बोलीं.

थकान तो थी ही सफर की, पर अब कविता का मन भी बुझ चला था. दोनों बड़ी बहनें पहले ही आ चुकी थीं. वे भी अपनेअपने कमरे में थीं. एक बड़े होटल में भैया ने सब के ठहरने का इंतजाम किया था.

थर्मस में चाय और साथ में नाश्ते की प्लेटें रख कर नौकर चला गया. चाय पी कर कुछ देर लेटने का मन हो रहा था पर बच्चों का उत्साह देख कर उन्हें नहला कर तैयार कर दिया. स्वयं भी तैयार हुई.

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तभी कमरे में इंटरकौम की घंटी बजने लगी. शायद खाने के लिए सब लोग नीचे पहुंचने लगे थे. बड़ी दीदी और मझली दीदी से वहीं मिलना हुआ.

‘‘अरे कविता, इधर आ… बहुत दिनों बाद मिली है,’’ मझली दीदी ने दूर से ही आवाज दी.

बड़ी दीदी के घुटनों में तकलीफ थी, इसलिए सब उन्हें घेरे बैठे थे. भैया भी 2 मिनट को उधर आए. कुछ देर की औपचारिकता के बाद उन्हें ध्यान आया, ‘‘अरे, अनिमेष कहां है?’’

‘‘आ नहीं पाए भैया, क्या करें ऐन वक्त पर ही…’’

वह कुछ और कहने की भूमिका बना ही रही थी कि भैया ने बीच में ही टोक दिया, ‘‘कोई बात नहीं, तुम आ गईं, बच्चे आ गए… चलो अब बहनों के साथ गपशप करो,’’ कहते हुए भैया आगे बढ़ गए.

बड़ी दीदी के पास अपने घरपरिवार की उलझनें थीं तो मझली दीदी यहां अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोज रही थीं.

‘‘दीदी, हम लोग एक ही हौल में रहते तो अच्छा रहता, देर रात तक गपशप करते… अब अपनेअपने कमरे में बंद हैं तो किसी की शक्ल तक नहीं दिखती कि कौनकौन मेहमान आए हैं, कहां ठहरे हैं, कैसे हैं. बस, खाने के समय मिल लो,’’ कविता के मुंह से निकल ही गया.

पर बड़ी दीदी तो अपनी ही उधेड़बुन में थीं. बोलीं, ‘‘मुझे तो अभी बाजार निकलना होगा. दर्द तो है घुटनों में पर किसी का साथ मिल जाता तो हो आती, बहू ने साडि़यां मंगवाई थीं… आज ही समय है. भाभी से ही कहती हूं कि गाड़ी का इंतजाम कर दें…’’

उधर मझली दीदी को अपनी ननद के घर जा कर रिश्ते की बात करनी थी. अत: खाना खा कर कविता चुपचाप अपने कमरे में आ गई.

उधर बच्चे भी उकताने लगे थे, ‘‘ममा, हम किस के साथ खेलें? हमारी उम्र का तो कोई है ही नहीं.’’

‘‘नीचे बगीचे में घूम आओ या फिर टीवी देख लेना.’’

बच्चों को भेज कर कविता लेट तो गई, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. 12 वर्ष पहले उस का स्वयं का विवाह हुआ था. फिर 8 साल पहले चचेरी बहन पिंकी का. अभी तक सारे विवाह अपने पुश्तैनी घर में ही होते रहे थे. घर छोटा था तो क्या हुआ, सारे मेहमान उस में आ जाते. आंगन में ही रात को सब की खाटें बिछ जातीं. दिन भर गहमागहमी रहती. शादी का माहौल दिखता. ढोलक की थाप पर नाचगाना होता. पिंकी के विवाह में जब आशा बूआ नाच रही थीं तो बच्चे हंसहंस कर लोटपोट हो रहे थे.

‘‘हाय दइया ततैयों ने खा लयोरे…’’ कहते हुए वे साड़ी घुटनों तक उठा लेतीं.

सब लोग हा…हा… कर के हंसते. तभी बड़ी ताईजी सब को डांटतीं कि बेटी का ब्याह है कोई नौटंकी नहीं हो रही, समझीं? पर फिर भी सब हंसते रहते और वही माहौल बना रहता. आज मांबाबूजी हैं नहीं, ताईजी भी इतनी बूढ़ी हैं कि कहीं आ जा नहीं सकतीं. बस छोटी बूआ आई हैं, दीदी बता रही थीं. पर वे भी शायद अकेली किसी कमरे में होंगी.

हां, दीदी कह तो रही थीं किसी से कि एक थाली कमरे में भिजवा दो. उस समय तो हलवाइयों की रौनक, मिठाई, नमकीन सब की खुशबू हुआ करती थी शादीब्याह के माहौल में, पर यहां तो बस चुपचाप अपने कमरे में बंद हैं. लग ही नहीं रहा है कि अपने घर की शादी में आए हैं.

शाम को बरात को रवाना होना था, बरात क्या होटल में ठहरे मेहमानों को ही चलना था, पास ही के एक दूसरे होटल में लड़की वाले ठहरे थे, वहीं शादी होनी थी.

पर जब तक कविता तैयार हो कर बच्चों को ले कर नीचे आई तो पता चला कि भैयाभाभी और करण तो पहले ही जा चुके हैं. कुछ लोग अब जा रहे थे, दोनों दीदियां भी नीचे खड़ी थीं.

‘‘अरे दीदी, करण का तिलक भी तो होना था,’’ कविता को याद आया.

‘‘अब रहने दे, सब लोग वहां पहुंच चुके हैं… नीचे ड्राइवर इंतजार कर रहा है,’’ कहते हुए मझली दीदी आगे बढ़ गईं.

ऐसा लग रहा था जैसे किसी दूसरे परिचित की शादी हो, खाने की अलगअलग मेजें लगी थीं, जैसा कि होटलों में होता है. सब लोग मेजों पर पहुंचने लगे.

‘‘फेरों के समय तो अपनी कोई जरूरत है नहीं,’’ बड़ी दीदी कह रही थीं.

‘‘और क्या, मेरी तो वैसे भी रात को देर तक जागने की आदत है नहीं. सुबह फिर जल्दी उठना है, 7 बजे की ट्रेन है, तो 6 बजे तक तो निकलना ही होगा,’’ मझली दीदी बोलीं.

तभी भाभी की छोटी बहन ममता हाथ में ढेर से पैकेट लिए आती दिखी.

‘‘दीदी आप लोग तो कल ही जा रहे हो न तो अपनेअपने गिफ्ट संभालो,’’ कहते हुए उस ने सभी को पैकेट और मिठाई के डब्बे थमा दिए.

‘‘पर मेरी तो ट्रेन सुबह 10 बजे की है, अभी इतनी जल्दी क्या है?’’ कविता के मुंह से निकला.

‘‘वह तो ठीक है पर दीदी जीजाजी को कहां सुबह समय मिल पाएगा, रात भर के थके होंगे. हां, आप अपने नाश्ते के समय लंच का डब्बा जरूर सुबह ले लेना.’’

मझली दीदी ने तो तब तक एक पैकेट के कोने से अंदर झांक भी लिया, ‘‘साड़ी तो बढि़या दी है भाभी ने,’’ वे फुसफुसाईं.

पर कविता चुप थी. अंदर कमरे में आ कर भी उसे देर तक नींद नहीं आई थी. रिश्ते क्या इतनी जल्दी बदल जाते हैं? क्या अब लेनादेना ही शेष रह गया है? प्रश्न ही प्रश्न थे उस के मन में जो अनुत्तरित थे.

सुबह चायनाश्ते के बाद वह तैयार हो कर नीचे उतरी तो भैयाभाभी नीचे ही खड़े थे.

‘‘कविता, तुम्हारा गिफ्ट पैक मिल गया है न… और हां, ड्राइवर नीचे ही है. तुम्हें स्टेशन तक छोड़ देगा. श्याम, गाड़ी में सामान रखवा दो,’’ भैया ने नौकर को आवाज दी.

इस तरह कविता की विदाई भी हो गई. दोनों दीदियां सुबह ही जा चुकी थीं. ड्राइवर को किसी और को भी छोड़ना था, इसलिए कविता को 2 घंटे पहले ही स्टेशन उतार गया.

बैंच पर बैठेबैठे कविता अनमनी सी हो गई थी. अभी भी घोषणा हो रही थी कि ट्रेन और 2 घंटे लेट है.

‘‘लो…’’ उस के मुंह से निकल ही गया.

‘‘ममा, हमें तो भूख लगी है…’’ छोटू की आवाज गूंजी तो उस ने एक पैकेट खोल लिया.

‘‘और कुछ खाना हो तो सामने से ले आऊं, अभी ट्रेन के आने में देर है.’’

‘‘हां ममा, जूस पीना है.’’

‘‘मुझे भी…’’

‘‘ठीक है, अभी लाती हूं.’’

‘बच्चे साथ थे तो मन कुछ बहल गया… अकेली होती तो…’ सोचते हुए कविता आगे बढ़ गई.

ट्रेन में बैठ कर बच्चे तो सो गए पर कविता चुपचाप खिड़की के बाहर देख रही थी… ‘पीछे छूटते वृक्ष, इमारतें… शायद ऐसे ही बहुत कुछ छूटता जाता है…’ सोचते हुए उस ने भी आंखें मूंद लीं.

 

बैंगन नहीं टैंगन

लेखिका- रीता गुप्ता

मधु को देख इशिता चौंक गई. अभी बमुश्किल 6 महीने ही हुए होंगे, जब वह पहली बार उस से मिली थी.

झारखंड के एक छोटी सी जगह गुमला से सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वह जिद कर के घर से आई थी. चेहरे से टपकते भोलेपन ने उस का मन मोह लिया था. पढ़ाई के प्रति उस की लगन और जज्बे ने सोने पर सुहागे का काम किया था, उस की इमेज को इशिता के दिल में जगह बनाने में.

काश, ये भोलापन और मासूमियत महानगर की भीड़ में अपना चेहरा न बदल ले. पर, उस की शंका निर्मूल साबित नहीं हुई. मधु की बदली वेशभूषा और नई बोली उस का नया परिचय दे रही थी.

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इशिता को आज उस के बैच की कक्षा लेनी थी. उन्होंने देखा कि पढ़ाई के मामले में वह अब भी गंभीर ही थी… और यह बात उसे सुकून दे रही थी.

वर्षों से वह कोचिंग सैंटर में पढ़ा रही थी और उसे दुख होता था उन लड़कियों को देख कर, जो अपनेअपने गांवकसबे या शहरों से यहां आ कर यहां की चकाचौंध में खो जाती थीं.

ऊंचे ख्वाबों की गठरी कुछ ही दिनों के बाद, यहां की जिंदगी को अपनाने के चक्कर में बिखर जाते थे, अपनी हीनभावना से लड़ते हुए, अपने को पिछड़ेपन की तथाकथित गर्त से निकालने के फेर में वे और गहरी डूबती चली जातीं.
नकल में अक्ल पर बेअक्ल का परदा डाल ये कसबाई लड़कियां वो सब करने को तैयार हो जाती थीं, जो उन्हें गंवार के टैग से आजादी दे.

इशिता ने मधु को अपने पास बुलाया और उस का हालचाल लेने लगी. बातों ही बातों में पता चला कि अब वह अपने गर्ल्स पीजी से आजाद हो कर एक फ्लैट में किसी लड़के के साथ रहने लगी है, जो उस की तरह ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है.

“मैडम अपूर्व बहुत तेज है पढ़ने में, उस के साथ रही तो जरूर कंपीटिशन निकाल लूंगी. फिर इस महानगर में कोई तो ऐसा हो, जिस के साथ सुरक्षित महसूस हो.”

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मधु की बातों से उस का नवजागृत आत्मविश्वास छलका जा रहा था.

‘सचमुच बहुत तरक्की कर ली है इस ने,‘ मैडम इशिता ने समझ लिया. उन्हें याद आया, उन की नानी कहती थीं कि गरीब घर की लड़की की जब बड़े घरों में शादी हो जाती है, तो उन में एक ऐंठन आ जाती है और हर चीज में अपनी अधजल गगरी छलकाएंगी.

“ओह, आप इसे बैंगन कहती हैं. हमारे यहां इसे टैंगन कहते हैं.‘‘

मधु की बातें इशिता मैडम को कुछ ऐसी ही लग रही थीं, जो अब बेशर्मी से लिव इन की वकालत कर रही थी यानी बैंगन टैंगन हो ही चुका था.

देश के दूरदराज के गांवकसबों से कभी पढ़ाई तो कभी अच्छे मौकों की तलाश में युवा महानगरों का रुख करते हैं. इस में कई बार सिर्फ कसबाई माहौल से पलायन भी कारण होता है. बड़े शहरों में भले अब तक नहीं रही हों, पर उन्हें अपनी इच्छाओं और हकों की पूरी जानकारी होती है. वहां की बंदिशों से आजाद होने की कसमसाहट उन्हें महानगरों की तरफ उन्मुख करती है.

विभिन्न संस्थानों से पढ़ाई के पश्चात भी युवाओं की एक बड़ी तादाद शहरों में नौकरी करने आती है, जो शुरुआती संकोच के बाद बेहिचक यहां के रंगढंग में ढल जाती है. घरपरिवार, कालेजों की हजारों बंदिशों के बाद यहां की आजादी में वे कुछ ज्यादा ही रम जाते हैं. छोटी जगहों के विपरीत महानगरों में कोई किसी की निजी जिंदगी में टोकाटोकी नहीं करता है और न ही कोई जानपहचान या खास रिश्तेदारी की कोई जासूसी.

सो, शहर की ओर उन्मुख करते वो सारी वर्जनाएं टूटने लगती हैं, जो अब तक संकुचन में जी रहे थे. यों भी भोलेपन या सीधेपन पर गांवदेहात या कसबे का अब एकाधिकार नहीं रहा है. इस इंटरनेट और ओटीटी के युग
में सभी समय पूर्व ही परिपक्व हो रहे हैं, फिर वह गांव हो या शहर.

मधुरा पढ़ने में अच्छी थी, उस ने कैम्पस में रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. उस की पहली पोस्टिंग बेंगलुरू हुई. बिहार के एक छोटे से शहर सिवान से उस के पिता उसे बेंगलुरू में कुछ दिन रह कर उस की अन्य सहेलियों के साथ रहने का इंतजाम कर वापस चले आए. पर, पिता के वापस लौटते ही मधुरा अपने कैम्पस के एक दोस्त अंगद के साथ रहने लगी. दोनों के दोस्तों को उन के लिव इन रिलेशन का हमेशा पता रहा. दिखावे के लिए शेयरिंग फ्लैट को उस ने हमेशा रखा, पर रहती रही अंगद के संग. दोस्तों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही थी, जब 5 साल के बाद एक दिन मधुरा ने बताया कि उस की शादी एक सजातीय एनआरआई से हो रही है. मेरे पिता बहुत ही संकीर्ण हैं. वे अंगद से मेरी शादी कभी नहीं करेंगे.

यह सुन कर अंगद के पैरों तले जमीन खिसक गई उस की इस बेवफाई से. हद तो तब हो गई, जब उस ने अपनी शादी में अंगद को स्पेशल न्योता दे कर बुलाया और अपने पति से बेहद सहजता से परिचय भी कराया. शायद उसे ये हमेशा से पता था, पर वह अंगद के संग प्रेम कर जीवन को एक अलग अंदाज में जीती रही.

गांवदेहात की सारी लड़कियां पाबंदी या बंदिशों में नहीं जीती हैं अब, बल्कि वे भी शहरी लड़कियों की ही तरह अपने खास अंदाज में अपनी आजादी का लुत्फ उठाती हैं. शहरी उच्छृंखलता सिर्फ महानगरों तक अब सीमित
नहीं हैं, उन की पैठ अंदरूनी दूरदराज जगहों तक हो गई है. विचारों, संस्कारों की बेड़ियां टूटती दिख रहीं हैं. बदलाव ही एकमात्र स्थायी चरित्र होता है, पर ध्यान रहे कि ये बदलाव देश, समाज और परिवार के हित में ही रहे.

स्त्री आजादी आर्थिक स्वावलंबन पर ही टिकी होती है, ये भान रहे. आधुनिक होने का मतलब सिर्फ स्थापित धारणाओं का खंडन ही नहीं होता है, अपितु समाज, परिवार में संतुलन बना रहे और विचारों का उन्नयन होता रहे, ये आवश्यक है.

ऊपर वर्णित उदाहरण सिर्फ खुदगर्जी ही प्रस्तुत कर रहे हैं, जहां अपनी जड़ों से कटने की बेताबी झलक रही है. ये चंद उदाहरण ये भी इंगित कर रहे हैं कि वो जमाना बीत गया, जब सिर्फ लड़कियां ही शोषित होती थीं. हां, अब भी ऐसे उदाहरण कम ही हैं और 90 फीसदी केस में अब भी लड़कियां ही शिकार बनती हैं.

विदेशी संस्कृति की अच्छी बातों को अपनाते हुए अपनी संस्कृति की उच्च परंपरागत सोच की निरंतरता को भी बनाए रखना जरूरी है.

कृषि जल संरक्षण के और भी हैं उपाय

लेखिक- पल्लवी यादव, डा. ओम प्रकाश, डा. ब्रह्म प्रकाश व डा. कामिनी सिंह 

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : फसलों में सिंचाई की बहुत अहमियत है. गेहूं की फसल में जल प्रबंधन से पानी की अच्छी बचत की जा सकती है और फसल भी ज्यादा मिलती है. ऐसा ही गन्ने की फसल में जल प्रबंधन से होता है… अब पढि़ए आगे फसल की सिंचाई नियोजन द्वारा कृषि जल संरक्षण फसल की सिंचाई नियोजन उपलब्ध पानी के अनुसार करनी चाहिए. पानी की कमी होने पर केवल संवेदनशील हालात में ही सिंचाई करनी चाहिए. इस से 80 फीसदी तक पैदावार मिल जाती है. यदि पानी की बचत 20 फीसदी से ज्यादा है तो फसल में सिंचाई करने की कोई जरूरत नहीं है.

गेहूं के मामले में 2 अतिसंवेदनशील अवस्थाएं [पहली- ताजमूल अवस्था (सीआरआई) और दूसरी- गांठ बनने की अवस्था] होती हैं. निचली भूमि और ज्यादा बरसात होने वाली जमीन पर सभी फसलें बोई जा सकती हैं, लेकिन कम बारिश वाले इलाकों में सिंचाई की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध होने पर गेहूं, ज्वार, मक्का व बाजरा जैसी फसलें बोनी चाहिए. सिंचाई की मध्यांतर अवधि और फसल में जल की मांग फसलों को पकने के लिए कृषि जल की जरूरत और उस में सिंचाई के बीच के अंतर की अवधि उस फसल पर निर्भर करती है. कम समय और कम पानी में पकने वाली फसलों की संस्तुत प्रजातियों की बोआई को प्राथमिकता बारिश आधारित क्षेत्रों में कम पानी की जरूरत वाली और जल्दी पकने वाली फसलें ही उगानी चाहिए. मोटे अनाज वाली फसलें, तिलहनी, दलहनी, सब्जी वाली फसलें, बागबानी फसलें, पुष्प व सुगंध वाले पौधे, कंद वाली फसलें और औषधीय फसलें पैदा कर सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है. भूजल रिचार्ज विधि व जागरूकता का अभियान आज हम सब की जिम्मेदारी है कि कृषि जल संरक्षण ज्यादा से ज्यादा कर के अनमोल पानी की बचत की जाए. जहां पर बारिश की बूंदें गिरें, उसे वहीं पर इकट्ठा कर लेने की तर्ज पर यह नारा दिया गया है :

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खेत का पानी खेत में, नदी का पानी रेत में. गांव का पानी ताल में, आए काम अकाल में. इस नारे को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि बारिश के पानी का संरक्षण भूजल रिचार्ज विधि अपना कर किया जाए. बारानी खेती को ज्यादा कामयाब बनाने के लिए बारिश की एकएक बूंद का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. चाहे वह नमी के रूप में जमीन में रहे या बरसात के पानी को किसी सही जगह पर इकट्ठा कर के किया जाए, जिसे जरूरत के समय सिंचाई के लिए काम में लाया जा सके.

मिट्टी की किस्म पर आधारित सस्य तकनीक * मानसून आने से पहले खेत की लगभग 25 सैंटीमीटर गहरी जुताई करें और बरसात के बाद कम गहरी (उथली) जुताई करने से खेत में ही पानी का ज्यादा से ज्यादा संरक्षण किया जा सकता है. इस प्रकार की जुताई से खासकर रेतीली दोमट मिट्टी में जल संरक्षण ज्यादा होता है. * काली मिट्टी में दरारें बनने के चलते सिंचाई का पानी नीचे की परतों में चला जाता है. इन खेतों में छेद वाले पाइप की मदद से सिंचाई करना कृषि जल संरक्षण में काफी मददगार साबित होता है.

* खाली खेत में फसल अवशेषों और खरपतवारों की पलवार दे देनी चाहिए. अगर खेत में 1 से 2 मीटर का ढाल हो, तो कंटूर बनाने चाहिए.

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* खाली खेत में या फसल के साथ उगे हुए खरपतवारों को काट कर बाहर कर देना चाहिए, जिस से इन के द्वारा होने वाले पानी के नुकसान से बचा जा सके.

* ढलान वाले खेतों में ढलान का प्रतिशत 0.2 से 0.4 (दोमट मिट्टी) तक पक्का करने पर कृषि जल संरक्षण का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है.

* हलकी, कंकरीली, पथरीली व रेतीली मिट्टी में पानी के संरक्षण के लिए पौलीटैंक बनाने चाहिए. गहरी व सतही नाली बनाएं 2 खेतों के बीच में मेंड़ की जगह गहरी सतही नाली बनाने से बरसात या सिंचाई के पानी की कुछ मात्रा को इन नालियों में संरक्षित किया जा सकता है. खेत में सतही व गहरी नालियां बना कर किए गए संरक्षित पानी की गुणवत्ता बहुत बढि़या होती है.

टपक सिंचाई विधि अपनाएं

* टपक सिंचाई विधि में औसतन 40 से 50 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत हो जाती है. फलों व सब्जियों की फसल में टपक सिंचाई विधि अपनाना काफी किफायती सिद्ध होता है. टपक सिंचाई विधि में जल उपयोग की क्षमता तकरीबन 80 फीसदी तक बढ़ जाती है.

* फलों और सब्जियों की फसल में टपक सिंचाई विधि से 20 से 25 फीसदी तक पैदावार में बढ़ोतरी होती है. कृषि घटकों व दूसरी पद्धतियों को अपनाएं

* फसल को सिंचाई की जरूरत है कि नहीं, इस की जानकारी के लिए मिट्टी में नमी के लैवल की जांच करा लेने से की जा सकती है.

* जलशक्ति अभियान के तहत शहरी क्षेत्रों के सीवर के पानी को प्रदूषण मुक्त कर उस जल को सिंचाई के काम में लाया जा सकता है.

* भूमि को समतल कर के हलका ढाल देते हुए मिट्टी की किस्म के अनुसार क्यारी बना कर सिंचाई करनी चाहिए. ऐसी सतही विधियां अपना कर पानी का नुकसान काफी हद तक रोका जा सकता है और 60 फीसदी तक पानी का उपयोग पौधों के लिए किया जा सकता है.

* बांस को झाडि़यों और घासों के साथ मेंड़ों पर पंक्तियों में रोपण करने से खेत के लिए कवच का काम करता है जो मिट्टी की नमी के लैवल को बनाए रखने के साथ कृषि जल संरक्षण में काफी मददगार होता है, इसलिए बांस को ‘हरा सोना’ कहा जाता है.

* फलों व सब्जियों की खेती की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए. इन फसलों को उगाने में फायदे की संभावनाएं ज्यादा होती हैं और पानी की बचत भी होती है.

* सिंचाई की पुरानी तकनीक की जगह आधुनिक तरीकों को अपनाना चाहिए जिस से जल उपयोग की क्षमता व उत्पादकता बढ़ेगी.

* नलकूपों से सिंचाई के समय ‘सिंचाई सैंसर मौडल’ का उपयोग कर कृषि जल संरक्षण में मदद मिलेगी.

* उच्च गुणवत्तायुक्त सिंचाई जल का फसलों में उपयोग करने से मिट्टी के गुणों में सुधार होने के साथसाथ फसल की पैदावार में बढ़ोतरी और सिंचाई के पानी की बचत भी होती है.

* फसल की बोआई से पहले खेत में गोबर की सड़ी खाद 200 से 250 क्विंटल हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए. खादों के इस्तेमाल से कृषि जल की बचत के साथ ही साथ मिट्टी की उत्पादन कूवत भी बढ़ती है. कृषि में जल संरक्षण के किफायती उपाय व सुझाव जल की बचत के लिए अन्य कृषि आधारित मितव्ययी, कारगर व आसान विधियां व उपायों का वर्णन इस प्रकार है :

* किसानों को व्यक्तिगत रूप से जल संरक्षण अभियान चला कर, सामाजिक जागरूकता के द्वारा व सामुदायिक स्तर पर भी जल संरक्षण अपनाने चाहिए.

* किसान मेला, किसान गोष्ठियों, संवाद व प्रचार और प्रसार सामग्री से जनजन तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए.

* कृषि जल संरक्षण विषय को प्राथमिक स्तर से ले कर उच्च स्तर तक के पाठयक्रमों में शामिल करने पर जोर देना चाहिए.

* पीने के पानी/कृषि जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी विभागों, स्वयंसहायता समूहों, निजीतौर पर और गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा समयसमय पर आयोजित/संचालित प्रशिक्षण व जागरूकता अभियान में शामिल किया जाना चाहिए.

* पहले कहा जाता था, ‘घरगांवों की सभ्यता और संस्कृति की पहचान तालाबों से होती है,’ इसलिए कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाबों में बरसाती पानी को इकट्ठा कर पानी का सरंक्षण करना आज भी समय की जरूरत है.

* इस प्रकार से इकट्ठा किए गए पानी को सिंचाई के लिए काम में ला कर किसान खेती से होने वाली अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

* किसान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जल व मृदा संरक्षण से संबंधित संस्थानों से संपर्क/टैलीफोन/चिट्ठी के माध्यम से भी जानकारी ले सकते हैं.

अपने जैसे लोग : भाग 1

इस नए फ्लैट में आए हमें 6 महीने हो गए हैं. आते ही जैसे एक नई जिंदगी मिल गई है. कितना अच्छा लग रहा है यहां. खुला व स्वच्छ वातावरण, एक ही डिजाइन के बने 10-12 पंक्तियों में खड़े एक ही रंग से पुते फ्लैट. सामने लंबाचौड़ा खुला पार्क, जिस में शाम के समय खेलने के लिए बच्चों की भीड़ लगी रहती है. पार्क से ही लगती हुई दूरदूर तक फैली सांवली, नई बनी चिकनी नागिन सी सड़क, जिस पर एकाध कार के सिवा अधिक भीड़ नहीं रहती. कितना अच्छा लगता है यह सब. हंसतेखेलते हम दूर तक घूम आते हैं.

इन 6 महीनों से पहले जिस जगह 3 महीने गुजार कर आई थी, वहां तो ऐसा लगता था जैसे बदहाली में कोई एक कोना हमें रहने के लिए मिल गया हो. पुरानी दिल्ली में दोमंजिले मकान के नीचे के हिस्से में कमरा रहने को मिला था. धूप का तो वहां नामोनिशान नहीं था. प्रकाश भी नीचे की मंजिल तक पहुंचने में असमर्थ था. आधे कमरे में मैं ने रसोई बनाईर्र्र् हुई थी, आधे में सोना होता. एक छोटी सी कोठरी में नल लगा था, जिसे बरतन साफ करने व कपड़े धोने के अलावा नहाने के काम लाया जाता था.

यह तो अच्छा हुआ कि दिल्ली आने के कुछ महीनों बाद ही ये सरकारी फ्लैट बन कर तैयार हो गए, नहीं तो शायद जीवन या तो उसी बदहाली में बिताना पड़ता या नीरज को नौकरी ही कहीं और तलाश करनी पड़ती.

अपने इस नए मकान को मैं और नीरज थोड़ाथोड़ा कर के इस तरह सजाते रहते जैसे हमें अपने सपनों का महल मिल गया हो और हम अपनी पूर्ण शक्ति के साथ उस में अपनी संपूर्ण कल्पनाओं को साकार होते हुए देखना चाहते हों.

हम दोनों बहुत खुश थे. पर एक दिन शाम को नीरज ने पीछे वाले बरामदे में खड़े हो कर अपने सामने की विशाल कोठियों पर नजर गड़ाते हुए कहा, ‘‘यहां और तो सबकुछ ठीक ही है, लेकिन अपनी पिछली तरफ की ये जो बड़ेबड़े लोगों की कोठियां हैं न, इतनी बड़ीबड़ी… न जाने क्यों आंखों से उतर कर मन के भीतर कहीं चुभ सी जाती हैं. इन के सम्मुख रह कर हीनता का आभास सा होने लगता है. इन के अंदर झांक कर देखने की कल्पना मात्र से बदन सिहर उठता है, सोचता हूं कि कहां हम और कहां ये लोग.’’

मैं आश्चर्य से नीरज के मुंह की ओर ताकती रह गई, ‘‘अरे, ये विचार कैसे आए आप के दिमाग में कि हम इन लोगों से हीन हैं? बड़ी कोठी में रहने और धनवान होने को ही आप महत्त्व क्यों देते हैं? असली महत्त्व तो इस बात का है कि हम जीवन को किस प्रकार से जीते हैं और थोड़ा पा कर भी किस तरह अधिक से अधिक सुखी रह सकते हैं.’’

‘‘आज के युग में धन का महत्त्व बहुत अधिक है, शीला. कई बार तो यही सोच कर मुझे बहुत दुख होता है कि हमें भी किसी बड़े धनवान के यहां जन्म क्यों नहीं मिला या फिर हम इतने योग्य क्यों नहीं हो सके कि हम इतना पैसा कमा सकते कि दिल खोल कर खर्च करते.’’

‘‘यह सब आप के दिल का वहम है. यह सोचना ही निरर्थक है कि हम किसी से कम हैं. देखिए, हमारे पास सबकुछ तो है. हमें इस से अधिक और क्या चाहिए? आराम से गुजर हो रही है.’’ मुझे लगा मैं नीरज को आश्वस्त करने में काफी सफल हो गई हूं

क्योंकि उस के चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई देने लगे थे. हम दोनों प्रसन्नतापूर्वक शाम की चाय पीने लगे.

इतने में 5 वर्षीय बेटा पंकज दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मम्मी, देखो यह सामने वाली कोठी का सनी है न. उस के लिए आज उस के पापा एक नई साइकिल लाए हैं 3 पहियों वाली. हमें भी ला दोगी न?’’

चाय का घूंट मेरे गले में ही अटक गया. मैं नीरज की आंखों में झांकने लगी. उस की जीभ तैयार मिली, ‘‘अब ला दो न, सौ रुपए की साइकिल या अभी जो लैक्चर झाड़ रही थीं उस से खुश करो अपने लाड़ले को. कह रही थीं सबकुछ है हमारे पास.’’

पंकज अनुनयभरी दृष्टि से मेरी ओर निहारे जा रहा था, ‘‘सच बताओ मम्मी, लाओगी न मेरे लिए भी साइकिल?’’

मैं ने खींच कर उसे गले से लगा लिया, ‘‘देखो बेटा, तुम राजा बेटा हो न? दूसरों की नकल नहीं करते. हां, जब हमारे पास रुपए होंगे, हम जरूर ला देंगे.’’ मैं ने उसे बहलाना चाहा था.

‘‘क्यों हमारे पापा भी तो दफ्तर में काम करते हैं, रुपए लाते हैं. फिर आप के पास क्यों नहीं हैं रुपए?’’ वह अपनी बात पूरी करवाना चाहता था.

‘‘अच्छा, ज्यादा नहीं बोलते, कह तो दिया ला देंगे. अब जाओ तुम यहां से,’’ मैं ने क्रोधभरे शब्दों में कहा और पंकज धीरेधीरे वहां से खिसक गया. इधर नीरज का चेहरा ऐसे हो रहा था जैसे किसी ने थप्पड़ मारा हो उस के मुंह पर. अपमान और क्रोध से झल्लाते हुए बोला, ‘‘देखूंगा डांटडपट कर कब तक तुम चुप करवाओगी उसे. आज तो यह पहली फरमाइश है. आगे देखना क्याक्या फरमाइशें होती हैं.’’

मैं चुप रही. बात सच ही थी. पहली वास्तविकता सामने आते ही दिमाग चक्कर खा गया था. कैसे गुजारा होगा ऐसे अमीर लोगों के बीच. हमारे सामने पूरी 6 कोठियां हैं. उन में दर्जन से भी ऊपर बच्चे हैं. सभी नित्य नई वस्तुएं व खिलौने लाते रहेंगे और पंकज देख कर जिद करता रहेगा. कहां तक मारपीट कर उस की भावनाओं को दबाया जाएगा. मैं पंकज के भविष्य के बारे में चिंतित हो उठी. कितने ही अक्ल के घोड़े दौड़ाए, पर कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया.

अगले ही दिन शाम को नीरज ने सुझाव दिया, ‘‘एक बात हो सकती है. पंकज को उधर खेलने ही न जाने दो. पीछे से जाने वाला दरवाजा हर समय बंद ही रखा करो. सामने वाले फ्लैट हैं न, उन में सब अपने ही जैसे लोग रहते हैं. उन्हीं के बच्चों के साथ सामने के पार्क में खेलने दिया करो पंकज को.’’

बात मेरी भी समझ में आ गई, न इन बड़े लोगों के बच्चों में खेलेगा न, जिद करेगा. मैं ने पिछला दरवाजा खोलना ही छोड़ दिया. लेकिन पंकज सामने की ओर कभी न निकलता. ऊपर बरामदे में खड़ा हो कर, पीछे की कोठियों वाले उन्हीं लड़कों को देखता रहता, जिन में से कोई तो अपनी नई साइकिल पर सवार होता, कोई रेसिंग कार पर, तो कोई लकड़ी के घोड़े पर. कई बार वह पीछे का दरवाजा खोलने की भी जिद करता और मुझे उसे डांट कर चुप कराना पड़ता. अजीब मुसीबत थी बेचारे की.

एक दिन शाम को नीरज जब काम से लौटा तो पंकज का कान पकड़े हुए उसे घसीटते हुए लाया और बरामदे में पटक दिया. मैं दोपहर का काम निबटा कर लेटी हुई एक पत्रिका पढ़तेपढ़ते शायद सो गई थी.

अचानक ही पंकज की चिल्लाहट से हड़बड़ा कर उठ बैठी. ‘‘देखा नहीं तुम ने, वहां बड़े मजे से उन लड़कों की साइकिल में धक्का लगा रहा था, जैसे गुलाम हो उन का. शर्म नहीं आती. मारमार कर खाल उतार दूंगा अगर आगे से उन के पास गया या कोई ऐसी हरकत की तो…’’ उस की गाल पर एक थप्पड़ और मारते हुए नीरज पंकज को मेरी ओर धकेलते हुए अंदर चला गया.

अपने जैसे लोग : भाग 2

वह क्या जाने गुलाम या बादशाह को? बच्चे का दिल तो निर्दोष होता है. मुझे दुख था तो नीरज के सोचने के ढंग पर. ऊंचनीच की भावना उसे परेशान कर रही थी.

मैं समझ गई कि कोई ऐसा भाव उस के हृदय में घर कर गया था जो हर समय उन लोगों की नजरों में उसे हीन बना रहा था और दूसरों के धनदौलत का महत्त्व उस के मस्तिष्क में बढ़ता ही जा रहा था. यद्यपि हीन हम लोग किसी भी प्रकार से नहीं थे. जब तक यह गलत भावना नीरज के मन से दूर न होगी, हमारा इस कालोनी में रहना दूभर हो जाएगा. ऐसा मुझे दिखाई देने लगा था. मैं ने भी सोच लिया कि मुझे उसी बदहाली में जाने की अपेक्षा नीरज के मन में बैठी उस भावना से लड़ाई करनी है.

बड़े सोचविचार के बाद मैं ने एक कदम उठाया. नीरज के दफ्तर चले जाने के बाद मैं उन बड़े लोगों के संपर्क में आने का प्रयत्न करती रही. उन के घर में प्रवेश करने के साथ ही उन के हृदयों में प्रवेश कर के यह जानने की कोशिश करती रही कि क्या हम अपने साधारण से वेतन व साधारण जीवन स्तर के साथ उन के समाज में आदर पा सकते हैं.

सब से पहले मैं ने अपना परिचय बढ़ाया कोठी नंबर 5 की सौदामिनी से. उन के पति एक बड़ी फर्म के मालिक हैं. अनेक वर्ष विदेश रह कर आए हैं और उन के नीचे कार्य करने वाले अनेक कर्मचारी भी विदेशों से प्रशिक्षित हैं. कई सुंदर नवयुवतियां भी इन के नीचे स्टेनो, टाइपिस्ट व रिसैप्शनिस्ट का कार्य करती हैं. स्वाभाविक है कि गांगुली साहब पार्टियों और क्लबों में अधिक व्यस्त रहते हैं.

एक दिन सौदामिनी ने अपने हृदय की व्यथा व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘क्या करूं, शीलाजी? अपने एक बच्चे को तो इन के इसी व्यसन के पीछे गंवा बैठी हूं. हर समय इन के साथ या तो बाहर रहना पड़ता था या घर में ही डिनर व पार्टियों में व्यस्त रहती थी. बच्चे की देखरेख कर ही नहीं पाई, आया के भरोसे ही रहा. वह न जाने कैसा बासी व गंदा दूध पिलाती रही कि बच्चे का जिगर खराब हो गया और काफी इलाज के बावजूद चल बसा.

‘‘अब प्रदीप 2 वर्ष का हो गया है. उसे छोड़ते मुझे डर लगता है. जब से यह हुआ, इन के और मेरे संबंधों में दरार पड़ती जा रही है. ये बाहर रहते हैं और मैं घर में पड़ी जलती रहती हूं.’’ वे लगभग रो पड़ीं.

‘‘अरे, इस समस्या का हल तो बहुत आसान है. आप प्रदीप को पंकज के साथ हमारे यहां भेज दिया कीजिए. दोनों खेलते रहेंगे. प्रदीप जब पंकज के साथ हिल जाएगा तो आप के पीछे से हमारे घर ठहर भी जाया करेगा. फिर आप शौक से गांगुली साहब के साथ बाहर जाइए.’’

सौदामिनी का मुंह एक ओर तो हर्ष से दमक उठा, दूसरी ओर वे आश्चर्य से मेरे मुंह की ओर देखती रह गईं, ‘‘आप कैसे करेंगी इतना सब मेरे लिए? आप को परेशानी होगी.’’

‘‘नहीं, आप बिलकुल चिंता न कीजिए. मैं प्रदीप को जरा भी कष्ट नहीं होने दूंगी और मुझे भी उस के कारण कोई परेशानी नहीं होगी. फिर हमारे पंकज का दिल भी तो उस के साथ बहल जाएगा. वह भी तो बेचारा अकेला सा रहता है.’’ मैं ने हंसते हुए उन से विदा ली थी और अगली ही शाम को वे स्वयं प्रदीप को ले कर हमारे यहां आ गई थीं. कितनी ही देर बैठीबैठी वे हमारे छोटे से घर की गृहसज्जा की प्रशंसा करती रही थीं.

प्रदीप प्रतिदिन हमारे यहां आने लगा. अपने ढेर सारे खिलौने भी ले आता. दोनों बच्चे खेल में ही मस्त रहते. मैं बीचबीच में दोनों को खानेपीने को देती रहती. कभीकभी कहानियां भी सुनाती और पुस्तकों में से तसवीरें भी दिखाती. अब जब भी सौदामिनी चाहतीं, बड़े शौक से प्रदीप को हमारे यहां छोड़ जातीं.

आरंभ में नीरज ने बहुत आपत्ति उठाई थी, ‘‘देख लेना, भलाई के बदले में बुराई ही मिलेगी. ये बड़े लोग किसी का एहसान थोड़े ही मानते हैं.’’

‘‘मैं कोई भी कार्य बदले की भावना से नहीं करती. बस, इतना ही जानती हूं कि इंसान को इंसानियत के नाते अपने चारों ओर के लोगों के प्रति अपना थोड़ाबहुत फर्ज निभाते रहना चाहिए. फिर, इस से हमारा पंकज भी तो बहल जाता है. मुझे तो फायदा ही है.’’

‘‘खाक बहल जाता है, देखूंगा कितने दिन ऐसे बहलाओगी उसे,’’ नीरज चिढ़ते हुए अंदर चला गया था.

परंतु नीरज को यह अभी तक मालूम नहीं था कि जब से प्रदीप हमारे यहां आने लगा था, तब से पंकज मानसिक रूप से बहुत स्वस्थ रहने लगा था. वह अधिकतर प्रदीप या उस के खिलौनों में व्यस्त रहता. मुझे भी घर का कार्य करने में सहूलियत हो गई. पहले पंकज ही मुझे अधिक व्यस्त रखता था. मैं दिन में कुछ कढ़ाईसिलाई व अपने लेखन का कार्य भी नियमित रूप से करने लगी.

एक दिन शाम को हम घूमने निकले तो गांगुली साहब सुयोगवश बाहर ही खड़े मिल गए. बड़े ही विनम्र हो कर हाथ जोड़ते हुए स्वयं ही आगे बढ़ कर बोले, ‘‘आइए, शीलाजी, आप ने हम पर जो एहसान किया है वह कभी भी उतार नहीं पाऊंगा. सच, अकेले में कितना बुरा लगता था बाहर जाना. आप ने हमारी समस्या हल कर दी.’’

‘‘मुझे शर्मिंदा न कीजिए, गांगुली साहब, पड़ोसी के नाते यह तो मेरा फर्ज था.’’

‘‘आइए, अंदर आइए.’’ वे हमें अंदर ले गए. सौदामिनी भी आ गईं. काफी देर बैठे बातें करते रहे. बातों के दौरान ही मैं ने गांगुली साहब को जब अपना छोटा सा यह सुझाव दिया कि आधुनिक युग में रहते हुए भी घर से बाहर उन्हें इतना व्यस्त नहीं रहना चाहिए कि पत्नी घर में ऊब जाए. वे कहने लगे, ‘‘हां, मैं स्वयं ही आप के इस सुझाव के बारे में सोच चुका हूं. मैं ने परसों ही आप का लेख पढ़ा था. आप के विचार वास्तव में सराहनीय हैं. मैं तो बहुत खुश हूं कि आप जैसे योग्य, प्रतिभावान और कर्तव्यनिष्ठ हस्ती इस कालोनी में आई.’’ इतना कह कर वे जोर से हंस दिए.

हम खुशीखुशी बाहर निकल कर घर के सामने आए ही थे कि देखा पंकज और प्रदीप दोनों साइकिल से खेल रहे हैं. आश्चर्य तो नीरज को तब हुआ जब उस ने देखा कि पंकज तो गद्दी पर बैठा है और प्रदीप उसे धक्का दे रहा है.

‘‘देखो तो सही कैसे बादशाह की तरह गद्दी पर जमा बैठा है और उस से साइकिल खिंचवा रहा है. कहीं मिसेज गांगुली ने देख लिया तो…’’

‘‘वे कितनी ही बार बच्चों को ऐसे खेलता हुआ देख चुकी हैं. कोई भावना उन के मुख पर कभी दिखाई नहीं दी. सब आप के दिल का वहम है,’’ मैं ने उचित अवसर देख कर कहा और वह चुप हो गया. शायद वह अपनी गलती अनुभव करने लगा था.

एक इतवार को दोपहर का शो देखने  का प्रोग्राम था. मैं नहा कर जल्दी  से कपड़े बदल आई थी और घर में पहनने वाली अपनी साधारण सी धोती को मैं ने बरामदे में ही रस्सी पर डाल दिया. नीरज कुछ देर पीछे वाली कोठियों की ओर बड़े ध्यान से देखता रहा, फिर मेरी धुली धोती को उस ने रस्सी से उतार फेंका और बोला, ‘‘इस बीस रुपल्ली की धोती को इन लोगों के सामने सुखाने मत डाला करो. देखो, वह 6 नंबर वाली देखदेख कर कैसे हंस रही है, यह देख कर कि तुम्हारे पास ऐसी ही सस्ती धोती है पहनने को. क्या कहेंगे ये सब लोग? इसे सुखाना ही था तो उधर बाहर बगीचे में तार पर डाल देतीं.’’

क्यों का प्रश्न नहीं : भाग 3

‘‘मैं तुम्हारे किन रिश्तेदारों की मौत के सियापे करने नहीं गया. उन्हीं रिश्तेदारों ने माताजी के मरने पर आना तो दूर, किसी ने फोन तक नहीं किया. किसी को डिप्रैशन था, किसी के घुटनों में दर्द था. तुम्हारी भाषा की कड़वाहट आज भी भीतर तक कड़वाहट से भर देती है. पर अब इन सब बातों का क्या फायदा? मैं तो केवल इतना जानता हूं कि आप लोगों के सामने मैं हमेशा गरीब बना रहा. किसी बाप को गरीब नहीं होना चाहिए. गरीब हो तो उस में ताने सुनने की ताकत होनी चाहिए. अगर सुनने की ताकत न हो तो उस की हालत घर के कुत्ते से भी बदतर होती है.

‘‘घर के कुत्ते को जितना मरजी दुत्कारो, वह घर की ओर ही आता है. घर को छोड़ कर न जाना उस की मजबूरी होती है. यह मजबूरी जीवनभर चलती है. काश, मैं पहले ही घर को छोड़ कर चला आया होता. मैं खुद ही अपने आत्मसम्मान को रख नहीं पाया था. यदि ऐसा करता तो मेरे उन कर्मों का क्या होता जो मुझे हर हाल में भुगतने थे.’’

‘‘गलतियां हुई हैं, मैं मानती हूं. क्या इन सब को भूल कर आगे की जिंदगी अच्छी तरह से नहीं जी जा सकती,’’ इतनी देर से चुप मेरी पत्नी ने कहा.

‘‘हर रोज यही कोशिश करता हूं कि सब भूल जाऊं. भूल जाऊं कि जिंदगी के हर मोड़ पर मुझे लताड़ा गया है. हर कदम पर मैं ने आत्मसम्मान को खोया है. भूल जाऊं कि हर गलती के लिए मुझे ही दोषी ठहराया जाता रहा है. चाहे वह सोफे के खराब होने की बात हो या कुरसियों के टूटने की. मैं कैसे कहता कि ये बच्चों की उछलकूद से हुआ है. अगर कहता भी तो इसे कौन मानता.

‘‘मैं ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला है, अपने ढंग से जिंदगी को सैट किया है. चाहे पहले की यादें मुझे हर रोज पीडि़त करती हैं तो भी मुझे यहां राजी के साथ से कोई एतराज नहीं है परंतु इसे अपनी जिंदगी के दिन दूसरे कमरे में गुजारने होंगे. इस की पूरी सेवा होगी. इस की सारी जरूरतों का ध्यान रखा जाएगा. इस की तकलीफों के बारे में हर रोज पूछा जाएगा और इलाज करवाया जाएगा. इस ने चाहे मुझे हजार रुपया महीना देना स्वीकार न किया हो पर मैं इसे 5 हजार रुपए महीना दूंगा.

‘‘24 घंटे टैलीफोन इस के सिरहाने रहेगा, चाहे जिस से बात करे. पर मेरे जीवन में इस का कोई दखल नहीं होगा. मैं कहां जाता हूं, क्या करता हूं, इस पर कोई क्यों का प्रश्न नहीं होगा. मुझे कोई भी फौरमैलिटी बरदाश्त नहीं होगी. बस, इतना ही.’’

वे दोनों चुप रहे. शायद उन को मेरी बातें मंजूर थीं. मैं ने बेबे से कह कर राजी का सामान दूसरे कमरे में रखवा दिया.

Top 10 Farming Tips in Hindi : टॉप 10 फार्मिंग टिप्स इन हिंदी

Farming Tipa in Hindi : इस आर्टिकल आज हम आपके लिए लेकर आएं है सरिता की Top Ten Farming Tips in Hindi 2021 : किसानों की कई प्रॉब्लम होती है जिसे वह समझ नहीं पाते हैं और वह प्रॉब्लम बढ़ते जाता है. ऐसे में हम उनकी मदद के लिए कुछ खास टिप्स लेकर आएं हैं. अगर आपके साथ भी कुछ इस तरह की दिक्कत है तो आप सरिता के Top 10 Farming Tips से मदद ले सकते हैं.

  1. धनिया में लगने वाले कीट व रोग और उन का प्रबंधन

 

माहू कीट यह कीट फूल आने के समय शिशु व प्रौढ़ दोनों ही रस चूस कर नुकसान करते हैं. प्रभावित फल व बीजों का आकार छोटा हो जाता है. प्रबंधन * कीट आने से पहले नीम तेल 1,500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. * अगर कीट आ गया है, तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें. स्टेम गाल रोग यह धनिया का प्रमुख रोग है. इस में पत्तियों के ऊपरी भाग, तना, शाखाएं, फूल व फल पर रोग के लक्षण कुछ उभरे हुए फफोले जैसे दिखाई देते हैं.

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2. सब्जियों की बर्बादी को रोकने में मददगार ‘सोलर कोल्ड स्टोर’

मुजफ्फरपुर के बंदरा प्रखंड का एक गांव है सुंदरपुर रतवारा, जहां के छोटे व मझोले किसान ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ के मार्गदर्शन में सब्जियों और दूसरी फसलों की खेती करते हैं. जब एकेआरएसपीआई को किसानों की इस समस्या की जानकारी हुई, तो संस्था ने उन की खराब होने वाली सब्जियों के भंडारण का स्थानीय लैवल पर समाधान निकाला. यहां तक कि इस पर आने वाला बिजली का खर्च लगभग शून्य है. किसानों के समूह ने शुरू किया सोलर कोल्ड स्टोर ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ ने सब से पहले सुंदरपुर रतवारा गांव में सब्जी की खेती करने वाले छोटे और मझोले किसानों को एकजुट किया.

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3. ऐसे करें आलू की आधुनिक खेती

आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है. भारत में शायद ही कोई ऐसा रसोईघर होगा, जहां पर आलू न दिखे. इस की मसालेदार तरकारी, पकौड़ी, चाट, पापड़, चिप्स जैसे स्वादिष्ठ पकवानों के अलावा चिप्स, भुजिया और कुरकुरे भी हर जवां के मन को भा रहे हैं. इस में प्रोटीन, स्टार्च, विटामिन के और सी के अलावा आलू में एमीनो एसिड जैसे ट्रिप्टोफेन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन आदि काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर के विकास के लिए जरूरी हैं. आलू भारत की सब से अहम फसल है. तमिलनाडु और केरल को छोड़ कर आलू सारे देश में उगाया जाता है.

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4. मशरूम की खेती करने के लिए प्रशिक्षण लेना लाभकारी

मशरूम की खेती करने के लिए प्रशिक्षण लेना लाभकारी ] भानु प्रकाश राणा मशरूम को कुकुरमुत्ता, भूमिकवक, खुंभ, खुंभी आदि कई नामों से जाना जाता है. अकसर बारिश के दिनों में छतरीनुमा संरचनाएं सडे़गले कूडे़ के ढेरों पर या गोबर की खाद या लकड़ी पर देखने को मिलती हैं. यह भी एक तरह का मशरूम ही है. इसे आसानी से घर में उगाया जा सकता है. मशरूम का प्रयोग सब्जी, पकौड़ा व सूप के रूप में किया जाता है. मशरूम खाने में स्वादिष्ठ, सुगंधित, मुलायम और पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है.

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5. पोटैटो प्लांटर से करें आलू की बोआई

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आलू बोने के 2 तरह के यंत्र आजकल चलन में हैं, एक सैमीआटोमैटिक आलू प्लांटर. दूसरा पूरी तरह आटोमैटिक प्लांटर. दोनों ही तरह के यंत्र ट्रैक्टर में जोड़ कर चलाए जाते हैं. सैमीआटोमैटिक प्लांटर में यंत्र की बनावट कुछ इस तरह होती है, जिस में आलू बीज भरने के लिए एक बड़ा बौक्स लगा होता है. इस में आलू बीज भर लिया जाता?है और उसी के साथ नीचे की ओर घूमने वाली डिस्क लगी होती हैं, जो 2-3 या 4 भी हो सकती?हैं.

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6. जानें नवंबर महीने में खेती से जुड़े जरूरी काम

नवंबर माह में उत्तर भारत में सर्दियां शुरू हो जाती हैं. इस मौसम की खास फसलें गेहूं, आलू और सरसों मानी जाती?हैं. इन की बोआई से पहले खेत की मिट्टी की जांच अवश्य कराएं और जांच के बाद ही उर्वरकों की मात्रा तय करें. खेत में सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद डालें.

* अपने इलाके की आबोहवा के मुताबिक बोआई के लिए फसल की किस्मों का चुनाव करें. बीजों को फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करने के बाद ही बोएं. बोआई सीड ड्रिल से करने पर बीज भी कम लगता है और पैदावार भी अच्छी होती है.

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7. बायो डी कंपोजर किसानों के लिए बेहद फायदेमंद

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8. शीत ऋतु में अपनाएं गन्ने की आधुनिक खेती

गन्ना ग्रेमिनी कुल से संबंधित है और यह घास कुल का पौधा है. इस का वानस्पतिक नाम सैकेरम औफिसिनेरम है. वैसे तो यह एक नकदी फसल है, जिस से गुड़, चीनी, शराब आदि बनाए जाते हैं. वहीं दूसरी ओर ब्राजील देश में गन्ने का उत्पादन सब से ज्यादा होता है. भारत का गन्ने की उत्पादकता में संपूर्ण विश्व में दूसरा स्थान है. गन्ने को मुख्यत: व्यावसायिक चीनी उत्पादन करने वाली फसल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो कि विश्व में उत्पादित होने वाली चीनी के उत्पादन में तकरीबन 75 फीसदी योगदान करता है, शेष में चुकंदर, मीठी ज्वार इत्यादि फसलों का योगदान है.

9. खेती में जल प्रबंधन के उपाय

गन्ने के साथ गेहूं की फसल लेने के लिए फर्ब विधि से गेहूं व गन्ने की बोआई करनी चाहिए. इस तरीके को अपनाने से पानी की बचत के साथसाथ दोनों फसलों की पैदावार भी ज्यादा मिलती है. फर्ब विधि से गेहूं और गन्ने की बोआई कृषि जल संरक्षण का किफायती व उपयोगी तरीका है. इस तरीके में औसतन 20 से 30 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है.

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10. फसल अवशेष और इसका प्रबंधन

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कृषि में संसाधन संरक्षण तकनीक स्थायी रूप से दीर्घकालीक खाद्य उत्पादन में सहायक होता है, परंतु मशीनों के अधिक प्रयोग से मृदा उर्वरता में कमी आने लगती है. धानगेहूं फसल प्रणाली में आधुनिक व बड़े आकार के फार्म मशीनरी जैसे कंबाइन हार्वेस्टर, रोटावेटर, सीड ड्रिल वगैरह की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. इस प्रकार की कृषि प्रणाली में ज्यादातर किसान फसल अवशेषों को जला दे रहे हैं, जो वातावरण के लिए एक गंभीर समस्या है. नवीन और नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल 500 मिलियन टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है और दूसरे प्रदेशों की तुलना में उत्तर प्रदेश में सब से ज्यादा 60 मिलियन टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है,

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Bigg Boss 15: क्या सच में पति रितेश से तलाक लेगी राखी सावंत? जानें पूरी सच्चाई

टीवी की जानी मानी अदाकारा राखी सावंत के पति रितेश इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने हुए हैं.राखी की जबसे शादी हुई तबसे उनकी जिंदगी विवादों में ही बनी हुई है.

शादी के 2 साल बाद उनके पति रितेश राखी सावंत से मिलने बिग बॉस के घर में आएं हैं. जिसे लेकर फैंस और बिग बॉस कंटेस्टेंट कई तरह के सवाल भी कर रहे हैं. हालांकि दर्शकों का यकिन करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि क्या वाकई यह राखी सावंत के पति ही है या फिर कोई और है.

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बिग बॉस हाउस के अंदर भी कई तरह के सवाल कंटेस्टेंट करते नजर आते हैं. ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि राखी सावंत आने वाले एपिसोड में अपने पति के साथ अपनी तलाक की घोषणा करने वाली हैं.

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यह भी घोषणा कि गई है कि राखी बिग बॉस के घर के अंदर ही अपनी शादी को तोड़ देंगी. जिससे फैंस को एक बार फिर से झटका लगने वाला है. हालांकि इस अफवाह पर अभी तक कोई भी आधिकारिक तौर पर मेकर्स ने घोषणा नहीं कि है. फैंस का मानना है कि मेकर्स ने शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए इस बात कि प्लानिंग कि है.

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वहीं कुछ लोगों ने इस बात का भी दावा किया है कि राखी शो में किराए के पति को लेकर आई हैं. जिससे शो के टीआरपी पर असर पड़े. अब देखना यह है कि बिग बॉस के आने वाले एपिसोड में क्या होता है.

कैसी वाग्दत्ता – भाग 3 : परख से बिछुड़ने का गम क्या तनीषा सालों बाद भी भुला पाई

जब तनीषा को ये सब बातें पता चलीं तो उस ने विवाह करने से ही मना कर दिया. उस ने परख से कहा, ‘‘यदि इस विवाह से तुम्हारी जान को खतरा है तो मैं तुम्हें आजाद करती हूं, क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन बिताना है न केवल तुम्हें पाना. यदि तुम्हें कुछ हो गया तो मैं तुम्हारे बिना क्या करूंगी?’’

परख को बड़ा ही आश्चर्य हुआ. उस ने कहा, ‘‘अब जब हम दोनों ही एकदूसरे को प्यार करते हैं तो फिर इन रूढि़वादी रिवाजों के डर से तुम अपने कदम पीछे क्यों कर रही हो? क्या तुम्हें तुम्हारी शिक्षा इन्हीं सब अंधविश्वासों को मानने के लिए ही मिली है? बी लौजिकल.’’

लेकिन तनीषा अपनी बात पर अडिग रही. उस ने परख को कोई उत्तर नहीं दिया. किंतु परख ने उस की बाएं हाथ की उंगली में अपने नाम की हीरों जड़ी अंगूठी पहना ही दी.

‘‘यह अंगूठी मेरी ओर से हमारी सगाई का प्रतीक है. मैं तुम्हारी हां की प्रतीक्षा करूंगा,’’ कह कर परख वहां से चला गया.

तनीषा ने अब परख से मिलनाजुलना भी कम कर दिया था. डरती थी कि कहीं वह कमजोर न पड़ जाए और परख की बात मान ले. परख भी अब चुपचाप उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब उस की तनु विवाह के लिए हां कर दे. इस बीच तनु को एक स्थानीय कालेज में लैक्चररशिप मिल गई और उस ने खुद को अध्यापन कार्य में ही व्यस्त कर लिया.

इधर परख भी एक फैलोशिप पा कर कनाडा चला गया था 2 वर्षों के लिए. फिर कुछ

ऐसा इत्तेफाक हुआ कि उस के कनाडा प्रवास की अवधि बढ़ती ही चली गई. दोनों की फोन पर या व्हाट्सऐप पर ही बातें होती थीं. लेकिन धीरेधीरे वह भी कम होता चला गया और फिर एक दिन उस की सहेली शुभ्रा ने जोकि परख के मामा की ही बेटी थी, परख के ब्याह की खबर दे कर उसे अचंभित कर दिया.

उस ने यह भी बताया कि दादी मृत्यु शैय्या पर पड़ी थीं और परख का विवाह देखना चाहती थीं. उस ने दादी की इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी रजामंदी दे दी थी. तनीषा ने अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को जबरन रोका और परख के नाम की अंगूठी को, जिसे पहन कर वह खुद को उस की वाग्दत्ता समझने लगी थी, अपने दूसरे हाथ से कस कर भींच लिया.

‘‘नहीं, मैं उस की हूं और वह मेरा है. भले ही उस का ब्याह किसी से हो जाए. मेरी उंगली में तो उसी के प्यार की निशानी है,’’ और इस प्रकार उस ने खुद को अकेले रहने को बाध्य कर लिया.

कुछ दिनों बाद उस के विवाह न करने के फैसले को देखते हुए उस के मातापिता ने उस के भाई का विवाह कर दिया. उन की मृत्यु के उपरांत वह भाईभाभी तथा उन के बच्चों के साथ रहने लगी. किंतु भाभी को अब उस का वहां रहना अखरने लगा था. जबतब वे उसे ताने सुना ही देती थीं, ‘‘भई अकेले की जिंदगी भी कोई जिंदगी होती है. अपने घरपरिवार की जरूरत तो सभी को होती है.’’

तनीषा भलीभांति समझती थी कि वे ऐसा क्यों कहती थीं. पिछली बार जब वह 2 माह टायफाइड से पीडि़त रही तब भाभी को उस की सेवा करनी पड़ी थी. इसीलिए वे ये सब बातें सुना देती थीं. लेकिन शायद वे भूल जाती थीं कि उन की 3-3 जचगी में उस ने किस प्रकार उन की सेवा की थी. वे सो सकें इसलिए वह रातरात भर जाग कर बच्चों को संभालती थी और सवेरे घर का सारा काम निबटा कर क्लासेज लेने के लिए कालेज भी जाती थी. घरखर्च के रूप में वह भाभी के हाथ पर अपने वेतन का एक हिस्सा रख ही देती थी. जबकि भाभी बनावटी आंसू बहाते हुए कहती थीं, ‘‘अरे मेरा हाथ कट कर गिर जाए, अपनी बेटी सरीखी ननद से घरखर्च में मदद लेते हुए. लेकिन क्या करें महंगाई भी तो बढ़ती ही जा रही है.’’

तनीषा इन सब बातों का मतलब समझती थी और जब भाई ने अपना अलग फ्लैट लिया तब उसे यह समझने में देर न लगी कि अब वे लोग उस के साथ और नहीं रहना चाहते. बिना यह सोचे की वह अकेली रह जाएगी, उस का भाई अपने परिवार को ले कर चला गया और वह अब एकदम अकेली ही रह गई थी.

डौरबैल की आवाज से वह वर्तमान में लौटी और दरवाजे पर जा कर देखा अनुज ही था. बहन के विवाह का निमंत्रण ले कर आया था. ‘नीरजा परिणय प्रतीक’ उस ने कार्ड को उलटपलट कर देखा. वर के पिता का नाम परख जालान पढ़ कर वह चिहुंक सी गई.

‘तो क्या प्रतीक मेरे परख का ही बेटा है? नहींनहीं यह कोई और परख भी तो हो सकता है,’ उस ने अपने को आश्वस्त किया.

‘आंटी, आप को जरूर आना है,’ कह कर अनुज चला गया.

न जाने क्यों आज वह आईने में खुद को गौर से निहार रही थी. क्या सच में उसे वार्धक्य की आहट सुनाई दे रही है. वह सोचने लगी, ‘‘हां, समय ने उस पर अपना भरपूर प्रहार जो किया था. काश कि बीता समय लौट पाता तो वह परख को अपनी बांहों में कस कर जकड़ लेती,’’

‘आ जाओ परख, तुम्हारी तनु आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही है,’ उस के मुंह से एक निश्वास निकल गया.

आज 25 तारीख है. शाम को नीरजा की बरात आने वाली है. उस ने अपनी कोई भी तैयारी नहीं की थी. जाऊं या न जाऊं, वह उलझन में पड़ी हुई थी. अभी तो उस के लिए कोई गिफ्ट भी नहीं खरीदा था. आखिर कुछ न कुछ देना तो होगा ही. खैर कैश ही दे देगी उस ने सोचा.

बैंडबाजे की आवाज से उस की तंद्रा भंग हो गई. लगता है बरात आ गई है. वह जल्दी से तैयार होने लगी. बालों को फ्रैंच बुफे स्टाइल में कानों के ऊपर से उठा कर प्यारा सा जूड़ा बनाया. हलके नीले रंग की सिल्क की साड़ी पहनी, सफेद मोतियों का सैट पहना, उंगली में अंगूठी पहनने की जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि वहां तो परख का प्यार पहले से ही अपना अधिकार जमाए हुए था.

पूरी कोठी दुलहन की तरह सजी हुई थी. बरात दरवाजे पर आ गई थी. तभी उस की नजर दुल्हे के पिता पर पड़ी. परख ही था. अपने समधी के किसी मजाक पर हंसहंस कर दुहरा हुआ जा रहा था. तनीषा की नजरें अपने परख को ढूंढ़ रहीं थीं जो कहीं खो सा गया था. उस के सिर के खिचड़ी हो गए बाल, कलमों के पास थोड़ीथोड़ी सफेदी उस की बढ़ती उम्र का परिचय दे रहे थे. तनिक निकली हुई छोटी सी तोंद उस की सुख तथा समृद्धि का प्रतीक थी. नहीं, यह मेरा परख नहीं हो सकता है. सोचते हुए वह घर के अंदर जाने के लिए मुड़ी कि तभी उस ने देखा सामने से नीरजा दुलहन बनी हुई अपनी सहेलियों के साथ जयमाला ले कर आ रही थी. उस ने तत्काल ही एक निर्णय लिया और आगे बढ़ कर नीरजा की उंगली में परख के नाम की अंगूठी पहना दी. जब तक नीरजा कुछ समझ पाती वह वहां से वापस लौट पड़ी. अब उस का वहां कोई काम नहीं था.

‘‘जब भी परख अपनी बहू की उंगली में यह अंगूठी देखेगा तो क्या उसे मेरी याद आएगी?’’ सोचते हुए वह नींद के आगोश में चली गई, क्योंकि अब उसे परख के लौटने की कोई उम्मीद जो नहीं थी. उसे एक पुराना गीत याद आ रहा था ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…’ और अब उस का मन शांत हो गया था.

 

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