Download App

सोने का घंटा : एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल लेकिन…

लाश बिलकुल सीधी पड़ी थी. सीने पर दो जख्म थे. एक गरदन के करीब, दूसरा ठीक दिल पर. नीचे नीली दरी बिछी थी, जिस पर खून जमा था. वहीं मृतक के सिर के कुछ बाल भी पडे़ थे. वारदात अमृतसर के करीबी कस्बे ढाब में हुई थी.

मरने वाले का नाम रंजन सिंह था, उम्र करीब 45 साल. उस की किराने की दुकान थी. फिर अचानक ही उस के पास कहीं से काफी पैसा आ गया था. उस ने एक छोटी हवेली खरीद ली थी. 3 महीने पहले उस ने उसी पैसे से बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी.

रंजन का कत्ल उस की नई हवेली में हुआ था. उस के 2 बेटे थे, दोनों अलग रहते थे. बाप से उन का मिलनाजुलना नहीं था. बीवी 3 साल पहले मर चुकी थी. घर पर वह अकेला रहता था. नौकरानी सुगरा दोपहर में रंजन के घर तब आती थी, जब वह अपने काम पर होता था. सुगरा घर का काम और खाना वगैरह बना कर चली जाती थी.

रंजन ने घर के ताले की एक चाबी उसे दे रखी थी. कत्ल के रोज भी सुगरा खाना बना कर चली गई थी. रात को रंजन आया और खाना खा कर सो गया. सुबह कोई उस से मिलने आया. खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वह पड़ोसी की छत से रंजन के घर में घुसा, जहां खून में लथपथ उस की लाश पड़ी मिली.

मैं ने बहुत बारीकी से जांच की. कमरे में संघर्ष के आसार साफ नजर आ रहे थे. चीजे बिखरी हुई थीं. सबूत इकट्ठा कर के मैं ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. उस के बाद मैं गवाहों के बयान लेने लग गया. सब से पहले पड़ोसी गफूर का बयान लिया गया.

उस ने दावे से कहा कि रात को रंजन की हवेली से लड़ाईझगडे़ की कोई आवाज नहीं आई थी. उस ने बताया कि रंजन सिंह बेटी की शादी के बाद से खुद शादी करना चाहता था. उस ने एक दो लोगों से रिश्ता ढूंढने को कहा था. बेटों और बहुओं से उस की कतई नहीं बनती थी. मैं ने गफूर से पूछा, ‘‘तुम पड़ोसी हो तुम्हें तो पता होगा उस के पास 6-7 महीने पहले इतना पैसा कहां से आया था?’’

गफूर ने सोच कर जवाब दिया, ‘‘साहब, यह तो मुझे नहीं मालूम, पर सब कहते हैं कि उसे कहीं से गड़ा हुआ खजाना मिल गया. पर रंजन कहता था उस का अनाज का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है.’’

जरूरी काररवाई कर के मैं थाने लौट आया. शाम को मैं ने बिलाल शाह को भेज कर सुगरा और उस के शौहर को बुलवाया. सुगरा 22-23 साल की खूबसूरत औरत थी. उस की गोद में डेढ़ साल का प्यारा सा बच्चा था. गरीबी और भूख ने उस की हालत खराब कर रखी थी. उस के कपड़े पुराने और फटे हुए थे. यही हाल उस के शौहर का था. उस के हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी. मैं ने नजीर से पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?’’

‘‘साहब, खराद मशीन में हाथ आ गया था. 2 जगह से हड्डी टूट गई थी. 2-3 औपरेशन हो चुके हैं पर फायदा नहीं है.’’

‘‘क्या खराद मशीन तुम्हारी अपनी है?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं दूसरे के यहां 50 रुपए महीने पर नौकरी करता था. हाथ टूटने के बाद उस ने निकाल दिया.’’

दोनों मियां बीवी सिसकसिसक कर रो रहे थे. पर मैं अपने फर्ज से बंधा हुआ था. मैं ने नजीर को बाहर भेज दिया और सुगरा से पूछा, ‘‘सुना है तुम्हारा शौहर पसंद नहीं करता था कि तुम किसी और के घर काम करो. इस बात पर वह तुम से झगड़ता भी था. क्या यह सच है?’’

‘‘जी हां साहब, उसे पसंद नहीं था पर मेरी मजबूरी थी. मेरे तीनों बच्चे भूखे मर रहे थे. काम कर के मैं उन्हें खाना तो खिला सकती थी. मैं ने गुड्डू के अब्बा से हाथ जोड़ कर रंजन चाचा के घर काम करने की इजाजत मागी थी और वह मान भी गया था.’’

‘‘पर गांव वाले तुम्हारे और रंजन के बारे में बेहूदा बातें करते थे. यह बातें तुम्हें और तुम्हारे शौहर को भी पता चलती होंगी?’’

‘‘साहब, जिन के दिल काले हैं, वही गंदी बातें सोचते हैं. रंजन चाचा मेरे साथ बहुत अच्छा सलूक करते थे. जब मैं काम करती थी, तब वह घर पर होते ही नहीं थे. लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं मार सकती थी.’’

‘‘सुगरा, ऐसा भी तो हो सकता है कि गुस्से में आ कर नजीर ने रंजन सिंह को मार डाला हो?’’

‘‘नहीं साहब, वह कभी किसी का खून नहीं कर सकता. वैसे भी वह हाथ से मजबूर है, सीधा हाथ हिला भी नहीं सकता.’’

इस बारे में मैं ने नजीर से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस रात 11 बजे तक वह अपने दोस्त अशरफ के यहां था. मैं ने नजीर से कहा, ‘‘लोग तुम्हारी बीवी के बारे में जो बेहूदा बातें करते थे, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आता था, कहीं इसी गुस्से में तो तुम ने रंजन को नहीं मार डाला?’’

‘‘तौबा करें साहब, हम गरीब मजबूर इंसान हैं. ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमारी भूख और मजबूरी के आगे गैरत हार जाती है.’’ मैं ने उन दोनों को घर जाने दिया, क्योंकि वे लोग बेकसूर नजर आ रहे थे.

मैं ने एक बार फिर रंजन के घर की अच्छे से तलाशी ली. दरी के ऊपर एक घड़ी पड़ी थी. अलमारियां खुली हुई थीं, पर यह पता लगाना मुश्किल था कि क्याक्या सामान गया है? बेटों को भी कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह बाप की दूसरी शादी के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आनाजाना बंद था.

पोस्टमार्टम के बाद रंजन सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस मौके पर सभी रिश्तेदार मौजूद थे. उस के दोनों बेटे रूप सिंह और शेर सिंह भी थे. बाद में मैं ने रूप सिंह को बुलाया. वह आते ही फट पड़ा, ‘‘थानेदार साहब, हमारे बापू को किसी और ने नहीं नजीर ने ही मारा है. दोनों मियांबीवी बापू के पीछे हाथ धो कर पड़े थे. सुगरा को पता होगा जेवर और पैसे कहां हैं. उसी के लिए मेरा बापू मारा गया.’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘हमारी नजर सब पर है. तुम उस की फिक्र मत करो. तुम यह बताओ कि हादसे की रात तुम कहां थे और बाप से क्यों झगड़ा चल रहा था?’’

‘‘मैं अपने घर में था. मेरी घर वाली को बेटा हुआ था. दोस्त और रिश्तेदार मिल कर जश्न माना रहे थे.’’

‘‘तुम्हारे यहां बेटा हुआ, जश्न मना, पर बाप को खबर देने की जरूरत नहीं समझी, क्यों? तुम काम क्या करते हो.’’

‘‘बापू की दूसरी शादी की वजह से झगड़ा चल रहा था. इसलिए उसे नहीं बताया. मैं मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाने का काम करता हूं.’’

दोनों बेटों से पूछताछ करने से भी कोई नतीजा नहीं निकला. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई, जिस से पता चला रंजन नींद की गोलियों के नशे में था. इस रिपोर्ट से मेरा शक सुगरा की तरफ बढ़ गया. पर मेरे पास कोई सबूत नहीं था.

रिपोर्ट मिलने के बाद मैं रंजन सिंह के घर पहुंचा. वहां देनों बेटे और बेटी भी मौजूद थे. बेटी रोरो कर बेहाल थी. मैं ने नींद की गोलियों की तलाश में अलमारी छान मारी पर कहीं कुछ नहीं मिला. उस की बेटी का कहना था कि उस का बापू नींद की गोलियां नहीं खाता था.

2 दिन बाद डीएसपी बारा सिंह खुद ढाब आ पहुंचा. वह बहुत गुस्से में था. कहने लगा, ‘‘सारी कहानी और सबूत सुगरा और नजीर की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कत्ल उन्होंने ही किया है. फौरन उन्हें गिरफ्तार कर के पूछताछ करो.’’

मैं ने उन दोनों को गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया और सख्ती भी की, पर दोनों रोते रहे, कसमें खाते रहे कि उन्होंने कुछ नहीं किया है. मैं डीएसपी के हुक्म के आगे मजबूर था. डीएसपी के जाने के बाद मैं ने सुगरा को छोड़ दिया, क्योंकि उस की हालत बहुत बुरी थी. वह बच्चों के लिए तड़प रही थी.

मेरी हमदर्दी सुगरा के साथ थी. क्योंकि वह बेकसूर लग रही थी, पर नींद की गोलियां का मामला साफ होने के बाद ही यकीन से कुछ कहा जा सकता था. मुझे यह पता करना था कि गोलियां कहां से खरीदी गई थीं. कस्बे में एक ही बड़ी दुकान थी. उस के मालिक गनपत लाल को मैं जानता था.

उस ने पूछताछ के बाद बताया कि करीब एक महीने पहले रंजन सिंह उस की दुकान से कुछ दवाइयां ले कर गया था, जिस में नींद की गोलियां भी शामिल थीं.

यह एक पक्का सबूत था. मैं ने उस से बयान लिखवा कर साइन करवा लिया. मैं वापस थाने पहुंचा तो सुगरा नजीर से मिलने आई थी. वही बुरे हाल, फटे कपड़े, रोता बच्चा, अखबार में लिपटी 2 रोटियां और प्याज. उसे देख कर बड़ा तरस आया. काश, मैं उस के लिए कुछ कर सकता.

दूसरे दिन गांव में एक झगड़ा हो गया. दोनों पार्टियां मेरे पास आ गईं. मैं उन दोनों की रिपोर्ट लिखवा रहा था. तभी मुझे खबर मिली कि ढाब का नंबरदार लहना सिंह मुझ से मिलने आया है. उस ने अंदर आ कर कहा, ‘‘नवाज साहब, मुझे आप से बहुत जरूरी बात करनी है. कुछ वक्त दे दें.’’

मुझे लगा कि वह इसी लड़ाई के बारे में कुछ कहना चाहता होगा. मैं ने उसे बाहर बैठ कर कुछ देर इंतजार करने को कहा. वह अनमना सा बाहर चला गया.

इस झगड़े में एक आदमी बहुत जख्मी हुआ था, जो अस्पताल में भरती था. काम निपटाते निपटाते 2 घंटे लग गए. फिर मैं ने लहना सिंह को बुलवाया तो पता चला वह चला गया है. मैं ने शाम को एक सिपाही को यह कह कर लहना सिंह के घर भेजा कि उसे बुला लाए.

पता चला कि वह अभी तक घर ही नहीं पहुंचा है. मुझे कुछ गड़बड़ नजर आ रही थी. 11 बजे के करीब लहना सिंह का छोटा भाई बलराज आया. कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, लहना सिंह का कहीं पता नहीं चल रहा है. हम सब जगह देख चुके हैं.’’

मैं परेशान हो गया, क्योंकि लहना सिंह का इस तरह से गायब होना किसी हादसे की तरफ इशारा कर रहा था. मैं ने बलराज से पूछा, ‘‘लहना सिंह की किसी से लड़ाई तो नहीं थी?’’

‘‘साहब, एक दो महीने पहले उन की चौधरी श्याम सिंह से जम कर लड़ाई हुई थी. दोनों एकदूसरे को मरने मारने पर उतारू थे. मेरा पूरा शक श्याम सिंह पर है.’’ मुझे मालूम था कि श्याम सिंह रसूखदार आदमी है.

उसी वक्त लहना सिंह का बेटा और एक दो लोग भागते हुए थाने आए और कहने लगे, ‘‘साहब, जल्दी चलिए. श्याम सिंह ने लहना सिंह को कत्ल कर दिया है या फिर जख्मी कर के अगवा कर लिया है. हवेली के पीछे मैदान में खून के धब्बे मिले हैं.’’

मैं फौरन मौका ए वारदात के लिए रवाना हो गया. उन दोनों की लड़ाई के बारे में मैं ने भी सुना था. श्याम सिंह शहर से एक तवायफ ले आया था, जिसे उस ने अपने डेरे पर रख रखा था. एक दिन मौका पा कर नशे में धुत लहना सिंह वहां पहुंच गया और उस ने दो साथियों के साथ उस तवायफ से ज्यादती कर डाली. इस बात को ले कर दोनों में बहुत झगड़ा हुआ था. यह बात गांव में सब को पता थी.

लहना सिंह की हवेली के पीछे एक सुनसान मैदान था. वहां शौर्टकट के लिए एक पगडंड़ी थी. वहीं पर कच्ची जमीन पर 3-4 जगह खून के धब्बे थे. वहीं पर लहना सिंह की एक जूती भी पड़ी थी. संघर्ष के भी निशान थे. कुछ दूर तक जख्मी को घसीट कर ले जाया गया था. उस के बाद उसे उठा कर ले गए थे. मैं ने मौके की जगह की अच्छी तरह जांच की. कुछ बयान लिए. लेकिन हादसे का चश्मदीद गवाह एक भी नहीं मिला.

मैं थाने पहुंचा तो देखा चौधरी श्याम सिंह शान से बैठा हुआ था. मैं ने उस से अकेले में बात करना बेहतर समझा. मैं ने कहा, ‘‘देखो चौधरी, लंबे चक्कर में पड़ना ठीक नहीं है. अगर लहना सिंह तुम्हारे पास है तो उसे बरामद करा दो. मैं कोई केस नहीं बनाऊंगा.’’

वह मुस्कुरा कर बोला, ‘‘नवाज साहब, हम केस से या कोर्ट कचहरी से नहीं डरते, पर सच्ची बात यह है कि मैं ने एक हफ्ते से लहना सिंह को नहीं देखा. हमारी लड़ाई जरूर हुई थी पर मुझे उसे उठा कर छुपाने की क्या जरूरत है?’’

छुपाने की बात कहते हुए वह कुछ घबरा सा गया था, इसलिए बात बदलते हुए फिर बोला, ‘‘मुझे पता नहीं है जी उस ने आप के क्या कान भर दिए और वह चंदर तो…’’ फिर वह एकदम चुप हो गया. मैं ने पूछा, ‘‘चंदर कौन?’’

‘‘जी…जी… वह कोई नहीं आप चाहे तो मेरा पर्चा कटवा दें.’’

मैं समझ गया कि कोई राज की बात थी, जो उस ने भूल से कह दी और अब छुपा रहा है. मुझे यकीन हो गया कि लहना सिंह के अगवा करने में उसी का हाथ है. 2-4 सवाल कर के मैं ने उसे जाने दिया. फिर लहना सिंह के बेटों को बुला कर समझाया कि कोई लड़ाईझगड़ा ना करे, हम शांति से उसे बरामद करेंगे.

मैं ने बिलाल शाह को भेजा कि मालूम करे कि चंदर किस का नाम है. दूसरे दिन बिलाल शाह खबर ले कर आया कि चंदर रंजन सिंह का ही दूसरा नाम है.

जवानी में वह पहलवानी करता था. लोग उसे चंदर कह कर पुकारते थे. मैं चौंका. इस का मतलब रंजन सिंह के कत्ल और लहना सिंह के गायब होने में कोई संबंध जरूर था. अब मुझे अफसोस हुआ कि काश मैं ने लहना सिंह की बात सुन ली होती.

मैं ने चौधरी श्याम सिंह की निगरानी शुरू करवा दी. इस काम के लिए मेरी नजर शांदा पर अटक गई. वह दाई थी. उस का चौधरियों के यहां खूब आनाजाना था. उन के घर के सभी बच्चे उसी के हाथों पैदा हुए थे. वह लालची या डरने वाली औरत नहीं थी. पर उस की एक कमजोरी मेरे हाथ आ गई थी. उसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए मैं ने उसे चौधरी  के खिलाफ मुखबिरी करने के लिए राजी कर लिया.

शांदा से खबर लाने का काम बिलाल शाह के जिम्मे था. तीसरे दिन बिलाल शाह ने आ कर बताया कि शांदा के मुताबिक हवेली का एक कारिंदा जोरा सिंह हवेली से बाहर हैं. पांचवे दिन एक खास खबर मिली कि नंबरदार लहना सिंह चौधरी श्याम सिंह के कारिंदे जोरा सिंह की कुएं वाली कोठरी में जख्मी हालत में बंद है.

पिछली रात जब जोरा सिंह चौधरी से मिलने आया था तो शांदा ने अपने बेटे को उस के पीछे लगा दिया था. उस ने देखा लहना सिंह कुएं के पास बने एक कमरे में बंद था. एक रायफल धारी उस का पहरा दे रहा था. शांदा के बेटे ने अपनी जान जोखिम में डाल कर बहुत बड़ी जानकारी प्राप्त की थी. मैं फौरन मुहिम पर रवाना हो गया. मैं ने अपनी टीम के साथ जोरा सिंह की कोठरी पर धावा बोल दिया.

उस वक्त सुबह के 9 बजे थे. खेतखलिहान सुनसान थे. किस्मत से श्याम सिंह बाहर गया हुआ था. हमें देखते ही जोरा सिंह ने छलांग लगाई और खेतों की तरफ भागा. मेरे हाथ में भरा हुआ रिवाल्वर था. मैं चिल्लाया, ‘‘रुक जाओ, नहीं तो गोली चला दूंगा.’’ लेकिन जोरा सिंह नहीं रुका. मैं ने उस की पिंडली का निशाना ले कर गोली दाग दी. वह औंधे मुंह गिरा.

उसे काबू कर के और उस के 2 आदमियों के हाथ से बंदूक छीन कर हम कमरा खुलवा कर अंदर पहुंचे. लहना सिंह एक कोने में खाट पर सुकड़ासिमटा पड़ा था. वह मुश्किल से पहचाना जा रहा था. उस के कपड़ों पर खून के धब्बे थे.

सिर पर जख्म था. 2 दांत टूटे हुए थे. एक कलाई टूट कर लटकी हुई थी. जिस्म पर कुल्हाड़ी के कई जख्म थे. वह बेहोश पड़ा था. हम उसे संभाल कर बाहर ले कर आए.

फायरिंग की आवाज से लोग जमा हो गए थे. लहना सिंह को इतनी बुरी हालत में देख कर सब हैरान रह गए. उस की एक जूती भी कमरे से बरामद हुई. मैं ने फौरन गाड़ी का इंतजाम कर के उसे अमृतसर के अस्पताल रवाना किया. उस के जख्म बहुत खराब हो चुके थे. अस्पताल पहुंचने के पांचवे दिन उस की तबीयत जरा संभली और वह बयान देने के काबिल हुआ.

उस से पहले ही मैं चौधरी श्याम सिंह और उस के भाई को गिरफ्तार कर चुका था. क्योंकि मुझे खतरा था कि लहना सिंह के बयान के बाद वह फरार हो जाएगा. चौधरी ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया और मुझे धमकियां दे रहा था. लहना सिंह के बयान के बाद चौधरी श्याम सिंह के खिलाफ केस मजबूत हो गया. अस्पताल के सर्जिकल वार्ड के बिस्तर पर लेटेलेटे लहना सिंह ने बहुत कमजोर आवाज में अपना बयान कलमबंद करवाया.

‘‘साहब, रंजन सिंह का कातिल चौधरी श्याम सिंह ही है. उस ने अपने बदमाश जोरा सिंह के जरिए उसे कत्ल करवाया है. मैं उस रोज थाने में यही खबर देने के लिए आप के पास आया था, पर बदकिस्मती से आप से बात नहीं हो सकी. आप अपने काम में बहुत मसरूफ थे.

‘‘मैं बैठेबैठे थक गया था. सोचा घर का एक चक्कर लगा लूं. मैं घर के पीछे पहुंचा ही था कि श्याम सिंह के बंदों ने मुझ पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया. फिर उठा कर ले गए और कुएं वाले कमरे में बंद कर दिया. बाकी जो कुछ हुआ वह आप के सामने है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘रंजन सिंह को कत्ल करने की कोई ना कोई वजह होगी. उस ने कत्ल क्यों किया? तुम निडर हो कर बोलो. तुम्हारा एकएक शब्द श्याम सिंह के खिलाफ गवाही बनेगा.’’

‘‘बड़ी खास वजह थी जनाब, रंजन सिंह के पास सोने का एक घंटा था. इस घंटे का वजन करीब 3 सेर था. जिस के पास 3 सेर खालिस सोना हो उसे कोई भी जान से मार सकता है. चौधरी श्याम सिंह को इस सोने का पता चल गया था. उस ने रंजन का कत्ल करवा कर सोना हड़प लिया. यह सोना चौधरी के पास ही है. उसे जूते पड़ेंगे तो सब सच बक देगा.’’

लहना सिंह की खबर बहुत सनसनीखेज थी. 3 सेर सोना उस वक्त भी लाखों रुपयों का था. मैं ने लहना सिंह से फिर पूछा, ‘‘यह घंटा रंजन को मिला कहां से था?’’

लहना सिंह ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘यह तो पक्का पता नहीं, पर रंजन अपनी दुकान पर पुराना सामान ले कर भी पैसे दिया करता था. सोने का वह घंटा भी किसी को जमीन में से मिला था. टूटाफूटा, मिट्टी में सना हुआ. उस का रंग भी काला था.

कोई देहाती बंदा उसे पीतल का समझ कर रंजन को कुछ सौ रुपए में बेच गया था. घंटे के साथ आधा किलो की एक जंजीर भी थी. रंजन बहुत चालाक आदमी था. उस ने लाहौर जा कर पता किया तो वह असली सोना निकला. उस ने जंजीर बेच दी और यह हवेली खरीदी. साथ ही शहर में अनाज की आढ़त का काम शुरू कर दिया. धूमधाम से बेटी की शादी की. फिर अपने लिए रिश्ता ढूंढने लगा.’’

मैं ने लहना सिंह से पूछा, ‘‘तुम्हें इन सारी बातों का कैसे पता चला?’’

उस ने एक लंबी कराह लेते हुए कहा, ‘‘उन दिनों मेरी और श्याम सिंह की अच्छी दोस्ती थी. वह सब बातें मुझे बताता था. उसे अपने किसी मुखबिर के जरिए पता लग चुका था कि रंजन के पास सोने का घंटा है. 3 सेर सोना कोई छोटी बात नहीं थी. उसने सोच लिया था कि रंजन का कत्ल कर के सोने पर कब्जा कर लेगा. यह बात उस ने मुझे खुद बताई थी.

‘‘उस वक्त वह शराब के नशे में था. जब 2 हफ्ते पहले रंजन का कत्ल हुआ तो मेरा ध्यान फौरन श्याम सिंह की तरफ गया. मुझे पूरा यकीन था रंजन को मार कर घंटा उसी ने गायब किया है. थानेदार साहब, मैं ने आप से वादा किया था झूठ नहीं बोलूंगा. मैं ने सारा सच बता दिया है, अब श्याम सिंह को फांसी के तख्ते पर पहुंचाना आप का काम है.’’

मैं ने ध्यान से उस का बयान सुना फिर पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें मारने की कोशिश क्यों की?’’

वह सिसकी ले कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने श्याम सिंह से कहा था कि सोने के घंटे में से मुझे भी हिस्सा दे, नहीं तो मैं यह बात पुलिस को बता दूंगा. पहले तो वह मुझे टालता रहा. जब मैं ने धमकी दी तो उस ने मेरा यह हाल कर दिया. उस दिन मैं आप को यही बात बताने आया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे खयाल में अब वह घंटा कहां है?’’

‘‘साहब, उस ने उस घंटे को हवेली में ही कहीं छुपा कर रखा है. हो सकता है कहीं गायब भी कर दिया हो.’’

मैं ने लहना सिंह को तसल्ली दी और अमृतसर से फौरन ढाब के लिए रवाना हो गया. ढाब पहुंचते ही हम ने चौधरी श्याम सिंह की हवेली पर धावा बोल दिया. चौधरी श्याम सिंह और उस का एक भाई गिरफ्तार थे. इसलिए खास विरोध नहीं हुआ. सारी हवेली की बारीकी से तलाशी ली गई. काफी मेहनत के बाद चावल के ड्रम में से सोने का घंटा बरामद हो गया.

घंटे को देख कर लगता था कि वह काफी दिन तक जमीन में गड़ा रहा था. निस्संदेह वह या तो किसी मंदिर का घंटा था या फिर किसी राजा महाराजा के हाथी के गले में सजता होगा. घंटे को जब्त कर के थाने में हिफाजत से रखवा दिया गया. उस जमाने में भी उस की कीमत करीब छह लाख होगी.

कोई बदनसीब उस घंटे को रंजन को 2-3 सौ में बेच गया था. इतना कीमती घंटा देख कर कई लोगों के ईमान डोलने लगे, पर मैं इमान का पक्का था. घंटे की बरामदगी बाकायदा दर्ज की गई.

फिर उसे हिफाजत से कस्बे के चौराहे पर नुमाइश के लिए रख दिया गया. इस का नतीजा बहुत अच्छा निकला. एक घंटे के बाद एक आदमी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘थानेदार साहब, मैं इस घंटे को पहचानता हूं. यह मैं ने सुगरा के आदमी नजीर के पास देखा था.’’

मैं भौंचक्का रह गया. फौरन पूछा, ‘‘तुम ने इसे उस के पास कब देखा था?’’

वह दिमाग पर जोर देते हुए बोला, ‘‘करीब 6-7 महीने पहले की बात है. मैं रंजन की दुकान पर खड़ा था. तभी नजीर वहां यह घंटा ले कर आया था. उस का रंग उस वक्त काला था और मिट्टी में लिथड़ा हुआ था. मेरे सामने ही रंजन ने उसे तराजू में डाला और तौल कर कुछ रुपए नजीर के हाथ पर रख दिए. उस के बाद मैं वहां से चला गया. पता नहीं फिर उन दोनों के बीच क्या बात हुई.’’

यह एक सनसनीखेज खबर थी कि लाखों का घंटा कौडि़यों में बिक गया और बेचने वाला दानेदाने को मोहताज था. गरीब नजीर जेल में बंद था. मैं फौरन सुगरा के घर पहुंचा, लेकिन घर बंद था. लोगों का खयाल था कि भूख और गरीबी से तंग आ कर रोजी की तलाश में वह किसी और कस्बे में चली गई होगी.

मुझे बेहद अफसोस हो रहा था. उस के मासूम बच्चे याद आ रहे थे. उसे तलाश करने का हुक्म दे कर मैं थाने आ गया. वहां से घंटा ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गए. क्योंकि नजीर अमृतसर में ज्यूडीशियल रिमांड पर जेल में था. मैं ने उसे कपड़े में लिपटा हुआ घंटा दिखा कर पूछा, ‘‘क्या यह घंटा कुछ महीने पहले तुम ने रंजन को बेचा था. इसे लाए कहां से थे?’’

‘‘हां बेचा था. मैं अपने घर से लाया था. बैसाखी के पहले की बात है साहब, एक दिन तेज बारिश हुई. मेरे घर की दीवार गिर गई. जब दोबारा दीवार उठाने के लिए बुनियाद रखी तो यह घंटा मिला.

बच्चे मचलने लगे मिठाई खाएंगे. मैं इसे ले कर रंजन के पास गया. उस ने इसे 50 रुपए में मुझ से खरीद लिया. मैं बच्चों के लिए मिठाई ले कर आ गया. कुछ घर का सामान खरीदा. पर साहब, आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने उसे टाल दिया और सिपाही से कह दिया कि सुगरा आए तो मुझ से जरूर मिलाए.

दूसरी दिन सुबह मैं अस्पताल पहुंचा. दरवाजे के करीब ही मुझे स्टै्रचर पर लहना सिंह की लाश मिल गई. बेचारा बेवजह मारा गया. चौधरी श्याम सिंह अब दोहरे कत्ल का दोषी था.

लहना सिंह के आखिरी बयान और हवेली से घंटा मिलने से वह पूरी तरह फंस गया था. अब यह बात भी समझ में आ गई थी कि रंजन सिंह सुगरा के खानदान पर मेहरबान क्यों था? क्यों उन की मदद करता था. क्योंकि वह उन्हीं के पैसे पर ऐश कर रहा था.

लोगों ने उस की बिना बात के बदनामी फैला दी थी. मैं ने सुगरा की तलाश में 2 लोग लगा दिए, पर उस का कोई पता नहीं चला. लहना सिंह के बयान के बाद सुगरा और नजीर बेकसूर साबित हो गए.

रंजन के पेट से मिलने वाली नींद की गोली का मसला भी हल हो गया था. वह उस ने खुद खरीद कर खाई थी. पहले बेटी के सामने वह नींद की गोली नहीं लाता था, पर बाद में लेने लगा. इसलिए उस की बेटी ने नहीं कहा था.

श्याम सिंह ने जोरा सिंह से रंजन का कत्ल  इसलिए करवाया था कि वह उस का सोने का घंटा हासिल कर सके. जब जोरा सिंह रंजन के घर घंटे को ढूंढ रहा था तो रंजन की आंख खुल गई. वह हिम्मत कर के जोरा सिंह पर टूट पड़ा. एक जमाने में वह पहलवानी करता था और चंदर के नाम से जानाजाता था.

उस ने अपने बाजूओं में उसे बुरी तरह से जकड़ लिया था. जरा सी छूट मिलते ही जोरा सिंह ने अपनी कृपाण से उस के सीने पर वार कर दिया. जब वह गिर गया तो छाती पर चढ़ कर उसे खत्म कर दिया. उसे मारने के बाद उस ने हवेली से घंटा ढूंढ लिया.

इस सारे मामले में सुगरा और नजीर शुरू से आखिर तक बेकसूर थे. उस वक्त के कानून के मुताबिक बरामद होने वाली चीज की हैसियत एंटीक ना हो और किसी का मालिकाना हक ना साबित हो पाए तो यह चीज उस शख्स की मानी जाती थी, जिस के घर से वह बरामद हुई हो.

वह घंटा नजीर के घर की टूटी दीवार से बरामद हुआ था. अगर सरकार मामले को हमदर्दी से देखती तो यह घंटा नजीर और सुगरा का था, भले ही वह उस की कीमत न समझ सके थे.

नजीर के जमानत पर रिहा होने के बाद सुगरा की तलाश और जोर पकड़ गई. मुझे कहीं से खबर मिली कि मरनवाल नाम के गांव में जो ढाब से करीब 20 किलोमीटर दूर था, वहां सुगरा के हुलिए की एक औरत दिखाई दी थी.

हम लोग वहां पहुंचे तो पता चला वह एक रिटायर्ड हवलदार के यहां काम कर रही थी. उस के घर पूछताछ करने पर उस ने बताया कि एक औरत 3 बच्चों के साथ उस के यहां पनाह लेने आई थी. उस ने उसे रख भी लिया था. फिर एक दिन चोरी करते पकड़ी गई तो मैं ने उसे निकाल दिया.

आसपास के लोगों से पता चला कि वह झूठ बोल रहा था. हवलदार की नीयत सुगरा पर खराब हो गई थी. सुगरा ने शोर मचा दिया. लोगों के पहुंचने पर उस ने सुगरा को मारपीट कर निकाल दिया. किसी ने बताया वह रामपुर की तरफ गई थी. उस बेगुनाह मजबूर औरत की तलाश में हम रामपुर पहुंचे और जगहजगह उस की तलाश करते रहे.

रामपुर के छोटे से अस्पताल में हमें सुगरा मिल गई, लेकिन वह जिंदा नहीं लाश की सूरत में मिली. उस के बच्चे वहीं बैठे रो रहे थे. उस की मौत दिमाग की नस फटने से हुई थी. इतने दुख और गरीबी की मार सह कर उस का बच पाना मुश्किल ही था. सुगरा की लाश ढाब पहुंची. पूरा कसबा जमा हो गया. सभी की आंखों में आंसू थे. नजीर रोरो कर पागल हो रहा था. अब लोग सुगरा की तारीफें कर रहे थे.

चौधरी श्याम सिंह और जोरा सिंह पर दोहरे कत्ल का इलजाम साबित हुआ. एक सुबह वह दोनों और उन के 2 साथियों की डिस्ट्रिक्ट जेल के अहाते में फांसी दे दी गई.

नजीर अपने तीनों बच्चों के साथ ढाब छोड़ कर चला गया. अब उस के पास इतनी रकम थी कि सारी उम्र बैठ कर खा सकता था. 3 सेर सोने के घंटे में से सरकार ने अपना तयशुदा सरकारी हिस्सा काटने के बाद बाकी नकद रकम नजीर के हवाले कर दी थी. इस के बाद 2-3 बार नजीर के घर की खुदाई की गई पर एक खोटा सिक्का नहीं मिला.

इस घटना के सालों बाद भी मैं उस मासूम और मरहूम सुगरा को नहीं भूल सका.

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

अपनी अपनी नजर : जीवन को देखने का नजरिया

story in hindi

मोहन यादव की नियुक्ति : तो इसलिए भाजपा का हो रहा कांग्रेसीकरण

मध्यप्रदेश की राजनीति यादवों के इर्दगिर्द इस चुनाव के दौरान कहीं भी नहीं दिखी थी जिस का खमियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा. यह अब डाक्टर मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद समझ आ रहा है. बिलाशक यह चौंका देने वाले फैसलों की एक और कड़ी है जिस के माने अच्छेअच्छों की समझ नहीं आ रहे.

अरुण यादव कांग्रेस का एक बड़ा नाम और चेहरा है जो चुनाव के दौरान गायब रहा. उन के पिता सुभाष यादव मध्यप्रदेश के उप मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्हें अपने दौर के कद्दावर ठाकुर नेता अर्जुन सिंह आगे लाए थे. निमाड़ इलाके में खासा दखल रखने वाले अरुण यादव को नतीजों के बाद सोनिया, राहुल गांधी ने तलब किया तो राजनातिक विश्लेषकों ने यह अंदाजा गलत नहीं लगाया कि अब कांग्रेस को वापस पिछड़े वर्ग की तरफ लौटना पड़ेगा, खासतौर से यादवों की तरफ जिन की प्रदेश में 12 फीसदी आबादी है.

लेकिन भाजपा ने नतीजों से सबक लेते हुए मोहन यादव को प्रदेश की कमान देते हुए एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं जिन में से पहला और अहम दिग्गजों की कलह को पनपने से रोकने का है. अब प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर सहित शिवराज सिंह चौहान को भी कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि इन में से खुश कोई नहीं है लेकिन बहुत ज्यादा दुखी भी कोई नहीं है. अगर कोई दुखी है, तो उस का इजहार लोकसभा चुनाव के वक्त वह कर सकता है.

58 वर्षीय मोहन यादव आरएसएस के अखाड़े के पहलवान हैं जिन के तलवार लहराते वीडियो शपथ लेने के पहले से वायरल होने लगे थे. उज्जैन के रहने वाले मोहन यादव भी मामूली खातेपीते घर के हैं जिन्होंने अपने नाम की घोषणा के साथ ही महाकाल के साथसाथ नरेंद्र मोदी का भी आभार व्यक्त किया. पुराने दिग्गजों को किनारे करते जो नई टीम नरेंद्र मोदी गढ़ रहे हैं एक तरह से मोहन यादव उस के वाइस कैप्टन हैं.

अब भाजपा ने खुद को इस आरोप से भी मुक्त कर लिया है कि वह यादवों से परहेज करती है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव को अब थोड़ा सतर्क रहना पड़ेगा क्योंकि भाजपा इन राज्यों में दूसरीतीसरी पंक्ति के यादव नेताओं की महत्त्वाकांक्षाओं को हवा देगी. मोहन यादव की ताजपोशी यादव कुनबे में सेंध लगाने का आगाज भी है.

नई पीढ़ी के मोहन यादव की तरह शिक्षित हो चले यादव यह दाना नहीं चुगेंगे, इस सवाल के जवाब में न कहने की कोई वजह नहीं, जिन में कास्ट फीलिंग कूटकूट कर भरी है. अब इन की निष्ठाएं हिंदुत्व के चलते बदल भी सकती हैं. ठीक वैसे ही जैसे दलितों और आदिवासियों की बदल रही हैं. यह और बात है कि हालफिलहाल इस बात की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा कि ये युवा भी बड़े पैमाने पर धर्मांधता का भी शिकार हो सकते हैं.

उत्तर प्रदेश में जो यादव कांग्रेस और जनसंघ का वोटबैंक हुआ करता था उसे 80 के दशक से ही मुलायम ने इकट्ठा करना शरू कर दिया था जिस के दम पर सपा ने वहां राज भी किया लेकिन इस दौरान जातिगत राजनीति में आए बदलावों के नएनए समीकरणों में ब्राह्मण-ठाकुर भाजपा के होते गए. बनिए और कायस्थ तो उस के साथ पहले से थे ही.

संघ परिवार की नई बिरादरी 

तीनों राज्यों में भाजपा को खासा और अप्रत्याशित बहुमत मिला है जिस के चलते वह नएनए प्रयोग करने का जोखिम भी उठा रही है. तेजी से यह सवाल भी सियासी गलियारों में पूछा जा रहा है कि अगर मोहन यादव और विष्णु साय जैसों के पीछे नरेंद्र मोदी हैं तो उन के पीछे कौन हैं जो वर्णव्यवस्था का नया स्ट्रक्चर खड़ा कर रहा है. यह ढांचा ठीक वैसा ही है जो कभी कांग्रेस के दौर में इंदिरा गांधी ने खड़ा किया था.

नरेंद्र मोदी के पीछे आरएसएस है जिस के मुखिया मोहन भागवत 5 वर्षों से जातिगत एकता का राग आलापते रहे हैं. इसी साल जब उन्होंने यह कहा था कि जातियां ब्राह्मणों ने गढ़ी हैं तो देशभर के ब्राह्मणों ने आसमान सिर पर उठा लिया था और उन से `सौरी` बुलवा कर ही दम लिया था.

कहने का मतलब यह नहीं कि भगवा गैंग छोटी जातियों को बराबरी का दर्जा देने को तैयार हो गई बल्कि हो यह रहा है कि वह ब्राह्मणों को यह मेसेज दे रही है कि अगर वर्चस्व बनाए रखना है तो इन नए पुरोहितों को उन की आबादी के मुताबिक हिस्सा तो देना ही पड़ेगा. राज और दबदबा धर्म का ही रहेगा, यह गारंटी मोदी के जरिए दी और दिलवाई जा रही है. अयोध्या में 22 जनवरी को जो भव्य आयोजन होगा उस में सारे धार्मिक सूत्र श्रेष्ठि वर्ग के हाथों में ही रहेंगे.

‘जिस की जितनी आबादी उतनी उस की भागीदारी’ वाला कांशीराम का फार्मूला अब कम से कम सियासी गलियारों में चलता दिख रहा है लेकिन प्रशासन सवर्णों के हाथों में सिमट रहा है ऐसे में राहुल गांधी के यह पूछने के माने खत्म हो जाते हैं कि इतने और उतने सैक्रेट्री ओबीसी के हैं तो बताओ उन के हाथ में है क्या.

उन के हाथ में अब कुछ राज्यों की सत्ता है जिस के लिए वे खाकी नेकर पहन कर नव हिंदुत्व के पैरोकार बन रहे हैं तो चिंता अब कांग्रेस, सपा और जेडीयू जैसे दलों को करना चाहिए कि उन की असल लड़ाई है किस से और 2024 में किस की भूमिका क्या होगी? मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने बुदेलखंड की खूब ख़ाक छानी थी लेकिन उन्हें मिला कुछ नहीं, उलटे सपा ऐतिहासिक दुर्गति का शिकार हो कर रह गई.

कमलनाथ ने बेहद अपमानजनक तरीके से अखिलेश यादव के बारे में कहा था कि ये अखिलेश वखिलेश कौन. तभी समझने वालों की समझ आ गया था कि यादवों के स्वाभिमान को ठेस लगी है. चूंकि सपा की दुर्गति का आभास यादवों को था इसलिए वे भाजपा को वोट दे आए.

उन के इस फैसले पर अब भाजपा ने मोहर लगा दी है तो सभी सकपकाए हुए हैं और गलती अभी भी इसे सियासी नजरिए से देखने की ही कर रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि इस और ऐसे फैसलों को सामाजिक नजरिए से देखा जाए कि वर्णव्यवस्था का यह नया स्वरूप पिछड़ों को पिछड़ा रखने के लिए ही है.

योगी के सुशासन और अपराधमुक्त प्रदेश के दावे पर करारी चोट है चलती कार में गैंगरेप

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले सुशासन और अपराधमुक्त प्रदेश बना लेने के बड़ेबड़े दावे करते रहें मगर हकीकत यह है कि प्रदेश में न तो सुशासन है, न पुलिस का कोई डर है. अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि दिनदहाड़े लड़की को कार में घसीट लिया जाता है. ट्रैफिक से भरी सड़कों पर कार में ही उस के साथ गैंगरेप किया जाता है. 6 थानाक्षेत्रों से हो कर कार गुजरती है.लखनऊ से ले कर बाराबंकी तक कोई 20 किलोमीटर के रास्ते पर भागती गाड़ी पर किसी पुलिसकर्मी की नजर नहीं पड़ती जिस में एक बच्ची अपनी इज्जत बचाने की कोशिश में चीख रही थी, दरिंदों से लड़ रही थी.

उत्तर प्रदेश की राजधानी में एक सेवानिवृत्त अफसर की बेटी से चलती कार में सामूहिक बलात्कार हो रहा था और पुलिस सो रही थी. 22 साल की अनुजा (परिवर्तित नाम) लखनऊ के किंग जौर्ज मैडिकल कालेज में अपने इलाज के सिलसिले में जाती थी. उस को कुछ मानसिक समस्या थी जिस का ट्रीटमैंट मानसिक रोग विभाग में चल रहा था. वह अकसर वहां जाती थी. कई बार भीड़ होने के कारण बाहर चाय की दुकान पर बैठ जाती थी. इस बीच वहां काम करने वाले मड़ियांव के सत्यम मिश्र से उस की जानपहचान हो गई. 5 दिसंबर को अनुजा इलाज के लिए अस्पताल गई और डाक्टर को दिखाने के बाद वह सत्यम की दुकान पर चाय पीने लगी.

इस दौरान उस का मोबाइल फोन बंद हो गया. अनुजा ने सत्यम से कहा तो उस ने बाजारखाला के मो. असलम (चालक) की एंबुलेंस में उस का मोबाइल फोन चार्जिंग पर लगवा दिया. कुछ देर बाद अनुजा ने अपना फोन मांगा तो सत्यम ने कहा कि चालक एंबुलेंस ले कर डालीगंज चला गया है. सत्यम ने अनुजा को बातों में फंसा कर उस को ईरिकशे से डालीगंज ले आया. वहां उस ने किसी को फोन किया और अनुजा से कहा कि एंबुलेंस आईटी चौराहे पर है.

दोनों आईटी चौराहे पहुंचे.वहां अनुजा को उस का मोबाइल फोन दिलाया मगर तभी 2 लड़के – मो. सुहैल और असलम एक वैगनार कार से वहां आए और उन्होंने सत्यम और अनुजा को कार में यह कह कर बैठा लिया कि वे उन्हें मैडिकल कालेज छोड़ देंगे. इस के बाद कार तेजी से सड़क पर भागने लगी.

केडी सिंह बाबू स्टेडियम के पास से आरोपियों ने 5 कैन बियर के खरीदे. लखनऊ की सीमा से निकल कर कार बाराबंकी के सफेदाबाद स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वहां उन लोगों ने खाना खाया. सत्यम लगातार अनुजा को बातों में उलझाए रहा. ढाबे पर ही उन लोगों ने अनुजा को जबरन कोई नशीला पदार्थ पिलाया. जब वह नशे में हो गई तो उसे कार में डाल कर तीनों ने चलती कार में एक के बाद एक उस का बलात्कार किया. अनुजा नशे के बावजूद चीखती रही,खुद को बचाने के लिए लड़ती रही लेकिन दरिंदों ने उस को छोड़ा नहीं बल्कि उस की पिटाई भी की.

पहले लखनऊ से बाराबंकी तक और फिर बाराबंकी से ले कर लखनऊ तक कोई 20-25 किलोमीटर तक यह कार सड़क पर दौड़ती रही. वे युवक युवती से दरिंदगी करते रहे. उस का नग्न वीडियो बनाया और अंत में मुंशी पुलिया पर कार रोक कर तीनों बलात्कारियों ने रात साढ़े बारह बजे अनुजा को सड़क पर फेंका और निकल भागे.

यह घटना है 5 दिसंबर की. बाराबंकी के सफेदाबाद से ले कर मुंशी पुलिया तक 20 किलोमीटर की दूरी में कई थाने और पुलिस चौकियां हैं. सड़क पर अगर कहीं भी पुलिस सक्रिय होती, तो नशे में 7 घंटे तक कार दौड़ा रहे आरोपी उसी समय पकड़ में आ जाते. लेकिन प्रदेश पुलिस सो रही थी. प्रदेश के पुलिस कमिश्नर योगी सरकार की जयजय कार करते हुए अपराधमुक्त प्रदेश का बिगुल फूंकते हैं, जगहजगह बैरिकेटिंग, पिकेट, चैकिंग और मुस्तैदी का ढोल पीटते हैं मगर सचाई इस के बिलकुल उलट है.

अनुजा काफी डरीसहमी थी. मुंशी पुलिया से वह किसी तरह अपनी एक सहेली के घर पहुंची और उस को सारी बात बताई. फिर किसी तरह अपने घर पहुंची. इस के बाद रविवार को उस ने हिम्मत जुटाई और सारी बात परिवारजनों को बताई. इस के बाद तीनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और तीनों को पकड़ा गया.

अनोखी शादी : न लिया दहेज, न ही बुलाए पंडेपुजारी

हाल ही में धार्मिक रस्मों को नजरअंदाज कर बिहार के जमुई में एक युवा जोड़े ने बगैर दहेज के शादी रचाई. इस शादी में न दहेज का लेनदेन हुआ, न ही बैंडबाजा, बाराती दिखे और न ही पंडित या पुरोहित ही. संविधान का शपथ ले कर आशीष नारायण और निशा कुमारी शादी के बंधन में बंध गए. इस तरीके से शादी करने का निर्णय दोनों ने खुद लिया था.

अलग सोच

यह अनोखी शादी बीते 28 नवंबर को जमुई के एक विवाह भवन में संपन्न हुई. शादी के बंधन में बंधे सरकारी आईटीआई कालेज में पढ़ाने वाले इंजीनियरिंग में एमटेक पास आशीष और एमकौम कर रही निशा की सोच इस मामले में कुछ अलग दिखी.

इन्होंने परंपरा से अलग अपने दिमाग की सुन कर इस शादी को अंजाम दिया जिस में न तो वैदिक मंत्रोच्चारण हुआ और न ही अग्नि को साक्षी मान कर दूल्हादुलहन ने सात फेरे लिए.

दूल्हादुलहन ने एकदूसरे को माला पहनाने के बाद संविधान के विवाह विशेष अधिनियम 1954 के तहत शपथ ली और शादी के बंधन में बंध गए.

संविधान की शपथ क्यों

अपनी इस शादी के बारे में दूल्हे आशीष नारायण का कहना था कि पतिपत्नी के बीच अगर किसी तरह का विवाद होता है तो अदालत में मंत्र और अग्नि की गवाही नहीं होती. विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अनुसार उन्होंने प्रेम और आपसी संबंध के साथ स्वतंत्र रूप से एकदूसरे के विचारों को सहर्ष स्वीकार किया है.

अगर भविष्य में इन दोनों के बीच कुछ विवाद होता है तो उस के समाधान के लिए कोर्ट और कानून का सहारा लेना पड़ता है. यही कारण है कि उन्होंने संविधान का शपथ ले कर शादी करने का निर्णय लिया है.

फुजूलखर्ची से बचने के लिए

आशीष नारायण के अनुसार, उस ने इस शादी में लड़की वालों से किसी तरह की दहेज की मांग नहीं की थी. अगर लड़की वालों ने उपहार दिए भी तो अपनी बेटी को अपनी इच्छा से दिए. शादी के बंधन में बंधी निशा कुमारी ने बताया कि फुजूलखर्ची और आडंबर से बचने के लिए उन्होंने सोचसमझ कर इस तरीके को अपनाया, जिस से दोनों खुश हैं.

इस बीच 1 दिसंबर को हरियाणा के जींद में भी बिना दहेज की शादी हुई. कार्यक्रम में आने वाले मेहमानों को पौधे बांटे गए और पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया.

मिसाल बन गई शादी

जींद की हाऊसिंग बोर्ड कालोनी निवासी नरेंद्र के लैक्चरर बेटे डा. सुनील बूरा ने बिना दहेज की शादी कर मिशाल पेश की तो शादी के कार्यक्रम में आने वाले सभी मेहमानों को पौधे भेंट कर पर्यावरण सरंक्षण का भी संदेश दिया.

डा. सुनील ने बहुत ही साधारण तरीके से बिना किसी शोर शराबे के हिंदू रीतिरिवाजों के साथ डा. श्वेता के साथ शादी की और शादी में किसी तरह का दानदहेज नहीं लिया.

शहर में आयोजित कार्यक्रम में जहां जानपहचान वालों को दावत दी गई, तो वहीं गरीबों को खाना खिलाया गया. शहर में कई सार्वजनिक जगहों पर पौधे रखवाए गए. शादी के कार्यक्रम में आने वाले मेहमानों को भी पौधे भेंट किए गए.

इसी तरह 8 दिसंबर को हरियाणा के जींद में भी बिना दहेज और बिना फेरों की शादी हुई. इस के विरोध में पंडेपुजारियों ने इस परिवार को धमकियां भी दीं. शादी से जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए.

जाहिर है, पंडितपुजारी ऐसी शादियों का विरोध करेंगे ही. आखिर उन की तथाकथित काल्पनिक सत्ता जो हिल रही है. उन की धर्म की दुकान पर संकट जो गहराने लगा है. एक को देख कर 10 लोग और ऐसा करने की सोचेंगे. इस तरह समाज में ब्राह्मणवादी साम्राज्य की नींव हिलने का डर पैदा होगा तो पाखंड के नाम पर जेबें भरने वाले बौखलाएंगे ही.

धर्म और पाखंड

सदियों से ब्राह्मणों ने धर्म और पाखंड के नाम पर झूठ को सच बना कर परोसा है। जन्मपत्री, कुंडली, वैदिक मंत्रों, फेरों और रीतिरिवाजों को शादी जैसे सामाजिक कार्यों के लिए अनिवार्य बनाया है. पर जरा सोचिए कि जिन देशों में इस तरह के पाखंडों का वजूद नहीं, जहां पत्रियां देख कर शुभ मुहूर्त नहीं निकाले जाते, जहां कुंडली मिलान नहीं होता, जहां दानदहेज देने या फेरों और मंत्रों की जरूरत नहीं होती क्या वहां शादियां सफल नहीं हो रहीं? क्या वहां लोग खुशहाल जीवन नहीं जी रहे?

यह सब रुढ़िवादी परंपरा के अलावा कुछ नहीं. वैज्ञानिक दृटिकोण से देखने पर समझ आएगा कि इन पाखंडों की जरूरत नहीं.

लोगों को बेवकूफ बनाना

लोगों को बेवकूफ बना कर धन ऐंठना और लोगों को डरडर कर जीने को विवश करना ही ज्यादातर पंडेपुजारियों की फितरत होती है. दानदहेज जैसी कुप्रथाएं भी हमारे रूढ़िवादी समाज की देन हैं जिन से लड़ना आज के पढ़ेलिखे और खुली सोच रखने वाले युवाओं और उन के अभिभावकों का दायित्व है.

बदलते जमाने के साथ स्त्रीपुरुष के रिश्ते बदले हैं. घर में उन का वजूद बदला है. फिर लोगों की सोच बदलने में देर क्यों?

शादी 2 परिवारों का मिलन है. इस में दानदहेज और पाखंडों की नहीं बल्कि प्यार और एकदूसरे को समझने की जरूरत होती है.

विधुर पापा : एकाकीपन दूर करने की पुरुष की चाहत

चांदीलाल आरष्टी के एक कार्यक्रम से स्कूटी से वापस लौट रहे थे. उन्हें घर वापसी में देरी हो गई थी. जैसे ही ‘सदर चैराहे‘ पर पहुंचे, तो उन की नजर शराब की दुकान पर पड़ी. उन्हें तुरंत ध्यान आया कि घर पर शराब की बोतल खाली हो गई थी और शाम की खुराक के लिए कुछ नहीं है.

उन्होंने स्कूटी एक ओर खड़ी की और अंगरेजी शराब का एक पव्वा खरीद लिया, जो उन की 2-3 दिन की खुराक थी. जब वे स्कूटी से घर की ओर चले तो उन्हें ध्यान आया कि पुलिस विभाग में भरती होने से पहले वे शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. फिर अपने विभाग के साथियों के साथ उठतेबैठते उन्हें शराब पीने की लत लग गई थी. सिस्टम में कई चीजें अपनेआप होने लगती हैं और उन से हम कठोर प्रण कर के ही बच सकते हैं. अब तो पीने की आदत ऐसी हो गई है कि शाम को बिना पिए निवाला हलक से नीचे उतरता ही नहीं.

घर पहुंच कर चांदीलाल ने अपने खाली मकान का ताला खोला. रसोई से ताजा खाने की गंध सी आ रही थी. इस का मतलब था कि घर की नौकरानी स्वीटी खाना बना कर जा चुकी थी. आनंदी के गुजरने के बाद मुख्य दरवाजे और रसोई की चाबी स्वीटी को दे दी गई थी, जिस से वह समय से खाना बना कर अपने घर जा सके.

आनंदी के बिना घर वीरान सा हो गया था. यही घर, जिस में आनंदी के रहते कैसी चहलपहल सी रहती थी, रिश्तेदारों और जानपहचान वालों का आनाजाना लगा ही रहता था, अब कैसा खालीखाली सा रहता है. घर का खालीपन कैसा काटने को दौड़ता है. सबकुछ होते हुए भी, कुछ भी न होने का एहसास होता है. केवल और केवल अकेला आदमी ही इस एहसास को परिभाषित कर सकता है. किसी ने सच कहा है ‘घर घरवाली का‘. वह है तो घर है, नहीं तो मुरदाघाट.

चांदीलाल को अब शराब की खुराक लेने की जल्दी थी. उन्होंने पैंटशर्ट उतारी और नेकरबनियान पहने हुए ही पैग तैयार करने लगे. तभी उन्हें ध्यान आया कि वे जल्दबाजी में पानी लाना तो भूल ही गए हैं. पुरानी आदतें मुश्किल से ही मरती हैं. आदतन, उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘आनंदी, जरा एक गिलास पानी तो लाना.‘‘

लेकिन जब कुछ देर तक पानी नहीं आया, तो चांदीलाल ने रसोई की तरफ देखा. वहां कोई नहीं था. अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, फिर अफसोस हुआ और इस के बाद आनंदी को याद कर उन की आंखें भर आईं. वह उठे और पानी लेने के लिए खुद रसोई की तरफ गए.

एक पैग लेने के बाद, वे सोचने लगे कि अपनी मां की 13वीं के बाद मंझली बेटी रजनी ने उन से कितनी जिद की थी जयपुर चलने की. भला क्या कहा था उस ने, ”पापा, जयपुर में हमारे पास कितना बड़ा मकान है, एक कमरे में आप रह लेना. आप का अकेलापन भी दूर हो जाएगा और आप की देखभाल भी अच्छे से हो जाएगी.”

यही बात नागपुर में रहने वाली बड़ी बेटी सलोनी और इसी शहर में रहने वाली सब से छोटी बेटी तारा ने भी कही थी. फिर वे सोचने लगे, ‘‘मैं भी कितना दकियानूसी और रूढ़िवादी हूं. भला इस जमाने में बेटाबेटी में क्या फर्क है? कितने ही लोग हैं, जो बेटा न होने के कारण अपना बुढ़ापा बेटी और दामाद के घर गुजारते हैं और एक मैं हूं पुराने खयालातों का, जो अपनी बेटी के घर का पानी भी पीना पसंद नहीं करता, उन के यहां रहना तो बहुत दूर की बात.

चांदीलाल का दूसरा पैग बनाने का मन तो नहीं था, लेकिन अब शराब किसी दोस्त की संगति की तरह अच्छी लगती थी. शराब पीना और फिर नशे में बड़बड़ाना अकेलेपन को दूर करने का एक अच्छा जरीया भी तो था. शराब पी कर खाना खाने के बाद नींद भी तो अच्छी आती थी. फिर वह खाना खाने के बाद थकान और नशे की धुन में नींद के आगोश में चले गए.

चांदीलाल पूजापाठी थे. उन की सुबह स्नानध्यान से शुरू होती. नौकरी से रिटायर होने के बाद कोई खास काम तो था नहीं, अखबार पढ़ते, टीवी देखते और पौधों में पानी लगाते. कभी कोई मेहमान आ जाता तो उस के साथ गपशप कर लेते. लेकिन कुछ जानपहचान के लोग ऐसे थे, जो अब कुछ ज्यादा ही आने लगे थे. ये वे मेंढक थे, जो मौका पा कर बारिश का मजा लेना चाहते थे.

ऐसा ही एक मेहमान था चांदीलाल का दूर का भतीजा शक्ति सिंह. वह प्रोपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह जब भी आता घुमाफरा कर चांदीलाल से उन के मकान की चर्चा करता, ‘‘चचा, आप का यह मकान 50 लाख रुपए से कम का नहीं है. बेटियां तो आप की बाहर रहती हैं, आप के बाद इस मकान का क्या होगा?‘‘

‘‘क्या होगा? मेरे मरने के बाद मेरी प्रोपर्टी पर मेरी बेटियों का अधिकार होगा,‘‘ चांदीलाल उसे समझाते.

‘‘लेकिन, जयपुर और नागपुर वाली बेटियां तो यहां लौट कर आने वाली नहीं. रही बात तारा की, तो उस के पास तो खुद इस शहर में इतना बड़ा मकान है, वह भी आधुनिक तरीके से बना हुआ. वह इस पुराने मकान का क्या करेगी?‘‘

‘‘कोई कुछ करे या न करे, शक्ति तुम से मतलब?‘‘ चांदीलाल कुछ तल्ख लहजे में बोले.

‘‘अरे, आप तो नाराज होने लगे. मैं तो आप की मदद करना चाहता था, आप के मकान की सही कीमत लगा कर.‘‘

‘‘फिर मैं कहां रहूंगा, शक्ति? क्या तुम ने यह कभी सोचा है?‘‘ चांदीलाल ने सवाल दागा.

‘‘चचा, अगर कुछ पैसे ले कर आप यह मकान मेरे नाम कर दो, तो आप मेरे ही पास रह लेना. आखिर मैं आप का भतीजा हूं, बिलकुल आप के बेटे जैसा. आप के बुढ़ापे में आप की सेवा मैं ही कर दूंगा.‘‘

चांदीलाल कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो शक्ति सिंह की बात का मतलब न समझ रहे हों. उन्होंने नहले पे दहला जड़ते हुए कहा, ”शक्ति, तुम्हें मेरी सेवा की इतनी ही चिंता है तो ऐसे ही मेरी सेवा कर दो, अपने नाम क्या मकान लिखवाना जरूरी है. और वैसे भी तुम को एक बात और बता दूं, तुम जैसों से ही बचने के लिए आनंदी पहले ही इस मकान की वसीयत मरने से बहुत पहले ही अपनी बेटियों के नाम कर चुकी थी, क्योंकि आनंदी को इस मामले में मुझ पर भी विश्वास नहीं था. वह सोचती थी कि शक्ति सिंह जैसा कोई व्यक्ति कहीं मुझे अध्धापव्वा पिला कर नशे की हालत में मुझ से यह प्रोपर्टी अपने नाम न करवा ले. शक्ति सिंह तुम्हें देख कर आज सोचता हूं कि आनंदी का फैसला कितना सही था?”

शक्ति सिंह समझ गया कि यहां उस की दाल गलने वाली नहीं. वह बहाना बना कर चलने के लिए उठा, तो चांदीलाल ने कटाक्ष करते हुए कहा, ”अरे बेटा, चाय तो पीता जा. अभी हमें सेवा का मौका दे, फिर तुम हमारी सेवा कर लेना.”

लेकिन इतनी देर में शक्ति सिंह अपनी कार में बैठ चुका था और उस दिन के बाद वह अपने इन चचा से मिलने फिर कभी नहीं आया.

कुछ ही देर बाद चांदीलाल का एक पुराना परिचित चंदन आ धमका. वह किसी पक्के इरादे से आया था, इसलिए चांदीलाल से लगभग सट कर बैठा. फिर बात को घुमाफिरा कर अपने इरादे पर ले आया.

‘‘भाईसाहब, अकेलापन भी बहुत बुरा होता है. खाली घर तो काटने को दौड़ता है,‘‘ चंदन ने भूमिका बनानी शुरू की.

‘‘हां चंदन, यह तो है. लेकिन क्या करें, किस ने सोचा था कि आनंदी इतनी जल्दी चली जाएगी. बस अब तो यों ही जिंदगी गुजारनी है. अब किया ही क्या जा सकता है?‘‘

‘‘नहीं भाईसाहब, यह जरूरी तो नहीं कि जिंदगी अकेले काटी जाए,‘‘ चंदन ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

‘‘चंदन, और इस उम्र में करना क्या है? तीनों बेटियों का घर अच्छे से बसा हुआ है. वे सुखी हैं तो मैं भी सुखी हूं.‘‘

चंदन तो अपने मकसद से आया था. वह बोला, ”अरे भाईसाहब, क्या कहते हो? इस उम्र में क्या नहीं किया जा सकता? मर्द कभी बूढ़ा होता है क्या?”

उस की बात पर चांदीलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘चंदन, तुम भी अच्छा मजाक कर लेते हो. अब तो तुम कवियों और दार्शनिकों की तरह बात करने लगे हो. मैं कोई शायर नहीं कि कल्पना लोक में जिऊं. मैं ने पुलिस विभाग में नौकरी की है. मेरा वास्तविकताओं से पाला पड़ा है, मैं पक्का यथार्थवादी हूं. 60 साल की उम्र में सरकार रिटायर कर देती है और मैं 65 पार कर चुका हूं.‘‘

लेकिन चंदन हार मानने वालों में से नहीं था. उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, इस उम्र में तो न जाने कितने लोग शादी करते हैं. आप भी पीछे मत रहिए, शादी कर ही लीजिए. एक लड़की मतलब एक औरत मेरी नजर में है, यदि आप चाहो तो बात… ‘‘

‘मतलब चंदन, तुम्हें कोई शर्मलिहाज नहीं. भला, मैं इस उम्र में दूसरी शादी कर के समाज में क्या मुंह दिखलाऊंगा? मेरी बेटियां और दामाद क्या सोचेंगे?’

अब चंदन चांदीलाल के और निकट सरक आया और आगे बोला, ‘अरे भाईसाहब, यह जमाना तो न जाने क्याक्या कहता है? लेकिन यह जमाना यह नहीं जानता कि अकेले जीवन काटना कितना मुश्किल होता है?’

”कितना भी मुश्किल हो चंदन, लेकिन इस उम्र में दूसरा विवाह करना शोभा नहीं देता.”

‘‘भाईसाहब, अभी तो आप के हाथपैर चल रहे हैं, लेकिन उस दिन की तो सोचिए, जब बुढ़ापे और कमजोरी के कारण आप का चलनाफिरना भी मुश्किल हो जाएगा. अपनी रूढ़िवादी सोच के कारण आप अपनी बेटियों के पास तो जाओगे नहीं. अपने भाईभतीजों से भी आप की बनती नहीं. तब की सोचिए न, तब क्या होगा?‘‘ चंदन ने आंखें चौड़ी करते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से कहा.

यह सुन कर चांदीलाल सोचने को मजबूर हुए. उन्हें लगा कि चंदन कह तो सच ही रहा है, लेकिन वह अपनेआप को संभालते हुए बोले, ‘‘चंदन, तब की तब देखी जाएगी.”

‘‘देख लो भाईसाहब. जरूरी नहीं, आप को सरोज जैसी अच्छी और हसीन औरत फिर मिल जाए. अच्छा, एक काम करो, एक बार बस आप सरोज से मिल लो. मैं यह नहीं कह रहा कि आप उस से शादी ही करो. लेकिन, एक बार उस से मिलने में क्या हर्ज है?‘‘

‘‘मिलने में तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन यदि मेरी बेटियों को यह सब पता चला तो…?‘‘ चांदीलाल ने प्रश्न किया.

‘‘उन्हें तो तब पता चलेगा, जब हम उन्हें पता चलने देंगे,‘‘ चंदन ने बड़े विश्वास के साथ कहा. तब तक स्वीटी उन के लिए चाय बना कर ले आई थी. चाय पी कर चंदन चला गया.

फिर चंदन एक दिन सरोज को चुपचाप कार में बैठा कर चांदीलाल के घर ले आया. चांदीलाल को सरोज पहली ही नजर में भा गई. वे सोचने लगे, ‘बुढ़ापे में इतना हसीन साथी मिल जाए तो बुढ़ापा आराम से गुजर जाए.‘

महिलाओं के आकर्षणपाश में बड़ेबड़े ऋषिमुनि फंस गए, चांदीलाल तो फिर भी एक साधारण से इनसान थे, आखिर किस खेत की मूली थे.
अब बात करवाने में चंदन तो पीछे रह गया, चांदीलाल खुद ही मोबाइल पर रोज सरोज से बतियाने लगे. जब चंदन और सरोज की सारी गोटियां फिट बैठ गईं, तो एक दिन चंदन ने चांदीलाल से कहा, ‘‘भाईसाहब, एक बार सलोनी, रजनी और तारा बिटिया से भी बात कर लेते.‘‘

लेकिन, अब तक तो चांदीलाल के सिर पर बुढ़ापे का इश्क सवार हो चुका था. वे किसी भी हाल में सरोज को नहीं खोना चाहते थे. चंदन की बात को सुन कर वे एकदम से बोले, ‘‘नहीं, नहीं, चंदन. मैं अपनी बेटियों को अच्छे से जानता हूं, वे सरोज को घर में घुसने भी नहीं देंगी. पहले सरोज से कोर्टमैरिज हो जाने दो, फिर देखा जाएगा.‘‘

चंदन समझ गया कि चांदीलाल के इश्क का तीर गहरा लगा है. उस की योजना पूरी तरह से सफल हो रही है.

फिर एक दिन चंदन योजनाबद्ध तरीके से सरोज को आमनेसामने की बातचीत कराने के बहाने चांदीलाल के घर ले कर पहुंचा. बातचीत पूरी होने के बाद चंदन ने कहा, ‘‘ठीक है भाईसाहब, मैं चलता हूं. रात भी बहुत हो चुकी है. आज रात सरोज यहीं रहेगी. आप दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझ लो, मैं सुबह को सूरज उगने से पहले ही यहां से ले जाऊंगा.‘‘

चांदीलाल को भला इस में क्या एतराज हो सकता था, वह तो खुशी के मारे गदगद हो गए.

‘‘सुना है, आप शाम को ड्रिंक भी करते हैं.‘‘

‘‘हां सरोज, लेकिन तुम्हें कैसे पता?‘‘

‘‘चंदन ने हमें सबकुछ बता रखा है आप के बारे में,‘‘ सरोज ने चांदीलाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘अच्छा… तो फिर पानी ले आओ, मैं अपना पैग बना लेता हूं,‘‘ चांदीलाल ने सरोज का हाथ स्पर्श करते हुए कहा.

‘‘आप क्यों कष्ट उठाइएगा. पैग भी हम ही बना देंगे. लेकिन, एक बात पूछनी थी, पूछूं?‘‘

‘‘क्या बात करती हो, सरोज? एक नहीं दस पूछो,‘‘ चांदीलाल ने प्यारभरी नजरों से सरोज को निहारते हुए कहा.

‘‘आप हमारे लिए क्या करोगे?‘‘

‘‘सरोज, बड़ी बात तो नहीं. जो कुछ मेरा है, वह सब तुम्हारा ही तो है. बस, इस मकान को छोड़ कर, इस की वसीयत बेटियों के नाम है.‘‘

यह सुन कर सरोज कुछ निराश हुई और पानी लेने के बहाने रसोई में गई. वहां जा कर उस ने मोबाइल से चंदन से बात करते हुए कहा, ‘‘चंदन, यह मकान बुड्ढे के नाम नहीं है.‘‘

उधर से आवाज आई, ‘‘तो फिर अपना काम बना कर रफूचक्कर हो जा, नहीं तो बुड्ढा तेरे से कोर्टमैरिज कर के ही मानेगा.‘‘

उधर चांदीलाल बेचैन हो रहा था. सरोज के पानी लाते ही उन्होंने पूछा, ‘‘सरोज, अपना हाथ आगे बढ़ाओ.‘‘

सरोज ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो उस की उंगली में सोने की अंगूठी पहनाते हुए चांदीलाल ने कहा, ‘‘सरोज, यह आनंदी की अंगूठी है. अब तुम ही मेरी आनंदी हो.‘‘

सरोज ने चांदीलाल का पैग बनाते हुए नशीली आंखों से कहा, ‘‘लीजिए, जनाब की लालपरी तैयार है. लेकिन पी कर बेसुध मत हो जाइएगा, कभी किसी काम के न रहिएगा.‘‘

चांदीलाल इन शब्दों का अर्थ अच्छे से समझते थे. लेकिन यह क्या? वह तो पहला पैग पीते ही बेसुध हो गए.

सुबह के समय जब उन की आंखें खुली तो वह अभी भी अपने को नशे की चपेट में महसूस कर रहे थे. टायलेट जाते समय भी उन के पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्हें ध्यान आया कि शराब पी कर तो वे कभी ऐसे बेसुध नहीं हुए. टायलेट से आ कर वे सरोज को तलाशने लगे. लेकिन वह कहीं हो तो दिखाई दे. इधरउधर नजर डाली तो देखा, सेफ और अलमारियां खुली पड़ी हैं. उन्हें अब समझते देर न लगी कि उन के साथ क्या हुआ है. वे लुट गए. घर में रखी नकदी और जेवरात गायब थे. सरोज का फोन भी नहीं लग रहा था. चांदीलाल का सारा नशा और इश्क एक ही झटके में काफूर हो चुका था.

उन्होंने चंदन को फोन लगा कर सारी बात बताई. उस ने कहा, ‘‘चांदीलाल सुन, मेरा उस सरोज से कोई लेनादेना नहीं. मैं ने तो बस तुम दोनों की मुलाकात कराई थी. इस मसले पर कहीं जिक्र मत करना, नहीं तो बदनामी तुम्हारी होगी. कहो तो तुम्हारी नीच हरकत का जिक्र तुम्हारी बेटियों से करूं कि इस उम्र में तुम अनजानी औरतों को अंगूठी पहनाते फिर रहे हो.‘‘

‘‘नहीं, नहीं, ऐसा मत करना, चंदन. नहीं तो मेरी इज्जत खाक में मिल जाएगी,‘‘ चांदीलाल ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘तो फिर अपनी जबान बंद रखना, नहीं तो बेटियों और दामाद सब के सामने तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगा,‘‘ चंदन ने लगभग धमकी देते हुए कहा.

चांदीलाल के पास जबान बंद रखने के सिवा और कोई चारा न था.

कुछ दिनों के बाद चांदीलाल का जन्मदिन था. इस बार तीनों बहनें सलोनी, रजनी और तारा ने यह फैसला किया था कि वे तीनों मिल कर पापा का जन्मदिन उन के पास आ कर मनाएंगी.

जन्मदिन वाले दिन वे सभी बहनें पापा के पास पहुंच गईं. सलोनी अपने साथ एक अधेड़ उम्र की महिला को भी ले कर आई थी. तीनों बहनें उस महिला को आंटी कह कर पुकार रही थीं.चांदीलाल ने सलोनी से पूछा, ‘‘बिटिया सलोनी, यह तुम्हारी आंटी कौन है?‘‘

‘‘पापा, पहले ये आंटी वृद्धाश्रम में रहती थीं, लेकिन अब ये हमारे साथ रहती हैं. आप को पसंद हैं क्या, हमारी यह आंटी?‘‘

‘‘अरे सलोनी बेटी, कैसी बात करती हो? मैं ने तो बस यों ही पूछ लिया था. इस में पसंदनापसंद की क्या बात है?‘‘

‘‘नहीं पापा, देख लो. यदि आंटी आप को पसंद हो, तो हम इन को यहीं छोड़ जाएंगे. इन का भी यहां कोई नहीं है. इन के बच्चे इन्हें छोड़ कर विदेशों में जा बसे हैं. आप का घर ये अच्छे से संभाल लेंगी,‘‘ सलोनी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे सलोनी बेटा, ऐसे बातें कर के क्यों मेरे साथ मजाक कर रही हो?‘‘

तभी मंझली बेटी रजनी ने पापा के गले में हाथ डाल कर कहा, ‘‘पापा, सलोनी दीदी मजाक नहीं कर रही हैं. आप अकेले रहते हैं, आप के सहारे के लिए भी तो कोई न कोई चाहिए. क्यों पापा?‘‘

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन बेटा…‘‘

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं पापा, हमें भी दूसरी मम्मी चाहिए, बस,‘‘ सब से छोटी बेटी तारा ने छोटे बच्चों की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘नहीं बेटी, तारा. इस उम्र में ये सब बातें शोभा नहीं देतीं.‘‘

‘‘अच्छा पापा, फिर वो सरोज आंटी… जिन्हें आप मम्मी की यह अंगूठी पहनाए थे… और जो आप को धोखा दे कर लूट कर भाग गई… हमारी वाली ये सुमन आंटी ऐसी नहीं हैं.‘‘

तारा के यह कहते ही चांदीलाल को सांप सूंघ गया. उन्हें यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि सरोज को पहनाई गई अंगूठी तारा के पास कहां से और कैसे आई?

पापा को अचंभित होता देख तारा बोली, ‘‘पापा, आप को अचंभित होने या फिर हम से कुछ भी छुपाने की कोई जरूरत नहीं है. स्वीटी हमें सब बातें बता देती थी. उस ने हमें सरोज को ले कर आगाह किया था. हम पूरी तरह से उस दिन चैकन्ने हो गए थे, जिस दिन सरोज यहां रुकी थी. हमें आप की दूसरी शादी से कोई एतराज नहीं था. लेकिन, हम इस बात से हैरान थे कि आप ने हम से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.‘‘

‘‘इस का मतलब कि तुम सरोज को जानते हो?‘‘

‘‘पापा, मैं और आप के दामाद मुकेश आप से उस दिन मिलने ही आ रहे थे. जब हम आए तो सरोज लूटपाट कर भागने ही वाली थी कि हम ने उसे चोरी करते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. आप उस समय अचेत पड़े हुए थे. आप को पानी में घोल कर नशे की गोलियां दी गई थीं. हम ने उस से मम्मी की अंगूठी समेत सारा सामान वापस ले लिया था. थाने में इसलिए शिकायत नहीं की कि कहीं आप को कोर्टकचहरी के चक्कर न लगाने पड़ें. उस दिन सुबह आप का नशा उतरने तक हम घर में ही थे और सलोनी व रजनी के संपर्क में भी थे. उसी रात हम सब ने तुम्हारी दूसरी शादी करने की योजना बना ली थी, क्योंकि आप हमारे साथ तो रहने वाले हैं नहीं.‘‘

अभी चांदीलाल कुछ कहने वाले थे, लेकिन उस से पहले ही रजनी बोल पड़ी, ‘‘अब बताओ पापा, आप को सुमन आंटी पसंद हैं कि नहीं. अब आप यह भी नहीं कह सकते कि आप इस उम्र में विवाह नहीं करना चाहते.‘‘

चांदीलाल के पास रजनी की बात का कोई जवाब नहीं था. वह हलके से मुसकरा दिए. फिर गंभीर होते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी आंटी से मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है. मैं एक पुलिस वाला रहा हूं. मैं अपनी पुलिस की ड्यूटी अभी भी निभाऊंगा.‘‘

‘‘ मतलब, पापा?‘‘ तीनों बेटी एकसाथ बोलीं.

‘मतलब यह कि मैं चंदन और सरोज दोनों को जेल भिजवा कर ही रहूंगा, दोनों ही समाज के असामाजिक तत्व हैं.’

‘‘जैसे आप की मरजी, हमारे बहादुर पापा.‘‘तारा ने तभी अपनी मां आनंदी की अंगूठी पापा को पकड़ाई और चांदीलाल ने वह अंगूठी सुमन को पहना दी. अब पापा विधुर नहीं रह गए थे, बल्कि खुली सोच की बेटियों की वजह से एक विधवा सुमन भी सधवा बन गई थी.

हरियाणा सरकार की किरकिरी

सरकारी नौकरियां या दूसरे रोजगार पैदा करने में निखट्टू साबित होने के बाद सरकारों ने निजी उद्योगों और दफ्तरों में नौकरियां पर डाका डालने की योजना बनाई है. हरियाणा सरकार ने 2021 में एक कानून पास किया कि हर प्राइवेट कंपनी को 30,000 से कम वेतन वाले कर्मचारियों में से 75 प्रतिशत हरियाणवी रखने होंगे चाहे वे दूसरे राज्यों के कर्मचारियों के मुकाबले ठीक हों या न हों. इस कानून को लागू करने के लिए लंबीचौड़ी रिटर्नें, कागजी कार्रवाई, फाइन, जेल का बाकायदा प्रबंध किया गया.

कुछ कंपनियों ने इस कानून को चुनौती दी और अब हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट ने कहा है कि यह कानून असंवैधानिक है और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. कंपनियों ने तो राहत महसूस की है पर नेताओं को अब अपनी खिल्ली उड़ती नजर आ रही है क्योंकि इस तरह की चोंचलेबाजी भारतीय जनता पार्टी ही सरकारी फैसलों की पहचान बन गई है.

अब एक ज्योतिष रिसर्च केंद्र का आर्थिक कष्ट निवारण उपाय देखिए : एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिला कर हर शनिवार को पीपल के पेड़ पर धूप में चढ़ाएं तथा ओम नमो भगवते वासुदेव मंत्र जपते हुए पीपल की 7 बार परिक्रमा करें. इसी तरह का एक और निर्देश उसी रिसर्च केंद्र से आया है धर्म का कार्य करने में कभी देर मत करना और सत्धर्म मिल जाए तो दानपुण्य करने में देर नहीं करना. धन और वोट दान अब गैर ब्राह्मण नेता भी लेने लगे हैं और हरियाणा में हरियाणावासियों को लौलीपौप देने का कानून इन्हीं पाठों को पढ़ कर आए नेताओं ने दिया है.

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अखंड भारत की बात करती है और दूसरी तरफ यह हरियाणा में नौकरियां केवल हरियाणवी लोगों के लिए सुरक्षित रखना चाहती है. यह दोगलापन हिंदू धर्म के देवीदेवताओं के कारनामों में भरा पड़ा है और वहीं से सीख कर तो लोग अपना राज चला रहे हैं.

हरियाणा ही नहीं सभी राज्यों में सरकारें इसी तरह की नौटंकी करती रहती हैं. आरक्षण इसी नौटंकी का एक हिस्सा है. पहला आरक्षण तो सदियों से पौराणिक है जिस में काम का बंटवारा जाति से कर रखा है और हमारा आरक्षण इस धार्मिक आरक्षण को ठीक करने के लिए कानूनी है जिस में नौकरियों को सभी जातियों में बांटने की बात होती है.

जरूरत है कि देश में खेती भी उत्पादक व लाभदायक हो ताकि वह और लोगों को रोजगार दे सके और उद्योग सा लाभदायक हो और फलेफूले ताकि वे नौकरियां पैदा करे. बनीबनाई नौकरियों को बांटने या धर्मस्थलों पर नौकरियां पैदा करने से देश और समाज का कल्याण नहीं होगा. जपतप, मंत्र पढ़ने से या कानून बना डालने से देश नहीं सुधरता. इस के लिए नेताओं और जनता को मिल कर काम करना होता है, चाहे वह 70 घंटे सप्ताह का क्यों न हो.

अगर हरियाणा सरकार कहती कि हरियाणवी बंदे को ही रखो और वे सातों दिन रोज 10 घंटे काम करेंगे तो देखते हैं कैसे उद्योग छीनाछपटी करते हैं लोकल लेबर के लिए, पर नीयत तो खराब थी. मुफ्त का माल हड़पने की थी जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है.

भारीभरकम की जगह थर्मल कपड़े

पहनावा व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा है. यह शरीर को मौसम की विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाता है. मौसम से शरीर को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कभी सूती तो कभी ऊनी वस्त्र पहनने पड़ते हैं. थर्मल वियर भी इसी कड़ी में एक प्रकार का वस्त्र है, जो सर्दी के मौसम में शरीर को गरमी प्रदान करता है और किसी भी प्रकार की एक्टिविटी को आसानी से कर पाने में सक्षम बनाता है, क्योंकि इस का टैक्सचर हलका होने के साथसाथ आरामदायक व शरीर को गरमी देने वाला होता है.

नया ट्रैंड

पिनाकल ब्रैंड की फैशन डिजाइनर श्रुति संचेती कहती हैं कि कोविड के बाद से लोगों में हैल्थ को ले कर जागरूकता बढ़ी है. पहले लोग काम अधिक करते थे, इसलिए उन का स्वास्थ्य ठीक रहता था. लेकिन अब उन के सारे काम तकनीक और मशीन की सहायता से होते हैं, इसलिए उन की मेहनत कम हो गई है. सो, फिटनैस के लिए वे साइक्ंिलग, वाक आदि करने लगे हैं. ऐसे में वैसे ही कपड़े जो आरामदायक होने के साथसाथ फिट भी हों, उन्हें अधिक पसंद करने लगे हैं.

लौकडाउन के दौरान एक नया कल्चर भी सामने आया. लोग कैजुअल रहना पसंद करने लगे हैं. अब यह एक नया ट्रैंड बन गया है. इस में पहले एथ्लेजर आया, जिस का अर्थ थोड़ा कम्फर्ट और थोड़ा लेजर का होना है. इसे कैजुअल भी कहा जा सकता है. इस का कौन्सैप्ट ऐक्टिव रहना है, किसी प्रकार का कोई रेस्ट्रिक्शन किसी काम में न होना है.

आधुनिक तकनीक

हिमाचल, कश्मीर आदि के लोग अधिकतर शौल, स्वेटर, फिरन पहनते हैं. विदेश में थर्मल वियर अधिक प्रचलन में हैं. वहीं से यह इंडिया में आया है. इस का क्रेज आज हमारे देश में भी है. कई बड़ेबड़े ब्रैंड्स यहां आ चुके हैं. ये कपड़े नौर्मल लाइफ देते हैं और किसी काम में रेस्ट्रिक्ट नहीं करते. जापान की एक कंपनी नासा की हिटन टैक्नोलौजी से कपड़े बनाती है. ये कपड़े तापमान के अनुसार शरीर को प्रोटैक्ट करते हैं.

स्टाइल स्टेटमैंट

पहले थर्मल कपड़ों को सर्दी में अंडरवियर के रूप में पहना जाता था ताकि शरीर गरम रहे, लेकिन आज का यूथ इसे फैशन के रूप में पहनने लगा है और यह एक फैशन ट्रैंड बन गया है. ये कपड़े हलके होने के साथसाथ गरमी अधिक देते हैं जिस से भारीभरकम ऊनी या गरम कपड़े न पहन कर इसे पहनना आरामदायक होता है और इस का रखरखाव भी आसान है.

डिजाइनर भी इस में नएनए प्रिंट्स, रंगों और डिजाइनों का प्रयोग कर रहे हैं. ये कपड़े अब बोरिग नहीं, स्मार्ट पहनावा हैं और स्टाइल स्टेटमैंट में आ चुके हैं. इस के अलावा इन कपड़ों को पहन कर कहीं किसी गैदरिंग में जा सकते हैं.

सैलेब्स की पसंद

थर्मल वियर को आगे बढ़ाने में बौलीवुड और हौलीवुड के कलाकारों का भी योगदान कम नहीं है. अनुष्का शर्मा, करिश्मा कपूर, करीना कपूर आदि सभी ने ऐसे कपड़े पहने हैं.

साथ ही, लोगों ने भारीभरकम ड्रैस पहन कर देख ली है. ऐसे सुंदर हलकेफुलके कपड़े भी ठंड से राहत दिला सकते हैं, इसलिए वे भारी पहनावे से बचने लगे हैं. इन कपड़ों की मांग आज बाजारों में बढ़ी है. इन्हें घरबाहर हर जगह पहना जा सकता है.

इस में प्रयोग किए जाने वाले फेब्रिकप्योर मैरिनो वूल, ब्लैंडेड वुल, सिल्क, कौटन के साथसाथ कौटन पोलिएस्टर ब्लैंड होते हैं, जो अधिकतर यूरोप में प्रयोग होते हैं. इस में फैब्रिक के नीचे एक फाइन और पतली क्वालिटी की पोलिएस्टर की लाइनिंग होती है. थर्मल वियर, फलालैन और कैपिलीन से भी बनाए जाते हैं. ये कपड़े सौफ्ट और रिलैक्स फिट होने के साथसाथ स्किनफ्रैंडली भी होते हैं. ये शरीर के मौइस्चर को जल्दी सोख कर, तापमान को अंदर स्टोर करने के साथसाथ बाहर की ठंड को अंदर प्रवेश करने नहीं देते, जिस से ठंड नहीं लगती.

फैशनेबल आउटफिट

थर्मल कपड़ों का कौन्सैप्ट यह है कि ये बौडी के शेप के अनुसार फिट हो जाते हैं, जिस से गरमी अधिक मिलती है. ये स्किन से टच हो जाने की वजह से बाहर की ठंडी हवा को अंदर नहीं जाने देते. इस के अलावा, ये शरीर के नौर्मल टैम्परेचर को अंदर बनाए रखने में भी सहायक होते हैं.

इस के तहत पैंट, लैगिंग्स, टीशर्ट, पुलोवर आदि कई फैशनेबल आउटफिट्स आज बाजारों में उपलब्ध हैं.

सर्दी की बीमारियों से कैसे बचें ?

ज्यादातर लोगों को सर्दी का मौसम बहुत पसंद होता है. मगर सर्दी में जब तापमान कम हो जाता है तो हमें अपनी सेहत का खास खयाल रखना जरूरी हो जाता है क्योंकि इस दौरान संक्रमण का खतरा बढ़ता है और कई तरह की शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं. डायबिटीज, हार्ट पेशेंट, श्वास रोगी और ब्रेनस्ट्रोक के पेशेंट अकसर सर्दी में परेशान होते हैं. कौमन कोल्ड भी कुछ लोगों में दिक्कत बढ़ाता है.

सर्दी में होने वाली बीमारियों और उन के बचाव के उपाय

खांसी, जुकाम यानी सामान्य सर्दी:यह एक वायरल संक्रमण है जो आप की नाक और गले को प्रभावित करता है. कभीकभी कानों पर भी असर पड़ता है. यह कुछ दिनों से ले कर कई हफ्तों तक रहता है. इस के लक्षणों में गले में खराश, सिरदर्द, सीने में जकड़न, नाक बहना, छींक आना, ठंड लगना, बदन दर्द, सिर या आंखों में भारीपन और कभीकभी हलका बुखार शामिल हैं. इस की वजह 200 से अधिक वैसे वायरस हैं जो सामान्य सर्दी का कारण बन सकते हैं. मगर सब से आम राइनोवायरस है.

यह रोग बदलते मौसम, किसी संक्रमित व्यक्ति के आप के पास खांसने या छींकने से या किसी दूषित सतह के संपर्क में आने से होता है. यह इम्यूनिटी कमजोर होने पर और संक्रमण फैलने के कारण भी हो सकता है.

फ्लू : यह इन्फ्लुएंजा वायरस के कारण होने वाला एक संक्रामक श्वसन रोग है. यह आम सर्दी के समान है लेकिन यह संक्रामक श्वसन रोग मुंह, नाक, गले और फेफड़ों को प्रभावित करता है. बुखार 4-5 दिनों में ठीक हो जाता है पर खांसी और थकान 2 सप्ताह तक रहती है. तेज बुखार, खांसी, सिरदर्द, दस्त, शरीर में दर्द, गले में खराश आदि इस के लक्षण हैं.

सर्दी जुकाम और फ्लू से ऐसे करें बचाव

  • विटामिन सी बेस्ड फूड्स लें और ऐसा भोजन करें जो रोग प्रतिरोधक क्षमताओं को बढ़ाए.
  • सुबह बिस्तर से उठते ही गर्म कपड़े पहनें. सैर करने या जिम जा रहे हैं तो सिर पर गर्म टोपी और हाथों में ग्लव्स पहनना न भूलें.
  • फ्रिज से निकाल कर कुछ भी तुरंत न खाएं.
  • नाक बंद होने पर दिन में 2 से 3 बार भाप लें. गुनगुने पानी से गरारे करें.
  • खांसते या छींकते वक्त मुंह पर हाथ या रूमाल रखें.
  • जिन्हें पहले से सर्दीजुकाम है उन से दूर रहें.
  • बाहर से आने पर अपने हाथ जरूर धोएं.
  • मौसमी फलों और सब्जियों का भरपूर सेवन करें.

श्वास संबंधी रोग

श्वसन संबंधी बीमारियां निस्संदेह वर्ष के ठंडे महीनों के दौरान अधिक होती हैं. लोग घर के अंदर या बंद जगहों में ज्यादा रहते हैं जिस से वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से जा सकते हैं. ठंडी, शुष्क हवा हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है. ज्यादा सर्दी पड़ने पर कुछ लोगों में सांस की नली सिकुड़ जाती है. जल्दीजल्दी सांस लेना, सीने में जकड़न या कसाव महसूस होना, सांस के साथ आवाज आना इस के लक्षण हैं.

बचाव के उपाय

  • ठंड, धुंध, धूलमिट्टी और पालतू जानवरों से खुद को दूर रखें.
  • इनहेलर हमेशा साथ रखें.
  • ठंडी चीजों को खाने से बचें.
  • त्वचा की समस्याएं
  • सर्दी आते ही स्किन समस्याएं जैसे ड्राइनैस, स्किन का फटना, डैंड्रफ आदि का सामना करना पड़ता है. स्किन में खुजली, जलन, सूजन जैसे लक्षण हो सकते हैं.

बचाव

  • गुनगुने पानी से नहाएं.
  • सिर को धोने से आधे घंटे पहले गुनगुने तेल से मालिश भी कर सकते हैं.
  • सर्दी में मौइश्चर युक्त साबुन का इस्तेमाल करें.
  • नहाने से पहले नारियल तेल से बौडी मसाज करने से भी त्वचा को आराम मिलता है.
  • रोजाना 10-12 गिलास पानी पीएं.
  • रात को होंठों पर अच्छी क्वालिटी का लिप बाम या मलाई लगा सकते हैं.

हड्डियों की समस्या

सर्दी में जोड़ों में दर्द की शिकायत बढ़ जाती है. सीनियर सिटिजन के साथ ऐसा ज्यादा होता है. दर्द, सूजन,चलनेफिरने में दिक्कत, उठते और चलते समय जोड़ों में अकड़न जैसे लक्षण हो सकते हैं.

बचाव

  • सोने से पहले दर्द वाले हिस्से पर गर्म पानी का तौलिया रखें. करीब 15 मिनट सिंकाई करें.
  • एक्सरसाइज करें.
  • धूप में आधे घंटे जरूर बैठें.
  • रोज गुनगुने तेल से मालिश करें.

इन के अलावा कुछ और बीमारियां हैं-

ब्रोंकाइटिस : ब्रोंकाइटिस एक वायरल श्वसन संक्रमण है. इस के लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, हलका बुखार, सूखी खांसी, घरघराहट, बहती नाक आदि शामिल है. कई अलगअलग वायरस हैं जो ब्रोंकाइटिस का कारण बनते हैं. इन में सब से कौमन आरएसवी है. यदि आप धूम्रपान करते हैं, आप को साइनसाइटिस, बढ़े हुए टौंन्सिल या एलर्जी है तो भी आप को इस के होने की संभावना है.

स्ट्रैप थ्रोट : यह ज्यादातर स्कूल जाने वाले बच्चों में देखा जाता है और इस में आमतौर पर सर्दी या खांसी के लक्षण नहीं होते हैं. गले में खराश, तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, भोजन या पानी निगलने में कठिनाई, लिम्फ नोड्स में सूजन आदि इस के लक्षण हैं. यह बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है.

काली खांसी : यह एक गंभीर और अत्यंत संक्रामक जीवाणु संक्रमण है. यह मुख्य रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों को प्रभावित करता है. यह स्थिति 10 सप्ताह तक रह सकती है. इस के लक्षण हैं खांसी, बुखार, आंखों से पानी आना, छींक आना और नाक बहना.

इन बीमारियों से बचाव

  • अपने हाथों को पूरे दिन लगातार धोएं.
  • पर्याप्त आराम करें और खूब सारे तरल पदार्थ पिएं.
  • सर्दीजुकाम वाले लोगों से सुरक्षित दूरी बनाए रखें. दूसरों के कपड़े, कंबल, रूमाल आदि के इस्तेमाल से बचें.
  • नियमित व्यायाम करें. इस से रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में मदद मिलती है.
  • गर्म पानी पिएं और पर्याप्त नींद लें.
  • ताजे फल और सब्जियों से युक्त अच्छा आहार लें.

चिलब्लेन

पैरों और हाथों की उंगलियों में ठंड लगना, उंगलियों का नीला या लाल होना और दर्द व खुजली होने को मैडिकल भाषा में चिलब्लेन कहते हैं. यह समस्या ज्यादातर सर्दी में ही होती है. आप दस्ताने और जुराब का प्रयोग सर्दी के शुरुआती दौर से ही करें. समस्या होने पर गर्म पानी से सिंकाई करें.

हाइपोथर्मिया

इस का मतलब है शरीर का तापमान कम हो जाना. वयस्कों खासकर बुजुर्गों और बच्चों का शरीर जल्द ही ठंडा हो जाता है. यदि उपयुक्त सावधानियां न बरती जाएं तो वे हाइपोथर्मिया के शिकार हो सकते हैं. लापरवाही बरतने पर यह समस्या गंभीर हो सकती है. इस के लक्षण हैं, शरीर का ठंडा पड़ जाना, बेसुध होना, हृदय गति और सांस गति का धीमा पड़ना.

पब्लिक लाइब्रेरी औफ साइंस जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि जिन्हें पहले से हार्ट डिजीज है सर्दी में उन में हार्ट अटैक का खतरा 31 फीसदी तक बढ़ जाता है.

ठंड में खतरा क्यों बढ़ता है ?

दरअसल सोते समय शरीर की एक्टिविटीज स्लो हो जाती हैं. बीपी और शुगर का लेवल भी कम होता है. लेकिन उठने से पहले ही शरीर का औटोनौमिक नर्वस सिस्टम उसे सामान्य स्तर पर लाने का काम करता है. यह सिस्टम हर मौसम में काम करता है. लेकिन ठंड के दिनों में इस के लिए दिल को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. इस से जिन्हें हार्ट की बीमारी है उन में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

साथ ही ठंड के मौसम में नसें ज्यादा सिकुड़ती हैं और सख्त बन जाती हैं. इस से नसों को गर्म और एक्टिव करने के लिए ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है जिस से ब्लड प्रैशर बढ़ जाता है. ब्लड प्रैशर बढ़ने से हार्ट अटैक होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

दिल की बीमारी में ध्यान रखें ये बातें

बहुत ज्यादा पानी न पिएं. नमक कम खाएं. दिल का एक काम शरीर में मौजूद रक्त के साथ लिक्विड को पंप करने का भी होता है. जिन्हें दिल की बीमारी होती है उन के दिल को वैसे भी पंप करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. ऐसे में अगर आप बहुत ज्यादा पानी पी लेंगे तो हार्ट को पंपिंग में और भी मेहनत करनी पड़ेगी और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाएगा.

सुबह जल्दी सैर पर न जाएं

जिन लोगों को पहले भी हार्ट अटैक आ चुका है या जिन के दिल पर ज्यादा खतरा है, वे ठंड के दिनों में न तो बिस्तर जल्दी छोड़ें और न ही जल्दी सैर पर जाएं. ठंड की वजह से नसें पहले से ही सिकुड़ी हुई होंगी और जब ठंडे वातावरण के संपर्क में आएंगे तो बाहर की अधिक सर्दी की वजह से शरीर को अपनेआप को गर्म बनाए रखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. इस से दिल को ज्यादा काम करना पड़ेगा.

खानपान व व्यायाम

अच्छे पाचन और खुद को स्वस्थ रखने के लिए डाइट में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करें. साथ ही मेवे भी लें. सूखे मेवे न केवल आप को ऊर्जा देते हैं बल्कि सर्दी में गरमी भी देते हैं.

पानी शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है. जब आप पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड नहीं होते हैं तो नाक का मार्ग और गला सूख जाता है.

मुझे हमेशा गैस की समस्या रहती है, बताएं कि मैं इससे छुटकारा कैसे पाऊं ?

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है. मैं हमेशा ऐसिडिटी और गैस की समस्या से परेशान रहती हूं. मैं ने कई दिनों तक डाक्टर से इलाज भी करवाया. घर के बड़ेबुजुर्गों के कहने पर घरेलू नुसखे भी आजमा कर देखे, पर कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ उपचार बताएं.

जवाब

ऐसिडिटी और गैस का लाइफस्टाइल से गहरा संबंध है. हम क्या खाते हैं, कैसे खाते हैं, कितने तनाव में रहते हैं, कैसे वस्त्र पहनते हैं, कैसी दिनचर्या रखते हैं, सभी का इस पर असर पड़ता है. यदि हम अपने खानेपीने में कुछ छोटेछोटे परहेज बरतने लगें, टेबल मैनर्स पर ध्यान दें. दिनचर्या में छोटेछोटे परिवर्तन ले आएं.

तली हुई चीजें और अधिक चरबी वाले गरिष्ठ व्यंजन ऐसिडिटी पैदा करते हैं. टमाटर, प्याज, लालमिर्च, कालीमिर्च, संतरा मौसमी, चौकलेट आदि से परहेज किया जा सकता है. इसी प्रकार कुछ शाकसब्जियां और फल पेट में अधिक गैस बनाते हैं. फलियां, फूलगोभी, मूली, प्याज, पत्तागोभी जैसी सब्जियां और सेब, केला और खूबानी पेट में गैस बनाते हैं. इसी तरह जिन चीजों में प्रोटीन बड़ी मात्रा में होता है, वे भी बादी होती हैं. ऐसे व्यंजन जो गरमगरम सर्व  होते हैं जैसे सिजलर्स वे भी पेट में गैस बढ़ाते हैं. इन से परहेज करें.

खाने की मेज पर चंद टेबल मैनर्स भी ध्यान में रखने जरूरी हैं. भोजन करते समय छोटेछोटे निवाले लें. पचपच कर के खाने से भी बहुत सारी हवा पेट में पहुंच जाती है. पानी और दूसरे पेयपदार्थ पीते समय कप, गिलास, चम्मच होठों से सटा कर रखें और जल्दबाजी न करें.

दिनचर्या का भी सेहत पर असर पड़ता है. पूरा दिन एक जगह बैठेबैठे बिता देने के बजाय थोड़ीथोड़ी देर पर चलतेफिरते रहना आंतों के लिए अच्छा है. जीवन में स्ट्रैस को नियंत्रण में करना भी जरूरी है. व्यायाम, हास्य आदि स्ट्रैस से मुक्ति दिलाते हैं.

ओवर द काउंटर दवाओं में ऐंटासिड घोल या गोलियां जैसे डायजिन, म्यूकेन, जेल्यूसिल और अम्लरोधी दवाएं जैसे रेनिटिडिन, पैंटोप्राजोल, लेंसोप्राजोल और ओमेप्राजोल आराम दिला सकती हैं. यदि इन से भी आराम न मिले तो किसी गैस्ट्रोएंट्रोलौजिस्ट से कंसल्ट करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें