Download App

कर्नाटक: सिद्धारमैया के हाथ सत्ता

पांच दिनों तक तमाम ऊहापोह, बैठकों, फ़ोन कौल्स और मानमुनौवलों के बाद भी जब कोई रास्ता नहीं निकला तो सोनिया गांधी को दखल देना पड़ा और चंद मिनटों में कर्नाटक को अपना किंग मिल गया. तय हो गया कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुरसी पर सिद्धारमैया बैठेंगे और डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बनेंगे.बेंगलुरु में 20 मई को दोपहर 12.30 बजे शपथग्रहण समारोह होगा.

कांग्रेस के मजबूत नेता डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठने के लिए अड़े हुए थे, लेकिन आलाकमान पहले ही सिद्धारमैया का नाम तय कर चुका था क्योंकि समाज के सभी तबकों तक सिद्धारमैया की अच्छी पहुंच है. वे सोशल इंजीनियरिंग में भी माहिर हैं और उनकी छवि भी साफसुथरी है. इसके अलावा सिद्धारमैया अच्छे प्रशासन के लिए जाने जाते हैं. इस से पहले भी वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने पर बहुत संभव था कि केंद्र के आदेश पर दिल्ली की तर्ज पर केंद्रीय जांच एजेंसियां शिवकुमार पर शिकंजा कसने और उन्हें जेल भेजने की कवायद में लग जातीं. ऐसे में पार्टी की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बहुत नुकसान पहुंचता.

हालांकि चुनावप्रचार के दौरान दोनों ने ही खूब मेहनत की थी. डीके शिवकुमार ने राज्य के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त ऊर्जा भर दी, इसमें शक नहीं है. शिवकुमार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और सिद्धारमैया साथ थे. दोनों कर्नाटक में पार्टी के लिए बहुत बड़ा कद रखते हैं. दोनों बहुत काबिल हैं. दोनों ही नेता मुख्यमंत्री बनने के काबिल हैं. दोनों ही प्रदेश को अच्छा चला सकते हैं. इसलिए इनमें से किसी को भी निराश नहीं किया जा सकता था.

लेकिन सीएम के तौर पर एक का नाम तय करना था. शिवकुमार वोक्कालिंगासमाज से आते हैं.यह समाज डी के शिवकुमार को सीएम के तौर पर देखने के लिए उत्सुक था. ऐसे में जब कोई रास्ता नहीं निकला तब सोनिया गांधी ने दखल दिया. शिवकुमार से फ़ोन पर वार्त्ता हुई.आखिरकार वे डिप्टी सीएम पद के लिए मान गए. अंदरखाने की खबर यह है कि सोनिया गांधी ने शिवकुमार से कहा कि हमारी पार्टी संकट में है, इसलिए आप समस्या नहीं बढ़ाइए. बाकी आप मुझ पर छोड़ दीजिए. आप मेरे बेटे के समान हैं, मैं आपका ख़याल रखूंगी.

कहते हैं डीके शिवकुमार पर सोनिया गांधी का असर काफी अधिक है. शिवकुमार को कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाने में सोनिया गांधी की प्रमुख भूमिका रही है. यहां यह याद रखना जरूरी है कि शिवकुमार ने चुनावी नतीजों के सामने आने के तुरंत बाद बेहद भावुक होकर कहा था कि वे सोनिया गांधी के बहुत आभारी हैं, क्योंकि वे उनसे मिलने तिहाड़ जेल गई थीं. जेल में हुई मुलाकात के दौरान ही सोनिया गांधी ने शिवकुमार को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने का भरोसा दिया था. ऐसे में शिवकुमार सोनिया गांधी के आदेश की अवहेलना कैसे कर सकते थे.

कर्नाटक में वोक्कालिंगा और लिंगायत समाज की अच्छी संख्या है. इस बार इन दोनों तबकों ने कांग्रेस पर प्यार लुटाया. आलाकमान के फैसले से एमबी पाटिल और जी परमेश्वर नाराज बताए जा रहे हैं. एमबी पाटिल लिंगायत और परमेश्वर दलित समुदाय से आते हैं. सिद्धारमैया की पिछली सरकार में डिप्टी सीएम रहे जी परमेश्वर ने आलाकमान के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘मैं भी सरकार चला सकता था. अगर सीएम नहीं तो कम से कम मुझे डिप्टी सीएम तो बनाना चाहिए था.’

पहले ऐसी चर्चा हो रही थी कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एक सीएम और 2 डिप्टी सीएम होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोनिया गांधी ने सिर्फ शिवकुमार को ही डिप्टी सीएम का पदभार ग्रहण करने को कहा. सोनिया जानती हैं कि इससे एक ओर मोदीशाह की चालों से सरकार पर आंच नहीं आएगी और फिर शिवकुमार के आगे पूरा मैदान खुला हुआ है. उनकी उम्र भी कम है और अभी उन्हें राजनीति में लंबी पारी खेलनी है

किरेन रिजिजू का डिमोशन

वैसे तो भू-विज्ञान मंत्रालय की अपनी महत्ता हैलेकिन किरेन रिजिजू के हाथ से कानून मंत्रालय छीन लिया जाना बताता है कि मोदी कैबिनेट में उनके कद को छांट कर छोटा कर दिया गया है. किरेन रिजिजू का मंत्रालय अब राजस्थान के बड़े दलित नेता और कई मंत्रालय संभाल चुके अर्जुन राम मेघवाल संभालेंगे. दरअसल, रिजिजू द्वारा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बारबार टिप्पणी करना और बारबार सुप्रीम कोर्ट से उलझना प्रधानमंत्री मोदी को रास नहीं आ रहा था. इससे सरकार की छवि भी प्रभावित हो रही थी.

गौरतलब है कि 2 साल पहले रविशंकर प्रसाद को हटाकर किरेन रिजिजू को कानून मंत्री की अहम जिम्मेदारी दी गई थी. इससे पहले वे खेल मंत्री थे. किरेन युवा नेता हैं. जुझारू हैं. खूब खेलते हैं, खूब बोलते हैं मगर सुप्रीम कोर्ट के कलीजियम सिस्टम के खिलाफ उनकी बारबार की जाने वाली टिप्पणियां प्रधानमंत्री मोदी को पसंद नहीं आईं क्योंकि इस वक़्त केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से किसी टकराव के मूड में नहीं है.

आम धारणा है कि जब सुप्रीम कोर्ट कुछ कहता है तो सरकार उसे सुनती है. पलटवार करने, जवाब देने या कोर्ट के खिलाफ खुलकर कुछ भी बोलने से बचा जाता है. लेकिन हाल के दिनों में कानून मंत्री किरेन रिजिजू मीडिया में आकर और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कर रहे थे, उसने मोदी सरकार को बहुत असहज कर दिया था.

रिजिजू द्वारा जजों की नियुक्ति और अदालतों के काम करने के तौरतरीकों को लेकर की जा रही टिप्पणियों व हस्तक्षेप ने मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं. लिहाजा, सरकार को अपनी छवि बचाने के लिए रिजिजू की बलि लेनी पड़ी.

रिजिजू जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम प्रणाली की खुलकर आलोचना कर रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि जजों की नियुक्ति की कलीजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं है. उन्होंने इसे संविधान से अलग भी करार दिया. अपना विरोध करने वालों के लिए यहां तक कह दिया कि रिटायर्ड जज और ऐक्टिविस्ट भारतविरोधी गिरोह का हिस्सा हैं.

यही नहीं, रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आरएस सोढ़ी के एक इंटरव्यू के कुछ अंश भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर डालेजिन में कहा गया था कि-‘कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का अपहरण कर लिया है.’

इसके अलावा रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को यह मशवरा भी दे डाला कि भारतीय न्यायपालिका में कोई आरक्षण नहीं है. मैं सभी जजों और विशेषरूप से कलीजियम के सदस्यों को याद दिलाना चाहता हूं कि वे पिछड़े समुदायों, महिलाओं और अन्य श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने के लिए नामों की सिफारिश करते समय ध्यान में रखें क्योंकि उनका न्यायपालिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.

रिजिजू की इन तमाम बड़बोली बातों से ऐसा संदेश गया कि केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति में अपनी भूमिका चाहती है. रिजिजू के बयानों पर विपक्ष भी कहने लगा कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को धमकाया जा रहा है.

हाल यह हो गया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कलीजियम सिस्टम के खिलाफ की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग की जाने लगी. हालांकि कोर्ट ने बड़ा दिल दिखाते हुए उस याचिका को यह कह कर खारिज कर दिया कि उसके पास इससे निबटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कलीजियम सिस्टम के खिलाफ बोलने पर किरेन रिजिजू की काफी आलोचना की थी. उन्होंने जजों की नियुक्ति में केंद्र के दखल को लोकतंत्र के लिए घातक बताया था. कलीजियम के नामों को सरकार द्वारा लटकाने पर भी काफी विवाद हुआ था.

रिजिजू को हटाना सरकार की मजबूरी बन गई थी. लिहाजा, रातोंरात राष्ट्रपति भवन की तरफ से विज्ञप्ति जारी कर दी गई कि, “राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रधानमंत्री की सलाह पर केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों का पुन:आवंटन किया है और भू-विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी किरेन रिजिजू को सौंपी गई है.”

रिजिजू को हटा कर अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री बनाने के पीछे एक वजह और है. मेघवाल दलित समुदाय से हैं और राजस्थान से आते हैं. राजस्थान में कुछ ही समय में चुनाव होने वाले हैं.राजस्थान में दलितों की आबादी 17 फीसदी है. मेघवाल दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं. बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद मेघवाल का कद बढ़ाकर राजस्थान को संदेश देने की भी कोशिश की गई है. अब तक मेघवाल संस्कृति और संसदीय कार्य राज्यमंत्री थे. अर्जुन राम मेघवाल 2009 से बीकानेर से सांसद हैं.

मेघवाल का जन्म बीकानेर के किस्मीदेसर गांव में हुआ था. उन्होंने बीकानेर के डूंगर कालेज से बीए और एलएलबी की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने इसी कालेज से मास्टर्स डिग्री हासिल कर फिलीपींस विश्वविद्यालय से एमबीए किया.

राजनीति में आने से पहले मेघवाल राजस्थान प्रशासनिक सेवा में थे. प्रमोशन हुआ तो मेघवाल चुरू के जिलाधिकारी भी रहे. वीआरएस लेकर राजनीति में आए और उन्होंने 3 बार लोकसभा चुनाव जीता. उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जाति के मजबूत चेहरे के रूप में देखा जाता है.

मेघवाल 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए. उन्हें 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से भी नवाजा गया था.अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वे लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के मुख्य सचेतक थे. मई 2019 मेंमेघवाल को संसदीय मामलों और भारी उद्योग व सार्वजनिक उद्यम राज्यमंत्री बनायागया और अब उन्हें कानून मंत्रालय बड़ा जिम्मा सौंपा गया है.

हालांकि अर्जुन मेघवाल के साथ विवाद भी जुड़े हुए हैं. कोरोनाकाल में उन्होंने ‘भाभीजी पापड़’ लौंच किया और बिना तथ्यों के यह बयान दिया कि इस से कोरोना नहीं होगा. यह वही समय था जब देश में कोरोना पीड़ित अस्पतालों में औक्सीजन और सिलैंडर की कमी के चलते मर रहे थे.

बाप की ऊपरी कमाई किस को रास आई

आज के समाज में अवैध कमाई को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है. जिन घरों में पैसा मेहनत से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार से आता है, देखा गया है कि उन घरों के बच्चों में अहंकार, जिद्दीपन, बुरी आदतें, दूसरों से असम्मानित व्यवहार और नशे की लत होना आम है. 90 के दशक की बात है. लखनऊ के एक स्वयंभू पत्रकार थे. लोगबाग उन्हें पंडितजी कह कर पुकारते थे.

खुद ही प्रकाशक और संपादक भी थे. एक पौलिटिकल मैगजीन और एक दैनिक अखबार निकालते थे. एक पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके थे. वे उन की अंदरूनी बातों की जानकारी रखते थे. बाद में जब उन से नाराज हुए तो उन के खिलाफ खबरें छापने लगे. मुंह बंद करवाने के लिए मुख्यमंत्रीजी ने काफी पैसा पहुंचाया लेकिन वे कुछ दिन चुप रहते, फिर शुरू हो जाते. इस तरह पंडितजी ने काफी पैसा बनाया. बाद में बड़ेबड़े नौकरशाहों से दोस्ती गांठ ली. उन की कृपा से अखबार और पत्रिका को लाखों रुपए के सरकारी विज्ञापन धड़ल्ले से मिलने लगे.

एक प्रिंटिंग प्रैस खड़ी कर ली. कुछ खोजी टाइप के रिपोर्टर्स की टीम बना ली, जो रिपोर्टिंग कम ब्लैकमेलिंग में ज्यादा उस्ताद थे. इस अधिकारी की गुप्त जानकारी उस को और उस अधिकारी की गुप्त जानकारी उस को पहुंचा कर ये लोग अच्छा पैसा बनाने लगे. पंडितजी की पत्नी और बच्चों को उन के अवैध कामों की पूरी जानकारी थी, मगर किसी ने उन्हें ऐसा करने से टोका नहीं. पत्नी खुश थी कि अच्छा पहननेओढ़ने को मिल रहा है. नएनए डिजाइन के जेवर खरीदती थी. लड़के को बालिग होते ही लग्जरी कार मिल गई थी और बेटी भी जी खोल कर अपनी सहेलियों पर पैसे उड़ाती थी.

पंडितजी की अवैध कमाई पर पलने वाले उन के दोनों बच्चों ने पैसे का मूल्य कभी नहीं सम झा. न पढ़ाई पूरी की और न ही कोई नौकरी की. मेहनत करना क्या होता है, यह उन्होंने जाना ही नहीं. वे सिर्फ नौकरों पर हुक्म चलाना ही सीख पाए. लड़की जवान होते ही मौडल बनने के चक्कर में मुंबई चली गई. 3 वर्षों बाद लुटीपिटी, डिप्रैशन का शिकार हो कर लौटी. लड़के को कम उम्र में ही शराब का चस्का लग गया. पंडितजी के मरने के बाद वह प्रैस का मालिक बन गया. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण पंडितजी के धूर्त्त रिपोर्टर्स की टीम ने उस को नशे की गर्त में डुबो दिया. वह रातदिन नशे में रहने लगा. 2 बार शादी की और दोनों बार तलाक हो गया. घरेलू हिंसा का मामला उस पर अलग दर्ज हो गया.

एक दिन शराब के नशे में तेज गाड़ी चलाते हुए उस का ट्रक से ऐक्सिडैंट हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मृत्यु हो गई. लड़के की मृत्यु के बाद प्रैस बंद हो गई. आय का साधन खत्म हो गया. पंडितजी ने जिनजिन नेताओं, अधिकारियों को परेशान किया था, ब्लैकमेल किया था, अब वे मांबेटी पर हावी होने लगे. आखिरकार लखनऊ की संपत्ति बेच कर पंडितजी की पत्नी अपनी अवसादग्रस्त बेटी के साथ देहरादून में एक छोटे से अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गई. सारा वैभव, सारा ऐशोआराम समाप्त हो गया. पंडितजी जीवनभर अवैध कमाई के चक्कर में न तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाए, न संस्कार. छोटी उम्र में बच्चों के हाथों में अथाह पैसा आने से वे पैसे का मूल्य भी नहीं समझे.

मेहनत कर के पैसा कमाना उन्होंने कभी सीखा ही नहीं. नतीजा भयानक निकला. अहंकार का बढ़ना ऐसा ही एक किस्सा नोएडा विकास प्राधिकरण में कार्यरत रहे एक सज्जन का है. वे प्राधिकरण में ऐसी पोस्ट पर थे जहां महीने की लंबीचौड़ी तनख्वाह के अलावा प्रतिदिन ऊपरी कमाई 5 हजार से ले कर कभीकभी तो 50 हजार रुपए तक हो जाती थी. हाथ आई लक्ष्मी को तिवारीजी ने कभी न नहीं कहा. लोग अपनी जमीनों और दुकानों से संबंधित फाइलों को आगे बढ़वाने के लिए तिवारीजी को घर पर भी भेंट पहुंचा जाते थे. तिवारीजी की पांचों उंगलियां घी में थीं.

उन की पत्नी भी पति की कमाई से बहुत खुश थी. रिश्तेदारों पर उन का पूरा रोब रहता था. त्योहारों, समारोहों में रिश्तेदारों और दोस्तों को पूरे अहंकार के साथ कीमती गिफ्ट बांटती थीं. अपने मायके वालों पर भी खूब पैसा लुटाती थीं. कोई पूछने वाला नहीं था. तिवारीजी का एक ही बेटा था, गौरव. गौरव ने बचपन से अपने घर में खूब पैसा देखा. खूब महंगीमहंगी चीजें इस्तेमाल कीं. हमेशा ब्रैंडेड कपड़ेजूते पहने. बड़ेबड़े मौल में शौपिंग की. बड़ी गाडि़यों में घूमा. 12वीं करने के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो 3 साल दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ाने में बिता दिए. इकलौता बेटा था, लिहाजा मांबाप ने कभी कोई सख्ती नहीं दिखाई. इस के चलते वह बहुत जिद्दी भी हो गया.

फिर उस को विदेश जाने का चस्का चढ़ा और वह कनाडा निकल गया. बाप के पैसे धड़ल्ले से उड़ाए. करीब 20 लाख रुपए बरबाद करने के बाद वापस लौट आया. दिल्ली के एक बार में उस का दोस्तों संग आनाजाना था. वहीं की एक बारगर्ल से आशिकी हो गई और उस ने उस बारगर्ल से शादी कर ली. उस लड़की ने जब गौरव के घर में पैसे की ऐसी रेलमपेल देखी तो उस की आंखें चुंधिया गईं. धीरेधीरे उस ने गौरव को नशे का आदी बना कर उसे पूरी तरह अपने वश में कर लिया. सासससुर से आएदिन उस की कलह होती. तनाव के चलते गौरव की मां ब्लडप्रैशर की मरीज हो गई. बहू ने धीरेधीरे पूरे घर पर कब्जा जमा लिया. लौकर की चाबी अब उस के पास रहती है. सेवानिवृत्ति के बाद तिवारीजी और उन की पत्नी अब बहू के रहमोकरम पर हैं. घर में बस, अब बहू की पसंद चलती है.

बेटा अपने मांबाप की सुनता नहीं है. पोतेपोती का मोह उन्हें बेटे से अलग नहीं होने देता. फिर बुढ़ापा और बीमारी दोनों को घेरे हुए है. ऐसे में अकेले अलग भी कैसे रहें. जीवनभर अंधी कमाई के चक्कर में तिवारीजी भी अपने बेटे को अच्छी शिक्षा और संस्कार नहीं दे पाए. सोचनेसम झने और जीवन के फैसले ठीक तरीके से लेने की क्षमता उस में विकसित नहीं कर पाए. बाप के पैसे पर ऐयाशी करने का आदी रहा गौरव न कोई नौकरी कर सका और न व्यवसाय. अब पिता की पैंशन और जमा कमाई से 6 जनों का परिवार चल रहा है. इस साल जनवरी में जबलपुर के भसीन आर्केड के सामने स्थित रितिक अपार्टमैंट में पुलिस ने एक देररात शराब और ड्रग्स पार्टी की सूचना पर रेड मारी. वहां से 13 युवकयुवतियों को पकड़ा गया. उन में टौप बिजनैसमैन, हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट, सीनियर डाक्टर्स, सीनियर पुलिस अफसर और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले सीनियर लौयर्स के बेटेबेटियां शामिल थे. उस अपार्टमैंट के एक रूम को बार का लुक दिया गया था, जहां शराब और ड्रग्स की कमी नहीं थी. रात के 3 बजे जब पुलिस की रेड पड़ी तो सभी युवकयुवतियां नशे में धुत थे. इन लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश की मगर आबकारी एक्ट और एमपी कोलाहल नियंत्रण अधिनियम के तहत सभी पर केस दर्ज किया गया. नेताओं की मलाईदार कमाई भारतीय जनता पार्टी के नामचीन नेता प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन के बिगड़ने का किस्सा कौन नहीं जानता.

ड्रग्स, नशा और सैक्स ने उसे राजनीतिक रूप से बिलकुल समाप्त कर दिया. वरना पिता की इतनी बड़ी राजनीतिक विरासत का वह अकेला हकदार था. बाद में बौलीवुड की चकाचौंध में रहासहा भी डूब गया. शादी भी खत्म, इज्जत भी खत्म. कांग्रेस के बड़े नेता विनोद शर्मा के अहंकारी और बिगड़ैल बेटे मनु शर्मा ने 29 अप्रैल, 1999 को बार में सिर्फ शराब न परोसने के कारण पिस्तौल निकाल कर जेसिका लाल की कनपटी पर गोली चला दी, जिस में उस की मौत हो गई. इस घटना में बेटे को बचाने के लिए मंत्री पिता ने कई दांव चले. हत्या के गुनाह से बचा कर निकाल लेने के लिए पुलिस के बड़े अधिकारियों और नामी वकीलों की मदद ली. लेकिन आखिरकार मनु शर्मा को आजीवन कारावास की सजा हुई.

मशहूर फिल्म अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली पर इलजाम था कि उस ने अपनी प्रैग्नैंट गर्लफ्रैंड जिया खान को न सिर्फ लंबे समय तक टौर्चर किया बल्कि उस की वजह से जिया ने आत्महत्या कर ली. हालांकि इस मामले में सुबूत न होने के चलते सूरज पंचोली कोर्ट से बरी हुए हैं. पैसे की अधिकता में बिगड़े हुए बच्चों की अनगिनत कहानियां हमारे आसपास बिखरी हुई हैं. अफसोसजनक है कि आज के समाज में अवैध कमाई को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है. कभीकभी तो लड़कियों की शादियां यह देख कर होती हैं कि लड़का मलाईदार पोस्ट पर है या नहीं अथवा लड़के की ऊपरी कमाई कितनी है. जिन घरों में पैसा मेहनत से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार से आता है,

देखा गया है कि उन घरों के बच्चों में अहंकार, जिद्दीपन, बुरी आदतें, दूसरों से असम्मानित व्यवहार और नशे की लत होना आम है. बच्चों की वित्तीय आदतें पेरैंट्स की देखरेख में ही विकसित होती हैं. अगर पेरैंट्स भ्रष्ट और अव्यवस्थित हैं तो निश्चित रूप से उन के बच्चों से अनुशासित व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती. बच्चे शुरू से घर में जो होता हुआ देखते हैं वैसा ही व्यवहार करते हैं. जिस बच्चे को मुक्त हाथों से पैसा दिया जा रहा हो, उस को कभी पैसे के लिए मना कर दो तो वह उग्र हो बैठेगा, मांबाप से झगड़ा करेगा या कोई अप्रत्याशित कदम उठा लेगा.

इसी तरह किसी खास लाइफस्टाइल को मेंटेन करने के लिए अगर कोई व्यक्ति लगातार लोन लेता रहता है तो उस के बच्चे पर भी उस का असर पड़ता है. अगर आप लगातार लोन चुकाने की प्रक्रिया में शामिल हैं या एक के बाद दूसरे लोन के दुष्चक्र में पड़े हैं तो बच्चे को यह सम झ में आएगा कि यह सामान्य चलन है. वह भी अपने जीवन में इस प्रोसैस को फौलो करेगा. बच्चे के मन में यह धारणा बन जाएगी कि लाइफस्टाइल मेंटेन करने के लिए लोन लेने में कोई बुराई नहीं है और वह इसे भी अपने जीवन का हिस्सा बना लेगा. अगर वह अच्छी नौकरी नहीं पा सका और लोन समय से नहीं चुका पाया तो यह स्थिति उस के जीवन में तनाव पैदा करेगी. वह डिप्रैशन में जा सकता है. उस का जीवन बरबाद हो सकता है. जो पेरैंट्स ‘लिव लाइफ किंग साइज’ में भरोसा करते हैं,

वे अपने बच्चों पर भी जम कर खर्च करते हैं. बिना सवाल पूछे बच्चे की इच्छा पूरी होती रहती है. यह जरूरी नहीं है कि वह बच्चा बड़ा होने के बाद भी उसी स्थिति में हो कि पुराना लाइफस्टाइल मेंटेन कर सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह फ्रस्ट्रेटेड महसूस करेगा. उसी लाइफस्टाइल को मेंटेन करने के लिए या तो वह बहुत कर्ज लेने की आदत डाल लेगा या दूसरे आपराधिक तरीके अख्तियार करेगा जिस से अपनी जरूरतें पूरी कर सके. बचपन से ही मुंहमांगी मुराद पूरी होने पर बच्चे उस लाइफस्टाइल के आदी बन जाते हैं. वे बचपन से ही जरूरत से ज्यादा खर्च करने के अभ्यस्त होते हैं और निवेश पर उन का कोई फोकस नहीं होता. इस से उन के जीवन के वित्तीय लक्ष्य को पाना और मुश्किल हो जाता है. उन्हें जीवन में एडजस्ट करना नहीं आता. धन को ले कर सदैव मस्तिष्क में उथलपुथल मची रहती है. ऐसे में उन का जीवन सहज नहीं होता.

ब्रेन ब्लीड से दिल का दौरा पड़ने का खतरा

इस्केमिक स्ट्रोक और हार्टअटैक दिल की वे बीमारियां हैं जो दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं. सेरेब्रल हैमरेज यानी ब्रेन ब्लीडिंग यानी दिमाग में रक्तस्राव से इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है. सेरेब्रल हेमरेज एक प्रकार का स्ट्रोक है जिस में दिमाग को खून पहुंचाने वाली ब्लड वैसल फट जाती है, जिस से दिमाग के टिश्यूज के चारों ओर रक्तस्राव होने लगता है.

ऐसा ट्रौमा, हाई ब्लडप्रैशर, ब्रेन ट्यूमर या खून पतला करने वाली दवाओं की वजह से भी हो सकता है. जब दिमाग में इस तरह से रक्तस्राव होता है तो दिमाग के टिश्यूज को औक्सीजन की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती, जिस की वजह से दिमाग को नुकसान पहुंचता है और मरीज की मृत्यु तक हो सकती है. सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग की वजह से इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक होना गंभीर समस्या है. इस का जोखिम खासतौर पर उन लोगों में अधिक होता है जो पहले से दिल की बीमारियों, जैसे हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज या हाई कोलैस्ट्रौल से पीडि़त होते हैं.

एक अध्ययन में पाया गया कि सेरेब्रल हेमरेज के मरीजों में इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक की संभावना अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है. इस अध्ययन में यह भी पता चला कि सेरेब्रल हेमरेज होने के बाद पहले कुछ महीनों में इन स्थितियों का जोखिम अधिक था. एक और अध्ययन में पाया गया कि सेरेब्रल हेमरेज के मरीजों में हाई ब्लडप्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल और डायबिटीज की संभावना भी उन लोगों की तुलना में अधिक होती है जिन में सेरेब्रल हेमरेज नहीं हुआ है. इन कारकों की वजह से भी दिल की बीमारियों, जैसे इस्केमिक स्ट्रोक और हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है. यहां इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेनब्लीडिंग की वजह से इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक की संभावना सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित नहीं है जिन में दिल की बीमारियों (कार्डियोवैस्कुलर रोगों) का इतिहास हो. ब्रेन ब्लीडिंग के बाद कोई भी व्यक्ति इन समस्याओं का शिकार हो सकता है खासतौर पर अगर ब्लीडिंग बहुत गंभीर हो.

सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग के कारण इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक की संभावना को कम करने के कई तरीके हैं. एक तरीका यह है कि दिल की बीमारियों को पैदा करने वाले कारकों, जैसे हाई ब्लडप्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल और डायबिटीज से बचें. इस के लिए जीवनशैली में बदलाव लाएं, सेहतमंद आहार लें, नियमित रूप से व्यायाम करें, धूम्रपान न करें और शराब का सेवन सीमित मात्रा में करें. दूसरा तरीका यह है कि अगर इन में से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें. इस्केमिक स्ट्रोक के लक्षण अचानक कमजोरी महसूस करना, चेहरे, बाजू या टांगों का सुन्न होना, इस में भी खासतौर पर शरीर के एक साइड में सुन्नपन महसूस होना, अचानक भ्रमित महसूस करना, बोलने या सम?ाने में मुश्किल, एक या दोनों आंखों से देखने में परेशानी, अचानक चलने में परेशानी, चक्कर आना, संतुलन न बना पाना, बिना किसी वजह के अचानक से सिर में तेज दर्द होना. हार्ट अटैक के लक्षण छाती में दर्द या असहजता महसूस होना, शरीर के ऊपरी हिस्से, बाजू, पीठ, गरदन, जबड़े या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द या असहजता महसूस होना,

सांस फूलना या सांस लेने में परेशानी, पसीना आना, मतली या उलटी, सिर चकराना या हलकी थकान महसूस होना. यहां इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ऐसा जरूरी नहीं कि सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग के हर मामले में इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक आए. हालांकि इस की संभावना के बारे में जागरूक होना और इस से बचने के लिए जरूरी कदम उठाना बहुत जरूरी है. कुल मिला कर सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेनब् लीडिंग के कारण इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक होना बहुत से लोगों के लिए गंभीर समस्या है. यह जोखिम खासतौर पर उन लोगों में अधिक होता है जिन में दिल की बीमारियों का इतिहास हो. लेकिन ब्रेन ब्लीडिंग से पीडि़त किसी भी व्यक्ति में ऐसा हो सकता है.

इसलिए जरूरी है कि उन कारकों से बचें जिन की वजह से दिल की बीमारियां होती हैं. साथ ही, इस्केमिक स्ट्रोक या हार्ट अटैक के लक्षण दिखते ही तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. कई तरह से एहतियात बरत कर सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग के कारण हार्ट अटैक या इस्केमिक स्ट्रोक की संभावना को कम किया जा सकता है. एंटीप्लेटलेट थेरैपी इस में मरीज को वे दवाएं दी जाती हैं जो ब्लड क्लौट बनने से रोकती हैं. एंटीप्लेटलेट थेरैपी से उन लोगों में दोबारा स्ट्रोक या दिल की बीमारियों की संभावना कम हो जाती है जिन में पहले से सेरेब्रल हेमरेज हो चुका है. एंटीकोग्युलेशन थेरैपी इस में मरीज को वे दवाएं दी जाती हैं जो ब्लड क्लौट को बनने या बड़ा होने से रोकती हैं.

इस थेरैपी का उपचार ब्लड क्लौट के जोखिम को कम करने, एट्रियल फाइब्रिलेशन के लिए किया जाता है. कुछ मामलों में सेरेब्रल हेमरेज के इलाज के लिए भी इस थेरैपी का उपयोग किया जाता है. सेरेब्रल हेमरेज या ब्रे नब्लीडिंग के कुछ मामलों में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है. इस में फट चुकी ब्लड वैसल की मरम्मत की जाती है. कई बार ब्रेन ट्यूमर को निकालने और ब्लीडिंग की वजह से दिमाग पर बन रहे दबाव को कम करने के लिए भी सर्जरी की जाती है. सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग के ठीक होने के बाद रीहैबिलिटेशन भी जरूरी है. दिमाग को कितना नुकसान पहुंचा है, इसे ध्यान में रखते हुए मरीज को फिजिकल थेरैपी, औक्युपेशनल थेरैपी, स्पीच थेरैपी या जरूरत के अनुसार कोई अन्य थेरैपी दी जाती है ताकि मरीज के फंक्शंस फिर से सामान्य हो जाएं और उस के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके.

यहां इस बात पर ध्यान देना भी जरूरी है कि सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग का उपचार और प्रबंधन मुश्किल हो सकता है. यह मरीज की व्यक्तिगत जरूरत के अनुसार तय किया जाता है. इसलिए मरीज को डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. इस्केमिक स्ट्रोक या हार्टअटैक की संभावना को कम करने के लिए सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग के जोखिम से बचना चाहिए. हाई ब्लडप्रैशर, धूम्रपान, शराब का अधिक सेवन और खून पतला करने की दवाएं आदि ऐसे कुछ कारक हैं जिन की वजह से सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना बढ़ती है. जीवनशैली में बदलाव ला कर और कुछ दवाओं की मदद से सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना को कम किया जा सकता है.

उदाहरण के लिए, धूम्रपान छोड़ने, शराब का सेवन कम करने, वजन पर नियंत्रण रखने से हाई ब्लडप्रैशर को कम करने में मदद मिलती है, जो सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग का मुख्य कारण है. नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम द्वारा भी सेरेब्रल हेमरेज या ब्रेन ब्लीडिंग की संभावना को कम किया जा सकता है और दिल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है. इस से डायबिटीज, हाई कोलैस्ट्रौल और दिल की बीमारियों से भी बचाव होता है. द्य (लेखक इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली में वरिष्ठ न्यूरोलौजी सलाहकार हैं.) दिल बड़े काम का दिल हमारे शरीर के सब से जरूरी अंगों में से एक है. दिल का वजन सामान्यतया 299 ग्राम होता है. हार्ट के दोनों चैंबर्स को एट्रिया कहा जाता है वहीं निचले हिस्से की बात करें तो इसे वैंट्रिकल कहा जाता है. एट्रिया और वैंट्रिकल एकसाथ काम करते हैं जो हार्ट से ब्लड को पंप करते हुए शरीर में भेजते हैं और फिर ब्लड को वापस लाने का काम करते हैं.

हार्ट हमारे पूरे शरीर में ब्लड को सप्लाई करने का काम करता है. ब्लड की मदद से शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों को भेजा जाता है और कार्बन डाइऔक्साइड व अन्य अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के बाहर निकालने का काम होता है. हार्ट को हमारे कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम का सब से जरूरी अंग माना जाता है. दिल औसतन एक मिनट में 75 बार धड़कता है. जैसेजैसे दिल धड़कता है, यह प्रैशर बनाता है ताकि धमनियों के माध्यम से पूरे शरीर में ऊतकों को औक्सीजन और महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व पहुंचाने के लिए रक्त प्रवाहित हो सके और नसों के माध्यम से रक्तप्रवाह वापस हो सके. दिल हर मिनट में लगभग 5 लिटर खून को फिल्टर करता है.

लेखक- डा. पी एन रेनजेन

मेरा बच्चा टैलीविजन और मोबाइल में ही घुसा रहता है, क्या करूं बताएं?

सवाल

मेरा बच्चा टैलीविजन और मोबाइल में ही घुसा रहता है. चौथी क्लास में पढ़ता है. उस से दोस्तों के साथ खेलनेकूदने के लिए कहती हूं तो कोई इंट्रैस्ट नहीं दिखाता. इस कारण थोड़ा वजन भी बढ़ने लगा है. परेशान हूंक्या करूंवैसे भी आजकल छोटी उम्र में ही बच्चों में बीमारियां बढ़ रही हैंइसलिए चिंता लगी रहती है.

जवाब

खेल बच्चों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि फिजिकल ऐक्टिविटी से शारीरिक और मानसिक विकास होता है. आप का बच्चा टैलीविजन और मोबाइल में दिलचस्पी ले रहा है तो आप को इन चीजों से उस का ध्यान हटाना होगा और इस के लिए आप को कुछ कदम उठाने होंगे.

न तो अचानक मोबाइल हाथ से छीनना है और न ही टैलीविजन औफ करना. सब चीजें धीरेधीरे से करनी है ताकि वह अपनेआप इन चीजों से दूर होता जाए.

बच्चे को सक्रिय रखने के लिए खुद भी सक्रिय रहें और उस की पसंदीदा गतिविधियों के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करें. बच्चे के लिए दैनिक कार्यक्रम तैयार करें जिस में उस के अधिकांश समय के लिए विभिन्न गतिविधियों को शामिल किया गया हो. इस से उसे ज्यादा समय टैलीविजन और मोबाइल के सामने बैठने से बचाया जा सकता है.

बच्चे को उस की पसंद की खेल सामग्री खरीद कर दे सकते हैं. इस से बच्चे को प्लेग्राउंड पर जाने के लिए उत्साह मिलेगा.

बच्चे के लिए नियमित रूप से खेलने का समय निर्धारित करें. इस से उसे पता चलता है कि खेलना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि पढ़ाई करना. बच्चे को दोस्तों के साथ प्लेग्राउंड पर जाने के लिए प्रोत्साहित करें. दोस्तों के साथ खेलने में मजा आता है और कौन्फिडैंस भी बढ़ता है.

स्कूल के खेल कार्यक्रम में बच्चे को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं. स्कूल में इस संबंध में टीचर से बात करें. स्कूल से जुड़े बच्चों के साथ अपने बच्चे की बातचीत करवाएं. इस से वह खेलने के लिए मोटीवेट होगा.

पत्थर- भाग 3 : अंतरिक्षीय अध्ययन केंद्र में क्या देखा था भाग्यजननी ने

भाग्यजननी ने हकलाते हुए कहा, “वह… सर… लाल लकीर वाला केस दिख रहा है स्क्रीन पर …”

सतेंद्र थोड़ा सहमा, फिर पूछा, “आगे का उस का वक्र कैलकुलेट करो. शायद आगे चल कर धरती से मिस हो रहा हो.”

भाग्यजननी ने निराश हो कर कहा, “कर लिया सर. ‘अखअ’ के टकराव विश्लेषक सौफ्टवेयर को भी जौब सबमिट किया था. उस का भी नतीजा मेरे सामने है. मेरे हाथ से किए कैलकुलेशन भी पन्नों पर हैं. कोई शक की गुंजाइश नहीं है.”

अपने जीवन में पहली बार सतेंद्र को ये शब्द सुनने को मिले थे. उसे नहीं लगा था कि अपने जीवनकाल में तो क्या, आने वाले किसी भी केंद्र के डायरैक्टरों के जीवनकालों में किसी को भी ये शब्द सुनने को मिलेंगे.

सतेंद्र ने व्याकुल होते हुए कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? अगर ऐसा होता तो नासा वालों की ओर से कोई सूचना न आ चुकी होती?”

भाग्यजननी ने कहा, “सर, बस अभीअभी लाल होना शुरू हुआ है. जैसे ही शुरू हुआ, वैसे ही मेरी नजर उस पर पड़ गई. हो सकता है कि वे लोग भी बस अभीअभी ही इसे देख रहे हों और कैलकुलेशन डबल चैक कर रहे हों.”

सतेंद्र ने रुक कर कहा, “नासा के सौमंप अनुसंधान केंद्र से हमारी सीधी हौटलाइन है. उस पर इंतजार करो. मैं धरोहरी को मैसेज कर देता हूं कि हौटलाइन चैंबर की चाबी तुम को दे दे.”

सतेंद्र ने मैसेज तो कर दिया, पर उसे नींद नहीं आई. उस के दिमाग में भाग्यजननी के शब्द घूमते रहे. लेकिन अपनी अमेरिकी पार्टनरशिप पर उसे पूरा भरोसा था. ऐसे अहम केस में वे जरूर पूरी दुनिया के सौमंप अनुसंधान केंद्रों को इत्तला कर देंगे. अपने देश की सरकार को भी उन्हें इस बात की जानकारी देनी होगी, जहां से यह जानकारी भारत देश की सरकार को उपलब्ध हो जाएगी.

सतेंद्र दुविधा में पड़ा यह सोचता रहा कि क्या दिल्ली तक उसे यह सूचना भिजवा देनी चाहिए या फिर एक प्रैस रिलीज अपने केंद्र की ओर से जारी करवानी चाहिए?

बहरलाल, जब तक विक्रम लैब पहुंच कर अपनी आंखों से इस बात की पुष्टि नहीं कर ली जाए, तब तक कुछ नहीं करना चाहिए. यही सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

चिंताजनक है जजों की कमी

भारतीय न्याय रिपोर्ट के अनुसार तीसरी बार भीकर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना ने न्याय देने मेंटौप 3 रैंक हासिल की है. इसके अलावा गुजरात और आंध्र प्रदेश को क्रमशः चौथा और पांचवा स्थान दिया गया है. न्याय के मामले में सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश टौप पर है. रिपोर्ट में यूपी को 18 बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में सबसे खराब प्रदर्शन वाला राज्य बताया गया है.

कम आबादी वाले राज्यों में सिक्किम न्याय प्रदान करने के मामले में सबसे ऊपर है. 1 करोड़ से कम आबादी वाले राज्यों में सिक्किम के बाद 2नौर्थ-ईस्ट राज्यों अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा का नाम भी शामिल है. गोवा इस लिस्ट में सातवें नंबर पर है.

 पहल करना जरुरी

इस बारे में इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के एडिटर माजा दारूवाला कहती है कि ये जस्टिस रिपोर्ट पिछले 3 साल से किया जा रहा है, इसमें मेरी टीम अलग – अलग राज्यों में जाती है और वहां के इंटेलेक्चुअल और ब्यूरोक्रेट्स से बात कर निरिक्षण करती है, जिसमे बातचीत से काफी बातें सामने आती है. कनार्टक के चीफ सेक्रेट्री ने बुलाकर बात की रिपोर्ट के आंकड़े देखे, तो उन्होंने मीटिंग बुलाई और लोगों की समस्याओं पर  चर्चा की और उसमें सुधार करने के बारें में सोचा है. फैले हुए आकड़ों को समेटने के बाद, इजी फोर्मेट में आने पर इसे समझना आसान हो जाता है और इसपर काम करने के अलावा एक बातचीत शुरू हो जाती है.

कर्नाटक में जस्टिस का आकड़ा सबसे अच्छा दिखने की वजह के बारे में पूछने पर माजा बताती है कि परफैक्ट वजह बताना संभव नहीं. एक वजह यह भी हो सकता है कि चुनाव आ रहे हैं, तो राज्य सरकार कुछ जल्दी सुधार कर लोगों का विश्वास पाना चाह रही हो, लेकिन ये सही है कि उन्होंने इस दिशा में काम करने का प्रयास किया है, जिसका परिणाम सामने दिख रहा है.

 चौकाने वाले आंकड़े

भारत में लंबित मामलों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इंडिया जस्टिस की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे देश में तेजी से कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके साथ ही इंडिया जस्टिस ने भारत की न्यायपालिका को लेकर भी आंकड़े जारी किए हैं, जिनमें बताया गया है कि देश की तमाम अदालतों में जजों की भारी कमी है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि देश के किन राज्यों में जस्टिस सिस्टम ने सबसे बेहतरीन काम किया है और कहां न्याय मिलने या मामलों के फैसलों में देरी हो रही है.

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हर एक जज पर लंबित मामलों का कितना भार है. जजों की कमी के चलते ये भार काफी ज्यादा बढ़ गया है. दिसंबर 2022 तक, देश में 10 लाख लोगों पर 19 जज थे और करीब 4.8 करोड़ मामलों का बैकलौग था. जबकि ला कमीशन औफ इंडिया की तरफ से 1987 में ही सुझाव दिया गया था कि एक दशक में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 50 जज होने चाहिए. देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां एक जज पर 15 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं.

अलगअलग राज्यों के हाईकोर्ट के आंकड़े देखने पर पता चलता है कि पिछले कई सालों के मामले अब तक लंबित पड़े हैं. इसमें यूपी सबसे ऊपर है. यहां औसतन 11.34 सालों के केस भी अब तक लंबित हैं. वहीं इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहां 9.9 साल औसत पेंडिंग मामलेहैं. इस मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन त्रिपुरा का है, जहां औसत पेंडिंगमामले करीब एक साल है. इसके बाद सिक्किम (1.9 साल) और मेघालय (2.1 साल) लिस्ट में हैं.

11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की जिला अदालतों में प्रत्येक 4 में से एक मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं. देश में ऐसे मामलों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (53 प्रतिशत)और सिक्किम में सबसे कम (0.8 प्रतिशत) है. बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल में ऐसे मामले 48.4 प्रतिशत और बिहार में 47.7 प्रतिशत हैं.

 सरकारी क्षेत्रों में महिलाओं के भर्ती की कमी                                                        

प्रोजेक्ट लीड वलय सिंह कहते हैं,“जब मैंने साल 2019 में पहली रिपोर्ट शेयर की थी, तो कर्नाटक के हाई कोर्ट में 47 परसेंट बहुत वेकेंसियां थी,जिस में उन्होंने भर्तियांबढ़ाई है, हाई कोर्ट की वेकेंसियां आधी कर दी. जेल के बजट को भी कम किया गया. सेशंस में सीसी टीवी कैमरे लगाए गए. पिछले सालों की तुलना करेंतो सभी राज्यों में कुछ न कुछ सुधार अवश्य हुआ है, कोशिश सभी कर रहेहैंलेकिन बहुत धीमा काम होने पर जरुरत के हिसाब से कमीबढ़ती जाती है.

कारागारों की व्यवस्थाखराब होता जा रहा है, औरतों का आरक्षण बहुत धीरेधीरे सुधर रहा है. औरते हैं, काम नहीं तो बेरोजगारहैं. वे काम करने के लिए तैयार भी है. देखा जाए तो आईटी सैक्टर में महिलाएं सबसे अधिक काम करती हैं,जबकि सरकारी निचली अदालतों में महिलाओं का राष्ट्रीय औसत 35 प्रतिशत है, बाकी सब जगह ये 20, 15 और 10 के नीचे है.

लोअर ज्युडिशियरी में 33 प्रतिशत या 35 प्रतिशत या कई राज्यों में उससे भी अधिक महिलाएं जज बन रही हैं, लेकिन आईटी सैक्टर से तुलना करने पर पता चलता है कि महिलाएं और अधिक काम सरकारी क्षेत्र में कर सकती हैं. महिला पुलिस औफिसर का प्रतिशत 5 है.माजा दारूवाला कहती हैं,“पुलिस का 90 प्रतिशत काम किसी आतंकी या गैंग को पकड़ना नहीं होता. पुलिस का काम प्रसाशनिक, दिमाग और डेस्क वाला होता है. इसे कोई भी महिला कर सकती है.”

 100 फीसदी तक नहीं केस क्लीयरेंस रेट

राज्यों के केस क्लीयरेंस रेट की बात करेंतो हाईकोर्ट्स में 2018-19 से 2022 के बीच राष्ट्रीय औसत में 6 प्रतिशत (88.5 प्रति प्रतिशत से 94.6 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई हैलेकिन निचली अदालतों में 3.6 (93 प्रतिशत से 89.4 प्रतिशत) की गिरावट आई है. 2018 से 2022 के बीच त्रिपुरा ही इकलौता राज्य है जहां जिला अदालतों में केस क्लीयरेंस रेट 100 प्रतिशत से ऊपर रहा. हालांकि 2020 में कोरोनाकाल के दौरान त्रिपुरा में भी केस क्लीयरेंस रेट 40 प्रतिशत तक पहुंच गया था.

 सही आंकड़ों का मिलना होता है मुश्किल

समस्या क्या होती है? मेरी टीम अच्छी है और मेरे पार्टनर ने सहयोग दिया है. ये समस्या आकड़ों की है, केवल सरकारी रिपोर्ट को देखते हैं. नेशनल, राज्य, पार्लियामेंट, बजट, असेम्बली को देखते हुए काम करते हैं,जो नहीं मिलता है. उसे राईट टू इनफौर्मेशन में एप्लीकेशन डालडालकर देता निकलना पड़ता है. डेटा कई बार मुश्किल से देते हैं या फिर उस मेंखामिया होती हैं, जब इसे रिपोर्ट बनाते हैं, लोग आलोचना करते हैं और कहते हैं कि ये गलत रिपोर्ट है, लेकिन ये एक आइना है, क्रिटिक नहीं. इसमें बाधा होने पर दिखेगा. इसके अलावा इसमें हार्ड वर्क और पैशन होना जरुरी होता है. इसे देश के लिए ही किया जा रहा है. माजा दारूवाला आगे कहती हैं,“भारत ने यह वादा किया है कि 2030 तक वह प्रत्येक व्यक्ति की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करेगा और सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करेगा, लेकिन इस साल आईजेआर के द्वारा प्रस्तुत आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि अभी भी हमें लंबा सफर तय करना है.

“मेरा फिर से आग्रह है कि हम सब के लिए किफायती, कुशल, और सुलभ न्याय सेवाओं को भोजन, शिक्षा या स्वास्थ्य की तरह ही आवश्यक माना जाए. इसके लिए इसमें और अधिक संसाधनों को लगाने की, बहुत अधिक कैपेसिटी बिल्डिंग की लंबे समय से चली आ रही खामियों को दूर करने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है.”

मीडिया को ध्यान देने की है जरुरत

मीडिया मेंविश्वसनीयता की कमी,कितना नुकसान दायक है? माजा कहती है,“ये सही है आज की मीडिया में लोगों को कुछ सही खबर देने की जो परमंपरा पहले थी, वह अब खत्म हो गई है. ऐसे में डेटा को लेकर कुछ लिखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. यही वजह है कि लोग हमें रिपोर्ट के द्वारा ओपिनियन देने की बात कहते हैं. राय तो है,लेकिन उससे क्या बदलाव हो सकेगा.मैंने इन आंकड़ों पर रिपोर्ट तैयार की है. ये आंकड़े भी हमारी सरकार के हैं, इसका मुझसे कुछ लेनादेना नहीं है.

“मेरा सरकार के प्रति पक्षपाती होना भी नहीं है. सिर्फ सुधार जो हुआ है या कम हुआ है, उसकी प्रतिबिंब को दिखाना है. रिपोर्ट भी बनाने से पहले हमने डेटा को इकट्ठा किया और उसे ग्राउंड पर जाकर मिलान भी किया. रिपोर्ट एक छोटा पार्ट है, जिसमें काम करने के तरीके,लोग क्या सह रहे हैं, क्या नहीं, पारदर्शिता है या नहीं आदि कई बातों को सामने लाने की कोशिश की गई है.

  न्याय पालिका पर दबाव

  • सिक्किम हाई कोर्ट और चंडीगढ़ डिस्ट्रिक्ट हाई कोर्ट को छोड़कर देश के किसी भी कोर्ट में जजों की संख्या पूरी नहीं,
  • 18 बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों में केस और क्लियरेंस रेट के मामले में सिर्फ केरल ने छुआ 100 फीसदी का आंकड़ा,
  • डिस्ट्रिक्ट कोर्ट लेवल पर किसी भी राज्य ने एससीएसटी और ओबीसी कोटा को पूरा नहीं किया,
  • न्याय के मामले में साउथ के राज्य सबसे आगे, जिस में कर्णाटक, तमिलनाडु, और तेलंगाना ही 3 सबसे ऊपरी पायदान पर,

 प्रति जज लंबित मामलों की औसत संख्या

  • राजस्थान –24000 हजार
  • मध्यप्रदेश –12000 से अधिक
  • उत्तरप्रदेश –करीब 12000
  • हिमाचल प्रदेश – करीब 9 हजार
  • आंध्रप्रदेश – करीब 9 हजार
  • हरियाणा – करीब 8 हजार

 

 

Yrkkh : अबीर लेगा अक्षरा और अभिनव से अलग होने का फैसला !

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में काफी ज्यादा दिलचस्प मोड़ आया है, सीरियल में दिखाया जा रहा है कि अक्षरा और अभिमन्यु की लड़ाई को देखकर अबीर ने इन दोनों से अलग होने का फैसला लिया है. हालांकि अक्षरा अबीर को मनाने की कोशिश कर रही है.

इन दिनों अभि और अक्षरा के बीच में काफी गंभीर लड़ाई चल रही है ,दोनों अबीर को पाने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं. इसी बीच दोनों के बीच लड़ाई होती नजर आई. बीते एपिसोड में आपने देखा था कि अभिनव पैसा कमाने के चक्कर में अबीर पर ध्यान नहीं दे पा रहा है.जिस वजह से अक्षरा काफी परेशान हो जाती है. दूसरी तरफ अभिममन्यु से रूही और आरोही भी परेशान हो जाते हैं. अभि एकदम से बीच ें फंसा हुआ है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by jasleen (@abhira_forever_fp)

अभि पहले जितना रूही और आरोही पर प्यार नहीं दे पा रहा है इसलिए वह दोनों अभि से नाराज है. आने वाले एपिसोड में नए ड्रामे देखने को मिलने वाले हैं. बीते एपिसोड में मंजरी और आरोही के बीच बहस दिखाई गई थी. जिस वजह से आरोही घर छोड़ने की बात कह रही थी. हालांकि ऐसा होगा नहीं.

अभि आरोही और रूही के पीछे आ जाएगा और उन दोनों को घर से बाहर नहीं जाने देगा, वह अपनी मां से भी कहेगा कि वह अबीर के लिए रूही को बिल्कुल भी नहीं खो सकता है.

कैपटाउन में दिखा ऐश्वर्या शर्मा का नया लुक पति नील ने किया ये कमेंट

रोहित शेट्टी का खतरनाक शो खतरों के खिलाड़ी 13 की शूटिंग शुरू हो चुकी है, जिसमें कई सारे जाने माने चेहरे नजर आ रहा है. वहीं गुम है किसी के प्यार में एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा भी खतरों की खिलाड़ी का हिस्सा बनी हैं.

ऐश्वर्या की काफी शानदार तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें वह अपने हुस्न का जलवा बिखेर रही हैं, कछ दिनों पहले इस शो के सभी कंटेस्टेंट कैपटाउन पहंचे हैं, जहां पर इस शो की शूटिंग शुरू हो चुकी है. ऐश्वर्या की नए लुक की जमकर तारीफ कर रहे हैं फैंस.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma (@aisharma812)

दरअसल, ऐश्वर्या शर्मा ने अपना लुक ऐसे शेयर किया है जिसमें फैंस उनकी जमकर तारीफ करते नजर आ रहे हैं. बता दें कि ऐश्वर्या ग्रीन कलर के आउटफिट में नजर आ रही हैं. फैंस को ऐश्वर्या का लुक खूब पसंद आ रहा है. साथ में गॉग्लस लगाया हुआ है.

ऐश्वर्या अपनी कुछ तस्वीरों पर प्यार लुटाती नजर आ रही है, एक्ट्रेस का यह अंदाज लोगों को खूब पसंद आ रहा है. ऐश्वर्या का यह अंदाज लोगों को पहली बार देखने को मिला है. तस्वीर में देखकर साफ पता चल रहा है कि ऐश्वर्या एनिमल लवर है.

जिसका फायदा ऐश्वर्या को स्टंट में देखने को मिलेगा, एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है हरा भरा कबाब, इसके अलावा पति नील भी पत्नी की तस्वीर पर शानदार कमेंट किए हैं. उन्होंने लिखा है कि जो मैंने आर्डर किया है वो कबाब साउथ अफ्रीका कैसे पहुंच गया.

फैंस ऐश्वर्या शर्मा की फोटो को काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं, इसके अलावा फैंस ने ऐश्वर्या शर्मा से सवाल किया था कि आपने गुम है किसी के प्यार में क्यों छोड़ा था. जिसका जवाब उन्होंने दिया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें