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kiara advani क्यों बनना चाहती हैं मां? वजह जानकर सिद्धार्थ भी होंगे हैरान

kiara advani pregnancy : बॉलीवुड एक्ट्रेस कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा की जोड़ी को पावर कपल माना जाता हैं. दोनों ने इसी साल फरवरी में शादी की हैं. आए दिन दोनों को एक साथ स्पॉट भी किया जाता है. वैसे तो कियारा-सिद्धार्थ की शादी को कुछ ही महीने हुए है, लेकिन अपनी प्रेग्नेंसी का प्लान कियारा शादी के पहले ही बना चुकी थी.

दरअसल शादी से पहले दिए एक इंटरव्यू में कियारा (kiara advani pregnancy) ने बताया था कि वो प्रेग्नेंट क्यों होना चाहती हैं? तो आइए जानते हैं एक्ट्रेस ने इंटरव्यू में क्या कहा था, जिसे जानने के बाद आपके साथ-साथ सिद्धार्थ मल्होत्रा (sidharth malhotra) भी हैरान हो जाएंगे.

कियारा क्यों होना चाहती हैं प्रेग्नेंट?

आपको बता दें कि अपनी फिल्म गुड न्यूज के प्रमोशन के दौरान एक्ट्रेस कियारा (kiara advani pregnancy) ने अपनी प्रेग्नेंसी प्लानिंग को लेकर बात की थी. उन्होंने कहा था कि, ‘मैं सिर्फ इसलिए प्रेग्नेंट होना चाहूंगी ताकि मैं फिर से वो सब खा सकूं जो भी मैं खाना चाहती हूं.’ इसके अलावा जब उनसे पूछा गया था कि क्या वो ट्विन्स चाहती हैं? तो इस पर उन्होंने कहा था, ‘मैं एक लड़का और एक लड़की चाहती हूं और वो दोनों बस स्वस्थ हो.’

कियारा-सिद्धार्थ इन-इन फिल्मों में आएंगे नजर

इसके अलावा कियारा (kiara advani) के वर्क फ्रंट की बात करें तो हाल ही में उनकी फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ रिलीज हुई थी, जिसमें उनके साथ एक्टर कार्तिक आर्यन लीड रोल में थे. इसके बाद अब वह तेलुगु फिल्म ‘गेम चेंजर’ में नजर आएंगी, जिसमें उनके साथ राम चरण अहम किरदार में हैं. वहीं सिद्धार्थ मल्होत्रा (sidharth malhotra) जल्द ही फिल्म ‘योद्धा’ में नजर आएंगे, जिसमें उनके साथ दिशा पाटनी और राशी खन्ना लीड रोल में हैं.

यूजर्स ने लगाई Anupamaa के मेकर्स की क्लास, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स नाम रखने को कहा

Anupamaa Makers Troll : छोटे पर्द पर इस समय रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना का सीरियल ‘अनुपमा’ खूब सुर्खियां बटोर रहा है. लंबे समय से शो टीआरपी रेटिंग में पहले नंबर पर बना हुआ है. शो के करंट ट्रैक की बात करें तो आने वाले एपिसोड में कई राजों से पर्दा उठेगा. आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि, काव्या खुद अपनी प्रेग्नेंसी का राज अनुपमा को बताएगी. काव्या अनुपमा को बताती है कि वो वनराज के बच्चे की नहीं बल्कि अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है और वो ये सच वनराज को नहीं बता सकती है. क्योंकि अगर वनराज को ये बात पता चल जाएगी तो सब बर्बाद हो जाएगा.

हालांकि काव्या का सच जानने के बाद अनुपमा (Anupamaa Makers Troll) क्या करेगी ये तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा लेकिन, इससे पहले सोशल मीडिया पर यूजर्स भड़क गए हैं.

वनराज को बेचारा बना दिया- यूजर 

दरअसल जब से लोगों को पता चला है कि काव्या (Anupamaa Makers Troll) वनराज के नहीं बल्कि अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है तब से शो के फैंस नाराज है. यूजर्स सोशल मीडिया पर सीरियल अनुपमा का नाम बदलने की गुजारिश कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘काव्या के किरदार को इतने अच्छे तरीके से बुना गया था लेकिन मेकर्स ने इसे भी बर्बाद कर दिया. काव्या ने वनराज को धोखा दिया है, जिस कारण अब वनराज को बेचारा बना दिया जाएगा.’

वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘जब काव्या को पता था कि वनराज, अनुपमा पर डोरे डाल रहा है तो वह उसके पास वापस क्यों आई? और अनिरुद्ध के पास क्यों नहीं गई? काव्या ने एक बार फिर अनिरुद्ध को धोखा दिया?’

मेकर्स पर भड़के यूर्जस

इसके अलावा एक और यूजर ने लिखा, ‘अनुपमा (Anupamaa Makers Troll) का करियर और वीमेन एम्पावरमेंट पर ध्यान देने की जगह मेकर्स एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर ध्यान दे रहे हैं.’ वहीं एक यूजर ने तो शो का नाम बदलने की ही बात कह दी. उसने लिखा, ‘इस शो का नाम अनुपमा नहीं बल्कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स होना चाहिए. ‘

कुरसी के लिए कुछ भी

जो काम रूस के व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर के सारे यूरोप और दक्षिणपूर्व एशिया, जापान, आस्ट्रेलिया को एक कर के कर दिखाया वही भारत में हो रहा है. अपनी ताकत दिखाने के चक्कर में पुतिन ने रूस को यूक्रेन से युद्ध करने में झोंक दिया और उन की परेशानी यह रही कि वहां वोलोडिमिर जेलेंस्की जैसा पूर्व कौमेडियन नेता रातोंरात एक हिम्मती सैनिक जनरल बन गया. आज यूरोप के वे देश, जो नाटो संगठन में रूस को नाराज करने के डर के कारण हिचक रहे थे, नाटो हैडक्वार्टर्स के सामने अप्लीकेशन लगाए खड़े हैं.

भारत में चक्रवर्ती बनने के चक्कर में भारतीय जनता पार्टी के मोदीशाह (नरेंद्र मोदी और अमित शाह) ने हरियाणा, मध्य प्रदेश, गोवा, कनार्टक में तोडफ़ोड कर के सरकारें बनाईं. इन सरकारों ने काम तो कुछ नहीं किया पर यह सबक पढ़ा दिया कि ईडी, सीबीआई के बड़े फायदे हैं. और ईडी, सीबीआई का खेल पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र में खेला भी गया. फिलहाल महाराष्ट्र में भाजपा के साथ शिवसेना के एकनाथ शिंदे और नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अजित पवार का ताज़ा गठबंधन सत्ता में है लेकिन यह गठजोड़ कितने समय तक चलेगा, कुछ पता नहीं.

सब से बड़ी आफत हुई है मणिपुर जैसे छोटे से पूर्व के सुदूर राज्य में जहां भाजपा समर्थक मैत्री समुदाय ने ईसाई बहुल कुकी को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और इंफाल घाटी के गांवोंशहरों में उन पर हमले शुरू कर दिए. पहाड़ी कुकी बदले में हिंसा पर उतर आए और नतीजा यह है कि 4 महीने से मणिपुर जल रहा है और हजारों घर जला दिए गए हैं.

अब दुनियाभर में भारत सरकार की थूथू हो रही है. जब जी-20 की अध्यक्षता का ढिंढोरा पीटने का मौका मिला तो पता चला कि वहां से तो कुकी बचाओ, अल्पसंख्यक बचाओ के नारे निकले जो दुनियाभर में गूंजने लगे हैं.

पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव, फिर पश्चिम बंगाल पंचायतों के चुनावों में बुरी हार के बाद विश्व पटल पर भाजपा और नरेंद्र मोदी की जो आलोचना हो रही है उस ने भक्तों का मुंह बंद करना शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलने कम हो गए हैं. सडक़ों पर गौरक्षकों के आतंक के समाचार कम हो गए हैं. यहां तक कि भाजपाइयों ने अब धर्म प्रचारक से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित कराने बंद कर दिए हैं.
मोदी सरकार अब रोजगार देने वाले, चंद्रयान, सस्ते खाने के विज्ञापन दे रही है, पहले इस घाट या उस धार्मिक कौरिडोर या फलां मूर्ति स्थापना के विज्ञापन होते थे. अब न बात गंगा आरतियों की हो रही है न पटेल के स्टैचू की. न देशवासी पूरी तरह इन के कायल हुए हैं, न ही दुनिया वाले.

भारत की आर्थिक प्रगति ठीकठाक है तो इसलिए कि हम दुनिया के सब से ज्यादा जनसंख्या वाले देश हैं न कि हमारे नागरिक अमीर हैं. हमारे धन्ना सेठ अंबानीअडानी अमीर हैं पर आम भारतीय पूजापाठ के अलावा कोई हुनर नहीं जानता. यूरोपीय पार्लियामैंट ने बहुत सी बातें नहीं कही हैं पर उस ने जो प्रस्ताव पास किया उस का लब्बोलुआब यही है कि मोदी जी फ्रांस में आप का स्वागत है पर आप जो अपने देश में कर रहे हैं वह सही नहीं है. आप अल्पसंख्यक नागरिकों को हिंदू न होने के कारण प्रताड़ित या दंडित नहीं कर सकते. यह बात सारे अमीर देशों में गूंज रही है. उन देशों तक में भी जहां भारतीय मूल के लोग शासन की बागडोर संभाल रहे हैं.

पहले मेरे जीजा जी ने मेरे साथ संबंध बनाएं और अब मेरे बौयफ्रैंड ने, अब मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 22 साल की हूं. जब मैं 14 साल की थी, तब मेरे जीजा ने मेरे साथ हमबिस्तरी की थी. ऐसा उन्होंने कई बार किया. हर बार सैक्स करने के बाद वे मुझे एक टैबलेट खिलाते थे. अब मेरे बौयफ्रैंड ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो मैं ने उसे जीजा के बारे में बता दिया.

मैं पिछले 8 सालों से अपने जीजा से दूर हूं, पर वे मैसेज कर के मुझे परेशान करते हैं. वे फिर से संबंध बनाने की बात करते हैं और मना करने पर घर वालों को बताने की धमकी देते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

हमबिस्तरी वाकई मजेदार होती है, इसीलिए तो 14 साल की उम्र में आप ने जीजा को मौका दिया और अब बौयफ्रैंड को खेलने दे रही हैं. खुद को खिलौना न बनने दें और शादी के बाद हमबिस्तरी करने की सोचें. जीजा से डरने की कोई जरूरत नहीं है. वह अपनी करतूत किसी को नहीं बताएगा. वह कुछ कहेगा, तो खुद ही फंसेगा.

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क्या आप भी मन मार कर सेक्स करते हैं

आप दिन भर के थके हुए घर लौटे हैं और आपके मन में सेक्स का ख्याल दूर दूर तक नहीं हैं. लेकिन जैसे ही आप बिस्तर पर लेटते हैं, यह साफ हो जाता है कि आपके साथी के मन में आज सेक्स के अलावा कुछ भी नहीं है. उसको मना करने के बजाय आप अनमने मन से उसके साथ सेक्स कर लेते हैं. शायद आप यह उसकी खुशी के लिए करते हैं, या शायद इसलिए क्यूंकि आपको पता है कि मना करने से उसका मूड खराब हो जाएगा.

अपना मन मारना

मन ना होने पर भी सेक्स करने को शोधकर्ताओं ने ‘अनुवर्ती सेक्स’ का नाम दिया है. अध्ययन से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में ऐसा महिलाएं ज्यादा करती हैं. अनुवर्ती सेक्स और जबरदस्ती करे जाने वाले सेक्स में फर्क है. इसमें आप इसलिए यौन सम्बन्ध नहीं बनाते क्यूंकि आपका साथी आपके साथ जोर जबरदस्ती करता है, बल्कि यहां तो आपके साथी को यह पता ही नहीं चलता कि आप सेक्स नहीं करना चाहते और केवल उसका मन रखने के लिए कर रहे हैं, चाहे अपना मन मार कर ही सही.

तो ऐसा महिलाएं क्यों करती हैं? यह जानने के लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक समूह ने विश्विद्यालय में पढ़ने वाली 250 लड़कियों से संपर्क किया. उन्हें औनलाइन एक सर्वे भरने को कहा गया जिसमें उन्हें अपने उस समय के अनुभव के बारे में बताना था जब उन्होंने अपना मन मार कर सेक्स किया. यहां सेक्स का मतलब था प्रवेशित सेक्स, गुदा और मुख मैथुन. शोधकर्ता यह भी जानना चाहते थे कि सेक्स करते हुए उनका व्यक्तित्व कैसा रहता है और अपने रिश्ते में वो अपने साथी से किस तरह से पेश आती हैं.

परिणाम आने के बाद शोधकर्ताओं को पता चल चुका था कि लगभग आधी महिलाओं ने कभी ना कभी मन मार कर सेक्स किया है. 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थी जिन्होंने यह अपने वर्तमान साथी के साथ किया था या फ़िर उस साथी के साथ जिसके साथ उनका रिश्ता सबसे लंबा चला था.

60 प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि उन्होंने यह किया तो है लेकिन उनका मानना था कि ऐसा बहुत कम होता है. लेकिन चार में से एक महिला ऐसी भी थी जिन्होंने लगभग 75 प्रतिशत से ज़्यादा बार अपना मन मार कर सेक्स किया था.

तो यह लोग ऐसा क्यों कर रहे थे? इसका एक कारण तो यह था कि उनकी नज़र में ऐसा करने से उनका रिश्ता बेहतर और मजबूत होगा. एक महिला अपने साथी के साथ केवल इसलिए सेक्स के लिए तैयार हो जाती है क्योंकि उसे पता है कि उसे लगे ना लगे उसके साथी को यह अच्छा लगेगा. एक और कारण जो इतना सामान्य नहीं है, वो यह है कि महिलाओं को लगता है कि सेक्स करने से उनका रिश्ता चलता रहेगा – उन्हें यह डर रहता है कि कहीं उनके मना करने से उनका साथी उन्हें छोड़ कर ना चला जाए.

सेक्स संवाद!

अध्ययन से यह भी पता चला कि जो महिलाएं अपने साथी को अपनी कामुक पसंद और नापसंद के बारे में बता कर रखती थी, उनके अनुवर्ती सेक्स करने की संभावना कम थी क्योंकि जब उनका सेक्स करने का मूड नहीं होता था तब भी वो मन मारने के बजाय, वो बात अपने साथी को बता देती थी.

अगर यह सब आपको जाना पहचाना लग रहा है तो शायद आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कैसे आप अपनी यौन इच्छाओं को अपने साथी को बता सके और उस बारे में भी, जब आप सेक्स नहीं करना चाहते हों. इससे आपको बेहद फायदा होगा.

पुरुष भी इस का ख्याल रख सकते हैं. अगली बार सेक्स करते हुए ध्यान दें कि क्या आपका साथी पूर्ण रूप से कामोत्तेजक है और क्या उसे सच में मज़ा आ रहा या फ़िर वो केवल आपका मन रखने के लिए यौन क्रिया में लिप्त हो रही है. यह जानने का सबसे आसान तरीका जानते हैं क्या है? सीधा पूछ लो मेरे भाई! शानदार सेक्स की ओर यह आपका पहला कदम होगा.

अपने हुए पराए

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बहुओं की मारी सासें बेचारी

गृहस्थी की सत्ता की लड़ाई में सास अब हारकर हथियार डालने लगी है. ऐसे किस्से सुन कर उतना ही बुरा लगता है जितना कल को यह सुन कर लगता था कि सास ने बहू को प्रताडि़त किया, उसे खाना नहीं दिया, मारापीटा, बेटे के पास नहीं जाने दिया और कमरे में बंद कर दिया या धक्का दे कर घर से बाहर निकाल दिया वगैरावगैरा.

अब जमाना बदल रहा है. ललिता पवार टाइप क्रूर सासें फैमिली पिक्चर से गायब हो रही हैं. जमाना स्मार्ट और तेजतर्रार बहुओं का है. वे अपनी अलग दुनिया बसाना चाहती हैं जिस में उन के साथ ससुराल वाला कोई न हो, खासतौर से सास तो बिलकुल नहीं. सिर्फ पति हो. यह इच्छा आसानी से पूरी नहीं होती तो वे तरहतरह के हथकंडे अपनाती हुई सासों को घर से धकेलती या खुद अपना अलग साम्राज्य स्थापित करती नजर आ रही हैं. वे अपनी मंशा में कामयाब भी हो रही हैं क्योंकि अब काफीकुछ उन के हक में है.

भोपाल के महिला थाने के परामर्श केंद्र में सुनवाई और इंसाफ के लिए आए इन दिलचस्प और अनूठे मामलों को जानने से पहले इस शाश्वत सवाल का जवाब खोजा जाना जरूरी है कि घर किस का, सास का या बहू का. सास स्वभाविक रूप से समझती है कि घर उस का है क्योंकि यह उस की सास ने विरासत में उसे सौंपा था जिसे व्यवस्थित करने और सहेजने में उस ने अपनी जिंदगी लगा दी. इधर, बहू को सास के कथित त्याग, तपस्या और समर्पण से कोई लेनादेना नहीं होता. वह फुजूल की इन फिल्मी और किताबी फलसफों के पचड़ों में नहीं पड़ना चाहती. कई मामलों में तो वह घर पर अपनी दावेदारी भी नहीं जता रही जो संघर्ष की पहली सीढ़ी है. वह बगैर लड़े जीतना चाहती है.

बहुओं को आजादी चाहिए. वे किसी बंधन में नहीं रहना चाहतीं. उन्हें इस बात चिंता भी नहीं कि आखिरकार इस का अंत और नतीजा क्या होगा. जिस संयुक्त परिवार व्यवस्था का हम दम भरते थकते नहीं, वह अब निहायत ही गलत तरीके से दम तोड़ रही है.

बेचारी सासें

1 जनवरी से ले कर 15 जून तक भोपाल के परिवार परामर्श केंद्र में 765 शिकायतें दर्ज हुईं. इन में से 165 शिकायतें ऐसी थीं जिन में सास या ससुराल वालों ने यह कहा था कि उन की बहू साथ नहीं रहना चाहती जबकि वे चाहते हैं कि वह उन के साथ रहे और इस के लिए वे उस की हर बात व शर्त मानने को तैयार हैं.

आइए, ऐसी कुछ शिकायतों पर नजर डालते हैं जिन से सास की पीड़ा और बेबसी झलकती है–

  1.  दानिश कुंज, कोलार रोड निवासी कांता शर्मा ने परिवार परामर्श केंद्र में फरियाद की है कि उन की छोटी बहू उन के साथ संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती. उस ने बेटे को धमकी दी है कि अगर वह घर से अलग नहीं हुआ तो वह घर छोड़ कर चली जाएगी. इस मामले में सासबहू की काउंसिलिंग लंबित है.
  2. एक और मामले में सास व बहू के बीच लिखित समझौता हुआ कि सास कांति वर्मा अपना खाना खुद बना लेंगी क्योंकि उन की क्रिश्चियन बहू एनी साफ कह चुकी है कि वह घर का कोई काम नहीं करेगी. कांति के बेटे ने एनी से लवमैरिज की थी. होशंगाबाद रोड स्थित आदर्श नगर के इस परिवार में अब समझौते के मुताबिक, सास सुबहशाम दोनों वक्त पहले अपना खाना बनाती है. उस के अपने बरतन व सामान समेटने के बाद वहां बहू खुद का व पति का खाना बनाती है. घर के बाकी काम नौकरानी करती है.
  3. पुराने भोपाल के चौक में रहने वाली सरिता शाक्य की छोटी बहू ने ऐलान कर दिया कि वह अलग रहना चाहती है. इस पर झगड़ा होने लगा तो सरिता ने परिवार परामर्श केंद्र में अपील की कि वे बहू की हर शर्त मानने को तैयार हैं. बस, उसे घर छोड़ कर जाने से रोका जाए. पर बात नहीं बनी तो एक दिन सरिता ने भी घोषणा कर दी कि वे उस वक्त तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगी जब तक बहू मान न जाए. सासबहू के बीच महिला थाने में 2 दिनों तक स्पैशल काउंसिलिंग चली क्योंकि मामला भी स्पैशल था. बीच का रास्ता यह निकाला गया कि छोटी बहू ऊपर की मंजिल में रहेगी और उस के यहां सिवा उस के पति के कोई और नहीं जाएगा. चूंकि सास 2 चूल्हे के खिलाफ थी, इसलिए लिखित समझौते में यह शर्त भी दर्ज की गई कि खाना एक ही किचन में बनेगा. छोटी बहू भले ही कोई काम न करे और ऊपर रहे पर खाना नीचे ही खाएगी. इस मामले की निगरानी चल रही है. बहू समझौते पर सहमत हुई, तभी सरिता ने अपना अनशन तोड़ा.

ऐसे मामले अब अपवाद नहीं रहे हैं, बल्कि नियम बनते जा रहे हैं, जिन में पत्नियां ससुराल वालों के साथ नहीं रहना चाहतीं. बहू साथ रहे, इस के लिए उस की शर्तें कुछ भी हों, सास मान रही है तो उस के पीछे कहीं न कहीं उस का स्वार्थ है और मजबूरी भी. अधिकांश विवादों में बहू की आपत्ति घर के कामकाज और खाना बनाने को ले कर है, जिन्हें बहुत गंभीर या वजनदार नहीं कहा जा सकता. दरअसल, हो यह रहा है कि एकल होते परिवारों में अब मायके में ही बेटी को अच्छी बहू बनने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता, न ही उसे घर के कामकाज सिखाए जाते.

फर्क हालात का

दरअसल, लड़कियों का अधिकांश वक्त अब कठिन होती पढ़ाई में लग रहा है. अलावा इस के, वे कामकाजी व नौकरीपेशा हो कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी हो रही हैं. इसलिए ससुराल उन के लिए पहले की तरह मजबूरी में रहने वाली जगह नहीं रह गई है. न ही उन के ससुराल में न रहने से मायके की प्रतिष्ठा पर कोई फर्क पड़ता है.

बहू अपनी मरजी से जिए, इस में कतई हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात सास और ससुराल वालों से बेवजह की एलर्जी है. जाहिर है नए जमाने की ये आजादखयाल बहुएं अपने भविष्य के बारे में नहीं सोच पा रही हैं जो अभी लगभग 30 वर्ष की आयु में स्वस्थ व कमाऊ हैं. इन्हें लगता है कि सास को खामखां ढो कर चूल्हेचौके में जिंदगी क्यों जाया की जाए. यह फर्क भी चिंताजनक है कि अब जो बहू घर के कामकाज नहीं जानती, वह ज्यादा होशियार मानी जाती है. पहले होता यह था कि जो ज्यादा कामकाज जानती थी, वह होशियार और जिम्मेदार मानी जाती थी. जाहिर है औरत होने के माने बदल रहे हैं. जिस का खमियाजा 60 पार की सासों को भुगतना पड़ रहा है जो संयुक्त परिवार और सहयोग का मतलब समझती हैं.

एक राष्ट्रीय बैंक में कार्यरत सुषमा का कहना है, ‘‘दरअसल जिंदगी बहुत जटिल होती जा रही है. युवतियां 12 घंटे नौकरी करें और उस के तनाव भी झेलें. ऐसे में उन से खाना बनाने, बरतन साफ करने और झाड़ूपोंछे की उम्मीद करना ज्यादती नहीं बल्कि कू्ररता भी है. वे कमा रही हैं, इसलिए नौकरों का भुगतान भी कर सकती हैं. ऐसे में सासों की उन्हीं से काम कराने की जिद कौन सी समझदारी की बात है.’’

सुषमा गलत नहीं कह रही है पर जिंदगीभर तकलीफें झेलती रही सास ही खाना बनाए, घर के कामकाज करे और समाज व रिश्तेदारी की जिम्मेदारियां भी उठाए, क्या यह उस के साथ ज्यादती नहीं. इस पर भी तुर्रा यह कि सास ने जरा भी कुछ कहा तो बहू अपना बोरियाबिस्तर समेट कर पलायन करने को तैयार. यह कौन सी बुद्धिमानी है. बुढ़ापे में कौन सी मां अपने बेटेबहू और नातीपोतों का सुख नहीं चाहेगी जो उस की स्वाभाविक इच्छा और प्राकृतिक अधिकार है. गौर से देखा जाए तो खाना कौन बनाए, यह सवाल बहुत मामूली है जिस का अलगाव की हद तक पहुंचना और सास का बहू के सामने झुकना बताता है कि बड़ी गलती बहू की है जो एक मामूली बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना बैठती है. मुमकिन है इस फसाद की जड़ कोई पूर्वाग्रह या कुंठा हो, जो न दिखती है और न ही समझ आती है, एक पुरुष पर अधिकार की लड़ाई की वजह भी इसे कहा जा सकता है. पति बेचारा 2 पाटों के बीच पिस कर बिखर जाता है और इन दोनों को इस का एहसास नहीं होता.

नौकरानी नहीं, सहायिका समझें

बहुएं समझती हैं कि सास के हाथपैर अगर चल रहे हैं तो वह पहले की तरह खाना बनाती रहे और घर के कामकाज करती रहे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. पहाड़, तय है, अभी नहीं टूटेगा. वह तब टूटेगा जब सास का साथ छोड़ दिया जाएगा क्योंकि वह हमेशा नौकरों की तरह काम करने तैयार नहीं. लेकिन बहू अगर अलग होने की धमकी दे और जिस की तैयारी भी कर रही हो तो एक लिहाज से यह नैतिकता, समर्पण और प्रतिष्ठा के पैमाने पर बहुओं की जीत नहीं, बल्कि हार है.

बेहतर होगा कि बहुएं सास को नौकरानी नहीं, बल्कि अपनी सहायिका समझें. सास अगर खाना बना रही है तो सब्जी काट देने या किचन में जा कर मसाले का डब्बा उसे दे कर बहू काम को आसान बना सकती है. आजकल की सासें, बहुओं को पहले से बेहतर समझने लगी हैं और उन का खयाल भी रखती हैं पर बहुएं उस का बेजा फायदा उठाते बातबात में अलग होने की धमकी दें तो वे भूल रही हैं कि खुद की बढ़ती उम्र के चलते उन्हें भी एक सहारे की जरूरत है. कल को उन की बहू भी अगर यही बरताव करेगी तो उन पर क्या गुजरेगी. इस का अंदाजा वे लगा पाएं तो उन्हें अपनी गलती समझ आएगी. सास के पास अनुभव होता है जो कदमकदम पर बहुओं का साथ देता है.

कानूनी और सामाजिक दबावों के चलते पत्नी के साथ जाना पति की मजबूरी हो गई है लेकिन अकसर वह पत्नी पर ताने कसता रहता है जिस से दांपत्य की मिठास कड़वाहट में बदलने लगती है. हर एक बेटा चाहता है कि बूढे़ मांबाप की सेवा करे, उन के साथ रहे. पर पत्नी की जिद की वजह से ऐसा नहीं हो पाता तो वह ग्लानि से भर उठता है और अकसर अनियंत्रित भी हो जाता है. भोपाल की एक प्रोफैसर अब पछता रही हैं. सास से इसी तरह मामूली बात पर अलग हुई थीं पर जल्द ही पति शराब पीने लगे क्योंकि मां का डर या लिहाज खत्म हो गया था. अब इस प्रोफैसर को लगता है कि दोनों बच्चों को भी दादादादी की जरूरत है. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं, इसलिए बच्चों को उतना वक्त नहीं दे पाते जितना उन्हें देना चाहिए.

इसलिए बहुओं को चाहिए कि वे हर संभव कोशिश सास और ससुराल के साथ रहने की करें. आजकल सभी के कमरे अलग होते हैं. अगर विवाद बड़ा और गंभीर हो तो एक ही छत के नीचे 2 किचन किए जा सकते हैं जैसा कि भोपाल के कुछ मामलों में हुआ. सास या ससुराल छोड़ना आखिरी विकल्प होना चाहिए, वह भी उस सूरत में जब सास वाकई क्रूर और अत्याचारी हो जो आजकल कम ही होती हैं. महज अपने झूठे अहं और सुखसुविधाओं के लिए सास से अलग हो जाना फायदे का सौदा नहीं. बहुओं की मारी सासें अगर परिवार की प्रतिष्ठा, जिस पर वे नाज करती हैं, को भूलती हुई परिवार परामर्श केंद्र जा रही हैं और बहू साथ रहे, इस बाबत उस की हर शर्त मंजूर कर रही हैं तो वे बहुत ज्यादा गलत नहीं लगतीं, गलत होतीं तो लिखित समझौते न करतीं. संभवतया इस झुकने में उन्हें बेटे का सुख और सुकून दिखता है. इसे अगर पत्नी नहीं देखती तो वह ज्यादा दोषी कही जाएगी.

क्या आपकी भी किडनी में है पथरी, तो जानें इलाज

पिछले 2 दशक के दौरान किडनी में पथरी और मूत्र रोग के इलाज में भारी विकास हुआ है. फिर भी इस बीमारी में कमी आने के बजाय लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पथरी के आपरेशन द्वारा इलाज में कई तरह की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें मरीज को कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पर जहां तक इस के औषधीय इलाज की बात है तो इस के लिए चिकित्सकों को कई तरह की आधुनिक जांच, खानपान और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है. अध्ययन, सर्वेक्षण और अनुसंधान से यह भी पता चल गया है कि शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी को ठीक कर और इस के लिए विभिन्न तरह की दवाओं के प्रयोग से बिना आपरेशन के ही इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है.

20 से 60 वर्ष की अवस्था के बीच करीब 15 से 18 प्रतिशत लोगों में पथरी की शिकायत मिलती है. महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इस का प्रतिशत दोगुना देखने को मिलता है. एक पथरी होने की स्थिति में करीब 50 प्रतिशत लोगों में 7 साल के अंतराल में दूसरी पथरी होने की शिकायत मिलती है.

यहां हम सब से पहले चर्चा कैल्शियम आक्जलेट की करते हैं. ज्यादातर स्थितियों में यह शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी के कारण होता है किंतु कई बार इस के कारणों का पता ही नहीं चल पाता. पेशाब में कैल्शियम आक्जलेट की मात्रा अधिक होने या फिर साइटे्रट की कमी के कारण इस की मात्रा मूत्र में अधिक हो जाती है जो आगे चल कर किडनी में पथरी के होने का कारण बनता है.

शरीर में इसकी मात्रा बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं. मसलन, भोज्य पदार्थों में इस की अधिक मात्रा, आंत में इस के अवशोषण का बढ़ जाना, किडनी द्वारा इस का अवशोषण कम करना जिस की वजह से किडनी  की दीवारों में इस का जमाव बढ़ जाना. मरीज के पानी कम पीने से और किडनी द्वारा पानी का कम उत्सर्जन होने से किडनी में इस का अधिक मात्रा में जमाव होने लगता है जोकि आगे चल कर पथरी का रूप धारण करने लगता है.

शरीर में पारा थार्मोन की अधिकता के चलते भी रक्त में इस की मात्रा बढ़ जाती है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है. शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता के कारण भी कैल्शियम नामक पथरी का निर्माण होता है. यदि खाने में अधिक मात्रा में आक्जलेट हो और आंत में सूजन की बीमारी हो तो इस का अवशोषण काफी बढ़ जाता है जिस के कारण इस तरह की पथरी होने की आशंका काफी बढ़ जाती है. खाने की वस्तुओं में साइटे्रट की कमी की वजह से यह कैल्शियम के साथ मिल कर इस के निकास को कम कर देता है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है.

यूरिक एसिड स्टोन का प्रतिशत अत्यधिक कम होता है और मूत्र में यूरिक एसिड के अत्यधिक स्राव होने से भी इस तरह की पथरी का निर्माण होता है.

रोग की पहचान

पथरी रोग से पीडि़त मरीज के पेट में दर्द की शिकायत होती है. पेट की बाईं या दाईं ओर स्थित किडनी में पथरी होती है, एक निश्चित स्थान में दर्द होता है. ऐसे मरीजों के मूत्र में रक्त या फिर मवाद भी पाया जाता है. इस की पहचान मूत्र की जांच से हो जाती है. इस के अलावा पेट का एक्सरे, अल्ट्रासाउंड कराने या फिर एक्स्क्रीटरी यूरोग्राम कराने से भी इस बीमारी का पता चल जाता है. मूत्र में क्रिस्टल की जांच कराने पर भी इस रोग का आसानी से पता चल जाता है.

रोग का इलाज

पथरी हो जाने पर अब कई प्रकार के इलाज उपलब्ध हैं. पथरी बहुत छोटी हो तो कुछ दवाओं के प्रयोग से भी निकल सकती है. ज्यादा संख्या में या बड़े आकार की पथरी को बिना सर्जरी किए लिथोट्रिप्सी द्वारा भी निकाला जा सकता है. इस में नियंत्रित तरीके से पथरी के शौक वेव डाल कर इतने छोटे भागों में तोड़ दिया जाता है कि वे पेशाब के साथ बह कर निकल जाएं. इस वेव का शरीर के अन्य भागों पर असर नहीं पड़ता. अधिक बड़ी पथरी होने पर सर्जरी ही अंतिम उपचार रह जाता है.

जहां तक रोग से बचाव की बात है तो इस के लिए मरीज को काफी मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जानी चाहिए. प्रतिदिन इतना पानी पीएं ताकि ढाई लिटर से भी अधिक पेशाब हो. पानी पीने की क्रिया सुबह जगने से ले कर रात को सोने के पहले तक जारी रहनी चाहिए.

यहां लोगों में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किस तरह के पानी पीने पर पथरी की शिकायत होती है तो इस का आसान सा जवाब है कि साधारणतया नल के पानी पीने से ही इस तरह के रोग होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि काफी और जिन में कैफीन की प्रचुर मात्रा होती है जो पथरी होने की आशंका कम कर देती है और दूसरी ओर चाय इस के बनने की गति को बढ़ा देती है क्योंकि चाय में आक्जलेट की मात्रा ज्यादा होती है.

नियमित रूप से कोल्ड ड्रिंक तथा अंगूर के रस के सेवन करने से पथरी बनने की क्रिया काफी बढ़ जाती है. नारंगी का रस और बीयर से इस के बनने की आशंका कम हो जाती है. ऐसे मरीजों को अधिक दूध पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा पाई जाती है.

पथरी के मरीजों को भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम लेने की सलाह दी जाती है. 70 साल की उम्र के मरीज को 50 ग्राम से भी कम प्रोटीन भोजन में लेना चाहिए. ऐसी स्थिति में यह मूत्र में एसिड के स्राव को कम कर देता है जो आगे चल कर साइटे्रट को उत्सर्जन होने से रोकता है. इस कारण मूत्र में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा नहीं आ पाती. फलस्वरूप पथरी बनने की आशंका स्वत: कम हो जाती है.

मांसाहारी भोजन के कम सेवन के कारण मूत्र में यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है. फलत: किडनी में कैल्शियम की पथरी की भी आशंका घट जाती है. ऐसे मरीजों को मांसाहारी भोजन को छोड़ कर शाकाहारी भोजन की सलाह दी जाती है.

किडनी में पथरी होने की आशंका से बचने के लिए ऐसे मरीजों को कम मात्रा में नमक का सेवन करना चाहिए. एक वयस्क आदमी द्वारा प्रतिदिन 3 ग्राम से भी कम नमक का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और पथरी होने की आशंका काफी कम हो जाती है. अधिक मात्रा में साइट्रस फू्रट के सेवन से किडनी में पथरी के बनने की क्रिया काफी कम हो जाती है. ऐसी स्थिति में किडनी से कैल्शियम का स्राव काफी कम हो जाता है जिस से पथरी के होने की आशंका भी काफी कम हो जाती है.

पथरी का औषधीय इलाज

यदि मूत्र में कैल्शियम की मात्रा सामान्य हो तो पोटेशियम साइटे्रट की गोली सुबहशाम लेने से मरीज को काफी राहत मिलती है. पोटेशियम साइट्रेट मूत्र को क्षारीय बनाता है. यदि मूत्र में कैल्शियम का ज्यादा स्राव होता हो तो पोटेशियम साइटे्रट के साथ दूसरी दवा भी लेने की जरूरत पड़ती है जैसे, इंडापामाइड, एमीलोराइड या फिर हाइड्रो क्लोर थायजाइड. एमीलोराइड तथा थायजाइड किडनी में पाई जाने वाली नलियों से कैल्शियम के अवशोषण की गति को बढ़ा देता है. फलत: मूत्र में इस का स्राव कम हो जाता है.

उपरोक्त दवाइयों के साथ कई बार दूसरी दवाइयां लेने की भी जरूरत पड़ती है. जैसे, एलोपीयूरिनोल, पिरिडोक्सीन और कैल्शियम कार्बोनेट. ये सारी दवाइयां डाक्टर की सलाह पर ली जानी चाहिए. बारबार मूत्र नलियों में संक्रमण होने की स्थिति में स्ट्रोवाअ नामक पथरी का निर्माण होता है. इस से बचने के लिए समयसमय पर मूत्र की जांच करानी चाहिए और संक्रमण होने की स्थिति में इस का औषधीय इलाज कराने में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए. हालांकि इस का निश्चित इलाज आपरेशन नहीं है. इसके अलावा कई ऐसी दवाइयां हैं जिन के लगातार सेवन से किडनी में पथरी बनने की आशंका काफी ज्यादा होती है. इस में सल्फोनामाइड, इफिड्रिन, एमीनोफाइलीन, साइप्रो फ्लोक्सासीन, कैल्शियम, विटामिन-डी और मैग्नेशियम की गोलियां शामिल हैं.

Sapna Choudhary ने अपने स्टाइल में बताया सीमा-सचिन के प्यार का सच, देखें वीडियो

Sapna Choudhary Video : हरियाणवी डांसर से ग्लोबल स्टार बन चुकी सपना चौधरी के लटकों-झटकों पर आज भी उनके फैंस फिदा है. हालांकि सपना भी अपने हर एक फैन का सम्मान करती हैं. सपना सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वो अक्सर अपनी फोटोज और डांस वीडियोज अपने फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हाल ही में डांसर (Sapna Choudhary video) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक फनी वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह पाकिस्तानी सीमा हैदर और सचिन के प्यार का मजाक उड़ा रही हैं.

सपना ने उड़ाया सीमा-सचिन के प्यार का मजाक

बता दें कि वीडियो (Sapna Choudhary video) में सपना चौधरी ने पर्पल कलर का सूट पहन रखा हैं और वह अपने पीछे बैठे कपल को देख रही हैं. कपल को देख सपना कहती हैं, “सचिन, क्या है सचिन में? लंबू-सा सचिन है. मुंह में से बोलना बा पे आबे ना, बोलता वो है ना. झींगुर सा लड़का, उससे प्यार. खुद को 5वीं पास बता रही है.” सपना का ये वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और लोगों को ये फनी वीडियो खूब पसंदा आ रहा हैं.

सपना ने अपने चार बच्चों के साथ लांघी पाकिस्तान की सरहद

आपको बता दें कि 13 मई को सीमा हैदर (Seema haider) पाकिस्तान से भारत अवैध रूप से आई थी. वह पाकिस्तान से भारत अपने चार बच्चों के साथ इसलिए आई थी, क्योंकि वो ग्रेटर नोएडा में रहने वाले सचिन से प्यार करती हैं. हालांकि इसके बाद उनके रिश्ते पर सवाल उठने लगे, क्योंकि उन्होंने अपने पहले पति से तलाक लिए बिना सचिन से शादी की. यहां तक कि उनसे भारतीय खुफिया एजेंसियां भी पूछताछ कर रही हैं क्योंकि कई लोगों को उन पर शक है कि कहीं वो पाकिस्तान की कोई एजेंट तो नहीं हैं.

Anupamaa के सामने आएगा काव्या की प्रेगनेंसी का सच, बेबी शावर में होगा हंगामा

Anupamaa Spoiler alert : रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ शो अभी भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है. लंबे समय से ये सीरियल टीआरपी लिस्ट में नंबर वन चल रहा है. हालांकि एक बार फिर शो (Anupamaa Spoiler alert) में दर्शकों को एक नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा. बीते दिन जहां दिखाया गया कि गुरु मां को बार-बार एक छोटे बच्चे का ख्याल आता है, जिससे वह सहम जाती हैं. तो वहीं दूसरी तरफ अनुपमा को एहसास होता है कि उसके परिवार में कुछ बुरा व गलत होने वाला है.

वनराज को क्या सच बता पाएगी काव्या ?

वहीं आगे (Anupamaa Spoiler alert) दिखाया जाएगा कि काव्या वनराज से अपनी प्रेग्नेंसी से जुड़ा एक बड़ा सच छुपाती है, जिसे लेकर बाद में उसे पछतावा होगा. उसे डर है कि अगर उसने वनराज को सच बता दिया तो कहीं उसका रिश्ता न टूट जाए.

इसके अलावा बेबी शावर में काव्या के साथ-साथ बरखा भी परेशान रहेगी. दरअसल, गोदभराई में अंकुश अपने बेटे को लाने का फैसला करता है, जिससे बरखा को बहुत गुस्सा आएगा. वह अंकुश को कई बार धमकी भी देती है कि वो फंक्शन में अपने बेटे को न लाए पर वह बरखा की बात नहीं मानता.

अनुपमा के सामने सामने गिड़गिड़ाएगी काव्या

हालांकि शो (Anupamaa Spoiler alert) में धमाका तब देखने को मिलेगा जब अनुपमा को काव्या की प्रेग्नेंसी का सच पता चलेगा. सच जानने के बाद अनुपमा सहम जाएगी. वहीं काव्या उसके सामने गिड़गिड़ाएगी कि वो ये बात किसी को भी न बताएं और वह अपनी गलती को सुधारने की पूरी कोशिश करेगी. बहरहाल अनुपमा बाकी घरवालों को कब ये सच बताएगी यह तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा.

पश्चाताप की आग

औफिस में घुसते ही सेठ गणपत राव ने सामने कुरसी पर बैठे एकाउंटैंट यशवंत से पूछा, “कोई चैक है?”
“एक नहीं, कई हैं सर,” यशवंत ने मुसकरा कर कहा, “छोटीमोटी रकमों के कुल आधा दर्जन चेक हैं, एक तो काफी बड़ी रकम का है. आखिरकार चौहान ने पैसे दे ही दिए.”

सेठ गणपत राव ने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में उलझा कर हंसते हुए कहा, “चमत्कार हर युग में हुए हैं. उन्होंने पूरी रकम अदा कर दी है क्या?”

“जी, 50 लाख 59 हजार 6 सौ 40 रुपए का चेक है. पूरी रकम अदा कर दी है.”
“बहुत अच्छा, तब तो तुम बैंक जाने की तैयारी कर रहे होगे? बैंक जा रहे हो तो 20 लाख रुपए निकलवा लेना, मुझे गजेंद्र के यहां जाना है, वहां से लौट कर लोनावला वाली जमीन देखने जाऊंगा. हो सकता है, कुछ एडवांस देना पड़े. चेक पर तुम खुद ही दस्तखत कर लेना. तब तक मैं एक जरूरी काम निपटाए लेता हूं.”
“ठीक है, सर.”

हमेशा से ऐसा ही होता आया था. उन दिनों से जब यशवंत नवयुवक था और यहां काम करने आया था. शुरूशुरू में इस कंपनी में केवल गणपत राव थे और सारा काम वह खुद ही देखते थे. जबकि इस समय उन की कंपनी में काफी लोग काम कर रहे थे. आजकल उन का कारोबार भी काफी अच्छा चल रहा था. वह जिस चीज में हाथ लगा देते थे, वह सोना हो जाती थी.

यशवंत को उन के एकएक पैसे के बारे में पता था. सेठ गणपत राव के पास अरबों की दौलत थी. यशवंत इस बात से हैरान था कि इतनी दौलत का वह करेंगे क्या? दुनिया में उन का एक भी रिश्तेदार नहीं है. आखिर यह दौलत वह किस के लिए जमा कर रहे हैं?

सेठ गणपत राव को कामों से ही फुरसत नहीं थी. वह पैसा कब और कहां खर्च करते? वह तो बस काम करने और व्यस्त रहने के आदी थे. शायद इसीलिए यशवंत को यह कहने में जरा भी हिचक नहीं होती थी कि यह आदमी केवल काम करने के लिए जी रहा है.

गणपत राव के जाते ही यशवंत ने मेज पर पड़े अखबार को उठाया तो उस की नजर सीधे आधे पृष्ठ के एक विज्ञापन पर जा कर ठहर गई, “द फ्लाइंग एज…”

उस ने विज्ञापन की हैडिंग एक बार फिर से पढ़ी, “धूप में चमकते हिंद महासागर पर सुंदर उड़ान… मेडागास्कर की सुंदर धरती की यात्रा, जहां फूलों की सुगंध आप का स्वागत करती हैं, वहां जीवन एक नई छटा बिखेरता है.”

विज्ञापन देख कर यशवंत के दिल में वर्षों से सोई एक चाहत अचानक अंगड़ाई ले कर जाग उठी. विदेश की अनोखी धरती की यात्रा उस की इच्छा ही नहीं थी, बल्कि जीवन का एक सपना था. लेकिन उसे गणपत राव के यहां जो वेतन मिलता था, उस में ऐसी जगहों का सिर्फ सपना ही देखा जा सकता था.

इस वेतन से वह केवल शहर के ही मामूली मनोरंजन स्थलों तक जा सका था. शायद यही वजह थी कि विज्ञापन देख कर उस का मन मचल उठा था. वहां जाने की इच्छा तीव्र हो उठी थी. उस ने हमेशा की तरह इस बार भी इस इच्छा को दबाने की कोशिश की, लेकिन इस बार दबने के बजाय वह उभरती जा रही थी. शायद वह विद्रोह पर उतर आई थी.

वह उसे जितना दबाने की कोशिश कर रहा था, वह उतना ही उग्र होती जा रही थी. आखिर क्यों उस के दिमाग में यह विचार बारबार आ रहा था? क्या वह अपनी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकता?

उसे सेठ गणपत राव की ओर से चेक पर दस्तखत करने का अधिकार मिला हुआ था. बूढ़े सेठ को तो यह भी नहीं मालूम था कि उन के किस एकाउंट में कितना पैसा है. उन्होंने न जाने कितने समय से बैंक स्टेटमैंट भी नहीं देखा था. वह इधर सिर्फ तरहतरह की जायदादों में रुचि ले रहे थे या फिर निवेश के बारे में सोचते रहते थे.

यशवंत का मन ज्यादा बेचैन हुआ तो वह उठ कर टहलने लगा. उसे घूमने जाने के लिए जितने पैसों की जरूरत थी, वह उन्हें फितरत से पाना चाहता था, जिसे गबन कहा जाता है. लेकिन यह अपराध था. उस ने सोचा कि जैसे भी हो, उसे हर हालत में अपनी इस इच्छा का गला घोंट देना चाहिए. लेकिन लाख कोशिश के बावजूद वह ऐसा नहीं कर सका.

इच्छा दबने के बजाय और बलवती होती जा रही थी, साथ ही पैसे हासिल करने का तरीका भी उस के दिमाग में आने लगा था. उसे लगा, जैसे कोई उस के कान में कह रहा है कि उसे घूमने जाने में परेशानी क्या है? उसे केवल एक चेक पर दस्तखत ही तो करने हैं और दस्तखत करने का अधिकार उसे सेठ गणपत राव ने दे ही दिया है.

उस ने सोचा कि मोटी रकम निकाल कर वह किसी अंजान शहर में जा कर कोई छोटामोटा कारोबार कर लेगा. इतना तो वह कमा ही लेगा, जितना सेठ गणपत राव देते हैं.

उस के दिल ने कहा कि वह 3 सप्ताह की यात्रा पर जाने के लिए अगर कंपनी के एकाउंट से कुछ लाख रुपए निकाल लेता है तो परेशानी क्या है? लेकिन दिमाग ने कहा, “यह धोखेबाजी होगी. सेठ गणपत राव ने हमेशा उस से अच्छा व्यवहार किया है, आंख मूंद कर विश्वास किया है. उसी का नतीजा है कि चेक पर उसे हस्ताक्षर करने का अधिकार दिया है.”

“लेकिन गधों की तरह काम भी तो लेता है. उसे जितना वेतन मिलना चाहिए, वह भी तो नहीं देता.” दिल ने कहा.

“फिर भी यह गलत है. अगर वह कम वेतन देता है तो उसे उस से कह देना चाहिए. उसे इस तरह चोरी नहीं करना चाहिए.”

“आखिर कुछ लाख रुपए ले लेने से उस का क्या बिगड़ जाएगा?”

“जब स्वाति बीमार हुई थी तो गणपत राव ने उस की कितनी मदद की थी.” दिमाग ने सलाह दी.

“स्वाति? शायद वह भूल रहा है कि उस औरत की चीखों ने उसे कितना दुखी किया था. अच्छी बात यह है कि उस का कोई बच्चा नहीं है, वरना वह क्या करता? उसे इस मौके का फायदा उठा लेना चाहिए. स्वाति से भी पीछा छूट सकता है.” दिमाग ने तर्क किया.

यशवंत की नजरें मेज पर टिकी थीं. उस के दिल और दिमाग में द्वंद्व चल रहा था. लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा था. आज उसे लग रहा था कि किसी ईमानदार आदमी के लिए किसी को धोखा देना कितना कठिन काम होता है.

अगर सेठ गणपत राव की ओर से चेकों पर दस्तखत करने का अधिकार न मिला होता तो शायद वह उन के फरजी दस्तखत कर के रुपए निकलवा लेता. यही वजह थी कि वह उस के विश्वास की हत्या नहीं करना चाहता था.

मन था कि मान ही नहीं रहा था. उस के तर्क थे कि बस छोटे से खतरे की बात है. इच्छा पूरी करने के लिए छोटामोटा खतरा तो उठाना ही पड़ता है. लेकिन दिमाग का कहना था कि पता चलने पर गणपत राव पुलिस में रिपोर्ट कर देगा. यह भी हो सकता है कि अखबारों में विज्ञापन दे दे कि ‘तुम जहां कहीं भी हो वापस आ जाओ, तुम्हें कुछ नहीं कहा जाएगा.’

यशवंत ने पूरी ताकत से अपने मन में उठी इस इच्छा को दबाना चाहा, तब दिमाग ने कहा, “ठीक है, तुम ऐसा नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, कम से कम ट्रैवेल एजेंसी तक तो जा ही सकते हो. वहां से जो प्रचार सामग्री मिलेगी, उसे तो देख ही लोगे.”

“बहुत अच्छा,” यशवंत धीरे से बुदबुदाया, “मैं ऐसा ही करूंगा.”

उस पूरे सप्ताह वह काफी खुश रहा. उस ने कई ट्रैवेल एजेंसियों के चक्कर लगाए और वहां से तमाम प्रचार सामग्री ले आया. उस ने उन्हें ध्यान से और इतनी बार देखा कि उन के एकएक फोटो उस की आंखों में बस गए. अब उन तसवीरों को देखते ही उसे लगता कि वह वहां घूम रहा है.

एक दिन वह अपनी सीट पर बैठा सीटी बजाते हुए उन प्रचार सामग्री को पलट रहा था कि सेठ गणपत राव उस के सामने आ कर खड़े हो गए. वह एकदम से शांत हो गया. गणपत राव ने उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा, “क्या बात है बेटा, आज बहुत खुश नजर आ रहे हो, कहीं से दौलत तो हाथ नहीं लग गई?”
“अभी तो कुछ हाथ नहीं लगा सेठजी.” यशवंत ने झेंपते हुए कहा.
“लौटरी वगैरह के चक्कर में मत पडऩा,” सेठ गणपत राव ने कहा, “अगर तुम्हें दौलत ही चाहिए तो मेहनत से कमाना. सुकून मिलेगा. गलत रास्ते से आने वाली दौलत से कभी सुकून नहीं मिलता.”
यशवंत के दिमाग में गणपत राव की ये बातें गूंजने लगीं. इन बातों से वह नर्वस होने लगा. गणपत राव यह बात अपने स्टाफ के हर आदमी से कह चुके थे. वह मेहनत पर विश्वास करते थे और दूसरों से भी मेहनत करने के लिए कहते थे.
यशवंत बड़बड़ाया, ‘यह आदमी न जाने किस मिट्टी का बना है. हमेशा काम की ही बातें करता है. आखिर कोई आदमी जीवन में कितना काम कर सकता है? इसे तो आदमी नहीं चींटी के रूप में जन्म लेना चाहिए था, जो हमेशा काम में लगी रहती है.’
सेठ गणपत राव के बारे में दिमाग में जैसे ही कड़वाहट पैदा हुई, मन ने कहा, “अरे चेक कैश कराने के बारे में क्या सोचा? मैं कब से समझा रहा हूं कि सीधी अंगुली घी नहीं निकलता.”
“अभी बहुत समय पड़ा है.” दिमाग ने कहा.
“मूर्ख, तुम डर रहे हो, अभी एक चेक भरो और उस पर दस्तखत कर के बैंक से कैश करा लो. आखिर इस में बुराई क्या है?”

“ठीक है, यही करता हूं.” दिमाग ने हार मान ली.

यशवंत का दिमाग राजी हो गया तो वह उचित मौके की तलाश में लग गया. 2 दिनों बाद सेठ गणपत राव को अपने वकील से मिलने जाना पड़ा. यशवंत को लगा, वह इस मौके का फायदा उठा सकता है. उन के आने के पहले वह चैक तैयार कर के कैश करा सकता है. वह औफिस में नहीं रहेंगे तो कोई पूछेगा भी नहीं. किसी को शक भी नहीं होगा कि कुछ गलत हुआ है.

यशवंत ने चेक बुक निकाली. उस पर तारीख डाल कर ‘पे कैश’ लिखा. लेकिन इसी के साथ डर के मारे रीढ़ की हड्डी पर छिपकली सी रेंगती महसूस हुई. क्योंकि उस ने चेक पर पहले कभी यह शब्द नहीं लिखा था. उसे लगा, चेक पर लिखे शब्द उस की विवशता पर हंस रहे हैं. वह चेक मेज पर रख कर उठ खड़ा हुआ. शायद कोई बात उसे विचलित कर रही थी.

वह अपनी केबिन में टहलने लगा. उसे लगा, स्टाफ के लोग उसे घूर रहे हैं. तो क्या उन्हें उस की नीयत का पता चल गया है? उन लोगों को कैसे पता चला कि वह धोखेबाजी करने जा रहा है? उस ने सिर झटका और भ्रम को दूर किया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं. एक बार उस ने फिर से चेक को देखा. वह सोचने लगा कि इस में कितनी रकम भरी जाए.

ट्रैवेल एजेंसी से मिली प्रचार सामग्री से पता चल चुका था कि पसंदीदा जगहों पर घूमने के लिए उसे कम से कम 5 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी. उस ने तुरंत चेक में यह रकम भर दी.

“लानत है मुझ पर.” उस ने खुद को कोसा, “मुझे 10 लाख रुपए लिखना चाहिए था, जब बेईमानी ही कर के घूमने जा रहा है तो मौज से घूमना चाहिए.”

उसे हैरानी हो रही थी कि लोग लाखोंकरोड़ों का फ्रौड कैसे कर लेते हैं, जबकि वह केवल 10-5 लाख के बारे में ही सोच रहा है. उसे लगा कि अब उस ने जो रकम भर दी है, उसी में संतोष करना चाहिए. उस ने चेक पर दस्तखत किए और केबिन से बाहर आ गया.

“मैं बैंक जा रहा हूं,” उस ने चलतेचलते साथियों से कहा. औफिस से बाहर आ कर वह पल भर के लिए रुका. बैंक पहुंचने में उसे ज्यादा समय नहीं लगता था, लेकिन आज वह सीधे बैंक जाने के बजाय इधरउधर घूमते हुए बैंक जा रहा था. वह पलटपलट कर देख भी रहा था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है.

उस ने किताबों की दुकान के सामने गाड़ी रोक दी और उस के ऊपर लगे बोर्ड को घूरने लगा. इस के बाद गाड़ी से उतर कर एक खोखे से सिगरेट खरीद कर सुलगाई और धीरेधीरे कश लगाते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी. लेकिन एक अनजान भय उसे घेरे था.

उसे लग रहा था कि लोग उसे घूर रहे हैं. नजरों से ही उस की लानतमलामत कर रहे हैं. उस से कह रहे हैं कि ईमानदार होते हुए भी वह चोरी कर के बहुत बड़ा अपराध करने जा रहा है.

उस के दिमाग में आया कि उसे चेक कैश कराने में देर नहीं करनी चाहिए. जब तक वह चेक कैश नहीं करा लेता, तब तक उस के दिमाग में इसी तरह की बातें चलती रहेंगी. वह लपक कर बैंक पहुंचा. उस ने कैशियर के सामने चेक रख कर उसे नोट गिनते हुए देखने लगा. अचानक उस का दिल उछल कर हलक में आ गया. किसी ने नाम ले कर उसे पुकारा.

बराबर वाले क्लर्क ने उस की ओर इशारा कर के कहा, “आप को मैनेजर साहब बुला रहे हैं.”

यशवंत का पूरा शरीर पसीने से तर हो गया. एक बार तो उस का मन किया कि वह भाग निकले. लेकिन उसे लगा कि उस की टांगों में भागने की ताकत नहीं है. मैनेजर के केबिन की चंद गज की दूरी उसे बहुत लंबी लग रही थी. मन वहां जाने का नहीं हो रहा था.

उसे लगा कि कहीं सेठ गणपत राव को वकील ने यहां किसी फाइल की जरूरत तो नहीं पड़ गई. वह अपना मोबाइल औफिस में ही छोड़ आया था. औफिस में फोन किया होगा तो उन्हें बताया गया होगा कि वह बैंक गया है.

हिम्मत कर के वह मैनेजर की केबिन में दाखिल हुआ. अब तक वह काफी हद तक संभल चुका था. अभी उस ने कैशियर से रुपए लिए नहीं थे, इसलिए वह अपराधी नहीं था. इस बात ने उस का हौसला बढ़ाया. उस के केबिन में दाखिल होते ही मैनेजर ने कहा, “वकील के औफिस में सेठ गणपत राव की तबीयत अचानक खराब हो गई है. आप तुरंत लीलावती अस्पताल पहुंचिए.”

यशवंत जैसे एक भयानक सपने से जागा. उस ने कुछ कहना चाहा, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया. वह खामोशी से घूमा और दरवाजे की ओर बढ़ा. तभी कैशियर ने कहा, “यशवंत, कैश तो लेते जाइए.”

कैशियर की बात का जवाब दिए बगैर वह कार में जा बैठा. कार तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़ी.
अगला एक घंटा उस का बेचैनी से गुजरा. वह अस्पताल पहुंचा तो सेठ गणपत राव की मौत हो चुकी थी. वकील के औफिस में उन्हें हार्टअटैक आ गया था. अस्पताल से उसे वकील के औफिस जाना पड़ा. वहां वह काफी डरा हुआ था. उसे यही लग रहा था कि वकील उसे अर्थपूर्ण नजरों से देख रहा है.

अनायास ही उस का हाथ अपने हैंड बैग की ओर बढ़ा. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस ने कैशियर से पैसे नहीं लिए थे. अचानक वकील की नजरें बदल गईं. वकील ने कहा, “तुम्हें पता है सेठ गणपत राव आज मेरे औफिस क्यों आए थे?”

“नहीं…” वह थूक निगल कर बोला.

“वह यहां वसीयतनामे पर दस्तखत करने आए थे. जैसे ही उन्होंने दस्तखत किए, उन पर दिल का दौरा पड़ गया. वह अपनी तमाम जायदाद और धनदौलत तुम्हारे नाम कर गए हैं.”

यशवंत को अपना दिल सीने से बाहर आता महसूस हुआ. वह फटीफटी नजरों से वकील को घूरता रह गया. वकील ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “मुझे लगता है, तुम्हें उन की मौत का गहरा सदमा पहुंचा है. लेकिन होनी को कौन टाल सका है.”

यशवंत ने सहमति में सिर हिलाया. वह दिल ही दिल में सोच रहा था कि उस ने बैंक से वे पांच लाख रुपए नहीं लिए, वरना शायद वह जीवन भर पश्चाताप की आग में जलता रहता.

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