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एडल्ट्री पर रार क्यों ?

बाइबिल के एक प्रचलित प्रसंग में गांव के कुछ लोग एक शाम एक पापिन यानी व्यभिचारिणी को ईसा मसीह के पास ले गए और उस के लिए सजा की मांग करने लगे. तब कायदा यानी धार्मिक कानून तो यह था कि पापिनों को सरेआम पत्थरों से मारने की सजा दी जाए. गांव वाले ईसा मसीह से इसी सजा की पुष्टि चाहते थे जिन के सामने दुविधा यह थी कि अगर वे सजा के इस तरीके को स्वीकृति देते हैं तो यह हिंसा होगी और अगर पापिन की रिहाई की बात कहते हैं तो उन पर व्यभिचार फैलाने का आरोप लगेगा.

ईसा मसीह ने ‘हलदी लगे न फिटकरी और रंग भी आए चोखा’ की कहावत वाला रास्ता अपनाते हुए कहा, ‘आप लोगों में से जो पापी न हो वह इस औरत को पहला पत्थर मारे. चूंकि सभी ने कोई न कोई पाप किया था, इसलिए रात होने तक एकएक कर सभी खिसक लिए. साबित हो गया कि पाप के पैमाने पर पूरा समाज और दुनिया एक ही कश्ती पर सवार है और पाप या व्यभिचारमुक्त समाज की उम्मीद एक परिकल्पना भर है.

ईसा मसीह ने उस औरत को जाने दिया और फिर कभी व्यभिचार न करने का उपदेश दे दिया. इस तरह तत्कालीन समाज की एक समस्या अस्थायी रूप से हल हो गई जो अब फिर मुंहबाए खड़ी है.

कोई भी उपदेशक, अवतार या संतमहात्मा इस तरह की समस्या, जो मूलतया समस्या होती ही नहीं, को हल नहीं करता बल्कि चतुराई से उसे पोस्टपोंड कर देता है जिस से भविष्य के ठेकेदार भी नाम व दाम कमाएं. आजकल यह काम असमंजस में पड़ी अदालतें कर रही हैं. चूंकि व्यभिचार कोई अपराध नहीं है इसलिए इस के लिए कोई स्थायी सजा भी नहीं है.

व्यभिचार की व्याख्या क्यों ?

सजा तो दूर की बात है, बारीकी से देखें तो व्यभिचार शनि अविवाहितों के शारीरिक संबंध की कोई मानक परिभाषा ही नहीं है. दुनियाभर के धर्म क्या कहते हैं, इस से हट कर देखें तो कानून व्यभिचार को ले कर असमंजस में ही नजर आता है. इस की एक मिसाल बीती 13 नवंबर को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के एक फैसले में देखने में आई जिस में अदालत ने याचिकाकर्ताओं को ही व्यभिचारी करार दे दिया जो कि निहायत ही गैरजरूरी था.

पटियाला का शादीशुदा पुरुष एक अविवाहित महिला के साथ रह रहा था. उस की पटरी अपनी पत्नी से नहीं बैठती. उस के 2 बच्चे भी हैं. इस पुरुष ने पुलिस की सुरक्षा के लिए अदालत में याचिका लगाई थी कि उसे व उस की मौजूदा पार्टनर को उस के रिश्तेदारों से खतरा है, इसलिए उसे हिफाजत प्रदान की जाए. सुनवाई के दौरान दूसरी कई औपचारिक बातों के साथसाथ अदालत को यह भी मालूम चला कि याचिकाकर्ता का अपनी पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा है.

यह बात अदालत को नागवार गुजरी. उस ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा लगता है कि व्यभिचार के मामले में किसी भी आपराधिक कार्रवाई से बचने के लिए ऐसा किया गया था. पिछले साथी से बगैर तलाक लिए और पिछली शादी के दौरान याचिकाकर्ता पुरुष इस याचिकाकर्ता पार्टनर के साथ वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहा है जो आईपीसी की धारा 494-495 के तहत अपराध हो सकता है. इस शख्स को शादी की प्रकृति में लिवइन रिलेशनशिप या रिलेशनशिप नहीं कहा जा सकता.

यह टिप्पणी हैरान कर देने वाली हर लिहाज से है. दोनों याचिकाकर्ताओं की स्थिति ‘गए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास’ वाली हो गई. दोनों साथ रह रहे थे, इस का यह मतलब किस आधार पर अदालत ने निकाल लिया कि वे व्यभिचारी और वासनायुक्त जिंदगी जी रहे थे.

कोर्ट को ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए क्योंकि ये न्याय के मूलभूत सिद्धांतों से मेल नहीं खातीं. इसे इंसाफ मांगने गए नागरिकों का अपमान क्यों न समझ जाए? इन दोनों ने इस तरह, जिस तरह कि वे साथ रह रहे थे, यह बात कोर्ट से छिपाई नहीं थी बल्कि कोर्ट के सामने उजागर की थी और इसीलिए वे सुरक्षा चाह रहे थे.

मुमकिन है उन की मंशा कुछ और भी रही हो लेकिन वह गैरकानूनी कहीं से भी नहीं लगती. यहां इन छोटीमोटी सी लगने वाली बातों के बड़ेबड़े माने हैं कि अगर कोई पुरुष या महिला, जिस का तलाक का मुकदमा चल रहा हो, का कहीं और से अपनी जज्बाती और जिस्मानी जरूरतों की पूर्ति करना क्या गुनाह है?

नई पीढ़ी के तराजू पर इस सवाल का जवाव ‘न’ में ही मिलता है तो उसे स्वीकारने की हिम्मत समाज के साथसाथ अदालतों में भी होनी चाहिए. पुरानी मान्यताओं को पकड़ कर बात करेंगे तो यह बदलाव, जो कि आज की जरूरत बन चुका है, का गला घोंटने जैसी बात होगी. यह कहानी या समस्या उक्त याचिकाकर्ताओं की ही नहीं बल्कि हर तीसरेचौथे कपल की है. खासतौर से उन की जो महानगरों में रह रहे हैं.

पहले जीवनसाथी से भले ही तलाक न हुआ हो, नए के साथ घर और दुनिया बसा लेना क्यों अपराध नहीं माना जाना चाहिए, इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें हैं जो लिवइन के चलन के बाद लगातार हो भी रही हैं लेकिन कोई हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा है.

कहानी घरघर की

पटियाला के कपल पर अदालत की खीझ और झल्लाहट बेवजह भी नहीं है. इसी साल जून में एक दिलचस्प आंकड़ा यह सामने आया था कि अकेले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में ही सौ के लगभग यंग कपल्स ने ऐसी ही अर्जियां दाखिल कर रखी हैं जिन में अदालत से हिफाजत की गुहार लगाई गई है.

जून के पहले सप्ताह में हाईकोर्ट में इस मसले पर धुआंधार बहस हुई थी. याचिकाकर्ता कपल्स की दलीलें यह थीं कि उन की शादी पहले हो चुकी हैं लेकिन नौकरी के सिलसिले में उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ा.

अब नए शहर में आ कर वे किसी अविवाहित या विवाहित युवती के साथ रहने लगे. इन युवाओं ने अदालत से ही पूछ डाला कि हमारे इस नए रिश्ते का नाम क्या है या क्या हो. क्या यह कानूनी है या गैरकानूनी है. इन और ऐसे कई सवालों के जवाब अदालत को नहीं सू?ो तो उस ने सौलिसिटर जनरल औफ इंडिया सत्यपाल जैन, हरियाणा के एडवोकेट जनरल बी आर महाजन, पंजाब के डिप्टी अटौर्नी जनरल जे एस अरोड़ा और चंडीगढ़ के एडिशनल प्रोसीक्यूटर पी एस पाल से अपनी राय देने को कहा. इस प्रकार के मामले क्लब कर दिए गए.

याचिकाकर्ताओं के वकीलों आर एस बैंस, मयंक गुप्ता और अमित बंसल की बहस और दलीलें भी कम दिलचस्प नहीं थीं कि किसी भी व्यक्ति की जिंदगी और आजादी से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, फिर चाहे वह शादीशुदा हो या न हो और भले ही समाज उसे स्वीकार करे या न करे, उन की सुरक्षा स्टेट की जिम्मेदारी है.

किसी भी बाहरी व्यक्ति को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. बात बहुत स्पष्ट है कि बिना तलाक के दूसरी के साथ रह रहे युवकों को समाज और उन के ही रिश्तेदार चैन से नहीं रहने देते. इन लोगों को आएदिन धमकियां मिलती रहती हैं जिन के चलते वे पुलिस सुरक्षा चाहते हैं.

बात कुछकुछ ईसा मसीह के दौर सरीखी है कि हरकोई सजा देने को हाथ में पत्थर लिए खड़ा है जिस से इन ‘पापियों’ का रहना दूभर हो जाता है. अब अगर आम लोग ही इंसाफ करने लगेंगे तो कानून और अदालतों की जरूरत क्या? ऐसे मामले अब आम होते जा रहे हैं जिन का दूसरा पहलू टूटते परिवार और छिन्नभिन्न होती परिवार व्यवस्था है. लेकिन क्या कबीलाई इंसाफ और हिंसा इस का हल है. इस सवाल का जवाब कोई भी समझदार आदमी ‘नहीं’ में ही देगा लेकिन इस टिप्पणी के साथ कि फिर भी यह है तो गलत.

व्यभिचार और सदाचार के बीच

लेकिन इसे व्यभिचार या वासनापूर्ण जीवन कहने पर एतराज जताने की कई वजहें हैं जिन में से पहली तो यही है कि जटिल कानूनों और उस से भी ज्यादा उन की जटिल प्रक्रिया के चलते तलाक हाथोंहाथ नहीं मिल जाता बल्कि तलाक के मुकदमे सालोंसाल चलते हैं.

मुवक्किल बूढ़े होने लगते हैं, अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़तेरगड़ते उन के अरमान और जवानी दोनों ढलने लगते हैं. खासे पैसे के साथसाथ जिंदगी और कैरियर का सुनहरा वक्त पेशियों की भेंट चढ़ जाता है. ऐसे में उन से सदाचार और ब्रह्मचर्य की उम्मीद रखना ज्यादती नहीं तो और क्या है?

अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए वे अगर अहिंसक विकल्प, जो नैतिकता के तराजू को ध्वस्त नहीं करते, ढूंढ़ लेते हैं तो इस पर एतराज और तिलमिलाहट क्यों? समाज तो इन्हें चैन से जीने नहीं देता, अब अदालतें भी इन पर व्यभिचारी होने का लांछन मढ़ने लगी हैं तो ये बेचारे कहां जाएं? इस सवाल का जवाब शायद ही कोई दे पाए. वे अदालतें और कानून तो बिलकुल भी नहीं दे सकते जो इन की मनोदशा और तनाव बहुत नजदीक से देखने के बाद भी अनदेखा कर देते हैं. शायद इसलिए कि इस से धर्म की हानि हो रही होती है और संस्कृति का पतन हो रहा होता है.

संस्कृति और उस के पैरोकार ठेकेदार सभी गौरव महसूस करते हैं कि युवा वैवाहिक विवादों में फंसे घुटघुट कर जीते रहें. यह वक्त हकीकत में उन के लिए मौत से भी बदतर वक्त होता है. उक्त मामले में कोर्ट लगभग ईसा मसीह की तरह ही पेश आया कि सजा तो दे नहीं सकते लेकिन तुम लोग व्यभिचार मत करो.

सुकून देने वाली इकलौती बात ऐसे मामलों में यही नजर आती है कि याचिकाकर्ताओं से हलफनामा इस आशय का नहीं मांगा जाता कि वे अकेले रहते सहवास और रोमांस नहीं करेंगे. अफसोस और हैरत तो इस बात पर भी जताए जा सकते हैं कि कोर्ट लिवइन को शादी जैसा मानने लगे हैं लेकिन पूर्णविवाह नहीं कह पा रहे क्योंकि उस में पंडेपुरोहितों और रीतिरिवाजों का अभाव या अनुपस्थिति है, इसलिए 2 वयस्कों का साथ रहना व्यभिचार करार दे दिया गया.

अदालत का असमंजस

100 युवाओं की सामूहिक याचिकाओं पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता आर्टिकल 226 के तहत प्रोटैक्शन और्डर चाहते हैं, क्या ऐसी सुरक्षा देने से शादी, तलाक, पत्नी और बच्चों के अधिकारों के नजरअंदाज होने की आशंका बनती है. औनर किलिंग से बचने के लिए क्या शादीशुदा लोगों का सुरक्षा मांगना या भागे हुए युवा जोड़ों का सुरक्षा मांगना एकसमान है? सवाल यह भी है कि शादीशुदा लोगों को अदालती सुरक्षा देने को कहीं अनैतिक रिश्तों पर मंजूरी तो नहीं माना जाएगा.

एक बार फिर कहा जा सकता है कि अदालतें ईसा मसीह जैसे असमंजस में हैं जो व्यभिचार को न गलत कह पा रहीं और न ही सही करार दे पा रहीं. यह सवाल उतना गंभीर है नहीं जितना कि इसे प्रचारित किया जाता है कि व्यभिचार से घर टूटेंगे, यह जीवनसाथी का भरोसा तोड़ता है, बच्चों का भविष्य अंधकारमय बनाता है और समाज के पाश्चात्य देशों जैसा उन्मुक्त होने का खतरा तो हमेशा बना ही रहता है.

सोचना लाजिमी है कि असफल वैवाहिक जीवन जी रहे पतिपत्नी भीषण तनाव में रहते हैं, उस से परिवार, समाज और बच्चों का नुकसान नहीं होता क्या? हकीकत में व्यभिचार हर दौर में रहा है और स्वीकृत रहा है. पौराणिक साहित्य में इफरात से व्यभिचार के प्रसंग हैं.

लेकिन यहां मुद्दा आज के उन युवाओं की परेशानी है जो उन्होंने अदालत के सामने रखीं भी. मुमकिन है सभी के पास ये प्रमाण न हों कि उन्हें डरायाधमकाया जाता है और जान से मारने की धमकी दी जाती है. सुबूतों के न होने से किसी को भी कुछ भी कहने की आजादी हासिल नहीं हो जाती लेकिन उन की बेबसी और मजबूरी का फायदा उठाते उन्हें झट से व्यभिचारी कह देना उन के साथ एक तरह का अन्याय ही है क्योंकि वे अदालत कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेने तो कम से कम नहीं गए थे. अगर कोई सुबूत दे दे तो क्या उसे सदाचारी मान लिया जाएगा?

यहां उल्लेखनीय है कि 18 सितंबर, 2018 को दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट व्यभिचार को अपराध करार देने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराते उसे रद्द कर चुका है. यह बहुत गंभीर और दिलचस्प फैसला था जिस में दूसरी कई बातों के साथ अदालत ने ये महत्त्वपूर्ण टिप्पणियां भी की थीं-

व्यभिचार अपराध की अवधारणा में फिट नहीं है. यदि इसे अपराध के रूप में माना जाता है तो वैवाहिक क्षेत्र की अत्यधिक निजता में घुसपैठ होगी.

व्यभिचार को अपराध मानना एक पुरातन विचार है, जिस में पुरुष को अपराधी और महिला को पीडि़त माना जाता है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में ऐसा नहीं है.

धारा 497 अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करती है क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करती है और इस के तहत केवल पुरुषों को ही दंडित किया जाता है.

धारा 497 उस सिद्धांत पर आधारित है जिस के अनुसार एक महिला विवाह के साथ अपनी पहचान और कानूनी अधिकार खो देती है. यह उन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है. यह सिद्धांत संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त नहीं है. व्यभिचार अनैतिक हो सकता है लेकिन गैरकानूनी नहीं.

दृढ इच्छाशक्ति दिखाते सब से बड़ी अदालत ने व्यभिचार पर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया था जो कट्टरवादियों को न तब रास आया था न आज आ रहा है.

बाबा बोलते हैं

आमतौर पर धर्मगुरु, बाबा लोग, संतमहंत सीधेतौर पर व्यभिचार पर बोलने या उसे आरोप के तौर पर परिभाषित करने से बचते हैं. इस की 2 वजहें हैं, पहली तो यह कि खुद उन की बिरादरी के अधिकतर लोग व्यभिचारी होते हैं. आसाराम और रामरहीम से ले कर मिर्ची बाबा जैसे सैकड़ों छोटेबड़े बाबा बलात्कार और व्यभिचार के लपेटे में आ चुके हैं. दूसरे, जिस धार्मिक साहित्य को गाबजा कर ये अपनी दुकान चलाते व चमकाते हैं वह भी व्यभिचार से भरा पड़ा है.

इंद्र और अहल्या का चर्चित प्रसंग हर कोई जानता है कि कैसे कामुक देवराज ने उस दौर की सब से खूबसूरत स्त्री को अपनी हवस का शिकार बनाया था. महाभारत काल में तो कोई भी पात्र सलीके से पैदा ही नहीं हुआ. पांडू, पांडवों से ले कर कर्ण और घटोत्कच तक बिना विवाहित जोड़ों के व्यभिचार से ही जन्मे थे.

यह और बात है कि उस दौर में शारीरिक संबंध सहज स्वीकार्य था लेकिन आज के पैमानों पर वह अप्रिय बात है, इसलिए प्रवचनकार उस से बचते हैं. अब ये लोग यह सलाह तो बांझ स्त्रियों को दे नहीं सकते कि तुम भी कुंती और माद्री की तरह नियोग कर लो यहां यह जिज्ञासा भी स्वाभाविक है कि जब पौराणिक युग में सैक्स वर्जित नहीं था वयस्क महिलापुरुष चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित. तो यह व्यभिचार शब्द या विचार आया कहां से, जो नियम और कानून बन गया.

महाभारत के आदि पर्व के मुताबिक, वर्तमान उत्तराखंड में रहने वाले उद्दालक मुनि का बेटा था श्वेतकेतु. उसी ने विवाहेतर संबंधों को व्यभिचार घोषित किया था और उस पर रोक भी लगाई थी. श्वेतकेतु ने ही यह नियम बनाया था कि स्त्रियों को पति के प्रति और पुरुषों को पत्नी के प्रति वफादार होना चाहिए और परपुरुष समागम करने का पाप भ्रूणहत्या के बराबर माना जाएगा.

दरअसल, एक बार जब वह अपने मातापिता के साथ बैठा था तो एक विप्र आया और सहवास की मंशा से उस की मां का हाथ पकड़ कर अंदर ले जाने लगा. यह उसे नागवार गुजरा तो उस ने पिता उद्दालक के सामने एतराज दर्ज कराया. इस पर पिता का जवाब यह मिला था कि स्त्रियां तो गायों की तरह स्वतंत्र होती हैं, वे जिस किसी के साथ चाहें सहवास कर सकती हैं.

लेकिन आजकल के बाबा लोग चूंकि महिला विरोधी हैं और इन के निशाने पर आमतौर पर सवर्ण महिलाएं रहती हैं जो सजसंवर कर रहती हैं, फैशन भी करती हैं और मरजी से सैक्स भी कर सकती हैं, इसलिए ये व्यभिचार की व्याख्या कुछ अलग ढंग से करते हैं जो निरी धूर्तता है.

एक उदाहरण बाबा बागेश्वर यानी धीरेंद्र शास्त्री का है. इसी साल जून में नोएडा में प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा, ‘किसी स्त्री की शादी हो गई है तो उस की 2 पहचान होती हैं, मांग का सिंदूर व गले का मंगलसूत्र. अच्छा मान लो, मांग का सिंदूर न भरा हो, गले में मंगलसूत्र न हो तो हम लोग समझते हैं कि भाई, यह प्लौट अभी खाली है.’

इस बेतुके और बेहूदे बयान पर इस बाबा की जम कर छिलाई भी हुई थी. सपा नेता स्वामीप्रसाद मौर्य ने तो उसे टपोरी तक कह दिया था. एक समाजसेविका नूतन ठाकुर ने इस की शिकायत महिला आयोग में भी की थी.

इस बाबा के निशाने पर भी दरअसल वे ही युवतियां थीं जो लिवइन में रह रही हैं क्योंकि सुहागचिह्न उन के लिए बाध्यता नहीं हैं. लोग खासतौर से महिलाएं अपनी मरजी से रहें, खुद से जुड़े फैसले खुद लें, यह बाबाओं को रास नहीं आता. उन की नजर में औरत को वैसे ही रहना चाहिए जैसे धर्म निर्देशित करता है, वरना वे खाली प्लौट जैसी हो जाती हैं जिस पर कोई भी कब्जा कर सकता है यानी व्यभिचार की प्रस्तावना यहीं से लिखी जाती है.

सरकार भी पीछे नहीं

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की झल्लाहट धारा 497 को ले कर भी थी जो यदि अस्तित्व में होती तो पुरुष को दोषी करार देने में कोई दिक्कत पेश न आती, इसलिए उस ने धारा 494 और 495 का जिक्र किया जो दूसरी शादी से संबंधित हैं जिन में पहले जीवनसाथी के जिंदा रहते बिना तलाक लिए दोबारा शादी कर लेना (केवल शारीरिक संबंध बनाना नहीं) दंडनीय अपराध है. इस धारा में व्यभिचार का कोई उल्लेख या भूमिका नहीं है.

लेकिन मौजूदा सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि व्यभिचार कानूनन अपराध घोषित हो, जिस से अपनी मरजी से रह रहे और जी रहे युवाओं को सबक सिखाया जा सके. 21 नवंबर को एक संसदीय समिति ने भारतीय न्याय संहिता विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि शादीशुदा पुरुष और महिला किसी दूसरे से संबंध बनाए यानी व्यभिचार करे तो इसे फिर से अपराध बनाया जाना चाहिए क्योंकि विवाह एक पवित्र संस्था है.

रिपोर्ट में यह मांग भी की गई है कि संशोधित व्यभिचार कानून को इसे जैंडर न्यूट्रल अपराध माना जाए. इस के लिए पुरुष और महिला दोनों को सामान रूप से जिम्मेदार यानी अपराधी माना जाए. नए न्याय कानूनों में शायद इस सुझाव को माना नहीं गया है.

2018 में 497 पर सुनवाई के दौरान भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यही तर्क दिए थे जिन के चीथड़े अदालत ने तार्किक ढंग से उड़ा दिए थे. सरकार नए कानून बनाए, उन्हें नए नाम दे, यह ज्यादा एतराज की बात नहीं लेकिन व्यभिचार को फिर से अपराध घोषित किए जाने की कवायद से उन लाखोंकरोड़ों युवाओं की आजादी छिन जाएगी जो लिवइन में रहते हैं. कुछ हो न हो, इस से वैवाहिक विवादों और मुकदमों का सैलाब जरूर आ जाएगा.

जाहिर है, कोई भी अदालत उन्हें आसानी से व्यभिचारी मानते हुए सजा दे देगी. धार्मिक कानून बनाने और थोपने पर आमादा नरेंद्र मोदी सरकार तो महिलाओं पर भी शिकंजा कस रही है जिन पर धारा 497 बतौर अपराधी लागू नहीं होती थी.

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लोग क्या कहेंगे

दरवाजे की घंटी की आवाज सुनते ही सुलोचना हड़बड़ा कर खड़ी हो गई.

‘’इतनी देर हो गई बातों में, समय का पता ही न चला. 6 बज गए और यह आ गए.’’

उन के साथ बैठी प्यारी ननद गीता ने आखें नचा कर कहा,”तो क्या हो गया? 6 ही तो बजे हैं, आप सब तो 9 बजे खाना खाने वालों में से हो.’’

“वह तो ठीक है लेकिन आज राजेश सीमा को ले कर आने वाला जो है. मैं ने तो अभी तक कोई तैयारी भी नहीं की है.”

राजेश सुलोचना का इकलौता लड़का है जो 5 साल पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर हैदराबाद नौकरी करने चला गया था और 6 महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर अपने शहर इंदौर वापस आया था.

उस की उम्र 27 वर्ष की हो चुकी थी और न सिर्फ सुलोचना और उन के पति बल्कि उन के सभी रिश्तेदार और पड़ोसी राजेश के लिए एक पत्नी की तलाश में लगे हुए थे.

आजकल के बच्चों के विचारों से वाकिफ सुलोचना और मनोहरलाल राजेश पर अपनी पसंद नहीं लादना चाहते थे और इस कारण जब राजेश ने उन के सुझाए 10-12 प्रस्तावों को मना कर दिया तो उन्हें उन्होंने उस से सीधी तरह उस की अपनी पसंद के बारे में पूछ लिया.

राजेश ने बताया कि वह यहीं इंदौर में उस के औफिस में काम करने वाली अपनी जूनियर सीमा को पसंद करता है लेकिन अभी तक उस ने सीमा से इस बारे में कोई बात नहीं की है. सुलोचना ने राजेश को कहा कि वह सीमा को घर ले कर आए. यह पिछले हफ्ते की ही बात थी और आज राजेश सीमा को ले कर घर आ रहा था.

आज ही सवेरे सुलोचना की ननद गीता भी 3 महीने बाद भोपाल से आई थी और अपनी प्यारी भाभी के पिछले 3 महीनों का हिसाब विस्तारपूर्वक लेने में लगी हुई थी.

गीता सुलोचनाजी के पति मनोहरलाल की लाङली 8 साल छोटी बहन थी. सुलोचना, मनोहर लाल और राजेश के अलावा घर में सुलोचना की सास मनोरमा देवी भी रहती थीं. मनोरमा देवी ने काफी तकलीफों का सामना करते हुए मनोहरलाल और गीता का पालनपोषण किया था. वह बेहद मेहनती और दिखावेबाजी से दूर रहने वाली महिला थी. घर के सभी सदस्य उन का बहुत सम्मान करते थे.

सीमा के आने की बात सुनते ही गीता देवी तुरंत नहाने और तैयार होने को चल पड़ी और सुलोचना देवी ने किचन की राह संभाली.

किचन में सारा काम बिखरा पड़ा था. औफिस से घर आए पति को चाय बना कर देना भी आवश्यक था और यह सब करतेकरते घड़ी में 6:30 बज गए. सुलोचना फिर से बाहर ड्राइंगरूम में आई और सामान थोड़ा सजाया. फिर किचन की तरफ बढ़ी ही थी कि दरवाजे की घंटी फिर से बज गई.

दरवाजे पर राजेश एक शालीन संकोची दिखने वाली लड़की के साथ खड़ा था,”नमस्ते आंटी,” लड़की ने मीठी आवाज में सुलोचना का अभिनंदन किया.

“नमस्ते बेटी. अंदर आओ, अंदर आओ,” कहते हुए सुलोचना ने सीमा को बैठने का इशारा किया और राजेश से बोली,”अरे बेटा, रोज तो 7:15 – 7:30 घर आते हो, आज 6:45 बजे ही पहुंच गए. क्या सीमा को घर लाने की इतनी जल्दी थी?”

“नहीं, यह बात नहीं, रोज तो मैं शेयर टैक्सी से आता हूं पर आज सीमा के साथ इस की स्कूटी पर निकल पड़ा इसलिए जल्दी पहुंच गया.”

सीमा को देख कर सुलोचना को राजेश की पसंद पर गर्व हो आया. सीमा दिखने में तो आकर्षक थी ही उस की बातचीत और कपड़े पहनने के लहजे से शालीनता स्पष्ट नजर आ रही थी. सुलोचना सीमा से उस की पढाई, शौक और घरपरिवार के बारे में बात करने लगी. हालांकि सीमा काफी खुशमिजाजी से ही बात कर रही थी फिर भी सुलोचना को पता नहीं क्यों उस के चेहरे पर कई बार गंभीरता के लक्षण आतेजाते नजर आए, खासकर जब सुलोचना उस के परिवार के बारे में पूछ रही थी.

मनोहरलाल और गीता ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया और राजेश ने सीमा से उन का परिचय कराना आरंभ किया.
सुलोचना झटपट किचन में जा कर नाश्ते की तैयारी में लग गई.

कढ़ाई में समोसे डालने के बाद सुलोचना ने मिक्सी में चटनी पीसना शुरू किया ही था कि चीं… चीं…की आवाज के साथ मिक्सी बंद हो गई .

सुलोचना ने झल्लाते हुए मनोहरलाल को आवाज लगाई,”अजी जरा बिल्डिंग के इलैक्ट्रीशियन को तो बुलाओ, यह मिक्सी फिर से खराब हो गई.”

“अभी पिछले हफ्ते ही तो ठीक करवाई थी,” मनोहर लाल बोले,”अभी शाम को 7:00 बजे इलैक्ट्रिशियन कहां से मिलेगा. अब तो मिक्सी कल ही ठीक होगी.”

“पर बिना चटनी के तो समोसे का कोई मजा ही नहीं आएगा,” सुलोचना का मुंह लटक गया,”बेटा राजेश, तू एक बार देखेगा क्या?”

“मम्मी, आप को तो पता ही है कि यह सब काम मुझ से नहीं होते. आप चिंता न करो आप के हाथ के समोसे तो इतने बढ़िया होते हैं कि हम बिना चटनी के तो क्या बिना तले ही खा लेंगे.”

सुलोचना ने सीमा की ओर देखा और कहा,”इन दोनों बापबेटों से घर का कोई काम कहो तो इन का जवाब ऐसा ही होता है. हमारी बिल्डिंग का इलैक्ट्रिशियन भी बहुत ढीला काम करता है. चलो, अब टोमैटो सौस के साथ ही समोसे खा लेंगे.” यह सुन कर सीमा उठ खड़ी हुई और बोली, “आंटी, मैं एक बार देखूं ?”

“अरे नहीं बेटी, यह तो बिजली मिस्त्री का काम है. मिक्सी भी कितनी पुरानी है, कब से बदलने की सोच रही हूं.”

“कोई बात नहीं आंटी, एक बार मुझे देखने तो दीजिए,” सीमा ने किचन में पड़ा चाकू उठाया और तार के जले हुए हिस्से को साफ करने में जुट गई. उसे यह करता देख राजेश ने कहा “बहुत बढ़िया, तुम्हें यह काम भी आता है यह तो मुझे पता
ही न था. हमारी आयरन पर भी जरा एक नजर डाल लो.”

सीमा ने मुसकराते हुए कहा, “जरूर मैं वह भी कर दूंगी पर फिलहाल आप मुझे एक स्क्रूड्राइवर और थोड़ा टेप खोज कर दीजिए.” जब तक राजेश स्क्रूड्राइवर खोज कर लाता सीमा ने मिक्सी को उठा कर देखा और कहा “आंटी तार जलने में न तो मिक्सी का दोष है और ना इलैक्ट्रिशियन का. इस के हवा के सारे छेद बंद हो गए हैं और इस वजह से मिक्सी गरम हो कर खराब हो जा रही है. कोई पुराना टूथब्रश मिलेगा क्या?”

5 मिनट के अंदर सीमा ने तार का जला हुआ हिस्सा वापस जोड़ दिया और मिक्सी की पूरी सफाई कर डाली,“लीजिए, आंटी आप की मिक्सी फिर से सेवा में हाजिर है.”

सुलोचना ने जैसे ही मिक्सी का बटन दबाया मिक्सी चल पड़ी. “अरे मिक्सी की आवाज भी बहुत कम हो गई, बहुत बढ़िया.”

“और क्या आंटी, आज के जमाने में इतनी बढ़िया मिक्सी नहीं मिलती. आप इस का वजन तो देखो असली तांबे के तारों से इस की मोटर बनी है,”अपनी प्यारी मिक्सी की तारीफ सुन कर सुलोचना प्रसन्न हो गई. “चलो बेटी तुम बाहर सब के
साथ बैठो, मैं अभी आती हूं.”

“नहीं आंटी, मैं भी आप का साथ देती हूं. मुझे भी समोसे बनाना आ जाएगा,” सीमा के हाथों में गजब की फुरती थी और सुलोचना के बताए तरीके से उस ने फटाफट समोसे बना डाले. दोनों नाश्ते की प्लेटें ले कर बाहर आईं.

राजेश जा कर मनोरमा देवी को बुला लाया और सभी ने अच्छे से नाश्ता किया. मनोरमा देवी ने सीमा से बातें तो थोड़ी ही कीं लेकिन उसे लगातार देखती जरूर रहीं.

“अच्छा आंटी, 8:00 बज गए हैं, मैं चलती हूं. आप सभी के साथ बातों में सवा घंटा कैसे निकल गया पता ही न
चला.”

“क्या खाना नहीं खाओगी, सीमा?”

“नहीं आंटी, खाना तो मेरा घर पर तैयार पड़ा होगा. फिर कभी प्रोग्राम
बनाती हूं,” सब को नमस्कार कर सीमा निकल पड़ी.

सीमा के जाने के बाद सुलोचना और गीता ने एकसाथ उस की बढ़ाई करनी शुरू कर दी. वास्तव में दोनों ने अपनी आंखों से सीमा की कुशलता और सुंदरता को देख लिया था और अभी तक उन्होंने राजेश के लिए जितने भी रिश्ते देखे थे उन की तुलना में सीमा उन्हें बहुत ही बेहतर लगी.

गीता ने कहा,”दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी बन पड़ेगी मनोहर भैया, अब तो चट मंगनी पट ब्याह कर डालो.”

उन की बातें सुनकर राजेश ने कहा,”बुआजी, मैं आप को सीमा के बारे में कुछ और भी बताना चाहता हूं. ऐसा करें हम डिनर के बाद बात करते हैं, नहीं तो दादी को सोने में देर हो जाएगी.”

राजेश की बात सुन कर सुलोचना और गीता चकरा गए फिर भी उन्होंने कहा,”ठीक है, तुम लोग चेंज कर के आओ. 9:00 बजे खाना टेबल पर तैयार रहेगा.”

खाना बनाते बनाते सुलोचना और गीता देवी के दिमाग में प्रश्न ही प्रश्न चक्कर लगा रहे थे. एक बात तो स्पष्ट थी कि बात गंभीर ही है और राजेश दादी के सामने इस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहता है. खाने का काम 9:30 बजे पूरा हुआ और मनोरमा देवी अपने कमरे में चली गई.

“हां बेटा राजेश, बोलो क्या सरप्राइज़ दे रहे हो ?” मनोहरलाल ने जबरन अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए वातावरण को हलका करने की चेष्टा की हालांकि उन का मन भी अंदर से धकधक कर रहा था कि राजेश पता नहीं क्या बात बताने वाला है. वास्तव में राजेश ने जो कहा वह सुन कर सब का दिमाग घूम गया.

राजेश ने कहा, “मां सीमा एक विधवा है. आज से 2 साल पहले इस का विवाह यहीं इंदौर में धूमधाम से एक व्यवसायी परिवार में हुआ था. देर रात तक विवाह की रस्में पूरी करने के बाद बारात सवेरे ग्वालियर पहुंची. बहू का ग्रहप्रवेश करवाया गया. बाराती अपनेअपने सामान को सजाने में जुट गए और लड़कियां सीमा से बातें करने में.

सीमा का पति भी वहीं बारबार आजा रहा था और लड़कियां उस का मजाक उड़ा रही थीं,“अरे भैया कुछ देर हम भी तो बातें कर लें, आप के पास तो यह हमेशा रहने वाली है, आप को इतनी क्या जल्दी है?”

इतने में सीमा की सास ने सीमा के पति को आवाज दी,”अरे बेटा, शादी की मिठाई ले कर ज्ञानदेव बाबा के आश्रम चला जा.”

उस परिवार में ज्ञानदेव बाबा को जीताजागता देवता माना जाता था और घर का हर काम उन के आदेशों पर ही होता था.

“मां, मैं तो बहुत थका हुआ हूं. क्या अभी जाना जरूरी है? शाम को तो सीमा को ले कर वहां बाबा का आशीर्वाद लेने जाना ही है.”

सीमा की सास ने गरम होते हुए कहा,”और अगर ज्ञानदेव बाबा को पता चल गया कि बारात सवेरे आई लेकिन मिठाई उन के यहां शाम को पहुंची है तो क्या वह बासी मिठाई पर नजर भी डालेंगे? बैठ जा मुन्नू के पीछे मोटरसाइकिल पर और मिठाई पहुंचा कर आजा.”

पीछे से लड़कियों ने आवाज लगाई,”हां ताई, भैया को तो भाभी से बातें करनी है इसलिए इन्हें आलस आ रहा है.”

सीमा का पति झेंपते हुए मिठाई के थैले ले कर अपने चचेरे भाई के पीछे मोटरसाइकिल पर बैठ गया. घंटे बाद दरवाजे पर काफी आवाज हुई. जब लोगों ने दरवाजे पर पुलिस को खड़ा देखा तो सब के होश गुम हो गए.
पता चला कि आधी नींद में मोटरसाइकिल चलाता हुआ मुन्नू ज्ञानदेव बाबा के आश्रम के बाहर एक ट्रक से टकरा गया था.

मुन्नू बुरी तरह घायल हो गया था और सीमा का पति जिस ने अपनी नवविवाहिता पत्नी की शक्ल तक ठीक से नहीं देखी थी, आश्रम के दरवाजे के सामने निर्जीव पड़ा था. घर में हाहाकार मच गया. चारों ओर रोनेधोने की आवाज गूंजने लगी. सीमा तो यह खबर सुनते ही बेहोश हो गई. जब उसे होश आया तो उस के आसपास कोई नहीं था. किसी ने यह देखने की जरूरत नहीं समझी कि सीमा पर क्या गुजर रही होगी.

दोपहर तक सीमा कमरे में एक जिंदा लाश की तरह पड़ी रही. करीब 3:00 बजे उस के भाई ने कमरे में कदम रखा. भाई को देखते ही सीमा चीख कर भाई से लिपट गई और फूटफूट कर रोने लगी. पता चला कि सीमा के पति की मृत्यु की खबर मिलते ही सीमा के ससुर ने उन के घर फोन किया और कहा कि वह आ कर
सीमा को ले जाएं.

रोतीबिलखती सीमा जब घर से निकल रही थी तब घर का कोई सदस्य न तो उसे संभालने आया न किसी के मुंह से उस के लिए सहानुभूति के 2 शब्द निकले. गनीमत यही थी कि किसी ने उसे कोसा नहीं, कम से कम उस के सामने तो नहीं कुछ नहीं कहा.

अगले दिन सीमा की ससुराल वालों ने उस का सारा सामान वापस भेज दिया और हमेशा के लिए रिश्ता खत्म कर लिया. सुनने में आया कि ज्ञानदेव बाबा ने इस हादसे की जिम्मेदारी सीमा के सिर पर थोपी थी नकि सीमा की सास की बेवकूफी पर जिस ने बच्चों को जिद कर कर बाबा को मिठाई पहुंचाने भेजा था जबकि वह पूरी रात सोए नहीं थे और थके हुए थे.

धीरेधीरे सीमा ने खुद को संभाला. किसी तरह उसे अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई जिस से उस का समय गुजरने लगा और बीती बातों को भूलने में मदद मिली. अकलमंद और मेहनती तो वह थी ही, जल्दी ही कंपनी में उसका कंफर्मेशन भी
हो गया. कहते हैं न कि समय सब घावों को भर देता है. राजेश जब हैदराबाद से इंदौर वापस आया तो संयोगवश उस की पोस्टिंग उसी डिपार्टमैंट में हुई जहां सीमा काम करती थी. वह सीमा की मेहनत से बहुत प्रभावित हुआ क्योंकि सीमा अकेले ही उस के 2 मातहतों के जितना काम कर लेती थी और उसे कभी सीमा के काम में गलतियां नहीं मिलीं.

काम के मामले में सीमा से उस की रोज ही बात हो जाती थी. धीरेधीरे उसे सीमा अच्छी लगने लगी और वह उसे भावी जीवनसंगिनी के रूप में देखने लगा. तब तक उसे भी सीमा के जीवन का यह अध्याय पता नहीं था. जब उस ने सीमा के प्रोमोशन की सिफारिश एचआर डिपार्टमैंट से की तब उसे सीमा के जीवन में घटी इस दुर्घटना का पता चला.

यह सब बता कर राजेश ने कहा, “पापा, मम्मी, बुआजी, अब निर्णय आप के हाथों में है. मुझे जो कुछ पता था वह मैं ने आप को साफसाफ बता दिया है. बाकी आप किसी भी तौर पर देखें तो सीमा मेहनती है, गुणवती है और मुझे बहुत पसंद भी है. उस का छोटा सा परिवार उस से बहुत स्नेह करता है और उस के भाईभाभी उसे बहुत अच्छी तरह रखते हैं. उस
पर दूसरी शादी करने का परिवार वालों की तरफ से कोई दबाव नहीं है और आर्थिक रूप से भी वह स्वतंत्र है.”

“नहीं बेटा, यह तू क्या कह रहा है. यह कैसे हो सकता है?” सुलोचना और गीता दोनों के मुंह से यही शब्द साथ साथ निकले.

गीता ने कहा,”हमारा इकलौता बेटा एक विधवा से शादी करेगा? अरे बेटा दुनिया में लड़कियों की क्या कमी है? मैं एक से एक रिश्ते तेरे लिए खोज कर लाऊंगी. मानती हूं कि सीमा बहुत सुंदर भी है और गुणवती भी, लेकिन दुनिया में और भी ऐसी लड़कियां मिलेंगी और वह भी कुंआरी.”

सभी ने मनोहरलाल की तरफ देखा तो उन का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. उन्होंने लगभग गुर्राते हुए कहा,”हरगिज नहीं, यह कभी नहीं होगा. तुझे कुछ हो गया तो?“ मनोहरलाल का रुख गीता और सुलोचना से भी ज्यादा कड़ा था.

“पर पापा…“ राजेश कुछ कहना चाहता था पर उस की बात काटते हुए मनोहरलाल बोले, “और तुम ने यह सोचा है नालायक कि मां क्या कहेगी? मां की उम्र का पता है तुझे? अगर यह बात उन्होंने सुन भी ली तो उन की तबीयत बिगड़ सकती है. अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं अपने हाथों से तेरा गला दबा दूंगा.”

“अरे आप धीरे तो बोलिए. आप की आवाज से ही मांजी की नींद खुल जाएगी,” सुलोचना ने कहा.

राजेश और गीता कुछ बोलने लगे इतने में मनोरमा देवी के कमरे का दरवाजा खुला. सभी लोग बोलतेबोलते चुप हो गए.

“राजेश इधर मेरे कमरे में आओ. तुम सब यहीं बैठो और हमारा इंतजार करो,” मनोरमा देवी ने बहुत पहले की कड़क आवाज में जब यह कहा तो किसी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला.

करीब 15 मिनट बाद मनोरमा देवी राजेश के साथ बाहर निकलीं और आ कर सब के साथ सोफे पर बैठ गईं. राजेश के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. गीता, सुलोचना और मनोहरलाल एकटक मनोरमा देवी की ओर देख रहे थे.

मनोरमा देवी ने कहा,“ राजेश की शादी सीमा के साथ ही होगी. मुझे यह जान कर बहुत खुशी है कि राजेश ने अपने लिए बिलकुल उपयुक्त पत्नी खोज ली है, जो हम सब मिल कर भी कभी न कर पाते.”

“मां आप क्या कह रहे हो?” मनोहरलाल बोले “आप को पता है सीमा एक विधवा है? हम एक विधवा को बहू बना कर लाएं, यह कैसे हो सकता है? लोग क्या कहेंगे? आप दुनिया की बातें, शगुनअपशगुन, रीतिरिवाज का कुछ तो खयाल करो,” मांबेटे के विरोधी विचार देख सुलोचना और गीता को चुप रहने में ही भलाई लगी.

मनोहरलाल की बात सुन कर मनोरमा देवी 2 मिनट बिलकुल शांत रहीं. इस के बाद उन्होंने जो कहा वह घर के सभी सदस्यों के लिए राजेश की बातों से भी ज्यादा चौंकाने वाला था, “ बेटा, मनोहर तू भी एक विधवा मां की संतान है.”

मां की बात सुन कर मनोहरलाल को लगा कि मनोरमा देवी अपने खुद के बारे में बोल रही हैं.

“मां, पिताजी का 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था तो वह बिलकुल अलग बात है.”

“नहीं बेटा, मैं यह नहीं कह रही. मैं आज तुझ से जो कहने वाली हूं यह सचाई मैं तुझे अपने जीतेजी नहीं बताने वाली थी. पर आज मुझे बोलने पर मजबूर होना पड़ा नहीं तो तुम बहुत बड़ा अनर्थ कर बैठते.”

“कैसा अनर्थ, कैसी सचाई? मां, तुम क्या कह रही हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा?” गीता के मुंह से बरबस निकल पड़ा. मनोरमा देवी ने कहा, “तुम सब विमला चाची के बारे में क्या जानते हो?”

विमला मनोरमा की देवरानी थी और उन का घर में अकसर आनाजाना लगा रहता था. बचपन से ही मनोहरलाल और गीता ने उन को स्नेह की प्रतिमूर्ति के रूप में जाना था. मनोरमा देवी के दोनों बच्चों से वह उतना ही स्नेह करती थीं जितना अपने बच्चों से.

“बेटा ,तुम्हारी चाची बनने से पहले विमला का एक विवाह और हुआ था और सीमा की ही तरह शादी के कुछ दिनों बाद उस का पहला पति बीमार हो कर गुजर गया. यह बात आज से 55 वर्षों पहले की है. विमला तुम्हारे दादाजी के घनिष्ठ मित्र की पुत्री थी और उस का दुख देख कर उन्होंने तुम्हारे चाचाजी से उस का पुनर्विवाह करने का निर्णय लिया.

घर के सदस्यों ने जब उन का विरोध किया तब उन्होंने भूख हड़ताल कर दी और 3 दिनों तक अन्न का एक दाना भी मुंह में नहीं लिया. आखिरकार घर वालों को उन की बात माननी पड़ी और विमला तुम्हारी चाची बन कर हमारे घर आ गई. बहुत थोड़े ही समय में विमला ने अपने अच्छे व्यव्हार से घर में सभी को अपना बना लिया और हमारा परिवार बहुत
अच्छे से चलने लगा. हमारी चिंता के विपरीत 1-2 सालों में ही लोगों ने इस बात को आयागया कर दिया.

विमला को मुझ से थोड़ा ज्यादा ही लगाव था क्योंकि जब तुम्हारे दादाजी ने इस रिश्ते का प्रस्ताव किया था तब पूरे घर में सिर्फ मैं ने इस का समर्थन किया था और तुम्हारे चाचा को भी इस के लिए प्रेरित किया था. शादी के 2 साल बाद विमला ने तुम्हें जन्म दिया.

मेरी गोद तब तक सूनी ही थी हालांकि मेरी शादी को 5 वर्ष हो चुके थे. अस्पताल से घर आने के बाद विमला सीधे मेरे पास आई और तुम्हें मेरी गोद में डाल दिया. मैं चकित हो कर उस की तरफ देखने लगी. बहुत मना भी किया पर विमला ने मेरी एक न मानी. उस के बाद विमला की 2 संताने और हुईं और मैं ने भी गीता के रूप में संतानसुख प्राप्त किया. तो बेटा, अब यह बताओ तुम्हें विमला चाची में क्याक्या खामियां, दोष और गलतियां दिखाई पड़ती हैं? तुम तो
उन्हें बचपन से देखते आ रहे हो. क्या तुम्हें कभी यह लगा कि विमला की वजह से तुम्हारे चाचा पर या तुम बच्चों पर किसी किस्म की आंच आई है? तुम्हें तो पता है कि तुम्हारा ब्लड ग्रुप इतना रेयर है कि लाखों में एक इंसान ही तुम्हें खून दे सकता है. जब तुम्हें कालेज में चोट लगी थी तब विमला ने 2 बोतल खून दे कर तुम्हारी जान बचाई थी. नहीं तो पूरे मध्य प्रदेश में डोनर खोजतेखोजते बहुत देर हो जाती. क्या तुम ने कभी सोचा कि उन का खून तुम से इतनी आसानी पूर्वक कैसे मैच कर गया?”

मनोहर लाल, गीता और सुलोचना के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. राजेश सोफे से उठ कर अपनी दादी के पावों के पास बैठ गया और तीनों की तरफ देखने लगे. मनोहर लाल उठे और अपने कान पकड़ते हुए बोले,“मां, आज आप ने मुझे बहुत बड़ी गलती करने से बचा लिया. आप जो कह रही हैं वही होगा. दुनिया की मुझे कुछ नहीं पड़ी, जो जिसे जो कहना है वह कहता रहे. सीमा ही इस घर में बहू बन कर आएगी. हमें उस के जीवन में घटी दुखद घटना के बारे में उसे एक शब्द भी कभी नहीं कहना है.”

मनोरमा देवी ने कहा, “एक और बात बेटा, अभी जो कुछ मैंने तुम्हें बताया वह राज हमारे बीच में ही रहे. तुम में से कोई इस का जिक्र विमला से कभी न करना और न ही विमला के प्रति तुम्हारे व्यवहार में कोई परिवर्तन आए.”

मनोहरलाल जोरजोर से सिर हिला कर सहमति जता रहे थे क्योंकि शब्द उन के गले में अटक गए थे. गीता और सुलोचना की आंखों से जारजार आंसू बह रहे थे पर यह आने वाली खुशियों के स्वागत के आंसू थे.

शगुन का लिफाफा

अगर मुझ से कोई पूछे कि इस दुनिया में विवाह के दिनों का सब से मुश्किल काम क्या है तो आजकल मेरे मुंह से एक आह सी निकल जाती है, मैं कहती हूं, दूल्हादुलहन को स्टेज पर जा कर शगुन का लिफाफा देने से ज्यादा मुश्किल कुछ नहीं है.

पिछले हफ्ते जिस शादी में गई, उस की याद रातों को जगा जाती है. हम पतिपत्नी पास के ही एक रिसौट्र्स में एक रिसैप्शन में गए थे. कोरोना ने कई दावतें मारी थीं, कई खुशियां अपनों के बिना मजबूरी में मना ली गई थीं. इस त्रासदी की लंबी परेशानियों के बाद यह पहला इस तरह का फंक्शन था, बहुत से दोस्त वहां मिलने वाले थे. अति उत्साहित सी मैं भी सजधज कर वहां पहुंची. खूबसूरत से रिसौट्र्स की मनमोहक सजावट बाहर से ही बता रही थी कि बढ़िया पार्टी होने वाली है.

पर हाय, कहां गया पुराना जमाना, जब किसी शादी में जाने पर घर का कोई सदस्य हाथ जोड़ कर स्वागत करता था, मेहमान को स्पैशल फील होता था, यहां तो एक बंदा नहीं, और अंदर गए तो एक बहुत ज्यादा लंबी लाइन दिखी, जिस के आगेपीछे किसी और चीज पर नजर जा ही नहीं पा रही थी, लटके चेहरे, थकी, उबाऊ बौडी लैंग्वेज वाले लोगों की बेचैन लाइन, शानदार बने स्टेज पर खड़े दूल्हा, दुलहन, दोनों के परिवार तक पहुंचने के लिए लालायित लोग.

उस लाइन को देख कर हम ने एकदूसरे को देखा, पति कुछ कहें, इस से पहले मैं ने बाजी मारी, ‘न… यह नहीं हो पाएगा. मैं इस लाइन में नहीं खड़ी होने वाली.”

हम ने इधरउधर नजर डाली, एक दोस्त दिखा, देखते ही बोला, ‘मैं ने तो आते ही बबलू को लाइन में लगा दिया था, वो देखो, सुरेश की बेटी पिंकी भी लाइन में लगी है, वे दोनों खाना खा रहे हैं, बस ऐसे ही काम चलाना पड़ रहा है.”

मैं ने कहा, “भाई साहब, हम क्या करें… हमारे साथ तो कोई पिंकी, बबलू नहीं.”

“फिर तो भाभीजी, आप लोग एकएक कर के खा लो, और दूसरा लाइन में लगा रहे.”

“अरे, खाने का क्या है, खा ही लेंगे. ये तो सब स्टेज पर हैं, इन से तो मिलना ही मुश्किल लग रहा है, स्टेज पर गए बिना इन लोगों को पता भी नहीं चलेगा कि हम आए भी हैं. बड़ी मुश्किल है.”

“हां, आसान तो नहीं है. हम तो आते ही लाइन में लग गए थे.’’

इतने में हमारी बेटी झिलमिल का फोन आ गया, “आप लोग ठीक से पहुंच गए, मम्मी?”

“मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है, औरों के बच्चे देखो. आ कर कैसे अपने पेरेंट्स की हैल्प कर रहे हैं, एक तुम हो कि घर में ही हो, पर साथ में नहीं आई, कुछ हैल्प हो जाती!”

“अरे, आप दोनों अपने सर्किल में शादी की पार्टी में गए हो, मुझ से वहां क्या हैल्प चाहिए थी?”

“अरे, आ कर कम से कम लाइन में लग जाती.”

“क्या…? कौन सी लाइन में…?”

मुझे अचानक लगा कि अब झिलमिल को कुछ भी कहूंगी तो बस अपना मजाक ही बनवाऊंगी. मैं ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, घर आ कर बात करते हैं.’’

हम दोनों को भीड़ से बहुत ही परेशानी होती है, हम उस जगह जाते ही नहीं, जहां हमें इस तरह की भीड़ दिख जाती है. आधा ग्राउंड तो चेयर्स से भरा था, मैं ने कहा, “इतनी चेयर्स रखी  हैं, पर इन पर लोग बैठ ही नही रहे, बेचारे लाइन में खड़े रह कर शगुन का लिफाफा दे कर ऐसे घर भागेंगे कि आ कर गलती कर दी. चलो, हम बैठ कर सोचते हैं कि इस मुसीबत के पलों से कैसे निबटा जाए.”

“हद करती हो, किसी के बच्चे की पार्टी है, तुम्हें ये मुसीबत की घड़ी लग रही है.”

“न भाई, अपना तो जोश ठंडा हो गया, कोई दोस्त भी दिख रहा है तो बस या तो जल्दीजल्दी खाने में लगा है या लाइन में है. मैं तो सोच कर आई थी कि सब के साथ थोड़ी बातें करेंगे, बैठेंगे, यहां तो माहौल ऐसा है कि सब के जीवन का उद्देश्य इस समय है कि बस स्टेज तक पहुंच जाएं, बाकी सब चीजें भाड़ में जाएं.”

“क्या करें…? घर चलें…? कहीं रास्ते में डिनर कर लेंगे.”

“और शगुन का लिफाफा…”

“किसी दिन इन के घर ही चल कर दे आएंगे.”

अपने काम की बात सुनी तो पीछे खड़ा परिचित फौरन हम पतिपत्नी के आइडिया पर बीच में कूद पड़ा, “हां यार, ऐसा ही करते हैं, इन के घर जा कर शगुन दे आएंगे. पर, खाना खा लेते हैं.”

हम दोनों ने आंखों ही आंखों में ‘हां’ किया, अब खाने की लाइन देखी, यह लाइन शगुन वाली से छोटी  थी. हम ने इस लाइन में खड़े होने की हिम्मत की, पता नहीं एक महिला को किस बात की जल्दी थी, उस ने मेरे पीछे से हाथ बढ़ा कर अपनी प्लेट में सब्जी इस तरह से ली कि मुझे लगा, मेरी गरदन पर पीछे सब्जी का कुछ गीलापन है, मैं ने उसे पलट कर जरा घूरा, वो कहीं और देखने लगी, मुझे उस की जल्दबाजी पर गुस्सा आया था. मैं ने उस से साफसाफ पूछ लिया, “मेरी गरदन पर आप की प्लेट से कोई सब्जी लगी है?”

“जरा सी. मैं टिश्यू पेपर से साफ कर देती हूं,” कह कर उस ने मेरी ‘हां’ या ‘ना’ का इंतजार ही नहीं किया, जो भी निशान रहा होगा, झट से पोंछ दिया. मन में सोचा, ‘भई, तुम्हें इतनी जल्दी क्यों मची है, आगे खड़ी महिला का सुंदर ब्लाउज तुम्हें न दिखा…? उस पर गिर जाता तो…?’ फिर अपनेआप ही बोली, “सौरी, जरा शगुन वाली लाइन में खड़े होने की जल्दी है, पति को लाइन में खड़ा कर के आई हूं.”

उस के यह कहते ही मेरा मन उस के प्रति करुणा से भर गया. मैं ने उसे फौरन माफ कर दिया. मैं ने ‘इट्स ओके’ कहते हुए उसे एक प्यारी स्माइल दी. खाना खा कर हम ने फिर एक ठंडी सांस ले कर शगुन वाली भीड़ को देखा, अब तक हमारा आइडिया वायावाया घूम कर काफी लोगों को शांत कर गया था कि जिस का मनोबल कम है, जिस में जोश कम है, वह घर जा कर शगुन आराम से बाद में दे देगा. इतने में मेजबान दोस्त की बहन की नजर बहुत दूर से हम पर पड़ी, उस ने वहां से हाथ हिलाया, हम ने यहां से. उस ने स्टेज पर आने का इशारा किया, हम ने लाइन दिखाते हुए दूर से हाथ जोड़ दिए और इशारा किया कि बाद में मिलेंगे.

चंट बहन फौरन समझ गई कि लोग इस तरह जाने लगे, तो कहीं भाई का नुकसान न हो जाए, हमारे पास लपकी आई, मुझ से गले मिली, “आओ, चलो स्टेज पर.”

मैं ने कहा, “घर पास ही है, बाद में जा कर शगुन दे दूंगी. देखो मीता, इस लाइन में तो मैं खड़ी नहीं होने वाली. या एक काम करो, तुम यह लिफाफा रखो, हमारी तरफ से शगुन दे देना और बता देना कि हम आए थे.”

“अच्छा, चलो, मैं तुम्हें स्पैशल ऐंट्री दिलवाती हूं.”

“कैसे…?”

“अरे यार, एक सेकंड का काम है. जिस तरफ से लोग स्टेज से उतर रहे हैं, तुम लोग उधर से मेरे साथ आ जाओ, शगुन अपने हाथ से दो और वहीं सब से मिलो, फोटो खिंचवाओ, आओ.”

मुझे उस की यह चंट बहन नहीं, इस समय वह मुझे मुश्किलों से उबारने वाली देवदूत सी बहन लगी. हम उस के पीछेपीछे चल पड़े और वह बड़े आराम से हमें उतरने वाली साइड से स्टेज पर ले गई, मेजबान दोस्त अब कहीं जा कर गले मिले, हम ने शगुन का लिफाफा दिया, फाइनली इस लिफाफे का बोझ हमारे दिल से कम हो पाया था. हमारा संघर्ष खत्म हो गया था, पर हमें इस तरह से स्टेज पर जाते देख लाइन में खड़े लोगों ने नाराजगी भरा शोर सा मचाया. हम जल्दी से स्टेज से उतर कर अपनी राह हो लिए, मन में आया, ‘ऐ लोगो, कभी कहीं और भी गलत बातें देख आवाज उठा लिया करो. सब जगह चल रही धांधलेबाजी देख चुप रहते हो, यहां भी फिर चुप ही रहो, अपनी बारी आई तो जरा सी भी गलत बात बरदाश्त नहीं हुई.

हुंह, मैं इठलाती सी किला फतेह जैसी भावना से पति के साथ वापसी के लिए कार में बैठ गई.

“क्या सोच रही हो…?”

“भारत लाइन प्रधान देश बनता जा रहा है, कभी नोटबंदी की लाइन, कभी राशन की लाइन, शादी में शगुन की लाइन, खाने की लाइन, बस की लाइन… शादी के कार्ड में अब अकाउंट नंबर भी देने चाहिए, जिस से लोग कम से कम शादी में आ कर कुछ तो ऐंजौय कर लें, शगुन सीधे अकाउंट में डाल देना चाहिए. आजकल पेटीएम है, फोन पे है, कितना कुछ तो है. यह लाइन खत्म होनी चाहिए.”

“तुम और तुम्हारे आइडिया,” हंसते हुए कह कर उन्होंने कार स्टार्ट कर दी थी, पर आप बताइए कि यह आइडिया अच्छा है न.

बिलकिस बानो केस : सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का फैसला पलटा

2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान दंगाइयों ने 21 वर्षीया मुसलिम महिला बिलकिस बानो से गैंगरेप किया था. बिलकिस उस वक्त 5 माह की गर्भवती थी. दंगाई यहीं नहीं रुके, बल्कि बिलकिस की आंखों के सामने उस के घर के 7 सदस्यों को कत्ल कर डाला. दंगाइयों ने उस की 3 साल की मासूम बेटी को भी नहीं छोड़ा और मां की आंख के सामने उसे तलवार से काट डाला.

बिलकिस अपराधियों को सजा दिलाने के लिए बीते 22 सालों से अदालती लड़ाई लड़ रही है. उस को इंसाफ के लिए इतना लंबा सफर तय न करना पड़ता अगर दंगाइयों को गुजरात सरकार की शह न होती. सरकार ने समयसमय पर अपराधियों की ऐसी मदद की और सुप्रीम कोर्ट तक को ऐसा गुमराह किया कि जिस के खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट भी भौचक्का है.

बिलकिस मामले में तब सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. मगर गुजरात सरकार ने एक राहत कमेटी गठित कर उस की सिफारिश पर 2022 में 11 दोषियों की रिहाई करवा दी. सरकार के फैसले को जब बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने गुजरात सरकार को आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि जब बिलकिस बानो के दोषियों को उन के जघन्य कृत्य के लिए सजा ए मौत से कम यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो 14 साल की सजा काट कर वे कैसे रिहा हो गए?

बिलकिस बानो के दोषियों को जिस अप्रचलित कानून की मदद से रिहा कर दिया गया था उस से विपक्ष, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज में निंदा और आक्रोश की लहर थी. उधर बिलकिस बानो को उस के अपराधियों की रिहाई के बारे में सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी. जब बिलकिस को इस का पता अखबारों के माध्यम से चला तब उस ने वृंदा करात के जरिए उन की रिहाई के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

दरअसल, बिलकिस के दोषियों को जेल से निकलवा कर सरकार अपनी दंगा आर्मी को संदेश देना चाहती थी कि ‘हम बैठे हैं न बचाने के लिए.’ मगर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस घिनौनी मंशा को ताड़ लिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी. कोर्ट ने पूछा-

– कोर्ट ने गुजरात सरकार से दोषियों को ‘चुनिंदा’ छूट नीति का लाभ देने पर सवाल उठाया और कहा कि सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को दिया जाना चाहिए. जब तमाम जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं, तो सुधार का मौका सिर्फ इन कैदियों को ही क्यों मिला?

– 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को ही क्यों दी गई, बाकी कैदियों को क्यों नहीं इस का फायदा दिया गया?

– सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना ने पूछा, इस मामले में दोषियों के बीच भेदभाव क्यों किया गया? यानी पौलिसी का लाभ अलगअलग क्यों दिया गया?

– सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा कि बिलकिस के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी और जब गोधरा की अदालत ने ट्रायल ही नहीं किया तो उस से राय क्यों मांगी गई?

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने जिस दिलेरी से कानून के दायरे में सरकार की गलत नीतियों और आशाओं की धज्जियां उड़ाई हैं और उस को नसीहतें बांची हैं, उस से जजों की हिम्मत भी खुली. कोर्ट ने मामले में सरकार से जवाब मांगा और सुनवाई जारी रखी. अब 8 जनवरी, 2024 को जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बैंच ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए रिहा किए गए अपराधियों को फिर से जेल भेजने का फैसला सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बैंच ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए दोषियों की सजामाफी का गुजरात सरकार का आदेश रद्द कर दिया है और दोषियों को वापस जेल भेजने के लिए 2 हफ्ते में सरैंडर करने के लिए कहा है. इस के साथ ही कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार फैसला लेने के लिए उचित सरकार नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपना 2022 का फैसला भी रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मई 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गुजरात सरकार को पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए थी. जो उस ने नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 13 मई, 2022 का फैसला (जिस ने गुजरात सरकार को दोषी को माफ करने पर विचार करने का निर्देश दिया था) अदालत के साथ धोखाधड़ी कर के और भौतिक तथ्यों को छिपा कर प्राप्त किया गया था.

कोर्ट ने कहा– ‘गुजरात सरकार ने 13 मई, 2022 के फैसले को आगे बढ़ाते हुए महाराष्ट्र सरकार की शक्तियां छीन लीं, जो हमारी राय में अमान्य है. गुजरात सरकार ने दोषियों से मिल कर काम किया. गुजरात राज्य द्वारा शक्ति का प्रयोग शक्ति को हड़पने और शक्ति के दुरुपयोग का एक उदाहरण है. यह एक क्लासिक मामला है, जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल छूट दे कर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया.

अखिलेश यादव और मायावती के बीच की रार, आखिर क्यों नहीं थम रही है?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती के बीच गहमागहमी थमने का नाम नहीं ले रही है. 1993 और 2019 में एकसाथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने के बाद भी दलितपिछड़ों के 2 बड़े नेताओं के बीच कोई सामंजस्य नहीं बन सका है. एकदूसरे के खिलाफ तल्खी कायम है. मायावती के ‘इंडिया’ गठबंधन में हिस्सा बनने के सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा, ‘उन को गठबंधन में शामिल तो कर लें लेकिन चुनाव बाद इस बात की गांरटी कौन लेगा कि वे गठबंधन से बाहर नहीं जाएंगी.’

अखिलेश यादव का जवाब ऐसा था जैसे मायावती भरोसेमंद राजनीतिज्ञ नहीं हैं. इस बात का जवाब मायावती ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट से दिया. मायावती ने लिखा- ‘अपनी दलितविरोधी आदतों, नीतियों और शैली से मजबूर सपा प्रमुख को बीएसपी पर अनर्गल तंज कसने से पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि उन का दामन भाजपा को बढ़ाने व उन से मेलजोल करने में कितना दागदार है.’

मायावती ने आगे लिखा- ‘तत्कालीन सपा प्रमुख द्वारा भाजपा को संसदीय चुनाव जीतने से पहले व उपरांत आशीर्वाद दिए जाने को कौन भुला सकता है. फिर भाजपा सरकार बनने पर उन के नेतृत्व से सपा प्रमुख का मिलनाजुलना जनता कैसे भूल सकती है. ऐसे में सपा सांप्रदायिक ताकतों से लड़े, तो क्या उचित होगा.’ जिस अंदाज में अखिलेश यादव ने मायावती पर हमला किया, मायावती ने पूरे ब्याज के साथ इस को वापस भी कर दिया.

अखिलेश के तंज की वजह क्या है ?

1993 में समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन हुआ था. उस समय सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बसपा की कमान कांशीराम के पास थी. वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर दी थीं. उस का मुकाबला करने के लिए भाजपा मंदिर की राजनीति को अपना सहारा बना रही थी. राजनीति में ‘मंडल बनाम कमंडल’ का दौर था. मुलायम और कांशीराम को लगा कि अगर दलितपिछड़े एक नहीं हुए तो राजनीति से बाहर हो जाएंगे. दोनों ने एकसाथ चलने का इरादा कर नारा दिया था- ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’.
सपा-बसपा गठबंधन ने उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीता और सरकार बना ली. यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. दोनों के बीच विवाद हुआ. 2 जून, 1995 का गेस्ट हाउस कांड हो गया. जिस में सपा के समर्थकों ने मायावती के खिलाफ आपित्तजनक व्यवहार किया. इस के बाद सपा-बसपा की दोस्ती टूट गई. 24 साल के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ. इस बार सपा की कमान अखिलेश और बसपा की कमान मायावती के पास थी.

इस लोकसभा चुनाव में सपा को 5 और बसपा को 10 लोकसभा की सीटें हासिल हुईं. इस से पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को 5 सीटें ही मिली थीं और बसपा को जीरो. 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का पूरा लाभ बसपा को मिला. उस की सीटें जीरो से बढ़ कर 10 हो गई. सपा जस की तस रह गई. अखिलेश यादव ने चुनाव के बाद यह कहा कि बसपा ने उन के वोट ले लिए पर अपने वोट नहीं दिलाए. यहीं से मायावती और अखिलेश के बीच खटास बढ़ने लगी. दोनों वापस अलग हो गए.

इंडिया गठबंधन में उठा मसला :

2024 के लोकसभा चुनाव के पहले अब ‘इंडिया गठबंधन’ बना है. अखिलेश इस का हिस्सा बन गए. इस के बाद भी कांग्रेस मायावती की बसपा को भी गठबंधन में रखना चाहती थी. मायावती ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. मायावती के करीबी लोगों ने मीडिया को बताया कि अगर मायावती को गठबंधन का पीएम फेस बनाया जाए तब गठबंधन में शामिल होने का विचार किया जा सकता है. यह बात आगे बढ़ी नहीं. कांग्रेस लगातार बसपा को गठबंधन में लाने का प्रयास करती रही. कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडेय ने कहा कि, ‘बसपा से तालमेल के प्रयास जारी हैं.’

इस के पहले इंडिया गठबंधन की दिल्ली की मीटिंग में अखिलेश यादव ने जब बसपा को गठबंधन में लाने के बारे में पूछा था तो कांग्रेस ने बताया कि बसपा से बात चल रही थी पर उन का सहयोग नहीं मिल सका. अब कोई बात नहीं होगी. इस के बाद अविनाश पाडेंय का बयान बताता है कि अंदरखाने बसपा को ले कर प्रयास जारी हैं. असल में अखिलेश यादव ने यह तय किया है कि अगर बसपा इंडिया गठबंधन का हिस्सा होगी तो सपा बाहर हो जाएगी. कांग्रेस सपा व बसपा दोनों को साधने का प्रयास कर रही है.

असल में 2004 से ले कर 2014 तक कांग्रेस की यूपीए सरकार ने सपा-बसपा को एकसाथ साध लिया था. कांग्रेस भूल गई है कि उस समय वह सत्ता में थी और सीबीआई उस के पास थी. ऐसे में सपा-बसपा को एक घाट में पानी पिलाना सरल हो गया था. आज कांग्रेस 3 राज्यों में चुनाव हार कर कमजोर दिख रही है. कांग्रेस में 2 गुट हैं- एक राहुल गांधी का गुट जो अखिलेश के साथ गठबंधन करना चहता है, दूसरा प्रियंका गांधी का गुट जो यह चाहता है कि मायावती से मेलजोल ठीक रहेगा.

कांग्रेस में एक और सोच है कि अगर अखिलेश के साथ बात नहीं बनती तो कांग्रेस बसपा और लोकदल को अपने साथ ले कर यूपी चुनाव में उतरेगी. अखिलेश को लगता है कि मायावती को इतना महत्त्व क्यों दिया जा रहा है? इस कारण वे गुस्से में रहते हैं. मायावती खुद को सपा से बड़ा समझती हैं. 2019 के चुनाव में खुद को बड़ा बताने के लिए उन्होंने सपा के मुकाबले एक सीट अधिक ली थी.

सामाजिक स्तर पर दूरियां :

सपा व बसपा में दूरी के राजनीतिक कारणों के अलावा सामाजिक कारण भी हैं. सामाजिक रूप से दलित और पिछड़ी जातियों में आपसी झगड़े ज्यादा होते हैं. गांवकसबों में इन के खेत, मकान आसपास होते हैं. दलित के खिलाफ पिछड़े ज्यादा मुखर विरोध करते हैं. ऐसे में सपाबसपा के गठबंधन के बाद भी इन के वोट एकदूसरे को ट्रांसफर नहीं होते. 1993 और 2019 के चुनावों में इन के गठबंधन सफल नहीं हो सके.

इन के बीच बिगाड़ की एक वजह मुसलिम वोटबैंक भी है. बसपा और सपा को अपने दलित और पिछड़े वोटबैंक के अलावा मुसलिम वोटों का बहुत सहारा रहता है. ये दोनों ही दल चाहते हैं कि मुसलिम उन के साथ रहे. इस को ले कर दोनों ही दल एकदूसरे को भाजपा का समर्थक बताते हैं. आपस में लड़ रहे सपा और बसपा भाजपा को मजबूत कर रहे हैं. दोनों के लक्ष्य भले ही भाजपा को सत्ता से बाहर करने का दिखे मगर दोनों ही भाजपा को सत्ता में रहने में मदद कर रहे हैं.

जीना चाहते हैं टेंशन फ्री जिंदगी, तो इन फूड्स को बनाएं अपनी डाइट का हिस्सा

Foods To Reduce Stress : आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों में तनाव की समस्या आम है. कई लोग तो छोटी-छोटी बातों पर भी खूब चिंता करने लगते हैं, जिससे  दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए टेंशन फ्री रहना शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है. अगर आपको भी छोटी-छोटी बातों पर टेंशन रहती है, तो आज हम आपको इस आर्टिकल में कुछ फूड्स के बारे में बताएंगे, जिन्हें खाने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होगा. जिससे आप तनाव से राहत पा सकते हैं. तो आइए जानते हैं रोजाना खाने वाली उन चीजों के बारे में, जिन्हें आप अपनी डाइट में शामिल कर टेंशन फ्री रह सकते हैं. 

डाइट में जरूर शामिल करें ये चीजें

हरी पत्तेदार सब्जियां

हर मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां खाना शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है. पालक, गोभी, धनिया आदि हरी सब्जियों में मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है. इसलिए इन्हें खाने के बाद मूड तो बेहतर होता ही है, जिससे आपको तनाव से राहत मिलती है. 

डार्क चॉकलेट

सेहत के लिए डार्क चॉकलेट का सेवन करना काफी फायदेमंद होता है. दरअसल, डार्क चॉकलेट में कोको होता है. जो शरीर में एंडोर्फिन जारी करने का काम करता है. इसी वजह से चॉकलेट खाते समय लोगों को खुशी का एहसास होता है. इसके अलावा डार्क चॉकलेट में मैग्नीशियम की भी उच्च मात्रा होती है, जो अवसाद को भी कम करने में मदद करता है.

एवोकाडो

अगर किसी व्यक्ति को हर बात पर चिंता होने लगती है. तो उसे अपनी डाइट में एवोकाडो को जरूर शामिल करना चाहिए. दरअसल, एवोकाडो विटामिन बी6 का अच्छा स्रोत है. जो कि शरीर में सेरोटोनिन नामक हार्मोन को बनाने का काम करता है, जिससे मूड में सुधार होता है और टेंशन लेने की समस्या भी कम हो सकती है.

फर्मेंटेड फूड

आप अपनी डाइट में ब्लूबेरी, टमाटर, फर्मेंटेड फूड, सीड्स और नट्स आदि को शामिल करना भी काफी फायदेमंद होता है. क्योंकि इनमें एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. जो दिमाग में खुशी वाले हार्मोन को बढ़ावा देता हैं और शरीर को हानिकारक तनाव से बचाता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

Saffron Benefits in Winter : सर्दियों में कई समस्याओं का इलाज है चुटकी भर केसर

Saffron Benefits In Winter : सर्दियों में सर्दी-जुकाम, खांसी और नाक बहने आदि जैसे मौसमी बीमारियों की समस्या होना आम है. इसके अलावा ठंड में सक्रंमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि इस मौसम में आप अपने शरीर को गर्म रखें.

आप हम आपको एक ऐसे उपाय के बारे में बताने जा रहे है, जिसे अपनाने से आपका शरीर तो गर्म रहेगा ही. साथ ही मौसमी बीमारियों के होने का खतरा भी बहुत कम हो जाएगा. दरअसल, विंटर में अपनी डाइट में केसर को शामिल करना काफी फायदेमंद होता है. केसर में मौजूद पोषक तत्व न सिर्फ इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है. बल्कि इससे ठंड भी कम लगती है. तो आइए जानते हैं कि कैसे आप केसर को अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं.

सर्दियों में इस करह करें केसर का उपयोग

केसर वाला दूध

सर्दियों में सोने से पहले एक गिलास केसर वाला दूध पीना काफी फायदेमंद होता है. केसर के स्वाद और इसकी सुगंध से व्यक्ति को एक सुखद अहसास होता है, जिससे तनाव से राहत पाने में मदद मिलती है.

इसे बनाने के लिए सबसे पहले एक गिलास दूध को धीमी आंच पर उबाल लें. फिर उसमें आधी चम्मच चीनी, चुटकी भर केसर और इलायची पाउडर डाल कर उसे मिक्स कर लें. जब दूध में केसर की रंगत आने लगे तो उसे गिलास में डाल लें और गरमागरम पिएं.

केसर की चाय

ठंड के मौसम में केसर की चाय पीना भी सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है. नियमित रूप से केसर की चाय पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. साथ ही शरीर को गर्माहट भी मिलती है.

इसे बनाने के लिए एक पैन में आधा कप पानी उबाल लें. फिर उसमें चुटकी भर केसर, एक लौंग, इलायची और दालचीनी अच्छी तरह से मिला ले. थोड़ी देर तक उसे उबाल ने के बाद उसे छान लें और गर्म-गर्म ही पिएं.

केसर की भाप लें

विंटर में ज्यादातर लोगों को कंजेशन की समस्या होती है. ऐसे में केसर की भाप लेना एक कारगर उपाय है. इससे कंजेशन में काफी राहत मिलती है. इसके लिए एक बालटी में गर्म पानी लें और उसमें चुटकी भर केसर मिलाएं. फिर अपने सिर को तौलिए से ढक लें और भाप लें.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

मेरी गर्लफैंड मुझ पर शादी करने का जोर डाली रही है, अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं अपनी गर्लफ्रैंड के साथ पिछले 3 वर्षों से लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में रह रहा हूं. मैं अपनी गर्लफ्रैंड से डेटिंग ऐप पर मिला था. उस वक्त हम एक ही शहर में रहते थे. एक साल तक हम ने जम कर डेटिंग की. हमारे बीच बहुत अच्छा बौंड था. मुझे वह जीजान से प्यार करती थी. मिलना नहीं होता था तो फोन पर दिन में 3-4 बार बात जरूर होती थी. फिर दूसरे साल मेरी जौब बैंगलुरु में लग गई. मुझे वहां जाना पड़ा. दूसरे साल में सब ठीकठाक रहा. मैं जल्दीजल्दी दिल्ली जब घर आता तो उस से मिल लेता था. हमारे बीच फिजिकल रिलेशन शुरू से रहे थे. तीसरे साल जौब में काम का प्रैशर ज्यादा हो गया और मेरा दिल्ली आना कम हो गया.

वह शिकायतें करने लगी कि अब मैं फोन कम करता हूं, मिलने नहीं आता. वह मेरे साथ सैक्स करना मिस कर रही है. मैं ने उसे समझाने की कोशिश की कि यह सब जौब की व्यस्तता की वजह से है लेकिन वह समझने को तैयार ही नहीं. वह अब खुद मुझे कौल नहीं करती, कहती है, तुम बिजी हो तो कौल करने का फायदा ही क्या. तुम्हारा दिगाम तो काम में लगा रहता है. मैं रात में फ्री होता हूं, इसलिए रात को उसे कौल करता हूं लेकिन तब वह कहती है कि मुझे कौल मत करो, घर में सब होते हैं, मैं बात नहीं कर सकती क्योंकि घर वालों को हमारे रिलेशनशिप के बारे में कुछ पता नहीं है.

वह हरदम मुझ से नाराज रहती है. कभी कहती है कि वहां बैंगलुरु में तुम्हें कोई और लड़की पसंद आ गई है जबकि ऐसा कुछ नहीं है. मैं स्ट्रैस में आ गया हूं. मैं उसे सच में प्यार करता हूं और शादी भी उसी से करना चाहता हूं लेकिन वह है कि कुछ समझने को तैयार ही नहीं. अब मैं जौब तो नहीं छोड़ सकता न. शादी भी अभी 1-2 साल नहीं कर सकता क्योंकि मुझ से बड़ी एक बहन है, उस की शादी पहले करनी है. मम्मीपापा उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं.

इस सब में एक साल तो कहीं नहीं गया, इसलिए मेरी शादी करने का अभी सवाल नहीं उठता. हां, दूसरी तरफ गर्लफ्रैंड यह भी कह रही है कि उस के परिवार वाले उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. उस के पापा बीमार रहते हैं, वे चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी अपने हाथों से बेटी की शादी कर दें. मैं बहुत बुरी तरह फंस गया हूं. समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. मैं अपनी गर्लफ्रैंड को खोना नहीं चाहता. आप ही बताएं कि मैं क्या करूं

जवाब

आप की समस्या इतनी बड़ी नहीं है जितनी कि आप को लग रही है. आप सैटल हैं. शादी लायक हैं. बस, बहन की शादी पहले करनी है. इस वजह से आप शादी अभी नहीं करना चाहते. सो, यह बताइए कि कौन सी किताब में लिखा है कि भाई की शादी बहन से पहले नहीं हो सकती. आप को अपने घर वालों से बात करनी होगी. उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराएं. बल्कि आप की शादी होने से, रिश्तेदारी बढ़ने से आप की बहन के लिए लड़का मिलने के और द्वार खुल सकते हैं और आप की गर्लफ्रैंड के घर वाले तो लड़का ढूंढ़ ही रहे हैं, मतलब, शादी करने की उन्हें जल्दी है तो अगर आप के घर वाले रिश्ता ले कर जाएंगे तो उन्हें हां करने में देर नहीं लगेगी.

आप बेवजह अकेले ही अपनी समस्या से जूझ रहे हैं. घर वालों से बात कीजिए, वे जरूर आप की स्थिति समझेंगे. बेटे को बेवजह परेशान तो वे भी नहीं देखना चाहेंगे. इसलिए हमारी सलाह मानिए, सब ठीक हो जाएगा.

खतरनाक रेबीज : लाइलाज रोग

रेबीज या जलान्तक (हाइड्रोफोबिया) दुनिया की सब से खतरनाक लाइलाज बीमारियों में से एक है. यह रोग मनुष्य को यदि एक बार हो जाए तो उस का बचना मुश्किल होता है. रेबीज लाइसो वायरस यानी विषाणु द्वारा होती है और अधिकतर कुत्तों के काटने से ही होती है परंतु यह अन्य दांत वाले प्राणियों, जैसे बिल्ली, बंदर, सियार, भेडि़या, सूअर इत्यादि के काटने से भी हो सकती है. इन जानवरों या प्राणियों को नियततापी (वार्म ब्लडेड) कहते हैं. यह रोग यदि किसी मनुष्य को हो जाए तो उस की मृत्यु निश्चित होती है. शायद ही विश्व में रेबीज ग्रसित कोई व्यक्ति इलाज से बचा हो.

एसोसिएशन औफ प्रिवैंशन औफ रेबीज के अनुसार, हर साल 1.7 करोड़ लोग जानवरों के काटने के शिकार होते हैं. नैशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 व 2022 में 6,644 मौतें रेबीज के कारण हुईं. आवारा कुत्तों पर कंट्रोल हर शहरगांव में न के बराबर है. लोग आवारा कुत्तों को खाना खिलाना पुण्य का काम सम?ाते हैं और इसलिए इन की संख्या बढ़ती जा रही है.

नवंबर 2022 में रेबीज के 6,000 मामले अस्पतालों में लाए गए. जहां से मरीजों के बचने की कोई सूचना नहीं मिली. अकसर लोग रेबीज का इलाज किसी ?ालाछाप डाक्टर से या कैमिस्ट से दवा ले कर करा लेते हैं पर कई बार इस के लक्षण खत्म नहीं होते और माहदोमाह में यह मौत का कारण बन जाता है.

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 6 माह में कुत्तों के काटने से 30 हजार मरीजों के मामले आए थे, वहीं राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 18 हजार. यह रोग लगभग पूरे भारत वर्ष में होता है. लक्षद्वीप और अंडमान द्वीपों में अवश्य यह कम है. बहुत से रोगी तो अस्पतालों में आने के पहले ही मर जाते हैं. सो, यह संख्या 5 से 10 गुना तक हो सकती है.

रोग का कारक : जैसा कि बताया गया है कि यह विषाणुजन्य रोग है, लाइसा विषाणु के प्रकार-1 (लाइसा वायरस टाइप-1) के शरीर में प्रवेश के पश्चात यह होता है. इस विषाणु को नष्ट करने का टीका तो उपलब्ध है परंतु इसे पूर्ण नष्ट करने वाली दवा विकसित नहीं हुई है. सो, बचाव की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है.

संक्रमण के स्रोत : भारत में लगभग 90 प्रतिशत रेबीज का संक्रमण (इन्फैक्शन) कुत्तों के काटने से होता है. शेष अन्य प्राणी जैसे बंदर, सियार, भेडि़या इत्यादि के काटने से होता है. रोग के विषाणु पागल (रेबीज ग्रस्त) कुत्ते इत्यादि की लार में मौजूद होते हैं जो काटने पर मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.

रोग के प्रकार

रेबीज रोग का प्रसार यानी ट्रांसमिशन 2 तरह से होता है-

  • जब रोगग्रस्त (पागल) कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य को काटता है तो लार द्वारा विषाणु मनुष्य की तंत्रिकाओं में पहुंच जाते हैं.
  • यदि प्रभावित कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य की त्वचा के कटे या छिले भाग को चाटे तो भी संक्रमण हो सकता है. संभावना तो यह भी होती है कि त्वचा छिली या उस पर खरोंच भी न हो तब भी यदि कुत्ता त्वचा को जोर से बारबार चाटे तो भी रेबीज का संक्रमण हो सकता है. विषाणु तंत्रिका से होते हुए धीरेधीरे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं.
  • रोग की अवधि (इन्क्यूबेशन पीरियड) : संक्रमण के पश्चात रोग के लक्षण आने या रोग होने में 1 से 3 माह तक लगते हैं.

रेबीज के प्रमुख लक्षण

शुरू में सिरदर्द होता है और बेचैनी भी होती है. काटे गए स्थान पर खिंचाव और दर्द भी होता है.

इस के बाद जल्दी ही रोगी में इस रोग के अन्य बड़े या प्रमुख लक्षण, जैसे शोर और तीव्र प्रकाश से असह्यता (इंटौलरैंस) कोई भी खाद्य या पेय निगलने में कठिनाई और पानी से डर तथा खाद्य या द्रव पदार्थ लेने पर पेशियों में ?तीव्र संकुचन (स्पस्म) होना इत्यादि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं.

इस रोग में मृत्यु अकसर श्वसन क्रिया के लकवाग्रस्त (रेस्पिट्री पैरालिसिस) होने से होती है और जैसा कि पूर्व में भी उल्लेखित किया गया है, रोग का अंत मृत्यु में ही होता है.

कुत्तों में रेबीज का पता करना

निम्न लक्षणों द्वारा जाना जा सकता है-

  • जब कुत्ते में छेड़खानी के बिना अपनेआप झपटने और काटने की आदत आ जाए.
  • जब कुत्ता लकड़ी, घास या अन्य वस्तुओं को भी काटने लगता है.
  • कुत्ते का अधिक हिंसक होना, घर से भागना, यहांवहां घूमना और जो भी रास्ते में सामने आए उसे काटना.
  • कुत्ता फटी सी आवाज में भूंकता है यानी उस की पहले वाली आवाज बदल जाती है.
  • सांस लेने के लिए कुत्ते का तेज हांफना. यह लक्षण अंतिम अवस्था में मिलता है. कुत्ता या पशु इन लक्षण के मिलने के 10 दिनों के भीतर मर जाता है.

रेबीज की रोकथाम

घाव का उपचार : काटा हुआ घाव या छिले के निशान को अतिशीघ्र साबुन से रगड़ कर धोना चाहिए. संभव हो तो घाव पर साबुन लगा कर नल की तेज धार से धोएं. फिर स्प्रिट, अलकोहल या टिंक्चर आयोडीन घाव पर लगाना चाहिए जिस से उस में मौजूद विषाणु मर जाएं. इस के बाद घाव पर पट्टी बांध दें.

टिटनैस टौक्साइड का इंजैक्शन तथा जीवाणु रोधी दवाएं (एंटीबायोटिक्स) भी लें, जिस से घाव द्वारा अन्य तरह के संक्रमणों से रक्षा हो सके.

कुत्ते या पशु की निगरानी : जिस कुत्ते या पशु ने काटा है उसे मारना नहीं चाहिए बल्कि उसे 10 दिनों तक रोज देखें. यदि काटने के पश्चात 10 दिनों के अंदर वह मर जाता है या उस में रेबीज के लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत ही शिकारग्रस्त व्यक्ति को रेबीज रोधक उपचार शुरू कर देना चाहिए.

वैसे आजकल पशु की निगरानी न कर रोग से बचाव के इंजैक्शन लगवाने की सलाह भी कुछ विशेषज्ञ देते हैं.

टीके कब लगवाएं

  • काटने वाले पशु में जब रेबीज के लक्षण दिखते हैं या वह 10 दिनों के भीतर मर जाता है.
  • जब काटने वाले कुत्ते या पशु की पहचान नहीं हो पाती तब भी खतरा मोल न लेते हुए रेबीज विरोधी टीके लगवाने की सलाह दी जाती है.
  • सभी जंगली पशुओं, जैसे सियार, रीछ इत्यादि के काटने पर रेबीज विरोधी इलाज और टीके लें.

टीके या उपचार कैसे लें ?

पूर्व में जो टीका बनाया जाता था वह संक्रमित पशु के मस्तिष्क की कोशिकाओं से तैयार होता था. वह टीका पेट की त्वचा में लगाया जाता है. घाव की गंभीरता के अनुसार इस की मात्रा 2 मिलि से 5 मिलि तक 7 से 14 दिन तक के लिए होती है. इस टीके का मनुष्य के शरीर पर कुप्रभाव तंत्रिकाघात के रूप में होता है. 10 हजार उपचारित व्यक्तियों में 1 व्यक्ति तंत्रिकाघात या लकवा से ग्रस्त हो जाता है.

अब बाजार में कोशिका संवर्धित (सैल कल्चर) टीका आने लगा है. इसे एचडीसी (ह्यूमन डिप्लैड सैल) टीका कहते हैं. ये टीके शक्तिशाली होने के साथ पूर्व टीकों से सुरक्षित भी हैं.

नए टीके की 1 मिलि मात्रा 5 बार अंत:पेशीय (इंट्रा मस्कुलर) 0, 3, 7, 14 और 30वें दिन लगाते हैं. 90 दिन बाद वर्धक या ऐच्छिक मात्रा (डोज) लगाने की भी सलाह दी जाती है. सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से ये टीके ज्यादा ठीक हैं. लेकिन ये महंगे भी होते हैं. सो, एक गरीब आदमी कई बार इन्हें खरीद कर लगवाने में असमर्थ होता है.

अमेरिका में यूनिवर्सिटी औफ हैल्थ साइंस के उन ब्रायन शैफर और डा. क्रिस्टोफर ब्रोडर ने एफ-11 मोनोक्लोनल एंटीबौडी ट्रीटमैंट ईजाद किया है जो शायद दुनियाभर में डौग बाइट की 60 हजार मौतों को कम कर सके. इस ट्रीटमैंट में भी अभी कुछ कमियां हैं क्योंकि ये दवाएं ब्रेन सैल्स में पहुंच चुके वायरस को नष्ट नहीं कर पातीं. ये दवाएं महंगी भी हैं और दूरदराज के इलाकों में नहीं मिलतीं.

कुत्तों पर नियंत्रण कैसे करें ?

रेबीज पर एक सीमा तक नियंत्रण आवारा, अवांछित कुत्तों की संख्या में कमी ला कर ही हो सकता है. असल में मनुष्य को कुत्तों का मोह छोड़ना होगा, चाहे इस का कुछ भी असर हो. पशुओं के प्रति क्रूरता के नाम पर आवारा कुत्तों को जिंदा रखा जाना किसी भी हद तक ठीक नहीं है.

चूंकि रेबीज दुनिया का खतरनाक और लाइलाज रोग है सो इस रोग से बचाव की सावधानियां रखने में लापरवाह नहीं रहना चाहिए. कुत्तों के काटने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए पर अब ऐसे मामले बढ़ गए जब कुत्तों के ?ांड बच्चों ही नहीं, बड़ों को भी काटकाट कर खा जाते हैं.

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