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इक विश्वास था

लेखिका- मनीषा जैन

मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.

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आप का, अमर.

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.

एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.

मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’

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‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’

‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’

‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.

‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.

‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.

‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.

अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’

वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.

‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा.

‘अमर विश्वास.’

‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’

‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.

‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.

‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.

उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.

‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.

‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’

‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’

वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.

कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.

दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.

मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?

मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.

शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.

मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.

‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.

मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.

अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.

इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.

मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है.

बिन चेहरे की औरतें: भाग 2

Writer- श्वेता अग्रवाल

‘‘वह अपने रैंट के अकोमोडेशन के पास आईआईटी होस्टल में लगे सिक्के वाले फोन से बात करती थी, जिस में हर बार 3 मिनट पूरे होने से पहले ही एक रुपए का सिक्का डालना पड़ता था, ताकि फोन बीच में न कटे. कभी उस के पास सिक्के खत्म हो जाते थे तो कभी कोई और उस के पीछे से आ कर उसे जल्दी बात खत्म करने के लिए बोल देता था. फिर भी औसतन हम दिन में आधा घंटा तो बात कर ही लेते थे. हमारे कौमन इंटरैस्ट के सब्जैक्ट्स पर उस की क्लीयर अप्रोच, स्ट्रेट फौरवर्ड स्टाइल और हाजिरजवाबी से मैं बहुत इम्प्रैस्ड होने लगा था.

‘‘जब भी मेरा मूड औफ होता या मैं थका होता, मेरी उस से बात करने की बहुत इच्छा होने लगती थी. उस की मीठी आवाज सुनते ही मेरी सारी थकान उतर जाती थी. लेकिन हमारी बात तभी होती थी, जब उस का फोन आता था. मेरा मन होने लगा था कि फोन बहुत हुआ, अब फेस टू फेस भी मिल लेना चाहिए, आखिर पता तो चले कि मोहतरमा दिखने में कैसी हैं. लेकिन जब भी मैं उस से मिलने के लिए कहता, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती.

‘‘कई बार तो मेरे ज्यादा जिद करने पर वह मिलने का टाइम और जगह भी फिक्स कर लेती, पर ऐन मौके पर उस का फोन आ जाता कि वह नहीं आ पाएगी. उस की इस हरकत पर मु?ो बहुत गुस्सा आता था. कई बार तो शक भी होता कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है. मगर जब उस का फोन आता तो वह इतनी मासूम बन जाती कि मैं उस पर नाराजगी भी जाहिर न कर पाता था.

‘‘‘आखिर तुम मु?ा से मिलने से क्यों बचती हो?’ एक दिन बातोंबातों में मैं ने उस से पूछ लिया.

‘‘‘जिस दिन मिलोगे, जान जाओगे,’’ उस ने शांति से जवाब दिया और दूसरे टौपिक पर बात करने लगी. मैं ने भी बात को ज्यादा नहीं खींचा. लेकिन मेरे मन में तरहतरह के सवालों ने घर बनाना शुरू कर दिया.

‘‘मु?ो उस की आदत सी हो गई

थी. जिस दिन उस का फोन

न आता, मैं बेचैन हो उठता. मेरी हालत जल बिन मछली जैसी हो जाती थी और जैसे ही उस का फोन आता था, मैं जैसे फिर से जी उठता था.

‘‘इसी तरह दिन बीतने लगे और देखते ही देखते 4 महीने गुजर गए. एक बार तो पूरे 2 हफ्तों तक उस का फोन नहीं आया. वह पखवाड़ा मैं ने कैसे काटा, मैं ही जानता था. कभी लगता कि मु?ा से कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई. कभी लगता कि वह किसी परेशानी में तो नहीं है. मैं सम?ा नहीं पा रहा था कि उस से कैसे कौन्टैक्ट करूं.

‘‘आखिर 15 दिनों बाद उस का फोन आया.

‘‘‘पहले यह बताओ कि इतने दिन फोन क्यों नहीं किया?’ उस के हैलो कहते ही मैं उस पर भड़क उठा.

‘‘‘सौरी, मैं फोन नहीं कर पाई,’ उस ने थके स्वर में जवाब दिया.

‘‘‘क्या मतलब, नहीं कर पाई?’ मेरा गुस्सा बढ़ता जा रहा था.

‘‘‘मतलब तो तुम ही बता सकते हो,’ वह मेरी ?ां?ालाहट का मजा लेते हुए बोली.

‘‘‘इस का यही मतलब है कि तुम्हें मु?ा से जरा भी प्यार नहीं है. मैं ही पागल हूं, जो तुम से…’ कहतेकहते मैं अचानक रुक गया. लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था.

‘‘‘मु?ा से क्या…?’ उस ने शरारत से पूछा.

‘‘‘कुछ नहीं,’ मैं बहुत शर्म सी महसूस करने लगा था.

‘‘‘बोलो न सुकू, मु?ा से क्या…?’ उस ने इसरार किया.

‘‘पर, मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन कट कर दिया. तुरंत ही फिर से उस का फोन आ गया.

‘‘‘अब क्या है?’ मैं ने बनावटी गुस्से से उस से पूछा.

‘‘‘मु?ो तुम से कुछ कन्फैस करना है,’ वह ?ि?ाकती हुई बोली.

‘‘मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था. मु?ो लगा कि शायद अब वह पल आ गया है जब वह अपने प्यार का इजहार करेगी.

‘‘‘कहो,’ मेरी आवाज थरथराने लगी.

‘‘‘पहले प्रौमिस करो कि सुन कर नाराज तो नहीं होओगे,’ वह बोली.

‘‘‘बोलो न, क्यों फालूत का सस्पैंस क्रिएट कर रही हो,’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘‘बात यह है कि हमारी दोस्ती किसी इत्तफाक की वजह से नहीं हुई,’ उस ने जैसे बम फोड़ा.

‘‘‘वाट, यह तुम क्या कह रही हो?’ मैं ने लगभग चीखते हुए पूछा.

‘‘‘प्लीज, शांति से मेरी बात सुन लो. इस के बाद तुम्हारा जो भी फैसला होगा, मु?ो मंजूर होगा,’ वह ?ि?ाकती हुई बोली.

‘‘मैं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उस के बोलने का इंतजार करने लगा.

‘‘‘हैलो,’ उधर से आवाज आई.

‘‘‘बोलो, मैं सुन रहा हूं,’ मैं ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘इस के बाद जयंती ने अटकतेअटकते जो बताया, उस का लब्बोलुआब कुछ यों था कि जिस दिन पहली बार उस का फोन आया था, उस से एक दिन पहले ही उस ने मु?ो एक आर्ट एग्जीबिशन में देखा था. मैं उसे बहुत अच्छा लगा था और वह पूरी गैलरी में मेरे आसपास ही घूमती रही थी. हालांकि मैं ने न तो उस पर कोई ध्यान दिया था और न ही उस की हरकतों पर.

‘‘जिस वक्त मैं विजिटर्स बुक में एग्जीबिशन के बारे में अपना कमैंट लिख रहा था, तब वह मेरे पीछे ही खड़ी हुई थी. मेरे हटने के बाद अपना कमैंट लिखतेलिखते उस ने विजिटिर्स बुक में लिखा मेरा नाम और फोन नंबर याद कर लिया था और अगले दिन रौंग नंबर के बहाने मु?ो फोन किया, जिस से हमारे बीच दोस्ती की शुरुआत हुई.

‘‘उस की बात सुन कर मेरी सम?ा में नहीं आ रहा था कि उस की इस चालाकी के लिए उस से दोस्ती तोड़ दूं या फिर उसे माफ कर के इस रिलेशनशिप को एंजौय करूं.

‘‘‘सुकू, क्या हुआ?’ वह मेरी खामोशी से परेशान हो उठी थी.

‘‘‘कुछ नहीं,’ मैं ने कहा और फोन काट दिया.

‘‘अगले दिन फिर उस का फोन आया और उस ने अपनी गलती के लिए मु?ा से माफी मांगी. तब तक मैं भी अपना निर्णय ले चुका था. जाहिर है कि मेरा फैसला हमारे रिश्तों के हक में ही था. क्योंकि दिल और दिमाग की जंग में एक बार फिर दिल ने दिमाग को शिकस्त दे दी थी.

‘‘मैं ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दी कि अगर वह सच न बताती तो मु?ो तो कभी इस बात का पता नहीं चल सकता था. कम से कम अपनी ईमानदारी के लिए तो वह माफी के लिए डिजर्व करती ही है.

‘‘मैं ने उसे माफ तो कर दिया था लेकिन अभी भी उसे ले कर मैं आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. बेशक, अब तक हम दोनों ही सम?ा चुके थे कि अब हमारे बीच का रिश्ता सिर्फ दोस्ती तक सीमित नहीं रहा है. इस के बावजूद मु?ो बारबार ऐसा लगता था कि कहीं यह सब एक छलावा ही साबित न हो. मैं प्रेम की इस डगर पर इतना आगे बढ़ चुका था कि पीछे लौटना असंभव था. इसलिए मैं ने अपना मन कड़ा किया और एक दिन उस से साफसाफ बोल दिया कि मैं उस की इस आंखमिचौली से तंग आ चुका था. अगर उसे मु?ा से रिश्ता रखना है तो सामने आ कर मिले, वरना मु?ो फोन न करे.

‘‘मेरी बात सुन कर जयंती कुछेक पल के लिए मौन हो गई. फिर उस ने कहा कि वह भी मु?ो इतना ही चाहती है, जितना कि मैं उसे. उस ने वादा किया कि वह 3 दिनों बाद वेडनेसडे को मु?ा से मिलने हमारे घर आएगी और इस से पहले मु?ो फोन नहीं करेगी. फिर उस ने मु?ो अपने औफिस का नंबर दिया और कहा कि यह उस के बौस का नंबर है. अगर बहुत अर्जेंट हो तो इस नंबर पर उस से बात की जा सकती है. इस के बाद उस ने फोन रख दिया.

लेखक की पत्नी: भाग 3

सोनाली बियर का एक बड़ा घूंट ले कर बोली, ‘‘अनु दीदी, आप को किताबें मिली हैं, सहाय साहब झूठ नहीं लिखेंगे.’’

अनु खामोश रही. नीबूपानी का घूंट ले कर मुंह बंद रखा.

‘‘अनु दीदी, सहाय साहब के साहित्यिक चरित्रों में अकसर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखती थी या आत्मघाती मौत मिलती थी. उन में यौन पिपासा भी प्रबल दिखती थी, इस का क्या कारण रहा होगा?’’

‘‘सोनाली, तुम क्या सूचित करना चाहती हो?’’ अनु ने सीधा सवाल किया.

‘‘मैं ने अपने अंतरंग दोस्त को पहचाना था. अब आप की मदद से सत्य तक पहुंचना चाहती हूं.’’

‘‘हमारे नातोंरिश्तों में ऐसी मौत किसी की नहीं हुई.’’

‘‘दीदी, माफ करना. मुझे लगता है, आप ने अपने पति को समझा नहीं, उन की प्रतिभा को जाना नहीं.’’

‘‘क्या कहती हो? उन का संवेदनशील स्वभाव मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ अनु तेज स्वर में चिल्लाई. उस का मन हुआ कि उसे एक चांटा रसीद करे किंतु अत्याधुनिक होटल और लोग देख कर चुप रह गई. फिर बढ़ते रक्तचाप को संयत करने के लिए नीबूपानी का एक घूंट गले के नीचे उतार कर खड़ी हो गई.

सोनाली ने उसे बैठने का इशारा किया और कुटिल हास्य बिखेर कर आगे बोली, ‘‘घर की मुरगी दाल बराबर होती है. पति की कीमत जानने के लिए खास नजर चाहिए. जान निछावर करनी पड़ती है, केवल साथ रहना काफी नहीं.’’

खाना लजीज था किंतु बातों की कड़वाहट असहनीय थी. कुछ सोच कर अनु बोली, ‘‘सोनाली, तुम्हारे पति से मुझे मिलना है.’’

‘‘जरूर, अपने पति को सहाय साहब के बारे में मैं ने इतना बताया है कि…’’

‘‘उन दोनों की मुलाकात कभी हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मेरे पति अकसर अपने व्यवसाय के टूर पर रहते हैं और ताश खेलना जानते तक नहीं. वे क्लब कभी नहीं आते.’’

‘‘और आप की मेरे पति से दोस्ती उन्हें पसंद थी.’’

‘‘कभी शक करते थे लेकिन उन के लिए सहाय साहब जैसा दोस्त मैं कभी नहीं छोड़ सकती थी. क्यों, बदला लेना है क्या?’’

‘‘बदला?’’

‘‘बदला नहीं, आसुरी आनंद,’’ सोनाली आगे बोली, ‘‘एक बार सहाय साहब ने कहा था, ‘पतिपत्नी शादी की तसवीर बड़ी करा कर शयनकक्ष में लगाते हैं, उस समय का वह आनंद, उत्साह, लगन, जवानी का जोश, नयापन वगैरह शीशे में बंद करते हैं, और वही भावना जिंदगीभर के लिए सुरक्षित कर आश्वस्त हो जाते हैं, किंतु वह भाव कब मिट जाता है, यह पता ही नहीं लगता.

‘‘‘स्त्री अपने गृहसंसार, बच्चों का पालन और जिंदगी के अनेक झंझटों में इस कदर फंस जाती है कि पति का दिलोदिमाग कब कैसा बदलता है, समझती ही नहीं. पुरुष बाहरी जगत में चलता रहता है. जहां राह में मोह, लालच, कपट, द्वेष का जाल फैला होता है वहां वह अनजाने ही फंस जाता है. ढीली डोर का फायदा उठा कर भटक जाता है पर स्त्री को पता ही नहीं चलता.

‘‘‘चाहतों के बदलेबदले तेवर उसे नजर नहीं आते. आदमी बदलते हैं, दिल बदलता है, यह जानने के लिए खुली आंखें चाहिए. अतिशय संवेदनशील मन चाहिए. कुंआरी मनोभूमि पर बोए हुए बीज फलित करने की, गर्भवती होने की ताकत चाहिए. यह जिस के पास है, वे पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं.

‘‘‘समय के साथ आदमी बदलता है, चेहरे बदलते हैं, सिर्फ नकाब पहन कर एक छत के नीचे रहना, हमबिस्तर होना और साथ जिंदगी जीना ही पर्याप्त नहीं.’’’ सोनाली का यह कथन और सहाय साहब का तथाकथित व्यक्तित्व सुन कर अनु की बोलती बंद हो गई. बिल चुका कर दोनों बाहर आईं.

‘‘क्या आप को घर छोड़ूं?’’

‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं. मैं चली जाऊंगी.’’

सहाय साहब की याद में दोनों जड़वत थीं. टैक्सी में बैठ कर अनु बोली, ‘‘आना घर, किताबें ले जाना.’’

सोनाली हंसी रोक न सकी. अनु के दिमाग में पिछले कई दिनों से जो आशंका थी, उलझन थी, धुंधला आवरण था वह स्पष्ट हुआ. पति के बदलते रूप को पहचाना नहीं, जाना नहीं, यह अनु ने स्वीकार किया. अपनी नजरों के आईने में बसे पति के रूप को शाश्वत समझी, बदलते रूप को पहचान न सकी, यह असमर्थता ही उस के दुख का कारण थी. दर्पण झूठ नहीं बोलता लेकिन चेहरे पर नकाब का चेहरा लगाए इंसान को पहचानने की ताकत चाहिए. मन भर आया. सोचा, यह क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ? हारे परिंदे जैसी जमीन पर आ गई. औरों की छत की धूप सहाय साहब को क्यों अच्छी लगी? गौरव लुट गया और वह जिस को अपना समझती थी, वह बेगाना हो गया. यह सब सोचसोच कर घृणा से उस का हृदय फटने लगा. दिवंगत बड़े लेखक की जीवनसंगिनी का यह खिताब खोखला लगने लगा.

अपने विगत जीवन पर दृष्टि डाली तो उसे लगा कि वह अब तक मरीचिका के पीछे ही भाग रही थी. उस की आंखों पर परदा पड़ा था जो अपनेआप को सहाय की पत्नी के रूप में अत्यंत सुखी समझती रही. जिसे गर्व था कि वह एक अर्धांगिनी हो कर अपनी गृहस्थी को सुचारु रूप से चला रही थी, उसी दांपत्यरूपी नाव में बहुत पहले से ही छेद हो गया था. और अब तो नाव लगभग कभी की डूब चुकी थी. उसे घोर कष्ट हुआ. लज्जा, अपमान के सागर में डूबतेउतराते सुबह तक दृढ़ निश्चय के साथ वह किनारे तक पहुंच गई. वह शयनकक्ष में आई. फोटो नीचे उतार कर उसे एक बार गौर से देखा. शीशे में शादी की वह यादगार तसवीर मढ़ी हुई थी. दिल टूट चुका था. इसलिए उस ने शीशे को भी चकनाचूर कर डाला. फोटो के अंदर से कागज का चित्र निकाल कर उस के टुकड़ेटुकड़े किए और जलती आग में फेंक दिए. फिर प्रतिभा को फोन पर बताया, ‘‘प्रतिभा, फौरन आ कर साहित्य भंडार ले जाओ, मैं भारत छोड़ कर बेटे के पास जा रही हूं.’’

Review: ‘‘जलसा- अधपकी कहानी व अधपके किरदार’’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्देशक: सुरेश त्रिवेणी

कलाकारः विद्या बालन, शेफाली शाह, मानव कौल, इकबाल खान, रोहिणी हट्टंगडी, विधात्री बंदी, गुरपाल सिंह, सूर्या काशी भाटला, श्रीकांत यादव, विजय निकम, त्रुशांत इंगले, इमाद, घनश्याम लालसा व अन्य.

अवधिः दो घंटे नौ मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: अमेजॉन प्राइम वीडियो

स्वार्थ, नैतिकता, सही, गलत और अपर्नी ईमेज पर आंच न आने देने के इर्द गिर्द बुनी गयी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘जलसा’’ लेकर फिल्मकार सुरेश त्रिवेणी आए हैं, जो कि 18 मार्च से ‘अमेजॉन प्राइम वीडियो’ पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में मशहूर चैनल की मशहूर पत्रकार माया मेनन (विद्या बालन) और उनके घर में खाना बनाने का काम करने वाली रूखसाना (शेफाली शाह) है. माया मेनन के घर में उनकी मां रूक्मणी ( रोहिणी हतंगड़ी) के अलावा लगभग दस साल का विकलांग बेटा आयुष मेनन (सूर्या काशी भाटला) भी रहता है.माया मेनन के पति आनंद (मानव कौल) ने एक रूसी औरत से दसूरी शादी कर ली है. आनंद कभी कभी माया के घर आकर बेट आयुष के साथ खेलते हैं. माया व रुखसाना के बीच अति विशस का संबंध है.

कहानी शुरू हाते है माया मेनन द्वारा अपने टीवी चैनल पर जज गुलाटी (गुरपाल सिंह) के इंटरव्यू लेने से  जज, माया के सवालों के जवाब देने से इंकार कर देते है. इसी तनाव में चैनल के सीईओ अमर (इकबाल खान) के साथ बैठकर देर रात तक माया मने न शराब पीती हैं. फिर रात में तीन बजे शराब के नशे में खुद ही तेज गति से गाड़ी चलाते हुए घर की ओर रवाना होती हं. रास्ते में उनकी गाड़ी से रूखसाना की 18 वर्षीया बेटी आलिया दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, जो कि चोरी से अपने प्रेमी के साथ घूमने निकली थी.माया मेनन गाड़ी रोक देखती है और उन्हे लगता है कि वह लड़की मर गयी,इसलिए वह चुपचाप घर चली जाती है.सुबह पता चलता है कि उनकी कार से घायल होने वाली लड़की रूखसाना की बटे थी.तब माया अस्पताल वहां पहुंचती हैं और फिर रूखसाना की बुरी तरह से घायल बेटी को इलाज के लिए बड़े अस्पताल ले जाती है.फिर इस हादसे की जांच शुरू होती है.

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रूखसाना सच जानना चाहती है कि कार चालक कौन था या थी? मगर पुलिस को इस सच तक पहुंचना नहीं है. पुलिस खुद रूखसाना और रूखसाना के पति को समझाना शुरू करती है कि वह ले देकर मामला रफा दफा कर दे. कहानी इसी तरह चलती है. इस बीच माया मेनन के चैनल की ट्रेनी पत्रकार रोहिणी (विधात्री बंदी) इस दुर्घटना की अपनी तरफ से जांच करती रहती है. अंततः कहानी एक मुकाम पर खत्म होती है, जिसमें कुछ भी रोचकता नजर नही आती.

लेखन व निर्देशनः

अति कमजारे कहानी व पटकथा के अलावा अति सुस्त फिल्म है.लेखक व निर्देशक को पत्रकारिता या अपराध की कोई समझ नजर नहीं आती. पूरी फिल्म में न वह पत्रकारिता के दृष्टिकोण को समझा पाए और न ही अपराध कथा को ही ठीक से विस्तार दे सके. हकीकत में एक ट्रेनी पत्रकार सीधे अपने संपादक से नहीं मिल पाती, मगर फिल्म में ट्रेनी पत्रकार तो सीईओ से आसानी से मिलती है.

जिसके पास किराए का मकान लेने के लिए पैसे नही है, वह कार या टक्सी में यात्रा करती है? इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक को समाज के रहन सहन की भी कोई जानकारी हो, ऐसा फिल्म देखकर नजर नहीं आता. माया का घर देखकर अहसास हो जाता ह कि उनकी क्या हैसियत है. माया मेनन के घर पर रूखसाना खाना बनाने का काम करती है. दिन भर वहीं रहती है. उसका पति भी फिल्मों में स्पॉटब्वॉय है.

इससे यह तो समझा जा सकता है कि रूखसाना को बहुत कम पैसे नहीं मिलते होंगे. इसके बावजूद फिल्म में रूखसाना का मकान जिस तरह की झोपड़पट्टी इलाके में दिखाया गया है, वह काल्पनिक लगता है.जबकि रूखसाना का पहनावा लगभग माया जैसा ही है. फिल्मकार ने अपनी फिल्म के माध्यम से मोरालिटी का मुद्दा उठाने का असफल प्रयास किया है. फिल्म के कुछ दृश्य देखने के बाद अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक को बाल मनोविज्ञान व मानवीय मनोविज्ञान की भी समझ नजर नहीं आती. फिल्म का नाम ‘जलसा’ क्यों है? यह भी समझ में नहीं आता. फिल्म में बेवजह रूढ़िवादिता से ग्रसित किरदारों के अलावा राजनीति, भ्रष्ट पुलिस को भर कर कहानी को टीवी सीरियल की तरह लंबा खीचा गया है. पर किसी भी किरदार में गहराई नहीं है. वहीं अमीर व गरीब के बीच भेद की बात भी की गयी है.

जबकि फिल्म दिखाती है कि रूखसाना का पूरा परिवार माया मेनन के परिवार के सदस्य जैसा है. यानी कि फिल्म में तमाम विरोधाभास हैं. पूरी फिल्म में नैतिकता या सामाजिक असमानता को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है. फिल्म का क्लायमेक्स भी सवाल छोड़ने के अलावा कुछ नहीं करता.यह एक बेहतरीन नारी प्रधान के अलावा भावनात्मक द्वंदों से युक्त फिल्म बन सकती थी. लेकिन लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियों के चलते फिल्म जटिल बनकर रह गयी है. जिससे दर्शकों का मनोरंजन तो नहीं मिलता मगर उनका सिरदर्द जरूर होता है.

फिल्म बहुत अधूरी सी लगती है. माया और उनके पति आनंद को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होती. आयुष किसी बीमारी से जूझ रहा है, यह भी पता नहीं चलता. माया की मां उनके साथ क्यों रहती है? ट्रेनी पत्रकार रोहिणी की महत्वाकांक्षा को लेकर भी फिल्म चुप है. वास्तव में कहानी के साथ साथ फिल्म के सभी किरदार भी अधपके हैं.

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अभिनयः

इमानदार छवि वाली पत्रकार, सख्त बॉस और एक विकलांग बेटे के समाने कमजारे मां, अपनी मां के सामने विद्रोही बेटी माया मेनन के किरदार में विद्या बालन ने न्याय करने का प्रयास किया है, पर उन्हें पटकथा से मदद नहीं मिल पाती. कई दृश्यों में वह ओवर रिएक्ट करते हुए नजर आती है. सच जानने के लिए प्रयासरत रूखसाना के किरदार में शेफाली शाह ने चुप रहकर अपनी आंखों के भावों से बहुत कुछ कहने का प्रयास किया है. मानव कौल ने यह फिल्म क्यों की? यह समझ से परे है. अन्य किरदार ठीक ठाक हैं.

कटरीना कैफ ने शादी के बाद यूं मनाई पहली होली, देखें Photos

बॉलीवुड स्टार कटरीना कैफ (Katrina Kaif) और विक्की कौशल (Vicky Kaushal) अक्सर सुर्खियों में छाये रहते हैं. वे अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करते रहते हैं. दोनों ने शादी के बाद पहली होली घर पर ही बेहद कलरफुल अंदाज में मनाई है. कटरीना कैफ ने इन तस्वीरों को इंस्टाग्राम पर शेयर किया है.

एक्ट्रेस की इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि कटरीना कैफ अपने सास-ससुर और देवर के साथ होली के रंग में डूबी नजर आ रही है. इन तस्वीरों में विक्की और कटरीना की फैमिली बेहद खुश नजर आ रही है. इन तस्वीरों में विक्की कौशल भी अपनी मां और पत्नी कटरीना कैफ के साथ पोज देते हुए दिखाई दे रहे हैं.

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कटरीना कैफ ने शादी के बाद पहली होली की झलक फैंस के साथ शेयर की है. बता दें कि विक्की कौशल और कटरीना कैफ ने बीते साल 9 दिसंबर 2021 के दिन शादी की थी. कटरीना कैफ अक्सर विक्की कौशल संग तस्वीरें शेयर करती रहती हैं.

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बता दें कि कटरीना कैफ जल्द ही सलमान खान के साथ फिल्म टाइगर 3 में नजर आने वाली है. इसके अलावा तो वहीं विक्की कौशल भी असारा अली खान के साथ एक अनाम फिल्म में नजर आने वाले हैं.

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तलाक की अफवाहों के बीच चारु असोपा ने शेयर कीं फैमिली फोटोज

टीवी एक्ट्रेस चारु असोपा (Charu Asopa) और राजीव सेन (Rajeev Sen) के बीच अनबन चल रही थी. बताया जा रहा था कि दोनों के बीच तलाक होने वाला है. लेकिन उन्होंने ऑफिशीयली तौर पर कुछ नहीं कहा. इसी बीच  राजीव सेन ने इंस्टाग्राम पर कई फैमिली फोटोज शेयर की है. इन फोटोज में वे अपनी पत्नी और बेटी के साथ नजर आ रहे हैं.

राजीव सेन ने इन फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, “जियाना की पहली होली अपने मम्मी और डैडी के साथ. सभी को होली की शुभकामनाएं. प्यार और रोशनी. परिवार को लंबे समय बाद एक साथ देखकर चारु और राजीव के फैंस काफी खुश हैं.

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चारु और राजीव सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. दोनों फैंस के साथ फोटोज शेयर करते रहते हैं. हाल ही में चारु ने ‘फूलों की होली’ खेलते हुए तस्वीरें भी पोस्ट की थी. ये कपल अलग-अलग फोटोज पोस्ट कर रहे थे और बताया गया था कि दोनों के बीच मतभेद चल रहा है.

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रिपोर्ट के अनुसार, चारु और राजीव फिर से असंगति के मुद्दों का सामना कर रहे थे. शादी के बाद से कपल के बीच कुछ ठीक नहीं रहा है. मीडिया के अनुसार, राजीव सेन से संपर्क किया  तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. चारु ने भी चुप रहने का फैसला किया लेकिन जवाब दिया.

 

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खबरों के अनुसार, चारू ने कहा,  मैं अब मुंबई वापस आ गई हूं. लेकिन मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. लेकिन इस तस्वीर को देखकर कहा जा सकता है कि इस कपल ने त्योहार के मौके पर अपने मतभेदों को सुलझा लिया है.

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होली और बलि

होली का त्यौहार, रंगों का और उत्साह के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है और इसी भावना के अनुरूप मनाया भी जाता है. मगर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इसमें भी “तंत्र मंत्र” और “साधना” को तव्वजो देते हैं. ऐसा करके अपना और दूसरों के जीवन को खतरे में डाल देते हैं.

होली में रंगों के साथ होलिका दहन भी परंपरा का आस्था का एक प्रतीक है. यह माना जाता है कि होलिका दहन सारी बुराइयों को खत्म करने का तरीका है.

इसे  कुछ कम अक्ल और मंदबुद्धि लोग तंत्र साधना का माध्यम समझ बूझ लेते हैं और किसी मासूम की बलि चढ़ा कर   काली जादुई शक्तियां प्राप्त करना इनकी जुगत में होता है. मगर अंततः कानून के हाथों पहुंचकर ऐसे लोग अपना आगे का जीवन जेल में बिताया करते हैं.

आइए! आज आपको हम देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में एक ऐसे घटना क्रम से रूबरू कराते हैं जिन्हें देख समझ पढ़कर आप आश्चर्य करेंगे कि आज के आधुनिक जमाने में भी होली उत्सव के इस त्यौहार के पीछे बलि आदि की कोई योजना बना सकता है.

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दरअसल, हर चीज का दो पक्ष होता है. होली के रंगीन पर्व के श्याह पक्ष की हकीकत यह है आज भी पिछड़े हुए इलाकों में इसे तंत्र साधना का बहुत बड़ा माध्यम माना जाता है.

देश की शीर्ष सिटी नोएडा जैसे विकसित सिटी में अगर कोई बलि चढ़ाने की योजना बनाने लगे तो यह कोई छोटी बात नहीं .

दरअसल, नोएडा के सेक्टर-63 थाना क्षेत्र के जारसी गांव में एक सात साल की बच्ची सीमा (काल्पनिक नाम) को उसके पड़ोसी ने कथित तौर पर होली उत्सव में बलि देने के लिए अपहरण कर लिया.

शिकायत मिलने पर इस मामले में  पुलिस ने सफलतापूर्वक देर रात जनपद बागपत में छापेमारी की और आरोपी व्यक्ति सहित दो को गिरफ्तार कर बच्ची को बचा लिया.  बताया जा रहा है कि होली वाले दिन बच्ची की बलि देने की तैयारी कर रखी थी .

एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी पुलिस अधिकारी के मुताबिक, बच्ची को अगवा करके ले जाते समय आरोपी की तस्वीर एक सीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी, जिसके बाद पुलिस  ने करवाई की. अपर पुलिस उपायुक्त जोन द्वितीय) इलामारन के मुताबिक  जारसी गांव निवासी एक व्यक्ति ने सोमवार को सेक्टर – 63 थाना पुलिस से शिकायत की थी कि उसकी भतीजी सीमा का एक अज्ञात व्यक्ति ने अपहरण कर लिया है. पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी और इस दौरान उसके हाथ एक सीसीटीवी फुटेज लगी.

सीसीटीवी फुटेज में आरोपी व्यक्ति बच्ची को अपने साथ ले जाते नजर आ रहा था. इलामारन के मुताबिक, पुलिस ने बच्ची को अगवा करने वाले शख्स की पहचान की और तीन पुलिस दल

बनाकर बागपत में देर रात छापेमारी की गई. उन्होंने बताया कि छापेमारी के दौरान पुलिस ने बच्ची को अगवा करने वाले सोनू बाल्मीकि और नीटु बाल्मीकि को गिरफ्तार कर लिया तथा उनके कब्जे से बच्ची को सकुशल मुक्त करा लिया. इलामारन के अनुसार, शुरुआती पूछताछ के के दौरान पुलिस को पता चला कि आरोपियों ने बलि देने के लिए बच्ची का अपहरण किया था. बच्ची की मेडिकल जांच करवाई जा रही है.

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धन की लालच और बलि का रिश्ता

देश में यह एक बड़ी विसंगति है कि अनेक महत्वपूर्ण पर्व चाहे दीपावली हो या होली के समय में कुछ ऐसी तंत्र साधनाओं की अफवाहें फैली हुई है जिस के फंदे में फंस करके कम अक्ल लोग अपराध करने से भी गुरेज नहीं करते.क्योंकि उन्हें यह समझाया जाता है कि ऐसा करते ही वे धनवान बन जाएंगे.

उन्हें इतनी समझ नहीं होती और ना ही कोई समझाने वालाकि अगर आप गलत तरीके से धन अर्जित करेंगे तो पुलिस का फंदा कानून से भला कैसे बच पाओगे.

और सबसे बड़ी बात यह है कि किसी की बलि देना यह एक क्रूरतम अपराध है जिसकी क्षमा ना तो आपको किसी दूसरी दुनिया में मिल सकती है और ना ही कानून की नजर से.

कानून के जानकार छत्तीसगढ़ बिलासपुर हाई कोर्ट के अधिवक्ता बी के शुक्ला के मुताबिक अक्सर होली, दीपावली आदि पर्व के समय में नरबलि की घटनाएं घटित हो जाती हैं अथवा पुलिस सतर्कता से आरोपियों को योजना बनाते हुए पकड़ लिया जाता है. यह अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण होता है. इसके लिए एक जन जागृति अभियान चलाना  आवश्यक है.

डॉक्टर गुलाब राय पंजवानी के मुताबिक आज के इस आधुनिक समय में भी बलि, नरबलि की घटना समाज के लिए कलंक से कम नहीं है. समाज को उसके लिए जागरूक होना होगा.

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इस संदर्भ में पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा कहते हैं छत्तीसगढ़ में भी ऐसी एक घटना की विवेचना उन्होंने की थी जिसका मूल उद्देश्य धन अर्जित करना था. मगर आरोपियों ने अपराध करके एक तरह से अपने जीवन का इतिहास काला कर डाला और लंबे समय तक जेल के सींखचों में रहे.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 3

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘पापा के आने के बाद हम लखनऊ पहुंचे. दीदी व जीजाजी मु झे तयशुदा लेडी डाक्टर के पास ले कर गईं. लेडी डाक्टर ने मेरा एग्जामिनेशन किया तो बोली, ‘अब बहुत देर हो गई है. बच्चा अब 4 माह का हो गया है. अबौर्शन कराना काफी रिस्की है. आप लोग फिर विचार कर लें. अगर आप चाहेंगे तो आप के रिस्क पर और लिखित ले कर ही मैं कोशिश करूंगी, किंतु किसी तरह के नुकसान की कोई गांरटी न लूंगी. जरूरत पड़ने पर औपरेशन भी करना पड़ सकता है.’ जीजाजी ने कहा, ‘आजभर हमें फिर विचार कर लेना चाहिए.’

‘दीदी बोलीं, ‘क्या विचार करना है. बच्चे को तो हम जन्म दे नहीं सकते.’

‘दीदी, जब अबौर्शन इतना रिस्की है तो मैं बच्चे को जन्म दूंगी, किसी अनाथालय में डाल दूंगी. यह तो हत्या होगी न, दीदी.’

‘पागल हो गई हो क्या. बच्चे में जाने किस का खून है. जोरजबरदस्ती वाले बच्चे कभी सही न होंगे. बच्चे में गुंडे का ही तो संस्कार आएगा.’

‘किंतु हमें बच्चे को साथ कहां रखना है. अनाथालय को ही देना है. फिर दीदी, क्या आप भी इस धारणा को मानती हैं कि सहवास के समय आंखें बंद कर लेने से बच्चा अंधा पैदा होगा.’

‘यह समय तर्कवितर्क का नहीं है, शैली. किसी के जीवन का है. किंतु अभी घर चलते हैं. वहां इस समस्या के समाधान का कोई रास्ता तलाशते हैं.’

‘हम लोग घर आ गए.

‘जीजाजी दीदी से बोले, ‘एक उपाय है. क्यों न हम इस बच्चे को खुद अपना लें. अब इतने बड़े भ्रूण को मारना हत्या ही तो होगी.’

‘दीदी थोड़ी देर चुप रहीं, अब उन्हें भी लगने लगा था कि अबौर्शन अब काफी रिस्की है. गलती होने पर शैली की जान जाने का भी खतरा है.

‘पर हम शैली के बच्चे को पैदा होने तक उसे रखेंगे कहां?’

‘दीदी ने पूछा तो जीजाजी बोले, ‘यह समस्या नहीं है. तुम मां को सम झा देना कि शैली को एक कोर्स करना है, इसलिए वह मलयेशिया गई है. 6 महीने से पहले न लौटेगी. आजकल किसी को किसी के जीवन से कोई संबंध रह नहीं गया है. कोई पड़ोसी कुछ पूछेगा नहीं. अगर किसी ने पूछ लिया तो बता देंगे, ‘प्रैग्नैंसी के कारण शैली यहां आ गई है. उस के पति अमेरिका चले गए हैं.’

‘ झूठ बोलोगे?’

‘सच ही बोलना था तो मां से क्यों सचाई छिपाई, थाने में उसी दिन इतला क्यों न कर दी?’

‘दीदी कुछ न बोलीं.

‘ऐसा ही किया गया. अस्पताल में मेरी जगह दीदी ने अपना नाम लिखवाया. पिता की जगह जीजा ने अपना नाम दिया. तुम ने जन्म लिया. कुछ दिनों तक तुम्हारे साथ रह कर मैं वापस मां के पास चली गई.

‘फिर मेरी शादी हो गई. इस बीच तुम्हारी एक बहन और एक भाई ने जन्म लिया. अब दोनों अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं. तुम्हारे मौसा बहुत प्यार करते हैं. किंतु मैं ने यह राज आज तक उन्हें नहीं बताया. दीदी और जीजा ने भी राज को राज ही रहने दिया.

‘बेटी, भले ही तुम्हें दीदी ने पाला किंतु मेरा दिल तुम से मिलने के लिए हमेशा ही बेचैन रहता था. जब कभी तुम बीमार होतीं, मैं तड़पने लगती. दीदी ने अपनी औलाद से ज्यादा तुम्हें प्यार दिया. मैं उन की ऋणी हूं. दीदी न होतीं तो तुम भी शायद न होतीं. दीदी ने भले ही तुम्हें जन्म न दिया हो, मां तो वही हैं. जीजाजी ही तुम्हारे पिता हैं.

‘बेटी, जीवन में सबकुछ नहीं मिलता. मैं तुम्हारे असली पिता को नहीं जानती. ऐसे वहशी को जेल की सलाखों में जगह होनी चाहिए थी, किंतु वह कई जिंदगियों को दुख और अवसाद में डाल कर आज तक छुट्टा घूम रहा है. वह कौन है, यह पता करने का अब कोई औचित्य नहीं.

‘मैं नहीं जानती ऐसे वहशी कब सम झेंगे कि उन का क्षणभर का यौनसुख कितनी सामाजिक विसंगतियां पैदा करता है. कितने घरों को उजाड़ता है. हम नारियां अब भी कितनी प्रताडि़त हैं.

‘यह तो मैं नहीं जानती कि हम ने उस पापी के विरुद्ध इत्तला न कर गलत किया था या सही. किंतु गलत भी किया था तो इस के पीछे कहीं न कहीं पुरुष मानसिकता ही दोषी है. अगर पुरुष की दृष्टि नारी के पक्ष में होती तो आज न वह हैवान खुला घूम रहा होता, न तुम्हें सारे समाज से छिपाने की जरूरत पड़ती.’

मां की दर्दभरी इस दास्तान ने मु झे पूरी तरह हिला दिया. मां ने न सिर्फ अपना दर्द बयान किया था, बल्कि पुरुष की उन शेखियों पर चोट पहुंचाई थी जो वह नारी की स्वतंत्रता के नाम पर बघारता है.

टुकड़ों में मिली अभिनेत्री की लाश

सौजन्य: मनोहर कहानियां

राइमा इसलाम शिमू बांग्लादेश की एक जानीमानी अभिनेत्री थीं. उन्होंने न सिर्फ 50 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, बल्कि 2 दरजन से अधिक नाटकों में भी काम कर दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. यह महज इत्तफाक की बात है कि जिन दिनों देश भर में अपने दौर की खूबसूरत और लोकप्रिय अभिनेत्री परवीन बाबी की जिंदगी पर बनी वेब सीरीज ‘रंजिश ही सही’ की चर्चा हो रही थी, उन्हीं दिनों बांग्लादेश की परवीन जितनी ही सैक्सी, लोकप्रिय और सुंदर एक्ट्रेस राइमा इसलाम शिमू की दुखद हत्या की चर्चा भी उतनी ही शिद्दत से हो रही थी.

फर्क सिर्फ इतना था कि परवीन बाबी की लाश उन के घर में मिली थी, जबकि राइमा की एक सड़क पर मिली थी. यह सड़क बांग्लादेश की राजधानी ढाका के केरानीगंज अलियापुर इलाके में हजरतपुर ब्रिज के नजदीक है, जो कालाबागान थाने के अंतर्गत आता है.

17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिली तो बांग्लादेश में सनाका खिंच गया क्योंकि वह कोई मामूली हस्ती नहीं थीं बल्कि घरघर में उन की पहुंच थी. अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर उन्होंने अपना एक बड़ा दर्शक और प्रशंसक वर्ग तैयार कर लिया था.

जिस हाल में राइमा की लाश मिली थी, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है.

इस हादसे ने एक बार फिर साफ कर दिया कि रील और रियल लाइफ में जमीनआसमान का फर्क होता है और आमतौर पर फिल्म स्टार्स, फिर वे किसी भी देश के हों, की जिंदगी उतनी हसीन और खुशनुमा होती नहीं जितनी कि उन के जिए किरदारों में दिखती है.

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यही राइमा के साथ हुआ कि हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का बेहद करीबी शख्स था और हत्या की वजह कोई अफेयर, पैसों का लेनदेन, कोई विवाद या नशे की लत या फिर कोई दिमागी बीमारी भी नहीं थी.

45 वर्षीय राइमा साल 1977 में ढाका के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थीं, जिन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था. ढाका से स्कूल और कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक्टिंग का कोर्स भी किया था.

19 साल की उम्र में ही उन्हें ‘बर्तमान’ फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था. निर्माता काजी हयात की इस कामयाब फिल्म से वह फिल्म इंडस्ट्री में पहचानी जाने लगीं.

फिल्म समीक्षकों ने तो उन की एक्टिंग को अव्वल नंबर दिए ही थे, दर्शकों ने भी उन्हें सराहा था. इस की वजह उन का ताजगी से भरा चेहरा और बेहतर एक्टिंग के अलावा उन की कमसिन अल्हड़पन और खूबसूरती भी थी.

पहली फिल्म कामयाब होने के बाद राइमा ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. देखते ही देखते उन्होंने बांग्लादेश के तमाम दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया. इन में इनायत करीम, शरीफुद्दीन खान, दीपू, देलवर जहां झंतु और चाशी नजरूल इसलाम प्रमुख हैं.

सभी छोटेबड़े निर्देशकों के साथ राइमा ने 50 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और टीवी पर भी अपना जलवा बिखेरा.

लोगों के दिलों में बसी थीं राइमा

छोटे परदे पर आना उन की व्यावसायिक मजबूरी भी हो गई थी, क्योंकि बांग्लादेश के लोग भी टीवी धारावाहिकों को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं. राइमा ने कोई 25 धारावाहिकों में एक्टिंग की, जिस से घरघर उन की पहुंच और स्वीकार्यता बढ़ती गई.

बांग्लादेश फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी बड़े नायकों के साथ उन्होंने काम किया. खासतौर से अमित हसन, बप्पाराज रियाज, शाकिब खान, जाहिद हसन और मुशर्रफ करीम के साथ उन की जोड़ी खूब जमती थी.

राइमा आला कारोबारी दिमाग की मालकिन थीं, इसलिए उन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस भी खोल लिया था. जिस के तहत कई टीवी सीरियल बने थे. अलावा इस के वह फिल्म पत्रकारिता भी ‘अर्थ कोथा द नैशनल बिजनैस मैगजीन’ के लिए करती थीं.

बहुमुखी प्रतिभा की धनी इस एक्ट्रेस को टीवी न्यूज चैनल एटीएन बांग्ला में सेल्स एंड मार्केटिंग में वाईस प्रेसिडेंट भी नियुक्त किया गया था. जल्द ही एक नामी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी टीएन इवेंट्स लिमिटेड के सीईओ की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई थी.

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इतना ही नहीं, उन्होंने बांग्लादेश में ही अपना ब्यूटी सैलून भी शुरू कर दिया था, जिस का नाम रोज ब्यूटी सैलून है. ढाका का ग्रीन रोड इलाका राइमा के घर की वजह से भी पहचाना जाने लगा, जो दर्शकों और प्रशंसकों की नजर में किसी मन्नत या जन्नत से कम नहीं था.

लेकिन कोई सोच भी नहीं सकता था कि लाखों लोगों का मनोरंजन करने वाली और दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली इस एक्ट्रेस की निजी जिंदगी किसी नर्क से कम बदतर नहीं थी और इस की वजह था उन का पति शखावत अली नोबेल, जो कभी उन पर जान छिड़का करता था. इन दोनों ने 16 साल पहले लव मैरिज की थी.

शौहर ही निकला कातिल

आम दर्शक इस से ज्यादा कुछ नहीं सोच पाता कि उस की चहेती एक्ट्रेस अपने महल जैसे घर के अंदर सदस्यों के साथ हंसखेल रही होगी, रोमांस कर रही होगी या फिर डायनिंग टेबल पर बैठी लंच या डिनर कर रही होगी.

और कुछ नहीं तो पति और बच्चों के साथ आंचल हवा में लहराते लौन के झूले पर झूलती गाना गा रही होगी. उस के इर्दगिर्द रंगबिरंगे फूल और चहचहाते पक्षी होंगे. सर के ऊपर नीला खुला आसमान होगा. लेकिन ऐसा कुछ भी कम से कम राइमा की जिंदगी में तो नहीं था.

पिछले कुछ दिनों से वह बेहद घुटन भरी जिंदगी जी रही थीं. आलीशान घर के अंदर कलह स्थायी रूप से पसर चुकी थी जिस से उन के दोनों बच्चे सहमेसहमे से रहते थे.

राइमा और शखावत कहने और देखने को ही साथ रहते थे और मियांबीवी कहलाना भी उन की सामाजिक मजबूरी हो चली थी. लेकिन रोजरोज की मारकुटाई और कलह आम बात हो चुकी थी.

यह सब कितने खतरनाक मुकाम तक पहुंच चुका था, इस का खुलासा 17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिलने के बाद हुआ. अंदर से टूटी और थकी हुई यह एक्ट्रेस 16 जनवरी को मावा एक शूटिंग के लिए गई थी. लेकिन देर रात तक वापस घर नहीं लौटी तो घर वालों को चिंता हुई क्योंकि राइमा का फोन भी बंद जा रहा था.

कालाबागान थाने में उन की गुमशुदगी की सूचना दर्ज हुई. एक रिपोर्ट राइमा की बहन फातिमा निशा ने भी लिखाई थी. पुलिस ने राइमा की ढुंढाई शुरू की, लेकिन देर रात तक कोई कामयाबी नहीं मिली तो मामला सुबह तक के लिए टल गया.

इस दौरान उन का भाई शाहिदुल इसलाम खोकान लगातार पुलिस वालों से बहन को ढूंढने की गुजारिश करते खुद भी राइमा की तलाश में इस उम्मीद के साथ लगा रहा कि कहीं से कोई सुराग मिल जाए. लेकिन उस के हाथ भी मायूसी ही लगी.

17 जनवरी की सुबह कुछ राहगीरों ने हजरतपुर ब्रिज के पास एक लावारिस संदिग्ध बोरे को देख इस की खबर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर जैसे ही बोरे को खोला तो उस में से बरामद हुई राइमा की लाश, जो 2 टुकड़े कर बोरे में ठूंसी गई थी.

गले पर चोट के निशान भी साफसाफ दिख रहे थे, जिस से स्पष्ट हो गया कि राइमा की हत्या हुई है और लाश को यहां फेंक दिया गया है. लेकिन हत्यारा कौन हो सकता है, यह सवाल पुलिस को मथे जा रहा था.

राइमा की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह फैली और फैंस जहांतहां इकट्ठा होने लगे. शव को पोस्टमार्टम के लिए सर सलीमुल्लाह मैडिकल कालेज भेज दिया गया.

पुलिस को शखावत पर शक तो था ही, लेकिन जैसे ही राइमा के भाई शाहिदुल इसलाम खोकान ने यह कहा कि शखावत एक ड्रग एडिक्ट है. वह अकसर मेरी बहन से कलह करता था. मैं ने उस की कार में खून देखा है. वह सुबह 8 से ले कर 10 बजे तक घर पर नहीं था. मुझे लगता है कि उसी दौरान उस ने राइमा की लाश फेंक दी.

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फिल्मों जैसा कत्ल

शाहिदुल की शिकायत पर पुलिस ने शखावत को घेरा तो बिना किसी ज्यादा मशक्कत के उस ने सच उगल दिया. अब तक राइमा के फैंस जगहजगह मोमबत्तियां ले कर उन की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने लगे थे.

सोशल मीडिया पर भी राइमा छाई हुई थीं. लोग श्रद्धांजलि देते राइमा के हत्यारे को गिरफ्तार करने की मांग और प्रदर्शन कर रहे थे.

हिरासत में लिए गए शखावत ने बगैर किसी खास चूंचपड़ के अपना गुनाह कुबूल लिया. उस के बयान की बिनाह पर 6 लोग और गिरफ्तार किए गए, जिन में उन का ड्राइवर और एक नजदीकी दोस्त अब्दुल्ला फरहाद भी था. फरहाद को शखावत ने फोन कर बुलाया था.

पूछताछ में पता चला कि शखावत और फरहाद ने राइमा की हत्या 16 जनवरी को ही कर दी थी. वक्त था सुबह 7 बजे का. इन दोनों ने राइमा की लाश बोरे में भर दी और उसे प्लास्टिक की डोरी से सिल दिया. यह काम इत्मीनान से बिना किसी अड़ंगे के हो सके, इस के लिए उन्होंने घर पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड को नाश्ता लेने भेज दिया था.

घटनास्थल से बरामद डोरी शखावत के गले का फंदा बनेगी, यह भी तय दिख रहा है क्योंकि जब पुलिस टीम घर पहुंची थी तो इस डोरी का पूरा बंडल वहां से बरामद हुआ था. जिस से शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी.

ये दोनों लाश को ठिकाने लगाने के पहले उसे मीरपुर ले गए थे, लेकिन वहां कोई उपयुक्त सुनसान जगह नहीं मिली तो वापस घर आ गए थे.

राइमा की लाश उन लोगों के लिए बोझ बनती जा रही थी. मीरपुर से वापसी के बाद दोनों रात साढ़े 9 बजे के करीब हजरतपुर ब्रिज पहुंचे और लाश वाले बोरे को वहीं फेंक दिया, लेकिन हड़बड़ाहट और जल्दबाजी में गलती से डोरी वहीं छोड़ दी, जो उन के खिलाफ एक पुख्ता सबूत बन गई.

लाश फेंकने के बाद घर आ कर दोनों ने सबूत मिटाने की गरज से कार को धोया और बदबू दूर करने के लिए उस में ब्लीचिंग पाउडर भी छिड़का. लेकिन इस के बाद भी खून के धब्बे पूरी तरह नहीं मिट पाए थे.

यानी राइमा शूटिंग पर गई है, यह झूठ जानबूझ कर फैलाया गया था, जिस से कत्ल को किसी हादसे में तब्दील किया जा सके या उस का ठीकरा किसी और के सिर फूटे, नहीं तो उसे तो ये लोग 16 जनवरी, 2022 को ही ऊपर पहुंचा चुके थे.

गलत नहीं कहा जाता कि मुलजिम कितना भी चालाक हो, कोई न कोई सबूत छोड़ ही देता है फिर शखावत और फरहाद तो नौसिखिए थे, जो यह मान कर चल रहे थे कि उन्होंने बड़ी चालाकी से अपने गुनाह को अंजाम दिया है, इसलिए पकडे़ जाने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होगा. कुछ दिन हल्ला मचेगा और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा.

पुलिस के सामने शखावत ने शरीफ बच्चों की तरह मान लिया कि राइमा से कलह के चलते उस ने उस का कत्ल किया, लेकिन हकीकत में वह अव्वल दरजे का शराबी और ड्रग एडिक्ट था, जो पत्नी को मार कर उस की सारी दौलत हड़प कर लेना चाहता था, जिस से ताउम्र मौज और अय्याशी की जिंदगी जी सके.

पर अब उसे जिंदगी भर जेल की चक्की पीसना तय दिख रहा है. हो सकता है अदालत कोई रहम न दिखाते हुए शखावत को फांसी की सजा ही दे दे, जिस का कि वह हकदार भी है.

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