सीधी सी पत्नी रमा की सादगी उस के खुले विचारों वाले पति शेखर को अखरती थी. तभी तो मदमस्त, खूबसूरत निशि उसे भाने लगी थी. लेकिन आज सुंदरता में वही रमा उसे निशि से बीस लग रही थी…
भादों महीने की काली अंधेरी रात थी. हलकी रिमझिम चालू थी. हवा चलने से मौसम में ठंडक थी. रात में लगभग एक बज रहा था. दिनभर तरहतरह की आवाजें उगल कर महानगर लखनऊ 3-4 घंटे के लिए शांत हो गया था.
गोमती नदी के किनारे बसी एक कालोनी के अपने मकान की ऊपरी मंजिल के कमरे में शेखर मुलायम बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. उस की नजर बगल में बैड पर गहरी नींद में सो रही रमा पर पड़ी, जो आराम से सो रही थी.
घड़ी पर नजर डालते हुए शेखर मन ही मन बड़बड़ाया, ‘4 घंटे बाद रमा के जीवन में कितना बड़ा तूफान आने वाला है, जिस से वह बेचारी अनजान है. यह तूफान तो रमा के घरेलू जीवन को ही उजाड़ देगा और वह पूरी जिंदगी उसी के भंवर में डूबतीउतराती रहेगी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और रमा पुराने विचारों पर ही भरोसा रखती है. समय के साथ ताल मिला कर चलना सीखा होता और मैं क्या चाहता हूं, यह समझा होता.
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तो आज उसे छोड़ने का यह समय तो न आता.’
शेखर उस अंधेरे में देखते हुए सोच रहा था, ‘3 घंटे बाद 4 बजेंगे. मैं बैडरूम से निकल कर दबेपांव घर से बाहर जा कर टैक्सी पकड़ूंगा और अमौसी हवाई अड्डे पर पहुंच जाऊंगा. वहां साढ़े
5 फुट की निशि ग्रे रंग की जींस और लाल रंग का टौप पहन कर खड़ी होगी. मुझे देखते ही अपने केशों को एक खास अंदाज में झटकते हुए अपने गुलाबी होंठों से मोनालिसा की तरह मुसकराते हुए इंग्लिश में कहेगी, ‘गुडमौर्निंग शेखर. मुझे विश्वास था कि तुम देर जरूर करोगे’ और मैं निशि के मरमरी हाथ को अपने हाथ में ले कर कहूंगा, ‘सौरी डार्लिंग.’
यह सब सोच कर शेखर के होंठों पर हंसी तैर गई. उस की आंखों के सामने औफिस की कंप्यूटर औपरेटर निशि तैर गई. 22 साल की परी जैसी मोहक देह के बारे में सोचते ही शेखर के शरीर में रोमांच की लहर दौड़ गई.
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने वाले खुले विचारों के शेखर को रमा की सादगी अखरती थी. रमा पतिपरायण पत्नी थी. पति के अस्तित्व में अपने अस्तित्व को देखने वाली पत्नी, जो आज के समय में मिलना मुश्किल है. पर शेखर, रमा की सादगी से काफी नाखुश था.
शेखर को अकसर लगता कि रमा उस जैसे कामयाब आदमी के लायक नहीं है, गांव की सीधी, सरल और संस्कारी लड़की से शादी कर के उस ने बहुत बड़ी भूल की है. फैशनपरस्ती भी कोई चीज होती है.
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अतिआधुनिक लड़कियों की तसवीर रमा में ढूंढ़ने वाला शेखर कभी चिढ़ कर कहता, ‘रमा, आदमी को यौवन से मदमाती औरत अच्छी लगती है. बर्फ बन जाने वाली ठंडी पत्नी नहीं. पुरुष को सहचरी चाहिए, सेविका नहीं.’
रमा फिर भी शेखर की चाहत पूरी कर पाने वाली आधुनिका नहीं बन सकी. शेखर उंगली रख कर रमा का दोष बता सके, इस तरह का नहीं था. रमा अपने काम, पति के प्रति वफादारी और चरित्र की कसौटी पर एकदम खरी उतरती थी.
शेखर की निगाह उस के विभाग में नईनई आई 22 साल की खूबसूरत, मस्त और कदमकदम पर सुंदरता बिखेरती कंप्यूटर औपरेटर निशि पर जम गई.
निशि समय की ठोकर खाई युवती थी. उस ने देखा कि औफिस के एग्जीक्यूटिव और विभाग के अधिकारी शेखर की नजर उस की सुंदरता पर जमी है और उस की कृपादृष्टि से वह औफिस में स्थायी हो सकती है व उन्नति भी पा सकती है, इसलिए समय और मौके के मूल्य को समझते हुए व शेखर की नजरों में अपने प्रति चाहत देख कर उस के करीब पहुंच गई.
थोड़े समय में ही शेखर और निशि नजदीक आ गए.
निशि के साथ रहने के कारण शेखर घर देर से पहुंचने लगा. रमा ने इस बारे में कभी शेखर से पूछा भी नहीं कि इतनी देर तक वह कहां रहता है. उलटे शेखर से प्रेम से पूछती, ‘लगता है, आजकल औफिस में काम बढ़ गया है, जो इतनी देर हो जाती है. लाइए आप का सिर और पैर दबा दूं.’
रमा के इस व्यवहार से शेखर सोचने लगता कि यह औरत भी अजीब है. कभी इस के मन में किसी तरह का अविश्वास, शंका नहीं आती. रमा के इस तरह के व्यवहार से उस का अहं घायल हो जाता.
शेखर निशि को 3-4 बार अपने घर भी ले आया. रमा ने निशि की खूब खातिर की. शेखर ने सोचा था कि रमा निशि से उस के संबंध के बारे में पूछताछ करेगी, मगर उस की यह धारणा गलत निकली.
निशि अपनी मुसकान से, अदाओं से और बातों से शेखर का मन बहलाने लगी. शेखर ने उस की नौकरी सालभर में ही पक्की करवा दी और वेतन भी लगभग तीनगुना करवा दिया. नौकरी पक्की होते ही शेखर को लगा कि अब निशि धीरेधीरे उस के प्रति लापरवाह होती जा रही है. जब भी मिलने को कहो तो किसी न किसी काम का बहाना कर के मिलने को टाल जाती है.
इस बीच, उस ने अंदाज लगाया कि निशि उस के बजाय निखिल से अधिक मिलतीजुलती है. उस से कुछ अधिक ही संबंध गहरा हो गया है. उस का दिमाग चकराने लगा. वह उदास हो गया.
एक दिन शेखर ने निशि से पूछ ही लिया, ‘निशि, तुम्हारे और निखिल के संबंधों को मैं क्या समझूं?’
निशि ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘निखिल मेरा दोस्त है. क्या मैं औरत होने के नाते किसी पुरुष से दोस्ती नहीं कर सकती?’
‘मैं इतने तंग विचारों वाला आदमी नहीं हूं, फिर भी मैं किसी और पुरुष के साथ तुम्हारी नजदीकी बरदाश्त नहीं कर सकता.’
‘आप का मैं कितना सम्मान करती हूं, यह आप भी जानते हैं. पर एक ही आदमी में अपनी सारी दुनिया देखना मेरी आदत में नहीं है’, निशि ने शेखर का हाथ अपने हाथ में ले कर मुसकराते हुए कहा, ‘आप मुझे अपनी जागीर समझें. मैं जीतीजागती महिला हूं, मेरे भी कुछ अपने अरमान हैं.’
शेखर ने खुश होते हुए कहा, ‘निशि, तुम मुझे उतना ही प्यार करती हो, जितना मैं तुम से करता हूं?’‘चाहत को भी भला तौला जा सकता है?’ निशि हंस?? कर बोली.‘निशि, चलो, हम दोनों विवाह कर लेते हैं.’
निशि चौंकी, फिर गुलाबी होंठों पर मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘लेकिन आप तो शादीशुदा हैं. दूसरी शादी तो कानूनन हो नहीं सकती. यदि आप अकेले होते तो मेरा समय अच्छा होता.’
‘निशि, अपने प्रेम के लिए मैं अपना घरेलू जीवन तोड़ने को तैयार हूं. प्लीज, इनकार मत करना. कल सुबह दिल्ली के लिए हवाई जहाज से 2 टिकट बुक करा लेता हूं. सुबह साढ़े 5 बजे अमौसी हवाई अड्डे पर आ जाना. अब देर करना ठीक नहीं है. मुझे रमा और निशि के बीच भटकना नहीं है. तुम सुबह आना, मैं इंतजार करूंगा.’
तब निशि केवल इतना ही बोल सकी, ‘ठीक है.’बैड पर करवट बदल रहे शेखर यह सोच कर मुसकरा पड़ा कि कुछ घंटे बाद ही निशि हमेशा के लिए मेरी होगी.
शेखर ने घड़ी में समय देखा, 2.30 बजे थे.तभी फोन की घंटी बज उठी. निशि का ही होगा. मैं भूल न जाऊं, यही याद दिलाने के लिए उस ने फोन किया होगा. सचमुच निशि कितनी अच्छी है. एकदम सच्चा प्रेम करती है मुझ से.
शेखर ने धीरे से उठ कर फोन का रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’
‘‘शेखर, मैं निशि बोल रही हूं.’’
‘‘मैं पहले ही जान गया था कि तुम्हारा फोन होगा. इतनी उतावली क्यों हो रही हो? मैं भूला नहीं हूं. एकएक पल गिन रहा हूं, नींद नहीं आ रही है क्या.’’
‘‘ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं कल आप की हालत देख कर संकोचवश कुछ कह नहीं सकी. काफी सोचने के बाद मुझे लगा कि एक शादीशुदा पुरुष की रखैल बनने के बदले निखिल की पत्नी बन जाना मेरे और तुम्हारे दोनों के लिए अच्छा रहेगा.
‘‘निखिल से विवाह कर के उस की पत्नी के रूप में मैं समाज में प्रतिष्ठा भी पाऊंगी और रमा बहन जैसी बेकुसूर औरत का संसार भी नहीं उजड़ेगा. तुम हवाई अड्डे जाने के लिए घर से निकलो, उस के पहले ही मैं और निखिल यह शहर छोड़ चुके होंगे. हम दोनों अभी नैनीताल जा रहे हैं. वहीं शादी कर के हनीमून मनाएंगे.
‘‘मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे माफ कर दोगे. रमा दीदी सुंदर, सुशील हैं, उन्हें प्रेम दे कर उन से प्रेम पा सकते हो. एक औरत हो कर भी मैं ने रमा दीदी के साथ बहुत अन्याय किया है. अब इस से अधिक अन्याय मैं नहीं कर सकती. बात मेरी समझ में आ गई, भले ही थोड़ी देर से आई है. इसलिए अब मैं प्रेम के अंधेरे रास्ते पर नहीं चलना चाहती. अब आप मेरा इंतजार मत कीजिएगा.’’
फोन कट गया. शेखर का दिमाग चकराने लगा. उसे लगा वह रो पड़ेगा. लड़खड़ाते हुए बालकनी में आया. संभाल कर रखे जहाज के दोनों टिकटों को फाड़ कर हवा में उछाल दिया. उस के बाद आ कर कमरे में लेट गया. उस की नजर बगल में बेखबर सो रही रमा पर पड़ी. शेखर आंख बंद कर रमा और निशि की आपस में तुलना करने लगा.
4 बजे का अलार्म बजा. रमा ने आंख बंद कर के लेटे शेखर को झकझोरा, ‘‘उठो, 4 बज गए हैं. दिल्ली नहीं जाना क्या? तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं चाय बना कर ला रही हूं.’’
शेखर रमा को ताकने लगा. उसे लगा कि उस ने आज तक रमा को प्रेमभरी नजरों से देखा ही नहीं था. वाकई सीधीसादी होने के बावजूद रमा निशि से सुंदरता में बीस ही है. सादगी का भी अपना अलग सौंदर्य होता है.
‘‘इस तरह क्या देख रहे हो? क्या आज से पहले मुझे नहीं देखा था? चलो, जल्दी तैयार हो जाओ, देर हो रही है.’’
शेखर ने रमा को बांहों में बांध लिया और बोला, ‘‘रमा, मैं अब दिल्ली नहीं जाऊंगा.’’
रमा ने शेखर का यह व्यवहार सालों बाद अनुभव किया था. शेखर भी महसूस कर रहा था कि आज जब वह रमा को दिल से प्यार कर रहा है तो रमा की मदमाती अदाओं में कुछ अलग कशिश है. बीता वक्त लौट तो नहीं सकता था लेकिन उसे संवारा तो जा सकता था.