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भाषाई फिल्में: हिंदी क्षेत्र में साउथ सिनेमा के जमते पैर

Writer-  रोहित

मुंबई के कट्टरपंथी और पुरातनी सिनेमा निर्माता तो सामाजिक चुनौतियों को लेने को तैयार नहीं हैं पर डबिंग के सहारे दक्षिण के निर्माता पिछड़ों व दलितों के इर्दगिर्द बनने वाली फिल्मों को 1970 के दशक के बाद एक बार फिर हिंदी परदे पर ला रहे हैं.

दौर था 70 के दशक का. देश में भारी उथलपुथल की स्थिति थी. लोगों में सरकार के कामकाज को ले कर निराशा थी. एक तरफ कम्युनिस्टों के प्रभाव में शहरों में मजदूर आंदोलन जोर पकड़ रहे थे, दूसरी तरफ कांग्रेस शासित सरकार के विरोधी खेमे लामबंद हो रहे थे.

यह वह समय भी था जब देश के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की आसमान छूती ऊंचाई का फिल्मी ग्राफ नीचे की तरफ गिर रहा था और सामानांतर रूप से अमिताभ बच्चन का फिल्मी ग्राफ तेजी से ऊपर बढ़ रहा था, क्योंकि उस समय नायक का सौफ्ट रोमांटिक होना काफी नहीं था, बल्कि प्रतिशोध लेना और विद्रोही स्वभाव होना पहली मांग थी. नायक कमजोर तबके का रिप्रैजेंटेशन करे और ताकतवर लोगों से न डरे, यह फिल्म की मूल मांग थी. यही कारण था कि 1972 में आई फिल्म ‘जंजीर’ ने अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन का टैग दिलवाया.

अमिताभ की कई फिल्में आईं जिन में नायक निचले तबके से था और फिल्म आम पब्लिक को अपील कर रही थी, उन से जुड़ी थी. ‘दीवार’, ‘नसीब’, ‘काला पत्थर’, ‘लावारिस’, ‘शोले’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘कुली’ जैसी कई फिल्में आईं. इन फिल्मों में अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन के कैरेक्टराइजेशन में दर्शकों के गुस्से व हताशा की आवाज थी, मानो निचले, पिछड़े, गरीब, मजदूरों के मनोभावों को डायलौग के रूप में अमिताभ बच्चन के मुंह से कहलवा दिया गया हो. यानी फिल्म देखते हुए दर्शक वह भाव महसूस कर रहे थे जो वे असल जीवन में कभी नहीं कर पाए हों, लेकिन करने की तीव्र उत्तेजना हो.

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ऐसा ही पिछले साल 2021 के अंत में रिलीज हुई क्षेत्रीय भाषाई तेलुगू फिल्म ‘पुष्पा पार्ट – 1’ में देखने को मिला. ठीक वही एंग्री तेवर नायक के हावभाव में आते हैं जो कभी अमिताभ बच्चन के कैरियर की नींव बनने में काम आए थे. यह फिल्म पुष्पाराज (अल्लू अर्जुन) नाम के एक मजदूर के बड़े सिंडिकेट माफिया बनने की कहानी दिखाती है, जिस में फिल्म के नायक पर नाजायज होने का ठप्पा लगा हुआ है, जिस के चलते उस की मां और उसे हर समय शर्मिंदा होना पड़ता है. उस का सपना दुनिया पर राज करने का है और सम्मान के लिए किसी के आगे भी नहीं ?ाकना चाहे उस का मालिक हो या बड़ा माफिया.

‘पुष्पा’ फिल्म ने कोविड पीरियड और मंद पड़े थिएटर बाजार में कमाई के बड़े आयाम खड़े कर दिए. दक्षिण भारत में फिल्म ने अच्छा कारोबार किया ही, साथ में उत्तर भारत में भी फिल्म ने अच्छीखासी कमाई कर डाली, वह भी तब जब सामने भारी शोशा वाली फिल्म ‘83’ खड़ी थी, जिसे फिल्म ‘पुष्पा’ ने अपने से काफी पीछे धकेल दिया. हिंदी पट्टी में आ कर हिंदी मूल की बड़ी फिल्म को पटखनी देना बड़ी बात है. सब से बड़ी बात जो हुई इस फिल्म के साथ वह यह कि इस ने अब 2022 के लिए एक बड़ी बहस छेड़ दी है और यह बहस बौलीवुड की सुप्रीमेसी के खात्मे की है और क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्री, खासकर दक्षिण सिनेमा के उत्थान की है.

दक्षिण भारत का सिनेमा सामूहिक रूप से तेलुगू, तमिल, मलयालम और कन्नड़ सिनेमा के 4 अलगअलग फिल्म उद्योगों को रिप्रैजैंट करता है, जो पूरी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का लगभग 40 प्रतिशत रैवेन्यू जनरेट करता है. इस में कोई शक नहीं कि पिछले 2-3 सालों में इस ने अपना रैवेन्यू प्रतिशत बढ़ाया ही होगा.

मीडिया कंसल्ंिटग फर्म ओरमेक्स इंडिया के सीईओ शैलेश कपूर कहते हैं, ‘‘अक्तूबर 2020 से मार्च 2021 के बीच जब थिएटर ओपन थे, तब साउथ की फिल्में धड़ाधड़ रिलीज हो रही थीं, जबकि उस दौरान हिंदी क्षेत्र की फिल्में सही समय के इंतजार में थीं. उन के निर्माता फिल्म रिलीज करने से बच रहे थे.’’ उन्होंने अनुमान लगाया कि 2022 तक रीजनल सिनेमा 50 प्रतिशत बौक्स औफिस कलैक्शन पर कब्जा जमा लेगा, वहीं हौलीवुड का रैवेन्यू 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा और यह सिर्फ बौक्स औफिस कलैक्शन का ही नहीं, बल्कि सदर्न चैनल हिंदी पट्टी के चैनलों के मुकाबले मजबूत होंगे.

ऐसा सिर्फ ‘पुष्पा’ सरीखी एक फिल्म के प्रति लोगों या जानकारों के रु?ान की बात नहीं, पिछले कुछ सालों से खासकर कोविड महामारी के बाद, साउथ सिनेमा निरंतर हिंदी पट्टी पर खुद को एक्सपैंड कर रहा है, दर्शकों के बीच जगह बना रहा है और दर्शकों में साउथ सिनेमा का क्रेज बनता दिख भी रहा है, जो लगातार उत्तर भारत के हिंदी क्षेत्र की इंडस्ट्री से एक सवाल पूछ रहा है कि आगे आने वाले समय में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में कौन बड़े भाई का किरदार निभाएगा?

ऐसा सवाल इसलिए खड़ा हो गया है क्योंकि पिछले कुछ समय से साउथ और नौर्थ सिनेमा में तीखी बैटल देखने को मिल रही है. हिंदी सिनेमा का एकक्षत्रीय राज हिंदी बैल्ट पर कम होता जा रहा है या यह कह सकते हैं कि इस में रीजनल, खासकर साउथ सिनेमा एक बड़े हिस्सेदार के तौर पर उभर गया है.

यह आंकड़ा हैरान करता है कि हाल ही में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में रिलीज हुई 11 ब्लौकबस्टर फिल्मों में 2 हिंदी क्षेत्र की थीं, बाकी 9 साउथ सिनेमा की थीं. हिंदी क्षेत्र की 2 में से एक रोहित शेट्टी की ‘सूर्यवशीं’ थी जोकि साउथ सिनेमा से निकली सूर्या स्टारर ‘सिंघम’ फिल्म का अपडेटेड या इंस्पायर्ड वर्जन थी. जबकि बड़े स्केल की फिल्मों के साथ ही साउथ की छोटीछोटी बजट की फिल्मों को भी काफी सराहा जा रहा है. इस में ‘जय भीम’, ‘मिन्नल मुरूली’, ‘करनन’ जैसी फिल्में शामिल हैं.

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क्यों पसंद की जा रही हैं साउथ इंडियन फिल्में

इस बैटल में एक फायदा साउथ के लिए इस तौर पर आंका जा सकता है कि उस के लिए हिंदी पट्टी में खोने को कुछ नहीं है. उसे राम के अश्वमेध घोड़े की तरह खुले मैदान में दौड़ लगानी है जिस का मतलब आगे सबकुछ पाना ही है. जबकि हिंदी क्षेत्र में आपसी तोड़फोड़, लोगों में खान, कपूर और जौहर विरोधी भावनाएं, नैपोटिज्म की बहस इसे बैकफुट पर धकेल रही हैं.

लेकिन इस से अलग जो बुनियादी चीज है वह यह कि आखिर क्यों साउथ सिनेमा को नौर्थ इंडिया में इतना पसंद किया जा रहा है? दरअसल 1970 की तरह आज का पिछड़ा और दलित कामगार वर्ग फिर से कसमसाने लगा है. आज धर्म से सपोर्टेड जाति की राजनीति उन्हें आगे बढ़ने नहीं दे रही. यह तबका पढ़लिख तो चुका है, पर अपनी स्थिति को ले कर एक खी?ा इस वर्ग के अंदर उभर रही है, जिस का असर फिल्मों के पसंद में भी दिखाई दे रहा है. मौजूदा स्थिति को ले कर जो गुस्सा और भाव

70 के दशक में दर्शकों के मन में था वह फिर से उभर रहा है, जिसे ‘पुष्पा’ फिल्म की सफलता से आंका जा सकता है.

इस में एक जवाब इस रूप में भी सामने है कि विशेष रूप से तमिल और तेलुगू सिनेमा ने अपने दर्शकों को अलगथलग नहीं किया है कि जब वे दर्शकों के लिए बड़ा जाल बुनते हैं, उन के जीवन के पहलुओं को नाटकीय रूप में परोसते हैं. वे उन बिंदुओं को परदे पर दिखाते हैं जिन के बारे में दर्शक सोच सकते हैं लेकिन करना उन के वश में नहीं, जैसे पारिवारिक रिश्तों की अहमियत फिल्म में कहीं न कहीं फिट कर दी जाती है, अपने एथिक्स को ऊपर रखा जाता है. ऐसी बहुत कम सुपरस्टार अभिनीत दक्षिण फिल्म होंगी जो खास दर्शकों के लिए बनाई गई हों. आप रजनीकांत की फिल्म ‘काला’, ‘दरबार’ या ‘काबली’ देख सकते हैं या थालापति विजय की ‘मास्टर’, ‘बीस्ट’ या ‘बिजिल’ देख सकते हैं, या हाल ही में बनी सूर्या की ‘जय भीम’, ‘सूराराई पोत्रू’ और टोबिनो की ‘मिन्नल मुरूली’ हों.

वहीं दूसरी तरफ हिंदी सिनेमा से निचले तबके का आम आदमी खुद को अलगथलग महसूस कर रहा है. इस के अलावा बौलीवुड का निर्देशन स्टाइल वैस्टर्न से ज्यादा प्रेरित नजर आ रहा है, जो क्रीमी लेयर या मल्टीप्लैक्स औडियंस के मतलब की फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज कर रहा है. इस का तार्किक कारण यह भी हो सकता है कि इस समय बौलीवुड में इंग्लिश मीडियम निर्देशकों का बड़ा धड़ा विदेश से सिनेमाई पढ़ाई कर के इस इंडस्ट्री में आ रहा है, फिल्मों में भले ही कमी न हो लेकिन उस की स्टोरीटेलिंग से दर्शक खुद को जुदाजुदा महसूस कर रहे हैं.

फिल्म ट्रेड एनालिस्ट अक्षय राठी कहते हैं, ‘‘बौलीवुड मल्टीप्लैक्स दर्शकों के लिए फिल्में बना रहा है. इस में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन हम सिंगल स्क्रीन, मास बैल्ट, हार्टलैंड को भूल रहे हैं. इसलिए वे दक्षिण भारतीय फिल्मों को ले रहे हैं.’’ अब जाहिर है अगर दर्शकों को अपने मतलब का सिनेमा नहीं दिखेगा तो वह अपने मतलब का सिनेमा कहीं से भी ढूंढ़ लेंगे, खासकर ऐसे समय में जब उन तक पहुंचने के अनेक माध्यम आज सब के पास मौजूद हैं.

हालांकि फिल्म ‘पुष्पा’ से पहले 2015 में आई ‘बाहुबली’ ने बौलीवुड के लिए पहले ही खतरे की घंटी बजा दी थी, लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि इस खतरे की शुरुआत ‘बाहुबली’ जैसी कल्ट फिल्म से नहीं, बल्कि 2003 में गुणाशेखर द्वारा निर्देशित ‘ओक्काडू’ से हो गई थी. वह साउथ फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक गेम चेंजर फिल्म साबित हुई, जिस में तेलुगू सुपरस्टार महेश बाबू मुख्य भूमिका में थे. फिल्म ने पैसे तो कमाए ही, साथ ही वह फिल्म कई भाषाओं में बनी, जिस का हिंदी रीमेक हमें 2015 में आई ‘तेवर’ के रूप में दिखाई दिया, हालांकि इस फिल्म का बिजनैस ज्यादा खास नहीं रहा.

फिल्म ‘ओक्काडू’ के बाद भारतीय सिनेमा में वह समय आया जब बौलीवुड भी साउथ की फिल्मों की रीमेक करने लगा था, जो बौक्स औफिस में खासा कामयाब भी हो रही थीं. इन में सलमान खान की ‘वांटेड’ फिल्म को कौन भूल सकता है, जो 2006 में आई महेश बाबू स्टारर तेलुगू फिल्म ‘पोक्किरी’ की रीमेक थी, जिस ने सलमान खान के कैरियर को फिर से रिवाइव किया था और उन्हें पूरे देश के ‘भाईजान’ का टैग दिलवाया था. इसी तरह 2006 में ही आई रवि तेजा की फिल्म ‘विक्रमाकुडू’ की रीमेक बनी अक्षय कुमार की फिल्म ‘राउडी राठौर’, 2008 में राम चरण की ‘रेडी’ बनी सलमान खान की ‘रेडी’, मलयालम फिल्म ‘रामोजी राव स्पीकिंग’ बनी ‘हेराफेरी’ और ‘मणिचित्राथा?ा’ बनी ‘भूलभूलैया’. इस की फेहरिस्त काफी लंबी है.

बौलीवुड के लिए दूसरा बड़ा ?ाटका तब आया जब साउथ की फिल्में 2010 के बाद धड़ल्ले से हिंदी में डब होने लगीं. जाहिर है, भाषा की सीमाओं में बंध कर दक्षिण का उत्तर से सीधा संबंध बन नहीं पाता था, सिवा इस के कि उत्तर के कलाकार दक्षिण में काम करें (जोकि कैरियर खत्म होने और शर्मिंदा वाली बात मानी जाती थी) और दक्षिण के कलाकार उत्तर में. लेकिन जैसे ही फिल्में डब हुईं, इस ने भाषा का बांध तोड़ दिया और दर्शकों के बीच साउथ की डब फिल्मों का दौर चल पड़ा.

साउथ फिल्मों का बोलबाला

लोगों को हर रोज सोनी मैक्स पर तेलुगू फिल्म ‘शिवाजी द बौस’, नागार्जुन की ‘मास’ जैसी कई फिल्में देखने को मिलती रहीं. यह संयोग नहीं है कि शुरुआत उन चर्चित दक्षिण के कलाकारों से हुई जिन की शुरू में फिल्में हिट हुईं और जिन्हें उत्तर भारत में पहले से ही पहचान हासिल थी. रजनीकांत जो पहले से जानेपहचाने चेहरा थे, उन के साथ मिल कर निर्देशक शंकर ने ‘शिवाजी द बौस’ फिल्म बनाई थी, जिस ने साउथ में धुआंधार कारोबार किया था. उस ने साल के कई बौक्स औफिस रिकौर्ड तोड़ डाले थे. हिंदीभाषी राज्यों के लोगों को इस फिल्म ने काफी आकर्षित किया. इसी तरह 2007 में आई बड़े बजट की कमल हासन की फिल्म ‘दसअवथारम’ थी.

रजनीकांत की पैन इंडिया पौपुलैरिटी को देखते हुए निर्देशक शंकर ने फिर से रजनीकांत के साथ कोलाबोरेट कर 2010 में एक बड़े स्केल की मसाला फिल्म एथिरन (रोबोट) बनाई, जिसे हिंदी के अलावा तेलुगू और कन्नड़ में रिलीज किया गया. जिस ने उस साल सब से ज्यादा बिजनैस किया. कहा जाता है कि रजनीकांत की पौपुलैरिटी को देखते हुए इस फिल्म के लिए उस समय रजनीकांत को बौलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख खान से ज्यादा पेमैंट मिला था.

ठीक इसी तरह एस एस राजामोली की भव्य फिल्म ‘मगधीरा’ भी बड़े स्केल पर बनी, जिस ने तेलुगू बौक्स औफिस में काफी कमाई की. यह फिल्म उस साल की हाईएस्ट ग्रौसर फिल्म बनी. ऐसे ही मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार मोहनलाल की फिल्म ‘पुली मुरगन’ और ‘लूसिफर’ ने भारी कमाई की. इसी तरह निष्क्रिय पड़ा कन्नड़ सिनेमा बाजार ‘केजीएफ पार्ट  1’ के बाद बड़े स्केल पर खुलने लगा. जैसेजैसे मार्केट एक्सपैंड होता गया, तेलुगू और तमिल मसाला फिल्मों को बड़े स्केल पर लाया जाने लगा, साथ ही फिल्मों को हिंदी में डब भी किया जाने लगा.

आज इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि साउथ सिनेमा के कई कलाकार, बौलीवुड के बड़े कलाकारों जितने उत्तर भारत में पौपुलैरिटी हासिल करने में कामयाब हो चुके हैं. सोने पर सुहागा ओटीटी ने कर दिया है, जिस ने रीजनल सिनेमा को घरघर पहुंचाने का काम किया. इस में काम करने वाले नायकनायिकाओं को पहचान हासिल हो रही है. यही कारण है कि तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री से अल्लू अर्जुन, प्रभाष, महेश बाबू, जूनियर एनटीआर, रवि तेजा, राम चरण, विजय देवराकोंडा, रश्मिका, अनुष्का इत्यादि का जबकि तमिल से अजिथ, सूर्या, धनुष, विजय सेथुपथी, प्रकाश राज, विक्रम इत्यादि और मलयालम से मोहनलाल, ममूटी, दिलीप, टोविनो थौमस, फहाद फाजिल इत्यादि का उत्तर भारत के दर्शकों के बीच में क्रेज देखा जा सकता है.

इस के अलावा जिस बात का जिक्र पहले किया गया था कि उत्तर भारत का जो कलाकार पहले साउथ की फिल्म में काम करने से हिचकता था, वह उसी शर्त पर नीचे काम करने जाता था जब उस का कैरियर उत्तर में खत्म होने को होता था या उसे काम नहीं मिल रहा होता था. आज दक्षिण के कलाकारों का उत्तर में आने की तुलना में, ढेरों उत्तर भारत के कलाकार साउथ में काम करने जा रहे हैं. कई बड़े नाम पहचान वाले भी हैं, जिन में अगर तुरंत नाम एड किया जाए तो एसएस राजामोली की आने वाली फिल्म ‘आरआरआर’ है जिस में अजय देवगन और आलिया भट्ट भी भूमिका में हैं. वहीं, ‘केजीएफ पार्ट 2’ में रवीना टंडन और संजय दत्त जैसे नामी कलाकार शामिल हैं. ऐसे ही कई साउथ के कलाकार भी नौर्थ की फिल्मों में अपनी अच्छी जगह बना रहे हैं.

अब इसे एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा कहा जाए या बौलीवुड पर मंडराता खतरा, जो भी है, पर हिंदी सिनेमा के पास भी उसी प्रकार का भरपूर मौका है कि वह भी साउथ में अपनी फिल्मों को एक्सपैंड करे, ताकि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अपनी पूरी क्षमता के साथ कारोबार कर सके और रैवेन्यू जनरेट करे.

पंच प्यारे बनेंगे सियासी शतरंज के नए सितारे

01इतिहास खुद को दोहराता है. 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत के साथ 414 सीटें मिली थीं. देश में इतना प्रबल बहुमत पहले किसी पार्टी को नहीं मिला था. ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि वाले राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. लोकसभा में विपक्ष के पास केवल 130 सीटें थीं. इन में से भाजपा के पास केवल 2 थीं. 3 वर्षों के बाद ही कांग्रेस से निकल कर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाला का मुद्दा उठा कर 1989 के लोकसभा चुनाव में अपनी सरकार बना ली. गैरकांग्रेसवाद के नाम पर विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ अलगअलग राजनीतिक विचारधारा और क्षेत्र के वामपंथी व दक्षिणपंथी पार्टियां यानी भाजपा एक मंच पर आ गई थीं.

2024 में इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है. इस बार मुद्दा गैरभाजपावाद का है. ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन भले ही अलगअलग पार्टी व विचारधारा के हों पर इन के आपस में मिलने पर परेशानी नहीं है.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को ममता बनर्जी ने समर्थन दिया. लखनऊ के 19 विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा कार्यालय में ममता बनर्जी ने मंच से फुटबौल उछाल कर ‘खेला हौबे’ का नारा देते देश की राजनीति के भविष्य की नींव रखते कहा, ‘‘आप यूपी से भाजपा को हटाओ, हम 2024 में दिल्ली से हटा देंगे. अगर भाजपा रही तो देश खत्म हो जाएगा.’’ उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव के बहाने ममता ने 2024 की अपनी रणनीति का खुलासा करते कहा कि धर्मनिरपेक्ष सोच के दलों को एक मंच पर आना होगा.

मुद्दा बन रहा गैरभाजपावाद

देश की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है. गैरकांग्रेसवाद की लड़ाई अब गैरभाजपा में बदल गई है. 2014 के बाद वोटबैंक की राजनीति ने धर्म के नाम पर जिस तरह से आपस में दूरियां पैदा की हैं उस से देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान हुआ है. वहीं, विपक्ष को पूरी तरह से खत्म करने के लिए देश की सवैंधानिक संस्थाओं का प्रयोग किया जा रहा है जो इमरजैंसी युग की याद दिलाता है.

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जिन प्रदेशों में गैरभाजपाई सरकारें हैं उन के सामने मुश्किलें पैदा की जा रही हैं. पिछले 8 वर्षों में पूरे देश में सत्ता के खिलाफ बोलने वाले पर राजद्रोह तक के मुकदमे लाद दिए गए. विपक्ष के नेताओं की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा की आईटी सैल द्वारा मिथ्या प्रचार किया गया, जिस से विपक्षी नेता जो भी बोलें उस को जनता गंभीरता से न ले.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘पप्पू,’ समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव को ‘टोटी चोर,’ ममता बनर्जी को मुसलिमपरस्त, उद्धव ठाकरे के खिलाफ नशे की मुहिम और स्टालिन के खिलाफ वंशवाद का आरोप लगा कर प्रचार किया गया. इस का मकसद यह है कि जनता इन नेताओं की कही बात को गंभीरता से न ले.

भाजपा इन पंच प्यारे यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन को हर तरह से पीछे ढकेलने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. उस का कारण यह है कि ये नेता आने वाले सालों में देश की राजनीति को बदलने का दमखम रखते हैं. उस की वजह यह है कि ये नेता अपनेअपने प्रदेशों में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. इन के राजकाज करने का तरीका बेहतर है. ये अमीर लोगों की जगह देश के गरीब समाज को सामने रख कर योजनाएं बनाते हैं.

अखिलेश यादव ने साधा उत्तर प्रदेश

देश के सब से बड़े प्रदेश में भाजपा को अकेले अखिलेश यादव से लड़ने में छक्के छूट रहे हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा बड़ी जीत की उम्मीद कर रही है. उस की योजना है कि वह न केवल अपनी सरकार बनाए बल्कि 350 से अधिक विधानसभा की सीटें जीत कर यह बता दे कि जनता उस के साथ है.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरने की पूरी योजना बना ली है. अखिलेश यादव ने भाजपा के अंदर सेंधमारी कर के उन के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर और कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़ लिया है. अखिलेश यादव के दबाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल नेता चौधरी जयंत सिंह के साथ जिस तरह से विधानसभा चुनाव लड़ने का चक्रव्यूह तैयार किया उसे भेद पाने में भाजपा असफल हो रही है. राज्य के पश्चिम इलाके को उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रवेशद्वार कहा जाता है. पहले चरण का मतदान यहीं पर हुआ है. अखिलेश और जयंत यहां ‘दो लड़कों की जोड़ी’ के नाम से मशहूर हो गए हैं.

यही नहीं, अखिलेश यादव ने बाकी प्रदेश के लिए भी अलगअलग चुनावी रणनीति तैयार कर ली है. जनता का समर्थन जिस तरह से उन को मिल रहा है वह बेहद महत्त्वपूर्ण है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लखनऊ आईं और अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का समर्थन समाजवादी पार्टी को दिया. यहां से देश की राजनीति में बदलाव का रास्ता खुलता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव केवल भाजपा के लिए ही नहीं, पूरे विपक्ष के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है.

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ममता की लड़ाकू छवि बनेगी सहारा

तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि जमीन से जुड़ी लड़ाकू नेता की है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की ‘चतुर्णी सेना’ का मुकाबला जिस तरह से ममता ने किया उस से विपक्षी दलों के तमाम नेताओं के अंदर एक हौसला बढ़ा.

ममता बनर्जी ने कुशल सेनापति के रूप में चुनाव का पूरा संचालन किया और फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहीं. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह से भाजपा में तोड़फोड़ की, वह उन की हिम्मत को ही दर्शाता है. ‘दो मई आई, दीदी गई’ का नारा देने वाली भाजपा को ममता ने पश्चिम बंगाल से खदेड़ने का काम किया. ममता विरोधी दलों की मुख्य धुरी बन गई हैं. राष्ट्रीय स्तर पर शरद पवार के बाद ममता बनर्जी अकेली ऐसी नेता हैं जो सभी दलों और नेताओं के बीच अच्छे संबंध रखती हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के सामने वे सब से बड़ा चेहरा होंगी. ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतने में सफल रही हैं. इस के अलावा वे केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं. राज्य से ले कर देश के स्तर पर सरकार चलाने का अनुभव उन के पास है. अगर विपक्ष का साथ उन को मिला तो वे नरेंद्र मोदी के सामने सब से प्रमुख चेहरा बनेंगी. ममता बनर्जी हर दल के साथ तालमेल कर सकती हैं. देश की राजनीति में बदलाव करने वाले ‘पंच प्यारे’ नेताओं राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन में ममता बनर्जी सब से ज्यादा लोकप्रिय भी हैं. जरूरत इस बात की है कि गैरभाजपाई दल इस दिशा में सही योजना बना कर काम करें.

राहुल की मुखर और बुलंद आवाज

भाजपा के लाख प्रयासों के बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मुखर और बुलंद आवाज लोगों को पसंद आ रही है. संसद से ले कर सड़क तक राहुल गांधी को लोग सुनते हैं. राहुल गांधी की बातें तथ्यों/आंकड़ों पर आधारित होती हैं. इसी कारण ये भाजपा को चुभती हैं. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सब से बड़ी पार्टी है. उस के नेता की आवाज को देश ही नहीं, विदेशों तक में सुना जाता है. राहुल गांधी के पास देश चलाने और सभी वर्गों को साथ ले कर चलने का दृष्टिकोण भी है. कांग्रेस की दिक्कत है कि आज उस के पास मजबूत संगठन नहीं है. उस का वोटबैंक छितर गया है. कांग्रेस पहले गठबंधन की राजनीति नहीं करना चाहती थी. सोनिया गांधी ने कांग्रेस की इस सोच को बदला और यूपीए बना कर गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाया, जिस के सहारे 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव जीते भी.

10 वर्षों बाद 2024 में एक बार फिर से कई दल एकजुट हो कर भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सकते हैं. इन में से कई दल चुनाव के बाद भी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं. भाजपा के हिंदुत्व का मुद्दा केवल हिंदी बोली वाले प्रदेशों में ही चल रहा है. बाकी देश से भाजपा सिमटती जा रही है. महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के चुनावों में हार के बाद भाजपा का ग्राफ गिरने लगा है.

उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है. अभी भाजपा 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में सत्ता में है. इन 4 राज्यों में उस को अपनी वापसी होती नहीं दिख रही है. राम के प्रदेश में उस की हालत फंसी हुई है. राममंदिर बनने के बाद भी जनता में उत्साह नहीं है. यही वजह है कि भाजपा को काशी और मथुरा की बात करनी पड़ रही है.

नहीं ?ाके उद्धव ठाकरे

शिवसेना और भाजपा का बहुत पुराना गठबंधन रहा है. उद्धव ठाकरे ने इस गठबंधन को तोड़ कर खुद की अपनी अलग राह चुनी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. इस के बाद वे भाजपा के दुश्मन नंबर एक बन गए. भाजपा के समर्थक और आईटी सैल के लोग कभी राज ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे को राबड़ी देवी कहते हैं तो कभी उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे को बदनाम करने वाले बयान देते हैं.

महाराष्ट्र में शिवसेना को दबाने के लिए ईडी और नारकोटिक्स विभाग का प्रयोग किया गया. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे कभी भी डरे और ?ाके नहीं. उद्धव ठाकरे यह मानते हैं कि केंद्र सरकार अपनी ताकतों का दुरुपयोग कर रही है. शिवसेना की पकड़ महाराष्ट्र में बहुत मजबूत है. भाजपा हमेशा उसे कम महत्त्व देती रही है. उद्धव ठाकरे ने भाजपा से अलग होने का फैसला कर के सही राजनीतिक कदम उठाया और महाराष्ट्र की कमान अपने हाथों में ली.

उद्धव ठाकरे भी 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए पूरा दमखम लगा देंगे. वे अकेले ऐसे नेता हैं जिन को भाजपा हिंदूवाद का विरोधी नहीं कह सकती. ऐसे में उन की ताकत बढ़ जाती है. भाजपा के हिंदुत्व की सब से बड़ी काट शिवसेना ही है. जो बिना डरे व ?ाके भाजपा का विरोध कर रही है.

महाराष्ट्र देश का सब से बड़ा औद्योगिक प्रदेश है. भाजपा वहां से तमाम उद्योगों को बाहर निकालना चाहती है. फिल्म उद्योग इस का एक बड़ा उदाहरण है. भाजपा के बहुत सारे प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश में फिल्मनगरी नहीं बन पाई है. उद्धव ठाकरे भी यह नहीं चाहते कि भाजपा की तानाशाही चलती रहे. इस कारण गैरभाजपा के नाम पर वे कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की ताकत को बढ़ावा दे सकते हैं.

दक्षिण में बड़ी चुनौती हैं एम के स्टालिन

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को उत्तर भारत के राज्यों से बड़ी सफलता मिली थी. यहां अब भाजपा का ग्रोथ रुक चुका है. भाजपा का प्रयास यह है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में उस को दक्षिण भारत के राज्यों से उतनी सीटें मिल जाएं जितनी उत्तर भारत में कम हो रही हैं, तभी वह सरकार बनाने में सफल हो पाएगी.

महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने भाजपा को रोक रखा है उसी तरह से द्रविड मुनेत्र कषगम यानी द्रमुक के नेता मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन यानी एम के स्टालिन तमिलनाडु में घुसने नहीं दे रहे हैं. दक्षिण भारत के इस नेता का नाम सब से ताकतवर नेताओं में शुमार किया जाता है. मेयर से ले कर मुख्यमंत्री तक का उन्हें प्रशासनिक अनुभव है.

तमिलनाडु में लोकसभा की 39, उत्तर प्रदेश 80, महाराष्ट्र 48 और पश्चिम बंगाल में 41 सीटें हैं. इन 4 राज्यों की 208 लोकसभा सीटों पर भाजपा के सामने सब से बड़ी चुनौती है. ऐसे में यह साफ है कि अगर इन प्रदेशों में भाजपा को रोक लिया गया तो उस के लिए 2024 की राह कांटोंभरी हो जाएगी जिसे पार करना नामुमकिन सा हो जाएगा.

इन दलों को जब कांग्रेस का साथ मिलेगा तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को बड़ी चुनौती पेश की जा सकेगी. राहुल गांधी और ममता बनर्जी के रूप में 2 बड़े चेहरे भी सामने हैं जिन के नाम को आगे कर के विपक्ष गैरभाजपावाद के खेमे को मजबूत कर सकता है. आने वाले लोकसभा चुनाव की नजर से ये ‘पंच प्यारे’ यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन खासे महत्त्वपूर्ण हैं.

ममता बनर्जी यह बात जानती हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे अकेली भाजपा से लड़ाई में सफल नहीं होंगी. ऐसे में वे अपने साथ दूसरे दलों को लेना चाहती हैं. सत्ता से किसी दल को हटाने के लिए अलगअलग विचाराधारा के लोग पहली बार एकजुट नहीं हो रहे हैं. 1977 में इमरजैंसी के बाद सभी दलों ने मिल कर जनता पार्टी सरकार बनाई और कांग्रेस को हराया. 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ भाजपा और वामपंथी एक सरकार में हिस्सा बने और कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया. 2004 में कांग्रेस ने यूपीए का गठबंधन बनाया और भाजपा की अटल सरकार को हराया जिस ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दे कर वक्त से 6 माह पहले लोकसभा के चुनाव कराने का जोखिम उठा लिया था.

2014 में 10 साल पुरानी कांग्रेस सरकार को हटाने के लिए भाजपा ने भी एनडीए गठबंधन का सहारा लिया था. पंच प्यारे यानी ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और स्टालिन अगर एकजुट हो कर भाजपा की मोदी सरकार को हटाने के लिए एक मंच पर आते हैं तो वह चौंकाने वाली बात नहीं होगी.

इतिहास खुद को दोहराता है. अब राजनीतिक दलों को गठबंधन की राजनीति करनी आ गई है. अलगअलग विचारधारा व क्षेत्र के लोग भी एक मंच पर आ कर सफल राजनीति कर सकते हैं. उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में इस की मिसाल पेश कर के भाजपा को कुरसी से उतारने में सफल भी रहे हैं. ताकतवर मोदी को कुरसी से हटाने के लिए व गैरभाजपावाद के नाम पर ये ‘पंच प्यारे’ सफल हो सकते हैं.

व्यंग्य: सांभर वड़ा की यू-ट्यूब विधि

‘अच्छे दिन’ तो बस एक मुहावरा ही है, जो सुनने में तो अच्छा लगता पर अच्छे दिन कभी आते नहीं. श्रीमतीजी का सांभरवड़ा बना कर खिलाने का अच्छे दिन का वादा प्रधानमंत्री के जैसा ही रहा.

मिस्टर पति ने उस दिन जब अपनी श्रीमती फलानीजी को यूट्यूब में सांभरवड़ा बनाने की विधि को गंभीरता के साथ देखते हुए पाया तो गदगद हो गए. सोचने लगे, आज शाम को दक्षिण भारत का यह स्वादिष्ठ व्यंजन खाने को मिलेगा. लेकिन शाम हुई और फिर रात भी गहरा गई, सांभरवड़ा का पता न चला तो पति महोदय ने पूछ लिया, ‘‘क्यों भागवान, तुम सुबह सांभरवड़ा बनाने की विधि देख रही थीं न, उस का क्या हुआ?’’

पत्नीजी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एकदो बार और देख लूं, उस के बाद जरूर बनाऊंगी, आप की कसम.’’

पति महोदय, मजबूरी में ही सही, परम संतोषी किस्म के जीव थे. पहले भी पत्नी उन से अलगअलग पकवानों के बारे में यही कहती रहीं कि बनाने की विधि अच्छे से सम?ा लूं, फिर जल्द बना कर खिलाऊंगी. लेकिन कभी कुछ खिलाया नहीं, सिवा चावल, दाल और सब्जी के.

बहुत दिनों बाद पत्नी को एक बार फिर सांभरवड़ा बनाने की विधि देखते हुए उन्हें बड़ा अच्छा लगा. उन्हें इस बार पूरा विश्वास था कि अब पकवान खाने के मामले में अच्छे दिन आ ही जाएंगे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि अच्छे दिन, बस एक मुहावरा बन कर रह गया है. यह सुनने में अच्छा लगता है मगर अच्छे दिन आते नहीं. सो, उन की पत्नी भी सांभरवड़ा बनाने की विधि देख तो रही थीं, पर उसे बनाने का मुहूर्त अभी नहीं आया था. खैर, कभी न कभी तो जरूर बनाएगी. आखिर, पहलवान रामभरोसे की बीवी है, हिम्मत न हारेगी.

दोचार दिन बीते ही थे कि एक दिन मिस्टर पति ने देखा, पत्नीजी इस बार फिर बड़े ध्यान से यूट्यूब में उत्तपम बनाने की विधि देख रही हैं. वे गदगद हो गए कि आज शाम को या फिर एकदो दिन बाद उत्तपम का आनंद मिलेगा. लेकिन कुछ दिन ऐसे ही निकल गए, उत्तपम नहीं बनाया तो उन्होंने पत्नीजी से पूछ लिया, ‘‘क्यों डियर उस दिन तो तुम उत्तपम बनाने की विधि सीख रही थीं, अब बनाओगी कब?’’

पत्नीजी मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘बना दूंगी, जल्दी क्या है. एकदो बार और देखना पड़ेगा. दिमाग में उसे बिठाना पड़ेगा, तब तो बना पाऊंगी. वरना वैसा ही होगा, जैसा एक बार हुआ था. गुलाबजामुन बनाने बैठी थी लेकिन वह तो कुछ का कुछ बन गया था.’’

पति महोदय को याद आया, ‘‘हां, तुम ने मु?ो जबरन खिलाया था और पहली बार हुआ था कि गुलाबजामुन को खाने के बजाय पीना पड़ा था.’’

पति की बात सुन कर पत्नीजी मुसकराईं, फिर बोलीं, ‘‘तुम ने वह गीत सुना है न, होंगे कामयाब एक दिन… तो हम भी यूट्यूब के सहारे व्यंजन बनाने की विधियां देखते रहते हैं और सोचते हैं कभी न कभी हम कोई न कोई पकवान ठीकठाक बनाने में सफल हो ही जाएंगे. लेकिन पता नहीं क्यों, मैं सफल नहीं हो पाती.’’

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पति ने हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘हिम्मते जनाना, मदद ए खुदा.’’

पति सम?ादार था. उस ने कहावत में हिम्मत ए मर्दां की जगह हिम्मत ए जनाना कर दिया. कुछ दिन बीते ही थे कि एक दिन पत्नी ने ऐलान किया, ‘आज शाम जब आप घर लौटोगे तो मैं आप को पेड़े खिलाऊंगी. यह वादा रहा.’

पति को अच्छा लगा. खोये के पेड़े खाने को मिलेंगे. वे अतिउत्साह के साथ शाम को घर पहुंचे तो देखा, पत्नीजी किचन में बड़े मनोयोग के साथ कुछ बना रही हैं. वे सम?ा गए कि पेड़ा ही बन रहा होगा. कुछ देर बाद पत्नी एक थाल में सजा कर कुछ पेड़े ले आईं

और कहा, ‘लो, मेरे हाथ का बना

पेड़ा खाओ.’

फलानेजी खुश हो गए. उन्होंने एक पेड़ा उठाया. वह कुछकुछ गीला था. उन्होंने उसे मुंह में डाला और कुछ अजीब सा मुंह बनाते हुए बोले, ‘‘यह तो पेड़ा नहीं, केवल खोया है. पेड़ा कहां है?’’

पत्नीजी बोली, ‘‘अरे, यह पेड़ा ही तो है. खोये में शक्कर मिला कर ही तो पेड़ा बनता है.’’

पति ने सिर पीटते हुए कहा, ‘‘अरी भागवान, पेड़ा बनाने की पूरी एक प्रक्रिया है. तुम ने यूट्यूब में ठीक से देखा नहीं, शायद.’’

पत्नी मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘देखा तो था लेकिन समय कम था, इसलिए शुरू का ही एक किलो खोया लाई, उस में उसी अनुपात में डट कर शक्कर मिलाई. तब तक सहेली आ गई, उस के साथ गप मारने लगी. मु?ो लगा कि खोए में शक्कर मिला कर गोलगोल बनाने से पेड़ा बन जाता है.’’

पति महोदय मन ही मन भुनभुना रहे थे लेकिन किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘धन्य हो तुम. पहली बार ऐसा अद्भुत पेड़ा खाया है.’’

पत्नीजी ?ाठ की चाशनी में सजी अपनी तारीफ सुन कर गदगद हो रही थी. उस ने भी पेड़ा खाया तो उस ने महसूस किया, यह तो पेड़े की तरह बिल्कुल ही नहीं लग रहा है. लेकिन वह मौन रही. मन ही मन सोचने लगी, अच्छा हुआ, इन को कुछ पता ही नहीं चला. मेरी मेहनत बरबाद नहीं हुई.

उधर पति महोदय सोच रहे थे कि भविष्य में अब इस महान कलाकार से किसी भी तरीके का पकवान बनाने का आग्रह बिलकुल नहीं करूंगा. लेकिन सब दिन होत न एक समान. कुछ दिनों के बाद पति महोदय ने फिर देखा कि पत्नी यूट्यूब में भुजिया सेव बनाने की विधि देख रही है. लेकिन इस बार वे किसी भी उम्मीद में बिलकुल नहीं रहे. उलटे, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जैसे मनोरंजन के लिए हम लोग यूट्यूब में गाने, फिल्म, प्रवचन या कुछ और चीजें देख लेते हैं, उसी तरह कुछ महिलाएं भी अपना मन बहलाने के लिए तरहतरह के व्यंजन बनाने की विधियां देखती रहती हैं. बनाएं चाहे न बनाएं, लेकिन किसी भी चीज का ज्ञान अर्जित करने में कौनो बुराई नहीं है, बंधु.

लेकिन उस दिन तो चमत्कार हो गया. पत्नी ने सुबहसुबह फरमाया, ‘‘आज शाम को मैं आप को सांभरवड़ा खिलाऊंगी.’’

पति ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जोक मत करो. जानू.’’

पत्नी बोली, ‘‘तुम्हारी कसम, आज मैं तुम्हें सांभरवड़ा जरूर खिलाऊंगी.’’

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पति घबराया, पत्नी मेरी कसम खा रही है, लेकिन उसे यकीन था कि जब कसम खा रही है तो जरूर खिलाएगी. शाम को पति महोदय जल्दी घर आ गए. थोड़ी देर बाद पत्नी ने प्लेट में सजा कर सांभरवड़ा परोस दिया. पति महोदय तो गदगद, बोल पड़े, ‘‘आखिर, तुम्हारी यूट्यूब पर व्यंजन बनाने की विधि देखने वाली मेहनत सफल हो ही गई, बधाई.’’

पत्नी बोली, ‘‘जो वादा किया था, उसे निभाया. मैं ने कहा था न, शाम को सांभरवड़ा खिलाऊंगी तो खिला रही हूं. कौफीहाउस वाले को फोन किया था, वह अभी थोड़ी देर पहले ही पहुंचा कर गया है.’’ पति महोदय की शक्ल देखने लायक थी…

तुम देना साथ मेरा: अजय के साथ कौन-सा हादसा हुआ?

Writer- मोनिका राज

शादी, विदाई और उस की रस्मों में कैसे एक हफ्ता गुजर गया, पता ही न चला. मम्मीपापा का लगातार भागदौड़ कर सबकुछ करना, रिश्तेदारों का जमघट, सहेलियों की मीठी छेड़छाड़ और हर आनेजाने वाले की जबान पर बस, उस का ही नाम. भविष्य के स्वप्निल सपनों में खोई नेहा अजय के संग विदा हो कर अब अपने ससुराल पहुंच चुकी थी.

उसे यह सब किसी सपने सा प्रतीत हो रहा था. खयालों में खोया उस का मन कब अतीत की गलियों में विचरने लगा, उसे पता ही नहीं चला. तकरीबन 2 साल पहले औफिस में अजय से उस की मुलाकात हुई थी. उस की सादगी अजय को पहली ही नजर में भा गई थी. अजय ने मन ही मन उसे अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. एक दिन मौका देख कर उस ने अपने दिल की बात नेहा को बताई. नेहा भी अजय को बहुत पसंद करती थी. सो, उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.

अजय की इंटर्नशिप कंप्लीट होने के बाद उस के घर में शादी की बात जोर पकड़ने लगी. शादी के लिए कई रिश्ते आए, पर अजय को तो सांवलीसलोनी सी नेहा पसंद थी.

मां ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, ‘वे लोग हमारी हैसियत के बराबर नहीं हैं. तु?ो पसंद भी आई तो इतने साधारण नाकनक्शे वाली लड़की.’

पर उस ने तो जैसे जिद पकड़ ली कि वह नेहा से ही शादी करेगा. घर का इकलौता वारिस होने की वजह से आखिरकार घर वालों को उस की जिद के आगे ?ाकना पड़ा. आननफानन ही एक महीने के अंदर शादी की तारीख पक्की हो गई और फिर नेहा दुलहन बन कर अजय के घर आ गई.

‘‘कहां खो गईं मैडम? पैकिंग भी करनी है. कल ही देहरादून के लिए हमारी फ्लाइट है. हनीमून पर साथ जाना है या खयालों में ही गुम रहना है,’’ अजय के ?ाक?ारने पर वह अतीत की यादों से बाहर आई.

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दूसरे दिन दोनों हनीमून के लिए देहरादून निकल गए. पहले दिन तो दोनों देहरादून की वादियों में पैदल ही सैर करते निकले. कुदरत के समीप हो कर उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ रही थीं. दोनों ने साथ में काफी अच्छा वक्त बिताया.

दूसरे दिन उन्होंने नैनीताल घूमने का प्लान बनाया. वे लोग कुछ ही दूर निकले थे कि अचानक गाड़ी में ?ाटके लगने लगे. जब तक वे कुछ सम?ा पाते, गाड़ी पर से नियंत्रण छूट गया और लैंड स्लाइडिंग की वजह से गाड़ी गहरी खाई में जा गिरी. जब होश आया तो नेहा ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के हाथपैरों में पट्टियां बंधी थीं और सिर में भी काफी चोट आई थी. उस ने आसपास नजर दौड़ाई. अजय कहीं नजर नहीं आए. अनजाने भय की आशंका से उस का हृदय कांप उठा. वह लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उतरी. कुछ ही कदम चल पाई थी कि असहनीय पीड़ा की वजह से वह जमीन पर जा गिरी. नर्स ने आ कर उसे संभाला.

‘‘मेरे पति भी मेरे साथ थे. वे कहां हैं अब?’’ नेहा ने सवाल किया.

‘‘वे अभी ओटी में हैं. जब तक डाक्टर बाहर नहीं आते, सही से कुछ बताना मुश्किल है,’’ नर्स ने उत्तर दिया.

पूरे 2 दिनों के बाद अजय को होश आया. जब उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर काम नहीं कर रहे थे. इशारे से नेहा को अपने पास बुला कर पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘ऐक्सिडैंट की वजह से आप ने अपना पैर हमेशा के लिए गंवा दिया है,’’ सुन कर अजय स्तब्ध रह गया.

नियति पर हमारा वश कहां चलता है. अजय के पैर के साथसाथ उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी पर भी जैसे ग्रहण लग गया था.

नेहा के मातापिता हालखबर लेने उस की ससुराल आए. काफी देर तक इधरउधर की बात करने के बाद उस की मां बहाने से उठ कर पूरे घर में नेहा को ढूंढ़ने लगी. नेहा को अकेला पा कर मां उसे खींचते हुए एक ओर ले गई. ‘‘जाने किस की नजर लग गई हमारी बच्ची को,’’ वह नेहा से लिपट कर रो पड़ी.

नेहा के तो जैसे आंसू ही सूख चुके थे. वह निर्विकार भाव से बोली, ‘‘नियति के आगे किस का जोर चलता है मां. शायद मेरे नसीब में यही सब होना लिखा था. तुम अपनेआप को संभालो.’’

मां ने अपने आंसू पोंछ डाले और उसे सम?ाने के अंदाज में बोली, ‘‘देख बिट्टो, अभी तो तेरी जिंदगी सही से शुरू भी नहीं हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया. तेरे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू एक अपाहिज के साथ इतना लंबा सफर कैसे तय कर पाएगी?

‘‘देख, तू एक बार अच्छे से सोचसम?ा ले. अभी तो सबकुछ ठीक लग रहा है, पर एक वक्त के बाद वह तु?ो बो?ा सा लगने लगेगा. तू उस के साथ ताउम्र खुश नहीं रह पाएगी.’’

जब बहुत देर तक नेहा कमरे में नहीं आई तो अपनी व्हीलचेयर चलाते हुए अजय उसे घर में चारों ओर ढूंढ़ने लगा.

जैसे ही वह बालकनी के पास पहुंचा, कानों में नेहा की बात पड़ी, ‘‘यह कैसी बात कर रही हो, मां? एक बात बताओ, क्या अजय की जगह यह हादसा मेरे साथ हुआ होता तब भी क्या आप यह सलाह दे पातीं? मैं अजय से बहुत प्यार करती हूं मां. बस, कहने भर को मैं ने सात जन्म साथ निभाने की कसमें नहीं खाई थीं. मैं ने सच्चे दिल से उन्हें अपना हमसफर माना था. चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन का साथ कभी नहीं छोड़ूंगी. मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.

‘‘आप ने यह बात आज तो कह दी, पर भविष्य में गलती से भी यह बात अपनी जबान पर मत लाइएगा. बहुत मुश्किल से अजय उस हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. वे सुनेंगे यह सब तो पूरी तरह टूट जाएंगे मां.’’

वैसे तो अजय नेहा से बेइंतहा मोहब्बत करता था, पर आज उस की बातें सुन नेहा के लिए उस के दिल में प्यार और इज्जत और भी ज्यादा बढ़ गई. लेकिन साथ ही उस की ?ाठी मुसकान के पीछे का दर्द महसूस कर उस की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया. किसी तरह खुद को जब्त करते हुए उस ने नेहा को आवाज लगाई.

‘‘अरे आप…? आप को कुछ चाहिए था क्या? सौरी, मैं थोड़ा मां से बात करने लग गई थी,’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ भी नहीं चाहिए था. बस, तुम बहुत देर से नहीं दिखीं तो ढूंढ़ते हुए इधर आ गया,’’ अजय ने उत्तर दिया.

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धीरेधीरे दिन बीतने लगे. नेहा पूरी तत्परता से अपना फर्ज निभा रही थी. वह दिनरात चकरी की तरह घूमघूम कर सब का खयाल रखती, पर इस पर भी किसी को वह फूटी आंख नहीं सुहा रही थी. बातबात पर सास हमेशा उलाहने देती रहती, ‘‘इस के तो कदम ही बहुत अशुभ पड़े हमारे घर में. यहां आते ही हमारे बेटे की जिंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया.’’

यह सब सुन कर तो उस का दिल छलनी हो जाता, पर जब वह अजय का बु?ा चेहरा देखती तो खुद को समेट कर होंठों पर ?ाठी मुसकान सजाए वह उस में आत्मविश्वास भरने की कोशिश करती.

नेहा के अनवरत कोशिश करते रहने से अजय धीरेधीरे उस हादसे से बाहर आने लगा, पर उस की नौकरी छूट जाने से घर में थोड़ी आर्थिक तंगी होने लग गई थी.

इधर कुछ दिनों से अजय का दोस्त विनय सब की बहुत मदद कर रहा था. दिन में कम से कम दो बार फोन कर वह अजय की हालखबर लेता और जो भी जरूरत का सामान होता, उसे लाने में भी मदद करता. इस मुश्किल की घड़ी में उस का साथ खड़े होना नेहा को बहुत मजबूती दे रहा था. आने वाले खतरे से बेखबर वह विनय के प्रति कृतज्ञ हो रही थी.

एक दिन बातों ही बातों में उस ने आर्थिक तंगी के बारे में विनय को बताया और नौकरी करने की इच्छा जताई.

‘‘मेरे औफिस में स्टेनो का पद खाली है. मैं जानता हूं कि यह पद आप के लायक नहीं, पर फिलहाल अगर आप इस से काम चला सकें तो सही होगा. मैं बहुत जल्द आप के लिए कोई अच्छी जगह काम देख दूंगा,’’ विनय ने हिचकते हुए कहा.

विनय का एहसान मानते हुए नेहा काम पर जाने लगी. इस से पूरी तरह न सही, पर एक हद तक परिवार की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी.

एक दिन काम ज्यादा रहने से उसे थोड़ा ज्यादा देर तक औफिस में रुकना पड़ा. बाकी का स्टाफ जा चुका था. वह जल्दीजल्दी अपना काम निबटा रही थी, तभी बाहर तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बिजली चली गई तो वह काम बंद कर बारिश थमने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तो घर जाने में बहुत देर हो जाएगी. जाने अजय ने कुछ खाया होगा भी या नहीं,’’ वह बारबार बेचैनी से घड़ी देखती हुई चहलकदमी कर रही थी.

जब बहुत देर तक बारिश नहीं रुकी तो वह वापस कुरसी पर आ कर बैठ गई. तभी पीछे से आ कर विनय ने नेहा के कंधे को छुआ, ‘‘आप कितनी सुंदर हैं भाभी. इस गुलाबी साड़ी में तो आप और भी गजब ढा रही हैं. आप इतनी खूबसूरत हैं. इस का सही इस्तेमाल कीजिए और जिंदगी का मजा लीजिए,’’ उस ने कुटिल मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? होश में तो हो? अगर अजय को मैं ने तुम्हारी यह करतूत बताई तो वे तुम्हारा क्या हश्र करेंगे, इस का अंदाजा भी है तुम्हें,’’ क्रोध से कांपते हुए उस ने कहा.

‘‘वह अपाहिज मेरा क्या बिगाड़ लेगा. सही से खड़ा तक नहीं हो पाता वह. तुम क्यों अपनी जवानी उस के पीछे बरबाद कर रही हो. मेरा साथ दो. किसी को इस बात की कानोंकान खबर नहीं लगने दूंगा,’’ विनय ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा.

वह नेहा के साथ जोरजबरदस्ती पर उतर आया, तभी औफिस का मेन गेट खुला और सफाई करने वाली बाई अंदर की तरफ आती दिखी. नेहा ने पूरा जोर लगा कर विनय को परे धकेला और लगभग दौड़ते हुए बाहर की ओर भागी. किसी तरह उस ने अपने कपड़ों को ठीक किया और औटो में बैठी. पूरे रास्ते उस की नजर के सामने विनय का वीभत्स रूप आ रहा था. उस के पूरे बदन में जैसे कंपकंपी दौड़ गई. किसी तरह खुद को संभालते हुए वह घर पहुंची.

घर का काम निबटा कर अजय को सुलाया और खुद भी बगल में लेट गई, पर आज नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. सारी रात उस ने आंखों ही आंखों में काट दी. सुबह अजय ने उस के औफिस न जाने का कारण पूछा. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विनय उस की सास के साथ कमरे में दाखिल हुआ. सास ने जलती हुई आंखों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘बताती क्यों नहीं कि औफिस क्यों नहीं जा रही?’’

नेहा के कोई उत्तर न देने पर उन्होंने खुद ही बोलना शुरू किया, ‘‘अरे, अपना न सही, पर कम से कम हमारे घर की इज्जत का ही खयाल किया होता. अगर कुकर्म ही करने थे तो यह सतीसावित्री होने का ढोंग क्यों?’’

नेहा बुत बन कर खुद पर लगाए चरित्रहीनता के इलजाम को चुपचाप सुनती रही. उस ने उम्मीदभरी आंखों से अजय की तरफ देखा, पर उस की आंखों में भी सवाल देख कर वह अंदर ही अंदर टूट गई.

‘‘आप दोनों बाहर जाइए, मु?ो नेहा से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ अजय ने कहा.

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दोनों कमरे से बाहर चले गए. कमरे में बहुत देर तक सन्नाटा फैला रहा. आखिरकार खामोशी तोड़ते हुए अजय ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ इस रिश्ते में नहीं रह सकता. मु?ो तलाक चाहिए.’’

पूरी दुनिया उस पर लांछन लगाए, नेहा को परवा नहीं थी, पर जिस से उस ने दिलोजान से प्यार किया, वही आज लोगों की बातों में आ कर उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा है. यह देख नेहा सन्न रह गई.

सारी रात बिस्तर पर करवट बदलते नेहा सिसकती रही. अजय सब जानतेबू?ाते भी खामोश था. सुबह उठते ही नेहा ने अपने कपड़े सूटकेस में डाले और कमरे से निकलते वक्त अजय की तरफ उम्मीदभरी निगाहों से देखा, पर अजय किसी किताब में इस कदर रमा था कि उस ने नजरें उठा कर उस की ओर देखना भी उचित न सम?ा. बु?ो दिल से नेहा घर से बाहर निकल गई.

आज घर में अजीब सा सन्नाटा छाया था. मांबाऊजी पार्क की तरफ गए थे. नेहा के चले जाने से पूरे घर में जैसे वीरानी छा गई थी. वह बारबार फोन हाथ में लेता और फिर उसे परे रख देता. जब बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो व्हीलचेयर खिसका कर वह मेज की तरफ बढ़ा और वहां रखे मोबाइल में एफएम औन किया. गीत बज रहा था, ‘हमें तुम से प्यार कितना यह हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना…’

गीत सुन कर उसे नेहा की बहुत ज्यादा याद आने लगी. खुद को बहुत संयत किया, पर आज जैसे आंसू रुकना ही नहीं चाह रहे थे. वह अपनी शादी की तसवीर सीने से लगा कर फूटफूट कर रोने लगा, ‘हम ने साथ मिल कर कितने सपने देखे थे, पर क्षणभर में सारे सपने टूट गए. मैं तो तुम्हें खुशियां भी न दे पाया, उलटे तुम्हारी जिंदगी में एक बो?ा की तरह बन कर रह गया. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, पर मेरा यह अंधकारमय साथ तुम्हारी जिंदगी में एक ग्रहण की तरह है. तुम्हारी बेहतरी मु?ा से दूर होने में ही थी. मु?ो मेरी कड़वी बातों के लिए माफ कर देना.

‘काश, तुम्हें यह बता पाता कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. तुम बिन मैं कुछ भी नहीं हूं. मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ. लौट आओ नेहा, प्लीज लौट आओ,’ वह अपना सिर घुटने में छिपाए जारबेजार रोए जा रहा था, तभी कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ. तब वह खुद को संयमित करने की कोशिश करने लगा.

‘‘तो अब बता दो कि मु?ा से कितना प्यार करते हो. मैं वापस आ गई हूं अजय और अब मैं तुम से दूर कभी नहीं जाऊंगी. सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूं. आज के बाद मु?ो खुद से दूर करने की कोशिश भी मत करना,’’ उस ने अजय की गोद में अपना सिर रखते हुए कहा.

अजय ने सहमति में सिर हिलाया और मजबूती से नेहा का हाथ थाम लिया. तभी एफएम में गाना बज उठा, ‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज…’

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 2

रात 9 बजे पुलिस दिनेश के घर पहुंची. पुलिस जीप के रुकते ही आसपास के लोग उत्सुकता से देखने लगे. एक पुलिस वाले ने जीप से उतर कर दिनेश को दरवाजे के बाहर से आवाज लगाई, ‘‘दिनेश… ओ दिनेश.’’

पुलिस वाले की आवाज सुन कर दिनेश बाहर आया. पुलिस वाले को देख कर बोला, ‘‘क्या बात है साहब?’’

‘‘चलो, जीप में बैठो.’’ पुलिस वाले ने रौब से कहा.

डरासहमा दिनेश चुपचाप जीप में बैठ गया. जीप वापस थाने के लिए चल पड़ी. थोड़ी ही देर में यह खबर पूरे गांव में फैल गई कि दिनेश को पुलिस थाने ले गई है.

मोहन और दिनेश पक्के दोस्त थे. एकदूसरे के बिना घड़ी भर नहीं रह सकते थे. मोहन की शादी को साल भर ही हुआ था कि एक दिन वह खेत में घास काट रहा था, तभी उसे जहरीले सांप ने काट लिया. तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका.

एक अच्छा दोस्त होने की वजह से मोहन के मरने के बाद दिनेश उस की पत्नी सविता की घर या खेतों के काम में मदद करने लगा.

दिनेश अकेला ही था. उस की पत्नी किसी बात से नाराज हो कर उसे पहले ही छोड़ कर मायके चली गई थी. सविता और दिनेश की निकटता देख कर गांव वाले तरहतरह की बातें करते थे.

सविता के ससुर अर्जुन को दिनेश का सविता के पास आनाजाना जरा भी पसंद नहीं था. इसलिए गांव वालों को यह मानने में जरा भी देर नहीं लगी थी कि सविता की हत्या के पीछे दिनेश का हाथ हो सकता है. इसलिए अर्जुन ने दिनेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर उसे गिरफ्तार करा दिया था.

थाने ला कर दिनेश से पूछताछ शुरू हुई. थानाप्रभारी भोपाल सिंह ने उसे अपने पैरों के पास बैठा कर हाथ में बेंत ले कर पूछा, ‘‘तू ने उस औरत की हत्या क्यों की, उस की लाश कहां छिपाई?’’

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‘‘साहब, आप चाहे जिस की कसम खिला लीजिए, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘तू  इस तरह नहीं मानेगा. अभी चार डंडे पिछवाड़े पर पड़ेंगे तो सब कुछ बक देगा.’’ थानाप्रभारी ने हाथ में लिया डंडा उस की आंखों के सामने घुमाते हुए कहा.

‘‘तेरे कहने का मतलब यह है कि तू ने सविता की लाश देखी नहीं है?’’

‘‘साहब, ऐसा मैं ने कब कहा है. पर रात को मैं ने जो लाश देखी थी, वह किस की थी, मुझे पता नहीं. मैं निर्दोष हूं साहब,’’ रुआंसे हो कर दिनेश ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

अगले दिन थाना भादरवा पुलिस ने दिनेश को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 8 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. दिनेश ने जहां लाश देखी थी, पुलिस दिनेश को ले जा कर लगातार 3 दिनों तक लाश ढूंढती रही. पुलिस ने आसपास का एकएक कोना छान मारा, पर लाश का कुछ पता नहीं चला.

चौथे दिन बगल के गांव मालपुर के प्रधान ने थाना भादरवा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि गांव के बाहर स्थित एक कुएं में किसी औरत की लाश पड़ी है. पुलिस तुरंत उस कुएं पर पहुंची और गांव वालों की मदद से लाश बाहर निकलवाई. लाश अब तक काफी हद तक सड़ चुकी थी. उस से बहुत तेज दुर्गंध आ रही थी.

लाश का सिर इस तरह कुचल दिया गया था कि उस की शिनाख्त नहीं की जा सकती थी. चूंकि 4 दिन पहले ही सविता के गायब होने की  रिपोर्ट दर्ज हुई थी, इसलिए पुलिस को पूरा विश्वास था कि यह लाश उसी की होगी. इसलिए पुलिस ने लाश की शिनाख्त के लिए अर्जुन को बुलवा लिया.

लाश देखते ही अर्जुन सिसकसिसक कर रोने लगा. रोते हुए वह कह रहा था, ‘‘बहू, तुम ने भी मोहन की राह पकड़ ली. मुझे अकेला छोड़ कर चली गई. अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं रहा.’’

थानाप्रभारी ने जोर से रो रहे अर्जुन को सांत्वना दी, ‘‘काका धीरज रखो, अपराधी हमारे कब्जे में है. हम आप को न्याय दिला कर रहेंगे.’’

‘‘साहब, उस राक्षस को छोड़ना मत. उस ने मेरे बुढ़ापे का सहारा छीन लिया.’’ रोते हुए अर्जुन ने कहा.

गांव वाले अर्जुन को संभाल कर वापस ले आए. 8 दिनों का रिमांड समाप्त होने पर पुलिस ने दिनेश को दोबारा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दिनेश ने सविता के साथ दुष्कर्म करने और उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था.

उस के दोस्तों ने उस की जमानत के लिए काफी प्रयास किया, पर उस पर दुष्कर्म के साथसाथ हत्या का भी आरोप था, इसलिए निचली अदालत से उस की जमानत नहीं हो सकी.

यह मामला काफी उछला था, इसलिए सरकार ने इस मामले की सुनवाई लगातार करने के आदेश दे दिए थे. लगातार सुनवाई होने की वजह से 3 महीने में ही दिनेश को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी.

दिनेश के अपराध स्वीकार करने के बाद उस की गांव में थूथू हो रही थी. लोगों का कहना था कि देखने में वह कितना भोला और भला आदमी लगता था. पर निकला कितना नालायक.

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भाई जैसे दोस्त की पत्नी की इज्जत लूट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस की पत्नी को लगता है पहले ही पता चल गया था कि यह आदमी ठीक नहीं है, इसीलिए वह छोड़ कर चली गई.

गांव में लगभग रोज ही इस बात की चर्चा होती थी. पर कान्हा, करसन और उस के अन्य दोस्तों के गले यह बात नहीं उतर रही थी. पर दिनेश ने थाने में ही नहीं, अदालत में भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था, इसलिए कान्हा के मन में थोड़ा शक जरूर हो रहा था.

अर्जित तनेजा ने दंगल टीवी के शो ‘‘नथः जेवर या जंजीर’’ को कहा अलविदा, शॉकिंग है वजह

‘‘दंगल टीवी’’ पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘नथः जेवर या जंजीर’’ में ठाकुर अवतार के बेटे शंभू का किरदार निभा रहे अभिनेता अर्जित तनेजा ने अंततः इस सीरियल को अलविदा कह दिया. इतना ही नहीं अर्जित ने तुरंत इस बात की जानकारी उसी मीडिया को दी, जिसके संग कुछ दिन पहले वह बदतमीजी के साथ पेश आ चुके थे.

अर्जित ने दिया ये बयान…

अर्जित तनेजा ने सीरियल ‘‘नथ: जेवर या जंजीर’’ को अलविदा करने की वजह बताते हुए कहा है -‘‘जब मुझे शंभू के किरदार के लिए अनुबंधित किया गया था, उस वक्त मुझे इस किरदार में काफी अच्छी संभावनाएं नजर आयी थीं. सीरियल का कांसेप्ट काफी दमदार है और आज भी मेरा मानना है कि इसमें दर्शकों को जोड़ने का दम है. लेकिन पिछले कुछ माह से मेरा किरदार उस ढंग से विकसित नहीं हो रहा था, जिस ढंग से मैने कल्पना की थी. मैं रचनात्मक को लेकर कोई दोषारोपण नहीं करना चाहता. पर पूरे सम्मान के साथ कहना चाहूंगा कि मैंने जेसा सोचा था, उस तरह से शंभू का किरदार विकसित नहीं हो रहा था. इसलिए मैने इससे खुद को अलग करने का निर्णय लिया.

ऐसा काम करने का कोई मतलब नहीं होता, जिसे करने के लिए आपका दिल गवाही न दे रहा हो. लेकिन, इसमें अभिनय करने का मेरा अनुभव अच्छा रहा.’’

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सीरियल ‘‘नथः जेवर या जंजीर’’ के सेट पर मीडिया के संग अर्जित तनेजा कई बार मीडिया के साथ बदतमीजी से पेश आए, मगर अर्जित ने अब इस सीरियल को छोड़ने की जो वजह बतायी है, उसमें सच्चाई जरुर है. सीरियल का कांसेप्ट देश के कुछ हिस्से में चली आ रही ‘‘नथ उतराई’’ की कुप्रथा के समूल नाश के लिए इस कुप्रथा के प्रति जागरूकता लाना है.

भटकी शो की कहानी…

जब इस शो का प्रसारण शुरू हुआ था, तब इसका स्वागत किया गया था और यह बात उभरकर आयी थी कि ‘दंगल टीवी’  सामाजिक मुद्दों पर सीरियल परोस रहा है. मगर बहुत जल्द वह भटक गए और सीरियल में ‘नथ उतराई’ प्रथा के नाम पर वही घिसा पिटा पारिवारिक ड्रामा परोसा जाने लगा.

दो बहने एक दूसरे के मात देने पर आमादा है. औरतें साजिश रच रही हैं. हत्याएं होने लगी. मृत इंसान कुछ समय बाद परिवार में जिंदा वापस आने लगा. वगैरह वगैरह.. एक ही इंसान को कई शादिया करते दिखाया गया. मगर कहानी में इतनी अधिक नाटकीयता है कि यह सीरियल ‘दंगल’ टीवी का नंबर वन सीरियल बना हुआ है.

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सेट पर सही नहीं अर्जित का बर्ताव…

लोकप्रियता में ‘दंगल’ टीवी के कई सीरियल इससे पीछे हैं,जिनके चलते कुछ बंद भी किए गए. तो वही कटु सतय यह भी है कि बतौर अभिनेता अर्जित तनेजा का सेट पर व्यवहार सही नहीं रहा. उनके अंदर विनम्रता का घोर अभाव है, जबकि हर कलाकार के अंदर विनम्रता अवश्य होनी चाहिए.

सेट पर मौजूद लोगों की बात माने तो अर्जित की वजह से सेट पर सदैव तनाव का माहौल बना रहता है. हालात यह है कि सेट पर सीन को अपने हिसाब से अर्जित मोड़ देते हैं और निर्देशक भी उनकी हां में हां मिलाते रहते है. लगभग ढाई माह पहले जब ‘नथ:जेवर या जंजीर’ के सौ एपीसोड पूरे हुए थे, तब सेट पर केक कटिंग समारोह आयोजित किया गया था, जिसकी कवरेज के लिए पत्रकारों और प्रेस फोटोग्राफरों को भी बुलाया गया था.

तब अर्जित की वजह से मीडिया को पूरे चार घंटे इंतजार करना पड़ा था. इसके बावजूद अर्जित ने प्रेस फोटोग्राफरों को केक कटिंग की तस्वीर खींचने से मना करने के साथ ही बदतमीजी के साथ अर्जित तनेजा ने कहा था -‘‘केक खाइए और यहां से जाइए.’’

मजेदार बात यह है कि अर्जित तनेजा के इस व्यवहार पर निर्देशक के साथ ही सेट पर मौजूद वरिष्ठ कलाकार मूक दर्शक बने रहे थे. अब जब अर्जित ने सीरियल को अलविदा कह दिया है, तो देखना है कि ‘दंगल’ टीवी या सीरियल के निर्देशक क्या कहते हैं. फिलहाल सभी चुप हैं.

खेती में लाभकारी जैविक उर्वरक

हमारे यहां खेती में रासायनिक खादों के लगातार व अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन व वातावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. मिट्टी की उपजाऊ ताकत घटती जा रही है. साथ ही, पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करने के लिए व रासायनिक खादों के बुरे असर को कम करने के लिए जैविक उर्वरकों के प्रयोग से इस प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

वैज्ञानिकों की राय है कि खेत पर उपलब्ध सभी तरह के पदार्थ जैसे कि गोबर की खाद, केंचुए की खाद, हरी खाद व जैविक खाद का इस्तेमाल करें और रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करें. जैविक उर्वरकों का प्रयोग रासायनिक खादों के साथ पूरक के रूप में करें.

जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवाणुयुक्त टीका है, जिस के इस्तेमाल से खेती में अच्छी पैदावार मिलती है.

किसान राईजोबियम

किसान राईजोबियम जैविक उर्वरक मुख्य रूप से सभी दलहनी व तिलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रह कर पौधों को नाइट्रोजन की पूर्ति करता है.

किसान राईजोबियम को बीजों के साथ मिश्रित करने के बाद बो देने पर, जीवाणु जड़ों में प्रवेश कर के छोटीछोटी गांठें बना लेते हैं. इन गांठों में जीवाणु बहुत ज्यादा मात्रा में रहते हुए प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण कर के पोषक तत्त्वों में बदल कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं. पौधे की जड़ों में जितनी अधिक गांठें होती हैं, पौधा उतना ही सेहतमंद होता है. इस का इस्तेमाल दलहनी व तिलहनी फसलों जैसे अरहर, चना, मूंग, उड़द, मटर, मसूर, सोयाबीन, मूंगफली, सेम इत्यादि में किया जाता है.

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किसान एजोटोबैक्टर

किसान एजोटोबैक्टर भूमि व जड़ों की सतह में मुक्त रूप से रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पोषक तत्त्वों में बदल कर पौधों को उपलब्ध कराता है. किसान एजोटोबैक्टर सभी गैरदलहनी फसलों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

किसान पीएसबी (फास्फोरस विलयक जीवाणु)

किसान पीएसबी भूमि के अंदर की अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील फास्फोरस में बदल कर पौधों को उपलब्ध कराता है. किसान पीएसबी का इस्तेमाल सभी फसलों में किया जा सकता है. यह फास्फोरस की कमी को पूरा करता है.

जिंक विलयक जीवाणु (जैडएसबी)

जैडएसबी मृदा में उपस्थित जिंक को पौधों को उपलब्ध कराने में मदद करता है, जिस से अनाज में जिंक की गुणवत्ता बढ़ती है.

जैडएसबी 6.5 से 8.5 पीएच मान वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टी के लिए सही है.

जिंक औक्साइड, जिंक फास्फेट और जिंक कार्बोनेट जैसे विभिन्न स्रोतों के लिए जिंक को घोल देता है.

इस का इस्तेमाल अनाज, मोटे अनाज, दालें, सब्जियां, फाइबर और तिलहन की फसलों में किया जा सकता है.

एसीटोबैक्टर

एजोटोवैक्टर की तरह इन्हें भी गैरदलहनी फसलों का असहजीवी सूक्ष्मजीव कहते हैं. यह जीवाणु बहुत ज्यादा अम्लीय दशाओं में भलीभांति काम कर सकता है. गन्ने की फसल में इस का इस्तेमाल बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस के इस्तेमाल से शर्करा की वृद्धि होती है.

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नीलहरित शैवाल (ब्ल्यू ग्रीन अलगल बीजीए) :

ये गैरदलहनी फसलों के असहजीवी सूक्ष्मजीव होते हैं. ये मृदा में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणु होते हैं, जो अपना भोजन खुद बनाते हैं.

इतना ही नहीं, ये जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने के अतिरिक्त विटामिन व वृद्धिकारक हार्मोन भी स्रवित करते हैं. धान के खेतों में इस का इस्तेमाल बहुत ही लाभकारी होता है.

अजोला

यह एक तैरने वाला जलीय फर्न है, जो नील हरित शैवालों की पत्तियों के छिद्र में रह कर नाइट्रोजन का योगीकरण करता है.

अजोला के इस्तेमाल से ज्यादा मात्रा में जीव पदार्थ (क्चद्बशद्वशह्य) उत्पन्न होते हैं, जो मृदा संरचना में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं. पानी की उचित व्यवस्था होने पर इस का प्रयोग हरी खाद के रूप में किया जा सकता है.

माइकोराईजा

सूक्ष्मजीवी एक फंजाई वर्ग में आता है, जो पौधे की जड़ों के साथ संबंध बना कर फास्फोरस अवशोषण में मदद करते हैं, इसलिए इन्हें फास्फेट अवशोषक जैव उर्वरक भी कहा जाता है.

माइकोराईजा पौधे के बाहरी जड़ तंत्र का विकास करने में सहायक है. इस से पौधों को मृदा में उपस्थित अनेक तरह के पोषक तत्त्व ग्रहण करने में मदद मिलती है. पौधों को रोगग्रस्त होने से बचाता है. पौधों का अच्छा विकास होता है.

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जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल में सावधानियां

* जैव उर्वरक को छाया में सूखे स्थान में रखें.

* फसल के अनुसार ही जैव उर्वरक का चुनाव करें.

* जैव उर्वरक का उचित मात्रा में इस्तेमाल करें.

* जैव उर्वरक खरीदते समय उर्वरक का नाम, बनाने की तारीख व फसल का नाम आदि ध्यान से देख लें.

* जैव उर्वरक का इस्तेमाल समाप्ति की तारीख के बाद न करें.

प्यार ने तोड़ी मजहब की दीवार

बिहार के जिला बेगूसराय के थाना साहेबपुर कमाल की रहने वाली चांदबीबी का नाम ऐसे ही चांदबीबी नहीं था. वह चांद जैसी सुंदर भी थी. और किसी के लिए भले ही वह चांद जैसी सुंदर न रही हो, पर मांबाप को तो वह चांद का ही टुकड़ा लगती थी.  यही वजह थी कि उस की अम्मी की नजर हर वक्त उस पर टिकी रहती थी.

चांदबीबी जैसे ही 16 साल की हुई नहीं थी कि अम्मी हर बात में रोकटोक करने लगी थीं. वह घर से निकलने लगती, तुरंत पूछ लेतीं, ‘‘कहां जा रही है चांद? कब तक लौटेगी? किस के साथ जा रही है? क्यों जा रही है?’’

चांदबीबी अम्मी के इन सवालों से खीझ उठती. लेकिन न चाहते हुए भी उसे मां के सवालों के जवाब देने ही पड़ते. भले ही वह झूठ बोल देती. क्योंकि हर बार वह सच बता नहीं सकती थी. अगर सच बता देती तो उस की अम्मी उसे कतई न जाने देतीं.

इतना ही नहीं, उस की अम्मी उस के सजनेधजने और कपड़ों पर ही उतना ध्यान ही रखती थीं. वह कितना सज रही है, कैसे कपड़े पहन रही है, इन बातों पर भी उन की नजर रहती थी.

यही वजह थी कि चांदबीबी को अम्मी का स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोजाना तो छोड़ो, रविवार को भी देर तक नहीं सोने देती थीं.

सवेरा होते हो वह चिल्लाने लगती थीं, ‘‘चल उठ जा चांद, देख सूरज सिर पर आ गया है. पढ़नेलिखने वाले बच्चों को इतनी देर तक बिलकुल नहीं सोना चाहिए. फिर तू तो लड़की है. लड़कियों को मर्दों से पहले उठ जाना चाहिए. कल को ससुराल जाएगी तो वहां इस तरह देर तक सोएगी तो सासससुर क्या कहेंगे? कहेंगे कि मांबाप ने यही सब सिखाया है. कितनी बदनामी होगी हमारी.’’

मां की ये बातें चांदबीबी को जरा भी नहीं सुहाती थीं. वह मन ही मन सोचती, अभी तो उस की खेलने, खाने और जिंदगी के मजे लेने की उम्र है. और एक अम्मी हैं, अभी से शादीब्याह की बातें कर रही हैं. जैसे वह सिर्फ ब्याह करने के लिए ही पैदा हुई है. अरे वह लड़की है तो क्या हुआ? क्या वह पढ़लिख कर लड़कों की तरह नौकरी नहीं कर सकती? अब्बा तो कहते भी हैं कि ‘चांद मेरी बेटी नहीं, बेटा है.’

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चांदबीबी सचमुच पढ़लिख कर सरकारी स्कूल में अध्यापिका बनना चाहती थी. इसलिए वह पढ़ने में खूब मेहनत करती थी. परिणामस्वरूप वह क्लास में प्रथम श्रेणी में पास होती थी. इसीलिए तो वह अपने अब्बू की लाडली थी. अम्मी उस की उन से कितनी भी शिकायत करतीं, वह कभी भी उसे कुछ नहीं कहते थे.

क्योंकि उन्हें अपनी बिटिया पर पूरा भरोसा था. कोई भी बात होती तो वह मुसकराते हुए कहते, ‘‘चांद की अम्मी, तुम हमेशा उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि चांद मेरा नाम चांद की ही तरह रोशन करेगी.’’

चांदबीबी सचमुच अपने अब्बा का नाम रोशन करती, पर उसी बीच वह प्यार की राह पर चल पड़ी. बात 5 साल पहले यानी सन 2016 की है. चांद ने उस समय 11वीं की परीक्षा दी थी. मार्च महीने का अंतिम सप्ताह था. उस दिन रविवार था.

परीक्षा खत्म हो जाने की वजह से वह उस दिन जी भर कर सोना चाहती थी, क्योंकि एक दिन पहले ही शनिवार को उस की परीक्षा खत्म हुई थी. पर रोज की ही तरह सवेरा होते ही उस की अम्मी चिल्ला पड़ीं, ‘‘चांद सवेरा हो गया है, अब उठ जा.’’

उठने की कौन कहे, चांद ने कानों पर चादर लपेटी और करवट बदल कर सो गई. क्योंकि अभी उस का मन बिलकुल उठने का नहीं था. पर इस घर में उस के मन की कहां चलती थी. यहां तो वही होता था, जो अम्मी चाहती थीं.

उस ने सोचा था कि परीक्षाएं खत्म हो गई हैं, इसलिए अम्मी एक आवाज लगा कर शांत हो जाएंगी. पर अम्मी तो एक बार जो ठान लेती थीं, उसे कर के ही दम लेती थीं. ऐसा ही उस दिन भी हुआ.

चांदबीबी की उम्मीद के विपरीत उस की अम्मी ने चादर पकड़ कर खींची तो मजबूरन उसे उठना पड़ा. उठ कर वह चारपाई पर बैठेबैठे आंखें मल रही थी कि तभी उसे याद आया कि आज तो उसे सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है. यह याद आते ही वह इस तरह फुरती से चारपाई से उठी, जैसे उसे करंट लगा हो.

उस ने घड़ी देखी तो अब तक साढ़े 8 बज चुके थे. उस की सहेलियों ने 9 बजे तक तैयार होने के लिए कहा था. अब इतने कम समय में वह कैसे तैयार होगी, यह सोच कर वह फुरती से उठ कर मां से बोली, ‘‘अम्मी, आप थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं?’’

‘‘अरे, तू तो अभी भी उठने को तैयार नहीं थी. अब उठ गई है तो कह रही कि थोड़ा पहले नहीं उठा सकती थीं. कहीं जाना है क्या?’’

‘‘आज सहेलियों के साथ बलिया कस्बे में लगा डिजनीलैंड मेला देखने जाना है,’’ चांदबीबी ने कहा.

‘‘कल ही तो तुम्हारी परीक्षा खत्म हुई है. एकदो दिन आराम कर लो. उस के बाद मेला देखने चली जाना,’’ चंदा की अम्मी ने कहा, ‘‘अरे बिटिया मेला ही तो देखने जाना था. तू तो इस तरह झटके से उठी, जैसे तेरी गाड़ी छूटने वाली हो.’’

‘‘9 बजे का टाइम दिया है अम्मी. साढ़े 8 तो बज ही गए हैं. 9 बजे मेरी सहेलियां आ जाएंगी.’’ कह कर चांद दैनिक क्रियाओं से निबटने के लिए भागी.

यह तो अच्छा था कि घर में टौयलेट था, वरना उसे खेतों में जाना पड़ता तो और देर हो जाती. जल्दीजल्दी फ्रैश होने के बाद नहा कर वह कपड़े निकाल ही रही थी कि तभी उस की सारी सहेलियां आ गईं.

सहेलियों से कह कर वह अपने कमरे में कपड़े पहन रही थी कि तभी उस की अम्मी कमरे में आ गईं. जो कपड़े उस ने मेला जाने के लिए निकाले थे, उन्हें देख कर उस की अम्मी भड़क गईं. बाहर उस की सहेलियां बैठी थीं, इसलिए वह चिल्लाईं तो नहीं, फिर भी वह जिस तरह जोर से फुसफुसा कर बोली थीं, वह एक तरह से चिल्लाने जैसा ही था.

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उन्होंने कहा था, ‘‘तेरे पास मेला जाने के लिए यही कपड़े हैं? इस के अलावा और कपड़े नहीं हैं क्या?’’

‘‘इन कपड़ों में क्या बुराई है अम्मी?’’ चांदबीबी ने हैरानी से पूछा.

‘‘ये कपड़े पहन कर तू बाहर मेले में जाएगी?’’

‘‘खरीदा तो पहनने के लिए ही है न अम्मी. अगर इन्हें पहन कर बाहर नहीं जाऊंगी तो क्या इतने महंगे कपड़े घर में पहनूंगी.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तू इन्हें पहन कर मेले में नहीं जाएगी बस. तेरे पास सलवारसूट नहीं क्या, जो तू इन्हें पहन रही है.’’ चांदबीबी की अम्मी बड़बड़ाईं.

अम्मी की इस बात से चंदा का मूड खराब हो गया. उस ने कपड़े फेंक कर गुस्से में कहा, ‘‘ठीक है, तुम नहीं चाहती कि मैं ये कपड़े पहनूं, तो मैं मेला देखने नहीं जा रही. जाओ, मेरी फ्रैंड्स से कह दो कि चांद मेला देखने नहीं जा रही.’’

‘‘जा तेरी जो मरजी हो, वह कर. तुझे यही कपड़े पहनने हैं तो इन्हें ही पहन कर जा. आजकल के बच्चे वही करते हैं, जो उन के मन में आता है. मांबाप की तो सुनते ही नहीं. कल को शादी करनी होगी, तब भी इसी तरह जिद कर लेना कि मैं तो अपने मनपसंद लड़के से ही शादी करूंगी, वरना करूंगी ही नहीं.’’

‘‘बात कपड़ों की हो रही है तो बीच में शादीब्याह कहां से आ गया,’’ चांदबीबी बोली.

‘‘तेरी जैसी लड़कियां ही शादी में भी ऐसी ही जिद करती हैं. खैर छोड़, तुझे मेला देखने जाना है न. अब अपने मन की कर के जा. तेरी सहेलियां बाहर बैठी राह देख रही हैं,’’ अम्मी बड़बड़ाईं.

कपड़े पहन कर चांदबीबी कमरे से बाहर आई तो आंगन में उस के अब्बू बैठे थे. उन के सामने हाथ फैलाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब्बू मेला देखने जा रही हूं, खर्चापानी.’’

अब्बू ने बिना कुछ कहे 500 का नोट निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए. 500 रुपए देते देख उस की अम्मी ने कहा, ‘‘इतने पैसे क्या करेगी?’’

‘‘मेले में कुछ पसंद आ गया तो वहां किस के सामने हाथ फैलाएगी. जा बेटी, तू जा.’’ चांदबीबी के अब्बू ने कहा.

बहरहाल, चांदबीबी अपनी पसंद के कपड़े पहन कर बाहर आई तो एकदम परी लग रही थी. उस की सहेलियां उसे देखती ही रह गईं. घर में तो वह कुछ नहीं बोलीं, पर घर के बाहर आते ही उन में से एक ने कहा, ‘‘यार चांद, आज तो कोई हम लोगों की ओर देखेगा ही नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ चांदबीबी ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘अरे जिसे देखना होगा वह तुझे ही देखेगा. तेरे आगे हम लोगों को कौन देखेगा?’’ उसी सहेली ने हंसते हुए कहा.

‘‘सचमुच मैं इतनी सुंदर लग रही हूं?’’

‘‘एकदम परी लग रही है आज तो तू.’’

‘‘चल, आज मैं ही मिली थी तुझे उल्लू बनाने को.’’

इसी तरह की बातें करते हुए सारी सहेलियां सड़क पर आ गईं. सड़क पर आते ही उन्हें शेयरिंग आटो मिल गया, जिस में बैठ कर सभी डिजनीलैंड मेला पहुंच गईं.

पूरा दिन मेले का आनंद लेने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ दोपहर बाद 4 बजे चाट खाने पहुंची. मेला तो चाटपकौड़ी का होता ही है. चांदबीबी ने सभी के लिए आलू की टिक्की की चाट बनवाई.

उस ने जैसे टिक्की का पहला चम्मच मुंह में रखा, उस के मुंह में जैसे आग लग गई. पहले ही चम्मच में तीखी मिर्च का टुकड़ा उस के मुंह में चला गया था.

मुंह में डाला टिक्की का टुकड़ा उगल कर वह सी… सी… करने लगी. उस की आंखों से आंसू धार की तरह बह रहे थे. उस की सहेलियां ही नहीं, वहां खड़े सभी लोग उस की ओर ताकने लगे थे.

कोई कुछ समझ पाता, उस के पहले ही वहां खड़े एक युवक ने दौड़ कर उसे पानी का गिलास थमा दिया. पानी पीने से भी चांदबीबी को आराम नहीं मिल रहा था. मिर्च शायद बहुत तीखी थी.

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उसे परेशान देख कर उस की सहेलियां ही नहीं, दुकानदार और वहां खड़े सभी लोग परेशान थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए.

हां, कुछ लोग सलाह जरूर दे रहे थे कि चीनी खा लो या मिठाई खा लो. पर कर कोई कुछ नहीं रहा था. तभी चांदबीबी को पानी पिलाने वाले युवक ने आइसक्रीम ला कर चांद से कहा, ‘‘इसे खा लो, तुरंत आराम मिल जाएगा.’’

किसी भी तरह की शर्म या संकोच किए बगैर चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम ले कर खानी शुरू कर दी. थोड़ी सी आइसक्रीम खाते ही उसे आराम मिल गया.

युवक का धन्यवाद अदा करते हुए चांदबीबी ने युवक से आइसक्रीम के पैसे पूछे तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘दोस्त से कोई पैसे लेता है क्या? कभी आप भी मुझे इसी तरह आइसक्रीम खिला दीजिएगा.’’

‘‘प्रौमिस, पर आप को भी मुझ से आइसक्रीम खाने के मेरी तरह ही तीखी मिर्च खानी होगी.’’

‘‘आप के हाथ की आइसक्रीम खाने के लिए मिर्च तो क्या, मैं न जाने क्याक्या खा लूं,’’ युवक ने कहा.

उस की इस बात पर सभी हंसने लगे. चांदबीबी के लिए दुकानदार ने टिक्की की दूसरी प्लेट बना कर दी. चाट खाने के बाद चांदबीबी सहेलियों के साथ घर जाने के लिए सड़क पर आई, तो देखा वही युवक आटो लिए सवारियों के इंतजार में खड़ा था. चांदबीबी ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘आप आटो चलाते हैं क्या?’’

‘‘जी, आप लोग कहां जाएंगी?’’

‘‘साहेबपुर कमाल.’’

‘‘आइए बैठिए. मैं उधर ही जा रहा हूं,’’ युवक ने कहा.

सारी लड़कियां उस युवक के आटो में सवार हो गईं. 1-2 सवारियां और ले कर युवक आटो ले कर चल पड़ा.

रास्ते में बातचीत में पता चला कि उस युवक का नाम राजीव कुमार था. वह भी बिहार के ही जिला बेगूसराय के थाना बलिया के सतीचौक के रहने वाले कैलाश पासवान का बेटा था. वह पढ़ाई छोड़ कर आटो चलाता था.

उस का अपना आटो था, इसलिए उस की ठीकठाक कमाई हो जाती थी. उस दिन भी वह अपना आटो चला रहा था. शाम को भूख लगी तो वह चाट खाने चला गया था, जहां उस की मुलाकात चांदबीबी से हो गई थी. उसी मुलाकात में राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच दोस्ती हो गई थी. यह सन 2016 की बात है.

राजीव कुमार पासवान थाना साहेबपुर कमाल और बलिया के बीच ही अपना आटो चलाता था.

चांदबीबी इसी रास्ते से स्कूल आतीजाती थी, जिस से अकसर उस की मुलाकात हो राजीव कुमार से हो जाती थी. जब भी चांदबीबी उसे मिलती, वह आटो रोक कर उस का हालचाल जरूर पूछता था. इसीलिए धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी.

राजीव कुमार अकसर उसी समय उस रास्ते से गुजरता था, जब चांदबीबी स्कूल जा रही होती थी. शायद चांदबीबी राजीव कुमार को भा गई थी. भाती भी क्यों न, वह थी ही इतनी सुंदर.

राजीव कुमार को ही नहीं, वह तो सभी लड़कों को अच्छी लगती थी. पर वह राजीव के अलावा किसी अन्य लड़के को घास तक नहीं डालती थी.

चांदबीबी उन दिनों उम्र के उस दौर में थी, जब इंसान के जो मन में आता है,  वही करना उसे अच्छा लगता है. उस का परिणाम क्या होगा, इस बारे में वह नहीं सोचता. 17-18 साल की उम्र लड़का हो लड़की, बहुत ही खतरनाक होती है. इस उम्र में लड़का हो या लड़की, उसे बहकते देर नहीं लगती.

आखिरकार लगातार राजीव कुमार से मिलने की वजह से चांदबीबी भी बहक गई. उसे राजीव कुमार से मिलना और बातें करना अच्छा लगने लगा था. शायद यही वजह थी कि वह अब राजीव का इंतजार करने लगी थी.

राजीव कुमार चांदबीवी से उम्र में थोड़ा बड़ा था. पर इतना भी बड़ा नहीं था कि चांदबीबी से उस का मिलनाजुलना ठीक नहीं था. वह उस से ढाईतीन साल ही बड़ा था. चांदबीबी सुंदर थी, इसलिए राजीव भी उसे पसंद करता था.

लड़कों को जवानी में वैसे भी हर लड़की अच्छी लगती है. बात तो तब गंभीर हो जाती है, जब उसे किसी लड़की से सचमुच में प्यार हो जाता है.

लड़का हो या लड़की, उन्हें एकदूसरे के मन की बात सामने वाले के हावभाव से ही पता चल जाती है. ऐसा ही राजीव कुमार और चांदबीबी के मामले में भी हुआ.

लगातार मिलने से उन के मनों में चाहत जागी तो उन का देखना और बातचीत करने का तरीका बदल गया. फिर तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया है.

फिर तो चांदबीबी और राजीव कुमार ने एकदूसरे से प्यार ही नहीं किया, बल्कि एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. उस समय दोनों ने यह भी नहीं सोचा कि उन के बीच जातिपांत की ही नहीं, धर्म की इतनी चौड़ी खाई है कि उन्हें एक होने के लिए उस खाई को पार करना आसान नहीं होगा.

चांदबीबी और राजीव कुमार ही इस बारे में कैसे सोचते, इस बारे में तो कोई भी प्रेम करने वाला नहीं सोचता. राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच धर्म की बहुत ही चौड़ी खाई थी. राजीव कुमार जहां हिंदू था, वहीं चांदबीवी मुसलिम थी. राजीव कुमार के घर वाले तो किसी तरह मान भी जाते, पर चांदबीबी के घर वाले तो अपनी बेटी की शादी एक हिंदू लड़के से करने को कभी तैयार न होते.

दिनोंदिन चांदबीबी और राजीव कुमार का प्रेम गहराता गया. चांदबीबी भले ही राजीव कुमार से प्यार करती थी, लेकिन वह उस के प्यार में पागल नहीं थी. पागल वह इसलिए नहीं थी, क्योंकि वह हर हाल में राजीव कुमार को पाना चाहती थी.

इस के लिए उसे अपना कैरियर बनाना जरूरी था. क्योंकि नौकरी लगने के बाद घर वाले उस से संबंध तोड़ भी देते तो उसे अपना जीवन बिताने में खास परेशानी न होती. इसीलिए वह राजीव कुमार से इस तरह मिलती थी कि किसी को पता नहीं चल पाता था.

चोरीछिपे राजीव कुमार से मिलते हुए चांदबीबी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली. चांदबीबी भले ही बहुत संभाल कर अपने प्रेमी से मिलती थी, पर उस के प्यार की हलकीफुलकी भनक उस के घर वालों को लग ही गई थी.

क्योंकि प्यार को कितना भी छिपाओ, वह छिपता नहीं है. लेकिन यहां मजे की बात यह थी कि कभी किसी ने उसे राजीव कुमार के साथ इस तरह नहीं देखा था कि उस की पढ़ाई बंद करा दी जाती या उसे घर में कैद कर दिया जाता.

फिर भी उस पर थोड़ीबहुत नजर तो रखी ही जाने लगी थी. उन दोनों की मुलाकातों को भी शक की नजरों से देखा जाने लगा था. इसलिए दोनों ज्यादातर फोन पर ही दिल की बातें कर लेते थे. अगर मिलते भी थे तो बड़ी सावधानी से.

चांदबीबी ग्रैजुएशन कर के नौकरी की तैयारी कर रही थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद चांदबीबी बहुत कम घर से बाहर जा पाती थी. इस की एक वजह यह भी थी कि भले ही घर वालों ने उसे कभी रंगेहाथों नहीं पकड़ा था, पर उन्हें उस पर शक तो था ही.

इधर जब से स्मार्टफोन आ गया है, तब से प्रेम करने वालों को बड़ी सुविधा मिल गई है. अगर उन्हें आमनेसामने मिलने या बात करने का मौका नहीं मिलता तो वे वीडियो काल कर के एकदूसरे को देख तो लेते ही हैं. बातचीत नहीं कर पाते तो दिल की बातें संदेश भेज कर कह देते हैं.

ऐसा ही कुछ राजीव कुमार और चांदबीबी के बीच भी चल रहा था. क्योंकि शक होने की वजह से उसे घर के बाहर नहीं जाने दिया जाता था.

वह राजीव कुमार को फोन भी नहीं कर पाती थी. जो कुछ भी कहना होता था, संदेश भेज कर कह देती थी. उस ने उस का नंबर भी अपनी सहेली के नाम से सेव कर रखा था. क्योंकि कभीकभी भाई उस का मोबाइल ले कर देखने लगता था.

चांदबीबी चाहती थी कि जल्द से जल्द उस की नौकरी लग जाए, जिस से वह कोर्ट में राजीव से शादी कर ले. क्योंकि अब तक वह बालिग हो चुकी थी. वह अध्यापिका बनना चाहती थी, जिस के लिए वह बड़ी मेहनत से तैयारी कर रही थी.

परीक्षा की तैयारी के लिए उसे कुछ किताबों की जरूरत थी, जो शहर में ही मिल सकती थीं. घर वालों से वह किताबों के लिए कह नहीं सकती थी. अगर कहती भी तो कोई न लाता. इसलिए उस ने किताबों के लिए राजीव कुमार को संदेश भेजा.

राजीव कुमार के लिए तो यह खुशी की बात थी. चांदबीबी के लिए वह किताबें तो क्या, अगर वह कह देती तो वह उस के लिए चांदतारे भी तोड़ कर लाने को तैयार हो जाता.

चांदबीबी ने जो किताबें मंगाई थीं, राजीव कुमार शहर से उन्हें खरीद लाया. इस बात का उस ने चांदबीबी को संदेश भेजा तो चांदबीबी ने उसे देने का स्थान बता कर रात को बुला लिया.

राजीव कुमार प्रेमिका से मिलने की खुशी में किताबें ले कर 24 अगस्त, 2021 की रात को उस स्थान पर पहुंच गया, जहां चांदबीबी ने उसे बुलाया था. चांदबीबी और राजीव कुमार ने सोचा था कि रात होने की वजह से उन्हें कोई देख नहीं पाएगा.

पर राजीव कुमार से मिलने के लिए जैसे ही चांदबीबी घर से निकली थी, संदेह होने की वजह से उस के भाई उस के पीछ लग गए थे.

यही वजह थी कि जैसे ही चांदबीबी और राजीव कुमार एकदूसरे से मिले, चांदबीबी के भाइयों ने राजीव कुमार को पकड़ लिया. इस के बाद उसे गांव ला कर उस की जम कर पिटाई की और उसे पुलिस के हवाले कर दिया.

राजीव कुमार की पिटाई से चादबीबी को बहुत दुख पहुंचा. इस बात से आहत चांदबीबी ने जहर खा लिया. क्योंकि इस पूरी घटना के लिए उस ने खुद को दोषी माना. उस का सोचना था कि अगर उस ने राजीव कुमार को न बुलाया होता तो न वह रात को उस से मिलने आता और न उस की पिटाई होती और न उसे पुलिस के हवाले किया जाता.

जहर खाने के बाद जब चांदबीबी की हालत बिगड़ी तो घर वाले उसे जिला अस्पताल ले गए. मामला आत्महत्या करने का था, इसलिए अस्पताल वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. फिर तो यह बात मीडिया तक पहुंच गई.

मीडिया ने जब अस्पताल जा कर चांदबीबी से बात की तो उस ने साफ कहा कि वह राजीव के बिना नहीं रह सकती. अगर उस का ब्याह राजीव कुमार से नहीं किया गया तो वह जान दे देगी.

जब मीडिया द्वारा यह बात आम लोगों तक पहुंची तो चांदबीबी और राजीव कुमार के इस प्यार के बारे में जान कर लोगों में उन के प्रति संवेदना जाग उठी.

मीडिया द्वारा ही यह बात बजरंग दल को भी पता चली तो सभी ने मिल कर राजीव कुमार और चांदबीबी की शादी कराने का निर्णय लिया. पर दिक्कत यह थी कि चांदबीबी के घर वालों ने राजीव कुमार को जेल भिजवा दिया था.

पहले तो सभी ने राजीव कुमार की जमानत कराई. उस के बाद पुलिस की ही मदद से 27 अगस्त, 2021 को राजीव कुमार और चांदबीबी का विवाह बरौनी प्रखंड के गडहरा के आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज के अनुसार करा दिया. सैकड़ों लोग इस विवाह के गवाह बने.

विवाह के बाद शपथ पत्र दे कर चांदबीबी ने हिंदू धर्म अपनाते हुए अपना नाम चांदबीबी की जगह चंदा देवी रख लिया है.

चांदबीबी के घर वाले शादी से पहले उसे काफी परेशान कर रहे थे, इसलिए उस की और राजीव कुमार की जान का खतरा महसूस करते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय संयोजक शुभम भारद्वाज ने पुलिस प्रशासन से मिल कर दोनों की सुरक्षा की मांग की. बहरहाल, दोनों प्रेमी इस विवाह से बहुत खुश हैं.

Manohar Kahaniya: पति को उड़ा ले गई इश्क की आंधी

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इसी दौरान रोशनी पति के दोस्त सोनू कुशवाहा के संपर्क में आई. इन दोनों के इश्क की आंधी मूलचरण को इतनी दूर उड़ा कर ले गई कि…

जालौन जिले के कुंवरपुरा गांव के कुछ लोग सुबह करीब 7 बजे अपने खेतों की तरफ जा रहे थे

तो उन्होंने बंबी पुलिया के पास झाडि़यों में एक युवक की लाश देखी. लाश देखते ही उन के पैर वहीं रुक गए और वह उसे गौर से देखने लगे. उस युवक का सिर ईंट से कुचला हुआ था. खून लगी ईंट भी वहीं पड़ी थी. इस के बाद कुछ ही देर में यह खबर कुंवरपुरा गांव सहित माधौगढ़ कस्बे तक फैल गई. जिस से थोड़ी ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने इस की सूचना थाना माधौगढ़ में फोन द्वारा दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना पा कर थानाप्रभारी प्रवीण कुमार का मन कसैला हो गया. उन्होंने इस सूचना से पुलिस अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस के बाद एसआई रामवीर सिंह, कांस्टेबल देवेंद्र सिंह व विपिन कुमार को साथ ले कर वह घटनास्थल पहुंच गए.

उस समय वहां भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर उन्होंने झाडि़यों में पड़े शव को देखा. फिर सहयोगियों की मदद से शव को बाहर निकलवाया. शव के पास ही मोटरसाइकिल भी पड़ी थी. उसे भी उन्होंने निकलवाया. यह बात 3 जून, 2021 की है.

मृत युवक की उम्र 30 साल के आसपास थी. उस के सिर में पीछे की ओर गहरा जख्म था. मोटरसाइकिल पर भी ईंट के निशान थे. यह शायद इस वजह से किया गया था ताकि युवक की मौत दुर्घटना से हुई लगे.

अन्य सबूत तलाशने के दौरान पुलिस को झाडि़यों से एक ईंट मिली, जिस पर खून लगा था. थानाप्रभारी प्रवीण कुमार को समझते देर नहीं लगी कि इसी ईंट से प्रहार कर युवक को मौत के घाट उतारा होगा. फिर दुर्घटना का रूप देने के लिए कातिलों ने उस की मोटरसाइकिल भी ईंट से तोड़फोड़ कर झाडि़यों में गिरा दी होगी. उन्होंने ईंट को सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

इसी बीच सूचना पा कर एसपी यशवीर सिंह, एएसपी राकेश कुमार सिंह तथा डीएसपी (माधौगढ़) विजय आनंद भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा थानाप्रभारी प्रवीण कुमार से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. उन्होंने बताया कि अब तक दरजनों लोग शव को देख चुके हैं. लेकिन शव की शिनाख्त नहीं हो पाई है.

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पुलिस अधिकारी शव की शिनाख्त कराने का प्रयास कर ही रहे थे कि एक युवक बदहवास हालत में वहां आया और शव देख कर रो पड़ा. पुलिस अधिकारियों ने उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का नाम मंगल सिंह कुशवाहा है. वह माधौगढ़ कस्बे के मोहल्ला जवाहर नगर का रहने वाला है.

यह शव उस के छोटे भाई मूलचरण कुशवाहा का है. वह बीती शाम को मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला था. तब से घर वापस नहीं लौटा था. उस की पत्नी रोशनी ने उसे सुबह उस के लापता होने की सूचना दी थी. तब से वह परेशान था. कुछ देर पहले उसे बंबी में लाश पाए जाने की खबर लगी थी, उसी के बाद वह यहां आया है.

मृतक की शिनाख्त होते ही पुलिस अधिकारियों ने 2 सिपाहियों सहित पुलिस जीप भेज कर मृतक की पत्नी रोशनी को घटनास्थल पर बुलवा लिया. रोशनी पति की लाश देखते ही फूटफूट कर रोने लगी.

डीएसपी विजय आनंद ने उसे समझाबुझा कर शांत कराया और वहां की सारी औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जालौन के जिला अस्पताल भिजवा दी.

इस के बाद पुलिस थाना माधौगढ़ लौट आई. एसपी यशवीर सिंह ने हत्या के इस मामले की जांच इंसपेक्टर प्रवीण कुमार को सौंप दी. उन्होंने सहयोगियों के साथ जांच शुरू की तो उन्हें मृतक की पत्नी रोशनी पर शक हुआ.

क्योंकि घटनास्थल पर जब रोशनी रो रही थी, तो उन्होंने महसूस किया था कि पति की मौत पर कोई पत्नी जिस तरह रोती है, वैसा दर्द रोशनी के रोने में नहीं था. लग रहा था जैसे वह दिखावे के लिए रो रही है. इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत रोशनी से ही की.

प्रवीण कुमार ने रोशनी को थाने बुला कर पूछताछ शुरू की. उन्होंने सरसरी निगाह से रोशनी को देखा फिर पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ?’’

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रोशनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘बीती शाम उन का अंडे खाने का मन हुआ, तो वह अंडे लेने निकले. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. मुझे लगा कि वह किसी दोस्त के साथ होंगे और उसी के घर रुक गए होंगे. रात 12 बजे तक मैं ने उन का इंतजार किया फिर मैं सो गई.’’

रोशनी का बयान इंसपेक्टर प्रवीण कुमार के गले नहीं उतर रहा था. जिस औरत का पति रात को घर न आए, भला वह निश्चिंत हो कर कैसे सो सकती है? उन्हें लग रहा था कि किसी न किसी रूप में रोशनी पति की हत्या में शामिल है. लेकिन उस के खिलाफ उन के पास कोई ठोस सबूत न होने की वजह से वह उस पर सीधा आरोप नहीं लगा पा रहे थे.

सबूत जुटाने के लिए थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मृतक के बड़े भाई मंगल कुशवाहा से पूछताछ की. उस ने बताया कि रोशनी चंचल स्वभाव की है. जिस की वजह से मूलचरण और रोशनी की पटरी नहीं बैठती थी. उस का चालचलन भी अच्छा नही है.

उस के घर मोहल्ले के युवक सोनू कुशवाहा का आनाजाना है. सोनू को ले कर पतिपत्नी में अकसर तनाव रहता था. कई बार दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ था.

‘‘मूलचरण की हत्या में कहीं रोशनी और सोनू तो शामिल नही हैं?’’ प्रवीण कुमार ने मंगल कुशवाहा से पूछा.

‘‘साहब, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन शक मुझे भी है.’’ मंगल सिंह ने कहा.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. प्रवीण कुमार ने सोनू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने पुलिस टीम के साथ उस के जवाहर नगर स्थित घर पर छापा मारा तो वह घर से फरार था. पता चला कि वह अपनी बहन के घर कोंच गया है.

प्रवीण कुमार ने उस की बहन की ससुराल में दबिश दी तो पता चला कि वह वहां गया ही नहीं था. प्रवीण कुमार ने अब अपने मुखबिरों के माध्यम से सोनू की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 6 जून की सुबह 7 बजे उन्हें मुखबिर से पता चला कि सोनू कस्बे की गल्लामंडी गेट पर मौजूद है. वह मुखबिर को साथ ले कर गल्लामंडी गेट पर पहुंचे तो सोनू पकड़ में आ गया.

उसे थाना माधौगढ़ लाया गया. वहां उस की जामातलाशी ली गई तो उस के पास से एक मोबाइल फोन तथा 300 रुपए नकद बरामद हुए.

थाने में जब सोनू से मूलचरण की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मूलचरण उस का दोस्त था. घर आतेजाते उस का नाजायज रिश्ता उस की पत्नी रोशनी से बन गया था. जानकारी होने पर वह विरोध करने लगा.

वह रोशनी को अपने साथ हरियाणा ले जाना चाहता था, लेकिन रोशनी पति के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह स्वयं भी नहीं चाहता था कि रोशनी उस का साथ छोड़ कर पति के साथ जाए.

इसी खुन्नस में उस ने रोशनी के कहने पर अपने दोस्त पवन के साथ मिल कर मूलचरण की हत्या की योजना बनाई और 2 जून, 2021 की रात 10 बजे उस की हत्या कर शव को बंबी किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. उस की मोटरसाइकिल को भी ईंट से क्षतिग्रस्त कर वहीं झाडि़यों में डाल दी.

पवन को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने कई संभावित ठिकानों पर छापा मारा, लेकिन वह हाथ नहीं आया. चूंकि षडयंत्र में रोशनी शामिल थी, अत: पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मूलचरण की हत्या का परदाफाश करने तथा आरोपियों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एएसपी राकेश कुमार सिंह ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित की और मूलचरण की हत्या का खुलासा किया. उन्होंने परदाफाश करने वाली टीम की पीठ भी थपथपाई.

चूंकि आरोपी सोनू कुशवाहा तथा उस की प्रेमिका रोशनी ने जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी प्रवीण कुमार ने मृतक के भाई मंगल सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सोनू कुशवाहा, रोशनी तथा पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सोनू व रोशनी को गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस पूछताछ में एक ऐसी महिला की कहानी सामने आई, जिस ने प्रेमी की मदद से अपना ही सुहाग उजाड़ दिया था.

रोशनी के पिता रामनाथ कुशवाहा जालौन जिले के गांव देवरा के रहने वाले थे. रामनाथ की आजीविका खेतीकिसानी से चलती थी. उस का परिवार बड़ा था, पर जिस खेती के सहारे उस का परिवार चल रहा था, वह काफी कम थी. रामनाथ की 3 बेटियां तथा एक बेटा था. 2 बड़ी बेटियों की वह शादी कर चुके थे. अब छोटी बेटी रोशनी व बेटा गगन कुंवारे थे.

अपनी बहनों में रोशनी सब से छोटी थी. खूबसूरत तो वह बचपन से ही थी, लेकिन किशोरावस्था पार करते ही उस की खूबसूरती में और भी निखार आ गया था.

पिता को रोशनी के जवान होने का अहसास था. इसलिए वह उस के लिए वर की तलाश में जुटे थे. लेकिन माली हालत खराब होने के कारण वह उस का रिश्ता तय नहीं कर पा रहे थे.

इधरउधर काफी प्रयास करने के बाद उन्होंने मूलचरण को रोशनी के लिए पसंद कर लिया. मूलचरण के पिता छोटेलाल कुशवाहा जालौन जिले के माधौगढ़ कस्बे के रहने वाले थे. जवाहर नगर मोहल्ले में उन का मकान था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे मंगल सिंह तथा मूलचरण थे.

मंगल सिंह का विवाह हो चुका था, जबकि मूलचरण अभी कुंवारा था. मूलचरण का मन खेतीकिसानी में नहीं लगता था. इसलिए वह पानीपत (हरियाणा) चला गया था. वहां वह पानीपूरी बेचने का काम करता था.

हालांकि मूलचरण का रंग सांवला व उम्र भी अधिक थी, इस के बावजूद उस की मजबूत आर्थिक स्थिति को देख कर रामनाथ ने उसे अपनी बेटी रोशनी के लिए पसंद कर लिया था. मई 2015 में रामनाथ ने अपनी बेटी रोशनी का विवाह मूलचरण के साथ कर दिया.

रोशनी सुंदर तो थी ही, दुलहन के वेश में उस की सुंदरता और निखर आई थी. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की तारीफ किए बिना न रह सका.

सब खुश थे, लेकिन रोशनी खुश नहीं थी. क्योंकि वह सांवला व अधिक उम्र का था, इसलिए उस से शादी कर के वह बहुत दुखी थी. उस के सारे अरमान चकनाचूर हो गए थे.

फिर भी उस ने नियति के इस निर्णय को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया. दांपत्य जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी तो बढ़ती ही चली गई. रोशनी को सपनों का राजकुमार नहीं मिला था, पर मूलचरण को उस के सपनों की रानी जरूर मिल गई थी. वह उस की हर जरूरत का खयाल रखता था.

रोशनी संयुक्त परिवार में रहती थी. कामकाज को ले कर उस की अपनी जेठानी उमा से नहीं पटती थी. रोशनी को जहां अपने हुस्न पर गर्व था, वहीं उमा को अपने हुनर पर. रोशनी की सास उस की जेठानी का ज्यादा पक्ष लेती थी, जिस से रोशनी सास से नाराज रहती थी.

रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर छोटेलाल कुशवाहा ने दोनों बेटों के बीच घर व जमीन का बंटवारा कर दिया था. बंटवारे के बाद मूलचरण अपनी पत्नी रोशनी के साथ अलग मकान में रहने लगा.

रोशनी अलग रहने लगी तो वह स्वच्छंद हो गई. अब उस पर किसी का बंधन नहीं था. वह बनसंवर कर कस्बे के बाजार में घूमती और मनपसंद खरीदारी करती.

मूलचरण का एक दोस्त था सोनू कुशवाहा. वह जवाहर नगर में ही रहता था. उस के पिता की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह व्यापार करते थे. सोनू भी पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. दोस्ती के चलते मूलचरण को जब कभी पैसों की जरूरत होती, वह सोनू से उधार मांग लेता था. पैसा आने पर उधारी चुकता कर देता था.

सोनू की कदकाठी अच्छी थी. वह दिखने में भी बांका जवान था. सोनू और मूलचरण की उम्र में वैसे तो अंतर था, लेकिन दोनों के आचारविचार में काफी समानता थी. इसलिए उन में पटती भी खूब थी. मूलचरण जब घर में होता, तो सोनू उस के घर पहुंच जाता.

दोनों में गपशप होती और कभीकभी खानेपीने का भी दौर चल जाता. इन्हीं नजदीकियों ने उन के संबंधों को और भी प्रगाढ़ बना दिया. सोनू उस के घर के छोटेमोटे काम भी निपटा देता था, इसलिए उस का मूलचरण के घर आनाजाना लगा रहता था. मूलचरण की पत्नी रोशनी को वह भाभी कहता था. रोशनी से उस की खूब गपशप होती थी.

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रोशनी के चेहरे पर ऐसी कशिश थी, जिसे देख कर कोई भी उस की तरफ खिंचा चला आए. उस की झील सी गहरी आंखों में सम्मोहन शक्ति थी. वह जिसे भरपूर निगाहों से देख लेती, वह उस की ओर आकर्षित हो जाता. सोनू पर भी उस के रूप का जादू चल गया था. इसलिए वह रोशनी को मन ही मन चाहने लगा था. वह किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था.

रोशनी का पति मूलचरण पानीपत (हरियाणा) में पानीपूरी बेचने का काम करता था. महीना-2 महीना में वह घर आता था. हफ्ता-10 दिन रहने के बाद वह वापस चला जाता था.

पति के जाने के बाद रोशनी की रातें बेचैनी से कटती थीं. वह जवान थी. उस की देह में वासना भरी हुई थी. हसरतें हसीन रातों का सपना देखती थीं.

औरत जवान हो और पति का साथ न मिले तो सावन की मदमाती बयार भी उसे लू के थपेड़ों जैसी लगने लगती है. रोशनी की दशा भी कुछ ऐसी ही थी. तनहाई में उस की रातें पहाड़ जैसी कटती थीं. उस का मन भटकने लगा था. वह सोचती कुछ और करती कुछ और.

ऐसे में रोशनी को सोनू का घर आनाजाना तथा गपशप लड़ाना अच्छा लगने लगा था. वह भी हैंडसम, हंसमुख व स्मार्ट सोनू पर फिदा हो गई थी. वह सोचने लगी थी कि चेहरामोहरा अच्छा है, आंखें चंचल हैं और शरीर भी हट्टाकट्टा है. रोशनी को लगा यही वह शख्स है, जिस की उस की कामनाओं को तलाश है.

एक दिन सोनू घर आया तो रोशनी आईने के सामने बैठी सजसंवर रही थी. रोशनी को उस रूप में देख कर सोनू से रहा नहीं गया. उस ने पीछे से रोशनी को अपनी बांहों में भर लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

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रोशनी ने भी शरमाते हुए अपना चेहरा सोनू के सीने पर रख दिया. इस के बाद 2 शरीर एक हो गए. मर्यादा की दीवार लांघ कर दोनों ही बहुत खुश थे.

मनपसंद पुरुष के साथ बिस्तर का सुख निराला था, सो उसी दिन से रोशनी तनमन से सोनू की हो गई. वह भूल गई कि वह मूलचरण की ब्याहता है और शादी के वक्त 7 वचनों को निभाने का वादा किया था. उस ने सोनू को ही सब कुछ मान लिया. सोनू ने नारी सान्निध्य का सुख पाया तो वह भी रोशनी का मुरीद हो कर रह गया.

सोनू को जब भी मौका मिलता वह रोशनी को बाजार घुमाने ले जाता. रोशनी जिस चीज की मांग करती, सोनू उसे पूरी कर देता. मूलचरण को दोस्त पर जरा भी शक न था, जबकि सोनू उस की आंखों में घूल झोंक रहा था.

कहते हैं गलत काम को कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उस की भनक लोगों को लग ही जाती है. पहले मोहल्ले में दोनों के संबंधों की हवा फैली फिर धीरेधीरे उन के कारनामों की भनक मूलचरण के कानों में भी पड़ गई.

मूलचरण ने रोशनी को बैठा कर ऊंचनीच समझाई. उसे अपनी इज्जत और समाज का वास्ता दिया, लेकिन रोशनी वास्तविकता से साफ मुकर गई. उस ने मूलचरण से कहा, ‘‘जरूर किसी ने हमारे घर में कलह पैदा करने के लिए तुम्हारे कान भर दिए हैं. सोनू को तो मैं अपने भाई जैसा मानती हूं.’’

रोशनी ने यह बात पति से इतनी दृढ़ता के साथ कही थी कि मूलचरण को उस के चरित्र पर भरोसा हो गया था. लेकिन मूलचरण को उन पर भी भरोसा था, जिन्होंने पत्नी के कारनामों को बताया था. ऐसे में उस ने निर्णय लिया कि वह अपनी आंखों देखी पर विश्वास करेगा.

वह पत्नी की असलियत जानने के लिए तानेबाने बुनने लगा. लेकिन वह रोशनी को रंगेहाथों पकड़ नहीं पाया. कारण रोशनी बेहद सतर्कता बरतने लगी थी. कुछ दिन मूलचरण पत्नी के साथ रहा, फिर हरियाणा चला गया.

अवैध रिश्तों के चलते मंगल कुशवाहा की मोहल्ले में बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने बहू को समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रेम दीवानी रोशनी ने जेठ की बात को दरकिनार कर दिया. परिवार की निगरानी के बावजूद रोशनी किसी न किसी जतन से पे्रमी से मिल ही लेती थी.

मई 2021 के पहले हफ्ते में महामारी के कारण मूलचरण हरियाणा से अपने घर माधौगढ़ आ गया. पति के घर आ जाने से रोशनी और सोनू के मिलन में बाधा पहुंचने लगी. सोनू अब जबतब ही मूलचरण से मिलने के बहाने घर आता था. दोनों पर मूलचरण कड़ी नजर रखता था. मिलन न हो पाने के कारण दोनों परेशान हो उठे थे.

एक रोज मूलचरण ने रोशनी से कहा कि लौकडाउन खत्म होते ही उसे उस के साथ हरियाणा चलना है. अब वह उसे अकेला नहीं छोड़ेगा. लोग तरहतरह की बातें कर उस की इज्जत उछालते हैं. इस पर रोशनी ने जवाब दिया कि वह उस के साथ परदेश नहीं जाएगी. वह घर में ही रहेगी.

इस के बाद तो हर रोज हरियाणा जाने या न जाने को ले कर मूलचरण व रोशनी में तूतूमैंमैं होने लगी. मूलचरण का फरमान था कि उसे उस के साथ जाना है, जबकि रोशनी जिद कर रही थी कि वह उस के साथ नहीं जाएगी. किसीकिसी दिन तो झगड़ा इतना बढ़ जाता कि मूलचरण रोशनी को बेतहाशा पीट देता.

31 मई को भी मूलचरण ने इसी बात को ले कर रोशनी को पीटा फिर वह शराब के ठेके पर चला गया. उस के जाने के कुछ देर बाद सोनू आ गया. सोनू को देखते ही रोशनी सुबकसुबक कर रोने लगी. इस पर सोनू बोला, ‘‘बताओ, क्या बात है?’’

रोशनी बोली, ‘‘वह मुझे अपने साथ ले जाना चाहता है, लेकिन मैं जाना नहीं चाहती. इसी बात पर वह लातघूंसों से मारने लगता है. सोनू, किसी तरह इस राक्षस से मेरी जान छुड़ाओ. नहीं तो किसी दिन तुम्हें मेरी लाश ही मिलेगी.’’

‘‘लाश तुम्हारी नहीं उस की मिलेगी.’’ सोनू दांत पीस कर बोला.

‘‘सोनू, अब मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो बस, मुझे अपनी बना लो.’’ रोशनी उस से लिपट कर बोली.

‘‘अगर मैं कहूं कि तुम्हें अपने सुहाग की बलि देनी पड़ेगी तो…’’

‘‘मुझे मंजूर है,’’ रोशनी ने सहमति

जता दी.

इस के बाद सोनू ने रोशनी के साथ मिल कर मूलचरण की हत्या का षडयंत्र रचा. इस षडयंत्र में उस ने अपने दोस्त पवन को भी शामिल कर लिया. पैसों के लालच में पवन सोनू का साथ देने के लिए राजी हो गया.

2 जून, 2021 की शाम 7 बजे सोनू मूलचरण से मिला और उसे पार्टी देने का न्यौता दिया. मूलचरण पहले तो राजी नहीं था, लेकिन जोर देने पर राजी हो गया. उस के बाद सोनू मूलचरण की मोटरसाइकिल पर बैठ कर शराब ठेके पर पहुंचा. वहां उस ने फोन कर अपने दोस्त पवन को भी बुला लिया. फिर तीनों ने बैठ कर खायापीया.

उस के बाद तीनों घूमने के बहाने निकले और कुंवरपुरा स्थित बंबी पुलिया पर पहुंचे. इस पुलिया पर बैठ कर तीनों बातचीत करने लगे. अब तक रात के

10 बज चुके थे और चारों तरफ सन्नाटा पसरा था.

उचित मौका देख कर सोनू और पवन ने मूलचरण को दबोच लिया और उस का सिर पुलिया के पत्थर पर पटकने लगे. उस का सिर फट गया और वह वहीं लुढ़क गया. इसी समय सोनू की निगाह ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से भी उस के सिर पर प्रहार किया.

हत्या करने के बाद पवन व सोनू ने मूलचरण के शव को बंबी के किनारे झाडि़यों में छिपा दिया. उस की मोटरसाइकिल को भी ईंट से क्षतिग्रस्त कर शव के पास झाडि़यों में डाल दी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया, ताकि देखने वालों को लगे कि मूलचरण की मौत ऐक्सीडेंट से हुई है.

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इस के बाद दोनों वहां से फरार हो गए. सोनू ने फोन पर रोशनी को बता दिया कि उस की राह का कांटा दूर हो गया है. लेकिन अभी वह सावधान रहे.

इधर 3 जून की सुबह कुंवरपुरा गांव के लोग जब खेतों की तरफ जा रहे थे तो उन्होंने बंबी में लाश पड़ी देखी. उन्होंने इस की सूचना माधौगढ़ पुलिस को दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर प्रवीण कुमार घटनास्थल पर पहुंचे और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा हुआ.

7 जून, 2021 को पुलिस ने आरोपी सोनू तथा रोशनी को जालौन की जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीसरा आरोपी पवन फरार था. पुलिस उसे गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

शूटिंग के दौरान Rubina Dilaik हुई जख्मी, देखें Photo

टीवी एक्ट्रेस और बिग बॉस 14 की विनर रुबीना दिलाइक (Rubina Dilaik) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने एक ऐसी फोटो शेयर की है, जिसमें एक्ट्रेस के पीठ और कंधे पर बैंडेज लगा हुआ दिखाई दे रहा है. एक्ट्रेस की ये फोटो देखने के बाद फैंस भी हैरान गए हैं

रुबीना दिलाइक ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी है. एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि कुछ भी आपकी प्लानिंग की मुताबिक नहीं होता है.’ फैंस बार-बार कमेंट्स कर पूछ रहे हैं कि ये कैसे हुआ?

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एक्ट्रेस का कैप्शन  पढ़ने के बाद ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि रुबीना दिलाइक के साथ शूटिंग के दौरान ये हादसा हुआ है. हालांकि उन्होंने केवल फोटो शेयर की है कि ये नहीं बताया कि चोट कैसे लगी?  एक्ट्रेस के इस फोटो पर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा, ये क्या रुबीना आपको? ये चोट कैसे लगी सब ठीक तो है ना.’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि ‘आप अपना ध्यान रखो.’

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वर्कफ्रंट की बात करें तो बिग बॉस 14 की विनर बनने के बाद रुबीना दिलाइक ने बड़े कई शोज के लिए काम किया. खबरों के अनुसार रुबीना दिलाइक जल्द ही अपने पति अभिनव शुक्ला के साथ एमएक्स प्लेयर की एक सीरीज में दिखाई देंगी. एक्ट्रेस आने वाली दिनों में फिल्म ‘अर्ध’ में दिखाई देंगी. इस फिल्म की शूटिंग चल रही है.

 

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