आज थेरेपी का जमाना है. आजकल अनेक थेरेपियां पारंपरिक उपचारों की मुख्य धारा में आ मिली हैं. ये थेरेपियां सफलतापूर्वक रोगमुक्ति में सहायक सिद्ध हो रही हैं. इन में से एक है ‘पैट थेरेपी’ या पालतू जानवरों जैसे - खरगोश, कछुआ, तोता, गिलहरी वगैरह का एक ऐसा म्यूजियम बनाया गया है जहां से बच्चे कुछ निश्चित दिनों के लिए अपने मनपसंद जानवरों को अपने घर ले जाते हैं. उन से खेल कर, उन की देखभाल कर के, नन्हे बच्चे बहुत खुश होते हैं और यही खुशी उन के शारीरिक व मानसिक विकास को बढ़ावा देती है.

छोटे पालतूम जानवरों से सानिध्य से बीमार लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने की योजना वर्ष 1790 में इंगलैंड के सेनेटोरियम में शुरू की गई थी. आज स्थिति यह है कि वैज्ञानिकों को इस थ्योरी के ठोस प्रमाण लगातार मिल रहे हैं कि पालतू जानवरों के साथ खेलकूद व स्नेह के कारण हृदयगति सामान्य होती है. मौन रहने वाले लोग बातचीत करने लगते हैं, शैतान व सदैव अशांत रहने वाले बच्चे शांत हो जाते हैं.
4 साल की उम्र का एक बच्चा असामान्य था. वह चुपचाप घंटों बैठा रहता. उसे अपने आसपास बिखरे खिलौनों में जरा भी रूचि न थी. उस के परेशान मातापिता उसे ‘पैट थेरेपिस्ट’ के पास ले गए. थेरेपिस्ट अपने पालतू कुत्ते को क्लीनिक में ले आया. कुत्ते को देख कर हमेशा चुप रहने वाला अचानक बोला ‘टौमीटौमी.’ उस दिन के बाद से वह बच्चा न केवल कुत्ते के साथसाथ थेरेपिस्ट से भी खुल गया. लगभग 10 महीने के बाद वह सामान्य बच्चों की तरह बोलने, हंसने व खेलने लगा.

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