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‘गुम है किसी के प्यार में’ की ‘सई’ का ऑडिशन वीडियो आया सामने, एक्टिंग देखकर फैंस हुए दीवाने

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की सई यानि आयशा सिंह (Ayesha Singh) का ऑडिशन वीडियो  सामने आया है. इसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. इस वीडियो में आयशा ने जबरदस्त एक्टिंग की है. वीडियो को देखकर आप समझ जाएंगे कि आयशा की एक्टिंग वाकई में कमाल की है.

शो में सई अपनी एक्टिंग के कारण घर-घर में मशहूर है. सई के चुलबुले अंदाज को दर्शक खूब पसंद करते हैं.  हर इमोशन को पर्गे पर शानदार तरीके से निभाती है. आपको बता दें कि यूट्यूब पर एक वीडियो सामने आया है,  इसमें आयशा सिंह किसी रोल के लिए ऑडिशन दे रही हैं.

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सई गुजराती ड्रेस में नजर आ रही है. वह गुजराती और हिंदी में डायलॉग बोलती नजर आ रही हैं. इस वीडियो में उनका चुलबुलापन, शरारत सब कुछ नजर आ रहा है. इस वीडियो को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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आयशा सिंह ने कई बड़े टीवी शोज में काम किया है. आयशा सिंह एक्ट्रेस होने के साथ ही पेशे से लॉयर भी हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार आयशा सिंह ने बताया था कि  मैं लॉ में आगे बढ़ने के लिए जब मुंबई पहुंची तो वहां मैंने एक्टिंग वर्कशॉप करना शुरू कर दिया.

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आयशा सिंह की फैमिली नहीं चाहती थी कि वह एक्टिंग करे. उन्होंने आगे बताया कि फैमिली की सहमति लेने के लिए मुझे अपने अंदर के वकील का इस्‍तेमाल करना पड़ा, तब जाकर उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखी.

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Anupamaa: वनराज को सबक सिखाएगी मालविका? होगी नए शख्स की एंट्री!

टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुज ने सारी प्रॉपर्टी अपनी बहन मालविका के नाम कर दिया है. लेकिन अनुपमा अनुज को हर तरह से समझाने की कोशिश करती है कि वह गलत कर रहा है. क्योंकि मालविका वनराज के साथ काम कर रही है, और सारी प्रॉपर्टी उसके हाथ लग सकती है. ऐसे में मालविका को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए.

शो में ये भी दिखाया जा रहा है कि अनुपमा मालविका को भी समझाने की कोशिश कर रही है कि वह गलत आदमी के बातों में आकर अपने भाई को नजरअंदाज कर रही है. उसे अपने भाई पर भरोसा रखना होगा. अनुपमा मालविका से ये भी कहती है कि उसका भाई दुनिया का सबसे अच्छा इंसान है. मालविका कहती है कि अनुज सिर्फ अनुपमा से प्यार करता है, अपनी बहन से नहीं.. तभी तो उसने अपनी बहन को अकेला छोड़ दिया. अनुपमा के लाख समझाने के बावजूद भी मालविका नहीं समझती है.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा में नए शख्स की एंट्री होगी. खबरों के अनुसार एक नया शख्स मालविका की मदद करेगा. वह मालविका को वनराज के खिलाफ जंग लड़ने में मदद करेगा. इस शख्स के आने से मालविका पूरी तरह बदल जाएगी.

 

बताया जा रहा है कि शो के अपकमिंग एपिसोड में मालविका का एक्स बॉयफ्रेंड अक्षय की एंट्री होगी. इस बार अनुज को यह अहसास हो जाएगा कि मालविका के लिए अक्षय सही इंसान है. मालविका अक्षय के साथ मिलकर वनराज को सबक सिखाएगी. खबरों के अनुसार, शो में मालविका और अक्षय की शादी भी दिखाई जाएगी.

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रक्षा बजट के बहाने हो रही है धांधली!

किसानों के नाम पर आर्गेनिक खेती की बातें की गई हैं सिर्फ जो अमीरों का नया चोंचला है जिसमें 4 गुना कम पर बेची जा रही ……रैप सब्जी लपकी जाती है क्योंकि प्रति एकड़ उस का उत्पादन बहुत कम हो जाता है. सारा देश अगर इस और्गेनिक खेती को करने के लिए नहीं तो अकाल पड़ जाएगा जैसा पिछले वर्ष श्रीलंका में हुआ जहां किसी खप्ती नेता ने खेती में पेस्टी साइड बैन कर दिए और खाने के लाले पड़ गए.

मेट्रो और रैपिड रेलों को 19,130 करोड़ दिए जाएंगे पर कोई भी देख ले, इन में फटेहाल लोग नहीं चलते. वे तो खटाराओं पर चलते है जिन में डीजल पंप के सहारे चलने चाहिए और फट्टों पर लगे होते है पुलिस का डंडा और मजबूत हो इस के लिए केवल दिल्ली में 10,355 करोड़ रुपए दिए जाएंगे. अमीरों को शानबान से अपना विलासिता का सामान बेचने की जगह मिले इस के लिए दिल्ली के प्रगति मैदान को 468 करोड़ इस साल फिर दिए जाएंगे.

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वैसे तो कहा जाता है कि घरघर शौचालय बन चुके हैं पर इस बजट में एक लाइन में 3.8 करोड़ और घरों को नल का पानी पहुंचाने का पैसा नियत कर के मान लिया गया कि अभी करोड़ों घरों में पीने का पानी नहीं पहुंच रहा, वहां शौचालय कैसे बनेगा क्योंकि वहां सीवर भी नहीं होगा. गरीब पिछड़ा व दलित अपना शौच अपने घर की जमीन में बनाए और उसी जमीन से पानी निकाल कर पीए. 7 सालों में सरकार हर घरको पानी तक न दे पाए, यह कैसे संभव है. हर घर को पाखंड का व्यापार करने का पंडा तो अवश्य दे दिया गया है.

सरकार ने 2500 किलोमीटर लंबे राजमार्गों के निर्माण का पैसा दिया पर खबरदार कि इस योजना के अंतर्गत बने राजमार्गों पर किसानों की बैलगाडिय़ों या टै्रक्टर चलें या एक वाहन में 21 लोगों को बैठा कर चलने वाला छकड़ा चले. इन पर केवल फर्राटेदार एयरकंडीशंड गाडिय़ां चलेंगी, खास भारत के लिए.

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रक्षा बजट बढ़ाया गया है पर इस बहाने कितनी धांधली होगी इस का कोई अंदाज भी नहीं आ सकता. पेगेसस जैसे जासूसी करने वाला सौफ्टवेयर इसी पैसे से खरीदा जाएगा. इस पैसे से खरीदे विदेशी सामान पर नींबू मिर्च लगेगी, पंडों को ले जा कर पूजा कराई जाएगी.

पूरा बजट असल में खास भारत के लिए वैसे भारत के और सुविधाजनक बनाया जाए, इस भावना से भरा है. आम लोगों के लिए कुछ नहीं है. पिछला बजट भी ऐसा ही था और अगला भी ऐसा ही होगा, यह भी पक्का है.

मेरे पति बहुत बिजी रहते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

हम पत्नीपत्नी की शादी हुए 2 साल हो गए हैं और अब में प्रैग्नैंट हूं. सासससुर थे नहीं और मेरी मम्मी भी पिछले साल नहीं रहीं. पति की जौब अच्छी है लेकिन बहुत बिजी रहते हैं. कोई ऐसा नहीं जो मेरे साथ रह सके. मेरी देखभाल करे. मुझे अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंता होने लगी है. मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

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जवाब

आप अकेली हैं. पति बिजी रहते हैं. इसलिए अपनी प्रैग्नैंसी का ध्यान आप को स्वयं रखना पड़ेगा. आप को अपने खानेपीने का विशेष ध्यान रखना है. कोई भी ऐसी गलती न करें जिस से आप को परेशानी हो और बच्चे को खतरा रहे. जैसे, तनाव और डिप्रैशन से बचें क्योंकि इस का सीधा असर बच्चे पर पड़ सकता है. तनाव दूर करने के लिए मैडिटेशन करें. डाक्टर से उचित सलाह लेती रहें. वे पोषक तत्त्वों से युक्त हैल्दी खाने का डाइट चार्ट आप को देंगे.

आप घर पर अकेली हैं, तो घर के काम भी करने हैं लेकिन जरा ध्यान से. ज्यादा सीढि़यां न उतरें, न चढ़ें. कम वजन उठाने वाले ही काम करें. अपने को खुश रखने की कोशिश करें. अच्छी पुस्तकें पढ़ें. नियमित रूप से डाक्टरी चैकअप करवाएं. कुछ भी कौम्प्लिकेशन हो, तो डाक्टर से तुरंत मिलें.

यदि आर्थिक रूप से संबल हैं तो फुलटाइम मेड रख सकती हैं.

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Crime Story: वकील साहब का दर्द

कुसुमा ने अपने दामाद एडवोकेट विपिन कुमार निगम से वादा किया था कि अगर बड़ी बेटी उन के बच्चे की मां नहीं बनी तो वह उस के साथ अपनी छोटी बेटी काजल का विवाह कर देगी. लेकिन 4 साल बाद कुसुमा अपने वादे से मुकर गई. इस के बाद परिवार में कलह इतनी बढ़ गई कि…

सिकंदरपुर कस्बे के सुभाष नगर मोहल्ले में सुबह सवेरे यह खबर फैल गई कि विचित्र लाल के
वकील बेटे विपिन कुमार निगम ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है, जिस ने भी यह खबर सुनी, स्तब्ध रह गया. कुछ ही देर में विचित्र लाल के घर के बाहर लोगों का मजमा लग गया. लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. इसी बीच मृतक के छोटे भाई नितिन ने फोन पर भाई के आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना छिबरामऊ पुलिस को दे दी. यह बात 22 मई, 2020 की सुबह की है.

मामला एक वकील की आत्महत्या का था. थानाप्रभारी शैलेंद्र कुमार मिश्र ने वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी और चौकी इंचार्ज अजब सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुभाष नगर स्थित विचित्र लाल निगम के घर पहुंच गए.

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थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जिस में विपिन कुमार निगम की लाश कमरे की छत के कुंडे से लटकी हुई थी. उन्होंने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. मृतक की जामातलाशी ली गई तो पैंट की दाहिनी जेब से एक पर्स तथा शर्ट की ऊपरी जेब से एक मोबाइल फोन मिला. पर्स तथा मोबाइल फोन पुलिस ने अपने पास रख लिया.थानाप्रभारी शैलेंद्र कुमार मिश्र अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह और एएसपी विनोद कुमार भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. टीम ने उस प्लास्टिक स्टूल की भी जांच की जिस पर चढ़ कर मृतक ने गले में रस्सी का फंदा डाला था और स्टूल को पैर से गिरा दिया था.

मृतक विपिन कुमार निगम शादीशुदा था, पर घटनास्थल पर न तो उस की पत्नी प्रियंका थी और न ही प्रियंका के मातापिता और भाई में से कोई आया था. यद्यपि उन्हें सूचना सब से पहले दी गई थी. मौका ए वारदात पर मृतक का पूरा परिवार मौजूद था. मृतक के कई अधिवक्ता मित्र भी वहां आ गए थे जो परिवार वालों को धैर्य बंधा रहे थे. मित्र के खोने का उन्हें भी गहरा दुख था.पुलिस अधिकारियों ने मौके पर मौजूद मृतक के छोटे भाई नितिन कुमार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि भैया सुबह जल्दी उठ जाते थे और केसों से संबंधित उन फाइलों का निरीक्षण करने लगते थे, जिन की उसी दिन सुनवाई होती थी.

आज सुबह 8 बजे जब मैं उन के कमरे पर पहुंचा तो कमरा बंद था और कूलर चल रहा था. यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ. मैं ने दरवाजा थपथपाया और आवाज दी. पर न तो दरवाजा खुला और न ही अंदर से कोई प्रतिक्रिया हुई. मन में कुछ संदेह हुआ तो मैं ने मातापिता और अन्य भाइयों को बुला लिया. उन सब ने भी आवाज दी, दरवाजा थपथपाया पर कुछ नहीं हुआ.इस के बाद हम भाइयों ने मिल कर जोर का धक्का दिया तो दरवाजे की सिटकनी खिसक गई और दरवाजा खुल गया. कमरे के अंदर का दृश्य देख कर हम लोगों की रूह कांप उठी. भैया फांसी के फंदे पर झूल रहे थे.

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इस के बाद तो घर में कोहराम मच गया. खबर फैली तो मोहल्ले के लोग आने लगे. इसी बीच हम ने घटना की जानकारी भाभी प्रियंका, रिश्तेदारों, भैया के दोस्तों और पुलिस को दी.‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे भाई ने आत्महत्या क्यों की?’’ एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने नितिन से पूछा. ‘‘सर, भैया ने पारिवारिक कलह के चलते आत्महत्या की है. दरअसल प्रियंका भाभी और उन के मायकों वालों से नहीं पटती थी. 2 दिन पहले ही भाभी ने कलह मचाई तो भैया उन्हें मायके छोड़ आए थे. उसी के बाद से वह तनाव में थे. शायद इसी तनाव में उन्होंने आत्महत्या कर ली.’’ निखिल ने बताया.

इसी बीच एएसपी विनोद कुमार ने मृतक के अंदर वाले कमरे की तलाशी कराई तो उन्हें एक सुसाइड नोट फ्रिज कवर के नीचे से तथा दूसरा सुसाइड नोट टीवी कवर के नीचे से बरामद हुआ. एक अन्य सुसाइड नोट उन के पर्स से भी मिला. यह पर्स जामातलाशी के दौरान मिला था. पर्स में पेन कार्ड, आधार कार्ड और कुछ रुपए थे.

विपिन के सुसाइड नोट

फ्रिज कवर के नीचे से जो पत्र बरामद हुआ था, उस में विपिन कुमार ने अपनी सास कुसुमा देवी को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘सासूजी, आप ने वादा किया था कि प्रियंका 3 साल तक बच्चे को जन्म नहीं दे पाई तो आप दूसरी बेटी काजल की शादी मेरे साथ कर देंगी. पर 3 साल बाद आप मुकर गईं. इस से मुझे गहरी ठेस लगी. प्रियंका के कटु शब्दों ने मेरे दिल को छलनी कर दिया है. उस के मायके जाने के बाद मैं 2 दिन बेहद परेशान रहा. रातरात भर नहीं सोया. आखिर परेशान हो कर मैं ने अपने आप को मिटाने का निर्णय ले लिया.’ विपिन निगम.

दूसरा पत्र जो टीवी कवर के नीचे से बरामद हुआ था. वह पत्र विपिन ने अपनी पत्नी प्रियंका को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘प्रियंका, तुम मेरे जीवन में बवंडर बन कर आई, जिस ने आते ही सब कुछ तहसनहस कर दिया. शादी के कुछ महीने बाद ही तुम रूठ कर मायके चली गईं. मांबाप के कान भर कर, झूठे आरोप लगा कर तुम ने मेरे तथा मेरे मातापिता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. ‘किसी तरह मामला रफादफा कर मैं तुम्हें मना कर घर ले आया. डिलीवरी के दौरान मैं ने अपना खून दे कर तुम्हारी जान बचाई. यह बात दीगर है कि बच्चे को नहीं बचा सका. इतना सब करने के बावजूद तुम मेरी वफादार न बन सकी.
‘तुम ने कहा था कि 3 साल तक बच्चा न दे पाऊं तो मेरी छोटी बहन काजल से शादी कर लेना. पर तुम मुकर गई. लड़झगड़ कर घर चली गई. तुम सब ने मिल कर मेरी जिंदगी तबाह कर दी. अब मैं ऐसी जिंदगी से ऊब गया हूं जिस में गम ही गम हैं. —विपिन निगम.

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तीसरा पत्र जो पर्स से मिला था, विपिन ने अपनी साली काजल को संबोधित करते हुए लिखा था, ‘आई लव यू काजल, तुम मेरी मौत पर आंसू न बहाना. तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. तुम तो मेरी आंखों का काजल बन चुकी थीं. मुझे यह भी पता है कि तुम मुझ से शादी करने को राजी थीं. पर तुम्हारी मां मंथरा बन गई.
‘उस ने नफरत भरने के लिए दोनों बहनों के कान भरे और फिर शादी के वादे से मुकर गई. मैं तुम दोनों बहनों को खुश रखना चाहता था, लेकिन ऐसा हो न सका. मैं निराश हूं. तन्हा जीवन से मौत भली. काजल, आई लव यू. मेरी मौत पर आंसू न बहाना. तुम्हारा विपिन.’
विपिन की शर्ट की जेब से उस का मोबाइल भी बरामद हुआ था. एएसपी विनोद कुमार ने जब फोन को खंगाला तो पता चला कि विपिन ने अपनी जीवनलीला खत्म करने से पहले अपने फेसबुक एकाउंट पर शायराना अंदाज में एक पोस्ट लिखी थी.

सुसाइड नोट्स से समझ आया माजरा

विपिन के सुसाइड नोट पढ़ने के बाद पुलिस अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि युवा अधिवक्ता विपिन कुमार निगम ने पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या की है. वह अपनी पत्नी प्रियंका और सास कुसुमा देवी से पीडि़त था.साक्ष्य सुरक्षित करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस जांच और मृतक के परिवार वालों द्वारा दी गई जानकारी से आत्महत्या प्रकरण की जो कहानी सामने आई उस का विवरण इस प्रकार से है—

ग्रांट ट्रंक रोड (जीटीरोड) पर बसा कन्नौज शहर कई मायने में चर्चित है. कन्नौज सुगंध की नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां का बना इत्र फुलेल पूरी दुनिया में मशहूर है. दूसरे यह ऐतिहासिक धरोहर भी है. चंदेल वंश के राजा जयचंद की राजधानी कन्नौज ही थी. उन का किला खंडहर के रूप में आज भी दर्शनीय है. गंगा के तट पर बसा कन्नौज तंबाकू और आलू के व्यापार के लिए भी मशहूर है. पहले कन्नौज, फर्रुखाबाद जिले का एक कस्बा था, जिसे बाद में जिला बनाया गया.

इसी कन्नौज जिले का एक कस्बा सिकंदरपुर है, जो छिबरामऊ थाने के अंतर्गत आता है. इसी कस्बे के सुभाष नगर मोहल्ले में विचित्र लाल निगम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरिता निगम के अलावा 4 बेटे थे. जिस में विपिन कुमार निगम सब से बड़ा तथा नितिन कुमार सब से छोटा था. विचित्र लाल व्यापारी थे, आर्थिक स्थिति मजबूत थी. कायस्थ बिरादरी में उन की अच्छी पैठ थी.
विपिन कुमार निगम अपने अन्य भाइयों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार था. वह वकील बनना चाहता था. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से एलएलबी की पढ़ाई की.

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इस के बाद वह छिबरामऊ तहसील में वकालत करने लगा. विपिन कुमार निगम दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकदमे लड़ता था. कुछ दिनों बाद उस के पास अच्छेखासे केस आने लगे थे. उस ने तहसील में अपना चैंबर बनवा लिया और 2 सहयोगी कर्मियों को भी रख लिया.विपिन कुमार निगम अच्छा कमाने लगा तो उस के पिता विचित्र लाल ने 6 जनवरी, 2014 को औरैया जिले के उजैता गांव के रहने वाले राजू निगम की बेटी प्रियंका से शादी कर दी. राजू निगम किसान थे. उन के 2 बेटियां और एक बेटा था, जिन में प्रियंका सब से बड़ी थी.

खूबसूरत प्रियंका, विपिन की दुलहन बन कर ससुराल आई तो सभी खुश थे, पर प्रियंका खुश नहीं थी. उसे शोरगुल पसंद नहीं था. यद्यपि उसे पति से कोई शिकवा शिकायत न थी. प्रियंका ससुराल में 10 दिन रही. उस के बाद उस का भाई आकाश आया और उसे विदा करा ले गया.
प्रियंका ने दिखाए ससुराल में तेवर

लगभग 2 महीने बाद प्रियंका दोबारा ससुराल आई तो उस ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया. वह सासससुर से कटु भाषा बोलने लगी, देवरों को झिड़कने लगी. सास सरिता बेस्वाद खाना बनाने को ले कर टोकती तो जवाब देती कि स्वादिष्ट खाना बनाने को नौकरानी रख लो. घर के काम के लिए कहती तो जवाब मिलता कि वह नौकरानी नहीं, घर की बहू है.

यही नहीं उस ने दहेज में मिला सामान पलंग, टीवी, फ्रिज, अलमारी पहली मंजिल पर बने 2 बड़े कमरों में सजा लिया और एक तरह से परिवार से अलग रहने लगी. इसी बीच उस
के पैर भारी हो गए. ससुराल वालों के लिए यह खबर खुशी की थी लेकिन उस के दुर्व्यवहार के कारण किसी ने खुशी जाहिर नहीं की.विपिन परिवार के प्रति पत्नी के दुर्व्यवहार से दुखी था. उस ने प्रियंका पर सख्ती कर लगाम कसने की कोशिश की तो वह त्रिया चरित्र दिखाने लगी. अपनी मां कुसुमा को रोरो कर बताती कि ससुराल वाले उसे प्रताडि़त करते हैं. मां ने भी बेटी की बातों पर सहज ही विश्वास कर लिया और उसे मायके बुला लिया.

इस के बाद मांबेटी ने सोचीसमझी रणनीति के तहत ससुराल वालों पर झूठे आरोप लगा कर थाना फफूंद में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. जब विपिन को पत्नी द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने की जानकारी हुई तो वह सतर्क हो गया. वह ससुराल पहुंचा और किसी तरह पत्नी व सास का गुस्सा शांत किया, जिस से फिर मुकदमे में समझौता हो गया. इस के बाद कई शर्तों के साथ कुसुमा देवी ने प्रियंका को ससुराल भेज दिया. ससुराल आ कर प्रियंका स्वच्छंद हो कर रहने लगी. उस ने पति को भी अपनी मुट्ठी में कर लिया था.
फिर जब प्रसव का समय आया तो प्रियंका मायके आ गई. कुसुमा ने उसे प्रसव के लिए इटावा के एक निजी नर्सिंग होम में भरती कराया. डाक्टरों ने उस का चेकअप किया तो खून की कमी बताई. और यह भी साफ कर दिया कि बच्चा औपरेशन से होगा.

कुसुमा चालाक औरत थी. वह जानती थी कि नर्सिंग होम का खर्चा ज्यादा आएगा. अत: उस ने दामाद विपिन को पहले ही नर्सिंग होम बुलवा लिया था. 9 जनवरी, 2015 को विपिन ने अपना खून दे कर प्रियंका की जान तो बचा ली, लेकिन बच्चा नहीं बच सका. लगभग एक हफ्ते तक अस्पताल में भरती रहने के बाद प्रियंका मां के घर आ गई. डिस्चार्ज के दौरान डाक्टर ने एक और चौंकाने वाली जानकारी दी कि प्रियंका दोबारा मां नहीं बन पाएगी.

यह जानकारी जब विपिन व प्रियंका को हुई तो दोनों दुखी हुए. इस पर सास कुसुमा ने बेटी दामाद को समझाया और कहा, ‘‘कुदरत का खेल निराला होता है, फिर भी यदि 3 साल तक प्रियंका बच्चे को जन्म न दे पाई तो मैं वादा करती हूं कि अपनी छोटी बेटी काजल का विवाह तुम्हारे साथ कर दूंगी.’’
सासू मां की बात सुन कर विपिन मन ही मन खुश हुआ. प्रियंका व काजल ने भी अपनी सहमति जता दी. इस के बाद प्रियंका पति के साथ ससुराल में आ कर रहने लगी. विपिन कुमार भी अपने वकालत के काम में व्यस्त हो गया. प्रियंका कुछ माह ससुराल में रहती तो एकदो माह के लिए मायके चली जाती. इसी तरह समय बीतने लगा.

प्रियंका के रहते विपिन के मन में पहले कभी भी साली के प्रति आकर्षण नहीं रहा, किंतु जब से सासू मां ने शादी करने की बात कही तब से उस के मन में काजल का खयाल आने लगा था. 17वां बसंत पार कर चुकी काजल की काया कंचन सी खिल चुकी थी. उस की आंखें शरारत करने लगी थीं. काजल का खिला रूप विपिन की आंखों में बस गया. अब वह उस से खुल कर हंसीमजाक करने लगा था. काजल की सोच भी बदल गई थी. वह जीजा के हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी. दरअसल वह मान बैठी थी कि दीदी यदि बच्चे को जन्म न दे पाई तो विपिन उस का जीजा नहीं भावी पति होगा.

पत्नी और ससुरालियों के बयान से  टूट गया विपिन

धीरेधीरे 3 साल बीत गए पर प्रियंका बच्चे को जन्म नहीं दे पाई. तब विपिन ने सासू मां से कहना शुरू किया कि वह वादे के अनुसार काजल की शादी उस से कर दे लेकिन कुसुमा देवी उसे किसी न किसी बहाने टाल देती. इस तरह एक साल और बीत गया. विपिन को अब दाल में कुछ काला नजर आने लगा. अत: एक रोज वह ससुराल पहुंचा और सासू मां पर शादी का दबाव डाला, इस पर वह बिफर पड़ी, ‘‘कान खोल कर सुन लो दामादजी, मैं अपनी फूल सी बेटी का ब्याह तुम से नहीं कर सकती.’’‘‘पर आप ने तो वादा किया था. इस में आप की दोनों बेटियां रजामंद थीं.’’ विपिन गिड़गिड़ाया.

‘‘रजामंदी तब थी, पर अब नहीं. प्रियंका भी नहीं चाहती कि काजल की शादी तुम से हो.’’ कुसुमा ने दोटूक जवाब दिया.इस के बाद विपिन वापस घर आ गया. उस ने इस बाबत प्रियंका से बात की तो उस ने मां की बात का समर्थन किया. इस के बाद काजल से शादी को ले कर विपिन का झगड़ा प्रियंका से होने लगा. 18 मई, 2020 को भी प्रियंका और विपिन में झगड़ा हुआ. उस के बाद वह प्रियंका को उस के मायके छोड़ आया.पत्नी मायके चली गई तो विपिन कुमार तन्हा हो गया. उसे सारा जहान सूनासूना सा लगने लगा. उस की रातों की नींद हराम हो गई. वह बात करने के लिए पत्नी को फोन मिलाता, पर वह बात नहीं करती.

विपिन जब बेहद परेशान हो उठा, तब उस ने आखिरी फैसला मौत का चुना. उस ने 3 पत्र कुसुमा देवी, प्रियंका तथा काजल के नाम लिखे. काजल को लिखा पत्र उस ने अपने पर्स में रख लिया और सास को लिखा पत्र फ्रिज कवर के नीचे व पत्नी को लिखा पत्र टीवी कवर के नीचे रख दिया.21 मई, 2020 की आधी रात के बाद अधिवक्ता विपिन कुमार निगम ने अपनी जीवन लीला खत्म करने से पहले अपने फेसबुक एकाउंट में एक पोस्ट डाली. फिर कमरे की छत के कुंडे में रस्सी बांध कर फंदा बनाया और फिर स्टूल पर चढ़ कर फांसी का फंदा गले में डाल कर झूल गया. इधर सुबह घटना की जानकारी तब हुई जब विपिन का छोटा भाई नितिन कमरे पर पहुंचा.

मृतक विपिन कुमार निगम ने अपने सुसाइड नोट मे अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी सास कुसुम देवी और पत्नी प्रियंका को ठहराया था, लेकिन मृतक के घर वालों ने कोई तहरीर थाने में नहीं दी जिस से पुलिस ने मुकदमा ही दर्ज नहीं किया और इस प्रकरण को खत्म कर दिया.

Valentine’s Special: रिश्तों में सौदा नहीं

हाल ही में सुदीप की शादी हुई. सब को लड़की बहुत पसंद आई. अच्छे होटल में दावत… सबकुछ लड़के वालों के स्तर के अनुरूप ही था. पर ज्यादातर लोग दबी जबान से कह रहे थे, डाक्टर साहब (लड़के के पिता) ने रिश्ता बराबरी में नहीं किया. लड़की के पिता की फोटोग्राफी की दुकान थी और वे गूंगेबहरे भी थे. डाक्टर साहब ने कहा कि लड़की उन्हें पसंद आई और लड़की वालों ने हमारे स्तर के अनुरूप शादी कर दी, इस से ज्यादा हमें कुछ नहीं चाहिए. लोगों को जो कहना है, कहते रहें. उन्होंने घर वालों और कुछ समय बाद प्यार से बहू को भी यह बात समझा दी. बहू बहुत खुश हुई.

अंतर पता होता है

किन्हीं भी 2 परिवारों में अंतर होता है तो वह दिखता है. लेकिन कुछ लोग उसे कहे बिना चैन से रह नहीं पाते. कुछ कहते नहीं तो दबी जबान से बातें बनाते रहते हैं. किसी न किसी तरह जताने का मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहते. कुछ हां में हां मिला कर ही ऐसे लोगों को उकसाते हैं. बहुत कम लोग ही प्रतिरोध करते हैं. सुमन को किसी ने कहा तो वह बोली कि यह विचार करना हमारा काम नहीं. आजकल लड़कालड़की अपनी पसंद से शादी करते हैं, उन्होंने विचार किया होगा. शैलजा ने बेटे की शादी के निर्णय पर कहा कि स्तर तो सोचने की बात है. हमारे घर आ कर वह लड़की हमारे ही स्तर की हो जाएगी. बहुत मुश्किल से बेटा माना पर आज खुश है.

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सुनीता कहती है, ‘‘मुझे इसलिए भी रोहन से ज्यादा प्यार हो गया क्योंकि वह बारबार अपने स्तर के कम होने की बात कहकह कर मुझे समझाता रहा. मैं ही उस के प्यार में पड़ी रही. खैर, उस ने बहुत मेहनत की और आज अच्छा जीवन स्तर बना लिया है. अब सब कहते हैं, हमारा प्यार सच्चा है.’’

अंतर तो हर जगह है

आमतौर पर जीवन स्तर का अंतर आर्थिक या ओहदे आदि का हो तो साफ दिखता है. 2 बराबर या मामूली कमज्यादा दिखने वाले परिवारों में भी अंतर होता है पर वह न ज्यादा दिखता है न चर्चा का विषय बनता है. शिक्षा के चलते मानसिक स्तर का अंतर भी होता है पर लोग उसे पैसे या ऐसे ही किसी अन्य कारण से बराबर समझ लेते हैं. इसी तरह की कई समायोजनशीलताएं रिश्तों में सफलता का आधार बन जाती हैं.

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सिरिल कहता है, ‘‘मेरे भाई का 2 बार तलाक हो गया. तीसरी शादी उस ने बहुत अंतर वाले परिवार में की. गरीब घर की लड़की निभा रही है. उस की अपनी वरीयताएं हैं. वह काम से काम रखती है. निरर्थक शकशुबहा उस में नहीं है. दूसरी बीवी हर समय इसी ताकझांक में रहती थी कि पहली बीवी के संपर्क में तो नहीं. उस के बच्चों पर तो तनख्वाह नहीं लुटा रहा.’’

रमा व पति में शिक्षा का अंतर था पर गाड़ी अच्छी निभी. पति व्यस्त रहते, ऐसे में एक व्यक्ति घर देखने लायक भी होना चाहिए. उन के दोस्तों की गृहस्थी चिटक गई. उन दोनों की हाईफाई नौकरी थी, ऐसे में कौन त्याग की पहल करे. रमा के पति कहते हैं मुझे रमा का स्वभाव पसंद आ गया. इस में जो अपनापन देखा वह मुझे अपनी शिक्षा से बेहतर लगा.

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अंतर पाटा जा सकता है

एक वैज्ञानिक महोदय के मांबाप ने उन की जबरन शादी कर दी. बहुत समय वे पत्नी से न मिले न बोले. एक दिन पत्नी दफ्तर पहुंच गई. उन से पूछा, ‘‘देखिए, मुझे साफ बताइए, आप मुझे रखना चाहते हैं या नहीं. वरना मैं आगे की सोचूं.’’

वैज्ञानिक महोदय कहते हैं, ‘‘मैं उस की बेबाकी और स्पष्टवादिता पर दंग था. मैं उसी क्षण उस पर मरमिटा. इतना पढ़लिख कर भी मैं अपने मांबाप से इतना स्पष्ट न कह सका. फिर भी मेरा ईगो आड़े आ गया. मैं ने कहा, ‘इसी बात पर हम में निर्वाह हो सकता है कि आप भी आगे पढ़ाई करें.’ वह मान गई. बीए तक पढ़ाई कर ली. आज हम खुश हैं. हम ने स्तर का सही मतलब ठीक से समझ लिया है.’’स्तर तो कभी भी घट सकता है और बढ़ सकता है. एक समय सरोज की ससुराल गांव में थी. उस के मांबाप को इसी बात का मलाल था. पर आज कोलकाता जैसे शहर में उन के 2 मकान हैं. गांव के कई गरीबों की वह मदद करती है.

स्तर का फंडा क्यों

शुरू से ही समाज में शादीब्याह, दोस्ती, संबंध समान लोगों में करने की बात कही गई है. इस से निर्वाह अच्छा होता है. यह बात काफी हद तक सही भी है. आजकल शादियां शक्ति प्रदर्शन होती जा रही हैं. ऐसे में सामने वाला भी वैसा न हो तो वह बरात का ही स्वागत नहीं कर पाएगा. इन्हीं बातों के फेर में बहुत सी बातें जो ज्यादा जरूरी होती हैं, छूट जाती हैं. श्रीमती शीला कहती हैं, ‘‘यह स्तर दिखावे में काम आता है कि लोग कह सकें हमें इतना अच्छा, हमारे जैसा या हम से सवाया परिवार मिला.’’

बराबरी सिर्फ पैसे की

कुमारी ने अपने से कम पढ़ेलिखे व पैसे वाले व्यक्ति से शादी का निर्णय लिया तो घर में प्रलय आ गई. उसे तरहतरह से समझाया गया. उस ने कहा, बराबरी डिगरी, ओहदों या पैसे से ही नहीं होती. लड़का गरीबी के कारण अच्छे अवसर न पा सका फिर भी यहां तक पहुंचा. मैं इस से चारगुना सुविधा पा कर भी वहां तक न पहुंच सकी. इस में खूब कर गुजरने की क्षमता है.

खैर, उस का निर्णय माना गया और आज वह परिवार इस शादी पर गर्व करता है. बड़े धनीमानी स्तरीय व्यक्ति भी शुरू से ही वैसे नहीं होते. बहुत मेहनत तथा संघर्ष से मुकाम पाते हैं जो विरासत में ये सब पाते हैं वे भी मेहनत न करें तो उस स्तर तथा मुकाम पर बने नहीं रह सकते.

बहुत बड़ा अंतर

दीप्ति की शादी बहुत अमीर घर में हो रही थी पर पति 20 वर्ष बड़ा था. उस ने मना कर दिया. उसे सब ने समझाया कि पूरे घर का स्तर बढ़ जाएगा, उबर जाएगा पर वह नहीं मानी. उसे हमउम्र पति चाहिए. बाकी कमियां वे पूरी कर लेंगे. बात खत्म हो गई. दोचार लोग अड़े रहे तो उस ने साफ कहा, ‘पूरे खानदान का स्तर उठाने का उस ने ठेका नहीं ले रखा है.’

आज वह सामान्य परिवार के युवक के साथ बहुत खुश है. आजकल एक जैसी पढ़ाई, स्तर, रंगरूप के बावजूद तलाक बढ़ते जा रहे हैं. हम लोग यह भूलते जा रहे हैं कि बाहरी स्तर के अलावा आंतरिक प्रकृति, गुण, स्वभाव, कर्म आदि का भी बहुत बड़ा योगदान होता है. एकदम भीतर से किसी को जानना संभव नहीं पर आज ज्यादातर लोग इस का प्रयास ही नहीं करते. साधन संपन्नता, अपटूडेसी से ही बराबरी का स्तर मान लिया जाता है. बहुत शादियों में इसीलिए धोखा भी होता है.

बेहतर यही है कि व्यक्तित्व का अनुकूलन, स्वीकार्यता सकारात्मकता शादी का आधार बने. ऐसा होगा तो शादी में स्थायित्व और आनंद बना रहेगा. बाहरी स्तर बनाना या मेंटेन करना भीतरी व्यक्तित्व की अपेक्षा ज्यादा आसान होता है, यदि कहीं जरूरत हो तो.

परंपरागत मान्यता

अकसर कहा जाता रहा है कि अपने से छोटे घर की लड़की लो और अपने से बड़े घर में दो. इस में भी स्तर का अंतर तो रहता ही है. इस संबंध में कई मैरिज ब्यूरो से बात हुई. इस बारे में योगेंद्र शुक्ल कहते हैं, ‘‘शादियों के लिए इन केंद्रों में आने वाले ज्यादातर लोग अपने से ऊंचे स्तर के रिश्ते की बात करते हैं. पहले की तरह गुणी, सुशील, खानदानी रिश्ते की जगह पढ़ाई, पैकेज और पैसा लेता जा रहा है.’’

मनोचिकित्सक नीलेश तिवारी कहते हैं कि बहुत ज्यादा स्टैंडर्ड कौन्शसनैस समाज में आती जा रही है, इस का मुख्य कारण भौतिकता है. जीवन से मूल्य लुप्त होते जा रहे हैं. इसी कारण समान स्तर तक की शादियां मनमरजी से होने के बावजूद नहीं निभ रही हैं. लोग सोचते हैं स्तरीय व्यक्ति से अपेक्षाएं पूरी होंगी पर वे भूल जाते हैं कि उस व्यक्ति की भी अपेक्षाएं हैं. स्तर के कारण अहम, दंभ भी हावी रहते हैं. आप को पता होना चाहिए कि आप क्या हैं और आप को क्या चाहिए. स्पष्टता, ईमानदारी और खूब सोचसमझ कर किया गया रिश्ता कमज्यादा स्तर दोनों में खूब निभता है, चलता है, अनुकरणीय दांपत्य वाला रहता है.

Valentine’s Special: प्यार का रंग- रोमा किस सोच में डूबती चली जा रही थी

रोमा को एक युवक से प्रेम हो गया था. वैसे इस उम्र में प्रेम होना स्वाभाविक भी है, लेकिन जो स्वाभाविक नहीं था, वह भी हुआ, जिस ने उस की प्रेमखुशी पर ग्रहण लगा दिया. प्रेमरोग के साथसाथ उसे पता चला कि उसे कैंसर का भयंकर रोग भी लग गया है. प्रेम सुमन पुष्पितपल्लवित होने से पहले ही मुरझा गया. वह कैंसर की भयंकर अग्नि में स्वाहा हो गया, पर क्या प्रेम वास्तव में परीक्षा में हार गया था? हां, सतही प्रेम तो परीक्षा में अवश्य हारा था पर वास्तविक प्रेम…

रोमा के विचार सीढ़ीदरसीढ़ी उस के जेहन में उतरते चले गए. 20 साल की उम्र में रोमा ही क्या कोई भी युवती अधिकतर प्रेमसंबंधों की कल्पना में ही डूबतीउतराती है. कैंसर से दोचार होने की कौन सोचता है, पर रोमा पर पड़ती प्रेम फुहार अभी उसे अपने प्रेम में सराबोर भी नहीं कर पाई थी कि उस पर कैंसर का पहाड़ टूट पड़ा.

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रोमा सोच में डूबती चली गई. उस की सोच बचपन के आंगन में उतरती चली गई और वह उन्हीं यादों में खोती चली गई. दादी और मां की हिदायतें कि हमारे यहां डेटिंग की प्रथा नहीं है… तुम बड़ी हो रही हो, संभल कर चलो, कहीं प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ जाना… अपनी मर्यादा में रहना… आदि हिदायतें उसे याद आ गईं.

जैसेजैसे वह बड़ी होती गई हिदायतें उस से चिपकती चली गईं. तन से ही नहीं मनमस्तिष्क पर भी जोंक की तरह चिपक गईं और ये हिदायतें मेरा सुरक्षाकवच बन गई थीं मैं ककूना की तरह खुद में सिमटती चली गई. पर आखिर कब तक ऐसा संभव था. रोमा का यौवन धीरेधीरे उस पर हावी हो रहा था. अब उस के जीवन में रोमांस करवटें बदलने लगा. हिदायतें हिदायतें बन कर ही रह गईं. अब यौवन के कदम उस की दहलीज लांघने लगे और एक दिन उस ने सैम के प्यार में खुद को बंधा पाया.

सैम के प्यार का बंधन कुछ और कसता, इस के पहले ही रोमा पर कैंसर के डायग्नोज ने कहर ढा दिया. जिस प्यार के बंधन को वह अटूट समझने लगी थी वह इस डायग्नोज से उस के शरीर की तरह ही क्षतविक्षत होने लगा. उस में दरार पड़ने लगी. रोमा न तो कैंसर से लड़ पा रही थी और न ही प्यार के इस टूटते बंधन से. दोनों ही अनुभूतियां उस के जीवन में नई थीं. दोनों से ही पार पाना उसे अपनी क्षमता से परे लग रहा था. उसे अपने दुख की सीमा का छोर नहीं दिख रहा था. उस की जिंदगी एक ऐसी गुफा में प्रवेश कर चुकी थी जहां सिर्फ अंधकार के सिवा और कुछ भी नहीं रह गया था.

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सैम ने सहारा अवश्य दिया पर वह क्षणिक था. कुछ क्षणों के लिए उस ने अपना कंधा अवश्य दिया था जिस पर सिर रख कर रोमा रोई थी. उस ने उसे आश्वस्त भी किया था कि वह ठीक हो जाएगी पर साथ ही उस ने उस से संबंध विच्छेद भी कर लिया था. उसे दुख के महासागर में डूबनेउतराने के लिए मंझधार में छोड़ दिया था. काली अंधेरी रातों में रोमा सिसकती रह गई थी. वह तकिए पर मुंह रख बिलखती चीख उठी थी, ‘मैं कैंसर से लड़ सकती हूं पर इस संबंध विच्छेद से नहीं उबर पा रही हूं. सैम मुझे इस अवस्था में कैसे छोड़ सकता है जबकि इस समय मुझे उस के साथ की सब से ज्यादा जरूरत है… क्या यही प्यार है, यह कैसा प्यार है? रोमा आंसुओं के सैलाब में डूबती चली गई.

कीमोथैरेपी ने उस की शारीरिक रूपरेखा ही बदल दी. अपने जिन लंबे, काले बालों पर उसे नाज था, उन्होंने भी उस का साथ छोड़ दिया. शारीरिक संरचना बदलने लगी थी. बालों में हाथ की उंगलियां घूमने की जगह गंजी खोपड़ी की कड़ी जमीन पर घूमती उंगलियां उसे यथार्थ के ठोस धरातल पर पटक देतीं. आईने में झांकता अपना अक्स उसे अजनबी सा लगता. आंसुओं को आंखों में ही रोकने का प्रयास करती रोमा थोड़ी सी बचीखुची पलकों पर काला मसकारा लगा कर उन्हें गहरा करने के प्रयास में खुद और अधिक गम की गहराइयों में डूब जाती. हृदय की धड़कनों के साथ उठतेगिरते, उस के वक्ष पर लगे सर्जरी से बने कट के निशान उस की कातर आंखों में और भी कातरता भर देते.

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समय गुजरता गया. अचानक जिंदगी ने करवट ली, इलाज फलने लगा. पलकों और भौंहों में कुछ और बाल जुड़ने लगे. गंजी खोपड़ी पर रखी नकली विग की भी अब जरूरत नहीं थी. अब स्थिति कुछकुछ सामान्य होने लगी. आईने से झांकती छवि ने रोमा में कुछ मानसिक संतुलन बनाया. वह लोगों से मिलनेजुलने लगी. हां, किसी के द्वारा कहा गया वाक्य जैसे, ‘तुम खूबसूरत लग रही हो’ उसे प्रेम के प्रति आश्वस्त न कर सके. पर हां, प्रगति की ओर कदम अवश्य बढ़ रहे थे.

लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था. प्रेमप्रगति की ओर बढ़ने वाले कदम दोबारा रोग की ओर घसीटने लगे. जिस दुख के सागर को तैर कर वह किनारे लगने लगी थी, उस की उत्ताल तरंगों ने उसे फिर अपनी ओर वापस खींचना शुरू कर दिया. स्तन कैंसर का सर्प दोबारा अपना फन उठाने लगा. विधि का विधान भी अजीबोगरीब परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है. इस रोग ने जहां रोमा को दुख दिया वहीं अपने प्यार से भी मिलवाया. 4 साल बाद जहां स्तन कैंसर ठीक होतेहोते दोबारा वापस आ गया, वहीं उस ने रोमा का पथ पेंटर समीर से भी जोड़ दिया.

समीर अपनी नई पेंटिंग पर काम कर रहा था. उस ने रोमा को अपनी कलाप्रेरणा बनने के लिए प्रोत्साहित किया. समीर देखने में तो सामान्य लगता था पर था वह ज्ञान का भंडार. वह रोमा को रोग से लड़ने के नएनए तरीकों से अवगत कराता रहा. उस में रोग से लड़ने की हिम्मत भरता रहा. धीरेधीरे वह रोमा के जीवन का हिस्सा बन गया. रोमा और समीर एकदूसरे के करीब आते गए. रोमा समीर के विनम्र स्वभाव से काफी प्रभावित थी. समीर का प्यार शब्दों के बजाय भावों में व्यक्त होता रहा. रोमा के दर्द के कतरे समीर से उपजी संवेदना की धरती पर गिर कर अपना अस्तित्व मिटाते रहे. रोमा एक ओर दोबारा प्यार में पदार्पण करने से घबरा रही थी, पर दूसरी ओर समीर के स्वाभाविक गुणों से उस की ओर खिंचती चली जा रही थी.

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प्रेरणा से पार्टनर में बदलना रोमा के लिए आसान न था, क्योंकि भावनात्मक संवेदनाओं से वह भयभीत थी. सैम द्वारा दिया गया प्यार का अनुभव बारबार उस के इस तरफ बढ़ते कदमों को रोक लेता था, पर धीरेधीरे रोमा समीर के बढ़े हुए हाथों की ओर डगमगाते कदमों से बढ़ने लगी और एक दिन उस ने उन विश्वस्त हाथों को थाम ही लिया. रोमा के आंसुओं की बाढ़ को समीर ने अपनी करुणा से पोंछा. जब भी रोमा हतोत्साहित हुई समीर ने उस का उत्साह बढ़ाया. जब दुख से कातर हुई तो समीर ने उसे अपने अंक में समा सांत्वना दी. जब भी वह निराशा के गर्त में गिरी समीर ने उसे वहां से निकाल आशा का दामन थमाया कि वह इस रोग से अवश्य मुक्ति पा लेगी. जब पीड़ा से रोमा के अंग दुखे तो समीर ने अपने हाथों से उस की शारीरिक पीड़ा व अपनी संवेदना से उस की मानसिक पीड़ा को कम करने का प्रयास किया. हर स्थिति में समीर रोमा के साथ खड़ा रहा. समीर के प्यार की दृढ़ता ने सैम के प्यार की दुर्बलता को भुला दिया. रोमा के दिल में सैम द्वारा उस समय उसे सपोर्ट न करने की जो कटुता आ गई थी उसे उस ने उस के चरित्र की दुर्बलता समझ कर भुला दिया. उसे ‘अमैच्योर लव’ की संज्ञा से प्यार के उस अनुभव को झटक दिया.

इस बार रोमा जहां कैंसर की लड़ाई में पीछे नहीं हटी, वहीं समीर के प्यार के रंग में सराबोर हो उस पर निहाल हो गई, धन्य हो गई. असली प्यार क्या होता है, समीर के प्यार में रोमा ने उस का दर्शन, उस का अनुभव कर लिया था. समीर के प्यार की सार्थकता में रोमा ने अपना असली प्यार पा लिया था.

नई रोशनी: भाग 3- नईम का पढ़ालिखा होना क्यों गुनाह बन गया था

लेखिका- शकीला एस हुसैन

एक अरसे के बाद अम्मी ने प्यार से सबा को गले लगाया. बहनें भी प्यार से लिपट गईं. सबा को लगा उस की मुश्किलों का खत्म होने का वक्त आ गया है. उन्हें हंसता देख कर नईम बोला, ‘‘अम्मी, मैं ने शादी के वक्त शर्त रखी थी कि लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए तो आप सब खूब नाराज हो रहे थे पर उस वक्त पढ़ीलिखी बीवी की ख्वाहिश इसलिए थी कि मैं कम पढ़ालिखा था. उस कमी को मैं अपनी पढ़ीलिखी बीवी से पूरी करना चाहता था और मैं गर्व से अपने दोस्तों से कह सकूं कि मेरी बीवी एमएससी है.

‘‘यह हकीकत तो अब खुली है कि इल्म सिर्फ दिखाने या नाज करने के लिए नहीं होता. इस मुश्किल घड़ी में जब मैं बेहद निराश और डिप्रैस्ड था, उस वक्त सबा ने अपनी तालीम, समझदारी व जानकारी से मामला संभाला. आज मैं अपनी ख्वाहिश की जिंदगी और कारोबार में इल्म की अहमियत को समझ गया हूं. इल्म कोई शोपीस नहीं है बल्कि हर समस्या, हर मुश्किल से जूझने का सफल हथियार है.’’

सबा ने खुशी से चमकती आंखों से नईम को शुक्रिया कहा.

सबा के स्टोर में मदद करने से एक एहसान के बोझ से दबी अम्मी उस से कुछ हद तक नरम हो गईं पर दिल में जमी ईर्ष्या और कम होने के एहसास की धूल अभी भी अपनी जगह पर थी. बहनें भी रूखीरूखी सी मिलतीं. सबा सोचने लगी, उस से कहीं गलती हो रही है. एकाएक उस के दिमाग में धमाका हुआ. उसे एहसास हुआ, कोताही उस की तरफ से भी हो रही है. अभी लोहा गरम है, बस एक वार की जरूरत है. वह पढ़ीलिखी है यह एहसास उस पर भी तो हावी रहा था. अनजाने में वह उन से दूर होती गई.

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अगर वे लोग अपनी जहालत और नासमझी से उसे अपना नहीं रहे थे तो उस ने भी कहां आगे बढ़ कर कोशिश की. वह तो समझदार थी. उसे ही उन लोगों का  साथ निभाना था. उस ने अपनी बेहतरी को एक खोल की तरह अपने ऊपर चढ़ा लिया था. अब उसे इस खोल को तोड़ कर उन लोगों के लेवल पर उतर कर उन के दिलों में धीरेधीरे जगह बनानी होगी. यही तो उस की कसौटी है कि उसे अपनी तालीम को इस तरह इस्तेमाल करना है कि वे सब दिल से उस के चाहने वाले हो जाएं. उन की नफरत मुहब्बत में बदल जाए. पहल उसे ही करनी होगी. अपने गंभीर और आर्टिस्टिक मिजाज को छोड़ कर अपने घमंड के पीछे डाल कर उसे यह रिश्तों की जंग जीतनी होगीदूसरे दिन सबा ने गहरे रंग का रेशमी सूट पहना. झिलमिल करता दुपट्टा ओढ़ नीचे आ गई. उस की सास तख्त पर बैठी सिर में तेल डाल रही थीं. वह उन के करीब जा कर बैठ गई. उन्होंने मुसकरा कर उस के खूबसूरत जोड़े को देखा, उस ने उन के हाथ से कंघा ले कर कंघी करते हुए कहा, ‘‘अम्मी, अगर नासमझी में मुझ से कोई भूल हुई है तो माफ करें, अपनेआप को मैं आप की ख्वाहिश के मुताबिक बदल लूंगी.’’

अम्मी हैरान सी उसे देख रही थीं. आज इस चमकीले सूट में वह उन्हें बड़ी अपनी सी लग रही थी. वह उस के संजीदा व्यवहार से बदगुमान हो गई थीं. उन्हें लगा था कि तालीमयाफ्ता, होशियार बहू उन से उन का बेटा छीन लेगी, क्योंकि नईम वैसे भी उसे खूब चाहता था. कहीं बहू बेटे पर हावी न हो जाए, इसलिए उन्होंने उस के नुक्स निकाल कर उस की अहमियत कम करना शुरू कर दिया. बेटियों ने भी साथ दिया क्योंकि सबा ने भी अपने आसपास एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी.

आज वही दीवार, अपनेपन और मुहब्बत की गरमी से पिघल रही थी. उस ने अम्मी की चोटी गूंथते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आप मुझे रिश्तों का मान दीजिए, मुझे अपनी बेटी समझें, मुझे भी रिश्ते निभाने आते हैं. मैं आप के बेटे को कभी आप से दूर नहीं करूंगी बल्कि मैं भी आप की बन जाऊंगी. मैं मुहब्बत की प्यासी हूं. रमशा और छोटी मेरी बहनें हैं. आप उन्हीं की तरह मुझे अपनी बेटी समझें. तालीम और काबिलीयत ऐसी चीज नहीं है जो दिलों के ताल्लुक और मुहब्बत में सेंध लगाए.’’

अम्मी को लग रहा था जैसे उन के कानों में मीठा रस टपक रहा है. वे ठगी सी काबिल बहू की बातें सुन रही थीं जो सीधे उन के दिल में उतर रही थीं. उसी ने उन के बेटे को कितनी बड़ी मुश्किल से निकाला है पर जरा सा गुरूर नहीं है. सबा ने रमशा और छोटी को दुलारते हुए कहा, ‘‘आप इन के लिए परेशान न हों, मैं इन दोनों को भी जमाने के साथ चलना सिखाऊंगी. मेरी कुछ, बहुत अच्छे घरों में पहचान है. वहां इन दोनों के लिए रिश्ते भी देखूंगी,’’ यह बात सुन कर दोनों ननदों की आंखों में नई जिंदगी के ख्वाब तैरने लगे.

शाम को नईम जब स्टोर से आया तो घर में खाने की खुशगवार खुशबू के साथ प्यार की महक भी थी. सब ने हंसतेमुसकराते खाना खाया. सबा की एक छोटी सी पहल ने सारा माहौल खुशियों से भर दिया. उस ने अपनी समझदारी से अपना अहं छोड़ कर अपना घर बचा लिया, क्योंकि कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है. उसे यह बात समझ में आ गई कि नीचे झुकने से कद छोटा नहीं होता बल्कि ऊंचा हो जाता है. उन सब में इल्म की कमी से एक एहसासेकमतरी था, उसे छिपाने के लिए वे सबा में कमियां ढूंढ़ते थे. आज उस ने उन के साथ कदम से कदम मिला कर उन के खयालात बदल दिए.

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दरअसल, एक रंग पर दूसरा रंग मुश्किल से चढ़ता है. नया रंग चढ़ाने को पुराने रंग को धीरेधीरे हलका करना पड़ता है. दूसरी शाम नईम की पसंद के मुताबिक तैयार हो कर वह उस के दोस्त के यहां खुशीखुशी मिलने जा रही थी. यह नई जिंदगी का खुशगवार आगाज था जिस का उजाला उस के ख्वाबों में नए रंग भरने वाला था.

बिहार टू मुंबई: छोटे परदे से बॉलीवुड तक, जानें कैसा रहा टीवी के ‘कर्ण’ का सफर

सिनेमा का आकर्षण हर युवक युवती को छोटे छोटे गांवों व कस्बों से खींचकर ले आता है. हर दिन सैकड़ों युवक युवतियां बौलीवुड में कुछ बड़ा करने का सपना लेकर पहुंचते रहते हैं. मुंबई पहुंचने के बाद उनके संघर्ष का एक अनवरत सिलसिला चल पड़ता है. यूं तो हिंदी भाषा की फिल्में बनाने वाले बौलीवुड में हर किसी को संघर्ष करना पड़ता है. मगर उत्तर भारत यानी कि उत्तर प्रदेश व बिहार के ग्रामीण इलाकों व छोटे कस्बों में हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों से शिक्षा ग्रहण कर बौलीवुड में कुछ बड़ा करने का सपना लेकर आने वालों का यह संघर्ष कुछ ज्यादा ही कठिन व लंबा हो जाता है. इसी कड़ी में हम अभिनेता अहम शर्मा की चर्चा कर सकते हैं.

बिहार के सालिमपुर गांव में जन्में व पले बढ़े अहम शर्मा स्पोर्ट्स मैन बनना चाहते थे. पर उनका यह सपना पूरा न हो पाया. उसके बाद दोस्तों की सलाह पर अभिनय जगत में नाम कमाने के लिए मुंबई की राह पकड़ी. मुंबई में लंबा संघर्ष करने के बाद उन्हें फिल्म ब्लू आरेंज मिली. पर कैरियर में प्रगति नहीं हुई कुछ दूसरे सीरियल मिले पर बात नहीं बनी. लेकिन जब उन्होंने सिद्धार्थ तिवारी निर्मित सीरियल महाभारत में कर्ण का किरदार निभाया तो उन्हें जबरदस्त शोहरत मिली फिर उन्हें अति संजीदा विषय पर चाउ पार्था बोर्गोहेन निर्देशित फिल्म 1962रू माई कंट्री लैंड में हीरो बनने का अवसर मिला.

फिल्म कॉन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी गयी. इन दिनों अहम शर्मा अपनी फिल्म धूप छांव को लेकर चर्चा में हैं. सचित जैन निर्मित व हेमंत सरन निर्देशित फिल्म धूप छांव में अहम शर्मा की जोड़ी समीक्षा भटनागर के संग हैं.

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aham-sharma

प्रस्तुत है अहम शर्मा से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के खास अंश…

सवाल- आप अपनी पृष्ठभूमि पर रोशनी डालेंगें?

जवाब- मैं बिहार में पटना जिले के अंदर आने वाले छोटे से गांव सालिमपुर का रहने वाला हूं. मेरी शिक्षा मेरे गांव के ही ग्रामीण परिवेश वाले हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में हुई. मैंने दसवीं तक ग्रामीण स्कूल में ही शिक्षा ग्रहण की और हमारा स्कूल दूसरे सरकारी ग्रामीण स्कूलों जैसा ही थाण्दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए हमें पटना जाना पड़ा. दसवीं तक हम सामान्य ढंग से पढ़ते रहे. ऐसा कुछ उल्लेखनीय नहीं रहा जिसकी चर्चा की जाएगी. जब हम स्कूल में पढ़ रहे थे. तब हमारे गांव के स्कूल में खेलों को कुछ ज्यादा ही प्रोत्साहन दिया जाता था. पर अब तो वह भी कम हो गया है. बहुत ही आम व सामान्य सा माहौल स्कूल में था. गांव से पटना फिर इंदौर उसके बाद दिल्ली होते हुए मुंबई फिल्म नगरी में पहुंच गया.

सवाल- तो आप शुरू से ही अभिनेता बनना चाहते थे?

जवाब- जी नहीं जैसा कि हमने पहले बताया कि हमारे ग्रामीण स्कूल में पढ़ाई की बनिस्बत खेलों का माहौल ज्यादा था. गांव में परवरिश और ग्रामीण स्कूल में पढ़ाई के चलते खेलों में मेरी रूचि ज्यादा बढ़ी. मैं हर तरह के खेल खेलता था. फुटबाल बैडमिंटन खेलता था. मुझे लगता है कि स्पोर्ट्स मेरे अंदर नेचुरली था. इसलिए बहुत जल्द मैं हर खेल सीख लेता था. पहले खेल ही मेरा पैशन था. और मैं स्पोर्टस मैन बनकर कुछ बड़ा काम करने व शोहरत पाने का सपना देखने लगा था. मगर बहुत जल्द हमें अहसास हुआ कि खेल जगत में मेरे लिए आगे बढ़ने का कोई स्कोप नहीं है. जिसके चलते कुछ बड़ा करने का मेरा सपना अधूरा रह गया था. यूं तो हम आम नौकरी करते हुए एक अच्छी जिंदगी जीते हैं. एक सफल जिंदगी जीते हैं. जिसकी अहमियत काफी है. लेकिन जब आपका पैशन या सपना हो जाता है कि किसी क्षेत्र में नाम बनाना है. शोहरत पानी है तो मैं भी स्पोर्टसमैन के रूप में अपना नाम कमाना चाहता था. मगर यह हो नहीं पाया. तब मैंने पढ़ाई पर ध्यान दिया. स्नातक की पढ़ाई के दौरान लोगों ने कहना शुरू किया कि मुझे माडलिंग करनी चाहिए. कुछ दोस्तों ने कहा कि मुझे अभिनय करना चाहिए. तब मैने अभिनय की तैयारी की और मुंबई आ गया. मुंबई में जिस तरह से मौके मिलते रहे. मैं काम करता गया. हिंदी माध्यम में पढ़ाई करने की वजह से मुंबई आने पर कुछ समस्या आयी.

सच यह है कि गांव से बाहर निकलने के बाद काम की तलाश करना हो या कुछ नया सीखना हो तो समस्या आ रही थी. हर जगह अंग्रेजी का ही बोलबाला था फिल्म इंडस्ट्री में भी लोग अंग्रेजी में ही ज्यादा बातें करते हैं. इसलिए फिर हमने अंग्रेजी भाषा सीखनी शुरू किया.

सवाल- आप ग्लैमर व शोहरत के वशीभूत होकर ही बौलीवुड से जुड़ने के लिए मुंबई आए होंगे?

जवाब- यूं तो हर इंसान ग्लैमर के वशीभूत या आकर्षित होकर अभिनय को चुनता है. बतौर अभिनेता जो शोहरत नाम व पहचान मिलती है. उसी के वशीभूत होकर मैं भी अभिनेता बनने के लिए मुंबई आया. मगर मुंबई पहुंचने और अभिनय के लिए दौड़ भाग करने के बाद मैने अहसास किया कि अभिनय बहुत ही ज्यादा गंभीर मसला है अभिनय की विधा जो है वह महत्वपूर्ण है उसके बाद अभिनय यानी कि कला के प्रति मेरा रूझान काफी गंभीर होता गया. अब मुझे अहसास होता है कि नेम फेम पापुलैरिटी यह सब बायप्रोडक्ट हैं. असल में अभिनय एक ऐसी विधा है. जहां हमें काम को इंज्वॉय करना आना चाहिए. यह आप तभी कर सकते हैं. जब आप अपने काम को बखूबी जानते हो. लोगों की नजर में वह जो कुछ सिनेमा के परदे पर देखते हैं. वही अभिनय है मगर उसके पीछे की गहराई को समझना अत्यंत आवश्यक है. जिसे कई बार हम समझ नहीं पाते.

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सवाल- अभिनय के क्षेत्र में उतरने से पहले किस तरह की तैयारी की?

जवाब- मैंने अभिनय की ट्रेनिंग ली. लेकिन मगर मेरे पास उस हिसाब से धन वक्त व माहौल नहीं था. उस वक्त अभिनय करते हुए खुद को जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा करना जरुरी था. इसलिए मैं पुणे फिल्म संस्थान या नाट्य विद्यालय नहीं जा सका. मैं खुशकिस्मत रहा कि मुंबई पहुंचते ही मुझे 2009 में राजेश गांगुली निर्देशित फिल्म ब्लू आरेंजेस मिल गयी थी. इसमें मैंने लीड किरदार निभाया था. इस जासूसी कहानी वाली फिल्म में मैंने अभिनेत्री पूजा कंवल के पूर्व प्रेमी का किरदार निभाया था. इसके बाद मुझे गुल खान का सीरियल चांद के पार चलो मिल गया. उन दिनों छोटी फिल्मों का दौर ज्यादा नही था. अब तो हर तरह की फिल्मों के दर्शक हैं और लोग हर तरह की फिल्में देख भी रहे हैं. खैर ब्लू आरेंजेस काफी बेहतरीन फिल्म थी. पर लोगों तक यह फिल्म नहीं पहुंच सकी. फिर मैंने सिद्धार्थ तिवारी के सीरियल महाभारत में दानवीर कर्ण का किरदार निभाया. फिर मैंने फिल्म माई कंटी लैंड किया. जिसे कॉन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराहा गया. मगर यह अभी तक सिनेमाघरों नहीं पहुंची.

सवाल- लेकिन उसके बाद आपने पुनः अभिनय सीखा?

जवाब- मुझे अहसास होने लगा कि मैं अभिनेता बनने आया हूं और अभी मुझे काफी कुछ सीखना है. उस वक्त तक जेब में कुछ पैसे आ गए थे. तब मैंने कुछ एक्टिंग वर्कशॉप किए. थिएटर तो पहले ही कर चुका था. अभिनय में परिपक्वता की जरुरत महसूस हो रही थी. अविजित दास हैं, जो कि लंदन से पढ़ाई करके आए हैं. उनसे मैंने छह माह का एक्टिंग वर्कशॉप किया. यह मेरे लिए आई ओपनिंग अनुभव रहा. फिर मैंने इंडो ब्रिटिश एक्टिंग कोच दलीप सोंधी से अभिनय सीखा. इन दिनों दलीप सोंधी आस्ट्रेलिया में एक्टिंग की कोचिंग चलाते हैं. उनके साथ समय बिताया. फिर कई किताबें पढ़ी. ऑनलाइन कई वीडियो देखे. यह सारी चीजें तभी मदद करती हैं. जब आपके अंदर ग्रहण करने की बेसिक क्षमता हो. हम अनुभवों से ही सीखते हैं. फिर धीरे धीरे कला की समझ बढ़ती जाती है. अब कला को और अधिक जानने व गहरे उतरने की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही है.

सवाल- सीरियल महाभारत में कर्ण का किरदार निभाने से मिली शोहरत का कोई असर नहीं हुआ?

जवाब- सीरियल महाभारत में मेरे द्वारा निभाए गए कर्ण के किरदार को काफी पसंद किया गया था. उसके बाद मुझे 1962 माई कंट्री लैंड मिली थी. कॉन्स इंटरनेशनल फेस्टिवल में इसे काफी सरहा गया. पर अभी तक यह सिनेमाघर नहीं पहुंची. यह फिल्म संजीदा मुद्दे पर थी. हो सकता है कि राजनीतिक स्तर पर इसे रोक दिया गया हो. रोचक कहानी है. युद्ध से उत्तर पूर्व का जो नेता बार्डर या मैकमोहन रेखा है. यह भारत चीन सीमा पर है. यह अभी भी डीमार्केटेड नहीं है. इसलिए लोग एक दूसरे की सीमा में अक्सर चले जाते हैं. यह फिल्म फैक्ट व फिक्शन पर आधारित थी. आर्मी में आसाम का एक लड़का है. उससे कहा जाता है कि वह मैप के अनुसार डीमार्केट करके लाए. लेकिन वह रास्ता भटककर ऐसी जगह पहुंच जाता है. जो कि नो मैन्स लैंड है. यह भारत या चीन दोनों देश की सीमा में नहीं आता वहां पर कुछ चीनी एजेंट होते हैं. जो कि लोगों को बरगला रहे होते हैं. उसे एक लड़की मिलती है. जिसके प्यार में वह पड़ जाता है. किस तरह वह उसकी चालों से बचता है. फिर चीन भारत युद्ध शुरू हो जाता है. यह युद्धबंदी हो जाता है. बहुत प्यारी कहानी है इस फिल्म की. मैं इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित था. मगर कॉन्स फिल्म फेस्टिवल के बाद इस फिल्म का क्या हुआ. कुछ पता ही नहीं चला. वैसे एक सीरियल की शूटिंग में व्यस्तता के चलते मैं खुद कॉन्स में नहीं जा पाया था.

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जब अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सराही जा चुकी फिल्म प्रदर्शित न हो सके तो कलाकार के कैरियर पर किस तरह का असर पड़ता है. हम एक फिल्म के निर्माण में समय देने के साथ ही मेंटली व फिजिकली जुड़ते हैं. पर वह फिल्म प्रदर्शित न हो सके तो तकलीफ होती है. हर कलाकार को उम्मीद होती है कि फिल्म लोगों तक पहुंचेगी और उसका काम भी लोगों तक पहुंचेगा. उसके आधार पर कैरियर आगे बढ़ेगा. जब फिल्म प्रदर्शित नहीं होती तो नाउम्मीदी होती है. नए सिरे से संघर्ष शुरू होता है पर जिंदगी का मकसद होना चाहिए कि अपनी तरफ से काम करते रहोण्हर काम को अपनी तरफ से अच्छा करते रहो पर कोशिश करते रहना चाहिए कि काम होता रहे. उसका अच्छा परिणाम आता रहे. बहरहाल मेरी मेहनत रंग ला रही है. अब मुझे हेमंत सरन निर्देशित फिल्म धूप छांव के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार है.

सवाल- फिल्म धूप छांव करने की वजह क्या रही?

जवाब- सच तो यही है कि कोरोना महामारी के दौरान जब मुझे काम चाहिए था. तभी मेरे पास धूप छांव का आफर आया. फिलहाल मैं उस मुकाम पर नही हूं कि चूजी हो जाउं मगर मैं सब कुछ नही कर सकता. मैं अपनी तरफ से अच्छी फिल्में या सीरियल ही चुनने का प्रयास करता हूं. जब मेरे पास फिल्म धूप छांव का आफर आया. तो यह मुझे काफी अलग लगा. इसमें एक साधारण सी पारिवारिक कहानी व रिश्तों की जटिलता की बात है. इसके साथ सभी रिलेट कर सकेंगें. मेरा किरदार मेरे व्यक्तित्व से अलग साधारण है. मैं किसी भी किरदार को निभाने से पहले यह भी देखता हूं कि क्या इसमें मेरे अंदर का कोई दूसरा पहलू भी आ रहा है. तो धूप छांव में मैंने पाया कि मैंने इससे पहले इस तरह का किरदार नहीं निभाया है.

इस फिल्म में मैंने एक ऐसे लड़के का किरदार निभाया है जो कि बनावटीपना से परे है. यह एकदम रीयल ए भोला व सरल है. यह ऐसे पारिवारिक जॉनर की फिल्म है. जिस पर पिछले लंबे समय से कोई फिल्म नहीं बनी है. यह फिल्म पारिवारिक रिश्तों के बारे में है.

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सवाल- दर्शक के तौर पर आप धूप छांव क्यों देखना चाहेंगे?

जवाब- दर्शक एक साधारण फील गुड कहानी देखने के लिए धूप छांव देखना चाहेगा यह फिल्म हर दर्शक को रिश्तों की अहमियत का अहसास कराएगी. हर इंसान को समझ में आएगा कि जीवन में हर रिश्ते को तवज्जो देना कितना आवश्यक है.

सवाल- आप धूप छांव के अपने किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगें?

जवाब- मैंने इसमें अमन का किरदार निभाया है. जो कि परिवार के दो लड़कों में सबसे बड़ा है. अपनी जिंदगी में अमन कुछ हासिल नहीं कर पाया. लेकिन फिर भी वह जीवन में अपने उसूलों व आदर्शों से समझौता नहीं करता. वह अपने तरीके से जिंदगी जीना चाहता है. वह शॉर्ट कट रास्ते से कहीं भी नहीं पहुंचना चाहता. वह मेहनत करने में यकीन करता है. उसकी सोच के मुताबिक चीजे होती हैं. मगर उसके लिए उसे क्या खामियाजा भुगतना पड़ता है. यह सब इसमें नजर आएगा.

कभी आप स्पोर्टस के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे. पर अब आपकी बतौर अभिनेता एक पहचान बन गयी है तो क्या स्पोर्ट्स मैन न बन पाने का अफसोस है.

देखिए आप कब तक कितना अफसोस करते रहेंगे, जो चीज नहीं हो पायी उसके बारे में सोच के क्या फायदा दूसरी बात ऐसा भी नहीं है कि मैं स्पोर्ट्स के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गया था और फिर पीछे लौटना पड़ा. हां! जब स्पोर्ट्स के क्षेत्र में कुछ नहीं कर पाया था उस वक्त दुःख हुआ था. मगर अब उस पड़ाव से काफी आगे निकल चुका हूं अब मैं उसके बारे में नहीं सोचता पर जब अहसास हुआ था कि कुछ भी कर लूं पर स्पोर्ट्स में अब आगे नहीं बढ़ पाउंगा तब बहुत दुःख हुआ था. जब आपको अहसास होता है कि जो आपका सपना था आपका पैशन था. वह आपसे छूट रहा है तो तकलीफदेह स्थिति होती है जब मुझे अहसास हुआ कि स्पोर्टस में अब मैं आगे नहीं बढ़ पाउंगा तो काफी तकलीफ हुई थी. कुछ माह तो मेरी हालत काफी खराब रही पर फिर खुद को संभाला और दोस्तों ने मुझे उकसा कर मेरे अंदर अभिनय का पैशन पैदा कर दिया लेकिन अब मैं स्पोर्ट्स के बारे में नहीं सोचता.

सवाल- अब तक के आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट या उतार चढ़ाव क्या रहे?

जवाब- जिंदगी की ही तरह मेरे कैरियर में उतार चढ़ाव आते रहे हैं जो फिलोसिफी आपकी जिंदगी में होती है वही आपके काम में भी होती है पर दोनों को अलग करके नहीं देखता मेरी राय में नौकरी या काम आपकी जिंदगी का एक हिस्सा है जब मैं मुंबई आया तो मैं यहां किसी को नहीं जानता था पर कुछ काम किया तो लोग मुझे जानने लगे हैं धूप छांव सहित कुछ फिल्में प्रदर्शित होने वाली हैं ईश्वर की कृपा है काम अच्छा चल रहा है फिर भी मैं सीरियल महाभारत में कर्ण का किरदार निभाने के अवसर को टर्निंग प्वाइंट मानता हूं यह किरदार अपने आप में काफी अनूठा है. पूरे विश्व में इस सीरियल को देखा गया जर्मनी, ग्रीक, स्पेन और इंडोनेशिया सहित कई देशों से मुझे सोशल मीडिया पर बधाईयां व प्रशंसा मिली कर्ण का किरदार निभाने के बाद फिल्मकार मुझे अच्छा कलाकार मानने लगे. भारत में इसका प्रसारण दो तीन बार हो चुका है,

सवाल- क्या आप यह नहीं मानते कि कैरियर में आए उतार चढ़ाव के अनुसार जिंदगी में बदलाव आते हैं?

जवाब- यह भी सच है मेरे कहने का अर्थ यह था कि कैरियर के उतार चढ़ाव के आधार पर जिंदगी जिएंगे तो फिर जिंदगी में भी उथल पुथल ज्यादा होगी क्योंकि अभिनय के कैरियर में हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है. हमारे अभिनय के कैरियर में बहुत तेजी से उथल पुथल होती है अब यदि आप इसी आधार पर जिंदगी में सब कुछ करने लग जाएंगे तो जिंदगी में भी उतनी ही उथलपुथल आएगी. दूसरी बात आप जिंदगी को बैलेंस नहीं रख पाएंगे मेरा मानना है कि अभिनय की गहराई में जितना अधिक उतरेंगे. उतना ही बेहतर है. अभिनय सिर्फ एक्शन और कट तक ही सीमित नही है अभिनय हमारी जिंदगी का विस्तारित हिस्सा ही है. आपके अंदर इंसानों को व चीजों को समझने की संजीदगी होनी चाहिए.

मेरी राय में कलाकार के तौर पर आप चीजों को जितना अधिक गहराई से देख समझ व उसका विष्लेषण कर पाएंगे उतना ही आपके अभिनय में निखार आएगा क्योंकि तभी आप स्पष्ट रूप से अपने किरदार को देख व समझकर अभिनय से संवार सकेंगें. लोगों को दिखा सकेंगे. आपको मेरी बातें फिलोसाफिकल लग रही होगी, मगर मेरी राय में इस तरह चलने से जिंदगी बैलेंस रह सकती है. काम को जिंदगी का हिस्सा बनाए. काम के आधार पर जिंदगी न बनाएं काम जिंदगी नही सिर्फ जिंदगी का हिस्सा है. मैं अभी जिंदगी जीने का नजरिया सीख रहा हूं.

आने वाली फिल्में

मैंने धूप छांव, बगावत और एक्टिंग का भूत जैसी फिल्में की हैं.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी और संसद का आईना

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी कांग्रेस की आलोचना से बाहर आ ही नहीं पा रहे हैं और मजेदार बात यह है कि उन्होंने लंबे भाषण में जो कुछ कहा जैसा कांग्रेस को निचोड़ने का प्रयास किया. दरअसल, नरेंद्र दामोदरदास मोदी का कहन  कांग्रेस पार्टी के बजाय भाजपा को ज्यादा लागू होता है.

आइए! आप भी देखिए पढ़िए समझिए कि आखिर नरेंद्र मोदी कांग्रेस की आलोचना से बाहर क्यों नहीं आ पा रहे हैं.

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कोरोना प्रबंधन पर सफेद झूठ

नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में हुंकार भरी-” हमने श्रमिकों को जाने के लिए मुफ्त टिकट दिया, लोगों को अपने ठिकाने जाने के लिए प्रेरित किया.”

अब यह सारा देश जानता है कि सोना लॉकडाउन में किस तरह लोग भूखे प्यासे तड़पते हुए अपने अपने ठिकानों तक पहुंचे थे और सिर्फ ₹500 किसी किसी खाते में डाल कर के आप ने अपना फर्ज निभा लिया था.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी कहा कि आपने बड़ा पाप किया है.  कोरोना काल के बाद दुनिया एक नई व्यवस्था की तरफ बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है. भारत को इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए. आजादी के अमृत महोत्सव’ के बाद देश जब आजादी के 100 साल मनाएगा, तब तक हम सामर्थ्य से, पूरी शक्ति एवं पूरे संकल्प से देश को उच्चतम स्तर पर लेकर पहुंचेंगे.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज विभाजनकारी मानसिकता “कांग्रेस” के डीएनए में घुस गई है. और कांग्रेस की नीति ‘ बांटो और राज करो’ की बन गई है. उन्होंने कहा ‘अंग्रेज चले गए लेकिन बांटो और राज करो की नीति को कांग्रेस ने अपना चरित्र बना लिया है. इसलिए ही आज कांग्रेस टुकड़े टुकड़े गैंग की लीडर बन गई है.  कांग्रेस की सत्ता में आने की इच्छा खत्म हो चुकी है, उसे लगता है कि जब कुछ मिलने वाला नहीं है तो कम से कम बिगाड़ दो, कांग्रेस आज इसी दर्शन पर चल रही है.

इन सब बातों को अगर आप सिर्फ दो दफा पड़ेंगे तो आपको दूध का दूध और पानी का पानी दिखाई देगा. आप एक जागरूक पाठक की हैसियत से स्वयं चिंतन करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के श्री मुख से यह सब कथन क्या  शोभा देता हैं.

प्रधानमंत्री ने इस सब बातों से आगे निकलकर यह भी कहा कि हम सब संस्कार से, व्यवहार से, लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं और आज से नहीं, सदियों से हैं. आलोचना जीवंत लोकतंत्र का आभूषण है, लेकिन अंध विरोध लोकतंत्र का अनादर है. विपक्ष पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य यह है कि आपमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनका कांटा 2014 में अटका हुआ है और उससे वो बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

हम हैं जानते हैं कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनकी टीम कांग्रेसी आलोचना करने पर जैसे निम्न स्तर स्तर पर उतर आती है कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को पप्पू कहके मंद मंद मुस्काए और मजे लेते हैं क्या यह स्वस्थ परंपरा कही जा सकती है कांग्रेस हो या अन्य कोई विपक्ष उस के संदर्भ में ऐसे तर्क दिए जाते हैं कि देश की जनता के समक्ष वह मुंह दिखाने के काबिल ना रहे.यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा करती है, यह सब जानते हैं.

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संसद में नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने कहा कि देश की जनता आपको पहचान गई है, कुछ लोग पहले पहचान गए, कुछ लोग अब पहचान रहे हैं और कुछ लोग आने वाले समय में पहचानने वाले हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह अच्छा होता कि सबके प्रयास के तहत देश ने जो कुछ हासिल किया है, उसे खुले मन से स्वीकार किया गया होता.

नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में प्रधानमंत्री की बहैसियत यह भी कह डाला की कांग्रेस पार्टी को किस किस सन से बिहार, गोवा आदि राज्यों की जनता ने नकार दिया है.

मगर सच यह है कि  विगत गोवा चुनाव में जिस तरह सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के विधायकों को रातो रात भाजपा में लाया गया क्या देश की जनता भूल गई है.

मोदी का झूठा आदर्श और पवित्रता

नरेंद्र मोदी ऊंची ऊंची बातें करते हैं मगर वैसे तनिक भी करते  दिखाई नहीं देते.

उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा कि कुछ लोग आपको पहचान गए हैं कुछ लोग पहले पहचान गए थे कुछ आने वाले समय में पहचान जाएंगे. अरे भाई साहब…! आपके ऊपर भी तो यह लागू होता है आप यह कैसे भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं संघ और भाजपा के बारे में बहुत पहले लोगों ने क्या-क्या कहा है तो लोग तो आपको भी जानते हैं…!

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास जी की बातों को सुनकर उद्वेलित

कांग्रेस के सदस्यों ने प्रधानमंत्री की इन टिप्पणियों पर आपत्ति जताना शुरू की तो उन्होंने पुनः कहा कि देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि सदन जैसी पवित्र जगह, जो देश के लिए काम आनी चाहिए, उसे दल के लिए काम में लेने का प्रयास हो रहा है. इसलिए हमें जवाब देना पड़ रहा है.

अब देश की जनता के लिए समझने की बात है कि जब विपक्ष कुछ कहता है तो संसद अपवित्र हो जाती है और यह कहते हैं तो मानो मुंह से गंगाजल छलकने लगता है और संसद पवित्र हो जाती है.

क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी को यह सब कहते हुए थोड़ा भी आभास नहीं होता की सारा देश उन्हें देख सुन रहा है, वह क्या सोचेगा!

नरेंद्र मोदी ने कहा कि बिहार की जनता ने आखिरी बार 1985 में करीब 37 साल पहले कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए वोट किया था, वहीं पश्चिम बंगाल के लोगों ने करीब 50 साल पहले 1972 में विपक्षी दल को पसंद किया था.

अब कांग्रेस और विपक्ष दोनों को एक दंता तवज्जो नहीं दे रही है और हम आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं हमारे सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं नरेंद्र दामोदरदास मोदी का कहने का तात्पर्य यही था.अब यह देश की आवाम को तय करना है श्रीमान मोदी की बातों में  कितना सार है.

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