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World Suicide Prevention Day पर आमिर खान की बेटी ने दी सलाह, देखें वीडियो

Ira khan Viral Video : हर साल 10 सितंबर को ‘वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे’ यानी ‘आत्महत्या रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन लोगों को आत्महत्या के प्रति जागरुक किया जाता है, जिस कारण वह आत्महत्या जैसा कोई गंभीर कदम नहीं उठाए. हालांकि बावजूद इसके देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. आम जनता से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स और कई बार तो उनके बच्चे भी इतना परेशान हो जाते हैं कि मौत को गले लगा लेते हैं.

बॉलीवुड एक्टर आमिर खान की बेटी ”आइरा खान” भी डिप्रेशन जैसे खतरनाक मेंटल स्टेटस से गुजरी थी. हालांकि अब वह इससे बाहर आ चुकी है और अब वो इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे लोगों की मदद करती हैं. इसके लिए उन्होंने (Ira khan Viral Video) एक फाउंडेशन का भी गठन किया है.

जानें क्या कहा आइरा ने?

बीते दिन ‘विश्व आत्यहत्या रोकथाम दिवस’ (World Suicide Prevention Day) के मौके पर ”आइरा” को एक बार फिर लोगों को जागरूक करते देखा गया. इस बार उनका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. वीडियो में देखा जा सकता है कि वो आत्महत्या के रोकथाम के उपायों के बारें में बता रही हैं.

सबसे पहले आइरा (Ira khan Viral Video) कहती हैं, ‘जिन लोगों को आत्महत्या का विचार आता है उनको सबसे पहले बहुत डर लगता है. उनको लगता है कि वो अपनी बात किसी को बता नहीं सकते हैं.’ इसी के आगे उन्होंने कहा, ‘लेकिन अगर आप इस बारे में उनसे पूछोगे तो उनको एहसास होता है कि कोई है जो डरेगा नहीं. अगर मैं कहूं कि यह विचार मेरे मन में है. बहुत सारे लोगों को लगता है कि अगर मैं बोलूंगा या बोलूंगी तो यह विचार उनके मन में आ जाएगा, पर ऐसा नहीं होता है. किसी को भी इस बारे में बात करने से डरने की जरूरत नहीं है.’

2021 में आयरा ने बनाया था फाउंडेशन

आपको बताते चलें कि जब से आइरा खान, डिप्रेशन (World Suicide Prevention Day) से बाहर निकली है तभी से वह मेंटल हेल्थ को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. इसके लिए उन्होंने साल 2021 में अगस्तू फाउंडेशन का भी गठन किया था, जिसके जरिए वह औपचारिक तौर पर डिप्रेशन में जूझ रहे लोगों की मदद करती हैं.

सिनेमा में आए बदलाव पर फूटा Naseeruddin Shah का गुस्सा, पूछे तीखे सवाल

Naseeruddin Shah : हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर्स में से एक नसीरुद्दीन शाह हमेशा से ही अपने बेबाक बयानों के चलते सुर्खियों में रहे हैं. वहीं अब हाल ही में उन्होंने फिर से कुछ ऐसा बोल दिया, जिसके कारण वो खबरों में आ गए है.

दरअसल बीते दिनों वो अपने डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘मैन वुमन मैन वुमन’ का प्रचार कर रहे थे. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए उन्होंने अपनी पूरी भड़ास निकाली है.

डायरेक्शन से क्यों दूर थे एक्टर?

जब एक मीडियाकर्मी ने उनसे (Naseeruddin Shah) सवाल किया कि, डायरेक्टर के रूप में आपको वापसी करने में 17 का लंबा वक्त क्यों लगा? तो इस पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा, ‘मैं इतनी खराब फिल्म को बनाने के सदमे से उबर रहा था. यह वैसी फिल्म नहीं बनी, जैसे कि मैंने सोचा था. कहानी लिखने के लिहाज से या फिर फिल्म बनाने के लिहाज से मैं उस वक्त सही स्थिति में नहीं था. लेकिन उस समय मैंने सोचा था कि अगर मैं सभी बेहतरीन एक्टर्स को एक साथ इकट्ठा कर लूं तो वह अच्छा परफॉर्म करेंगे. मुझे लगा कि यह एक अच्छी स्क्रिप्ट है पर बाद में मुझे इस बात का एहसास हुआ कि इस स्क्रिप्ट में कुछ खामियां थी. खासतौर पर बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान की कहानी में.’

इसी के साथ नसीरुद्दीन ने ये भी कहा कि, ‘एक्टर्स के योगदान को छोड़कर, ये मेरे लिए बड़ी निराशा की बात थी. हालांकि मैं इस सबकी जिम्मेदारी भी लेता हूं. फिर उसके बाद मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दूसरी फिल्म भी बनाऊंगा क्योंकि इसमें कड़ी मेहनत लगती है.’

नसीरूद्दीन ने इस तरह निकाला अपना गुस्सा

इसके अलावा नसीरुद्दीन शाह से जब ये पूछा गया कि क्या बॉलीवुड में फिल्मों को बनाने का मोटिव बदल गया है? तो इस पर एक्टर (Naseeruddin Shah) ने जवाब दिया, ‘हां! अब आप जितने ज्यादा अंधराष्ट्रवादी होंगे, आप उतने ही ज्यादा लोगों के बीच फेमस होंगे, क्योंकि यही इस देश पर शासन कर रहा है.’ इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘आज के समय में अपने देश से प्यार करना ही काफी नहीं है बल्कि इसके बारे में ढोल पीटना और काल्पनिक दुश्मन पैदा करना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि इन लोगों को ये एहसास नहीं है कि वह जो कर रहे हैं वो बहुत ही हानिकारक है.’

नसीरुद्दीन ने क्यों नहीं देखी कश्मीर फाइल्स?

वहीं जब एक्टर से ये सवाल किया गया कि, ‘गदर 2’ और ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में कैसे चल रहीं हैं? तो इस पर उन्होंने कहा, ‘केरल स्टोरी और गदर 2 जैसी फिल्में मैंने नहीं देखी है, लेकिन मुझे ये पता है कि वो किस बारे में हैं. ये परेशान करने वाली बात है कि कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में इतनी हिट हो रही हैं.’

इसी के आगे उन्होंने (Naseeruddin Shah) कहा, ‘जबकि सुधीर मिश्रा, अनुभव सिन्हा की बनाई गई फिल्में हैं और हंसल मेहता, जो कि अपने समय की सच्चाई को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वो लोगों को नजर नहीं आती. लेकिन यह जरूरी है कि ये तमाम फिल्ममेकर हिम्मत न हारें और लोगों के बीच कहानियां सुनाते रहें.’

एक्टर ने भावी पीढ़ी को दी चेतावनी

इसी के साथ अभिनेता (Naseeruddin Shah) ने ये भी कहा कि, ‘वो भावी पीढ़ी के लिए ज़िम्मेदार होंगे. आज से सौ साल बाद लोग भिड़ देखेंगे और गदर 2 भी देखेंगे. साथ ही ये भी देखेंगे कि कौन हमारे समय की सच्चाई को दिखाता है? क्योंकि फिल्म ही एकमात्र जरिया होता है जो ऐसा कर सकती है. हालांकि ये भयावह है कि जहां फिल्म निर्माताओं को ऐसी फिल्में बनाने में शामिल किया जाता है, जो सभी गलत चीजों को दिखाती हैं. इसके अलावा बिना किसी वजह के दूसरे समुदायों को नीचा भी दिखाते हैं.’

उपचुनाव 2023 : ‘एनडीए’ पर भारी पड़ा ‘इंडिया’

6 राज्यों के 7 विधानसभा उपचुनावों के मैच में ‘इंडिया’ गठबंधन का पलड़ा भारी रहा है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में हुएये चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैंक्योंकिये4 विधानसभाओं और 2024 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हुएहैं. एक तरह से ये चुनावपूर्व सर्वे जैसे हैं जिनसे जनता के मूड का अंदाजा लगाया जा सकता है. 7 विधानसभाओंके ये चुनाव उस समय हुए जब ‘इंडिया’ गठबंधन की तीसरी मीटिंग मुंबई में हो रही थी और केंद्र की मोदी सरकार ने जवाबी हमला करते हुए ‘वन नेशन, वन इलैक्शन’ और ‘इंडिया बनाम भारत’ जैसे शिगूफे छेड़ रखे थे.

‘इंडिया’ गठबंधन और ‘एनडीए’ के बीच यह पहला सीधा मुकाबला थाजिसका रोमांच किसी भी 20-20 क्रिकेट मैच जैसा ही था. इसका परिणाम ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में 4-3 से गया. एनडीए की अगुआ भाजपा को उत्तराखंड और त्रिपुरा की जिन 3सीटों पर विजय मिली भी, वे बहुत छोटे राज्य थे. इसके मुकाबले ‘इंडिया’ गठबंधन ने उत्तर प्रदेश, झारखंड, केरल, और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में चुनाव जीता. जहां की जीत के अलग माने हैं.

7 विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की घोसी में समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह, डुमरी झारखंड में जेएमएम की बेबी देवी, धनपुर और बक्सनगर त्रिपुरा में भाजपा के बिदूं देबनाथ और तफ्फजल हुसैन, बागेश्वर उत्ताखंड में भाजपा की पार्वती दास, पुथिपल्ली केरल में यूडीएफ के चांडी उम्मेन और धूपगुडी पश्चिम बंगाल में टीएससी के निर्मल चंद्र राय ने जीत हासिल की.

भारतीय जनता पार्टी दलबदल, सीबीआई और ईडी जैसे हथियारों से बारबार विपक्षी नेताओं को डराने का काम करती है. इन उपचुनावों ने भाजपा के इस डर को खत्म कर दिया है. पश्चिम बंगाल में धूपगुडी सीट भाजपा के कब्जे में थी. यहां विपक्ष का कोई साझा उम्मीदवार नहीं था. भाजपा और टीएमसी के साथ वामपंथी दलों ने कांग्रेस के समर्थन से अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. ऐसे में विपक्ष की ताकत घटी हुई थी. इसके बाद भी जीत टीएमसी को मिली.

केरल में यूडीएफ के उम्मीदवार चांडी उम्मेन पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के बेटे हैं. वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उनके साथ पैदल चले थे. केरल में भाजपा का कोई प्रभाव नहीं है. इसके बाद भी चांडी उम्मेन को परेशान करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी कि जिससे चांडी उम्मेन डर जाएं. लेकिन वे डरे नहीं और अपने पिता से भी बड़ी जीत हासिल की. चांडी उम्मेन की ही तरह उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा ने भी साबित कर दिया कि डर के आगे जीत है.

उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर भाजपा ने सपा के विधायक दारा सिंह चौहानको तोड़ा, अपनी तरफ मिलाया और उनको विधानसभा का उपचुनाव लड़ा दिया. दारा सिंह को चुनाव जिताने के लिए अपने बुलडोजर मुख्यमंत्री, 2 डिप्टी सीएम, 2दर्जन मंत्री और सैकड़ों कार्यकर्ताओं को चुनावप्रचार में उतार दिया. इसके बाद जब फैसला आया तो भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा को न केवल हार मिली बल्कि उसके वोट भी कम हो गए जबकि उसके मुकाबले समाजवादी पार्टी को जीत भी मिली और उसके वोट भी बढ़ गए.

2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 86 हजार 210 वोट मिले थे. उपचुनाव में ये घटकर 81 हजार 623 रह गए जबकि समाजवादी पार्टी को 2022 में 1 लाख 8 हजार 431 वोट मिले थे जो उपचुनाव में बढ़ कर 1 लाख 24 हजार 295 हो गए. भाजपा के जो वोट घटे, वह यह बता रहाहै कि उस से हर जाति और धर्म का मोहभंग हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा की नीतियां है जो जनता को परेशान कर रही हैं. इनमें महंगाई, बेरोजगारी, जाति और धर्म की लड़ाई, तानाशाही, संविधान और सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग जैसे मसले प्रमुख हैं.

भाजपा का सवर्णो और ऊंची जातियों की पार्टी कहा जाता है. घोसी की सीट पर भाजपा ने ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान को टिकट दिया था. वर कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं. यहां सपा ने ठाकुर वर्ग के सुधाकर सिंह को टिकट दिया था. सवर्ण ने भाजपा को नकार कर सपा को वोट दिया. सपा को मिले वोट बताते हैं कि हर जाति और धर्म के लोगों का वोट उसे मिला, इसकी सबसे बड़ी वजह भाजपा से उन की नाराजगी थी.

घोसी इस माने में भी अहम है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश में है. जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां योगी आदित्यनाथ का पहरा है. उनका पैर अंगद के पैर जैसा माना जा रहा है. भाजपा को लगता है कि उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में उसको 80 में से 80सीटों पर जीत मिलेगी. घोसी ने प्रदेश के मूड को बता दिया है. यहां अंगद का पैर उखड़ सकता है और भाजपा की नाव डूब सकती है.

घोसी में ‘इंडिया’ गठबंधन का भी टैस्ट हो गया. गठबंधन की यूपी में अगुआ सपा ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस और लोकदल ने समर्थन किया. नतीजा ‘इंडिया’ के पक्ष में गया. मायावती ने भी अपना दांव चल दिया. भाजपा को लग रहा था कि बसपा के चुनाव न लड़ने से दलित वोट भाजपा को चला जाएगा. मायावती ने अपने लोगों को यह संदेश दिया कि वे अपना वोट नोटा को दें. इसके बाद दलित वोट कम हुआ. घोसी के घमासान में कई दलों को अलगअलग संदेश मिल गएहैं, देखना है कौन किस तरह से इस संदेश को पढ़ता है.

इन चुनावों के बाद भाजपा के दलबदल, ईडी और सीबीआई का डर विपक्षी दलों के बीच से निकल गया है. जनता गुस्से में भी है और एकजुट भी है. यह आने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में उलटपलट करने वाले संकेत हैं. ‘मोदी, शाह और योगी’ की तिकड़ी की रणनीति फेल हो सकती है. इससे विपक्षी दलों में आत्मविश्वास भरा है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं, ‘घोसी उपचुनाव में सपा और इंडिया गठबंधन प्रत्याशीकी जीत ने भाजपा के घमंड को तोड़ने के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम का संकेत भी दे दिया है. हमारी जीत सकारात्मक राजनीति की जीत और सांप्रदायिक नकारात्मक राजनीति की हार है.’

सरकार मस्त, ‘शिक्षा मौडल’ ध्वस्त

आजकल हर जगह जी-20 सम्मेलन की चर्चा है. दिल्ली दुलहन की तरह सजाई गई पर दिल्ली वालों के लिए 8 से 10 सितंबर के बीच लौकडाउन जैसे हालात रहे. स्कूल, दफ्तर, मौल, बाजार सहित कई चीजें ऐसी हैं जो इन दिनों बंद रहीं. 8 सितंबर को सुबह 5 बजे से 10 सितंबर को रात 11:59 बजे तक नई दिल्ली का पूरा क्षेत्र ‘नियंत्रित क्षेत्र-I’ माना गया, एक तरह का कर्फ्यू एरिया.

चलो, इतना बड़ा आयोजन है और अगर इस से देश को आगे बढ़ने में मदद मिलनी थी तो लोग यह सोच कर थोड़ीबहुत परेशानी झेल भी गए कि इस से नई पीढ़ी को रोजगार पाने के बेहतर अवसर मिलेंगे.

पर नई पीढ़ी किस हाल में है, यह जानने की फुरसत किस सत्ताधारी खादीधारी को है, यह नहीं दिखाई दे दिया. जी-20 सम्मेलन के ठाठ से अंगड़ाई लेती दिल्ली से राजस्थान के कोटा की दूरी तकरीबन 500 किलोमीटर है और वहां जो कोचिंग संस्थानों के या दूसरे तमाम होस्टलों के कमरों की छत पर लटके लेटैस्ट तकनीक से बने ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ भी छात्रों को खुदकुशी करने से रोक नहीं पा रहे हैं, तो जान लीजिए कि दिल्ली के जी-20 सम्मेलन के सारे तामझाम फुजूल हैं.

रविवार, 27 अगस्त, 2023 को कोटा में 2 बच्चों ने पढ़ाई के बोझ तले दब कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली. एक बिहार के रोहतास जिले का लाड़ला आदर्श राज था तो दूसरा महाराष्ट्र के पिछड़े जिले लातूर का रहने वाला अविष्कार संभाजी कासले. पहला महज 18 साल का था और दूसरा तो अभी 16 साल का ही हुआ था.

चिट्ठी में छिपा दर्द

जान देने वाले एक छात्र की लिखी आखिरी चिट्ठी के अंश देखिए :

‘अभिनव मेरे भाई, तुम कभी कोटा न आना. मैं नहीं चाहता कि तुम भी मेरी तरह दिमागी रूप से परेशान हो जाओ. मैं यहां सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करता हूं. अकेला हो गया हूं. मोबाइल है नहीं, तो कई दिनों से यह लैटर लिख रहा हूं. जब मौका मिल पाया था तब भेजा.

‘अभिनव, तुम पेंटिंग बनाओ. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करो. हो सकता है कि तुम को घर बैठे ही कहीं से और्डर आ जाएं. तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बन जाओ.

‘अंत में मांपापा, एक बात आप से बताना भूल गया. भूला नहीं शायद हिम्मत नहीं जुटा पाया. पिछले हफ्ते एक टैस्ट हुआ था, पापा. 50 मार्क्स का था. मैं 35 नंबर ला पाया, जो क्लास में सब से कम थे. सब के नंबर अच्छे थे. कोचिंग वाले बोले कि मार्कशीट घर जाएगी. शायद अब तक पोस्ट भी हो गई होगी, लेकिन उस से पहले मैं आप सभी से माफी मांग रहा हूं. मांपापा, आप का सपना अब अभिनव पूरा करेगा. मैं उस लायक नहीं बना.

‘अभिनव, तुम रोना नहीं. बस, यह सोच लेना भैया का सपना भी तुम को पूरा करना है.

‘अलविदा.’

राजस्थान के कोटा को आईआईटी और नीट के इम्तिहान को क्रैक करने का हब माना जाता है. यह अपनी पढ़ाई के लिए इतना ज्यादा मशहूर है कि ‘कोटा मौडल’ की चर्चा दुनियाभर में होती है. यही वजह है कि कोटा में हर साल उच्च शिक्षा की तैयारी करने के लिए आने वाले छात्रों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

साल 2021-22 में यहां 1,15,000 छात्र कोचिंग के लिए पहुंचे थे, तो वहीं 2022-23 में यह तादाद बढ़ कर 1,77,439 हो गई थी. साल 2023-24 में यह आंकड़ा 2,05,000 तक पहुंच गया है. कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री की कुल नैटवर्थ तकरीबन 5,000 करोड़ रुपए है. यहां 3,000 से ज्यादा होस्टल, 1,800 मैस और 25,000 पीजी कमरे हैं.

कहने का मतलब है कि कोटा में पढ़ाई के संसाधन इतने ज्यादा मजबूत हैं कि ‘कोटा मौडल’ अपनेआप में एक मिसाल बन गया है, जहां छात्रों के लिए शानदार कोचिंग सैंटर, पढ़ाने के लिए उम्दा टीचर, एक से बढ़ कर एक लाइब्रेरी, पढ़ने की लाजवाब सामग्री… और भी न जाने क्याक्या मुहैया है. इस सब से छात्रों को यह लगने लगता है कि जो कोटा से पढ़ लेगा वह डाक्टर या इंजीनियर तो बन ही जाएगा.

लेकिन इसी ‘कोटा मौडल’ का एक भयावह रूप भी है. इस साल वहां 24 छात्र पढ़ाई और मानसिक दबाव में अपनी जान दे चुके हैं. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि वहां कोचिंग संस्थानों और होस्टलों में ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ लगाने के आदेश जारी होने के बाद भी रविवार, 27 अगस्त, 2023 को 4 घंटे के भीतर 2 छात्रों ने अपनी जान दे दी थी.

आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2015 में 17 छात्रों ने सुसाइड किया, जबकि साल 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4 और 2022 में 15 छात्रों ने अपनी जान दे दी.

दरअसल, कोटा का एजुकेशन सिस्टम अब हर तरह से फेल होता नजर आ रहा है. यहां का मैनेजमैंट चरमरा गया लगता है और छात्रों को इनसान कम, फीस भरने का एटीएम ज्यादा समझा जाने लगा है.

कोटा के कोचिंग सिस्टम के अपने ही कायदे बने हुए हैं. वे 9वीं क्लास से ही आईआईटी और नीट के लिए कोर्स शुरू कर देते हैं. वहां एक साल में एक बच्चे के रहने का खर्च तकरीबन ढाई लाख रुपए के आसपास का है. एक से डेढ़ लाख रुपए कोचिंग की फीस है. इस के अलावा बच्चों के दूसरे तमाम खर्चे भी होते हैं. सबकुछ जोड़ कर देखें तो एक साल में एक बच्चे पर तकरीबन 4 लाख रुपए तक भी खर्च हो जाते हैं.

सरकार है कठघरे में

अभी हम ने जिस ‘कोटा मौडल’ का पोस्टमार्टम किया है, वहां सरकार से ज्यादा कोटा के कोचिंग संस्थान और बच्चों के मांबाप ही कुसूरवार नजर आ रहे हैं, पर इन हालात की जड़ में सरकार की वे योजनाएं हैं जो शिक्षा का व्यावसायीकरण करने की जिम्म्मेदार हैं. कोटा में बच्चों की मौत में गुनाहगार के तौर पर सरकार को कठघरे में खड़ा होना चाहिए था, पर उसे तो कोचिंग संस्थानों और मांबाप ने बाइज्जत बरी कर दिया है.

ऐसा नहीं है कि पहले देश में प्राइवेट शिक्षा का चलन नहीं था, पर अपने समय में कांग्रेस ने खूब सरकारी स्कूल और कालेज बनवाए थे. वहां शिक्षा का स्तर भी बहुत अच्छा था और अब भी है, पर पिछले कुछ वर्षों से देश में शिक्षा का जो निजीकरण हुआ है, उस से देश में एक असंतुलन सा बढ़ गया है.

आप भगवाई चश्मा पहन कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नीतियों में कितनी भी कमियां निकाल दीजिए, पर जिस तरह उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों और वहां की पढ़ाई का स्टैंडर्ड बढ़ाया है, वह तारीफ के काबिल है.

पर यह सफलता ऊंट के मुंह में जीरा है. कड़वी सचाई तो यह है कि शिक्षा अपनेआप में विभाजन पैदा करने का एक माध्यम बन गई है. एक अमीर मातापिता के बच्चे को अच्छी शिक्षा मिलेगी और गरीब मातापिता का बच्चा बुनियादी शिक्षा भी नहीं पा सकता है.

कोढ़ पर खाज यह है कि सरकार के बढ़ावे पर प्राइवेट स्कूलों, कालेजों, यूनिवर्सिटियों की देश में बाढ़ सी आ गई है और शिक्षण संस्थानों को चलाना एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है. सरकारी शिक्षण संस्थानों में कम सीटें होती हैं तो मजबूरी के चलते छात्र प्राइवेट शिक्षा संस्थानों में दाखिला लेते हैं, जहां वे अपने लाभ के अनुसार छात्रों से फीस लेते हैं.

देश में हर साल 12वीं पास करने वाले छात्रों की तादाद 1 करोड़ से ज्यादा है. साल 2022 में 1 करोड़, 43 लाख बच्चे 12वीं के ऐग्जाम में बैठे थे और उन में से 1 करोड़, 24 लाख बच्चे पास हो गए थे. अब सरकार के पास क्या इन 1 करोड़, 24 लाख बच्चों को आगे मुफ्त या कम खर्च के हिसाब से पढ़ाई जारी रखने का इंफ्रास्ट्रक्चर है? नहीं है.

सरकारें इन बच्चों की बातें ही नहीं करती हैं, क्योंकि देश चलाने वाले अब बिलकुल नहीं चाहते कि ज्यादातर गरीब तबके के ये सब छात्र पढ़लिख कर अमीरों की बराबरी कर लें, इसलिए डाक्टरी की ऊंची पढ़ाई में सिर्फ 8,500 सीटें सरकारी मैडिकल कालेजों में हैं. प्राइवेट कालेजों में और 47,415 सीटें हैं, जिन में खर्च लाखों का है. इंजीनियरिंग कालेजों में सरकारी कालेजों की 15,53,809 सीटें हैं पर आईआईटी जैसे इंस्टीट्यूटों की सीटें मुश्किल से 10,000-12,000 हैं जहां फीस 10-15 लाख रुपए तक होती है.

आर्ट्स स्ट्रीम की बात करते हैं. मान लो किसी सरकारी कालेज में पूरे साल की फीस 15,000 रुपए है तो प्राइवेट कालेज में यह फीस एक लाख सालाना से भी ज्यादा हो सकती है. चूंकि ये संस्थान शहर से थोड़ा दूर होते हैं तो वहां होस्टल आदि में रहने का खर्च डेढ़ से 2 लाख रुपए सालाना तक पड़ जाता है. अगर कोई प्रोफैशनल कोर्स कर रहा है तो कम से कम 10 लाख से 15 लाख रुपए का खर्च आ सकता है. पर वहां की समस्या ही दूसरी है. वहां के ज्यादातर छात्र हिंदी लिखने में तकरीबन सिफर होते हैं और इंगलिश भी उन की माशाअल्लाह होती है.

सरकार की गलत नीतियों का असर है कि हर राज्य में जितने भी प्राइवेट शिक्षा संस्थान हैं, वे ज्यादातर नेताओं या उन के नातेरिश्तेदारों के हैं. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कई साल पहले एक मुद्दा उठाते हुए कहा था कि जनता को पता चलना चाहिए कि पूरे देश में कितने प्राइवेट स्कूल नेताओं के हैं और किनकिन स्कूलों के बोर्ड में नेता और अफसर हैं.

उन्होंने यह भी कहा था कि हम शिक्षा के निजीकरण को तो नहीं रोक सकते, लेकिन अगर हम इस के सामने सरकारी शिक्षा की क्वालिटी और उपलब्धता बेहतर कर दें तो यह अपनेआप कम होने लगेगा, यानी, अब हमें बड़ी लाइन खींचनी है. इस के लिए हमें जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी. स्कूल में, क्लास में क्वालिटी एजूकेशन का माहौल तैयार करना पड़ेगा.

मनीष सिसोदिया ने यह भी कहा था कि हमारे कई सरकारी स्कूलों में एकएक क्लासरूम में 100-100 बच्चों को बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ती है. हमें व्यवस्था करनी है कि हर क्लासरूम में ज्यादा से ज्यादा 40 बच्चे हों, तभी लोगों का भरोसा सरकारी स्कूलों के प्रति बढ़ेगा. और हम ऐसा कर रहे हैं. जब हम सरकारी स्कूलों के बच्चों के अंदर वही आत्मविश्वास भर पाएंगे जैसा आत्मविश्वास भरने का दावा प्राइवेट स्कूल वाले करते हैं, तब लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों की जगह सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू करेंगे.

अगर भारत के संविधान की बात करें तो अनुच्‍छेद 21-क सरकार को निर्देशित करता है कि शिक्षा मौलिक अधिकार है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राज्य में 6 से 14 वर्ष के आयु समूह में सभी बच्‍चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे, जिस के लिए सरकार ने सरकारी स्कूल खुलवाए भी हैं. पर पिछले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बिगड़ गया है. शिक्षा माफिया ने राजनीतिक और सरकारी तंत्र से गठजोड़ कर नियोजित ढंग से सरकारी स्कूलों की कमर तोड़ दी है, ताकि इन की दुकान चलती रहे.

वर्तमान सरकार दावा करती है कि पिछले 9 साल में देश में सड़कों का जाल बिछ गया है, हाईवे ही हाईवे दिखाई देने लगे हैं, पर सवाल है कि उन पर चलेगा कौन? बड़ीबड़ी गाड़ियों  वाले ही न? पर उन साइकिल वालों का क्या होगा जो देश की रीढ़ की हड्डी हैं? वे जो कारखानों, मिलों और बड़ीबड़ी इंडस्ट्री में मेहनतकश हैं, क्या वे इन सड़कों से कोई फायदा ले पाएंगे? एकदम न के बराबर. अगर वे और उन के होशियार बच्चे डाक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखते हैं, तो इस में गलत क्या है? उन्हें सस्ती शिक्षा क्यों नहीं दे पाती है सरकार?

दरअसल, सरकार की नीयत ही नहीं है कि गरीब का बच्चा ऊंचे दर्जे का हाकिम बन जाए. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तो एजेंडा ही यह है कि वंचित समाज ‘मंदिर बनाओ’ अभियान में ही बिजी रहे. वह उन का परमानैंट कारसेवक बन जाए, जिसे एक आवाज पर सड़क पर उतार दिया जाए बवाल मचाने के लिए. तभी तो जब जी-20 सम्मेलन हुआ,तब दिल्ली से आम आदमी नदारद हो गया और किसी नूंह दंगे जैसी साजिश रचने की जरूरत ही नहीं पड़ी.

कातिल : किसकी वजह से जेल गया था सत्येंद्र ?

शाम के यही कोई 5 बजे अचानक रक्षा जोर से चिल्लाई तो उस की चीख सुन कर चचेरी भाभी रश्मि ही नहीं, आसपड़ोस वाले भी उस के पास आ गए थे. उस के पास आने वालों को उस से यह नहीं पूछना पड़ा था कि वह चिल्लाई क्यों थी? क्योंकि वह जिस कमरे में खड़ी थी, सामने ही पलंग पर 55 वर्षीया सुनीता की लाश पड़ी थी. उन के दोनों हाथ बंधे थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा था. कमरे की अलमारी का सामान बिखरा हुआ था.

स्थिति देख कर ही लोग समझ गए कि यह लूट के लिए हत्या का मामला है. सभी हैरान थे कि दिनदहाड़े घर में अन्य लोगों के होते हुए यह सब कैसे हो गया और किसी को पता तक नहीं चला. किसी ने मृतका सुनीता के पति राजकुमार गुप्ता को फोन कर के इस घटना के बारे में बता दिया था.

आते ही राजकुमार गुप्ता पड़ोसियों की मदद से पत्नी सुनीता को इस उम्मीद से मोहल्ले के ही शांति मिशन हौस्पिटल ले गए कि शायद उन में अभी जान शेष हो. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

घटना की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. लेकिन घंटा भर गुजर जाने के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. मजबूरन राजकुमार गुप्ता को थाना नौबस्ता जा कर हत्या और लूट की जानकारी देनी पड़ी. इस के बाद थानाप्रभारी आलोक यादव अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसएसपी यशस्वी यादव तथा अन्य अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मामला पेचीदा और रहस्यमय लग रहा था, इसलिए सुबूत जुटाने के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया था. फोरेंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारियों ने कमरे में जा कर लाश का निरीक्षण शुरू किया.

कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली पड़ी थी. उस में रखे गहनों के डिब्बे और सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. गहने और अलमारी में रखी रकम गायब थी. घटनास्थल और शव का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने पंचनामा तैयार कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद पूछताछ शुरू हुई.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के समय मकान के पीछे वाले कमरे में मृतका की बहू रश्मि और भतीजी रक्षा लैपटौप पर शादी की वीडियो देख रही थीं तो यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी क्योंकि आगे वाले कमरे में लूट और हत्या हो गई और पीछे के कमरे में मौजूद इन दोनों महिलाओं को इस की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस ने दोनों से काफी पूछताछ की. इस की एक वजह यह भी थी कि बहू अभी नवविवाहिता थी. पुलिस को शक था कि कहीं उसी ने अपने किसी प्रेमी से ऐसा न कराया हो? काफी पूछताछ के बाद भी जब पुलिस का शक दूर नहीं हुआ तो पुलिस ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक युक्ति अपनाई.

शक की गुंजाइश न रहे, इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने फोरेंसिक टीम की मदद से लूट और हत्या का नाटक करने का विचार किया. नाटक कर के पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि घटना के समय मृतका सुनीता बाहर वाले कमरे में चिल्लाई होगी तो उन की चीख या आवाज पीछे के कमरे में बैठी रश्मि और रक्षा को सुनाई दी होगी या नहीं.

कई बार पुलिस ने लूट और हत्या का नाटक कर के देखा, सचमुच आगे वाले कमरे की आवाजें पीछे वाले कमरे में नहीं पहुंच रही थीं. इस से पुलिस को लगा कि इस मामले में मृतका की नवविवाहिता बहू रश्मि का कोई दोष नहीं है. लेकिन भतीजी रक्षा जिस तरह घबराई हुई थी और नजरें चुरा रही थी, उस से वह पुलिस की नजरों में चढ़ गई. पुलिस का ध्यान उस पर जम गया. शक के आधार पर पुलिस ने उस का लैपटौप और मोबाइल कब्जे में ले लिया.

पुलिस ने थाने आ कर राजकुमार गुप्ता द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर उन के घर हुई लूट और पत्नी सुनीता की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. विवेचना में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा राजकुमार गुप्ता के बारे में जान लेते हैं.

राजकुमार गुप्ता 2 भाई हैं. बड़े भाई रामप्रसाद कानपुर के ही थाना विधनू के मोहल्ला न्यू आजादनगर में रहते हैं. उन की परचून की दुकान है. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी रक्षा और बेटा मनीष है. जबकि राजकुमार अपने परिवार के साथ कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला पशुपतिनगर में रहते हैं.

उन के परिवार में पत्नी सुनीता और एक बेटा तथा एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने पहले ही कर दी थी.  अब वह एक बेटे की मां है. राजकुमार का तंबाकू का बिजनैस है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन 2-3 महीने से न जाने कौन राजकुमार को परेशान कर रहा था. बारबार फोन कर के वह उन से मोटी रकम की मांग कर रहा था. 5 दिसंबर को उन के एकलौते बेटे हिमांशु की शादी थी. हिमांशु राजकुमार का एकलौता बेटा था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए वह बेटे की शादी खूब धूमधाम से करना चाहते थे.

शादी की तारीख नजदीक आते ही राजकुमार के नजदीकी रिश्तेदार आने लगे थे. उन की बेटी शिवांगी भी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ भाई की शादी में शामिल होने के लिए आ गई थी. 3 दिसंबर की शाम 6 बजे अचानक शिवांगी का बेटा शुभम घर के बाहर से गायब हो गया. बच्चे के इस तरह गायब होने से घर में हड़कंप मच गया. क्या किया जाए, लोग इस बात पर विचार कर ही रहे थे कि राजकुमार के मोबाइल फोन पर किसी ने शुभम के अपहरण की बात कह कर 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. शुभम के अपहरण की बात सुन कर घर में रोनापीटना मच गया.

अपहर्त्ता ने राजकुमार गुप्ता को पुलिस में न जाने की हिदायत दी थी. लेकिन कुछ लोगों के कहने पर वह अपने रिश्तेदारों के साथ थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर, जिस से फिरौती के लिए फोन आया था, दे कर बच्चे को अपहर्त्ताओं से मुक्त कराने की गुजारिश करने लगे.

वे लोग पुलिस से बच्चे को मुक्त कराने की गुजारिश कर ही रहे थे कि तभी उन्हें घर से फोन कर के बताया गया कि एक आदमी बच्चे को मोटरसाइकिल से घर के सामने छोड़ गया है. बच्चा सकुशल मिल गया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. जबकि उसे उस मोबाइल नंबर के बारे में पता करना चाहिए था. बहरहाल, भले ही बच्चा वापस आ गया था, लेकिन राजकुमार और उस के घर वाले इस घटना से परेशान थे.

5 दिसंबर को राजकुमार के बेटे हिमांशु की शादी थी. शादी से एक दिन पहले किसी ने राजकुमार गुप्ता को फोन कर के कहा कि वह 15 लाख रुपए की व्यवस्था कर के बताए गए स्थान पर पहुंचा दें वरना शादी से पहले उन के बेटे हिमांशु की हत्या कर दी जाएगी.

एकलौते बेटे के साथ कहीं कुछ अनहोनी न घट जाए, इस के मद्देनजर राजकुमार गुप्ता ने एक बार फिर थाना नौबस्ता जा कर पुलिस को 15 लाख की अवैध वसूली वाले फोन के बारे में बताया और अपने बेटे की सुरक्षा का आग्रह किया. लेकिन थाना नौबस्ता पुलिस ने राजकुमार की न तो रिपोर्ट दर्ज की और न उन के द्वारा बताए फोन नंबरों के बारे में कोई जांच की.

6 दिसंबर को हिमांशु का विवाह ठीकठाक संपन्न हो गया और बहू घर आ गई. खुशी के माहौल में राजकुमार गुप्ता पूर्व की घटनाओं को भूल कर अपने कामकाज में लग गए.

रोज की तरह 4 जनवरी को भी राजकुमार गुप्ता अपनी दुकान पर चले गए. घर में पत्नी सुनीता और बहू रश्मि रह गईं. मकान के पीछे वाले एक कमरे में राजकुमार की विधवा भाभी जगतदुलारी अपने बेटे सत्यम के साथ रहती थीं. एक बजे के करीब भाई रामप्रसाद की बेटी रक्षा आ गई. आगे वाले कमरे में सुनीता आराम कर रही थीं, इसलिए उन से दुआसलाम कर के वह हिमांशु की पत्नी रश्मि के पास चली गई. वहां वह लैपटौप पर उस की शादी की वीडियो देखने लगी.

5 बजे के आसपास रक्षा अपने घर जाने के लिए जब बाहर वाले कमरे से हो कर गुजर रही थी तो अपनी चाची सुनीता को बेड पर घायल पड़ी देख चीख पड़ी. उसी की चीख से इस घटना के बारे में पता चला.

पुलिस को पक्का यकीन था कि इस वारदात में घर के किसी आदमी का हाथ है. ऐसे में पुलिस की निगाह बारबार रक्षा गुप्ता पर जा कर टिक रही थी. लेकिन बिना सुबूत के उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. इसलिए पुलिस सुबूत जुटाने लगी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी यशस्वी यादव ने इस मामले के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अनिल मिश्रा, सीओ रोहित मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय मिश्रा और थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी आलोक कुमार के नेतृत्व में 4 टीमें बनाईं.

मोबाइल फोन अपराधियों तक पहुंचने में काफी मददगार साबित होता है, इसलिए पुलिस की इन टीमों ने मोबाइल फोन के जरिए हत्यारों तक पहुंचने की योजना बनाई. पुलिस ने मृतका सुनीता, रश्मि और रक्षा के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इन का अध्ययन करने के बाद पुलिस ने उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया, जिन पर उसे संदेह हुआ.

रक्षा के नंबर की काल डिटेल्स में पुलिस को एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर घटना के बाद तक उस का संपर्क बना रहा था. लेकिन उस के बाद वह मोबाइल नंबर बंद हो गया था. इस बात से पुलिस को रक्षा गुप्ता पर शक और बढ़ गया.

पुलिस ने इसी शक के आधार  पर घटना के समय से 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद का पशुपतिनगर क्षेत्र के सभी मोबाइल टावरों का पूरा विवरण निकलवाया. इस का फिल्टरेशन किया गया तो रक्षा की उस नंबर से घटना के पहले और बाद में बातचीत होने की पुष्टि तो हुई ही, उस नंबर की उपस्थिति भी पशुपतिनगर की पाई गई.

जांच में यह भी पता चला कि दोनों ने एकदूसरे को एसएमएस भी किए थे. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सत्येंद्र यादव का था, जो रक्षा के ही मोहल्ले का रहने वाला था.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के पहले और बाद में रक्षा और सत्येंद्र ने एकदूसरे को मैसेज किए थे तो पुलिस ने रक्षा के मोबाइल का इनबौक्स देखा. लेकिन उस में कोई मैसेज नहीं था. इस का मतलब उस ने मैसेज डिलीट कर दिए थे.

पुलिस ने बहाने से सत्येंद्र का मोबाइल फोन ले कर उसे भी चेक किया. उस ने भी सारे मैसेज डिलीट कर दिए थे. शायद उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस चाहे तो उन मैसेजों को रिकवर करा सकती है. पुलिस को लगा कि अगर मैसेज रिकवर हो जाएं तो इस लूट और हत्या का खुलासा हो सकता है.

और सचमुच ऐसा ही हुआ. मैसेज रिकवर होते ही राजकुमार के घर हुई लूट और हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि रक्षा ने ही मैसेज द्वारा चाचा के घर की जानकारी दे कर अपने प्रेमी सत्येंद्र यादव से यह लूटपाट कराई थी. पुलिस ने जो मैसेज रिकवर कराए, वे इस प्रकार थे :

घटना से थोड़ी देर पहले रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज किया था, ‘चाची घर पर हैं, अभी मत आना.’

जवाब में सत्येंद्र ने मैसेज किया था, ‘चाची हैं तो क्या हुआ, मैं आ रहा हूं.’

इस के बाद सत्येंद्र ने अगला मैसेज भेज कर रक्षा से पूछा, ‘मैं तुम्हारी चाची के घर के पास पहुंच गया हूं. गेट खुला है या नहीं?’

रक्षा ने जवाब दिया था, ‘गेट बंद है, लेकिन अंदर से लौक नहीं है.’

‘मैं घर के अंदर आ गया हूं. तुम अपनी भाभी को संभालना.’ सत्येंद्र ने मैसेज भेजा.

‘ठीक है, गुडलक. ओके.’ रक्षा ने जवाब दिया.

इस के बाद सत्येंद्र ने 5 बजे के करीब रक्षा को मैसेज भेजा, ‘काम हो गया है, मैं जा रहा हूं.’

रक्षा ने जवाब दिया, ‘ओके.’

पुलिस जांच शुरू हुई तो रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज भेजा, ‘कहीं हम फंस न जाएं?’

‘सोने वाला जाग कर गवाही नहीं देगा, परेशान मत हो.’ सत्येंद्र ने उसे तसल्ली दी थी.

रक्षा का आखिरी मैसेज था, ‘नौबस्ता पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की टीम भी आई थी. एक मोटा दरोगा मुझे घूर रहा था. लगता है, उसे कुछ शक हो गया है.’

सुरक्षा की दृष्टि से सत्येंद्र और रक्षा ने फोन से बातचीत बंद कर दी थी. दोनों एकदूसरे को केवल एसएमएस कर रहे थे. सत्येंद्र ने रक्षा के आखिरी मैसेज के जवाब में कहा था, ‘तुम मोबाइल के इनबौक्स से सारे मैसेज डिलीट कर दो. उस के बाद कुछ नहीं होगा. मैं भी पुलिस के बारे में पता करता रहूंगा.’

इस के बाद पुलिस के लिए संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उसे अकाट्य सुबूत मिल गए थे. पुलिस 6 जनवरी, 2014 को रक्षा को उस के घर से हिरासत में ले कर थाना नौबस्ता ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ शुरू की तो काफी देर तक वह इस मामले में अपना और सत्येंद्र का हाथ होने से इनकार करती रही. लेकिन जब पुलिस ने उस के द्वारा डिलीट किए गए मैसेजों को लैपटौप की स्क्रीन पर दिखाना शुरू किया तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अब रक्षा के पास सच उगलवाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपनी चाची सुनीता की हत्या और लूट में सहयोग का अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस को सत्येंद्र से प्यार होने से ले कर इस अपराध में शामिल होने तक की पूरी कहानी सुना दी.

रक्षा के पिता रामप्रसाद की छोटी सी परचून की दुकान थी. उस दुकान से सिर्फ गुजरबसर हो पाती थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इस के बावजूद उस के पिताजी उसे पढ़ाना चाहते थे. वह महिला महाविद्यालय किदवईनगर से बीए कर रही थी. वह पढ़ने में ठीक थी. 2 साल पहले कोयलानगर की रहने वाली एक सहेली के यहां उस की मुलाकात सत्येंद्र यादव से हुई तो वह उस के प्रेम में पड़ गई.

सत्येंद्र यादव भी कोयलानगर के ही रहने वाले अमर सिंह का बेटा था. वह रक्षा की सहेली के यहां अकसर आताजाता रहता था. इसी वजह से रक्षा से उस की मुलाकात होने लगी थी. इन्हीं मुलाकातों में दोनों में आंखमिचौली शुरू हुई तो रक्षा बहकने लगी.

आगे चल कर रक्षा और सत्येंद्र के बीच ऐसा आकर्षण बढ़ा कि बिना मिले उन का मन ही नहीं लगता था. दोनों मोबाइल पर भी लंबीलंबी बातें करते थे. इस तरह जब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो इस के चर्चे मोहल्ले में होने लगे.

रक्षा और सत्येंद्र यादव के प्यार की चर्चा रामप्रसाद के कानों में पड़ी तो वह हैरान रह गए. कालेज से लौटने पर उन्होंने बेटी से सत्येंद्र के बारे में पूछा तो उस ने बिना किसी झिझक के सत्येंद्र से चल रहे अपने प्यार की बात स्वीकार कर ली. साथ ही उस ने यह भी कहा कि वे दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी कर लेंगे

रक्षा की बात सुन कर रामप्रसाद हक्केबक्के रह गए. उन्होंने उसी दिन अपने छोटे भाई राजकुमार के घर जा कर रक्षा और सत्येंद्र के बारे में बता कर कहा कि रक्षा कह रही है कि वह सत्येंद्र से शादी करेगी. अगर उस ने ऐसा किया तो घरपरिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

तब राजकुमार और सुनीता ने गैरजाति के लड़के से शादी का विरोध करते हुए कहा, ‘‘अब घरपरिवार की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है कि जल्द से जल्द रक्षा की शादी कर दी जाए.’’

‘‘लेकिन मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं इतनी जल्दी उस की शादी कर सकूं.’’ रामप्रसाद ने अपनी आर्थिक तंगी बता कर हाथ खड़े किए तो सुनीता ने लखनऊ के एक लड़के का पता दे कर कहा, ‘‘आप वहां जा कर शादी तय कीजिए. शादी तो करनी ही है. हम लोग हर तरह से इस शादी में आप की मदद करेंगे.’’

रामप्रसाद लखनऊ पहुंचे और सुनीता द्वारा बताए लड़के को देखा. लड़का भी ठीक था और घरपरिवार भी. इसलिए शादी तय कर दी. चौथे दिन तिलक चढ़ा कर विवाह की तारीख भी तय कर दी गई. जब इस बात की जानकारी रक्षा को हुई तो वह बौखला उठी. उस ने रामप्रसाद से एक बार फिर सत्येंद्र से शादी की जिद की. लेकिन रामप्रसाद ने गैरजाति के लड़के से उस का विवाह करने से साफ मना कर दिया.

रक्षा सत्येंद्र के वियोग में छटपटा रही थी. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, इसलिए किसी भी सूरत में वह उस से शादी करना चाहती थी. जब कोई राह नजर नहीं आई तो उस ने सत्येंद्र के साथ भाग कर शादी करने की योजना बनाई. लेकिन भाग कर किसी अनजान शहर में रहनेखाने के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. इतने रुपए न सत्येंद्र के पास थे, न रक्षा के पास. रुपए कहां से आएं, दोनों इस बात पर विचार करने लगे.

अचानक रक्षा के दिमाग में आया कि उस के चाचा राजकुमार गुप्ता के पास बहुत पैसा है. वह हमेशा घर पर 20-25 लाख रुपए रखे रहते हैं. अगर किसी तरह वे रुपए उस के हाथ लग जाएं तो वह आराम से सत्येंद्र के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसा सकती है. रक्षा ने जब इस बात पर सत्येंद्र से सुझाव मांगा तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद दोनों किसी भी तरह राजकुमार के घर से रुपए उड़ाने की कोशिश करने लगे.

जैसेजैसे विवाह की तारीख (24 फरवरी, 2014) नजदीक आती जा रही थी, रक्षा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह किसी भी हाल में सत्येंद्र से जुदा नहीं होना चाहती थी. यही वजह थी कि सत्येंद्र को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थी.

उस ने चाचा के घर से लाखों रुपए उड़ाने की जो योजना बना रखी थी, उस के लिए मौका नहीं मिल रहा था. वह चाहती थी कि किसी तरह का खूनखराबा भी न हो और चाचा के घर रखे रुपए भी मिल जाएं. इस के लिए वह लगातार चाचा के घर पर नजर रख रही थी.

राजकुमार अपने एकलौते बेटे हिमांशु की शादी में लगे थे. शादी में शामिल होने के लिए उन की बेटी शिवांगी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ मायके आई तो मौका देख कर रक्षा ने उस के बेटे का सत्येंद्र द्वारा अपहरण करा दिया और 15 लाख रुपए की फिरौती भी मांगी. लेकिन जब राजकुमार पुलिस के पास पहुंच गए तो डर कर रक्षा ने सत्येंद्र को फोन कर के बच्चे को वापस छोड़ने को कहा. अपहरण के लगभग डेढ़ घंटे बाद सत्येंद्र मोटरसाइकिल से शुभम को गली में छोड़ गया.

इस तरह रक्षा और सत्येंद्र की यह योजना असफल हो गई. इस के बाद रक्षा के इशारे पर सत्येंद्र ने राजकुमार को फोन कर के हिमांशु की हत्या करने की धमकी दे कर 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन इस में भी सफलता नहीं मिली. हिमांशु की शादी हो जाने के बाद राजकुमार रक्षा की शादी की तैयारी करने लगे. रक्षा की फोन पर सत्येंद्र से बात होती ही रहती थी. वह उस से जल्दी कुछ करने को कहती रहती थी, क्योंकि वह उस से किसी भी हाल में जुदा नहीं होना चाहती थी.

जैसेजैसे दिन गुजर रहे थे, दोनों की पीड़ा और तनाव बढ़ता जा रहा था. इस स्थिति में जब रक्षा और सत्येंद्र को लगा कि वे राजकुमार के घर रखी नकदी नहीं उड़ा सकते तो उन्होंने लूट की योजना बना डाली.

उसी योजना के मुताबिक रक्षा उस दिन अपना लैपटौप ले कर दोपहर एक बजे अपने चाचा राजकुमार के घर जा पहुंची. उस ने अंदर वाले कमरे में हिमांशु की पत्नी रश्मि को उस के विवाह की वीडियो दिखाने के बहाने उलझा लिया तो सत्येंद्र ने मैसेज भेज कर उसे बता दिया कि वह घर के बाहर आ गया है.

मैसेज देख कर रक्षा ने लैपटौप की आवाज तेज कर दी. जब काम हो जाने का सत्येंद्र का मैसेज आया तो रक्षा 5 बजे के आसपास अपने घर जाने के लिए चाची वाले कमरे से निकली. वहां उन की लाश देख कर वह चीख पड़ी. उस पर किसी को शक न हो, इसलिए उस ने दौड़दौड़ कर यह बात सभी को बताई. रक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी सत्येंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में सत्येंद्र ने बताया कि उस ने यह लूट और हत्या अपने दोस्त विवेक और मनोज के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने तुरंत विवेक और मनोज के घर छापा मारा. विवेक तो पुलिस के हाथ लग गया, लेकिन मनोज फरार होने में कामयाब हो गया था.

पूछताछ में रक्षा के प्रेमी सत्येंद्र यादव ने पुलिस को बताया कि वह कोयलानगर के शिवपुरम के रहने वाले अमर सिंह यादव का बेटा है. उस के पिता पीएसी में सिपाही हैं, जो इस समय इलाहाबाद में तैनात हैं. उस का बड़ा भाई जितेंद्र आर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करता है. जबकि वह बीएससी कर के नौकरी की तलाश में था. उस ने पुलिस भरती की परीक्षा भी दे रखी थी. उसे उसी परीक्षा के परिणाम का इंतजार था. लेकिन उस के पहले ही उस ने अपनी प्रेमिका रक्षा के लिए अपना भविष्य ही नहीं, जिंदगी भी दांव पर लगा दी.

सत्येंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह सिर्फ लूट के लिए आया था. इस के लिए उस ने पहले विवेक और मनोज को भेजा था. दोनों ने अंदर जाते ही धक्का मार कर सुनीता को गिरा दिया और उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह चिल्ला न सकें. उन के हाथों को बांध कर उन्होंने उन्हें वैसे ही छोड़ दिया. लेकिन उन्होंने उसे देख लिया तो अपने बचाव के लिए उसे सुनीता की हत्या करनी पड़ी. क्योंकि वह उसे पहचानती थीं, उस ने उन के मुंह पर तकिया रख कर उन्हें मार दिया था.

इंटरमीडिएट में पढ़ रहा विवेक भी कोयलानगर का रहने वाला था. वह सत्येंद्र का गहरा दोस्त था. सत्येंद्र के कहने पर वह पैसों के लालच में उस के साथ लूट की इस योजना में शामिल हो गया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सत्येंद्र और विवेक की निशानदेही पर 10 हजार नकद, करीब 10 लाख के गहने और सुनीता का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. माल बरामद होने के बाद पुलिस ने 7 जनवरी को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक मनोज पकड़ा नहीं जा सका था.

अस्थमा रोगियों को हो सकता है ‘स्लीप एपनिया’, जानें क्या है ये

रात को सांस लेने में तकलीफ के चलते बारबार आंख खुलने की समस्या से अगर आप परेशान हैं तो इस की वजह स्लीप एपनिया हो सकती है. इस बीमारी में रात को सोते समय ऊपरी एयरवेज ब्लौक होने से सांस लेने में परेशानी होने लगती है. इस बीमारी में सांस 10 से 20 सैकंड के बीच रुकती है. लेकिन समस्या यह है कि ऐसा रात में कई बार होता है और इस वजह से रोगी रातभर सो नहीं पाता.

रात को नींद न पूरी होने के कारण उसे दिनभर नींद की झपकियां आती रहती हैं और चिड़चिड़ाहट रहती है. इस बीमारी की वजह से दुर्घटना होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

आंकड़ों के अनुसार, औब्सट्रैक्टिव स्लीप एपनिया यानी ओएसए से 5 में से 1 वयस्क पुरुष प्रभावित है. सांस से जुड़ी बीमारियों में अस्थमा के बाद यह दूसरी ऐसी बीमारी है जिस की सब से ज्यादा पहचान हुई है. जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन की गरदन की मांसपेशियां सोते समय शिथिल हो जाती हैं जिस से एयरवेज सिकुड़ जाते हैं और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.

ओएसए से उपजी बीमारियां

ओएसए से रोगी को डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर, दिल की बीमारियां, स्ट्रोक और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ओएसए और ब्रोनकिल अस्थमा एकदूसरे से जुड़े हुए हैं.

हालिया कुछ अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चला है कि अस्थमा के रोगियों में ओएसए होने का खतरा ज्यादा रहता है. कई अस्थमा रोगियों को पता ही नहीं चलता कि वे ओएसए से पीडि़त हैं और इस वजह से वे ओएसए का इलाज नहीं कराते. इस कारण उन्हें बारबार अस्थमा का अटैक पड़ता है और लगातार दवाइयों की जरूरत रहती है. इसलिए, स्लीप एपनिया के बारे में जानना और इस का एडवांस तकनीकों से इलाज करा कर जिंदगी को बेहतर बनाना जरूरी है.

इलाज है जरूरी

अगर स्लीप एपनिया ज्यादा गंभीर नहीं है तो लाइफस्टाइल में बदलाव कर के ठीक किया जा सकता है. इस में वजन कम करना और सोने के तरीके को बदलने जैसे जीवनशैली से जुड़े बदलाव शामिल हैं. लेकिन गंभीर मामलों में, जहां ओएसए से डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियां जुड़ी हों, मैडिकल की नई तकनीकों की मदद से नजात पाया जा सकता है.

अब मैडिकल टैक्नोलौजी की सहायता से ओएसए का समय पर पता लगाया जा सकता है और इस का इलाज किया जा सकता है. मैडिकल की नई तकनीकों की मदद से स्लीप एपनिया के रोगियों की एयरवेज को खोला जाता है ताकि रोगी आसानी से सांस ले कर रातभर चैन की सांस ले सके.

उपयोगी उपकरण

सीपीएपी मशीन, मुंह के उपकरण और खासतौर पर तैयार किए गए तकियों की मदद से ओएसए को नियंत्रित किया जा सकता है. आमतौर पर मेनडीबुलर एडवांसमैंट डिवाइस यानी एमएडी का इस्तेमाल किया जाता है. इसे ऊपर व नीचे के दांतों में लगा दिया जाता है और निचले जबड़ों को आगे ला कर जीभ व तालू को स्थिर रखा जाता है, जिस से सोते समय आसानी से सांस ली जा सके.

कौंटीन्यूअस पौजिटिव एयरवे प्रैशर थेरैपी यानी सीपीएपी स्लीप एपनिया के इलाज में बेहद कारगर है. इस में नाक के ऊपर मास्क लगाया जाता है, जो नाक और मुंह में प्रैशर डालता है और इस से सोते समय सांस की नलियां खुली रहती हैं.

इस के अलावा, जीभ को स्थिर रखने का उपकरण भी इस्तेमाल किया जाता है, जो एयरवेज को खोलता है. कई तरह के तकिए भी डिजाइन किए गए हैं जिन्हें सीपीएपी मशीन के साथ या इस के बिना इस्तेमाल किया जा सकता है. जिन लोगों को सीपीएपी मशीन लगाने में मुश्किल होती है, उन के लिए कुछ नर्व स्टीमुलेशन उपकरण भी उपलब्ध हैं.

साल 2014 में शोधकर्ताओं ने नया इलाज ढूंढ़ा था जिस में जब शरीर को सांस लेने की जरूरत होगी तो सैंसर तंत्रिकाओं को स्टीमुलेट करेंगे और रोगी सांस लेने में सक्षम होगा.

सर्जरी भी है विकल्प

सर्जरी की मदद से भी ओएसए का इलाज किया जाता है. इस में ऊपरी एयरवेज, मुंह के ढांचे और मोटापे के रोगियों की बेरिएट्रिक सर्जरी कर के इलाज किया जाता है. सर्जरी रोगी की स्थिति के अनुसार ही की जाती है. हाल ही में हुई नई खोजों ने सर्जरी को काफी आसान व सुरक्षित कर दिया है जिस में लेजर एसिड युविलोपेलेटोप्लौस्टी, रेडियो फ्रिक्वैंसी एबलेशन, पेलेटल इंप्लांट और ऊपरी एयरवेज मांसपेशियों में इलैक्ट्रिकल स्टीमुलेशन शामिल हैं.

इस के अलावा, इंस्पायर नाम की थेरैपी में ब्रीदिंग सैंसर, स्टीमुलेशन लीड और छोटी बैटरी/कंप्यूटर प्रत्यारोपित किया जाता है. इस इलाज में भी काफी सफलता मिली है. सो, स्लीप एपनिया की बीमारी से जुड़े लक्षणों को पहचानें और एडवांस तकनीकों की मदद से इलाज करवाएं ताकि आप रात को चैन की नींद का लुत्फ सकें. अगर इसे सामान्य बीमारी समझ कर अनदेखा करेंगे तो बाद में यह लापरवाही बड़ी मुसीबत बन सकती है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित नैशनल हार्ट इंस्टिट्यूट में सीनियर कंसल्टैंट हैं.)

मैं दूसरी जाति की लड़की से प्यार करता हूं लेकिन घरवाले उससे मेरे शादी नहीं करवा रहे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 23 साल का लड़का हूं और 21 साल की लड़की से बहुत प्यार करता हूं. हम अलग अलग जाति के हैं, पर शादी करना चाहते हैं. लड़की की रिश्तेदारी में एक लड़की ने घर से भाग कर शादी की थी, इसलिए उस के घर वालों को समाज से अलग कर दिया गया था. बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप अपने घर वालों को लड़की के घर वालों से बात करने को कहें. अगर वे लोग राजीखुशी से इस शादी के लिए तैयार हो जाएं तो ठीक है, वरना लड़की को भूल जाएं. आप लोग घर से भाग कर कोर्ट मैरिज तो कर सकते हैं, मगर इस में तमाम तरह के झंझट हैं.

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आरक्षण का हल है दूसरी जाति में शादी

पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में यह साफ किया था कि अगर कोई आरक्षित कोटे यानी दलित या आदिवासी मांबाप किसी सामान्य जाति के बच्चे को गोद लेते हैं, तो उस बच्चे से आरक्षण प्रमाणपत्र का फायदा छीना नहीं जा सकता. हाईकोर्ट की जज जयश्री ठाकुर ने साफ किया कि इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि फरियादी ने अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र गलत तरीके से हासिल किया था. दरअसल, एक मामले में फरियादी रतेज भारती ने अदालत को बताया था कि उस का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में साल 1967 में हुआ था. उस के पैदा होने के तुरंत बाद उस की मां की मौत हो गई थी.

रतेज भारती जब 10 साल का था, तब उसे रामदासिया जाति के पतिपत्नी ने गोद ले लिया था. इस बाबत बाकायदा कानूनी गोदनामा तैयार कराया गया था. साल 1992 में आरक्षित समुदाय के मांबाप की औलाद होने की बिना पर रतेज भारती ने आरक्षण का प्रमाणपत्र बनवाया था. 2 साल बाद ही उस ने इस प्रमाणपत्र की बिना पर सरकारी नौकरी भी हासिल कर ली थी. लेकिन जनवरी, 2014 में सरकार ने यह कहते हुए रतेज भारती को नौकरी से निकाल दिया था कि चूंकि उस का गोद लिया जाना जायज नहीं है, इसलिए वह आरक्षित जाति के प्रमाणपत्र पर नौकरी करने का हकदार नहीं है.

रतेज भारती ने हिम्मत नहीं हारी और अदालत का दरवाजा खटखटाया. 2 दफा उस के जाति प्रमाणपत्र की जांच हुई और दोनों ही बार वह सही पाया गया. लिहाजा, हाईकोर्ट ने उस की नौकरी बहाली का हुक्म जारी कर दिया.

कोई गड़बड़झाला नहीं

इस फैसले से एकसाथ कई अहम बातें उजागर हुईं कि आरक्षण गोद लिए गए बच्चे का हक है यानी दलित समुदाय के मांबाप ऊंची जाति वाले बच्चे को गोद लें, तो बच्चा ठीक वैसे ही आरक्षण का हकदार होता है, जैसे गोद लेने वाले मांबाप की जायदाद में वह हकदार हो जाता है और उसे दूसरे कई हक व जिम्मेदारियां भी मिल जाती हैं. यह तो रतेज भारती के दलित मांबाप की दरियादिली थी कि जब उस अनाथ को कोई सहारा नहीं दे रहा था, तब उन्होंने उसे गोद ले कर उस की परवरिश की और पढ़ाईलिखाई की जिम्मेदारी उठाई यानी गोद लेते ही रतेज भारती ब्राह्मण से दलित ह गया.

संविधान बनाने वालों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आारक्षण से ताल्लुक रखते ऐसे मामले भी सामने आएंगे, इसलिए उन का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि गोद लिए बच्चे की हालत पर भी गौर किया जाए, चाहे फिर वह सवर्ण मांबाप द्वारा गोद लिया गया दलित बच्चा हो या फिर दलित मांबाप द्वारा गोद लिया गया सवर्ण बच्चा. इसी तरह संविधान में यह भी साफसाफ नहीं लिखा है कि अगर एक दलित नौजवान सवर्ण लड़की से शादी करता है, तो उन की औलाद को आरक्षण का फायदा मिलेगा या नहीं. इसी तरह कोई सवर्ण नौजवान दलित लड़की से शादी करता है, तो उस की औलाद को आरक्षण का फायदा मिलेगा या नहीं.

इस तरह के सैकड़ों मुकदमे देशभर की अदालतों में चल चुके हैं, जिन में से ज्यादातर में फैसला यह आया है कि अगर दलित और सवर्ण लड़का या लड़की शादी करते हैं, तो उन की औलाद को आरक्षण का फायदा मिलेगा. ऐसे मामलों में हालांकि अदालतों को भी फैसला लेना आसान काम नहीं होता, खासतौर से उस हालत में जब पिता सवर्ण और मां दलित हो. चूंकि बच्चे का नाम और जाति पिता से चलते हैं, इसलिए कुछ मामलों में अदालतों ने सवर्ण पिता की दलित पत्नी से हुई औलाद को आरक्षण देने में हिचकिचाहट भी दिखाई है.

यह तय है कि कानून मानता है कि बच्चे की परवरिश किस माहौल में हुई है. यह बात ज्यादा अहम है, बजाय इस के कि वह किस जाति में पैदा हुआ है. अगर कोई ब्राह्मण या दूसरे सवर्ण मांबाप दलित बच्चे को गोद लेते हैं, तो उन की परवरिश का माहौल बदल जाता है और उसे जातिगत जोरजुल्म व उन परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता, जिन से दलित बच्चे रूबरू होते हैं.

ऐसे मामले बहुत कम तादाद में अदालतों में जाते हैं, इसलिए थोड़ाबहुत बवाल उन पर सुनवाई और फैसले के वक्त मचता है, फिर सब भूल जाते हैं कि खामी क्या है और इस का हल क्या है.

शादी है जरूरी

दलितों और सवर्णों के बीच आरक्षण को ले कर हमेशा से ही बैर रहा है, पर बीते 4 सालों में यह उम्मीद से ज्यादा बढ़ा है, तो इस की एक वजह सियासी भी है, जिस के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अकसर आरक्षण पर दोबारा सोचविचार की बात कहता रहता है. इस से दलितों व आदिवासियों को लगता है कि ऊंची जाति वालों की पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकार उन से आरक्षण छीनना चाहती है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलितों ने भाजपा को भी वोट दिए, तो ऐसा लगा कि बारबार की घुड़की के चलते दलित तबका डर गया है और भाजपा को चुनने की उस की एक वजह यह भी है कि वह उन के वोट ले ले, पर आरक्षण न छीने.

कांग्रेस भी यही बात कहती रही थी कि आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखना है, तो उसे वोट दो. हालांकि इस बाबत उस का तरीका दूसरा था. इन सियासी दांवपेंचों से परे एक अहम सामाजिक सच यह भी है कि अगर ऊंची और नीची जाति वाले आपस में शादी करने लगें, तो क्या हर्ज है. इस से या तो आरक्षण खत्म हो जाएगा या फिर हमेशा के लिए बना रहेगा, जिस का फायदा दोनों तबकों की नई नस्ल को मिलेगा. बजाय फिर से कोई आयोग बनाने के लिए सरकार यह फैसला ले ले कि ऊंची और नीची जाति वाले अगर आपस में शादी करें, तो उन की औलाद का आरक्षण सलामत रहेगा, तो देश की तसवीर बदल भी सकती है.

दूसरा फायदा इस से जातिवाद को खत्म करने का मिलेगा. जिस सामाजिक समरसता की बात भाजपा और संघ कर रहे हैं, वह असल में दलितों के साथ नहाने या उन के साथ बैठ कर खाना खाने से पूरी नहीं हो जाती. दूसरी जाति में बड़े पैमाने पर शादियां आपसी बैर खत्म कर सकती हैं यानी रोटी के साथसाथ बेटी के संबंध भी इन दोनों तबकों के बीच बनने चाहिए. रोजमर्रा की जिंदगी के अलावा सोशल मीडिया पर ऊंची और नीची जाति वाले आरक्षण को ले कर एकदूसरे पर इलजाम लगाते रहते हैं और आरक्षण की समस्या के तरहतरह के हल भी सुझाते रहते हैं.

ऊंची जाति वालों का हमेशा से कहना रहा है कि नाकाबिल लोग सरकारी नौकरियों में घुस कर उन का हक मार रहे हैं, जबकि दलित समुदाय के लोग कहते हैं कि सदियों से उन पर जाति की बिना पर जुल्म ढाए जाते रहे हैं, क्योंकि वे धार्मिक और सामाजिक लिहाज से दलित और निचले हैं. अब अगर उन की तरक्की हो रही है, वे भी पढ़लिख कर सरकारी नौकरियों में आ कर अपनी दशा सुधार रहे हैं, तो हल्ला क्यों? यह तो उन का संवैधानिक हक है. रतेज भारती दलित मांबाप के साथ खुश हैं. जातपांत का बंधन एक गोदनामे से टूटा, तो शादियों के जरीए वह बड़े पैमाने पर भी टूट सकता है. इस बाबत सोशल मीडिया पर बड़े दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण ढंग से ऐसे सुझाव दिए जा रहे हैं:

* अगर आरक्षण खत्म करना है या फिर उसे आर्थिक आधार पर लागू करना है, तो यह बहुत मामूली काम है.

* आरक्षण का फायदा ले कर जितने दलित बेहतर सामाजिक हालात में आ चुके हैं, उन का यज्ञोपवीत यानी जनेऊ संस्कार करा कर उन्हें ब्राह्मण जाति में शामिल कर लिया जाए. इस से वे आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे.

* फिर उतनी ही तादाद में गरीब ब्राह्मणबनिए, जो आरक्षण का फायदा लेना चाहते हैं, दलितों में अपने बेटेबेटियों की शादी करें, उन के साथ खाना खाएं, उन के साथ रोटीबेटी का रिश्ता बना कर दलित हो जाएं और आरक्षण का फायदा लें. ऐसा लगातार हर साल होते रहना चाहिए.

* हर कोई आरक्षण चाहता है, तो आजादी के इतने सालों बाद भी चल रही जाति प्रथा का जहर भी तो ले.

* जिस माली आधार पर आरक्षण छीने जाने की वकालत हो रही है, उसे सामान्य जाति का ब्राह्मणबनिया होने का हक भी तो दीजिए, क्योंकि आरक्षण से बाहर होने के बाद तो वे सामान्य जाति में होने का हक तो रखते हैं.

* गरीब ब्राह्मण आरक्षण तो ले, पर जैसा कि धार्मिक किताबों में कहा गया है कि ब्रह्मा के मुंह से पैदा हुए थे, तो इंसाफ नहीं हुआ. दलित कलक्टर और आरक्षण छोड़ देने के बाद भी दलित हो, यह कौन सा इंसाफ हुआ?

* हर दलित ब्राह्मण हो कर आरक्षण के दायरे से बाहर आना चाहेगा. यह बात और है कि कोई भी सवर्ण जाति वाला नीची जाति वालों में महज आरक्षण के लिए बेटी की शादी नहीं करने वाला.

इन बातों पर गौर किया जाना चाहिए, जो देश और समाज से जातिवाद को खत्म करने में कारगर हो सकती हैं. ये सुझाव एक चुनौती भी हैं कि क्या ऊंची जाति वाले वाकई ऐसा चाहते हैं या आरक्षण खत्म कर फिर से नीची जाति वालों को दबाए रखने के लिए उन पर पहले की तरह जुल्म ढाते रहेंगे?

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Khesari Lal Yadav के गाना गाने पर लगा बैन, हाईकोर्ट ने लिया फैसला

Khesari Lal Yadav News : भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार ”खेसारी लाल यादव” के गाने लोगों को खूब पसंद आते हैं. उनका हर एक गाना लोगों के दिलों-दिमाग पर राज करता है. हालांकि अब उनके गाना गाने पर बैन लगा दिया गया है.

दरअसल, ‘दिल्ली हाईकोर्ट’ ने खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav News) के सन्दर्भ में एक फैसला सुनाया है. कोर्ट के फैसले के अनुसार, खेसारी लाल 30 सितंबर 2025 तक सिर्फ और सिर्फ ”ग्लोबल म्यूजिक जंक्शन” कंपनी के लिए ही गाने गा पाएंगे.

इस वजह से खेसारी के गाना गाने पर लगा बैन

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 27 मई 2021 को ‘खेसारी लाल यादव’ (Khesari Lal Yadav) और ‘ग्लोबल म्यूजिक जंक्शन’ कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट हुआ था. इस करार के तहत खेसारी को 30 महीनों के भीतर 200 सॉन्ग गाने थे, जिसके लिए कंपनी ने उन्हें 5 करोड़ रुपए का भुगतान करने का वादा किया था, लेकिन सिंगर ने 30 महीनों में सिर्फ 89 गाने गाकर ही कंपनी को दिए.

सुपरस्टार खेसारी लाल यादव को लगा कि 30 महीने पूरे होने के बाद कंपनी से उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाएगा और वो अन्य कंपनियों के लिए भी सॉन्ग गा सकेंगे. लेकिन ‘ग्लोबल म्यूजिक जंक्शन’ कंपनी ने कॉन्ट्रैक्ट को पूरा न करने के लिए खेसारी लाल यादव के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में केस दर्ज करवा दिया.

अपनी दलील में क्या कहा खेसारी ने?

इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी और न्यायमूर्ति मनमोहन ने की. पूरे मामले की जांच करने के बाद उन्होंने बीते दिनों अपना फैसला सुना दिया. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला कंपनी ‘ग्लोबल म्यूजिक जंक्शन’ के पक्ष में सुनाया है और खेसारी लाल यादव पर प्रतिबंध लगाया गया है.

वहीं खेसारी, (Khesari Lal Yadav News) ने हाईकोर्ट के समक्ष अपनी ये दलील दी कि, ‘चूंकि वह अंग्रेजी को अच्छे से नहीं समझते हैं. इसलिए वो एग्रीमेंट को ठीक तरह से समझ नहीं पाए और संबंधित कंपनी ने इसलिए उनके लिए खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया है.’

2 सालों के लिए लगाया गया है प्रतिबंध 

आपको बताते चलें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने खेसारी पर ‘ग्लोबल म्यूजिक जंक्शन’ को छोड़कर किसी भी अन्य कंपनी के लिए 2 सालों तक गाना गाने पर प्रतिबंध लगाया है. लेकिन इसी के साथ वह (Khesari Lal Yadav News) भोजपुरी फिल्मों, नेशनल टीवी चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी कला से लोगों का मनोरंजन करते रहेंगे.

सुपारी वाली मां की सचाई

पुष्पा कोहली ने अपनी बेटी किरन की हत्या इसलिए कराई क्योंकि उस का आचरण सही नहीं था और उस के कर्मों से परिवार की बदनामी हो रही थी. लेकिन यह बात इसलिए गले नहीं उतरती क्योंकि परिवार के किसी अन्य सदस्य को इस बात की भनक तक नहीं थी.

सैक्टर-46 फरीदाबाद के चौकीप्रभारी सोहनपाल अपनी टीम के साथ क्षेत्र की रात्रि गश्त पर निकलने की तैयारी कर रहे थे कि तभी पुलिस कंट्रोल रूम से फोन आ गया. उन्हें बताया गया कि सेक्टर-45 की कोठी

नंबर 387 में एक कत्ल हो गया है. पुलिस चौकी से घटनास्थल महज 2 किलोमीटर दूर था. सोहनपाल अपनी टीम के साथ 10 मिनट में उस जगह पहुंच गए, जहां वारदात हुई थी.

वह पौश एरिया था और अकसर सुनसान रहता था. इस वजह से पड़ोसियों को भी इस घटना का पता नहीं चल पाया था. रात को लगभग 3 बजे पुलिस को आया देख आसपास की कोठियों से लोग बाहर निकल आए. कोठी नंबर 387 में मौजूद एक व्यक्ति ने कोठी का मेनगेट खोल दिया. पता चला वह उसी कोठी में रहने वाला किराएदार राजेश सिंह था.

उस समय के चौकीप्रभारी सोहनपाल ने अंदर जा कर देखा तो बेड पर एक लड़की मरी पड़ी थी, जिस की हत्या गला रेत कर की गई थी. बिस्तर खून से पूरी तरह सना हुआ था.

जिस कमरे में हत्या हुई थी, उस में रखी अलमारी और उस का लौकर खुला हुआ था. अलमारी का सारा सामान बिखरा पड़ा था. प्रथमदृष्टया मामला लूटपाट का लग रहा था. ऐसा लगता था जैसे हत्यारे लूटपाट के इरादे से घर में घुसे हों और विरोध करने पर लड़की की हत्या कर के कीमती सामान व नकदी ले कर फरार हो गए हों.

पुलिस को सूचना कोठी की मालकिन पुष्पा कोहली ने दी थी. उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी किरन है. पुष्पा के अनुसार उस का पति सुरेंद्र कोहली और 12 वर्षीय बेटा नितिन कोहली बीते दिन सुबह ही उस की अस्वस्थ मां को देखने बठिंडा, पंजाब गए थे. वारदात के वक्त पुष्पा कोहली और किरन ही घर में थीं.

पौश इलाके में हुई इस सनसनीखेज वारदात की सूचना पा कर पुलिस के उच्चाधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पूछताछ में पुष्पा कोहली ने बताया कि बीती रात करीब पौने 10 बजे जब वह रसोई में खाना बना रही थी, तभी मेनगेट खोल कर बुरके वाली 2 औरतें अंदर आईं. किरन उन दोनों को अंदर ले आई. कुछ देर बाद जब उस ने किरन से उन दोनों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वे उस की परिचित हैं और उसे उन के साथ कुछ हिसाबकिताब करना है.

उस वक्त बुरके वाली दोनों औरतें सोफे पर बैठी थीं. वे दोनों चूंकि अपने चेहरों पर नकाब डाले हुए थीं इसलिए वह उन के चेहरे नहीं देख सकी थी. उन्हें बैठा छोड़ कर वह अपने कमरे में चली गई थी.

पुष्पा के अनुसार कुछ देर बाद किरन एक गिलास में पानी ले कर उस के कमरे में आई. उस ने चूंकि थोड़ी देर पहले ही खाना खाया था इसलिए पानी पी कर गिलास मेज पर रख दिया. उस के बाद या तो वह बेहोश हो गई थी या फिर सो गई थी. पुष्पा के अनुसार देर रात करीब 2 बजे जब वह उठी तो उस के दोनों हाथ और दोनों पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा हुआ था. उस ने उठने की कोशिश की तो वह बिस्तर से नीचे गिर गई. कपड़ा ठुंसा होने की वजह से उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी.

पुष्पा ने आगे बताया कि जैसेतैसे उस ने बेड पर पड़ा फोन उठा कर पहले किरन का नंबर मिलाया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. फिर उस ने अपनी नौकरानी सपना के पति अजीत का नंबर मिलाया. नंबर तो लग गया लेकिन मुंह में कपड़ा ठुंसा होने की वजह से बात नहीं हो सकी. इस पर वह घिसटते हुए दरवाजे के पास पहुंची और दोनों पैरों से जोरजोर से कमरे का दरवाजा पीटा.

दरवाजा पीटने की आवाज सुन कर किराएदार राजेश सिंह नीचे आया. वह बाहर से दरवाजा खोल कर अंदर आया और उस के हाथपैर खोल दिए. तब तक नौकरानी सपना और उस का पति भी आ गए थे.

पुष्पा कोहली ने आगे बताया कि उस के यह पूछने पर कि किरन कहां है, राजेश सिंह ने जवाब दिया कि वह अपने कमरे में सो रही होगी. लेकिन जब उस के कमरे में जा कर देखा गया तो किरन मरी पड़ी थी. किसी ने उस का गला काट कर उस की हत्या कर दी थी. उस का सारा बिस्तर खून में डूबा हुआ था और अलमारी का सामान इधरउधर फैला पड़ा था. यह देख कर उस ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

उपरोक्त बातें बतातेबताते पुष्पा कोहली फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उस से नंबर ले कर उस के पति सुरेंद्र कोहली को फोन कर के इस हादसे की सूचना दे दी और जल्दी से जल्दी फरीदाबाद पहुंचने को कहा. इस के साथ ही पुलिस ने पुष्पा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 394 के तहत केस दर्ज कर लिया.

सुबह को एसीपी पूनम दयाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच इलाका पुलिस की जगह उस समस्य के सीआईए एनआईटी इंचार्ज इंसपेक्टर विमल कुमार, सबइंसपेक्टर नरेंद्र कुमार और अश्विनी कुमार को सौंप दी ताकि पौश इलाके में हुई इस हत्या के मामले से जल्दी से जल्दी परदा उठ सके.

इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपनी टीम के साथ मौकाएवारदात का मुआयना किया. उन्होंने पुलिस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और फोरेंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया था ताकि जरूरी सुबूत जुटाए जा सकें.

प्राथमिक काररवाई के बाद मृतका किरन की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया. पोस्टमार्टम से पता चला कि उस की मृत्यु श्वांस नली कट जाने के कारण हुई थी.

पूछताछ और पुलिस छानबीन में पता चला कि मृतका किरन के पिता सुरेंद्र कोहली काफी समय पहले पंजाब से आ कर फरीदाबाद में बस गए थे. उन का फरीदाबाद सैक्टर-28 में बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार था. सुरेंद्र कोहली का विवाह 1989 में बठिंडा, पंजाब की पुष्पा कोहली से हुआ था. विवाह के बाद कोहली के घर में किरन का जन्म हुआ जिसे घर में सब प्यार से गुडि़या कहते थे.

किरन के जन्म के 11 साल बाद कोहली परिवार में बेटा जन्मा जिस का नाम नितिन रखा गया. 12 वर्षीय नितिन कोहली फिलहाल फरीदाबाद के एक नामी स्कूल में कक्षा-7 में पढ़ रहा था. पुष्पा कोहली घरेलू महिला थी और घर पर रह कर घरपरिवार व बच्चों की जिम्मेदारी संभालती थी.

किरन जवान हो चुकी थी. उस पर चूंकि कभी भी पारिवारिक पाबंदियां नहीं रही थीं इसलिए वह शुरू से ही फैशनपरस्त और आजादखयाल लड़की थी. मोबाइल, फिल्में, टीवी और इंटरनेट की दुनिया ने उसे और भी आधुनिक और स्वच्छंद बना दिया था. वह जो करना चाहती थी, कर गुजरती थी बिना इस बात की परवाह किए कि उस के परिवार वालों की नजर में वह अच्छा है या नहीं.

इसी सब के चलते किरन ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ 22 नवंबर, 2010 को एक विजातीय युवक रंजीत त्रिपाठी से प्रेमविवाह कर लिया था. रंजीत गांव लकड़पुर जिला फरीदाबाद का रहने वाला था. शादी के बाद किरन घर छोड़ कर रंजीत त्रिपाठी के साथ दिल्ली स्थित सरिता विहार के निकटवर्ती इलाके मदनपुर खादर में किराए के मकान में रहने लगी थी.

परिवार से अलग रह कर जब जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों से सामना हुआ तो किरन और रंजीत दोनों ने अलगअलग प्राइवेट फर्मों में नौकरी कर ली. किरन ने जिस फर्म में नौकरी की, वह रियल एस्टेट का कारोबार करती थी. उस के मालिक का नाम महफूज आलम था. महफूज आलम का औफिस कालिंदीकुंज में था. कालिंदीकुंज मदनपुर खादर के पास ही है इसलिए किरन को औफिस आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. महफूज आलम के साथ काम करतेकरते किरन उस के लिए काफी महत्वपूर्ण बन गई थी.

नतीजतन महफूज आलम उसे अच्छी तनख्वाह के अलावा सौदे से मिलने वाली रकम में मोटा कमीशन भी देने लगा. इसी के चलते किरन ने अच्छाखासा बैंक बैलेंस इकट्ठा कर लिया था. दूसरी ओर उस के पति रंजीत को नौकरी से इतना पैसा भी नहीं मिलता था कि घर का खर्च ठीक से चल सके.

जब उम्मीद से ज्यादा पैसा मिलने लगता है तो कई कमजोर लोगों के पैर बहकने लगते हैं. किरन के साथ भी ऐसा ही हुआ. आय का स्रोत बढ़ा तो उस ने शराब पी कर देर से घर आना शुरू कर दिया. रंजीत ने यह बात किरन की मां पुष्पा कोहली को बताई. मां ने अपने स्तर पर किरन को समझाने का प्रयास भी किया लेकिन इस से किरन की दिनचर्या और व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.

नतीजतन पतिपत्नी के बीच मतभेद बढ़ने शुरू हो गए. इस बात को ले कर रंजीत और किरन के बीच कई बार गरमागरम बहस भी हुई. पति से जब ज्यादा मतभेद बढ़ गए तो किरन ने उस के खिलाफ दिल्ली की साकेत कोर्ट में तलाक का मुकदमा डाल दिया. इस के बाद वह 27 जून, 2013 को रंजीत का साथ छोड़ कर फरीदाबाद में मां के पास आ कर रहने लगी.

घर लौट कर भी किरन में कोई बदलाव नहीं आया. अब उस ने नाइटक्लब में शराब पी कर देर रात घर आना शुरू कर दिया था. जवाब मांगने पर वह गालीगलौज और मारपीट तक पर उतर आती थी. किरन का हाईप्रोफाइल लाइफस्टाइल कोहली परिवार के लिए बदनामी का कारण बन रहा था. एक तो शादी के बाद भी बेटी घर में बैठी थी, दूसरे वह शराब पी कर देर रात घर लौटती थी. मां पुष्पा कोहली इस बात को ले कर तनावग्रस्त रहने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का कैसे समाधान करे. यह सब चल ही रहा था कि किरन की हत्या हो गई थी.

बहरहाल, इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपनी टीम के साथ बेहद बारीकी से घटनास्थल का मुआयना किया तो पाया कि पुष्पा कोहली द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट और मौकाएवारदात पर पाए गए सुबूतों में काफी झोल है. इसी को ध्यान में रख कर उन्होंने सुरेंद्र कोहली के किराएदार राजेश सिंह, नौकरानी सपना व उस के पति अजीत के अलगअलग बयान दर्ज किए.

जब उन बयानों को क्रौस चैक किया गया तो विमल कुमार को कई बातों पर शक हुआ. मसलन किरन ने पुष्पा को गिलास में पानी दिया था जिसे पी कर वह बेहोश हो गई थी और शायद बाद में सो गई थी. यह बात समझ के बाहर थी कि किरन ने बिना मांगे मां को पानी क्यों दिया और उस ने क्यों पीया? इंसपेक्टर विमल कुमार ने गिलास के बचे पानी को सूंघ कर देखा तो वह सामान्य पानी था और उस में किसी तरह की कोई गंध नहीं थी. फिर भी उन्होंने उस पानी और गिलास को जांच के लिए प्रयोगशाला भिजवा दिया.

दूसरे पुष्पा कोहली से जब दोनों बुरकेवालियों के डीलडौल, शक्ल और आवाज के बारे में सवाल किए गए तो वह कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे सकी. संदेह हुआ तो पुलिस टीम ने पुष्पा कोहली का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ले लिया और उस के फोन की पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस बीच पुष्पा कोहली के पति सुरेंद्र कोहली, बेटा नितिन और कुछ अन्य रिश्तेदार भी आ गए थे. माहौल कुछ ऐसा था कि पुलिस पुष्पा से कड़ाई से पूछताछ भी नहीं कर सकती थी. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद किरन का शव उस के परिवार को सौंप दिया गया. उन लोगों ने उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया. अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए किरन की नानी भी आई थी. इंसपेक्टर विमल कुमार ने नानी से भी पूछताछ की.

पता चला कि वह पूरी तरह से स्वस्थ थी. जबकि पुष्पा ने अपनी इसी मां को अस्वस्थ बता कर पति सुरेंद्र कोहली और बेटे नितिन को 250 किलोमीटर दूर बठिंडा भेजा था.

पुष्पा से टुकड़ों में हुई पूछताछ में महफूज आलम का नाम कई बार आया था. बुरकेवाली औरतों का जिक्र आने से पुलिस का शक महफूज आलम पर ही गया. पुलिस ने महफूज आलम से पूछताछ की लेकिन उस ने इस मामले में अपनी कोई भी भूमिका होने से इनकार किया. अलबत्ता यह जरूर माना कि किरन उस के यहां काम कर चुकी थी और वह उसे मोटा वेतन देता था. महफूज हालांकि किरन की हत्या में अपनी कोई भी भूमिका होने से इनकार कर रहा था. फिर भी हत्या का मामला होने की वजह से पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने में ही बिठाए रखा बाद में उसे छोड़ दिया गया.

किरन की हत्या की सूचना पा कर उस का पति रंजीत त्रिपाठी भी फरीदाबाद आ गया था. वह फिलहाल मुंबई में नौकरी कर रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की लेकिन हत्या में उस की किसी भी तरह की भूमिका न मिलने पर अगले आदेश तक उसे घर छोड़ कर न जाने की कड़ी हिदायत दे कर जाने दिया गया.

पुष्पा कोहली के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स पुलिस के पास आ गई थी. उस का गहराई से अध्ययन करने पर पुलिस को उस में एक ऐसा नंबर मिला जिस पर पुष्पा दिन के समय हफ्ते में 2-3 बार फोन करती थी. यह नंबर पंजाब का था.

पुष्पा से इस नंबर के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि वह नंबर उस के एक मुंहबोले चाचा का है, जो पंजाब में रहता है. उस से वह पारिवारिक बातें करती थी.

घटना वाली रात पुष्पा कोहली के मोबाइल पर आनेजाने वाली कुल 3 काल्स पाई गई थीं. पहली काल रात 8 और 9 बजे के बीच आई थी जोकि मिस्ड काल थी. इसी नंबर पर पुष्पा कोहली के मोबाइल से 10 बजे के आसपास एक मिस्ड काल दी गई थी. तीसरी और आखिरी काल पुष्पा कोहली की नौकरानी सपना के मोबाइल से आई थी, जिसे रिसीव किया गया था. पुलिस ने उस नंबर पर जिस से मिस्ड काल आई थी और जिस पर पुष्पा ने मिस्ड काल दी थी, फोन किया तो वह नंबर लगातार बंद मिला.

जब उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि उस नंबर की सिम पंजाब से नकली आईडी और फरजी पते पर खरीदी गई थी. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि घटना वाली रात उस नंबर की लोकेशन सेक्टर-45 और उस के आसपास थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस नंबर का इस्तेमाल किसी खास मकसद से ही किया गया था.

इस से शक की सुई पूरी तरह से पुष्पा कोहली पर आ कर ठहर गई. अपने शक को और पुख्ता करने के लिए जब पुलिस ने पुष्पा की नौकरानी सपना से उस के द्वारा की गई फोन काल के बारे में पूछा तो इस हत्याकांड की तसवीर काफी हद तक साफ हो गई. लेकिन कुछ कारणों से पुलिस अब भी पुष्पा कोहली से पुलिसिया तरीके से पूछताछ नहीं कर सकती थी क्योंकि वह शिकायतकर्ता होने के साथसाथ महिला भी थी.

अंतत: इंसपेक्टर विमल कुमार ने अपने उच्चाधिकारियों से विचारविमर्श कर के 3 जनवरी 2014 को पुष्पा को हिरासत में ले लिया. जब सपना द्वारा दिए गए बयान को आधार बना कर उसे घेरा जाने लगा तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही लेकिन अंत में टूट गई. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही सुपारी दे कर अपनी बेटी किरन की हत्या कराई थी.

दरअसल पुष्पा की नौकरानी सपना ने घटना वाली रात कोठी के आगे वैगनआर कार खड़ी देखी थी. बाद में उस ने पुष्पा को फोन कर के पूछा था कि क्या घर में कोई मेहमान आया है. चूंकि पुष्पा ने सपना की काल रिसीव की थी इसलिए यही उस के लिए मुसीबत बन गई क्योंकि यह बात सपना ने पुलिस को बता दी थी. जबकि पुलिस को दिए बयान के अनुसार उस वक्त पुष्पा बेहोश थी.

पुलिस को दिए गए इकबालिया बयान में पुष्पा कोहली ने बताया कि किरन की आदतों और व्यवहार से वह तनावग्रस्त रहने लगी थी. अपनी इस समस्या को हल करने की योजना के तहत उस ने अपने गांव के मुंहबोले चाचा हवलदार कुलविंदर सिंह, जोकि जालंधर के कैंट थाने में तैनात था, को हत्या की रात फरीदाबाद बुलाया. कुलविंदर अपने एक अन्य साथी के साथ वैगनआर कार से 27 दिसंबर की देर शाम फरीदाबाद पहुंच गया था. वह अपना मोबाइल फोन जालंधर में अपने घर छोड़ आया था ताकि पुलिस की जांच में उस पर कोई आंच आए तो वह साबित कर सके कि वह हत्या के वक्त जालंधर में था.

कुलविंदर पंजाब से फरजी आईडी पर खरीदी गई नई सिम अपने साथ लाया था. इसी सिम को उस ने दूसरे मोबाइल में डाल कर पुष्पा कोहली को मिस्ड काल दे कर अपने फरीदाबाद पहुंचने की सूचना दी थी. पूर्व नियोजित योजना के तहत पुष्पा ने अपने मोबाइल से उसे मिस्ड काल दी जिस का मतलब था कि रास्ता साफ है, कभी भी अंदर आ सकते हो.

इस के बाद रात के अंधेरे में कुलविंदर और उस के साथी ने घर के अंदर घुस कर किरन की गला रेत कर हत्या कर दी और कमरे में रखी अलमारी का सामान इधरउधर बिखेर दिया ताकि मामला लूट व हत्या का लगे. हत्या के वक्त पुष्पा कोहली अपने बेडरूम में चली गई थी और अपने कानों को तकिए से ढक लिया था ताकि बेटी के चीखने की आवाज उसे सुनाई न दे.

इस हत्या की एवज में पुष्पा कोहली ने कुलविंदर को 1 लाख रुपए व सोने के कुछ गहने दिए थे जिन्हें ले कर वह उसी रात अपने साथी के साथ पंजाब लौट गया था.

पुष्पा के बयान के आधार पर पुलिस ने इस मामले में भादंवि की धारा 302, 494 के अलावा 34 भी जोड़ दी. पुष्पा कोहली को विधिवत गिरफ्तार कर के फरीदाबाद की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

ऐसे अपराधों का अंजाम नहीं होता है. अपराध कभी छुप नहीं सकता, ऐसे अपराध करने से पहले सोच लेना चाहिए कि अंत में इस का अंजाम यही होता है. साथ ही नागरिकों को इस तरह के अपराधों से सतर्क रहने की जरूरत है.

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