देश में संभवतया ऐसा पहली दफा हो रहा है जब मणिपुर में भयावह स्थिति बनी हुई है. आज भी हिंसा और पलायन जारी है. हालात कुछ ऐसे दिखाई दे रहे हैं मानो भारतपाकिस्तान का विभाजन हुआ है और मारकाट मची हुई है, बलात्कार हो रहे हैं, पलायन हो रहा है.

देश के विभाजन के समय हुई त्रासदी के लिए अगर हम अंगरेजों को माफ नहीं कर सकते तो फिर आजाद भारत की लोकतांत्रिक चुनी हुई सरकार तो क्या देश माफ कर देगा?

दरअसल, केंद्र में एक सक्षम और मजबूत सरकार बैठी हुई है जो यह मानती है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया पीछे चलने के लिए तैयार है। ऐसे में मणिपुर में जो कुछ हो रहा है अगर वह केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकार के संरक्षण में नहीं चल रहा, तो यह कैसे माना जा सकता है? क्या कारण था कि अगर कोई विपक्ष का बड़ा नेता मणिपुर जाना चाहता है, लोगों से मिलना चाहता है तो उसे मिलने नहीं दिया जाता? अगर दुनिया में कहीं चर्चा शुरू हो जाती है तो कहा जाता है कि यह तो हमारा आंतरिक मामला है मगर इन सब के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार मणिपुर पर हाथ पर हाथ धरे हुए बैठे हुए हैं तो इस का स्पष्ट कारण यह है कि केंद्र और राज्य का संबल मिला हुआ है उपद्रवियों को.

आवाज दबाने की गंदी कोशिश

विपक्ष जाता है कि संसद में चर्चा हो मगर बेहद चालाकी से सत्ता यह कह रही है कि हम तो बातचीत के लिए तैयार हैं, ऊपर से बातचीत नहीं करना चाहता। यह घातप्रतिघात देश देख रहा है और निश्चित रूप से इस का खमियाजा भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा.

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