Download App

अनुपमा के बगैर टूट जाएगा अनुज, छोटी अनु को शाह हाउस ले जाएगी काव्या?

Anupama Upcoming Twist : छोटे पर्द पर इस समय रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना का शो ‘अनुपमा’ खूब सुर्खियां बटोर रहा है. साथ ही सीरियल की टीआरपी रेटिंग भी पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है. शो के करंट ट्रैक की बात करें तो बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि अनुपमा दिल पर पत्थर रखकर अमेरिका जाने की फ्लाइट में बैठ जाती है. हालांकि उसे छोटी अनु की चिंता हो रही थी, लेकिन उसे लगा कि अनुज उसका ध्यान रख लेंगे.

वहीं दूसरी तरफ छोटी अपनी मां को ढूंढते हुए पूरे घर में भागती है और जमीन पर गिर जाती है. अनुज के लिए उसे ऐसी हालत में संभालना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा आगामी एपिसोड (Anupamaa New Episode) में एक और ट्विस्ट देखने को मिलेगा, जिसके बाद दर्शक दंग रह जाएंगे.

मां-पापा दोनों का फर्ज निभाएगा अनुज

आज के एपिसोड (Anupamaa New Episode) में दिखाया जाएगा कि अनुज छोटी को समझाता है कि अनुपमा अब यहां कभी वापस नहीं आएगी. हालांकि छोटी अनु के साथ-साथ वह खुद को भी समझाने की कोशिश करता है कि उसे अपनी आगे की जिंदगी अनुपमा के बगैर जीनी सीखनी होगी. वह छोटी से कहता है कि, ‘भले ही आपकी मम्मी यहां नहीं हैं, लेकिन मैं आपको मां और पापा दोनों का प्यार दूंगा.’ इसके बाद दिखाया जाएगा कि, जब एक कमरे में बैठकर अनुज रो रहा होता है तो वहां उसे अनुपमा की झलक दिखाई देती है. जो उसके पास आकर बैठती है और उसके आंसू पोछती है.

अनुपमा को पड़ेगा चाटा

इसके अलावा आगे दिखाया जाएगा कि छोटी अनु को काव्या संभालती है और उसका ध्यान रखती है. वहीं जब सब लोग एक दूसरे को दिलासा दे रहे होते हैं तो घर की घंटी बजती है. जब अनुज गेट खोलता है तो उसे वहां रोती हुई अनुपमा दिखाई देती है. जो अनुज के गले लगकर कहती है कि मैं (Anupamaa New Episode) नहीं रह सकती आपसे दूर. फिर वहां गुरू मां भी पहुंच जाती है, जो अनुपमा को चाटा मारती है और उसे चैलेंज देती है कि वो उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगी. हालांकि इसे देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि अब जल्द ही शो में एक नया ट्विस्ट आएगा.

एक छोटी सी अंगूठी : कथा दो चाहने वालों की

story in hindi

मैं एक लड़की से प्यार करता हूं पर अब वो मुझसे दूर चली गई है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 21 साल का हूं और 3 सालों से 19 साल की लड़की से प्यार करता हूं. जब तक वह मेरे करीब थी तो प्यार जताती थी, मगर अब दूर चली गई है तो फोन भी नहीं करती है और न ही मिलने को राजी होती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

प्यार मोहब्बत में दिल से ही नहीं, दिमाग से भी काम लेने की जरूरत होती है. आप की गर्लफ्रैंड अब आप से कोई संपर्क नहीं बना रही तो आप भी जरा शांत रहिए. हो सकता है उसे कोई व्यक्तिगत समस्या हो. सो, उसे अपनी समस्या को आप के साथ साझा करने का समय दें.

1-2 महीने तक भी स्थिति ज्यों की त्यों रहे तो स्थिति स्वीकार कर लें और आगे बढ़ें.

अपने जीवन में खुद को महत्त्वपूर्ण बनाएं और अपने शौक व कार्यों के साथ लगातार जुड़े रहें. जब आप उज्ज्वल राह पर चल रहे होंगे तो हो सकता है आप की गर्लफ्रैंड तब आप की ओर आकर्षित हो.

याद रखें कि प्रेम संबंधों में समयसमय पर अड़चनें आती हैं और हमें उन का सामना करना पड़ता है, इसलिए इन को सामान्य मानते हुए अपनी ग्रोथ पर पूरा ध्यान देते रहें. समय के साथ कई अच्छे साथी मिलेंगे.

ये भी पढ़ें-

सवाल
मैं 40 वर्षीय शादीशुदा पुरुष हूं. शादी के कुछ समय बाद ही मेरा ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. घर में बुजुर्ग मातापिता की देखभाल करने के चलते मैं पत्नी को अपने साथ ले कर नहीं आया. अपने छोटे भाई, पत्नी और बुजुर्ग मातापिता को छोड़ कर मैं अकेला किराए का मकान ले कर रहता था.

इस बीच पत्नी ने कई दफा मेरे साथ आने की जिद की, पर मैं टालता रहा. इधर कुछ दिनों से मैं ने महसूस किया है कि मेरी पत्नी मेरे छोटे भाई में ज्यादा ही रुचि लेने लगी है. मैं ने इस बारे में कई बार पत्नी से बात करनी चाही पर कर नहीं पाया. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
यहां गलती कहीं न कहीं आप की ही है. आप ने अपनी पत्नी को अकेला छोड़ा, तो जाहिर है अपनी शारीरिक व मानसिक जरूरतों के लिए वह स्वाभाविक रूप से आप के छोटे भाई की तरफ आकृष्ट हो गई. लेकिन आप को अपनी पत्नी से इस बारे में खुल कर बात करनी चाहिए. हो सकता है बात करने से और प्यार से समझाने से वह समझ जाए.

आप की कोशिश यही होनी चाहिए कि जल्द से जल्द पत्नी को अपने साथ ले आएं. पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं. पुरानी बातों को भूल कर गृहस्थी को प्यार और विश्वास के साथ चलाएं.

ऐसे कहें थायराइड को अलविदा

आजकल थायराइड की समस्या बहुत आम सी हो गयी है. बच्चों से लेकर बड़ों और खास कर महिलाओं में ये समस्या ज्यादा दिख रही है. थायराइड एक एंडोक्राइन ग्लैंड है जो गले में स्थित होती है और इससे थायराइड हार्मोन निकलता है जो मेटाबालिज्म को संतुलित रखता है.

इस थायराइड ग्रंथि से कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोन निकलने से थायराइड की समस्या हो जाती है . थायराइड लाइलाज नहीं है बशर्ते कि समय से जांच और दवा के साथ खानपान ठीक से किया जाए.

 कैसे जानें थायराइड पनप रहा है ?

  1. बच्चों में वजन का बढ़ना / शारीरिक और मानसिक विकास का धीमा होना या विकास रुक जाना.
  2. महिलाओं में वज़न का बढ़ना, थकान, सूजन, मासिक धर्म अनियमित होना.
  3. चिड़चिड़ापन, नीद कम आना, घबराहट, हाथ पैरों में कम्पन या धीमी हृदय गति इनमें से कोई भी लक्षण दिखते हैं तो तुरंत अपने डौक्टर से संपर्क करें और उनकी सलाह पर खून की जांच कराए. इसमें T3, T4 और TSH की जांच होती है जिससे पता चलता है कि आपको कौन से प्रकार का (हाइपो, हाइपर) थायराइड है. डौक्टर उसी के हिसाब से आपको दवा और समय समय पर जांच को कहेगा . थायराइड में नियमित खून की जांच होना जरूरी है क्यू कि दवा खाने पर थायराइड का स्तर बैलेंसड होगा और आपकी दवा की मात्रा भी उसके हिसाब से ही होगी .

कई बार कुछ महीने (केवल खाली पेट सुबह एक गोली) दवा खाने से थायराइड की समस्या खत्म हो जाती है मगर तब भी हर तीन या छह महीने पर जांच करानी होती है एतिहातन.. मगर कई बार ताउम्र भी दवा लेनी होती है . ये सब लगातार जांच से पता चलता है कि थायराइड कौन सा और किस स्तर पर है.

कैसे थायराइड को खानपान से संतुलित रखे ?

हरी सब्जियां और फल का सेवन करना चाहिए, इनमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट थायराइड का स्तर बढ़ने नहीं देते. ताजे फल का जूस /सूप पीना भी बेहतर होता है.. बच्चों को फास्ट फूड और तैलीय चीजों से दूर रखना बेहतर होगा .

स्वस्थ जीवन शैली अपनाए. अपनी दिनचर्या में शारीरिक श्रम जरूर रखें. अगर आपका काम बैठने का है तो वाक और एक्सरसाइज जरूर करें . सुबह वक़्त न मिलने पर शाम को टहल सकते हैं और वीक ऑफ पर कुछ ज्यादा समय एक्सरसाइज और वॉक पर दे सकते हैं.. अपने साथ बच्चों को भी ले जाए ताकि उन में भी फिटनेस के लिए जागरुकता बनें .

डायट से लेकर एक्सरसाइज तक का चार्ट बना कर फालो करने से आप इस समस्या से मुक्त भी हो सकते हैं.. वैसे कहते हैं कि थायराइड की समस्या खत्म नहीं होती लेकिन शुरुआती दौर में इसकी पहचान होने पर दवा, अच्छे खानपान और बेहतर जीवन शैली से इससे मुक्त हो सकते हैं . बच्चों में भी स्वस्थ खानपान की आदतें विकसित करके उन्हें भी थायराइड की समस्या से मुक्त रख सकती है.. रिसर्च बताती है कि महिलाओं और बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है.. वजह असंतुलित खानपान, जीवन शैली, अवसाद का होना है.. और इससे आसानी से दूर रहना भी आपके ही हाथ में है.. “खुद का ध्यान रखे और थायराइड को अलविदा कहें.”

शादी का सपना दरिया में दफन

जमींदार राकेश कासनिया से फोन पर बात कर के टिल्लू खां बेहद खुश था. वजह यह थी कि जमींदार ने उसे अपने खेतों में काम करने के लिए बुलाया था. दरअसल राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले जमींदार राकेश कासनिया के यहां बड़े स्तर पर कपास की खेती होती है.

कपास की चुगाई के लिए वह भरतपुर जिले के कैथवाड़ा गांव के रहने वाले टिल्लू खां और उस के साथियों को बुला लेता था. जो भी मजदूर उस के यहां आते थे, वे परिवार सहित आते थे. इस बार राकेश कासनिया ने टिल्लू खां से यह भी कह दिया था कि वह अपनी जानपहचान वाले कुछ और लोगों को भी साथ ले आए.

जमींदार के खेतों में परिवार सहित काम करने से जहां उन परिवारों को एकमुश्त मजदूरी मिल जाती थी, वहीं मालिक को भी मजदूरों के लिए दरदर भटकना नहीं पड़ता था. मजदूरों के आनेजाने का किराया भी जमींदार ही देता था. इसलिए मजदूर उस के यहां खुशीखुशी आते थे. भरतपुर हनुमानगढ़ से लगभग 450 किलोमीटर दूर है.

टिल्लू खां ने अपने साथ चलने के लिए करीम खां, अख्तर खां और हबीब से बात की. जमींदार राकेश कासनिया ने सारे मजदूरों के किराए के पैसे टिल्लू खां के खाते में औनलाइन जमा करा दिए थे, जिस से मजदूरों को उस के गांव तक आने में परेशानी न हो.

जमींदार राकेश कासनिया के यहां जाने की बात से सारे मजदूर खुश थे. इस की वजह यह थी कि उन के यहां खानेपीने की कोई परेशानी नहीं होती थी. वहां खाने में घी, दूध और छाछ भी मिलती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि जमींदार के खेतों में काम करने वाले मजदूरों की मेहमानों की तरह खातिरतवज्जो होती थी. इसलिए टिल्लू ने जिनजिन लोगों से चलने की बात की, वे सब जाने की तैयारी करने लगे.

टिल्लू के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी खातून महज 14 साल की थी. किसी वजह से इस साल उस की पत्नी उस के साथ जमींदार के यहां नहीं जा पा रही थी. तब टिल्लू ने अपनी तीनों बेटियों के साथ जाने का प्रोग्राम बनाया. अन्य मजदूर अपनी बीवीबच्चों के साथ जा रहे थे.

राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में कपास की खेती बहुत ज्यादा होती है. कपास उत्पादन की वजह से इन दोनों जिलों की श्वेत पट्टी के रूप में पहचान बन चुकी है. देशी व अमेरिकन कपास (नरमा) की फसल पकने पर पौधों से फाहों को अलग कराने का काम मजदूरों से कराया जाता है.

इस प्रक्रिया को चुगाई या चुनाई कहा जाता है. इस साल 5-6 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चुनाई की रकम मजदूरों को अदा की गई थी. इस तरह एक मजदूर दिनभर में चुनाई कर के 500 से 600 रुपए तक कमा लेता है. ज्यादा कमाने के लिए लोग अपने परिवार के साथ यहां काम करने आते थे.

टिल्लू खां अन्य 15 मजदूरों को ले कर जमींदार राकेश कासनिया के गांव जाखड़ावाली पहुंच गया. राकेश के खेतों के पास ही रविन्द्र, रणवीर, देवतराम आदि के भी खेत थे.

राकेश के खेतों का काम निपटा कर इन मजदूरों को इन पड़ोसी किसानों के खेतों की भी कपास की चुगाई करनी थी. जैसे ही टिल्लू खां की मजदूर टोली राकेश कासनिया के घर पहुंची, उन की खूब आवाभगत हुई. सभी राकेश के ही घर ठहरे.

राकेश का घर काफी बड़ा था. घर के पिछवाड़े दरजन भर दुधारू पशु बंधे रहते थे. सुबह का सारा दूध डेयरी पर भिजवा दिया जाता था, जबकि शाम के दूध का दही जमाया जाता था. अगली सुबह मशीनों से दही मथ कर मक्खन व मट्ठा बनाया जाता था. 3 मजदूर इन पशुओं को संभालते थे.

परिवार के मुखिया व राकेश के पिता चौधरी लालचंद की पहल पर पहले दिन सभी मजदूरों को खालिस घी का हलवा व हरी सब्जियों के संग भोजन परोसा गया. सभी मजदूर चौधरी परिवार की मेहमाननवाजी के कायल हो गए.

टिल्लू की बड़ी बेटी खातून तो बेहद खुश थी. खातून को राकेश और उस के भाई कुलदीप की पत्नियां दिखाई नहीं दीं. चुलबुली खातून खोजी निगाहों से उन के घर के कई चक्कर लगा चुकी थी, पर दोनों बहुएं उसे दिखाई नहीं दीं. उसी बीच शोख खातून राकेश की नजरों में जरूर चढ़ गई.

अगली सुबह बड़े चौधरी लालचंद के कहने पर सभी मजदूरों को गांव के ही बृजलाल के खाली पड़े मकान में ठहरा दिया गया. अख्तर की बीवी और खातून खाना बनाने के लिए घर पर रुक गईं, जबकि अन्य सभी नरमा चुगाई के लिए राकेश के साथ ट्रैक्टर से खेतों पर चले गए.

आधे घंटे बाद राकेश अपने खेतों से सब्जियां तोड़वा कर ले आया और उसे अख्तर की बीवी को दे कर कहा, “भाभी, खातून को भेज कर घर से दही और छाछ मंगवा लेना.”

दरअसल, राकेश का मन 14 साल की खातून पर आ गया था. इसलिए वह बहाने से उसे अपने यहां बुलाना चाह रहा था.

“अरे, अंकल ठहरो. मैं दही और छाछ लेने आप के साथ ही चलती हूं. आप के साथ चलने से मुझे सहूलियत रहेगी.”

कह कर खातून डोलची ले कर राकेश के पीछेपीछे चल पड़ी. खातून जैसे ही दालान से बाहर निकली, राकेश ने उसे रोक कर कहा, “खातून, तुम अंकल मत कहो, क्या मैं तुम्हारे अब्बू की उम्र का हूं?”

“गलती हो गई, अब खयाल रखूंगी. भैया कहूं तो चलेगा?” खातून ने कहा, “अरे भैया, एक बात बताओ, दोनों भाभियां दिखाई नहीं दे रही हैं, कहां छिपा दिया है आप ने उन्हें?”

“खातून, मैं ने अपनी बीवी को तलाक दे दिया है. अब दूसरी बीवी की तलाश में हूं. कोई लड़की पसंद आ गई तो शादी कर लूंगा. और हां सुन, अब तू बच्ची नहीं रही, मुझे अंकल या भैया कहा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. तुम मुझे राकेश कहो, प्यार से रौकी. समझ गई ना?” इतना कह कर राकेश आगे बढ़ गया.

डोलची उठाए खातून राकेश के पीछेपीछे चल रही थी. घर पहुंच कर राकेश ने खातून की डोलची छाछ से भर दी. खातून डोलची उठाने लगी तो राकेश ने उस का हाथ दबा दिया. इस पर नादान खातून ने मुसकरा दिया.

उस रात न राकेश को नींद आई, न खातून को. दोनों ही सारी रात करवटें बदलते रहे. राकेश शातिर खिलाड़ी था, जबकि खातून प्रेम के इस खेल से अनाड़ी थी. शातिर राकेश ने खातून को फंसाने के लिए शब्दों का जाल बुन लिया. उसे फंसाने के लिए वह उस से लच्छेदार बातें करने लगा. उस की बातों का 14 साल की खातून पर ऐसा असर पड़ा कि वह भी उसे चाहने लगी.

राकेश और उस के बड़े भाई कुलदीप ने उच्चशिक्षा हासिल कर के वैज्ञानिक तरीके से खेती करानी शुरू की थी. जिस से उन्हें अच्छी पैदावार मिलने लगी थी. दोनों की शादी एक ही परिवार में सगी बहनों से हुई थी, लेकिन किन्हीं कारणों से दोनों भाइयों के गृहस्थ जीवन में ऐसी खटास आई कि मामला अदालत की चौखट तक पहुंच गया.

राकेश के परिवार की गिनती इलाके में रसूखदार व प्रभावशाली परिवारों में होती थी. उस के  परिवार का इलाके में अच्छाखासा दबदबा था. परिवार में सभी सुखसुविधाओं के साथ कई लग्जरी गाड़ियां व खेतीबाड़ी के लिए ट्रैक्टर था.

शहरी आबोहवा में पल रही गरीब परिवार की खातून 14 साल की उम्र में अपने तंदुरुस्त शरीर की वजह से जवान दिखती थी. गेहुंआ रंग व गठीले बदन की खातून पर राकेश इस कदर फिदा हुआ कि वह उस के लिए पागल सा हो गया था.

राकेश सुबह के समय खुद ट्रैक्टर चला कर मजदूरों को खेतों पर ले जाता था. खातून राकेश के पास बैठ जाती थी, जबकि अन्य मजदूर पीछे ट्राली में बैठते थे. खातून की छोटी बहन सलमा भी राकेश की सीट के पास मडगार्ड पर बैठती थी. शाम को वापसी में भी ऐसा ही होता था. इस बीच मौका मिलने पर राकेश खातून से हंसीमजाक कर लिया करता था. एक दिन ट्रैक्टर पर आते समय राकेश ने खातून से धीरे से कहा, “आज रात को गली में मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.”

मजदूरों को जाखड़ावाली आए मात्र 5 दिन ही हुए थे. इस तरह राकेश और खातून ने पलक झपकते ही दूरियां नाप ली थीं. सभी मजदूर थकेमांदे होने के कारण खाना खाने के तुरंत बाद नींद के आगोश में समा जाते थे. खातून ने इसी का फायदा उठाया.

जैसे ही सब लोग सो गए, खातून दबे पांव बाहर निकली. राकेश दीवार की ओट में पहले से ही खड़ा था. खातून के आते ही उस का हाथ पकड़ कर वह रुखीराम के खाली पड़े घर में घुस गया.

एकांत मिलते ही राकेश ने उसे बांहों में भर लिया और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. खातून ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, “यह आप क्या कर रहे हैं, यह सब ठीक नहीं है?”

“खातून, मैं तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.” राकेश ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

“नहीं, आप शादीशुदा हैं. आप तो मुझे बरबाद कर के चले जाएंगे. मैं जिंदगी भर रोती रहूंगी.” खातून ने कहा.

राकेश ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, “खातून, मैं ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया है. अब मैं तुम से शादी कर के तुम्हें पत्नी बना कर रखूंगा. तुम मेरी बात पर यकीन करो. अब फैसला तुम्हें करना है कि शादी गुपचुप करोगी या ढोलधमाकों के साथ.”

राकेश की बातों पर खातून ने यकीन कर लिया और उस के सामने समर्पण कर दिया. इच्छा पूरी कर के दोनों अपनेअपने बिस्तरों पर चले गए.

अगली सुबह खातून के बदन का पोरपोर दर्द कर रहा था. देर रात तक जागने से उसे सिरदर्द के साथ तेज बुखार भी हो गया था. जब सभी लोग खेतों में जाने लगे तो खातून ने पिता से कहा, “अब्बू, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे बुखार है, इसलिए आज मैं काम पर नहीं जा पाऊंगी.”

“कोई बात नहीं, तुम घर पर आराम करो. मैं दवा के लिए छोटे चौधरी (राकेश) को बोल दूंगा.” टिल्लू ने कहा.

कुछ देर बाद राकेश ट्रैक्टर ले कर मजदूरों को लेने आया तो टिल्लू ने कहा, “छोटे चौधरी, खातून को बुखार हो रहा है. उसे गांव के डाक्टर से दवा दिलवा देना. आज वह काम पर भी नहीं जा रही है.”

“अंकल, आज गांव के डाक्टर एक शादी में गए हैं. दोपहर के समय मैं शहर जाऊंगा तो वहां से दवा दिला दूंगा.” राकेश ने कहा.

मजदूरों को खेत में छोड़ कर राकेश जल्दी लौट आया और जिप्सी ले कर खातून के पास पहुंच गया. दवा दिलाने के बहाने उस ने खातून को जिप्सी में बैठा लिया. जिप्सी स्टार्ट करते हुए उस ने चुहलबाजी करते हुए कहा, “रानी, तबीयत सचमुच में खराब है या चालाकी से मिलने का उपाय ढूंढ़ा है.”

“देखोजी, आप को मजाक सूझ रहा है और मैं दर्द के मारे मरी जा रही हूं.” खातून ने कहा.

“जानेमन, घबराओ मत, आज ससुरजी की इजाजत ले कर आया हूं. पूरे दिन घुमाऊंगा और तुम्हारे तनमन का दर्द निकाल कर ही दम लूंगा.” राकेश ने कहा.

कई घंटे घूमने के बाद राकेश की जिप्सी पीलीबंगा शहर से लौट आई. शहर में दोनों ने जी भर कर मस्ती की. मानमनुहार कर के राकेश ने खातून को बीयर भी पिला दी थी. राकेश का साथ मिलने पर बिना दवा के ही खातून ठीक हो गई थी.

राकेश की पहल पर खातून ने एक आर्टिफिशियल मंगलसूत्र गले में पड़े पुराने काले धागे में बांध लिया था. खातून की पसंद का एक सुर्ख सूट भी राकेश ने खरीद दिया था.

शहर में बिताए उन पलों में राकेश खातून को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि वह उस का शौहर है और समय आने पर वह उस के साथ रीतिरिवाज से निकाह कर लेगा. राकेश ने यह भी कहा था कि उस की पहली पत्नी के जितने भी गहने हैं, वे सब अब उस के हैं.

इस के अलावा वह उस की पसंद के और गहने बनवा कर उसे गहनों से लाद देगा. इस तरह शातिर राकेश उसे लूटता रहा और शादी का सपना संजोए खातून लुटती रही. राकेश ने उस दिन भी रात में उस से मिलने का वादा करा लिया था.

शाम को टिल्लू लौटा तो खातून ने राकेश द्वारा दिया सूट दिखाते हुए कहा, “अब्बा, यह सूट देखो, बड़ी चौधराइन ने दिया है. आप को पहन कर दिखाऊं.”

सूट बढ़िया और महंगा था. अब्बू के इशारे पर खातून ने सूट पहन लिया. कढ़ाईदार सुर्ख सूट में खातून नईनवेली दुलहन सी लग रही थी.

रात को सभी सो गए तो खातून राकेश से मिलने उसी खाली मकान में जा पहुंची, जहां वह पहले मिली थी. वहां राकेश पहले से ही मौजूद था. उस समय उस के गले में राकेश के नाम का मंगलसूत्र व बदन पर वही सुर्ख सूट था. वह अप्सरा सी लग रही थी.

राकेश ने उस की सुंदरता की तारीफ की तो खातून ने कहा, “देखो रौकी, तुम मुझे धोखा मत देना. ऐसा हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊंगी. जहर खा कर अपनी जान दे दूंगी.”

“हट पगली, तू ने ऐसा सोचा भी कैसे? और सुन, शहर से तुझे कल मोबाइल ला कर दे दूंगा.” राकेश ने कहा.

अगले दिन राकेश ने खातून को एक मोबाइल ला कर दे दिया. समय गुजरता रहा. राकेश का जब मन करता, वह खातून को मिसकाल कर देता. साइलैंट मोड पर मोबाइल पर आई मिसकाल के इशारे को खातून समझ जाती. उस के बाद शौच का बहाना कर के वह रणवीर जाट के खेत में बने कोठा में पहुंच जाती. वहां दोनों अपनी इच्छा पूरी करते. इस तरह पूरे महीने उन का यह खेल चलता रहा.

कहते हैं, लाख कोशिशों के बाद भी इस तरह के संबंध छिपाए नहीं छिपते. राकेश और खातून के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक रात लघुशंका के लिए अख्तर खां उठा तो उस ने राकेश और खातून को सुनसान पड़े घर में घुसते देख लिया.

हकीकत जानने के लिए छिप कर वह वहीं बैठ गया. घंटे भर बाद दोनों एक साथ बाहर निकले तो अख्तर पूरा मामला समझ गया.

राकेश के बड़े भाई कुलदीप को भी राकेश और खातून के संबंधों को ले कर संदेह हो गया था. एक सुबह खातून नहाने के लिए गुसलखाने में घुसी तो उस के कपड़ों में लिपटा मोबाइल फोन छोटी बहन सलमा के हाथ लग गया. तब खातून ने वह फोन किसी सहेली का बता कर पिंड छुड़ाया. खातून ने यह बात अब्बू को न बताने के लिए सलमा को राजी भी कर लिया.

खातून और राकेश की हरकतों को जान कर अख्तर बेचैन हो उठा. वह पूरी रात इसी उधेड़बुन में लगा रहा. आखिर उस ने यह बात टिल्लू खां को बताने का निश्चय कर लिया. सुबह उठने पर वह टिल्लू को बाहर ले गया और राकेश तथा खातून के बीच पक रही खिचड़ी उसे बता दी.

नाबालिग बेटी की हरकतें जान कर टिल्लू खां चौंका. इस के बाद दोनों ने पूरे मामले पर विचारविमर्श कर के फैसला लिया कि यह बात बड़े चौधरी लालचंद को बताई जाए. टिल्लू ने बहलाफुसला कर खातून से मोबाइल फोन ले कर उसे ईंट से चकनाचूर कर दिया.

अख्तर और टिल्लू खां उसी दिन लालचंद से मिले. उन्होंने कहा, “चौधरीजी, आप का लाडला राकेश मेरी नाबालिग खातून पर डोरे डाल रहा है. वह उस पर गंदी नजर रखता है. हुजूर, मेरी बेटी के साथ कुछ गलत हो गया तो मैं गरीब आदमी बरबाद हो जाऊंगा. आप उसे रोकिए अन्यथा बरबादी की आंच से आप का परिवार भी नहीं बचेगा.”

टिल्लू खां के मुंह से बेटे की करतूतें सुन कर लालचंद को भी चिंता हुई. उन्होंने दोनों को कुछ करने का आश्वासन दे कर भेज दिया.

लालचंद से शिकायत के बाद भी राकेश के व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई. दीपावली नजदीक आ गई थी. मजदूर टिल्लू खां की इतनी औकात नहीं थी कि वह परदेश में चौधरी के परिवार से कोई पंगा लेता. इसलिए टिल्लू और अख्तर ने अपने गांव लौटने में ही अपनी भलाई समझी.

इस के बाद अख्तर और टिल्लू खां ने राकेश से कहा, “भैया, अब दीवाली नजदीक आ गई है. अब हम गांव जाना चाहते हैं, इसलिए हमारी अब तक की मजदूरी का हिसाब कर दो.”

राकेश ने सभी मजदूरों का हिसाब कर दिया. हिसाब हो जाने के बाद मजदूरों ने जाने की तैयारी कर ली.

हिसाब होने व गांव जाने की बात की जानकारी खातून को हुई तो वह परेशान हो उठी. वह राकेश को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना चाहती थी. राकेश के साथ भले ही उस का विधिवत निकाह नहीं हुआ था, पर राकेश ने उसे पत्नी बना रखा था. उसे मंगलसूत्र भी पहनाया था.

खातून के पास राकेश से बात करने का सहारा मोबाइल था, जिसे उस के अब्बा ने ले कर तोड़ दिया था. अब उस के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वह राकेश से मिल कर मन की बात कहती.

उस की नजर में एक ही रास्ता था कि वह तुरंत राकेश से मिल कर इस विषय पर बात करे. एक दिन घर वालों से छिप कर वह राकेश के खेतों की ओर निकल गई. रास्ते में उसे आत्माराम मिला तो उस ने कहा, “अंकल, प्लीज अपना मोबाइल दे दीजिए. मुझे अब्बू से जरूरी बात करनी है.”

आत्माराम ने उसे अपना फोन दे दिया. थोड़ा सा अलग हट कर खातून ने राकेश का नंबर मिला दिया. राकेश ने फोन रिसीव किया तो खातून बोली, “रौकी, मैं नरमा के खेत में जा रही हूं. इस समय मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं. मुझे अब्बू गांव ले जाना चाहते हैं, पर मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. तुम तुरंत मुझ से मिलो, नहीं मिले तो तुम्हें पछताना पड़ेगा.”

खातून की चेतावनी सुन कर राकेश सन्न रह गया. वह जानता था कि खातून जिद्दी है, बिना सोचेसमझे वह किसी भी हद तक जा सकती है. वह उस के खिलाफ कोर्टकचहरी भी जा सकती है.

पुलिस और कानूनी काररवाई की बात जेहन में आते ही राकेश परेशान हो उठा. उस का दिमाग घूम गया. परेशानी के इस आलम में उस ने अपने बड़े भाई कुलदीप को बुला लिया.

दोनों भाइयों ने इस जटिल मुद्दे पर बात की, लेकिन उन्हें कोई राह नहीं सूझी. तब राकेश ने अपने जिगरी दोस्तों अशोक और पूनम शर्मा को खेत में बुला लिया. चारों राकेश के गले आ पड़ी इस परेशानी का तोड़ ढूंढने में जुट गए. अंत में चारों ने परेशानी की मूल खातून को ही मिटाने का भयानक निर्णय ले लिया. उन्होंने इस का तरीका भी खोज लिया.

योजना को अंजाम देने के लिए राकेश ने अशोक को भेज कर अपने एक अन्य दोस्त दीनदयाल जाखड़ की बोलेरो जीप मंगवा ली. इस के बाद राकेश ने नरमा के खेत में खातून को आवाज दे कर कोठा पर बुला लिया. वहां 3 अन्य लोगों को देख कर खातून घबरा गई.

राकेश ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “घबराओ मत खातून, ये तीनों मेरे अपने हैं. आज मैं इन की मौजूदगी में तुम से शादी करूंगा. यहां तुम्हारे घर वाले आ सकते हैं, इसलिए दूसरी जगह चलने के लिए गाड़ी मंगवा ली है. आगे वाले गांव में शादी की पूरी व्यवस्था मैं ने करवा ली है, वहीं चल कर शादी कर लेंगे.”

तब तक अंधेरा घिर चुका था. शादी की बात सुन कर खातून बहुत खुश हुई. अंजाम से अंजान खातून खुशीखुशी चारों के साथ बोलेरो में सवार हो गई. अशोक ने गाड़ी एशिया की सब से लंबीचौड़ी इंदिरा गांधी नहर की पटरी पर दौड़ा दी.

लाखुवाली हैड के नजदीक सुनसान पटरी पर चारों ने गाड़ी रोकी. गाड़ी में रखी रस्सी से उन्होंने खातून के हाथपांव बांध दिए और किसी बंडल की तरह उसे नहर में उछाल दिया. मौत को सामने देख खातून रोईगिड़गिड़ाई और असफल विरोध भी किया, पर नौजवानों के आगे भला वह क्या कर सकती थी. नहर में गिरते ही वह अथाह जल में समा गई.

उधर घर में खातून के न मिलने से सभी घबरा गए. सांझ ढलने तक उस के न लौटने पर टिल्लू और अख्तर गांव की पुलिस चौकी पहुंचे और राकेश पर बेटी को भगाने का शक जाहिर करते हुए एक तहरीर दे दी.

वहां उन की बात नहीं सुनी गई तो वे थाना पीलीबंगा पहुंचे और वहां बेटी के अगवा करने का आरोप लगाते हुए राकेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

नाबालिग बच्ची का मामला था, वह भी सुदूर जिला की रहने वाली थी. मामला काफी संवेदनशील था. इसलिए मामले की जानकारी मिलते ही युवा पुलिस अधीक्षक गौरव यादव ने थानाप्रभारी विजय कुमार मीणा को मामले का खुलासा करने का आदेश दे दिया.

प्रभावी काररवाई का भरोसा मिलने पर रोताबिलखता मजदूर टोला भरतपुर लौट गया. विजय कुमार मीणा ने एएसआई प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में कांस्टेबल अमर ङ्क्षसह, ओम नोखवाल, अमनदीप, लक्ष्मण स्वामी और पीरूमल को शामिल किया गया.

मुखबिर द्वारा पता चला कि राकेश और उस के 3 साथी गांव से लापता हैं, इस से ये चारों शक के दायरे में आ गए. मुखबिरों से यह भी पता चला था कि खातून ने आत्माराम के मोबाइल से राकेश से बात की थी. डीएसपी नारायण दान रतनू भी पुलिस काररवाई पर नजर रख रहे थे.

पुलिस को कोई सफलता मिलती, इस से पहले ही नहर से सटे थाना रावला की पुलिस ने नहर से 14-15 साल की एक लड़की की लाश बरामद की. लाश की शिनाख्त के लिए भरतपुर से टिल्लू खां और उस की बेगम को बुलवा लिया गया. मृतक लड़की के पैरों में 6-6 अंगुलियां होने से मांबाप ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी खातून के रूप में कर दी.

मुखबिरों की इत्तला पर पुलिस ने राकेश को पकड़ लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के साथियों के नाम बता दिए. पुलिस ने पीलीबंगा के मुंसिफ कोर्ट में उसे पेश कर पूछताछ के लिए 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

इस बीच पुलिस ने कुलदीप, राकेश, अशोक और पूनम शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी से विस्तार से पूछताछ कर के उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बर्फ : एक दिलचस्प इतिहास

गरमी के मौसम में ठंडीठंडी बर्फ सभी को प्यारी लगती है. बर्फ की बदौलत ही लस्सी, शीतलपेय, आइसक्रीम का स्वाद ठंडाठंडा और मजेदार हो जाता है. आज के दौर में तो फ्रिज की बदौलत घरघर में बर्फ मिल जाती है. एक समय ऐसा भी था जब गरमी के दिनों में बर्फ की बड़ी कद्र की जाती थी. उसे सोने की तरह कीमती समझा जाता था.

हमारे देश में कृत्रिम बर्फ की सिल्लियों का आगमन आज से 180 साल पहले हुआ था. 23 मार्च, 1830 को जब बर्फ की सिल्लियों की पेटियां कोलकाता बंदरगाह पर उतरीं तो इन का गरमजोशी से स्वागत हुआ. कई लोगों ने बर्फ आगमन की खुशी में घरघर दीप जला कर खुशियां मनाईं, एकदूसरे को इत्र लगा कर और जगहजगह मिठाइयां बांटी.

पहली बार आगमन

दरअसल, लोगों ने पहली बार कृत्रिम बर्फ को देखा था. वे बर्फ देख कर हैरान थे और एकदूसरे से पूछने लगे थे, “क्या यह बर्फ सातसमंदर पार के पेड़ों पर उगती है? यदि पेड़ों पर उगती है तो इस के बीज हमें भी अपने खेतों में बोने चाहिए.”

उस समय के कुछ बांगला, इंग्लिश व हिंदी के समाचारपत्रों ने बर्फ पर अपने संपादकीय भी लिखे थे. एक समाचारपत्र ने तो अपने बौक्स कौलम में यह भी छाप दिया, ‘बर्फ कुछ शरमा कर कन्याओं के स्वागत से पानीपानी हो गया.’

लार्ड विलियम वैटिक, जो उन दिनों भारत के गवर्नर जनरल थे, ने बर्फ रखने के लिए जमीन के अंदर स्पैशल कुएं खुदवाए ताकि बर्फ अधिक दिनों तक टिकी रहे. उन दिनों आयात की सब से बड़ी वस्तु बर्फ ही थी.

कोलकाता से जो पोत लद कर वापस अमेरिका गए उन में बोस्टन से बर्फ लाने वाले 46 पोत थे. फ्रैडरिक ट्यूडर का बर्फ का निर्यात उन दिनों इतना बढ़ गया था कि वे न्यू इंगलैंड के बर्फ सम्राट के रूप में मशहूर हो गए थे. 1855 में उस ने कोलकाता को 266 हजार टन बर्फ भेजी थी. यह बर्फ कैंब्रिज (अमेरिका) के फ्रैशपौंड नामक ताल में तैयार की जाती थी. पहले सिल्लियां यहां हाथ से बनाई जाती थीं. बाद में यह काम ऊर्जा से चलने वाले आइस कटर से लिया जाने लगा.

धन कमाने का जरिया

उन दिनों अखबारों में अमेरिकी बर्फ की तारीफ के पुल बंधे रहते थे. अमेरिका से बर्फ का आयात लार्ड विलियम बैटिंग के प्रमुख कारनामों में गिना जाता था. उस समय कई बुद्धिमान लोगों ने बर्फ से धन कमाने का एक तरीका भी खोजा था. उन्होंने लकड़ी के ऐसे हाउस बनाए जहां काले अक्षरों में ‘आओ, बर्फ को नजदीक से देखो, बर्फ देखने की कीमत आधा सेर चावल या आधा सेर चीनी’ लिखा होता था।

कई लोग बर्फ देखने के लिए इन हाउसों में चावल और चीनी ले कर आने लगे और हाथों से बर्फ को छूने भी लगे. लोग बर्फ को छू कर अपनेआप को धन्य समझते.

कुछ मनोरंजक तथ्य

उन दिनों लोग बर्फ का कितना मानसम्मान करते थे. इस सिलसिले के मनोरंजक तथ्य निम्र हैं :

• प्रेमी अपनी रूठी हुई प्रेमिका को मनाने के लिए बर्फ का टुकड़ा मखमल के रूमाल में लपेट कर दिया करता था ताकि प्रेमिका गुस्सा थूक कर बर्फ को बड़े प्यार से चूम सके. बाद में ‘किस’ की हुई इसी बर्फ को प्रेमी चूमता था. कहते हैं, उन दिनों प्रेम करने वाली लड़कियां बर्फ देख कर बहुत खुश हुआ करती थीं.

• अमीर लोग अपने शाहीभोज में बर्फ के टुकड़े भी शामिल करते थे. पत्तलों में पूड़ीसब्जी, मिठाइयों के साथसाथ बर्फ के टुकड़े भी परोसे जाते थे. बर्फ की चोरी करने वाले को 24 घंटे तक भूखेप्यासे ही जेल में रखा जाता था. छोङने पर उस से बर्फ की चोरी न करने का वचन लिया जाता था. उन दिनों कोलकाता के कई होटलों में बर्फ इतनी संभाल कर रखी जाती थी कि मानो वह सोना हो.

• कई होटलों में खाने की मेजें बर्फ के नन्हे टुकड़ों से चमकती थीं. मक्खन के प्यालों में भी बर्फ के टुकड़े तैरते थे. हां, पानीभरे कटोरे ऐसे लगते थे मानो वे छोटेछोटे आर्कटिक सागर हों और उन में ‘आइसबर्ग’ तैर रहे हों.
लोग जब बर्फ खरीद कर लाते थे तो कई लोग उन के घर बधाई देने आ जाया करते और कहा करते कि जरा, बर्फ की एक झलक हमें भी दिखा दो.

कमाल की चीज है पैट थेरेपी

आज थेरेपी का जमाना है. आजकल अनेक थेरेपियां पारंपरिक उपचारों की मुख्य धारा में आ मिली हैं. ये थेरेपियां सफलतापूर्वक रोगमुक्ति में सहायक सिद्ध हो रही हैं. इन में से एक है ‘पैट थेरेपी’ या पालतू जानवरों जैसे – खरगोश, कछुआ, तोता, गिलहरी वगैरह का एक ऐसा म्यूजियम बनाया गया है जहां से बच्चे कुछ निश्चित दिनों के लिए अपने मनपसंद जानवरों को अपने घर ले जाते हैं. उन से खेल कर, उन की देखभाल कर के, नन्हे बच्चे बहुत खुश होते हैं और यही खुशी उन के शारीरिक व मानसिक विकास को बढ़ावा देती है.

छोटे पालतूम जानवरों से सानिध्य से बीमार लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने की योजना वर्ष 1790 में इंगलैंड के सेनेटोरियम में शुरू की गई थी. आज स्थिति यह है कि वैज्ञानिकों को इस थ्योरी के ठोस प्रमाण लगातार मिल रहे हैं कि पालतू जानवरों के साथ खेलकूद व स्नेह के कारण हृदयगति सामान्य होती है. मौन रहने वाले लोग बातचीत करने लगते हैं, शैतान व सदैव अशांत रहने वाले बच्चे शांत हो जाते हैं.
4 साल की उम्र का एक बच्चा असामान्य था. वह चुपचाप घंटों बैठा रहता. उसे अपने आसपास बिखरे खिलौनों में जरा भी रूचि न थी. उस के परेशान मातापिता उसे ‘पैट थेरेपिस्ट’ के पास ले गए. थेरेपिस्ट अपने पालतू कुत्ते को क्लीनिक में ले आया. कुत्ते को देख कर हमेशा चुप रहने वाला अचानक बोला ‘टौमीटौमी.’ उस दिन के बाद से वह बच्चा न केवल कुत्ते के साथसाथ थेरेपिस्ट से भी खुल गया. लगभग 10 महीने के बाद वह सामान्य बच्चों की तरह बोलने, हंसने व खेलने लगा.

शायद इस के पीछे जानवरों का निश्चल प्यार ही होता है जो मनुष्यों को सहज बनाने में मदद करता है. जानवर न तो आप को जवाब देते हैं, न आप से झगड़ते हैं, न ही आप की आलोचना करते हैं और न ही आप पर रौब जमाते हैं. उन के यही सब गुण आप को अपरिमित आनंद देते हैं. अगर आप में से कुछ लोगों ने पालतू जानवर पाल रखेे हैं तो आप को निश्चित रूप से उन के सानिध्य में शारीरिक और मानसिक सुख अवश्य मिलता होगा और भौतिक जगत में अकेला होने पर भी आपको अकेलेपन का एहसास नहीं होता होगा.

कई बुजुर्ग दंपति, जिन के बच्चे उन के पास नहीं रहते, एक न एक पालतू जानवर पाल कर उसी की देखभाल में अपनी दिनचर्या समॢपत किए रहते हैं. बहुत सी फिल्मी हस्तियां रफी, बफी, सिल्की, शैडी, पैची वगैरह कुत्तों के साथ या किट्टू, परी, फरी, चिट्टी इत्यादि बिल्लियों के साथ मजे में पूरी ङ्क्षजदगी बिताती हैं. उन के दिनरात बीतते हैं. पालतू जनवरों की सूची में चिरपरिचित कुत्तों, बिल्लियों, तोतों, घोड़ों या खरगोशों के साथ ही साथ बड़े विकट अजीबोगरीब किस्म के जानवर जैसे – अजगर, मगरमच्छ, बिच्छू या रीछ भी होते हैं. हालांकि अब कई पर प्रतिबंध है.

विदेशों में ‘पैट थेरेपी’ पर काफ किया जा रहा है. इस के तहत जो तथ्य सामने आए हैं, वे यही स्पष्ट करते हैं कि पालतू जानवर आक्रामक मनोवृत्ति के इंसान को भी पालतू यानी आनाक्रामक बनाने में सहायक होते हैं. इस के अतिरिक्त मानसिक रूप से परेशान बच्चे या भावनात्मक स्तर पर तनाव झेलते बच्चे, जानवरों के संग साथ में, अपना दुख भूल कर उन के साथ सहज कर हंसतेखेलते हैं. राकुमार सिद्धार्थ के रूप में भाई के बाग से आहत हंस की सेवा सुश्रवा कर के गौतम बुद्ध ने बालकाल में ही शांति और अङ्क्षहसा का संकेत दे दिया था. दलदल में फंसी बग्घी के थके घोड़ों को सहारा दे कर बाहर निकालने वाले अमेरिका के महान राष्ट्रपति अब्राहम ङ्क्षलकन का भी यही संदेश था कि पशु हमारे मित्र हो सकते हैं. इन के निस्वार्थ स्नेह का हमें आदर सम्मानकरना चाहिए.

डाक्टरों के अनुसार पशु न केवल मनोवैज्ञानिक लाभ देते हैं. बल्कि इन के सानिध्य में हृदयगति भी असामान्य से सामान्य होती पाई गई है. कहते कि पालतू जानवर पालने वाले हृदयरोगी दूसरों की अपेक्षा अधिक दिन जीवित रहते हैं. यह भी देखा गया है कि जिन के घरों में पशुपक्षी होते हैं और जो उन्हें सच्चा स्नेह देते हैं, वे कम बीमार पड़ते हैं. निश्चित रूप से आने वाली सदी में पालतू जानवरों का सानिध्य रोगियों के लिए एक सस्ता उपचार साबित होगा. हमारा पाठकों से अनुरोध है कि वे अपने बच्चों को एक छोटा जानवर पालने से न रोकें. विकास की प्रक्रिया में पशुपक्षी का यह प्रेम निश्चित रूप से उन्हें मदद करेगा. जो बच्चे जानवर पालते हैं, वे उन की देखभाल कर के शुरू से ही दूसरों की जिम्मेवारी उठाने का पाठ सहज ही सीख जाते हैं. जो स्नेही एवं उदार होते हैं, वे ही जानवर पाल सकते हैं. अपने प्रिय जानवर को समय पर पूरा खाना देना, उसे नहलाना, साफ करना, उस के रहने की तथा खाने के बतरनों की सफाई, उस के स्वास्थ्य की ङ्क्षचता करना, उसे प्रतिदिन टहलाना, उस से बातें करना व खेलना. यही सभी क्रियाकलाप बच्चे को अनुशासित व जवाबदेह बनाते हैं.

कामकाज से थक कर लौटने पर, घर में घुसते ही अपने पालतू पशुपक्षी का हर्षोन्माद, उस की आंखों से प्यार से भरा स्वागत और निश्चल प्रेम पा कर थकान काफूर हो जाती है. भारत का अवसाद पल भर में दूर हो जाता है. वह भी साल के 365 दिन ऐसा आप के अपने बच्चे या घर के अन्य सदस्य भी नहीं कर सकते.

टमाटर की वजह से नाराज हुई बीवी तो पति पहुंचा थाने, हुआ हाई वोल्टेज ड्रामा

सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन यह सोलह आने सच है कि एक तरफ जहां टमाटर की महंगाई ने सब की जेब टाइट कर रखी है, वहीं एमपी के शहडोल में टमाटर के लिए नाराज हो कर बीवी घर छोड़ कर चली गई.

कह सकते हैं कि टमाटर ने पतिपत्नी के बीच दीवार खड़ी कर दी है. पति ने सब्जी में महंगा टमाटर डाला तो बीवी को गुस्सा आ गया. गुस्साई बीवी पति का घर छोड़ कर चली गई.

दरअसल, संजू टिफिन सर्विस का काम करते हैं. उन्होंने सब्जी में टमाटर डाला तो बीवी नाराज हो गई. संजू अपनी बीवी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे तब जा कर मामले का खुलासा हुआ.

टमाटर ने पहुंचाया थाना

टमाटर के बढ़ते दामों ने लोगों की रसोई का बजट तो बिगड़ ही दिया है, लेकिन यह महंगे टमाटर अब लोगों के पारिवारिक जीवन पर भी असर डाल रहा है. लोग टमाटर खरीदने से पहले 100 क्या 200 बार सोच रहे हैं.

लगातार बढ़ती टमाटर की कीमतों से न सिर्फ आम लोग प्रभावित हैं, बल्कि लोगों के पारिवारिक जीवन पर भी इस का सीधा असर हुआ है.

शहडोल जिले के धनपुरी थाना क्षेत्र के ग्राम बेमहौरि के रहने वाले संजीव कुमार वर्मा के पारिवारिक जीवन में टमाटर के चलते सीधा असर देखने को मिला. दरअसल, सब्जी में संजीव ने महंगा टमाटर डाल दिया, जोकि उन की बीवी को इतना नागवार गुजरा की वह नाराज हो कर अपने पति का घर छोड़ कर चली गई, जिस से अब उन के पति इस बात की शपथ ले रहे हैं कि वे कभी भी टमाटर का उपयोग नहीं करेंगे.

गुस्से से घर छोङ दी बीवी

संजीव ने टमाटर के चलते नाराज हो कर घर छोड़ कर चली गई बीवी की तलाश में पुलिस से मदद की गुहार लगाते हुए धनपुरी थाने में शिकायत दर्ज कराई है.

दरअसल, संजीव वर्मा एक छोटा सा ढाबा चलाते हैं, साथ ही टिफिन का भी काम करते हैं। 2 दिन पहले उन्होंने अपनी बीवी से बिना पूछे खाने में 3 टमाटर डाल दिए जिस से पत्नी आगबबूला हो गई. पति लगातार अपनी इस गलती के लिए बीवी से मिन्नतें करता रहा लेकिन बीवी ने एक न सुनी और घर छोड़ कर चली गई। अब जब संजू को टमाटर की उन के जीवन में कितनी अहमियत है, यह बात समझ आई तो वे कसम खा चुके हैं कि चाहे ग्राहक बिदक जाएं मगर जीवन में कभी भी टमाटर का प्रयोग सब्जी में नहीं करेंगे.

मामले पर थाना प्रभारी ने क्या कहा?

इस पूरे मामले में धनपुरी थाना प्रभारी संजय जायसवाल का कहना है,”थाने में पति ने शिकायत की है कि उस की पत्नी टमाटर के चलते पति का घर छोड़ कर चली गई… शिकायत के आधार पर पत्नी को समझा दिया गया है, वह जल्द ही घर वापस आ जाएगी.

‘गदर 2’ की एक्ट्रेस Simrat Kaur को लोगों ने किया ट्रोल, अमीषा पटेल ने दिया जवाब

Ameesha Patel Tweet : बॉलीवुड एक्टर सनी देओल और अमीषा पटेल स्टारर ‘गदर 2’ इन दिनों काफी सुर्खियों में बनी हुई हैं. हालही में इस फिल्म के डायरेक्टर अनिल शर्मा और एक्ट्रेस अमीषा के बीच इसी मूवी को लेकर विवाद भी हुआ था. अमीषा ने अनिल शर्मा पर आरोप लगाया था कि उन्होंने ‘गदर 2’ के सेट पर लोगों के साथ भेदभाव किया है. हालांकि अब एक्ट्रेस ने ट्विटर पर उन फैंस को करारा जवाब दिया है, जो फिल्म में एक्ट्रेस सिमरत कौर (Simrat Kaur) की स्क्रीन प्रेजेंस को लेकर उन्हें ताने मार रहे हैं.

जानें क्यों ट्रोल्स के निशाने पर आई एक्ट्रेस?

‘गदर 2’ में एक्ट्रेस सिमरत उत्कर्ष शर्मा के अपोजिट और अमीषा-सनी देओल की बहू का किरदार निभा रही हैं. दरअसल सिमरत (Simrat Kaur) ने इससे पहले एक बी ग्रेड फिल्म में बोल्ड सीन्स किए थे, जिसकी वीडियो और फोटो शेयर कर फैंस उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने सिमरत की पुरानी तस्वीर को शेयर कर कैप्शन में लिखा, ‘अमीषा मैम, हम सनी सर के फैन हैं और हम उस लड़की सिमरत की इन सभी घटिया फोटोज और वीडियोज को देखकर गुस्से में हैं. जब उन्होंने इतना घटिया काम किया है, तो अनिल शर्मा सर ने उन्हें ‘गदर 2’ जैसी साफ-सुथरी फिल्म में कास्ट क्यों किया?

हालांकि इस ट्वीट का जवाब अमीषा (Ameesha Patel) ने खुद दिया है. उन्होंने इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा, ‘अरे मेरे प्यारे फैंस, कृपया यह सब बंद कर दीजिए!! आपसे विनम्र अनुरोध है कि 11 अगस्त को सिनेमाघरों में गदर 2 देखें और इसे अपना प्यार दें.’

अमीषा ने किया सिमरत का बचाव

इस ट्वीट के बाद अमीषा (Ameesha Patel) ने एक और ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, ‘दूसरे दिन की पूरी शाम सिमरत कौर (Simrat Kaur) के आसपास की निगेटिविटी का बचाव करते हुए बिताई, जो फिल्न गदर 2 में उत्कर्ष शर्मा के साथ हैं.’ इसके आगे उन्होंने लिखा, ‘एक लड़की होने के नाते मैं आप सभी लोगों से अनुरोध करती हूं कि केवल पॉजिटिविटी फैलाएं और किसी भी लड़की को शर्मिंदा न करें. आइए नए टैलेंट्स को प्रोत्साहित करें.’

इस दिन रिलीज होगी फिल्म

आपको बता दें कि ‘गदर 2’ एक एक्शन-ड्रामा फिल्म है, जिसका निर्देशन अनिल शर्मा ने किया है. वहीं इस फिल्म को शक्तिमान तलवार ने लिखा है, जिसमें ‘गदर: एक प्रेम कथा’ के आगे की कहानी को दिखाया जाएगा. इसमें सनी देओल और अमीषा पटेल (Ameesha Patel) के साथ-साथ उत्कर्ष शर्मा व सिमरत कौर लीड रोल्स में हैं. ये फिल्म 11 अगस्त को बड़े पर्दे पर रिलीज होगी.

अक्षय कुमार की ‘OMG 2’ पर चलेगी कैंची, आदिपुरुष के बाद कड़क हुआ सेंसर बोर्ड!

OMG 2 : लंबे समय से बॉलीवुड की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी हैं. जहां कुछ फिल्मों की कहानी न तो फैन्स के दिलों में जगह बना पाई. तो वहीं कई बड़े स्टार्स भी लोगों का दिल जीतने में असफल रहें, जिसके कारण मेकर्स को काफी भारी नुकसान उठाना पड़ा. इसलिए मेकर्स अपनी फिल्मों को चलाने के लिए उनमें कुछ ऐसे सीन्स व डायलॉग्स ड़ाल देते है, जिससे वो विवादों में घिर जाएं और लोग उसे देखने के लिए सिनेमाघरों तक खीचे चले आए.

हालांकि इनमें से कई फिल्मों पर सेंसर बोर्ड ने अपनी कैंची भी चलाई है. द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी, 72 हूरें और आदिपुरुष जैसी कई फिल्मों पर सेंसर बोर्ड ने अपना फैसला सुनाया है. वहीं अब इस लिस्ट में अक्षय कुमार की फिल्म ‘ओएमजी 2’ (OMG 2) का नाम भी शामिल होने जा रहा है.

रिलीज से पहले अक्षय की फिल्म पर गिरी गाज!

दरअलव, जल्द ही खिलाड़ी कुमार की फिल्म ‘ओएमजी 2’ (OMG 2) बड़े पर्दे पर दस्तक देने वाली हैं. फिल्म का टीजर वीडियो जारी किया जा चुका है, जिसे दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है. लेकिन कुछ लोगों को ये टीजर पसंद नहीं आया है. इसमें एक सीन है, जिसमें भगवान शिव का अभिषेक ट्रेन के पानी से हो रहा है. इस सीन को देखने के बाद यूजर्स बुरी तरह से भड़के हुए हैं. उनका कहना है कि इससे उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है. इसलिए अब ओएमजी 2 को लेकर सेंसर बोर्ड भी सतर्क हो गया है.

जहां पहले खबर आई थी कि इस फिल्म की रिलीज डेट पर रोक लगा दी गई है, तो वहीं अब कहा जा रहा है कि फिल्म को सर्टिफिकेट देने से पहले इसे रिव्यु कमेटी को दिखाया जाएगा.

रिव्यु कमेटी करेगी ‘ओएमजी 2’ की जांच

आपको बता दें कि, अक्षय की अपकमिंग फिल्म ‘ओएमजी 2’ धर्म और ईश्वर से जुड़े तत्वों पर आधारित है. इसलिए सीबीएफसी ने फैसला किया है रिलीज करने से पहले इस फिल्म (OMG 2) को रिव्यु कमेटी को दिखाया जाएगा और फिलहाल 11 अगस्त को फिल्म रिलीज नहीं होगी.

गौरतलब है कि सेंसर बोर्ड ने ये फैसला प्रभास, कृति सेनन और सैफ अली खान स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ की रिलीज के बाद हुए बवाल को देखते हुए लिया है. दरअसल, ‘आदिपुरुष’ के कुछ सीन और डायलॉग से लोगों की भावना आहत हुई थी, जिसके बाद देशभर में इस फिल्म को लेकर विवाद हुआ था. ऐसे में सेंसर बोर्ड ने सर्तकता दिखाते हुए ये फैसला लिया है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें