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फादर्स डे स्पेशल: पिता और बेटे के बीच दोस्ती का रिश्ता

‘‘हाय डैड, क्या हो रहा है? यू आर एंजौइंग लाइफ, गुड. एनीवे डैड, आज मैं फ्रैंड्स के साथ पार्टी कर रहा हूं. रात को देर हो जाएगी. आई होप आप मौम को कन्विंस कर लेंगे,’’ हाथ हिलाता सन्नी घर से निकल गया.

‘‘डौंट वरी सन, आई विल मैनेज ऐवरीथिंग, यू हैव फन,’’ पीछे से डैड ने बेटे से कहा.

आज पितापुत्र के रिश्ते के बीच कुछ ऐसा ही खुलापन आ गया है. किसी जमाने में उन के बीच डर की जो अभेद दीवार होती थी वह समय के साथ गिर गई है और उस की जगह ले ली है एक सहजता ने, दोस्ताना व्यवहार ने. पहले मां अकसर पितापुत्र के बीच की कड़ी होती थीं और उन की बातें एकदूसरे तक पहुंचाती थीं, पर अब उन दोनों के बीच संवाद बहुत स्वाभाविक हो गया है. देखा जाए तो वे दोनों अब एक फ्रैंडली रिलेशनशिप मैंटेन करने लगे हैं.

3-4 दशकों पहले नजर डालें तो पता चलता है कि पिता की भूमिका किसी तानाशाह से कम नहीं होती थी. पीढि़यों से ऐसा ही होता चला आ रहा था. तब पिता का हर शब्द सर्वोपरि होता था और उस की बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी. वह अपने पुत्र की इच्छाअनिच्छा से बेखबर अपनी उम्मीदें और सपने उस को धरोहर की तरह सौंपता था. पिता का सामंतवादी एटीट्यूड कभी बेटे को उस के नजदीक आने ही नहीं देता था. एक डरासहमा सा बचपन जीने के बाद जब बेटा बड़ा होता था तो विद्रोही तेवर अपना लेता था और उस की बगावत मुखर हो जाती थी.

असल में पिता सदा एक हौवा बन बेटे के अधिकारों को छीनता रहा. प्रतिक्रिया करने का उफान मन में उबलने के बावजूद पुत्र अंदर ही अंदर घुटता रहा. जब समय ने करवट बदली और उस की प्रतिक्रिया विरोध के रूप में सामने आई तो पिता सजग हुआ कि कहीं बागडोर और सत्ता बनाए रखने का लालच उन के रिश्ते के बीच ऐसी खाई न बना दे जिसे पाटना ही मुश्किल हो जाए. लेकिन बदलते समय के साथ नींव पड़ी एक ऐसे नए रिश्ते की जिस में भय नहीं था, थी तो केवल स्वीकृति. इस तरह पितापुत्र के बीच दूरियों की दीवारें ढह गईं और अब आपसी संबंधों से एक सोंधी सी महक उठने लगी है, जिस ने उन के रिश्ते को दोस्ती में बदल दिया है.

पितापुत्र संबंधों में एक व्यापक परिवर्तन आया है और यह उचित व स्वस्थ है. पिता के व्यक्तित्व से सामंतवाद थोड़ा कम हुआ है. थोड़ा इसलिए क्योंकि अगर हम गांवों और कसबों में देखें तो वहां आज भी स्थितियों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. बस, दमन उतना नहीं रहा है जितना पहले था. आज पिता की हिस्सेदारी है और दोतरफा बातचीत भी होती है जो उपयोगी है. मीडिया ने रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. टैलीविजन पर प्रदर्शित विज्ञापनों ने पितापुत्री और पितापुत्र दोनों के बीच निकटता का इजाफा किया है.

समाजशास्त्री श्यामा सिंह का कहना है कि आज अगर पितापुत्र में विचारों में भेद हैं तो वे सांस्कृतिक भेद हैं. अब मतभेद बहुत तीव्र गति से होते हैं. पहले पीढि़यों का परिवर्तन 20 साल का होता था पर अब वह परिवर्तन 5 साल में हो जाता है. आज के बच्चे समय से पहले मैच्योर हो जाते हैं और अपने निर्णय लेने लगते हैं. जहां पिता इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं वहां दिक्कतें आ रही हैं. पितापुत्र के रिश्ते में जो पारदर्शिता होनी चाहिए वह अब दिखने लगी है. नतीजतन बेटा अपने पिता के साथ अपनी बातें शेयर करने लगा है.

खत्म हो गई संवादहीनता

आज पितापुत्र संबंधों में जो खुलापन आया है उस से यह रिश्ता मजबूत हुआ है. मनोवैज्ञानिक समीर मल्होत्रा के अनुसार, अगर पिता अपने पुत्र के साथ एक निश्चित दूरी बना कर चलता है तो संवादहीनता उन के बीच सब से पहले कायम होती है. पहले जौइंट फैमिली होती थी और शर्म पिता से पुत्र को दूर रखती थी. बच्चे को जो भी कहना होता था, वह मां के माध्यम से पिता तक पहुंचाता था. लेकिन आज बातचीत का जो पुल उन के बीच बन गया है, उस ने इतना खुलापन भर दिया है कि पितापुत्र साथ बैठ कर डिं्रक्स भी लेने लगे हैं. आज बेटा अपनी गर्लफ्रैंड के बारे में बात करते हुए सकुचाता नहीं है.

करने लगा सपने साकार

महान रूसी उपन्यासकार तुरगेनेव की बैस्ट सेलर किताब ‘फादर ऐंड सन’ पीढि़यों के संघर्ष की महागाथा है. वे लिखते हैं कि पिता हमेशा चाहता है कि पुत्र उस की परछाईं हो, उस के सपनों को पूरा करे. जाहिर है, इस उम्मीद की पूर्ति होने की चाह कभी पुत्र को आजादी नहीं देगी. पिता चाहता है कि उस के आदेशों का पालन हो और उस का पुत्र उस की छाया हो. टकराहट तभी होती है जब पिता अपने सपनों को पुत्र पर लादने की कोशिश करता है. पर आज पिता, पुत्र के सपनों को साकार करने में जुट गया है.

प्रख्यात कुच्चिपुड़ी नर्तक जयराम राव कहते हैं कि जमाना बहुत बदल गया है. बच्चों की खुशी किस में है और वे क्या चाहते हैं, इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. यही वजह है कि मैं अपने बेटे की हर बात मानता हूं. मैं अपने पिता से बहुत डरता था, पर आज समय बदल गया है. कोई बात पसंद न आने पर मेरे पिता मुझे मारते थे पर मैं अपने बेटे को मारने की बात सोच भी नहीं सकता. आज वह अपनी दिशा चुनने के लिए स्वतंत्र है. मैं उस के सपने साकार करने में उस का पूरा साथ दूंगा.

बहरहाल, अब पितापुत्र के सपने, संघर्ष और सोच अलग नहीं रही है. यह मात्र भ्रम है कि आजादी पुत्र को बिगाड़ देती है. सच तो ?यह है कि यह आजादी उसे संबंधों से और मजबूती से जुड़ने और मजबूती से पिता के विश्वास को थामे रहने के काबिल बनाती है.

फादर्स डे स्पेशल: स्मिता- बेटी के पैदा होने के बाद सारा और राजीव क्यों परेशान थे

सारा और राजीव ने अपनी होने वाली बेटी का नाम रखा था स्मिता, यानी मुसकराहट. लेकिन जब उन की नन्ही सी बेटी इस दुनिया में आई तो वह एक ऐसी बीमारी से पीडि़त थी जिस ने उस की मुसकराहट ही छीन ली थी. क्या कोई सर्जन उस के नाम को सार्थक कर पाने में सफल हो सका?

‘‘यह कितनी कौंप्लिकेटेड प्रेग्नैंसी है,’’ राजीव ने तनाव भरे स्वर में कहा.

सारा ने प्रतिक्रिया में कुछ नहीं कहा. उस ने कौफी का मग कंप्यूटर के कीबोर्ड के पास रखा. राजीव इंटरनेट पर सर्फिंग कर रहा था. सारा ने एक बार उस की तरफ देखा, फिर उस ने मौनिटर पर निगाह डाली और वहां खडे़खडे़ राजीव के कंधे पर अपनी ठुड्डी रखी तो उस की घनी जुल्फें पति के सीने पर बिखर गईं.

नेट पर राजीव ने जो वेबसाइट खोल रखी थी वह हिंदी की वेबसाइट थी और नाम था : मातृशक्ति.

साइट का नाम देखने पर सारा उसे पढ़ने के लिए आतुर हो उठी. लिखा था, ‘प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने भी माना है कि आदमी को जीवन में सब से ज्यादा प्रेरणा मां से मिलती है. फिर दूसरी तरह की प्रेरणाओं की बारी आती है. महान चित्रकार लियोनार्डो दि विंची ने अपनी मां की धुंधली याद को ही मोनालिसा के रूप में चित्र में उकेरा था. इसलिए आज भी वह एक उत्कृष्ट कृति है. नेपोलियन ने अपने शासन के दौरान उसे अपने शयनकक्ष में लगा रखा था.’

वेबसाइट पढ़ने के बाद कुछ पल के लिए सारा का दिमाग शून्य हो गया. पहली बार वह मां बन रही थी इसीलिए भावुकता की रौ में बह कर वह बोली, ‘‘दैट्स फाइनल, राजीव, जो भी हो मेरा बच्चा दुनिया में आएगा. चाहे उस को दुनिया में लाने वाला चला जाए. आजकल के डाक्टर तो बस, यही चाहते हैं कि वे गर्भपात करकर के  अच्छाखासा धन बटोरें ताकि उन का क्लीनिक नर्सिंग होम बन सके. सारे के सारे डाक्टर भौतिकवादी होते हैं. उन के लिए एक मां की भावनाएं कोई माने नहीं रखतीं. चंद्रा आंटी को गर्भ ठहरने पर एक महिला डाक्टर ने कहा था कि यह प्रेग्नैंसी कौंप्लिकेटेड होगी या तो जच्चा बचेगा या बच्चा. देख लो, दोनों का बाल भी बांका नहीं हुआ.’’

‘‘यह जरूरी तो नहीं कि तुम्हारा केस भी चंद्रा आंटी जैसा हो. देखो, मैं अपनी इकलौती पत्नी को खोना नहीं चाहता. मैं संतान के बगैर तो काम चला लूंगा लेकिन पत्नी के बिना नहीं,’’ कहते हुए राजीव ने प्यार से अपना बायां हाथ सारा के सिर पर रख दिया.

‘‘राजीव, मुझे नर्वस न करो,’’ सारा बोली, ‘‘कल सुबह मुझे नियोनो- टोलाजिस्ट से मिलने जाना है. दोपहर को मैं एक जेनेटिसिस्ट से मिलूंगी. मैं तुम्हारी कार ले जाऊंगी क्योंकि मेरी कार की बेल्ट अब छोटी पड़ रही है. और हां, पापा को ईमेल कर दिया?’’

‘‘पापा बडे़ खुश हैं. उन को भी तुम्हारी तरह यकीन है कि पोती होगी. उन्होंने साढे़ 8 महीने पहले उस का नाम भी रख दिया, स्मिता. कह रहे थे कि स्मिता की स्मित यानी मुसकराहट दुनिया में सब से सुंदर होगी,’’ राजीव ने बताया तो सारा के गालों का रंग और भी सुर्ख हो गया.

‘‘मिस्टर राजीव बधाई हो, आप की पहली संतान लड़की हुई है,’’ नर्स ने बधाई देते हुए कहा.

पुलकित मन से राजीव ने नर्स का हाथ स्नेह से दबाया और बोला, ‘‘थैंक्स.’’

राजीव अपनी बेचैनी को दबा नहीं पा रहा था. वह सारा को देखने के लिए प्रसूति वार्ड की ओर चल दिया.

सारा आंखें मूंदे लेटी हुई थी. किसी के आने की आहट से सारा ने आंखें खोल दीं, फिर अपनी नवजात बेटी की तरफ देखा और मुसकरा दी.

‘‘मुझे पता नहीं था कि बेटियां इतनी सुंदर और प्यारी होती हैं,’’ यह कहते हुए राजीव ने बेटी को हाथों में लेने का जतन किया.

तभी बच्ची को जोर की हिचकी आई. फिर वह जोरजोर से सांसें लेने लगी. यह देख कर पतिपत्नी की सांस फूल गई. राजीव जोर से चिल्लाया, ‘‘डाक्टर…’’

आधे मिनट में लेडी डाक्टर वंदना जैन आ गईं. उन्होंने बच्ची को देख कर नर्स से कहा, ‘‘जल्दी से आक्सीजन मास्क लगाओ.’’

अगले 10 मिनट बाद राजीव और सारा की नवजात बेटी को अस्पताल के नियोनोटल इंटेसिव केयर यूनिट में भरती किया गया. उस बच्ची के मातापिता कांच के बाहर से बड़ी हसरत से अपनी बच्ची को देख रहे थे. तभी नर्स ने आ कर सारा से कहा कि उसे जच्चा वार्ड के अपने बेड पर जा कर आराम करना चाहिए.

सारा को उस के कमरे में छोड़ राजीव सीधा डा. अतुल जैन के चैंबर में पहुंचा, जो उस की बेटी का केस देख रहे थे.

‘‘मिस्टर राजीव, अब आप की बेटी को सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन वह कुछ चूस नहीं सकेगी. मां का स्तनपान नहीं कर पाएगी. उस का जबड़ा छोटा है, होंठों एवं गालों की मांसपेशियां काफी सख्त हैं. बाकी उस के जिनेटिक, ब्रेन टेस्ट इत्यादि सब सामान्य हैं,’’ डा. अतुल जैन ने बताया.

‘‘आखिर मेरी बेटी के साथ समस्या क्या है?’’

‘‘अभी आप की बेटी सिर्फ 5 दिन की है. अभी उस के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते. हो सकता है कि कल कुछ न हो. चिकित्सा के क्षेत्र में कभीकभी ऐसे केस आते हैं जिन के बारे में पहले से कुछ कहा नहीं जा सकता. वैसे आज आप की बेटी को हम डिस्चार्ज कर देंगे,’’ डा. अतुल ने कहा.

राजीव वार्ड में सारा का सामान समेट रहा था. स्मिता को नियोनोटल इंटेसिव केयर में सिर्फ 2 दिन रखा गया था. अब वह आराम से सांस ले रही थी.

‘‘आप ने बिल दे दिया?’’ नर्स ने पूछा.

‘‘हां, दे दिया,’’ सारा ने जवाब दिया.

नर्स ने नन्ही स्मिता के होंठों पर उंगली रखी और बोली, ‘‘मैडम, आप को इसे ट्यूब से दूध पिलाना पडे़गा. बोतल से काम नहीं चलेगा. यह बच्ची मानसिक रूप से कमजोर पैदा हुई है.’’

राजीव और सारा ने कुछ नहीं कहा. नर्स को धन्यवाद बोल कर पतिपत्नी कमरे से बाहर निकल गए.

घर आ कर सारा ने स्मिता के छोटे से मुखडे़ को गौर से देखा. फिर वह सोचने लगी, ‘आखिर इस के होंठों और गालों में कैसी सख्ती है?’

राजीव ने सारा को एकटक स्मिता को ताकते हुए देखा तो पूछा, ‘‘इतना गौर से क्या देख रही हो?’’

सारा कुछ नहीं बोली और स्मिता में खोई रही.

2 दिन बाद डा. अतुल जैन ने फोन कर राजीव व सारा को अपने नर्सिंग होम में बुलाया.

‘‘आप की बेटी की समस्या का पता चल गया. इसे ‘मोबियस सिंड्रोम’ कहते हैं,’’ डा. अतुल जैन ने राजीव और सारा को बताया.

‘‘यह क्या होता है?’’ सारा ने झट से पूछा.

‘‘इस में बच्चे का चेहरा एक स्थिर भाव वाले मुखौटे की तरह लगता है. इस सिंड्रोम में छठी व 7वीं के्रनिकल नर्व की कमी होती है या ये नर्व अविकसित रह जाती हैं. छठी क्रेनिकल नर्व जहां आंखों की गति को नियंत्रित करती है वहीं 7वीं नर्व चेहरे के भावों को सक्रिय करती है,’’ अतुल जैन ने विस्तार से स्मिता के सिंड्रोम के बारे में जानकारी दी.

‘‘इस से मेरी बेटी के साथ क्या होगा?’’ सारा ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आप की स्मिता कभी मुसकरा नहीं सकेगी.’’

‘‘क्या?’’  दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. हैरत से राजीव और सारा के मुंह खुले के खुले रह गए. किसी तरह हिम्मत बटोर कर सारा ने कहा, ‘‘क्या एक लड़की बगैर मुसकराए जिंदा रह सकती है?’’

डा. जैन ने कोई जवाब नहीं दिया. राजीव भी निरुत्तर हो गया था. वह सारा की गोद में लेटी स्मिता के नन्हे से होंठों को अपनी उंगलियों से छूने लगा. उस की बाईं आंख से एक बूंद आंसू का निकला. इस से पहले कि सारा उस की बेबसी को देखती, राजीव ने आंसू आधे में ही पोंछ लिया.

16 माह की स्मिता सिर्फ 2 शब्द बोलती थी. वह पापा को ‘काका’ और ‘मम्मी’ को ‘बबी’ उच्चारित करती. उस ने ‘प’ का विकल्प ‘क’ कर दिया और ‘म’ का विकल्प ‘ब’ को बना दिया. फिर भी राजीव और सारा हर समय अपनी नौकरी से फुरसत मिलते ही अपनी स्मिता के मुंह से काका और बबी सुनने को बेताब रहते थे.

6 साल की स्मिता अब स्कूल में पढ़ रही थी. लेकिन कक्षा में वह पीछे बैठती थी और हर समय सिर झुकाए रहती थी. उस की पलकों में हर समय आंसू भरे रहते थे. एक छोटी सी बच्ची, जो मन से मुसकराना जानती थी लेकिन  उस के होंठ शक्ल नहीं ले पाते थे. उस पर सितम यह कि उस के सहपाठी दबे मुंह उसे अंगरेजी में ‘स्माइललैस गर्ल’ कहते थे.

इस दौरान राजीव और सारा मुंबई विश्वविद्यालय छोड़ कर अपनी बेटी स्मिता को ले कर जोधपुर आ गए और विश्वविद्यालय परिसर में बने लेक्चरर कांप्लेक्स में रहने लगे. राजीव मूलत: नागपुर के अकोला शहर से थे और पहली बार राजस्थान आए थे.

स्मिता का दाखिला विश्वविद्यालय के करीब ही एक स्कूल में करा दिया गया. वह मानसिक रूप से एक औसत छात्रा थी.

उस दिन बड़ी तीज थी. विश्व- विद्यालय परिसर में तीज का उत्साह नजर आया. परिसर के लंबेचौडे़ लान में एक झूला लगाया गया. परिसर में रहने वालों की छोटीबड़ी सभी लड़कियां सावन के गीत गाते हुए एकदूसरे को झुलाने लगीं. स्मिता भी अपने पड़ोस की हमउम्र लड़कियों के साथ झूला झूलने पहुंची. लेकिन आधे घंटे बाद वह रोती हुई सारा के पास पहुंची.

‘‘क्या हुआ?’’ सारा ने पूछा.

‘‘मम्मी, पूजा कहती है कि मैं बदसूरत हूं क्योंकि मैं मुसकरा नहीं सकती,’’ स्मिता ने रोते हुए बताया.

‘‘किस ने कहा? मेरी बेटी की मुसकान दुनिया में सब से खूबसूरत होगी?’’

‘‘कब?’’

‘‘पहले तू रोना बंद कर, फिर बताऊंगी.’’

‘‘मम्मी, पूजा ने मेरे साथ चीटिंग भी की. पहले झूलने की उस की बारी थी, मैं ने उसे 20 मिनट तक झुलाया. जब मेरी बारी आई तो पूजा ने मना कर दिया और ऊपर से कहने लगी कि तू बदसूरत है इसलिए मैं तुझे झूला नहीं झुलाऊंगी,’’ स्मिता ने एक ही सांस में कह दिया और बड़ी हसरत से मम्मी की ओर देखने लगी.

बेटी के भावहीन चेहरे को देख कर सारा को समझ में नहीं आया कि वह हंसे या रोए. उस के मन में अचानक सवाल जागा कि क्या मेरी स्मिता का चेहरा हंसी की भाषा कभी नहीं बोल पाएगा. नहीं, ऐसा नहीं होगा. एक दिन जरूर आएगा और वह दिन जल्दी ही आएगा, क्योंकि एक पिता ऐसा चाहता है…एक मां ऐसा चाहती है और एक भाई भी ऐसा ही चाहता है.

एक दिन सुबह नहाते वक्त स्मिता की नजर बाथरूम में लगे शीशे पर पड़ी. शीशा थोड़ा ऊपर था. वह टब में बैठ कर या खड़े हो कर उसे नहीं देख सकती थी. सारा जब उसे नहलाती थी तब पूरी कोशिश करती थी कि स्मिता आईना न देखे. लेकिन आज सारा जैसे ही बेटी को नहलाने बैठी तो फोन आ गया. स्मिता को टब के पास छोड़ कर सारा फोन अटेंड करने चली गई.

स्मिता के मन में एक विचार आया. वह टब पर धीरे से चढ़ी. अब वह शीशे में साफ देख सकती थी. लेकिन अपना सपाट और भावहीन चेहरा शीशे में देख कर स्मिता भय से चिल्ला उठी, ‘‘मम्मी…’’

सारा बेटी की चीख सुन कर दौड़ी आई, बाथरूम में आ कर उस ने देखा तो शीशा टूटा हुआ था. स्मिता टब में सहमी बैठी हुई थी. उस ने गुस्से में नहाने के शावर को आईने पर दे मारा था.

‘‘मम्मी, मैं मुसकराना चाहती हूं. नहीं तो मैं मर जाऊंगी,’’ सारा को देखते ही स्मिता उस से लिपट कर रोने लगी. सारा भी अपने आंसू नहीं रोक पाई.

‘‘मेरी बेटी बहुत बहादुर है. वह एक दिन क्या थोडे़ दिनों में मुसकराएगी,’’ सारा ने उसे चुप कराने के लिए दिलासा दी.

स्मिता चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘मम्मी, मैं आप की तरह मुसकराना चाहती हूं क्योंकि आप की मुसकराहट से खूबसूरत दुनिया में किसी की मुसकराहट नहीं है.’’

राजीव शिमला से वापस आए तो सारा ने पूछा, ‘‘हमारी बचत कितनी होगी, राजीव?’’

‘‘क्या तुम प्लास्टिक सर्जरी के बारे में सोच रही हो,’’ राजीव ने बात को भांप कर कहा.

‘‘हां.’’

‘‘चिंता मत करो. कल हम स्मिता को सर्जन के पास ले जाएंगे,’’ राजीव ने कहा.

‘‘सिस्टर, तुम देखना मेरी मुसकराहट मम्मी जैसी होगी. जो मेरे लिए दुनिया में सब से खूबसूरत मुसकराहट है,’’ एनेस्थिसिया देने वाली नर्स से आपरेशन से पहले स्मिता ने कहा.

स्मिता का आपरेशन शुरू हो गया. सारा की सांस अटक गई. उस ने डरते हुए राजीव से पूछा, ‘‘सुनो, उसे आपरेशन के बाद होश आ जाएगा न? कभीकभी मरीज कोमा में चला जाता है.’’

‘‘चिंता मत करो. सब ठीक होगा,’’ राजीव ने मुसकराते हुए जवाब दिया ताकि सारा का मन हलका हो जाए.

डा. अतुल जैन ने स्मिता की जांघों की ‘5वीं नर्व’ की शाखा से त्वचा ली क्योंकि वही त्वचा प्रत्यारोपण के बाद सक्रिय रहती है. इस से ही काटने और चबाने की क्रिया संभव होती है. राजीव और सारा का बेटी के प्रति प्यार रंग लाया. आपरेशन के 1 घंटे बाद स्मिता को होश आ गया. लेकिन अभी एक हफ्ते तक वे अपनी बेटी का चेहरा नहीं देख सकते थे.

काफी दिनों तक राजीव पढ़ाने नहीं जा पाया था. आज सुबह 10 बजे वह पूरे 2 महीने बाद लाइफ साइंस के अपने विभाग गया था. आज ही सुबह 11 बजे स्मिता को अस्पताल से छुट्टी मिली. रास्ते में उस ने सारा से कहा, ‘‘मम्मी, मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा है.’’

यह सुन कर सारा ने स्मिता के चेहरे को गौर से देखा तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. स्मिता जब बोल रही थी तब उस के होंठों ने एक आकार लिया. सारा ने आवेश में स्मिता का चेहरा चूम लिया. उस ने तुरंत राजीव को मोबाइल पर फोन किया.

फोन लगते ही सारा चिल्लाई, ‘‘राजीव, स्मिता मुसकराई…तुम जल्दी आओ. आते वक्त हैंडीकैम लेते आना. हम उस की पहली मुसकान को कैमरे में कैद कर यादों के खजाने में सुरक्षित रखेंगे.’’

उधर राजीव इस बात की कल्पना में खो गया कि जब वह अपनी बेटी को स्मिता कह कर बुलाएगा तब वह किस तरह मुसकराएगी.

फादर्स डे स्पेशल: लव यू पापा- तनु उसे अपना पिता क्यों नहीं मानती थी?

‘‘अरे तनु, तुम कालेज छोड़ कर यहां कौफी पी रही हो? आज फिर बंक मार लिया क्या? इट्स नौट फेयर बेबी,’’ मौल के रेस्तरां में अपने दोस्तों के साथ बैठी तनु को देखते ही सृष्टि चौंक कर बोली. फिर तनु से कोई जवाब न पा कर खिसियाई सी सृष्टि उस के दोस्तों की तरफ मुड़ गई.

पैरों में हाईहील, स्टाइल से बंधे बाल और लेटैस्ट वैस्टर्न ड्रैस में सजी सृष्टि को तनु के दोस्त अपलक निहार रहे थे.

‘‘चलो, अब आ ही गई हो तो ऐंजौय करो,’’ कहते हुए सृष्टि ने कुछ नोट तनु के पर्स में ठूंस सब को बाय किया और फिर रेस्तरां से बाहर निकल गई.

‘‘तनु, कितनी हौट हैं तुम्हारी मौम… तुम तो उन के सामने कुछ भी नहीं हो…’’

यह सुनते ही रेस्तरां के दरवाजे तक पहुंची सृष्टि मुसकरा दी. वैसे उस के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, क्योंकि उसे अकसर ऐसे कौंप्लिमैंट सुनने को मिलते रहते थे. मगर तनु के चेहरे पर अपनी मां के लिए खीज के भाव साफ देखे जा सकते हैं.

सृष्टि बला की खूबसूरत है. इतनी आकर्षक कि किसी को भी मुड़ कर देखने पर मजबूर कर देती है. उसे देख कर कोई भी कह सकता है कि हां, कुछ लोग वाकई सांचे में ढाल कर बनाए जाते हैं.

16 साल की तनु उस की बेटी नहीं, बल्कि छोटी बहन लगती है.

जिस खूबसूरती को लोग वरदान समझते हैं वही सुंदरता सृष्टि के लिए अभिशाप बन गई थी. 5 साल पहले जब तनु के पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई तब इसी खूबसूरती ने 1-1 कर सब नातेरिश्तेदारों, दोस्तों और जानपहचान वालों के चेहरों से नकाब उठाने शुरू कर दिए थे.

नकाबों के पीछे छिपे कुछ चेहरे तो इतने घिनौने थे कि उन से घबरा कर सृष्टि ने यह दुनिया ही छोड़ने का फैसला कर लिया. मगर तभी तनु का खयाल आ गया. उसे लगा कि जब वही इस दुनिया का सामना नहीं कर पा रही है तो फिर यह नादान तनु कैसे कर पाएगी. फिर उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में आए थे अभिषेक…

अभिषेक सृष्टि के पति के सहकर्मी थे और उन की मृत्यु के बाद अब सृष्टि के, क्योंकि सृष्टि को उसी औफिस में अपने पति के स्थान पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गई थी. अभिषेक अब तक कुंआरे क्यों थे, यह सभी के लिए कुतूहल का विषय था.

यह राज पहली बार खुद अभिषेक ने ही सृष्टि के सामने खोला था कि पिताविहीन घर में सब से बड़े होने के नाते छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते कब खुद उन की शादी की उम्र निकल गई, उन्हें पता ही नहीं चला और इन सब के बीच उन का दिल भी तो कभी किसी के लिए ऐसे नहीं धड़का था जैसे अब सृष्टि को देख कर धड़कता है. यह सुन कर एकबार को तो सृष्टि सकपका गई, मगर फिर सोचा कि क्यों कटी पतंग की तरह खुद को लुटने के लिए छोड़ा जाए… क्यों न अपनी डोर किसी विश्वासपात्र के हाथों सौंप कर निश्चिंत हुआ जाए.

मगर अपने इस निर्णय से पहले उसे तनु की राय जानना बहुत जरूरी था और तनु की राय जानने के लिए जरूरी था उस का अभिषेक से मिलना और फिर उन्हें अपने पिता के रूप में स्वीकार करने को सहमत होना, क्योंकि तनु अभी तक अपने पिता को भूल नहीं पाई थी. भूली तो वह भी कहां थी, मगर हकीकत यही है कि जीवन की सचाइयों को कड़वी गोलियों की तरह निगलना ही पड़ता है और यह बात उस की तरह तनु भी जितनी जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा है.

अभिषेक का सौम्य और स्नेहिल व्यवहार… नानी का तनु को दुनियादारी समझाना और थोड़ीबहुत सामाजिक सुरक्षा की जरूरत भी, जोकि शायद खुद तनु ने महसूस की थी…सभी को देखते हुए तनु ने बेमन से ही सही मगर सृष्टि के साथ अभिषेक के रिश्ते को सहमति दे दी.

अभिषेक को उन के साथ रहते हुए लगभग साल भर होने को आया था, लेकिन तनु अभी भी उन्हें अपने दिल में बसी पिता की तसवीर के फ्रेम में फिट नहीं कर पाई थी. वह उन्हें अपनी मां के पति के रूप में ही स्वीकार कर पाई थी, अपने पिता के रूप में नहीं. तनु ने एक बार भी अभिषेक को पापा कह कर नहीं पुकारा था.

पिता का असमय चले जाना और मां की नई पुरुष के साथ नजदीकियां तनु को भावनात्मक रूप से बेहद कमजोर कर रही थीं. बातबात में चीखनाचिल्लाना, अपनी हर जिद मनवाना, हर वक्त अपने मोबाइल से चिपके रहना, अभिषेक के औफिस से घर आते ही अपने कमरे में घुस जाना तनु की आदत बनती जा रही थी. उस की मानसिक दशा देख कर कई बार सृष्टि को अपने फैसले पर अफसोस होने लगता. मगर तभी अभिषेक तनु के इस व्यवहार को किशोरावस्था के सामान्य लक्षण बता कर सृष्टि को इस गिल्ट से बाहर निकाल देते थे.

अभिषेक का साथ पा कर सृष्टि की मुरझाती खूबसूरती फिर से खिलने लगी थी. अभिषेक भी उसे हर समय सजीसंवरी देखना चाहते थे. इसीलिए उस के कपड़ों, गहनों और अन्य ऐक्सैसरीज पर दिल खोल कर खर्च करते थे. शायद लेट शादी होने के कारण पत्नी को ले कर अपनी सारी दबी इच्छाएं पूरी करना चाहते थे. मगर इस के ठीक विपरीत तनु अपनेआप को बेहद अकेला और असुरक्षित महसूस करने लगी थी. अपनेआप से बेहद लापरवाह हो चुकी थी.

धीरेधीरे तनु के कोमल मन में यह भावना घर करने लगी थी कि मां की सुंदरता ही उस के जीवन का सब से बड़ा अभिशाप है. जब कभी कोई उस की तुलना सृष्टि से करता तो तनु के सीने पर सांप लोट जाता था. उसे सृष्टि से घृणा सी होने लगी थी.

अब तो उस ने सृष्टि के साथ बाहर आनाजाना भी लगभग बंद कर दिया था. उस के दिमाग में यही उथलपुथल रहती कि अगर मां इतनी सुंदर न होती तो अभिषेक का दिल भी उन पर नहीं आता और तब वे सिर्फ तनु की मां होतीं, अभिषेक या किसी और की पत्नी नहीं.

मां को भी तो देखो. कितनी इतराने लगी हैं आजकल… पांव हैं कि जमीन पर टिकते ही नहीं… हर समय अभिषेक आगेपीछे जो घूमते रहते हैं. तो क्या यह सब अभिषेक के प्यार की वजह से है? अगर अभिषेक इन की बजाय मुझे प्यार करने लगें तो? फिर मां क्या करेंगी? कैसे एकदम जमीन पर आ जाएंगी… कल्पना मात्र से ही तनु खिल उठी.

तनु के मन में ईर्ष्या के नाग ने फन उठाना शुरू कर दिया. उस के दिमाग ने तेजी से सोचना शुरू कर दिया. कई तरह की योजनाएं बननेबिगड़ने लगीं. अचानक तनु के होंठों पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. आखिर उसे रास्ता सूझने लगा था.

हां, मैं अब अभिषेक को अपना बनाऊंगी… उन्हें मां से दूर कर के मां का घमंड तोड़ दूंगी… तनु ने यह फैसला लेने में जरा भी देर नहीं लगाई. मगर यह इतना आसान नहीं है, यह बात भी वह अच्छी तरह से जानती थी. अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए उस ने अभिषेक पर पैनी नजर रखनी शुरू कर दी. उस की पसंदनापसंद को समझने की कोशिश करने लगी. उस के औफिस से आते ही वह उस के लिए पानी का गिलास भी लाने लगी थी. हां, अभिषेक को देख कर प्यार से मुसकराने में उसे जरूर थोड़ा वक्त लगा था.

‘‘मां, सिर में बहुत तेज दर्द है… थोड़ा बाम लगा दो न…’’ तनु जोर से चिल्लाई तो अभिषेक भाग कर उस के कमरे में गए. देखा तो तनु बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी थी. शौर्ट पहने सोई तनु ने अपने शरीर पर चादर कुछ इस तरह से डाल रखी थी कि उस की खुली जांघों ने अभिषेक का ध्यान एक पल के लिए ही सही, अपनी तरफ खींच लिया.

उन्हें अटपटा सा लगा तो चादर ठीक से ओढ़ा कर उस के सिर पर हाथ रखा. बुखार नहीं था. सृष्टि सब्जी लेने गई थी, अभी तक लौटी नहीं थी. इसीलिए वे तनु के सिरहाने बैठ कर उस का माथा सहलाने लगे. तनु ने खिसक कर अभिषेक की गोद में सिर रख लिया तो अभिषेक को अच्छा लगा. उन्हें विश्वास होने लगा कि शायद अब उन के रिश्ते में जमी बर्फ पिघल जाएगी.

धीरेधीरे तनु अभिषेक से खुलने लगी. कभीकभी सृष्टि की अनुपस्थिति में वह अभिषेक को जिद कर के बाहर ले जाने लगी. चलतेचलते कभी उस का हाथ पकड़ लेती तो कभी उस के कंधे पर सिर टिका लेती. अभिषेक भी पूरी कोशिश करते थे उसे खुश करने की.

वे उस की जिंदगी में पिता की हर कमी को पूरा करना चाहते थे. मगर कभीकभी वे सोच में पड़ जाते थे कि आखिर तनु उन से क्या चाहती है, क्योंकि तनु ने अब तक उन्हें पापा कह कर संबोधित नहीं किया था. वह हमेशा उन से बिना किसी संबोधन के ही बात करती थी.

बाहर जाते समय कपड़ों के मामले में तनु अभिषेक के पसंदीदा रंग के कपड़े ही पहनती थी. एक दिन पार्क में बेंच पर अभिषेक के कंधे से लग कर बैठी तनु ने अचानक अभिषेक से पूछ लिया, ‘‘मैं आप को कैसी लगती हूं?’’

‘‘जैसी हर पिता को अपनी बेटी लगती है… एकदम परी जैसी…’’ अभिषेक ने बहुत ही सहजता से जवाब दिया. मगर इसे सुन कर तनु के चेहरे की मुसकान गायब हो गई. फिर मन ही मन बड़बड़ाई कि किस मिट्टी का बना है यह आदमी… मैं तो इसे अपने मोहजाल में फंसाना चाह रही हूं और यह है कि मुझ में अपनी बेटी ढूंढ़ रहा है… या तो यह इंसान बहुत नादान है या फिर बहुत ही चालाक… कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मेरी पहल का इंतजार कर रहा है? लगता है अब मुझे अपना मास्टर स्ट्रोक खेलना ही पड़ेगा और फिर मन ही मन कुछ तय कर लिया.

‘‘अभिषेक, मां की तबीयत बहुत खराब है. उन्हें मेरी जरूरत है. मुझे 2-4 दिनों के लिए वहां जाना होगा. तुम तनु का खयाल रखना प्लीज…’’ सृष्टि ने अभिषेक के औफिस लौटते ही कहा तो तनु की जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो. वह ऐसे ही किसी मौके का तो इंतजार कर रही थी. वह कान लगा कर उन दोनों की बातें सुनने लगी. थोड़ी ही देर में सृष्टि ने कैब बुलाई और 4 दिनों के लिए अपनी मां के घर चली गई. जातेजाते उस ने तनु को गले लगा कर समझाया कि वह अपना और अभिषेक का खयाल रखे.

अभिषेक को रात में सोने से पहले शावर बाथ लेने की आदत थी. जब वह नहा कर बाथरूम से बाहर आया तो तनु को अपने बैड पर सोते देख चौंक गया. कमरे की डिम लाइट में पारदर्शी नाइटी से तनु के किशोर अंग झांक रहे थे. तनु दम साधे पड़ी अभिषेक की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी. अभिषेक कुछ देर तो वहां खड़े रहे, फिर धीरे से तनु को चादर ओढ़ाई और लाइट बंद कर के लौबी में आ कर बैठ गए. सुबह दूधवाले ने जब घंटी बजाई तो उसे भान हुआ कि वह रात भर यह सोफे पर ही सो रहा था.

तनु हताश हो गई. अभिषेक को अपनी ओर खींचने के लिए किस डोरी से बांधे उसे… उस के सारे हथियार 1-1 कर निष्फल हो रहे थे. कल तो मां भी वापस आ जाएंगी… फिर उसे यह सुनहरा मौका नहीं मिलेगा… उसे जो कुछ करना है आज ही करना होगा. तनु ने आज आरपार का खेल खेलने की ठान ली.

रात लगभग आधी बीत चुकी थी. अभिषेक नींद में बेसुध थे. तभी अचानक किसी के स्पर्श से उन की आंख खुल गई. देखा तो तनु थी. उस से लिपटी हुई. अभिषेक कुछ देर तो यों ही लेटे रहे, फिर धीरे से करवट बदली. अभिषेक तनु के मुंह पर झुकने लगे. तनु अपनी योजना की कामयाबी पर खुश हो रही थी. अभिषेक ने धीरे से उस के माथे को चूमा और फिर अपने ऊपर आए उस के हाथ को छुड़ा तनु को वहीं सोता छोड़ लौबी में आ कर सो गए.

उस दिन संडे था. सृष्टि कुछ ही देर पहले मां के घर से लौटी थी. नहानेधोने और नाश्ता करने के बाद सृष्टि अभिषेक को मां की तबीयत के बारे में बताने लगी. तनु के कान उन दोनों की बातों की ही तरफ लगे थे. वह डर रही थी कि कहीं अभिषेक उस की हरकतों की शिकायत सृष्टि से न कर दे. अचानक सृष्टि ने जरा शरमाते हुए कहा, ‘‘अभि, मां चाहती हैं किअब हम दोनों का भी एक बेबी आना चाहिए.’’

यह सुनते ही तनु को झटका सा लगा. ‘लो, अब यही दिन देखना बाकी रह गया था. अब इस उम्र में मां फिर से मां बनेंगी… हुंह,’ तनु ने सोच कर मुंह बिचका दिया.

‘‘सृष्टि मुझे तनु के प्यार में कोई हिस्सेदारी नहीं चाहिए… मैं तुम से यह बात छिपाने के लिए माफी चाहता हूं, मगर तुम से शादी करने से पहले ही मैं ने फैसला कर लिया था कि मुझे तनु अपनी एकमात्र संतान के रूप में स्वीकार है, इसलिए मैं ने बिना किसी को बताए हमारी शादी से पहले ही अपना नसबंदी का औपरेशन करवा लिया था,’’ अभिषेक ने कहा.

यह सुन कर सृष्टि और तनु दोनों ही चौंक उठीं. ‘‘हमें तनु का खास खयाल रखना होगा सृष्टि… 16 साल की तनु मन से अभी भी 6 साल की अबोध बच्ची है… यह अपनेआप को बहुत अकेला महसूस करती है… कोई भी बाहरी व्यक्ति इस के भोलेपन का गलत फायदा उठा सकता है. बिना बाप की यह मासूम बच्ची कितनी डरी हुई है. यह मुझे पिछले 3 दिनों में एहसास हो गया. तुम्हें पता है, इसे रात में कितना डर लगता है? इसे जब डर लगता था तो यह कितनी मासूमियत से मुझ से लिपट जाती थी… नहीं सृष्टि मैं तनु का प्यार किसी और के साथ नहीं बांट सकता… मैं बहुत खुशनसीब हूं कि कुदरत ने मुझे इतनी प्यारी बेटी दी है,’’ अभिषेक अपनी ही रौ में बहे जा रहे थे.

सृष्टि अपलक उन्हें निहार रही थी. और तनु? वह तो शर्म से पानीपानी हुई जैसे जमीन में गड़ जाना चाहती थी. फिर जैसे ही अभिषेक ने आ कर उसे गले से लगाया तो वह सिसक उठी. आंखों से बहते आंसुओं के साथ मन का सारा मैल धुलने लगा. सृष्टि ने पीछे से आ कर दोनों को अपनी बांहों में समेट लिया.

अभिषेक ने तनु के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘अब बना है यह सही माने में स्वीट होम…’’

तनु ने मुसकराते हुए धीरे से कहा, ‘‘लव यू पापा,’’ और फिर उन से लिपट गई.

अपना घर: क्या बेटी के ससुराल में माता-पिता का आना गलत है?

नसबंदी के बाद भी पिता बन सकते हैं

मामला कानपुर देहात का है. राजू यादव और संगीता की गृहस्थी अच्छी चल रही थी। शादी के चार साल के भीतर ही उनके दो बेटे हुए. राजू ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं था मगर परिवार नियोजन के फायदे समझता था, लिहाजा दो बच्चों के बाद उसने परिवार को और ना बढ़ाने की मंशा से राजकीय चिकित्सालय में अपनी नसबंदी करवा ली. वह चाहता था कि अपनी छोटी सी नौकरी और पांच बीघा जमीन पर जो पैदावार होती है, उससे अपने दोनों बेटों की अच्छी परवरिश करेगा और उन्हें ऊंची शिक्षा दिलाएगा। यह 2006 की बात है.
वर्ष 2008 में राजू अपने बीवी बच्चों के साथ एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए बस से गोरखपुर जा रहा था. रास्ते में उसकी बस का एक ट्रक से भयानक एक्सीडेंट हुआ जिसमें बस के कई अन्य यात्रियों के साथ राजू की पत्नी और दोनों बेटों की भी मौत हो गयी.
इस एक्सीडेंट में राजू की दुनिया उजड़ गयी मगर राजू बच गया. पच्चीस दिन अस्पताल में रहने के बाद जब घर आया तो उसके चारों तरफ मायूसी थी.वह गहरी हताशा और अवसाद में था. माँ बाप और भाई बहन ने उसको बहुत सहारा दिया लेकिन अंदर से वह बहुत अकेला हो गया था. अपने दोनों बेटों की मासूम सूरतें उसकी आँखों के आगे नाचती थीं. पत्नी की आवाज कान में गूंजती थी.
तीन महीने बाद राजू ने दोबारा काम पर जाना शुरू किया।.काम और दोस्तों के बीच उसका दिल कुछ बहला। धीरे धीरे समय बीतता गया. अगले दस सालों में उसकी बहन की शादी हो गयी और छोटा भाई अपनी पत्नी-बच्चों को लेकर लखनऊ शिफ्ट हो गया. पिता के देहांत के बाद घर में सिर्फ राजू और उसकी माँ ही बचे. जब बूढी माँ की देखभाल के लिए घर में किसी औरत का होना ज़रूरी हो गया तब राजू पर दूसरी शादी का दबाव बढ़ने लगा. मगर राजू इसके लिए तैयार नहीं हो पा रहा था. दरअसल उसको डर था कि नसबंदी के कारण वह पति-धर्म नहीं निभा पाएगा। दूसरी पत्नी आएगी तो उसको बच्चे भी चाहिए होंगे, वह कैसे देगा?
2019 में उसने अपनी शादी ना करने की वजह अपने एक दोस्त से बतायी तो उसने राजू को डॉक्टर से मिल कर अपनी नसबंदी रिवर्स कराने की सलाह दी। राजू को आइडिया ही नहीं था कि नसबंदी रिवर्स भी हो सकती है। यानी वह फिर से बाप बनने के काबिल हो सकता है। उसने तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने राजू को बताया कि नसबंदी को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव है। इसको लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां भी हैं। लोग समझते हैं कि नसबंदी के बाद पौरुष में कमी आ जाती है जबकि ऐसा नहीं है। नसबंदी से शारीरिक रिश्तों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और मर्दानगी पहले जैसी ही बनी रहती है। इसके साथ ही नसबंदी को ख़त्म भी किया जा सकता है जिससे मर्द फिर से बच्चा पैदा करने लायक हो जाता है।
डॉक्टर ने रिवर्स ऑपरेशन करके राजू की नसबंदी के समय में कटी हुई नस के दोनों सिरों को फिर से जोड़ दिया। कुछ सलाह और दवाइयों के साथ तीन दिन बाद राजू की अस्पताल से छुट्टी हो गयी। अब वह बच्चा पैदा करने लायक था और शादी कर सकता था। वर्ष 2000 में राजू ने सुनीता नाम की महिला से शादी कर ली। आज इस युगल के पास एक बेटी है।
नसबंदी से ही जुड़ी बिहार की एक घटना है। बिहार के कैमूर जिले में डॉक्टरों की बड़ी लापरवाही के चलते एक व्यक्ति की नसबंदी हो गई, जबकि वह हाइड्रोसिल का ऑपरेशन करवाने के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ था। जब युवक को इस बारे में जानकारी मिली तो वह और उसका परिवार हैरान रह गया। इस संबंध में युवक के परिजनों ने चैनपुर पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज करवाई। बाद में रिवर्स ऑपरेशन के जरिये उसने नसबंदी ख़त्म करवाई।
नसबंदी भले आपने स्वयं करवाई हो या इस तरह की लापरवाही के कारण हुई हो, उसे रिवर्स किया जा सकता है। मगर इसकी जानकारी आमतौर पर लोगों को नहीं है। यूं तो भारत में  परिवार नियोजन का जिम्मा औरत के सिर ही होता है। वह चाहे अपनी नसबंदी करवाए, कॉपर टी लगवाए या दवाइयों के जरिये प्रेगनेंसी को रोके। लेकिन कई बार ये जिम्मा पुरुष उठाते हैं और अपनी नसबंदी करवा कर परिवार को बढ़ने नहीं देते, जैसे राजू ने करवाई। बीते दशकों में गांव-देहातों में कैंप लगा कर मेडिकल टीमें पुरुष नसबंदी करती थीं। आज भी कहीं कहीं ऐसे कैंप लगते हैं।
दिल्ली कैलाश कॉलोनी स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल की सीनियर डॉक्टर नीना बहल पुरुष नसबंदी और इसके रिवर्स ऑपरेशन के बारे में एक लम्बी बातचीत में बताती हैं कि पुरुष नसबंदी एक बहुत ही छोटा सा ऑपरेशन होता है, जिसे डॉक्टर सिर्फ 30 मिनट में ही पूरा कर देते हैं। इसके लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती रहने की भी आवश्यकता नहीं होती है। ऑपरेशन के कुछ ही देर बाद वह अपने घर जा सकता है। इस प्रक्रिया को मेल स्टरलाइजेशन कहा जाता है। ऑपरेशन के बाद उस हिस्से में कुछ दिन तक हल्का दर्द और सूजन रह सकती है। पुरुष नसबंदी 100 फीसद तक असरदार होती है। लेकिन कुछ कारणों से यदि आप अपनी पुरानी स्थिति में लौटना चाहते है तो आपको पुनः एक ऑपरेशन करवाना होगा जिससे आप फिर प्रजनन के लायक हो सकते हैं।
डॉ. नीना बहल बताती हैं – नसबंदी के दौरान डॉक्टर टेस्टिकल्स से आपके प्राइवेट पार्ट तक स्पर्म्स को लेकर जाने वाली नस को काट देते हैं, जिसे वास डिफरेंस कहा जाता है। नसबंदी के रिवर्स ऑपरेशन में कटी हुई नस के दोनों सिरों को फिर से जोड़ दिया जाता है। इस तरह से एक बार फिर स्पर्म, वीर्य में मिलने लगते हैं और आप पुरुष अपनी पार्टनर को गर्भवती कर सकते हैं।
अगर किसी ने नसबंदी के ऑपरेशन को रिवर्स करने का मन बना ही लिया है तो इस बारे में कुछ बातें जान लेना जरूरी है। इस ऑपरेशन को करने के दो तरीके हैं। पहला तरीका है वैसोवैसोक्टमी, जिसमें डॉक्टर वास डिफरेंस के दोनों सिरों को एक साथ जोड़कर सिल देते हैं। इस तरह से एक बार फिर से वीर्य में स्पर्म शामिल होने लगते हैं। दूसरा तरीका  वैसोएपिडिडामोस्टमी है। इसमें डॉक्टर वास डिफरेंस को टेस्टिकल्स के पिछले हिस्से में एक छोटे से अंग के साथ जोड़ देते हैं। इसी अंग में स्पर्म स्टोर होते हैं। दूसरा तरीका, पहले तरीके से थोड़ा जटिल है। और डॉक्टर इस दूसरे तरीके को तभी चुनते हैं, जब डॉक्टर को लगे कि पहला तरीका आपके लिए कारगर नहीं होगा।

ऑपरेशन में कितना समय लगता है?

डॉ. बहल बताती हैं – नसबंदी रिवर्स ऑपरेशन अस्पताल और क्लीनिक में किए जाते हैं। इस ऑपरेशन के दौरान मरीज को एनस्थीसिया देकर सुला दिया जाता है, ताकि उसे दर्द महसूस न हो। ऑपरेशन में 2-4 घंटे तक का समय लग सकता है। हालांकि, इस ऑपरेशन के बाद मरीज  उसी दिन वापस अपने घर जा सकते हैं, मगर डॉक्टर कम से कम तीन दिन अस्पताल में रुकने की सलाह देते हैं। ऑपरेशन के दर्द और असहजता से उबरने में मरीज को दो हफ्ते तक का समय लग सकता है। नसबंदी को कई-कई बार वापस किया जा सकता है, लेकिन हर बार इसकी सफलता का दर कम होता जाता है।

नसबंदी रिवर्सल की सफलता दर कितनी है?

डॉ. बहल कहती हैं – इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपकी नसबंदी का ऑपरेशन हुए कितने वर्ष हो चुके हैं। नसबंदी रिवर्सल की सफलता की दर 60-95 फीसद तक होती है। रिवर्सल ऑपरेशन के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना 50 फीसद तक बढ़ जाती है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर नसबंदी को 15 वर्ष से अधिक हो चुके हैं तो रिवर्सल ऑपरेशन की सफलता दक काफी कम हो सकती है। प्रेग्नेंसी के मामले में महिला पार्टनर की उम्र और स्वास्थ्य के साथ ही पुरुष की स्पर्म क्वालिटी भी महत्वपूर्ण होती है।

कितने समय बाद बना सकते हैं संबंध

नसबंदी रिवर्सल ऑपरेशन सफलतापूर्वक होने के बाद भी वैसोवैसोक्टमी में 6-12 महीने में स्पर्म वापस आते हैं। जबकि वैसोएपिडिडायमोस्टमी के मामले में स्पर्म को वापस आने में एक साल से अधिक समय लग सकता है। कुछ लोगों के अंडकोश में ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है और इंफेक्शन का खतरा भी हो सकता है। कुछ लोगों को दर्द की समस्या भी हो सकती है।  लेकिन जहां तक शारीरिक संबंध बनाने की बात है तो अपने डॉक्टर से पूछे बिना ऐसा न करें।  आमतौर पर डॉक्टर रिवर्स ऑपरेशन के बाद अगले 2-3 हफ्ते तक शारीरिक संबंध बनाने से मना करते हैं।

नसबंदी रिवर्सल की जरूरत कब और क्यों पड़ती है
आमतौर पर पुरुष नसबंदी तब कराते हैं जब उनको और ज़्यादा संतान की अपेक्षा नहीं होती है। कई बार महिलाएं ऑपरेशन नहीं करवाना चाहती हैं तो वहाँ पुरुष ऑपरेशन करवा लेते हैं। लेकिन जिंदगी में कई बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जब लगता है कि काश नसबंदी ना करवाई होती। बहुतेरे लोगों को यह जानकारी नहीं है कि जरूरत पड़ने पर नसबंदी को ख़त्म भी करवाया जा सकता है। हालांकि यह आसान नहीं है मगर नामुमकिन नहीं है।
नसबंदी रिवर्स करवाने के कई कारण होते हैं –
सोच में बदलाव – हो सकता है कि आपने शुरू में बच्चे पैदा न करने का निर्णय लेते हुए ऐसा करवाया हो, लेकिन अब आप अपने बच्चे चाहते हैं तो आप नसबंदी रिवर्स करवा सकते हैं।
नया रिश्ता – तलाक के बाद आपने फिर से शादी की हो या नए रिश्ते में आए हों तो पहले की जा चुकी नसबंदी को आप रिवर्स करके अपना परिवार फिर से शुरू कर सकते हैं।
दर्द से राहत के लिए –
नसबंदी के ऑपरेशन के बाद कुछ बहुत ही कम लोगों के टेस्टिकल्स में दर्द रहता है। इस दर्द से राहत पाने के लिए भी रिवर्सल ऑपरेशन करवाया जाता है।
प्रजनन क्षमता वापस पाने की चाहत – आप और बच्चे नहीं चाहते हैं, फिर भी प्रजनन क्षमता को वापस पाना चाहते हैं, ताकि आपको यह एहसास हो कि आप में बच्चे पैदा करने की क्षमता है तो आप यह ऑपरेशन करवा सकते हैं।
गलती सुधारना –
गलती से अगर नसबंदी हो गई है तो आप नसबंदी रिवर्सल ऑपरेशन करवाकर अपनी प्रजनन क्षमता को वापस पा सकते हैं।

कैंसर पर छलका विक्की कौशल के पिता का दर्द, किया ये खुलासा

बॉलीवुड एक्टर विक्की कौशल अपनी फिल्म जरा हटके, जरा बचके को लेकर काफी ज्यादा सुर्खियों में बने हुए हैं, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कमाई कर रहे हैं, इसी बीच विक्की कौशल के पिता शाम कौशल ने खुलासा किया है कि वह एक वक्त काफी ज्यादा गंभीर बीमारी से जुझ रहे थें.

उस वक्त उनके दोनों बेटे काफी ज्यादा छोटे थें, शाम कौशल ने बताया कि साल 2003 में उन्हें कैंसर हो गया था, उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने कह दिया था कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा, उसके बाद से मैंने भी यह स्वीकार कर लिया था कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा.

उस वक्त उन्होंने कहा था कि मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि मैंने शून्य से शुरुआत कि और मैं यहां तक पहुंचा हूं, 48 साल का हूं मुझे ले जाओ लेकिन अगर आप मुझे बचाना चाहते हैं तो आप मुझे कमजोर बनाकर मत रखना, मैं एक कमजोर इंसान की तरह जीवित नहीं रह सकता हूं. उन्होंने बताया कि तब मैं 50 दिनों तक अस्पताल में एडमिट था.

50 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद से उन्होंने कैंसर को मात दे दिया, उसके बाद से वह घर वापस आ गए, उन्होंने बताया कि जब मैं सोच लिया कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा तबसे लेकर अब तक मैंने अपनी जिंदगी के कई अच्छे दिन देखें हैं. मेरे बच्चे कामयाब हुए.

Yrkkh: कायरव की शादी में नहीं होगी आरोही की एंट्री, अक्षरा को करेगा सपोर्ट

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में मुस्कान और कायरव की शादी की तैयारी चल रही है, इसी समय अक्षरा पूरी जिम्मेदारी के साथ इन लोगों की शादी की तैयारी में लगी हुई है. अक्षरा का कहना है कि शादी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए .

वहीं इस शादी की खास बात यह है कि कायरव की बहन आरोही नहीं आ रही है, कायरव शादी में आने से उसे साफ मना कर देगा. बता दें कि दिखाया जाएगा कि अबीर अभिनव और कायरव बैठकर शादी की लिस्ट बना रहे होंगे उसी वक्त कायरव कहेगा की आरोही इस शादी में नहीं आएगी. जिसे सुनते ही सभी लोह हैरान हो जाएंगे.

 

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इसी बीच कायरव रात को अपनी बहन को फोन करेगा और कहेगा की मैंने आपकी शादी की दुआएं मांगी है, आप मुझे न आने की बात कह रहे हो, इस बात को सुनते ही सभी परिवार वाले हैरान हो जाएंगे, वह कहेगा मुझे पता है कि तुम्हें यहां आकर सिर्फ दर्द ही मिलेगा इसलिए मैं तुम्हें यहां आने से मना कर रहा हूं.

वह कहेगा कि इसिलिए कह रहा हूं कि तेरा मन करें तब ही आना ऐसे आने की कोई जरुरत नहीं है, आरोही कहेगी मुझे समझाने के लिए थैक्यूं मैं अगर नहीं आ पाई तो अक्षरा को नेक दे देना.

बृजभूषण सिंह : रुतबा बड़ा या कानून

कई महीनों के आंदोलन के बाद खेलमंत्री अनुराग ठाकुर के साथ पहलवानों की पहली मुलाकात हुई. इस बैठक के बाद पहलवानों ने जांच पूरी होने तक आंदोलन पर रोक लगाने का भी ऐलान किया. अनुराग ठाकुर ने बताया कि 15 जून, 2023 तक कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जांच को पूरा कर लिया जाएगा.

बैठक में पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी के साथ कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की भी मांग की. आंदोलन कर रहे पहलवानों से मुलाकात के बाद अनुराग ठाकुर ने कहा, “बैठक में हम ने जांच पूरी कर के चार्जशीट दायर करने की बात की है और हम यह करेंगे.”

इस से पहले केंद्र सरकार ने पहलवानों को बातचीत के लिए न्योता दिया था. इस बैठक के लिए खेलमंत्री ने खुद पहलवानों को आमंत्रित किया था, जिस में बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक आदि शामिल हुए थे. दोनों पक्षों के बीच करीब 6 घंटे की बातचीत हुई.

एफआईआर से बर्बरता तक

21 अप्रैल, 2023 को महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए राजीव चौक थाने में एफआईआर दर्ज करवाने पहुंचे, जहां उन की शिकायत दर्ज नहीं की गई. जिस के बाद पहलावानों ने जंतरमंतर पर धरना शुरू किया, जिस के बाद महिला पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज कर शिकायत लिखने की मांग की.

कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस भेज जवाब मांगा, जिस के बाद बृजभूषण सिंह के खिलाफ 2 एफआईआर दर्ज हुई. जिस में से एक पौक्सो ऐक्ट के तहत दर्ज हुई. इस बीच दिल्ली के जंतरमंतर पर पहलवानों का प्रदर्शन जारी रहा और इसे खत्म करने के लिए हर कोशिश की गई.

बिजलीपानी की आपूर्ति बंद करने के साथ ही लोगों की प्रदर्शन स्थल पर आवाजाही बाधित तक करने की कोशिश हुई. नए संसद के उद्घाटन समारोह वाले दिन पहलवानों पर बेइंतिहा बर्बरता तक की गई. इन सब में प्रमुख बात यह है की जहां देश का नाम रौशन करने वाले पहलवान यह सब झेल रहे थे, वहीं बृजभूषण सिंह गिरफ्त से दूर होने के साथ ही भाषणबाजी कर रहे थे.

मामला दर्ज, फिर भी जांच का इंतजार

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ 2 एफआईआर दर्ज हुई हैं. एक यौन उत्पीड़न के मामले में आईपीसी की धारा 354, 354(ए), 354(डी) के तहत और दूसरी एफआईआर पौक्सो ऐक्ट के तहत दर्ज हुई है जो कि गैरजमानती है. इस मामले में दोषी पाए जाने पर कम से कम 7 साल और अधिकतम उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

नाबालिग से होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए ही पौक्सो ऐक्ट बना है. यह कानून काफी सख्त है और इस में अभियुक्त को जमानत नहीं दी जाती है।

जानकारों के मुताबिक, पौस्को ऐक्ट में मामला दर्ज होना बहुत गंभीर मुद्दा है. लेकिन मामले में पहले जांच का इंतजार करना सोचने वाली बात है. क्योंकि इस ऐक्ट के तहत मामला दर्ज होने के साथ ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है और मामले की जांच इस के बाद की जाती है.

हालांकि मामले को ले कर दावा किया जा रहा है कि पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोपों की सत्यता की जांच कर सकती है और प्राथमिक जांच में पुलिस को आरोप सही लगता है तभी गिरफ्तार करेगी अन्यथा नहीं. गंभीर अपराधों के मामलों में आमतौर पर अभियुक्त की गिरफ्तारी होती है ताकि वह भाग न सके या फिर जांच को प्रभावित न कर सके. इसी कारण कहा जा रहा है कि मामले पर राजनीतिक दबाव के कारण अबतक बृजभूषण की गिरफ्तारी नहीं की गई है.

बृजभूषण की राजनीतिक पहुंच

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले बृजभूषण शरण सिंह की गिनती यूपी के दबंग नेताओं में होती है और पिछले 3 दशक से वे राजनीति में काफी सक्रिय हैं. अभी वे कैसरगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा से सांसद हैं और इस सीट पर वे पिछले 6 बार से जीत दर्ज कर चुके हैं. इस पूरे इलाके में उन का दबदबा है. बृजभूषण सिंह बीजेपी से पहले समाजवादी पार्टी से भी सांसद रह चुके हैं. ऐसे में ब्रजभूषण सिंह के नाराज होने का मतलब इन इलाकों में पार्टी को कमजोर करना होगा. इस इलाके के रजवाड़ों और ठाकुरों की मजबूत पट्टी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ लामबंद है.

यहां राजनीति के कई ऐंगल हैं जो बृजभूषण के खिलाफ काररवाई में जल्दबाजी से रोक रहे हैं और एफआईआर के बावजूद उन की गिरफ्तारी को टालने का दबाव बना रहे हैं.

काररवाई न करने का दूसरा पहलू
इस पूरे मामले में बीजेपी का काररवाई करने का मतलब कांग्रेस की बात मानना है. ऐसे में बीजेपी बृजभूषण पर राजनीतिक काररवाई कर के यह बिलकुल भी साबित नहीं करना चाहती की वह ऐसा कांग्रेस के दबाव में कर रही है.

बीजेपी इस पूरे मामले में कोई ऐसा रास्ता चाहती है कि मामले पर ऐक्शन भी हो जाए और उस का पूरा श्रेय बीजेपी को जाए. इस पूरे मामले में कानूनी काररवाई के साथ बीजेपी अपनी राजनीतिक पकड़ नहीं खोना चाहती है.

बृजभूषण सिंह के खिलाफ पहले भी दर्जनों मुकदमे दर्ज हो चुके हैं जिन में कई मामले गंभीर धाराओं के तहत दर्ज किए गए हैं. बृजभूषण सिंह 2011 से लगातार कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं.

बृजभूषण सिंह ने क्या कहा

अपनी गिरफ्तारी को ले कर बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि वह इस्तीफा तभी देंगे जब उन से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहेंगे. उन का कहना है कि इस्तीफा देने का मतलब होगा कि उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लिया है.

बेटियों की मां : राधिका ने क्या फैसला लिया था, जिससे सब हैरान थें?

रागिनी पाठक

“राधिका सुनो, कल सुबह आयुष के साथ रचना और अखिलेश घर पर आएंगे,” राधिका के पति अजय ने फोन टेबल पर रखते हुए कहा.

गिलास में पानी भरती राधिका ने आश्चर्य से पूछा, “क्या…? क्या कहा आप ने? रचना और जीजाजी घर आ रहे हैं?”

“हम्म… अभी उन्हीं का फोन था,” अजय ने कहा.

इतना सुनते ही राधिका के हाथ से पानी भरा गिलास छूट गया, “क्या…?”

‘लेकिन, इतने सालों बाद कैसे याद आ गई उन को हमारी?’ राधिका ने मन ही मन में सोचा. और यह खबर सुनते ही उसे उन से जुड़ी पुरानी कड़वी यादें भी ताजा हो गईं कि उस को कैसेकैसे ताने सुनाए जाते थे.

राधिका की दूसरी बेटी होने पर ननदोईजी ने उस के पूर्व जन्मों के खराब कर्म बताए थे और ननद ने तो उस की मां की परछाईं को ही बुरा बता कर हायतोबा पूरे अस्पताल में मचा दी थी.

उस के अतीत के पन्नों में ननद और ननदोई से जुड़े वाकिए याद करने के लिए सिर्फ ताने ही थे. उसे उन की सभी बातें आज याद आ रही थीं, कैसे मायके वालों के सामने उन्होंने कहा था, “अब ये तो अपनेअपने कर्म हैं. जिन के कर्म अच्छे होते हैं, उन के ही वंश आगे बढ़ते हैं.

“खैर, अब तो साले साहब की जिम्मेदारी और बढ़ गई. चलिए… कोई बात नहीं. हमारे दोनों बेटे आप की बेटियों के लिए भाई होने का फर्ज निभाएंगे. मेरे बच्चों की जिम्मेदारी बढ़ गई. उस पर से जमाना इतना खराब है.”

सास भी बेटीदामाद का ही साथ देती थीं. उन्होंने कभी भी उस की बेटियों को दादी के हिस्से का प्यार नहीं दिया. अजय के कहने पर राधिका हमेशा चुप ही रही.

अजय हमेशा उस से एक ही बात कहता, “राधिका, कुछ बातों का जवाब समय दे तो ज्यादा बेहतर होता है.”

अजय और राधिका पारिवारिक झगड़े और तनाव से बचने के लिए पूना रहने आ गए, ताकि वे अपनी बेटियों को एक खुशहाल माहौल दे सकें.
लेकिन उस दिन के बाद से राधिका ने अपने ननदननदोई से सिर्फ बात करने की फार्ममैलिटी ही निभाई. इतने सालों में न ससुराल में कोई फंक्शन हुआ, न ननद के घर जा कर कभी मिलना होता. आखिरी बार बाबूजी की तेरहवीं पर मिलना हुआ था.

“राधिका, क्या सोचने लगी हो?” अजय ने कहा.

अजय की बात सुन कर राधिका अपनी यादों से बाहर आई.

“कुछ नहीं, बस कुछ पुरानी बातें याद आ गईं. समय कितनी जल्दी बदल गया. पता नहीं, वे लोग बदले की नहीं.”

“ओह राधिका, अब समय बदल गया है, तो निश्चित ही उन की सोच भी बदली होगी. पुराने जख्म कुरेदने पर सिर्फ दर्द ही होगा, समझी. तो बेहतर होगा कि हम उन्हें भूल ही जाएं.”

“पता नहीं, अब तो यह मिलने के बाद ही पता चलेगा कि कितना बदलाव आया है, लेकिन जहां तक उन से जुड़ा मेरा अनुभव कहता है कि कुछ लोग कभी नहीं बदलते…”

“वैसे, आ क्यों रहे हैं?” राधिका ने पूछा.

“मैनेजमैंट कालेज में आयुष का एडमिशन कराना है,” अजय ने बताया.

“किस कालेज में?” राधिका ने फिर सवाल किया.

“उसी कालेज में, जहां अपनी श्रद्धा लैक्चरर है.”

“क्या…?” सुन कर राधिका चौंक पड़ी.

“आयुष अभी पढ़ाई ही कर रहा है. लेकिन, वह तो श्रद्धा से 2 साल बड़ा है.”

“हां, हाईस्कूल और 12वीं में कई बार फेल हुआ. इस वजह से वह पीछे रह गया.”

अजय ने यह बात अपनी बेटियों श्रद्धा और आर्या को भी बताई. दोनों बहुत खुश हुईं. दोनों बेटियां शांत, संस्कारी और बहुत ही समझदार थीं. दोनों बहनों में सिर्फ एक साल का ही अंतर था. एक बेटी लैक्चरर थी और दूसरी बेटी वकालत कर रही थी.

अगले दिन रविवार था. अजय अपनी कार से लेने एयरपोर्ट पहुंचे. कार को श्रद्धा ही ड्राइव कर रही थी. दोनों बापबेटी बहुत ही खुश दिख रहे थे. अजय के चेहरे पर बेटियों के लिए चिंता की कोई शिकन या अफसोस न देख कर अखिलेश और रचना आश्चर्य में हो गए.

बेटियों ने पूरी जिम्मेदारी उठा रखी थी. घर बाहरअंदर सबकुछ अच्छे से व्यवस्थित था. घर के काम के लिए राधिका ने कोई बाई नहीं रखी थी.

घर पहुंचने पर राधिका ने सब का स्वागत खुशीखुशी किया.

उसी दिन आर्या शाम को 7 बजे घर आई. उस ने आ कर बूआफूफा के पैर छुए. देर से आने की बात सीमा और अखिलेश को अच्छी नहीं लगी.

तभी रचना ने आंखें दिखाते हुए कहा, “भैया, आप ने तो बेटियों को बहुत छूट दे रखी है. ये ऐसे ही रात को हमेशा अकेले आतीजाती हैं क्या? तो यह सब इन के लिए अच्छा नहीं… आएदिन देखिए न्यूज में लड़कियों के साथ कैसीकैसी घटनाएं होती रहती हैं.”

अजय अपने चिरपरिचित अंदाज में चुप ही रहे, क्योंकि उन का मानना था कि ऐसे लोगों को कुछ बोलने का फायदा नहीं, जिन की मानसिकता संकीर्ण हो.

इतना सुन कर आर्या का मन हुआ कि पलट कर जवाब दे दे, लेकिन राधिका की तरफ नजर गई, तो उस ने उसे इशारे से चुपचाप अंदर जाने के लिए कहा.

रात को सब काम खत्म कर के राधिका अपने कमरे में जा ही रही थी कि उस की नजर अपनी बेटियों के कमरे की तरफ गई, जहां से उसे बात करने की आवाज आ रही थी. वह कमरे के बाहर से ही खड़ी हो कर दोनों बेटियों की बातों को सुनने लगीं.

आर्या बोली, “दीदी, बूआजीफूफाजी किस जमाने की और कैसी बातें कर रहे हैं? आज तो मुझे उन की बातें सुन कर बहुत गुस्सा आया. मन तो हुआ कि पलट कर जवाब दे दूं, लेकिन मां की वजह से चुप हो गई.

“मुझे तो लगा था कि वे पापा की बहन हैं, तो उन की ही तरह अच्छे विचारों की होंगी.”

श्रद्धा ने कहा, “तू क्यों इतना अपने दिमाग पर जोर दे रही है? कौन सा वे हमारे साथ रहने वाले हैं? हमें क्या मतलब उन के विचारों से, कुछ ही दिनों की बात है बस. वैसे भी मम्मीपापा कहते हैं न कि मेहमान का अपमान कभी नहीं करना चाहिए.”

“हम्म…”

इधर आयुष फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपने स्टेटस अपडेट करने में व्यस्त था. दोपहर में राधिका अपने ननदननदोई को कमरे से दोपहर के खाने के लिए बुलाने गई, जहां उस ने अपने ननदननदोई को बात करते सुना, “चलो, अब हमारी टैंशन खत्म. आयुष को अब आराम से खाना और कपड़े प्रैस कर के सब मिल जाएंगे. होस्टल में रहता तो हमारी चिंता और खर्चा दोनों बनी और बढ़ी रहती.”

उसी दिन रात के खाने पर अपनी आदत से मजबूर अखिलेश ने कहा, “देखिए, अजय हम ने तो आप की बहन से कहा कि आयुष को होस्टल में रख देते हैं, लेकिन आप की बहनजी हमारे पीछे ही पड़ गईं. कह रही हैं, नहीं आखिर आयुष का भी कुछ फर्ज है अपनी बहनों के लिए. अब भाई की उम्र थोड़ी न रही, जो हर जगह बेटियों के साथ आजा सके. तो इसी बहाने भैयाभाभी की मदद हो जाएगी और बेटियों को भी सुरक्षा मिल जाएगी. आखिर भाई को कोई बेटा होता तो हमें यह सब न सोचना होता.”

“क्यों भाभीजी… सही कहा न मैं ने? आखिर आप बेटियों की मां हैं, तो आप को बेहतर पता होगा,” एक तरफ ननदननदोई की व्यंग्यात्मक मुसकान, तो वहीं दूसरी तरफ राधिका ने खीर परोसते हुए दोनों बेटियों की तरफ देखा, जिन की बूआफूफा से मिलने की खुशी नाराजगी और दुख में बदल गई थी.

तभी राधिका ने मुसकराते हुए कहा, “जीजाजी, यह खीर लीजिए, बिलकुल सही कहा आप ने. मैं तो सोच रही थी कि आप का ही फैसला सही है. आयुष को आप होस्टल में ही रख दीजिए, क्योंकि ध यहां रहेगा तो उस के बहाने उस के चार दोस्त भी मिलने आतेजाते रहेंगे. ये तो सामान्य सी बात है. अब न तो हम, न ही बेचारा आयुष उन्हें घर आने से मना भी नहीं कर सकते. क्योंकि अच्छा नहीं लगेगा दोस्तों को यों मना करते, क्यों आयुष बेटा? सही कह रही हूं न मैं. और जैसा कि आप ने अभी कहा कि मैं बेटियों की मां हूं, तो उन की सुरक्षा की दृष्टि से बाहरी लड़कों का घर में आनाजाना ठीक नहीं. क्यों जीजाजी, सही कहा न मैं ने?

“और दूसरी तरफ एकसाथ कालेज के लिए निकले तो लोगों के हजार सवाल भी होंगे कि छोटी बहन लेक्चरर और बड़ा भाई अभी मैनेजमैंट कोटे से एमबीए करने जा रहा है, तो अच्छा नहीं लगेगा.

“अब सब के सामने यह सब सुन कर आयुष को भी अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए माफी चाहूंगी कि मैं अपने घर में आयुष को नहीं रख पाऊंगी. लेकिन, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. जब भी उस को कोई मदद चाहिए होगी, हम सब जरूर कर देंगे.

“तो आप कल ही होस्टल जा कर देख लीजिए. चाहे तो श्रद्धा आप के साथ चली जाएगी. अनजान शहर में आप की मदद भी हो जाएगी. ठीक है न बेटा?”

अपनी मां के मुंह से इस तरह का मीठा प्रहार सुन कर दोनों बेटियों के चेहरे पर खुशी छा गई.

राधिका अच्छी तरह जानती थी कि उन लोगों को उस की बेटियों से ज्यादा अपने बेटे की चिंता थी कि कहीं उन का बेटा शहर की चमकधमक में बिगड़ न जाए या रैगिंग वगैरह का शिकार न हो. लेकिन, यह बात स्वीकार कैसे करें? उन का अहम जो बीच मे आड़े आ रहा था.

राधिका की बातें सुन कर अखिलेश और रचना निरुत्तर नजरें झुकाए गुस्से से उसे घूरते देखते रह गए. लेकिन कुछ भी बोल न पाए.

मोदी मोदी वाह वाह, राहुल राहुल ना ना!!

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी विदेश जाते हैं और वहां भारतीयों से मिलते हैं और वहां जब ‘मोदीमोदी’ के नारे लगते हैं, तो सत्ता में बैठे हुए उन के हमराह और भारतीय जनता पार्टी गदगद हो जाती है.

कहते हैं, देखिए मोदी का कितना क्रेज है. मगर, जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जो कांग्रेस के एक बड़े नेता के रूप में सर्वमान्य हैं, विदेश पहुंचते हैं और अगर सरकार की नीतियों पर नरेंद्र मोदी पर आक्षेप लगाते हैं, तो लोग तालियां बजाने लगते हैं और ‘राहुलराहुल’ करने लगते हैं, ऐसे मे नरेंद्र मोदी को चाहने वाले नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं.

दरअसल, समझने वाली बात यह है कि हमारे देश भारत में लोकतंत्र है. यहां कोई अधिनायकवाद नहीं है. ऐसे में देश के बड़े नेता चेहरे, जिन के प्रति लोगों की आस्था है, वे इसी तरह अपनी भावना प्रकट करते हैं. इस का मतलब यह नहीं है कि कोई ज्यादा है और कोई कम. अगर आज देश में नरेंद्र मोदी की सत्ता है तो कल हो सकता है कि कांग्रेसी अपनी सत्ता कायम कर लें.

इस सचाई को मानना चाहिए और अगर कोई यह कल्पना करने लगे कि हम तो आजीवन सत्ता पर काबिज रहेंगे तो यह उन का दिवास्वप्न है और भारतीय लोकतंत्र का अपमान भी.

राहुल गांधी अभी विदेशी दौरे पर हैं और अपनी भूमिका निभाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार की तीखे शब्दों में आलोचना कर रहे हैं. मगर सच तो यह है कि भाजपा के नेताओं और सत्ता में बैठे हुए चेहरों को यह रास नहीं आ रहा है.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को विदेश में भारत की आलोचना करने की आदत है, लेकिन अपने आंतरिक मामलों को दुनिया के सामने उठाना देश के हित में नहीं है.

समझने वाली बात यह है कि देश और दुनिया आज पारदर्शिता चाहती है और सबकुछ खुला हुआ है. ऐसे में बातबात में राहुल गांधी की किसी टिप्पणी या वक्तव्य पर यह कहना कि यह देश के खिलाफ है, कानूनी दृष्टि से तो गलत है ही, नैतिक दृष्टि से भी यह पूरी तरह गलत है, क्योंकि 5 सप्ताह में बैठे हुए चेहरों को भाजपा को यह जानना चाहिए कि नरेंद्र मोदी या फिर भारत सरकार की आलोचना करना देशहित के खिलाफ बात करना नहीं है. ये चेहरे बातबात में जब इन की आलोचना होती है, तो कहते हैं कि यह देशहित में नहीं है, देश की आलोचना है. इन्हें कौन बताए कि ये लोग देश नहीं हैं, वर्तमान में देश की नुमाइंदगी कर रहे हैं.

विदेश मंत्री के मुताबिक, राहुल गांधी को विदेश में भारत की आलोचना करने और विदेश जाने पर हमारी राजनीति के बारे में टिप्पणी करने की आदत है. दुनिया हमें देख रही है और दुनिया क्या देख रही है? देश में चुनाव होते हैं और कई बार एक पार्टी जीतती है और कई बार दूसरी पार्टी जीतती है.

देश में कोई लोकतंत्र न हो, तो ऐसे बदलाव नहीं आते… वर्ष 2024 का परिणाम तो वही होगा, हमें पता है.

उन्होंने कहा, अगर हम सभी विमर्शों को देखें (सरकार के खिलाफ), ये देश के भीतर दिए गए हैं. अगर विमर्श काम नहीं करते या कम प्रभावी होते हैं, तब उन्हें विदेशों में ले जाया जाता है. वे उम्मीद करते हैं कि बाहरी समर्थन भारत में काम करेगा.

विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय राजनीति को विदेशों में ले जाने से गांधी परिवार की विश्वसनीयता नहीं बढ़ेगी. देश में लोकतंत्र है. आप की अपनी राजनीति है और हमारी अपनी.

दरअसल, कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और विभिन्न मोरचों पर सरकार की नीतियों को ले कर उन पर निशाना साधा था.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भविष्य की ओर देखने में अक्षम करार दिया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि वह केवल पीछे (रियर व्यू मिरर) देख कर भारतीय कार चलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिस से एक के बाद एक हादसे होंगे.

दरअसल, लोकतंत्र में आलोचना और अति आलोचना सरकार के लिए किसी विटामिन से कम नहीं होनी चाहिए, यही कारण है कि देश में कई संवेदनशील नेताओं में सदैव आलोचना को तरजीह दी. विपक्ष को साथ ले कर के चलने का प्रयास किया, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है.

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