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नीलकंठ – भाग 3 : अकेलेपन का दंश

गांव में भी नीलकंठ के लिए सबकुछ बदल गया था. उस के सभी दोस्त उस से एक क्लास आगे हो गए, फिर वे दोस्त अब उस के नहीं रहे… उन्हें अपने घर से हिदायत थी कि नीलकंठ की संगत से दूर रहें, उस पर लेबल लग चुका था, गुनाह का लेबल.

स्कूल में दाखिला तो मिला, मगर टीचर से ले कर हर बच्चे की आंखों में उसे अपने लिए परायापन महसूस हो रहा था. बहुत कष्टकारी दिन रहे वे नीलकंठ के लिए. एक बच्चा कब तक अकेला रहेगा? यहां तो उस के लिए घर ही मानो उस की दुनिया रह गई. वह बाहर निकलता तो बड़े, बच्चे कोई भी उस से स्नेह नहीं करते, बल्कि जेल (बाल सुधारगृह ) के किस्से सुनने में उन की रुचि रहती. इस का प्रभाव उस की मानसिकता पर पड़ने लगा. वह समझ गया कि सब ने उसे अपराधी (खूनी) मान लिया है. जीवन से मानो उस का जी भर गया हो, उस का मन पढ़ाई से उचटने लगा. वह कभी पेटदर्द तो कभी आंख या कभी कान में दर्द होने का बहाना बना कर स्कूल जाने से कतराने लगा. जबरदस्ती भेजने पर वह छोटीछोटी बातों पर गुस्सा हो जाता था या आक्रामक हो जाता था.

परिणामस्वरूप, स्कूल के प्रिंसिपल ने उसे मानसिक रूप से बीमार बता कर किसी अच्छे दिमागी डाक्टर को दिखाने की सलाह दी या अप्रत्यक्ष रूप से उसे स्कूल से हटाने की साजिश थी यह. परिणामत वह पढ़ाई में पिछड़ने लगा. उस के सपने कतराकतरा बिखरने लगे, सपनों संग जिंदगी भी.

काका ने उसे शहर के दिमागी डाक्टर को दिखाया, तो उन्होंने सलाह दी, “बच्चे को उस माहौल से दूर रखिए, जहां यह घटना घटी है.”

न चाहते हुए भी काका ने शहर के स्कूल में उस का दाखिला करा दिया और वहीं होस्टल में उस की रहने की व्यवस्था भी करवा दी. यों नीलकंठ घर से और दूर कर दिया गया. इन सब के बीच रानू के मन का महाभारत सदा उसे मथता रहा, ‘काश, उस दिन वह दरवाजा न खोलती… काश, उन 3 गोलियों में से एक उसे लग जाती तो यह सब न देखना पड़ता. जिस भाई को वह रक्षासूत्र बांधती है, उस ने तो अपना फर्ज निभा दिया… मगर, उस का फर्ज… भाई के उज्ज्वल भविष्य की कामना का तिलक जो वह लगाती रही… उस ने ही भाई के भविष्य को अंधेरी खाई में धकेल दिया. मन ही मन कितना टूटी है रानू, वही जानती है. इसीलिए उस ने खामोशी ओढ़ ली.

गांव में 10वीं तक स्कूल था. उस ने उस के बाद पढ़ाई छोड़ दी. बस घर की चारदीवारी में खुद को कैद कर भाई के वापस लौटने की मनौती करती रहती. मेरे सिवा उस ने गांव की सभी लड़कियों से खुद को काट रखा था. समय अनुकूल हो तो जल्दीजल्दी भागता सा लगता है और प्रतिकूल हो तो लंबा और विकराल… फिर भी कट तो रहा था. भले ही दिल पर घाव करता सा ही सही. एक तो युवा मन वह भी एकांतवास झेलता, मन में समाज के प्रति जहर तो बो ही चुका था मन में, शायद अपनों के भी प्रति, तभी तो जब भी काकाकाकी उस से मिलने जाते, उस के व्यवहार में उन के प्रति उदासीनता ही होती, टूट कर रह जाते वो मातापिता, किस से कहें वो अपनी पीड़ा… घर के हर सदस्य के भीतर जंग जारी थी, वे खुद से भी जूझ रहे थे और समाज से भी. समाज से एक बार लड़ना आसान है, मगर खुद से लड़ना इनसान को थका देता है, यह थकान उन के चेहरों पर साफ दिखाई दे रही थी.

यह सच है कि नीलकंठ ने बाल सुधारघर में यातनाओं का सामना किया है, जिस से उस के जीवन की दशा और दिशा दोनों ही बदल गई. जिसे कम से कम हर सहृदय व्यक्ति महसूस तो कर रहा है, किंतु रानू… उस के मन के महाभारत को शायद कोई नहीं देख पा रहा था. वह कलियुग की ऐसी द्रौपदी, जिसे जो कृष्ण बचाने भी आया तो इस नपुंसक सभा ने उसे भी दोषी करार दे दिया. वह बेचारी किस से फरियाद करे, खुद गुनाह के बोझ से भीतर ही भीतर गलती जा रही थी. इस उम्र में जो निखार लड़कियों के चेहरे पर होता है, वह रानू के चेहरे पर कहीं नजर नहीं आ रहा था. वह हमेशा बुझीबुझी, सहमी सी रहती.

उधर एक साल बाल सुधारगृह में रह कर नीलकंठ की पढ़ाई का हर्जाना तो हुआ ही साथ ही उस के भीतरबाहर एक जंग छिड़ गई थी, जिस से वह जूझ रहा था. इस संघर्ष ने उसे बहुत बदल दिया था. बहुत पूछने पर भी मुंह न खोलता. यह शायद उस माहौल का असर था, जिस में उस ने एक साल गुजारा है. होस्टल से भी उस की शिकायत आने लगी सो, उसे नानी के घर रख कर पढ़ाने की योजना बनाई.

 

छाती में गोली लगने पर क्या करें

आएदिन समाचार पत्रों व टैलीविजन पर छाती में गोली लगने की घटना आम बात हो गई है. अवैध रूप से निर्माण होने वाले देशी तमंचों व रिवौल्वर की भरमार हो गई है. पहले तो हर छोटे कसबे व नगर में गुंडे, मवाली व आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अपनी करतूतों को अंजाम देने के लिए इन देशी तमंचों का खुलेआम इस्तेमाल करते थे पर यह रोग अब बड़े महानगरों में भी तेजी से फैल रहा है. थोड़ी सी गरमागरम बहस के बाद ही लोग अपने प्रतिद्वंद्वी को सबक सिखाने के लिए आननफानन लाइसैंसी रिवौल्वर निकाल लेते हैं.

सड़कों पर स्वचालित वाहनों की भरमार होने से आएदिन बहस और फिर आवेश में आ कर प्रतिरोधी पर तमंचे व रिवौल्वर से फायर कर देना मानो मर्दानगी व शूरवीरता की निशानी है. जमीनजायदाद व धनसंपत्ति को ले कर होने वाली गोलीकांड की घटनाएं तो बरसों से होती आ रही हैं, पर यह वाहनों की सड़क पर जरा सी आपस में टक्कर हो जाने पर गोलीकांड हो जाना, ऐसा लगता है कि यह नए जमाने का नया फैशन है जो आधुनिक सड़कों पर देखने को मिल रहा है. लोग आपसी मसलों को सुलझाने के लिए एकदूसरे के घर जा कर बातचीत करने जाते हैं पर समस्या का समाधान निकलना तो दूर की बात रही, बहस का समापन गोली चला कर करते हैं.

छाती में गोली कैसे लगती है

छाती में गोली 3 तरह से लग सकती है. पहले या तो बिलकुल पास से फायर किया जाए या फिर दूर से. कभीकभी चांदमारी क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों की छाती में सेना के नौजवानों द्वारा अभ्यास परीक्षण के दौरान चलाई गई गोली दिशाहीन व छिटक कर घुस जाती है. लोगों के जेहन में यह खयाल अकसर आता है कि ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग छाती में गोली लगने के तुरंत बाद घटनास्थल पर ही दम तोड़ देते हैं और कुछ लोग छाती में गोली लगने के बाद जिंदा अस्पताल तक तो पहुंच जाते हैं पर वहां जा कर कुछ घंटों में ही मर जाते हैं.

कई लोगों का छाती का औपरेशन भी हो जाता है, उस के बावजूद कुछ दिनों के बाद उन की मौत हो जाती है. इन सब से हट कर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन की छाती में गोली लगने के बाद भी उन का बाल बांका नहीं होता और छोटे से औपरेशन के बाद सबकुछ ठीकठाक हो जाता है.

छाती में गोली खतरनाक क्यों होती है

छाती के अंदर जब गोली प्रवेश करती है तो यह छाती की दीवार के अलावा छाती के अंदर स्थित अंगों, जैसे फेफड़े या दिल, फेफड़े से निकलने वाली खून की मोटी नली, सांस की नली या फिर खाने की नली को जख्मी कर देती है. इस के अलावा छाती के आसपास स्थित महत्त्वपूर्ण अंग भी क्षतविक्षत हो सकते हैं.

अगर बंदूक या रिवौल्वर की नली की दिशा छाती की तरफ पर सीधी न हो कर, ऊपर की तरफ या नीचे की तरफ थोड़ी झुकी हुई है तो क्या हो?

अगर यह ऊपर की तरफ झुकी हो तो गोली छाती के अंदर से गरदन के अंदर स्थित अंगों को घायल कर देगी. अगर बंदूक की नली गोली चलाते वक्त नीचे की तरफ केंद्रित है तो पेट के अंदर स्थित महत्त्वपूर्ण अंग, जैसे जिगर, तिल्ली, छोटी आंत, खून की मोटी नलियां गंभीर रूप से घायल हो जाती हैं.

छाती में प्रवेश करने वाली गोली पर लगने वाली मौत की मोहर कुछ बातों पर निर्भर करती है, जैसे छाती के कौन से हिस्से में गोली प्रवेश करती है, कितनी जल्दी छाती में लगी गोली से घायल व्यक्ति सही अस्पताल में पहुंचता है. गोली चलाते वक्त, रिवौल्वर की नली की स्थिति क्या थी. अगर छाती के बीचोंबीच गोली लगी है तो दिल से निकलने वाली मोटी खून की नली जख्मी हो सकती है यानी घटनास्थल पर मौत.

छाती के बाईं तरफ लगने वाली गोली भी यमदूत की सवारी बन कर आ जाती है क्योंकि यहां दिल व फेफड़ों को जाने वाली खून की नलियां गंभीर रूप से जख्मी हो जाती हैं. छाती में गोली की घटना में समय का बड़ा महत्त्व है. अगर समय रहते उचित अस्पताल में गोली से घायल व्यक्ति को नहीं पहुंचाया जाता और भयंकर रक्तस्राव समय रहते नियंत्रित नहीं हो पाता तो घायल व्यक्ति की मौत हो जाती है. देखा गया है कि अगर केवल फेफड़े से होने वाले भयंकर रक्तप्रवाह को समय रहते रोक लिया जाए तो मरीज की जान बचने की संभावना बढ़ सकती है.

कौन से लोग छाती में गोली लगने के बावजूद बच जाते हैं

छाती में गोली लगने के बावजूद अकसर लोगों की जान बच जाती है. यह सब परिस्थितियों पर निर्भर करता है. अगर गोली ने फेफड़े व दिल की मोटी खून की नली या सांस की नली या फिर खाने की नली को जख्मी नहीं किया है और मरीज समय रहते अस्पताल में किसी अनुभवी थोरेंसिक सर्जन के पास पहुंच गया है तो घायल व्यक्ति की जान बचने की संभावना बढ़ जाती है. कभीकभी गोली दाहिनी छाती से प्रवेश कर फेफड़े को छीलती हुई छाती की दीवार में जा कर धंस जाती है. ऐसे मरीजों की जान बचने की संभावना समुचित इलाज के बाद बढ़ जाती है.

देखा यह जाता है कि दाहिनी छाती में लगी गोली, बाईं छाती में लगी गोली की तुलना में कम खतरनाक होती है. देशी तमंचे से किया गया वार तो काफी पेचीदा होता है. तमंचे से निकले छर्रे काफी मात्रा में छाती की दीवारों में धंस जाते हैं. देशी तमंचों का नुकसान यह होता है कि गोली के ऊपर का प्लास्टिक या रबर का खोल छाती के अंदर फेफड़े या दिल की बाहरी दीवारों पर जा कर फंस जाता है जिस की वजह से अगर मरीज बच भी गया तो भी समस्या यहां समाप्त नहीं होती. यह रबर के खोल इंफैक्शन का कारण बन जाते हैं और छाती की दीवारों के छेदों से मवाद आना शुरू हो जाता है. परिणामस्वरूप, छाती में बहुत सारे नासूर बन जाते हैं.

छाती में गोली लगने पर मौत क्यों होती है

छाती में गोली लगने पर मौत होने का सब से बड़ा कारण भयंकर रक्तस्राव है. छाती के अंदर खून का बहना 2 तरह से मौत का कारण बनता है. एक तो खून ज्यादा मात्रा में निकल जाने के कारण शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंग, जैसे दिमाग, लिवर व गुर्दे में रक्त की सप्लाई शून्य हो जाती है और शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं. वहीं छाती में अत्यधिक खून के जमाव के कारण दिल और फेफड़े के ऊपर भयानक दबाव पड़ता है जिस से एक तरफ मरीज का ब्लडप्रैशर गिरता चला जाता है और अंत में दिल काम करना बंद कर देता है.

दूसरे, फेफड़े के घायल होने के बाद छाती के अंदर हवा व खून का अनावश्यक जमाव हो जाने के कारण फेफड़े पर अत्यधिक दबाव पड़ने पर औक्सीकरण की क्रिया फेल हो जाती है जिस से खून में औक्सीजन की मात्रा में भयंकर कमी आ जाती है. अगर समय रहते छाती में ट्यूब डाल कर हवा व खून को छाती से बाहर नहीं निकाला गया तो मरीज की मौत निश्चित है.

छाती में गोली लगने पर क्या करें

  1. पहली सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एकएक मिनट कीमती है. बहुमूल्य समय को नष्ट न करें. अकसर देखा गया है कि घायल व्यक्ति के नजदीकी रिश्तेदार मरीज को ले कर छोटेमोटे अस्पताल में ले जाते हैं, फिर वहां कुछ घंटे बिताने के बाद किसी बड़े अस्पताल में घायल व्यक्ति को ले जाया जाता है. ऐस में घायल व्यक्ति के सही इलाज में लगने वाला बहुमूल्य समय व्यर्थ में गंवा दिया जाता है और मरीज जानेअनजाने मौत की कगार पर पहुंच जाता है. मरीज के परिवार वालों को चाहिए कि छाती में गोली लगते ही किसी आधुनिक, बड़े व अच्छे अस्पताल में जाएं.
  2. छाती में गोली लगने से घायल व्यक्ति के इलाज के लिए उपयुक्त अस्पताल वे होते हैं जहां पर नियमित फेफड़े व दिल के औपरेशन होते हों और जहां अनुभवी थोरेसिक यानी चैस्ट सर्जन की चौबीस घंटे उपलब्धता हो. ये दोनों बातें अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं. तीसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उस अस्पताल में अत्यधुनिक व बड़ा ब्लडबैंक होना बहुत जरूरी है क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर 30 या 40 बोतल खून का आननफानन इंतजाम हो सके.
  3. गोली लगने की दशा में अस्पताल का चुनाव करते वक्त यह तथ्य भी ध्यान में रखें कि वहां गुर्दे के इलाज का अत्यधुनिक प्रबंध है या नहीं. डायलिसिस यानी कृत्रिम गुर्दा शोधन वहां नियमित रूप से होता है या नहीं तथा गुर्दा विशेषज्ञों की अनुभवी टीम है या नहीं.
  4. छाती में गोली लगने के सफल इलाज में अत्यधुनिक आईसीयू का अत्यंत महत्त्वपूर्ण रोल है. आईसीयू में प्रति 2 शैय्याओं के बीच एक कृत्रिम श्वास यंत्र (वैंटिलेटर) की उपलब्धता होना एक औसतन दर्जे के आईसीयू के लिए आवश्यक है. उत्तम आईसीयू में हर बैड के लिए एक वैंटिलेटर की उपलब्धता होती है. होता यह है कि चमकदमक वाले तथाकथित नामीगरामी बड़े अस्पतालों में कहने को तो आईसीयू यूनिट है पर बैड के अनुपात में अपेक्षित वैंटिलेटर की संख्या नहीं होती है. इस का परिणाम यह होता है कि जरूरत के वक्त वैंटिलेटर की सुविधा न मिलने पर मरीज को असली फायदा तो नहीं हो पाता, केवल खानापूरी रह जाती है.
  5. अत्यधुनिक मशीनें जुटा लेना ही काफी नहीं होता, मशीनों को सही ढंग से इस्तेमाल करने वाले अनुभवी लोग भी होने चाहिए. छाती में गोली लगने के बाद अगर फेफड़े के औपरेशन की जरूरत पड़े तो थोरेसिक सर्जन के साथसाथ अनुभवी क्रिटिकल केयर स्पैशलिस्ट की टीम भी होनी चाहिए. औपरेशन के बाद क्रिटिकल केयर विशेषज्ञों द्वारा की गई देखभाल, गोली से घायल व्यक्ति के स्वास्थ्य लाभ में अत्यंत लाभकारी होती है.
  6. अस्पताल में प्रवेश करने के पहले यह जरूर पता कर लें कि वहां मल्टी स्लाइड सीटी एंजियो, एमआरआई इको कार्डियोग्राफी, डिजिटल सब्ट्रैक्शन एंजियोग्राफी एवं ब्रान्कोस्कोपी जैसी जांचों की सुविधाएं हैं या नहीं. छाती से गोली निकलवाने पर ज्यादा जोर न दें. छाती में गोली लगने पर सब से पहले सर्जन का उद्देश्य यह होता है कि रक्तस्राव को रोका जाए और रक्त की कमी हो जाने से दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों में पड़ने वाले जानलेवा प्रभाव को कैसे नियंत्रित किया जाए. यही 2 महत्त्वपूर्ण कदम होते हैं जिन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है.

घायल व्यक्ति के रिश्तेदार अज्ञानतावश छाती में फंसी गोली को निकलवाने में ज्यादा जोर देते हैं और वे ऐसा मानते हैं कि गोली निकल जाए तो सब ठीक हो जाएगा. पर ऐसा मानना उन का केवल एक भ्रम है. गोली से हुए क्षतविक्षत अंगों की देखभाल से ही मरीज की जान बच पाती है, न कि गोली के निकाल देने से. गोली छाती के अंदर अगर सुरक्षित जगह पड़ी भी है तो कोई नुकसान नहीं करती. द्वितीय विश्व महायुद्ध में घायल हुए सैकड़ों सिपाहियों के शरीर में अभी भी गोली के छर्रे पड़े हैं और ये सेनानीगण आराम से घूम रहे हैं.

इलाज की विधाएं

औपरेशन में कभीकभी फेफड़े के कुछ हिस्से या फेफड़े को निकालना पड़ जाता है. इन औपरेशन को ‘लोबेक्टमी’ या ‘न्यूमोनेक्टमी’ कहते हैं. कभीकभी जख्मी सांस की या खून की नली की मरम्मत करनी पड़ती है. गोली द्वारा खून की नली में बने छेद को भी बंद करना पड़ता है.

अगर गोली फेफड़े को आरपार चीरती हुई चली गई है तो ऐसी दशा में छाती खोल कर एक विशेष औपरेशन ‘पल्मोनरी ट्रैक्टोमी’ किया जाता है. इस में फेफड़े के अंदर जिस मार्ग से गोली गई है उस रास्ते को पूरा खोल कर रिसते हुए खून व हवा की नलियों को एकएक कर के बंद किया जाता है. कभीकभी गैरअनुभवी सर्जन जल्दबाजी में फेफड़े में गोली के प्रवेश व विकासद्वार को सिल कर बंद कर देते हैं जिस से ‘एयर एम्बोलिस्म’ जैसी जानलेवा स्थिति पैदा हो जाती है. इसलिए हमेशा ऐसे अस्पतालों में जाएं जहां एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन की उपलब्धता हो.

लेखक-   डा. के के पांडेय

कुरकुरी कच्चे केले की टिक्की का स्वाद हमेशा रहेगा आपको याद

कई बार आपको घर पर बना हुआ स्वादिष्ट भोजन खाने को मन करता है ऐसे में आप चाहे तो घर पर कम समय में कच्चे केले की टिक्की बनाकर खा सकते हैं. तो आइए जानते हैं इसे बनाने की विधि.

 

सामग्री :

– सेंधा नमक स्वादानुसार
– तेल तलने के लिए
– बारीक कटी धनियापत्ती
– 6 कच्चे केले
– 2 चम्मच कुट्टू का आटा
– 4 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)
– 1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
– 1/2 चम्मच काली मिर्च
– 1 बड़ा चम्मच नींबू का रस
– 1/2 टीस्पून तिल
– 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
– 1/2 चम्मच धनिया पाउडर
– 1/2 चम्मच गरम मसाला

विधि : 

– सबसे पहले मीडियम आंच पर एक पैन में पानी डालकर गर्म करें.

– पानी के गर्म होते ही कच्चे केले को डालकर उबाल लें और मुलायम होने तक उबालें.

– जब उबल जाएं तो पानी से निकाल कर इसे ठंडा करें. इसका छिलका उतार लें और मैश कर लें.

– अब केले के साथ लाल मिर्च पाउडर, कौर्न फ्लोर, नींबू का रस, धनिया पाउडर और गरम मसाला डालकर अच्छे से मिलाएं.

– अब इस मिश्रण से छोटी लोई लेकर टिक्की का आकार दें व फिर मीडियम आंच पर एक कड़ाही में तेल गर्म करें.

– तेल के गर्म होते ही टिक्की को सुनहरा होने तक फ्राई कर लें. तैयार कच्चे केले की टिक्की को सौस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

अथ से इति तक : सिनेमाघर के सामने प्रांजली को देखकर मां रुक क्यों गई?

समर स्पेशल : सिर्फ 10 मिनट में बनाएं ये 7 हैल्दी समर ड्रिंक्स, जो आपको रखेंगी कूल

आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के सौफ्ट ड्रिंक्स, कोल्ड डिं्रक्स मौजूद हैं, जिन्हें पी कर गले को तर किया जा सकता है. ये बाजारू ड्रिंक्स थोड़ी देर के लिए ही राहत देते हैं और सेहत के लिए भी अच्छे नहीं होते. घर में बने ड्रिंक्स का कोई जवाब नहीं. थोड़ी सी मेहनत और पहले से भी थोड़ी तैयारी से झटपट गरमी से राहत देने वाले ड्रिंक्स बन सकते हैं. यदि इन में हर्बल चीजें डाल दें तो कहने ही क्या.

यहां 7 ड्रिंक्स की बात कर रहे हैं जिन के मुश्किल से 10 मिनट में 5-6 गिलास तैयार हो जाएंगे.

1.तरबूज का शरबत:

तरबूज में विटामिन सी, विटामिन ए, मैग्नीशियम, पोटैशियम जैसे लाभकारी तत्त्व पाए जाते हैं. यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है.

तरबूज का जूस निकालने के लिए आसान तरीका है कि तरबूज के टुकड़ों को एक जार में डालें और हलके से हैंड ब्लैंडर चला दें. फिर छान लें ताकि बीज अलग हो जाएं. इस जूस में स्वादानुसार शुगर सिरप, कालानमक, कालीमिर्च, पुदीनापत्ती और नीबू का रस डालें. क्रश्ड लैमन आइस के साथ सर्व करें.

तरबूज के जूस का दालचीनी के साथ शरबत बनाएं. बीजरहित 500 ग्राम तरबूज के टुकड़ों में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर, स्वादानुसार शुगर सिरप, नीबू का रस डाल कर चर्न करें. क्रश्ड आइस और पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

2.कुकुंबर मिंट जूस:

कुकुंबर मिंट जूस बनाने के लिए 2 मीडियम आकार के खीरे छील कर छोटे क्यूब्स में काट लें. एक मिक्सी जार में खीरे के टुकड़े, 1 नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती, काला नमक, सादा नमक और 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप डाल कर मिक्सी में चर्न करें.

1 कप ठंडा पानी डाल कर पुन: चलाएं. फिर छान लें. क्रश्ड आइस पुदीने वाली डालें. नीबू का स्लाइस लगा कर सर्व करें.

नोट: खीरे की जगह 4 ककड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं.

3.सत्तू वाली छाछ:

दही में थोड़ा पानी डाल कर चर्न करने से लस्सी बनती है. इस में आप कोई भी फल डाल कर जैसे अंगूरी लस्सी, आम की लस्सी, संतरे वाली लस्सी, कलाकंद वाली लस्सी बना सकते हैं. यदि जीरा व नमक आदि डाल कर बनाएं तो नमकीन लस्सी बन जाती है.

पुदीने वाली छाछ, सत्तू वाली नमकीन छाछ. मसाला छाछ आदि बना सकते हैं. छाछ और लस्सी दोनों ही पेट की जलन, ऐसिडिटी को भी दूर करती हैं और इन के सेवन से वजन भी नहीं बढ़ता है.

सत्तू वाली छाछ बनाना बहुत आसान है. बस 4 गिलास ठंडी छाछ ले कर उस में 4 चम्मच सत्तू, 1 बड़ा चम्मच शुगर सिरप, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पुदीनापत्ती और काला व सफेद नमक डाल कर चर्न करे लें. क्रश्ड आइस डाल कर सर्व करें.

4.कोकोनट कूलर:

फ्रैश नारियल न हो तो नारियल पानी के कैन भी बाजार में उपलब्ध होते हैं. इस के पानी में पुदीनापत्ती, हरीमिर्च, लैमन, थोड़ा सा शुगर सिरप, चाटमसाला डाल कर चर्न कर सर्व करें.

चिया सीड्स के साथ भी बना सकते हैं. चिया सीड्स सेहत के लिए वैसे ही बहुत अच्छे होते हैं.

कोकोनट चिया सीड्स कूलर बनाने के लिए 1 कप नारियल पानी में 1 बड़ा चम्मच चिया सीड्स डाल कर चम्मच से चलाते रहें ताकि चिया सीड्स फूलने पर इकट्ठे न हों. इस में नीबू का रस, 2 कप नारियल पानी व जलजीरा पाउडर डालें. लैमन क्यूब्स को क्रश कर के मिलाएं. ठंडाठंडा सर्व करें.

5.आम पना:

पके आम तो सब को अच्छे लगते हैं पर कच्चे आम भी कम नहीं. इन का सिर्फ अचार ही नहीं डाला जाता, ये गरमी से भी बचाव करते हैं. आम को उबाल कर छील लें फिर पीस कर चाशनी में मिलाएं, ठंडा पानी मिला कर सर्व करें.

इस का जलजीरा भी बहुत अच्छा लगता है. जलजीरा बनाने के लिए कच्चे या उबले आम में पुदीनापत्ती, अदरक, कालानमक, सफेद नमक, शुगर सिरप और जलजीरा पाउडर डाल कर मिक्सी में चर्न करें. छान कर क्रश्ड आइस क्यूब्स व बूंदी डाल कर सर्व करें.

6.खरबूजा शरबत:

खरबूजे में 95 प्रतिशत पानी होता है. इस में भरपूर मात्रा में फाइबर होता है. शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए खरबूजे का सेवन बेहतर विकल्प है. खरबूजे को ठंडे दूध के साथ मिला कर शेक बनाएं. यह बहुत ही तरावट देता है.

खरबूजे में खस का शरबत और थोड़ा दूध डाल कर चर्न करें. बढि़या शेक तैयार हो जाता मिनटों में.

7.बेल का शरबत:

बेल ऐनर्जी बूस्टर है. इस का शरबत घर पर बनाना आसान है. इस के गूदे से बीजों को अलग कर गूदे में थोड़ी चीनी और नीबू का रस डाल कर चर्न कर के फ्रिज में रखें. 3-4 दिन आराम से चलेगा. बस ठंडा पानी और थोड़ा शुगर सिरप डाल कर पीएं.

लगभग 250 ग्राम पके बेल के पल्प में 500 ग्राम चीनी, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस डाल कर चर्न कर छान लें. जब भी पीना हो सिर्फ 2 हिस्सा बेल लें व 2 हिस्सा ठंडा पानी मिला कर चर्न कर पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

पहले से करें तैयारी

पहले से ड्रिंक्स बनाने की तैयारी के लिए शुगर सिरप बनाएं. एक बार बनाएं और 15-20 दिन की छुट्टी. शुगर सिरप 2 तरह के बना कर रखें. एक नौर्मल शुगर का व दूसरा ब्राउन शुगर का.

2 कप चीनी में 3/4 कप पानी डाल कर मीडियम आंच पर पकाएं. जब चीनी घुल जाए व उबलने लगे तब 2 मिनट और पकाएं. इस में 1 चम्मच नीबू का रस डाल कर आंच बंद कर दें. इस से चाशनी की गंदगी अलग हो जाएगी व चाशनी में क्रिस्टल नहीं बनेंगे. ठंडा कर के और छान कर कांच की बोतल में भर कर रख लें. इसी तरह ब्राउन शुगर का सिरप तैयार करें.

औरेंज जूस, मैंगो प्यूरी, लैमन जूस आदि में थोड़ी सी चाशनी, नीबू का रस व पुदीनापत्ती डाल कर आइसक्यूब ट्रे में जमा दें. फिर जिप वाले पाउच में भर कर रख लें. किसी भी जूस में ये आइसक्यूब्स क्रश कर के डालें. इस के अलावा जीरा पाउडर, कालीमिर्च पाउडर, चाटमसाला, काला नमक, खस सिरप आदि जरूर रखें. दही, खीरा, तरबूज, बेल, नीबू आदि तो गरमियों में घर पर होने ही चाहिए.

मेरा बॉयफ्रेंड बचकानी हरकत करता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 29 साल की कुंआरी लड़की हूं. एक 25 साल का लड़का मुझ से शादी करना चाहता है. पर उस के साथ एक दिक्कत यह है कि वह कभीकभार बचकानी हरकतें कर देता है, जिस से मुझे लोगों के बीच शर्मिंदा होना पड़ता है.

हालांकि वह नौकरी करता है, पर दूसरों के सामने अपनी बात कहने में उस का पसीना छूट जाता है. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के कम उम्र आशिक में आत्मविश्वास की कमी है, जो ज्यादा चिंता की बात नहीं. आप प्यार से उसे दुनियादारी और व्यवहार के बारे में समझाती रहें कि उस में क्याक्या बदलाव आप चाहती हैं.

बचकानी हरकतें हर कोई करता है, पर इनसान उम्र, हालात और वक्त के साथ मैच्योर होता जाता है. हो सकता है कि शादी के बाद उस की ये हरकतें छूट जाएं. लेकिन आप खुद की ज्यादा समझदारी के दम पर उस पर हावी होने की कोशिश करेंगी तो दिक्कतें भी पेश आएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मैं मां हूं इस की -भाग 5 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजेहद

घर आ कर श्लोका निढाल हो बिछावन पर पड़ गई और सुबकते हुए सोचने लगी कि निखिल उसे ऐसे धोखा देगा, सपने में भी नहीं सोचा था उस ने. उसे तो लगा था, वह भी उस से उतना ही प्रेम करता है जितना वो. लेकिन उस ने तो सिर्फ उस के शरीर से प्रेम किया. छलता रहा उसे भ्रम में रख कर कि वह उस पर मरता है. लेकिन, अब मरने लायक तो उस की जिंदगी बन चुकी है. उठ कर उस ने निखिल को फिर से फोन लगाया, लेकिन शायद उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया. उस का सिर इतनी जोर से घूमा कि वह लड़खड़ाती हुई पलंग पर गिर पड़ी. उस की आंखों से अश्रु धारा बहने लगे.

अपने पेट पर हाथ रख उस ने महसूस किया कि एक जीव उस के अंदर सांस ले रहा है. ‘न… नहीं, एक मां हो कर मैं अपने ही बच्चे को नहीं मार सकती,’ वह खुद में ही बुदबुदाई. ‘लेकिन, समाज और परिवार से कैसे लड़ोगी तुम? अकेले पाल सकोगी इस बच्चे को?’ श्लोका के दिल से आवाज आई, तो वह चीख पड़ी और अपने दोनों कान बंद कर लिए.

श्लोका खुद से ही रोज लड़ रही थी. उस का एक मन कहता कि इस बच्चे को गिरा दो और दूसरा कहता, एक मां हो कर वह अपने बच्चे को कैसे मार सकती है?

बेटी का कमजोर और पीला पड़ता चेहरा देख कर अंजू पूछती कि तबीयत ठीक तो है न उस की? नहीं तो चल कर किसी डाक्टर से दिखा देते हैं. लेकिन श्लोका अपनी पढ़ाई और कैरियर की टैंशन बता कर मां को चुप करा देती. लेकिन वह कब तक झूठ बोलेगी अपनी मां से? उस का बढ़ता पेट एक न एक दिन तो सचाई उगलेगा ही न.

उस दिन मिलने पर जब विनी ने पूछा कि क्या हुआ है उसे? इतनी ढीलीढाली क्यों दिख रही है वह? तब श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने विनी को सारी बात बता दी.

“तू सही कहती थी विनी. निखिल सही में धोखेबाज निकला. वह मुझ से नहीं, बल्कि मेरे शरीर से प्रेम करता था. लेकिन अब मैं क्या करूं, नहीं समझ आ रहा मुझे,” बोलते हुए श्लोका सिसक पड़ी.

“देख, जो हो गया उसे भूल जा. लेकिन, अब तेरे पास एक ही रास्ता है कि तू इस बच्चे को गिरा दे,” एक अच्छी दोस्त की तरह सलाह देते हुए विनी बोली.

“गलती इनसान से ही होती है, लेकिन उस गलती को हम पूरी जिंदगी ढो तो नहीं सकते न,” लेकिन श्लोका कहने लगी कि वह इस बच्चे को नहीं गिराना चाहती. और उन की गलती की सजा ये बच्चा क्यों भुगते, इसलिए वह इस बच्चे को जन्म देगी.

“पागल है क्या… कुछ भी बोल रही है,” विनी ने हैरानी से कहा, “इस एक बच्चे की खातिर तू अपनी पूरी लाइफ हेल करेगी? नहींनहीं, मैं तुम्हें ऐसा पागलपन नहीं करने दूंगी श्लोका,” एक सच्चे दोस्त की तरह विनी ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की कि यह समाज और खुद उस के मांपापा भी इस बच्चे को कभी नहीं स्वीकारेंगे. इसलिए वह इस बेकार की जिद को छोड़ दे. लेकिन श्लोका कहने लगी कि अगर उस ने इस बच्चे को मार दिया तो उस का जमीर कभी उसे माफ नहीं करेगा. चैन से वह जी नहीं सकेगी कभी. श्लोका ने जैसे दृढ़निश्चय कर लिया था इस बच्चे को जन्म देने का.

“ठीक है, तो फिर बता आगे क्या सोचा है तू ने?”

“नहीं पता मुझे, लेकिन मैं यहां से कहीं दूर चली जाना चाहती हूं,” अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए जब श्लोका बोली, तो वीनी को उस पर दया हो आई और उस ने सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वह उस की मदद करेगी.

विनी की मनीषा बुआ मुंबई में एक एनजीओ चलाती है. यह संस्था सैक्स वर्कर्स और घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए काम करती है. उन्हें फाइनैंशियली इंडिपेंडेंट बनाती है.

वैसे तो वह विनी की अपनी बुआ नहीं है, लेकिन अपनों से भी बढ़ कर है उस के लिए. विनी जब 12 साल की थी, तभी उस की मां गुजर गई थी. तब मनीषा बुआ ने ही मां बन कर उसे संभाला था.

मनीषा बुआ से फोन पर बात कर विनी ने श्लोका के बारे में उन्हें सारा कुछ बता दिया. श्लोका के मुंबई जाने का सारा इंतजाम भी हो चुका था.

अपने मांपापा से उस ने यही बहाना बनाया कि वह एक साल के इंटर्नशिप के लिए मुंबई जा रही है. लेकिन ऐन वक्त पर सब गड़बड़ हो गया.

अंजू जब श्लोका के बेड पर धुली चादर बिछा रही थी, तभी गद्दे के नीचे से यूज्ड प्रेग्नेंसी किट नीचे गिर गई.

पहले तो अंजू कुछ समझ नहीं पाई. लेकिन जब समझ में आया तो घर में बवाल मच गया. अब कुछ पूछनाताछना क्या था. वह तो श्लोका को देखते ही उस पर ऐसे टूट पड़ी जैसे हड्डी को देख कर कुत्ते. जो भी मिला उसी से उसे मारने लगी. तड़ातड़ उस के गालों पर थप्पड़ बरसाते हुए पूछने लगी कि किस का पाप वह अपने पेट में लिए घूम रही है. क्यों, क्यों उस ने उन के विश्वास को तोड़ा?

श्लोका के पापा आलोक भी बेटी पर उंगली उठाते हुए कहने लगे कि उस ने उन की नाक कटवा दी. अगर लोगों को यह बात पता चल गई, तो वे लोग कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. फिर कौन उन की बेटियों से शादी करेगा? लेकिन, अब मारमार कर किसी की जान तो नहीं ली जा सकती न, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि जितनी जल्दी हो, इस पाप को नष्ट कर दिया जाए. और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर श्लोका की शादी करा दी जाए. कहां तो श्लोका मुंबई जा कर इस बच्चे को जन्म देने की सोच रही थी. और कहां वह इस घर में नजरबंद हो कर रह गई.

लेकिन अंजू को कहां चैन था. वह तो पागलों की तरह कभी श्लोका को पका पपीता खिलाती, तो कभी काढ़ा पिलाती, ताकि उस का पेट घर में ही गिर जाए और वे डाक्टर के पास जाने से बच जाए. अपनी इज्जत बचाने के लिए वह घरेलू उपायों से ही श्लोका का पेट गिरा देना चाह रही थी. मगर बेवकूफ अंजू यह समझ नहीं आ रहा था कि इस से श्लोका की जान भी जा सकती है.

हमारे समाज में आज भी एक लड़की का बिनब्याही मां बनना, उस के मांबाप के लिए कलंक की बात होती है. आज अगर श्लोका शादीशुदा होती तो क्या अंजू और आलोक चाहते कि उस का अबोर्शन करा दिया जाए?

भारत में हर रोज अनसेफ अबोर्शन की वजह से करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. दुनियाभर में हर साल 12 करोड़ से ज्यादा औरतें बिना प्लान के प्रेग्नेंट होती हैं, इस में से 30 फीसदी का अंत अनसेफ अबोर्शन है और जिस का नतीजा 5 से 13 महिलाओं की मौत हो जाती है. लेकिन, इस बात से आलोक और अंजू को क्या मतलब…? उन्हें तो बस अपनी इज्जत प्यारी है. बेटी जिए या मरे, इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

जब भी श्लोका पर अंजू की नजर पड़ती, वह उसे पीटने लगती, गालियां बकने लगती और कहती कि, पैदा होते ही वो मर क्यों नहीं गई. मांबाप के तिरस्कार और मार से श्लोका जड़ बनी कमरे में गुमसुम सी पड़ी बस छत निहारती रहती. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उस के साथ हो क्या रहा है. जैसे उस की मतिगति भुला गई थी. उस के दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. ऐसा होता है न, जब आदमी के दिमाग पर चोट पड़ती है तो उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो जाती है. अंजू ने उसे इतना मारा था कि बेचारी कुछ बोलने लायक ही नहीं बची थी, तो सोचती क्या और समझती क्या.

उस दिन जब विनी का फोन आया और उस ने पूछा कि वह तैयार है न मुंबई जाने के लिए? तो जैसे उसे होश आया… और वो बदहवास सी एकदम झटके से उठ बैठी. सुनाई दे रहा था उसे, हाल में आलोक किसी डाक्टर से बात कर रहा था उस के अबोर्शन के लिए.

श्लोका बिना डरे आलोक और अंजू के सामने तन कर खड़ी हो गई जा कर और बोली कि वो इस बच्चे को जन्म देगी, चाहे जो हो जाए. और अगर उन लोगों ने उस के साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पुलिस में जाएगी.

पुलिस का नाम सुनते ही अंजू और आलोक सिटपिटा गए. उन्हें लगा, बदनामी तो होगी ही, जेल जाना पड़ेगा, सो अलग. फिर उन के बाकी बच्चों का क्या होगा.

अंजू अपनी छाती पीटपीट कर कहने लगी कि अगर उसे पता होता कि बेटी ऐसा कुछ करेगी, तो वह उसे इतनी आजादी देती ही नहीं. गलती हो गई उसे इतना पढ़ालिखा कर.

“तो फिर तुम भी सुन लो. तुम्हें इस बच्चे और हम में से किसी एक को चुनना होगा,” आलोक के मुंह से यह बात सुन कर पहले तो श्लोका को समझ नहीं आया कि वह क्या करे. लेकिन अपने मन को कड़ा कर उस ने अपने बच्चे को चुना. लेकिन, यह फैसला लेते वक्त उस का दिल कितना रोया था, वही जानती है.

अपनी आंखों में आंसू लिए श्लोका ट्रेन पकड़ कर मुंबई पहुंच गई. मनीषा बुआ स्टेशन पर उसे लेने आई थी. लेकिन यहां आ कर भी श्लोका के दिमाग में बारबार यही खयाल आ रहा था कि उस ने अपने मांपापा को दुख दे कर अच्छा नहीं किया. लेकिन इस बच्चे को भी तो नहीं मार सकती थी न वो.

“तुम क्या चाहती हो तुम्हारा बच्चा यों… ऐसा पैदा हो?” वानर सा मुंह फुला कर मनीषा बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.

“हां, ऐसी ही हंसती रहा करो, ताकि तुम्हारा बच्चा भी हंसताखिलखिलाता पैदा हो,” श्लोका के हाथों में जूस का गिलास पकड़ाते हुए मनीषा बुआ कहने लगी, “जानती हो श्लोका, लोगों को हमेशा यही लगता है कि उस का दुख सब से बड़ा है. लेकिन जब तुम मेरे संस्था में रह रही महिलाओं से मिलोगी, उन्हें नजदीक से जानोगी न, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा दुख उस से कितना छोटा है. ‘अमृत’ फिल्म का गाना नहीं सुना तुम ने…? ‘दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है, लोगों का गम देखा, तो मैं अपना गम भूल गया…’

“मैं भी इन का दुख देख कर अपना दुख…” बोलतेबोलते बुआ एकदम से चुप हो गई.

“अच्छा, अब तुम आराम करो. और किसी भी चीज की जरूरत हो तो बोलने से हिचकिचाना मत, समझी.” एक मां की तरह उस के सिर को प्यार से सहलाते हुए बुआ बोली, तो श्लोका अपलक उन्हें देखने लगी कि काश, उस की मां भी ऐसे ही उसे प्यार करती, उसे समझती.

“ले, अब क्या सोचने लग गई फिर?” उस के हाथ से जूस का खाली गिलास लेते हुए बुआ ने श्लोका की आंखों में झांका, तो वह मुसकरा पड़ी.

“ओहो, देख तो मुसकराते हुए कितनी प्यारी लगती है. वैसे, अगर तुम चाहो तो मेरी संस्था से जुड़ सकती हो, तुम्हारा टाइम भी अच्छे से पास हो जाएगा और तुम उन्हें नजदीक से जान भी पाओगी,”

बुआ की बात पर श्लोका ने हां में सिर हिला तो दिया, पर वह सोचने लगी कि बुआ कुछ बोलतेबोलते रुक क्यों गई? क्या उन के जीवन में भी कोई दुख है?

विनी ने तो उस से बुआ के बारे में इतना ही बताया था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इस संस्था के नाम कर दिया. श्लोका ने कई बार बुआ से उन की जिंदगी के बारे में जानना चाहा, पर उस की हिम्मत नहीं पड़ती थी कुछ पूछने की.

इसी तरह दिन बीतने लगे. बुआ श्लोका के खानेपीने से ले कर दवाई, डाक्टर का भी पूरा ध्यान रखती थी. उसे किसी भी बात की टैंशन नहीं लेने देती थी. लेकिन टैंशन तो होती ही थी न कि वहां उस के मांपापा कैसे होंगे? उन्हें कई बार फोन भी लगाया, पर उन्होंने एक बार भी श्लोका का फोन नहीं उठाया.

बात साफ थी कि अब श्लोका से उन लोगों को कोई मतलब नहीं था. वह जिए या मरे, इस बात से उन्हें कोई लेनादेना नहीं था. हां, लेकिन विनी से कभीकभार वहां की खबर मिल जाया करती थी.

विनी ने ही बताया था उसे कि उस की छोटी बहन निशि की शादी हो गई. ‘लेकिन, निशि का सपना तो आईएएस बनने का था. फिर क्यों मांपापा ने उस की शादी करवा दी? अच्छा, तो इस का मतलब मेरा गुस्सा निशि पर कहर बन कर बरपा. आखिर हम लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? क्यों समाज में हमें अपनी मरजी से जीने नहीं दिया जाता? खुद में ही बोल कर श्लोका रो पड़ी और बोली कि वह अपनी छोटी बहन की गुनाहगार है. न वो निखिल से प्रेम करने की गलती करती और न ही उस के साथ ऐसा होता?

खैर, धीरेधीरे समय तो सरक ही रहा था. मनीषा बुआ के प्यार और स्नेह का ही नतीजा था कि 9 महीने पूरे होने पर श्लोका ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया ‘अंश’.

अपने बेटे अंश के प्यारे से मुखड़े को देख कर श्लोका अपने सारे दुखदर्द भूल जाती थी. जब पहली बार उस ने अपनी तोतली जबान से मां बोला, तो श्लोका को लगा कि आज उस का संघर्ष खत्म हुआ.

मनीषा बुआ और श्लोका के आंचल तले अंश धीरेधीरे बड़ा होने लगा. लेकिन यहां भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी, जिस ने श्लोका के चरित्र पर सवाल न उठाए हों. बारबार अंश के पिता का नाम पूछ कर लोग उस पर तंज कसते. अश्लील और भद्दी बातें कह कर उसे कमजोर बनाते.

श्लोका लोगों की बातों से परेशान हो कर जब रोने लगती, तब बुआ उसे समझाती कि लोगों का तो काम ही है बोलना. बोलने दो न. और तुम कमजोर कैसे हो गई? एक बिनब्याही लड़की जो समाज और परिवार से लड़ कर, अपने बच्चे को जन्म देने का कठोर फैसला लेती है, वो कमजोर तो हो ही नहीं सकती कभी?

मनीषा बुआ ने श्लोका को सिर्फ सहारा ही नहीं दिया, बल्कि जीवन के पाठ भी पढ़ाए, जो उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा था. श्लोका, अब पहले वाली श्लोका नहीं रही. वह एक निडर औरत बन चुकी थी.

श्लोका अपनी जौब के साथसाथ मनीषा बुआ की इस संस्था से भी जुड़ी हुई थी. छुट्टी के दिन या समय निकाल कर वो उन औरतों से जा कर मिलती, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं. घरेलू हिंसा की शिकार और सैक्स वर्कर्स की महिलाओं की कहानी सुन कर श्लोका के रोंगटे खड़े हो जाते थे.

25 साल की मालती की कहानी सुन कर तो श्लोका का दिल ही दहल उठा. मालती जब 17 साल की थी, तब उस के अपने ही एक रिश्तेदार ने उस का रेप किया, जिस से वह पेट से हो गई थी. बिनब्याही मां बनी मालती को जब बच्चा हुआ, तब उस के मातापिता उस बच्चे को किसी अनाथालय में जा कर छोड़ आए और फिर उस अनाथालय वालों ने उस बच्चे को किसी और को बेच दिया. अब वह बच्चा कहां है, मालती को कुछ नहीं पता. लेकिन वह तरस रही है अपने बच्चे को देखने के लिए. कहती है, वह जीना चाहती थी अपने बच्चे के साथ, पर मातापिता के दबाव में आ कर उसे अपने से दूर करना पड़ा. इस संस्था से जुड़ी ऐसी कितनी ही महिलाएं थीं, जिन का जीवन नरक बन चुका था.

अंश के 5 साल पूरे होने पर श्लोका चाहती थी कि उसे किसी अच्छे स्कूल में डाल दिया जाए, ताकि उस की बदमाशी थोड़ी कम हो और वह भी अपने काम पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे सके. एडमिशन फार्म भरते समय प्रिंसपल अंश के पिता के बारे में कुछ पूछती, उस से पहले ही श्लोका ने उन्हें साफसाफ बता दिया कि वह अपने बच्चे की सिंगल पेरेंट है. और समाज या कोई भी एक महिला को यह बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकता कि उस के बच्चे का पिता कौन है? इसलिए फिर प्रिंसिपल ने कोई सवाल नहीं उठाया और अंश का उस स्कूल में एडमिशन हो गया.

श्लोका अंश को स्कूल छोड़ कर उधर से ही औफिस चली जाती थी, और फिर एनजीओ. और बुआ फिर अंश को स्कूल से जा कर ले आती थी और यही रोज का नियम था.

श्लोका औफिस से जब घर आई तो देखा बुआ और अंश खूब धमाचौकड़ी मचा रहे हैं और घर का सारा सामान यहांवहां बिखरा हुआ है.

“श्लोका, आ गई तू… देख, तेरे इस बेटे ने दौड़ादौड़ा कर मेरी जान ले रखी है,” हांफती हुई बुआ बोली, तो श्लोका को हंसी आ गई.

“हंस क्या रही है. पकड़ इस शैतान को न.”

“अंश, बस अब हो गया बेटा. देखो, नानी मां थक गई हैं, इसलिए अब आप टीवी पर कार्टून देखो,” टीवी औन करते हुए श्लोका बोली, लेकिन वह कहां मानने वाला था. उसे तो अपनी नानी मां के साथ अभी और खेलना था.

“अच्छा चलो, पहले हम कुछ खाते हैं, फिर खेलेंगे. ओके ?” लेकिन, अंश तो अपनी जिद पर ही था कि उसे अभी और खेलना है नानी के साथ.

“ओहो, कितना जिद्दी हो गया है यह बुआ. रुको, अभी बताती हूं,” कह कर वह उस के पीछे भागी थी कि तभी वह जा कर बुआ की गोद में छुप गया और कुछ ही देर में उसे नींद आ गई.

“अच्छा हुआ जो सो गया,” श्लोका ने राहत की सांस ली और हंस पड़ी.

बुआ को बड़े प्यार से अंश के बालों में उंगली फिराते देख आज श्लोका से रहा नहीं गया और उस ने उन के अतीत के बारे में पूछ लिया.
लेकिन अपने अतीत के बारे में क्या बताती कि वे भी उसी दर्द से गुजर चुकी हैं, जिस से श्लोका. यहां फर्क सिर्फ इतना था कि श्लोका को बिनब्याही मां बनने की सजा मिली और उन्हें बांझ होने की.

शादी के 5 साल बाद भी जब मनीषा बुआ मां नहीं बन पाईं, तो घर में सब की नजरें टेढ़ी हो गईं. उस पति की भी, जिस ने सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. सिर्फ एक बच्चा न होने से उन का नाम मनीषा से बांझ औरत पड़ गया.

मां न बन पाने के कारण अब उन के साथ उस घर में अलग ही तरह का व्यवहार होने लगा. पति सास, ननद और जेठानी की आंखों में अपने लिए व्यंग्यात्मक घृणा के भावों को देख कर बुआ सोचती कि क्या ये वही लोग हैं, जो कभी उन्हें सिरआंखों पर बिठा कर रखते थे? क्या एक मां न बन पाना औरत के लिए इतना बड़ा पाप होता है कि लोग उस का मुंह भी देखना पसंद नहीं करते?

एक दिन जब बुआ को पता चला कि उन के पति की दूसरी शादी की बात चल रही है घर में, तो वह टूट गई. पति से सवाल किया, तो जवाब में तलाक के पेपर उस के सामने यह कह कर पटक दिए गए कि साइन करो इस पर, क्योंकि उन्हें वंश चाहिए और वह एक बांझ औरत है.

तलाक के बाद बुआ का अब इस घर में बचा ही क्या था. लेकिन मायके में भी कहां कुछ रह गया था. मातापिता रहे नहीं, भाईभाभी ने अपनाने से इनकार कर दिया तो अब उन के पास एक ही रास्ता बचा था कि वह कहीं जा कर डूब मरे या जहर खा कर सो जाए. वह नदी में कूदने ही वाली थी कि किसी ने पीछे से उन्हें खींचा. एक औरत श्वेत वस्त्र पहने खड़ी थी. उन का चेहरा सूरज सा चमक रहा था. अभी भी उन का हाथ बुआ के हाथ को पकड़े हुए था और वह पूछ रही थीं कि वह मरना क्यों चाहती है? तब बुआ फफक कर रो पड़ी. बुआ की कहानी सुन कर उन्हें दुख हुआ. वह औरत बुआ जैसी महिलाओं की मदद करती थीं. उस औरत की वजह से बुआ को एक आसरा मिल गया.

धीरेधीरे दोनों का रिश्ता मांबेटी जैसा बन गया था. उस औरत के गुजरने के बाद इस संस्था को बुआ ही संभालने लगीं और अपना पूरा जीवन इसी में लगा दिया.

अपनी सोच से बाहर निकल कर बुआ ने एक लंबी सांस ली और कहा, “पता नहीं क्यों, हम औरतों के साथ ही ऐसा क्यों होता है. अगर हम बिनब्याही मां बने तब भी और अगर मां न बन पाएं, तब भी समाज हम से ही सवाल क्यों करता है. सारा दोष हम पर ही क्यों मढ़ता है, हम पर ही उंगलियां क्यों उठाई जाती हैं?

लेकिन सचाई तो यही है कि समाज हमें अपने हिसाब से चलाना चाहता है और हम उन के हिसाब से चलना नहीं चाहते, बस इतनी सी बात है,” बोल कर बुआ जोर से हंस पड़ीं, तो श्लोका भी खिलखिला पड़ी.

अंश अब 8 साल का हो चुका था और बस से स्कूल जाने लगा था. आज बस की हड़ताल थी, इसलिए श्लोका औफिस के बीच से ही निकल कर अंश को लेने उस के स्कूल पहुंच गई. लेकिन जब वाचमैन ने बताया कि उसे ले कर कोई चला गया, तो श्लोका को लगा, शायद बुआ आ कर उसे ले गई होंगी. लेकिन जब बुआ ने बताया कि अंश उन के पास नहीं है, तो श्लोका को चिंता हो आई कि फिर कौन उसे ले कर चला गया. वहां खड़े वाचमैन को उस ने झाड़ लगाई और कहा कि कैसे कोई भी आ कर उस के बच्चे को ले कर चला गया और उसे पता नहीं चला?

तभी पीछे से अंश ‘मम्मामम्मा’ करते उस के आंचल से लिपट गया, तो जैसे उस की जान में जान आई.

‘”कहां गए थे आप?” वह उस से अभी पूछ ही रही थी कि पीछे से निखिल को आते देख उस का पूरा शरीर गनगना उठा. “तुम यहां…? ओह, तो तुम ले गए थे मेरे बेटे को?”

“हां, मम्मा, मैं इन के साथ ही था. ये बता रहे थे कि ये आप के दोस्त हैं, तो मैं इन के साथ चला गया,” अंश कहने लगा, “पता है मम्मा, ये अंकल न बहुत अच्छे हैं. इन्होंने मुझे चौकलेट खरीद कर दी और आइसक्रीम भी.“

“अंश, मैं ने आप को समझाया था न कि किसी भी अनजान आदमी से बात नहीं करनी चाहिए और न ही उस के साथ कहीं जाना चाहिए? फिर आप ने मेरी बात क्यों नहीं मानी?”

मां को गुस्से में देख अंश की आंखें भर आईं और वह अपना होंठ बिलखाते हुए रोने ही वाला था कि श्लोका ने प्यार से उस से कहा, “सौरी, मुझे आप को नहीं डांटना चाहिए था. लेकिन, अब से आप ऐसा नहीं करेंगे न ?” मां की बात पर अंश ने सिर हिला कर कहा कि अब से वह ऐसा कभी नहीं करेगा.

“मेरा प्यारा बच्चा, अब आप जा कर गाड़ी में बैठो, ओके. मुझे अंकल से कुछ बात करनी है, ओके,“ श्लोका ने गौर से देखा, निखिल में पहले वाली फुटानी कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. जैसे किसी चीज का भाव नहीं गिरा जाता है. वैसे ही उस का भी भाव गिरा हुआ जान पड़ रहा था, पर उसे उस से क्या. उसे तो अब उस के नाम से भी चिढ़ होती है, तो बात करना तो दूर की बात है, लेकिन आज उस के बेटे की बात थी, इसलिए उस से मुंह लगाना जरूरी था.

“तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मेरे बेटे को यहां से ले जाने की? अगर मैं पुलिस में कंप्लेन कर दूं तो…? बच्चा किडनैपिंग में जेल जाओगे सीधे?” श्लोका गुस्से से फट पड़ी.

“सौरी श्लोका, मुझे इस तरह से अंश को यहां से नहीं ले जाना चाहिए था. लेकिन मैं यहां तुम से माफी मांगने आया हूं. प्लीज, मुझे माफ कर सको तो…” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल बोला, लेकिन श्लोका को समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने सालों बाद वह यहां उस से मिलने क्यों आया है? सिर्फ माफी मांगने तो नहीं आया होगा?

“हां, पता है मुझे कि मैं तुम से माफी मांगने के काबिल भी नहीं रहा. लेकिन…”

“ए… एक मिनट,” श्लोका ने उसे बीच में ही टोका, “यह सब क्या…? यह सब नाटक किसलिए? जब मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल चुकी हूं, फिर ये माफीवाफी का दिखावा किसलिए?”

“अपने बेटे के लिए. मुझे पता चल गया कि अंश मेरा ही खून है और मैं उसे यहां से ले जाने आया हूं,” एकदम से निखिल ने कहा, तो श्लोका चौंक उठी.

“क्या… क्या, क्या? फिर से कहना जरा,” श्लोका ने अजीब सा मुंह बनाते हुए कहा, “अंश तुम्हारा बेटा है. और तुम उसे यहां से ले जाने आए हो? लेकिन, यह तुम से किस ने कह दिया कि अंश तुम्हारा बेटा है?”

“मुझे पता है और इस के लिए तुम जो चाहो, मतलब, मैं कुछ भी देने को तैयार हूं. अपनी सारी संपत्ति भी, पर मुझे मेरा बेटा चाहिए,” अपने दोनों हाथ जोड़ कर निखिल कहने लगा कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई, लेकिन उस भूल की इतनी बड़ी सजा मिलेगी नहीं पता था उसे.

दरअसल, एक एक्सीडेंट में निखिल पिता बनने की शक्ति खो चुका है. और जब उसे पता चला कि अंश उस का ही बेटा है तो वह उसे ढूंढ़ते हुए यहां लेने पहुंच गया.

“अच्छा, तो तुम्हें पता था कि मेरे पेट में तुम्हारा ही बच्चा है, फिर भी तुम ने मुझे चरित्रहीन कहा. यह कह कर कि पता नहीं मैं किस का पाप तुम्हारे माथे मढ़ना चाहती हूं. और अब जब तुम्हें पता चला कि तुम बाप नहीं बन सकते तो तुम्हें अंश अपना बेटा लगने लगा?

“याद नहीं, तुम ने ही तो कहा था न कि मैं इस बच्चे को गिरा दूं? फिर किस मुंह से तुम इसे यहां लेने पहुंच गए हो…“ श्लोका चिल्ला पड़ी एकदम से, “तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं अपना बेटा तुम्हें दे दूंगी? वह मेरा अंश है, मैं मां हूं इस की. तुम कोई नहीं लगते इस के, समझे…?

“अरे, देना तो दूर की बात है, मैं तुम्हारी परछाईं तक अपने बेटे पर नहीं पड़ने दूंगी,” बोल कर श्लोका जाने ही लगी कि पीछे से निखिल बोला, “तो क्या तुम एक पिता के नाम के बिना बच्चे को पाल सकोगी? क्या जवाब दोगी समाज और लोगों को, जब वे सवाल करेंगे कि अंश का पिता कौन है?” बड़े ही तन कर निखिल बोला.

“रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया,” श्लोका हंसी, “तुम्हें शायद पता नहीं, पर कोर्ट का यही फैसला है कि बिनब्याही मां ही अपने बच्चे की सबकुछ होगी. वही उस की पालक होगी और उसे पिता के नाम की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि पिता की अनुमति की भी जरूरत नहीं है.

“अगर कोई बच्चे के पिता के बारे में पूछता भी है तो यह गुनाह है,” आज श्लोका बेहद गंभीर और निर्णायक मूड में थी.

श्लोका के कड़े बरताव से निखिल के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं, पर वह दिखा नहीं रहा था.

“और एक बात, एक मां का अपने बच्चे से 9 महीने ज्यादा का रिश्ता होता है, इसलिए वह उस के दर्द को पिता से बेहतर समझती है. तुम्हारे जैसे नहीं, जिस ने उसे पेट में ही मारने का फरमान सुना दिया.”

श्लोका की बात पर निखिल का चेहरा शर्म से नीचे हो गया.

“फिर तुम किस मुंह से यहां बाप का अधिकार जताने चले आए? शर्म नहीं आई तुम्हें यहां आते हुए? तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं, मैं अपने बेटे को तुम्हें दे दूंगी तुम्हारी दौलत के बदले? थूकती हूं मैं तुम्हारी दौलत पर.

“आज तो छोड़ दिया, लेकिन अगर आइंदा से तुम ने मेरे बेटे से मिलने की भी कोशिश की न, तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी, समझे,” बोल कर श्लोका चलती बनी और वह ठगा सा वहां तब तक खड़ा रहा, जब तक कि श्लोका की गाड़ी उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

कर्नाटक की किंग कैसे बनी कांग्रेस

कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को करारी मात देकर पूर्ण बहुमत हासिल किया है.कांग्रेस ने बहुमत से अधिक कुल 135 सीटें हासिल की हैं वहीँ भाजपाएड़ीचौटी का दम लगाने के बाद भी 64 सीटों में सिमट कर रह गई. कर्णाटक चुनाव में मोदी, शाह और योगी किसी का जादू कर्नाटक में नहीं चला.

पांच साल भाजपा (कु)शासन बर्दाश्त करने के बाद जनता ने उसे बुरी तरह पटखनी दे दी है. इतनी बुरी पराजय की उम्मीद मोदीशाह को नहीं रही होगी. कर्नाटक की जनता पर न बजरंगबली का दांव काम आया और न हिंदुत्व की ध्वजा फहराते योगी का दौरा. कांग्रेस का भ्रष्टाचार का मुद्दा और जनकल्याण के लिए किए वादे ही जनता को जंचे और उसी पर उस जनता ने अपना मत भी दिया. कर्नाटक में भाजपा की हार के साथ लगभग पूरा दक्षिण भारत भाजपा मुक्त हो गया है.

कर्नाटक में भाजपा की पराजय के और भी अनेक कारण हैं.

 

  1. कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना

कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को भाजपा ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं रहा. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना भाजपा को महंगा पड़ा.

 

  1. भ्रष्टाचार

भाजपा की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार का होना था. कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट किया और ये धीरेधीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक भाजपा विधायक को जेल भी जाना पड़ा. स्टेट कान्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली. भाजपा के लिए यह मुद्दा चुनाव में गले की फांस बन गया और पार्टी इसकी काट नहीं खोज पाई.

 

  1. सियासी समीकरण नहीं साध सकी भाजपा

कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी भाजपा नहीं साध पाई. भाजपा न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और न ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी. वहीं, कांग्रेस मुसलमानों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथसाथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही.

 

4.ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम

कर्नाटक में एक साल से भाजपा के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई. लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें भाजपा के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो भाजपा ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. यह बात कर्नाटक की जनता को पसंद नहीं आई. भाजपा ने इस चुनाव में जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन उसका यह दांव भोथरा साबित हुआ.

 

5- येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा

कर्नाटक में भाजपा को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का भाजपा नेतृत्व ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थाम कर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना भाजपा को महंगा पड़ गया.

 

6- सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी

कर्नाटक में भाजपा की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है. भाजपा के खिलाफ लोगों में नाराजगी पनप रही थी, जिसको समय रहते भाजपा भांप नहीं पाई. धर्म की हांडी को बारबार चुनाव की वेदी पर चढ़ाना काम नहीं आया. सत्ता विरोधी लहर इससे और तेज हुई और उससे निपटने में भाजपा पूरी तरह असफल रही.

Cannes 2023 में शामिल होने बेटी संग निकली ऐश्वर्या ,इस अंदाज में आईं नजर

बॉलीवुड एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन अपनी बेटी के साथ कांस फेस्टिवल 2023 में शामिल होने के लिए निकल गई हैं. ऐश्वर्या और आराध्या दोनों की तस्वीर सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. ऐश्वर्या की नई तस्वीर आई है जिसमें दोनों साथ नजर आ रहे हैं.

तस्वीर में ऐश्वर्या की तस्वीर फैंस को खूब पसंद आ रही है, ऐश्वर्या और आराध्या को साथ देखकर काफी खुश नजर आ रहे हैं, एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें वह फैंस के बीच नजर आ रही हैं. ऐश्वर्या राय अपने फैंस से बात करती नजर आ रही हैं.

 

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ऐश्वर्या काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं तस्वीर में, फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं ऐश्वर्या राय की तस्वीर पर. ऐश्वर्या अपनी बेटी का हाथ पकड़ी नजर आ रही है. जिसमें दोनों काफी ज्यादा प्यारी लग रही हैं.

वहीं कुछ फैंस एयरपोर्ट पर ऐश्वर्या राय के साथ सेल्फी लेते हुए भी नजर आ रहे हैं. जिसमें ऐश्वर्या खूबसूरत स्माइ देती नजर आ रही है. ऐश्वर्या का हेयर स्टाइल लोगों को खूब पसंद आ रहा है. ऐश्वर्या का आउटफिट लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

सरकारी पैसे के बलबूते ‘‘द केरला स्टोरी ’’ प्रोपेगंडा फिल्म के निर्माता को आर्थिक सहायता क्यों?

हर देश का सिनेमा विष्व स्तर पर उस देश का सांस्कृतिक राजदूत होता है. लेकिन पिछले कुछ दशक से देश की सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा बदलने लगा है.जिसे कोई भी फिल्मकार खुलकर स्वीकार करने को तैयार नही है.मगर यह सच है कि फिल्मकार खुद को सत्ता के करीब रखने के लिए उसी एजेंडे के तहत फिल्में बनाता है,जो सरकारी एजेंडा हो.यॅूं तो मलयालम सिनेमा भी सदैव एक एजेंडे के साथ बनता रहा है.मगर मलयालम सिनेमा पर कभी भी ‘एजेंडे वाला सिनेमा’ या ‘प्रोपेगंडा फिल्म’ का लेबल चस्पा नही हुआ.क्योकि मलयालम सिनेमा सिर्फ प्रोपेगंडा के लिए नही बनता,उसमें कहानी होती है ,जिसे यकीन दिलाने के लिए सरकार या किसी अन्य हथकंडे की जरुरत नही पड़ती.लेकिन यह बात कम से कम पिछले आठ दस वर्षों से बन रहे हिंदी सिनेमा के साथ लागू नही होती. पिछले कुछ वर्षों के अंतराल में कई फिल्में महज प्रोपेगंडा और झूठ को सच साबित करने वाली ही बनी हैं.इन फिल्मों को सरकार का अपरोद्वा रूप से वरदहस्त हासिल हुआ और फिल्म के निर्माता निर्देशक की झोली भर गयी.लेकिन इस तरह के सिनेमा से समाज को नुकसान हुआ.लोगों के बीच वैमनस्यता बढ़ी है.

‘द कष्मीर फाइल्स’ से प्रोपेगंडा फिल्म को बढ़ावा यह एक कटु सत्य है.हम यहां छोटे मोट उदहारण को नजरंदाज करते हुए विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 11 मार्च 2022 को प्रदर्षित ‘द कष्मीर फाइल्स’ का जिक्र करना चाहेंगे, जिसे अभूतपूर्व सफलता दिलाने और निर्माता निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की जेब में करोड़ से रूपए पहुंचाने के मकसद से फिल्म को सभी भाजपा षासित राज्यों में टैक्स फ्री करने के अलावा भाजपा के नगरसेवकों व विधायकों ने मुफ्त में फिल्म की टिकटें बांटकर फिल्म का एक अलग माहौल बनाया.परिणामतः पंद्रह करोड़ की लागत से बनी फिल्म ‘‘द कष्मीर फाइल्स’ के निर्माता की जेब में लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ पहुॅच गए।

विपुल अमृतलाल शाह

‘‘द कष्मीर फाइल्स ने कई फिल्मकारों को प्रेरणा दी.इन्ही में से एक हैं- निर्माता व निर्देशक विपुल अमृत लाल षाह. विपुल अमृतलाल षाह ने 2002 में ‘आॅंखें’, ‘2005 में ‘वक्तः द रेस अगेंस्ट टाइम’,2007 में ‘नमस्ते लंदन’ और 2009 में ‘‘लंदन ड्ीम्स’ का निर्देशन किया था.फिल्म ‘‘लंदन ड्ीम्स’’ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा और विपुल अमृतलाल षाह ने निर्देशन से तोबा कर लिया.लेकिन बतौर निर्माता 2010 में उन्होने सबसे पहले फिल्म ‘सिंह इज किंग’ बनायी थी,जिसने अच्छी कमायी की थी.उसके बाद ‘कुछ लव जैसा’ व ‘फोर्स’ बनायी,जिनसे नुकसान हुआ.तब विद्युत जामवाल को लेकर फिल्म ‘कमांडो’ बनायी, इसने उन्हे फायदा दिया.उसके बाद ‘होलीडेः ए सोल्जर नेवर आफ ड्यूटी’ ठीक ठाक चली.पर ‘फोर्स 2’ ने नुकसान पहुॅचाया.फिर

‘कमांडो 2’ और ‘कमाडो 3’ के अलावा ‘सनक’ से उन्हे काफी नुकसान हुआ.निर्माता निर्देशक के तौर पर वेब सीरीज ‘ह्यूमन’ भी नही चली.तब विपुल अमृतलाल षाह ने विवेक अग्निहोत्री के पदचिन्हों पर चलते हुए फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ का निर्माण किया,जिसके निर्देशक सुदीप्तो सेन हैं.

सुदीप्तो सेन

सभी जानते हैं कि सुदीप्तो सेन मूलतः पष्चिम बंगाल से हैं. इसके बावजूद 2006 में सुदीप्तो सेन पहली फिल्म ‘‘द लास्ट मांेक’’ लेकर आए थे,जिसमें उन्होने एक अमीर महिला को धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपनाने की कहानी बयां की थी. इसी से सुदीप्तो सेन की मंषा समझी जा सकती है. सुदीप्तो सेन ने 2022 में ‘‘इन द नेम आफ लव’’ नामक डाक्यूमेंट्ी भी बना चुके हैं.इस डाक्यूमेंट्ी में सुदीप्तो सेन ने कहा है कि केरला राज्य से 17 हजार और मंगलोर से 15 हजार हिंदू व क्रिष्चियन लड़कियों का धर्म बदलवाकर उन्हे मुस्लिम बनाया गया.यह ‘लव जेहाद’ का परिणाम है. ऐसे बनी ‘‘द केरला स्टोरी’’

उसके बाद आनन फानन में वपुल अमृतलाल षाह व सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ बनाकर 5 मई को प्रदर्षित कर दिया.इस फिल्म के निर्माण से लेकर प्रदर्शन से एक सप्ताह पहले तक सब कुछ गुप्त रखा गया.फिल्म के प्रदर्शन से महज एक सप्ताह पहले केरला से 32 हजार लड़कियों को धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनाने के अलावा उन्हे आईएसआई में भेजने की बात प्रचारित कर फिल्म को विवादास्पद बनाया गया.

प्रधानमंत्री और भाजपा का समर्थन

फिर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ की जमकर तारीफ की.तो वहीं भाजपा अध्यक्श जे पी नड्डा ने भी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ देखकर तस्वीरें वारयल करते हुए फिल्म की तारीफ में कसीदे पढ़े.यहीं से सवाल उठता है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित षाह या भाजपा अध्यक्श जे पी नड्डा ने सिर्फ एक खास अजेंडे वाली फिल्में ‘‘द कष्मीर फाइल्स’ और ‘‘ द केरला स्टोरी ’’ ही क्यांे देखी? पांच मई को ही अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ प्रदर्षित मलयालम फिल्म ‘2018’ देखकर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते थे.खैर,यह उनका अपना एकाधिकार है कि वह किस फिल्म को देखो या न देखें.

टैक्स फ्री

फिल्म ‘‘ द केरला स्टोरी’’ के प्रदर्षित होते और जे पी नड्डा द्वारा इस फिल्म को देखने के बाद भाजपा षासित मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड और हरियाणा में टैक्स फ्री कर दी गयी.ऐसा ही ‘ द कष्मीर फाइल्स’ के साथ भी हुआ था.सवाल यह उठता है कि जिन फिल्मों को दर्शक देखना नही चाहता,उन फिल्मों को सरकारें टैक्स फ्री करके सरकारें राजस्व की हानि कर आम इंसान को नुकसान क्यो पहुॅचाती हैं.एक अज्ञानी इंसानी भी यह जानता है कि हर इंसान मनोरंजन चाहता है.हर इंसान मनोरंजन के लिए फिल्म देखना चाहता है.यदि फिल्म अच्छी बनी होगी और मनोरंजक होगी,तो दर्शक हर हाल में फिल्म देखना चाहेगा.पर जो फिल्म मनोरंजक न हो,जिसमें झूठ का लबादा परोसा गया हो,जो बहुत सस्ते स्तरहीन हो,ऐसी फिल्म को टैक्स फ्र्री किया जाना जायज नही ठहराया जा सकता.कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि ‘‘द केरला स्टोरी’ में जिस सच को दिखाया गया है,उससे हर इंसान का वाकिफ होना आवष्यक है.तो सवाल यह भी उठता है कि यह घटना 2016 से 2018 के बीच की है.यदि फिल्मकार की बातों में सच्चाई है तो फिर राज्य सरकार व केंद्र सरकार चुप क्यों रही.फिल्मकार ने अपनी फिल्म में राज्य पुलिस के साथ ही राज्य सरकार या केंद्र सरकार पर कोई उंगली नही उठायी है.मतलब सब कुछ तोड़ मरोड़कर पेश किया गया.

भाजपा नगर सेवक व विधायक बांट रहे हैं मुफ्त की टिकटें
इतना ही नहीं कर्नाटक चुनाव खत्म होते ही भाजपा के नगरसेवक व विधायकों ने लोगों को बिना पैसा लिए हाथ में टिकट पकड़ाते हुए उन्हे ‘द केरला स्टोरी’ देखने के लिए भेजने लगे.विलेपार्ले,मंुबई से नगरसेवक सुनीता राजेश मेहता ने लोगों को व्हाट्सअप संदेश भेजकर रवीवार,14 मई को विलेपार्ले पूर्व,मंुबई स्थित ‘‘सनसिटी’ सिनेमाघर में दिनभर में किसी भी षो में मुफ्त में फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखने का आव्हान किया.अर्थात सिनेमाघर को पैसे भरकर पूरे दिन फिल्म दिखाने का आदेश दिया गया था.विष्व हिंदू परिशद के सुजीत सिंह ठाकुर ने अपना नंबर देकर मंुबई के गोरगांव व जोगेष्वरी इलाके में रहने वाली 18 से तीस वर्श की महिलाओं को 14 मई को मुफ्त में और पुरूषांे ंको सौ रूपए में फिल्म ‘‘ द केरला स्टोरी’’ देखने के लिए बुलाया था. जबकि उससे पहले मंुबई से सेटे भायंदर इलाके की भाजपा विधायक गीता जैन व नगरसेवक रवि व्यास ने 18 से तीस वर्श की महिलाओं को 12 मई को षाम साढ़े चार बजे, मैक्सस माॅल मल्टीप्लैक्स सिनेमा घर में मुफ्त फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ देखने के लिए निमंत्रित किया था.यह महज चंद उदाहरण हैं.जबकि ऐसा हर भाजपा नगरसवेक व भाजपा विधायक अपने अपने क्षेत्र में कर रहा है.

जयपुर में हिंदू को मुफ्त और मुस्लिम को सिनेमाघर में इंट्री बंद

जयपुर मंे कई सिनेमाघरों ने ऐलान किया है कि जो हिंदू भगवा पोषाक पहनकर आएगा,उसे मुफ्त में ‘द केरला स्टोरी’ देखने को मिलेगी. वहीं कुछ सिनेमाघरों ने ऐलान कर दिया है कि उनके यहां मुस्लिम को एंट्ी नहीं मिलेगी.

सांसदों व विधायकों को भाजपा नेतृत्वने सौपा काम

बौलीवुड में हर कोई एक ही बात कह रहा है कि भाजपा नेतृत्व ने अपने सांसदों और विधायकों से कह दिया है कि वह ज्यादा से ज्यादा लड़कियांे और महिलाओं को ‘द केरला स्टोरी’’दिखाने के लिए सिनेमाघरो में लेकर आएं.

टैक्स पेअर का पैसा या….?

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह नगरसेवक और विधायक अपनी जेब से पैसे खर्च कर टिकट खरीदकर लोगों को दे रहे हैं अथवा यह लोग ‘नगरसेवक निधि’ व ‘विधायक निधि’ इस कार्य के लिए खर्च कर रहे हैं? कहीं टैक्स पेअर के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं हो रहा है? क्या इन विधायकों व नगरसेवकों ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखने के बाद केरला जाकर जमीनी सच को जानने का प्रयास किया और क्या इस सच को जानने का प्रयास किया कि अगर यह सच है,तो फिर इसके लिए दोषी कौन हैं.वास्तव में हकीकत यही है ‘‘द केरला स्टोरी’’ एक झूठ का ऐसा पुलंदा है, जिसे लोग देखना नही चाहते,उसे न सिर्फ सस्ती करके बेचा जा रहा है,बल्कि मुफ्म में दिखाया जा रहा है,ताकि एक झूठ को सच साबित करा जा सके. कहीं यह अफीम की आदत डालने वाला मसला तो नही है. तो वही अहम सवाल यह भी है कि यह सभी विधायक व नगर सेवक और विष्व हिंदू परिशद व बजरंग दल से जुड़े लोग सिर्फ 18 से तीस वर्श की उम्र की महिलाओं को ही मुफ्त में ‘‘द केरला स्टोरी’’ क्यो दिखा रहे हैं? क्या इसके पीछे इन सभी की मंषा युवा महिलाओं का ब्रेन वाॅश करना है? केरल के मुख्यमंत्री ने फिल्म को किया था खारिज फिल्म का ट्ेलर आने पर ही केरला के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन अपने बयान में कह चुके हैं कि फिल्म जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य और केरल के खिलाफ नफरत फैलाने के उद्देश्य से बनाई गई है.उनके बयान में कहा गया-‘‘हिंदी फिल्म ‘द केरला स्टोरी‘ का ट्रेलर जो जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य से और केरल के खिलाफ नफरत फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया प्रतीत होता है, पिछले दिन जारी किया गया था। ट्रेलर से यह संकेत मिलता है कि यह फिल्म संघ परिवार के प्रचार को फैलाने की कोशिश कर रही है, जिसने खुद को धर्मनिरपेक्शता की भूमि केरल में धार्मिक अतिवाद के केंद्र के रूप में स्थापित किया है।’’

फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी के सच पर फिल्मकार अडिग क्यों नहीं..

फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखकर यह बात साफ नजर आती है कि फिल्मकार का एक मात्र मकसद हर दर्शक का ‘ब्रेनवाश’ करना मात्र है.फिल्म कहती है कि कोई भी मुसलमान अच्छा नही होता.नास्तिकता व साम्यवाद में अंतर नही है. फिल्म इस बात को भी रेखंाकित करती है कि कोई जान- बूझकर धर्मांतरण नहीं है,गुप्त उद्देश्यों के बिना आपसी प्रेम नहीं है…वाह क्या बात है? पर यह समझ से परे है कि जब नर्स बनने की पढ़ाई कर रही षालिनी का मुस्लिम प्रेमी रमीज उसे धोखा दे देता है,तब वह एक बार अपने माता पिता से मिलने की बजाय मौलवी की बातों में आकर इस्लाम धर्म कबूल कर एक अनजान मुस्लिम युवक इषाक संग षादी कैसे कर लेती है?

इतना ही नही फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन और रचनात्मक निर्माता विपुल अमृतलाल शाह जोर देकर कहते हैं कि उनकी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ केरल की ‘32,000 युवा लड़कियों की सच्ची कहानी‘ पर आधारित है, जिन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के बाद अफगानिस्तान -तुर्की-सीरिया की सीमा पर आईएसआईएस शिविरों में बंदी बना कर रखा गया था.जिनका काम इस्लाम के जेहादियों की सेक्स भूख को षांत करना था.इन षिविरांे में हर लड़की के साथ हर दिन कई बार बलात्कार किया जाता था.यदि यह सच है,तो केरला सरकार ही नहीं केंद्र सरकार की भी इस मसले पर चुप्पी समझ से परे है.

अपनी बात से पलटे निर्देशक सुदीप्तो सेन

मजेदार बात यह है कि 5 मई को ‘द केरला स्टोरी’ प्रदर्षित हुई.चार राज्यों में टैक्स फ्री हो गयी,इसके बाद भी सिनेमाघरों में दर्शक नही थे.तब सोमवार, 8 मई को विपुल अमृतलाल षाह और सुदीप्तो सेन ने आफिस में प्रेस काॅर्फे्रंस बुलायी,जहां उन्होने तमिलनाड़ु में फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ न दिखाने के लिए तमिलनाड़ु सरकार व पष्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की बात की. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुॅच चुका है,जहां तमिलनाड़ु सरकार ने कहा कि उन्हेोन फिल्म पर बैन नही लगाया है.पर सिनेमाघर में दर्शक नही जा रहे हैं,इसलिए शो रद्द किए गए.जब पत्रकारों ने आंकड़ों की बात की,तो सुदीप्तो सेन ने कहा-‘‘आप लोग आंकड़े भूल जाएं.आप सिर्फ यह ध्यान दें कि कुछ तो गलत हो रहा है.जो गलत हो रहा है,उसे ही हमने दिखाया है.आप लोग आंकड़ो पर न जाएं.’’ इसका अर्थ यह हुआ कि सुदीप्तो सेन ने अपनी डाक्यूमेंट्ी में भी गलत आंकड़े पेश किए थे.खैर,इतना ही नही पत्रकारों के कई सवाल थे,मगर निर्माता व निर्देशक दोनों एक ही रट लगाए रहे कि ‘हमें जो कहना था,हमने कह दिया.’उसके बाद वह प्रेस काॅंफ्रेंस छोड़कर चले गए थे.जब उनसे पूछा गया था कि जे पी नड्डा को फिल्म क्यों दिखायी? तब विपुल षाह ने कहा-‘‘यह तो आप उनसे पूछे कि उन्होने ‘द केरला स्टोरी’ क्यांेे देखी.मुझसे क्यों पूछते हो.’इस प्रेस काॅॅंफंेस में निर्माता और निर्देशक दोनों बार बार दोेहराते रहे-‘‘हमने किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ फिल्म नहीं बनायी.हमने सिर्फ सच दिखाया है.’’ अब एक बार फिर बुधवार ,सत्रह मई को ‘द केरला स्टोरी’ के निर्माता व निर्देशक ने प्रेस काफ्रेंस बुलायी है.

फिल्म की सफलता और डेढ़ सौ करोड़ से अधिक कमाने के दावे

फिल्मकार हर दिन अपनी फिल्म के बाक्स आफिस पर सफलता के दावे और डेढ़ सौ करोड़ से अधिक कमाने के दावे करते जा रहे हैं.पर वह यह कबूल करने को तैयार नही है कि सिर्फ वही थिएटर भर रहे हैं,जहां भाजपा विधायक या नगर सेवक,विष्व हिंदू परिशद व बजरंग दल से जुड़े लोग अपनी जेब से टिकट खरीदकर कर लोगों को थिएटर में भेज रहे है,अन्यथा सिनेमाघर खाली पड़े हैं.

केरला में हुए थे शो कैंसिल

केरला में कोची,त्रिवेंद्रम और इर्नाकुलम में ही हिंदी फिल्में देखी जाती हैं.केरला में पांच मई को यह फिल्म पचास सिनेमाघरों /स्क्रीन में लगने वाली थी,पर अंततः सिर्फ तीन स्क्रीन में ही लगी थी.बाकी के षो कैंसिल हो गए थे.क्यांेकि दशर््ाक ही नहीं पहुॅचे थे. ‘‘द केरला स्टोरी’’ के चलते अकोला में सांप्रदायिक झड़पों में एक व्यक्ति की मौत और आठ गंभीर रूप से घायल, डेढ़ सौ से अधिक गिरफ्तार,36 घंटे के लिए

इंटरनेट सेवा बंद

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट् के अकोला शहर में सोशल मीडिया पर विवादित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ पर एक पोस्ट के कारण हिंसा भड़की थी। जिसमें एक युवक की मौत हो गयी.आठ लोग घायल हुए.मारपीट में घायल होने वालों में एक महिला कांस्टेबल भी शामिल है.पुलिस के अनुसार हिंसा सबसे पहले शनिवार,13 मई को शुरू हुई,जब फिल्म के बारे में एक सोशल मीडिया पोस्ट (‘‘द वायर’’के अनुसार यह सब अकोला ‘छत्रपति सेना‘ से जुड़े कट्टरपंथी दक्षिणपंथी समूह के नेता करण साहू द्वारा एक इंस्टाग्राम पोस्ट के साथ शुरू हुआ.) के विरोध में अकोला में एक पुलिस स्टेशन के बाहर एक समुदाय के सदस्य एकत्र हुए.बहरहाल,हिंसा के बाद मुख्यमंत्री ने अकोला जिले में फोर्स भेज दी. धारा 144 लागू कर दी.इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयी.यह सांप्रदायिक वैमनस्ता फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ के चलते पैदा हुई.जबकि ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ यानी कि सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन्स के अनुसार सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने का अंदेषा देने वाली फिल्म को सेंसर प्रमाणपत्र नही दिया जाता.ऐसे में लोग सवाल पूछ रहे है कि क्या सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’ को पारित कर सही किया? 2011 की जनगणना के आंकड़ांे के अनुसार अकोला मंे लगभग 55 प्रतिशत हिंदू,लगभग 13 प्रतिशत बौद्ध,डेढ़ प्रतिशत जैन तथा लगभग तीस प्रतिशत मुस्लिम आबादी है.

जम्मू में झड़पें

रविवार,14 मई को केंद्र षासित प्रदेश जम्मू कष्मीर के जम्मू जिले के एक मेडिकल कॉलेज में भी फिल्म को लेकर झड़पें हुईं.इस झड़प ने हिंसा का रूप ले लिया और कम से कम दो छात्र घायल हो गए, जो कथित तौर पर एक छात्र के व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा की गई फिल्म पर एक पोस्ट के कारण भड़की थी.पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अशांति के लिए संघीय सरकार को दोषी ठहराया और उस पर ‘‘सांप्रदायिक आग भड़काने वाली फिल्मों के माध्यम से‘‘ हिंसा को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया. इंग्लैंड सेंसर बोर्ड ने ‘‘द केरला स्टोरी’ को किया

बैन

इंग्लैंड के सिनेमाघरों में ‘‘द केरला स्टोरी’’ केा दिखाने की सारी तैयारी हो गयी थी.सिनेमाघर मालिको ने टिकटें भी बेच दी थीं. लेकिन फिल्म के प्रदर्शन से एक दिन पहले इंग्लैंड के सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ को सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने वाली बताकर फिल्म को सेंसर प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया.उसके बाद सिनेमाघर मालिकों को फिल्म के षो रद्द करने के साथ ही बेची गयी टिकटों के पैसे भी लौटाने पड़े.ष् तो जिस फिल्म की वजह से देश में सांप्रदायिक वैमनस्यता बढ़ रही हो,ऐसी फिल्म को भाजपा नगरसेवक,विधायक आदि लोगों को मुफ्त में दिखाकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं?

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