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आधी रात को रोड पर रोती दिखी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे

शुक्रवार को नवाजुद्दीन सिद्दीकी को लेकर एक ई खबर आई है, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी आलिया सिद्दीकी घर से बाहर खड़ी होकर अपने बच्चों को लेकर रोती हुईं नजर आ रही हैं. वाइफ आलिया सिद्दीकी ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उनके बच्चें घर के बाहर रो रहे हैं. लेकिन नवाजुद्दीन ने वर्सोना वाले घर में एंट्री नहीं दी है.

एक्टर की बेटी रोती हुई नजर आ रही है, तो वही आलिया सिद्दीकी के भाई भी उनकी सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. आलिया सिद्दीकी का यह वीडियो जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

 

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बच्चों को रोता देखकर एक्टर नवाज के भाई भी उनके खिलाफ हो गए हैं कह रहे हैं कि नवाज बच्चों को तो बख्श दो. बस अच्छा बनने का ढ़ोंग करते रहोगे. ये सब पीआर ड्रामा बहुत दुखद है.

आलिया ने बताया है कि नवाज ने अपने वर्सोला वाले घर में एंट्री नहीं दिया है, उनकी पत्नी कह रही हैं कि उन्हें बंग्ले से निकाल दिया है और वह अब अपने बच्चों को लेकर कहां जाएं. बहुत ज्यादा परेशान हूं मैं.

मेरी बच्ची परेशान हो रही है, नवाज मैं अपने बच्चों को लेकर कहां जाऊं, मैं तुम्हें मांफ नहीं कर सकती, जो मेरे बच्चों के साथ कर रहा है तुझे कभी मांफ नहीं किया जा सकता है,

खबर है कि आलिया को किसी जानने वाले ने पनाह दी है.

जो भी जौब मिले लड़कियों को वह कर लेनी चाहिए

जौब करना जितना जरूरी लडक़ों के लिए है उतना ही जरूरी लड़कियों के लिए भी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कम पैसे वाली जौब भी लड़कियों को कर लेनी चाहिए. इस का जवाब होगा हां. जो भी जौब आपको अपनी योग्यता से कम की भी मिले तो उसे भी आप को तुरंत ले लेना चाहिए. बहुत सी लड़कियां सोचती है कि कम पैसे वाली नौकरियां उन की सामाजिक प्रतिष्ठा यानी स्पेशल स्टेटस के खिलाफ होता है. वे कम वेतन वाली जौब छोड़ कर घर बैठे रहते हैं. यह बिल्कुल गलत है. ऐसी जौब करने का फायदा यह होता है कि लड़कियां कम से कम अपना जेब खर्चा तो निकाल ही लेती है. लड़कियों को यह समझना चाहिए कि जौब ही उन का एक मात्र सहारा है जो उन्हें बाहरी दुनिया से जोड़ सकता है इस के अलावा इसका एक फायदा यह भी है कि वह जौब के माध्यम से जिंदगी के नएनए अनुभव सीखेंगी.

अगर कोई कहे कि उस नौकरी का क्या फायदा है कि जितना पैसा मिले उस में आपका गुजारा तो नहीं होगा पर इतना पैसा तो आपके जाने में ही खर्च हो जाएगा. ऊंचा स्टेंडस तय करने को अनसुना करें और निरंतर अपनी कम वेतन वाली जौब भी करती रहें. समाज के लोग लड़कियों को कभी आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते.

असल में ये लोग चाहते हैं कि लड़कियां हमेशा लडक़ों से पीछे रहे. ये उन्हें रोकना चाहते हैं  इनसे यह बर्दाश्त नहीं होगा कि लड़कियां भी लडक़ों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले, इसके पीछे उनकी रूढि़वादी सोच है और लड़कियों को उन की इसी रूढि़वादी सोच पर चोट करनी है उन को दिखा देना है कि लड़कियां किसी भी मामले में लडक़ों से कम नहीं है इस के लिए यह जरूरी है कि जो भी जौब मिले लड़कियां वह कर लें.

समाज में ऐसे कई लोग होंगे जो धर्म के जरिए उन्हें रोकने की कोशिश करेंगे, ऐसे में लड़कियों को उन लोगों की बातों को नहीं सुनना है. लड़कियों को यह बात समझनी है कि धर्म लड़कियों को घर की चारदीवारी के भीतर रखने के लिए ही बना है और धर्म के ठेकेदारों को यह जरा भी मंजूर नहीं होगा कि घर की लड़कियां दहलीज से बाहर पैर रखे क्योंकि ऐसा करने से वह अपने हक जान जाएंगी और उन्हें यह बात समझ आ जाएगी कि धर्म उन्हें रोकने के लिए ही बना है. यह धर्म के ठेकेदार लड़कियों को हमेशा अपने पैरों की जूती मानते आए हैं कि कभी नहीं जाएंगे कि लड़कियां उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर निकले वे चाहते हैं कि लड़कियां उन पर ही निर्भर रहे हैं जैसा की मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के 148 श्लोक में कहा गया है. ‘एक लडक़ी हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए और पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए वह किसी भी स्थिति में आजाद नहीं हो सकती.’ लड़कियों को इस विचारधारा को बदलना है और समाज को आईना दिखाना है कि उसे किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 8-14 साल के आयु वर्ग की लड़कियों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो घर पर पीस ( माल) बनाने का काम करता है. पीस वह काम है जो घरेलू स्तर पर किया जाता है इस में स्कर्टटौप पर सीपिया लगाना, जूते के फीते काटना, शूज पौलिश करना आदि  काम आते हैं. फुटवियर कंपनी में पार्ट टाइम जौब पाने के लिए आपको अपने आसपास जूते की फैक्ट्री को खोजने की जरूरत है वहां जाकर आप उन्हें बोले कि आप उन के साथ पार्ट टाइम जुडऩा चाहती है.

बहुत सी लड़कियां पापड़ बेलने या अचार बनाने, खिलौने बनाने आदि में भी अपना सहयोग देती हैं. शहरों में लड़कियां बड़ी संख्या में घरेलू नौकरानी का काम करती हैं. अकेली दिल्ली में एक लाख लड़कियां घरेलू नौकरानी का काम करती है.

दक्षिण भारत के हथकरघा उद्योग तथा अन्य गृह आधारित उद्योग में भी भारी संख्या में लड़कियां काम करती हैं. जम्मू और कश्मीर में शाल तथा कालीन निर्माण, मिर्जापुर में कालीन बुनने, मुरादाबाद में पीतल तथा कांसे के बर्तन बनाने, उत्तर प्रदेश में मिट्टी के बर्तन बनाने तथा भिवांडी (महाराष्ट्र) में बिजली घर में भी लड़कियों को काम करते हुए देखा जा सकता है. खिलौने बनाने, रुमाल बनाने, रेडीमेड वस्त्रों के कारखानों, पेन के कारखानों तथा लौलीपाप कंपनियों में भी लड़कियां बड़ी संख्या में काम करती है.

पार्ट टाइम जौब जिसे बेबी केयर के नाम से जाना जा सकता भी है इसमें लड़कियों को बच्चे का ख्याल रखना होता है इस में उन की सैलरी भी अच्छी होती है बहुत सी लड़कियां इसे पार्ट टाइम जौब के रूप में अपना रही हैं. इसे आया की नौकरी न समझें. यह एक तरह से मां की जगह लेती लडक़ी के लिए एक अच्छी सिक्योर जगह की जौब है. जिस में चिकचिक कम है, बस काम पर गैरहाजिरी संभव नहीं है.

माम किड केयर चाइल्ड केयर वर्क ऐसी ही तो वेबसाइट है लड़कियों को बेबी केयर की जौब प्रोवाइड करवाती है.

लड़कियों को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि वह अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ करे. चंद पैसों के लिए वह कोई ऐसा काम ना कर दे जो उन के कैरियर को तबाह कर दे. कई मामलों में यह देखने को मिला है कि मालकिन के जाने के बाद कुछ लड़कियां घर में अपने प्रेमी को बुला लेती है जो कि काम के साथ उन की बेईमानी को दर्शाता है लड़कियों को ऐसा काम करने से बचना चाहिए. घर के सामान की चोरी भी गलत है. यह दजा घटाना है.

लड़कियों के जौब करने के फायदे

लड़कियों को जौब करने से उन्हें घर से बाहर निकलने का मौका मिलता है, वह घर के फैसलों में अपनी राय देने लग जाती हैं, उन में कौन्फिडेंस आता है, अपना जेब खर्चा निकाल लेती हैं, इस के अलावा वे समाज के साथ अप टू डेट रहती हैं, इस में सबसे ज्यादा जरूरी बात यह कि उनको जीवन के नए अनुभव प्राप्त होते हैं.

एक कौस्मेटिक कंपनी में काम करने वाली सुमन बताती हैं कि कम उम्र में ही वह इस फील्ड से जुड़ गई. इस से न केवल उन्हें जीवन के नए अनुभव प्राप्त हुए बल्कि उनके परिवार को आर्थिक रूप से सहारा भी मिला.

लड़कियों को यह समझना होगा कि कोई भी काम छोटा नहीं होता इसलिए उन्हें जो भी काम उनकी योग्यता के अनुसार मिले, उन्हें कर लेना चाहिए.

डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करने वाली 19 वर्षीय राधिका बताती है कि उस का जीवन गरीबी में बीता है जब वह महज 14 वर्ष की थी तभी उस के पिता की मृत्यु हो गई थी किसी तरह उसकी मम्मी ने दसवीं की पढ़ाई पूरी कराई, परीक्षा होते ही उसने 4000 मासिक वेतन के हिसाब से एक टेडी बेयर बनाने वाली फैक्ट्री में अपनी पहली जौब की, वह बताती है कि अगर वह उस वक्त कम वेतन वाली जौब नहीं करती तो आज स्थिति बहुत खराब होती.

अगर बात की जाए की जौब के लिए आवेदन कहां दें तो           

हमारे आसपास ऐसे बहुत सारे सोर्स है जिस से हम जौब ले सकते हैं जैसे डिपार्टमेंटल स्टोर, शोरूम, किराने की दुकान, बुटीक, सब्जी की दुकान, ज्वेलरी शौप, मोबाइल शौप आदि. इस के अलावा ऐसी बहुत सारी औनलाइन वेबसाइट है जहां पर लड़कियां जौब के लिए अपना आवेदन दे सकती हैं जैसे नौकरी डौट कौम, इंडिड, टाइम जौब डौटकौम, मास्टर डौटकौम, वर्क एंड आरबीआई आदि.

इन वेबसाइटों के अलावा समाचार पत्रों में आने वाली जौब संबंधी सूचना की सहायता से भी लड़कियां जौब प्राप्त कर सकती हैं.

इंडिड में काम करने वाली सुचिता बताती है कि हमारे पास आने वाले आवेदनों में दसवीं कक्षा से लेकर पीएचडी करने वाली लड़कियां शामिल है आगे बताते हुए सुचिता कहती हैं कि हमारी कंपनी उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार जौब प्रोवाइड करवाती है.

भारत के अलगअलग शहरों में ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए हैं जिस में लड़कियों ने छोटे स्तर पर भी अपना बिजनेस स्टार्ट किया है जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी की सडक़ों पर चाय और मेडिकल स्टोर लगाती हुई लड़कियां. ऐसे ही हमारे देश में और भी बहुत सी लड़कियां हैं जिन्होंने अपने हुनर को काम में शामिल किया और किसी भी काम को छोटा नहीं समझा. हमें इन से प्रेरणा लेनी चाहिए.

इस के अलावा लड़कियां चाहे तो वह पार्ट टाइम जौब भी कर सकती है हमारे आसपास ऐसे कई स्टोर हैं जो लड़कियों को पार्ट टाइम जौब की सुविधा प्रदान करते हैं जैसे रिलायंस फ्रेशर, विशाल मेगा मार्ट, डी मार्ट आद

लड़कियों को चाहिए कि वह अपने आसपास मौजूद शास्प, रिटेड, अस्पताल, स्कूल, ब्यूटी पार्लर में अपना रिज्यूम सबमिट कराएं, उन्हें रिज्यूम अपने फोन में भी रखना चाहिए इसके अलावा हमेशा अपने साथ रिज्यूम की दो कौपी जरूर रखे.

लड़कियों के लिए ऐसे कई प्लेटफार्म है जो उन्हें रोजगार का अवसर प्रदान करते हैं जैसे वर्क इंडिया, गूगल, अमेजौन, ओ एल एक्स, पेटीएम, फोनपे, अपना आदि इसके अलावा कई कंपनियां प्रेशर को भी जौब औफर करती हैं जैसे शाइन, नाइका, लेक्मे, शीन आदि लड़कियां इनकी वेबसाइट पर जाकर जौब अप्लाई कर सकती हैं.

विशाल मेगा मार्ट में काम करने वाली प्रीति बताती हैं कि वह दिन में कॉलेज जाती हैं और शाम को यहां पार्ट टाइम जौब करती है, वह बताती है पार्ट टाइम जौब करने से मैं अपना जेब खर्च निकाल लेती है. प्रीति का मानना है कि लड़कियों को जौब जरूर करनी चाहिए. लड़कियों के पास शाम के वक्त सबसे अधिक समय होता है उन्हें इस का इस्तेमाल करना चाहिए इसके लिए वे एक पार्ट टाइम एंप्लॉय के रूप में कई कंपनियों के साथ जुड़ सकती हैं जैसे रिलायंस फ्रैश , मैग डी, डौमिनोज, बर्गर किंग आदि.

2018 में हुए एक सर्वे में यह रिपोर्ट सामने आई थी कि शहरी क्षेत्रों की 70रु और ग्रामीण क्षेत्रों के 74रु लड़कियां पार्ट टाइम जौब करने में इच्छुक है. द व्हीबौक्स इंडिया स्किल्स ने 2023 में एक रिपोर्ट पेश की थी उसमें उन्होंने यह दावा किया था कि लडक़ों की तुलना में लड़कियों में अधिक रोजगार योग्य क्षमता पाई जाती है.

अगर लड़कियां चाहती हैं कि वह भी समाज में लडक़ों के कंधे से कंधा मिलाकर चले तो उन्हें अपनी योग्यता के अनुसार मिलने वाली जौब को अपना लेना चाहिए इससे ना केवल वह अपना जेब खर्चा उठा पाएंगी बल्कि उन्हें जीवन के अनुभव भी मिलेंगे.

लेखिका- प्रियंका यादव                    

GHKKPM: सई ने किया पाखी को घर से बाहर, चव्हाण परिवार के साथ मनाई होली

सीरियल गुम है किसी के प्यार में आएं दिन नए- नए ट्विस्ट आ रहे हैं, इस सीरियल को देखने के लिए फैंस आए दिन उत्साहित रहते हैं, यह सीरियल आए दिन टीआरपी में बना हुआ है, सेट से कुछ तस्वीरें वायरल हो रही है, जिसे देखकर साफ है कि वहां पर होली मनाने कि तैयारी चल रही है.

इस तस्वीर को देखकर फैंस कह रहे हैं कि होली सेलिब्रेशन की तैयारी जोरो शोरों से चल रही है, फोटोज में जहां सई चव्हाण परिवार के साथ जमकर होली मनाती नजर आ रही हैं, इस तस्वीर ने फैंस की एक्साइटमेंट बढ़ा दी है. फैंस खूब खुश हैं सई को नए अंदाज में देखकर.

 

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सई यानि आयशा सिंह रंगोली बनाती दिखीं जिसे देखकर  पत्रलेखा को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है , सई जहां रंगोली बनाएगी वहीं पत्रलेखा उसे बिगाड़ देती है. फोटो में सई कि रंगोली काफी ज्यादा प्यारी लगी, जिसके बाद से लोग इस रंगोली की तारीफ भी कर रहे हैं, सई की रंगोली को पत्रलेखा पूरी कोशिश करती है बिगाड़ने की लेकि वह कर नहीं पाती हैं, जिसे सई देखलेती है और उसे करारा जवाब देती है.

प्रोमो में दिखाया जा रहा है कि सई को पत्रलेखा कहती है कि तुम रंगोली नहीं बना पा रही हो आगे कि तुमसे नहीं बनेगी. जिसपर सई उसे घर से निकालने की बात करती है. आगे कि कहानी जानने के लिए नेक्सट एपिसोड का वेट करना पडेगा.

हम बिकाऊ नहीं : रामनाथ फाइल देखकर क्यों चौक गया

लेखक-Girija Zinna

‘‘सर,आज उस औनलाइन कंपनी में आप की मीटिंग है. उस के बाद दोपहर का खाना कंपनी के स्टाफ के साथ. हमारे गहनों को उन की वैबसाइट में डालने के सिलसिले में आज आप सौदा पक्का कर रहे हैं और दस्तखत भी करेंगे. यही आज का आप का प्रोग्राम है,’’ रामनाथ के निजी सचिव दया ने उन की डायरी को देख कर कहा और फिर संबंधित फाइल उन्हें दे दी.

रामनाथ ने उस फाइल को देख कर पूछा, ‘‘उस औनलाइन कंपनी की तरफ से कौन आ रहा है?’’ यह सवाल पूछते ही उन के मन में एक अजीब सा एहसास हुआ.

‘‘सर, पहले दिन से ही उस कंपनी की तरफ से हम से बातचीत करती आ रही वह लड़की प्रिया ही आएगी सौदा पक्का करने.’’

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यह सुनते ही रामनाथ के मन में खुशी फैल गई. न जाने क्यों जब से प्रिया को पहली बार देखा या तब से रामनाथ का मन उस के प्रति आकर्षित हो गया था.

जब रामनाथ ने यह तय किया था कि वे एक अंतर्राष्ट्रीय औनलाइन कंपनी के साथ मिल कर अपने गहनों के व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे तो 1 महीना पहले जब दया ने कहा था कि उस कंपनी की ओर से एक लड़की आई है तो रामनाथ ने उसे हलके में लिया था.

रामनाथ उस शहर के ही नहीं, बल्कि देश के सब से बड़े व्यवसायियों में से एक थे. उन की वार्षिक आय करोड़ों में थी. उन के कई सारे कारोबार हैं जैसे सैटेलाइट टीवी, दैनिक और मासिक पत्रिकाएं, सोने, हीरे और प्लैटिनम के गहने तैयार कर अपने ही शोरूम में बेचना, 3-4 फाइवस्टार होटल, रियल ऐस्टेट. खासकर उन के गहने ग्राहकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे. यह देख कर रामनाथ ने अपने कारोबार को और आगे बढ़ाने के लिए औनलाइन व्यापार में दाखिल होने का निर्णय लिया. उसी सिलसिले में उस अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से प्रिया को पहली बार देखा था.

रामनाथ की आयु लगभग 50 साल थी. लंबा कद, सांवला रंग. उसी उम्र के अन्य लोगों की तरह तोंद नहीं. संक्षिप्त में कहें तो कोई भी उन्हें न तो सुंदर और न ही बदसूरत कह सकता था. अपने माथे पर कुमकुम का टीका लगाते थे और यह कुमकुम ही उन की अलग पहचान बन गई.

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रामनाथ ने दया से कहा, ‘‘अंदर भेजो उस लड़की को,’’ और फिर फाइल में मग्न हो गए.

तभी सुरीली आवाज आई, ‘‘मे आई कम इन सर?’’

सुन कर फाइल से नजरें हटा कर आवाज की दिशा की ओर देखा. वहां सामने 22-23 उम्र की एक लड़की मुसकराती नजर आई. उसे देख कर रामनाथ की भौंहें खिल उठीं, फिर तुरंत खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘कम इन’’ और फिर फाइल बंद कर दी.

लड़की लंबे कद की थी. आज के जमाने की युवतियों की तरह एक चुस्त जीन्स और स्लीवलैस ढीला टौप पहने थी. वातानुकूलित कमरे में बड़े ही अंदाज के साथ अंदर आई. हाथ में एक लैपटौप था. बाल कटे थे, कलाई पर महंगी घड़ी और कीमती फ्रेमवाले चश्मे के अलावा और कोई गहना नहीं था. उसे देख रामनाथ ने एक पल को सोचा कि इस लड़की को सुंदर बनाने के लिए किसी अन्य चीज की जरूरत ही नहीं है.

‘‘मैं हूं प्रिया. मैं अपनी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से आप से सौदा पक्का करने आई

हूं. मैं अपने बारे में कुछ कहना चाहती हूं. आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए खत्म करने के बाद कैंपस इंटरव्यू में इस कंपनी ने मुझे चुना. पिछले 6 महीनों से यहीं काम कर रही हूं. यह है मेरा बिजनैस कार्ड,’’ कह प्रिया ने रामनाथ से हाथ मिलाया.

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उस का हाथ बहुत ही कोमल था. उस की आवाज में रामनाथ को एक संगीत सा लगा. जब लड़की अपनी कुरसी पर बैठी तो ऐसा लगा कि पूरा कमरा ही नूर से भर गया हो.

प्रिया ने अपनी कंपनी के बारे में बहुत कुछ कहा. अकसर इस तरह के सौदे को रामनाथ बस 1-2 मिनट बात कर के अपने किसी चुनिंदा अधिकारी को उस सौदे की जिम्मेदारी सौंप देते थे. मगर न जाने क्यों इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया. 20 मिनट की बातचीत के बाद प्रिया अपनी कुरसी से उठ कर बोली, ‘‘सर आप से मिल कर बेहद खुशी हुई. इस सौदे को आगे ले चलने के लिए आप अपनी कंपनी की ओर से अपने किसी भरोसेमंद अधिकारी को मुझ से मिलवाइएगा.’’

यह सुन कर रामनाथ ने कहा, ‘‘नहीं, इस मामले को मैं खुद संभालना चाहता हूं. लीजिए यह मेरा कार्ड, रात 9 बजे के बाद फोन कीजिएगा. आमतौर पर मैं उस समय अपने दफ्तर का काम बंद कर देता हूं. तब हम आराम से बात कर सकते हैं.’’

यह सुन कर प्रिया को ताज्जुब हुआ और उस के चेहरे में यह आश्चर्य साफ नजर आया और उस ने आधुनिक अदा में अपने कंधों को उठा कर नीचे कर के इसे प्रकट भी किया.

उस पहली मुलाकात के बाद 2 बार दोनों मिले. 3-4 बार फोन पर भी बात हुई. रामनाथ को पता नहीं था, मगर उन का मन अपनेआप उस लड़की की ओर चला गया. उन की निरंतर गर्लफ्रैंड कोई नहीं. काम हो जाने के बाद उसी वक्त पैसा दे कर मामले को रफादफा करने की आदत है उन में. किसी को रखनेबनाने की दिलचस्पी नहीं है उन में. उन के मुताबिक ऐसा करना बेवकूफी है और कोई भी औरत उन के लायक नहीं है. औरतों के लिए इतना ही आदर है उन के मन में. औरतों को आम की तरह चूसना और उस के बाद फेंकना रामनाथ यही करते आए आज तक. उन का मानना है कि पैसा फेंक कर किसी को भी खरीद सकते हैं. बस अंतर इतना ही कि कौन कितना मांग रही है.

ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि  उन्होंने प्रिया को भी उसी नजरिए से देखा हो. प्रिया की कोमलता और सुंदरता उन के मन को विचलित कर रही थी. ऊपर से उस लड़की के चालचलन और अकलमंदी ने रामनाथ के मन को पागल ही बना दिया. उन्होंने उस लड़की को किसी न किसी प्रकार हासिल करने की मन ही मन ठान ली.

‘उस दिन सौदा पक्का कर दस्तखत करने के बाद उस लड़की को लंच पर ले

जाऊंगा तो उस लड़की की कमजोरी का पता चल जाएगा जिस से काम आसानी से हो जाएगा,’ सोच कर रामनाथ के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई और फिर उस पल का बेसब्री से इंतजार

करने लगे.

उस दिन उन के अपने फाइवस्टार होटल के डाइनिंगहौल के मंद प्रकाश में प्रिया और भी सुंदर लगी. प्रिया ने एक ऐसा टौप पहना थी कि उस के प्रति रामनाथ का आकर्षण और बढ़ता गया. बहुत प्रयास कर के अपने जज्बातों को काबू में रखा.

‘‘हाउ कैन आई हैल्प यू सर,’’ विनम्र भाव से पूछा वेटर ने.

रामनाथ ने अपने लिए एक कौकटेल का और्डर दिया.

फिर वेटर ने प्रिया से पूछा, ‘‘ऐंड फौर द लेडी सर,’’

सुनते ही प्रिया ने बेझिझक कहा, ‘‘गौडफादर फौर मी.’’

इस नाम को सुनते ही रामनाथ चौंक गए. यह लड़की इतना सख्त कौकटेल पीएगी, वे सोच भी नहीं सकते थे कि इतनी छोटी उम्र की लड़की ऐसा कौकटेल पी सकती है जो आदमी पर भी भारी पड़ सकता है.

कौकटेल आने के बाद दोनों पीने लगे. रामनाथ सोच रहे थे कि बात

कैसे शुरू की जाए. तभी प्रिया खुद बोली, ‘‘जी रामनाथ… हम ने डील साइन करा दी. मेरा काम यहीं तक है. इस के आगे हमारी कंपनी की तरफ से कोई और आएगा,’’ कहते वह बड़ी अदा के साथ कौकटेल पीने लगी. उस के पीने का अंदाज देख कर यह स्पष्ट हुआ कि यह लड़की इसे अकसर पीती है.

एक राउंड के बाद रामनाथ ने प्रिया के हाथ पकड़ कर उस के चेहरे को गौर से देखा ताकि उस की भावना को समझ सकें. प्रिया ने धीरे से रामनाथ के हाथों को हटा कर उन की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तो रामनाथ आप मेरे साथ सोना चाहते हैं?’’

प्रिया का यह सवाल सुन कर रामनाथ हैरान रह गए. उन की जिंदगी में प्रिया पहली लड़की है जो इस तरह सीधे मुद्दे पर आई. इतनी छोटी उम्र में इतनी हिम्मत… रामनाथ को सच में एक झटका सा लगा.

गौडफादर को सिप करते हुए प्रिया बोली, ‘‘मैं इतनी भी भोली नहीं हूं कि आप का इरादा न समझ सकूं… पहले दिन ही मुझे पता चल गया था कि आप के मन में क्या चल रहा है… आप जैसे बड़ेकारोबारी मुझ जैसी चुटकी लड़कियों के साथ व्यवसाय के मामले में बात नहीं करते और इस काम को अपने किसी अधिकारी को ही देते लेकिन आप ने ऐसानहीं किया. और तो और आप अपना पर्सनल कार्ड भी मुझे दे कर मुझ से बात करने लगे… और यह लंच मेरी जैसी एक मामूली लड़की के साथ… मैं बेवकूफ नहीं हूं. आप के मन में क्या चल रहा है यह आईने की तरह मुझे साफ दिख रहा है. इट इज ओब्वियस… आप को कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं.’’

रामनाथ सच में अवाक रह गए थे. उन्होंने अब तक कई लड़कियों को अपने जाल में फंसा लिया था, मगर किसी लड़की में इस तरह बात करनेझ्र की जुर्रत होगी यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था.

अपने कोमल हाथों से कांच के गिलास को इधरउधर घुमा कर प्रिया ही बोली, ‘‘मेरा इस तरह सीधे मुद्दे पर आना आप को चौंका गया पर गोलगोल बातें करना मेरी आदत ही नहीं… मेरे खयाल से आप का यह इरादा गलत नहीं है… आप ने अपने मन की इच्छा प्रकट की और अब अपनी राय बताने की मेरी बारी है.’’

‘‘सच कहूं तो मुझे कोई एतराज नहीं, मगर मेरी कुछ शर्तें हैं, जिन्हें आप को मानना पड़ेगा. जब बात जिस्म की होती है तो दोनों तरफ से एक लगाव का होना जरूरी है. मेरी खूबसूरती खासकर मेरा यौवन आप को मेरी ओर आकर्षित कर गया, मगर आप को अपने करीब आने की मंजूरी देने के लिए आप में ऐसा क्या है, जब मैं ने सोचा तो पता चल ही गया पैसा… बहुत ज्यादा पैसा जो मेरे पास नहीं है… वह पैसा जिसे पाने का जनून है मुझ में.’’

रामनाथ ने प्रिया की ओर देख कर कहा, ‘‘क्या तुम यह चाहती हो कि मैं तुम से शादी करूं?’’

रामनाथ की बात सुन कर प्रिया जोर से हंसने लगी. उस की हंसी से यह

साफ दिख रहा था कि उस के अंदर के गौडफादर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है.

‘‘ओ कमऔन आप इतने बेवकूफ कैसे बन सकते हैं… शादी और आप से सच में आप मजाक ही कर रहे होंगे. आप किस जमाने में जी रहे हैं… शादी के बारे में तो मैं दूरदूर तक नहीं सोच सकती. अभीअभी मैं ने आप से कहा कि आप के पास मुझे आकर्षित करने वाली सिर्फ एक ही चीज है और वह है पैसा और आप मुझे अपने साथ रिश्ता जोड़ने की बात कर रहे हैं. हाउ द हेल कैन यू थिंक लाइक दिस?’’

‘‘आज की दुनिया में हम जैसी युवतियों का जीना ही मुश्किल है. हमारे आगे बहुत सारी चुनौतियां हैं, हमारी नौकरी में भी ढेर सारी दिक्कतें हैं. आप लोगों को इस के बारे में पता नहीं. अगर हम अमेरिका जाएं तो वहां भी जिंदगी आसान नहीं है. इन सभी कठिनाइयों को दूर करने का एक ही रास्ता है पैसा… बहुत सारा पैसा.’’

प्रिया क्या कहना चाहती है, रामनाथ को सच में पता नहीं चला.

‘‘मैं आप के इस प्रस्ताव को मानती हूं, मगर इस के बदले में आप अन्य औरतों को जिस तरह 3 या 4 लाख फेंकते हैं वे मेरे लिए पर्याप्त नहीं. आप के बारे में बहुत सारे अध्ययन करते समय मुझे पता चला कि आप के सभी कारोबारों में यह सोने और हीरे का व्यवसाय बहुत ही लाभदायक है. मैं आप के सामने 2 विकल्प रखती हूं. आप इस व्यवसाय को मेरे नाम कर दीजिए वरना आप के कारोबारों में जिन 3 बिजनैस को मैं चुनती हूं उन में मुझे 51% भागीदारी बनाइए और उस के बाद हमारा रिश्ता शुरू.

‘‘हां, यह मत समझना कि पैसे देने से आप मुझ पर किसी प्रकार का हुकम चला सकते हैं. हर महीने सिर्फ 10 दिन हम इस फाइवस्टार होटल में 1 घंटे के लिए मिल सकते हैं, बस. अगर आप को यह डील मंजूर है तो मुझे फोन कर दीजिएगा वरना अलविदा,’’ और फिर प्रिया अपना हैंडबैग ले कर वहां से चली गई.

रामनाथ का सारा नशा उतर गया. लौटती प्रिया को एकटक देखते रह गए. एक पल को पता ही नहीं चला कि वे भारत में हैं या किसी पश्चिमी देश में.

होटल से बाहर आई प्रिया को नशे की वजह से चक्कर आने लगा तो

अपनेआप को संभालने की कोशिश करने लगी तभी एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. गाड़ी से एक हाथ बाहर आया और फिर प्रिया को

खींच कर गाड़ी में बैठा लिया. वह और कोई नहीं प्रिया का जिगरी दोस्त रोशन था. कुछ दूर चलने के बाद गाड़ी को किनारे खड़ा कर उस ने प्रिया के चेहरे पर पानी के छींटे मारे और फिर एक बोतल नीबू पानी पीने को दिया. नीबू पानी पीते ही प्रिया उलटी करने लगी. कुछ देर में होश में आ गई.

‘‘बहुत खूब प्रिया. जैसे हम ने योजना बनाई थी बिलकुल उसी तरह तुम ने बोल कर उस आदमी को अच्छा सबक सिखाया. अच्छा हुआ कि तुम ने उस के मंसूबे को सही वक्त पर पहचान लिया और उस कामुक व्यक्ति को अपनी औकात दिखा दी. उस जैसे आदमी यह सोचते हैं कि अपने पैसों, शान, शोहरत, रुतबे आदि से किसी भी लड़की को अपने बिस्तर तक ले जा सकते हैं.

‘‘उन के मन में औरत के लिए इज्जत नहीं. उन के लिए औरत एक खिलौना है, जिस के साथ मन चाहे समय तक खेले और फिर चंद रुपए दे कर फेंक दिया. यह लोग इंसान के रूप में समाज में भेडि़यों की तरह औरत को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. वह अब हैरान हो कर बैठा होगा और समझ गया होगा कि औरत बिकाऊ नहीं है. उस की संकीर्ण सोच पर पड़ा पर्दा हट गया होगा.’’

प्रिया के थके चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट फैल गई जो औरत की जीत की मुसकराहट थी.

 

मेरे मसूड़े क्यों सिकुड़ रहे हैं, इस वदह से परेशानी बढ़ रही है, कृप्या समस्या का समाधान बताएं?

सवाल

मेरे मसूड़े क्यों सिकुड़ रहे हैं?

जवाब

मसूड़ों में सिकुड़न मसूड़ों में बीमारी होने का शुरुआती संकेत है. इसे कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. जब आप यह देखें कि आप के दांत लंबे निकल रहे हों और ज्यादातर दांत दिख रहे हों तब आप समझें कि आप मसूड़ों की क्रोनिक बीमारी, जिसे पीरियोडोंटाइटिस कहा जाता है, से प्रभावित हैं और आप के मसूड़ों को पीरियोडोंटाइटिस से उपचार की जरूरत है. इस बीमारी की शुरुआत मसूड़ों में सूजन से होती है, जिस के परिणामस्वरूप मसूड़ों की बीमारी मामूली रूप में दिखती है जैसे जिंजिवाइटिस. लेकिन अगर इस का उपचार न कराया जाए तो यह पीरियोडोंटाइटिस के रूप में विकसित हो सकता है, जिस में सहायक हड्डी के साथसाथ दांतों का संपूर्ण ढांचा भी प्रभावित होता है. मसूड़े सूज जाते हैं और उन्हें दबाने पर उन से मवाद निकल सकता है. इस से मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है और मुंह से दुर्गंध आती है.

पीरियोडोंटाइटिस पूरे शरीर को प्रभावित करता है. पहले किए गए शोध से पता चला है कि मसूड़ों की बीमारी का हृदयरोग, मधुमेह, औस्टियोआर्थ्राइटिस और समयपूर्व प्रसव या बच्चे का जन्म के समय वजन कम होने से भी संबंध होता है. मसूड़ों के सिकुड़ने से आप के दांत भद्दे, लंबे और उन की जड़ें तक दिखने लगती हैं. दांत ठंडा और गरम के साथसाथ ब्रश के रगड़ने के प्रति भी अतिसंवेदनशील हो जाते हैं. इस के साथ ही दांतों की जड़ों में पीलापन भी आ जाता है, जिस से वे और पीले दिखते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि इस समस्या के होने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क किया जाए.

थप्पड़: मामू ने अदीबा के साथ क्या किया?

शाम ढलने को थी. इक्कादुक्का दुकानों में बिजली के बल्ब रोशन होने लगे थे. ऊन का आखिरी सिरा हाथ में आते ही अदीबा को धक्का सा लगा कि पता नहीं अब इस रंग की ऊन का गोला मिलेगा कि नहीं.

अदीबा ने कमरे की बत्ती जलाई और अपनी अम्मी को बता कर झटपट ऊन का गोला खरीदने निकल पड़ी.

जातेजाते अदीबा बोली, “अम्मी, ऊन खत्म हो गई है, लाने जा रही हूं, कहीं दुकान बंद न हो जाए.”

अम्मी ने कहा, “अच्छा, जा, पर जल्दी लौट आना, रात होने वाली है.”

लेकिन यह क्या. जहां सिर्फ दुकान जाने में ही आधा घंटा लगता है, वहां से ऊन खरीद कर आधा घंटा से पहले ही अदीबा वापस आ गई… यह कैसे?

मां ने बेटी के चेहरे को गौर से देखा. बेटी का चेहरा धुआंधुआं सा था और उस की सांसें तेजतेज चल रही थीं.

“क्या हुआ अदीबा, ऊन नहीं लाई?”

अदीबा ने रोते हुए अपनी अम्मी को जो आपबीती सुनाई तो अम्मी के होश उड़ गए.

अदीबा की आपबीती सुन कर अम्मी गुस्से से आगबबूला हो उठीं और उस नामुराद आदमी को तरहतरह की गालियां देने लगीं.

कुछ देर बाद जब अम्मी का गुस्सा ठंडा हुआ, तो उन्होंने कहना शुरू किया, “अब तुझे क्या बताऊं बेटी, यह मर्द जात होती ही ऐसी है. उन की नजरों में औरत का जिस्म बस मर्द की प्यास बुझाने का जरीया होता है.

“मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है. वह भी एक दफा नहीं, बल्कि कईकई दफा,”
इतना कह कर अम्मी अपने पुराने दिनों के काले पन्ने पलटने लगीं…

अम्मी ने अदीबा को बताया, “जब मैं 5वीं जमात में थी, तब एक दिन मदरसे के मौलवी साहब ने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी गोद में बिठा कर वे मेरे सीने पर हाथ फेरने लगे. वे अपना हाथ चलाते रहे और मुझे बहलाते रहे.

“मैं मासूम थी, इसलिए उन की इस गंदी हरकत को समझ न सकी. उन की इस गलत हरकत की वजह से मेरा सीना दर्द करने लगा था…”

हैरान अदीबा ने पूछा, “फिर क्या हुआ अम्मी?”

“उस जमाने में गलत और सही छूने का पता तो बड़े लोगों को भी ज्यादा नही था, मैं तो भला बच्ची थी. बहरहाल, छुट्टी मिलते ही मैं रोते हुए घर गई और अपनी अम्मी से सबकुछ साफसाफ बता दिया.

“फिर क्या था… अब्बू ने न सिर्फ मौलवी साहब की जबरदस्त पिटाई की, बल्कि उन्हें मदरसे से बाहर भी निकलवा दिया.

“इसी तरह एक बार, एक दिन मेरे दूर के रिश्ते के मामू अपनी 5 साल की बेटी के साथ हमारे घर मेहमान बन कर आए. वे तोहफे में ढेर सारी मिठाइयां और फल लाए थे.

“अपने रिश्ते के भाई की खातिरदारी में मेरी अम्मी ने मटन बिरयानी और चिकन कोरमा बनाया था. सब ने खुश हो कर खाया.

“अरसे बाद मिले भाईबहन अपने पुराने दिनों को याद करते रहे और मैं मामू की बेटी के साथ देर रात तक उछलकूद करती रही…”

यह बतातेबताते जब अदीबा की अम्मी सांस लेने के लिए ठहरीं, तो अदीबा ने बेसब्री से पूछा, “फिर क्या हुआ अम्मी?”

अम्मी ने कहना जारी रखा, “जैसे कि हर बच्चा आने वाले मेहमान के बच्चों के साथ सोना पसंद करता है, वैसा ही मैं ने भी किया और अपनी हमउम्र दोस्त के साथ मामू के बिस्तर पर ही सो गई.

“रात के किसी पहर में मेरी नींद तब खुली, जब मुझे एहसास हुआ कि मेरे तथाकथित मामू मेरी सलवार की डोरी खोल रहे हैं.

“मेरा हाथ फौरन सलवार की डोरी पर चला गया. डोरी खुल चुकी थी. मेरा हाथ अपने हाथ से टकराते ही तथाकथित मामू ने अपना हाथ तेजी से खींच लिया. मैं डर गई और जोरजोर से चिल्लाने लगी.

“यह चिल्लाना सुन कर मेरी अम्मी अपने कमरे से भागीभागी आईं और दरवाजा पीटने लगीं.

“तथाकथित मामू ने उठ कर दरवाजा खोला और अम्मी को देखते ही कहा, ‘अदीबा सपने में बड़बड़ा रही है…’

“अम्मी फौरन हालात की नजाकत भांप गईं और मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ ले चलीं. एक हाथ से सलवार पकड़े मैं थरथर कांपती उन के साथ चल पड़ी. इस बीच उन मामू की बेटी भी जाग चुकी थी और सारा तमाशा हैरत से देख रही थी.

“उस हादसे के बाद से हमेशाहमेशा के लिए उन तथाकथित मामू से हमारे परिवार का रिश्ता खत्म हो गया.”

अदीबा ने जोश में कहा, “अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ. ऐसे गंदे लोग रिश्तेदार के नाम पर बदनुमा दाग होते हैं.”

अम्मी जब यादों के झरोखों से वापस लौटीं, तो फिर कहने लगीं, “छोड़ो, अब इस किस्से को यहीं दफन करो वरना जितने मुंह उतनी बातें होंगी. लड़कियां सफेद चादर की तरह होती हैं, जिन पर दाग बहुत जल्दी लग जाते हैं, जो छुड़ाने से भी नहीं छूटते, इसलिए भूल कर भी किसी से इस बात का जिक्र मत करना.”

दरअसल, ऊन खरीदने के लिए जाते समय रास्ते में अदीबा को दूर के एक रिश्तेदार मिल गए थे. वे बातें करते हुए साथसाथ चलने लगे और चंद मिनटों में ही कुछ ज्यादा ही करीब होने की कोशिश करने लगे. अदीबा फासला बढ़ा कर चलना चाहती और वे फासला घटा कर चलना चाहते.

पहले तो वे अदीबा के साथ सलीके से बातचीत करते रहे, लेकिन जैसे ही गली में अंधेरा मिला, तो वे अपनी असलियत पर उतर आए.

उन का हाथ बारबार किसी न किसी बहाने अदीबा के सीने को छूने लगा. अदीबा उन की नीयत भांप गई, फिर बिना लिहाज के एक जोरदार थप्पड़ उन के चेहरे पर रसीद कर दिया कि वे बिलबिला उठे.

इस के बाद अदीबा ऊन का गोला खरीदने का इरादा छोड़ कर बीच रास्ते से ही घर वापस लौट आई.

बड़े मियां इस अचानक होने वाले हमले के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. उन के कानों में अचानक सीटियां सी बजने लगीं और आंखों के सामने गोलगोल तारे नाचने लगे. उन्होंने बिना इधरउधर देखे सामने वाली पतली गली से निकलना मुनासिब समझा.

यही वजह थी कि अदीबा जब घर में दाखिल हुई, तो उस का चेहरा धुआंधुआं था और सांसें तेजतेज चल रही थीं.

बहरहाल, इस तरह मांबेटी की बातचीत में कई परतें और कई गांठें खुलती चली गईं.

गर्भावस्‍था के दौरान अपने पैरों की देखभाल कैसे करें

हमारे पैर सीधे तौर पर हमारे शरीर के सबसे ज्‍यादा काम करने वाले अंग हैं। इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि हम कई कामों के लिये अपने पैरों पर निर्भर हैं, इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये कि जीवन में हमारे पैरों को कई तरह की समस्‍याएं भी हो सकती हैं। पैरों की साधारण-सी लगने वाली समस्‍याओं को भी अगर हल्‍के में लिया जाए, तो हमारा जीवन असहज हो सकता है।

इंडिया फास्टेस्ट ग्रोइंग फुटवेयर स्टार्टअप, योहो फुटवियर कंपनी में कंसल्‍टेन्‍ट डॉ. अक्षत मित्‍तल का कहना है कि- पैरों की नियमित और मूलभूत देखभाल करे, जैसे कि सही प्रकार और आकार के जूते चुनना, पैरों को मॉइश्‍चराइज करना और नाखूनों को सावधानी से काटना हमारे पैरों को लंबे समय तक स्‍वस्‍थ और खुश रख सकते हैं।

गर्भावस्‍था में पैरों की समस्‍याएं-
इसके साथ ही, गर्भावस्‍था से सम्‍बंधित पैरों की समस्‍याएं ज्‍यादा दर्द दे सकती हैं और हो सकता है कि विशेष देखभाल की जरूरत पड़े। गर्भावस्‍था के दौरान महिला का शरीर शिशु की आवश्‍यकताएं पूरी करने के लिये लगभग 50% ज्‍यादा खून और तरल बनाता है, जिससे अक्‍सर पैरों, टखनों और टांगों में सूजन आ जाती है। इसके अलावा, गर्भावस्‍था के दौरान महिला का औसतन 10-12 किलोग्राम वजन बढ़ जाता है, वह भी शिशु के वजन के अलावा, जिससे खून को पेडू से हृदय की ओर वापस ले जानी वाली नसों पर दबाव पड़ता है, खून का संचार बाधित होता है और सूजन आती है। गर्भवती माताओं को फुटवियर चुनते वक्‍त सावधानी रखनी चाहिये, जैसे कि वे कम्‍फर्ट वाले हों, हल्‍के वजन के हों, साथ ही हमें सही आकार और फिटिंग का ध्‍यान रखना चाहिये। ज्‍यादातर महिलाएं वही फुटवियर पहनना जारी रखती हैं, जो वे गर्भधारण के पहले पहनती थीं और हो सकता है कि इससे गर्भावस्‍था के दौरान जरूरी सपोर्ट और कुशनिंग न मिले।

ज्‍यादातर गर्भवती महिलाओं को अपने पैरों तक पहुँचने में असमर्थता होती है और वे सूजन, ऐंठन, दर्द, खुजली और वैरीकोज़ वेन्‍स का अनुभव करती हैं। अच्‍छी गुणवत्‍ता का फुटवियर लेने की सलाह दी जाती है, जो कि आरामदायक, हल्‍के वजन वाला हो और इस विशेष अवस्‍था के दौरान जरूरी अतिरिक्‍त देखभाल के लिये पूरा सपोर्ट दे। ब्राण्‍ड की नये जमाने की पेशकश, जिनमें फुटफार्मा ऑर्थोपेडिक फुटबेड, एंटी-स्किड इंटरवेन्‍शंस जैसी टेक्‍नोलॉजीज होती हैं, शुरूआती अवस्‍था से ही विशेष आवश्‍यकताओं को पूरा करती है।

अच्‍छा सपोर्ट देने वाले और सही फिट होने वाले अच्‍छे फुटवियर में निवेश के अलावा यह तरीके पैरों की उन आम समस्‍याओं को रोक सकते हैं, जिनका सामना महिलाएं गर्भावस्‍था के दौरान करती हैं
एडीमा: एडीमा गर्भावस्‍था के दौरान बहुत आम है। यह विशेषत: शरीर के ऊतकों में अतिरिक्‍त तरल के फंस जाने से होता है। एडीमा में सूजन और प्रदाह होता है, आमतौर पर पैरों, टखनों और टांगों में। बैठते और लेटते समय पैरों को ऊँचा रखने की सलाह दी जाती है, ताकि उनमें खून का संचार बेहतर हो और सूजन कम हो सके। एडीमा से पीड़ित होने पर एक और पहलू ध्‍यान देने योग्‍य होता है और वह है आपके मोजों का प्रकार। टाइट इलास्टिक से खून का संचार बाधित हो सकता है और सूजन बढ़ सकती है। ऐसे मोजे चुनें, जो आसानी से आप पर फिट हो जाएं और काफी आरामदायक हों.

फटी एड़ियाँ: गर्भवती महिलाओं के हॉर्मोन और वजन में बदलाव से कुल मिलाकर पैरों पर बढ़ा हुआ दबाव लचीलेपन को खत्‍म कर सकता है और उनकी एड़ियाँ फट सकती हैं। इससे असहजता और दर्द हो सकता है। सूखेपन के कारण एड़ियों को फटने और त्‍वचा को खुजली से बचाने के लिये पैरों को नियमित रूप से मॉइश्‍चराइज करना एक बेहतरीन तरीका है.

वैरिकोज़ वेन्‍स: गर्भवती महिलाओं की एक अन्‍य आम समस्‍या है वैरिकोज़ वेन्‍स। चूंकि गर्भावस्‍था के दौरान शरीर की नसों को ज्‍यादा काम करना पड़ता है, क्‍योंकि खून की मात्रा 20% तक बढ़ जाती है, लेकिन नसों की संख्‍या वही रहती है, इसलिये गर्भवती महिला की टांगों और पैरों की बाहरी नसें फूल जाती हैं। अच्‍छी गुणवत्‍ता का फुटवियर और कम्‍प्रेशन वाले मोजे पैरों को जरूरी सपोर्ट देते हैं। इसके अलावा, पैरों को ऊँचा रखने से भी खिंचाव कम करने में मदद मिलती है.

पैरों की सूजन और खिंचाव को कम करने के कुछ आम तरीकों में गर्म तेल या क्रीम से पंजे से ऊपर की ओर मालिश करना शामिल है। तलवों को खींचने के लिये पंजों को धीरे-धीरे पैरों की ओर ले जाना आराम देने वाली कसरत है। हफ्ते में दो बार 20-25 मिनट के लिये अपने पैरों और टखनों को ठंडे पानी में रखने से पैरों को आराम मिलता है और सूजन कम होती है.
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Holi Special: रंग बनाने में होता है पलाश का इस्तेमाल

डा. नवीन कुमार बोहरा

पलाश को हिंदी में ढाक, बंगाली में पलाश, मराठी में पलस, गुजराती में खाखरो, तेलुगु में मोंदुगा, तमिल में परस, कन्नड़ में मुलुगा, मलयालम में पलास औैर वैज्ञानिक भाषा में ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते हैं. मार्च माह में पूरा पेड़ सिंदूरी यानी लाल रंग के फूलों से लद जाता है और मीलों दूर से यह अपनी मौजूदगी की सूचना देता है. इसी वजह से इसे फ्लेम औफ फौरेस्ट यानी जंगल की आग भी कहते हैं.

पलाश मध्यम आकार का पर्णपाती यानी पत्तों से घिरा पेड़ है. यह पेपिलिओनेसी कुल का पौधा है. यह एक अति प्राचीन पेड़ है. इस का उल्लेख वेदों में कई जगहों पर आया है. आयुर्वेद के जनक चरक और सुश्रुत ने पलाश के समूचे पेड़ की अहमियत बताई है. इसे संस्कृत साहित्य में किशुक, रक्त पुष्पक, क्षार श्रेष्ठ, ब्रह्मा पादप वगैरह नामों से जाना जाता है. यह भारत के तकरीबन सभी भागों में पाया जाता है.

पलाश के पेड़ से हासिल लाख के कीडे़ के भू्रण से बेर और दूसरे लाख पोषियों को निवेशित भी किया जाता है, पर कुसुम पर निवेशित नहीं किया जाता है. इसे जड़ चूषकों यानी रूट सकर्स द्वारा पुनर्जीवित यानी फिर से जिंदा किया जा सकता है. इस के विभिन्न भाग भिन्नभिन्न रूपों में उपयोगी हैं :

1 पत्तियां :

पलाश की पत्तियां फरवरी माह में  झड़ जाती हैं और नई पत्तियां फूल खिलने के बाद मार्चअप्रैल माह में निकलती हैं. इस की पत्ती में 20-30 सैंटीमीटर वृत्ताकार माप के 3 पत्रक पाए जाते हैं. पत्तियां शीतल, रुक्ष, ग्राही और कफरात शामक होने से प्राचीन काल से ही रेशभर में दोनापत्तल बनाने के काम आती हैं.

ऐसा माना जाता है कि इन में भोजन करने से भूख बढ़ती हैं और पाचन क्रिया ठीक रहती है. आंखों और दिमाग को भी इस से ऊर्जा मिलती है. इन का उपयोग करने के बाद आसानी से अलग कर नष्ट कर सकते हैं.

पूरी तरह से विकसित एक पेड़ से तकरीबन 2,500 से 4,000 तक पत्तियां हासिल होती हैं जो 350 से 400 पत्तलें बनाने के लिए पर्याप्त है. इस से गांव वालों द्वारा एक साल में 2,000 से 3,000 रुपए तक कमाए जा सकते हैं. इस के अलावा पत्तियों का उपयोग फोड़ाफुंसी, मुहांसे, गिलटी, हीमोराइड्स वगैरह के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है. इस की पत्तियों में मौजूद ग्लूकोसाइड के चलते ये पौष्टिक चारे के रूप में भी इस्तेमाल होती हैं.

2 बीज :

पलाश की फली मई माह में पक कर तैयार हो जाती है. फली की नोक पर पाया जाने वाला बीज लालकथई रंग का, अंडाकार या गुरदाकार होता है. इस के बीजों में 8-10 फीसदी काइनो तेल, 18 फीसदी एल्युमिनाइड व कुछ फीसदी शर्करा पाई जाती है. बीज और तेल में कृमिनाशक गुणों के चलते इन का इस्तेमाल बुखार, मलेरिया, फीताकृमि व गोलकृमि के इलाज में किया जाता है. तेल व इस की खली में पाया जाने वाला लिपिडरहित पदार्थ कीटनाशक होता है. इसे तेल और खली से अलग कर कीटनाशक के रूप में उपयोगी बनाने के लिए अनुसंधान जारी है. पलाश के बीजों का इस्तेमाल तेल, साबुन उद्योग में भी किया जाता है, जबकि इस की खली प्रोटीन से भरपूर होती है.

3 फूल :

इस के फूल बाहर से मखमली भूरे पीले व भीतर की ओर सिंदूरी लाल रंग के होते हैं और मार्च माह में पूरे वनों में अपनी मौजूदगी दिखाते हैं. इस वजह से ही इन्हें फ्लेम औफ फौरेस्ट कहते हैं. इस के फूलों में सुगंध न होने के चलते लुभावने रंग, पौष्टिक परागण और रस के कारण अनेक कीटों को लुभाते हैं.

अर्क के रूप में पलाश के सूखे फूलों से पीला रंग हासिल होता है जिस में फिटकरी, चूना मिला कर गहरा सिंदूरी या नारंगी रंग हासिल करते हैं जो सिल्क, दूसरे कपड़े यानी फैब्रिक, लकड़ी या खाद्य पदार्थों को रंगने के काम आता है. इस रंग से रंगे हुए कपड़े पांडुरोगी को पहनाने से इस रोग की बढ़वार पर रोक लगती है और चर्म रोग व चेचक के प्रकोप से भी बचाव होता है. फूल सूजन, प्रदाह या जलन को कम करते हैं. होली पर आज भी पलाश के फूलों से रंग बनाया जाता है.

4 जड़ :

पलाश की नई जड़ों से रेशा निकलता है, जो मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में रस्सियां वगैरह बनाने के काम आता है. इस की जड़ की छाल ब्लडप्रैशर के इलाज में फायदेमंद है.

5 लकड़ी :

इस की लकड़ी आमतौर पर गांवदेहात में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होती है. इस की छाल से हासिल अर्क का इस्तेमाल नजला और खांसी के इलाज में किया जाता है.

6 गोंद :

इस की छाल की दरारों और कृत्रिम चीरों से लाल रस निकलता है जो सूख कर लाल गोंद बन जाता है. इसे ढाक का गोंद या बंगाल कीनो कहते हैं. इस में कार्नटिक अम्ल और गौलिक अम्ल 50 फीसदी पिच्छल द्रव्य व 2 फीसदी क्षार पाए जाते हैं. इस गोंद को पुनिया गोंद या कमरकस कहते हैं. यह त्वचा की बीमारियों, मुंह से संबंधित बीमारी, अतिसार, पेचिस, पेट संबंधी बीमारी और दूसरी बीमारियों में बेहद उपयोगी है.

7 लाख :

लाख एक रेजिन स्राव है, जो लेसिफर लेक्का नामक कीट द्वारा स्रावित किया जाता है. यह कीट पलाश के पेड़ परजीवी के रूप में रहता है. एक साल में 2 बार यह हासिल किया जा सकता है.

अप्रैलमई माह में लाख का उत्पादन कम होता है, लेकिन सुनहरे रंग के कारण इस की कीमत ज्यादा होती है, जबकि अगस्तसितंबर माह में हासिल होने वाला लाख गहरे रंग का होने के चलते अपेक्षाकृत कम कीमत में बिकता है.

लाख का उपयोग खोखले गहनों के अंदर भरने, लाख के गहने, खिलौने व ग्रामोफोन रिकौर्ड बनाने में किया जाता है.

इस तरह पलाश दोना, पत्तल कारोबार व लाख उत्पादन के चलते किसानों के लिए कृषि वानिकी के तहत उपयुक्त होता है और प्रयोगों द्वारा इस से खेती की पैदावार पर भी कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होने की पुष्टि हो चुकी है. यह लवणीय मिट्टी के सुधार के लिए भी काफी उपयोगी है.

जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी

वह औरत कौन थी? कार में धीरज के साथ कहां जा रही थी? धीरज के साथ उस का क्या रिश्ता था? धीरज के पास से तो उस का मोबाइल और पर्स मिल गया था, लेकिन उस औरत का कोई पहचानपत्र या मोबाइल घटनास्थल से बरामद नहीं हुआ. इस वजह से यह सब एक रहस्य बन गया था.

धीरज के मित्र, औफिस वाले, रिश्तेदार और पड़ोसी सब जानना चाहते थे कि आखिर वह औरत थी कौन? और उस का धीरज से क्या रिश्ता था? सब को धीरज की मौत का गम कम, उस राज को जानने की उत्सुकता ज्यादा थी.

जिंदगी में कभीकभी ऐसा घटित हो जाता है कि इंसान समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हो गया? ऐसी ही एक घटना नहीं बल्कि दुर्घटना घटी शोभा के साथ. उस का पति धीरज एक औरत के साथ सड़क दुर्घटना में मारा गया था.

पुलिस ने अपनी खानापूर्ति कर दी. दोनों लाशों का पोस्टमौर्टम हो गया. उस औरत की लाश को लेने कोई नहीं आया, सो, उस का अंतिम संस्कार पुलिस द्वारा कर दिया गया.

वह औरत शादीशुदा थी क्योंकि उस की मांग में सिंदूर था. सवाल यह था कि वह गैरमर्द के साथ कार में क्यों थी? कार के कागजात के आधार पर पता चला कि वह कार धीरज के मित्र की थी. एक दिन पहले ही धीरज ने उस से यह कह कर ली थी कि वह एक जरूरी काम से चंडीगढ़ जा रहा है, लेकिन कार दुर्घटनाग्रस्त हुई दिल्लीआगरा यमुना ऐक्सप्रैसवे पर यानी धीरज ने अपने मित्र से झूठ बोला.

जब दुर्घटना की गुत्थी नहीं सुलझ सकी तो लोगों ने खुल कर कहना शुरू कर दिया कि उस औरत के साथ धीरज के अवैध रिश्ते रहे होंगे और वे दोनों मौजमस्ती के लिए निकले होंगे.

लोगों की इस बेहूदा सोच पर शोभा खासी नाराज थी लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. किसी का मुंह वह बंद तो नहीं कर सकती थी.

धीरज उसे बहुत प्यार करता था. शादी के 5 वर्षों में जब उन्हें संतान सुख नहीं मिला तब उन दोनों ने अपनाअपना मैडिकल चैकअप कराया. रिपोर्ट में पता चला कि वह मां नहीं बन सकती जबकि धीरज पिता बनने के काबिल था. यह जान कर वह बहुत रोई और धीरज से बोली, ‘तुम दूसरी शादी कर लो, मैं अपना जीवन काट लूंगी.’

‘शोभा, अगर कमी मुझ में होती तो क्या तुम मुझे छोड़ कर दूसरी शादी कर लेतीं,’ कहते हुए धीरज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था.

क्या उस से इतना प्यार करने वाला धीरज उस के साथ इस तरह बेवफाई कर सकता है? शोभा ने अपने मन को यह कह कर तसल्ली दी, हो सकता है उस औरत ने धीरज से लिफ्ट मांगी हो. लेकिन दिमाग में कुछ सवाल बिजली की तरह कौंध रहे थे कि धीरज ने अपने दोस्त से गाड़ी चंडीगढ़ जाने को कह कर ली तो फिर वह आगरा जाने वाले यमुना ऐक्सप्रैसवे पर क्यों गया? मित्र से उस ने झूठ क्यों बोला? आखिर वह जा कहां रहा था? और उसे भी कुछ बता कर नहीं गया जबकि वह उस को छोटी से छोटी बात भी बताता था. कुछ बात तो जरूर है तभी धीरज ने उस से अपने बाहर जाने की बात छिपाई थी.

शोभा को दुखी और परेशान देख कर उस के पिता ने कहा, ‘‘बेटी, जो होना था वह तो हो गया, तुम अब खुद को मजबूत करो और आर्थिक रूप से अपने पांवों पर खड़ी होने की कोशिश करो. धीरज की कोई सरकारी नौकरी तो थी नहीं कि जिस के आधार पर तुम्हें नौकरी या पैंशन मिलेगी. उस के कागजात देखो, शायद उस ने कोई इंश्योरैंस पौलिसी वगैरह कराई हो. उस के बैंक खातों को भी देखो. शायद तुम्हें कुछ आर्थिक मदद मिल सके.’’

‘‘नहीं पापा, मुझे सब पता है. उन्होंने कोई पौलिसी वगैरह नहीं कराई थी. न ही बैंक में कोई खास रकम है, क्योंकि उन की नौकरी मामूली थी और वेतन भी कम था. कुछ बचता ही कहां था जो वे जमा करते. वे अपने मांबाप की भी आर्थिक मदद करते थे.’’

‘‘फिर भी बेटा, एक बार देख लो, हर इंसान अपने आने वाले वक्त के लिए करता है और फिर धीरज जैसे समझदार इंसान ने भी कुछ न कुछ अवश्य किया होगा.’’

दुखी मन से शोभा ने धीरज की अलमारी खोली, शायद उस के कागजात के साथ ही उस के साथ हुए हादसे का भी कोई सूत्र मिल जाए. अलमारी में बैंक की एक चैकबुक मिली और भारतीय जीवन बीमा निगम की एक डायरी मिली. उस ने उसे जोश के साथ से खोला. पहले ही पृष्ठ पर लिखा था, ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी.’ कुछ पृष्ठों पर औफिस से संबंधित कार्यों का लेखाजोखा था.

डायरी के बीच में एक मैडिकल स्टोर का परचा मिला, जिस में कुछ दवाइयां लिखी थीं. ये कौन सी दवाइयां थीं, खराब लिखावट की वजह से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. जिस तारीख का परचा था, शोभा को खासा याद था कि उस ने उस दौरान कोई दवाई नहीं मंगाई थी. इस का मतलब धीरज ने अपने लिए दवा खरीदी थी. यह सोच कर वह भयभीत हो उठी कि कहीं धीरज किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त तो नहीं था.

उस ने फौरन मैडिकल स्टोर जाने का फैसला लिया. वह मैडिकल स्टोर उस के घर से काफी दूर था, लेकिन वह वहां गई. मैडिकल स्टोर वाले ने परचे पर लिखी दवाएं तो बता दीं लेकिन दवाएं लेने कौन आया था, वह न बता सका. दवाइयां दांतों की बीमारी से संबंधित थीं.

उस दौरान धीरज को दांतों से संबंधित कोई समस्या नहीं थी. अगर थी भी तो वह अपने घर या औफिस के नजदीक के मैडिकल स्टोर से दवा लेता. इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी? तो इस का मतलब साफ था कि धीरज ने किसी और के लिए दवाइयां खरीदी थीं. किस के लिए खरीदी थीं, यह जानने के लिए शोभा ने घर आ कर धीरज का सामान फिर से टटोला.

उस ने उस की डायरी दोबारा अच्छी तरह से चैक की. 15 अगस्त वाले पृष्ठ पर उस ने लिखा था, ‘आज आजादी का दिन मेरे लिए खास बन गया.’ आखिर 15 अगस्त को ऐसा क्या हुआ था जो उस के लिए खास बन गया था, इस बात का जिक्र नहीं था.

उस ने उस के मोबाइल पर भी एक चीज नोट की, उस ने अपने मोबाइल के वालपेपर पर तिरंगे के साथ अपनी हंसतीमुसकराती तसवीर लगा रखी थी. तभी उस का मोबाइल बज उठा. बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन थी. यह सत्य था कि उसे बच्चों से बहुत प्यार था, इसलिए उस ने बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन लगा रखी थी. लेकिन आज ध्यान से सुना तो बीच में कोई धीरे से बोल रहा था, ‘पापा, बोलो पापा.’

यह सुन कर उस का माथा ठनका. हो न हो, 15 अगस्त और बच्चे की खिलखिलाहट में कुछ न कुछ राज जरूर छिपा है.

वालपेपर को उस ने गौर से देखा. धीरज के पीछे एक अस्पताल था. अस्पताल का नाम साफ नजर आ रहा था. शायद उस ने सैल्फी ली थी यानी 15 अगस्त को धीरज उस अस्पताल के पास था. वह वहां क्यों गया था, यह जानने के लिए वह तुरंत उस अस्पताल के लिए चल पड़ी. वह भी काफी दूर था. वहां गई तो वास्तव में अस्पताल के बाहर तिरंगा लहरा रहा था. यह तो तय हो गया था कि धीरज ने सैल्फी यहीं ली थी. लेकिन वह यहां करने क्या आया था. अचानक उस के मस्तिष्क में बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन और ‘पापा, बोलो पापा’ की ध्वनि बिजली की तरह कौंध गई और वह फौरन अस्पताल के अंदर चली गई.

मैटरनिटी होम के रिसैप्शन पर जा कर उस ने 15 अगस्त को जन्मे बच्चों की जानकारी चाही. पहले तो उसे मना कर दिया गया, लेकिन काफी रिक्वैस्ट करने पर बताया गया कि उस दिन 7 बच्चे हुए थे जिन में 4 लड़के और 3 लड़कियां थीं. उन बच्चों के पिता के नाम में धीरज का नाम नहीं था. सातों मांओं के नाम उस ने नोट कर लिए. अस्पताल के नियम के मुताबिक उसे उन के पते और मोबाइल नंबर नहीं दिए गए.

घर आ कर उस ने धीरज के मोबाइल में उन नामों के आधार पर नंबर ढूंढ़े, लेकिन कोई नंबर नहीं मिला. एक नंबर जरूर ‘एस’ नाम से सेव था. उस ने उस नंबर पर फोन लगाया तो उधर से एक नारीस्वर गूंजा, ‘‘कौन?’’

‘‘जी, मैं बोल रही हूं.’’

‘‘कौन? तू सीमा बोल रही है क्या?’’

यह सुन कर वह थोड़ा घबराई, ‘‘आप मेरी बात तो सुनिए.’’

‘‘अरे सीमा, क्या बात सुनूं तेरी? तू उस दिन शाम तक आने को कह कर गई थी और आज चौथा दिन है. तेरे बच्चे का रोरो कर बुरा हाल है. जल्दबाजी में तू अपना मोबाइल और पर्स भी यहीं भूल गई. तेरे फोन भी आ रहे हैं. समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं कि तू है कहां?’’

‘‘जी, वह बात यह है कि…’’

‘‘तू इतना घबरा कर क्यों बोल रही है? कोई परेशानी है तो मुझे बता, क्या पति से झगड़ा हो गया है?’’

‘‘जी, मैं सीमा नहीं, उस की बहन शोभा बोल रही हूं.’’

‘‘शोभा? लेकिन सीमा ने कभी आप का जिक्र ही नहीं किया. आप बोल कहां से रही हैं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता पाऊंगी. आप से मिल कर सबकुछ विस्तार से बता दूंगी. शीघ्र ही मैं आप से मिलना चाहती हूं. प्लीज, आप अपना पता बता दीजिए,’’ निवेदन करते हुए उस ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं अभी आप को अपना पता एसएमएस करती हूं.’’

चंद मिनटों में ही उस का पता मोबाइल स्क्रीन पर आ गया और शोभा शीघ्र ही वहां के लिए रवाना हो गई.

जैसे ही शोभा ने दरवाजे की घंटी बजाई, एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘‘आप शोभाजी हैं न,’’ कहते हुए वे उसे बहुत सम्मान के साथ अंदर ले गईं.

पानी का गिलास पकड़ाते हुए बोलीं, ‘‘सीमा ने कभी आप का जिक्र तक नहीं किया था. वह मेरे यहां किराए पर अपने पति के साथ रहती थी. अभी 15 अगस्त को उस के बेटा  भी हुआ है. उस की ससुराल और मायके से कोई नहीं आया था. सारा काम मैं ने और उस के पति ने ही संभाला था. वह मुझे मां समान मानती है. अभी

4 दिनों पहले ही सुबह 6 बजे अपने बेटे को मेरे पास छोड़ कर जाते हुए बोली थी, ‘‘आंटी, एक बहुत जरूरी काम से हम दोनों जा रहे हैं, शाम तक वापस आ जाएंगे, प्लीज, तब तक आप आर्यन को संभाल लेना.’’

अपने पर्स से धीरज का फोटो निकाल कर उन्हें दिखाते हुए शोभा बोली, ‘‘आंटी, क्या यही सीमा के पति हैं?’’

‘‘हां, यही इस के पति हैं, लेकिन आप क्यों पूछ रही हैं? आप को तो सबकुछ पता होना चाहिए, क्योंकि आप तो सीमा की बहन हैं,’’ उन्होंने शंका जाहिर की.

‘‘आंटी, बात दरअसल यह है कि सीमा ने परिवार की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था, इसलिए हमारा उस से संपर्क नहीं था. लेकिन अभी 4 दिनों पहले ही सीमा और उस के पति की एक कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई है. आखिरी समय में उस ने पुलिस को हमारा पता और आप का मोबाइल नंबर बताया था. उसी के आधार पर मैं यहां आई हूं,’’ कहते हुए उस ने अखबार की कटिंग जिस में दुर्घटना के समाचार के साथसाथ सीमा और धीरज की तसवीर थी, दिखा दी, और फिर सुबक पड़ी.

वे बुजुर्ग महिला भी रो पड़ीं और सिसकते हुए बोलीं, ‘‘अब आर्यन तो अनाथ हो गया.’’

‘‘नहीं आंटी, आर्यन क्यों अनाथ हो गया. उस की मौसी तो जिंदा है. मैं पालूंगी उसे. आखिर मौसी भी तो मां ही होती है.’’

‘‘हां शोभा, तुम ठीक कह रही हो. अब तुम ही संभालो नन्हें आर्यन को,’’ कहते हुए वे अंदर से एक 7-8 माह के बच्चे को ले आईं जो हूबहू धीरज की फोटोकौपी था.

शोभा ने बच्चे को अपनी छाती से ऐसे चिपका लिया जैसे कोई उसे छीन न ले. वह जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाह रही थी.

आंटी ने कहा, ‘‘आप सीमा का कमरा खोल कर देख लो. बच्चे का जरूरी सामान तो अभी ले जाओ, बाकी सामान जब जी चाहे ले जाना. उस के बाद ही मैं कमरा किसी और को किराए पर दूंगी.’’

उस ने सीमा का कमरा खोला. कमरे में खास सामान नहीं था. बस, जरूरी सामान था. बच्चे का सामान और सीमा का पर्स व मोबाइल ले कर वह आंटी को फिर आने को कह कर घर चल पड़ी.

सारे रास्ते सोचती रही कि धीरज ने उस के साथ कितना बड़ा धोखा किया. दूसरी शादी रचा ली और बच्चा तक पैदा कर लिया. जब खुद उस ने दूसरी शादी के लिए कहा था तब कितनी वफादारी दिखा रहा था. ऐसे दोहरे व्यक्तित्व वाले इंसान के प्रति उस का मन घृणा से भर गया.

घर आ कर उस ने सब से पहले सीमा का पर्स चैक किया. पर्स में थोड़ेबहुत रुपए, दांतों के डाक्टर का परचा और थोड़ाबहुत कौस्मैटिक का सामान था. पैनकार्ड और आधारकार्ड से पता चला कि सीमा धीरज के ही शहर की थी. इस का मतलब धीरज शादी के पहले से ही सीमा को जानता था और उस का प्रेमप्रसंग काफी पुराना था.

फिर उस ने सीमा का मोबाइल चैक किया. वालपेपर पर सीमा, धीरज और बच्चे का फोटो लगा था.

व्हाट्सऐप पर काफी मैसेज थे जो डिलीट नहीं किए गए थे.

‘‘सीमा, इतने सालों बाद तुम मुझे मैट्रो में मिली. मुझे अच्छा लगा. लेकिन यह जान कर दुख हुआ कि तुम्हारा पति से तलाक हो चुका है.’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे घर नहीं आऊंगा क्योंकि अब मैं शादीशुदा हूं और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. वैसे भी तुम अकेली रहती हो, मुझे देख कर तुम्हारी मकानमालकिन आंटी क्या सोचेंगी?’’

‘‘तुम ने आंटी को अपना परिचय मेरे पति के रूप में दिया, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘हमारे बीच जो कुछ क्षणिक आवेश में हुआ, उस के लिए मैं तुम से माफी चाहता हूं और अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगा.’’

‘‘क्या? मैं पिता बनने वाला हूं.’’

‘‘सीमा, प्लीज जिद छोड़ दो, मैं शोभा को तलाक नहीं दे सकता. मैं

उसे सचाई बता दूंगा. वह स्वीकार कर लेगी. उस का दिल बहुत बड़ा है. हम सब साथ रहेंगे. हमारे बच्चे को 2-2 मांओं का प्यार मिलेगा.’’

‘‘सीमा, मुझे अपने बच्चे से मिलने दो. उस के बिना मैं मर जाऊंगा.’’

इस के अलावा औरों के भी मैसेज थे. तभी अचानक सीमा के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने तुरंत रिसीव किया, ‘‘कौन?’’

‘‘कौन की बच्ची? इतने दिनों से फोन लगा रही हूं. हर बार तेरी खड़ूस आंटी उठाती है और कहती है कि तू अभी तक वापस नहीं आई. क्या बात है? मथुरा में शादी कर के वहीं से हनीमून मनाने भी निकल गई.’’

शोभा चुप रही. बस, ‘‘हूं’’ कहा.

‘‘अच्छा, व्यस्त है हनीमून में. वैसे सीमा, यह ठीक ही रहा वरना धीरज तो तुझे अपने घर में अपनी बीवी की नौकरानी बना कर रख देता. तेरा बच्चा भी तेरा अपना नहीं रहता. बच्चे से न मिलने देने की धमकी सुन कर आ गया न लाइन पर. मेरा यह आइडिया कामयाब रहा. अब मंदिर में तू ने शादी तो कर ली है लेकिन ऐसी शादी कोई नहीं मानेगा, इसलिए बच्चे को ढाल बना कर जल्दी से जल्दी धीरज को अपनी बीवी से तलाक के लिए राजी कर.’’

‘‘हांहां,’’ शोभा ने अटकते स्वर में कहा.

‘‘हांहां मत कर, पार्टी की तैयारी शुरू कर. मैं अगले हफ्ते ही दिल्ली आ रही हूं औफिस के काम से.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए शोभा ने फोन काट दिया.

धीरज के प्रति उस के मन में जो गलत भाव आ गए थे, वे एक पल में धुल गए. सच में धीरज ने एक पति होने के नाते उसे पूरा मानसम्मान और प्रेम दिया. वह धीरज पर गौरवान्वित हो उठी. धीरज की निशानी नन्हें आर्यन को पा कर उस का तनमन महक उठा. उस ने उसे कस कर सीने से लगा लिया और बरसों से सहेजा ममता का खजाना उस पर लुटा दिया.

उस के अनुभवी पिता ने सत्य ही कहा था कि धीरज जैसे समझदार इंसान ने भविष्य के लिए कुछ न कुछ जरूर किया होगा. वास्तव में उस ने अपनी जिंदगी की एक महत्त्वपूर्ण पौलिसी करा ही दी थी जो शोभा का सुरक्षित भविष्य बन गई थी. बीमा कंपनी की टैग लाइन ‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ को सार्थक कर दिया था धीरज ने. वह जिंदगी में शोभा के साथ था और जिंदगी के बाद भी उस के साथ है नन्हें आर्यन के रूप में.

अगर तुम न होते -भाग 4 : अपूर्व ने संध्या मैडम की तस्वीर को गले से क्यों लगाया?

अपूर्व जब 2 साल का था, तभी टीबी की बीमारी से उस की मां का देहांत हो गया था. फिर उस के पिता ने दूसरी शादी कर ली और जिस से उसे 2 बच्चे हुए. अपूर्व की सौतेली मां उसे बिलकुल भी प्यार नहीं करती थी. संध्या मैडम को यह भी पता था कि वह उस के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती है. लेकिन अपूर्व के पिता सबकुछ जानते हुए भी इसलिए कुछ बोल नहीं पाते क्योंकि, बुरी ही सही पर, खाना तो पकाती है, घर व बच्चों का ध्यान तो रखती है वह.

‘अपूर्व, घर जाने से पहले मेरे पास आना जरा. किताब दे दूंगी तुम्हें. मेरे पास है,’ संध्या मैडम बोलीं, तो अपूर्व ने धीरे से ‘हां’ में सिर हिलाया और फिर किताब में आंखें गड़ा दीं. ‘अच्छा अपूर्व, तुम्हें किस ने बताया कि गांधी जी राहुल गांधी के दादा जी थे, बोलो, डरो मत.’ लेकिन पीछे से फिर सारे बच्चे ‘खीखी’ कर हंसने लगे, तो अपूर्व कुछ बोल नहीं पाया.

संध्या मैडम ने इस बार टेबल पर ऐसा जोर का डंडा मारा कि क्लास में एकदम सन्नाटा छा गया. ‘बेटा, गांधी जी, राहुल गांधी के दादा जी नहीं थे. राहुल गांधी के दादा जी का नाम फिरोज गांधी था और उन की दादी का नाम इंदिरा गांधी, जो देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. ठीक है?’ संध्या अपूर्व को समझा ही रही थी कि तभी लंच ब्रेक हो गया और सारे बच्चे अपनेअपने खाने के डब्बे ले कर बाहर निकल गए. लेकिन अपूर्व वैसे ही अपनी जगह पर बैठा रहा.

‘तुम्हें नहीं करना नाश्ता, तुम भी जाओ,’ संध्या मैडम की बात पर अपूर्व ने कोई जवाब नहीं दिया और अनमने ढंग से बैग उठा कर जाने ही लगा कि उस के बैग से सारा सामान नीचे गिर पड़ा. खाने का डब्बा भी खुल कर बिखर गया. ‘ओह, सिर्फ सूखी रोटी और गुड़, कैसे खाएगा बेचारा?’ संध्या को अपूर्व पर दया आ गई. लंचटाइम में जहां स्कूल के सारे बच्चे मौजमस्ती कर रहे थे, वहीं अपूर्व एक कोने में बैठा सब को बस खेलता देख रहा था. अपूर्व पढ़ने में काफी होशियार बच्चा था. क्लास में जो भी पढ़ाया जाता, वह ध्यान से सुनता और पूछने पर जवाब भी देता था. घर से भी वह अपना होमवर्क कर के लाता था. मगर क्लास के सारे बच्चों की तरह संध्या ने कभी उसे खुश रहते नहीं देखा. हंसना तो जैसे उसे आता ही न था. हमेशा गुमसुम, उदास बैठा रहता बेचारा.

कहनासुनना बड़ा आसान है कि मां के गुजर जाने पर बच्चे कैसे भी कर के पल ही जाते हैं. लेकिन अगर पिता न रहे तो घरपरिवार बिखर जाता है. अगर ऐसा ही था तो फिर अपूर्व के पिता को दूसरी शादी करने की जरूरत ही क्यों पड़ी? सचाई तो यही है कि मां के न रहने से भी घरपरिवार बिखर जाता है. पुरुष अगर बाहर जा कर पैसे कमा कर लाता है, तो औरत घर व बच्चे संभालती है. गाड़ी के 2 पहिए की तरह जब दोनों साथ चलते हैं तभी मंजिल तक पहुंच पाना संभव हो पाता है. लेकिन अगर एक बीच रास्ते में साथ छोड़ जाए, तो दूसरे का एकभी कदम आगे बढ़ पाना मुश्किल हो जाता है. अपूर्व की अच्छे से परवरिश हो सके, इसलिए उस के पिता ने दूसरा विवाह कर लिया. लेकिन आज अपूर्व की हालत देख कर उसे भी रोना आता है. पत्नी से कुछ कह भी नहीं पाता, क्योंकि बेकार में हंगामा खड़ा कर देती है. मायके जाने की धमकी देने लगती है. इसलिए डर कर अपूर्व के पिता कुछ बोल नहीं पाते.

उत्तर प्रदेश के माधोपट्टी गांव में कितने घरपरिवार हैं, कौन क्या काम करता है, संध्या को सब पता था. इस गांव के ज़्यादातर लोग खेतीबाड़ी पर ही निर्भर थे. कोईकोई चाय, पान, बीड़ी की दुकान खोले बैठे था, तो कई मंदिरों के सामने फूलमाला और प्रसाद बेच कर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता. अपूर्व के पिता अपनी गृहस्थी की गाड़ी हांकने के लिए हाथरिकशा चलाता था. घर के पीछ बाड़े में एक टुकड़ा जमीन थी जिस में थोड़ीबहुत सब्जी उपज जाती तो काम चल जाता था. वह, बस, यही चाहता था कि कैसे भी कर के अपूर्व थोड़ाबहुत पढ़लिख कर किसी काम में लग जाए तो उस की भी ज़िंदगी संवर जाएगी. लेकिन अपूर्व की सौतेली मां उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहती थी. सोचती, अपूर्व कहीं मरहेरा जाए, तो उसे शांति मिलेगी सौतेला बेटा जो था. लेकिन वहीं, अपने बच्चों के लिए उस के दिल में कितनी ममता थी.

टीचर और छात्रों के बीच अनुशासन जरूरी है, लेकिन समय के साथसाथ बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार की भी दरकार होती है. इस से बच्चे के मन की बात समझाने में आसानी तो होती ही है, बच्चे भी अपने मन की बात बेझिझक टीचर से बता सकते हैं. संध्या मैडम की कोशिशें ही थीं कि अपूर्व उन से घुलनेमिलने लगा था. स्कूल के बच्चों के साथ भी अब उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उन के साथ खेलना, दौड़ना और मस्ती करना अब उसे अच्छा लगता था. क्लास में वह टीचर के हर सवाल का जवाब बड़ी सहजता से देता और घर से होमवर्क भी ठीक से कर के लाता था. मगर जाने इधर कुछ दिनों से अपूर्व स्कूल क्यों नहीं आ रहा था… संध्या ने एकएक कर क्लास के हर बच्चे से पूछा. लेकिन सब का यही कहना था कि अपूर्व दोतीन दिनों से उन के साथ खेलने भी नहीं आ रहा है. स्कूल का प्यून दीनदयाल, जो अपूर्व के घर के पास ही रहता है, को भेज कर संध्या ने अपूर्व के पिता को बुलावा भेजा. पता चला कि उसे 3 दिनों से बुखार है.

‘बुखार है, तो किसी डाक्टर को नहीं दिखाया?’ संध्या ने पूछा तो अपूर्व का पिता बोला कि गांव के वैद्य जी से दवाई ला कर दी है. अब ठीक है, पर बहुत कमजोर हो गया.

‘कोई बात नहीं. जब ठीक हो जाए, स्कूल भेज दीजिएगा,’ बोल कर संध्या फाइल देखती हुई सोचने लगी कि बेचारा बच्चा… अगर आज उस की मां जिंदा होती, तो अच्छे से उस की देखभाल तो करती न. पता नहीं क्यों, पर सोतेजागते संध्या को उस की फिक्र हो आती थी. चार दिनों बाद जब वह स्कूल आया तब संध्या ने देखा, उस के शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे. दीनदयाल से पता चला कि उस की सौतेली मां बहुत ही जल्लाद औरत है. बहुत मारा उसे, इसलिए उस की तबीयत खराब हो गई.

‘चाहे सौतेली ही सही, पर मां तो है. क्या उस के दिल में अपूर्व के लिए जरा भी ममता नहीं है?’ अपने मन में सोच संध्या विचलित हो उठी.

‘अरे मैडम जी, आप को नहीं पता. उस औरत की गांव में किसी से भी नहीं बनती है. बहुत ही खंपड़ा औरत है. कोई उसे मुंह नहीं लगाना चाहता. अपने सौतेले बेटे को तो जब देखो, मारतीपीटती रहती है और कोई कुछ कहे, तो झट से बोल पड़ती है. ‘बड़ी दया आ रही है? तो ले जाओ न अपने घर, बेटा बना लो.’ उस का बाप भी क्या करे. बेचारा, पूरे दिन खटमर कर जब घर आता है तो बीवी की कायकाय से परेशान दो रोटी खा कर चुपचाप सो जाने में ही अपनी भलाई समझता है. फिर सुबहसवेरे कोल्हू की बैल की तरह जुतने चल पड़ता है, तो अपूर्व का ध्यान कैसे रखे, भला.’ दीनदयाल से ये बातें सुनकर संध्या को अपूर्व की और चिंता हो आई.लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

‘शांति निकेतन’ प्राइमरी स्कूल में संध्या मैडम 4 सालों से पढ़ा रही थीं. पहले इस स्कूल में 2 टीचर थे, एक संध्या मैडम और दूसरे अरुण सर. अरुण सर के रिटायरमैंट के बाद संध्या मैडम पर ही पूरे स्कूल का भार आन पड़ा. ऊपर कई लैटर्स भेजे कि स्कूल में और टीचर बहाल किए जाएं. पर हमारे देश की व्यवस्था ही ऐसी है कि कोई किसी की सुनने वाला नहीं है. कहते हैं, अभी मैनेज कीजिए मैडम, हो जाएगा. अरे, मैनेज क्या होता है और कब होगा, कोई बताए तो? कोई बताने वाला नहीं, न कोई सुनने वाला है यहां किसी का. इसलिए बोलभूंक कर संध्या मैडम ही चुप हो गईं.

लेकिन 30-35 बच्चों को अकेले पढ़ाना कोई खेल है क्या. मन तो किया संध्या मैडम का कि यहां से अपना तबादला कहीं और करवा लें लेकिन अरुण सर कहने लगे कि अगर वे भी चली गईं तो गांव के बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. कोई टीचर यहां आना नहीं चाहता. इसलिए कई सालों से वे अकेले ही इस गांव के बच्चों को पढ़ा रही थीं. उन का कहना था कि देश तभी तरक्की करेगा जब हरेक गांव खुशहाल होगा और गांव तभी खुशहाल होगा जब गांव का हर बच्चा साक्षर बनेगा. यह बात भी सही है कि सिर्फ बड़ीबड़ी बातों से कुछ नहीं होने वाला. देश तभी तरक्की करेगा जब हर इंसान अपना सहयोग देगा. इसलिए संध्या मैडम ने ठान लिया था कि वे इस गांव के बच्चों को शिक्षित जरूर करेंगी. लेकिन, यह काम आसान नहीं था.

जब आसमान में बादल छाने लगते तो संध्या मैडम को भय सताने लगता कि बच्चों को कहां बैठा कर पढ़ाया जाए. क्योंकि बारिश के मौसम में जब पूरा स्कूल पानी में डूब जाता, तब बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें मवेशियों के तबेले का सहारा लेना पड़ता था ताकि बच्चों की पढ़ाई का हर्ज न हो. स्कूल इतना जर्जर हो चुका था कि वह कब गिर पड़े, कुछ कहा नहीं जा सकता था. गरमी के मौसम में भी बच्चों को पढ़ाना बड़ा कठिन हो जाता था. जैसेजैसे धूप आगे बढ़ती, वैसेवैसे बच्चे भी खिसकते जाते थे. कभी वह बच्चों को पट्टी पर बैठा कर पढ़ाती तो कभी पेड़ की छांव में क्लास लगा देती थी. कभीकभी तो वह बच्चों को खुले मैदान में पढ़ाने को मजबूर हो जाती थी. लेकिन इस से ज्यादा दुख संध्या मैडम को इस बात का होता था कि इस गांव में लड़कियों की शिक्षा को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जाती थी. एक्कादुक्का लड़कियां ही स्कूल आती थीं वह भी रोज नहीं. यहां के मातापिताओं की सोच थी कि लड़कियां पढ़लिख कर क्या करेंगी? जरूरत ही क्या है उन्हें पढ़नेलिखने की, क्योंकि शादी के बाद उन्हें फूंकना तो चूल्हा ही है.

‘ऐसा क्यों लगता है आप लोगों को कि बेटियों को पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है और वे चूल्हा फूंकने के लिए ही पैदा हुई हैं?’ संध्या मैडम उन की बातों का विरोध करतीं. ‘शिक्षा पर तो सब का अधिकार है न. और जब लड़कियां पढ़ेंगी ही नहीं, तो वे अपने आगे की पीढ़ी को साक्षर कैसे बना पाएंगी? बच्चे की पहली टीचर मां होती है और जब मां ही अशिक्षित होगी, तो अपने बच्चे को कैसे शिक्षित कर पाएगी. लड़की पढ़लिख गई तो आगे चल कर वह अपने मांबाप का सहारा ही बनेगी, बोझ नहीं, यह बात क्यों नहीं समझते आप लोग. मुझे ही देख लीजिए, अगर मेरे मातापिता ने मुझे पढ़ायालिखाया न होता, तो क्या मैं आज आप सब के समक्ष टीचर बन कर खड़ी होती? आज मैं अपने पैरों पर इसलिए खड़ी हूं क्योंकि मेरे पास शिक्षा है.

‘हम में अच्छेबुरे की समझ शिक्षा से ही आती है. इसलिए आप लोगों को यह बात समझनी होगी कि शिक्षा जितनी बेटों के लिए जरूरी है, उतनी ही बेटियों के लिए भी. बल्कि, हर उम्र के इंसान के लिए, चाहे वह बूढ़ा हो, जवान, बच्चा, औरत, मर्द सब के शिक्षा जरूरी है.’

लेकिन संध्या मैडम की बात किसी के पल्ले नहीं पड़ती थी. सब एक कान से सुनते और दूसरे से निकाल देते थे. संध्या मैडम घरघर जा कर अभिभावकों से बेटियों को भी स्कूल भेजने की गुहार लगातीं. वे शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अकेले ही पूरे गांव में घूमतीफिरतीं. लोगों को समझातीं कि शिक्षा से नुकसान नहीं, बल्कि फायदा है. धीरेधीरे ही सही, पर संध्या मैडम की मेहनत रंग लाने लगी. गांव के लोग अब अपनी बेटियों को भी स्कूल पढ़ने भेजने लगे क्योंकि वे समझ चुके थे कि शिक्षा हर इंसान के लिए जरूरी है.

इस गांव में बालविवाह एक आम बात थी. लोग अपनी बेटियों का विवाह 12-13 साल की उम्र में कर के अपना बोझा हलका कर लेते थे. संध्या मैडम ने इस कुप्रथा को मिटाने के लिए भी बहुत संघर्ष किया. लोगों में जागरूकता फैलाई कि बालविवाह जैसी कुप्रथा के कारण वरवधू का भविष्य अंधकारमय बन जाता है. इस से समाज में कई विकृतियां आ जाती हैं. बालविवाह से न केवल बच्चों के विकास की गति रुक जाती है बल्कि समाज को भी इस से बहुत नुकसान पहुंचता है.

संध्या मैडम की बातें लोगों के दिलोदिमाग पर असर करने लगी थीं और वे उन का सहयोग भी करने लगे थे. संध्या मैडम के जज्बे की अब हर ओर तारीफ होने लगी थी. कम संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते गांव के इस छोटे से स्कूल को कितना बढ़िया बना दिया था. शांति निकेतन स्कूल में अब एकदो और टीचर पढ़ाने आने लगे थे. इस सरकारी स्कूल में शहर के स्कूलों से भी अच्छी तालीम दी जाती थी.

संध्या मैडम की मां की तबीयत खराब थी, इसलिए वे उन्हें देखने लखनऊ गई हुई थीं. आने पर दीनदयाल ने बताया कि अपूर्व के पिता का देहांत हो गया.

‘क्या…’ अपूर्व के पिता के न रहने की बात सुन कर संध्या मैडम को एक झटका सा लगा. यह सोच कर वे कांप उठीं कि अब अपूर्व का क्या होगा. ‘अपूर्व अभी कहां है?’

“अभी तो बेचारा बच्चा मेरे घर में ही रह रहा है, मैडम जी, क्योंकि उस की सौलेती मां पति के मरते ही बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई. अब अकेले वह उस घर में कैसे रहता. इसलिए, मैं उसे अपने घर ले आया.’

‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, दीनदयाल,’ संध्या मैडम ने राहत की सांस ली.

लेकिन दीनदयाल कहने लगा कि वह भी गरीब आदमी है. खुद उस के 5 बच्चे हैं. ऊपर से बूढ़े मांबाप और एक विधवा बहन की भी ज़िम्मेदारी उसी पर है. इसलिए वह अपूर्व को अपने घर ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाएगा.’

‘तुम्हारी बात सही है. लेकिन बेचारा बच्चा कहां जाएगा?’

‘मैडम जी, गांव में सब लोगों की यही स्थिति है. कोई बहुत पैसे वाला तो है नहीं, जो उस की ज़िम्मेदारी उठा सके,’ दीनदयाल बोला.

‘लेकिन उस के परिवार में कोई तो होगा जो उसे अपने साथ रख सके. चाचा, बूआ, दादीदादा कोई तो होगा,’ सांध्या मैडम बोलीं, तो दीनदयाल कहने लगा कि दादीदादा तो उस के पहले ही गुजर गए. बूआ, चाचा, मौसी ने भी उस की ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया. इसलिए गांव के पंच और बुजुर्गों ने यह फैसला लिया है कि वे अपूर्व को किसी अनाथाश्रम में डाल देंगे.

‘अनाथाश्रम,’ अनाथाश्रम का नाम सुनते ही संध्या मैडम का कलेजा धक्क कर गया. उन का बस चलता तो वे अपूर्व को अपने पास अपने घर में रख लेतीं. यह संभव नहीं था क्योंकि कब यहां से उन का तबादला हो जाए, कहा नहीं जा सकता था. सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते अब संध्या को, बस, अपूर्ण का ही खयाल सताता रहता कि बेचारा बच्चा, कहां जाएगा, क्या होगा उस का.

प्रकृति का भी अजब खेल है. किसी को तो सबकुछ दे देता है और किसी का सबकुछ छीन लेता है. संध्या की आंखें भर आईं यह सोच कर कि उसे भी प्रकृति ने सबकुछ दे कर उस से छीन लिया. अपने फौजी पति की दुलहन बन कर संध्या ने यह सोच कर ससुराल में अपना पहला कदम रखा था कि वे उन के साथ अपना पूरा जीवन हंसतेखेलते बिता देंगी. लेकिन शादी के 9 महीने बाद ही उनका पति देश के लिए शहीद हो गया. पति के गुजर जाने की बात सुन कर संध्या मैडम खड़ेखड़े जमीन पर ही गिर पड़ी थीं जिस से उन के पेट में पल रहा बच्चा भी मर गया. एकसाथ पति और बच्चे को गंवाने का दुख अभी कम भी नहीं हो पाया था कि पिता की मौत की खबर ने उन्हें तोड़ कर रख दिया.

बेटी को सफ़ेद साड़ी में देख कर संध्या के पिता बरदाश्त नहीं कर पाए और उन्हें अटैक आ गया. ससुराल वालों ने भी उन से मुंह मोड़ लिया. लेकिन जीना तो था और जीने के लिए पैसा भी जरूरी था, इसलिए संध्या ने टीचर ट्रेनिंग कर स्कूल में नौकरी ले ली. भाईभाभी थे लेकिन वे भी कब तक उन का बोझ उठाते. इसलिए आत्मनिर्भर बनना उन्हें ज्यादा सही लगा था. फिर कई रिश्ते आए, पर उहोंनने शादी करने से मना कर दिया.

अपनी मेहनत के दम पर संध्या मैडम ने इस गांव के जर्जर स्कूल को खूबसूरत बना दिया था. स्कूल की मरम्मत के बाद उस का रंगरोगन करवाया, पौधे लगवाए. सामने खाली पड़ी बंजर जमीन को बच्चों के खेलने लायक मैदान बनवाया, जहां बच्चे खेल सकें. उन्होंने इस गांव के सिर्फ स्कूल की ही सफाई नहीं की, बल्कि लोगों के दिमाग से भी कचरा निकाला कि जाति सिर्फ 2 ही हैं, स्त्री और पुरुष. और धर्म सिर्फ एक, इंसानियत. बाकी सब पाखंड और दिखावा है.

संध्या मैडम के गहन प्रयास का ही नतीजा था कि इस गांव के स्कूल की चर्चा हर जगह होने लगी थी. गांवों के विकास और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक दिवस पर शिक्षा मंत्री उन्हें सम्मानित करने वाले थे. सम्मानित समारोह में गांव के पंच और बाकी लोगों ने भी संध्या मैडम की खूब सराहना की और उन की तारीफ में बहुतकुछ कहा. ईनाम में उन्हें घनराशि के साथ ग्लोबल टीचर प्राइड अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा था. लेकिन संध्या मैडम पैसे और अवार्ड लेने से इनकार करती हुई बोलीं-

‘आदरणीय महोदय, बोलने के लिए माफी चाहती हूं. अगर आप लोग मुझे सम्मानित करना ही चाहते हैं तो सम्मान के तौर पर मुझे अपूर्व दे दीजिए. मैं इस बच्चे को गोद लेना चाहती हूं.’ अपूर्व की तरफ इशारा कर के जब संध्या मैडम बोलीं, तो गांव के सारे लोग उन्हें हैरानी से देखने लगे. ‘नहीं, यह फैसला मैं ने बहुत सोचसमझ कर लिया है और कानूनी तौर पर मैं इस बच्चे को गोद लेना चाहती हूं अगर आप लोगों को एतराज न हो तो.’

संध्या मैडम ने अपनी दिल की बात गांव के लोगों के सामने रख दी. लेकिन गांव के पंच और बड़ेबुजुर्ग कहने लगे कि बच्चे की ज़िम्मेदारी कोई छोटी बात नहीं होती और वे लोग अपूर्व को अनाथ आश्रम भेजने का फैसला ले चुके हैं.

‘पता है मुझे, लेकिन फैसला बदला भी तो जा सकता है न. और क्या आप लोग नहीं चाहते कि इस बच्चे को एक मां, एक घर मिले? कृपा कर मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए.’ अपने दोनों हाथ जोड़ कर संध्या मैडम भावुक होती हुई विनती करने लगीं कि अपूर्व को उन्हें गोद लेने की अनुमति दे दी जाए और यही उन के लिए सब से बड़ा सम्मान होगा.

“गांव के सरपंच और सब की सहमति से कानूनी तौर पर मैं संध्या मैडम का बेटा बन गया और वे मेरी मां,” अपनी बात खत्म कर अपूर्व ने एक गहरी सांस ली और संध्या मैडम की फोटो को अपने सीने से लगाते हुए बोला, “मेरी मां आज उस स्कूल की प्रिंसिपल हैं और उन के नीचे जितने भी टीचर हैं, वे सब इन्हें अपना आदर्श मानते हैं. आज उस गांव में कोई आईएएस औफिसर है, कोई इंजीनियर, तो कोई डाक्टर या वकील. इस सब का श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरी मां को जाता है. अगर वे न होतीं तो हम कुछ भी न होते.”

“आई एम सो प्राउड औफ योर मौम,” बोलते हुए जौन की आंखें छलक आईं. संध्या मैडम की फोटो को देख कर आज जौन को अपनी मां की याद हो आई. वे भी तो लोगों की सेवा, उन की सहायता में विश्वास रखती थीं.

“आई एम वैरीवैरी प्राउड कि वे मेरी मां हैं. आज अगर वे न होतीं, तो मैं यहां तुम्हारे सामने खड़ा न होता,” बोल कर अपूर्व ने अपनी मां की फोटो को चूम लिया.

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