गरमी के मौसम में ठंडीठंडी बर्फ सभी को प्यारी लगती है. बर्फ की बदौलत ही लस्सी, शीतलपेय, आइसक्रीम का स्वाद ठंडाठंडा और मजेदार हो जाता है. आज के दौर में तो फ्रिज की बदौलत घरघर में बर्फ मिल जाती है. एक समय ऐसा भी था जब गरमी के दिनों में बर्फ की बड़ी कद्र की जाती थी. उसे सोने की तरह कीमती समझा जाता था.

हमारे देश में कृत्रिम बर्फ की सिल्लियों का आगमन आज से 180 साल पहले हुआ था. 23 मार्च, 1830 को जब बर्फ की सिल्लियों की पेटियां कोलकाता बंदरगाह पर उतरीं तो इन का गरमजोशी से स्वागत हुआ. कई लोगों ने बर्फ आगमन की खुशी में घरघर दीप जला कर खुशियां मनाईं, एकदूसरे को इत्र लगा कर और जगहजगह मिठाइयां बांटी.

पहली बार आगमन

दरअसल, लोगों ने पहली बार कृत्रिम बर्फ को देखा था. वे बर्फ देख कर हैरान थे और एकदूसरे से पूछने लगे थे, "क्या यह बर्फ सातसमंदर पार के पेड़ों पर उगती है? यदि पेड़ों पर उगती है तो इस के बीज हमें भी अपने खेतों में बोने चाहिए."

उस समय के कुछ बांगला, इंग्लिश व हिंदी के समाचारपत्रों ने बर्फ पर अपने संपादकीय भी लिखे थे. एक समाचारपत्र ने तो अपने बौक्स कौलम में यह भी छाप दिया, ‘बर्फ कुछ शरमा कर कन्याओं के स्वागत से पानीपानी हो गया.’

लार्ड विलियम वैटिक, जो उन दिनों भारत के गवर्नर जनरल थे, ने बर्फ रखने के लिए जमीन के अंदर स्पैशल कुएं खुदवाए ताकि बर्फ अधिक दिनों तक टिकी रहे. उन दिनों आयात की सब से बड़ी वस्तु बर्फ ही थी.

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