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Nana Patekar को Welcome 3 में क्यों नहीं किया गया कास्ट? वजह कर देगी हैरान

Nana Patekar On Welcome 3 : हिन्दी सिनेमा के जाने माने चेहरे नाना पाटेकर (Nana Patekar) ने दशकों से लोगों के दिलों में राज किया हैं. उनकी दमदार एक्टिंग के लोग आज भी मुरीद है. अब जल्द ही एक्टर फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) में नजर आएंगे. इस फिल्म में वह एक साइंटिस्ट का किरदार निभा रहे हैं.

बीते दिनों फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ का ट्रेलर लॉन्च इवेंट रखा गया था. जहां उन्होंने बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) पर जमकर अपनी भड़ास निकाली है. हाल ही में अक्षय कुमार और दिशा पाटनी स्टारर ‘वेलकम टू द जंगल यानी वेलकम 3’ का टीजर जारी किया गया, जिसमें ना तो उदय शेट्टी यानी नाना पाटेकर और ना ही मजनू भाई यानी अनिल कपूर नजर आए.

नाना पाटेकर- हम पुराने हो गए

हालांकि जब ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) के ट्रेलर लॉन्च के दौरान नाना पाटेकर से ‘वेलकम 3’ में उनका हिस्सा न बनने पर सवाल किया गया. तो उनके जवाब से भी ऐसा लगा कि वो मेकर्स के फैसले से खुश नहीं हैं. दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने जब एक्टर से पूछा कि, “आप फिल्म ‘वेलकम 3’ का हिस्सा क्यों नहीं हैं?” तो इस पर नाना पाटेकर (Nana Patekar On Welcome 3) ने बेबाकी से जवाब देते हुए कहा, “उनको लगता है कि हम पुराने हो गए. इसलिए शायद उन्होंने हमें फिल्म में नहीं लिया. इनको लगता है कि अभी हम पुराने नहीं हुए. इसलिए इन्होंने हमें ले लिया. यह बहुत ही सिंपल सी बात है”.

जानें आगे एक्टर ने क्या कहा ?

इसी के साथ एक्टर (Nana Patekar On Welcome 3) ने ये भी कहा कि, ‘कभी भी आपके लिए इंडस्ट्री बंद नहीं होती है अगर आप अच्छा काम करना चाहते हैं. लोग आएंगे, आपको पूछेंगे. इसलिए आपको यह समझना चाहिए कि आप करना चाहते हैं या कर सकते हैं. मैं ये समझता हूं कि यह मेरा पहला चांस है या आखिरी चांस है, उतनी ही आपको जान डालनी चाहिए.’ साथ ही नाना पाटेकर ने ये भी कहा कि, “हर किसी को काम मिलता है यह तो बस आपके ऊपर है कि आप करना चाहते हैं कि या नहीं.”

आपको बता दें कि अभी तक फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) के मेकर्स का नाना पाटेकर के बयान पर कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

‘हमारे पास उच्च शिक्षा और अच्छे इंस्टिट्यूट से डांस की ट्रेनिंग लेने की क्षमता नहीं रही’- अचिंत्य बोस

आपदा को अवसर बना लेने वाले लोग ही हमेशा अनूठी सफलता हासिल कर सकते हैं. यह कटु सत्य है. हम अकसर सुनते हैं कि किसी वाचमैन की बेटी या सब्जी बेचने वाले या रिकशा चलाने वाले के बेटे या बेटी ने आईएएस या ‘नीट’ में सर्वोच्च स्थान पा लिया है.

जी हां, ऐसा होता है. तभी तो अच्छी शिक्षा हासिल करने के पैसे न होने पर भी अंचित्य बोस ने नृत्य में ऐसी महारत हासिल की कि उसे किशोरवय में ही सूनी तारापोरवाला ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म ‘ये बैले’ में नृत्य व अभिनय करने का ऐसा अवसर प्रदान किया कि उस ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली.

अचिंत्य बोस के अभिनय से सजी फिल्म ‘ये बैले’ फरवरी 2020 से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. तो वहीं सूनी तारापोरवाला निर्देशित नृत्यप्रधान वैब सीरीज में भी अचिंत्य बोस ने अभिनय किया है जोकि बहुत जल्द नेटफ्लिक्स पर ही स्ट्रीम होगी. यों तो अचिंत्य बोस को अब ‘हिप हौप’, ‘जौज’ और ‘बैले’ नृत्य में महारत हासिल हो चुकी है मगर पश्चिमी नृत्य में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उन्होंने अमेरिका के कैला आर्ट्स इंस्टिट्यूट में प्रवेश लिया है.

वहां की फीस दे पाना उन के वश की बात नहीं है, इसलिए वे ‘क्राउड फंडिंग’ कर धना जुटा रहे हैं. वैसे, उन्हें आंशिक छात्रवृत्ति मिल चुकी है. अचिंत्य बोस की परवरिश उन की ‘सिंगल मदर’ ने किया है. आपदा में ही अवसर तलाशते, संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे अचिंत्य बोस से हम ने बातचीत की.

बचपन में आप की नृत्य के प्रति रुचि कैसे पैदा हुई थी?

आप यह कह सकते हैं कि मेरी परवरिश अभावों के बावजूद संगीत व नृत्य के माहौल में हुई है. मेरी मां अनुपमा बोस, जोकि ‘सिंगल पेरैंट्स’ हैं, कत्थक, उड़ीसी व भरतनाट्यम इन 3 क्लासिकल आर्ट फौर्म में माहिर हैं. तो घर के अंदर हमेशा डांस का ही माहौल रहा. हमेशा डांस को ले कर ही चर्चाएं होती रहती हैं. मेरे नाना नितीश कुमार बोस और नानी नमिता बोस बंगाली माहौल में पैदा होने के कारण उन्हें भी इंडियन डांस व संगीत में रुचि है. मेरी परवरिश नानानानी के अलावा मां के साथ ही हुई है. इस वजह से मेरे अंदर भी नृत्य के प्रति रुचि पैदा हुई.

सच तो यह है कि मैं ने गायन से शुरुआत की थी, पर गायन से नृत्य तक आ गया. पहले हम ने स्कूल में दोस्तों के साथ एक डांस ‘स्टेप अप’ देखा था, जिस की प्रैक्टिस दोस्तों के साथ करनी शुरू की थी. फिर मैं मुंबई आ गया. यहां मैं ने नृत्य निर्देशक अशेलो लोबो की कंपनी ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा. वहां पर मैं ने डांस की ट्रेनिंग ली. उस के बाद वहीं पर दूसरे बच्चों को डांस सिखाने भी लगा.

मैं ने सुना है कि आप ने नृत्य का प्रशिक्षण लिया था?

जी, यह भी सच है. शुरुआत में मैं ने तीनचार साल तक कोलकाता में रह कर देवाशीष देव से भारतीय शास्त्रीय संगीत की कुछ ट्रेनिंग जरूर ली थी. इस के अलावा प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय गायन सीखा था. लेकिन मैं ने संगीत या गायन के क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं किया.

मतलब?

जब मैं शास्त्रीय संगीत व शास्त्रीय गायन की शिक्षा ले रहा था तभी स्कूल में दोस्तों के साथ मेरी ‘स्टेप अप’ डांस की प्रैक्टिस भी जारी ही थी. हम ने अपने दोस्तों के साथ स्कूल टीम बना रखी थी. उन दिनों मैं डेनियल मार्टिन सहित कई मशहूर डांसरों के वीडियो भी देखता रहता था. इन डांसरों के यूट्यूब वीडियो देख कर मैं सीख रहा था. इसी तरह डांस में मेरी रुचि बढ़ती गई.

आज आप ने जो सफलता हासिल की है उस में आप की मां का बहुत बड़ा योगदान रहा होगा?

बिना मां की मदद के मैं कुछ नहि कर सकता था. बचपन में मैं कोलकाता में रहता था. मेरी मां मुबई शहर में रहती थीं. जब वे कोलकाता जाती थीं तब वे मेरे साथ गाते समय बैठती थीं. उस वक्त वे डांस के भी टिप्स दिया करती थीं. वे थोड़ाबहुत गानाबजाना करा देती थीं. तो मैं कुछ सीखता गया. इसी तरह मैं ने उन से ही तबला वादन भी सीखा. जहां तक डांस का सवाल है तो मेरी मां ने मुझे अपने सपनों को फौलो करना सिखाया. मुझे उन का मार्गदर्शन पलपल मिलता रहता है.

मुंबई आने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?

मेरी मां एक सिंगल मदर हैं, जिस के चलते उन की जिंदगी में तमाम उतारचढ़ाव आए, जिन का असर गाहेबगाहे मुझ पर भी पड़ता रहा. हमारी जिंदगी में कुछ भी आसान तो नहीं रहा पर मेरा और मेरी मां का मानना है कि जीवन संघर्ष का ही नाम है. हम ने कुछ दिन ऐसे भी देखे हैं जब हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पर हम ने हार नहीं मानी. मेहनत करते रहे. आखिरकार, यहां तक पहुंच गए. मेरी मम्मी हमेशा कहती हैं कि हमारा घर प्यार व मेहनत का घर है.

हर दिन अच्छा नहीं होता. यह बात तो हर इंसान के साथ लागू होती है. मेरा संघर्ष इसलिए भी रहा क्योंकि हमारी पृष्ठभूमि अलग है और हम आर्थिक रूप से इतना सक्षम भी नहीं रहे कि हम अच्छे से अच्छे स्कूल में जा कर पढ़ाई कर पाते.

डांस की ट्रेनिंग बेहतरीन संस्थान से लेने की ताकत हमारे नहीं रही. हम तो सीखने के साथ ही सिखाने का काम भी करते आए हैं. हम ने बारबार स्कौलरशिप के लिए हाथ फैलाया. दूसरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ी. मेहनत के बल पर हम जितना सीख सकते थे, वह सब हम सीखते रहे. मैं बैले व टैंपरेरी डांस टीचर का सहायक भी था. अभी भी मैं डांस की कुछ क्लासेस लेता हूं. 5 वर्ष तक डांस जगत में अति कठिन मेहनत करने के बाद मुझे महज 16 वर्ष की उम्र में सूनी तारापोरवाला की फिल्म ‘यह बैले’ मिली जो कि ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही है.

सूनी तारापोरवाला ने फिल्म ‘यह बैले’ के लिए आप का चयन किस तरह से किया था?

मैं ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा हुआ था. और वहीं के एक शिक्षक येहुदा मेअर और उन के 2 डांस के शिष्य अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण की ही कहानी पर यह फिल्म है. येहुदा और सोनी मैम एकदूसरे से परिचित थीं. पहले इस फिल्म में अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण ही अभिनय करने वाले थे पर अमिरुद्ध शाह लंदन में फंस गया था, इसलिए उस की जगह उस का किरदार निभाने के लिए येहुदा की ही सलाह पर सोनी मैम ने मेरा चयन किया था. वास्तव में मेरा वार्षिक शो चल रहा था, तब येहुदा के ही कहने पर सोनी मैम मेरा डांस शो देखने आई थीं.

मेरा डांस का शो खत्म हुआ तो उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा कि अभिनय करते हो? तब मैं ने सच बता दिया कि मैं अभिनय नहीं करता लेकिन मौका मिला तो जरूर करूंगा. उन्होंने दूसरे दिन मुझे औडीशन देने के लिए बुलाया. मैं ने औॅडीशन दिया. फिर एक माह तक कई बार मेरा औडीशन कई तरह से लिया गया. आखिरकार, मेरा चयन हो गया. उस के बाद मुझे बैले डांस की कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा. उस के बाद मैं ने फिल्म की शूटिंग की. फिर दोबारा ‘द डांस वक्र्स’ पहुंच कर बच्चों को डांस की ट्रेनिंग देने लग गया.

आप ने फिल्म में आसिफ का किरदार निभाया है, क्या उस के बारे में आप पहले से कुछ जानते थे?

सर, जिस किरदार को मैं ने निभाया यानी कि अमीरुद्दीन शाह उर्फ आमिर और दूसरे मनीष चौहाण इन दोनों को जानता था. वैसे, सूनी मैम ने आमिर के किरदार में कुछ कल्पना जोड़ कर उसे आसिफ बनाया. बहरहाल, आमिर व मनीष ये दोनों मुझ से उम्र में व अनुभव में काफी बड़े हैं. मैं इन्हें भैया ही कहता रहा हूं. ये दोनों ‘द डांस वक्र्स’ से ही जुड़े हुए थे, जिस से मैं भी जुड़ा हुआ हूं. जब मैं इस कंपनी में ज्यूनियर में था तो इन्हें डांस करते देखा करता था. इन के बारे में दूसरों से काफीकुछ सुनता रहता था. तब हम से कहा जाता था कि बैले डांस में हमें इन के स्तर तक पहुंचना है.

अंधेरी के स्टूडियो में जब हम क्लासेस के लिए जाते थे, तो अंत में आमिर व मनीष हमें कुछ न कुछ जरूर सिखाते थे. कई बार वे हमें डेमोस्टेट करते थे, तो कभी सैट दिखाया करते थे. हर रविवार को शाम 4 से 6 बजे एक क्लास हुआ करती थी, जो हमारे लिए कम्पलसरी थी. एक दिन आमिर इस क्लास को असिस्ट कर रहे थे और मैं पीछे था. मुझे नींद आ रही थी, तो मैं एक पाइप को पकड़ कर सो गया था. तब आमिर ने आ कर मुझे हलके से थप्पड़ मारते हुए कहा कि, ‘सोना है तो बाहर जा.’ आमिर मुझे बच्चे की ही तरह मानते थे. मनीष से भी मुझे काफीकुछ सीखने का अवसर मिला.

जब आप को पता चला कि आप को आमिर वाला किरदार निभाना है, तो आप के मन में पहली बात क्या आई थी?

मैं अंदर से बहुत डर गया था क्योंकि आमिर बहुत अच्छा डांस करते हैं. मुझे लगा कि मुझ से न हो पाएगा. इस से पहले मैं ने बैले डांस किया भी नहीं था. लेकिन सोनी मैम ने कहा कि तू कर लेगा. उस के बाद मेरी मुलाकात सिंडी से हुई. उस ने तो 5 माह में मुझे रगड़ कर अच्छा बैले डांसर बना दिया. इस तरह मेरा आत्मविशवास बढ़ा कि मैं परदे पर आमिर का किरदार निभा पाऊंगा.

फिल्म ‘ये बैले’ में आप को डांस के साथ अभिनय करने का अवसर मिल रहा था, इसलिए की?

‘ये बैले’ करने की कई वजहें रहीं. मेरी मां सूनी तारापोरवाला की बहुत बड़ी फैन हैं और इस फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही सूनी तारापोरवाला इस का निर्देशन कर रही थीं, इसलिए मुझे यह फिल्म करनी थी. सूनी जी तो व्हिशलिंग वुड इंटरनेशनल स्कूल, सत्यजीत रे स्कूल में जा कर अभिनय सिखाती हैं. मेरी मम्मी को सूनी की फिल्म ‘लिटिल जिजो’ काफी पसंद है.

क्या आप ने अभिनय की भी ट्रेनिंग ले रखी थी?

जी नहीं. लेकिन पूजा स्वरूप और विजय मौर्य ने मेरे साथ अभिनय की वर्कशौप कर मुझे अभिनय में निपुण किया. पहले मुझे आता नहीं था कि अभिनय कैसे करना है, फीलिंग कहां से निकलेगी, मुझे संवाद कैसे बोलना है क्योंकि फिल्म में निर्देशक ने थोड़ी सी जबान बदली कराई है. पहले मेरे लिए यह सब बहुत कठिन था लेकिन मेरी ट्रेनिंग ऐसी हुई कि हर माह मेरे लिए आसान होता चला गया. फिर जब सिंडी ने मुझे बैले डांस की ट्रेनिंग दी, तो कमाल हो गया.

उन्हें देख कर लगता है कि उन के शरीर में पैदाइशी बैले नृत्य है. सिंडी जब कूदती हैं तो कम से कम 3 से 4 फुट ऊंचा उठ जाती हैं और आराम से बात करते हुए छलांग मारती हैं कि पता ही नहीं चलता. मुझे तो 4 माह केवल ऊंचाई लाने में ही चले गए. तो ये सारी चुनौतियां थीं जिन्हें सूनी मैम की टीम ने मुझे ट्रेनिंग दे कर दूर करा दीं. 6 माह मेरी कठिन मेहनत रही.

फिल्म के अपने किरदार को ले कर क्या कहना चाहेंगे?

फिल्म में मेरे किरदार का नाम आसिफ है. आसिफ जिस चीज से प्यार करता है उस में अपनी पूरी जान डाल देता है. जब उस ने ठान लिया कि वह बैले डांस करेगा, तो उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी. जब उसे अपने मम्मी, पापा व चाचू को समझाना था तो वह उन्हें समझा लेता है. वह जितना लोगों से प्यार करता है, जितना लोगों के प्रति खुद को कमिट कर देता है, वह भी कमाल का है. वह एनर्जेटिक है. उसे बहुत जल्दी गुस्सा भी आ जाता है.

आसिफ का किरदार निभाने के बाद आप के अंदर क्या बदलाव आए?

सब से बड़ा बदलाव यही रहा कि मैं बैले डांस करने में माहिर हो गया. इतना ही नहीं, फिल्म पूरी करने के बाद जब मैं फिर ‘द डांस वक्र्स’ पहुंचा तो मेरे टीचरों ने कहा कि, ‘अचिंत्य, तू थोड़ा मैच्योर हो गया है. अब तू डांसर लगता है.’ आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरा काफी विकास हुआ. मैं ने पहली बार जीवन के अलगअलग क्षेत्र से बड़ी हस्तियों को आ कर एक फिल्म को बनाते हुए देखा व अनुभव किया था. मैं ने हर किसी से काफीकुछ सीखा था.

मैं ने बहुतकुछ ऐसा सीखा था जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. तो फिल्म ‘ये बैले’ करते हुए मेरे अंदर जो मैच्योरिटी आई है वह शायद बाद में नहीं आएगी. आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरी डांसर के रूप में जो ट्रेनिंग हुई वह तो कमाल की रही.

क्या यह माना जाए कि आसिफ के किरदार से अचिंत्य काफी रिलेट कर रहे थे?

काफी हद तक. देखिए, आमिर व आसिफ थोड़ा सा अलग हैं क्योंकि आसिफ को थोड़ा सा फिक्शनलाइज किया गया है. सोनी मैम ने मुझ से कहा था कि मैं आसिफ को अपने निजी अनुभवों से निभाऊं. आसिफ ‘अंडर प्रिविलेज्ड चाइल्ड’ है. उस के पास धन, साधन व सुविधाओं का अभाव है. ऐसा ही मेरे साथ भी है. कुछ दृश्यों में मुझे वास्तव में महसूस हुआ कि यह तो मेरे पास भी नहीं है. तो कई दृश्य ऐसे रहे जिन्हें मैं ने अपने निजी जीवन के अनुभवों से प्रेरणा ले कर निभाया.

आप की फिल्म ‘ये बैले’ तो 3 वर्ष से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. अब तक किस तरह के रिस्पौंस आए हैं?

प्रतिक्रियाएं तो 197 देशों से आईं. पहले ही दिन मेरे पास रशिया, ब्राजील से संदेश आए थे. लोगों ने संदेश में लिखा था कि फिल्म बहुत इंस्पायरिंग है. कुछ दिनों पहले निर्देशक सोमी ने एक स्पैशल स्क्रीनिंग रखी थी. उस वक्त दर्शकों में एक शख्स नेपाल से आए थे. फिल्म देखने के बाद वे मेरे पास रोतेरोते आए. उन्होंने मुझ से रोतेरोते कहा, ‘मैं भी बचपन में डांस करता था. अब तो मैं कविताएं लिखता हूं. लेकिन आज ‘ये बैले’ फिल्म देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ गया.

मुझे अपना बचपन इसलिए भी याद आया कि आज मैं जहां हूं, उस के लिए मैं ने बहुत लड़ाई की है. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि आप ने भले ही डांस के माध्यम से किया हो पर मेरा प्रतिनिधित्व इतने बड़े प्लेटफौर्म पर किया है. मेरी बात कितने लोगों तक पहुंचाई, यह मेरे लिए गर्व की बात है.’ मेरे लिए यही प्रतिक्रिया सब से प्यारी है. मेरे दिल के करीब है. ऐसा मुझ से किसी ने पहली बार कहा था. उस के बाद मैं ने घर पर आ कर पुराने संदेश पढ़े तो पाया कि इसी तरह की बात किसी न किसी अंदाज में कईयों ने लिख कर भेजी हुई थी.

क्या इस के बाद आप को दूसरी फिल्म का औफर मिला?

फिल्म इंडस्ट्री से कई लोगों ने बधाई दी और एकसाथ काम करने की बात भी कही. फिलहाल मैं अपनी एक वैब सीरीज के आने का इंतजार कर रहा हूं. यह वैब सीरीज भी डांस पर ही है. इस का लेखन, निर्माण व निर्देशन सोनी तारापोरवाला ने ही किया है. इस वैब सीरीज के बारे में ज्यादा नहीं बता सकता. मगर इस के फिल्मांकन में एक वर्ष से अधिक का समय लगा. यह वैब सीरीज कमाल करने वाली है. कुछ और भी काम किया है.

आप खुद को किस डांस फौर्म में माहिर समझते हैं?

मुझे लगता है कि स्पैशलिस्ट बनने में तो अभी बहुत समय है. मेरे लिए अभी मंजिल काफी दूर है. अभी तो मुझे बहुतकुछ सीखना है. अभी मैं अमेरिका के कैला आर्ट्स में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग के लिए जा रहा हूं. वहां से आने के बाद देखूंगा कि अब क्या किया जाए. यहां की फीस व रहने आदि के खर्च वहन करने की मेरी क्षमता नहीं है. मुझे कुछ आंशिक छात्रवृत्ति मिल गई है. बाकी की रकम मैं क्राउड फंडिंग से जुटाने के लिए प्रयासरत हूं.

आप ने अमेरिका के इस इंस्टिट्यूट जाने का निर्णय क्या सोच कर लिया?

अगर अमेरिका में कोई कत्थक करे, तो मैं उस से यही कहूंगा कि आइए हमारे भारत देश में कत्थक सीखिए क्योंकि कत्थक हमारे देश का है. इसी तरह से जिस फौर्म के डांस मैं कर रहा हूं वे अकेरिका के हैं, तो वहां जा कर ट्रेनिंग लेने की जरूरत मैं ने महसूस की.

दूसरी बात, मुझे कालेज में पढ़ने का अवसर नहीं मिल पाया, तो इसी बहाने कालेज में पढ़ लूंगा. मैं हमेशा से डांस में या डांस सायकोलौजी में ही कुछ करना चाहता था. मैं डांस लिटरेचर वगैरह पढ़ना चाहता था. बैले तो यूरोप का है. पर बाकी हिप हौप, जैज आदि डांस के जो फौर्म अमेरिका से आए हैं. सो, वहां जा कर अथैंटिकली सीख कर आऊंगा. मेरी मम्मी की भी यही इच्छा है.

सुना है कि अमेरिका में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग में लंबा खर्च आने वाला है?

जी हां, आप की बात सच है. यह रकम बहुत बड़ी है. और कड़वा सच यह है कि उस खर्च को वहन करने की क्षमता मुझ में नहीं है. मैं क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहा हूं. मैं हर किसी से कह रहा हूं कि जो भी मेरी मदद छोटी राशि से भी करना चाहे, वह कर सकता है. वैसे तो मुझे आंशिक स्कौलरशिप मिली है, मगर बाकी की राशि इकट्ठा करने में लगा हुआ हूं. सैमिस्टर वन के लिए राशि इकट्ठा हो गई है. बाकी के लिए भी राशि मिल जाएगी, ऐसी उम्मीद है. लेकिन मैं यह कभी नहीं कहता कि भारत में नृत्य प्रशिक्षण के अवसर कम हैं. भारत में डांस का महत्त्व कम नहीं है.

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कथा : क्या थी नीरज की परेशानी ?

19 जुलाई, 2014 को शाम करीब पौने 7 बजे नीरज के मोबाइल फोन पर उस के जीजा नितिन का फोन आया, जिस में उस ने बताया कि मेरा और पारुल के बीच झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है. इस के बाद फोन कट गया. इतना सुनते ही नीरज परेशान हो गया कि जीजा यह किस तरह की बातें कर रहे हैं. उस ने महसूस किया कि फोन करते समय जीजा की आवाज में घबराहट थी.

नीरज जानना चाहता था कि ऐसा क्या हो गया, जो उन्होंने इस तरह की बात कही. जानने के लिए उस ने नितिन को फोन लगाया, लेकिन किसी वजह से उन से उस की उस से बात नहीं हो सकी.

नितिन पत्नी पारुल और 4 साल की बेटी आयुषि के साथ नोएडा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 में रहता था.

बात गंभीर थी, इसलिए नीरज ने यह बात अपने पिता सुरेंद्र कुमार को फोन कर के बता दी. सुरेंद्र कुमार धीपरवाड़ा, रेवाड़ी, हरियाणा में रहते थे. रेवाड़ी से नितिन का फ्लैट बहुत दूर था. जल्द फ्लैट पर पहुंचना उन के लिए असंभव था, इसलिए उन्होंने भी दामाद से बात करने के लिए कई बार फोन मिलाया. लेकिन किसी वजह से उन की बात नहीं हो सकी और न ही बेटी पारुल से कोई संपर्क हो सका.

सुरेंद्र कुमार भी इस बात की चिंता कर रहे थे कि बेटी और दामाद में से किसी का भी फोन क्यों नहीं लग रहा. नितिन ने नीरज से फोन पर जो शब्द कहे थे, उस से उन्हें अंदेशा हो रहा था कि कहीं उन लोगों के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. इस तरह की तमाम आशंकाएं उन के मन में आ रही थीं.

नोएडा में सुरेंद्र कुमार के एक रिश्तेदार रहते थे. उन्होंने अपने उस रिश्तेदार को फोन कर के दामाद के फ्लैट पर जा कर पता लगाने को कहा.

उसी समय वह रिश्तेदार लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 पर पहुंचा तो उसे वह फ्लैट बंद मिला. फ्लैटों में रहने वाले अधिकांश लोग अपने पड़ोसी तक से वास्ता नहीं रखते. वे केवल अपने काम से मतलब रखते हैं. तभी तो उस रिश्तेदार ने जब नितिन का फ्लैट बंद देखा तो उस ने आसपास वालों से नितिन के बारे में पूछा. लेकिन उसे कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

उस रिश्तेदार ने यही बात फोन पर सुरेंद्र कुमार को बता दी. फ्लैट बंद था, बेटी और दामाद का फोन नहीं मिल रहा था. सभी लोग कहां चले गए, यही सोच कर घर के सदस्य चिंतित थे.  अब तक रात भी गहरा चुकी थी. ऐसे में उन के सामने रात भर इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था. उन्होंने सुबह होते ही नोएडा जा कर बेटीदामाद का पता लगाने का निश्चय किया. चिंता में उन्हें रात भर नींद नहीं आई.

अगले दिन 20 जुलाई, 2014 को सुरेंद्र कुमार अपनी पत्नी और बेटे के साथ नोएडा स्थित अपने दामाद के फ्लैट पर पहुंचे. उन्हें भी फ्लैट बंद मिला तो उन्होंने सोसायटी के पदाधिकारियों को इस की सूचना दी. फ्लैट बंद और उस में रहने वालों का कोई अतापता नहीं चलने पर मामला संदिग्ध लग रहा था. सोसायटी के एक पदाधिकारी ने इस की सूचना थाना सेक्टर-58 को दे दी.

थाने में खबर मिलने के थोड़ी देर बाद ही थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट पहुंच गए. तब सोसायटी वाले पुलिस को उस फ्लैट तक ले गए, जिस में नितिन परिवार के साथ रहता था. फ्लैट का दरवाजा बंद होने से पुलिस भी चौंकी. फ्लैट खोलना जरूरी था, उस के बाद ही नितिन और उस की बीवीबच्ची का पता लग सकता था.

वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने नितिन के फ्लैट का ताला तोड़ कर अंदर घुसे तो उन्हें तेज बदबू का अहसास हुआ. फ्लैट का नजारा चौंकाने वाला था. जमीन पर बिछे गद्दे पर नितिन की 4 साल की बेटी आयुषि मृत पड़ी थी. नातिन की लाश देख कर सुरेंद्र कुमार और उन की पत्नी जोरजोर से रोने लगी.

बच्ची की लाश मिलने के बाद पुलिस नितिन और पारुल को ढूंढते हुए फ्लैट की लौबी में पहुंची तो कुरसी पर 28 वर्षीया पारुल की लाश मिली. लेकिन नितिन फ्लैट में नहीं मिला.

दोनों लाशों से तेज बदबू आने से लग रहा था कि उन की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मौके पर चाकू तथा फर्श पर खून के धब्बे थे. पारुल के हाथ पर भी कटने का निशान था. घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि पारुल की हत्या चाकू से की गई थी और उस की बेटी आयुषि का गला घोंटा गया था.

नितिन के गायब होने से सभी का अनुमान था कि यह सब उसी ने किया होगा. पारुल के मातापिता यह नहीं समझ पा रहे थे कि नितिन की घरगृहस्थी जब ठीक से चल रही थी तो ऐसी क्या बात हो गई कि उस ने उन की बेटी और नातिन को मार डाला.

अपार्टमेंट में रहने वाले जिस किसी ने भी सुना कि फ्लैट नंबर ई-402 में 2 हत्याएं हुई हैं, वह उसी ओर चल दिया. उधर दोहरे मर्डर की सूचना थानाप्रभारी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. प्रीतिंदर सिंह को दी तो वह भी थोड़ी देर में मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस ने बारीकी से फ्लैट का मुआयना किया तो वहां सभी सामान अपनीअपनी जगह रखे मिले. यानी ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी ने लूट के इरादे से दोनों हत्याएं की हों.

ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने पारुल की मरजी से फ्लैट में एंट्री की थी और दोनों की हत्या कर के आसानी से ताला बंद कर के चला गया था. हत्यारा पारुल का कोई परिचित ही रहा होगा. चूंकि पारुल का पति नितिन गायब था, इसलिए पारुल के घर वालों को इस बात का शक था कि उसी ने दोनों की हत्या की होगी.

पुलिस ने मौके से जरूरी सुबूत इकट्ठे कर के दोनों लाशों का पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. संदेह के आधार पर पारुल के पति नितिन रोहिला के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के पुलिस ने आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

हरियाणा के रोहतक के रहने वाले नितिन रोहिला की शादी सन 2008 में धीपरवाड़ा, रेवाड़ी के रहने वाले सुरेंद्र कुमार की बेटी पारुल से हुई थी. नितिन ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा कंपनी में इंजीनियर था. पारुल आर्किटेक्ट की डिग्री लिए हुए थी.

उच्चशिक्षित पारुल और नितिन की गृहस्थी हंसीखुशी से बीत रही थी. शादी के कुछ दिनों बाद पारुल एक बेटी की मां बनी, जिस का नाम आयुषि रखा. बेटी के जन्म के बाद दोनों बेहद खुश थे.

नितिन ने नोएडा के सैक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. वहीं पर वह पत्नी और बेटी के साथ रहता था. पारुल हाउसवाइफ थी. पति के ड्यूटी पर जाने के बाद वह बेटी के साथ घर पर मस्त रहती थी.

पुलिस नितिन रोहिला की तलाश में जुट गई. वह यामाहा कंपनी में नौकरी करता था. वहां जा कर पुलिस ने पता किया तो जानकारी मिली कि 17 जुलाई को नितिन ने तबीयत खराब होने की बात कह कर औफिस आने से मना कर दिया था. यानी वह 16 जुलाई तक औफिस आया था, उस के बाद नहीं आया था.

पारुल और आयुषि के शव देख कर लग रहा था कि उन की हत्याएं 3-4 दिन पहले की गई थीं. कई दिनों से नितिन के औफिस न पहुंचने पर पुलिस का शक नितिन की तरफ और बढ़ गया. पुलिस मान कर चल रही थी कि हत्या करने के बाद वह फरार हो गया है. पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, शायद उस से उस के बारे में कोई सुराग मिल सके.

पुलिस नितिन की सरगर्मी से तलाश कर रही थी कि रात 8 बजे पुलिस को खबर मिली कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ी मौके पर पहुंच गईं. आधा घंटे की मशक्कत के बाद कार में लगी आग बुझाई गई. पुलिस ने जांच की तो उस सैंट्रो कार में एक आदमी जला हुआ मिला.

उस सैंट्रो कार की जांच की गई तो पता चला कि वह कार नोएडा के सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में रहने वाले नितिन रोहिला की है. स्थानीय पुलिस ने यह जानकारी सेक्टर-58 थाना पुलिस को दी तो थानाप्रभारी रात में ही एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर पहुंच गए. लाश झुलस चुकी थी, इसलिए वह पहचानने में नहीं आ रही थी.

जब कार नितिन की है तो इस में जली लाश किस की है? यह बात कोई समझ नहीं पा रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली हो. यह बात यकीन के साथ तब तक नहीं कही जा सकती थी, जब तक कार में जली लाश की शिनाख्त न हो जाए.

थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा ने नितिन रोहिला के घर वालों को बुलाया तो नितिन के भाई ने उस की शिनाख्त अपने भाई के रूप में की. इस के बाद पुलिस ने वह लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और एक सैंपल डीएनए जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया, जिस से पता चल सके कि लाश किस की थी?

पुलिस यह भी मान कर चल रही थी कि कहीं यह नितिन की कोई गहरी साजिश तो नहीं है, जिस में उस ने पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद खुद को बचाने के लिए किसी और को बलि का बकरा बना दिया हो. नितिन को ले कर पुलिस असमंजस की स्थिति में आ गई.

पारुल और उस की बेटी आयुषि की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, उस में बताया गया था कि पारुल की हत्या गला दबा कर की गई थी और आयुषि की मौत भी सांस रुकने की वजह से हुई थी. नाक और मुंह बंद कर के आयुषि की सांस रोकी गई थी और दोनों की हत्या 16-17 जुलाई, 2014 की रात को की गई थी.

नोएडा के जिस अपार्टमेंट में नितिन रहता था, पुलिस ने वहीं से जांच की शुरुआत की. पुलिस के पास नितिन के फोन की काल डिटेल्स भी आ चुकी थी. काल डिटेल्स के अध्ययन से पता चला कि जिस रात पारुल और आयुषि की हत्या की गई थी, नितिन के फोन की लोकेशन प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट की ही थी.

अपार्टमेंट की लिफ्ट में लगे सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि 16 जुलाई के बाद पारुल और आयुषि फ्लैट से नहीं निकले थे. शाम के समय नितिन को फ्लैट में जरूर जाते देखा गया था. इस का मतलब 16 जुलाई की शाम को नितिन फ्लैट में आया था. उस समय वह सूरजपुर स्थित अपने औफिस से आया था. उस के औफिस से पता चला कि 16 जुलाई को ड्यूटी करने के बाद वह वहां से 5 बजे निकला था. औफिस से वह शाम 6 बजे के करीब अपने फ्लैट पर पहुंचा था.

17 जुलाई को नितिन ड्यूटी पर नहीं गया था. उस ने फोन कर के बता दिया था कि उस की तबीयत खराब है. 16 जुलाई की शाम को अपने फ्लैट में घुसा नितिन 19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे के करीब बाहर निकला था. यानी 16-17 जुलाई की रात को पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद. वह 19 जुलाई तक दोनों लाशों के साथ फ्लैट में ही रहा.

19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे फ्लैट से निकलने के बाद वह दोपहर ढाई बजे तक सोसायटी के आसपास घूमता रहा. उसी दिन शाम साढ़े 6 बजे वह सीढि़यों के रास्ते फ्लैट में पहुंचा. पौने 7 बजे के करीब उस ने अपने साले नीरज को फोन कर के कहा कि मेरा और पारुल का झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है.

साले को फोन करने के 17 मिनट बाद नितिन लिफ्ट के जरिए बिल्डिंग से बाहर निकला और शाम साढ़े 7 बजे ग्रेटर नोएडा के नालेज पार्क पहुंच गया. यह सारी जानकारी उस के फोन की लोकेशन की जांच के बाद मिली. इस के आधे घंटे बाद 8 बजे नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर उस की सैंट्रो कार के जलने की खबर मिली.

पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि 16 से 19 जुलाई तक नितिन फ्लैट में रह कर क्या करता रहा? जबकि वहीं पर उस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी थीं. 19 जुलाई को फ्लैट से उस का बाहर जाना और 7 घंटे बाद फ्लैट में वापस आने का यह संकेत मिल रहा है कि उस ने लाशों को अपार्टमेंट से बाहर ले जाने का प्लान बनाया होगा. लेकिन चौकस सुरक्षा व्यवस्था को देख कर उस का प्लान चौपट हो गया होगा. इसलिए वह 7 बजे के करीब वहां से अकेला ही चला गया.

नितिन के भाई ने भले ही जली हुई कार में मिली लाश की शिनाख्त नितिन के रूप में कर दी है, लेकिन पुलिस को अभी भी संदेह है. तभी तो उस ने डीएनए जांच के लिए सैंपल भिजवाए हैं. अगर डीएनए जांच में इस बात की पुष्टि हो जाती है कि कार में मिली लाश नितिन रोहिला की थी तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने भी सुसाइड कर लिया है.

और अगर डीएनए जांच रिपोर्ट नितिन के अलावा और किसी आदमी की निकली तो पुलिस के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. फिर उसे नितिन को तलाशना होगा. इस के बाद ही पता लग सकेगा कि उस ने खुद को बचाने के लिए किस शख्स को अपनी कार में जलाया था. बहरहाल पुलिस के लिए यह मामला अब बहुत पेचीदा हो गया है.

कोचिंग संस्थानों का सच

प्रतियोगिता के इस दौर में कोचिंग एक आवश्यक शर्त बन गई है. पिछले लगभग 25 सालों में तो इस क्षेत्र में बहुत उबाल आया है. कोचिंग की बढ़ती मांग को देखते हुए लोगों ने अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर कोचिंग सैंटर शुरू कर दिए हैं. अनगिनत मातापिता के ख्वाब पलते हैं इन कोचिंग सैंटर के तले, क्योंकि ख्वाब दरअसल बच्चों के नहीं मातापिता के होते हैं, जिन्हें अंजाम तक पहुंचाने का माध्यम बच्चे होते हैं. मगर उन का क्या, जिन्होंने अपने पैसे लगाए और बच्चा भी खो दिया.

मौत का गलियारा बने कोटा शहर को ही ले लीजिए. यहां कोचिंग सैंटरों की भरमार है. पूरा शहर तैयारी करने वाले छात्रों से अटा पड़ा है. छात्र अपने घर से दूर चाहेअनचाहे माहौल में रहने को मजबूर हो जाते हैं. अधिकांश 15-16 साल की उम्र यानी 10वीं के बाद ही वहां के स्कूलों में प्राइवेट एडमिशन ले लेते हैं, मगर समय कोचिंग संस्थान में बिताते हैं. बननेबिगड़ने की इस उम्र में छात्र भावनात्मक रूप से संवेदनशील होते हैं. महीनेमहीने में होने वाले टैस्ट में बेहतर करने का प्रैशर तो होता ही है, फोन पर मातापिता की हिदायतें भी, “हम इतने पैसे खर्च कर रहे हैं, तुम्हें अच्छी रैंक ले कर आनी है.” जैसी ही कई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बातें उन्हें समझनी होती हैं. यहां से शुरू होता है दबाव में आने का सिलसिला. हर तरह के छात्र यहां पर होते हैं, जिन का आर्थिक स्तर भी भिन्नभिन्न होता है. दूसरे से तुलना करने पर खुद को कमजोर पाना भी इस उम्र में कहीं न कहीं सालता है.

कुछ व्यवहार से इतने भावुक होते हैं कि वे मातापिता को शतप्रतिशत न दे पाने के बाद से तनावग्रस्त हो जाते हैं और कई बार मौत को गले लगा लेते हैं. मलाल के सिवा कुछ नहीं बचता पेरेंट्स के पास. कई मातापिता अपनी पूंजी, चलअचल संपत्ति को बंधक रख कर भी बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं.

बच्चे की मरजी हमें समझनी होगी. यदि बच्चे की रुचि मैडिकल, इंजीनियरिंग फील्ड में नहीं है तो क्यों बनेगा जबरन डाक्टर या इंजीनियर? वह संगीत या प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में बेहतर कर सकता है. आजकल कक्षा 7-8 से बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की कोचिंग, कोडिंग कराना एक शौक बन गया है. इस की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी हम समझते हैं.

विदेशों का उदाहरण लें, तो वहां बच्चों को इन मामलों में स्वतंत्र छोड़ा जाता है. उस की अभिरुचि को परखने के बाद ही उसे किसी क्षेत्र विशेष में भेजा जाता है.

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून तो शुरू से ही ऐजूकेशन हब रही है. यहां अनेक कोचिंग सैंटर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं. इन कोचिंग सैंटर में नोट्स तैयार करवाना, परीक्षा की तैयारी वाले वीडियो लैक्चर, फैकेल्टी के साथ लाइव क्लासेज चैट सुविधा भी उपलब्ध होती है. दैनिक टैस्ट सीरीज भी यहां पर करवाए जाते हैं. सिविल सेवा के अंतर्गत आईएएस, पीसीएस सेवाओं में इन संस्थानों के मार्गदर्शन में छात्रों का चयन भी हुआ है. लेकिन शिक्षा का व्यवसायीकरण पिछले कुछ सालों में बेहिसाब हुआ है. बैंकिंग, एसएससी, रेलवे, एनडीए, सीडीएस जैसी कई परीक्षाएं हैं, जहां कोचिंग का सहारा लिया जाता है. कई कोचिंग संस्थान ऐसे हैं, जहां पर शिक्षक काबिल नहीं होते. छात्रों को कुछ समझ में नहीं आता. केवल समय बरबाद होता है. कुछ खास छात्रों पर खास ध्यान देना भी कमजोर छात्रों के साथ नाइंसाफी है. ज्यादातर संस्थाओं का उद्देश्य पैसा कमाना है.

उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित पटवारी भरती परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होने के बाद जांच से बचने के लिए कई कोचिंग सैंटर संचालक भूमिगत हो गए थे. इन आरोपियों के संबंध कोचिंग सैंटर संचालकों से होने की बात सामने आई.

हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में मोटी फीस ले कर चलने वाले कोचिंग सैंटर के संचालक घेरे में आए. ये संचालक बड़ीबड़ी संपत्तियों के मालिक हैं. 8 जनवरी को पटवारी परीक्षा हुई थी, पर पेपर पहले ही लीक हो गया था.

सैल्फ स्टडी का महत्व आज भी बरकरार है. पर, एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ ने कोचिंग के व्यापार को फलनेफूलने में मदद की है. इस से छात्रों का स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. दिनचर्या बहुत कष्टकारी हो जाती है. बड़े शहरों के कई प्राइवेट स्कूल जो कोचिंग कराते हैं, उन का भी यही हाल है. स्कूल से छुट्टी के एक घंटे बाद फिर से कोचिंग की ओर कदम. दिमाग कितना ग्रहण कर पाएगा आखिरकार? हर घर में एक या 2 बच्चे हैं. मातापिता का एकमात्र उद्देश्य कमाना और बच्चे को बेहतर ऐजूकेशन देना है. ऐसे बचपन को जब स्नेह, दुलार और संबल नहीं मिलता तो वह संवेदनशील हो जाता है. समय बीतने के साथ उन के लिए घर से बाहर भी एडजैस्ट करना मुश्किल हो जाता है. बीते 12 फरवरी को गुजरात के रहने वाले इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के छात्र ने आईआईटी, मुंबई में आत्महत्या कर ली थी, जहां पर प्रवेश पाना ही बहुत बड़ी बात है.

ऐसे क्या कारण रहे होंगे, क्या तनाव रहा होगा इस बच्चे को. हमारी मौजूदा परीक्षा प्रणाली तनाव को बढ़ावा देने वाली है. आईएएस परीक्षा सब से कठिन परीक्षा मानी जाती है, उस के बाद आईआईटी विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा. निर्धारित कटऔफ भी तनाव का कारण बनती है. 90 फीसदी से अधिक अंक न आ पाने पर भविष्य अंधकारमय लगता है.

समाज का नजरिया ही कुछ ऐसा है. छात्र अलगअलग कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं. भारत में हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है. 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में महज 5,000 ही मनोचिकित्सक हैं. हमारा दुर्भाग्य है, मानसिक बीमारी को हमारे देश में बीमारी ही नहीं समझा जाता है. वर्ष 2014 से 2016 तक 26,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की थी.

हैरानी तो यह कि सब से समृद्ध राज्य महाराष्ट्र इन में पहले स्थान पर था. मनचाहे कालेज में प्रवेश न मिलना भी एक बहुत बड़ा कारक है. मातापिता समझदारी से काम लें. अपनी उम्मीदों का बोझ अपने बच्चों पर न लादें.

भारत में कोचिंग व्यवसाय के बारे में पुणे स्थित कंसलटैंसी फर्म इन्फिनियम रिसर्च की सूचना के अनुसार, भारत का मौजूदा कोचिंग बाजार राजस्व 58,000 करोड़ रुपए से अधिक है, जो आने वाले 5-6 वर्षों में बढ़ कर 1 लाख, 34 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है.

अगर आज से 25-30 वर्ष पीछे जाएं, तो देश में कोचिंग सैंटरों की संख्या काफी कम थी. धीरेधीरे गलाकाट प्रतिस्पर्धा होने लगी, कालेज में सीट कम और अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने लगी. एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति में इन कोचिंग सैंटरों ने कमान संभाली. बस फिर समय के साथ यह हर छात्र की आवश्यकता बन गई. इस की आड़ में छोटे कसबाई इलाकों में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सैंटर खोल दिए गए, जहां पर गुणवत्ता नगण्य थी. लेकिन छात्र उन्हें भी मिल रहे हैं, क्योंकि अभिभावक आंख बंद किए हुए हैं या गुणवत्ता की उन्हें पहचान नहीं.

कई कोचिंग सैंटर तो छात्रों से भी सौदा कर देते हैं. इश्तिहार में सफल छात्रों की तसवीर अपने पासआउट छात्रों के तौर पर लगा देते हैं, ताकि दूसरे छात्र भी संस्थान से प्रभावित हो कर वहां प्रवेश ले लें. तरहतरह के हथकंडे कुछ संस्थानों द्वारा अपनाए जाते हैं.
मगर कोचिंग सैंटरों की इतनी आवश्यकता क्यों पड़ी? अगर इस बारे में गौर करें तो देखते हैं कि किसी भी परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम अहर्ता तो छात्र प्राप्त कर ही लेता है. उस के बावजूद भी उसे कोचिंग लेनी होती है. इस का एक स्पष्ट और साधारण कारण यही है कि स्कूली और विश्वविद्यालय शिक्षा में संपूर्ण और अपेक्षित ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता है. हिंदी बैल्ट के छात्र अंगरेजी में पढ़ाई नहीं समझ पाते तो मन में हीन भावना घर कर जाती है. शिक्षा के निजीकरण ने भी इस समस्या को काफी हद तक बढ़ाया है.

वैधअवैध हर तरह के सैंटर हैं, जहां सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है और दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. बिजली उपकरणों को सुरक्षित और मानकों के अनुसार लगाने की आवश्यकता है. पर कई जगह ये सैंटर बिना एनओसी पर चलते हैं, जब तक धरपकड़ न हो जाए. दुकानों, छोटे कमरों, बेसमैंट में तक में कोचिंग का व्यवसाय फलफूल रहा है. कोटा में लगभग 150 कोचिंग सैंटर हैं, जो जेईई और नीट के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं. हर साल लगभग 2 लाख छात्र यहां पर आते हैं. एकेडमी और फिजिक्स वाला, औनलाइन कोर्स देने वाले 2 संस्थान भी अब औफलाइन मोड में आ कर कोटा पहुंचे हैं. बंसल, एलन, फिटजी, एकलव्य, श्री चैतन्य जैसे सैंटर वर्षों पहले आए, कुछ सफल रहे और कुछ बोरियाबिस्तर बांध कर वापस चले गए.

श्री चैतन्य, नारायण दक्षिण भारत के इंस्टिट्यूट थे, जो 5-6 वर्षों में ही निबट गए. एलन, रिजोनेंस, मोशन, आकाश, बायजू, कैरियर प्वाइंट, वाईब्रैंट जैसे संस्थान आज भी अच्छे चल रहे हैं. कारण इन की गुणवत्ता है.

कोटा शहर में तो यह आलम है कि देश के अलगअलग हिस्सों से मांएं अपने बच्चों के साथ कमरा ले कर यहां रह रही हैं. पर यह शिक्षा प्रणाली का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. वर्ष 2022 में 20 छात्रों की मौत हुई, जिन में से 18 ने आत्महत्या की थी. छात्र में तनाव का होना एक गंभीर मुद्दा है. यह बात अलग है कि काउंसलिंग की नाममात्र की सुविधा हमारे छात्रों को प्राप्त है. वर्ष 2019 से 2022 तक 53 आत्महत्या के मामले आए हैं.

छात्रों की काउंसलिंग बहुत आवश्यक है. कोचिंग के मंथली टैस्ट में पिछड़ जाना, आत्मविश्वास की कमी, पढ़ाई संबंधित तनाव, आर्थिक तंगी या किसी तरह का भावनात्मक टूटन जैसे कई कारण हो सकते हैं, जो बच्चे को आत्मघाती कदम उठा लेने की ओर धकेलते हैं.

शारीरिक गतिविधियां, खेलकूद, योग, मनोरंजन इन होस्टलर्स के लिए जरूरी है. होम सिकनैस भी एक बहुत बड़ा कारण है. इस उम्र में बच्चा अपनी परेशानी मांबाप से कह नहीं पाता. कई बार संस्थान में ब्रेक के दौरान भी वे घर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें पढ़ाई में पिछड़ने का डर रहता है, लेकिन घर की याद मन ही मन उस का पीछा करती है. बच्चा घर से बाहर रह रहा हो तो उस के रैगुलर संपर्क में रहें. समझने की कोशिश करें कि उसे कोई समस्या तो नहीं है. उसे बताएं कि जीवन और स्वास्थ्य पहली जरूरत है. हर कोई पढ़ाई पर विशेष मुकाम हासिल नहीं कर सकता. सब की अपनीअपनी क्षमता है और समाज में हर तरह के लोगों की जरूरत है. समयसमय पर अपने बच्चे से जा कर जरूर मिलें. उस की क्षमताओं को पहचानें. उसे किसी भी तरह के दबाव में आ कर काम न करने को कहें. मातापिता का सकारात्मक व्यवहार एनर्जी बूस्टर का काम करता है.

मैं खुद एक आईआईटियन की मां हूं. समय रहते समझ में आ गया था कि बच्चे को प्रैशराइज नहीं करना है. यह सुखद संयोग रहा कि उस ने इंटरमीडिएट में भी कोई कोचिंग नहीं ली. अपने पिता और सैल्फ स्टडी के बल पर जेई एडवांस की परीक्षा पास की, लेकिन हर बच्चे का मानसिक लैवल बराबर नहीं होता और न ही मेहनत करने का रुझान और दक्षता. हां, प्रोत्साहित कर के उचित माहौल बना कर काफी मदद जरूर की जा सकती है.

आज कोटा मौत की नगरी बनता जा रहा है. कई छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इतनी मेहनत के बाद उच्च तकनीकी संस्थानों में प्रवेश पाने के बावजूद भी छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इस प्रवृत्ति को देखते हुए कई कालेजों के होस्टल में तो पंखे तक हटा दिए गए हैं, ताकि इन का दुरुपयोग न हो. इस बीच नई तकनीकी से बने पंखों के बारे में भी पढ़ रही थी, जिस पर ज़रा भी जोर देने पर वह पहले ही नीचे आ जाएगा.
बच्चा जितना भी कर रहा है, उसे प्रोत्साहित करें. अगर वह काबिल नहीं है तो उसे हतोत्साहित न करें. कोई न कोई काम उस के लिए अवश्य नियत है. रटाने और पटाने दोनों की प्रवृत्ति घातक है.

अन्य व्यवसायों की तरह कोचिंग भी एक व्यवसाय बन गया है और संस्थान के अधिकारी अधिक से अधिक मुनाफा कमाना अपना उद्देश्य समझते हैं, जिस से बेवजह मातापिता की जेब कटती है. लेकिन इस प्रवृत्ति पर रोक लगा पाना तभी संभव होगा, जब स्कूली और विश्वविद्यालयी शिक्षा ठोस हो और 12वीं के बाद प्रवेश पाने की प्रक्रिया थोड़ी सरल बना दी जाए और छात्रों को बेवजह कोचिंग की सहायता की आवश्यकता न हो.

सीने में दर्द के हो सकते हैं कई अलग-अलग कारण

लोग यह नहीं जानते कि सीने में दर्द दिल के रोग के अलावा और भी महत्त्वपूर्ण कारण होते हैं. इन पर वे ध्यान नहीं देते और समस्या गंभीर होती चली जाती है.भारतीयों में हार्टअटैक का इस कदर खौफ समाया हुआ है कि जरा सा छाती में खिंचाव, दर्द या जलन की शिकायत हुई नहीं कि दौड़ पड़े निकट के डाक्टर के पास. तुरंत ईसीजी और ढेरों खून के टैस्ट आननफानन करवा डाले. पर नतीजा कुछ नहीं निकला. फिर भी संतोष नहीं हुआ, तो पास के किसी नर्सिंग होम या छोटे अस्पताल में जा कर भरती हो गए और वहां के आईसीयू में 4-5 दिन गुजारने के बाद तसल्ली मिली.

इलाज करने वाला डाक्टर तो पहले से ही तसल्ली में था, पर आप को चैन नहीं था. जब रोज सुबहशाम ईसीजी हुआ और ढेर सारे खून के अनापशनाप टैस्ट हुए और थोड़ी जेब ढीली हुई, तब जा कर आप के ऊपर आया हुआ तथाकथित हार्टअटैक का खतरा टला. पर इस के बाद दवाइयों का सिलसिला जो शुरू हुआ, उस ने थमने का नाम ही नहीं लिया.

इस तरह की घटनाएं देश के हर गलीनुक्कड़ पर रोजरोज दोहराई जा रही हैं. नतीजा यह हो रहा है कि हर सीने में दर्द की शिकायत करने वाला व्यक्ति अपनेआप को जानेअनजाने में दिल का मरीज समझने लगा है और इस का असर यह हो रहा है कि उस की दिनचर्र्या व रोजमर्रा के व्यवहार में ऐसा बदलाव आ रहा है मानो चंद दिनों में ही मौत का अचानक बुलावा आने वाला हो. यहां तक कि वसीयत तुरंत लिखवाने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया हो.

हार्टअटैक का ऐसा खौफ क्यों

इस के लिए काफी हद तक मीडिया विशेषकर टैलीविजन चैनल जिम्मेदार हैं. आएदिन हार्टअटैक के बारे में दहशत फैलाई जा रही है. अगर फलांफलां तेल खाने में इस्तेमाल नहीं किया तो हार्टअटैक निश्चित है. अपना बीमा करा लो, कहीं हार्टअटैक  न आ जाए और आप के परिवार वाले अनाथ न हो जाएं.

एक और भी कारण है कि अपने देश के हर गलीनुक्कड़ में जैसे हार्ट स्पैशलिस्ट की बाढ़ आ गई हो. हर फिजीशियन अपनेआप को हार्ट स्पैशलिस्ट लिखने लगा है. कहीं भी आप गलीमहल्ले या कसबे में निकल जाइए, फिजीशियन एवं हार्ट स्पैशलिस्ट के बोर्ड बड़ी संख्या में नजर आ जाएंगे. जब हर कोई हार्ट स्पैशलिस्ट बना जा रहा है तो दिल के मरीज भी उसी संख्या में पैदा होंगे ही.

हार्टअटैक का अंदेशा कब करें

अगर आप की उम्र 40 वर्ष या उस से ऊपर है और आप डायबिटीज के शिकार हैं व धूम्रपान या तंबाकू (जर्दा, खैनी, जाफरानी पत्ती, गुल) के आदि हैं और तेज चलते वक्त या सीढ़ी चढ़ने पर छाती की बाईं तरफ दर्द या हलका भारीपन उभरता हो या थोड़ा शारीरिक व्यायाम करने पर सांस फूलने लगे, तो दिल की बीमारी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

खास बात यह होती है कि आराम करने से या चलते वक्त रुक जाने पर छाती का हलका दर्द व भारीपन गायब हो जाता है. दिल का दर्द चलते वक्त बाएं हाथ, बाईं गरदन व बाएं जबड़े में भी उभरता है.

सीने में दर्द की चिंता से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता होता है. पहले अपनी टीएमटी जांच करवा लें. अगर परिणाम संदेहास्पद है तो स्ट्रैस इको (डोब्यूटामीन इन्ड्यूस्ड स्ट्रैस इको यानी डीआईएसई) करवा कर हार्ट की बीमारी होने के संदेह का निराकरण करें. पूर्णतया निश्चिंत होने के लिए सब से उत्तम जांच मल्टी स्लाइस सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी करवाएं. इस विशेष एंजियोग्राफी के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत नहीं होती और न ही जांघ के जरिए तार डालने की आवश्यकता होती है.

हार्टअटैक की संभावना

अगर आप की उम्र 40 से कम है व वजन सीमा के अंदर है और आप डायबिटीज व ब्लडप्रैशर के शिकार नहीं हैं, साथ ही, धूम्रपान, मदिरापान व तंबाकू सेवन के शौकीन भी नहीं हैं, तो आप के छातीदर्द का दिल के रोग से संबंध होने की संभावना कम होती है. अगर छाती का दर्द विशेषकर दाईं तरफ है और नौर्मल सांस लेने में या छींक या खांसी होने पर छातीदर्द उभरता है तो दिल के रोग की संभावना सौ में 5 फीसदी होती है. अगर गरिष्ठ, मिर्चयुक्त मसालेदार खाने के बाद ही छाती में दर्द उभरता है, तो दिल के रोग की संभावना कम होती है. तब हमें दिल के अलावा अन्य रोगों से संबंधित जांच करवाने के बारे में सोचना चाहिए.

दिल के अलावा अन्य कारण

सीने में दर्द का सब से बड़ा कारण छाती की अंदरूनी दीवारों में सूजन का होना है. होता यह है, जब फेफड़ों की ऊपरी सतह पर स्थित झिल्ली में सूजन आ जाती है तो छाती की अंदरूनी दीवार में स्थित सूजी हुई सतह सांस लेते वक्त रगड़ खाती है, तो असहनीय दर्द होता है. इस अवस्था को मैडिकल भाषा में प्ल्यूराइटिस कहते हैं. यह प्ल्यूराइटिस छाती में पानी इकट्ठा होने का शुरुआती संकेत है.

प्ल्यूराइटिस का ज्यादातर कारण टीबी का इन्फैक्शन होता है. लोग छातीदर्द के लिए दर्दनिवारक गोलियों का सेवन करते रहते हैं और सही जांच व इलाज के अभाव में समस्या को और गंभीर बना देते हैं. अगर प्ल्यूराइटिस की समस्या को सही समय पर नियंत्रित न किया गया तो सीने में फेफड़े के चारों ओर पानी इकट्ठा हो जाता है. टीबी के अलावा न्यूमोनिया का इन्फैक्शन भी इस अवस्था को पैदा कर देता है. इस तरह की समस्या पर किसी थोरैसिक सर्जन यानी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें.

मवाद भी सीने में दर्द का कारण

हमारे देश में सीने में दर्द मवाद यानी पस जमा हो जाने की घटना बहुत आम है. होता यह है कि न्यूमोनिया या अन्य फेफड़े का इन्फैक्शन जब पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो पाता है, तो फेफड़े के चारों ओर विशेषतया निचले हिस्से में इन्फैक्शन वाला पानी या मवाद इकट्ठा हो जाता है.

इस एकत्र हुए पस की मात्रा कम तो होती है, पर महीनों दिए जाने वाले तरहतरह के एंटीबायोटिक का असर नहीं होता. छाती में पस का जमाव  सीने में दर्द बड़ा ही महत्त्वपूर्ण कारण होता है. इस में किसी थोरैसिक सर्जन से औपरेशन के जरिए सफाई कराने के बाद ही समस्या से नजात मिल पाती है.

सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस

देश में शारीरिक व्यायाम का नितांत अभाव है. लोग हाथपैर चलाना तो दूर, पैदल चलना भी भूलते जा रहे हैं. और तो और, टैलीविजन व कंप्यूटर के सामने एक ही शारीरिक मुद्रा में बैठे रहते हैं. ऐसी आरामतलब दिनचर्र्या का गरदन व छाती के ऊपरी हिस्से की रीढ़ की हड्डियों पर कुप्रभाव पड़ता है. व्यायाम के अभाव में रीढ़ की हड्डियों के जोड़ काफी सख्त हो जाते हैं और उन में लचीलापन खत्म हो जाता है.

परिणामस्वरूप, रीढ़ की हड्डी से हाथ, कंधे और छाती के हिस्से में जाने वाली नसों पर दबाव पड़ने लगताहै. इस के फलस्वरूप छाती और हाथ में दर्द उभरने लगता है और लोग इसे दिल का रोग व संभावित हार्टअटैक गलती से मान बैठते हैं व अनजाने में अप्रत्याशित हार्टअटैक की संभावना के मद्देनजर अपनी दिनचर्या में अनावश्यक आमूलचूल परिवर्तन करते हैं. इस से उन में आत्मविश्वास व उन की कार्यक्षमता दोनों में ही भारी कमी आती है. आप को चाहिए कि किसी थोरैसिक यानी चेस्ट सर्जन से सलाह लें.

पसलियों की कमजोरी

आजकल अकसर नवयुवक व नवयुवतियां छातीदर्द की शिकायत करते हैं. यह दर्द सामने की ओर ज्यादा होता है. यह दर्द पसलियों का होता है जो छींक या खांसी आने पर और बढ़ जाता है. अगर पसलियों के ऊपर झटका लगा तो ऐसा लगता है कि जान निकल गई. इस रोग को मैडिकल भाषा में पसलियों की कोस्टो कौन्ड्रायटिस कहते हैं. अकसर वे लोग जो दूध का नियमित या नहीं के बराबर सेवन करते हैं, इस बीमारी के शिकार होते हैं.

आजकल देखा गया है कि खून में विटामिन डी की मात्रा कम होने से भी पसलियों की बीमारी व छातीदर्द होता है. अगर आप प्रोटीनयुक्त संतुलित भोजन व विटामिन से भरपूर सलाद (न्यूनतम 300 ग्राम प्रतिदिन) व फल (300 ग्राम रोजाना) और आधा लिटर बिना मलाई वाले दूध का सेवन प्रतिदिन करते हैं, तो पसलियों की इस बीमारी व छातीदर्द से कोसों दूर रहेंगे.

कुछ लोगों को ठंडे खाद्य पदार्थों, जैसे कढ़ी, रायता, आइसक्रीम, व दहीबड़े के सेवन करने से छाती में दर्द उभर आता है. इस का कारण छाती की मांसपेशियों की ठंडी चीजों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता है. ऐसे लोगों को चाहिए कि लगातार कई दिनों तक अत्यधिक ठंडे भोजन के सेवन से बचें. ऐसे लोग गरम चीजें खाएं और एक या दो दिनों के लिए दर्दनिवारक दवा ले लें.

खाने की नली में सूजन

अपने देश में चाटपकौड़े, तेल में भुने हुए खाद्य पदार्थों जैसे समोसे, दालमोठ आदि जैसी अनेक तेल से युक्त खाने की चीजों की भरमार है. लोग इन सब खाद्य पदार्थों को खुल कर खाते हैं और साथ में अचार, मिर्च व मसालों का भरपूर सेवन करते हैं. इस तरह से तो आंतों में सूजन व अल्सर की शिकायत होनी लाजिमी है.

छाती के अंदर स्थित खाने की नली (ईसाफैगस) में सूजन आने पर यह दिल के रोग होने या हार्टअटैक होने की संभावना होने की याद दिलाता है. मरीज को कुछ खाने के बाद छाती के बीचोंबीच भारीपन, दबाव व दर्द महसूस होता है. शराब का भयंकर सेवन भी आंतों की सूजन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. इस तरह की चीजों को सामान्य भाषा में गैस की संज्ञा देते हैं. कभीकभी छाती के अंदर स्थित खाने की नली का कैंसर भी छातीदर्द का कारण होता है.

समझदारी की बात

इन सब बातों को समझ लेने के बाद हर छातीदर्द को हार्टअटैक समझने की गलती न करें. अगर संदेह न दूर हो तो सुझाई गई जांचें जरूर करवा लें, अन्यथा अनजाने में संभावित हार्टअटैक के डर की वजह से आप की कार्यक्षमता व आत्मविश्वास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए संदेह होने पर हार्टअटैक से संबंधित जांचें करवा कर निश्चिंत हो जाइए. और फिर किसी थोरैसिक सर्जन से परामर्श कर छातीदर्द के अन्य कारणों का निदान ढूंढ़ने की कोशिश करें, तभी आप मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे.

दूसरी शादी करने के बाद मुझे काफी अफसोस हो रहा है, बताएं अब मैं क्या करूं ?

 सवाल

मैं 36 वर्षीय विवाहिता हूं. हमदोनों पतिपत्नी की यह दूसरी शादी है. पहले पति से मेरी 1 बेटी मेरे साथ है. पति के 2 बच्चे हैं- 1 बेटी और 1 बेटा. दोनों बच्चे मेरी बेटी से बड़े हैं. पति ने विवाह पूर्व वादा किया  था कि मेरी बेटी को वे अपने बच्चों जैसा ही प्यार देंगे. वे अपने वादे पर अडिग भी हैं. मेरी बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, अपने बच्चों सा दुलार भी देते हैं, पर उन के बच्चे न तो मुझे मां का मान (दिल से) देते हैं और न ही मेरी बेटी से प्यार करते हैं. मेरी बेटी सहमीसहमी सी रहती है.

जवाब

आप के पति की सोच सही है. अभी आप लोगों को साथ रहते कम वक्त ही हुआ है. इस के अलावा लगता है शादी करने से पहले आप के पति ने अपने बच्चों को मानसिक स्तर पर तैयार नहीं किया. यदि विवाहपूर्व वे उन्हें विश्वास में लेते और बताते कि बच्चों की सही परवरिश  के लिए मातापिता दोनों का सहयोग जरूरी होता है. वे कई अवसरों पर अकेले इस जिम्मेदारी को नहीं निभा पाएंगे. इसीलिए उन के लिए नई मां ला रहे हैं जो उन्हें प्यारदुलार देगी, घरपरिवार में सहयोग देगी तो ज्यादा अच्छा रहता पर संभवतया उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसीलिए कठिनाई आ रही है.

अब भी स्थिति सामान्य हो सकती है बशर्ते आप धैर्य बनाए रखें. अपनी बच्ची के प्रति बच्चों की उपेक्षा को ज्यादा तूल न दें. देरसवेर वे सामान्य व्यवहार करने लगेंगे.

अपने दिमाग से यह विचार निकाल दें कि आप ने शादी कर के कोई गलती की है. बच्चे बड़े हो कर अपनीअपनी जिंदगी में मसरूफ हो जाएंगे तब आप को अकेलापन बांटने और दुखसुख में साथ देने के लिए किसी की अपेक्षा होगी. इसलिए आप ने जो कदम उठाया वह सही है.

कुत्तों के बहाने जी-20 की भड़ास

कुत्ता घोषित तौर पर निकृष्ट प्राणी है, क्योंकि वह काटने का अपना खानदानी स्वभाव या फितरत नहीं छोड़ पाता, ऐसे कुत्तों को कटखना कुत्ता कहा जाता है. कुत्ते 2 तरीकों से काटते हैं. पहला, घात लगा कर, दूसरे खुलेआम, जो अपेक्षाकृत कम नुकसानदेह होते हैं.

पहली किस्म के कुत्ते ज्यादा खतरनाक होते हैं, जो न जाने से कहां से रामसे ब्रदर्स की फिल्मों की चुड़ैल जैसे प्रकट होते हैं और ख्वाबोंखयालों में डूबे राहगीर को संभलने का मौका भी नहीं देते.

वैसे तो कुत्ते शरीर में कहीं भी अपने पैनेनुकीले दांत गड़ा सकते हैं, लेकिन इन के काटने का पसंदीदा हिस्सा पिंडली होता है, क्योंकि वहां तक ये आसानी से पहुंच जाते हैं और ज्यादा मांस होने के चलते उन्हें भी सुखद या क्रूर कुछ भी कह लें, अनुभूति होती है.

11 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली का माहौल ठीक वैसा ही सूनासूना सा था, जैसा बरात विदा होने के बाद लड़की वालों के घर का होता है. सब थकेमांदे सो रहे थे. इस दिन जी-20 का तमाशा खत्म हो चुका था. कोई 4,500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी सियासी और सरकारी हलकों में विश्वगुरु बनने का सपना सच होने का भ्रमनुमा जोश था, अफसोस इस बात का रहा होगा कि इस से ज्यादा फूंक कर अपनी और रईसी क्यों नहीं दिखा पाए.

कुत्तों का हालांकि इस अंतर्राष्ट्रीय जलसे से कोई सीधा ताल्लुक नहीं था, जिन्हें इस आयोजन की भव्यता के लिए गरीब दरिद्रों की तरह सड़कों से खदेड़ दिया गया था. हफ्तेभर इन कुत्तों और दरिद्रों ने कैसे गुजर की होगी, यह तो सरकार जाने, लेकिन इस दिन सब से बड़ी अदालत में कोई अर्जेंट हियरिंग नहीं हो रही थी. सो, जज साहबान और वकील साहबान हलकेफुलके मूड में थे.

इस दिन सुप्रीम कोर्ट में कुत्ते के काटने की देशव्यापी समस्या पर ख्वाहमख्वाह में सैमिनार हो गया, जिस में जजों, वकीलों, बाबुओं, पेशकारों और चकाचक वरदीधारी वाले दरबानों तक ने भी बतौर श्रोता और दर्शक ही सही उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. साबित हो गया कि हर किसी के पास कुत्ता काटने को ले कर कोई न कोई मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित संस्मरण है, जिसे मीडिया ने प्रसारित भी किया और प्रकाशित भी किया. यह और बात है कि सर्वोत्तम संस्मरण पर कोई नकद या उधार पुरस्कार नहीं दिया गया.

अदालत की कार्रवाई शुरू की जाए का उद्घोष होने से पहले ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नजर सामने खड़े एक वकील कुणाल कुलकर्णी पर पड़ी, जिन के हाथों पर पट्टियां बंधी हुई थीं. कैसे लगी यह सहज जिज्ञासा उन्होंने जाहिर है यूं ही व्यक्त की, तो कुणाल का दुख फूट पड़ा. वे बोले कि बीती रात घर के पास 5 कुत्तों ने घेर कर काट लिया. सीजेआई ने उन्हें रजिस्ट्रार के जरीए इलाज की पेशकश की, तो वे बोले कि इलाज करा लिया है.

यहीं से कुत्ता संगोष्टी का अनौपचारिक उद्घाटन हुआ. अब तक बिना दलीलों के यह साबित हो चुका था कि कुछ कुत्तों ने उक्त वकील साहब को घेरने की साजिशाना प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी और कुत्ते अकसर रात में घूमने वालों या मौर्निंग वाक करने वालों को ज्यादा काटते हैं.

हालांकि साबित तो यह भी हो चुका था कि उक्त वकील साहब ने यह जानते हुए भी कि उन के घर के आसपास भी आवारा कुत्ते घूमते हैं और कभी भी किसी को भी काट सकते हैं अपनी तरफ से कोई एहतियात नहीं बरती थी, जो घोर लापरवाही थी.

कुत्तों का कोई वकील होता तो यही कहता कि हमें काटने के लिए जानबूझ कर उकसाया गया था, नहीं तो समझदार लोग छड़ी ले कर चलते हैं. वे हमें हड़काते हैं, तो हम शराफत से उन का रास्ता छोड़ देते हैं.

खैर, बात आईगई हो ही रही थी कि चीफ जस्टिस के साथ बैठे जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी बोल उठे कि आवारा कुत्तों को ले कर इस तरह की समस्या एक गंभीर समस्या है. अदालतों का एक अलिखित कानून है कि जज साहबान जिस मसले पर जरा सी भी दिलचस्पी दिखाते हैं, तो मौजूद वकील सबकुछ भूलभाल कर उस मसले पर बोलना अपना फर्ज समझने लगते हैं. इस के पीछे उन का मकसद अदालत की खुशामद ही होता है और उस के सिवाय कुछ नहीं होता. इस तरह सत्य वचन महाराज की तर्ज पर समस्या को गंभीर साबित करने में सभी अपनेअपने तरीके से योगदान देते पूरा जोर भी लगा देते हैं.

बात अगर मौसम पर अदालत करती तो वकील लोग कहते कि जी सर, आज दिल्ली में उमस है, लेकिन थोड़ी बूंदाबांदी भी हुई. अब अदालत अगर अड़ जाती कि नहीं, उमस बहुत ज्यादा है, तो वकील कहते, ‘जी मी लौर्ड, इतनी सी बूंदाबांदी से कुछ नहीं होता, मारे उमस के बुरा हाल है. मुझे तो चक्कर से आने लगे हैं.’

अदालत संतुष्ट हो जाती और फिर गंभीर हो कर कहती, ‘हां तो कार्रवाई आगे बढ़ाई जाए.’

अदालत में मौजूद सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत का मूड देख बात को और विस्तार से यह कहते दिया कि आएदिन कुत्तों के काटने के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं. यहां तक कि छोटे और अबोध बच्चों की मौत की खबरें काफी विचलित करती हैं. पिछले दिनों गाजियाबाद में एक 14 साल के बच्चे की रेबीज के संक्रमण से तड़प कर अपने पिता की गोद में ही दम तोड़ देने के मामले का हवाला उन्होंने दिया तो हर कोई भावुक हो उठा. बात थी भी भावुक होने वाली, क्योंकि यह मामला वाकई हृदय विदारक और संवेदनशील था.

माहौल को ज्यादा बोझिल होने से रोकने के लिए सीजेआई ने भी अपने ला क्लर्क पर कुत्तों द्वारा हमले का किस्सा सुनाया, तो मौजूद एक और वकील विजय हंसरिया ने उपयुक्त अवसर जानते सीजेआई से स्वतः संज्ञान लेने का अनुरोध कर डाला.

कुत्तों के काटने के मामले का टैक्निकल फाल्ट उजागर करते इन वकील साहब ने बताया कि ऐसे मामलों पर अलगअलग हाईकोर्ट के अलगअलग फैसलों से भ्रम की स्थिति बनी हुई है.

एक वकील के हाथ में पट्टी बंधी देख हमदर्दी क्या दिखाई, ये वकील तो घेरने ही लगे यह सोचते अदालत ने बात खत्म करने के अंदाज में कहा, ‘देखेंगे.’

हर कोई जानता है कि सब से बड़ी अदालत चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगी, क्योंकि बात यहां भी नफरत और मुहब्बत की है.

कुत्तों को चाहने वालों की देश क्या दुनिया में कहीं कमी नहीं है. लोग बच्चों की तरह कुत्तों को पालते हैं, अपने बिस्तर में उन्हें सुलाते हैं. उन के मुंह में मुंह डाल कर चूमाचाटी करते हैं, डाइनिंग टेबल पर साथ बैठा कर खाना खिलाते हैं, उन के स्मारक बनवाते हैं, उन के नाम पर करोड़ों की दौलत की वसीयत कर जाते हैं. और तो और छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई जगह मंदिर भी बने हुए हैं, जिन में कुत्तों की पूजा होती है.

दुर्ग के धमधा में कुत्ते के मंदिर में कुत्ते की मूर्ति की पूरे विधिविधान से पूजा होती है. इस मंदिर के बारे में अंधविश्वासियों ने अफवाह फैला रखी है कि कुत्ता काट ले तो यहां आ कर पूजा करने से पीड़ित ठीक हो जाता है.

साबित होता है कि किसी एंटीरेबीज इंजैक्शन या दवाओं की जरूरत को नकारते इस देश में कुत्ते का मंदिर बना कर भी कमाई की जा सकती है. ऐसे में कोई क्या कर लेगा.

डौग बाइट्स के दिनोंदिन बढ़ते मामलों पर ऐसी मानसिकता और माहौल देख निराशा ही हाथ लगती है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कोई 1 करोड़, 70 लाख हर साल डौग बाईट का शिकार होते हैं, जिन में से तकरीबन 20,000 दम तोड़ देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के सैमिनार के बाद मीडिया ने कार्रवाई के कच्चे चावलों को उबाला तो शाम तक सोशल मीडिया ने उस में दाल मिला कर खिचड़ी ही बना डाली. रात होतेहोते सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के सम्मान में घरघर कुत्तों की चर्चा हुई. उस में भी समाधान कम संस्मरण ज्यादा थे.

किसी के अलीगढ़ वाले फूफाजी को कुत्ते ने काटा था, तो किसी की पूना वाली ननद पर सोसाइटी के कुत्ते का दिल आ गया था. हर जगह पड़ोस के मामले का भी उदाहरण जरूर दिया गया कि एक बार हमारे पड़ोस वाले टहलने जा रहे थे कि उन्हें कुत्ते ने काट खाया.

कुत्ता काटने के दर्जनों मामले सुप्रीम कोर्ट में और सैकड़ों हाईकोर्ट में चल चुके हैं, लेकिन हर बार मोहब्बतियों और नफरतियों के बीच तलवारें ऐसे खिचीं हैं कि अदालतें भी चकरा जाती हैं कि क्या फैसला या व्यवस्था दें, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. अदालतों में कुत्तों की नसबंदी, पुनर्वास और विस्थापन पर बड़ी ठोस दलीलें कुत्ता प्रेमियों ने दी हैं.

ताजा मामला जी-20 के आयोजन के दौरान का ही है. हुआ यों कि देशी कुत्तों को विदेशी मेहमानों की नजर से बचाने के लिए एमसीडी ने कुत्तों को पकड़ कर पशु नसबंदी केंद्रों में नजरबंद किया, तो पशु प्रेमी बिफर कर अदालत तक जा पहुंचे.

पीएफए की ट्रस्टी अंबिका शुक्ला ने कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई को क्रूर और अनावश्यक बताया, तो एनसीआर के एक कुत्ता प्रेमी संजय महापात्रा यह कहते बिफर पड़े थे कि कुत्तों को जबरन घसीट कर बेरहमी से ले जाना समाज के लिए ठीक नहीं है. कुत्तों को भी इज्जत से रहने का हक है. अगर जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद कुत्तों को इज्जत से वापस उन की जगह नहीं छोड़ा गया, तो लंबी लड़ाई लड़ी जाएगी.

यहां दिलचस्प तर्क तथ्य सहित दिल्ली के डौग लवर्स ने यह कहते दिया था कि पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम, 1960 और साल 2002 में हुए संशोधन के मुताबिक, कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है. वे जहां चाहे रह सकते हैं. उन को हटाने और भगाने का अधिकार किसी के पास नहीं है. अगर कोई ऐसा करता पाया जाता है, तो उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है.

लेकिन, असल बात कुछ और थी. घरघर चर्चा जी-20 की भी थी. लोग यह नहीं समझ पा रहे थे कि इस अश्वमेध यज्ञ से हमें क्या मिला. देशविदेश से गोरे, काले और सांवले राजामहाराजा आए और आहुतियां डाल कर चले गए. करोड़ों के पकवान भी उन्होंने डकारे और शाही तरीके से रहे.

हमारे पास इतना पैसा आया कहां से? नरेंद्र मोदी सरकार ने 10 साल से भी कम अरसे में 100 लाख करोड़ रुपए का जो कर्ज लिया, वह कहां गया. इस से भली तो मनमोहन सरकार थी, जिस ने 10 साल में महज 38 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मोदी सरकार का कर्ज मार्च, 2024 तक 155 से और बढ़ कर 172 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा, जो आखिरकार चुकाना तो हम ही को है, फिर इतनी फिजूलखर्ची क्यों?

चूंकि आस्था, निष्ठा और भक्ति जो डर के ही पर्याय हैं के चलते वे इस का विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए कुत्तों की चर्चा के बहाने अपनी भड़ास निकाली, जिस का मौका इत्तिफाक से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दे दिया था. रही बात कुत्तों की, तो वे और उन का काटना शाश्वत है, था और रहेगा. कोई अदालत इस में कुछ नहीं कर सकती.

TMKOC : जेठलाल की खुली पोल, फैंस ने बताया कैसा है दिलीप जोशी का असली बर्ताव!

Dilip Joshi : छोटे पर्दे के सबसे पसंदीदा शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के हर एक किरदार लोगों के दिलों में राज करते हैं. जेठालाल, दया, मेहता से लेकर टपू तक को लोगों का खूब प्यार मिलता है, लेकिन जैसा शो में इन लोगों का बर्ताव होता है. वैसा ही क्या इनका असल में भी बिहेविय होता है. इस बात को लेकर हमेशा फैंस के दिलों में सवाल रहते हैं.

‘जेठालाल’ का किरदार निभाने वाले ”दिलीप जोशी” को इस शो (taarak mehta ka ooltah chashmah) के माध्यम से घर-घर में पहचान मिली है. उनका किरदार बच्चों से लेकर बड़ो तक को अच्छा लगता है. लेकिन अब उनके ही एक फैन ने उनके बिहेविय पर सवाल खड़े कर दिए है.

असल जिंदगी में बहुत नकचढ़े हैं ‘जेठालाल’!

दरअसल, सोशल मीडिया पर ‘जेठालाल’ यानी ”दिलीप जोशी” (Dilip Joshi) के एक फैन ने दावा किया है कि असल जिंदगी में उनका बिहेविय बहुत ज्यादा असभ्य और रूड हैं. जेठालाल का ये फैन उनसे हाल ही में मिला था, जिसके बाद उसने बताया कि दिलीप जोशी का बर्ताव उनके साथ कैसा था.

फैन ने किया बड़ा दावा

आपको बता दें कि ‘जेठालाल’ के इस फैन ने इस बात का खुलासा रेडिट के एक थ्रेड पर किया है. जब उस फैस से सवाल किया गया कि कौन सा टीवी एक्टर सबसे ज्यादा रूड है और किस-किसने ऐसा एक्सपीरियंस किया है? तो इस सवाल का जवाब कई लोगों ने दिया. लेकिन सभी का ध्यान Sans174 नामक एक यूजर के जवाब पर गया.

दरअसल, Sans174 नामक एक यूजर ने ‘दिलीप जोशी’ (Dilip Joshi) के साथ अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया. उन्होंने ‘जेठालाल’ को रूड बताया. हालांकि वहीं दूसरी तरफ उसने उनकी एक्टिंग की भी तारीफ की.

सोनम कपूर के भाई Harsh Varrdhan ने जूतों पर दिया ज्ञान, भड़के यूजर्स

Harsh Varrdhan Kapoor Troll : हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता ‘अनिल कपूर’ के बेटे ”हर्षवर्धन कपूर” को भी बॉलीवुड का हैंडसम हंक माना जाता हैं. उन्होंने अपनी एक्टिंग से कुछ ही समय में लाखों लोगों का दिल जीत लिया है. उन्होंने ‘मिर्जिया’, ‘थार’ और ‘रे’ जैसी कई उम्दा फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा वह सोशल मीडिया पर भी काफा एक्टिव रहते हैं और अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी बड़ी अपडेट अपने फैंस के साथ साझा करते हैं. हालांकि इस बार उन्हें लोगों का प्यार मिलने की जगह उनकी कड़वी बातों को सुनना पड़ रहा है.

दरअसल, एक्टर हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) कपूर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक नोट लिखकर नकली स्नीकर्स पहनने वाले लोगों को फटकार लगाई है, जिसके बाद यूजर्स उन पर ही भड़क उठे.

हर्षवर्धन- नकली स्नीकर्स पहनने से बचें

बीते दिनों, हर्षवर्धन कपूर (Harsh Varrdhan Kapoor troll) ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर लिखा, ‘पता नहीं कि इसे किसे सुनने की जरूरत है, पर कृपया नकली स्नीकर्स पहनना बंद करें. अगर आपका कम बजट है तो भी आपके पास बहुत सारे बेहतरीन ऑप्शन हैं. हालांकि अगर कोई आपको गिफ्ट देता है, तो वो अलग बात है. फिर तो उसे पहनने में खुशी होगी लेकिन अगर आप अपना खुद का सामान खरीद रहे हैं तो कृपया करके ऐसा न करें. केवल और केवल ट्रस्टेड ब्रांड्स से ही खरीदें.’

एक्टर ने लड़कों को भी दी सलाह

इसके अलावा हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) ने एक और नोट लिखा, जिसमें उन्होंने लड़कों से अपने लुक पर ध्यान देने की बात कही. एक्टर ने कहा, ‘किसी को भी महंगी चीजें पहनने की जरूरत नहीं है. हालांकि अच्छे कपड़ों के साथ-साथ अच्छे जूतों की जोड़ी को स्टाइल करना भी जरूरी है, लेकिन लुक बहुत मायने रखते है. इसलिए हर किसी को इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए.’ इसी के साथ एक्टर ने ये भी कहा कि, ‘फैशन किसी की भी पर्सनैलिटी के बारे में बहुत कुछ बताता है. इसलिए लोगों को स्टाइल के बारे में सीखना चाहिए.’

लोगों ने लगाई हर्षवर्धन की क्लास

आपको बता दें कि जैसे ही हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) की ये पोस्ट वायरल हुई. वैसे ही यूजर्स ने एक्टर की क्लास लगा दी. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘जीजा की दुकान है न, तभी ये सब बोल रहा है.’ वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘इसलिए इतनी बकवास कर रहा है क्योंकि उसके जीजू का जूते का बिजनेस है.’ हालांकि एक्टर ने अभी तक अपने ट्रोलर्स को कोई जवाब नहीं दिया है.

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