क्या संगीत किसी बाल मजूदर को हवाई जहाज उड़ाने वाला पायलट बना सकता है? यह सवाल ही अपनेआप में पढ़ने वालों को अजूबा लग रहा होगा मगर यह सवाल बहुतकुछ कहता है. 1967 में गुजरात के सूरत जिले के मानेकपुर गांव में एक 6-7 वर्ष का बालक खेतों में घास काट कर उसे बाजार में बेच कर गरीबी से भी बदतर स्थिति में जी रहे अपने मातापिता का हाथ बंटाता था और गांव के रेडियो पर हर बुधवार अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत ‘बिनाका गीतमाला’ सुनना नहीं भूलता था.
उसे एक दिन खेत में घास काटते हुए जब आसमान से हवाई जहाज उड़ता नजर आया तो उस ने अपने बाल दोस्तों से कहा कि बड़ा हो कर वह भी जहाज उड़ाएगा. जब यह बात बालकों ने गांवभर में प्रचारित की तो लोगों ने उस बालक का मजाक उड़ाया. उस बालक ने मजाक को बड़ी चुनौती मान ली और जिद कर के पढ़ने के लिए मुंबई अपने पिता के पास आ गया, जहां उस के पिता एक ?ापड़पट्टी में रहते हुए एक कंपनी में चपरासी की नौकरी कर रहे थे.
तभी 1974 में फिल्म ‘दोस्त’ में किशोर कुमार का गाया गीत ‘गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है, चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही है’ तथा फिल्म ‘इम्तिहान’ में किशोर कुमार द्वारा गाया गीत ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटो पे चलके मिलेंगे साए बहार के…’ सुन कर 13 साल के उस बालक को एक नई उर्जा मिली और इन 2 गानों को गुनगुनाते हुए वह न सिर्फ पायलट बना, बल्कि पिछले 36 वर्षों के दौरान उस ने 5 हजार से अधिक युवाओं को हवाई जहाज उड़ाने के लिए पायलट बनाया पर उस का संगीत का शौक बढ़ता ही गया.
इसी संगीत के शौक के चलते आज की तारीख में उन के पास हजार से अधिक एलपी, 500 से अधिक छोटे रिकौर्ड, 500 से अधिक संगीत के औडियो कैसेट, 50 साल पुराना ग्रामोफोन सहित बहुतकुछ जमा कर रखा हुआ है. यह बालक कोई और नहीं, बल्कि मशहूर पायलट व पद्मश्री से समानित कैप्टन डाक्टर ए डी मानेक हैं, जिन की जीवनी ‘उड़ान एक मजदूर बच्चे की – ए डी मानेक’ नाम से छप चुकी है.
इस जीवनी को अमिताभ बच्चन ने केबीसी में जारी किया था. उस के बाद एक समारोह में भजन सम्राट अनूप जलोटा ने जारी किया था. ए डी मानेक अपनी इस किताब की बिक्री से एक ऐसा अस्पताल खोलने वाले हैं, जहां ‘बिल काउंटर’ नहीं होगा. कैप्टन ए डी मानेक न सिर्फ संगीत के शौकीन हैं बल्कि वे फिल्मों के भी शौकीन हैं. उन्होंने ‘गदर :एक प्रेम कथा’, ‘मां तु?ो सलाम’, ‘चैंपियन’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘एम एस धोनी’ सहित कई फिल्मों में हैलिकौप्टर उड़ाने से ले कर हैलिकौप्टर उड़ने के एरियल दृश्य भी फिल्माए हैं.
कैप्टन मानेक मूलतया गुजरात में सूरत के मानेकपोर गांव के रहने वाले हैं. बचपन में वे बाल मजदूरी करते हुए खेत में घास काटा करते थे. उन की पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई. वहां पर सरकार ने बच्चों के लिए एक ग्रामोफोन दे रखा था जिस के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उन का मनोरंजन किया जाता था.
मानेक कहते हैं, ‘‘फिर कुछ वर्षों बाद मैं ने रेडियो सुनना शुरू किया. हर बुधवार की शाम 7 बजे से 8 बजे के बीच ‘बिनाका गीतमाला’, अमीन सयानी का संगीत कार्यक्रम, सुनना शुरू किया. हमारे पूरे गांव में एक ही रेडियो था, जिसे पेड़ के नीचे रख कर हम सभी बच्चे एकसाथ बैठ कर सुनते थे. हम सभी बच्चे पूरे सप्ताह इस दिन का इंतजार किया करते थे. फिर मेरे पिताजी की मुंबई में नौकरी लग गई.
‘‘उन दिनों हम मुंबई में कुरार विलेज, मालाड में रहते थे. तब हम ने एक अखबार में क्रौस वर्ल्ड का एक पजल देखा, जिस में लिखा हुआ था कि यह भर कर भेजने वाले को इनाम मिलेगा. मैं ने भर कर भेज दिया और मुझे इनाम में रेडियो मिला था. वह रेडियो मेरे लिए उस वक्त घड़ी के साथसाथ बिनाका गीतमाला सुनने के काम आता था. हम काफी गरीबी में जी रहे थे. उस वक्त लोग हम से दूर रहते थे. तब मेरे साथ मेरा दोस्त सिर्फ रेडियो ही रहा.
‘‘उन दिनों रेडियो पर कई प्रेरणादायक गाने भी आते थे. मसलन, एक गाना था, ‘रुक जाना नहीं…’ यह गाना मेरे दिल में बस गया. यह गाना आज भी मेरे लिए प्रेरणास्रोत है. दूसरा गाना था, ‘गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है… चलना ही जिंदगी है..’ ये गाने मु?ो मेरी हर समस्या से निकालते रहते हैं तो संगीत में मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई.
‘‘मेरे पास पैसे तो थे नहीं, इसलिए मैं ने एक भंगार वाले से ग्रामोफोन खरीदा, जिसे मैं ने आज तक संभाल कर रखा है. यह ग्रामोफोन मेरे पास पिछले 40 सालों से है और आज भी काम कर रहा है. इस के बाद मैं ने इलैक्ट्रिक सिस्टम वाला प्लेयर खरीदा. वह भी आज भी मेरे पास है. ग्रामोफोन के अलावा एचएमवी/हिज मास्टर्स वौयस ने एलपी बनाए थे.
‘‘1902 में एक रिकौर्ड सिस्टम आया था जिस की डिस्क में 2 गाने हुआ करते थे. फिर दूसरा रिकौर्ड डिस्क आया, जिस में कुल 4 गाने होते थे. इस के बाद 1959 में आया लांग प्लेयर यानी कि एलपी, जिस में कुल 12 गाने होते हैं. एक बार प्लेयर पर लगा दिया तो आराम से 25 मिनट सुन सकते हैं. सब से ज्यादा फिल्म ‘शोले’ के एलपी बिके थे. मेरे पास आज की तारीख में हजार से अधिक एलपी हैं और 2 व 4 गाने वाले रिकौर्ड भी कम से कम 500 हैं.
‘‘मेरे पास 1947 के पहले की फिल्मों के भी गानों के रिकौर्ड्स हैं. मैं ने हर दशक के हिसाब से गानों के एलपी सहेज कर रखे हुए हैं. मोहम्मद रफी साहब के जितने भी लाइव कंसर्ट हुए थे, मसलन टोरंटो कंसर्ट सहित सभी के एलपी मेरे पास सुरक्षित हैं. लता मंगेशकर दीदी के सभी गाने और उन के सभी लाइव कंसर्ट के रिकौर्ड्स मेरे पास हैं. जब भी मैं उदास होता हूं या मेरी जिंदगी में कुछ गलत होता है तब मैं संगीत की शरण में पहुंच कर सुकून महसूस करता हूं. मैं संगीत के साथ ही जीता हूं. हर उदासी या थकान के वक्त में इसी संगीत के कमरे में आ कर समय बिताता हूं.
‘‘गाने सुनता हूं और मेरा मूड सही हो जाता है. मेरे दुर्लभ संग्रहों में मोहम्मद रफी का ‘राउंड द वर्ल्ड कन्सर्ट’ शामिल है, जिस में लंदन, न्यूयौर्क और सैन फ्रांसिस्को में थीमस्ट्रो के लाइव प्रदर्शनों की रिकौर्डिंग की गई हैं. तो वहीं ‘प्यासा’, ‘पाकीजा’, ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘धूल का फूल’, सोलहवां साल’, ‘वक्त’ और ‘शर्मीली’ जैसी हिट फिल्मों के गाने हैं. ऐसी फिल्में जिन के गानों ने दशकों से संगीतप्रेमियों का मनोरंजन किया है.’’
वे आगे कहते हैं, ‘‘हम देखते हैं कि लोग सुबह घर से काम करने के लिए निकलते हैं. फिर शाम को घर पहुंच जाते हैं. इसी तरह उन का दिन, सप्ताह, माह और साल निकल जाता है पर वे कुछ खास कर नहीं पाते हैं. वे हमेशा दबाव में रहते हैं. दबे रहते हैं. तनाव में रहते हैं. मैं ऐसे सभी लोगों से कहता हूं कि उन्हें अपने शौक के काम करने चाहिए. संगीत सुनना चाहिए. किताबें पढ़नी चाहिए. सभी को कुछ करना है पर वे वह कर नहीं पाते.
‘‘इस की मूल वजह कहीं न कहीं उन का दबा होना ही है. उन पर प्रैशर है पर काम करने का पैशन नहीं है उन में. मेरे हर काम करने में, हवाई जहाज उड़ाने में, हैलिकौप्टर उड़ाने, बच्चों को पायलट की शिक्षा देने में जो पैशन है, वह पैशन मु?ो संगीत से ही मिलता है, गाने सुनने से ही मिलता है. मेरे लिए यह एलपी ही दवा है. इस संगीत के जरिए ही मैं इस मुकाम तक पहुंच पाया हूं.
‘‘कभीकभी हर इंसान के साथ यह होता है जब उसे लगता है कि वह हार गया. अब वह कुछ नहीं कर पाएगा. मैं ऐसे लोगों से कहता हूं कि आप शांत हो जाइए और अपने शौक को कुछ समय पूरा कीजिए. यह शौक बागबानी से ले कर पढ़ने या संगीत सुनने तक कुछ भी हो सकता है. गिटार बजाना भी हो सकता है. मैं ने बांसुरी बजाना सीखा है. इन दिनों मैं गिटार बजाना सीख रहा हूं. ये मेरे शौक हैं और मैं अपनी जिंदगी को एंजौय कर रहा हूं.’’
अपने जीवन में पड़े गाने के असर के बारे में वे बताते हैं, ‘‘मैं ने गाना सुना था, ‘रुक जाना नहीं…’ इसी गाने ने मेरा हौसला बढ़ाया. इस के अलावा ‘गाड़ी बुला रही है..’ का भी मेरी जिंदगी पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. मैं पायलट बना और पिछले 36 वर्षों के अंतराल में मैं ने 5 हजार बच्चों को पढ़ा कर पायलट बनाया है. इस के अलावा भी कई प्रेरणादायक गाने हैं, जिन्हें मैं सुनता रहता हूं.
‘‘आप को पता होना चाहिए कि मेरे पास तकरीबन 20 हजार से अधिक गानों का संग्रह है. इन में से कम से कम 200 गाने तो प्रेरणादायक हैं. इन गानों के ही चलते आज 62 वर्ष की उम्र में भी मैं एकदम स्वस्थ हूं. मुझे शुगर नहीं. ब्लडप्रैशर नहीं. हायपर टैंशन नहीं. कोई तकलीफ नहीं. मेरी सोच हमेशा सकारात्मक रहती है. मैं हर इंसान से कहना चाहूंगा कि अगर आप जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं तो अपनी जिंदगी में शौक को महत्त्व दीजिए. यह शौक लेखन, गायन, संगीत, पढ़ने से ले कर सिर्फ गाना सुनने तक का हो सकता है.’’
मायूस होने पर मानेक के कुछ पसंदीदा गाने हैं, जिन्हें वे साझ करते हुए कहते हैं, ‘‘यों तो मेरे कई पसंदीदा गाने हैं पर जब मैं दिनभर काम करते हुए थक जाता हूं या मायूस हो जाता हूं तब सब से पहले ‘रुक जाना नहीं तू कभी घर के …’’ सुनना पसंद करता हूं. उस के बाद दूसरे गाने सुनता हूं. कभीकभी एक एलपी लगा कर आंख बंद कर उस एलपी के सभी गाने सुनता हूं. यह संगीत, यह एलपी मेरी जीवनरेखा की तरह हैं. जब भी मैं थका हुआ, उदास या ऊब महसूस करता हूं, अपने संगीत कक्ष में लौटता हूं और इन में से कुछ नंबरों को सुनता हूं. इन्होंने मेरा वर्षों तक साथ दिया है और जब तक मैं जीवित रहूंगा, तब तक ये मेरे साथ रहेंगे.’’
अपने पसंदीदा गीतों का जिक्र करते वे कहते हैं, ‘‘मेरे पसंदीदा गीतों में से एक लता मंगेशकर की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज का गीत ‘जिया बेकरार है, आई बहार है…,’ जोकि मेरे मूड को और बेहतर कर देता है.
‘‘इस के अलावा ‘रुक जाना नहीं…’, ‘गाड़ी बुला रही…’ और मोहम्मद रफी का गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा…’ सहित कई गाने हैं. मेरे पसंदीदा गायक मोहम्मद रफी साहब रहे हैं. मैं ‘मोहम्मद रफी फाउंडेशन’ से जुड़ा हुआ हूं. इस संस्था के माध्यम से हम लोग प्रतिभाशाली नए गायकों को प्रोत्साहित करते हैं. हर वर्ष हम एक कार्यक्रम रखते हैं जिस में ऐसी नई प्रतिभाओं को बुला कर पुरस्कृत करते हैं.’’
दरअसल संगीतकार मोहम्मद रफी की याद में एनजीओ बनाया गया है जिस का नाम ‘मोहम्मद रफी फाउंडेशन’ है. इस के अध्यक्ष बीनू नायर हैं.
मानेक आगे कहते हैं, ‘‘मैं जब गांव में था तब से तबला बजाता आ रहा हूं. गांव में भजन, कीर्तन के वक्त तबला बजाया करता था. बांसुरी बजाना सीखा है. आजकल गिटार बजाना सीख रहा हूं.’’
वे कहते हैं, ‘‘संगीत जिस रूप में भी मिला, मैं ने उसे अपने संग्रहालय का हिस्सा बनाया. लेकिन मैं आप को बता दूं कि कैसेट की जो आवाज है, जो साउंड है, उस का मुकाबला आप ‘एलपी’ से नहीं कर सकते. दोनों की आवाज में जमीनआसमान का अंतर है. एलपी की आवाज कमाल की है. फिर जैसे ही डिजिटल का जमाना आया, कैसेट बनने भी बंद हो गए. कैसेट खराब हो गए. फंगस लग गए जबकि एलपी मेरे पास कम से कम 40 वर्षों से हैं और आज भी इन की आवाज वैसी ही है. आप इस एलपी को देखिए, यह 70 साल पुरानी है, पर इस की आवाज आज भी वैसी ही है. इसे सुनने में थकान महसूस नहीं होती. एफएम रेडियो या पेनड्राइव में डाले गए गाने 15 मिनट तक सुनते ही आप थक जाएंगे.’’
एलपी खराब न हो, इस के लिए क्या करना चाहिए, इस बारे में वे बताते हैं, ‘‘हम हर वर्ष इन की साफसफाई करते हैं. बारिश में ही ज्यादा फंगस लगती है, इसलिए बारिश खत्म होने के बाद हम कापूस और अमेरिका से मंगाए गए खास तरह के लिक्विड से हर एलपी को दोनों तरफ से साफ कर के उन्हें धूप में सुखाते हैं. यदि वह लिक्विड खत्म हो जाता है तो हम कैरोसीन का उपयोग कर साफ करते हैं. आप जब आज भी एलपी पर गाना सुनेंगे तो तबले की आवाज अलग से सुनाई देती है. अन्य वाद्ययंत्रों की आवाज साफ अलग सुनाई देती है और गायक की आवाज अलग से साफसाफ सुनाई देती है. डिजिटल में आप को सिर्फ शोरशराबा ही सुनाई देगा.’’
डिजिटलाइजेशन के चलते नई पीढ़ी पर संगीत को ले कर बनतीबिगड़ती समझ को ले कर वे कहते हैं, ‘‘यही सच है. देखिए, लोगों को हमारे देश की परंपरा आदि की सम?ा ही नहीं है. अब बदलाव आ रहा है. डिजिटलाइजेशन के चलते लोगों को जिस तरह के गाने चाहिए, वे नहीं मिल रहे हैं. हमारी नई पीढ़ी को चाहिए कि वह इतिहास को पढ़ कर गौरवान्वित हो और इस तरह के एलपी आदि की तलाश कर उन पर मौजूद गाने सुनें. मेरे पास ग्रामोफोन ही नहीं, पुराने जमाने का टैलीफोन का डब्बा भी है जो कि आज भी काम कर रहा है.’’
कैप्टन मानेक की जीवनी ‘उड़ान एक मजदूर बच्चे की : ए डी मानेक’ नाम से छपी है, जिसे ‘केबीसी’ में अमिताभ बच्चन ने रिलीज किया था, फिर भजन सम्राट अनूप जलोटा ने इसे जारी किया. इस में पूरी कहानी है कि एक बाल मजदूरी करने वाला बच्चा घास काटते हुए हवाई जहाज देखता है और फिर खुद कैसे पायलट बनता है. उस की तकलीफों का भी जिक्र है. यह किताब हर दबे हुए इंसान को प्रेरणा देगी. इस किताब की बिक्री से मिलने वाली राशि से मानेक एक अस्पताल बनवा रहे हैं, जहां कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा. उन के इस अस्पताल में बिलिंग काउंटर नहीं होगा. अगले 6 माह में यह अस्पताल सेवा देने लगेगा. महाराष्ट्र व गुजरात की सीमा पर चाणक्य नगरी में वे 2 प्लौट खरीद कर गरीब लोगों की सुविधा के लिए भवन बनवा रहे हैं जहां कई तरह की सुविधाएं मुफ्त में दी जाएंगी. इस का काम लगभग पूरा हो गया है.’’
ए डी मानेक ने अपने कमरे के दरवाजे पर बोर्ड लगाया है, ‘चार्ल्स लिंडबर्ग मैमोरियल क्लासरूम’. इस के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘यह 22 साल का लड़का चार्ल्स लिंडबर्ग है. 1920 में चार्ल्स लिंडबर्र्ग ने अपना खुद का एरोप्लेन डिजाइन किया था और अमेरिका से पेरिस तक साढ़े 33 घंटे में बिना रुके अटलांटिक महासागर को पार कर के 5,790 किलोमीटर की दूरी तय की थी. उस की मदद के लिए उस के पास केवल एक कंपास था. उस के पास केवल 4 सैंडविच और पानी की 2 बोतलें थीं.
‘‘मैं लिंडबर्ग द्वारा लिखी किताब पढ़ कर प्रभावित हुआ था. इस किताब में लिंडबर्ग ने अपने हर घंटे के अनुभव को बयां किया था. इस युवा ने यह उड़ान उस समय की थी जब तकनीक केवल 2 से 3 घंटे की निरंतर उड़ान की अनुमति देती थी और कोई उन्नत नेविगेशन सिस्टम नहीं था लेकिन इस युवा ने यह महान उपलब्धि हासिल की. इसीलिए मैं ने इस संगीत के कमरे को उस के नाम पर रखा है. मैं ने चार्ल्स लिंडबर्ग पर अपनी किताब में पूरा अध्याय रखा है.’’
कैप्टन मानेक 2001 में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के फिल्मांकन से भी जुड़े थे. इस का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मैं ने ‘गदर : एक प्रेम कथा’, ‘मां तुझे सलाम’, ‘चैम्पियन’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘एम एस धोनी’ आदि फिल्मों के लिए काम किया है. हम ने हैलिकौप्टर उड़ाने व एरियल शौट भी फिल्माए हैं. कई दृश्य हम ने ड्रोन की मदद से फिल्माए हैं. हमारे पास ऐसे ड्रोन हैं जो 12 किलो वजन के कैमरे को उठा कर ले जाते हैं. इन दिनों हम काफी उत्साहित हैं क्योंकि हम ने 2001 में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के फिल्मांकन में मदद की थी जोकि उस वक्त की सफलतम फिल्म थी.’’