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‘‘संगीत के सुनहरे युग को वापस लाने के लिए प्रयासरत हूं’’- कैप्टन ए डी मानेक

क्या संगीत किसी बाल मजूदर को हवाई जहाज उड़ाने वाला पायलट बना सकता है? यह सवाल ही अपनेआप में पढ़ने वालों को अजूबा लग रहा होगा मगर यह सवाल बहुतकुछ कहता है. 1967 में गुजरात के सूरत जिले के मानेकपुर गांव में एक 6-7 वर्ष का बालक खेतों में घास काट कर उसे बाजार में बेच कर गरीबी से भी बदतर स्थिति में जी रहे अपने मातापिता का हाथ बंटाता था और गांव के रेडियो पर हर बुधवार अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत ‘बिनाका गीतमाला’ सुनना नहीं भूलता था.

उसे एक दिन खेत में घास काटते हुए जब आसमान से हवाई जहाज उड़ता नजर आया तो उस ने अपने बाल दोस्तों से कहा कि बड़ा हो कर वह भी जहाज उड़ाएगा. जब यह बात बालकों ने गांवभर में प्रचारित की तो लोगों ने उस बालक का मजाक उड़ाया. उस बालक ने मजाक को बड़ी चुनौती मान ली और जिद कर के पढ़ने के लिए मुंबई अपने पिता के पास आ गया, जहां उस के पिता एक ?ापड़पट्टी में रहते हुए एक कंपनी में चपरासी की नौकरी कर रहे थे.

तभी 1974 में फिल्म ‘दोस्त’ में किशोर कुमार का गाया गीत ‘गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है, चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही है’ तथा फिल्म ‘इम्तिहान’ में किशोर कुमार द्वारा गाया गीत ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटो पे चलके मिलेंगे साए बहार के…’ सुन कर 13 साल के उस बालक को एक नई उर्जा मिली और इन 2 गानों को गुनगुनाते हुए वह न सिर्फ पायलट बना, बल्कि पिछले 36 वर्षों के दौरान उस ने 5 हजार से अधिक युवाओं को हवाई जहाज उड़ाने के लिए पायलट बनाया पर उस का संगीत का शौक बढ़ता ही गया.

इसी संगीत के शौक के चलते आज की तारीख में उन के पास हजार से अधिक एलपी, 500 से अधिक छोटे रिकौर्ड, 500 से अधिक संगीत के औडियो कैसेट, 50 साल पुराना ग्रामोफोन सहित बहुतकुछ जमा कर रखा हुआ है. यह बालक कोई और नहीं, बल्कि मशहूर पायलट व पद्मश्री से समानित कैप्टन डाक्टर ए डी मानेक हैं, जिन की जीवनी ‘उड़ान एक मजदूर बच्चे की – ए डी मानेक’ नाम से छप चुकी है.

इस जीवनी को अमिताभ बच्चन ने केबीसी में जारी किया था. उस के बाद एक समारोह में भजन सम्राट अनूप जलोटा ने जारी किया था. ए डी मानेक अपनी इस किताब की बिक्री से एक ऐसा अस्पताल खोलने वाले हैं, जहां ‘बिल काउंटर’ नहीं होगा. कैप्टन ए डी मानेक न सिर्फ संगीत के शौकीन हैं बल्कि वे फिल्मों के भी शौकीन हैं. उन्होंने ‘गदर :एक प्रेम कथा’, ‘मां तु?ो सलाम’, ‘चैंपियन’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘एम एस धोनी’ सहित कई फिल्मों में हैलिकौप्टर उड़ाने से ले कर हैलिकौप्टर उड़ने के एरियल दृश्य भी फिल्माए हैं.

कैप्टन मानेक मूलतया गुजरात में सूरत के मानेकपोर गांव के रहने वाले हैं. बचपन में वे बाल मजदूरी करते हुए खेत में घास काटा करते थे. उन की पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई. वहां पर सरकार ने बच्चों के लिए एक ग्रामोफोन दे रखा था जिस के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उन का मनोरंजन किया जाता था.

मानेक कहते हैं, ‘‘फिर कुछ वर्षों बाद मैं ने रेडियो सुनना शुरू किया. हर बुधवार की शाम 7 बजे से 8 बजे के बीच ‘बिनाका गीतमाला’, अमीन सयानी का संगीत कार्यक्रम, सुनना शुरू किया. हमारे पूरे गांव में एक ही रेडियो था, जिसे पेड़ के नीचे रख कर हम सभी बच्चे एकसाथ बैठ कर सुनते थे. हम सभी बच्चे पूरे सप्ताह इस दिन का इंतजार किया करते थे. फिर मेरे पिताजी की मुंबई में नौकरी लग गई.

‘‘उन दिनों हम मुंबई में कुरार विलेज, मालाड में रहते थे. तब हम ने एक अखबार में क्रौस वर्ल्ड का एक पजल देखा, जिस में लिखा हुआ था कि यह भर कर भेजने वाले को इनाम मिलेगा. मैं ने भर कर भेज दिया और मुझे इनाम में रेडियो मिला था. वह रेडियो मेरे लिए उस वक्त घड़ी के साथसाथ बिनाका गीतमाला सुनने के काम आता था. हम काफी गरीबी में जी रहे थे. उस वक्त लोग हम से दूर रहते थे. तब मेरे साथ मेरा दोस्त सिर्फ रेडियो ही रहा.

‘‘उन दिनों रेडियो पर कई प्रेरणादायक गाने भी आते थे. मसलन, एक गाना था, ‘रुक जाना नहीं…’ यह गाना मेरे दिल में बस गया. यह गाना आज भी मेरे लिए प्रेरणास्रोत है. दूसरा गाना था, ‘गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है… चलना ही जिंदगी है..’ ये गाने मु?ो मेरी हर समस्या से निकालते रहते हैं तो संगीत में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई.

‘‘मेरे पास पैसे तो थे नहीं, इसलिए मैं ने एक भंगार वाले से ग्रामोफोन खरीदा, जिसे मैं ने आज तक संभाल कर रखा है. यह ग्रामोफोन मेरे पास पिछले 40 सालों से है और आज भी काम कर रहा है. इस के बाद मैं ने इलैक्ट्रिक सिस्टम वाला प्लेयर खरीदा. वह भी आज भी मेरे पास है. ग्रामोफोन के अलावा एचएमवी/हिज मास्टर्स वौयस ने एलपी बनाए थे.

‘‘1902 में एक रिकौर्ड सिस्टम आया था जिस की डिस्क में 2 गाने हुआ करते थे. फिर दूसरा रिकौर्ड डिस्क आया, जिस में कुल 4 गाने होते थे. इस के बाद 1959 में आया लांग प्लेयर यानी कि एलपी, जिस में कुल 12 गाने होते हैं. एक बार प्लेयर पर लगा दिया तो आराम से 25 मिनट सुन सकते हैं. सब से ज्यादा फिल्म ‘शोले’ के एलपी बिके थे. मेरे पास आज की तारीख में हजार से अधिक एलपी हैं और 2 व 4 गाने वाले रिकौर्ड भी कम से कम 500 हैं.

‘‘मेरे पास 1947 के पहले की फिल्मों के भी गानों के रिकौर्ड्स हैं. मैं ने हर दशक के हिसाब से गानों के एलपी सहेज कर रखे हुए हैं. मोहम्मद रफी साहब के जितने भी लाइव कंसर्ट हुए थे, मसलन टोरंटो कंसर्ट सहित सभी के एलपी मेरे पास सुरक्षित हैं. लता मंगेशकर दीदी के सभी गाने और उन के सभी लाइव कंसर्ट के रिकौर्ड्स मेरे पास हैं. जब भी मैं उदास होता हूं या मेरी जिंदगी में कुछ गलत होता है तब मैं संगीत की शरण में पहुंच कर सुकून महसूस करता हूं. मैं संगीत के साथ ही जीता हूं. हर उदासी या थकान के वक्त में इसी संगीत के कमरे में आ कर समय बिताता हूं.

‘‘गाने सुनता हूं और मेरा मूड सही हो जाता है. मेरे दुर्लभ संग्रहों में मोहम्मद रफी का ‘राउंड द वर्ल्ड कन्सर्ट’ शामिल है, जिस में लंदन, न्यूयौर्क और सैन फ्रांसिस्को में थीमस्ट्रो के लाइव प्रदर्शनों की रिकौर्डिंग की गई हैं. तो वहीं ‘प्यासा’, ‘पाकीजा’, ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘धूल का फूल’, सोलहवां साल’, ‘वक्त’ और ‘शर्मीली’ जैसी हिट फिल्मों के गाने हैं. ऐसी फिल्में जिन के गानों ने दशकों से संगीतप्रेमियों का मनोरंजन किया है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘हम देखते हैं कि लोग सुबह घर से काम करने के लिए निकलते हैं. फिर शाम को घर पहुंच जाते हैं. इसी तरह उन का दिन, सप्ताह, माह और साल निकल जाता है पर वे कुछ खास कर नहीं पाते हैं. वे हमेशा दबाव में रहते हैं. दबे रहते हैं. तनाव में रहते हैं. मैं ऐसे सभी लोगों से कहता हूं कि उन्हें अपने शौक के काम करने चाहिए. संगीत सुनना चाहिए. किताबें पढ़नी चाहिए. सभी को कुछ करना है पर वे वह कर नहीं पाते.

‘‘इस की मूल वजह कहीं न कहीं उन का दबा होना ही है. उन पर प्रैशर है पर काम करने का पैशन नहीं है उन में. मेरे हर काम करने में, हवाई जहाज उड़ाने में, हैलिकौप्टर उड़ाने, बच्चों को पायलट की शिक्षा देने में जो पैशन है, वह पैशन मु?ो संगीत से ही मिलता है, गाने सुनने से ही मिलता है. मेरे लिए यह एलपी ही दवा है. इस संगीत के जरिए ही मैं इस मुकाम तक पहुंच पाया हूं.

‘‘कभीकभी हर इंसान के साथ यह होता है जब उसे लगता है कि वह हार गया. अब वह कुछ नहीं कर पाएगा. मैं ऐसे लोगों से कहता हूं कि आप शांत हो जाइए और अपने शौक को कुछ समय पूरा कीजिए. यह शौक बागबानी से ले कर पढ़ने या संगीत सुनने तक कुछ भी हो सकता है. गिटार बजाना भी हो सकता है. मैं ने बांसुरी बजाना सीखा है. इन दिनों मैं गिटार बजाना सीख रहा हूं. ये मेरे शौक हैं और मैं अपनी जिंदगी को एंजौय कर रहा हूं.’’

अपने जीवन में पड़े गाने के असर के बारे में वे बताते हैं, ‘‘मैं ने गाना सुना था, ‘रुक जाना नहीं…’ इसी गाने ने मेरा हौसला बढ़ाया. इस के अलावा ‘गाड़ी बुला रही है..’ का भी मेरी जिंदगी पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. मैं पायलट बना और पिछले 36 वर्षों के अंतराल में मैं ने 5 हजार बच्चों को पढ़ा कर पायलट बनाया है. इस के अलावा भी कई प्रेरणादायक गाने हैं, जिन्हें मैं सुनता रहता हूं.

‘‘आप को पता होना चाहिए कि मेरे पास तकरीबन 20 हजार से अधिक गानों का संग्रह है. इन में से कम से कम 200 गाने तो प्रेरणादायक हैं. इन गानों के ही चलते आज 62 वर्ष की उम्र में भी मैं एकदम स्वस्थ हूं. मुझे शुगर नहीं. ब्लडप्रैशर नहीं. हायपर टैंशन नहीं. कोई तकलीफ नहीं. मेरी सोच हमेशा सकारात्मक रहती है. मैं हर इंसान से कहना चाहूंगा कि अगर आप जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं तो अपनी जिंदगी में शौक को महत्त्व दीजिए. यह शौक लेखन, गायन, संगीत, पढ़ने से ले कर सिर्फ गाना सुनने तक का हो सकता है.’’

मायूस होने पर मानेक के कुछ पसंदीदा गाने हैं, जिन्हें वे साझ करते हुए कहते हैं, ‘‘यों तो मेरे कई पसंदीदा गाने हैं पर जब मैं दिनभर काम करते हुए थक जाता हूं या मायूस हो जाता हूं तब सब से पहले ‘रुक जाना नहीं तू कभी घर के …’’ सुनना पसंद करता हूं. उस के बाद दूसरे गाने सुनता हूं. कभीकभी एक एलपी लगा कर आंख बंद कर उस एलपी के सभी गाने सुनता हूं. यह संगीत, यह एलपी मेरी जीवनरेखा की तरह हैं. जब भी मैं थका हुआ, उदास या ऊब महसूस करता हूं, अपने संगीत कक्ष में लौटता हूं और इन में से कुछ नंबरों को सुनता हूं. इन्होंने मेरा वर्षों तक साथ दिया है और जब तक मैं जीवित रहूंगा, तब तक ये मेरे साथ रहेंगे.’’

अपने पसंदीदा गीतों का जिक्र करते वे कहते हैं, ‘‘मेरे पसंदीदा गीतों में से एक लता मंगेशकर की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज का गीत ‘जिया बेकरार है, आई बहार है…,’ जोकि मेरे मूड को और बेहतर कर देता है.

‘‘इस के अलावा ‘रुक जाना नहीं…’, ‘गाड़ी बुला रही…’ और मोहम्मद रफी का गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा…’ सहित कई गाने हैं. मेरे पसंदीदा गायक मोहम्मद रफी साहब रहे हैं. मैं ‘मोहम्मद रफी फाउंडेशन’ से जुड़ा हुआ हूं. इस संस्था के माध्यम से हम लोग प्रतिभाशाली नए गायकों को प्रोत्साहित करते हैं. हर वर्ष हम एक कार्यक्रम रखते हैं जिस में ऐसी नई प्रतिभाओं को बुला कर पुरस्कृत करते हैं.’’

दरअसल संगीतकार मोहम्मद रफी की याद में एनजीओ बनाया गया है जिस का नाम ‘मोहम्मद रफी फाउंडेशन’ है. इस के अध्यक्ष बीनू नायर हैं.

मानेक आगे कहते हैं, ‘‘मैं जब गांव में था तब से तबला बजाता आ रहा हूं. गांव में भजन, कीर्तन के वक्त तबला बजाया करता था. बांसुरी बजाना सीखा है. आजकल गिटार बजाना सीख रहा हूं.’’

वे कहते हैं, ‘‘संगीत जिस रूप में भी मिला, मैं ने उसे अपने संग्रहालय का हिस्सा बनाया. लेकिन मैं आप को बता दूं कि कैसेट की जो आवाज है, जो साउंड है, उस का मुकाबला आप ‘एलपी’ से नहीं कर सकते. दोनों की आवाज में जमीनआसमान का अंतर है. एलपी की आवाज कमाल की है. फिर जैसे ही डिजिटल का जमाना आया, कैसेट बनने भी बंद हो गए. कैसेट खराब हो गए. फंगस लग गए जबकि एलपी मेरे पास कम से कम 40 वर्षों से हैं और आज भी इन की आवाज वैसी ही है. आप इस एलपी को देखिए, यह 70 साल पुरानी है, पर इस की आवाज आज भी वैसी ही है. इसे सुनने में थकान महसूस नहीं होती. एफएम रेडियो या पेनड्राइव में डाले गए गाने 15 मिनट तक सुनते ही आप थक जाएंगे.’’

एलपी खराब न हो, इस के लिए क्या करना चाहिए, इस बारे में वे बताते हैं, ‘‘हम हर वर्ष इन की साफसफाई करते हैं. बारिश में ही ज्यादा फंगस लगती है, इसलिए बारिश खत्म होने के बाद हम कापूस और अमेरिका से मंगाए गए खास तरह के लिक्विड से हर एलपी को दोनों तरफ से साफ कर के उन्हें धूप में सुखाते हैं. यदि वह लिक्विड खत्म हो जाता है तो हम कैरोसीन का उपयोग कर साफ करते हैं. आप जब आज भी एलपी पर गाना सुनेंगे तो तबले की आवाज अलग से सुनाई देती है. अन्य वाद्ययंत्रों की आवाज साफ अलग सुनाई देती है और गायक की आवाज अलग से साफसाफ सुनाई देती है. डिजिटल में आप को सिर्फ शोरशराबा ही सुनाई देगा.’’

डिजिटलाइजेशन के चलते नई पीढ़ी पर संगीत को ले कर बनतीबिगड़ती समझ को ले कर वे कहते हैं, ‘‘यही सच है. देखिए, लोगों को हमारे देश की परंपरा आदि की सम?ा ही नहीं है. अब बदलाव आ रहा है. डिजिटलाइजेशन के चलते लोगों को जिस तरह के गाने चाहिए, वे नहीं मिल रहे हैं. हमारी नई पीढ़ी को चाहिए कि वह इतिहास को पढ़ कर गौरवान्वित हो और इस तरह के एलपी आदि की तलाश कर उन पर मौजूद गाने सुनें. मेरे पास ग्रामोफोन ही नहीं, पुराने जमाने का टैलीफोन का डब्बा भी है जो कि आज भी काम कर रहा है.’’

कैप्टन मानेक की जीवनी ‘उड़ान एक मजदूर बच्चे की : ए डी मानेक’ नाम से छपी है, जिसे ‘केबीसी’ में अमिताभ बच्चन ने रिलीज किया था, फिर भजन सम्राट अनूप जलोटा ने इसे जारी किया. इस में पूरी कहानी है कि एक बाल मजदूरी करने वाला बच्चा घास काटते हुए हवाई जहाज देखता है और फिर खुद कैसे पायलट बनता है. उस की तकलीफों का भी जिक्र है. यह किताब हर दबे हुए इंसान को प्रेरणा देगी. इस किताब की बिक्री से मिलने वाली राशि से मानेक एक अस्पताल बनवा रहे हैं, जहां कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा. उन के इस अस्पताल में बिलिंग काउंटर नहीं होगा. अगले 6 माह में यह अस्पताल सेवा देने लगेगा. महाराष्ट्र व गुजरात की सीमा पर चाणक्य नगरी में वे 2 प्लौट खरीद कर गरीब लोगों की सुविधा के लिए भवन बनवा रहे हैं जहां कई तरह की सुविधाएं मुफ्त में दी जाएंगी. इस का काम लगभग पूरा हो गया है.’’

ए डी मानेक ने अपने कमरे के दरवाजे पर बोर्ड लगाया है, ‘चार्ल्स लिंडबर्ग मैमोरियल क्लासरूम’. इस के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘यह 22 साल का लड़का चार्ल्स लिंडबर्ग है. 1920 में चार्ल्स लिंडबर्र्ग ने अपना खुद का एरोप्लेन डिजाइन किया था और अमेरिका से पेरिस तक साढ़े 33 घंटे में बिना रुके अटलांटिक महासागर को पार कर के 5,790 किलोमीटर की दूरी तय की थी. उस की मदद के लिए उस के पास केवल एक कंपास था. उस के पास केवल 4 सैंडविच और पानी की 2 बोतलें थीं.

‘‘मैं लिंडबर्ग द्वारा लिखी किताब पढ़ कर प्रभावित हुआ था. इस किताब में लिंडबर्ग ने अपने हर घंटे के अनुभव को बयां किया था. इस युवा ने यह उड़ान उस समय की थी जब तकनीक केवल 2 से 3 घंटे की निरंतर उड़ान की अनुमति देती थी और कोई उन्नत नेविगेशन सिस्टम नहीं था लेकिन इस युवा ने यह महान उपलब्धि हासिल की. इसीलिए मैं ने इस संगीत के कमरे को उस के नाम पर रखा है. मैं ने चार्ल्स लिंडबर्ग पर अपनी किताब में पूरा अध्याय रखा है.’’

कैप्टन मानेक 2001 में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के फिल्मांकन से भी जुड़े थे. इस का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मैं ने ‘गदर : एक प्रेम कथा’, ‘मां तुझे सलाम’, ‘चैम्पियन’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘एम एस धोनी’ आदि फिल्मों के लिए काम किया है. हम ने हैलिकौप्टर उड़ाने व एरियल शौट भी फिल्माए हैं. कई दृश्य हम ने ड्रोन की मदद से फिल्माए हैं. हमारे पास ऐसे ड्रोन हैं जो 12 किलो वजन के कैमरे को उठा कर ले जाते हैं. इन दिनों हम काफी उत्साहित हैं क्योंकि हम ने 2001 में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के फिल्मांकन में मदद की थी जोकि उस वक्त की सफलतम फिल्म थी.’’

मेरी बेवकूफी के कारण मेरा प्यार मुझ से बात नहीं कर रहा है, आप ही बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता था पर मेरी एक बेवकूफी की वजह से उस ने मुझ से दूरी बना ली. अब न तो वह मेरा फोन उठाता है और न ही मुझ से मिलता है. दरअसल कुछ  समय पहले मेरे फोन पर एक अनजान नंबर से कौल आई. मैं ने फोन नहीं उठाया तो मैसेज आने लगे. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कौन मेरा नंबर और मेरा नाम भी जानता है.

कई दिनों तक मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बहुत ही अच्छे मैसेज भेजता रहा. कुछ समय बाद मैं ने जवाब देना शुरू कर दिया. बाद में मुझे पता चला कि वह मेरे बौयफ्रैंड का कोई दोस्त था. उस ने मेरे सारे मैसेज उसे दिखा दिए. तब से ही उस ने मुझे से दूरी बना ली. अब तो वह मेरा फोन भी नहीं उठाता. मैं ने उसे माफी भी मांग ली पर वह मानता ही नहीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं?

जवाब

आजकल किसी का भी नाम और फोन नंबर पता करना मुश्किल नहीं है. आप को अनजान नंबर पर जवाब नहीं देना चाहिए था. आप ने नासमझी में जो किया वह आप के बौयफ्रैंड को नागवार गुजरा. उस की जगह कोई भी होता तो यही करता.

आप अपने बौयफ्रैंड का विश्वास तोड़ चुकी हैं और जब एक बार किसी रिश्ते में गांठ पड़ जाए तो उस रिश्ते का दोबारा पटरी पर आना मुश्किल हो जाता है. बेहतर होगा कि आप उसे भूल जाएं और जिंदगी में आगे बढ़ें.

पालतू जानवरों से कम होता है तनाव

मुंबई के एक नशा मुक्ति केंद्र को देख कर पता चलता है कि वहां समाज के किस वर्ग से लोग आते हैं. यहां ऐसे अमीर लोगों के किशोर बच्चों की संख्या ज्यादा है, जिन के पास पैसा तो बहुत है पर अपने बच्चों का ध्यान रखने के लिए समय बिलकुल नहीं. तय रूटीन के अनुसार ये बच्चे महीने में 2 बार विदेश घूमने जाते हैं, खातेपीते हैं, फिल्में इत्यादि देखते हैं.

इस नशा मुक्ति केंद्र को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर इस तरह के मामले बारबार आते रहेंगे. मैं नशे के आदी एक ऐसे युवा को जानती हूं, जो इस केंद्र में तीसरी बार आया है. यहां पर आने वाले लोगों के दुख की वजह उन को नजरअंदाज किया जाना, उन के साथ बचपन में बुरा बरताव होना या पैसे के दम पर बिगड़ैल बन जाने से भी कहीं बड़ी है. इस की वजह अकसर मानसिक सेहत का दुरुस्त न होना होती है और मानसिक सेहत दिमाग में दौड़ने वाले रसायनों में गड़बड़ी की वजह से बिगड़ती है. पालतू कुत्ते हो सकते हैं सहायक: आजकल इस तरह के प्रयोग कर के देखे जा रहे हैं कि क्या कुत्ते ऐसे युवाओं या किशोरों की ठीक होने में सहायता कर सकते हैं, जो नशा मुक्ति केंद्रों में अपना इलाज करवा रहे हैं?

इस शोध की शोधकर्ता लिंडसे ऐल्सवर्थ वाशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय में शोध की छात्रा हैं. वे स्पोकन ह्यूमन सोसायटी से ऐक्सैल्सिअर यूथ सैंटर में कुत्ते ले कर आईं. इस सैंटर में इलाज कराने वाले सभी किशोर (लड़के) थे. ऐक्सैल्सिअर के रोजाना मनोरंजन के समय में यहां के कुछ किशोरों ने वीडियो गेम्स से ले कर बास्केटबौल खेल कर अपना समय गुजारा. कुछ किशोरों ने कुत्तों की साफसफाई कर, उन को खाना खिला कर व उन के साथ खेल कर अपना समय गुजारा. इस तरह की क्रियाओं को शुरू करने से पहले और समाप्त करने के बाद किशोरों का एक प्रक्रिया के द्वारा मूल्यांकन किया जाता है. इस में मनोचिकित्सक 1 से 5 तक के स्केल पर किशोरों की 60 प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन करते हैं और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं.

जिन किशोरों ने कुत्तों के साथ समय बिताया था, उन्होंने अपने अंदर आनंद, सतर्कता और शांति का अच्छा अनुभव महसूस किया. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इन किशोरों ने ‘उत्साहित’, ‘ऊर्जावान’, ‘खुश’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया. उन में से वे किशोर जो अवसाद या किसी आघात के बाद मिले तनाव से गुजर रहे थे, उन में काफी सुधार देखने को मिला. शोधकर्ताओं के विचार से कुत्तों का साथ संभवतया ओपिऔइड्स, साइकोऐक्टिव रसायनों का प्रवाह दिमाग में बढ़ा देता है, जिस से मरीज को दर्द में राहत मिलने के साथसाथ उसे सुकून का एहसास भी होता है. आखिर लोग नशा करते क्यों हैं? बारबार नशा करने वालों में एक समय अंतराल के बाद अकेलापन इस कदर बढ़ जाता है कि वे आत्महत्या करने की कगार पर पहुंच जाते हैं. ऐसे में कुत्तों के साथ समय व्यतीत करने से नकारात्मक विचार दिमाग पर कम हावी होते हैं और मूड भी अच्छा होता है. कुल मिला कर तनाव कम हो जाता है.

व्यवहार में सुधार: व्यावहारिक समस्या से जूझ रहे एक किशोर के कुत्तों के साथ गुजारे समय का असर बताते हुए शोधकर्ता कहते हैं कि कुत्तों के साथ पहली 2 मुलाकातों में किशोर ने अपने व्यवहार पर नियंत्रण करना सीखा ताकि कुत्ते उस के अजीब व्यवहार को देख कर चौंकें नहीं. उस के बात करने के तरीके और आवाज में सकारात्मक ठहराव आया. वह पहले की अपेक्षा ज्यादा सचेत हो गया और अपनी प्रतिक्रियाओं पर भी ध्यान देने लगा. कुत्तों के साथ कुछ सैशन करने के बाद किशोर का सुधार केंद्र के कर्मियों के प्रति व्यवहार में सकारात्मक बदलाव भी आया.

ऐल्सवर्थ कहती हैं, ‘‘मुझे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बच्चे कुत्तों के साथ समय बिताने के दौरान बहुत शांत थे. किस तरह उन का उग्र व्यवहार करना कम हो रहा था. उन के व्यवहार में आया अंतर दिन और रात की तरह स्पष्ट था.’’

इलाज का सस्ता विकल्प: यदि इस शोध को गंभीरता से समझा जाए तो नशा मुक्ति केंद्रों पर किए जा रहे परंपरागत इलाज से यह तरीका सुगम भी है और सस्ता भी.

सिर्फ कुत्ते ही नहीं, कैट फैंसियर्स संस्था के अनुसार लोगों में ओपिऔइड्स का स्राव फेलाइंस यानी टाइगर, जगुआर जैसे जानवर भी बढ़ा सकते हैं.

इस नशा मुक्ति केंद्र के प्रबंधक के अनुसार, विज्ञान या वैज्ञानिक प्रयोग पर आधारित कार्यक्रमों को इस तरह के केंद्रों में नियमित रूप से लागू करना चाहिए. इनसानों को अच्छी फीलिंग का एहसास कराने वाला रसायन डोपामाइन प्राकृतिक रूप में दिमाग में पाया जाता है. यह रसायन उन किशोरों के दिमाग में भी तब रिलीज हुआ जब उन्होंने कुत्तों के साथ समय बिताया. कुत्तों को इस्तेमाल करने जैसे प्राकृतिक उपाय दिमाग में ऐसे रसायनों की क्रियाप्रतिक्रिया को सुचारु रूप से संचालित कर सकते हैं.

जारी हैं प्रयोग: शोधकर्ताओं के अनुसार शैल्टर में पलने वाले कुत्ते घर में पलने वाले कुत्तों से ज्यादा प्रतिक्रियाशील होते हैं. विज्ञान जहां जानवरों के इन किशोरों पर प्रभाव की जांचपड़ताल शुरू कर रहा है, वहीं कैरेन हाकिंस अमेरिका के ‘मे’ शहर में एक हीलिंग फार्म चला रही हैं जहां ऐसे बच्चों और जानवरों को ले कर आती हैं, जिन्हें इलाज की जरूरत होती है.

कैरेन के अनुसार, ‘‘मेरे पास आने वाले कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन का पालनपोषण या तो कम हुआ होता है या हुआ ही नहीं होता है. मेरी देखरेख के साथसाथ जंगली वातावरण उन को यह एहसास कराता है कि उन की देखभाल या पालनपोषण कैसा होना चाहिए. मैं ने ऐसे बच्चों के बरताव में नरमी आते हुए देखी है, जो बेहद गुस्सैल, क्रूर और दुराचारी स्वभाव के थे. इन में से ज्यादातर किशोर थे. उन में विश्वास करने की भावना आ गई, वे धीरेधीरे अपनी बातें जानवरों से शेयर करने लगे और फिर इनसानों के साथ भी उन का रिश्ता बेहतर होने लगा.’’

साउथ कोरिया के एक मनोचिकित्सक ने पाया कि उन के देश में 10 से 19 साल की आयु के 10% बच्चों में इंटरनैट इस्तेमाल करने की बुरी लत लग गई है. किशोर बच्चे पूरी रात जाग कर पोर्न वीडियो देखते हैं, औनलाइन गेम्स खेलते हैं इत्यादि. यहां के नएनए स्थापित केंद्रों ने इन किशोरों की लत छुड़ाने के लिए एक विचित्र उपाय निकाला घोड़ा. थेरैपिस्ट का मानना था कि घुड़सवारी थेरैपी कारगर साबित होती है जब बाकी सारे उपाय असफल हो जाते हैं. इनसानों और जानवरों के बीच बना रिश्ता भावनात्मक समस्याओं से निबटने का अच्छा तरीका है.

क्या इनसान इस ग्रह पर अकेले रह सकता है? नहीं. इनसानों का जानवरों के साथ बेहतर रिश्ता होना ही उन की भावनाओं को नियंत्रण में रखने का मूल सिद्धांत है. जब हम रिश्ते को खत्म करते हैं तो इस के साथसाथ खुशी पाने के कई मानसिक रास्ते भी बंद कर देते हैं. जिस तरह हरियाली, हरेभरे पेड़पौधे हमें अच्छा महसूस कराते हैं, बारिश, तितलियां और सूरज हमें खुशी देते हैं, उसी तरह यह बेहद जरूरी है कि अपने बच्चों को खुशी देने और उन्हें एक परिपक्व व संपूर्ण इनसान बनाने के लिए हर परिवार में एक पालतू जानवर अवश्य हो.

हाशिए पर कायदे : क्या आर्यन और मीनल एक हो सके ?

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वो कमजोर पल : क्या सीमा ने राज से दूसरी शादी की ?

वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

हां, मैं ने धोखा दिया है अपने पति को, अपने शादीशुदा जीवन के साथ छल किया है मैं ने. मैं एक गिरी हुई औरत हूं. मुझे कोई अधिकार नहीं किसी के नाम का सिंदूर भर कर किसी और के साथ बिस्तर सजाने का. यह बेईमानी है, धोखा है. लेकिन जिस्म के इस इंद्रजाल में फंस ही गई आखिर.

मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चे के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे राज मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. हां, मैं एक साधारण नारी, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. राज चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.

उन दिनों मेरे पति अकाउंट की ट्रेनिंग पर 9 माह के लिए राजधानी गए हुए थे. फोन पर अकसर बातें होती रहती थीं. बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन की आदी मैं अपने को रोकती, संभालती रही. अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गई मैं.

मैं अपनी सहेली रीता के घर बैठने जाती. पति घर पर थे नहीं. बेटा नानानानी के घर गया हुआ था गरमियों की छुट्टी में. रीता के घर कभी पार्टी होती, कभी शेरोशायरी, कभी गीतसंगीत की महफिल सजती, कभी पत्ते खेलते. ऐसी ही पार्टी में एक दिन राज आया. और्केस्ट्रा में गाता था. रीता का चचेरा भाई था. रात का खाना वह अपनी चचेरी बहन के यहां खाता और दिनभर स्ट्रगल करता. एक दिन रीता के कहने पर उस ने कुछ प्रेमभरे, कुछ दर्दभरे गीत सुनाए. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जबजब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता.

राज अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे छेड़ता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई. मैं रीता के घर पहुंची. रीता कहीं गई हुई थी काम से. राज मिला. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में राज ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैं ने कहा, ‘राज, मैं शादीशुदा हूं.’

राज ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं एक बच्चे की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीनेमरने की मैं ने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया.

मैं और राज अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. राज ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब रीता ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं राज के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी. यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति आनंद का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई रातें गुजारीं. राज की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि आनंद के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.

मैं ने एक दिन राज से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’

मुझे अपने बेवफा होने का एहसास राज ने हंसीहंसी में करा दिया था. एक रात राज के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’

‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित संस्था है.’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम अपने पति का सामना कर सकोगी? उस से तलाक मांग सकोगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के वापस आते ही प्यार टूट जाए और शादी जीत जाए?’

मुझ पर तो राज का नशा हावी था. मैं ने कहा, ‘तुम हां तो कहो. मैं सबकुछ छोड़ने को तैयार हूं.’

‘अपना बच्चा भी,’ राज ने मुझे घूरते हुए कहा. उफ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘राज, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चे को अपने साथ रख लें?’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारा बेटा, मुझे अपना पिता मानेगा? कभी नहीं. क्या मैं उसे उस के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चा तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चा मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलाएगा कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या उस बच्चे में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो सीमा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.

‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, देवरननद अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पलपल. यहां तक कि अपना बच्चा भी क्योंकि यह बच्चा सिर्फ तुम्हारा नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ राज कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन वफा के वादे के साथ.’

मैं रो पड़ी. मैं ने राज से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक कमजोर पल था. वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

राज की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन कमजोर पलों को भूलना चाहिए था जिन में मैं ने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर राज से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.  मैं ने राज से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

राज हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपनेआप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

राज ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें राज की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि राज का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

राज ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ राज ने फिर दोहराया.

इधर, आनंद, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? आनंद के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी. एक पत्नी बन कर रहना. मेरा बेटा भी वापस आ चुका था. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे. लेकिन आनंद के दफ्तर और बेटे के स्कूल जाते ही राज आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ राज ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी राज ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरा बेटा और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. पति को भनक लगी. उन्होंने दोटूक कहा, ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

मैं फिर राज के पास पहुंची. वह कलाकार था. गायक था. उसे मैं ने बताया कि मेरे पति ने मुझ से क्याक्या कहा है और अपने शर्मसार होने के विषय में भी. उस ने कहा, ‘‘यदि तुम्हें शर्मिंदगी है तो तुम अब तक गुनाह कर रही थीं. तुम्हारा पति सज्जन है. यदि हिंसक होता तो तुम नहीं आतीं, तुम्हारे मरने की खबर आती. अब मेरा निर्णय सुनो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे कमजोर पल मेरी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है.’’

मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली राज से. रीता ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन कमजोर पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. राज जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभीकभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.

दीवाली से पहले चैक लिस्ट बनाने के 7 टिप्स

दीवाली साल का सब से बड़ा त्योहार माना जाता है. दीवाली पर जहां हम अपने घर को बड़े ही विविधतापूर्ण ढंग से सजाते हैं वहीं घर के लिए कुछ नए कपड़े, लाइट्स, चादरें और बरतन आदि खरीदते भी हैं. अकसर खरीदारी करते समय हम कुछ भी ले आते हैं और फिर घर आ कर लगता है कि क्यों खरीद लाए. इस से पैसे की बरबादी तो होती ही है, साथ ही, घर भी अनावश्यक सामान से भर जाता है. आज हम आप को कुछ ऐसी टिप्स बता रहे हैं जिन्हें अपना कर आप दीवाली पर अनावश्यक खर्च से काफी हद तक बच जाएंगे.

लाइट्स : दीवाली पर सजावट के लिए प्रयोग की गईं लाइट्स को अकसर हम पैक कर के अगली दीवाली के लिए रख देते हैं. आप इस समय सारी लाइट्स को चैक करें और जो बेकार या फ्यूज हो गई हैं उन्हें फेक दें और एक लिस्ट नई लाने वाली लाइट्स की बनाएं व समय रहते उन्हें खरीद भी लाएं ताकि दीवाली की अनावश्यक भीड़भाड़ से बच जाएं.

आउटफिट : दीवाली पर आप और आप के परिवार के सदस्य क्या पहनने वाले हैं, यह भी अभी से चैक कर लें. यदि किसी सदस्य का नया आउटफिट लाना है तो ले आएं और यदि घर में रखे आउटफिट को पहनना है तो उस की सिलाइयां और हुक-बटन को चैक करने के साथसाथ पहन कर भी देखें ताकि उसे अपने अनुसार फिट करवा सकें.

सजावट का सामान : दीवाली पर हम घर को विभिन्न फूलमालाओं, बंदनवार, ?ामर और रंगोली आदि से सजाते हैं. आप ने पिछले साल का जो भी सामान पैक कर के रखा है उसे चैक कर लें. यदि नया लेना है तो उसे औनलाइन या औफलाइन मंगवा लें ताकि समय रहते उसे बदला जा सके.

उपहार : दीवाली के लिए उपहारों और मिठाइयों के लेनदेन का अभी सही समय है कि आप अपने कामगारों और परिवार के सदस्यों या परिचितों को क्या देंगी, यह सोच कर एक लिस्ट तैयार कर लें. अकसर हमें कुछ ऐसे उपहार मिलते हैं जो हमारे पास डबल हो जाते हैं या फिर हम प्रयोग नहीं करते. ऐसे सामान को एक बार चैक जरूर कर लें ताकि दीवाली पर उन का उपयोग किया जा सके.

किचन : किचन घर का ऐसा स्थान होता है जहां पर हमारा अधिकांश समय व्यतीत होता है. किचन में कुछ बरतन और कंटेनर ऐसे होते हैं जो बेकार हो चुके हैं या जिन की कोटिंग निकल गई है उन्हें चिह्नित कर लीजिए. हो सके तो उन्हें रिप्लेस कर दें वरना उन्हें ही पेंट आदि कर के नया रूप दे कर प्रयोग करने का प्रयास करें.

घर है सब से जरूरी : पूरे घर पर नजर दौड़ाएं क्योंकि बारिश के बाद के इन दिनों में घर में सीलन, जाले आदि जगहजगह पर लग जाते हैं. इन्हें हटाने के साथसाथ यदि आप को घर के किसी भी कोने में रिपेयरिंग या लाइट्स को दुरुस्त करवाने की जरूरत है तो अभी ही करवा लें क्योंकि अंतिम समय पर एक तो मजदूर नहीं मिलते और यदि मिलते भी हैं तो काम अच्छा नहीं करते.

परदे और कुशन्स : घर के लिए यदि आप नए परदे बनवाना चाहतीं हैं तो यही उपयुक्त समय है. आजकल रैडीमेड परदे उपलब्ध हैं. इन्हें औनलाइन या औफलाइन बड़े आराम से खरीदा जा सकता है. यदि नए नहीं खरीदना चाहतीं तो उन्हीं पुराने परदों को मिक्स और मैच कर के नया लुक दें.

मिस्टर हंसमुख : सदा प्रसत्रचित रहने वाले व्यक्ति की फिलोसफी

अफरातफरी मची हुई थी. खासतौर पर रेलवे स्टेशन व उस के आसपास के इलाके में हजारो लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. कई चैनलों के संवाददाता अपने कैमरामेन के साथ आ डटे थे. शहर से गुजरने वाली मेल एक्सप्रेस का यहां से 150 किलोमीटर पहले डिरेलमैंट हो गया था. कई डब्बे पटरी से उतर गए थे. सारे चैनलों की कवरेज में मौत व घायलों के आंकड़ों में भिन्नता की ही समानता थी. जिन के परिजन, दोस्त इस ट्रेन में सवार थे उन के चेहरों  पर हवाईयां उड़ रही थीं.

रोज लड़ने वाले पतिपत्नी एकदूसरे की कुशलक्षेम लेने स्टेशन पर आ डटे थे. बेरोजगार बेटा, जिस की कि बाप से किसी न किसी मुददे पर रोज बहस होती थी, भी पिता की कुशलक्षेम के लिए चिंतित हो यहां से वहां घूम रहा था. सच में हिंदुस्तान मे संकटकाल में रिश्ते कितने प्यारे व प्रेमपूर्ण हो जाते हैं, यह यदि किसी को देखना हो तो इस रेलवे स्टेशन के पास आ जाता. अगर रिश्तों को बुत न बना कर साबुत रखना है तो संकट आते रहने चाहिए.

प्लेटफौर्म पर इस समय तिल रखने जगह न थीं. इंतजार की घड़ियां बडी़ मुश्किल से कटती हैं. यह ट्रेन अपने निर्धारित समय से 12 घंटे लेट आई थी, आखिर दुर्घटनाग्रस्त जो थी. एकदो बोगियां तो इतनी छतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें बाकियों से काट कर अलग करना पडा़ था. उन में से साधारण घायलों को अन्य बोगियों में समायोजित कर दिया गया था. ज्यादा गंभीर पास के अस्पतालों में भरती थे. वैसे दुर्घटनाग्रस्त इलाके के पास का सब से बडा़ शहर यही था और रेलवे का बडा़ अस्पताल भी यहीं था.

गंगाधर भी स्टेशन पर तैनात था, आखिर बात मिस्टर हंसमुख की थी. उस का जिगरी व घुम्मकड़ दोस्त, जो यात्राओं का बडा़ शौकीन था, भी इसी रेल पर सवार था. भारी पुलिस बल व स्थानीय प्रशासन के नुमाइंदे प्लेटफौर्म पर मुस्तैदी से तैनात थे. आखिरकार 3 घंटे के इंतजार के बाद ट्रेन प्लेटफौर्म पर लग गई थी. एकएक यात्री के बारे में डिटेल्स को नोट किया जा रहा था. हंसमुख का भाई दुक्खीराम भी प्लेटफौर्म पर मौजूद था. मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब बी-3 बोगी से हंसमुख हमेशा की तरह मुसकराते हुए उतरा मगर धीरेधीरे. उस के एक पैर मे बैंडेज थी और थोडी़ बैंडेज खोपडी़ पर भी लगी थी. दाएं हाथ में भी बैंडेज बंधी थी. लेकिन फिर भी वह मुसकरा रहा था. कहीं से यह नहीं लग रहा था कि यह शख्स किसी दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन का एक दुर्घटनाग्रस्त यात्री है. बाकी यात्रियों के चेहरों पर हवाईया उड़ रही थीं. देखते ही भाई को दुक्खीराम, जो हंसमुख से एक साल ही छोटा था, नाराज हो कर बोला कि कंहा मरने के लिए चले गए थे. अभी परसों ही बाहर से आए थे, मना किया था लेकिन फिर भी चल दिए. दिलचस्प तो यह कि यह फटकार सुन कर भी हंसमुख मुसकराता ही रहा.

हम लोग स्टेशन से बाहर निकल कर औटो में बैठ गए थे. हंसमुख अपनेआप ही बोल उठा. मैं तो चुप था लेकिन वह कहां चुप रह सकता था. बोला कि, अच्छा हुआ कि वह इस ट्रेन में सवार था. अभी तक जो एक जरूरी अनुभव नहिं हुआ था वह भी अब हो गया.

मैं ने कहा, “यार, कैसी बात कर रहा है. तेरे दुश्मन ऐसी ट्रेन में सवार हों.”

“यार, सब से बडी़ चीज दुनिया में और जीवन में अनुभव होता है. मुझे ट्रेन दुर्घटना का भी अनुभव हो गया. अब मेरे साथ तो उम्र में कोई ट्रेन दुर्घटना नहीं घटनी. 30 साल से यात्रा कर रहा हूं, यह पहला मौका है,” वह गौरवान्वित हो कर बोला.

मैं ने कहा, “यह भी कोई बात हुई.”

वह बोला, “यार, तू समझने की कोशिश कर मेरा क्या हुआ. कुछ नहीं हुआ. सही कहा जाए कि बाल भी बांका नहीं हुआ. तुझे पता है, ट्रेन में 30 लोगों की मौत हो गई. मेरी तो बोगी पटरी से थोड़ी ही दूर पर गिरी लेकिन वे 3 बोगियां तो दोतीन बार पलटीं. सोच, उन के यात्रियों के साथ क्या हुआ होगा. मुझे कुछ नहीं हुआ, दोतीन जगह मामूली खरोंच आई, थोडा़ खून निकला. इतना तो जरा सा कट जाने पर भी निकलता है.”

दुक्खीराम तो यह सब सुन कर इतना दुखी हो रहा था कि लग रहा था कि अब रोया कि तब. लेकिन उस के आंसू नहीं निकले. आंखें उस की देख कर लगता था कि वे आंसुओं के सैलाब को रोकने की कोशिश कर रही हैं.

हंसमुख आगे बोला, “यार, मैं ने तो कई यात्रियों, विशेषरूप से महिलाओं व बच्चों, को निकालने में मदद की. क्या सुकून मिला इस सब में, यह मैं ही जनता हूं. इस अनुभव के बगैर सब मिलता क्या. परमार्थ ही सही मानवता है.” वह सिद्धांतवादी सा बन कर खींसे निपोरने लगा.

उस को देख कर यह नहीं लगता था कि इतने बडे़ हादसे का एक प्रतिशत भी उस पर कोई प्रभाव पडा़ है. वह पहले की ही तरह मुसकराता हुआ हमारे साथ था. जबकि दूसरी तरफ अन्य उतर रहे यात्रियों के चेहरे दीनहीन व घबराए हुए थे. वे अपने को मौत के मुंह से बच कर निकल आने के कारण प्रकृति का धन्यवाद अदा कर रहे थे. धन्यवाद तो यह भी मन ही मन प्रकृति को अदा कर रहा था लेकिन इस बात के लिए कि उस ने उसे एक अवसर दिया इस नए अनुभव के लिए.

यह तो एक हालिया घटना थी. हंसमुख को प्रकृति ने बनाया ही ऐसा था. कुछ भी हो जाए, वह बुरा नहीं मानता था, न प्रकट ही करता था. उस की प्रतिक्रिया इस तरह की होती- बहुत अच्छा हुआ कि ऐसा हो गया. कम से कम यह अनुभव तो मिला, वरना न जाने कितने और साल बाद यह पता चलता. भला पता चलता  कि ऐसे में क्या होता है.

मुझे औटो में बैठेबैठे पिछले साल का उस के घर का दृश्य याद आ गया. इस का घर जबलपुर मे नर्मदा नदी के किनारे पर था. बरसात में पुर आया था और इस की कालोनी के 50 मकानों में पानी भर गया था. 8 घंटे तक इन घरों में तीनचार फीट तक पानी भरा रहा. वह तो गनीमत थी कि ये सारे मकान डुप्लेक्स थे, सो, सारे लोग ऊपर की मंजिल में टंगे रहे जब तक की पानी नहीं उतर गया. नगर निगम वाले भी पानी उतरने के बाद ही उतराए थे. हंसमुख के मकान में भी 4 फुट पानी भरा रहा. काफी नुकसान हो गया. सोफे, डबलबैड व दीवानों मे भर कर रखा गया सामान डूब गया. हजारों का नुकसान हो गया. जो होना है तो हो जाए, हंसमुख को कोई फर्क पड़ता है क्या.

मैं जब शाम को उस से मिलने गया था तो वह हमेशा की तरह प्रसन्नचित्त ही मिला. मैं ने सोचा कि आंटी जी ने इस का सही नाम रखा है. किसी की शवयात्रा में भी यह दुखी होने का काम नहीं करता होगा. वहां भी सोचता होगा कि अच्छा हुआ कि यह मर ही गया, कम से कम रोज के लफड़ों से तो छुटटी पाई.

मेरे आते ही वह टूट पडा़, जैसे वह भरा हुआ बैठा था. मैं ने सोचा कि यह शिकायत करेगा, सोसायटी व नगर निगम वालों को जम कर कोसेगा लेकिन उस के उलट वह बोला कि अच्छा हुआ कि इस कालोनी में पानी घुस आया. अभी तक केवल अखबारों मे पढा़ करता था, अब देख लिया, भोग लिया.

मैं ने कहा जो नुकसान हुआ उस का क्या? तो वह तपाक से बोला, “मेरा अकेले का कौन हुआ है, सब का हुआ है. और हमारा तो कुछ भी नहीं हुआ. अधिकांश  सामान तो ऊपर था.” यह कह कर वह मुसकराने लगा और आगे बोला कि इस तरह का अनुभव भी जरूरी था. अभी तक समाचार ही पढ़े थे- घरों में पानी भरता कैसे है, कितनी देर तक भरा रहता है, क्याक्या नुकसान कर जाता है, क्या नहीं कर पाता है आदि.

कुल मिला कर वह इस हादसे को भी एक अनुभव मान कर प्रसन्नचित्त था. उस की हर हादसे में भी जिंदादिली को देख कर मैं भौचक रह जाता था. वह कहता था कि सिद्धांत से बडा़ व्यवहार होता है और यह अनुभव से ही सीखा जा सकता है. जब तक भोगा न हो तो क्या पता चलेगा.

काफी देर हो गई थी. औटो में हंसमुख कैसे इतनी देर चुप रह गया था. शायद उसे एहसास हो गया था कि मैं कुछ सोच रहा हूं उसी की तारीफ में. अचानक वह बोला, “मदन, तेरे को याद है कि 3 साल पहले अपने घर के पीछे के गैराज में आग लग गई थी. कैसा धूधू कर घंटेभर में ही सब जल गया था और तू उस समय मेरे ही घर में था. अपन ने पास से पूरा तमाशा देखा था कि कैसे कोई कुछ नहीं कर पाया था. जब तक फायर बिगेड आती, सब स्वाहा हो चला था और बाद में पता चला कि फायर ब्रिगेड में ही आग लग गई थी, इसलिए इसे आने मे देरी हुई थी. अब इस बदरंग फायर ब्रिगेड को जब भी देखता हूं, हंसी आ जाती है.”

मैं ने कहा, “दोगुनी हो जाती है, इतनी तो तुम्हें हमेशा रहती है.”

वह बोला, “क्या अनुभव था आग लगने की घटना को पास से देखने का. गैराज में रखे पेंट के डब्बे कैसे ऊपर जा कर जोरों से फटते थे. यदि उस गैराज की आग के अपन प्रत्यक्षदर्शी न होते तो यह अनुभव हो पाता क्या कि पेंट के डब्बे भी ऐसे ऊपर जा कर पटाके की तरह फटते हैं. गैराज वाला बिजली न होने से अपनी वाश यूनिट तक नहीं चालू कर पाया था. इस से जनरेटर हमेशा औटो औन मोड में रखने का एक नया अनुभव मिला.”

मैं ने कहा कि तेरा गैराज है क्या जो यह अनुभव तेरे किसी काम आएगा?

वह बोला, “यार, कर्टसी व अनुभव 2 ऐसी  चीजें हैं, दुनिया में जो हमेशा फायदा पहुंचाती हैं.”

अब हंसमुख का घर आ गया था. शरीर में 3 जगह बैंडेज बंधी होने के बावजूद वह खुशीखुशी घर के अंदर ऐसे दाखिल हो रहा था जैसे कि ओलिंपिक या एशियन गेम्स में कोई पदक जीत कर आ रहा हो.

घर आ कर आराम करने की बात तो हंसमुख भूल गया. वह तो हंसहंस कर अपने अनुभव सब को सुना रहा था. उस के लिए कोई भी हादसा, हादसा नहीं होता था बल्कि एक नए अनुभव का खजाना होता था.

मुझे याद आया कि ऐसे ही 3 साल पहले उस की बेटी 10वीं में फेल हो गई तो वह तनिक भी दुखी नहीं हुआ था, बोला था कि, कोई बात नहीं, विश्व के कई महान लोग फेल हुए थे. महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन तो खुद 9वीं में गणित में फेल हो गया था. प्यारी बिटिया के सिर पर हाथ फेर कर उस ने कहा था कि, ‘यह एक अनुभव है, जिंदगी का बहुत बड़ा कि तू इतनी छोटी उम्र में फेल या असफल होने का अनुभव पा गई. मुझ अभागे को तो यह अनुभव हुआ ही नहीं. मुश्किल से स्नातक के दूसरे वर्ष में एक विषय में मुझे सप्लीमैंट्री आई थी और उस में मैं अच्छे से पास हो गया था. आधा ही अनुभव रहा था मेरा और तू समय की बलवान है कि पूरा अनुभव इतनी कम उम्र में तेरी झोली में आ गिरा.’

मैं उस की यह बात सुन गिरतेगिरते रह गया था. मैं ने अब इस महान व्यक्तित्व को नमस्कार कर आगे रवानगी डालना उचित समझा वरना मैं ने सोचा कि कोई और पुराने हादसे का नया किस्सा न सुना दे यह वह भी हंसहंस कर.

मेरे दोस्त ने मेरे साथ पैसों को लेकर धोखाधड़ी की है, क्या मैं उसकी शिकायत कर दूं ?

सवाल

मैं 34 वर्षीय पुरुष हूं. मेरे दोस्त ने मेरे साथ पैसों को ले कर धोखाधड़ी की है. हुआ यों कि हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते हैं जहां मेरी पोस्ट उस से ऊंची है. उसे शायद मुझ से थोड़ी जलन होती है या क्या पता नहीं, लेकिन उस ने मेरे नाम पर कई क्लाइंट्स से पैसे लिए हैं. अब वह यह बात कुबूलने के लिए राजी ही नहीं हो रहा और उन क्लाइंट्स से मैं इस मसले पर बात नहीं कर सकता क्योंकि बदनामी कंपनी की ही होनी है. मैंने अपने दोस्त की शिकायत करने के बारे में सोचा लेकिन उस की नौकरी छूट जाएगी जिस से उस के परिवार पर असर पड़ेगा. मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब

एक बात जो आप को ध्यान में रखने की है वह यह है कि पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को हमेशा अलगअलग रखना चाहिए. धोखाधड़ी करने वाला व्यक्ति चाहे कोई भी हो, धोखाधड़ी तो धोखाधड़ी है. आज उस ने आप के नाम पर पैसे लिए हैं, कल किसी और के नाम पर लेगा.

आप इतना तो समझते ही होंगे कि ऐसा करने पर उसे जेल भी हो सकती है. इन सब से हट कर यह भी है कि वह अपनी गलती मानने के लिए भी तैयार नहीं है. आप को उस से उस की गलती मानने के लिए कहना चाहिए. अगर वह तब भी गलती नहीं मानता और इस धोखाधड़ी की भरपाई नहीं करता तो आप को कंपनी के हित के बारे में सोचते हुए उस की शिकायत अपने बौस से कर देनी चाहिए. यह उस की भलाई के लिए भी जरूरी है जिस से भविष्य में कम से कम वह ऐसा न करे.

दो खजूर : क्या आसिफ मुस्तफा काजी के पद के योग्य था ?

बगदाद के बादशाह मीर काफूर ने अपने विश्वासी सलाहकार आसिफ मुस्तफा को बगदाद का नया काजी नियुक्त किया, क्योंकि निवर्तमान काजी रमीज अबेदिन अब बूढ़े हो चले थे और उन्होंने बादशाह से गुजारिश की थी कि अब उन का शरीर साथ नहीं दे रहा है इसलिए उन्हें राज्य के काजी पद की खिदमत से मुक्त कर दें. बगदाद राज्य का काजी पद बहुत महत्त्वपूर्ण और जिम्मेदारी भरा होता था. बगदाद के काजी पद पर नियुक्ति की खुशी में आसिफ मुस्तफा ने एक जोरदार दावत दी. उस दावत में उस के मातहत राज्य के सभी न्यायिक दंडाधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी आमंत्रित थे. राज्य के लगभग सभी सम्मानित व्यक्ति भी दावत में उपस्थित थे.

सब लोग दावत की खूब तारीफ कर रहे थे, क्योंकि वहां हर चीज मजेदार बनी थी. आसिफ मुस्तफा सारा इंतजाम खुद देख रहा था. सुरीले संगीत की धुनें वातावरण को और भी रसमय बना रही थीं. अचानक आसिफ मुस्तफा को ध्यान आया कि उस ने एक चीज तो मंगवाईर् ही नहीं. आजकल खजूर का मौसम चल रहा है. अत: उस फल का दावत में होना जरूरी है. बगदाद में पाया जाने वाला अरबी खजूर बहुत स्वादिष्ठ होता है. दावतों में भी उसे चाव से खाया जाता है.

आसिफ ने अपने सब से विश्वसनीय सेवक करीम को बुलाया और उसे सोने का एक सिक्का देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से बाजार से 500 अच्छे खजूर ले आओ.’’ बगदाद में खजूर वजन के हिसाब से नहीं बल्कि संख्या के हिसाब से मिलते थे. सेवक फौरन रवाना हो गया. थोड़ी देर बाद लौटा तो उस के पास खजूरों से भरा हुआ एक बड़ा थैला था.

आसिफ मुस्तफा ने कहा, ‘‘थैला जमीन पर उलटो और मेरे सामने सब खजूर गिनो.’’

करीम अपने मालिक के इस आदेश पर दंग रह गया. वह सोच भी नहीं सकता था कि उस का मालिक उस जैसे पुराने विश्वसनीय सेवक पर इस तरह शक करेगा. सब मेहमान भी हैरत से आसिफ की तरफ देखने लगे.

करीम ने फल गिनने शुरू किए. जब गिनती पूरी हुई तो वह थरथर कांपने लगा. खजूर 498 ही थे. आसिफ बिगड़ कर बोला, ‘‘तुम ने बेईमानी की है. तुम ने 2 खजूर रास्ते में खा लिए हैं. तुम्हें इस जुर्म की सजा अवश्य मिलेगी.’’

करीम ‘रहमरहम…’ चिल्लाता रहा, लेकिन आसिफ मुस्तफा जरा भी नहीं पसीजा. उस ने सिपाहियों को आदेश दिया कि करीम को फौरन गिरफ्तार कर लिया जाए. आसिफ के इस बरताव से सारे मेहमान हक्केबक्के थे कि इतनी सी बात पर एक पुराने वफादार सेवक को सजा देना कहां का इंसाफ है.

आसिफ ने आदेश दिया, ‘‘करीम की पीठ पर तब तक कोड़े बरसाए जाएं, जब तक वह अपना अपराध कबूल न कर ले.’’ उस के आदेश का पालन किया जाने लगा. करीम की चीखें शामियाने में गूंजने लगीं. जब पिटतेपिटते करीम लहूलुहान हो गया तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘‘हां, मैं ने 2 खजूर चुरा लिए, 2 खजूर चुरा लिए. मीठेमीठे खजूर देख कर मेरा जी ललचा गया था. मैं अपराध कबूल करता हूं. मुझे छोड़ दो.’’

उस की इस बात पर मेहमानों में खुसुरफुसुर होने लगी कि अब ईमानदारी का जमाना नहीं रहा. जिसे देखो, वही बेईमानी करता है. किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वफादार सेवक पर भी नहीं. सभी करीम को कोस रहे थे, जिस की वजह से दावत का मजा किरकिरा हो गया था. तभी आसिफ मुस्तफा ने कहा, ‘‘सिपाहियो, खोल दो इस की जंजीरें.’’

जंजीरें खोल दी गईं. करीम को आसिफ के सामने पेश किया गया. सारे मेहमान चुपचाप देख रहे थे कि अब आसिफ मुस्तफा उस के साथ क्या व्यवहार करता है. सब का विचार था कि करीम ने अपराध स्वीकार कर लिया है इसलिए इसे बंदीगृह में भेज दिया जाएगा या नौकरी से निकाल दिया जाएगा. लेकिन इस के बाद आसिफ मुस्तफा अपनी जगह से उठ कर करीम के पास आया. उस के शरीर से रिसते खून को अपने रूमाल से साफ किया. उस की मरहमपट्टी की और दूसरे साफ कपड़े पहनाए. सभी आश्चर्य करने लगे कि यह क्या तमाशा है. जब करीम रहम की भीख मांग रहा था, तब तो उस की पुरानी वफादारी का लिहाज नहीं किया और अब कबूल चुका है तो उस की मरहमपट्टी हो रही है.

आसिफ मुस्तफा ने करीम से माफी मांगी. फिर मेहमानों से कहने लगा, ‘‘मैं जानता हूं करीम बेकुसूर है. इस ने कोई अपराध नहीं किया. यह देखिए,’’ उस ने अपने कुरते की आस्तीन में से 2 खजूर निकाल कर कहा, ‘‘ये हैं वे 2 खजूर जिन्हें मैं ने पहले ही फुरती से निकाल लिया था. ऐसा मैं ने इसलिए किया था कि आप को बता सकूं कि लोगों को कठोर दंड दे कर जुर्म कबूल करवाना कितनी बड़ी बेइंसाफी है, लेकिन ऐसा हो रहा है. हमारा काम अपराधियों का पता लगाना और उन के अपराध के लिए उन्हें सजा देना है न कि किसी भी निर्दोष को मार कर उसे चोर साबित करना.’’ सभी आसिफ मुस्तफा की इस सच्ची बात पर वाहवाह कर उठे. उन्हें विश्वास हो गया कि आसिफ वाकई काजी के पद के योग्य है. उस के कार्यकाल में किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलेगी और कुसूरवार बच नहीं पाएगा.

वजन कम करने में मददगार हैं ये 5 फल

जंक फूड और फास्ट फूड के इस दौर में मोटापा और वजन का बढ़ना लोगों की आम समस्या बन गई है. इसके लिए लोग एक्सरसाइज से लिए डाइटिंग करते हैं. डाइटिंग के चक्कर में लोग जरूरी सब्जियों और फलों को अपनी डाइट से दूर रखते हैं. फलों को लेकर लोगों का मानना है कि उसमें शुगर की मात्रा अधिक होती है जो शरीर में कार्बोहाइड्रेट काउंट बढ़ाता है, जिसके कारण वजन बढ़ता है. पर इस चक्कर में लोग भूल जाते हैं कि फल ना खाकर वे कितने पोषक तत्वों के लाभ से खुद को दूर कर दे रहे हैं. आपको बता दें कि फल फाइबर रिच होने के साथ साथ कई विटामिन्स से भरपूर होते हैं.

इस खबर में हम आपको उन फलों के बारे में बताएंगे जिन्हें उचित मात्रा में खाने से वजन को घटाने में काफी मदद मिलती है.

स्ट्रौबेरी

वजन घटाने वाले जरूरी फलों में स्ट्रौबेरी को सबसे अच्छे फलों में गिना जाता है. इसमें कार्बोहाइड्रेट बेहद कम मात्रा में होता है. इसके अलावा एंटीऔक्सिडेंट की मात्रा भी प्रचूर होती है. जानकारों की माने तो 100 ग्राम स्ट्रौबेरी में केवल 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होती है.

 ब्लैकबेरी

बिना किसी चीज से मिला कर खाने से ब्लैकबेरी बेहद फायदेमंद होता है. इसके 100 ग्राम में 10 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होती है. यानि कि लो कार्बोहाइड्रेट डाइट में इसे शामिल किया जा सकता है.

खरबूज

इस फल में भी कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक नहीं होती है. इसलिए वजन कम करने के लिहाज से ये बेहद प्रभावशाली होता है. 100 ग्राम खरबूज में 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट मौजूद होती है.

तरबूज

वजन घटाने के लिए तरबूज एक महत्वपूर्ण फल है. इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है. 100 ग्राम तरबूज में 8 ग्राम ही कार्बोहाइड्रेट होती है.

पीच

वेट लूज करने में पीच एक कारगर फल है. 100 ग्राम पीच में केवल 10 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होती है. इसके अलावा पीच में कैटेचिन्स भी होता है और इसका ग्लाइकेमिक इंडेक्स भी कम होता है.

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