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घर पर यूं बनाएं पालक जूस और ओट्स रवा पालक ढोकला

Writer- डाक्टर साधना वैश, वैज्ञानिक, गृह विज्ञान और डा. जितेंद्र सिंह, वैज्ञानिक, फसल उत्पादन

सर्दी के मौसम में लोग ज्यादातर पालक खाना पसंद करते हैं. ऐसे में लोग पालक के कई तरह के फूड बनाकर खाना पसंद करते हैं. आज आपको पालक ढोकला और पालक जूस की रेसिपी के बारे में बताएंगे.

  1. पालक ढोकला

रवा पालक ढोकला बनाने की सामग्री :

50 ग्राम ओट्स पाउडर

100 ग्राम रवा

100 ग्राम दही

हरी मिर्च

नमक स्वाद के अनुसार

रवा पालक ढोकला बनाने की विधि : आधा कप पानी डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. उस के बाद

15 मिनट के लिए रख दीजिए. उस में पालक और 2 चम्मच पानी डाल कर अच्छी तरह से मिला लीजिए और इतना पानी मिलाइए कि मिश्रण गाढ़ा हो. स्टीम करने से तुरंत पहले बाउल में थोड़ा सा लगभग एक चुटकी ईनो पाउडर डाल दीजिए. जब यह फुल जाए, तो एक कड़ाही में या भगोने में थोड़ा पानी डालिए. उस के ऊपर कोई कटोरी रख कर एक छोटे से कटोरे में या किसी छोटे भगोने में तेल लगा कर इस मिश्रण को डाल दीजिए.

15 मिनट के बाद देखेंगे कि मिश्रण फूल कर डबल हो जाएगा और हमारा ढोकला तैयार हो जाएगा. ढोकले की पहचान करने के लिए उस में चाकू की सहायता से छेद कर के देखेंगे. अगर चाकू चिपकता नहीं है, तो समझें कि ढोकला तैयार हो गया है.

ढोकले को हरी मिर्च की चटनी के साथ सुबह के नाश्ते में सर्व करें. यह तेलरहित पोषक नाश्ता बहुत ही लाभकारी है.

2. पालक का जूस

पालक का जूस बनाने के लिए जरूरी सामग्री

पालक 100 ग्राम

खीरा एक

पुदीना 8-10 पत्तियां

काली मिर्च पाउडर एक चुटकी

नमक स्वाद के अनुसार

नीबू आधा

पालक का जूस बनाने की विधि

पालक को महीनमहीन काट लें और खीरे को भी महीनमहीन काट कर मिक्सी में पीसने के लिए डाल दें. इस में पुदीना भी मिला दें. जब यह फेस तैयार हो जाए, तो इस को जार से निकाल कर छान लें. इस पदार्थ में 2 गिलास पानी मिलाएं. नमक और काली मिर्च को

सर्व करने के पहले मिला दें और ऊपर से नीबू स्वाद के अनुसार मिला लें. यह जूस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत ही कारगर है.

रबी फसलों को पाले से बचाएं

Writer- डा. शैलेंद्र सिंह

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा  संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि दिसंबर से जनवरी माह में पाला पड़ने की संभावना अधिक होती है, जिस से फसलों को काफी नुकसान होता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि जिस दिन ठंड अधिक हो, शाम को हवा का चलना रुक जाए, रात में आकाश साफ हो व आर्द्रता प्रतिशत अधिक हो, तो उस रात पाला पड़ने की संभावना सब से अधिक होती है. दिन के समय सूरज की गरमी से धरती गरम हो जाती है, जमीन से यह गरमी विकिरण के द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है, जिस के कारण जमीन को गरमी नहीं मिल पाती है और रात में आसपास के वातावरण का तापमान कई बार जीरो डिगरी सैंटीग्रेड या इस से नीचे चला जाता है.

ऐसी दशा में ओस की बूंदें/जल वाष्प बिना द्रव रूप में बदले सीधे ही सूक्ष्म हिमकणों में बदल जाती हैं. इसे ही ‘पाला’ कहते हैं.

पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं के रिक्त स्थानों में उपलब्ध जलीय घोल ठोस बर्फ में बदल जाता है, जिस का घनत्व अधिक होने के कारण पौधों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और रंध्रावकाश नष्ट हो जाते हैं. इस के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, औक्सीजन, वाष्प उत्सर्जन व अन्य दैहिक क्रियाओं की विनिमय प्रक्रिया में बाधा पड़ती है, जिस से पौधा नष्ट हो जाता है.

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उन्होंने यह भी कहा कि पाला पड़ने से पत्तियां व फूल मुर झा जाते हैं और  झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं. फूल  झड़ जाते हैं. उत्पादन अधिक प्रभावित होता है.

पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता, आम व अन्य नवरोपित फसलें अधिक प्रभावित होती हैं. पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इस की चपेट में आ जाती हैं.

पाले से बचाव के तरीके

* खेतों की मेंड़ों पर घासफूस जला कर धुआं करें. ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गरम हो जाता है. पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसान फसलों में सिंचाई करें. सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है.

* पाले के समय 2 लोग सुबह के समय एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़ कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें, जिस से फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

* यदि किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं, तो उस को घासफूस की टाटिया बना कर अथवा प्लास्टिक से ढकें. ध्यान रहे कि दक्षिणपूर्व भाग खुला रखें, ताकि सुबह और दोपहर में धूप मिलती रहे.

* पाले से दीर्घकालिक बचाव के लिए उत्तरपश्चिम मेंड़ पर और बीचबीच में उचित स्थान पर वायुरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम व जामुन आदि को लगाएं, तो सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.

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* यदि किसान फसलों पर कुनकुने पानी का छिड़काव करते हैं, तो फसलें पाले से बच जाती हैं.

* पाले से बचाव के लिए किसानों को पाला पड़ने के दिनों में यूरिया की 20 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए अथवा थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा को 1,000 लिटर पानी में घोल कर

15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर

80 फीसदी डब्लूडीजी की 40 ग्राम मात्रा को प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

* ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है और वह जमने नहीं पाता है. इस तरह फसलें पाले से बच जाती हैं.

* फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट औफ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति

15 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर

सकते हैं.

* फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर किसान अपने खेतों में छिड़काव करें.

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* फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम व 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति

15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क करें या पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह के मोबाइल नंबर 9795160389 पर संपर्क करें.

कही अनकही: भाग 2- तन्वी की हरकतों से मां क्यों परेशान थी

Writer- Reeta Kumari

तन्वी की रूखी और कठोर वाणी से मैं तिलमिला उठी, थोड़ी देर को रुकी, फिर अपने कमरे में वापस लौट गई. फ्रिज से सूप निकाल कर गरम कर बे्रड के साथ खाने बैठी तो मुझे तन्वी का मुरझाया चेहरा याद आ गया. सोचा, पता नहीं उस ने कुछ खाया भी है या नहीं. सूप लिए हुए एक बार फिर मैं उस के पास जा पहुंची.

‘‘तुम्हें शायद मेरा यहां आना पसंद न हो, फिर भी मैं थोड़ा सा गरम सूप लाई हूं, पी लो.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं…’’ तन्वी धीरे से बोली और सूप पीने लगी. सूप समाप्त करने के बाद, उस के चेहरे पर बच्चों जैसी एक तृप्ति भरी मासूम मुसकान दौड़ गई.

‘‘थैंक्स… मिसेज मीनू, सूप बहुत ही अच्छा बना था.’’

अब मुझ से रहा नहीं गया सो बोली, ‘‘कम से कम मेरी उम्र का लिहाज कर. तुम मुझे आंटी तो कह ही सकती हो.’’

उस की शांत और मासूम आंखों में फिर से वही विद्रोही झलक कौंध उठी.

‘‘मैं किसी रिश्ते में विश्वास नहीं करती इसलिए किसी को भी अपने साथ रिश्तों में जोड़ने की कोशिश नहीं करती.’’

उस की कुटिल हंसी ने उस की सारी मासूमियत को पल में धोपोंछ कर बहा दिया.

मैं भी उस का सामना करने के लिए पहले से ही तैयार थी.

‘‘हर बात को भौतिकता से जोड़ने वाले नई पीढ़ी के तुम लोग क्या जानो कि आदमी के लिए जिंदगी में रिश्तों की क्या अहमियत होती है. अरे, रिश्ता तो कच्चे धागे से बंधा प्यार का वह बंधन है जिस के लिए लोग कभीकभी अपने सारे सुख ही नहीं, अपनी जिंदगी तक कुरबान कर देते हैं.’’

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तभी नेहाजी आ गईं और मैं उन्हें संक्षेप में तन्वी के बीमार होने की बात बता कर लौट आई. इस घटना के करीब 2 दिन बाद मैं बैठी सूखे कपड़ों की तह लगा रही थी कि अचानक तन्वी मेरे सामने आ खड़ी हुई. वह सारे संकोच त्याग सहज ही मुसकराते हुए मेरे बगल में आ बैठी. उस लड़की की सारी उद्दंडता जाने कहां गुम हो गई थी. उस का सहज व्यवहार मुझे भी सहज बना गया.

‘‘कहो तन्वी, आज तुम्हें मेरी याद कैसे आ गई?’’

वह थोड़ी देर चुपचाप बैठी रही जैसे अपने अंदर बोलने का साहस जुटा रही हो, फिर बोली, ‘‘आंटी, मैं अपनी उस दिन की उद्दंडता के लिए आप से माफी मांगने आई हूं. आप ने ठीक ही कहा था कि मुझे किसी भी रिश्ते की अहमियत नहीं मालूम. जिंदगी में किसी ने पहली बार निस्वार्थ भाव से मेरी देखभाल की, मेरा खयाल रखा पर मैं ने उस प्यार और ममता के बंधन को भी स्वयं ही नकार दिया. सचमुच, आंटी मैं बहुत बुरी हूं.’’

‘‘तन्वी बेटा, तुम ने तो मेरी बातों को दिल से ही लगा लिया. तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे जैसे मासूम बच्चों की बातों का बुरा नहीं मानती.’’

‘‘सच, आंटी, मैं आप को खोना नहीं चाहती,’’ और खुशी से किलकते हुए उस ने अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डाल दीं. आज पहली बार तन्वी मुझे बेहद निरीह लगी.

‘‘एक बात बता, तू ने अपने पास इतने सारे विषबाण कहां से जमा कर रखे हैं. जब चाहा, जिस पर जी चाहा, तड़ से चला दिया.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर कुछ गंभीर होती हुई बोली, ‘‘हां, आंटी, आज मैं भी आप से वे सारी कहीअनकही बातें कहना चाहती हूं जिन्हें आज तक मैं किसी के सामने नहीं कह पाई.

‘‘शायद आप को पता नहीं, मेरे मम्मीपापा ने अपने सारे रिश्तेनाते तोड़ प्रेमविवाह किया था. पहले दोनों एक ही आफिस में काम करते थे. पापा की अपेक्षा मम्मी शुरू से ही ज्यादा जहीन, मेहनती और योग्य थीं. इसलिए उन की शीघ्रता से पदोन्नति होती गई. वहीं पापा की पदोन्नति काफी धीमी गति से होती रही थी. पदों के बीच बढ़ती दूरियों ने दोनों को पतिपत्नी से प्रतिस्पर्द्धी बना दिया. धीरेधीरे मम्मीपापा के बीच तनाव बढ़ता गया. उसी तनाव भरे माहौल में मेरा जन्म हुआ.

‘‘मेरा जन्म भी दोनों की महत्त्वा- कांक्षाओं पर अंकुश नहीं लगा सका. वे पहले की तरह अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त रहते. मेरा पालनपोषण आयाओं के सहारे हो रहा था. जब मैं बीमार पड़ती तो मम्मी व पापा में इस बात पर जंग छिड़ जाती कि छुट्टियां कौन लेगा. दोनों में से किसी के पास मेरे लिए टाइम नहीं था. बीमार अवस्था में भी मुझे आया या फिर डाक्टरों के क्लीनिक में नर्सों के सहारे रहना पड़ता.

‘‘मम्मी के अतिव्यस्त रहने के कारण उन के द्वारा रखी गई आया मुझे तरहतरह से प्रताडि़त करती. ख्याति, यश और वैभव की कामना ने मम्मी को अंधा और बहरा बना रखा था. अपनी बेटी की अंतर्वेदना उन्हें सुनाई नहीं देती थी. मैं आयाओं के व्यवहार से क्रोध, विवशता और झुंझलाहट से पागल सी हो जाती. धीरेधीरे जीवन को अपनाने और संसार में घुलमिल जाने की चेष्टा घटती चली गई और मैं अपनेआप में सिमट कर रह गई, जिस ने मुझे असामाजिक बना दिया.

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‘‘मेरी स्थिति से बेखबर मेरे मातापिता लड़तेझगड़ते एक दिन अलग हो गए. बिना किसी दर्द के पापा मुझे छोड़ कर चले गए. मम्मी की मजबूरी थी, उन्हें मुझे झेलना ही था. मैं एक आश्रिता थी, आश्रयदाता पापा हैं कि मम्मी, मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता था. निरर्थक, उद्देश्यहीन मेहनत ने मुझे पढ़ाई में भी सफल नहीं होने दिया. यही मेरे भटकाव की पहली सीढ़ी थी.’’

तन्वी थोड़ी देर को रुकी. वह उठी और बड़े अधिकार से फ्रिज को खोला. उस में से बोतल निकाल कर पानी पिया, फिर बोतल को एक तरफ रखते हुए मेरे पास आ कर बैठ गई और बोलने लगी :

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 5

अर्जुन ने स्पष्ट कहा कि अगर वह उस की बन कर रहेगी तो वह उसे रानी बना कर रखेगा. उस की सारी दौलत उसी की होगी.

दोनों को ही एकदूसरे की जरूरत थी. अर्जुन के पास देह के साथ दौलत भी थी, इसलिए सविता ने हामी भर दी थी. फिर क्या था, दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस का परिणाम यह निकला कि सविता गर्भवती हो गई. यह एक तरह का पाप ही था, जो सविता की कोख में आ गया था.

अगर यह पाप उजागर होता तो अर्जुन गांव में ही नहीं, पूरी बिरादरी में मुंह दिखाने लायक न रहता. दोनों का जीना हराम हो जाता. इसलिए उन्होंने गांव छोड़ कर कहीं ऐसी जगह जा

कर रहने का निर्णय लिया, जहां उन्हें कोई न जानता हो.

इस के लिए उन्होंने ऐसी योजना बनाई, जिस में गांव का कोई आदमी उन पर शक न कर सके. कभी कोई उन की तलाश भी न करे.

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इस के लिए सविता ने दशहरा के दिन जब गांव के लोग रामलीला मैदान में रामलीला देखने में मग्न थे, तभी सविता ने गांव में कई दिनों से घूम रही एक पागल औरत की रात में सोते समय लोहे के भारी सरिए से सिर पर कई वार कर के हत्या कर दी. चूंकि उन की योजना में दिनेश को फंसाना भी शामिल था. इसलिए लाश का चेहरा एक पत्थर से कुचल कर उसे दिनेश के खेत की ओर जाने वाले रास्ते पर फेंक दिया.

बगल के खेत में दोनों छिप कर दिनेश के आने का इंतजार करने लगे. उन्हें दिनेश की हर गतिविधि का पता था ही, इसलिए वे उसी हिसाब से अपना सारा काम कर रहे थे. आधी रात के बाद जब दिनेश आया तो लाश देख कर वह दोस्तों को बुलाने उल्टे पैर भागा.

उसी बीच सविता और अर्जुन ने लाश उठाई और बगल के गांव मालपुर ले जा कर गांव के बाहर स्थित कुएं में डाल दी. सविता वहां से सीधे बड़ौदा जा कर वहां एक धर्मशाला में ठहर गई. वह तब तक उस धर्मशाला में छिपी रही, जब तक अर्जुन ने उस के रहने की ठीक से व्यवस्था नहीं कर दी.

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खंभाडि़या के उस गांव में अर्जुन ने जमीन खरीद कर मकान बनवाया और गुजरबसर के लिए किराने की दुकान खोल ली. समय पर सविता ने एक बेटी को जन्म दिया. पर वह बच नहीं सकी. अर्जुन के पास पैसा था ही, उस ने खेती की कुछ जमीन भी खरीद ली थी. दोनों आराम से रह रहे थे, पर उन का अपराध छिप नहीं सका और वे पकड़े गए. इस के बाद जो हुआ, आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

अपना कारनामा बताते हुए जहां सविता जोरजोर से रोने लगी थी, वहीं अर्जुन का सिर शरम और ग्लानि से झुक गया था. अर्जुन ने अपने अपराध को छिपाने का निशाना तो बहुत सही लगाया था, पर उस का निशाना चूक गया और वह जेल पहुंच गया.

पूछताछ के बाद थाना भादरवा पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर उन के बयान कराए, जिस से आजीवन कारावास की सजा काट रहे निर्दोष दिनेश को जेल से रिहा कराया जा सके. थानाप्रभारी फौजदार सिंह ने दिनेश के निर्दोष

होने के सारे सबूत पेश कर उसे जेल से रिहा कराया.

दिनेश की रिहाई के कागज ले कर आए  कान्हा और करसन के साथ थानाप्रभारी फौजदार सिंह भी अहमदाबाद की साबरमती जेल के गेट पर खड़े थे. दिनेश जैसे ही जेल से बाहर आया, दौड़ कर दोस्तों के गले लग गया. फौजदार सिंह को वे तीनों उस समय त्रिदेव लग रहे थे.

(कहानी सत्य घटना पर आधारित है. कथा में पात्रों के नाम बदले हुए हैं)

तेजस्‍वी प्रकाश-करण कुंद्रा की रोमांटिक डेट, पपाराजी ने कहा- भैया-भाभी! देखें Video

‘बिग बॉस 15’ की विनर तेजस्‍वी प्रकाश (Tejasswi Prakash)  बिग बॉस हाउस में अपने लवलाइफ को लेकर भी सुर्खियों में छायी रही. शो खत्म होने के बाद भी तेजो और करण का प्यार चर्चे में है. फैंस भी इस कपल को काफी पसंद करते हैं.

करण कुंद्रा (Karan Kundrra) अपनी गर्लफ्रेंड की जीत से काफी खुश है. करण ने बिग बॉस विनर बेहद ही शानदार तरीके से वेलकम किया. बिति रात करण और तेजस्वी डिनर डेट पर भी गए थे. इससे जुड़ा एक वीडियो सामने आया है.

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फिनाले के बाद जहां दोनों ने पार्टी की. करण अपनी गर्लफ्रेंड तेजस्‍वी के घर पहुंच गए. फिर शाम को दोनों डिनर डेट पर निकल गए. सबसे दिलचस्प बात ये हुई कि वहां मौजूद पपाराजी ने फोटो क्लिक करते हुए, उन्‍हें ‘भैया-भाभी’ कह दिया. जिसके बाद दोनों की हंसी छूटने लगी.

 

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तेजस्‍वी और करण का रोमांटिक अंदाज भी देखने को मिला. दोनों हाथों में हाथ डाले नजर आए.  तेजस्‍वी ने पिंक कलर की ड्रेस पहन रखी थी, करण व्‍हाइट हुडी में थे.  इसी दौरान पपाराजी ने दोनों को साथ देखकर कहा- क्‍या बात है भैया भाभी के साथ.

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तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा की डिनर डेट की तस्वीरें और वीडियोज सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. डिनर के बाद भी जब पपाराजी ने दोनों को देखा तो करण से पूछा कि भाभी की फोटो लेनी है. तेजस्‍वी यह सुनकर मुस्‍कुराने लगीं.

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बॉलीवुड एक्ट्रेस मौनी रॉय (Mouni Roy) अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छाई हुई हैं. कुछ दिन पहले ही मौनी ने अपने बॉयफ्रेंड सूरज नांबियार (Suraj Nambiar) के साथ सात फेरे लिए. इनकी शादी की फोटोज और वीडियोज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. अब मौनी रॉय का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वह पति को छोड़ किसी और को किस करती हुई नजर आ रही हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.

शादी के बाद मौनी रॉय (Mouni Roy) का ये वीडियो गृह प्रवेश का है. इस वीडियो में वह अर्जुन बिजलानी के साथ नजर आ रही है. बता दें कि अर्जुन बिजलानी और मौनी बहुत अच्छे दोस्त हैं. वीडियो में मौनी रॉय, अर्जुन बिजलानी को हग करती नजर आ रही हैं.

 

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इसके बाद वह उनके गाल पर किस भी करती हैं. अर्जुन बोलते हैं, ये सिर्फ वीडियो है बुरा मत मानना है. आज गृह प्रवेश हो गया. मौनी कहती हैं कि अर्जुन मेरे सबसे बेस्ट फ्रेंड है. इसके बाद अर्जुन भी मौनी रॉय के गाल पर किस करते हैं. इंटरनेट पर ये वीडियो खूब वायरल हो रहा है.

 

अर्जुन, मौनी और सूरज की शादी में भी शामिल हुए थे. उन्होंने वेडिंग सेरेमनी में जमकर डांस किया था. आपको बता दें कि मौनी राय के पति सूरज एक इनवेस्टमेंट बैंकर हैं. सूरज एक बिजनेसमैन होने के साथ दुबई बेस्ड इंवेस्टमेंट बैंकर भी हैं.

 

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इधर-उधर: भाग 3

Writer- Rajesh Kumar Ranga

आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए. उस की नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए. टैक्सी लेने की तमाम कोशिशें नाकामयाब होने के बाद दोनों स्टेशन की ओर पैदल ही निकल पड़े. रास्ते में आकाश ने ड्राइवर को फोन कर के कामा होटल से गाड़ी ले कर स्टेशन आने को कह दिया.

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी. आकाश और उस के परिवार वालों ने इजाजत

मांगी. उन के जाते ही जयनाथजी कुछ कहने के लिए मानो तैयार ही थे, ‘‘कितने पैसे वाले लोग हैं, मगर कोई मिजाज नहीं, कोई घमंड नहीं, हम जैसे मध्यवर्ग वालों की लड़की लेना चाहते हैं. कोई दहेज की मांग नहीं, यहां तक कि…’’

‘‘तो मुझे क्या करना चाहिए अंबर कि बजाय आकाश को पसंद कर लेना चाहिए, क्योंकि आकाश करोड़पति है, उस के मातापिता घमंडी नहीं हैं. वे धरातल से जुड़े हैं और सब से बड़ी बात कि उन्हें हम, हमारा परिवार, हमारी सादगी पसंद है. अपनी पसंद मैं भाभी को सुबह ही बता चुकी हूं, आकाश से मिलने के बाद उस में कोई तबदीली नहीं आई है…’’

‘‘ठीक है इस बारे में हम बाकी बातें कल करेंगे…’’ जयनाथजी ने लगभग पीछा छुड़ाते हुए कहा.

रात के करीब 2 बजे तनु ने भाभी को फोन मिलाया, ‘‘भाभी मुझे आप से मिलना है. भैया तो बाहर गए हैं. जाहिर है आप भी जग रही होंगी, मुझे अंबर के बारे में कुछ बातें करनी हैं, मैं आ जाऊं?’’

‘‘तनु मैं गहरी नींद में हूं… हम सुबह मिलें?’’

‘‘मैं तो आप के दरवाजे पर ही हूं… गेट खोलेंगी या खिड़की से आना पड़ेगा?’’

अगले ही पल तनु अंदर थी. बातों का सिलसिला शुरू करते हुए भाभी ने तनु से पूछा, ‘‘तुम मुझे अपना फैसला सुना चुकी हो. अब इतनी रात मेरी नींद क्यों खराब कर रही हो?’’

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‘‘भाभी, अंबर को फोन कर के कहना है कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘क्या?’’ भाभी को लगा कि वह अभी भी नींद में ही है.

पलक झपकते ही तनु ने अंबर को फोन लगा दिया, ‘‘हैलो अंबर मैं तनु बोल रही हूं… मैं इधरउधर की बात करने के बजाय सीधा मुद्दे पर आना चाहती हूं…’’

‘‘ठीक है… जल्दी बता दो मैं इधर हूं या उधर…’’

‘‘इधरउधर की छोड़ो और सुनो सौरी यार मैं तुम से शादी नहीं कर सकती…’’

‘‘ठीक है मगर इतनी रात को क्यों बता रही हो… सुबह तक…’’

‘‘सुबह तक मेरा दिमाग बदल गया तो? तुम चीज ही ऐसी हो कि तुम्हें मना करना बहुत मुश्किल है…’’

‘‘अच्छा औल द बैस्ट, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो, किसी उधर वाले से शादी तय हो जाए तो जगह, तारीख वगैरह बता देना मैं आ जाऊंगा, मुफ्त का खा कर चला जाऊंगा…’’

‘‘मुफ्ती साहब, गिफ्ट लाना पड़ेगा. शादी में खाली लिफाफे देने का रिवाज दिल्ली में होगा, मुंबई में नहीं…’’

‘‘ठीक है 2-4 फूल ले आऊंगा. अब मुझे सोने दो… सुबह मेरी फ्लाइट है…’’

भाभी बिलकुल सकते में थी, ‘‘ये सब क्या है तनु? तुम तो अंबर पर फिदा हो गई थी… क्या आकाश का पैसा तुम्हें आकर्षित कर गया? क्या उस की बड़ी गाड़ी अंबर की मोटरसाइकिल से आगे निकल गई?’’

‘‘भाभी अंबर पर फिदा होना स्वाभाविक है. ऐसे लड़के के साथ घूमनाफिरना,

मजे करना, अच्छा लगेगा मगर शादी एक ऐसा बंधन है, जिस में एक गंभीर, संजीदा इंसान चाहिए न कि कालेज से निकला हुआ एक हीरोनुमा लड़का.

‘‘हम घर से बाहर निकले तो आकाश ने पूरे शिद्दत से ट्रैफिक के सारे नियमों का पालन किया, मेरे लाख कहने के बावजूद उस ने गाड़ी नो ऐंट्री में नहीं घुमाई, अपने देश के बारे में उस के विचार सकारात्मक थे. उसे देश से कोई शिकायत न थी, रेस्तरां में वेटर से इज्जत से बात की न कि उसे वेटर कह कर आवाज दी, मुफ्त का खाने के बजाय उस ने पैसे देने में अपनी खुद्दारी समझ.

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‘‘बड़ी गाड़ी छोड़ कर लोकल ट्रेन में जाने में उसे कोई परहेज नहीं, नारियल पानी पी कर उस ने नारियल एक ओर उछाला नहीं, बल्कि डस्टबिन की तलाश की, भुट्टे वाली माई को उस ने जब मुट्ठीभर पैसे दिए तो उस का सारा ध्यान इस पर था कि मैं कहीं देख न लूं.

‘‘इतने पैसे उस भुट्टे वाली ने एकसाथ कभी नहीं देखे होंगे… इतने संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक के सामने मैं एक प्यारे से हीरो को चुन कर जीवनसाथी बनाऊं? इतनी बेवकूफ मैं लगती जरूर हूं, मगर हूं नहीं.’’

भाभी सिर पर हाथ रख कर बैठ गई.

‘‘क्या सर दर्द हो रहा है.’’

‘‘नहीं बस चक्कर से आ रहे हैं…’’

‘‘रुको, अभी सिरदर्द दूर हो जाएगा…’’ तनु ने कहा.

भाभी बोल पड़ी, ‘‘अब क्या बाकी है?’’

तनु ने फोन उठाया और एक नंबर मिलाया, ‘‘हैलो आकाश, मैं ने फैसला कर लिया है… मुझे आप पसंद हैं. मैं आप से शादी करने को तैयार हूं. मुझे पूरा यकीन है कि मैं भी आप को पसंद हूं.’’

‘‘तुम ने फैसला ले कर मुझे बताने का जो समय चुना वह वाकई काबिलेतारीफ है,’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘हूं… मगर भाभी इस बात को मानती ही नहीं… देखो मुझे धक्के मार कर अपने कमरे से बाहर निकालने पर उतारू है…’’

‘‘आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए.

उस की नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने

तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए…’’

बढ़ते अमीर, घटते ग़रीब

देश में गरीबों की गिनती बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है जबकि उसी तेजी से कुछ सौ अमीरों की संपत्ति बढ़ रही है. अंतर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारतीय सरकारी आंकड़ों से ही निकाले गए निष्कर्ष के हिसाब से 100 अमीरों की संपत्ति 57.3 लाख करोड़ से ज्यादा है सिर्फ वर्ष 2020 में जबकि 4.6 करोड़ गरीब लोग बेहद गरीब हो गए हैं.

यह भेदभाव होना ही था क्योंकि जब से भारतीय जनता पार्टी आई है उस का मोटो पौराणिक आदेश है कि शूद्र और अछूत के पास संपत्ति न हो और बारबार पौराणिक कहानियों व स्मृतियों में कहा गया है कि शूद्र की संपत्ति राज्य छीन कर ब्राहमणों में बांट दें. इन्हीं ग्रंथों के प्रवचन सुन कर आए नेताओं ने शासन पाते ही इस दिशा में काम करना शुरू किया और नई टैक्नोलौजी ने उन का पूरा साथ दिया. नोटबंदी का असली मंतव्य यही था कि गरीब के पास नोट न बचें और अमीर अपना पैसा बैंकों व संपत्ति में रख सकें.

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भारतीय संस्था सीएमआईई के अनुसार, 84 फीसदी घरों को कोविड की महामारी के दौरान आर्थिक संकटों में घिरना पड़ा जबकि इस महामारी में अमीर और अमीर हुए जो शेयर बाजार में आई ऊंचाइयों से साफ है. आज भारत के 142 खरबपतियों के पास 719 अरब डौलर की संपत्ति है जो सब से निचले स्तर के 40 फीसदी यानी 76 करोड़ लोगों की 657 अरब डौलर संपत्ति से ज्यादा है. एक आंकड़े के अनुसार, अगर 10 सब से अमीर भारतीय हर रोज 7.5 करोड़ रुपए फालतू में खर्च करें और उस से कुछ संपत्ति न खरीदें तो भी उन्हें अपनी संपत्ति को समाप्त करने में 85 साल लगेंगे.

पंडेपुजारी और पादरी भारत और अमेरिका जैसे देशों में इस बढ़ते भेदभाव के लिए बहुत जिम्मेदार हैं. दोनों ही देशों में भगवानों के ये दुकानदार जबरदस्त प्रचार करते हैं कि ईश्वर सब देख रहा है, दयालु है, लोगों की रक्षा को तैयार खड़ा है और अगर लोगों के साथ कुछ बुरा हो रहा है तो वह उन के पापों के कारण ही हो रहा है जिस का एक मात्र उपाय उन्हीं धर्म के दुकानदारों की दुकान पर जा कर पूजापाठ करना और दान देना है. न भारत के मंदिर और न अमेरिका के चर्च अपनी आय व खर्च का ब्योरा आम जनता को बताते है. ये करों से मुक्त हैं और भव्य चर्च और मंदिर दोनों खूब बन रहे हैं. अमेरिकी अमीर तो जम कर भारतीय मंदिरों को प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि इसी की आड़ में वे नए ईसाई चर्च भी बनवा रहे हैं और उन में वह भव्यता ला रहे हैं जो यूरोप में 4-5 सदी पहले तक थी, अब वह कम हो गई है.

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भारत में आय के बढ़ते अंतर के लिए जिम्मेदार पौराणिक शासक ही हैं जो इस तरह की नीतियां बना रहे हैं जिन से शेयर बाजार चमके और सब्जी बाजार उजड़ें.

Valentine’s Special: रिश्तों की कसौटी- भाग 3: क्यों दुखी थी सुरभी

सुबह 6 बजे ही उस ने पापा को फोन लगाया. सुन कर सुरभी आश्वस्त हो गई कि पापा के लौटने में सप्ताह भर बाकी है. वह पापा की गैरमौजूदगी में ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहती थी.

उस दिन वह दिल्ली में रह रहे दूसरे पत्रकार मित्रों से फोन पर बातें करती रही. दोपहर तक उसे यह सूचना मिल गई कि अमित साहनी इस समय दिल्ली में अपने पुश्तैनी मकान में हैं.

शाम को मां को बताया कि दिल्ली में उस की एक पुरानी सहेली एक डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार कर रही है और इस फिल्म निर्माण का अनुभव वह भी लेना चाहती है. मां ने हमेशा की तरह हामी भर दी. सुरभी नर्स और कम्मो को कुछ हिदायतें दे कर दिल्ली चली गई.

अब समस्या थी अमित साहनी जैसी बड़ी हस्ती से मुलाकात की. दोस्तों की मदद से उन तक पहुचंने का समय उस के पास नहीं था, इसलिए उस ने योजना के अनुसार अपने ससुर ईश्वरनाथ से अपनी ही एक दोस्त का नाम ले कर अमित साहनी से मुलाकात का समय फिक्स कराया. ईश्वरनाथ के लिए यह कोई बड़ी बात न थी.

अगले दिन सुबह 10 बजे का वक्त सुरभी को दिया गया. आज ऐसे वक्त में पत्रकारिता का कोर्स उस के काम आ रहा था.

खैर, मां की नफरत से मिलने के लिए उस ने खुद को पूरी तरह से तैयार कर लिया.

अगले दिन पूरी जांचपड़ताल के बाद सुरभी ठीक 10 बजे अमित साहनी के सामने थी. वे इस उम्र में भी बहुत तंदुरुस्त और आकर्षक थे. पोतापोती व पत्नी भी उन के साथ थे.

परिवार सहित उन की कुछ तसवीरें लेने के बाद सुरभी ने उन से कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे पर असल मुद्दे पर न आ सकी, क्योंकि उन की पत्नी भी कुछ दूरी पर बैठी थीं. सुरभी इस के लिए भी तैयार हो कर आई थी. उस ने अपनी आटोग्राफ बुक अमित साहनी की ओर बढ़ा दी.

अमित साहनी ने जैसे ही चश्मा लगा कर पेन पकड़ा, उन की नजर मालती की पुरानी तसवीर पर पड़ी. उस के नीचे लिखा था, ‘‘मैं मालतीजी की बेटी हूं और मेरा आप से मिलना बहुत जरूरी है.’’

पढ़ते ही अमित का हाथ रुक गया. उन्होंने प्यार भरी एक भरपूर नजर सुरभी पर डाली और बुक में कुछ लिख कर बुक सुरभी की ओर बढ़ा दी. फिर चश्मा उतार कर पत्नी से आंख बचा कर अपनी नम आंखों को पोंछा.

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सुरभी ने पढ़ा, लिखा था : ‘जीती रहो, अपना नंबर दे जाओ.’

पढ़ते ही सुरभी ने पर्स में से अपना कार्ड उन्हें थमा दिया और चली गई.

फोन से उस का पता मालूम कर तड़के साढ़े 5 बजे ही अमित साहनी सिर पर मफलर डाले सुरभी के सामने थे.

‘‘सुबह की सैर का यही 1 घंटा है जब मैं नितांत अकेला रहता हूं,’’ उन्होंने अंदर आते हुए कहा.

सुरभी उन्हें इस तरह देख आश्चर्य में तो जरूर थी, पर जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, समय बहुत कम है. इसलिए सीधी बात करना चाहती हूं.’’

‘‘मुझे भी तुम से यही कहना है,’’ अमित भी उसी लहजे में बोले.

तब तक वेटर चाय रख गया.

‘‘मेरी मम्मी आप की ही जबान से कुछ जानना चाहती हैं,’’ गंभीरता से सुरभी ने कहा.

सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं.

‘‘आप मेरे साथ कब चल रहे हैं मां से मिलने?’’ बिना कुछ सोचे सुरभी ने अगला प्रश्न किया.

‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ चलने से मना कर दूं तो?’’ अमित साहनी ने सख्ती से पूछा.

‘‘मैं इस से ज्यादा आप से उम्मीद भी नहीं करती, मगर इनसानियत के नाते ही सही, अगर आप उन का जरा सा भी सम्मान करते हैं तो उन से जरूर मिलिएगा. वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं,’’ कहतेकहते नफरत और दुख से सुरभी की आंखें भर आईं.

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‘‘क्या हुआ मालती को?’’ चाय का कप मेज पर रख कर चौंकते हुए अमित ने पूछा.

‘‘उन्हें कैंसर है और पता नहीं अब कितने दिन की हैं…’’ सुरभी भरे गले से बोल गई.

‘‘ओह, सौरी बेटा, तुम जाओ, मैं जल्दी ही मुंबई आऊंगा,’’ अमित साहनी धीरे से बोले और सुरभी से उस के घर का पता ले कर चले गए.

दोपहर को सुरभी मां के पास पहुंच गई.

‘‘कैसी रही तेरी फिल्म?’’ मां ने पूछा.

‘‘अभी पूरी नहीं हुई मम्मी, पर वहां अच्छा लगा,’’ कह कर सुरभी मां के गले लग गई.

‘‘दीदी, कल रात मांजी खुद उठ कर अपने स्टोर रूम में गई थीं. लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ़ रही हों. काफी परेशान लग रही थीं,’’ कम्मो ने सीढि़यां उतरते हुए कहा.

थोड़ी देर बाद मां से आंख बचा कर उस ने उन की डायरी स्टोर रूम में ही रख दी.

उसी रात सुरभी को अमित साहनी का फोन आया कि वह कल साढ़े 11 बजे की फ्लाइट से मुंबई आ रहे हैं. सुरभी को मां की डायरी का हर वह पन्ना याद आ रहा था जिस में लिखा था कि काश, मृत्यु से पहले एक बार अमित उस के सवालों के जवाब दे जाता. कल का दिन मां की जिंदगी का अहम दिन बनने जा रहा था. यही सोचते हुए सुरभी की आंख लग गई.

अगले दिन उस ने नर्स से दवा आदि के बारे में समझ कर उसे भी रात को आने को बोल दिया.

करीब 1 बजे अमित साहनी उन के घर पहुंचे. सुरभी ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया तो उन्होंने ढेरोें आशीर्वाद दे डाले.

‘‘आप यहीं बैठिए, मैं मां को बता कर आती हूं. एक विनती है, हमारी मुलाकात का मां को पता न चले. शायद बेटी के आगे वे कमजोर पड़ जाएं,’’ सुरभी ने कहा और ऊपर चली गई.

‘‘मम्मी, आप से कोई मिलने आया है,’’ उस ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘कौन है?’’ मां ने सूप का बाउल कम्मो को पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘कोई मिस्टर अमित साहनी नाम के सज्जन हैं. कह रहे हैं, दिल्ली से आए हैं,’’ सुरभी वैसे ही अनजान बनी रही.

‘‘क…क…कौन आया है?’’ मां के शब्दों में एक शक्ति सी आ गई थी.

‘‘ऐसा करती हूं आप यहीं रहिए. उन्हें ही ऊपर बुला लेते हैं,’’ मां के चेहरे पर आए भाव सुरभी से देखे नहीं जा रहे थे. वह जल्दी से कह कर बाहर आ गई.

मालती कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थीं. यह वह मुलाकात थी जिस के बारे में उन्होंने हर दिन सोचा था.

थोड़ी देर में सुरभी के पीछेपीछे अमित साहनी कमरे में दाखिल हुए, मालती के पसंदीदा पीले गुलाबों के बुके के साथ. मालती का पूरा अस्तित्व कांप रहा था. फिर भी उन्होंने अमित का अभिवादन किया.

सुरभी इस समय की मां की मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रही थी. वह आज मां को खुल कर बात करने का मौका देना चाहती थी, इसलिए डा. आशुतोष के पास उन की कुछ रिपोर्ट्स लेने के बहाने वह घर से बाहर चली गई.

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‘‘कितने बेशर्म हो तुम जो इस तरह से मेरे सामने आ गए?’’ न चाहते हुए भी मालती क्रोध से चीख उठीं.

‘‘कैसी हो, मालती?’’ उस की बातों पर ध्यान न देते हुए अमित ने पूछा और पास के सोफे पर बैठ गए.

‘‘अभी तक जिंदा हूं,’’ मालती का क्रोध उफान पर था. उन का मन तो कर रहा था कि जा कर अमित का मुंह नोच लें.

इस के विपरीत अमित शांत बैठे थे. शायद वे भी चाहते थे कि मालती के अंदर का भरा क्रोध आज पूरी तरह से निकल जाए.

‘‘होटल ताज में ईश्वरनाथजी से मुलाकात हुई थी. उन्हीं से तुम्हारे बारे में पता चला. तभी से मन बारबार तुम से मिलने को कर रहा था,’’ अमित ने सुरभी के सिखाए शब्द दोहरा दिए. परंतु यह स्वयं उस के दिल की बात भी थी.

‘‘मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया, अमित?’’ अपलक अमित को देख रही मालती ने उन की बातों को अनसुना कर अपनी बात रखी.

इतने में कम्मो चाय और नाश्ता रख गई.

‘‘तुम्हें याद है वह दोपहरी जब मैं ने एक तसवीर के विषय में तुम से पूछा था और तुम ने उन्हें अपनी मां बताया था?’’ अमित ने मालती को पुरानी बातें याद दिलाईं.

मालती यों ही खामोश बैठी रहीं तो अमित ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘उस तसवीर को मैं तुम सब से छिपा कर एक शक दूर करने के लिए अपने साथ दिल्ली ले गया था. मेरा शक सही निकला था. यह वृंदा यानी तुम्हारी मां वही औरत थी जो दिल्ली में अपने पार्टनर के साथ एक मशहूर ब्यूटीपार्लर और मसाज सेंटर चलाती थी. इस से पहले वह यहीं मुंबई में मौडलिंग करती थी. उस का नया नाम वैंडी था.’’

इस के बाद अमित ने अपनी चाय बनाई और मालती की भी.

उस ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘उस मसाज सेंटर की आड़ में ड्रग्स की बिक्री, वेश्यावृत्ति जैसे धंधे होते थे और समाज के उच्च तबके के लोग वहां के ग्राहक थे.’’

‘‘ओह, तो यह बात थी. पर इस में मेरी क्या गलती थी?’’ रोते हुए मालती ने पूछा.

‘‘जब मैं ने एम.बी.ए. में नयानया दाखिला लिया था तब मेरे दोस्तों में से कुछ लड़के भी वहां के ग्राहक थे. एक बार हम दोस्तों ने दक्षिण भारत घूमने का 7 दिन का कार्यक्रम बनाया और हम सभी इस बात से बहुत रोमांचित थे कि उस मसाज सेंटर से हम लोगों ने जो 2 टौप की काल गर्ल्स बुक कराई थीं उन में से एक वैंडी भी थी जिसे हाई प्रोफाइल ग्राहकों के बीच ‘पुरानी शराब’ कह कर बुलाया जाता था. उस की उम्र उस के व्यापार के आड़े नहीं आई थी,’’ अमित ने अपनी बात जारी रखी. उसे अब मालती के सवाल भी सुनाई नहीं दे रहे थे.

चाय का कप मेज पर रखते हुए अमित ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘मेरी परवरिश ने मेरे कदम जरूर बहका दिए थे मालती, पर मैं इतना भी नीचे नहीं गिरा था कि जिस स्त्री के साथ 7 दिन बिताए थे, उसी की मासूम और अनजान बेटी को पत्नी बना कर उस के साथ जिंदगी बिताता? मेरा विश्वास करो मालती, यह घटना तुम्हारे मिलने से पहले की है. मैं तुम से बहुत प्यार करता था. मुझे अपने परिवार की बदनामी का भी डर था, इसलिए तुम से बिना कुछ कहेसुने दूर हो गया,’’ कह कर अमित ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया.

आज बरसों का बोझ उन के मन से हट गया था. मालती भी अब लेट गई थीं. वे अभी भी खामोश थीं.

थोड़ी देर बाद अमित चले गए. उन के जाने के बाद मालती बहुत देर तक रोती रहीं.

रात के खाने पर जब सुरभी ने अमित के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे पुराना पारिवारिक मित्र बताया. लगभग 3 महीने बाद मालती चल बसीं. परंतु इतने समय उन के अंदर की खुशी को सभी ने महसूस किया था. उन के मृत चेहरे पर भी सुरभी ने गहरी संतुष्टि भरी मुसकान देखी थी.

मां की तेरहवीं वाले दिन अचानक सुरभी को उस डायरी की याद आई. उस में लिखा था : मुझे क्षमा कर देना अमित, तुम ने अपने साथसाथ मेरे परिवार की इज्जत भी रख ली थी. मैं पूर्ण रूप से तृप्त हूं. मेरी सारी प्यास बुझ गई.

पढ़ते ही सुरभी ने डायरी सीने से लगा ली. उस में उसे मां की गरमाहट महसूस हुई थी. आज उसे स्वयं पर गर्व था क्योंकि उस ने सही माने में मां के प्रति अपनी दोस्ती का फर्ज जो अदा किया था.

Valentine’s Special: डिवोर्सी- मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही तलाक क्यों ले लिया

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