हिमाचल प्रदेश और कनार्टक की विधानसभाओं में और पश्चिम बंगाल की पंचायतों में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी चिंतित है कि हिंदूमुसलिम विद्वेष की लकड़ी की हांडी में उस की दाल कितने दिन और गलेगी. वैसे, चिंता की कोई खास बात नहीं है उस के लिए क्योंकि धर्म के धंधे से जुड़ा या उस से फायदा उठाने वाला हर जना भाजपा का ‘अवैतनिक प्रचारक’ है ही जो दिल और पैसा लगा कर उस के लिए काम करता रहता है.

कठिनाई यह है कि ज्यादा दिखने वालेज्यादा बोलने वालेज्यादा व्यवहार कुशलज्यादा पैसे वाले ये लोग गिनती में उन के बराबर कहीं नहीं जो अपनी मेहनत का खाते हैंदूसरों के जुल्म सहते हैंपूजापाठ में भी भरोसा करते हैं पर दिल से भाजपा को चाहें, यह जरूरी नहीं.

इन लोगों को अपने में समेटने में भारतीय जनता पार्टी अब जोरशोर से दूसरी पार्टियों को अपने साथ ला रही है चाहे इस चक्कर में कुछ को तोडऩा पड़े या उन में आपसी जोड़ लगाना हो. पुलिसफौजकानूनअदालतेंमीडिया आदि भारतीय जनता पार्टी के अधीन हैं या कह लें कि प्रभाव में हैं. लेकिन इस के बावजूद तमिलनाडूकर्नाटकहिमाचलराजस्थानपश्चिम बंगाल में विपक्ष के सरकारें हैं. इसलिए भाजपा एनडीए को पुनर्जीवित करने में जुट गई है.

फिलहाल दलित नेता चिराग पासवानओ पी राजभरटीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल यूनाइटेड के देवगौड़ा से बात हो रही है. अगले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी यदि हर जाति-धर्म को ले कर चुनाव में आए तो यह देश के लिए अच्छा होगा. राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने जोड़ा या नहीं, लेकिन उसने भाजपा को दूसरी पार्टियां को जोडऩे पर मजबूर कर दिया. 2014 से पहले ये पार्टियां अपनेआप नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट यानी एनडीए का हिस्सा बनी थीं. अब लालच दे कर उन्हें लाया जा रहा है और भारतीय जनता पार्टी की 2-3 पीढिय़ों के कर्मठ नेताओं को चुप बैठने को कहा जा रहा है.

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