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Hindi Story : जमीं और आस्मां मुट्ठी में – पति की बेवफाई से तप कर सोना हुई युवती की कहानी

Hindi Story : “शिव्या… शिव्या कहां हो? हर समय कमरे में घुसी रहती हो. कभी तो बाहर निकला करो. तुम तो बस अपनी बहन में ही रमी रहती हो. तुम तो भूल रही हो कि तुम्हारा एक अदद इकलौता जीजा भी इसी घर में रहता है,” कियान ने अपनी पत्नी देबोमिता की बड़ी बहन शिव्या से उपहास करते हुए कहा.

“नहीं कियान, ऐसी तो कोई बात नहीं. बस जरा कल के लैक्चर की तैयारी कर रही थी. देबू कहां है? मैं उसे अभी तुम्हारे पास भेजती हूं.”

“तुम्हारी देबू तो सोने चली गई. वह तो हर समय आने वाले बच्चे के सपनों में खोई रहती है. दिनरात बस उसी की बातें. मैं तो भई उस से और उस की बातों से पक गया हूं. अच्छीभली फिगर का सत्यानाश कर लिया है उस ने तो.”

कियान की बातें सुन शिव्या के जेहन में मानो घंटी बज गई, ‘यह कियान को क्या हुआ? कितनी फालतू बात कर रहा है! अब देबू प्रैगनैंट है तो फिगर तो खराब होगी ही. किस किस्म का इंसान है यह?’

“शिव्या, चलो जरा लौंग ड्राइव पर चलते हैं. यहां पास ही बेहद शानदार तवा आइसक्रीम पार्लर खुला है. वहां तवा आइसक्रीम खा कर आते हैं.”

“कियान, मुझे अप्रैल फूल बना रहे हो क्या? यह तवा आइसक्रीम कौन सी आ गई?”

“शिव्या, कौन सी दुनिया में रहती हो भई? पार्लर वाला आइसक्रीम तवे पर तुम्हारे सामने लाइव बना कर देगा. वहीं देख लेना, कैसे बनती है. कोई अप्रैल फ़ूल नहीं बना रहा मैं तुम्हें. बस, अब तुम झटपट तैयार हो कर आ जाओ.”

“ओके, अभी आई. जरा देबू को भी देख लूं. वह चले तो उस का भी जी बहल जाएगा. पूरे दिन घर ही घर में बंद रहती है.”

“अरे, उसे तो रहने ही दो. वह इतना बड़ा ढोल सा पेट ले कर कहां इस वक्त जाएगी?”

“क्यों? हमारे साथ जाने में हरज ही क्या है? वह भी फ्रैश फील कर लेगी.”

“देबू… अरे ओ देबू… चल रही है क्या आइसक्रीम खाने?” वह धड़धड़ाती हुई अपनी 8 माह की प्रैगनैंट छोटी बहन देबोमिता के कमरे में घुस गई जहां वह दीवार की ओर मुंह किए लेटी हुई थी.

“देबू… देबू… कियान और मैं जरा लौंग ड्राइव पर जा रहे हैं. पूरा दिन घर में बंद रहती है तू. हमारे साथ जाएगी तो अच्छा लगेगा.”

“न शिवि, मुझे नहीं जाना. तू ही चली जा कियान के साथ. मुझे तो बहुत जोरों की नींद आ रही है,” उस ने उबासी भरते हुए कहा.

“श्योर नहीं जाना?”

“हां… हां…कह तो दिया, नहीं जाना. तू चली जा.”

जून का महीना आधा खत्म होने आया था, लेकिन तूफान के चलते कल शहर में घनघोर बारिश हुई थी, जिस के चलते फिजा में अभी तक ठंडक थी.

कियान ने अपनी गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन वह स्टार्ट नहीं हुई,”अरे, यह तो चालू ही नहीं हो रही? अब क्या करें? मेरे मुंह में तो भई आइसक्रीम का जबरदस्त स्वाद आ रहा है. मौसम भी इतना खुशगवार हो रहा है. आज तुम्हारी मोटरसाइकिल पर लौंग ड्राइव का मजा लेते हैं.”

“नहीं कियान, अब मोटरसाइकिल चलाने का मेरा मन नहीं.”

“अरे, अभी रात के 10 ही तो बजे हैं. अब आइसक्रीम का मूड बन गया तो बन गया. डोंट बी ए स्पौयल सट शिव्या. कमऔन, मैं चलाऊंगा मोटरसाइकिल,” कियान का आखिरी वाक्य सुन शिव्या चिहुंक पड़ी.

“नहीं, मैं अपनी बाइक किसी को भी नहीं देती.”

“छोड़ो न कियान, अब तो देबू भी सो चुकी है. कल पक्का उसे ले कर तुम्हारी यह तवा आइसक्रीम खाने जाएंगे. पक्का…”

“ नहीं… नहीं, वह तो आज ही खाने जाएंगे.”

“तुम नहीं मानोगे. शिव्या ने बाहर पोर्च में जा कर कियान को अपने पीछे बैठा कर बाइक स्टार्ट कर दी और तेज गति से बाइक खाली सड़क पर दौड़ा दी. बाइक के दौड़ते ही कियान गुनगुनाने लगा, “मौसम है आशिकाना…” शीतल मंद हवा से बातें करते हुए शिव्या भी बेफिक्री के आलम में बह चली. उस ने बाइक की स्पीड और बढ़ा दी.

तभी कियान बोल पड़ा, “तू जिस से शादी करेगी वह बहुत खुशकिस्मत इंसान होगा. काश…” कहते हुए कियान ने एक लंबी सांस भरी.

“यों लंबीलंबी सांसें क्यों ले रहे हो कियान? तुम ने ही तो देबू को चाहा और वह तुम्हें मिल गई. फिर यह काश क्यों कियान?”

“बस ऐसे ही…कुछ नहीं.”

“नहींनहीं, कियान. कुछ तो है जो तुम छिपा रहे हो. बोलो न क्या बात है?”
शिव्या के कुरेदते ही वह जैसे फट पड़ा,”कभीकभी मुझे लगता है कि देबू मेरे लिए नहीं बनी. पार्टनर के रूप में उस का चुनाव कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की.”

“यह तुम क्या कह रहे हो? याद है, तुम ही तो देबू के पीछे नहाधो कर पड़े थे.”

“सब याद है शिव्या. उसी बात का तो रोना है कि मैं उसे पहले पहचान ही नहीं पाया. तुम्हारी बहन तो बहुत घरेलू है, बिलकुल बहनजी टाइप. मुझे तो तुम जैसी बिंदास, ऐडवैंचरस और बोल्ड लड़की चाहिए थी, जिस के साथ हर लमहा एक ऐडवैंचर होता. तुम्हारी यह देबू तो बेहद बोर है.”

तभी सामने तवा आइसक्रीम पार्लर आ गया और शिव्या ने एक झटके से अपनी बाइक रोक दी. सामने पार्लर में एक मशीन के ऊपर गोल तवा सा बना हुआ था, जिस पर एक पार्लरकर्मी 2 स्पैटुला से तेज गति से खटखट करते हुए फ्रूट्स, दूध, ड्राई फ्रूट्स आदि के मिक्सचर को तेज गति से चला रहा था.

“क्यों भैया, यह तवा क्या गरम है? गरम तवे पर आप की आइसक्रीम पिघलती नहीं?”

“मैम, यह बस देखने भर का ही तवा है. यह गरम नहीं ठंडा है, जिस का टैंपरेचर माइनस में जाता है.”

“अरे, मैं तो कुछ और ही सोच बैठी थी. गरम तवे पर आइसक्रीम कैसे बनेगी?”

उस की हैरान मुखमुद्रा देख कियान बहुत जोरों से हंस पड़ा, “बना दिया न अप्रैल फूल तुम्हें.”

अपने मनपसंद फ्लैवर की आइसक्रीम खा कर दोनों फिर से बाइक पर बैठ गए, लेकिन पार्लर में बैठे हुए और फिर घर वापसी के दौरान शिव्या के अंतर्मन में गहन उठापटक चल रही थी,’यह कियान इतना गलत कैसे हो सकता है? साफसाफ कह रहा है कि देबू बहनजी टाइप बोर है.’

शिव्या इन्हीं विचारों में गुम तेज गति से बाइक दौड़ा रही थी कि तभी उस ने महसूस किया कि कियान के हाथों ने उस की कमर को अपने शिकंजे में जकड़ लिया और अपना चेहरा उस के कंधों में गड़ा बुदबुदा रहा था, “शिव्या, माई डियर, मुझे तो बिलकुल तुम्हारी जैसी स्मार्ट और बोल्ड बीवी की ख्वाहिश थी…” तभी उस की नजदीकी और अल्फाजों से असहज होते हुए क्षण भर को कुछ सोचने के बाद वह बेहद गुस्से से चिल्लाई, “कियान, तुम्हें होश भी है कि तुम क्या कर रहे हो और क्या कह रहे हो? मेरी बहन तुम्हारी बीवी है और तुम अपनी ही साली पर डोरे डाल रहे हो? मैं इतनी गिरी हुई नहीं हूं कि तुम्हारे झांसे में आ जाऊं. मैं तुम्हें और टौलरेट नहीं कर सकती. मैं जा रही हूं बाय…” कहतेकहते शिव्या कियान को बीच सड़क पर छोड़ हवा की गति से फुर्र हो गई.

कियान के इस ओछेपन से उस के मन में मानो ज्वारभाटा उठ रहा था. तो कियान की असली सूरत यह है? वह इतना सस्ता और छिछोरा टाइप इंसान है उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. मेरी देबू की तो जिंदगी खराब हो गई. ऐसे लीचड़ इंसान के साथ वह पूरी उम्र कैसे काटेगी? जब कियान को मुझ पर डोरे डालने से गुरेज नहीं, तो वह तो किसी को भी नहीं छोड़ता होगा. उस के अंतर्मन में खयालों का जलजला आया हुआ था. सगी बहन की चिंता उसे खाए जा रही थी कि वह ऐसी विकृत मानसिकता के इंसान के साथ पूरी जिंदगी कैसे बिताएगी?

रात को शिव्या की आंखों में नींद का दूरदूर तक नामोनिशान नहीं था. वह घोर बेचैनी के आलम में करवटें बदल रही थी. यों ही गहन विकलता के समंदर में डूबतेउतराते देर रात उस की आंखें लगीं. सुबह नाश्ते पर डाइनिंग टेबल पर कियान से उस की मुलाकात हुई, लेकिन उस बेगैरत बंदे के चेहरे पर रात की बात का तनिक भी मलाल न था.

“गुड मौर्निंग साली साहिबा, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप के सीने में दिल नहीं पत्थर है पत्थर. अमां यार, छोटी सी जिंदगी है. इसे मौजमस्ती से गुजारी जाए तो आखिर इस में हरज ही क्या है? आखिर साली आधी घरवाली तो होती ही है न फिर आगबबूला होने की जरूरत क्या है आखिर?”

“मिस्टर कियान, कितनी घटिया सोच है आप की? मस्ती करनी है तो आप के पास देबू है न. खबरदार जो आइंदा मेरे साथ किसी भी किस्म की लिबर्टी लेने की कोशिश की,” कहते हुए शिव्या घोर गुस्से से उठ कर वहां से चली गई.

कियान के स्वाभाव की असलियत जान कर वह अपने आपे में न थी. वह सोच रही थी, ‘यह कियान तो बेहद लंपट इंसान निकला.’

दिन यों ही गुजर रहे थे. शिव्या की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इन परिस्थितियों में वह क्या करे? अभी प्रैगनैंसी के आखिरी दौर में वह उस के सामने कियान की असलियत जाहिर भी नहीं कर सकती. नियत समय पर देबोमिता ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया. कियान की असलियत से अनजान देबोमिता बेहद खुश थी. हर समय चहकती रहती, लेकिन शिव्या जबजब उसे देखती, यह सोच कर उस का कलेजा मुंह को आ जाता कि कभी कियान की वास्तविकता देबोमिता पर जाहिर हो गई तो क्या होगा?”

कियान के चरित्र के बदसूरत पक्ष से परिचित शिव्या अब कियान के ऊपर कड़ी नजर रखने लगी थी. उस की रीयल फितरत से वाकिफ होने के लिए. उस के पास किसी का फोन आता तो उस के कान खड़े हो जाते, कहीं किसी लड़की का फोन तो नहीं. वह देबोमिता के भविष्य को ले कर बेहद फिक्रमंद हो गई थी. अभी साल भर पहले ही कोरोना के चलते उन दोनों के पेरैंट्स की असमय मौत के बाद से छोटी देबोमिता अब उस की जिम्मेदारी थी.

तभी एक दिन उस के सामने कियान की वास्तविकता का खुलासा हो ही गया. उस दिन शिव्या देबोमिता के बैडरूम में भांजे कृष को खिला रही थी कि तभी उस ने देखा कियान अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर नहाने चला गया. तभी देबोमिता भी अपने रूम से किसी काम से बाहर गई और शिव्या बहनोई की जासूसी की मंशा से झटपट उस का व्हाट्सऐप चेक करने लगी. व्हाट्सऐप पर जो उस ने देखा उस के हाथों के मानो तोते उड़ गए .

कियान की 5-6 लड़कियों से चैटिंग थी, जिन्हें जल्दीजल्दी पढ़ कर वह जैसे आसमान से गिरी. सभी लड़कियों के साथ अश्लीलता की हद लांघते हुए चैटिंग थी. उन्हें भेजी हुई पोर्न वीडियो की क्लिपिंग्स भी थी. तभी देबोमिता के बैडरूम में आने की आहट हुई और उस ने झपट कर कियान का फोन वापस पलंग पर रख दिया.

कियान के बाथरूम से बाहर निकलते ही देबोमिता बाथरूम में घुस गई.
कियान के दोगलेपन का प्रत्यक्ष प्रमाण पा शिव्या गुस्से में उबल रही थी और कियान को देखते ही उस के फोन की अश्लील चैट उसे दिखाते हुए उस पर फट पड़ी, “कियान, यह सब क्या है? मैं ने क्या सोच कर तुम्हारे साथ अपनी बहन की शादी की थी और तुम क्या निकले? इतनी खूबसूरत, जहीन और प्यारी बीवी के होते हुए तुम जगहजगह मुंह मार रहे हो? उसे खुलेआम धोखा दे रहे हो?”

गुस्से में शिव्या को यह खयाल भी न रहा कि देबोमिता बाथरूम में उन दोनों की बातें सुन सकती है. शिव्या की बातें सुन कियान का चेहरा जर्द पड़ गया और अपना परदाफाश होते देख वह बौखलाते हुए उस पर दांत भींच कर घोर गुस्से से उस पर आंखें तरेरते हुए चिल्लाया, “मेरा फोन चेक करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई? मेरी जिंदगी मेरी है. मैं अपनी निजी जिंदगी में कुछ भी करूं, तुम्हें इस से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम्हारी बहन को मैं कुछ कहूं या करूं तो मुझ से कुछ कहना. उसे पूरा मानसम्मान देता हूं, फिर भी?”

तभी एकाएक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और धारधार बिलखती देबोमिता बाहर आई और वह झपट कर कियान का फोन उठा कर दौड़ कर अगले ही लम्हे यह कहते हुए बाथरूम में बंद हो गई कि उस ने शिव्या और कियान की बातें सुन ली हैं.

यह सब पलक झपकते ही इतनी जल्दी हुआ कि शिव्या कुछ समझ ही नहीं पाई. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह बाथरूम का दरवाजा पीटने लगी.

उधर जान से प्यारे पति की सचाई जान देबोमिता की दुनिया एक ही लम्हे में उलटपुलट हो गई. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उस के पांव तले जमीन ही खिसक गई हो. बेहद गुस्से में उस ने सामने शेल्फ में रखी कैंची उठाई और ताबड़तोड़ उस से अपने हाथों की नसें काट लीं और चीखने के साथ बेहोश होते हुए जमीन पर कटे पेड़ की भांति ढह गई. इधर उसकी चीत्कार सुन शिव्या बाथरूम का दरवाजा पीटते हुए चिल्लाई, “देबू… देबू… दरवाजा खोलो. देबोमिता… ” लेकिन भीतर से बहन की घुटीघुटी कराहों की आवाजें आ रही थीं.
अनहोनी का अंदाजा लगा कर शिव्या कियान पर चिल्लाई, “कियान, दरवाजा तोड़ो जल्दी.”

कुछ ही देर में दरवाजा टूट गया. भीतर का नजारा देख शिव्या और कियान का खून मानो बर्फ बन गया. भीतर शिव्या खून से लथपथ फर्श पर पड़ी हाथपांव मारते हुए छटपटा रही थी. कियान और शिव्या आननफानन में उसे सब से नजदीकी अस्पताल ले गए.

समय पर मैडिकल सहायता मिलने की वजह से देबोमिता की जान बच गई. देबोमिता को अस्पताल से डिस्चार्ज हुए माह भर होने आया.
इस 1 माह में वह 21-22 साल की बेफिक्र बिंदास युवती से एक परिपक्व संजीदा शख्सियत में बदल गई,”शिव्या, मुझे कियान से डाइवोर्स चाहिए. मैं अपनी पूरी जिंदगी इस लीचड़ इंसान के साथ कतई नहीं बिता सकती.”

“ठीक है, मैं क्या कहूं अगर तेरा यही फैसला है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं.”

कियान और देबोमिता के डाइवोर्स को पूरे 3 साल बीत चुके हैं. इन 3 सालों में देबोमिता अपनी मेहनत और शिव्या के सहयोग से आत्मविश्वास से भरपूर एक वर्किंग प्रोफैशनल में तबदील हो चुकी है. तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद 1 साल के भीतर उस का तलाक हो गया था. कम उम्र में अपनी शिक्षा पूरी किए बिना कुछ सोचेसमझे एक चरित्रहीन युवक के प्यार में अंधी हो कर मात्र सालभर की पहचान में उस से विवाह करने का भारी खामियाजा वह उठा चुकी थी.

कियान से तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद वह जीजान से एमबीए के लिए कैट के ऐग्जाम की तैयारी में जुट गई थी. इतना सबकुछ सह कर पढ़ाई में जी रमाना आसान न था, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर और बहन के सहयोग और प्रोत्साहन से उस ने कैट क्लीयर किया और एक नामचीन बिजनैस स्कूल से एमबीए पूरा किया. संस्थान में पढ़तेपढ़ते आखिरी साल में कैंपस प्लेसमैंट में उस की नौकरी एक प्रतिष्ठित एमएनसी में लग गई.

आज ही उस की पहली तनख्वाह की मोटी रकम उस के बैंक अकाउंट में आई थी. औफिस में अपने केबिन में लैपटौप पर अपनी पहली पेस्लिप देखते हुए अपूर्व खुशी से उछल रही थी. अनायास न जाने क्यों बरसों से भूलेबिसरे कियान का चेहरा उस के जेहन में कौंध उठा और वह मुंह ही मुंह में बुदबुदाई,’थैंक यू कियान. थैंक यू वेरी मच. जिंदगी में तुम न मिले होते तो आज मुझे यह मुकाम न मिला होता.’

औफिस से निकल कर एक अनूठे आत्मविश्वास से भरपूर आंखों में एक सुनहरे भविष्य का सपना संजोए वह तेज चाल से गुनगुनाते हुए एटीएम की ओर चल पड़ी. आज जमीं और आसमां दोनों उस की मुट्ठी में थे.

Hindi Story : नई चादर – कोयले को जब मिला कंचन

Hindi Story : शरबती जब करमू के साथ ब्याह कर आई तो देखने वालों के मुंह से निकल पड़ा था, ‘अरे, यह तो कोयले को कंचन मिल गया.’

वैसे, शरबती कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी, थोड़ी ठीकठाक सी कदकाठी और खिलता सा रंग. बस, इतनी सी थी उस की खूबसूरती की जमापूंजी, मगर करमू जैसे मरियल से अधेड़ के सामने तो वह सचमुच अप्सरा ही दिखती थी.

आगे चल कर सब ने शरबती की सीरत भी देखी और उस की सीरत सूरत से भी चार कदम आगे निकली. अपनी मेहनतमजदूरी से उस ने गृहस्थी ऐसी चमकाई कि इलाके के लोग अपनीअपनी बीवियों के सामने उस की मिसाल पेश करने लगे.

करमू की बिरादरी के कई नौजवान इस कोशिश में थे कि करमू जैसे लंगूर के पहलू से निकल कर शरबती उन के पहलू में आ जाए. दूसरी बिरादरियों में भी ऐसे दीवानों की कमी न थी. वे शरबती से शादी तो नहीं कर सकते थे, अलबत्ता उसे रखैल बनाने के लिए हजारों रुपए लुटाने को तैयार थे.

धीरेधीरे समय गुजरता रहा और शरबती एक बच्चे की मां बन गई. लेकिन उस की देह की बनावट और कसावट पर बच्चा जनने का रत्तीभर भी फर्क नहीं दिखा. गांव के मनचलों में अभी भी उसे हासिल करने की पहले जैसे ही चाहत थी.

तभी जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट पड़ा. करमू एक दिन काम की तलाश में शहर गया और सड़क पार करते हुए एक बस की चपेट में आ गया. बस के भारीभरकम पहियों ने उस की कमजोर काया को चपाती की तरह बेल कर रख दिया था.

करमू के क्रियाकर्म के दौरान गांव के सारे मनचलों में शरबती की हमदर्दी हासिल करने की होड़ लगी रही. वह चाहती तो पति की तेरहवीं को यादगार बना सकती थी. गांव के सभी साहूकारों ने शरबती की जवानी की जमानत पर थैलियों के मुंह खोल रखे थे, मगर उस ने वफादारी कायम रखना ही पति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि समझते हुए सबकुछ बहुत किफायत से निबटा दिया.

शरबती की पहाड़ सी विधवा जिंदगी को देखते हुए गांव के बुजुर्गों ने किसी का हाथ थाम लेने की सलाह दी, मगर उस ने किसी की भी बात पर कान न देते हुए कहा, ‘‘मेरा मर्द चला गया तो क्या, वह बेटे का सहारा तो दे ही गया है. बेटे को पालनेपोसने के बहाने ही जिंदगी कट जाएगी.’’

वक्त का परिंदा फिर अपनी रफ्तार से उड़ चला. शरबती का बेटा गबरू अब गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाने लगा था और शरबती मनचलों से खुद को बचाते हुए उस के बेहतर भविष्य के लिए मेहनतमजदूरी करने में जुटी थी.

उन्हीं दिनों उस इलाके में परिवार नियोजन के लिए नसबंदी कैंप लगा. टारगेट पूरा न हो सकने के चलते जिला प्रशासन ने आपरेशन कराने वाले को एक एकड़ खेतीबारी लायक जमीन देने की पेशकश की.

एक एकड़ जमीन मिलने की बात शरबती के कानों में भी पड़ी. उसे गबरू का भविष्य संवारने का यह अच्छा मौका दिखा. ज्यादा पूछताछ करती तो किस से करती. जिस से भी जरा सा बोल देती वही गले पड़ने लगता. जो बोलते देखता वह बदनाम करने की धमकी देता, इसलिए निश्चित दिन वह कैंप में ही जा पहुंची.

शरबती का भोलापन देख कर कैंप के अफसर हंसे. कैंप इंचार्ज ने कहा, ‘‘एक विधवा से देश की आबादी बढ़ने का खतरा कैसे हो सकता है…’’

कैंप इंचार्ज का टका सा जवाब सुन कर गबरू के भविष्य को ले कर देखे गए शरबती के सारे सपने बिखर गए. बाहर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठे तो वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई.

तभी एक अधेड़ कैंप इंचार्ज के पास आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लोग मेरा आपरेशन नहीं कर रहे हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहते हैं कि मैं अपात्र हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा? किस गांव में रहते हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम केदार है. मैं टमका खेड़ा गांव में रहता हूं.’’

‘‘कैंप इंचार्ज ने टैलीफोन पर एक नंबर मिलाया और उस अधेड़ के बारे में पूछताछ करने लगा, फिर उस ने केदार से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि तुम्हारी बीवी पिछले महीने मर चुकी है?’’

‘‘हां, सर.’’

‘‘फिर तुम्हें आपरेशन की क्या जरूरत है. बेवकूफ समझते हो हम को. चलो भागो.’’

केदार सिर झुका कर वहां से चल पड़ा. शरबती भी उस के पीछेपीछे बाहर निकल आई.

उस के करीब जा कर शरबती ने धीरे से पूछा, ‘‘कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘एक लड़का है. सोचा था, एक एकड़ खेत मिल गया तो उस की जिंदगी ठीकठाक गुजर जाएगी.’’

‘‘मेरा भी एक लड़का है. मुझे भी मना कर दिया गया… ऐसा करो, तुम एक नई चादर ले आओ.’’

केदार ने एक नजर उसे देखा, फिर वहीं ठहरने को कह कर वह कसबे के बाजार चला गया और वहां से एक नई चादर, थोड़ा सा सिंदूर, हरी चूडि़यां व बिछिया वगैरह ले आया.

थोड़ी देर बाद वे दोनों कैंप इंचार्ज के पास खड़े थे. केदार ने कहा, ‘‘हम लोग भी आपरेशन कराना चाहते हैं साहब.’’

अफसर ने दोनों पर एक गहरी नजर डालते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि अभी कुछ घंटे पहले मैं ने तुम्हें कुछ समझाया था.’’

‘‘साहब, अब केदार ने मुझ पर नई चादर डाल दी है,’’ शरबती ने शरमाते हुए कहा.

‘‘नई चादर…?’’ कैंप इंचार्ज ने न समझने वाले अंदाज में पास में ही बैठी एक जनप्रतिनिधि दीपा की ओर देखा.

‘‘इस इलाके में किसी विधवा या छोड़ी गई औरत के साथ शादी करने

के लिए उस पर नई चादर डाली जाती है. कहींकहीं इसे धरौना करना या घर बिठाना भी कहा जाता है,’’ उस जनप्रतिनिधि दीपा ने बताया.

‘‘ओह…’’ कैंप इंचार्ज ने घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया और कहा, ‘‘इस आदमी को ले जाओ. अब यह अपात्र नहीं है. इस की नसबंदी करवा दें… हां, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘शरबती.’’

‘‘तुम कल फिर यहां आना. कल दूरबीन विधि से तुम्हारा आपरेशन हो जाएगा.

‘‘लेकिन साहब, मुझे भी एक एकड़ जमीन मिलेगी न?’’

‘‘हां… हां, जरूर मिलेगी. हम तुम्हारे लिए तीसरी चादर ओढ़ने की गुंजाइश कतई नहीं छोड़ेंगे.’’

शरबती नमस्ते कह कर खुश होते हुए कैंप से बाहर निकल गई तो उस जनप्रतिनिधि ने कहा, ‘‘साहब, आप ने एक मामूली औरत के लिए कायदा ही बदल दिया.’’

‘‘दीपाजी, यह सवाल तो कायदेकानून का नहीं, आबादी रोकने का है. ऐसी औरतें नई चादरें ओढ़ओढ़ कर हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर देंगी. मैं आज ही ऐसी औरतों को तलाशने का काम शुरू कराता हूं,’’ उन्होंने फौरन मातहतों को फोन पर निर्देश देने शुरू कर दिए.

दूसरे दिन शरबती कैंप में पहुंची तो वहां मौजूद कई दूसरी औरतों के साथ उस का भी दूरबीन विधि से नसबंदी आपरेशन हो गया. कैंप की एंबुलैंस पर सवार होते समय उसे केदार मिला और बोला, ‘‘शरबती, मेरे घर चलो. तुम्हें कुछ दिन देखभाल की जरूरत होगी.’’

‘‘मेरी देखभाल के लिए गबरू है न.’’

‘‘मेरा भी तो फर्ज बनता है. अब तो हम लिखित में मियांबीवी हैं.’’

‘‘लिखी हुई बातें तो दफ्तरों में पड़ी रहती हैं.’’

‘‘तुम्हारा अगर यही रवैया रहा तो तुम एक बीघा जमीन भी नहीं पाओगी.’’

‘‘नुकसान तुम्हारा भी बराबर होगा.’’

‘‘मैं तुम्हें ऐसे ही छोड़ने वाला नहीं.’’

‘‘छोड़ने की बात तो पकड़ लेने के बाद की जाती है.’’

शरबती का जवाब सुन कर केदार दांत पीस कर रह गया.

कुछ साल बाद गबरू प्राइमरी जमात पास कर के कसबे में पढ़ने जाने लगा. एक दिन उस के साथ उस का सहपाठी परमू उस के घर आया.

परमू के मैलेकुचैले कपड़े और उलझे रूखे बाल देख कर शरबती ने पूछा, ‘‘तुम्हारी मां क्या करती रहती

है परमू?’’

‘‘मेरी मां नहीं है,’’ परमू ने मायूसी से बताया.

‘‘तभी तो मैं कहूं… खैर, अब तो तुम खुद बड़े हो चुके हो… नहाना, कपड़े धोना कर सकते हो.’’

परमू टुकुरटुकुर शरबती की ओर देखता रहा. जवाब गबरू ने दिया, ‘‘मां, घर का सारा काम परमू को ही करना होता है. इस के बापू शराब भी पीते हैं.’’

‘‘अच्छा शराब भी पीते हैं. क्या नाम है तुम्हारे बापू का?’’

‘‘केदार.’’

‘‘कहां रहते हो तुम?’’

‘‘टमका खेड़ा.’’

शरबती के कलेजे पर घूंसा सा लगा. उस ने गबरू के साथ परमू को भी नहलाया, कपड़े धोए, प्यार से खाना खिलाया और घर जाते समय 2 लोगों का खाना बांधते हुए कहा, ‘‘परमू बेटा, आतेजाते रहा करो गबरू के साथ.’’

‘‘हां मां, मैं भी यही कहता हूं. मेरे पास बापू नहीं हैं, तो मैं जाता हूं कि नहीं इस के घर.’’

‘‘अच्छा, इस के बापू तुम्हें अच्छे लगते हैं?’’

‘‘जब शराब नहीं पीते तब… मुझे प्यार भी खूब करते हैं.’’

‘‘अगली बार उन से मेरा नाम ले कर शराब छोड़ने को कहना.’’

इसी के साथ ही परमू और गबरू के हाथों दोनों घरों के बीच पुल तैयार होने लगा. पहले खानेपीने की चीजें आईंगईं, फिर कपड़े और रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी आनेजाने लगीं.

फिर एक दिन केदार खुद शरबती के घर जा पहुंचा.

‘‘तुम… तुम यहां कैसे?’’ शरबती उसे अपने घर आया देख हक्कीबक्की रह गई.

‘‘मैं तुम्हें यह बताने आया हूं कि मैं ने तुम्हारा संदेश मिलने से अब तक शराब छुई भी नहीं है.’’

‘‘तो इस से तो परमू का भविष्य संवरेगा.’’

‘‘मैं अपना भविष्य संवारने आया हूं… मैं ने तुम्हें भुलाने के लिए ही शराब पीनी शुरू की थी. तुम्हें पाने के लिए ही शराब छोड़ी है शरबती,’’ कह कर केदार ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे… अरे, क्या करते हो. बेटा गबरू आ जाएगा.’’

‘‘वह शाम से पहले नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारा जवाब ले कर ही जाऊंगा शरबती.’’

‘‘बच्चे बड़े हो चुके हैं… समझाना मुश्किल हो जाएगा उन्हें.’’

‘‘बच्चे समझदार भी हैं. मैं उन्हें पूरी बात बता चुका हूं.’’

‘‘तुम बहुत चालाक हो. कमजोर रग पकड़ते हो.’’

‘‘मैं ने पहले ही कह दिया था कि मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं,’’ केदार ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा. शरबती की आंखें खुद ब खुद बंद हो गईं.

उस दिन के बाद केदार अकसर परमू को लेने के बहाने शरबती के घर आ जाता. गबरू की जिद पर वह परमू के घर भी आनेजाने लगी. जब दोनों रात में भी एकदूसरे के घर में रुकने लगे तो दोनों गांवों के लोग जान गए कि केदार ने शरबती पर नई चादर डाल दी है.

परमू, गबरू और केदार बहुत खुश थे. खुश तो शरबती भी कम नहीं थी, मगर उसे कभीकभी बहुत अचंभा होता था कि वह अपने पहले पति को भूल कर केदार की पकड़ में आ कैसे गई?

Love Story : नया सवेरा – क्यों नेहा को आकाश की याद आने लगी ?

Love Story : दिल्ली जैसे बड़े शहर के होस्टल में छोटी जगह से आई नेहा को अभी कुछ ही दिन हुए थे, पर वह यह देख कर हैरान थी कि कैसे कुछ लड़कियां इस अनजान शहर में बौयफ्रैंड बनाने में माहिर हो गई थीं. उस ने तो अपने आसपास इस तरह का माहौल कम ही देखा था। रातरात भर मोबाइल पर लगे रहने और सुबह देर से उठने के कारण औफिस देर से पहुंचना उन की आदत सो हो गई थी. नेहा भी नौकरी के सिलसिले में अपने गांव से दूर यहां दिल्ली के एक होस्टल में रह रही थी। वह पढाई में तेज थी और घर वालों ने भी पढ़ाई में उस का साथ दिया था, जिस कारण उसे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी जौब मिली.

सुबह से तो होस्टल खाली ही रहता पर जैसेजैसे दिन ढलता सभी एकएक कर के वापस आने लगतीं और सभी पूरे दिनभर की गाथा सुनाती रहतीं. आज भी नेहा अपनी रूम पार्टनर पूजा के साथ छत पर बैठी चाय पी रही थी कि तभी एक लड़की फोन पर बात करतेकरते रोने लगी, शायद अपने बौयफ्रैंड से बात कर रही थी जो उस से ब्रेकअप की धमकी दे रहा था.

“हर किसी ऐरेगैरे से दिल लगाओगी तो ऐसा ही होगा,” हलका सा डांटते हुए पूजा ने उसे समझाया. सच बात तो यह थी कि यह सब उन का टाइमपास था, पर उन में से कुछ ऐसी भी थीं जिन को सच में किसी से सच्चा प्यार था और उन के प्यार में कोई दिखावा नहीं था.

इन सब बातों में खोई नेहा को अचानक ही पूजा ने छेड़ा,”कहां खोई हो मैडमजी, आप को भी किसी अपने की याद आ रही है क्या? तुम भी बातें कर लो…”

“नहींनहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है, चल नीचे कमरे में चलते हैं,” नेहा उठने ही वाली थी की पूजा ने हाथ खींच कर बैठा लिया.

“बैठो न कुछ देर, कितना अच्छा मौसम है, दिनभर औफिस में सब की सुनतेसुनते सिर पक गया है,” कहते हुए पूजा वहीं बैठ गई. दोनों एक ही कमरा शेयर करती हैं पर उन की जौब अलगअलग है, इसलिए उन के बीच बातें कम ही हो पाती हैं. बात करतेकरते पूजा अपने घरपरिवार, दोस्तों के बारे में बात करतेकरते अपने बौयफ्रैंड की बातें भी बड़े मजे से करने लगी. पूजा खुले मन की लड़की थी जो नेहा से सब बातें शेयर करती थी.

“तू भी बता, तू किसे पसंद करती है? कौन है तेरा फर्स्ट लव या फिर शादीवादी का चक्कर है, क्या करता है? कहां रहता है…” एक ही सांस में ढेरों सवाल कर दिए पूजा ने. तभी पूजा के घर से कौल आई और वह बात करने में बिजी हो गई। नेहा न चाहते हुए भी कहीं खो सी गई जैसे किसी ने तेज धक्का दिया हो, यह सोचने के लिए कि सच में उस का पहला सच्चा प्यार कौन था?

जतिन, जिसे उस ने कच्ची उम्र में एकतरफा प्यार किया था, जिसे जतिन ने कभी समझा ही नहीं या आकाश जिस ने नेहा को टूट कर चाहा, पर नेहा ने उस की कोई कदर न की. उस के प्यार, उस की भावनाओं को जरा भी न समझा और मुंह फेर लिया, पर आज अचानक नेहा को आकाश से इतना लगाव क्यों महसूस हो रहा है? क्यों उस की याद आ रही है? वह समझ नहीं पा रही थी.

आकाश उस के पापा के दोस्त का बेटा था। उन के घरों के बीच बहुत अच्छे संबंध थे. बचपन से साथ खेलतेखेलते आकाश कब नेहा को पसंद करने लगा उसे खुद नहीं पता था जबकि वह यह भी जानता था कि नेहा जतिन को पसंद करती है और वह अच्छे मिजाज का नहीं है, फिर भी उस ने नेहा से दोस्ती निभाई.

नेहा ने तो जतिन को सच्चे मन से चाहा था पर जतिन तो सिर्फ उस के साथ टाइमपास कर रहा था और यह बात आकाश बहुत अच्छी तरह जानता था. मौका पा कर एक दिन आकाश ने अपनी मोहब्बत का इजहार नेहा के सामने कर दिया.

“नेहा, तुम जानती हो कि मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, बहुत चाहता हूं, तुम क्यों मेरे प्यार को जान कर भी अनजान बनी हो?” आकाश ने बड़ी उम्मीदों के साथ अपने दिल की बात नेहा के सामने रखी थी।

“तुम क्यों अनजान बने हो यह जान कर कि मैं जतिन को पसंद करती हूं, हम बस दोस्त ही रहें वही ठीक है,” नेहा ने बेकदरी से उसे जवाब दिया था।

“पर तुम जिस जतिन के पीछे भाग रही हो वह बस तुम्हारे साथ टाइमपास कर रहा है, तुम्हारे लिए उस के मन में कोई प्यार नहीं है,” इतना सुनते ही नेहा ने आकाश को खूब खरीखोटी सुना दी.

खाने की बेल बजने लगी तभी पूजा उसे बुलाने आ गई, पर उस का मन तो पुरानी बातों पर अटक गया. आज नेहा का मन न तो खाने में लग रहा था और न ही अपने काम में. शायद कहीं न कहीं उस के दिल में पछतावा था, आकाश को न समझ पाने का.

आज उसे आकाश की हर बात याद आने लगी. कैसे वह उसे देखता रहता था. तेज धूप में खड़ा उस का इंतजार करता रहता था. यहां तक कि जब नेहा उस के घर जाती तो वह गानों के जरीए उसे एहसास दिलाता कि वह उसे कितना चाहता है और आज अनायास ही नेहा उन गानों को गुनगुनाने लगी.

कई साल बीत गए, नेहा ने आकाश से कोई बात नहीं की थी, पर आज अचानक ही अपने फोन पर उस का नंबर ढूंढ़ने लगी. जतिन की असलियत भी उस के सामने आ गई थी इसलिए नेहा ने खुद को इतना कठोर बना दिया कि प्यार नाम की चीज से भी उस का विश्वास टूट गया और इसी कठोरता की वजह से उस ने आकाश को कभी समझा ही नहीं और अपना सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में लगा दिया. उधर आकाश भी निराश हो कर दूर पढ़ने चला गया पर आज नेहा का दिल जोरजोर से धड़क रहा था आकाश के लिए. जैसे ही मोबाइल स्क्रीन पर आकाश का नंबर आया उस का दिल घबराने लगा.

कितनी ही देर वह सोचती रही कि फोन करे या न करे? पर उस की बेचैनी इतनी अधिक बढ़ गई कि आखिर उस ने नंबर डायल कर दिया. धड़कते दिल के साथ हाथ भी कांपने लगे. अगर आकाश ने उसे डांटा या खूब खरीखोटी सुनाई या बात करने से इनकार कर दिया तब वह क्या करेगी…

ऐसे कितने ही बुरे खयाल उस के मन में आतेजाते रहे. यह सब सोच कर उस ने फोन काट दिया पर कौल तो जा चुकी थी. अब उस का दिल और घबरा रहा था. जाने क्या सोचेगा वह मेरे बारे में. यही सब सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

दूसरी तरफ अपने फोन पर नेहा की मिस्ड कौल देख कर आकाश भी हैरान था. जो लड़की उस से नफरत करती थी आज उस की मिस्ड कौल देख कर बेचैनी महसूस करने लगा. गलती से कौल लग गई होगी ऐसा सोच कर आकाश खुद को बहलाने लगा… पर दिल तो पुरानी यादों में खो गया, जब उस ने नेहा को उस के बर्थडे पर लव बर्ड का एक शोपीस दिया था पर नेहा ने उसे यह कह कर वापस कर दिया कि वह उसे किस हक से दे रहा है? कितना रोया था वह उस के लिए पर शायद नेहा ने कभी उसे समझा ही नहीं… काफी देर तक आकाश भी यही सोचता रहा कि वह कौल बैक करे या न करे. कहीं फिर से नेहा फिर से कुछ उलटासीधा न कह दे पर आज भी उसे नेहा का इंतजार था और वह इंतजार कई सालों से कर रहा था.

अगले दिन न इधर नेहा का मन लग रहा था न उधर आकाश का. नेहा को परेशान देख पूजा ने उस से उस की परेशानी जाननी चाही. थोड़ाबहुत मना करने के बाद नेहा ने पूजा को आकाश के बारे में सब बता दिया कि कैसे वह कई साल से उस की हां का इंतजार करता रहा और शायद आज भी कर रहा है. सब जानने के बाद पूजा ने नेहा को ही कौल करने को कहा और अगर वह उस के प्यार को समझती है तो अपने दिल की बात उसे बता दे. पर नेहा अब डर रही थी कि कहीं आकाश की लाइफ में कोई और न हो और वह उसे बेइज्जत न कर दे। पूजा के जोर देने पर नेहा ने कौल कर दी.

स्क्रीन पर नेहा का नंबर दोबारा देख कर आकाश खुश तो हुआ पर यह सोच कर दुखी भी हो गया कि कहीं दोबारा तो गलती से कौल नहीं लग गई, पर रिंग तो बराबर हो रही थी.

“हैलो…” संजीदा होते हुए आकाश बोला.

“मैं नेहा, पहचाना आकाश…” कहते हुए नेहा के होंठ कांपने लगे.

“तुम को कैसे भूल सकता हूं, तुम्हारी यादें आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं और तुम्हारी नफरत को अभी भी संजो कर रखा है,” कह कर आकाश कहीं खो सा गया।

“मुझे माफ कर दो आकाश, मैं ने तुम्हें कभी समझा ही नहीं या शायद जानबूझ कर अनजान बनी रही पर आज मुझे अपनी गलती का एहसास है… मैं ने तुम्हे बहुत रूलाया है,” कह कर नेहा खुद ही रो पड़ी.

“प्लीज नेहा…रो मत… मैं ने कभी भी तुम से जबरदस्ती नहीं की मेरी बात मानने के लिए…. वह फैसला भी तुम्हारा खुद का था और आज का फैसला भी तुम्हारा खुद का है.”

“तुम्हें जो भी कहना हो कह लो… जितनी भी नाराजगी तुम्हारे मन में है सब कह डालो पर मुझे माफ कर दो, मैं अब और इस बोझ के साथ नहीं जी सकती… नेहा परेशान हो गई, “जिस के लिए मैं ने तुम्हें कभी समझा ही नहीं, उस ने भी मुझे नहीं समझा.”

आकाश औफिस में बिजी था इस कारण ज्यादा कुछ कह न सका,“कुछ देर बाद बात करता हूं,” कह कर आकाश ने फोन रख दिया.

इधर नेहा और भी ज्यादा परेशान हो गयी…क्या आकाश की लाइफ में और कोई है या वह अभी भी मुझे ही चाहता है, इसी तरह के खयाल उस के मन में आ जा रहे थे।

अब नेहा का दिल बैठने लगा और वह सच में सोचने लगी कि आकाश की लाइफ में कोई और है.

‘होनी भी चाहिए कोई दूसरी लड़की, तू ने कब उस की परवाह की है, उस के प्यार को समझा है,’ उस के मन से ही कोई आवाज निकली.

पूरा दिन बीत गया पर आकाश का कोई फोन नहीं आया। औफिस में भी नेहा का दिल नहीं लग रहा था. इधर नेहा भी डर के कारण कोई कौल न कर सकी। पूरी रात उस को नींद न आई. अभी उस की आंख लगी ही थी कि सुबह लगभग 4 बजे उस का फोन बज उठा.

‘इतनी सुबह किस का फोन हो सकता है,’ उस के मन में अजीब सी उलझन होने लगी.

“सौरी नेहा… इतनी सुबह तुम्हें परेशान करने के लिए, तुम्हारी नींद खराब हो गई होगी,” फोन रिसीव करते ही नेहा को आकाश की आवाज सुनाई दी.

“नहीं, मैं सोई नहीं थी बस पुरानी यादों में खोई थी,” आज उसे नींद भी अच्छी नहीं लग रही थी.

“नेहा, मैं तुम से बस इतना कहना चाहता हूं कि आज से पहले मुझे तुम्हारे जिस हां का इंतजार था आज भी वही है. मैं ने कभी भी तुम्हारे आलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं और मुझे यकीन था कि तुम कभी न कभी मेरे प्यार को जरूर अपनाओगी,” आकाश की बातों से उस की खुशी बयां हो रही थी.

इधर नेहा के मन से सालों पहले का बोझ हमेशा के लिए उतर गया था. एक नया सवेरा उस के इंतजार में खङा था और वह इस पल को अब अपने हाथों से जाने देना नहीं चाहती थी।

Best Hindi Story : काका-वा – रानी क्या कभी मनुष्य को पहचान पाई ?

Best Hindi Story : बिहार से तबादला होने के बाद रानी जब चेन्नई पहुंची तो उस के लिए सबकुछ ही बदला हुआ था. हवा, पानी, खानपान, पहनावा और भाषा सबकुछ ही तो अलग था. शुरूशुरू में चेन्नई के लोग भी उसे अजीब ही लगते थे. अधिकतर औरतों ने पूरे शरीर पर ही हलदी रगड़ी हुई होती. शुरू में तो रानी को लगा शायद यहां की औरतें पीलिया रोग से पीडि़त हैं. पर धीरेधीरे यह भेद भी खुल गया कि नहाने से पहले हलदी लगाना यहां की परंपरा है.

भाषा न आने के कारण रानी को अकेलापन अधिक लगता था. वह आसपास बोले जाने वाले शब्दों को ध्यान से सुनती पर सब उस के सिर के ऊपर से गुजर जाते थे. तमिल भाषा सिखाने वाली एक किताब भी वह ले आई थी. उसे यहां के कौए भी अलग नजर आते थे. बिहार जैसे कौए नहीं थे. यहां के कौए तो पूरे के पूरे चमकीले काले थे और आकार में भी कुछ बड़े थे. उन की कांवकांव में भी अधिक कर्कशता थी और घर में फुदकने वाली, चींचीं करने वाली चिडि़यां तो यहां थीं ही नहीं.

यहां सुबह उठने के बाद जैसे ही रानी रसोई में चाय बनाने जाती, तो रसोई की खिड़की की मुंडेर पर कौओं के ही दर्शन करती. उस की रसोई की खिड़की से सामने वाली बड़ी इमारत साफ नजर आती थी और उसे ऐसा लगा कि उस इमारत के सभी फ्लैटों के रसोईघर इसी दिशा में थे क्योंकि सभी खिड़कियों की मुंडेरों पर कौओं के लिए चावल डले होते. उस के गांव में तो लोग कबूतर को दाना देना अच्छा समझते थे, पर यहां कौओं को पके हुए चावल डालना शायद अच्छा समझा जाता था. यही देख कर उस ने भी कौओं को चावल डालने की बात सोची. पर सुबहसुबह वह चावल नहीं पकाती थी. उस की रसोई में तो सुबह के समय परांठे और पूरियां बनती थीं.

पहले दिन उस ने आधी चपाती के टुकड़े खिड़की की बाहरी चौखट पर रख दिए पर एक भी कौआ नहीं आया. उसे बहुत दुख हुआ कि कौओं ने चपाती का एक टुकड़ा भी ग्रहण नहीं किया. सारा दिन रोटी के टुकड़े वहीं पड़े रहे. दूसरे दिन फिर उस ने नाश्ते में बनी पहली रोटी के कुछ टुकड़े कर के खिड़की में डाल दिए. शायद घी की महक थी या रानी की श्रद्धा का असर था कि एक कौआ उड़ कर आया, बैठा और उस ने रोटी के टुकड़ों को ध्यान से देखा. फिर अपने पंजों में उठा कर कुछ देर बैठा रहा जैसे सोच रहा हो कि यह नई चीज खाऊं या नहीं, फिर उस ने पूरा का पूरा टुकड़ा निगल लिया. फिर दूसरा टुकड़ा चोंच में उठा कर उड़ गया. फिर दूसरा कौआ आया तो उस ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दोहराई.

आज रानी को अच्छा लगा और उस का हौसला बढ़ गया. दूसरे दिन उस ने एक बड़ी रोटी बनाई और उस के अनेक टुकड़े कर के खिड़की के बाहर डाल दिए. पहले एक कौआ आया और उस ने कुछ ऐसी आवाज निकाली कि उसे सुन कर बहुत सारे कौए एकसाथ आ गए और पल भर में ही सारी रोटी खा गए. आज रानी को बहुत अच्छा लगा. उस ने सोचा कि ये दक्षिण भारतीय कौए भी अब रोटी खाना सीख गए हैं. अब तो कौओं को रोटी डालना उस की सुबह की दिनचर्या में शामिल हो गया था. धीरेधीरे वह कौओं को पहचानने भी लगी थी. एक कौए की चोंच मुड़ी हुई थी. दूसरे कौए का एक पंजा ही नहीं था तो एक और कौए की गरदन के बाल झड़े हुए थे. वह सोचती कि जैसे उसे कौओं की पहचान होती जा रही है वैसे ही क्या कौए भी उसे पहचानते होंगे? पर इस का कोई उत्तर उस के पास नहीं था.

एक दिन रानी ने डबलरोटी का नाश्ता तैयार किया. डबलरोटी के ही छोटेछोटे टुकड़े कर के उस ने खिड़की में डाल दिए. कौए आए, कांवकांव किया, पर उन्होंने डबलरोटी के टुकड़े नहीं खाए. उन्हें वहीं छोड़ कर वे उड़ गए, उस ने सोचा पहले रोटी नहीं खाते थे और आज डबलरोटी नहीं खा रहे हैं. कल भी उन्हें यही डालूंगी तब खा लेंगे.

दूसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर किसी भी कौए ने नहीं खाई. तीसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर फिर कौओं ने नहीं खाई. तब उस ने जल्दी से आटा निकाला, एक रोटी बनाई और रोटी के टुकड़े डाले. कौओं ने पहले की तरह पल भर में सब टुकड़े लपक लिए थे. आज उस ने जाना कि कौओं की भी पसंद और नापसंद होती है. उस की जांच करने के लिए उस ने अगले दिन उबले चावल डाले. कौए आए और सूंघ कर चले गए. दिनभर चावल वहीं पड़े रहे और गिलहरियां खाती रहीं. उस दिन रानी ने गिलहरियों के व्यवहार को भी करीब से देखा, कैसे एकएक दाने को दोनों पंजों से पकड़ कर कुतरकुतर कर बड़े प्यार से खाती हैं. उन की चमकती हुई दोनों आंखें कितनी सुंदर लगती हैं. इन जीवों का व्यवहार देखने में रानी को आनंद आने लगा था. उसे लगा था कि उसे तो जीवशास्त्री बनना चाहिए था.

कौओं को रोटी डालतेडालते रानी ने उन के व्यवहार को भी बहुत करीब से देखा. उस ने देखा कि कौओं में भी लालच होता है. कई कौए तो अधिक से अधिक रोटी के टुकड़े निगल कर और फिर चोंच में भी दबा कर उड़ जाते थे. अपने रोज के साथियों के लिए एक टुकड़ा तक नहीं छोड़ते थे. ऐसे दबंग कौओं से कमजोर कौए डरते भी थे. दबंग कौए जब तक खिड़की पर बैठे रहते कमजोर कौए दूर बैठे उन के उड़ने का इंतजार करते. जब दबंग कौए उड़ जाते तभी वे खिड़की पर आते और बचेखुचे टुकड़ों को खा कर ही संतोष कर लेते थे.

कौओं के खाने की प्रक्रिया में रानी ने उन की काली, पतली और लंबी जीभ भी देखी. उन की जीभ देख कर उसे उबकाई सी आने लगती थी. उसे टेढ़ी चोंच वाले और एक पैर वाले कौए पर विशेष दया आती थी. इसलिए उन दोनों विकलांग कौओं के लिए वह अलग से रोटी रख लेती थी. जब और सब कौए रोटी ले कर उड़ जाते थे तब वे दोनों कौए एकसाथ खिड़की पर आते और वह दोनों को रोटी डालती. आराम से अपनाअपना हिस्सा ले कर वे उड़ जाते थे.

रानी ने एक और बात जानी कि कमजोर कौओं में बहुत अधिक धीरज होता है. कभीकभी रानी काम में इतना अधिक व्यस्त होती कि उन दोनों को देख कर भी उन्हें अनदेखा सा कर जाती थी. पर वे दोनों शांत बैठे इंतजार करते रहते थे. एकदो बार तो आधे घंटे से अधिक देर तक दोनों धीरज धरे बैठे रहे थे. उन्हें इस तरह देख कर उस ने मन ही मन उन से माफी मांगी थी और उन्हें रोटी दे दी थी. इतनी देर से भोजन न मिलने पर भी उन में अधीरता नहीं थी, दोनों ने बड़े शांत भाव से रोटी खाई. टेढ़ी चोंच वाले कौए पर उसे अधिक दया आती थी क्योंकि वह रोटी का टुकड़ा बड़ी मुश्किल से उठा पाता था.

कौओं से दोस्ती ने रानी को दार्शनिक भी बना दिया था. वह मानव और पक्षियों की तुलना करने लगती. उसे लगता दोनों में कितनी समानता है. दोनों में लालच है, दोनों में पसंदनापसंद है, दोनों में धीरज है, दोनों में मैत्री और दया भी है.

रानी जब इस प्रकार दोनों की तुलना करती तो उस के मन में एक विचार बारबार आता था कि क्या ये भी मनुष्य को पहचानते हैं. इस मुश्किल का हल भी उसे शीघ्र ही मिल गया. तभी एक अंगरेजी की पत्रिका उस के हाथ लगी. उस में पूरा एक लेख था कि कौए भी आदमी को पहचानते हैं. इस कहानी में एक ऐसे व्यक्ति के अनुभव लिखे हुए थे जिस ने एक कौए को पाल रखा था और वह कौआ हजारों की भीड़ में उसे पहचान कर उस के कंधे पर ही आ कर बैठता था. यह पढ़ कर रानी भी खुश हुई कि ये दोनों कौए जो रोज उस के हाथ की रोटी खा कर जाते हैं उसे जरूर पहचानते होंगे. इस का प्रमाण भी उसे मिल गया. एक दिन सुबह की सैर के लिए निकली तो टेढ़ी चोंच वाला कौआ उड़ता हुआ आया और उस के सिर पर बैठ गया. अचानक इतने बोझ को सिर पर महसूस कर के वह घबरा गई थी और उस ने जोर से धक्का दे कर उसे उड़ा दिया था. घर आ कर उस ने जब इस घटना के बारे में बताया तो सब ने इस का अलगअलग अर्थ लगाया. पति बोले, ‘‘जल्दी नहा लो. कौए कितने गंदे होते हैं.’’

सासूमां बोलीं, ‘‘यह तो बहुत बड़ा अपशकुन है. कौए का सिर पर बैठना घर में किसी की मृत्यु का संकेत देता है. जल्दी मंदिर जाओ और एक चांदी का कौआ दान करो.’’

अनजाने में ही रानी के इस दोस्त ने उसे दुविधा में डाल दिया था. फिर उस ने अंगरेजी पत्रिका के लेख के सहारे सासूमां को समझाया कि कौऐ का यह व्यवहार दोस्ती के कारण था. वह कौआ किसी चांदी के दुकानदार का एजेंट तो था नहीं, इसलिए इस तर्कहीन दान की बात एकदम बेकार है. सासूमां ने भी जब इस पर ध्यान से सोचा तो उन्हें अपने द्वारा बताए गए इस उपाय पर खुद हंसी आने लगी.

जिंदगी अपनी रफ्तार चलती रही. कौए के सिर पर बैठने के अपशकुन का वहम दम तोड़ चुका था. चेन्नई में आना रानी को भा गया था. वह सुबह उठते ही अन्य चेन्नई वालों की तरह आवाज लगाती, ‘‘काका वा (अर्थात कौएजी) आओ और भोजन ग्रहण करो.’’

Romantic Story : वह धोखेबाज प्रेमिका – एक बेवफा के प्यार में बरबाद युवक की कहानी

Romantic Story : अनीता की खूबसूरती के किस्से कालेज में हरेक की जबान पर थे. वह जब कालेज आती तो हर ओर एक समा सा बंध जाता था. वह हरियाणा के एक छोटे से शहर सिरसा के नामी वकील की बेटी थी तथा बेहद खूबसूरत व प्रतिभाशाली थी. चालाक इतनी कि अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी. अभिजात्य व आत्मविश्वास से उस का नूरानी चेहरा हरदम चमकता रहता. वह मुसकराती भी तो ऐसे जैसे सामने वाले पर एहसान कर रही हो. कालेज में एक रसूख वाले नामी वकील की बेटी यदि होशियार और सुंदर हो, तो उस के आगेपीछे घूमने वालों की फेहरिस्त भी लंबी ही होगी.

लेकिन अनीता ने सब युवकों में से नीलेश को चुना जो गरीब और हर वक्त किताबों में खोया रहता था. वह अनीता का ही सहपाठी था, और गांव के एक गरीब किसान का बेटा था. उस के पिता का असमय निधन हो गया था, इसलिए बड़ी मुश्किल से विधवा मां नीलेश को पढ़ा रही थीं व नीलेश हर समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहता था. अनीता को तो नीलेश ही पसंद आया, क्योंकि वह लंबा, हैंडसम और मेहनती नौजवान था. अनीता जबतब कुछ पूछने के बहाने उसे अपने नजदीक लाती गई और देखतेदेखते उन की दोस्ती की चर्चा अब पूरे कालेज में होने लगी. नीलेश खोयाखोया रहने लगा. धीरेधीरे इस मेधावी छात्र की पढ़ाई जहां ठप सी हो गई, वहीं अनीता जो पढ़ाई में औसत दर्जे की थी अब वह उस के बनाए नोट्स पढ़ कर फर्स्ट आने लगी.

इस सब में नीलेश की मेहनत होती. वह रातभर उस के लिए नोट्स बनाता, उस की प्रैक्टिकल की फाइल्स तैयार करता, लैब में ऐक्सपैरिमैंट्स वह करता, लेकिन उस की मेहनत का सारा फल अनीता को मिलता. नीलेश तो बस, अपनी प्रेमिका के प्रेम में ही डूबा रहता. वह उस के अलावा कुछ सोच भी नहीं पाता. यहां तक कि छुट्टी में वह अपनी मां से मिलने गांव भी नहीं जाता. ये सब देख मां भी बीमार रहने लगीं.

नीलेश प्यार के छलावे में इस कदर खो गया कि उसे याद ही नहीं रहता कि गांव में उस की मां भी हैं, जो आठों पहर उस की राह देखती रहती हैं. मां ने अपने जेवर बेच कर उस के कालेज की फीस भरी. मां बड़े किसानों के यहां धान साफ कर के उस की पढ़ाई का खर्च पूरा कर रही थीं. उन के प्रति चाह कर भी नीलेश नहीं सोच पाता, क्योंकि अनीता के साथ उस के प्रश्नोत्तर बनाना, फिर उस के घर जाना, वह कहीं जा रही हो, तो उसे साथ ले जाना, उस के संग पिक्चर व पार्टी अटैंड करना, ये सब काम वह करता. वह इन सब में इतना थक जाता कि उसे अपना भी होश न रहता. कालेज की गैदरिंग में उस ने अनीता को देख कर ही यह गीत गाया था, ‘एक शेर सुनाता हूं मैं, जो तुझ को मुखातिब है, इक हुस्नपरी दिल में है, जो तुझ को मुखातिब है…’

इस गीत को गाने में वह इतना तन्मय हो गया था कि बड़ी देर तक तालियां बजती रही थीं, पर वह सामने कुरसी पर बैठी अनीता को ही ताकता रहा और उस के कान में तालियों की आवाज भी जैसे नहीं पड़ रही थी. अनीता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था. सारे कालेज में वह जूलियट के नाम से जानी जाने लगी थी. हालांकि उस ने इस प्यार में अपना कुछ नहीं खोया. नीलेश ने उसे कभी उंगली से भी नहीं छुआ था.

इधर ऐग्जाम होतेहोते अनीता का मुंबई में रिश्ता तय हो गया. अनीता को क्या फर्क पड़ना था. वह तो मस्त थी. कभी प्रेम में पड़ी ही नहीं थी. वह तो मात्र मनोरंजन और मतलब के लिए नीलेश को इस्तेमाल कर रही थी. आखिर रिजल्ट आया, अनीता अव्वल आई पर नीलेश 2 विषयों में लटक गया. उस का 1 वर्ष बरबाद हो गया. इधर अनीता विवाह कर मुंबई रहने चली गई, जबकि नीलेश को प्यार में नाकामी और अवसाद हाथ लगा.

उस का साल बरबाद हो गया इस का तो उसे गम नहीं हुआ लेकिन जिसे वह दिल ही दिल में चाहने लगा था, उस अनीता के एकाएक चले जाने से वह इतना निराश हो गया कि उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या का प्रयास किया. जब अनीता की बरात आ रही थी, तब नीलेश अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहा था. उस की गरीब मां का रोरो कर बुला हाल था. वह नहीं समझ पा रही थीं कि हर कक्षा में प्रथम आने वाला उस का बेटा आज कैसे फेल हो गया. वह इतना होशियार, सच्चा, ईमानदार, व मेहनती था कि मां ने उस के लिए असंख्य सपने संजोए थे, किंतु एक बेवफा के प्यार ने उसे इतना नाकाम बना दिया कि वह शराब पीने लगा. उस का भराभरा चेहरा व शरीर हड्डियों का ढांचा नजर आने लगा.

Family Story : रिश्तों की डोर – सुधा और रमन के रिश्ते से प्रिया को क्या फर्क पड़ रहा था?

Family Story : बारिश के बाद की शाम अकसर आसमान में एक अलग सी लाली छोड़ जाती है. सुधा भी कुदरत की इस खूबसूरती को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाह रही थी कि अचानक प्रिया की आवाज से उस का ध्यान टूटा, “मम्मा, यह लो आप की चाय.”

प्रिया को पता था कि सुधा को बालकनी में बैठ कर प्रकृति को निहारते हुए चाय पीना बेहद पसंद है. इसलिए जब भी कभी वह कालेज से जल्दी आ जाती तो दोनों मांबेटी साथ बैठ कर चाय पीते और गप्पें मारते.

शाम को फोन की घंटी बजी। सुधा के फोन उठाते ही सामने से प्रिया की आवाज़ आई,”मम्मा, आज मुझे कालेज से आने में देर हो जाएगी. आप परेशान मत होना.”

ठीक है, लेकिन अंधेरा होने से पहले घर आ जाना, मैं खाना बना कर रखूंगी. हां, बाहर से कुछ खा कर मत आना. सुधा की हिदायत सुन कर प्रिया ने भी हामी भर दी. वह मां की चिंता बखूबी समझती थी.

फोन रखते ही सुधा की नजर दीवार पर लगी प्रिया और रमन की तसवीर पर चली गई. रमन प्रिया को गोद में लिए था. यह तसवीर तब की थी जब प्रिया 2 साल की थी और वे तीनों अकसर समंदर किनारे घूमने जाते थे. समंदर किनारे पड़ी रेत से खेलना प्रिया को खूब भाता था. वे तीनों अकसर छुट्टी वाले दिन वहां जाया करते. यही सब सोचतेसोचते सुधा कब 21 साल पीछे चली गई उसे पता ही नहीं चला.

सुधा और रमन की अरैंज्ड मैरिज थी. रमन जहां शांत स्वभाव का व्यक्ति था तो, वहीं सुधा खुशमिजाज, हंसतीखिलखिलाती रहने वाली लड़की.

सुधा के आने से घर में सभी का मन लगा रहता. धीरेधीरे सुधा भी रमन के साथ घरगृहस्थी में रमती गई. लेकिन रमन का कम बोलना, हर बात पर सीमित सा जवाब देना सुधा को अकसर परेशान कर देता. सुधा ने कई बार रमन से उस के इस तरह के व्यवहार को ले कर बात करनी चाही लेकिन हर बार रमन उस की बात को टाल जाता या कोई और बात शुरू कर देता. खैर, सुधा भी उस के व्यवहार के अनुसार खुद को ढालने लगी.

वक्त के कहां पैर होते हैं वह तो बस पंख लगाए उड़ता जाता है. रमनसुधा के जीवन में विवाह के 2 वर्ष बाद प्रिया आ गई. सुधा अकसर सोचती कि प्रिया के आने से घर में रौनक सी आ गई है। शायद रमन के व्यवहार में भी अब बदलाव आ जाए. मगर ऐसा हो न सका.

रमन प्रिया से बहुत प्यार करता था। उस के साथ घंटों खेलना, उस की हर जिद पूरी करना, उसे घुमाने ले जाना, जैसे हर पिता करता है रमन भी प्रिया को सिरआंखों पर रखता. आखिर संतान के सामने तो बड़े से बड़े कद का व्यक्ति भी खुशीखुशी झुक कर उस का खिलौना बन जाता है.

एक शाम अचानक सुधा की सास की तबियत बिगड़ गई. सुधा ने जीजान से उन की सेवा की लेकिन बढ़ती उम्र और अस्थमा की बीमारी के चलते कुछ ही दिनों में वे इस दुनिया को अलविदा कह गईं. अब सारे घर की जिम्मेदारी सुधा पर आ गई.

सास के जाने के बाद ससुरजी और ननद ने उन की यादों को टटोलने के लिए उन की अलमारी खोली, जिसे सुधा की सास के अलावा कोई नहीं खोल सकता था. सास ने सभी को इस की सख्त हिदायत जो दे रखी थी.

अलमारी खोलते ही उस में से रमन और नेहा के बचपन की तसवीरें निकलीं. दोनों भाईबहन खूब लड़ा करते थे लेकिन प्रेम भी भरपूर था. नेहा ने नम आंखों से रमन के हाथ में एक तसवीर थमा दी जिस में मां ने दोनों को तैयार कर के स्कूल ड्रैस में स्टूडियो ले जा कर फोटो खिंचवाया था. सुधा भी सासूमां की अलमारी से उन की डायरियां निकाल रही थी, जिस में वे अपने मन की बातें लिखा करती थीं, साथ ही उन्होंने कई खत भी संभल कर रखे थे जो उन के मातापिता व भाइयों द्वारा लिखे गए थे. इस में एक खत रमन का भी था जिसे देख कर सुधा थोड़ा चौंक गई.

खत को सभी के सामने पढ़ना संभव नहीं था इसलिए उस ने उसे सभी की नजरों से छिपा कर मुट्ठी में कैद कर लिया. शाम के वक्त सुधा रमन के लिखे उस खत को ले कर छत पर गई. सुधा ने खत को खोल कर पढ़ना शुरू किया और खत के अंत होने से पहले ही सुधा की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. खत में रमन ने सुधा से विवाह न करने का जिक्र किया था, चूंकि मां के सामने वह इस तरह की बात नहीं कह सकता था इसलिए उस ने खत का सहारा लिया था. दरअसल, रमन अपने औफिस में साथ काम करने वाली एक लड़की को पसंद करता था और उसी से विवाह करना चाहता था. लेकिन समाज और मातापिता के दबाव के कारण वह कभी भी अपनी बात नहीं रख पाया था और दबाव में आ कर ही उस ने सुधा से शादी करने के लिए हां कर दी थी.

शाम जैसेजैसे ढलने लगी थी सुधा को अपने जीवन का सूरज भी ढलता हुआ नजर आ रहा था. उसे आज इस बात का एहसास हो गया था कि रमन की इतनी सालों की चुप्पी के पीछे का कारण उस का जबरदस्ती हुआ विवाह था. पर सुधा की भी क्या गलती थी उस ने तो हर कदम पर रमन का साथ दिया. उस के परिवार को अपना माना…लेकिन अब वह क्या करे?

सुधा ने कुछ दिन बाद घर का माहौल सामान्य होने पर रमन से अपने मन की बात खत में लिख कर कह दी-
‘रमन, मैं जानती हूं कि शायद यह समय इन बातों का नहीं है लेकिन मैं अब इस तरह सारा सच जान कर इस रिश्ते में नहीं रह सकती. पतिपत्नी के रिश्ते की नींव सचाई पर खड़ी होती है लेकिन इस रिश्ते में आप का सच तो हमेशा अधूरा ही रहा. आप ने मांजी को खत लिख कर अपने मन की बात तो बता दी लेकिन क्या कभी मेरी इच्छा जानने की कोशिश की? मैं ने इस शादी में खुद को हमेशा अकेला ही पाया लेकिन आप शांत स्वभाव के हैं यह सोच कर खुद को मनाती रही.

‘आज जब सारा सच मेरे सामने है तो मैं कैसे आप के साथ इस अधूरे रिश्ते में रह लूं… मैं हमारे इस रिश्ते को अच्छे मोड़ पर छोड़ कर जाना चाहती हूं, ताकि प्रिया जब बड़ी हो तो वह खुद को अकेला महसूस न करे.’

सुधा ने कुछ दिनों बाद अलग रहने का फैसला कर लिया. रमन ने उसे समझाना चाहा लेकिन सुधा के आगे उस की एक न चली. हां, प्रिया से मिलने रमन आता रहता था और सुधा ने भी कभी प्रिया को रमन से अलग करने की कोशिश नहीं की. सुधा और रमन बेशक अलग हो गए थे लेकिन प्रिया उन के बीच एक महीन लेकिन बेहद मजबूत डोर की तरह थी.

प्रिया अकसर पापा के बारे में पूछती तो सुधा उसे रमन के पास मिलाने ले जाती. स्कूल में पेरैंट्स मीटिंग में भी दोनों साथ जाते, ताकि प्रिया को कभी किसी एक की भी कमी महसूस न हो. समय के साथसाथ प्रिया भी समझने लगी थी कि उस के मातापिता अलग रहते हैं. लेकिन उस ने कभी सुधा से कोई सवाल नहीं किया. सुधा भी रमन को ले कर बहुत सामान्य व्यवहार करती. अलग रहते हुए भी दोनों ने कभी प्रिया को अलगाव का एहसास नहीं होने दिया.

समय के साथसाथ उस ने भी मातापिता के फैसले को स्वीकार कर लिया था. आज भी रमन प्रिया से मिलने सुधा के घर आता है और तीनों बैठ कर घंटों बतियाते हैं. न रमन ने कभी सुधा को ले कर प्रिया से कुछ गलत कहा और न ही सुधा ने कभी रमन का सच प्रिया से जाहिर किया. प्रिया का जब मन करता वह भी पिता से मिलने चली जाया करती.

मातापिता का अलगाव कभी प्रिया के जीवन में खालीपन नहीं लाया.
मातापिता का तलाक या अलगाव का असर बच्चों पर बहुत गहरा पड़ता है. पर सूझबूझ और समझदारी से रिश्ते निभाए जाएं और बच्चों का साथ मिलें तो सारी समस्याएं चुटकियों में हल हो जाती हैं.

सुधा तसवीर को देखते हुए यही सब सोच रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी और सुधा एक झटके में अतीत से वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही सामने रमन और प्रिया खड़े थे.

“मम्मा, जल्दी खाना लगा दो बहुत जोर की भूख लगी है, हम तीनों आज साथ खाना खाएंगे,” कहतेकहते प्रिया रमन और सुधा के गले में हाथ डाल कर झूल गई.

सुधा और रमन भी एकदूसरे को देखकर मुसकरा दिए।

Best Hindi Story : अंबानी के बेटे की शादी – गरीब पिता की बेचारगी

Best Hindi Story : एक रिटायर्ड शिक्षक, बेटी की शादी की तैयारी में दिनरात जुटा है. इस पिता का डर बस यही है कि कहीं वह अपनी बेटी की उम्मीदों पर खरा न उतर सका तो?

मैं एक सरकारी स्कूल से सेवानिवृत्त शिक्षक हूं. मुकेश अंबानी, उन के घर का कोई सदस्य, उन के नौकरचाकर, उन के घर के कुत्तेबिल्लियां और उन के घर के ही क्या वह जिस सड़क पर रहते हैं उस पर आवारा घूमने वाले जानवर आदि में से किसी से भी मेरा किसी भी जन्म का कोई परिचय नहीं है. बताने की कतई आवश्यकता नहीं है कि मैं इस शादी में आमंत्रित नहीं था, मेरी इतनी हैसियत नहीं पर जो बात बताने की है वह यह कि यदि मैं आमंत्रित होता तो भी मैं इस शादी में कतई न जाता. कारण यह नहीं कि उन्होंने टैरिफ बढ़ा दिया है. न, मु झे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. नहीं, मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं.

भला एक सरकारी स्कूल का रिटायर्ड टीचर कितना अमीर हो सकता है. ऐसा है कि इस देश में आम आदमी के बजट में हर रोज कहीं न कहीं से सेंध लगती ही है. कभी दूध के पैकेट का दाम बढ़ जाता है, किसी दिन अंडों का, कभी चावलदाल तो कभी तेलमसाले महंगे हो जाते हैं.

अब मोबाइल के लिए तो जियो से बीएसएनएल में पोर्ट किया जा सकता है. रोजमर्रा की जरूरत की इन चीजों के लिए कहीं कोई पोर्ट करने का विकल्प हो तो मैं भी अंबानी से नाराजगी रखूं. इस देश में आम आदमी ने महंगाई के आगे समर्पण कर दिया है. मैं भी इस का अपवाद नहीं हूं.

न ही मेरे अंदर किसी प्रकार की अकड़ है जो मु झे वहां जाने से रोकती हो. बड़ी अकड़ रखने वाले, अंबानी को दिनरात गरियाने वाले तेजस्वी और तेजप्रताप जब अंबानी की थाली में मलाई चाटने पहुंच सकते हैं तो मेरी क्या बिसात. न ही ऐसा है कि मैं कोई साधु आदमी हूं जिसे राजसी चमकदमक, स्वाद की अंतिम सीमा तक स्वादिष्ठ पुएपकवान में मेरी कोई रुचि नहीं. न ही ऐसा है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाले हीरोहीरोइनों को लाइव देखने का मेरा मन न हो और न ही ऐसा है कि तेज संगीत पर नाचती अप्सरा सी सौंदर्य प्रतिमाओं के मादक हावभाव मु झे प्रभावित नहीं करते.

मेरे न जाने की विवशता का कारण है कि अगले महीने मेरी बिटिया का विवाह सुनिश्चित हुआ है. जब से शादी की तारीख तय हुई है, मु झे कहीं आनेजाने के लिए रिकशा लेना भी फुजूलखर्ची लगता है. अब मु झे दूर की जगह भी इतनी दूर नहीं लगती कि रिकशा लिया जाए.

हर पिता की तरह मैं ने भी अपनी बिटिया की शादी की तैयारी उसी दिन से शुरू कर दी थी जब उस का जन्म हुआ था. लेकिन मुकेश अंबानी के बेटे की शादी का सुन मु झे ऐसा लगने लगा है जैसे मैं ने अपनी बेटी की शादी की तैयारी शुरू करने में बड़ी देर कर दी. मु झे अपनी बिटिया की शादी की तैयारी उस के जन्म से नहीं, अपने जन्म से ही शुरू कर देनी चाहिए थी.

मेरे ऐसा सोचने का कारण यह नहीं कि इतने ही दिनों में महंगाई बहुत बढ़ गई है. कारण यह है कि अंबानी के बेटे की शादी के बाद शादी को ले कर मेरी पत्नी और बेटी की आकांक्षाओं व सपनों ने ऐसी उड़ान भरी है कि जिस से मैं आतंकित हूं.

कल हम लोग बिटिया के लिए लहंगा लेने गए थे. इंगेजमैंट के लिए अलग और शादी के लिए अलग लहंगा लेना था. 20-25 हजार रुपए से कम का कोई लहंगा मेरी पत्नी और बेटी को पसंद आ ही नहीं रहा था.

राधिका ने जो लहंगा पहना था, वह कैसा था, कितना सुंदर था, बिटिया बारबार बता रही थी. बाजार मेरे जैसे लोगों को बख्शने के लिए हरगिज तैयार न था. फलां हीरोइन ने फलां फिल्म में जो लहंगा पहना था वह तो आप के बाप की हैसियत से बाहर है. सो, आप के लिए यह फर्स्ट कौपी.

आज तक हजारों बच्चों की कौपियां चैक करने वाले इस बूढ़े मास्टर को इस फर्स्ट कौपी के चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल हो रहा है. एक व्यंग्यकार ने कहा था कि हमारी पीढ़ी की पूरी ताकत लड़कियों की शादी करने में खर्च हो रही है. पता नहीं ऐसा है कि नहीं पर मेरी तो पूरी ताकत मेरी बिटिया की शादी करने में खर्च हो रही है.

ऐसा नहीं कि इन खर्चों का मु झे पूर्वानुमान न था. योजनाबद्ध तरीके से संतुलित जीवन जीने का आदी रहा हूं. एकएक चीज की डिटेलिंग की थी मैं ने पर इस बीच अंबानी के बेटे की शादी हो गई.

अब इस के बाद बच्चों की सोच ही बदल गई. अगर अंबानी के बेटे की शादी में आमिर, शाहरुख और सलमान नाचे थे, रिहाना और जस्टिन बीबर आए थे तो क्या वे इतने गएगुजरे हैं कि उन की शादी में शहर का सब से महंगा डीजे भी नहीं बुक हो सकता.

हर बात पर अंबानी के बेटे की शादी की बात कर मेरी बिटिया मेरे सामने एक ऐसा बैंचमार्क रख देती है जिस तक पहुंचना मेरे बस की बात नहीं.

मेरी बिटिया के सपनों की इस उड़ान ने इस बूढ़े मास्टर को उस के जीवन की सब से कठिन परीक्षा में डाल दिया है, डरता हूं कहीं एक अच्छे पिता होने की इस परीक्षा में असफल न हो जाऊं.

खैर, मेरे जैसे लोग जब भी कुछ महंगा समान खरीदते हैं तो उन की एक ही अपेक्षा रहती है कि वह चले, खूब चले.

सो, अंबानीजी, मैं भी आप को बेटे की शादी की शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि उन की शादी खूब चले. सातों जनम तक चले क्योंकि अगर दोबारा फिर इसी तरह की शादी हुई तो मु झ जैसे टीचर की बेटी की शादी होगी ही नहीं और हो भी गई तो टूटने से डबल प्रहार हो जाएगा.

लेखक : संतोष कुमार अकवि

Supreme Court : जजों ने खोले खाते, अफसरशाही के राज बंद

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि देश में न्याय की कुर्सियों पर बैठे व्यक्तियों के चालचरित्र और संपत्ति के मामलों में पारदर्शिता रहे. इस के लिए हाल ही में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति घोषित करने का आदेश भी सीजेआई ने दिया. यह पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.

पिछले कुछ दिनों से हाई कोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा काफी सुर्खियों में हैं. उन पर आरोप है कि नई दिल्ली स्थित उन के सरकारी आवास से भारी मात्रा में कैश मिला. 14 मार्च को यशवंत वर्मा के आवास के एक स्टोर रूम में आग लग गई. उस समय जज और उन की पत्नी भोपाल में थे. आवास पर उन की बूढ़ी मां ही थीं. आग लगने पर फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने जब आग बुझानी शुरू की तो पाया कि स्टोररूम में बोरो में बड़ी तादाद में नोटों के बंडल हैं जो आग की चपेट में आ कर जल रहे हैं.

इतनी बड़ी तादात में बोरों में भरे कैश को देख कर सब के हाथपैर फूल गए. पुलिस आई, मीडिया में फोटो सर्कुलेट हो गए. हल्ला मच गया कि जज साहब के घर से नोटों के भरे बोरे बरामद हुए हैं. अब मामला चूंकि हाई कोर्ट के जज से जुड़ा था इसलिए तुरंत आतंरिक जांच शुरू हो गई और पुलिस ने ज्यादा कुछ नहीं किया, मगर बाकी बोरे जिन में नोटों के बंडल थे और जो जलने से बच गए थे, वे रहस्यमय तरीके से कहां गायब हो गए इस का अब कुछ पता नहीं चल रहा है.

दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय ने भी 21 मार्च को सीजेआई को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में इस गायब हुई नकदी का उल्लेख किया है.

मोदी दौर में कालेजियम को ले कर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच लंबे समय से काफी रस्साकशी चल रही है. सरकार कालेजियम को समाप्त करने पर आमादा है और सुप्रीम कोर्ट इस को बरकरार रखना चाहता है. इस के चलते उपराष्ट्रपति से ले कर मोदी सरकार के कई मंत्री और नेता ‘ऊपरी आदेश’ से कोर्ट के खिलाफ गाहेबगाहे टीका टिप्पणी करते रहते हैं. हालांकि अभी तक कोर्ट ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया और वह खामोशी से अपना काम कर रहा है.

बीते समय में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले सरकार की खाट खड़ी कर चुके हैं. लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला कोर्ट को बैकफुट पर लाने वाला था, लिहाजा आननफानन सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन सदस्यीय समिति बना कर इस मामले की जांच शुरू करवा दी. यही नहीं जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से हटा कर वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया जहां उन्हें न्याय संबंधी कार्यों से अलग रखा गया.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय इनहाउस जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है. जिस में यह पुष्टि हुई है कि 14 मार्च को यशवंत वर्मा के तुगलक क्रिसेंट स्थित सरकारी आवास के स्टोररूम से बड़ी मात्रा में नकदी मिली थी. यह रिपोर्ट जस्टिस वर्मा के उस दावे के बिल्कुल विपरीत है जिस में उन्होंने इस तरह की किसी भी बरामदगी से इंकार किया था.

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन की समिति ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंपी है, जिस के बाद जस्टिस वर्मा से कहा गया कि या तो वे इस्तीफा दें या वीआरएस ले लें. पर इस्तीफा देने से इंकार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने उन के खिलाफ महाभियोग चलाने की संस्तुति करते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति के पास भेज दी है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दे कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि कोई भी दागी व्यक्ति न्याय की कुर्सी पर बैठने के लायक नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि देश में न्याय की कुर्सियों पर बैठे व्यक्तियों के चालचरित्र और संपत्ति के मामलों में पारदर्शिता रहे. इस के लिए हाल ही में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति घोषित करने का आदेश भी सीजेआई ने दिया. यह पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को भी सार्वजनिक किया है.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जजों की नियुक्ति से जुड़े कालिजियम सिस्टम से सुझाए गए नाम और हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा और रिटायर्ड जजों से उन के संबंध का ब्यौरा भी है. साथ ही उन नामों से सरकार ने कितनों को मंजूरी दी है इस की भी जानकारी है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कालेजियम ने 9 नवंबर 2022 से ले कर 5 मई 2025 तक कुल 221 नामों की केंद्र को सिफारिश की थी. इन नामों में केंद्र ने अभी तक 29 नामों को मंजूरी नहीं दी है. कालेजियम से भेजे गए नामों में 14 ऐसे थे जिन का संबंध किसी रिटायर्ड या मौजूदा जज से था. इसी अवधि में हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कालेजियम के प्रस्तावों को भी वेबसाइट पर डाला गया है. इन में नाम, हाई कोर्ट, कालेजियम की सिफारिश की तारीख आदि सूचनाएं शामिल हैं.

न्यायपालिका में पारदर्शिता बनाने की दिशा में और भ्रष्टाचार से दूर रहने के लिए सुप्रीम कोर्ट अथक प्रयास कर रहा है ताकि उस पर कोई ऊंगली न उठा सके और देश की जनता का विश्वास न्यायपालिका पर पुख्ता हो. लेकिन अफसरशाही और विधायिका में जो घोर भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा चुका है, उस पर मट्ठा डालने का काम कब शुरू होगा?

अफसरशाही भ्रष्टाचार और नेता एक ऐसा गठजोड़ है जो हर सरकार में होता है. अफसर खुद भी करोड़ों रुपए डकारता है और नेता को भी मालामाल करता है और इस के बदले में नेता उस को शरण देता है. उस के हर काले कारनामे पर पर्दा डाले रखता है. किस अफसर के पास कितनी जमीन है, कितने फ्लैट हैं, कितना बैंक बैलेंस है, कितना सोना है, कितना पैसा उसने रिश्तेदारों के नाम पर विभिन्न कंपनियों में निवेश कर रखा है, कितना विदेशी बैंकों में जमा है, इस का खुलासा कभी नहीं होता है.

देश में जितने भी घोटाले होते हैं वह कोई नेता अकेले नहीं करता बल्कि उस की जड़ में अफसरशाही है जो यह सब करती है. वह बड़ा हिस्सा खुद खाती है और बचाखुचा नेता को खिलाती है.

भारतीय प्रशासनिक सेवा को देश के प्रशासन की रीढ़ कहा जाता है, लेकिन प्रशासनिक शुचिता आज अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच चुकी है. समयसमय पर कुछ अधिकारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने इस की साख को प्रभावित किया है. प्रशासनिक पदों पर बैठे अनेक अधिकारी, जिन पर जनता की सेवा करने और सुशासन को मजबूत करने की जिम्मेदारी है, मनी लान्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और घोटालों में लिप्त हैं. ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अपने कर्तव्यों से भटक कर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे और जेल गए. जिन के कारनामे सामने नहीं आए वे मजे से कमाई कर रहे हैं.

अक्टूबर 2022 में प्रवर्तन निदेशालय ने छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई को मनी लान्ड्रिंग और अवैध लेवी वसूली के आरोप में गिरफ्तार किया था. एक ऐसा अधिकारी जिसने मात्र 16 महीने में 500 करोड़ रुपए की काली कमाई की.
समीर विश्नोई के साथ दो कारोबारी सुनील अग्रवाल और लक्ष्मीकांत तिवारी को भी गिरफ्तार किया गया था. छापेमारी को दौरान समीर बिश्नोई के घर में लगभग दो करोड़ रुपए मूल्य का 4 किलो सोना और 20 कैरेट हीरा मिला था. इस के साथ ही 47 लाख नकद, कई लाख की एफडी और अन्य सम्पत्तियां भी मिली थी. तीनों के पास से कुल 6 करोड़ 30 लाख का सोना और हीरा आदि मिला था. बाद में मिली संपत्ति को ईडी ने उजागर नहीं किया. तीनों को जेल भेज दिया गया था.

झारखंड कैडर की आईएएस पूजा सिंघल का नाम अखबारों की सुर्ख़ियों में रहा. पूजा सिंघल पर मनरेगा फंड घोटाले और मनी लान्ड्रिंग का आरोप है. ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर उन के खिलाफ पीएमएलए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. उन पर सरकारी धन का दुरुपयोग कर निजी संपत्ति खरीदने के गंभीर आरोप हैं.

गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी के. राजेश को अगस्त 2022 में रिश्वत लेने और अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर जनता से अवैध लाभ लिया और उसे अपनी संपत्तियों में निवेश किया.

उत्तर प्रदेश कैडर की नीरा यादव को कौन भूल सकता है. नीरा यादव जिस सरकार में रहीं उन्होंने खुद भी काली कमाई की और नेताओं की तिजोरियां भी खूब भरीं. सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार का दोषी करार दे कर उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई.

छत्तीसगढ़ कैडर के बाबूलाल अग्रवाल पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और 400 फर्जी बैंक खाते खोलने के आरोप लगे. ईडी ने उन की संपत्तियों को जब्त कर उन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की.

उत्तर प्रदेश कैडर के राकेश ब हादुर पर 4000 करोड़ रुपए के नोएडा भूमि घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा. न्यायालय ने भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें पद से हटाने का आदेश जारी किया.

हिमाचल प्रदेश कैडर के आईएएस सुभाष अहलूवालिया पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप था. मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव के रूप में कार्यरत रहते हुए उन्हें और उनकी पत्नी को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने निलंबित कर गिरफ्तार किया. हालांकि, बाद में विभागीय जांच में मंजूरी मिलने के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया.

जनवरी 2025 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में बिहार कैडर के आईएएस संजीव हंस गिरफ्तार हुए. उन के खिलाफ अभी जांच जारी है. वहीं फरवरी 2025 में जम्मूकश्मीर कैडर के कुमार राजीव रंजन को सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले में केस दर्ज कर गिरफ्तार किया.

सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह जजों की संपत्ति ही नहीं, उन की स्पाउस और निकट के रिश्तेदारों की संपत्तियों का ब्यौरा भी कोर्ट की वेबसाइट पर डाल कर शुचिता की राह पर कदम बढ़ाया हैं, प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं की संपत्तियां भी यदि इसी तरह सार्वजनिक की जाएं, तो कुछ हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम कसना मुमकिन होगा. हालांकि कुछ हद तक उन की संपत्तियों का ब्यौरा मांगा भी जाता है, जैसे चुनावी पत्र भरते समय नेताओं को अपनी संपत्ति का ब्यौरा भरना पड़ता है.

वहीं प्रशासनिक अधिकारियों से भी केंद्र सरकार संपत्ति का ब्यौरा मांगती है. मगर पद पर रह कर वह आगे के सालों में कैसे आय से अधिक संपत्ति जोड़ लेते हैं, इस की कोई तफ्तीश या जानकारी नहीं रखी जाती है. कभी उन के खिलाफ कोई शिकायत हो जाए तो मामला खुलता है वरना अधिकांश अधिकारी आराम से काली कमाई जोड़ते हैं और रिटायरमैंट के बाद विदेशों में जा कर बस जाते हैं.

सुप्रीम कोर्ट कदम दर कदम पारदर्शिता की ओर बढ़ रहा है और इसी क्रम में 33 में से 21 न्यायाधीशों की संपत्तियों का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया गया है. जिस में वर्तमान सीजेआई संजीव खन्ना और उनकी सेवानिवृत्ति के बाद सीजेआई बनने वाले जस्टिस बीआर गवई भी शामिल हैं.

गौरतलब है कि कोर्ट ने ये फैसला जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से कथित कैश की बरामदगी की घटना के बाद लिया था. इस फैसले ने पूरे देश का ध्यान खींचा है और न्यायपालिका में पारदर्शिता को ले कर एक नई बहस छेड़ दी है. इस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता और पारदर्शिता में निश्चित रूप से इजाफा होगा.

जजों की तरफ से दी जाने वाली संपत्ति की जानकारी सिर्फ उन के पद ग्रहण के समय तक सीमित नहीं होगी. अगर भविष्य में किसी बड़े पैमाने पर संपत्ति की खरीद होती है, तो उस की जानकारी भी उन्हें मुख्य न्यायाधीश को देनी होगी. और मुख्य न्यायाधीश खुद भी इस दायरे में होंगे. इस का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी न्यायाधीश की वित्तीय स्थिति में असामान्य बदलाव होता है तो देश की आम आबादी को इस का पता हो.

इस से आमजन का विश्वास न्यायाधीशों पर और पुख्ता होगा. यह कदम भारतीय न्याय प्रणाली को आम जनता के और करीब ले आएगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए न्यायपालिका की नैतिकता का एक नया मानदंड भी स्थापित करेगा.

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी संस्था की पारदर्शिता को ले कर गंभीर है. चाहे यह फैसला विवाद के दबाव में लिया गया हो या आत्मनिरीक्षण का नतीजा हो, यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है. ऐसे समय में जब हर संस्था से जवाबदेही की उम्मीद की जाती है, यह कदम एक उदाहरण बन सकता है.

Stories For Kids : बच्चों की कहानियों में भाषा का गिरता स्तर

Stories For Kids :कहानियां न सिर्फ बच्चों का एंटरटेंमेंट करती हैं बल्कि उन की सोचने की शक्ति को भी मजबूत करती हैं. आज सोशल मीडिया के दौर में कहानियों को लिए अनेकों माध्यम हैं. लेकिन समस्या यह है कि दिन ब दिन इन की भाषा का स्तर छिछला और भद्दा होता जा रहा है. बच्चे ऊटपटांग भाषा सीख रहे हैं.

कंचन हैरान थी कि उस का चार साल का बेटा रोहन कैसेकैसे डायलौग बोलने लगा है. अगर कंचन किसी बात के लिए डांट दे तो मुट्ठियां भींच कर बोलता है – ‘तेरी तो…. मैं आप को छोडूंगा नहीं…. ‘ फिर हवा में हाथ घुमा कर शक्ति एकत्रित करने की एक्टिंग करता है. कंचन को पहले तो उस के इस एक्ट पर हंसी आई. उस की मासूमियत पर वह रीझ गई, लेकिन फिर वह सोचने लगी कि कहीं स्कूल में साथ के बच्चे तो ऐसी भाषा नहीं बोलते या ऐसी हरकतें तो नहीं करते.

जल्दी ही कंचन के सामने इस का खुलासा हो गया. दरअसल दिन में कुछ समय रोहन मोबाइल फोन पर या टीवी पर अपने मनपसंद कार्टून चैनल्स देखता है. जो हिंदी में डब किए होते हैं. इन कहानियों के पात्र बेहद छिछली भाषा में अपनी बात करते नजर आते हैं. मिकी माउस, टौम एंड जेरी, डोनाल्ड डक, सुपरमैन, बैटमैन जैसे किरदार जब हिंदी में डायलौग डिलीवरी करते हैं तो वह भाषा बड़ी ही आक्रामक और बेहूदी सुनाई पड़ती है. जब कि इन का अंग्रेजी वर्जन काफी अच्छा है.

बच्चों के लिए जो हिंदी की कहानियां टीवी या सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हैं, उन में भाषा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. कुछ कहानियों में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं. इस से उन्हें भाषा के सही अर्थ को समझने में तो दिक्कत होती ही है, वे उस बातचीत को सीख कर अपने बड़ों के साथ अनजाने में ही भद्दा व्यवहार करते हैं.

कहींकहीं इन कहानियों व कार्टूनों में गालियों का प्रयोग भी हो रहा है. हालांकि ये हल्की गालियां हैं फिर भी मासूम मस्तिष्क पर उन का बहुत नैगेटिव प्रभाव देखा जा रहा है.

कुछ कहानियों में वाक्यों की संरचना बहुत जटिल होती है, जिस से बच्चों को उन्हें समझने में कठिनाई होती है तो कुछ कहानियों में भाषा का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है, जिस से बच्चों को कहानी के अर्थ को समझने में दिक्कत होती है.

गौरतलब है कि कहानियां न केवल बच्चों को नए शब्द सीखने का अवसर देती हैं, बल्कि उन्हें विभिन्न स्थितियों में उपयोग करने का अवसर भी देती हैं. बच्चे कहानी सुनाने के जरिए स्वस्थ पारस्परिक कौशल सीखते हैं. बच्चे डर, दुख या खुशी का अनुभव करने वाले पात्रों के बारे में कहानियां सुन कर अपनी भावनाओं को पहचानना और उन से निपटना सीखते हैं.

कहानियां बच्चों को काल्पनिक संसार में ले जाती हैं. याद रखना चाहिए कि बालमन बहुत ही कोमल होता है. इस पर जरा सा आघात भी बहुत गहरे जख्म करता है. इसलिए बच्चा स्क्रीन पर देखी जा रही कहानियों और कार्टूनों में किस तरह के शब्दों को सुन रहा है इस पर नजर रखी जानी चाहिए.

ईशा का बेटा पांच बरस का है. जब ईशा की नौकरी लगी तो वह बेटे को अपनी सास के सुपुर्द कर के काम पर जाने लगी. सास बूढ़ी थी. वह पूरे समय पोते के साथ खेलकूद नहीं सकती थीं और न ही हर वक्त उस को कहानियां सुना सकती थीं. तो उन्होंने अपने मोबाइल फोन पर उस को बच्चों की कहानियां और कार्टून दिखाने शुरू कर दिए.

कुछ समय बाद ही ईशा ने महसूस किया कि उस का बेटा सोते वक्त दांत किटकिटाता है और हवा में हाथपैर मारता है. पहले तो ईशा ने सोचा कि उस के पेट में कीड़े हैं. उस ने बच्चे को कीड़े की दवा खिलाई. मगर उस की हरकतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. वह अकसर रात में हाथ पैर चलाने लगता और दांत किटकिटाने लगता था. जब कि पहले वह बड़े आराम से पूरी रात सोता था. ईशा ने अपने फैमिली डाक्टर को बच्चे की यह परेशानी बताई. उन्होंने छूटते ही कहा – क्या सोनू मोबाइल फोन देखता है? ईशा ने हामी भरी तो डाक्टर ने कहा कि तुरंत मोबाइल फोन देखना बंद करवाओ.

दरअसल मोबाइल फोन पर बच्चों की कहानियों और कार्टूनों में सिर्फ मारपीट, गोली बंदूक, दौड़ना पकड़ना, एकदूसरे को मारना और तेज आवाज में चीखना चिल्लाना भरा पड़ा है, जिस का बहुत बुरा असर बच्चों के दिलदिमाग पर पड़ रहा है. सोते वक्त वह सपने में यही सब देखते और अनुभव करते रहते हैं.

प्रेम भावनाओं, मेलमिलाप, दोस्ती और रिश्ते की भावना इन कहानियों से लुप्त हो चुकी हैं. यही वजह है कि अब ज्यादातर स्कूलों में ऐसे सेशन चल रहे हैं जहां बच्चों और उन के पेरैंट्स की काऊंसलिंग होती है, ताकि उन के बच्चे जो फोन के एडिक्ट हो गए हैं, स्क्रीन से दूर हों और अच्छी भाषा में छपी हुई किताबें पढ़ने का शौक उन के भीतर जगाया जा सके.

छोटे बच्चों को कहानियां सुनाने का बहुत महत्व है. बच्चों के भावनात्मक विकास के लिए कहानी सुनाना बहुत जरूरी है. मगर वह सीधी, सरल और अच्छी भाषा में लिखी कहानियां होनी चाहिए. कहानियों के माध्यम से, बच्चे खुशी और उत्साह से ले कर डर और उदासी तक, विभिन्न भावनाओं का अनुभव और समझ पाते हैं. जैसेजैसे वे कहानी के पात्रों से जुड़ते हैं, वे अपनी भावनाओं को अधिक स्पष्ट रूप से पहचानना और व्यक्त करना शुरू करते हैं.

अच्छी भाषा में लिखी कहानियां बच्चों को उन के आसपास की दुनिया के बारे में सिखाने का एक शक्तिशाली साधन हैं. जब बच्चे कहानियां सुनते हैं या पढ़ते हैं, तो इस से उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों के बारे में सीखने में मदद मिलती है क्योंकि वे नए विचारों से परिचित होते हैं और अपनी रचनात्मक सोच का अभ्यास करते हैं.

कहानियां ज्ञान, समझ और मनोरंजन प्रदान करती हैं, साथ ही बच्चों की कल्पना को भी विकसित करती हैं. कहानी पढ़ने या सुनाने से बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी समृद्ध होती है. जब कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दिखाई जाने वाली कहानियों में उत्तेजना पैदा करने के लिए घटिया शब्दों का इस्तेमाल भरभर के किया जा रहा है. इस से बच्चों के व्यवहार में आक्रामकता और जिद्दीपन बढ़ रहा है.

Tourism : इस बार पर्यटन घर के अंदर

Tourism : गर्मियों की छु्ट्टियां पड़ने से पहले ही पेरैंट्स अपने बच्चों को घुमाने की जगह डिसाइड कर लेते हैं. लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग है. पहलगाम घटना ने सब को दहला दिया है और देश का माहौल भी ठीक नहीं है. ऐसे में इस बार लोग अपनी ट्रिप प्लान नहीं कर रहे हैं. तो सवाल यह है कि बच्चे इन 1 महीने की छुट्टी में करेंगे क्या?

इनाया ने यह प्लान पहले ही बना लिया था कि इस बार बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में उन्हें मसूरी ले कर जाएगी. पति भी तैयार हो गए थे. ट्रेन का रिजर्वेशन भी करवा लिया था और मसूरी के एक होटल में कमरा भी बुक हो चुका था. इनाया बहुत उत्साहित थी. उस के बच्चों ने अभी तक हिल स्टेशन नहीं देखा था.

इनाया का छोटा बेटा इस वर्ष पहली में और बेटी दूसरी कक्षा में पहुंच गई है. पिछले दो साल तो इनाया छुट्टियों में बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी मगर छह माह पहले उस की मां की मृत्यु के बाद वह भाईभाभी के पास नहीं जाना चाहती है. दरअसल भाभी का व्यवहार उस के प्रति शुरू से ही अच्छा नहीं था. जबतक मां थी उसे मायके जाने में झिझक नहीं होती थी मगर अब उस का मन नहीं करता.

हिल स्टेशन पर छुट्टियां बिताने के प्लान से इनाया का पूरा परिवार खुश था. लेकिन पहलगाम में हुई आतंकी घटना ने सब को दहला दिया. इस के बाद पड़ोसी देश के साथ हुई गोलाबारी और मिसाइलड्रोन हमलों की खबरों ने उन के दिल में यह डर बिठा दिया कि ऐसे हालात में बच्चों को ले कर कहीं भी निकलना सुरक्षित नहीं है.

पता नहीं कबकहां हालात खराब हो जाएं. इनाया के पति ने तुरंत ही रिजर्वेशन कैंसिल करवा दिया और होटल की बुकिंग भी रद्द कर दी. हालांकि उन को बुकिंग अमाउंट वापिस नहीं मिला. फिर भी उन्होंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा.

ऐसा सिर्फ इनाया के परिवार के साथ हुआ हो, ऐसा नहीं है. देश पर आतंकी घटना और उस के बाद भारतपाक युद्ध को देख कर हजारों लोगों ने अपनी यात्राएं रद्द कर दीं. जम्मूकश्मीर, देहरादून, मसूरी, चम्बा, लैंसडौन जैसी जगहें जो सीजन में पर्यटकों से भरी रहती थीं इस बार वहां सन्नाटा पसरा हुआ है.

गर्मियों की छुट्टियों में अनेक पेरैंट्स अपने बच्चों को हौबी क्लासेज ज्वाइन करवाने की सोच रहे हैं. कुछ स्कूलों ने समर कैंप लगाए हैं ताकि बच्चे अगर छुट्टियों में बाहर नहीं जा रहे तो उन के समर कैंप में आ कर स्विमिंग, स्केटिंग, ड्राइंग, पेंटिंग, डांस आदि का लुत्फ उठाएं.

इस के लिए फीस भी काफी ली जा रही है. 15 दिन के समर क्लास के लिए छह से आठ हजार रुपए पेरैंट से वसूले जा रहे हैं. अब पेरैंट्स की भी मजबूरी है. एक महीने की गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को घर पर तो नहीं बिठा सकते हैं.

दो दशक पहले तक बच्चे गर्मियों की छुट्टियां नानी या दादी के घर बिताते थे. एक महीने की छुट्टियां कैसे पलक झपकते बीत जाती थी पता ही नहीं चलता था. बच्चे भी गांवहाट की सैर कर के आनंद में डूबे रहते थे. नानीदादी, चाचीमामी उन के तमाम नखरे हंसतेहंसते उठाती थीं. लेकिन जैसेजैसे संयुक्त परिवार टूटते गए और लोग नौकरी के लिए दूसरे शहरों में जा बसे, वैसेवैसे दिलों में भी दूरियां बढ़ गईं.

आज के समय में जब कि महिलाएं भी नौकरीपेशा हो गई हैं, तो उन के पास अपने ही परिवार के लिए समय कम है. ऐसे में वे नहीं चाहतीं कि कोई रिश्तेदार लंबे समय तक उन के घर पर आ कर रहे. क्योंकि मेहमानों के आने से सब से ज्यादा काम का बोझ घर की औरत पर ही पड़ता है, फिर चाहे वह नौकरीपेशा हो या कोई गृहणी.

घर को साफसुथरा रखने से ले कर मेहमानों के खानेपीने का ध्यान उसे ही रखना पड़ता है. घर के लोगों के लिए तो खाने में कुछ भी बना लो, कभीकभी तो रात का बासी भोजन भी सुबह नाश्ते में खा लेते है, मगर मेहमानों के लिए तो तीनों वक्त ताजा खाना ही बनाना पड़ता है. अगर महिला नौकरीपेशा हो तो उस के लिए यह मेहमाननवाजी बहुत बड़ी मुसीबत है. यही वजह है कि अब गर्मियों की छुट्टियों में लोगों का रिश्तेदारों के वहां जाना बहुत कम हो गया है और हिल स्टेशनों में पर्यटकों की तादाद बढ़ने लगी है.

पहाड़ी या समुद्री क्षेत्रों की सैर खर्चीली तो हैं ही, बच्चे अपने रिश्तेदारों को जाननेसमझने और उन के साथ घुलनेमिलने से भी वंचित रह जाते हैं. दूसरी तरफ अब पर्यटक स्थल सुरक्षित भी नहीं हैं. वहां भीड़भाड़ भी बहुत होती है और सीजन में होटल और धर्मशालाएं बिलकुल फुल हो जाती हैं. उन के रेट भी आसमान छूने लगते हैं. ऐसे में एक तीसरा रास्ता भी हैं जिस से छुट्टियां भी मजे में बीतेंगी, खर्च भी कम होगा और रिश्तेदारों और दोस्तों को जानने का मौका भी मिलेगा.

अपने किसी खास दोस्त या रिश्तेदार के साथ आप प्लान करें कि गर्मियों की छुट्टियों में तीन दिन वे अपने पूरे परिवार के साथ आप के घर में आ कर रहें और तीन दिन आप अपने पूरे परिवार के साथ उन के घर पर जा कर रहें. इस में शर्त यह हो कि तीन दिन के लिए सभी बड़े अपनेअपने औफिस से छुट्टी ले लें, जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाते वक्त लेते हैं.

इस के साथ ही इन तीन दिनों में तीनों टाइम का खाना बाहर से मंगवाया जाए. सिर्फ चायकौफी ही घर के किचन में बने. इस से घर की महिला को पूरा वक्त किचन में नहीं बिताना पड़ेगा और वह भी सब की कंपनी इंजौय कर सकेगी. कुछ इनडोर गेम्स का इंतजाम हो. सब एकसाथ बैठ कर स्नैक्स लेते हुए कोई सीरियल देखें.

अपनेअपने अनुभव साझा करें. बच्चों के कमरे में कैरम, लूडो, वीडियो गेम्स का अरेंजमेंट कर दें. उन के लिए कुछ अच्छे स्नैक्स मंगवा लें. अगर घर में आंगन हो या बरामदा हो तो वहां बनेबनाए वाटर पूल में बच्चों को मस्ती करने दें. घर के आंगन में बच्चों से सब के नाम के प्लांट्स लगवाएं. इस से आप के घर के प्रति आने वाले परिवार का लगाव भी बढ़ेगा.

इस प्लान के बहुत फायदे हैं. एक तो आप को और आप के बच्चों को आप के दोस्त या रिश्तेदार के परिवार से घुलनेमिलने का मौका मिलेगा. दूसरे आप को सिर्फ बाहर खाने के लिए ही पैसे खर्च करने होंगे. आप के होटल में रहने का खर्च बच जाएगा जो हर दिन का करीब पांच से 7000 रुपए होता है. इस के अलावा ट्रैवलिंग खर्च भी बचेगा.

इस के साथ ही तीनतीन दिन दोनों घरों में रहने से दोनों परिवारों को मेहमाननवाजी का बराबर मौका मिलेगा और किसी एक पर खर्च का भार नहीं पड़ेगा. इस प्लान से महिलाओं को सब से ज्यादा खुशी मिलेगी क्योंकि उन को खाना बनाने की परेशानी से कम से कम एक हफ्ते तक निजात मिल जाएगी. अगर आप शहर घूमने या शौपिंग का प्लान करते हैं तो भी दोनों परिवार साथ में रह कर ज्यादा एन्जौय करेंगे.

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