दिल्ली सरकार ने 104 करोड़ रुपए खर्च कर के 75 तिरंगे झंडे 115 फुट ऊंचे खंबों पर लगवाए हैं और 500 इस तरह के झंडे लगवाने की योजना है. उद्देश्य है कि हर नागरिक को हर समय 2-3 झंडे दिखते रहे. वैसे तो देश भक्ति नागरिकों के मन में होने चाहिए पर जब किसी भी भक्ति को पागलपन की हद तक तो जाना हो तो उस का प्रदर्शन जरूर हो जाता है. अरङ्क्षवद केजरीवाल इन ऊंचे झंडों के माध्यम से देश प्रेम और देश व समाज के प्रति कर्तव्य नागरिकों के मन में जगा पाएं या नहीं पर अपना प्रचार जरूर कर लेंगे क्योंकि हर झंडे का उद्घाटन विधायक करता है और दिल्ली सरकार में आम आदमी पार्टी के विधायक तीन चौथाई से ज्यादा है.

झंडों से अगर देश भक्ति आती और देश व उस की जनता का कल्याण होता तो यह स्टंट स्वीकार्य होता पर दिक्कत है कि  चाहे आप के सिर पर 36 फुट लंबा और 24 फुट चौड़ा झंडा लहरा रहा हो, आपके पैर के नीचे की सडक़ न उस से पक्की गड्डे मुक्त होगी, न साफ होगी, न नाली ढग की बनेगी, न देखने वालों के  सही साफ हवा मिलेगी, न ट्रैफिक अनुशासन आएगा. तो फिर यह प्रतीकात्यक देश भक्ति किस काम की?

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हां, इतना लाभ जरूर है कि अब झंडों से ऊपर पौराणिक देवी देवताओं की मूॢतयां या उन के मंदिर कम दिखेंगे. यह लाभ होगा कि आप जहां हो वहां से आप को दानदक्षिणा लेने वाला मंदिर दिखे जरूरी नहीं रहेगा. राष्ट्रीय झंडा कम से कम जाति, धर्म के भेद तो बढ़ाएगा. भारतीय जनता पार्टी जो अपने देश का सारा पैसा विभाजन करने वाले और अपना भविष्य पूजापाठ पर सेंकने वाले मंदिरों, घाटों, तीर्थों पर लगा रही है. झंडों का जवाब देने में कुछ कठिनाई आएगी. यह नरेंद्र मोदी वाला मास्टर स्ट्रोक तो नहीं कर बहकाने की प्रतियोगिता में लगे नेताओं के प्रयासों में कम खर्चीला अवश्य है.

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