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कालगर्ल-भाग 2 : आखिर उस लड़की में क्या था कि मैं उसका दीवाना हो गया?

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली. मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’ मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी. थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया. इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे. प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’ ‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’ प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था. मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा. तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया. प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’ मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’ इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’ डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे. ‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

 

भूखा भारत

अफ्रीका के कुछ देशों को छोड़ दें तो भारत की आम जनता की हालत दुनिया में सब से बुरी है जबकि दुनिया के 100 सब से अमीरों में भारत के कितने ही गुजराती उद्योगपति हैं, वही गुजरात, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह आते हैं. भूखों की गिनती में एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने भारत को 122 में से 107वां स्थान दिया है क्योंकि यहां सारा पैसा कुछ ही हाथों में जा रहा है.

यह वह देश है जो ठीकठीक अपना खाना उगा लेता है. यह अनाज का निर्यात भी करता है. यह कम से कम 22 करोड़ भूखे लोगों को पालता है, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 80 करोड़ को खाने का अनाज देता है. सो, पक्का है कि देश का प्रबंध खराब ही नहीं, बेहद खराब है और इस की जिम्मेदारी उन पर नहीं जिन्होंने 60 साल राज किया, उन पर है जो पिछले 8 सालों से राज कर रहे हैं क्योंकि ये लोग अच्छे दिनों का वादा कर के सत्ता में आए. पिछली सरकार निकम्मी थी, इसीलिए तो जनता ने उसे वोट के जरिए बाहर किया.

मौजूदा सत्ताधारी, पढ़ेलिखे, नौकरीपेशा, अमीर देश के भूखों के बारे में सोचते ही नहीं हैं. उन के लिए ये भूखे तो देश की गायों की तरह हैं जिन के नाम पर होहल्ला मचाया जाता है पर जैसे ही वे दूध देना बंद कर दें, उन्हें सडक़ों पर तिलतिल कर मरने दिया जा रहा है. इस देश के 20 करोड़ या 80 करोड़ लोग, जितने भी, अगर रात को भूखे सो रहे हैं तो सत्ता में बैठे किसी नेता, नौकरशाह, जज, सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट या इकोनौमिस्ट को रात में नींद नहीं आनी चाहिए.

हर जिंदा जना असल में देश के लिए एक सोना उगलने वाली मशीन होना चाहिए. एक जमाने में अगर हर नए बच्चे का धूमधाम से स्वागत होता था तो इसलिए कि वह नया बच्चा देश व समाज की प्रकृति में अपना योगदान देगा. वह बोझ नहीं है. बोझ तो तब बनता है जब देश में निठल्लों, निकम्मों को आदर दिया जाने लगता है और यह आधा भूखा बजाय काम करने के, अपने भाग्य को कोसने लगता है. हैरानी यह है कि देश की मौजूदा भगवा सरकार की सोच भी यही है कि भूखा पिछले जन्मों के पापों का फल भोग रहा है.

दुनिया का सब से बड़ी आबादी वाला देश चीन आज परेशान है कि वहां बच्चे नहीं हो रहे. हर माह पैदा होने वाले बच्चों की गिनती पिछले माह से गिर रही है. जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए एक औरत को औसतन 2.1 बच्चे पैदा करने चाहिए पर चीन में यह दर 1.1 और 1.2 के बीच है. लड़कियां बच्चे पैदा ही नहीं करना चाह रहीं. ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था पटरी से न लुढक़ जाए, यह शी जिनपिंग को परेशान कर रहा है. जापान भी इसी समस्या से जूझ रहा है.

हमारे यहां भूखे हैं तो इसलिए कि देश व समाज द्वारा उन के मुंह के निवाले छीने जा रहे हैं, उन के हाथों को कमजोरी, कुपोषण से बांधे जा रहे हैं. इस की जिम्मेदार अकेली सरकार है जिसे मंदिर बनवाने की लगी है, भूखों को खिलाने, पढ़ाने, हुनर सिखाने की नहीं.

नामर्द: तहजीब ने मुश्ताक पर नामर्द होने की तोहमत क्यों लगाई?

तहजीब के अब्बा इशरार ने अपनी लड़की को दिए जाने वाले दहेज को गर्व से देखा. फिर अपने साढ़ू तथा नए बने समधी से पूछा, ‘‘अल्ताफ मियां, कुछ कमी हो तो बताओ?’’

‘‘भाई साहब, आप ने लड़की दी, मानो सबकुछ दे दिया,’’ तहजीब के मौसा व नए रिश्ते से बने ससुर अल्ताफ ने कहा, ‘‘बस, जरा विदाई की तैयारी जल्दी कर दें.’’

शीघ्र ही बरात दुलहन के साथ विदा हो गई. तहजीब का मौसेरा भाई मुश्ताक अपनी मौसेरी बहन के साथ शादी करने के पक्ष में नहीं था. उस का विचार था कि यह व्यवस्था उस समय के लिए कदाचित ठीक रही होगी जब लड़कियों की कमी रही होगी. परंतु आज की स्थिति में इतने निकट का संबंध उचित नहीं. किंतु उस की बात नक्कारखाने में तूती के समान दब कर रह गई थी. उस की मां अफसाना ने सपाट शब्दों में कहा था, ‘‘मैं ने खुद अपनी बहन से उस की लड़की को मांगा है. अगर वह इस घर में दुलहन बन कर नहीं आई तो मैं सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’’

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विवश हो कर मुश्ताक को चुप रह जाना पड़ा था. तहजीब जब अपनी ससुराल से वापस आई तो वह बहुत बुझीबुझी सी थी. वह मुसकराने का प्रयास करती भी तो मुसकराहट उस के होंठों पर नाच ही न पाती थी. वह खोखली हंसी हंस कर रह जाती थी. तहजीब पर ससुराल में जुल्म होने का प्रश्न न था. दोनों परिवार के लोग शिक्षित थे. अन्य भी कोई ऐसा स्पष्ट कारण नहीं था जिस में उस उदासी का कारण समझ में आता.

‘‘तुम तहजीब का दिल टटोलो,’’ एक दिन इशरार ने अपनी पत्नी रुखसाना से कहा, ‘‘उसे जरूर कोई न कोई तकलीफ है.’’

‘‘पराए घर जाने में शुरू में तकलीफ तो होती ही है, इस में पूछने की क्या बात है?’’ रुखसाना बोली, ‘‘धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’ ‘‘जी हां, जब आप पहली बार इस घर से गई थीं तब शायद ऐसा ही मुंह फूला हुआ था, खिली हुई कली के समान गई थीं. तहजीब बेचारी मुरझाए हुए फूल के समान वापस आई है,’’ इशरार ने शरारत के साथ कहा.

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‘‘हटो जी, आप तो चुहलबाजी करते हैं,’’ रुखसाना के गालों पर सुर्खी दौड़ गई, ‘‘मैं तहजीब से बात करती हूं.’’

रुखसाना ने बेटी को कुरेदा तो वह उत्तर देने की अपेक्षा आंखों में आंसू भर लाई. ‘‘तुझे वहां क्या तकलीफ है? मैं आपा को आड़े हाथों लूंगी. उन्हीं के मांगने पर मैं ने तुझे उन की झोली में डाला है. मैं ने उन से पहले ही कह दिया था कि मेरी बिटिया नाजों से पली है. किसी ने उस के काम में नुक्ताचीनी निकाली तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, अम्मीजान, मुझ से किसी ने कुछ कहा नहीं है,’’ तहजीब ने धीमे से कहा.

‘‘फिर?’’

कुछ कहने की अपेक्षा तहजीब फिर आंसू बहाने लगी. नकविया तहजीब की सहेली थी. वह एक संपन्न घराने की थी. जिस समय तहजीब की शादी हुई थी उस समय वह लंदन में डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी. उसे शादी में बुलाया गया था परंतु यात्रा की किसी कठिनाई के कारण वह समय पर नहीं आ सकी थी. उस का आना कुछ दिन बाद हो पाया था. भेंट होने पर रुखसाना ने उस से कहा, ‘‘बेटी, तहजीब ससुराल से आने के बाद से बहुत उदास है. कुछ पूछने पर बस रोने लगती है. जरा उस के दिल को किसी तरह टटोलो.’’

‘‘आप फिक्र न करें, अम्मीजान, मैं सबकुछ मालूम कर लूंगी,’’ नकविया ने कहा और फिर वह तहजीब के कमरे में घुस गई.

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‘‘अरे यार, तेरा चेहरा इतना उदासउदास सा क्यों है?’’ उस ने तहजीब से पूछा.

‘‘बस यों ही.’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई. साफसाफ बता कि क्या बात है? कहीं दूल्हा भाई किसी दूसरी से तो फंसे हुए नहीं हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. वे कहीं फंसने लायक ही नहीं हैं,’’ तहजीब बहुत धीमे से बोली, ‘‘वे तो पूरी तरह ठंडे हैं.’’

‘‘क्या?’’ नकविया ने चौंक कर कहा, ‘‘तू यह क्या कह रही है?’’

‘‘हां, यही तो रोना है, तेरे दूल्हा भाई पूरी तरह ठंडे हैं, वे नामर्द हैं.’’ नकविया सोच में डूब गई, ‘भला वह पुरुष नामर्द कैसे हो सकता है जो कालेज के दिनों में घंटों एक लड़की के इंतजार में खड़ा रहता था और कालेज आतेजाते उस लड़की के तांगे का पीछा किया करता था.’

‘‘नहीं, वह नामर्द नहीं हो सकता,’’ नकविया के मुख से अचानक निकल गया.

‘‘तू दावे के साथ कैसे कह सकती है? भुगता तो मैं ने उसे है. एकदो नहीं, पूरी 5 रातें.’’

‘‘अरे यार, मैं डाक्टर हूं. मैं जानती हूं कि ऐसे 99 प्रतिशत मामले मनोवैज्ञानिक होते हैं. लाखों में कोई एकाध आदमी ही कुदरती तौर पर नामर्द होता है.’’

‘‘तो शायद तेरे दूल्हा भाई उन एकाध में से ही हैं,’’ तहजीब मुसकराई.

‘‘अच्छा, क्या तू उन्हें मेरे पास भेज सकती है? मैं जरा उन का मुआयना करना चाहती हूं.’’

‘‘भिजवा दूंगी, जरा क्या, पूरा मुआयना कर लेना. तेरी डाक्टरी कुछ नहीं करने की.’’

‘‘तू जरा भेज तो सही,’’ नकविया ने इतना कहा और उठ खड़ी हुई. तहजीब की मां ने जब नकविया से तहजीब की उदासी का कारण जाना तो वह सनसनाती हुई अपनी बहन के घर जा पहुंची. उस ने उन को आड़े हाथों लिया, ‘‘आपा, तुम्हें अपने लड़के के बारे में सबकुछ पता होना चाहिए था. ऐसी कोई कमी थी तो उस की शादी करने की क्या जरूरत थी? मेरी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने.’’

‘‘छोटी, तू कहना क्या चाहती है?’’ मुश्ताक की मां अफसाना ने कुछ न समझते हुए कहा.

‘‘अरे, जब लड़का हिजड़ा है तो शादी क्यों रचा डाली? कम से कम दूसरे की लड़की का तो खयाल किया होता,’’ रुखसाना हाथ नचा कर बोली.

‘‘छोटी, जरा मुंह संभाल कर बात कर. मेरी ससुराल में ऐसे मर्द पैदा हुए हैं जिन्होंने 3-3 औरतों को एकसाथ खुश रखा है. यहां शेर पैदा होते हैं, गीदड़ नहीं.’’ बातों की लड़ाई हाथापाई में बदल गई. अल्ताफ ने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया.

रुखसाना बड़बड़ाती हुई चली गई. इस प्रकरण को ले कर दोनों परिवारों के मध्य बहुत कटुता उत्पन्न हो गई. एक दिन अल्ताफ और इशरार भी परस्पर भिड़ गए, ‘‘मैं तुम्हें अदालत में खींचूंगा. तुम पर दावा करूंगा. दहेज के साथसाथ और सारे खर्चे न वसूले तो नाम पलट कर रख देना,’’ इशरार ने गुस्से से कहा तो अल्ताफ भी पीछे न रहा. दोनों में हाथापाई की नौबत आ गई. कुछ लोग बीच में पड़ गए और उन्हें अलगअलग किया. दोनों तब वकीलों के पास दौड़े. तहजीब मुश्ताक के पास यह संदेश भेजने में सफल हो पाई कि उसे उस की सहेली नकविया याद कर रही है. एक दिन मुश्ताक नकविया के घर जा पहुंचा.

‘‘आइए, आइए,’’ नकविया ने मुश्ताक का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘मेरे कालेज जाने से पहले और लौट कर आने से पहले तो मुस्तैदी से रास्ते में साइकिल लिए तांगे का पीछा करने को तैयार खड़े मिलते थे, और अब बुलाने के इतने दिन बाद आए हो.’’

नकविया ने मुसकरा कर यह बात कही तो मुश्ताक झेंप गया. फिर दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. ‘‘तहजीब के साथ क्या किस्सा हो गया? मैं उस की सहेली होने के साथसाथ तुम्हारे लिए भी अनजान नहीं हूं. मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ जिस से 2 घरों के बीच खिंची तलवारों को म्यानों में पहुंचाया जा सके?’’

‘‘मैं बचपन से तहजीब को अपनी बहन मानता रहा हूं. वह भी मुझे ‘भाईजान’ कहती रही है. उस के साथ जिस्मानी ताल्लुक रखना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम है. तुम ही बताओ, इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ नकविया मुश्ताक को कोई उत्तर नहीं दे सकी. तब उस ने बात का पहलू बदल लिया, वह दूसरी बातें करने लगी. जब मुश्ताक जाने लगा तो उस ने वादा किया कि वह रोज कुछ देर के लिए आएगा जब तक कि वह इंगलैंड नहीं चली जाती.

फिर नकविया तथा मुश्ताक दोनों एकदूसरे के निकट आते चले गए. एक दिन नकविया ने तहजीब को बताया, ‘‘सुन, तेरा पति तो पूरा मर्द है. उस में कोई कमी नहीं है. उस के दिल में तेरे लिए जो भावना है, उसे मिटाना बड़ा मुश्किल काम है,’’ फिर नकविया ने सबकुछ बता दिया. तहजीब बहुत देर तक कुछ सोचती रही. फिर बोली, ‘‘उन का सोचना ठीक लगता है. सचमुच, इतने नजदीकी रिश्तों में शादी नहीं होनी चाहिए. अब कुछ करना ही होगा.’’ फिर तहजीब और मुश्ताक परस्पर मिले और उन के बीच एक आम सहमति हो गई. कुछ दिन बाद मुश्ताक ने तहजीब को तलाक के साथ मेहर का पैसा तथा सारा दहेज भी वापस भेज दिया.

‘‘मैं दावा करूंगा. क्या समझता है अल्ताफ अपनेआप को. जब लड़का हिजड़ा था तो क्यों शादी का नाटक रचा,’’ तहजीब के अब्बा गुस्से से बोले.

‘‘नहीं अब्बा, नहीं. अब हमें कुछ नहीं करना है. मुश्ताक में कोई कमी नहीं थी. दरअसल, मैं ही उस से पिंड छुड़ाना चाहती थी,’’ तहजीब ने बात समाप्त करने के उद्देश्य से इलजाम अपने ऊपर ले लिया.

‘‘लेकिन क्यों?’’ उस की मां ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा.

‘‘मुझे वे पसंद नहीं थे.’’

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‘‘अरे बेहया,’’ मां चिल्लाईं, ‘‘तू ने झूठ बोल कर पुरानी रिश्तेदारी को भी खत्म कर दिया,’’ उन्होंने तहजीब के सिर के बालों को पकड़ कर झंझोड़ डाला. फिर उस के सिर को जोर से दीवार पर दे मारा. कुछ दिनों बाद नकविया लंदन वापस चली गई. लगभग 5 माह बाद नकविया फिर भारत आई. वह अपने साथ 1 व्यक्ति को भी लाई थी. उस को ले कर वह तहजीब के घर गई. तहजीब के मांबाप से उस व्यक्ति का परिचय कराते हुए नकविया ने कहा, ‘‘ये मेरे साथ लंदन में डाक्टरी पढ़ते हैं. लखनऊ में इन का घर है. आप चाहें तो लखनऊ जा कर और जानकारी ले सकते हैं. तहजीब के लिए मैं बात कर रही हूं.’’ लड़का समझ में आ जाने पर अन्य बातें भी देखभाल ली गईं, फिर शादी भी पक्की हो गई.

‘‘बेटी, तुम शादी कहां करोगी, हिंदुस्तान में या इंगलैंड में?’’ एक दिन तहजीब की मां ने नकविया से पूछा.

‘‘अम्मीजान, मैं अपने ही देश में शादी करूंगी. बस, जरा मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए.’’

‘‘कोई लड़का देख रखा है क्या?’’

‘‘हां, लड़का तो देख लिया है. यहीं है, अपने शहर का.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘आप का पहले वाला दामाद मुश्ताक,’’ नकविया ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हाय, वह… वह नामर्द. तुम्हें उस से शादी करने की क्या सूझी?’’

‘‘अम्मीजान, वह नामर्द नहीं है,’’ नकविया ने तब उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया. ‘‘हम ही गलती पर थे. हमें इतनी नजदीकी रिश्तेदारी में बच्चों की शादी नहीं करनी चाहिए. सच है, जहां भाईबहन की भावना हो वहां औरतमर्द का संबंध क्यों बनाया जाए,’’ तहजीब की मां ने अपनी गलती मानते हुए कहा.

मेरे पति और उनके दोस्त चाहते हैं कि वे एक दूसरे की बीवी के साथ सेक्स करें, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं बैंक में कार्यरत हूं. मेरा विवाह 6 महीने पहले हुआ है. 4 माह से मायके में हूं. कारण, मैं ने पति की एक अनैतिक बात नहीं मानी, जिस कारण वे मुझ से नाराज हैं. शादी के बाद हम इन के एक नवविवाहित दोस्त दंपती के साथ हनीमून पर गए थे. वहां ये दोनों दोस्त चाहते थे कि एक दूसरे की बीवी के साथ सहवास करें. दोस्त की बीवी इस के लिए सहमत थी, पर मुझे ऐतराज था. अत: मैंने इस के लिए साफ इनकार कर दिया. हनीमून के बाद हम घर लौट आए. यहां आ कर भी पति ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. इस बात को ले कर काफी कलह हुई और मैं अपने मायके लौट आई. क्या मुझे पति से तलाक मिल सकता है?

जवाब

आप के पति की मांग अनुचित है, पर इस के लिए आप को घर छोड़ने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी. यौन आनंद के लिए युवा इस तरह के प्रयोग अकसर करते हैं. आप यदि वास्तव में इस प्रयोग को परंपरा के विरुद्ध मानती हैं तो छोड़ दें पर इस की वजह से तलाक की नौबत आ जाए, यह भी गलत होगा.

Holi Special: होली पर ऐसे बनाएं कूलकूल ठंडाई

होली के मौसम में ठंडाई का अपना अलग ही मजा होता है. पहले के समय में शादी समारोहों में ठंडाई का इस्तेमाल होता था. अब बहुत सारे लोग कोल्ड ड्रिंक की जगह ठंडाई पीने लगे हैं. ठंडाई ज्यादातर बादाम के इस्तेमाल से बनती है. बादाम की तासीर गरम होती है, लेकिन उन को पानी में रात भर भिगो दें तो उन की तासीर बदल कर ठंडी हो जाती है. होली के अवसर पर भी लोग ठंडाई पी कर इस का आनंद लेते हैं.

ज्यादातर बनीबनाई ठंडाई को पानी या दूध में डाल कर इस्तेमाल किया जाता है. यह मेवों के मिश्रण से तैयार किया जाता है. अगर खुद ठंडाई बना कर पीना पसंद करें, तो यह काम काफी आसान होता है.

ठंडाई बनाने की सामग्री

बादाम 50 ग्राम,

खसखस 30 ग्राम,

तरबूज के छिले हुए बीज 20 ग्राम,

खरबूजे के छिले हुए बीज 20 ग्राम,

ककड़ी के छिले हुए बीज 20 ग्राम,

सौंफ 50 ग्राम, काली मिर्च 10 ग्राम,

देसी गुलाब की सूखी पंखुडि़यां 20 ग्राम,

केसर 5-6 पत्तियां,

हरी इलायची 5,

बीज निकाले हुए मुनक्का 8,

मिश्री 10 ग्राम, दूध 1 लीटर.

ठंडाई बनाने की विधि

बादाम, खसखस, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, ककड़ी के बीज, सौंफ, गुलाब की पंखुडि़यां, काली मिर्च, इलायची और मुनक्का को पानी में भिगो दें.

सभी सामग्री को रात भर (करीब 5-6 घंटे) पानी में भीगने दें. सुबह बादाम के छिलके हटा दें और सारी सामग्री पानी सहित अच्छी तरह बारीक पीस लें.

सिलबट्टे पर पीस सकें तो बहुत अच्छा है या ग्राइंडर में जितना हो सके उतना बारीक पीस लें.

इस का पानी कतई न फेंके. यह पानी बहुत फायदेमंद होता है.

पिसा हुआ तैयार पेस्ट अलग रख लें.

दूध में मिश्री व केसर डाल कर उबालें और ठंडा कर लें.

पिसी हुई सामग्री में 1 गिलास पानी डाल कर साफ कपड़े या बारीक छलनी से छान लें. थोड़ाथोड़ा कर के पानी डालते जाएं और छानते जाएं. ये करीब 2 गिलास होना चाहिए.

छलनी से निकले पानी में तैयार किया दूध मिला दें.

इस तरह आप के पास 6 गिलास स्वादिष्ठ ठंडाई तैयार हो जाएगी.

इस स्वादिष्ठ और फायदेमंद ठंडाई का मजा परिवार वालों या दोस्तों के साथ लें.

ठंडाई के फायदे

ठंडाई पीने से गरमी की वजह से शरीर को होने वाले नुकसानों से बचाव होता है.

आंखों में जलन व पेशाब में जलन जैसी तकलीफें इस से ठीक हो जाती हैं.

ठंडाई पीने से लू से बचाव होता है.

बादामों से भरपूर ठंडाई पीने से दिमाग की कूवत में इजाफा होता है.

यह दिल के लिए भी फायदेमंद होती है.

ठंडाई पीने से पेट साफ रहता है और कफ में आराम मिलता है.

ठंडाई में मौजूद तरबूज, खरबूज व ककड़ी के बीज किडनी और पेशाब संबंधी तकलीफों में फायदा पहुंचाते हैं.

Crime Story : सिर्फ एक भूल

सौजन्या- मनोहर कहानियां 

तनु ने भावनाओं में बह कर सुभाष से शादी तो कर ली, लेकिन जब साथ रहने की बात आई तो उस की भावनाओं पर मां की ममता भारी पड़ी. पिता थे नहीं, मां ने अभावों में खूनपसीना बहा कर उसे और उस के भाईबहन को पाला, पढ़ाया- लिखाया था. मां के त्याग तपस्या की सोच कर उस ने सुभाष के साथ रहने से मना कर दिया. परिणामस्वरूप…

कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’  ‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही…’’

मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था.

बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.

कोई और रास्ता न देख मैनेजर दुर्गेश पटेल ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर कमरा खोला तो अंदर का दृश्य देख कर होश उड़ गए. कमरे के बैड पर कस्टमर के साथ आई युवती चित पड़ी हुई थी. उस का चेहरा खून में डूबा हुआ था. मतलब उस के साथ आया युवक उस की हत्या कर के फरार हो गया था.

होटल नटराज उज्जैन का जानामाना होटल था, जिस के प्रबंधक और मालिक इंदौर के एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे. उन के होटल में इस तरह की घटना पहली बार घटी थी, इसलिए होटल के सभी कर्मचारी परेशान हो गए. होटल के अन्य ग्राहकों को जब इसबात की जानकारी मिली तो सब घबरा गए. जरा सी देर में होटल के कमरा नंबर 303 के सामने कस्टमर्स की भीड़ एकत्र हो गई.

मामला हत्या का था. होटल के प्रबंधक मालिक और पुलिस को खबर देना जरूरी था. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने फोन से इस मामले की जानकारी थाना नानाखेड़ा के साथ होटल के मालिक को दे दी.

सूचना पाते ही थाना नानाखेड़ा के प्रभारी ओ.पी. अहीर पुलिस टीम के साथ होटल नटराज पहुंच गए. उन्होंने सरसरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस वारदात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कमरा नंबर 303 होटल की तीसरी मंजिल पर था. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने देखा, जिस युवती का शव बैड पर खून से सराबोर पड़ा था, उस की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. चेहरेमोहरे से वह किसी सामान्य और शरीफ घर की दिख रही थी.

पुलिस समझ नहीं पाई

मंजर खौफनाक भी था और मार्मिक भी. जिसे देख पुलिस टीम भी स्तब्ध थी. पूछताछ में होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल ने ओ.पी. अहीर को बताया कि मृतका जिस युवक के साथ आई थी, उस की उम्र 23 साल के आसपास रही होगी. उस की साथी युवती के कंधों पर एक कैरीबैग था. देखने में वह किसी कालेज की छात्रा लगती थी. उन्होंने शाम तक के लिए कमरा बुक करवाया था.

कमरा बुक करवाते समय उन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया था. कमरा बुक करवाने के डेढ़ घंटे बाद युवक यह कह कर बाहर निकला था कि मैडम अंदर आराम कर रही हैं, उन का ध्यान रखना. वह किसी काम से बाहर जा रहा है. उस के जाने के कुछ समय बाद वेटर नाश्ते और चाय की प्लेट लेने गया तो मैडम ने दरवाजा नहीं खोला. काफी कोशिशों के बाद हम ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर दरवाजा खोला. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने बताया. ‘‘मृतका के साथी के बारे में कोई जानकारी है?’’ पुलिस टीम ने पूछा.

‘‘जी हां सर, उस का पूरा ब्यौरा विजिटर रजिस्टर में दर्ज है.’’ कहते हुए मैनेजर दुर्गेश पटेल ने रजिस्टर ला कर पुलिस के सामने रख दिया. पुलिस टीम ने विजिटर्स रजिस्टर देख कर उस युवक का नामपता हासिल कर लिया. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नाम पता सही नहीं देते, लेकिन यहां ऐसा नहीं था. आगंतुक द्वारा दी गई जानकारी सही निकली.

युवक का नाम सुभाष पोरवाल था और युवती का नाम तनु परिहार. दोनों के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे कर उन्हें होटल नटराज बुला लिया गया.  खबर मिलते ही दोनों के परिवार वाले जिस स्थिति में थे, उसी में होटल पहुंच गए. तनु परिहार के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय थी. पुलिस टीम ने उन्हें सांत्वना दे कर संभाला.

थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर अपनी टीम के साथ अभी होटल कर्मचारियों और मृतकों के परिवार वालों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसपी मनोज सिंह, एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी, सीएसपी एच.एम. बाथम और अरविंद नायक फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर को आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने अपने सहायकों के साथ मृतका तनु परिहार के शव का निरीक्षण किया. तनु का शरीर बुरी तरह जख्मी था. उस के गले पर एक और पेट में 3 गहरे घाव थे, जो किसी तेजधार हथियार से वार करने से आए थे.

मृतका के शव का बारीकी से निरीक्षण कर के पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई से निपट कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. तनु परिहार की मां को वह अपने साथ ले आए थे.

उस की मां की तहरीर पर सुभाष पोरवाल के खिलाफ हत्या  का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. परिवार से पूछताछ करने के साथसाथ सुभाष के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल की सक्रियता से 24 घंटे में सुभाष को आगरा में खोज निकाला गया. आगरा गई पुलिस टीम सुभाष पोरवाल को गिरफ्तार कर उज्जैन ले आई. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर के सामने आते ही सुभाष पोरवाल ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जांच और सुभाष पोरवाल के बयानों के अनुसार तनु परिहार हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

23 वर्षीय सुभाष साधारण लेकिन भरेपूरे स्वस्थ शरीर का युवक था. उस के पिता का नाम आत्माराम पोरवाल था, जो मूलरूप से गुजरात के पोरबंदर का रहने वाला था. सालों पहले आत्माराम रोजीरोटी की तलाश में उज्जैन आया था. बाद में वह अपने परिवार को भी उज्जैन ले आया और नानाखेड़ा इलाके में बस गया. वह आटोरिक्शा चलाता था.

आटोरिक्शा की कमाई से इस परिवार की गाड़ी आराम से चल जाती थी. सुभाष आत्माराम का एकलौता बेटा था. वह कुछ जिद्दी स्वभाव का था. वह जिस चीज की हठ कर लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था.

सुभाष पोरवाल हट्टाकट्टा जवान था, फैशनपरस्त और दिलफेंक भी. पढ़ाईलिखाई में कभी उस का मन नहीं लगा. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी. पढ़ाई बंद हो जाने के बाद उस ने पिता की तरह ही आटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था.

सुभाष पोरवाल जहां रहता था, उसी के सामने वाले मकान में ऋषि परिहार का परिवार रहता था. उन का अपना 5 सदस्यों का परिवार था. आय के लिए उन की छोटी सी किराने की दुकान थी. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी.

दुकान से किसी तरह दालरोटी चल जाती थी. अपने 3 भाईबहनों में तनु सब से बड़ी थी. पिता ऋषि परिहार की मृत्यु  तभी हो गई थी, जब तनु बहुत छोटी थी. पति के निधन के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी मां आशा देवी के कंधों पर आ गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. आशा का छोटा बेटा 7वीं में और दूसरा 9वीं कक्षा में पढ़ता था. बेटी तनु बीकौम सेकेंड ईयर की छात्रा थी.

तनु जितनी स्वस्थ, सुंदर और चंचल थी, उतनी ही सुशील, सभ्य और सरल स्वभाव की थी. वह किसी से भी ऐसी कोई बात नहीं करती थी, जिस से किसी का दिल दुखे. तनु के मधुर व्यवहार की वजह से आसपास के लोग उसे प्यार करते थे.

यही वज ह थी कि जैसे ही उस की हत्या की खबर इलाके में फैली, लोग थाना नानाखेड़ा के सामने इकट्ठा होने लगे. उन की मांग थी कि आरोपी सुभाष पोरवाल को जल्दी गिरफ्तार किया जाए.

स्थिति बिगड़ती देख एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी ने इस आश्वासन पर लोगों को शांत कराया कि अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

वैसे तो आमनेसामने रहने के कारण तनु और सुभाष शुरू से एकदूसरे को देखते आए थे लेकिन दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर 5 साल पहले 17-18 साल की उम्र में फूटे थे. तनु परिहार के उभरते यौवन और सौंदर्य को देख सुभाष उस का दीवाना हो गया था. यही हाल तनु का भी था.

शुरूशुरू में तो तनु का ध्यान उस की ओर नहीं था, लेकिन धीरेधीरे उस का झुकाव भी सुभाष की ओर हो गया. इस की अहम कड़ी थी उस का आटोरिक्शा. तनु के करीब आने के लिए सुभाष ने अपने आटोरिक्शा का इस्तेमाल किया था.

जब तनु कालेज जाने के लिए निकलती, सुभाष अपना आटो ले कर उस की राह में आ खड़ा होता था. तनु को अपने आटो में बैठा कर वह उस के कालेज ले जाता और फिर उसे कालेज से ले कर उस के घर के करीब छोड़ देता था. बीच के समय में वह सवारियां ढोता था लेकिन तनु के कालेज के समय पर वह सवारियां नहीं लेता था. बीचबीच में जब भी मौका मिलता, दोनों साथसाथ घूमनेफिरने भी निकल जाते थे.

जैसेजेसे समय आगे बढ़ रहा था, वैसेवैसे दोनों का प्यार परिपक्व होता जा रहा था. दोनों एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. जब भी दोनों साथ होते थे, अपने भविष्य को ले कर तानेबाने बुनते थे. इस में आगे सुभाष रहता था. वह तनु को सपने दिखाता और तनु उन सपनों में खो जाती थी. दोनों शादी कर के अपना अलग संसार बसाना चाहते थे. घटना के एक महीने पहले दोनों ने सात फेरे भी ले लिए थे. 9 जुलाई, 2020 को दोनों ने उज्जैन कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली थी. इस के बाद 13 जुलाई को चिंतामणि गणेश मंदिर जा कर दोनों विधिविधान से शादी के बंधन में बंध गए थे.

सुभाष ने इस बात की जानकारी अपने परिवार को दे दी थी. परिवार वालों ने उस का यह रिश्ता स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन तनु ऐसा नहीं कर पाई. भावनाओं में बह कर उस ने सुभाष से शादी तो कर ली थी लेकिन इस पर उस की मां की ममता और प्यार भारी पड़ रहा था.

मां ने जिन कठिनाइयों में खूनपसीना बहा कर उन्हें पालापोसा था, उसे देख वह मां से धोखा नहीं करना चाहती थी. उसे जब पता चला कि मां उस के योग्य लड़का तलाश कर रही है तो उसे लगा कि मां का दिल दुखाना ठीक नहीं है. इसलिए उस ने अपनी शादी का राज छिपाए रखना ही ठीक समझा.

जब सुभाष को पता चला कि तनु की मां उस के लिए वर ढूंढ रही है तो वह पत्नी होने के नाते तनु पर साथ रहने का दबाव बनाने लगा. लेकिन जब तनु इस के लिए तैयार नहीं हुई तो सुभाष का धैर्य टूट गया और उस ने तनु के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया. उस की सोच थी कि तनु उस की दुलहन है और उसी की रहेगी. इस के लिए उस ने एक तेजधार वाला चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था.

घटना वाले दिन सुभाष का मन बहुत उदास था. वह एक बार तनु से मिल कर उस का आखिरी फैसला जान लेना चाहता था. इस के लिए उस ने होटल नटराज को चुना था. होटल में कमरा खाली है या नहीं, यह जानने के लिए उस ने विकास के नाम से होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल से बात की.

होटल से हरी झंडी मिलने के बाद सुभाष ने तनु को मैसेज भेज कर कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया. सुभाष के इरादों से अनभिज्ञ तनु ने अपना कोचिंग बैग और पानी की बोतल उठाई और मां से कोचिंग के लिए कह कर सुभाष से मिलने पहुंच गई. सुभाष उसे अपने आटो से होटल नटराज ले गया.

होटल में कमरा बुक कर के दोनों कमरा नंबर 303 में चले गए. कमरे में आ कर सुभाष ने पहले चायनाश्ता मंगवाया, फिर तनु से साथ रहने वाली बात छेड़ दी. जिसे ले कर दोनों में बहस हो गई. सुभाष ने तनु को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हमारी शादी दोदो बार हो चुकी है तो तीसरी बार शादी की जरूरत क्यों और किसलिए?

‘‘वह हमारी भूल थी, गुजरे कल की बात. अब हमें आज का सोचना है. मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. मैं अपनी मां को धोखा नहीं दूंगी. मां पहले से बहुत दुखी हैं. मैं उन्हें और दुखी नहीं देख सकती. इसलिए मैं मां के देखे हुए लड़के के साथ शादी करूंगी.’’

‘‘और मैं क्या करूं?’’ सुभाष का चेहरा लाल हो गया. क्रोध में उठ कर उस ने कमरे में टहलते हुए कहा, ‘‘हम दोनों एकदूसरे को भूल जाएं?’  तनु ने गरदन झुकाते हुए कहा, ‘‘हां.’’रक्त में डूब गई प्रेम कहानी

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम मेरी थी मेरी ही रहोगी,’’ कहते हुए सुभाष ने छिपा कर लाए चाकू को बाहर निकाला और तनु की गरदन पर सीधा वार कर दिया. वार इतना तेज था कि तनु की आधी गरदन कट गई. तनु चीख कर बैड पर गिर गई. उस के बैड पर गिरने के बाद क्रोधित सुभाष ने उस के पेट में 3 वार और किए.

कुछ मिनट तड़पने के बाद जब तनु के प्राणपखेरू उड़ गए तब सुभाष ने उस का फोन उठाया और बहाना बना कर होटल से निकल गया. वहां से निकल कर वह अपने आटो से शाजापुर बसअड्डा पहुंचा. फिर वहां से बस पकड़ कर अपनी मौसी के यहां आगरा चला गया.

सुभाष पोरवाल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने तनु परिहार हत्याकांड से  संबंधित चाकू, तनु का मोबाइल फोन और आटोरिक्शा को अपने कब्जे में ले लिया. सुभाष को जिला सत्र न्यायालय के जज के सामने पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

असल जिंदगी में भी हीरो बना ये एक्टर, गर्लफ्रेंड से बदतमीजी कर रहे बॉयफ्रेंड को ऐसे सिखाया सबक

एक तरफ जहां टीवी के कई सितारे टीवी पर किसी ना किसी वजह से ट्रोल हो जाते हैं , वहीं साउथ सिनेमा में काम करने वाले एक्टरों की पॉपुलर्टी काफी ज्यादा बढ़ रही है. हाल ही में फिल्म एक्टर नागा शौर्या की वाह वाही हो रही है.

अगर आप ये सोच रहे हैं कि उनकी फिल्म हिट हो गई है इस वजह से पब्लिक उनकी तारीफ कर रही है तो आप बिल्कुल गलत हैं,उन्होंने बीच सड़क पर एक लड़की को उसके बॉयफ्रेंड को डांटा है, जिस वजह से लोग उनकी प्रशंसा कर रहे हैं.

दरअसल,हुआ कुछ ऐसा कि नागा शौर्या सड़क से गुजर रहे थें,तभी उनकी नजर एक लड़के पर पड़ी , वह लड़का अपनी गर्लफ्रेंड कि पिटाई कर रहा था, और उसकी गर्लफ्रेंड सड़क पर रो रही थी, यह सब नागा शौर्या से देखा नहीं गया औऱ वह बीच रास्ते में गाड़ी से उतरकर उस लड़की की क्लास लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

जिसका वीडियो लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि नागा शौर्या ने एक लड़की की मदद की है,वह इस लड़के को लड़की से मांफी मांगने को बोलता है, बता दें कि इस वीडियो को राह चलते किसी बंदे ने शूट किया है जिसमें पूरा मामला साफ नजर आ रहा है.

जब लड़के ने लड़की को थप्पड़ मारा यह सीन देखकर आग बबूला हो गए है. उन्होंने गाड़ी से उतरकर लड़की को दबोच लिया. भीड़ में खड़े नागा शौर्या ने उस लड़के का हाथ पकड़कर उसे मांफी मांगने को कहा. जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

 

ये वुमन्स वर्ल्ड है और वहीं इस समाज और परिवार को बनाने वाली है- निर्देशक राहुल चित्तेला

प्रोड्यूसर मीरा नायर के साथ क्रिएटिव और प्रोड्यूसिंग पार्टनर के रूप में काम कर कर चुके निर्देशक राहुल चित्तेला एक इंडिपेंडेंट राइटर, प्रोड्यूसर है. वे फिल्म ‘आजाद’ के राइटर और डायरेक्टर है, जिसे पहली बार किसी भारतीय फिल्म को ‘प्रेस्टीजियस प्रेस फ्रीडम डे फोरम’ पर UNESCO द्वारा स्क्रीनिंग की गई थी, इस फिल्म ने कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीते है. राहुल हमेशा रियल कहनियों और रिलेटेबल कहानियों को कहना पसंद करते है. फिल्म ‘गुलमोहर’ भी ऐसी ही एक कहानी है, जो आज की पारिवारिक परिस्थिति को बयां करती है. जिसे उन्होंने बहुत ही खुबसूरत तरीके से दर्शकों तक पहुँचाने की कोशिश की है. ये फिल्म 3 मार्च को ओटीटी प्लेटफॉर्म डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होने वाली है. उन्होंने इस फिल्म की मेकिंग और राइटिंग पर बात की और बताया कि ये फिल्म सभी उम्र के लिए है, जिसे सभी एन्जॉय कर सकते है.

कहानी 3 पीढ़ी की

राहुल कहते है कि पिछले 3 साल पहले मैं जब पहली बार पिता बना, उस वक्त इस कांसेप्ट की शुरुआत हुई थी. परिवार और उनके संबंधों को लेकर लिखना शुरू किया था, धीरे-धीरे चरित्र सामने आते गए और मैंने उसे कहानी में पिरोता गया, लेकिन बेसिक बात मैंने अपने मन में रखा था कि इसमें 3 जेनरेशन को दिखाया जायेगा. इसमें ये 3 जेनरेशन आज के समय को कैसे देखते है, उनमे जो बदलाव दिख रहा है, इसका अर्थ सभी के लिए क्या है आदि कई प्रसंगों को बयां करती हुई है. ऐसी कहानिया केवल एक परिवार की नहीं है, बल्कि कई परिवारों की कहानिया है. जो मैंने ऑब्जरवेशन के बाद लिखा है. हमेशा से मुझे हर उम्र के लोगों से बात करना पसंद है. फिल्म के दौरान अभिनेत्री शर्मीला टैगोर के साथ बात करना बहुत अच्छा लगा, उनकी बातें मुझे यंग फील करवाती है. मनोज बाजपेयी से बात करने पर परिवार पर उनकी धारणा को देखा और इसे जानने की उत्सुकता हुई. सभी पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम करना मुझे बहुत अच्छा लगा.

 

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बदलना है महिलाओं को भी

महिलाओं में आगे बढ़ने की चाहत में हो रही समस्या के बारें में राहुल कहते है कि इसमें समाज में सभी की नजरिये को बदलने की जरुरत है. इसमें सिर्फ पुरुषों को ही नहीं, महिलाओं को भी बदलने की जरुरत है. इसमें उन्हें समझना है कि महिलाएं न तो पुरुषों से कम है और न ही अधिक है. दोनों को समान दर्जा प्राप्त है. इसी सोच को मैं अपने अंदर रखता हूँ. मैं ये मानता हूँ कि औरते पुरुषों से अधिक अकलमंद होती है, लेकिन पुरुषसत्तात्मक समाज ने पुरुषों को ही सबसे ऊपर रखा है. पुरुषों को ब्रेड अर्नर का दर्जा है, वे बाहर जाकर कमाएंगे. महिलाएं घर सम्हालेगी. बच्चे से पेरेंट्स के बारें में पूछे जाने पर वे भी पिता को ऑफिस और माँ को किचन में देखते है.

 

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आसपास है स्ट्रोंग महिलाएं

अनुभवी मीरा नायर के साथ काम करने के बाद राहुल ने कई चीजे फिल्मों से सम्बंधित सीखा है. वे कहते है कि मैं मीरा नायर के साथ काम कर खुद को लकी मानता हूँ, इस कहानी की लेखक अर्पिता भी है, जो न्यूयार्क में रहती है. इस फिल्म के साथ जुड़े अधिकतर महिलाएं है. पहले मैंने मीरा नायर जैसी महिला के साथ काम किया है और मेरी पत्नी मैथिलि भी एक स्ट्रोंग महिला है.

मेरी माँ विजया भी एक मजबूत महिला है, उन्होंने बाहर जाकर काम नहीं किया और ये जरुरी भी नहीं होता, पर उनकी सोच में बदलाव रहा. उन्होंने घर में सेंस ऑफ़ इक्वलिटी को हमेशा बनाये रखा. मैं खुद लिखता हूँ, प्रोड्यूस करता हूँ और निर्देशन भी करता हूँ. इसके फिल्म के लिए 2 से 3 साल लगे है, इसलिए जो कहानी मुझे उत्साहित करें, उसे करता हूँ. आगे मैं मनोहर कहानियों के लिखने पर एक शो बना रहा हूँ.

महिलाओं के लिए खास मैसेज

मेरा सभी महिलाओं से कहना है कि सेंस ऑफ़ इक्वलिटी के इमोशन के लिए रुके नहीं. कोई इसे आपको दिला नहीं सकता, इसे आपको खुद के लिए क्रिएट करना पड़ेगा. उसे पहले दिमाग से लाना पड़ता है, ये वुमन्स वर्ल्ड है और वे ही इस समाज और परिवार को बनाने वाली है. बच्चे के पीछे काम को न छोड़े. बच्चों को छोड़कर काम करने पर मन में अपराध बोध न लायें. साहिर मेरा बेटा है और वह जानता है कि मेरे माता और पिता दोनों ही काम करते है. इसके अलावा घर पर रहने वाली महिलाएं भी काम करती है, खाना पकाना घर की देखभाल करना भी एक काम है. इसलिए उन्हें रेस्पेक्ट ऑफ़ इक्वलिटी सभी को देना बहुतजरुरी है.

कुछ बातें सह-कलाकारों की फिल्म गुलमोहर में काव्या सेठ और उत्सवी झा ने भी भूमिका निभाई है, उनसे हुई बातचीत कुछ इस प्रकार है,

काव्या सेठ

दिल्ली की काव्या सेठ जो अब मुंबई में रहती है और एक एक्टर, डांसर और कोरियोग्राफर है. इस फिल्म में दिव्या की भूमिका निभा रही है. इससे पहले भी कावेरी ने कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन इस फिल्म में कावेरी को मौका मिलना एक बड़ी बात है, क्योंकि इस फिल्म की भूमिका उनसे काफी मेल खाती है. वह कहती है कि इस फिल्म से मुझे सीख मिली है कि कई बार सभी को खुश रखने की चाहत में व्यक्ति अपनी ख़ुशी को भूल जाता है, लेकिन फिल्म में दिव्या की जो चाहत पति के साथ रहते हुए है, उसे वह कर पाती है. इस फिल्म  में सबके साथ एक टीम में काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा है. वह फिल्म में भी दिखेगा. शर्मीला टैगोर और मनोज बाजपेयी के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. उन दोनों ने सच में एक परिवार बना लिया था. शर्मीला के एक इंटेंस सीन को देखकर मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैं अपने पैर हिलाने लगी, लेकिन शर्मीला ने देखा और मुझे इसे करने से मना किया. इससे मुझे अपने परिवार की याद आई. ये सारी यादें अब मुझे अच्छा अनुभव करवा रही है.

उत्सवी झा

मुंबई की उत्सवी झा फिल्म ‘गुलमोहर’ में अमृता बत्रा की भूमिका निभाई है. रियाल लाइफ में वह एक सिंगर और सोंग राइटर है, उन्होंने एक्टिंग कभी नहीं की है और कभी सोचा भी नहीं था. ये उनकी डेब्यू फिल्म है. इस फिल्म के ऑफर आने पर पहले उन्हें विश्वास नहीं हुआ, कॉन्ट्रैक्ट साईन करने के बाद उन्हें लगा कि वह एक्टिंग करने वाली है. वह कहती है कि मेरे परिवार के अलावा किसी को भी मेरी एक्टिंग के बारें में पता नहीं था. परिवार और दोस्तों ने मेरे इस काम में बहुत सहयोग दिया है. इस फिल्म में काम करना बहुत अच्छा लगा, क्योंकि मैं एक बड़े परिवार में रहती हूँ और इसमें भी मुझे एक बड़ा परिवार मिला है.

ये एक फॅमिली ड्रामा है, जिसमे रिश्तों और उनके संबंधों को दिखाने की कोशिश की गई है और आज हर वर्ग और उम्र के व्यक्ति खुद से इसे रिलेट कर सकेंगे. मैं रियल लाइफ में भी मैं अमृता की तरह ही हूँ, जिसे जो करना है वह अवश्य कर लेती है. इसके अलवा इस फिल्म में ये भी मेसेज है कि परिवार से अनबन कितनी भी हो, लेकिन मुश्किल वक्त में वे हमेशा साथ देते है और परिवार का महत्व हर किसी को देने की जरुरत है.

Short story: वापसी

सीधी सी पत्नी रमा की सादगी उस के खुले विचारों वाले पति शेखर को अखरती थी. तभी तो मदमस्त, खूबसूरत निशि उसे भाने लगी थी. लेकिन आज सुंदरता में वही रमा उसे निशि से बीस लग रही थी…

भादों महीने की काली अंधेरी रात थी. हलकी रिमझिम चालू थी. हवा चलने से मौसम में ठंडक थी. रात में लगभग एक बज रहा था. दिनभर तरहतरह की आवाजें उगल कर महानगर लखनऊ 3-4 घंटे के लिए शांत हो गया था.

गोमती नदी के किनारे बसी एक कालोनी के अपने मकान की ऊपरी मंजिल के कमरे में शेखर मुलायम बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. उस की नजर बगल में बैड पर गहरी नींद में सो रही रमा पर पड़ी, जो आराम से सो रही थी.

घड़ी पर नजर डालते हुए शेखर मन ही मन बड़बड़ाया, ‘4 घंटे बाद रमा के जीवन में कितना बड़ा तूफान आने वाला है, जिस से वह बेचारी अनजान है. यह तूफान तो रमा के घरेलू जीवन को ही उजाड़ देगा और वह पूरी जिंदगी उसी के भंवर में डूबतीउतराती रहेगी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और रमा पुराने विचारों पर ही भरोसा रखती है. समय के साथ ताल मिला कर चलना सीखा होता और मैं क्या चाहता हूं, यह समझा होता.

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तो आज उसे छोड़ने का यह समय तो न आता.’

शेखर उस अंधेरे में देखते हुए सोच रहा था, ‘3 घंटे बाद 4 बजेंगे. मैं बैडरूम से निकल कर दबेपांव घर से बाहर जा कर टैक्सी पकड़ूंगा और अमौसी हवाई अड्डे पर पहुंच जाऊंगा. वहां साढ़े

5 फुट की निशि ग्रे रंग की जींस और लाल रंग का टौप पहन कर खड़ी होगी. मुझे देखते ही अपने केशों को एक खास अंदाज में झटकते हुए अपने गुलाबी होंठों से मोनालिसा की तरह मुसकराते हुए इंग्लिश में कहेगी, ‘गुडमौर्निंग शेखर. मुझे विश्वास था कि तुम देर जरूर करोगे’ और मैं निशि के मरमरी हाथ को अपने हाथ में ले कर कहूंगा, ‘सौरी डार्लिंग.’

यह सब सोच कर शेखर के होंठों पर हंसी तैर गई. उस की आंखों के सामने औफिस की कंप्यूटर औपरेटर निशि तैर गई. 22 साल की परी जैसी मोहक देह के बारे में सोचते ही शेखर के शरीर में रोमांच की लहर दौड़ गई.

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने वाले खुले विचारों के शेखर को रमा की सादगी अखरती थी. रमा पतिपरायण पत्नी थी. पति के अस्तित्व में अपने अस्तित्व को देखने वाली पत्नी, जो आज के समय में मिलना मुश्किल है. पर शेखर, रमा की सादगी से काफी नाखुश था.

शेखर को अकसर लगता कि रमा उस जैसे कामयाब आदमी के लायक नहीं है, गांव की सीधी, सरल और संस्कारी लड़की से शादी कर के उस ने बहुत बड़ी भूल की है. फैशनपरस्ती भी कोई चीज होती है.

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अतिआधुनिक लड़कियों की तसवीर रमा में ढूंढ़ने वाला शेखर कभी चिढ़ कर कहता, ‘रमा, आदमी को यौवन से मदमाती औरत अच्छी लगती है. बर्फ बन जाने वाली ठंडी पत्नी नहीं. पुरुष को सहचरी चाहिए, सेविका नहीं.’

रमा फिर भी शेखर की चाहत पूरी कर पाने वाली आधुनिका नहीं बन सकी. शेखर उंगली रख कर रमा का दोष बता सके, इस तरह का नहीं था. रमा अपने काम, पति के प्रति वफादारी और चरित्र की कसौटी पर एकदम खरी उतरती थी.

शेखर की निगाह उस के विभाग में नईनई आई 22 साल की खूबसूरत, मस्त और कदमकदम पर सुंदरता बिखेरती कंप्यूटर औपरेटर निशि पर जम गई.

निशि समय की ठोकर खाई युवती थी. उस ने देखा कि औफिस के एग्जीक्यूटिव और विभाग के अधिकारी शेखर की नजर उस की सुंदरता पर जमी है और उस की कृपादृष्टि से वह औफिस में स्थायी हो सकती है व उन्नति भी पा सकती है, इसलिए समय और मौके के मूल्य को समझते हुए व शेखर की नजरों में अपने प्रति चाहत देख कर उस के करीब पहुंच गई.

थोड़े समय में ही शेखर और निशि नजदीक आ गए.

निशि के साथ रहने के कारण शेखर घर देर से पहुंचने लगा. रमा ने इस बारे में कभी शेखर से पूछा भी नहीं कि इतनी देर तक वह कहां रहता है. उलटे शेखर से प्रेम से पूछती, ‘लगता है, आजकल औफिस में काम बढ़ गया है, जो इतनी देर हो जाती है. लाइए आप का सिर और पैर दबा दूं.’

रमा के इस व्यवहार से शेखर सोचने लगता कि यह औरत भी अजीब है. कभी इस के मन में किसी तरह का अविश्वास, शंका नहीं आती. रमा के इस तरह के व्यवहार से उस का अहं घायल हो जाता.

शेखर निशि को 3-4 बार अपने घर भी ले आया. रमा ने निशि की खूब खातिर की. शेखर ने सोचा था कि रमा निशि से उस के संबंध के बारे में पूछताछ करेगी, मगर उस की यह धारणा गलत निकली.

निशि अपनी मुसकान से, अदाओं से और बातों से शेखर का मन बहलाने लगी. शेखर ने उस की नौकरी सालभर में ही पक्की करवा दी और वेतन भी लगभग तीनगुना करवा दिया. नौकरी पक्की होते ही शेखर को लगा कि अब निशि धीरेधीरे उस के प्रति लापरवाह होती जा रही है. जब भी मिलने को कहो तो किसी न किसी काम का बहाना कर के मिलने को टाल जाती है.

इस बीच, उस ने अंदाज लगाया कि निशि उस के बजाय निखिल से अधिक मिलतीजुलती है. उस से कुछ अधिक ही संबंध गहरा हो गया है. उस का दिमाग चकराने लगा. वह उदास हो गया.

एक दिन शेखर ने निशि से पूछ ही लिया, ‘निशि, तुम्हारे और निखिल के संबंधों को मैं क्या समझूं?’

निशि ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘निखिल मेरा दोस्त है. क्या मैं औरत होने के नाते किसी पुरुष से दोस्ती नहीं कर सकती?’

‘मैं इतने तंग विचारों वाला आदमी नहीं हूं, फिर भी मैं किसी और पुरुष के साथ तुम्हारी नजदीकी बरदाश्त नहीं कर सकता.’

‘आप का मैं कितना सम्मान करती हूं, यह आप भी जानते हैं. पर एक ही आदमी में अपनी सारी दुनिया देखना मेरी आदत में नहीं है’, निशि ने शेखर का हाथ अपने हाथ में ले कर मुसकराते हुए कहा, ‘आप मुझे अपनी जागीर समझें. मैं जीतीजागती महिला हूं, मेरे भी कुछ अपने अरमान हैं.’

शेखर ने खुश होते हुए कहा, ‘निशि, तुम मुझे उतना ही प्यार करती हो, जितना मैं तुम से करता हूं?’‘चाहत को भी भला तौला जा सकता है?’ निशि हंस?? कर बोली.‘निशि, चलो, हम दोनों विवाह कर लेते हैं.’

निशि चौंकी, फिर गुलाबी होंठों पर मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘लेकिन आप तो शादीशुदा हैं. दूसरी शादी तो कानूनन हो नहीं सकती. यदि आप अकेले होते तो मेरा समय अच्छा होता.’

‘निशि, अपने प्रेम के लिए मैं अपना घरेलू जीवन तोड़ने को तैयार हूं. प्लीज, इनकार मत करना. कल सुबह दिल्ली के लिए हवाई जहाज से 2 टिकट बुक करा लेता हूं. सुबह साढ़े 5 बजे अमौसी हवाई अड्डे पर आ जाना. अब देर करना ठीक नहीं है. मुझे रमा और निशि के बीच भटकना नहीं है. तुम सुबह आना, मैं इंतजार करूंगा.’

तब निशि केवल इतना ही बोल सकी, ‘ठीक है.’बैड पर करवट बदल रहे शेखर यह सोच कर मुसकरा पड़ा कि कुछ घंटे बाद ही निशि हमेशा के लिए मेरी होगी.

शेखर ने घड़ी में समय देखा, 2.30 बजे थे.तभी फोन की घंटी बज उठी. निशि का ही होगा. मैं भूल न जाऊं, यही याद दिलाने के लिए उस ने फोन किया होगा. सचमुच निशि कितनी अच्छी है. एकदम सच्चा प्रेम करती है मुझ से.

शेखर ने धीरे से उठ कर फोन का रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’

‘‘शेखर, मैं निशि बोल रही हूं.’’

‘‘मैं पहले ही जान गया था कि तुम्हारा फोन होगा. इतनी उतावली क्यों हो रही हो? मैं भूला नहीं हूं. एकएक पल गिन रहा हूं, नींद नहीं आ रही है क्या.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं कल आप की हालत देख कर संकोचवश कुछ कह नहीं सकी. काफी सोचने के बाद मुझे लगा कि एक शादीशुदा पुरुष की रखैल बनने के बदले निखिल की पत्नी बन जाना मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए अच्छा रहेगा.

‘‘निखिल से विवाह कर के उस की पत्नी के रूप में मैं समाज में प्रतिष्ठा भी पाऊंगी और रमा बहन जैसी बेकुसूर औरत का संसार भी नहीं उजड़ेगा. तुम हवाई अड्डे जाने के लिए घर से निकलो, उस के पहले ही मैं और निखिल यह शहर छोड़ चुके होंगे. हम दोनों अभी नैनीताल जा रहे हैं. वहीं शादी कर के हनीमून मनाएंगे.

‘‘मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे माफ कर दोगे. रमा दीदी सुंदर, सुशील हैं, उन्हें प्रेम दे कर उन से प्रेम पा सकते हो. एक औरत हो कर भी मैं ने रमा दीदी के साथ बहुत अन्याय किया है. अब इस से अधिक अन्याय मैं नहीं कर सकती. बात मेरी समझ में आ गई, भले ही थोड़ी देर से आई है. इसलिए अब मैं प्रेम के अंधेरे रास्ते पर नहीं चलना चाहती. अब आप मेरा इंतजार मत कीजिएगा.’’

 

फोन कट गया. शेखर का दिमाग चकराने लगा. उसे लगा वह रो पड़ेगा. लड़खड़ाते हुए बालकनी में आया. संभाल कर रखे जहाज के दोनों टिकटों को फाड़ कर हवा में उछाल दिया. उस के बाद आ कर कमरे में लेट गया. उस की नजर बगल में बेखबर सो रही रमा पर पड़ी. शेखर आंख बंद कर रमा और निशि की आपस में तुलना करने लगा.

4 बजे का अलार्म बजा. रमा ने आंख बंद कर के लेटे शेखर को झकझोरा, ‘‘उठो, 4 बज गए हैं. दिल्ली नहीं जाना क्या? तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं चाय बना कर ला रही हूं.’’

शेखर रमा को ताकने लगा. उसे लगा कि उस ने आज तक रमा को प्रेमभरी नजरों से देखा ही नहीं था. वाकई सीधीसादी होने के बावजूद रमा निशि से सुंदरता में बीस ही है. सादगी का भी अपना अलग सौंदर्य होता है.

‘‘इस तरह क्या देख रहे हो? क्या आज से पहले मुझे नहीं देखा था? चलो, जल्दी तैयार हो जाओ, देर हो रही है.’’

शेखर ने रमा को बांहों में बांध लिया और बोला, ‘‘रमा, मैं अब दिल्ली नहीं जाऊंगा.’’

रमा ने शेखर का यह व्यवहार सालों बाद अनुभव किया था. शेखर भी महसूस कर रहा था कि आज जब वह रमा को दिल से प्यार कर रहा है तो रमा की मदमाती अदाओं में कुछ अलग कशिश है. बीता वक्त लौट तो नहीं सकता था लेकिन उसे संवारा तो जा सकता था.

पूर्णविराम -भाग 2: आलिशा- आदर्श की किस सच्चाई से हैरान थे लोग

“यह सही किया उन लोगों ने. लेकिन सोचो तो जरा, क्या होता जा रहा है आजकल के जैनरेशन को? रिश्तों को तो जैसे खेलतमाशा समझ लिया है इन्होंने। जितनी जल्दी इन पर प्रेम का ज्वर चढ़ता है, उतनी जल्दी उतर भी जाता है. बुरा मत मानना लेकिन इन का तथाकथित प्रेम जो दैहिक आकर्षण से इतर कुछ भी नहीं है. लेकिन इस बात की खुशी है मुझे कि हमारा आदर्श ऐसा नहीं है,” एक राहतभरी सांस लेते हुए मैं ने कहा,“वैसे साहबजादे हैं कहां? अभी तक सो रहे हैं क्या?”

“अरे नहीं, वह तो अपने कमरे में लैपटौप ले कर बैठा है,” मेरे हाथ से चाय का खाली कप लेते हुए शशि बोली.

“ओह अच्छा, तो सुबह से ही चीटिंग चालू हो गई तुम्हारी?”आदर्श के बगल में बैठते हुए मैं ने कहा तो मेरा 23 साल का पोता मेरे गले से लग कर झूल गया और बोला,”अरे दादू, कितनी बार समझाया है कि इसे चीटिंग नहीं चैटिंग कहते हैं.”

“अरे, एक ही बात है पुत्तर जी,” मैं ने प्यार से उस के गाल पर एक चपत लगाते हुए बोला,”तुम जैसे बच्चे भले ही इसे चैटिंग कहते हैं, पर मैं चीटिंग कहता हूं,” मेरी बात पर मेरे पोते ने मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा, जैसे पूछ रहा हो ‘वह कैसे?’

“देखो, आज के लड़के लड़कियां लैपटौप और मोबाइल पर ही अपने प्यार का इजहार कर देते हैं और फिर शादी करने में जरा भी देर नहीं लगाते, भले ही परिवार की मरजी हो या न हो. फिर क्या होता है? मुश्किल से 2-4 साल भी शादी नहीं टिकती और तलाक हो जाता है. फिर इसे चीटिंग नहीं तो और क्या कहेंगे बताओ?” मेरी बात पर पीछे से मेरे बेटे, आदर्श के पापा ने टोकते हुए कहा कि सब एकजैसे नहीं होते हैं. और टिकने को तो अरैंज्ड मैरिज भी नहीं टिक पाता. शायद वह अपना उदाहरण दे रहा था. क्योंकि जब देखो मियांबीवी लड़ते ही रहते हैं. मैं ने उस की बात पर कोई जवाब न दे कर पोते से कहा,”अरे छोड़ो, तुम आजकल के बच्चे क्या जानो असली प्यार करना किसे कहते हैं? प्यार तो हमारे जमाने में होता था,” मैं रूमानी हो चला,“याद है, जब पहली बार मैं तुम्हारी दादी को देखने उन के घर गया था तब वो सुर्ख लाल रंग के सलवारकमीज में क्या खूब…” मैं बोल ही रहा था कि उधर से शशि ने अपनी आंखें तरेर कर मुझे चुप करा दिया.

लेकिन मेरा पोता आदर्श तो मेरे पीछे ही पड़ गया कि अब मुझे अपनी प्रेम कहानी सुनानी ही पड़ेगी. फिर मैं भी शुरू हो गया,”तो सुनो…” मैं ने सामने रखे टेबल पर एक जोर का हाथ मारते हुए कहना शुरू किया, “हमारी शादी के सालभर साल बाद, तुम्हारी दादी गौना करा कर मेरे घर यानी अपने ससुराल आई थीं. लेकिन वह 1 साल मेरे लिए कितना दर्दभरा था, मैं बयां नहीं कर सकता. तुम्हारी दादी की एक झलक पाने के लिए मैं रोज दोपहरिया इन के घर के पिछवाड़े जा कर खड़ा हो जाया करता था. दोपहर में इसलिए क्योंकि उस वक्त लोग अपने घर में सोएपटाए होते थे, तो किसी को कुछ पता नहीं चलता था. लेकिन एक बात कहूं, तुम्हारी यह दादी भी खिड़की पर बैठी मेरा इंतजार कर रही होती थीं और जैसे ही मुझे देखतीं, फूल सी खिल उठती थीं. अरे, देखो तो कैसे शर्म के मारे शशि के गाल लाल हो गए,” मेरी बात पर जहां आदर्श खिलखिला कर हंसने लगा, वहीं शशि गुर्राई कि बेटेबहू और पोते के सामने क्यों हमारी खिल्ली उड़वा रहे हो।

“अरे, तो इस में क्या है, आखिर हमारा पोता भी तो सुने कि हमारी प्रेम कहानी कितनी अनोखी थी. जानते हो पुत्तर…”आदर्श के पीठ पर एक हाथ मारते हुए मैं फिर फिर कहने लगा, “हमारा गांव आसपास ही था, तो बस साइकिल उठाता और दौड़ पड़ता तुम्हारी दादी से मिलने. हम दूर से ही एकदूसरे का दीदार कर खुश हो लेते थे. उस वक्त लगता जैसे हमें दुनिया की पूरी खुशियां मिल गई हों,” बोलते हुए मेरे चेहरे की झुर्रियों में ललाई आ गई और शशि के होंठों की कोर पर भी हलकी सी मुसकान बिखर आई।

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