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Romantic Story : क्रौसिंग की बत्ती – अपने स्वाभिमान को बनाए रखती युवती की कहानी

Romantic Story : कीया को आज अमर की याद आ गई थी. अमर के साथ बिताया वक्त वह भूल नहीं पाई थी लेकिन उसे भूल जाना ही अच्छा था.

क्रौ सिंग पर लालबत्ती यानी ठहरने का सिग्नल होने से पहले ही कीया अपनी गाड़ी निकाल लेना चाहती थी. लेकिन उसी क्षण रैड सिग्नल हो गया, गाड़ी रुक गई और उस के पीछे वाहनों की लंबी कतार. कीया ने अनुभव किया, जब कभी भी वह डेली रूटीन में 2-4 मिनट की चूक करती है, उसे मंजिल तक पहुंचने में देर हो जाती है, ‘लेट लतीफ’ का टाइटल कीया ने दूसरों के लिए संजो रखा है, वह तो ‘मिस राइट टाइम’ के नाम से जानी जाती है.

ट्रैफिक में फंसी कीया की नजर अपनी ही कंपनी द्वारा प्रायोजित एक होर्डिंग पर पड़ी जिस में दूधिया सफेदी लिए एक बच्ची साबुन का विज्ञापन कर रही है, जिस के नीचे लिखे स्लोगन पर कीया के अपने व्यक्तित्व की छाप है, ‘सुबह की कच्ची धूप भी काफी होती है उजाले के लिए. पर तुम तो पूरा सूरज ही उतार देती हो.’

दरअसल, यह स्लोगन अमर ने कीया के संदर्भ में कहा था. दोनों की पहली मुलाकात कुछ कम रोचक नहीं थी.

उस दिन थिएटर के हौल में अंधेरा था. परदे पर गब्बर दहाड़ रहा था, ‘अरे ओ सांभा, कितना मैल था कपड़ों में?’

बदले में सांभा मिमिया रहा था. मैल और साबुन की फाइटिंग चल रही थी, इतने में कोई अजनबी कीया के कानों में फुसफुसाया. रोशनी होने पर उस ने बड़ी ही शालीनता से अपना परिचय दिया, ‘मैं अमर हूं. आप की ही एड कंपनी में पोस्ंिटग हुई है मेरी.’

कीया की अजनबी आंखों में पहचान उभारने के लिए वह आगे भी बोल रहा था, ‘आप से मेरा परिचय नहीं हुआ, पर मैं आप को पहले से ही जानता हूं. बौस आप की बेहद तारीफ करते हैं. क्या आप वाकई उतनी फंटास्टिक वर्कर हैं?’

अमर का शरारती अंदाज कीया को भा गया. मूवी के बाद उस ने कीया को अपनी क्रेटा में साथ चलने का आग्रह किया.

‘ओह सौरी, मेरी गाड़ी सामने ही खड़ी है,’ कीया ने मना करते हुए कहा.

‘उसे बाद में मंगवा लेंगे. हमारी मंजिल एक है, मंसूबे भी एक ही होने चाहिए. आप कंपनी के सेवेंथ ब्लौक में रहतीं हैं न? मु?ो भी वहीं फ्लैट एलौट हुआ है,’ अमर कहने लगा.

कीया को थोड़ी उल?ान होने लगी.

इस बीच अमर आगे बोला, ‘आप को सचमुच अपनी गाड़ी की फिक्र है या आप किसी अजनबी पुरुष के साथ जाना नहीं चाहतीं?’

कीया को लगा अमर के इस वाक्य ने संपूर्ण नारी जाति को चुनौती दे दी है. अगले ही पल अमर कंपनी की मार्केटिंग एग्जीक्युटिव औफिसर मिस कीया के लिए अपनी क्रेटा कार का दरवाजा खोल रहा था. रास्ते में कीया ने जाना कि अमर ने अमेरिका स्थित हार्वर्ड से बिजनैस मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की है और यहां मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर उस की पोस्ंिटग हुई है. कंपनी द्वारा बिजनैस कंसलटैंसी की शिक्षा देने के लिए संचालित ट्रेनिंग सैंटर में अकसर अमर के लैक्चर होते रहते हैं.

काम के प्रति लगन और दायित्वबोध ने कुछ ही दिनों में अमर और कीया के रिश्ते को जहां प्रगाढ़ किया, वहीं उन का कैरियर बुलंदी को छूने लगा. यह खुशी अमर कीया के साथ किसी फाइवस्टार होटल में सैलिब्रेट करना चाहता था, पर कीया ने बिना बताए, पहल कर के होटल में टेबल बुक करवा ली. डिनर के बाद अमर ने हमेशा की तरह कार का दरवाजा खोला, तो थैंक्स कहने के बजाय कीया चुपचाप जा कर कार सीट पर बैठ गई. उस की बगल में बैठे अमर के कानों में अपने मित्रों के शब्द गूंज रहे थे, ‘देखो तो, कैसे मर्द बनने की कोशिश कर रही है.’ पर दूसरे ही पल प्रशंसाभरी नजरें उस पर उकेर कर बोला, ‘कीया, तुम्हारा स्टाइल गजब का है. तुम्हारी पलकें गजब की हैं.’

कीया बदले में मुसकराने लगी.

‘तुम कहीं कोई बिजनैस मैनेजमैंट कोर्स क्यों नहीं जौइन कर लेतीं?’

‘क्यों?’
‘अरे बाबा, शादी के बाद घरद्वार संभालना है कि नहीं?’

कीया शरमा गई. उस ने महसूस किया कि अमर उस के प्यार में दीवाना हो रहा है. एक दिन तो हद हो गई जब अमर कह रहा था, ‘कीया, तुम बाल खुले मत रखा करो. दूसरे भी आकर्षित होते हैं.’

‘बस,’ कीया ने खिजाने के लिए कहा.
‘मु?ो द्रौपदी की याद आती है.’

‘वो…वो, उस ने तो पुरुषों को चुनौती देने के लिए बाल खोल रखे थे, पर मैं…मैं… जाने दो… बांध लेती हूं,’ कीया ने ?ोंपते हुए बाल बांध लिए थे.

कभीकभी कीया को लगता कि जैसे अमर के व्यक्तित्व में एक असुरक्षा की भावना पनप रही है, क्योंकि बिजनैस की बात पर बहस करतेकरते अमर अप्रासंगिक बात छेड़ देता. ‘आज की औरत स्वतंत्र नहीं, स्वच्छंद हो गई है.’

सुन कर कीया चिढ़ जाती, ‘तुम्हारे जैसे मर्द, औरत के तन की सुंदरता तो सम?ाते हैं, पर उन की दिमागी श्रेष्ठता को बरदाश्त नहीं कर पाते.’

अमर तमतमा कर उस समय तो चुप हो जाता लेकिन दोचार दिन बाद ऐसी ही किसी बात को ले कर फिर दोनों में बहस छिड़ जाती.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे, तभी एकसाथ 2 सुखद घटनाएं घटीं. एक तो अमर को कंपनी द्वारा लंदन टूर पर जाने का औफर मिला, दूसरे कीया को बेस्ट मार्केटिंग का अवार्ड मिला. पर अमर इस खबर में शरीक होने से पहले अपने घरवालों से मिलने अचानक अपने गांव चला गया. कीया को अकेलापन बुरी तरह सता रहा था. उस ने सोचा शायद जाने से पहले अमर कोई मैसेज छोड़ गया हो. उस ने फोन चैक किया तो मैसेज उभरा, ‘जल्दी लौटूंगा. मां चाहती हैं लंदन जाने से पहले मैं शादी कर लूं.’

कीया शरमा गई. उस ने सोचा अमर प्रपोज कर रहा है. वह बेसब्री से अमर की प्रतीक्षा करने लगी. लगभग 2 सप्ताह बाद अमर किसी लड़की के साथ दरवाजे पर खड़ा था.

‘कहां थे अब तक,’ कीया का धीरज जवाब दे रहा था.

‘इन से मिलो, ये हैं रानी.’
इतने में रानी ने आगे बढ़ कर कीया को गले लगा लिया.

‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो?’
‘रानी बहुत अच्छा खाना बना लेती है. आप कहें तो चाय के साथ नाश्ता भी बना लाएगी. आप तब तक अपना अवार्ड दिखाइए,’ अमर ने मुसकराते हुए कहा.

‘कौन है ये, तुम्हारी रिश्तेदार या…?’

‘मां की पसंद है रानी.’

कीया ने जैसे कुछ नहीं सुना. रानी उस की पत्नी है तो क्या अमर गांव शादी करने गया था? लेकिन, कीया ने तो ऐसा नहीं सोचा था, वह तो यही सोचती रही कि अमर उसे प्यार करता है, उस के साथ शादी करना चाहता है.

‘खाना बना देगी, देखभाल करेगी, घर में रहेगी. आखिर हमारा व्यवसाय तो एक ही है. हम अब भी गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड तो रह ही सकते हैं?’

अचानक कीया उठ खड़ी हुई, ‘मिस्टर अमर, हमारा व्यवसाय एक हो सकता है, पर व्यक्तित्व एक नहीं है. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे व्यक्तित्व को व्यवसाय बनाओ. मैं सम?ा गई तुम मु?ो अपनी गर्लफ्रैंड नहीं मिस्ट्रैस बनाना चाहते हो. गेट आउट… गेट लौस्ट,’ कीया दहाड़ रही थी, ‘तुम लोग बुद्धिमान महिला से मिलना तो चाहते हो, पर शादी रसोइए, बावर्चिन से करते हो. बाजार का हिसाबकिताब करती पत्नी तुम्हें अच्छी लगती है, पर शेयर मार्केट का हिसाब अपने कब्जे में रखना चाहते हो.’

अकेले में नाराज कीया को तो अमर कैसे भी मना लेता, पर नवविवाहित पत्नी के सामने वह अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर पाया. गुस्से में बोला, ‘आश्चर्य की बात है. आप ने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करूंगा? आप गलतफहमी की शिकार हुई हैं. जैसा कि महिलाएं अकसर हो जाती हैं. मेरी पत्नी भी एक नारी है. आप उसे रसोइया, बावर्चिन कह रही हैं? आप पुरुषों का तो क्या, नारियों का सम्मान करना भी नहीं जानतीं.’ अमर का स्वर तल्ख हो उठा था.

‘पश्चिम में आप जैसी महिलाओं द्वारा वुमेंस लिबरेशन का दौर चलाया गया था. आप लोग पुरुषों से मिलना तो चाहती हैं मगर समानता के स्तर पर नहीं. आप पुरुषों को हीन बनाना चाहती हैं. घरगृहस्थी दो पहियों पर चलती है. आप लोग दूसरा पहिया बनना नहीं चाहती हैं. मैं 4 साल अमेरिका में रहा हूं. पश्चिम की औरत स्वतंत्र है. मगर आप जैसी महिलाओं की तरह स्वच्छंद नहीं है.’ और पैर पटकते हुए अमर बाहर निकल आया.

गुस्से में कीया ने अपने बालों के रिबन खोल डाले. कभी अमर कहा करता था कि बाल खोल कर वह द्रौपदी सी लगती है, यही सही. पर वह मिस्ट्रैस नहीं बन सकती, कभी नहीं.
अचानक अपनी तंद्रा से बाहर आई कीया ने हरी बत्ती देखी और कार आगे बढ़ा ली.

Best Love Story : हरी झंडी – सुरभि के पापा को किसने और क्यूं बताई सच्चाई?

Best Love Story : सुरभि गौरव से मिलते ही बोली, “अरे, तुम कुछ सोचते क्यों नहीं? मेरे मम्मीपापा हर दिन एक लड़के का बायोडाटा भेज रहे हैं और मिलने को कह रहे हैं. बताओ, मैं क्या करूं?”

“मैं क्या करूं? तुम तो जानती हो कि मेरे यहां दादाजी की रजामंदी के बिना कुछ नहीं हो सकता. तुम क्यों नहीं अपने मम्मीपापा को कहती हो कि वे जा कर बात करें?”

“हां, अब लगता है कि यही करना होगा.”

हिम्मत कर के रात में सुरभि ने फोन पर अपनी मम्मी से कहा, “मम्मी, तुम लोग लड़का देखना छोड़ दो. गौरव को तो तुम जानती हो. एक बार तुम बेंगलुरु आई थी, तो उस से मिली थी. हम लोग शादी करना चाहते हैं.”

“क्या…? तुम्हारे साथ तो कितने पढ़ने वालों से मैं मिली हूं… मुझे याद नहीं.”

“ठीक है, पहले पापा के कान में डाल दो. अभी गौरव का फोटो डाल दूंगी. बहुत तेज और अच्छा लड़का है. मेरी कंपनी में ही डाटा एनलिस्ट है.”

“देखती हूं,” कह कर सुरभि की मम्मी सरिता सोने गई, लेकिन चिंता से उस की नींद काफूर हो गई.

दूसरे दिन सरिता ने अपने पति संजीव को जब सुरभि की बात बताई तो घर में कोहराम मच गया. संजीव उस पर ही दोषारोपण करने लगा, “तुम ने ही उसे बहुत छूट दे दी है. अरे, उसे इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए भेजा था कि प्रेम करने के लिए. पता नहीं, कौन सी जाति है, कैसा परिवार है?”

“अब आजकल जाति क्या देखना है… जब लड़की और लड़का एकदूसरे को पसंद कर रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? वैसे भी आजकल शादीब्याह तय करना भी आसान नहीं रहा. शादी हो जाए तो निभाना आसान नहीं,” अपनी आदत के अनुसार सरिता ने जोड़ दिया, “अब हमारा जमाना तो रहा नहीं. बिना हमारे मिले, देखे, सुने, बड़ों की मरजी से शादी हुई और चल रही है.”

“हमेशा अपना क्या ले कर बैठ जाती हो, बेटी से पूछो कि क्या करना है?”

फिर बेटी के कहने पर पापा संजीव गौरव के दादाजी से मिलने उस के घर जाने को तैयार हुए. रविवार को सरिता और संजीव दोनों ही अपनी गाड़ी से रांची से जमशेदपुर के लिए निकले. सड़क अच्छी बन गई है, ढाई घंटे में पहुंच गए. वहां घर जा कर पता चला कि परिवार में उस के दादा ही उस के संरक्षक हैं. उस के मातापिता की मौत बचपन में ही हो चुकी है. अब यह संजीव को दूसरा झटका लगा.

उन्होंने अपनी मनःस्थिति को दबाते हुए बताया कि उन की बेटी सुरभि और उन का पोता गौरव एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं.

इतना सुनना था कि उस के दादा भड़क गए. वे कहने लगे कि गौरव ने तो कोई ऐसी बात नहीं बताई. उसे तो अभी बाहर जा कर आगे की पढ़ाई करनी है. एमएस करने जाना है. वे बस अपनी बोलते जा रहे थे. वे बता रहे थे कि कितनी परेशानी से उस की देखभाल की, पालापोसा.

संजीव को गौरव पर भी गुस्सा आने लगा, लेकिन वे जो बोल रहे थे, चुपचाप सुन रहे थे. पर वे अभी शादी के लिए कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. बुढ़ापे का अजीब सा सनकीपना सवार था.

सरिता ने एक बार उन से कुछ कहना चाहा, तो वे गुस्सा गए. अंत में संजीव ने उन्हें पहले गौरव से बात करने को कह दिया और वहां से चाय पी कर विदा ली.

गाड़ी में बैठते ही उन्होंने अपनी बेटी को कोसना शुरू किया, “इतने अच्छेअच्छे रिश्ते आ रहे हैं. अरे, उस ने ऐसा क्या देखा गौरव में? न ढंग का परिवार है और न अपनी जातिबिरादरी का है. बुड्ढा अलग खूंसट है, कुछ सुनना भी नहीं चाहता.”

यह सोच कर उन का मन दुखी हो गया. अब कहीं जाने की इच्छा नहीं हो रही. पर, आने से पहले उन्होंने अपने प्रिय दोस्त को फोन पर कहा था कि तेरे से जरूर मिलना होगा.

उदास मन से अपने दोस्त के घर पहुंचे, तो वहां दोस्त और उस की पत्नी की आत्मीयता, उन के आवभगत से मन खुश हो गया. पुरानी बातों, हंसीठहाकों के बीच वे भूल ही गए कि किस काम से आए हैं. मन प्रफुल्लित हो गया. दोपहर का खाना खाने के बाद बैठे, तब असल मुद्दा निकल कर सामने आया.

संजीव ने बताया कि किस काम से और कहां से हो कर आ रहे हैं. बेटी की जिद के आगे झुकना पड़ रहा है, लेकिन लड़के का दादा जिस ने उसे पालपोस कर बड़ा किया है, बड़ा ही सनकी है. कुछ सुनना नहीं चाहता.

अपने दोस्त को जब संजीव ने उन के घर का पता बताया और यह भी कि लड़के के मातापिता नहीं हैं. विस्तार से जानकारी मिलने पर उन का दोस्त बोल पड़ा, “यार, सचमुच दुनिया गोल है. मैं तो उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. वे मेरे ममेरे भाई के बहनोई लगते हैं.”

“क्या…? “आश्चर्यमिश्रित संजीव की आवाज आई.

“लेकिन यार, एक बात यह भी जान ले कि उस के मातापिता की मौत एक्सीडेंट से नहीं एड्स से हुई थी. जब उन का बेटा गौरव अपनी मां के पेट में रहा, तो जांच के क्रम में पता चला कि मां पौजिटिव हैं.”

आश्चर्य से सरिता कह उठी, “क्या…?”

“हां, उस की मां को शादी के बाद खून चढ़ाने की जरूरत पड़ी और वही खून चढ़ाना उन के जीवन का काल बन गया.

“अब कहां चूक हुई, वे एचआईवी पौजिटिव हो गईं. उन से गौरव के पिता भी पौजिटिव हो गए. आज तो सब को पता है कि सुरक्षा के साथ यौन संबंध बनाने से इस से बचा जा सकता है, पर आज से 30-35 साल पहले क्या स्थिति थी, तुम जानते ही हो. एड्स का नाम लेने में भी लोग डरते थे. डाक्टर इलाज तक नहीं करना चाहते थे. अस्पताल ऐसे मरीज को एडमिट नहीं करते थे. वे लोग दिल्ली तक दिखाने गए, लेकिन उन की हालत तो अछूत वाली हो गई.

“उसी समय ये लोग जमशेदपुर आ गए. उन के एक करीबी डाक्टर ने सुरक्षित प्रसव कराया. उन का बेटा एचआईवी निगेटिव हुआ. और देख ही रहे हो, वह स्वस्थ है. पर उस के मातापिता की 2-3 वर्षों के अंदर ही मौत हो गई. 5-6 साल हुए इन की पत्नी भी नहीं रही.

“अब तुम उस के दादा के सनकी होने का कारण समझ सकते हो. लेकिन, तू चिंता न कर. मैं अपने भाई को कहूंगा, वे जरूर उन्हें मना लेंगे. ”

संजीव के दोस्त ने तो विस्तार से सारी बातें बता दी. अब उसे दूसरी चिंता ने घेर लिया. अगर शादी हो भी जाती है तो ऐसा न हो कि उन की संतान कोई आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित हो जाए.

घर पहुंच कर सरिता ने बेटी सुरभि को सारी बातें बता दींं, अपने मन का भ्रम, उस के दादाजी की बातें. और कुछ दिनों के लिए शादी का मुद्दा घर से गायब हो गया. सरिता को लगा कि सुरभि और गौरव के दिमाग से भी यह खत्म हो जाएगा.

लेकिन 15 दिन ही बीते होंगे कि सुरभि ने चहकते हुए कहा कि गौरव के दादाजी तैयार हो गए हैं. आप लोग जा कर मिल लें. और कोशिश कीजिए कि मंदिर में बिना तामझाम और भीड़भाड़ के शादी हो.

सुरभि के पापा गुस्साते हुए कहने लगे, “शादी के बारे में बाद में सोचेंगे, पहले तुम गौरव का जैनेटिक टैस्ट कराओ, भविष्य में कोई दिक्कत न हो. तुम दोनों ब्लड टैस्ट कराओ. सारी रिपोर्ट भेजो तो ही आगे बात होगी.”

अब मरता क्या न करता. सुरभि और गौरव वहां जैनेटिक डाक्टर से मिले. उस ने ब्लड सैंपल ले कर जैनेटिक टैस्ट किया. उस ने यह बताया कि इस टैस्ट से आनुवंशिक बीमारी का पता लगा सकते हैं और जांच के परिणाम से शुरुआती उपचार के विकल्प चुन सकते हैं.

गौरव के टैस्ट के बाद डाक्टर ने बताया कि गौरव पूरी तरह स्वस्थ है. उस के संतान में आनुवंशिक गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है.

डाक्टर ने यह भी बताया कि आजकल लोग जन्मकुंडली न मिला कर ब्लड ग्रुप का मिलान करते हैं. इस के सही मिलान से दांपत्य जीवन सुखमय और सुखद होता है.

सुरभि और गौरव ने ब्लड ग्रुप का मिलान भी करवा लिया. डाक्टर ने इस पहल के लिए सुरभि और गौरव की प्रशंसा की.

सारी रिपोर्टें सुरभि अपने ने पापा को भेज दीं और चैन की सांस ली. रिपोर्ट के आधार पर डाक्टर की हरी झंडी मिल गई है. उन के विवाह में अब कोई बाधा नहीं है.

इस खुशी को सैलिब्रेट करने के लिए गौरव और सुरभि डिनर एकसाथ करने के लिए एक विशेष रेस्तरां में बैठे हैं.

बैठेबैठे सुरभि अपने पापा की तरह सोच रही है कि खुशहाल वैवाहिक जिंदगी के लिए स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना और स्वस्थ होना जरूरी है.

Family Story : मां और मोबाइल – क्या थी मां की ख्वाहिश ?

Family Story : ‘‘मेरा मोबाइल कहां है? कितनी बार कहा है कि मेरी चीजें इधरउधर मत किया करो पर तुम सुनती कहां हो,’’ आफिस जाने की हड़बड़ी में मानस अपनी पत्नी रोमा पर बरस पड़े थे.

‘‘आप की और आप के बेटे राहुल के कार्यालय और स्कूल जाने की तैयारी में सुबह से मैं चकरघिन्नी की तरह नाच रही हूं, मेरे पास कहां समय है किसी को फोन करने का जो मैं आप का मोबाइल लूंगी,’’ रोमा खीझपूर्ण स्वर में बोली थी.

‘‘तो कहां गया मोबाइल? पता नहीं यह घर है या भूलभुलैया. कभी कोई सामान यथास्थान नहीं मिलता.’’

‘‘क्यों शोर मचा रहे हो, पापा? मोबाइल तो दादी मां के पास है. मैं ने उन्हें मोबाइल के साथ छत पर जाते देखा था,’’ राहुल ने मानो बड़े राज की बात बताई थी.

‘‘तो जा, ले कर आ…नहीं तो हम दोनों को दफ्तर व स्कूल पहुंचने में देर हो जाएगी…’’

पर मानस का वाक्य पूरा हो पाता उस से पहले ही राहुल की दादी यानी वैदेहीजी सीढि़यों से नीचे आती हुई नजर आई थीं.

‘‘अरे, तनु, मेरे ऐसे भाग्य कहां. हर घर में तो श्रवण कुमार जन्म लेता नहीं,’’ वे अपने ही वार्त्तालाप में डूबी हुई थीं.

‘‘मां, मुझे देर हो रही है,’’ मानस अधीर स्वर में बोले थे.

‘‘पता है, इसीलिए नीचे आ रही हूं. तान्या से बात करनी है तो कर ले.’’

‘‘मैं बाद में बात कर लूंगा. अभी तो मुझे मेरा मोबाइल दे दो.’’

‘‘मुझे तो जब भी किसी को फोन करना होता है तो तुम जल्दी में रहते हो. कितनी बार कहा है कि मुझे भी एक मोबाइल ला दो, पर मेरी सुनता ही कौन है. एक वह श्रवण कुमार था जिस ने मातापिता को कंधे पर बिठा कर सारे तीर्थों की सैर कराई थी और एक मेरा बेटा है,’’ वैदेहीजी देर तक रोंआसे स्वर में प्रलाप करती रही थीं पर मानस मोबाइल ले कर कब का जा चुका था.

‘‘मोबाइल को ले कर क्यों दुखी होती हैं मांजी. लैंडलाइन फोन तो घर में है न. मेरा मोबाइल भी है घर में. मैं भी तो उसी पर बातें करती हूं,’’ रोमा ने मांजी को समझाना चाहा था.

‘‘तुम कुछ भी करो बहू, पर मैं इस तरह मन मार कर नहीं रह सकती. मैं किसी पर आश्रित नहीं हूं. पैंशन मिलती है मुझे,’’ वैदेही ने अपना क्रोध रोमा पर उतारा था पर कुछ ही देर में सब भूल कर घर को सजासंवार कर रोमा को स्नानगृह में गया देख कर उन्होंने पुन: अपनी बेटी तान्या का नंबर मिलाया था.

‘‘हैलो…तान्या, मैं ने तुम से जैसा करने को कहा था तुम ने किया या नहीं?’’ वे छूटते ही बोली थीं.

‘‘वैदेही बहन, मैं आप की बेटी तान्या नहीं उस की सास अलका बोल रही हूं.’’

‘‘ओह, अच्छा,’’ वे एकाएक हड़बड़ा गई थीं.

‘‘तान्या कहां है?’’ किसी प्रकार उन के मुख से निकला था.

‘‘नहा रही है. कोई संदेश हो तो दे दीजिए. मैं उसे बता दूंगी.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है, मैं कुछ देर बाद दोबारा फोन कर लूंगी,’’ वैदेही ने हड़बड़ा कर फोन रख दिया था. पर दूसरी ओर से आती खनकदार हंसी ने उन्हें सहमा दिया था.

‘कहीं छोकरी ने बता तो नहीं दिया सबकुछ? तान्या दुनियादारी में बिलकुल कच्ची है. ऊपर से यह फोन. स्थिर फोन में यही तो बुराई है. घरपरिवार को तो क्या सारे महल्ले को पता चल जाता है कि कहां कैसी खिचड़ी पक रही है. मोबाइल फोन की बात ही कुछ और है…किसी भी कोने में बैठ कर बातें कर लो.’ उन की विचारधारा अविरल जलधारा की भांति बह रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी थी.

‘‘हैलो मां, मैं तान्या. मां ने बताया कि जब मैं स्नानघर में थी तो आप का फोन आया था. कोई खास बात थी क्या?’’

‘‘खास बात तो कितने दिनों से कर रही हूं पर तुम्हें समझ में आए तब न. अरे, जरा अक्ल से काम लो और निकाल बाहर करो बुढि़या को. जब देखो तब तुम्हारे यहां पड़ी रहती है. कब तक उस की गुलामी करती रहोगी?’’

‘‘धीरे बोलो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो बुरा मानेंगी.’’

‘‘फोन पर हम दोनों के बीच हुई बात को कैसे सुनेगी वह?’’

‘‘छोड़ो यह सब, शनिवाररविवार को आप से मिलने आऊंगी तब विस्तार से बात करेंगे. जो जैसा चल रहा है चलने दो. क्यों अपना खून जलाती हो.’’

‘‘मैं तो तेरे भले के लिए ही कहती हूं पर तुम लोगों को बुरा लगता है तो आगे से नहीं कहूंगी,’’ वैदेही रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, क्यों मन छोटा करती हो. हम सब आप का बड़ा सम्मान करते हैं. यथाशक्ति आप की सलाह मानने का प्रयत्न करते हैं पर यदि आप की सलाह हमारा अहित करे तो परेशानी हो जाती है.’’

‘‘लो और सुनो, अब तुम्हें मेरी बातों से परेशानी भी होने लगी. ठीक है, आज से कुछ नहीं कहूंगी,’’ वैदेही ने क्रोध में फोन पटक दिया था और मुंह फुला कर बैठ गई थीं.

‘‘क्या हुआ, मांजी, सब ठीक तो है?’’ उन्हें दुखी देख कर रोमा ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों? तुम्हें कैसे लगा कि सब ठीक नहीं है?’’ वैदेही ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही पूछ लिया.

‘‘आप का मूड देख कर.’’

‘‘मैं सब समझाती हूं. छिप कर मेरी बातें सुनते हो तुम लोग. इसीलिए तो मोबाइल लेना चाहती हूं मैं.’’

‘‘मैं ने आज तक कभी किसी का फोन वार्त्तालाप नहीं सुना. आप को दुखी देख कर पूछ लिया था. आगे से ध्यान रखूंगी,’’ रोमा तीखे स्वर में बोली और अपने काम में व्यस्त हो गई.

वैदेही बेचैनी से तान्या के आने की प्रतीक्षा करती रही कि कब तान्या आए और कब वे उस से बात कर के अपना मन हलका करें पर जब सांझ ढलने लगी और तान्या नहीं आई तो उन का धीरज जवाब देने लगा. मानस सुबह से अपने मोबाइल से इस तरह चिपका था कि उन्हें तान्या से बात करने का अवसर ही नहीं मिल रहा था.

‘‘मुझे अपनी सहेली नीता के यहां जाना है, मांजी. मैं सुबह से तान्या दीदी की प्रतीक्षा में बैठी हूं पर लगता है कि आज वे नहीं आएंगी. आप कहें तो मैं थोड़ी देर के लिए नीता के घर हो आऊं. उस का बेटा बीमार है,’’ रोमा ने आ कर वैदेही से अनुनय की तो वे मना न कर सकीं.

रोमा को घर से निकले 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि तान्या ने कौलबेल बजाई.

‘‘लो, अब समय मिला है तुम्हें मां से मिलने आने का? सुबह से दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी हूं. आंखें भी पथरा गईं.’’

‘‘इस में टकटकी लगा कर बैठने की क्या बात थी, मां?’’ मानस बोल पड़ा, ‘‘आप मुझे से कहतीं मैं तान्या दीदी से फोन कर के पूछ लेता कि वे कब तक आएंगी.’’

‘‘लो और सुनो, सुबह से पता नहीं किसकिस से बात कर रहा है तेरा भाई. सारे काम फोन कान से चिपकाए हुए कर रहा है. बस, सामने बैठी मां से बात करने का समय नहीं है इस के पास.’’

‘‘क्या कह रही हो मां. मैं तो सदासर्वदा आप की सेवा में मौजूद रहता हूं. फिर राहुल है, रोमा है जितनी इच्छा हो उतनी बात करो,’’ मानस हंसा.

‘‘2 बेटों, 2 बेटियों का भरापूरा परिवार है मेरा पर मेरी सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां आए 2 सप्ताह हो गए मुझे, तान्या को आज आने का समय मिला है.’’

‘‘मेरा बस चले तो दिनरात आप के पास बैठी रहूं. पर आजकल बैंक में काम बहुत बढ़ गया है. मार्च का महीना है न. ऊपर से घर मेहमानों से भरा पड़ा है. 3-4 नौकरों के होने पर भी अपने किए बिना कुछ नहीं होता,’’ तान्या ने सफाई दी थी.

‘‘इसीलिए कहती हूं अपने सासससुर से पीछा छुड़ाओ. सारे संबंधी उन से ही मिलने तो आते हैं.’’

‘‘क्या कह रही हो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा. बहुत बुरा मानेंगी.’’

‘‘पता नहीं तुम्हें कैसे शीशे में उतार लिया है उन्होंने. और 2 बेटे भी तो हैं, वहां क्यों नहीं जा कर रहतीं?’’

‘‘जौय और जोषिता को मांजी ने बचपन से पाल कर बड़ा किया है. अब तो स्थिति यह है कि बच्चे उन के बिना रह ही नहीं पाते. दोचार दिन के लिए भी कहीं जाती हैं तो बच्चे बीमार पड़ जाते हैं.’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को कठपुतली बना कर रखा है उन्होंने. जैसा चाहते हैं वैसा नचाते हैं दोनों. सारा वेतन रखवा लेते हैं. दुनिया भर का काम करवाते हैं. यह दिन देखने के लिए ही इतना पढ़ायालिखाया था तुम्हें?’’

‘‘किसी ने जबरदस्ती मेरा वेतन कभी नहीं छीना है मां. उन के हाथ में वेतन रखने से वे लोग भी प्रसन्न हो जाते हैं और मेरे सासससुर भी वह पैसा अपनी जेब में नहीं रख लेते बल्कि उन्हें हमारे पर ही खर्च कर देते हैं. जो बचता है उसे निवेश कर देते हैं. ’’

‘‘पर अपना पैसा उन के हाथ में दे कर उन की दया पर जीवित रहना कहां की समझदारी है?’’

‘‘मां, आप क्यों तान्या दीदी के घर के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करती हैं,’’ इतनी देर से चुप बैठा मानस बोला था.

‘‘अरे, वाह, अपनी बेटी के हितों की रक्षा मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा. पर मेरी बेटी तो समझ कर भी अनजान बनी हुई है.’’

‘‘मां, मैं आप के सुझावों का बहुत आदर करती हूं पर साथ ही घर की सुखशांति का विचार भी करना पड़ता है.’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूं. अपनी समस्याएं क्या कम हैं, जो आप तान्या दीदी की समस्याएं सुलझने लगीं? और मां, आप ने तो दीदी के आते ही अपने सुझावों की बमबारी शुरू कर दी. न चाय, न पानी…कुछ तो सोचा होता,’’ मानस ने मां को याद दिलाया.

‘‘रोमा अभी तक लौटी नहीं जबकि उसे पता था कि तान्या आने वाली है. फोन करो कि जल्दी से घर आ जाए.’’

‘‘फोन करने की जरूरत नहीं है. वह स्वयं ही आ जाएगी. उस की मां आई हुई हैं, उन से मिलने गई है.’’

‘‘मां आई हुई हैं? मुझ से तो कह कर गई है कि नीता का बेटा बीमार है. उसे देखने जा रही है.’’

‘‘उसे भी देखने गई है. कई दिनों से सोच रही थी पर जा नहीं पा रही थी. नीता के घर के पास रोमा के दूर के रिश्ते के मामाजी रहते हैं. वे बीमार हैं और रोमा की मम्मी उन्हें देखने आई हुई हैं.’’

‘‘ठीक है, सब समझ में आ गया. मां से मिलने जा रही हूं यह भी तो कह कर जा सकती थी, झुठ बोल कर जाने की क्या आवश्यकता थी. रोमा अपना फोन तो ले कर गई है?’’

‘‘हां, ले गई है.’’

‘‘ला, अपना फोन दे तो मैं उस से बात करूंगी.’’

‘‘क्या बात करेंगी आप? वह अपनेआप आ जाएगी,’’ मानस ने तर्क दिया.

‘‘फोन कर दूंगी तो जल्दी आ जाएगी. तान्या आई है तो खाना खा कर ही जाएगी न…’’

‘‘आप चिंता न करें मां, मैं खाना नहीं खाऊंगी. आप को जो खाना है मैं बना देती हूं,’’ तान्या ने उन्हें बीच में ही टोक दिया.

‘‘फोन तो दे मानस, रोमा से बात करनी है,’’ वैदेही जिद पर अड़ी थीं.

‘‘एक शर्त पर मोबाइल दूंगा कि आप रोमा से कुछ नहीं कहेंगी. बेचारी कभीकभार घर से बाहर निकलती है. दिनभर घर के काम में जुटी रहती है.’’

‘‘ठीक है, रोमा को कुछ नहीं कहूंगी, उस की मां से बात करूंगी. कहूंगी आ कर मिल जाएं. बहुत लंबे समय से मिले नहीं हम दोनों.’’

मां को फोन थमा कर मानस और तान्या रसोईघर में जा घुसे थे.

‘‘हैलो रोमा, तुम नीता के बीमार बेटे से मिलने की बात कह कर गई थीं. सौदामिनी बहन के आने की बात तो साफ गोल कर गईं तुम,’’ वैदेही बोलीं.

‘‘नहीं मांजी, ऐसा कुछ नहीं था. मुझे लगा, आप नाराज होंगी,’’ रोमा सकपका गई.

‘‘लो भला, मांबेटी के मिलने से भला मैं क्यों नाराज होने लगी? सौदामिनी बहन को फोन दो जरा. उन से बात किए हुए तो महीनों बीत गए,’’ वैदेहीजी का अप्रत्याशित रूप से मीठा स्वर सुन कर रोमा का धैर्य जवाब देने लगा था. उस ने तुरंत फोन अपनी मां सौदामिनी को थमा दिया था.

‘‘नमस्ते, सौदामिनी बहन. आप तो हमें भूल ही गईं,’’ उन्होंने उलाहना दिया.

‘‘आप को भला कैसे भूल सकती हूं दीदी, पर दुनिया भर के पचड़ों से समय ही नहीं मिलता.’’

‘‘तो यहां तक आ कर क्या हम से मिले बिना चली जाओगी? मेरा तो सब से मिलने को मन तरसता रहता है. इसीलिए बच्चों से कहती हूं एक मोबाइल ला दो, कम से कम सब से बात कर के मन हलका कर लूंगी.’’

रसोईघर में भोजन का प्रबंध करते मानस और तान्या हंस पड़े थे, ‘‘मां फिर मोबाइल पुराण ले कर बैठ गईं, लगता है उन्हें मोबाइल ला कर देना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं ने भी कई बार सोचा पर डरती हूं अपना मोबाइल मिलते ही वे हम भाईबहनों का तो क्या, अपने खानेपीने का होश भी खो बैठेंगी.’’

‘‘मुझे दूसरा ही डर है. फोन पर ऊलजलूल बात कर के कहीं कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें.’’

‘‘जो भी करें, उन की मर्जी है. पर लगता है कि अपने अकेलेपन से जूझने का इन्होंने नया ढंग ढूंढ़ निकाला है.’’

‘‘चलो, तान्या दीदी, आज ही मां के लिए मोबाइल खरीद लाते हैं. इन का इस तरह फोन के लिए बारबार आग्रह करना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘चाय तैयार है. चाय पी कर चलते हैं, भोजन लौट कर करेंगे,’’ तान्या ने स्वीकृति दी थी.

‘‘मैं रोमा और जीजाजी दोनों को फोन कर के सूचित कर देता हूं कि हम कुछ समय के लिए बाहर जा रहे हैं.’’

‘‘कहां जा रहे हो तुम दोनों?’’ वैदेही ने अपना दूरभाष वार्त्तालाप समाप्त करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों नहीं, हम तीनों. चाय पियो और तैयार हो जाओ, आवश्यक कार्य है,’’ मानस ने उन का कौतूहल शांत करने का प्रयत्न किया.

वे उन्हें मोबाइल की दुकान पर ले गए तो उन की प्रसन्नता की सीमा न रही. मानो कोई मुंह में लड्डू ठूंस दे और उस का स्वाद पूछे.

वैदेहीजी के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे लंबे समय से अपने मनपसंद खिलौने के लिए मचलते बच्चे को उस का मनपसंद खिलौना मिल गया हो.

उन्होंने अपनी पसंद का अच्छा सा मोबाइल खरीदा जिस से अच्छे छायाचित्र खींचे जा सकते थे. घर के पते आदि का सुबूत देने के बाद उन के फोन का नंबर मिला तो उन का चेहरा खिल उठा.

‘‘आप को अपना फोन प्रयोग में लाने के लिए 24 घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी,’’ सेल्समैन ने बताया तो वे बिफर उठीं.

‘‘यह कौन सी दुकान पर ले आए हो तुम लोग मुझे इन्हें तो फोन चालू करने में ही 24 घंटे लगते हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मां जहां आप ने इतने दिनों तक प्रतीक्षा की है एक दिन और सही,’’ तान्या ने समझना चाहा.

‘‘तुम नहीं समझोगी. मेरे लिए तो एक क्षण भी एक युग की भांति हो गया है,’’ उन्होंने उत्तर दिया.

घर पहुंचते ही फोन को डब्बे से निकाल कर उस के ऊपर मोमबत्ती जलाई गई. फिर बुला कर सब में मिठाई बांटी, मानो मोबाइल का जन्म उन्हीं के हाथों हुआ था और उस के चालू होने की प्रतीक्षा की जाने लगी.

यह कार्यक्रम चल ही रहा था कि रोमा, सौदामिनी और अपने मामा आलोक बाबू के साथ आ पहुंची.

वैदेही का नया फोन आना ही सब से बड़ा समाचार था. उन्होंने डब्बे से निकाल कर सब को अपना नया मोबाइल फोन दिखाया.

‘‘कितना सुंदर फोन है,’’ राहुल तो देखते ही पुलक उठा.

‘‘दादी मां, मु?ो भी दिया करोगी न अपना मोबाइल?’’

‘‘कभीकभी, वह भी मेरी अनुमति ले कर. छोटे बच्चों पर नजर रखनी पड़ती है न सौदामिनी बहन.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ सौदामिनी ने सिर हिला दिया था.

‘‘सच कहूं, तो आज कलेजा ठंडा हो गया. यों तो राहुल को छोड़ कर सब के पास अपनेअपने मोबाइल हैं. पर अपनी चीज अपनी ही होती है. आयु हो गई है तो क्या हुआ, मैं ने तो साफ कह दिया कि मुझे तो अपना मोबाइल फोन चाहिए ही. मैं क्या किसी पर आश्रित हूं? मुझे पैंशन मिलती है,’’ वे देर तक सौदामिनी से फोन के बारे में बातें करती रही थीं.

कुछ देर बाद सौदामिनी और आलोक बाबू ने जाने की अनुमति मांगी थी.

‘‘आप ने फोन किया तो लगा कि यहां तक आ कर आप से मिले बिना जाना ठीक नहीं होगा,’’ सौदामिनी बोलीं.

‘‘यही तो लाभ है मोबाइल फोन का. अपनों को अपनों से जोड़े रखता है,’’ वैदेही ने उत्तर दिया.

‘‘चिंता मत करना. अब मेरे पास अपना फोन है. मैं हालचाल लेती रहूंगी.’’

‘‘मैं भी आप को फोन करती रहूंगी. आप का नंबर ले लिया है मैं ने,’’ सौदामिनी ने आश्वासन दिया था.

हाथ में अपना मोबाइल फोन आते ही वैदेही का तो मानो कायाकल्प ही हो गया. उन का मोबाइल अब केवल वार्त्तालाप का साधन नहीं है. उन के परिचितों, संबंधियों और दोस्तों के जवान बेटेबेटियों का सारा विवरण उन के मोबाइल में कैद है. वे चलताफिरता मैरिज ब्यूरो बन गई हैं. पहचान का दायरा इतना विस्तृत हो गया है कि किसी का भी कच्चा चिट्ठा निकलवाना हो तो लोग उन की ही शरण में आते हैं.

‘‘इस बुढ़ापे में भी अपने पांवों पर खड़ी हूं मैं. साथ में पैंशन भी मिलती है,’’ वे शान से कहती हैं. और एक राज की बात. उन के पास अब एक नहीं 5 मोबाइल फोन हैं जो पहले दूरभाष पर उन के लंबे वार्त्तालाप का उपहास करते थे अब उसी गुण के कारण उन का सम्मान करने लगे हैं.

Hindi Story : जमीं और आस्मां मुट्ठी में – पति की बेवफाई से तप कर सोना हुई युवती की कहानी

Hindi Story : “शिव्या… शिव्या कहां हो? हर समय कमरे में घुसी रहती हो. कभी तो बाहर निकला करो. तुम तो बस अपनी बहन में ही रमी रहती हो. तुम तो भूल रही हो कि तुम्हारा एक अदद इकलौता जीजा भी इसी घर में रहता है,” कियान ने अपनी पत्नी देबोमिता की बड़ी बहन शिव्या से उपहास करते हुए कहा.

“नहीं कियान, ऐसी तो कोई बात नहीं. बस जरा कल के लैक्चर की तैयारी कर रही थी. देबू कहां है? मैं उसे अभी तुम्हारे पास भेजती हूं.”

“तुम्हारी देबू तो सोने चली गई. वह तो हर समय आने वाले बच्चे के सपनों में खोई रहती है. दिनरात बस उसी की बातें. मैं तो भई उस से और उस की बातों से पक गया हूं. अच्छीभली फिगर का सत्यानाश कर लिया है उस ने तो.”

कियान की बातें सुन शिव्या के जेहन में मानो घंटी बज गई, ‘यह कियान को क्या हुआ? कितनी फालतू बात कर रहा है! अब देबू प्रैगनैंट है तो फिगर तो खराब होगी ही. किस किस्म का इंसान है यह?’

“शिव्या, चलो जरा लौंग ड्राइव पर चलते हैं. यहां पास ही बेहद शानदार तवा आइसक्रीम पार्लर खुला है. वहां तवा आइसक्रीम खा कर आते हैं.”

“कियान, मुझे अप्रैल फूल बना रहे हो क्या? यह तवा आइसक्रीम कौन सी आ गई?”

“शिव्या, कौन सी दुनिया में रहती हो भई? पार्लर वाला आइसक्रीम तवे पर तुम्हारे सामने लाइव बना कर देगा. वहीं देख लेना, कैसे बनती है. कोई अप्रैल फ़ूल नहीं बना रहा मैं तुम्हें. बस, अब तुम झटपट तैयार हो कर आ जाओ.”

“ओके, अभी आई. जरा देबू को भी देख लूं. वह चले तो उस का भी जी बहल जाएगा. पूरे दिन घर ही घर में बंद रहती है.”

“अरे, उसे तो रहने ही दो. वह इतना बड़ा ढोल सा पेट ले कर कहां इस वक्त जाएगी?”

“क्यों? हमारे साथ जाने में हरज ही क्या है? वह भी फ्रैश फील कर लेगी.”

“देबू… अरे ओ देबू… चल रही है क्या आइसक्रीम खाने?” वह धड़धड़ाती हुई अपनी 8 माह की प्रैगनैंट छोटी बहन देबोमिता के कमरे में घुस गई जहां वह दीवार की ओर मुंह किए लेटी हुई थी.

“देबू… देबू… कियान और मैं जरा लौंग ड्राइव पर जा रहे हैं. पूरा दिन घर में बंद रहती है तू. हमारे साथ जाएगी तो अच्छा लगेगा.”

“न शिवि, मुझे नहीं जाना. तू ही चली जा कियान के साथ. मुझे तो बहुत जोरों की नींद आ रही है,” उस ने उबासी भरते हुए कहा.

“श्योर नहीं जाना?”

“हां… हां…कह तो दिया, नहीं जाना. तू चली जा.”

जून का महीना आधा खत्म होने आया था, लेकिन तूफान के चलते कल शहर में घनघोर बारिश हुई थी, जिस के चलते फिजा में अभी तक ठंडक थी.

कियान ने अपनी गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन वह स्टार्ट नहीं हुई,”अरे, यह तो चालू ही नहीं हो रही? अब क्या करें? मेरे मुंह में तो भई आइसक्रीम का जबरदस्त स्वाद आ रहा है. मौसम भी इतना खुशगवार हो रहा है. आज तुम्हारी मोटरसाइकिल पर लौंग ड्राइव का मजा लेते हैं.”

“नहीं कियान, अब मोटरसाइकिल चलाने का मेरा मन नहीं.”

“अरे, अभी रात के 10 ही तो बजे हैं. अब आइसक्रीम का मूड बन गया तो बन गया. डोंट बी ए स्पौयल सट शिव्या. कमऔन, मैं चलाऊंगा मोटरसाइकिल,” कियान का आखिरी वाक्य सुन शिव्या चिहुंक पड़ी.

“नहीं, मैं अपनी बाइक किसी को भी नहीं देती.”

“छोड़ो न कियान, अब तो देबू भी सो चुकी है. कल पक्का उसे ले कर तुम्हारी यह तवा आइसक्रीम खाने जाएंगे. पक्का…”

“ नहीं… नहीं, वह तो आज ही खाने जाएंगे.”

“तुम नहीं मानोगे. शिव्या ने बाहर पोर्च में जा कर कियान को अपने पीछे बैठा कर बाइक स्टार्ट कर दी और तेज गति से बाइक खाली सड़क पर दौड़ा दी. बाइक के दौड़ते ही कियान गुनगुनाने लगा, “मौसम है आशिकाना…” शीतल मंद हवा से बातें करते हुए शिव्या भी बेफिक्री के आलम में बह चली. उस ने बाइक की स्पीड और बढ़ा दी.

तभी कियान बोल पड़ा, “तू जिस से शादी करेगी वह बहुत खुशकिस्मत इंसान होगा. काश…” कहते हुए कियान ने एक लंबी सांस भरी.

“यों लंबीलंबी सांसें क्यों ले रहे हो कियान? तुम ने ही तो देबू को चाहा और वह तुम्हें मिल गई. फिर यह काश क्यों कियान?”

“बस ऐसे ही…कुछ नहीं.”

“नहींनहीं, कियान. कुछ तो है जो तुम छिपा रहे हो. बोलो न क्या बात है?”
शिव्या के कुरेदते ही वह जैसे फट पड़ा,”कभीकभी मुझे लगता है कि देबू मेरे लिए नहीं बनी. पार्टनर के रूप में उस का चुनाव कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की.”

“यह तुम क्या कह रहे हो? याद है, तुम ही तो देबू के पीछे नहाधो कर पड़े थे.”

“सब याद है शिव्या. उसी बात का तो रोना है कि मैं उसे पहले पहचान ही नहीं पाया. तुम्हारी बहन तो बहुत घरेलू है, बिलकुल बहनजी टाइप. मुझे तो तुम जैसी बिंदास, ऐडवैंचरस और बोल्ड लड़की चाहिए थी, जिस के साथ हर लमहा एक ऐडवैंचर होता. तुम्हारी यह देबू तो बेहद बोर है.”

तभी सामने तवा आइसक्रीम पार्लर आ गया और शिव्या ने एक झटके से अपनी बाइक रोक दी. सामने पार्लर में एक मशीन के ऊपर गोल तवा सा बना हुआ था, जिस पर एक पार्लरकर्मी 2 स्पैटुला से तेज गति से खटखट करते हुए फ्रूट्स, दूध, ड्राई फ्रूट्स आदि के मिक्सचर को तेज गति से चला रहा था.

“क्यों भैया, यह तवा क्या गरम है? गरम तवे पर आप की आइसक्रीम पिघलती नहीं?”

“मैम, यह बस देखने भर का ही तवा है. यह गरम नहीं ठंडा है, जिस का टैंपरेचर माइनस में जाता है.”

“अरे, मैं तो कुछ और ही सोच बैठी थी. गरम तवे पर आइसक्रीम कैसे बनेगी?”

उस की हैरान मुखमुद्रा देख कियान बहुत जोरों से हंस पड़ा, “बना दिया न अप्रैल फूल तुम्हें.”

अपने मनपसंद फ्लैवर की आइसक्रीम खा कर दोनों फिर से बाइक पर बैठ गए, लेकिन पार्लर में बैठे हुए और फिर घर वापसी के दौरान शिव्या के अंतर्मन में गहन उठापटक चल रही थी,’यह कियान इतना गलत कैसे हो सकता है? साफसाफ कह रहा है कि देबू बहनजी टाइप बोर है.’

शिव्या इन्हीं विचारों में गुम तेज गति से बाइक दौड़ा रही थी कि तभी उस ने महसूस किया कि कियान के हाथों ने उस की कमर को अपने शिकंजे में जकड़ लिया और अपना चेहरा उस के कंधों में गड़ा बुदबुदा रहा था, “शिव्या, माई डियर, मुझे तो बिलकुल तुम्हारी जैसी स्मार्ट और बोल्ड बीवी की ख्वाहिश थी…” तभी उस की नजदीकी और अल्फाजों से असहज होते हुए क्षण भर को कुछ सोचने के बाद वह बेहद गुस्से से चिल्लाई, “कियान, तुम्हें होश भी है कि तुम क्या कर रहे हो और क्या कह रहे हो? मेरी बहन तुम्हारी बीवी है और तुम अपनी ही साली पर डोरे डाल रहे हो? मैं इतनी गिरी हुई नहीं हूं कि तुम्हारे झांसे में आ जाऊं. मैं तुम्हें और टौलरेट नहीं कर सकती. मैं जा रही हूं बाय…” कहतेकहते शिव्या कियान को बीच सड़क पर छोड़ हवा की गति से फुर्र हो गई.

कियान के इस ओछेपन से उस के मन में मानो ज्वारभाटा उठ रहा था. तो कियान की असली सूरत यह है? वह इतना सस्ता और छिछोरा टाइप इंसान है उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. मेरी देबू की तो जिंदगी खराब हो गई. ऐसे लीचड़ इंसान के साथ वह पूरी उम्र कैसे काटेगी? जब कियान को मुझ पर डोरे डालने से गुरेज नहीं, तो वह तो किसी को भी नहीं छोड़ता होगा. उस के अंतर्मन में खयालों का जलजला आया हुआ था. सगी बहन की चिंता उसे खाए जा रही थी कि वह ऐसी विकृत मानसिकता के इंसान के साथ पूरी जिंदगी कैसे बिताएगी?

रात को शिव्या की आंखों में नींद का दूरदूर तक नामोनिशान नहीं था. वह घोर बेचैनी के आलम में करवटें बदल रही थी. यों ही गहन विकलता के समंदर में डूबतेउतराते देर रात उस की आंखें लगीं. सुबह नाश्ते पर डाइनिंग टेबल पर कियान से उस की मुलाकात हुई, लेकिन उस बेगैरत बंदे के चेहरे पर रात की बात का तनिक भी मलाल न था.

“गुड मौर्निंग साली साहिबा, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप के सीने में दिल नहीं पत्थर है पत्थर. अमां यार, छोटी सी जिंदगी है. इसे मौजमस्ती से गुजारी जाए तो आखिर इस में हरज ही क्या है? आखिर साली आधी घरवाली तो होती ही है न फिर आगबबूला होने की जरूरत क्या है आखिर?”

“मिस्टर कियान, कितनी घटिया सोच है आप की? मस्ती करनी है तो आप के पास देबू है न. खबरदार जो आइंदा मेरे साथ किसी भी किस्म की लिबर्टी लेने की कोशिश की,” कहते हुए शिव्या घोर गुस्से से उठ कर वहां से चली गई.

कियान के स्वाभाव की असलियत जान कर वह अपने आपे में न थी. वह सोच रही थी, ‘यह कियान तो बेहद लंपट इंसान निकला.’

दिन यों ही गुजर रहे थे. शिव्या की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इन परिस्थितियों में वह क्या करे? अभी प्रैगनैंसी के आखिरी दौर में वह उस के सामने कियान की असलियत जाहिर भी नहीं कर सकती. नियत समय पर देबोमिता ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया. कियान की असलियत से अनजान देबोमिता बेहद खुश थी. हर समय चहकती रहती, लेकिन शिव्या जबजब उसे देखती, यह सोच कर उस का कलेजा मुंह को आ जाता कि कभी कियान की वास्तविकता देबोमिता पर जाहिर हो गई तो क्या होगा?”

कियान के चरित्र के बदसूरत पक्ष से परिचित शिव्या अब कियान के ऊपर कड़ी नजर रखने लगी थी. उस की रीयल फितरत से वाकिफ होने के लिए. उस के पास किसी का फोन आता तो उस के कान खड़े हो जाते, कहीं किसी लड़की का फोन तो नहीं. वह देबोमिता के भविष्य को ले कर बेहद फिक्रमंद हो गई थी. अभी साल भर पहले ही कोरोना के चलते उन दोनों के पेरैंट्स की असमय मौत के बाद से छोटी देबोमिता अब उस की जिम्मेदारी थी.

तभी एक दिन उस के सामने कियान की वास्तविकता का खुलासा हो ही गया. उस दिन शिव्या देबोमिता के बैडरूम में भांजे कृष को खिला रही थी कि तभी उस ने देखा कियान अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर नहाने चला गया. तभी देबोमिता भी अपने रूम से किसी काम से बाहर गई और शिव्या बहनोई की जासूसी की मंशा से झटपट उस का व्हाट्सऐप चेक करने लगी. व्हाट्सऐप पर जो उस ने देखा उस के हाथों के मानो तोते उड़ गए .

कियान की 5-6 लड़कियों से चैटिंग थी, जिन्हें जल्दीजल्दी पढ़ कर वह जैसे आसमान से गिरी. सभी लड़कियों के साथ अश्लीलता की हद लांघते हुए चैटिंग थी. उन्हें भेजी हुई पोर्न वीडियो की क्लिपिंग्स भी थी. तभी देबोमिता के बैडरूम में आने की आहट हुई और उस ने झपट कर कियान का फोन वापस पलंग पर रख दिया.

कियान के बाथरूम से बाहर निकलते ही देबोमिता बाथरूम में घुस गई.
कियान के दोगलेपन का प्रत्यक्ष प्रमाण पा शिव्या गुस्से में उबल रही थी और कियान को देखते ही उस के फोन की अश्लील चैट उसे दिखाते हुए उस पर फट पड़ी, “कियान, यह सब क्या है? मैं ने क्या सोच कर तुम्हारे साथ अपनी बहन की शादी की थी और तुम क्या निकले? इतनी खूबसूरत, जहीन और प्यारी बीवी के होते हुए तुम जगहजगह मुंह मार रहे हो? उसे खुलेआम धोखा दे रहे हो?”

गुस्से में शिव्या को यह खयाल भी न रहा कि देबोमिता बाथरूम में उन दोनों की बातें सुन सकती है. शिव्या की बातें सुन कियान का चेहरा जर्द पड़ गया और अपना परदाफाश होते देख वह बौखलाते हुए उस पर दांत भींच कर घोर गुस्से से उस पर आंखें तरेरते हुए चिल्लाया, “मेरा फोन चेक करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई? मेरी जिंदगी मेरी है. मैं अपनी निजी जिंदगी में कुछ भी करूं, तुम्हें इस से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम्हारी बहन को मैं कुछ कहूं या करूं तो मुझ से कुछ कहना. उसे पूरा मानसम्मान देता हूं, फिर भी?”

तभी एकाएक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और धारधार बिलखती देबोमिता बाहर आई और वह झपट कर कियान का फोन उठा कर दौड़ कर अगले ही लम्हे यह कहते हुए बाथरूम में बंद हो गई कि उस ने शिव्या और कियान की बातें सुन ली हैं.

यह सब पलक झपकते ही इतनी जल्दी हुआ कि शिव्या कुछ समझ ही नहीं पाई. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह बाथरूम का दरवाजा पीटने लगी.

उधर जान से प्यारे पति की सचाई जान देबोमिता की दुनिया एक ही लम्हे में उलटपुलट हो गई. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उस के पांव तले जमीन ही खिसक गई हो. बेहद गुस्से में उस ने सामने शेल्फ में रखी कैंची उठाई और ताबड़तोड़ उस से अपने हाथों की नसें काट लीं और चीखने के साथ बेहोश होते हुए जमीन पर कटे पेड़ की भांति ढह गई. इधर उसकी चीत्कार सुन शिव्या बाथरूम का दरवाजा पीटते हुए चिल्लाई, “देबू… देबू… दरवाजा खोलो. देबोमिता… ” लेकिन भीतर से बहन की घुटीघुटी कराहों की आवाजें आ रही थीं.
अनहोनी का अंदाजा लगा कर शिव्या कियान पर चिल्लाई, “कियान, दरवाजा तोड़ो जल्दी.”

कुछ ही देर में दरवाजा टूट गया. भीतर का नजारा देख शिव्या और कियान का खून मानो बर्फ बन गया. भीतर शिव्या खून से लथपथ फर्श पर पड़ी हाथपांव मारते हुए छटपटा रही थी. कियान और शिव्या आननफानन में उसे सब से नजदीकी अस्पताल ले गए.

समय पर मैडिकल सहायता मिलने की वजह से देबोमिता की जान बच गई. देबोमिता को अस्पताल से डिस्चार्ज हुए माह भर होने आया.
इस 1 माह में वह 21-22 साल की बेफिक्र बिंदास युवती से एक परिपक्व संजीदा शख्सियत में बदल गई,”शिव्या, मुझे कियान से डाइवोर्स चाहिए. मैं अपनी पूरी जिंदगी इस लीचड़ इंसान के साथ कतई नहीं बिता सकती.”

“ठीक है, मैं क्या कहूं अगर तेरा यही फैसला है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं.”

कियान और देबोमिता के डाइवोर्स को पूरे 3 साल बीत चुके हैं. इन 3 सालों में देबोमिता अपनी मेहनत और शिव्या के सहयोग से आत्मविश्वास से भरपूर एक वर्किंग प्रोफैशनल में तबदील हो चुकी है. तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद 1 साल के भीतर उस का तलाक हो गया था. कम उम्र में अपनी शिक्षा पूरी किए बिना कुछ सोचेसमझे एक चरित्रहीन युवक के प्यार में अंधी हो कर मात्र सालभर की पहचान में उस से विवाह करने का भारी खामियाजा वह उठा चुकी थी.

कियान से तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद वह जीजान से एमबीए के लिए कैट के ऐग्जाम की तैयारी में जुट गई थी. इतना सबकुछ सह कर पढ़ाई में जी रमाना आसान न था, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर और बहन के सहयोग और प्रोत्साहन से उस ने कैट क्लीयर किया और एक नामचीन बिजनैस स्कूल से एमबीए पूरा किया. संस्थान में पढ़तेपढ़ते आखिरी साल में कैंपस प्लेसमैंट में उस की नौकरी एक प्रतिष्ठित एमएनसी में लग गई.

आज ही उस की पहली तनख्वाह की मोटी रकम उस के बैंक अकाउंट में आई थी. औफिस में अपने केबिन में लैपटौप पर अपनी पहली पेस्लिप देखते हुए अपूर्व खुशी से उछल रही थी. अनायास न जाने क्यों बरसों से भूलेबिसरे कियान का चेहरा उस के जेहन में कौंध उठा और वह मुंह ही मुंह में बुदबुदाई,’थैंक यू कियान. थैंक यू वेरी मच. जिंदगी में तुम न मिले होते तो आज मुझे यह मुकाम न मिला होता.’

औफिस से निकल कर एक अनूठे आत्मविश्वास से भरपूर आंखों में एक सुनहरे भविष्य का सपना संजोए वह तेज चाल से गुनगुनाते हुए एटीएम की ओर चल पड़ी. आज जमीं और आसमां दोनों उस की मुट्ठी में थे.

Hindi Story : नई चादर – कोयले को जब मिला कंचन

Hindi Story : शरबती जब करमू के साथ ब्याह कर आई तो देखने वालों के मुंह से निकल पड़ा था, ‘अरे, यह तो कोयले को कंचन मिल गया.’

वैसे, शरबती कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी, थोड़ी ठीकठाक सी कदकाठी और खिलता सा रंग. बस, इतनी सी थी उस की खूबसूरती की जमापूंजी, मगर करमू जैसे मरियल से अधेड़ के सामने तो वह सचमुच अप्सरा ही दिखती थी.

आगे चल कर सब ने शरबती की सीरत भी देखी और उस की सीरत सूरत से भी चार कदम आगे निकली. अपनी मेहनतमजदूरी से उस ने गृहस्थी ऐसी चमकाई कि इलाके के लोग अपनीअपनी बीवियों के सामने उस की मिसाल पेश करने लगे.

करमू की बिरादरी के कई नौजवान इस कोशिश में थे कि करमू जैसे लंगूर के पहलू से निकल कर शरबती उन के पहलू में आ जाए. दूसरी बिरादरियों में भी ऐसे दीवानों की कमी न थी. वे शरबती से शादी तो नहीं कर सकते थे, अलबत्ता उसे रखैल बनाने के लिए हजारों रुपए लुटाने को तैयार थे.

धीरेधीरे समय गुजरता रहा और शरबती एक बच्चे की मां बन गई. लेकिन उस की देह की बनावट और कसावट पर बच्चा जनने का रत्तीभर भी फर्क नहीं दिखा. गांव के मनचलों में अभी भी उसे हासिल करने की पहले जैसे ही चाहत थी.

तभी जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट पड़ा. करमू एक दिन काम की तलाश में शहर गया और सड़क पार करते हुए एक बस की चपेट में आ गया. बस के भारीभरकम पहियों ने उस की कमजोर काया को चपाती की तरह बेल कर रख दिया था.

करमू के क्रियाकर्म के दौरान गांव के सारे मनचलों में शरबती की हमदर्दी हासिल करने की होड़ लगी रही. वह चाहती तो पति की तेरहवीं को यादगार बना सकती थी. गांव के सभी साहूकारों ने शरबती की जवानी की जमानत पर थैलियों के मुंह खोल रखे थे, मगर उस ने वफादारी कायम रखना ही पति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि समझते हुए सबकुछ बहुत किफायत से निबटा दिया.

शरबती की पहाड़ सी विधवा जिंदगी को देखते हुए गांव के बुजुर्गों ने किसी का हाथ थाम लेने की सलाह दी, मगर उस ने किसी की भी बात पर कान न देते हुए कहा, ‘‘मेरा मर्द चला गया तो क्या, वह बेटे का सहारा तो दे ही गया है. बेटे को पालनेपोसने के बहाने ही जिंदगी कट जाएगी.’’

वक्त का परिंदा फिर अपनी रफ्तार से उड़ चला. शरबती का बेटा गबरू अब गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाने लगा था और शरबती मनचलों से खुद को बचाते हुए उस के बेहतर भविष्य के लिए मेहनतमजदूरी करने में जुटी थी.

उन्हीं दिनों उस इलाके में परिवार नियोजन के लिए नसबंदी कैंप लगा. टारगेट पूरा न हो सकने के चलते जिला प्रशासन ने आपरेशन कराने वाले को एक एकड़ खेतीबारी लायक जमीन देने की पेशकश की.

एक एकड़ जमीन मिलने की बात शरबती के कानों में भी पड़ी. उसे गबरू का भविष्य संवारने का यह अच्छा मौका दिखा. ज्यादा पूछताछ करती तो किस से करती. जिस से भी जरा सा बोल देती वही गले पड़ने लगता. जो बोलते देखता वह बदनाम करने की धमकी देता, इसलिए निश्चित दिन वह कैंप में ही जा पहुंची.

शरबती का भोलापन देख कर कैंप के अफसर हंसे. कैंप इंचार्ज ने कहा, ‘‘एक विधवा से देश की आबादी बढ़ने का खतरा कैसे हो सकता है…’’

कैंप इंचार्ज का टका सा जवाब सुन कर गबरू के भविष्य को ले कर देखे गए शरबती के सारे सपने बिखर गए. बाहर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठे तो वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई.

तभी एक अधेड़ कैंप इंचार्ज के पास आ कर बोला, ‘‘सर, आप के लोग मेरा आपरेशन नहीं कर रहे हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कहते हैं कि मैं अपात्र हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा? किस गांव में रहते हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम केदार है. मैं टमका खेड़ा गांव में रहता हूं.’’

‘‘कैंप इंचार्ज ने टैलीफोन पर एक नंबर मिलाया और उस अधेड़ के बारे में पूछताछ करने लगा, फिर उस ने केदार से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि तुम्हारी बीवी पिछले महीने मर चुकी है?’’

‘‘हां, सर.’’

‘‘फिर तुम्हें आपरेशन की क्या जरूरत है. बेवकूफ समझते हो हम को. चलो भागो.’’

केदार सिर झुका कर वहां से चल पड़ा. शरबती भी उस के पीछेपीछे बाहर निकल आई.

उस के करीब जा कर शरबती ने धीरे से पूछा, ‘‘कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘एक लड़का है. सोचा था, एक एकड़ खेत मिल गया तो उस की जिंदगी ठीकठाक गुजर जाएगी.’’

‘‘मेरा भी एक लड़का है. मुझे भी मना कर दिया गया… ऐसा करो, तुम एक नई चादर ले आओ.’’

केदार ने एक नजर उसे देखा, फिर वहीं ठहरने को कह कर वह कसबे के बाजार चला गया और वहां से एक नई चादर, थोड़ा सा सिंदूर, हरी चूडि़यां व बिछिया वगैरह ले आया.

थोड़ी देर बाद वे दोनों कैंप इंचार्ज के पास खड़े थे. केदार ने कहा, ‘‘हम लोग भी आपरेशन कराना चाहते हैं साहब.’’

अफसर ने दोनों पर एक गहरी नजर डालते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है कि अभी कुछ घंटे पहले मैं ने तुम्हें कुछ समझाया था.’’

‘‘साहब, अब केदार ने मुझ पर नई चादर डाल दी है,’’ शरबती ने शरमाते हुए कहा.

‘‘नई चादर…?’’ कैंप इंचार्ज ने न समझने वाले अंदाज में पास में ही बैठी एक जनप्रतिनिधि दीपा की ओर देखा.

‘‘इस इलाके में किसी विधवा या छोड़ी गई औरत के साथ शादी करने

के लिए उस पर नई चादर डाली जाती है. कहींकहीं इसे धरौना करना या घर बिठाना भी कहा जाता है,’’ उस जनप्रतिनिधि दीपा ने बताया.

‘‘ओह…’’ कैंप इंचार्ज ने घंटी बजा कर चपरासी को बुलाया और कहा, ‘‘इस आदमी को ले जाओ. अब यह अपात्र नहीं है. इस की नसबंदी करवा दें… हां, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘शरबती.’’

‘‘तुम कल फिर यहां आना. कल दूरबीन विधि से तुम्हारा आपरेशन हो जाएगा.

‘‘लेकिन साहब, मुझे भी एक एकड़ जमीन मिलेगी न?’’

‘‘हां… हां, जरूर मिलेगी. हम तुम्हारे लिए तीसरी चादर ओढ़ने की गुंजाइश कतई नहीं छोड़ेंगे.’’

शरबती नमस्ते कह कर खुश होते हुए कैंप से बाहर निकल गई तो उस जनप्रतिनिधि ने कहा, ‘‘साहब, आप ने एक मामूली औरत के लिए कायदा ही बदल दिया.’’

‘‘दीपाजी, यह सवाल तो कायदेकानून का नहीं, आबादी रोकने का है. ऐसी औरतें नई चादरें ओढ़ओढ़ कर हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर देंगी. मैं आज ही ऐसी औरतों को तलाशने का काम शुरू कराता हूं,’’ उन्होंने फौरन मातहतों को फोन पर निर्देश देने शुरू कर दिए.

दूसरे दिन शरबती कैंप में पहुंची तो वहां मौजूद कई दूसरी औरतों के साथ उस का भी दूरबीन विधि से नसबंदी आपरेशन हो गया. कैंप की एंबुलैंस पर सवार होते समय उसे केदार मिला और बोला, ‘‘शरबती, मेरे घर चलो. तुम्हें कुछ दिन देखभाल की जरूरत होगी.’’

‘‘मेरी देखभाल के लिए गबरू है न.’’

‘‘मेरा भी तो फर्ज बनता है. अब तो हम लिखित में मियांबीवी हैं.’’

‘‘लिखी हुई बातें तो दफ्तरों में पड़ी रहती हैं.’’

‘‘तुम्हारा अगर यही रवैया रहा तो तुम एक बीघा जमीन भी नहीं पाओगी.’’

‘‘नुकसान तुम्हारा भी बराबर होगा.’’

‘‘मैं तुम्हें ऐसे ही छोड़ने वाला नहीं.’’

‘‘छोड़ने की बात तो पकड़ लेने के बाद की जाती है.’’

शरबती का जवाब सुन कर केदार दांत पीस कर रह गया.

कुछ साल बाद गबरू प्राइमरी जमात पास कर के कसबे में पढ़ने जाने लगा. एक दिन उस के साथ उस का सहपाठी परमू उस के घर आया.

परमू के मैलेकुचैले कपड़े और उलझे रूखे बाल देख कर शरबती ने पूछा, ‘‘तुम्हारी मां क्या करती रहती

है परमू?’’

‘‘मेरी मां नहीं है,’’ परमू ने मायूसी से बताया.

‘‘तभी तो मैं कहूं… खैर, अब तो तुम खुद बड़े हो चुके हो… नहाना, कपड़े धोना कर सकते हो.’’

परमू टुकुरटुकुर शरबती की ओर देखता रहा. जवाब गबरू ने दिया, ‘‘मां, घर का सारा काम परमू को ही करना होता है. इस के बापू शराब भी पीते हैं.’’

‘‘अच्छा शराब भी पीते हैं. क्या नाम है तुम्हारे बापू का?’’

‘‘केदार.’’

‘‘कहां रहते हो तुम?’’

‘‘टमका खेड़ा.’’

शरबती के कलेजे पर घूंसा सा लगा. उस ने गबरू के साथ परमू को भी नहलाया, कपड़े धोए, प्यार से खाना खिलाया और घर जाते समय 2 लोगों का खाना बांधते हुए कहा, ‘‘परमू बेटा, आतेजाते रहा करो गबरू के साथ.’’

‘‘हां मां, मैं भी यही कहता हूं. मेरे पास बापू नहीं हैं, तो मैं जाता हूं कि नहीं इस के घर.’’

‘‘अच्छा, इस के बापू तुम्हें अच्छे लगते हैं?’’

‘‘जब शराब नहीं पीते तब… मुझे प्यार भी खूब करते हैं.’’

‘‘अगली बार उन से मेरा नाम ले कर शराब छोड़ने को कहना.’’

इसी के साथ ही परमू और गबरू के हाथों दोनों घरों के बीच पुल तैयार होने लगा. पहले खानेपीने की चीजें आईंगईं, फिर कपड़े और रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी आनेजाने लगीं.

फिर एक दिन केदार खुद शरबती के घर जा पहुंचा.

‘‘तुम… तुम यहां कैसे?’’ शरबती उसे अपने घर आया देख हक्कीबक्की रह गई.

‘‘मैं तुम्हें यह बताने आया हूं कि मैं ने तुम्हारा संदेश मिलने से अब तक शराब छुई भी नहीं है.’’

‘‘तो इस से तो परमू का भविष्य संवरेगा.’’

‘‘मैं अपना भविष्य संवारने आया हूं… मैं ने तुम्हें भुलाने के लिए ही शराब पीनी शुरू की थी. तुम्हें पाने के लिए ही शराब छोड़ी है शरबती,’’ कह कर केदार ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘अरे… अरे, क्या करते हो. बेटा गबरू आ जाएगा.’’

‘‘वह शाम से पहले नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारा जवाब ले कर ही जाऊंगा शरबती.’’

‘‘बच्चे बड़े हो चुके हैं… समझाना मुश्किल हो जाएगा उन्हें.’’

‘‘बच्चे समझदार भी हैं. मैं उन्हें पूरी बात बता चुका हूं.’’

‘‘तुम बहुत चालाक हो. कमजोर रग पकड़ते हो.’’

‘‘मैं ने पहले ही कह दिया था कि मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं,’’ केदार ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा. शरबती की आंखें खुद ब खुद बंद हो गईं.

उस दिन के बाद केदार अकसर परमू को लेने के बहाने शरबती के घर आ जाता. गबरू की जिद पर वह परमू के घर भी आनेजाने लगी. जब दोनों रात में भी एकदूसरे के घर में रुकने लगे तो दोनों गांवों के लोग जान गए कि केदार ने शरबती पर नई चादर डाल दी है.

परमू, गबरू और केदार बहुत खुश थे. खुश तो शरबती भी कम नहीं थी, मगर उसे कभीकभी बहुत अचंभा होता था कि वह अपने पहले पति को भूल कर केदार की पकड़ में आ कैसे गई?

Love Story : नया सवेरा – क्यों नेहा को आकाश की याद आने लगी ?

Love Story : दिल्ली जैसे बड़े शहर के होस्टल में छोटी जगह से आई नेहा को अभी कुछ ही दिन हुए थे, पर वह यह देख कर हैरान थी कि कैसे कुछ लड़कियां इस अनजान शहर में बौयफ्रैंड बनाने में माहिर हो गई थीं. उस ने तो अपने आसपास इस तरह का माहौल कम ही देखा था। रातरात भर मोबाइल पर लगे रहने और सुबह देर से उठने के कारण औफिस देर से पहुंचना उन की आदत सो हो गई थी. नेहा भी नौकरी के सिलसिले में अपने गांव से दूर यहां दिल्ली के एक होस्टल में रह रही थी। वह पढाई में तेज थी और घर वालों ने भी पढ़ाई में उस का साथ दिया था, जिस कारण उसे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी जौब मिली.

सुबह से तो होस्टल खाली ही रहता पर जैसेजैसे दिन ढलता सभी एकएक कर के वापस आने लगतीं और सभी पूरे दिनभर की गाथा सुनाती रहतीं. आज भी नेहा अपनी रूम पार्टनर पूजा के साथ छत पर बैठी चाय पी रही थी कि तभी एक लड़की फोन पर बात करतेकरते रोने लगी, शायद अपने बौयफ्रैंड से बात कर रही थी जो उस से ब्रेकअप की धमकी दे रहा था.

“हर किसी ऐरेगैरे से दिल लगाओगी तो ऐसा ही होगा,” हलका सा डांटते हुए पूजा ने उसे समझाया. सच बात तो यह थी कि यह सब उन का टाइमपास था, पर उन में से कुछ ऐसी भी थीं जिन को सच में किसी से सच्चा प्यार था और उन के प्यार में कोई दिखावा नहीं था.

इन सब बातों में खोई नेहा को अचानक ही पूजा ने छेड़ा,”कहां खोई हो मैडमजी, आप को भी किसी अपने की याद आ रही है क्या? तुम भी बातें कर लो…”

“नहींनहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है, चल नीचे कमरे में चलते हैं,” नेहा उठने ही वाली थी की पूजा ने हाथ खींच कर बैठा लिया.

“बैठो न कुछ देर, कितना अच्छा मौसम है, दिनभर औफिस में सब की सुनतेसुनते सिर पक गया है,” कहते हुए पूजा वहीं बैठ गई. दोनों एक ही कमरा शेयर करती हैं पर उन की जौब अलगअलग है, इसलिए उन के बीच बातें कम ही हो पाती हैं. बात करतेकरते पूजा अपने घरपरिवार, दोस्तों के बारे में बात करतेकरते अपने बौयफ्रैंड की बातें भी बड़े मजे से करने लगी. पूजा खुले मन की लड़की थी जो नेहा से सब बातें शेयर करती थी.

“तू भी बता, तू किसे पसंद करती है? कौन है तेरा फर्स्ट लव या फिर शादीवादी का चक्कर है, क्या करता है? कहां रहता है…” एक ही सांस में ढेरों सवाल कर दिए पूजा ने. तभी पूजा के घर से कौल आई और वह बात करने में बिजी हो गई। नेहा न चाहते हुए भी कहीं खो सी गई जैसे किसी ने तेज धक्का दिया हो, यह सोचने के लिए कि सच में उस का पहला सच्चा प्यार कौन था?

जतिन, जिसे उस ने कच्ची उम्र में एकतरफा प्यार किया था, जिसे जतिन ने कभी समझा ही नहीं या आकाश जिस ने नेहा को टूट कर चाहा, पर नेहा ने उस की कोई कदर न की. उस के प्यार, उस की भावनाओं को जरा भी न समझा और मुंह फेर लिया, पर आज अचानक नेहा को आकाश से इतना लगाव क्यों महसूस हो रहा है? क्यों उस की याद आ रही है? वह समझ नहीं पा रही थी.

आकाश उस के पापा के दोस्त का बेटा था। उन के घरों के बीच बहुत अच्छे संबंध थे. बचपन से साथ खेलतेखेलते आकाश कब नेहा को पसंद करने लगा उसे खुद नहीं पता था जबकि वह यह भी जानता था कि नेहा जतिन को पसंद करती है और वह अच्छे मिजाज का नहीं है, फिर भी उस ने नेहा से दोस्ती निभाई.

नेहा ने तो जतिन को सच्चे मन से चाहा था पर जतिन तो सिर्फ उस के साथ टाइमपास कर रहा था और यह बात आकाश बहुत अच्छी तरह जानता था. मौका पा कर एक दिन आकाश ने अपनी मोहब्बत का इजहार नेहा के सामने कर दिया.

“नेहा, तुम जानती हो कि मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, बहुत चाहता हूं, तुम क्यों मेरे प्यार को जान कर भी अनजान बनी हो?” आकाश ने बड़ी उम्मीदों के साथ अपने दिल की बात नेहा के सामने रखी थी।

“तुम क्यों अनजान बने हो यह जान कर कि मैं जतिन को पसंद करती हूं, हम बस दोस्त ही रहें वही ठीक है,” नेहा ने बेकदरी से उसे जवाब दिया था।

“पर तुम जिस जतिन के पीछे भाग रही हो वह बस तुम्हारे साथ टाइमपास कर रहा है, तुम्हारे लिए उस के मन में कोई प्यार नहीं है,” इतना सुनते ही नेहा ने आकाश को खूब खरीखोटी सुना दी.

खाने की बेल बजने लगी तभी पूजा उसे बुलाने आ गई, पर उस का मन तो पुरानी बातों पर अटक गया. आज नेहा का मन न तो खाने में लग रहा था और न ही अपने काम में. शायद कहीं न कहीं उस के दिल में पछतावा था, आकाश को न समझ पाने का.

आज उसे आकाश की हर बात याद आने लगी. कैसे वह उसे देखता रहता था. तेज धूप में खड़ा उस का इंतजार करता रहता था. यहां तक कि जब नेहा उस के घर जाती तो वह गानों के जरीए उसे एहसास दिलाता कि वह उसे कितना चाहता है और आज अनायास ही नेहा उन गानों को गुनगुनाने लगी.

कई साल बीत गए, नेहा ने आकाश से कोई बात नहीं की थी, पर आज अचानक ही अपने फोन पर उस का नंबर ढूंढ़ने लगी. जतिन की असलियत भी उस के सामने आ गई थी इसलिए नेहा ने खुद को इतना कठोर बना दिया कि प्यार नाम की चीज से भी उस का विश्वास टूट गया और इसी कठोरता की वजह से उस ने आकाश को कभी समझा ही नहीं और अपना सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में लगा दिया. उधर आकाश भी निराश हो कर दूर पढ़ने चला गया पर आज नेहा का दिल जोरजोर से धड़क रहा था आकाश के लिए. जैसे ही मोबाइल स्क्रीन पर आकाश का नंबर आया उस का दिल घबराने लगा.

कितनी ही देर वह सोचती रही कि फोन करे या न करे? पर उस की बेचैनी इतनी अधिक बढ़ गई कि आखिर उस ने नंबर डायल कर दिया. धड़कते दिल के साथ हाथ भी कांपने लगे. अगर आकाश ने उसे डांटा या खूब खरीखोटी सुनाई या बात करने से इनकार कर दिया तब वह क्या करेगी…

ऐसे कितने ही बुरे खयाल उस के मन में आतेजाते रहे. यह सब सोच कर उस ने फोन काट दिया पर कौल तो जा चुकी थी. अब उस का दिल और घबरा रहा था. जाने क्या सोचेगा वह मेरे बारे में. यही सब सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

दूसरी तरफ अपने फोन पर नेहा की मिस्ड कौल देख कर आकाश भी हैरान था. जो लड़की उस से नफरत करती थी आज उस की मिस्ड कौल देख कर बेचैनी महसूस करने लगा. गलती से कौल लग गई होगी ऐसा सोच कर आकाश खुद को बहलाने लगा… पर दिल तो पुरानी यादों में खो गया, जब उस ने नेहा को उस के बर्थडे पर लव बर्ड का एक शोपीस दिया था पर नेहा ने उसे यह कह कर वापस कर दिया कि वह उसे किस हक से दे रहा है? कितना रोया था वह उस के लिए पर शायद नेहा ने कभी उसे समझा ही नहीं… काफी देर तक आकाश भी यही सोचता रहा कि वह कौल बैक करे या न करे. कहीं फिर से नेहा फिर से कुछ उलटासीधा न कह दे पर आज भी उसे नेहा का इंतजार था और वह इंतजार कई सालों से कर रहा था.

अगले दिन न इधर नेहा का मन लग रहा था न उधर आकाश का. नेहा को परेशान देख पूजा ने उस से उस की परेशानी जाननी चाही. थोड़ाबहुत मना करने के बाद नेहा ने पूजा को आकाश के बारे में सब बता दिया कि कैसे वह कई साल से उस की हां का इंतजार करता रहा और शायद आज भी कर रहा है. सब जानने के बाद पूजा ने नेहा को ही कौल करने को कहा और अगर वह उस के प्यार को समझती है तो अपने दिल की बात उसे बता दे. पर नेहा अब डर रही थी कि कहीं आकाश की लाइफ में कोई और न हो और वह उसे बेइज्जत न कर दे। पूजा के जोर देने पर नेहा ने कौल कर दी.

स्क्रीन पर नेहा का नंबर दोबारा देख कर आकाश खुश तो हुआ पर यह सोच कर दुखी भी हो गया कि कहीं दोबारा तो गलती से कौल नहीं लग गई, पर रिंग तो बराबर हो रही थी.

“हैलो…” संजीदा होते हुए आकाश बोला.

“मैं नेहा, पहचाना आकाश…” कहते हुए नेहा के होंठ कांपने लगे.

“तुम को कैसे भूल सकता हूं, तुम्हारी यादें आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं और तुम्हारी नफरत को अभी भी संजो कर रखा है,” कह कर आकाश कहीं खो सा गया।

“मुझे माफ कर दो आकाश, मैं ने तुम्हें कभी समझा ही नहीं या शायद जानबूझ कर अनजान बनी रही पर आज मुझे अपनी गलती का एहसास है… मैं ने तुम्हे बहुत रूलाया है,” कह कर नेहा खुद ही रो पड़ी.

“प्लीज नेहा…रो मत… मैं ने कभी भी तुम से जबरदस्ती नहीं की मेरी बात मानने के लिए…. वह फैसला भी तुम्हारा खुद का था और आज का फैसला भी तुम्हारा खुद का है.”

“तुम्हें जो भी कहना हो कह लो… जितनी भी नाराजगी तुम्हारे मन में है सब कह डालो पर मुझे माफ कर दो, मैं अब और इस बोझ के साथ नहीं जी सकती… नेहा परेशान हो गई, “जिस के लिए मैं ने तुम्हें कभी समझा ही नहीं, उस ने भी मुझे नहीं समझा.”

आकाश औफिस में बिजी था इस कारण ज्यादा कुछ कह न सका,“कुछ देर बाद बात करता हूं,” कह कर आकाश ने फोन रख दिया.

इधर नेहा और भी ज्यादा परेशान हो गयी…क्या आकाश की लाइफ में और कोई है या वह अभी भी मुझे ही चाहता है, इसी तरह के खयाल उस के मन में आ जा रहे थे।

अब नेहा का दिल बैठने लगा और वह सच में सोचने लगी कि आकाश की लाइफ में कोई और है.

‘होनी भी चाहिए कोई दूसरी लड़की, तू ने कब उस की परवाह की है, उस के प्यार को समझा है,’ उस के मन से ही कोई आवाज निकली.

पूरा दिन बीत गया पर आकाश का कोई फोन नहीं आया। औफिस में भी नेहा का दिल नहीं लग रहा था. इधर नेहा भी डर के कारण कोई कौल न कर सकी। पूरी रात उस को नींद न आई. अभी उस की आंख लगी ही थी कि सुबह लगभग 4 बजे उस का फोन बज उठा.

‘इतनी सुबह किस का फोन हो सकता है,’ उस के मन में अजीब सी उलझन होने लगी.

“सौरी नेहा… इतनी सुबह तुम्हें परेशान करने के लिए, तुम्हारी नींद खराब हो गई होगी,” फोन रिसीव करते ही नेहा को आकाश की आवाज सुनाई दी.

“नहीं, मैं सोई नहीं थी बस पुरानी यादों में खोई थी,” आज उसे नींद भी अच्छी नहीं लग रही थी.

“नेहा, मैं तुम से बस इतना कहना चाहता हूं कि आज से पहले मुझे तुम्हारे जिस हां का इंतजार था आज भी वही है. मैं ने कभी भी तुम्हारे आलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं और मुझे यकीन था कि तुम कभी न कभी मेरे प्यार को जरूर अपनाओगी,” आकाश की बातों से उस की खुशी बयां हो रही थी.

इधर नेहा के मन से सालों पहले का बोझ हमेशा के लिए उतर गया था. एक नया सवेरा उस के इंतजार में खङा था और वह इस पल को अब अपने हाथों से जाने देना नहीं चाहती थी।

Best Hindi Story : काका-वा – रानी क्या कभी मनुष्य को पहचान पाई ?

Best Hindi Story : बिहार से तबादला होने के बाद रानी जब चेन्नई पहुंची तो उस के लिए सबकुछ ही बदला हुआ था. हवा, पानी, खानपान, पहनावा और भाषा सबकुछ ही तो अलग था. शुरूशुरू में चेन्नई के लोग भी उसे अजीब ही लगते थे. अधिकतर औरतों ने पूरे शरीर पर ही हलदी रगड़ी हुई होती. शुरू में तो रानी को लगा शायद यहां की औरतें पीलिया रोग से पीडि़त हैं. पर धीरेधीरे यह भेद भी खुल गया कि नहाने से पहले हलदी लगाना यहां की परंपरा है.

भाषा न आने के कारण रानी को अकेलापन अधिक लगता था. वह आसपास बोले जाने वाले शब्दों को ध्यान से सुनती पर सब उस के सिर के ऊपर से गुजर जाते थे. तमिल भाषा सिखाने वाली एक किताब भी वह ले आई थी. उसे यहां के कौए भी अलग नजर आते थे. बिहार जैसे कौए नहीं थे. यहां के कौए तो पूरे के पूरे चमकीले काले थे और आकार में भी कुछ बड़े थे. उन की कांवकांव में भी अधिक कर्कशता थी और घर में फुदकने वाली, चींचीं करने वाली चिडि़यां तो यहां थीं ही नहीं.

यहां सुबह उठने के बाद जैसे ही रानी रसोई में चाय बनाने जाती, तो रसोई की खिड़की की मुंडेर पर कौओं के ही दर्शन करती. उस की रसोई की खिड़की से सामने वाली बड़ी इमारत साफ नजर आती थी और उसे ऐसा लगा कि उस इमारत के सभी फ्लैटों के रसोईघर इसी दिशा में थे क्योंकि सभी खिड़कियों की मुंडेरों पर कौओं के लिए चावल डले होते. उस के गांव में तो लोग कबूतर को दाना देना अच्छा समझते थे, पर यहां कौओं को पके हुए चावल डालना शायद अच्छा समझा जाता था. यही देख कर उस ने भी कौओं को चावल डालने की बात सोची. पर सुबहसुबह वह चावल नहीं पकाती थी. उस की रसोई में तो सुबह के समय परांठे और पूरियां बनती थीं.

पहले दिन उस ने आधी चपाती के टुकड़े खिड़की की बाहरी चौखट पर रख दिए पर एक भी कौआ नहीं आया. उसे बहुत दुख हुआ कि कौओं ने चपाती का एक टुकड़ा भी ग्रहण नहीं किया. सारा दिन रोटी के टुकड़े वहीं पड़े रहे. दूसरे दिन फिर उस ने नाश्ते में बनी पहली रोटी के कुछ टुकड़े कर के खिड़की में डाल दिए. शायद घी की महक थी या रानी की श्रद्धा का असर था कि एक कौआ उड़ कर आया, बैठा और उस ने रोटी के टुकड़ों को ध्यान से देखा. फिर अपने पंजों में उठा कर कुछ देर बैठा रहा जैसे सोच रहा हो कि यह नई चीज खाऊं या नहीं, फिर उस ने पूरा का पूरा टुकड़ा निगल लिया. फिर दूसरा टुकड़ा चोंच में उठा कर उड़ गया. फिर दूसरा कौआ आया तो उस ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दोहराई.

आज रानी को अच्छा लगा और उस का हौसला बढ़ गया. दूसरे दिन उस ने एक बड़ी रोटी बनाई और उस के अनेक टुकड़े कर के खिड़की के बाहर डाल दिए. पहले एक कौआ आया और उस ने कुछ ऐसी आवाज निकाली कि उसे सुन कर बहुत सारे कौए एकसाथ आ गए और पल भर में ही सारी रोटी खा गए. आज रानी को बहुत अच्छा लगा. उस ने सोचा कि ये दक्षिण भारतीय कौए भी अब रोटी खाना सीख गए हैं. अब तो कौओं को रोटी डालना उस की सुबह की दिनचर्या में शामिल हो गया था. धीरेधीरे वह कौओं को पहचानने भी लगी थी. एक कौए की चोंच मुड़ी हुई थी. दूसरे कौए का एक पंजा ही नहीं था तो एक और कौए की गरदन के बाल झड़े हुए थे. वह सोचती कि जैसे उसे कौओं की पहचान होती जा रही है वैसे ही क्या कौए भी उसे पहचानते होंगे? पर इस का कोई उत्तर उस के पास नहीं था.

एक दिन रानी ने डबलरोटी का नाश्ता तैयार किया. डबलरोटी के ही छोटेछोटे टुकड़े कर के उस ने खिड़की में डाल दिए. कौए आए, कांवकांव किया, पर उन्होंने डबलरोटी के टुकड़े नहीं खाए. उन्हें वहीं छोड़ कर वे उड़ गए, उस ने सोचा पहले रोटी नहीं खाते थे और आज डबलरोटी नहीं खा रहे हैं. कल भी उन्हें यही डालूंगी तब खा लेंगे.

दूसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर किसी भी कौए ने नहीं खाई. तीसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर फिर कौओं ने नहीं खाई. तब उस ने जल्दी से आटा निकाला, एक रोटी बनाई और रोटी के टुकड़े डाले. कौओं ने पहले की तरह पल भर में सब टुकड़े लपक लिए थे. आज उस ने जाना कि कौओं की भी पसंद और नापसंद होती है. उस की जांच करने के लिए उस ने अगले दिन उबले चावल डाले. कौए आए और सूंघ कर चले गए. दिनभर चावल वहीं पड़े रहे और गिलहरियां खाती रहीं. उस दिन रानी ने गिलहरियों के व्यवहार को भी करीब से देखा, कैसे एकएक दाने को दोनों पंजों से पकड़ कर कुतरकुतर कर बड़े प्यार से खाती हैं. उन की चमकती हुई दोनों आंखें कितनी सुंदर लगती हैं. इन जीवों का व्यवहार देखने में रानी को आनंद आने लगा था. उसे लगा था कि उसे तो जीवशास्त्री बनना चाहिए था.

कौओं को रोटी डालतेडालते रानी ने उन के व्यवहार को भी बहुत करीब से देखा. उस ने देखा कि कौओं में भी लालच होता है. कई कौए तो अधिक से अधिक रोटी के टुकड़े निगल कर और फिर चोंच में भी दबा कर उड़ जाते थे. अपने रोज के साथियों के लिए एक टुकड़ा तक नहीं छोड़ते थे. ऐसे दबंग कौओं से कमजोर कौए डरते भी थे. दबंग कौए जब तक खिड़की पर बैठे रहते कमजोर कौए दूर बैठे उन के उड़ने का इंतजार करते. जब दबंग कौए उड़ जाते तभी वे खिड़की पर आते और बचेखुचे टुकड़ों को खा कर ही संतोष कर लेते थे.

कौओं के खाने की प्रक्रिया में रानी ने उन की काली, पतली और लंबी जीभ भी देखी. उन की जीभ देख कर उसे उबकाई सी आने लगती थी. उसे टेढ़ी चोंच वाले और एक पैर वाले कौए पर विशेष दया आती थी. इसलिए उन दोनों विकलांग कौओं के लिए वह अलग से रोटी रख लेती थी. जब और सब कौए रोटी ले कर उड़ जाते थे तब वे दोनों कौए एकसाथ खिड़की पर आते और वह दोनों को रोटी डालती. आराम से अपनाअपना हिस्सा ले कर वे उड़ जाते थे.

रानी ने एक और बात जानी कि कमजोर कौओं में बहुत अधिक धीरज होता है. कभीकभी रानी काम में इतना अधिक व्यस्त होती कि उन दोनों को देख कर भी उन्हें अनदेखा सा कर जाती थी. पर वे दोनों शांत बैठे इंतजार करते रहते थे. एकदो बार तो आधे घंटे से अधिक देर तक दोनों धीरज धरे बैठे रहे थे. उन्हें इस तरह देख कर उस ने मन ही मन उन से माफी मांगी थी और उन्हें रोटी दे दी थी. इतनी देर से भोजन न मिलने पर भी उन में अधीरता नहीं थी, दोनों ने बड़े शांत भाव से रोटी खाई. टेढ़ी चोंच वाले कौए पर उसे अधिक दया आती थी क्योंकि वह रोटी का टुकड़ा बड़ी मुश्किल से उठा पाता था.

कौओं से दोस्ती ने रानी को दार्शनिक भी बना दिया था. वह मानव और पक्षियों की तुलना करने लगती. उसे लगता दोनों में कितनी समानता है. दोनों में लालच है, दोनों में पसंदनापसंद है, दोनों में धीरज है, दोनों में मैत्री और दया भी है.

रानी जब इस प्रकार दोनों की तुलना करती तो उस के मन में एक विचार बारबार आता था कि क्या ये भी मनुष्य को पहचानते हैं. इस मुश्किल का हल भी उसे शीघ्र ही मिल गया. तभी एक अंगरेजी की पत्रिका उस के हाथ लगी. उस में पूरा एक लेख था कि कौए भी आदमी को पहचानते हैं. इस कहानी में एक ऐसे व्यक्ति के अनुभव लिखे हुए थे जिस ने एक कौए को पाल रखा था और वह कौआ हजारों की भीड़ में उसे पहचान कर उस के कंधे पर ही आ कर बैठता था. यह पढ़ कर रानी भी खुश हुई कि ये दोनों कौए जो रोज उस के हाथ की रोटी खा कर जाते हैं उसे जरूर पहचानते होंगे. इस का प्रमाण भी उसे मिल गया. एक दिन सुबह की सैर के लिए निकली तो टेढ़ी चोंच वाला कौआ उड़ता हुआ आया और उस के सिर पर बैठ गया. अचानक इतने बोझ को सिर पर महसूस कर के वह घबरा गई थी और उस ने जोर से धक्का दे कर उसे उड़ा दिया था. घर आ कर उस ने जब इस घटना के बारे में बताया तो सब ने इस का अलगअलग अर्थ लगाया. पति बोले, ‘‘जल्दी नहा लो. कौए कितने गंदे होते हैं.’’

सासूमां बोलीं, ‘‘यह तो बहुत बड़ा अपशकुन है. कौए का सिर पर बैठना घर में किसी की मृत्यु का संकेत देता है. जल्दी मंदिर जाओ और एक चांदी का कौआ दान करो.’’

अनजाने में ही रानी के इस दोस्त ने उसे दुविधा में डाल दिया था. फिर उस ने अंगरेजी पत्रिका के लेख के सहारे सासूमां को समझाया कि कौऐ का यह व्यवहार दोस्ती के कारण था. वह कौआ किसी चांदी के दुकानदार का एजेंट तो था नहीं, इसलिए इस तर्कहीन दान की बात एकदम बेकार है. सासूमां ने भी जब इस पर ध्यान से सोचा तो उन्हें अपने द्वारा बताए गए इस उपाय पर खुद हंसी आने लगी.

जिंदगी अपनी रफ्तार चलती रही. कौए के सिर पर बैठने के अपशकुन का वहम दम तोड़ चुका था. चेन्नई में आना रानी को भा गया था. वह सुबह उठते ही अन्य चेन्नई वालों की तरह आवाज लगाती, ‘‘काका वा (अर्थात कौएजी) आओ और भोजन ग्रहण करो.’’

Romantic Story : वह धोखेबाज प्रेमिका – एक बेवफा के प्यार में बरबाद युवक की कहानी

Romantic Story : अनीता की खूबसूरती के किस्से कालेज में हरेक की जबान पर थे. वह जब कालेज आती तो हर ओर एक समा सा बंध जाता था. वह हरियाणा के एक छोटे से शहर सिरसा के नामी वकील की बेटी थी तथा बेहद खूबसूरत व प्रतिभाशाली थी. चालाक इतनी कि अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी. अभिजात्य व आत्मविश्वास से उस का नूरानी चेहरा हरदम चमकता रहता. वह मुसकराती भी तो ऐसे जैसे सामने वाले पर एहसान कर रही हो. कालेज में एक रसूख वाले नामी वकील की बेटी यदि होशियार और सुंदर हो, तो उस के आगेपीछे घूमने वालों की फेहरिस्त भी लंबी ही होगी.

लेकिन अनीता ने सब युवकों में से नीलेश को चुना जो गरीब और हर वक्त किताबों में खोया रहता था. वह अनीता का ही सहपाठी था, और गांव के एक गरीब किसान का बेटा था. उस के पिता का असमय निधन हो गया था, इसलिए बड़ी मुश्किल से विधवा मां नीलेश को पढ़ा रही थीं व नीलेश हर समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहता था. अनीता को तो नीलेश ही पसंद आया, क्योंकि वह लंबा, हैंडसम और मेहनती नौजवान था. अनीता जबतब कुछ पूछने के बहाने उसे अपने नजदीक लाती गई और देखतेदेखते उन की दोस्ती की चर्चा अब पूरे कालेज में होने लगी. नीलेश खोयाखोया रहने लगा. धीरेधीरे इस मेधावी छात्र की पढ़ाई जहां ठप सी हो गई, वहीं अनीता जो पढ़ाई में औसत दर्जे की थी अब वह उस के बनाए नोट्स पढ़ कर फर्स्ट आने लगी.

इस सब में नीलेश की मेहनत होती. वह रातभर उस के लिए नोट्स बनाता, उस की प्रैक्टिकल की फाइल्स तैयार करता, लैब में ऐक्सपैरिमैंट्स वह करता, लेकिन उस की मेहनत का सारा फल अनीता को मिलता. नीलेश तो बस, अपनी प्रेमिका के प्रेम में ही डूबा रहता. वह उस के अलावा कुछ सोच भी नहीं पाता. यहां तक कि छुट्टी में वह अपनी मां से मिलने गांव भी नहीं जाता. ये सब देख मां भी बीमार रहने लगीं.

नीलेश प्यार के छलावे में इस कदर खो गया कि उसे याद ही नहीं रहता कि गांव में उस की मां भी हैं, जो आठों पहर उस की राह देखती रहती हैं. मां ने अपने जेवर बेच कर उस के कालेज की फीस भरी. मां बड़े किसानों के यहां धान साफ कर के उस की पढ़ाई का खर्च पूरा कर रही थीं. उन के प्रति चाह कर भी नीलेश नहीं सोच पाता, क्योंकि अनीता के साथ उस के प्रश्नोत्तर बनाना, फिर उस के घर जाना, वह कहीं जा रही हो, तो उसे साथ ले जाना, उस के संग पिक्चर व पार्टी अटैंड करना, ये सब काम वह करता. वह इन सब में इतना थक जाता कि उसे अपना भी होश न रहता. कालेज की गैदरिंग में उस ने अनीता को देख कर ही यह गीत गाया था, ‘एक शेर सुनाता हूं मैं, जो तुझ को मुखातिब है, इक हुस्नपरी दिल में है, जो तुझ को मुखातिब है…’

इस गीत को गाने में वह इतना तन्मय हो गया था कि बड़ी देर तक तालियां बजती रही थीं, पर वह सामने कुरसी पर बैठी अनीता को ही ताकता रहा और उस के कान में तालियों की आवाज भी जैसे नहीं पड़ रही थी. अनीता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था. सारे कालेज में वह जूलियट के नाम से जानी जाने लगी थी. हालांकि उस ने इस प्यार में अपना कुछ नहीं खोया. नीलेश ने उसे कभी उंगली से भी नहीं छुआ था.

इधर ऐग्जाम होतेहोते अनीता का मुंबई में रिश्ता तय हो गया. अनीता को क्या फर्क पड़ना था. वह तो मस्त थी. कभी प्रेम में पड़ी ही नहीं थी. वह तो मात्र मनोरंजन और मतलब के लिए नीलेश को इस्तेमाल कर रही थी. आखिर रिजल्ट आया, अनीता अव्वल आई पर नीलेश 2 विषयों में लटक गया. उस का 1 वर्ष बरबाद हो गया. इधर अनीता विवाह कर मुंबई रहने चली गई, जबकि नीलेश को प्यार में नाकामी और अवसाद हाथ लगा.

उस का साल बरबाद हो गया इस का तो उसे गम नहीं हुआ लेकिन जिसे वह दिल ही दिल में चाहने लगा था, उस अनीता के एकाएक चले जाने से वह इतना निराश हो गया कि उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या का प्रयास किया. जब अनीता की बरात आ रही थी, तब नीलेश अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहा था. उस की गरीब मां का रोरो कर बुला हाल था. वह नहीं समझ पा रही थीं कि हर कक्षा में प्रथम आने वाला उस का बेटा आज कैसे फेल हो गया. वह इतना होशियार, सच्चा, ईमानदार, व मेहनती था कि मां ने उस के लिए असंख्य सपने संजोए थे, किंतु एक बेवफा के प्यार ने उसे इतना नाकाम बना दिया कि वह शराब पीने लगा. उस का भराभरा चेहरा व शरीर हड्डियों का ढांचा नजर आने लगा.

Family Story : रिश्तों की डोर – सुधा और रमन के रिश्ते से प्रिया को क्या फर्क पड़ रहा था?

Family Story : बारिश के बाद की शाम अकसर आसमान में एक अलग सी लाली छोड़ जाती है. सुधा भी कुदरत की इस खूबसूरती को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाह रही थी कि अचानक प्रिया की आवाज से उस का ध्यान टूटा, “मम्मा, यह लो आप की चाय.”

प्रिया को पता था कि सुधा को बालकनी में बैठ कर प्रकृति को निहारते हुए चाय पीना बेहद पसंद है. इसलिए जब भी कभी वह कालेज से जल्दी आ जाती तो दोनों मांबेटी साथ बैठ कर चाय पीते और गप्पें मारते.

शाम को फोन की घंटी बजी। सुधा के फोन उठाते ही सामने से प्रिया की आवाज़ आई,”मम्मा, आज मुझे कालेज से आने में देर हो जाएगी. आप परेशान मत होना.”

ठीक है, लेकिन अंधेरा होने से पहले घर आ जाना, मैं खाना बना कर रखूंगी. हां, बाहर से कुछ खा कर मत आना. सुधा की हिदायत सुन कर प्रिया ने भी हामी भर दी. वह मां की चिंता बखूबी समझती थी.

फोन रखते ही सुधा की नजर दीवार पर लगी प्रिया और रमन की तसवीर पर चली गई. रमन प्रिया को गोद में लिए था. यह तसवीर तब की थी जब प्रिया 2 साल की थी और वे तीनों अकसर समंदर किनारे घूमने जाते थे. समंदर किनारे पड़ी रेत से खेलना प्रिया को खूब भाता था. वे तीनों अकसर छुट्टी वाले दिन वहां जाया करते. यही सब सोचतेसोचते सुधा कब 21 साल पीछे चली गई उसे पता ही नहीं चला.

सुधा और रमन की अरैंज्ड मैरिज थी. रमन जहां शांत स्वभाव का व्यक्ति था तो, वहीं सुधा खुशमिजाज, हंसतीखिलखिलाती रहने वाली लड़की.

सुधा के आने से घर में सभी का मन लगा रहता. धीरेधीरे सुधा भी रमन के साथ घरगृहस्थी में रमती गई. लेकिन रमन का कम बोलना, हर बात पर सीमित सा जवाब देना सुधा को अकसर परेशान कर देता. सुधा ने कई बार रमन से उस के इस तरह के व्यवहार को ले कर बात करनी चाही लेकिन हर बार रमन उस की बात को टाल जाता या कोई और बात शुरू कर देता. खैर, सुधा भी उस के व्यवहार के अनुसार खुद को ढालने लगी.

वक्त के कहां पैर होते हैं वह तो बस पंख लगाए उड़ता जाता है. रमनसुधा के जीवन में विवाह के 2 वर्ष बाद प्रिया आ गई. सुधा अकसर सोचती कि प्रिया के आने से घर में रौनक सी आ गई है। शायद रमन के व्यवहार में भी अब बदलाव आ जाए. मगर ऐसा हो न सका.

रमन प्रिया से बहुत प्यार करता था। उस के साथ घंटों खेलना, उस की हर जिद पूरी करना, उसे घुमाने ले जाना, जैसे हर पिता करता है रमन भी प्रिया को सिरआंखों पर रखता. आखिर संतान के सामने तो बड़े से बड़े कद का व्यक्ति भी खुशीखुशी झुक कर उस का खिलौना बन जाता है.

एक शाम अचानक सुधा की सास की तबियत बिगड़ गई. सुधा ने जीजान से उन की सेवा की लेकिन बढ़ती उम्र और अस्थमा की बीमारी के चलते कुछ ही दिनों में वे इस दुनिया को अलविदा कह गईं. अब सारे घर की जिम्मेदारी सुधा पर आ गई.

सास के जाने के बाद ससुरजी और ननद ने उन की यादों को टटोलने के लिए उन की अलमारी खोली, जिसे सुधा की सास के अलावा कोई नहीं खोल सकता था. सास ने सभी को इस की सख्त हिदायत जो दे रखी थी.

अलमारी खोलते ही उस में से रमन और नेहा के बचपन की तसवीरें निकलीं. दोनों भाईबहन खूब लड़ा करते थे लेकिन प्रेम भी भरपूर था. नेहा ने नम आंखों से रमन के हाथ में एक तसवीर थमा दी जिस में मां ने दोनों को तैयार कर के स्कूल ड्रैस में स्टूडियो ले जा कर फोटो खिंचवाया था. सुधा भी सासूमां की अलमारी से उन की डायरियां निकाल रही थी, जिस में वे अपने मन की बातें लिखा करती थीं, साथ ही उन्होंने कई खत भी संभल कर रखे थे जो उन के मातापिता व भाइयों द्वारा लिखे गए थे. इस में एक खत रमन का भी था जिसे देख कर सुधा थोड़ा चौंक गई.

खत को सभी के सामने पढ़ना संभव नहीं था इसलिए उस ने उसे सभी की नजरों से छिपा कर मुट्ठी में कैद कर लिया. शाम के वक्त सुधा रमन के लिखे उस खत को ले कर छत पर गई. सुधा ने खत को खोल कर पढ़ना शुरू किया और खत के अंत होने से पहले ही सुधा की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. खत में रमन ने सुधा से विवाह न करने का जिक्र किया था, चूंकि मां के सामने वह इस तरह की बात नहीं कह सकता था इसलिए उस ने खत का सहारा लिया था. दरअसल, रमन अपने औफिस में साथ काम करने वाली एक लड़की को पसंद करता था और उसी से विवाह करना चाहता था. लेकिन समाज और मातापिता के दबाव के कारण वह कभी भी अपनी बात नहीं रख पाया था और दबाव में आ कर ही उस ने सुधा से शादी करने के लिए हां कर दी थी.

शाम जैसेजैसे ढलने लगी थी सुधा को अपने जीवन का सूरज भी ढलता हुआ नजर आ रहा था. उसे आज इस बात का एहसास हो गया था कि रमन की इतनी सालों की चुप्पी के पीछे का कारण उस का जबरदस्ती हुआ विवाह था. पर सुधा की भी क्या गलती थी उस ने तो हर कदम पर रमन का साथ दिया. उस के परिवार को अपना माना…लेकिन अब वह क्या करे?

सुधा ने कुछ दिन बाद घर का माहौल सामान्य होने पर रमन से अपने मन की बात खत में लिख कर कह दी-
‘रमन, मैं जानती हूं कि शायद यह समय इन बातों का नहीं है लेकिन मैं अब इस तरह सारा सच जान कर इस रिश्ते में नहीं रह सकती. पतिपत्नी के रिश्ते की नींव सचाई पर खड़ी होती है लेकिन इस रिश्ते में आप का सच तो हमेशा अधूरा ही रहा. आप ने मांजी को खत लिख कर अपने मन की बात तो बता दी लेकिन क्या कभी मेरी इच्छा जानने की कोशिश की? मैं ने इस शादी में खुद को हमेशा अकेला ही पाया लेकिन आप शांत स्वभाव के हैं यह सोच कर खुद को मनाती रही.

‘आज जब सारा सच मेरे सामने है तो मैं कैसे आप के साथ इस अधूरे रिश्ते में रह लूं… मैं हमारे इस रिश्ते को अच्छे मोड़ पर छोड़ कर जाना चाहती हूं, ताकि प्रिया जब बड़ी हो तो वह खुद को अकेला महसूस न करे.’

सुधा ने कुछ दिनों बाद अलग रहने का फैसला कर लिया. रमन ने उसे समझाना चाहा लेकिन सुधा के आगे उस की एक न चली. हां, प्रिया से मिलने रमन आता रहता था और सुधा ने भी कभी प्रिया को रमन से अलग करने की कोशिश नहीं की. सुधा और रमन बेशक अलग हो गए थे लेकिन प्रिया उन के बीच एक महीन लेकिन बेहद मजबूत डोर की तरह थी.

प्रिया अकसर पापा के बारे में पूछती तो सुधा उसे रमन के पास मिलाने ले जाती. स्कूल में पेरैंट्स मीटिंग में भी दोनों साथ जाते, ताकि प्रिया को कभी किसी एक की भी कमी महसूस न हो. समय के साथसाथ प्रिया भी समझने लगी थी कि उस के मातापिता अलग रहते हैं. लेकिन उस ने कभी सुधा से कोई सवाल नहीं किया. सुधा भी रमन को ले कर बहुत सामान्य व्यवहार करती. अलग रहते हुए भी दोनों ने कभी प्रिया को अलगाव का एहसास नहीं होने दिया.

समय के साथसाथ उस ने भी मातापिता के फैसले को स्वीकार कर लिया था. आज भी रमन प्रिया से मिलने सुधा के घर आता है और तीनों बैठ कर घंटों बतियाते हैं. न रमन ने कभी सुधा को ले कर प्रिया से कुछ गलत कहा और न ही सुधा ने कभी रमन का सच प्रिया से जाहिर किया. प्रिया का जब मन करता वह भी पिता से मिलने चली जाया करती.

मातापिता का अलगाव कभी प्रिया के जीवन में खालीपन नहीं लाया.
मातापिता का तलाक या अलगाव का असर बच्चों पर बहुत गहरा पड़ता है. पर सूझबूझ और समझदारी से रिश्ते निभाए जाएं और बच्चों का साथ मिलें तो सारी समस्याएं चुटकियों में हल हो जाती हैं.

सुधा तसवीर को देखते हुए यही सब सोच रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी और सुधा एक झटके में अतीत से वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही सामने रमन और प्रिया खड़े थे.

“मम्मा, जल्दी खाना लगा दो बहुत जोर की भूख लगी है, हम तीनों आज साथ खाना खाएंगे,” कहतेकहते प्रिया रमन और सुधा के गले में हाथ डाल कर झूल गई.

सुधा और रमन भी एकदूसरे को देखकर मुसकरा दिए।

Best Hindi Story : अंबानी के बेटे की शादी – गरीब पिता की बेचारगी

Best Hindi Story : एक रिटायर्ड शिक्षक, बेटी की शादी की तैयारी में दिनरात जुटा है. इस पिता का डर बस यही है कि कहीं वह अपनी बेटी की उम्मीदों पर खरा न उतर सका तो?

मैं एक सरकारी स्कूल से सेवानिवृत्त शिक्षक हूं. मुकेश अंबानी, उन के घर का कोई सदस्य, उन के नौकरचाकर, उन के घर के कुत्तेबिल्लियां और उन के घर के ही क्या वह जिस सड़क पर रहते हैं उस पर आवारा घूमने वाले जानवर आदि में से किसी से भी मेरा किसी भी जन्म का कोई परिचय नहीं है. बताने की कतई आवश्यकता नहीं है कि मैं इस शादी में आमंत्रित नहीं था, मेरी इतनी हैसियत नहीं पर जो बात बताने की है वह यह कि यदि मैं आमंत्रित होता तो भी मैं इस शादी में कतई न जाता. कारण यह नहीं कि उन्होंने टैरिफ बढ़ा दिया है. न, मु झे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. नहीं, मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं.

भला एक सरकारी स्कूल का रिटायर्ड टीचर कितना अमीर हो सकता है. ऐसा है कि इस देश में आम आदमी के बजट में हर रोज कहीं न कहीं से सेंध लगती ही है. कभी दूध के पैकेट का दाम बढ़ जाता है, किसी दिन अंडों का, कभी चावलदाल तो कभी तेलमसाले महंगे हो जाते हैं.

अब मोबाइल के लिए तो जियो से बीएसएनएल में पोर्ट किया जा सकता है. रोजमर्रा की जरूरत की इन चीजों के लिए कहीं कोई पोर्ट करने का विकल्प हो तो मैं भी अंबानी से नाराजगी रखूं. इस देश में आम आदमी ने महंगाई के आगे समर्पण कर दिया है. मैं भी इस का अपवाद नहीं हूं.

न ही मेरे अंदर किसी प्रकार की अकड़ है जो मु झे वहां जाने से रोकती हो. बड़ी अकड़ रखने वाले, अंबानी को दिनरात गरियाने वाले तेजस्वी और तेजप्रताप जब अंबानी की थाली में मलाई चाटने पहुंच सकते हैं तो मेरी क्या बिसात. न ही ऐसा है कि मैं कोई साधु आदमी हूं जिसे राजसी चमकदमक, स्वाद की अंतिम सीमा तक स्वादिष्ठ पुएपकवान में मेरी कोई रुचि नहीं. न ही ऐसा है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाले हीरोहीरोइनों को लाइव देखने का मेरा मन न हो और न ही ऐसा है कि तेज संगीत पर नाचती अप्सरा सी सौंदर्य प्रतिमाओं के मादक हावभाव मु झे प्रभावित नहीं करते.

मेरे न जाने की विवशता का कारण है कि अगले महीने मेरी बिटिया का विवाह सुनिश्चित हुआ है. जब से शादी की तारीख तय हुई है, मु झे कहीं आनेजाने के लिए रिकशा लेना भी फुजूलखर्ची लगता है. अब मु झे दूर की जगह भी इतनी दूर नहीं लगती कि रिकशा लिया जाए.

हर पिता की तरह मैं ने भी अपनी बिटिया की शादी की तैयारी उसी दिन से शुरू कर दी थी जब उस का जन्म हुआ था. लेकिन मुकेश अंबानी के बेटे की शादी का सुन मु झे ऐसा लगने लगा है जैसे मैं ने अपनी बेटी की शादी की तैयारी शुरू करने में बड़ी देर कर दी. मु झे अपनी बिटिया की शादी की तैयारी उस के जन्म से नहीं, अपने जन्म से ही शुरू कर देनी चाहिए थी.

मेरे ऐसा सोचने का कारण यह नहीं कि इतने ही दिनों में महंगाई बहुत बढ़ गई है. कारण यह है कि अंबानी के बेटे की शादी के बाद शादी को ले कर मेरी पत्नी और बेटी की आकांक्षाओं व सपनों ने ऐसी उड़ान भरी है कि जिस से मैं आतंकित हूं.

कल हम लोग बिटिया के लिए लहंगा लेने गए थे. इंगेजमैंट के लिए अलग और शादी के लिए अलग लहंगा लेना था. 20-25 हजार रुपए से कम का कोई लहंगा मेरी पत्नी और बेटी को पसंद आ ही नहीं रहा था.

राधिका ने जो लहंगा पहना था, वह कैसा था, कितना सुंदर था, बिटिया बारबार बता रही थी. बाजार मेरे जैसे लोगों को बख्शने के लिए हरगिज तैयार न था. फलां हीरोइन ने फलां फिल्म में जो लहंगा पहना था वह तो आप के बाप की हैसियत से बाहर है. सो, आप के लिए यह फर्स्ट कौपी.

आज तक हजारों बच्चों की कौपियां चैक करने वाले इस बूढ़े मास्टर को इस फर्स्ट कौपी के चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल हो रहा है. एक व्यंग्यकार ने कहा था कि हमारी पीढ़ी की पूरी ताकत लड़कियों की शादी करने में खर्च हो रही है. पता नहीं ऐसा है कि नहीं पर मेरी तो पूरी ताकत मेरी बिटिया की शादी करने में खर्च हो रही है.

ऐसा नहीं कि इन खर्चों का मु झे पूर्वानुमान न था. योजनाबद्ध तरीके से संतुलित जीवन जीने का आदी रहा हूं. एकएक चीज की डिटेलिंग की थी मैं ने पर इस बीच अंबानी के बेटे की शादी हो गई.

अब इस के बाद बच्चों की सोच ही बदल गई. अगर अंबानी के बेटे की शादी में आमिर, शाहरुख और सलमान नाचे थे, रिहाना और जस्टिन बीबर आए थे तो क्या वे इतने गएगुजरे हैं कि उन की शादी में शहर का सब से महंगा डीजे भी नहीं बुक हो सकता.

हर बात पर अंबानी के बेटे की शादी की बात कर मेरी बिटिया मेरे सामने एक ऐसा बैंचमार्क रख देती है जिस तक पहुंचना मेरे बस की बात नहीं.

मेरी बिटिया के सपनों की इस उड़ान ने इस बूढ़े मास्टर को उस के जीवन की सब से कठिन परीक्षा में डाल दिया है, डरता हूं कहीं एक अच्छे पिता होने की इस परीक्षा में असफल न हो जाऊं.

खैर, मेरे जैसे लोग जब भी कुछ महंगा समान खरीदते हैं तो उन की एक ही अपेक्षा रहती है कि वह चले, खूब चले.

सो, अंबानीजी, मैं भी आप को बेटे की शादी की शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि उन की शादी खूब चले. सातों जनम तक चले क्योंकि अगर दोबारा फिर इसी तरह की शादी हुई तो मु झ जैसे टीचर की बेटी की शादी होगी ही नहीं और हो भी गई तो टूटने से डबल प्रहार हो जाएगा.

लेखक : संतोष कुमार अकवि

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