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प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी, कितने सच कितने फसाने

एक विद्वान ने कहा है कि कभी किसी देश का प्रमुख किसी वणिक को नहीं बनाना चाहिए. यह बात बहुत पुरानी हो गई है और शायद लोग भूल भी गए हैं.

देश की कमान आवाम ने एक ऐसे ही शख्स के हाथों में सौंप दी है. अब जब लोकसभा चुनाव 2024 की चुनावी तैयारियां शबाब पर हैं, देश में हर चौकचौराहे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक फ्लैक्स दिखाई दे रहा है जिस में लिखा हुआ है, ‘मोदी की गारंटी’.

सवाल इतना सा है कि एक राजनीतिक पार्टी, जो दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में अपनी पीठ थपथपाती रहती है, और एक ऐसा चेहरे, जिस के बारे में यह कहा जाता है कि वह दुनिया का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है, को यह ‘गारंटी’ क्यों देनी पड़ रही है.

गारंटी शब्द का सीधा सा मतलब है कि मेरी दुकान के फलांफलां सामान को खरीद लो, इस पर इस बात की हम गारंटी देते हैं. अब देश के मतदाता कब से खरीदार हो गए और भारतीय जनता पार्टी, जो कि राजनीतिक दल है, एक दुकान कैसे बन गई है?

यह सभी जानते हैं कि अगर कोई दुकान है तो फिर वह मुनाफे की फ़िक्र करती है, मुनाफा कमाती भी है और उस का सरोकार सिर्फ स्वहित होता है. मगर राजनीतिक दल देश के लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं जो देश के नागरिकों के हित में योजनाएं बनाते हैं और उन के विकास के लिए काम करते हैं व देश को समृद्ध बनाने की दिशा में प्रयास करते हैं.

अब अगर हम आज के समय में गारंटी की बात करें तो सभी जानते हैं कि जब दुकानदार कोई गारंटी देता है तो उस का क्या हश्र हो सकता है. दरअसल, गारंटी की शुरुआत अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में की थी. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य को ले कर गारंटी दी और सत्ता में आ गए. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने गारंटी को लपक लिया है और लोकसभा चुनाव आतेआते चारों तरफ यह गारंटीगारंटी शब्द गूंज रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी को ले कर जमीनी सच अगर आप को जानना है तो आप शहर से 5-10 किलोमीटर किसी गांव की तरफ निकल जाइए और किसानों से बात करें, महिलाओं से बात करें तो सारी सचाई सामने होगी. इसी तरह चुनाव के मौके पर राजस्थान में मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत ने, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने और भाजपा ने मोदी की गारंटी को ले कर के कई घोषणाएं की हैं मगर जमीनी स्तर पर सचाई कुछ और दिखाई दे रही है. जिस का सब से बड़ा उदाहरण है छत्तीसगढ़ में 3,100 रुपए में धान लेने की घोषणा की गई थी जो 3 दिसंबर को भाजपा को जनादेश मिलने के 1 महीने व्यतीत हो जाने के बाद भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है और किसान मुंह तक रहे हैं.

जब हमारे संवाददाता ने गांव के किसानों से बातचीत की तो साफ हो गया कि नरेंद्र मोदी की गारंटी के बावजूद 3,100 रुपए में धान खरीदी छत्तीसगढ़ सरकार नहीं कर रही है. यह खरीदी कब व कैसे होगी, इस को ले कर संशय बना हुआ है, किसानों को लग रहा है कि जैसे वे लुट गए हों.

यहां यह याद रखने की बात है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने चुनाव से पहले किसानों के कर्ज को माफ़ करने की घोषणा की थी. इस तरह कम से कम छत्तीसगढ़ में एक तरफ तो किसानों का कर्ज माफ होने से रहा, दूसरी तरफ 2,500 में जो धान खरीदी हो रही थी वह भी रुक गई है.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार छत्तीसगढ़ में 3,100 रुपये में धान कब खरीदेगी, यह एक मुश्त होगा या फिर बोनस के रूप में दिया जाएगा, यह भी भाजपा का कोई नेता बता पाने की स्थिति में नहीं है.

इस तरह नरेंद्र मोदी की गारंटी शब्द अपनेआप में व्यर्थ होता दिखाई दे रहा है. सो, यह चर्चा आम हो गई है कि मोदी की गारंटी का मतलब मानव अधिकारों का उल्लंघन, महिलाओं के साथ अत्याचार होने के साथ यह एक भूलभुलैया का खेल है जिस में देश की जनता आगामी चुनाव में उलझ कर रह जाएगी या फिर कोई रास्ता ढूंढ लेगी, यह आने वाला समय बताएगा.

लोकसभा चुनाव से पहले तेज हुई ईडी की धरपकड़

5 जनवरी की सुबह जिस वक़्त पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के जन्मदिन के अवसर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था, एक खबर ने रंग में भंग डाल दिया. सूचना आई कि प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय रिजर्व पुलिस की टीम पर हमला हो गया.

ईडी ने कोलकाता तथा उस से सटे जिले उत्तर 24 परगना में कुल 12 जगहों पर सुबह से तलाशी अभियान चला रखा था. ईडी अधिकारी जब उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में तृणमूल नेता व ब्लौक अध्यक्ष शाहजहां शेख के घर पर छापेमारी करने पहुंचे तो वहां कोई 200 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला बोल दिया. उन की गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई. साथ आए रिजर्व पुलिस के जवानों और मीडियाकर्मियों को भी नहीं बख्शा गया. उन के सिर फोड़ दिए, फोन छीन लिए. इस अप्रत्याशित हमले में कई ईडी अधिकारी जख्मी हो गए. शेख के समर्थकों ने इधरउधर डर से छिपे अधिकारियों को ढूंढढूंढ कर पिटाई की. परिणामस्वरूप, ईडी अधिकारियों को वहां से भागना पड़ा. जख्मी अधिकारियों को स्थानीय कैनिंग अस्पताल में भरती कराया गया है. ईडी की टीम वहां राशन घोटाला मामले में तृणमूल नेता व ब्लौक अध्यक्ष शाहजहां शेख के घर पर छापेमारी करने पहुंची थी.

इस से पहले ईडी के अधिकारियों ने जिले के बनगांव में तृणमूल नेता शंकर आढ्य के घर पर भी छापेमारी की थी. दोनों टीएमसी नेता राशन घोटाले में गिरफ्तार मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक के करीबी बताए जा रहे हैं. जैसेजैसे लोकसभा चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर ईडी की छापेमारी में तेजी दिखने लगी है. वहीं जांच एजेंसी के अधिकारियों से दोदो हाथ करने के मूड में कई विपक्षी नेताओं ने अपने समर्थकों को सचेत कर दिया है. वे चाकचौबंद हो कर उन के आवासों में ही डंटे हुए हैं. इस से ईडी अधिकारियों में थोड़ा भय जरूर है मगर सत्ता के आदेश का पालन भी उन्हें करना है, फिर चाहे सिर फूटे या टांग टूटे.

घपलेघोटाले इस देश के लिए कोई नई बात तो है नहीं. सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की या किसी और दल की, भ्रष्टाचार, धनउगाही और घपलेघोटाले नेताओं के जीवन का अभिन्न अंग हैं. पक्षविपक्ष के तमाम नेताओं की अलमारियांतिजोरियां सोने के बिस्कुट और नोटों की गड्डियों से भरी हुई हैं. हमाम में सब नंगे हैं. सत्ता पर काबिज दल अपने नेताओं की तिजोरियां ईडी, सीबीआई या आईटी अधिकारियों से नहीं खुलवाता, विपक्षी नेताओं की ही खुलवाता है और शोर मचाता है. कभी अपनों की खुलवा ले तो शायद विपक्षी नेताओं से भी ज़्यादा धन निकले. हालांकि जनता को अब ऐसे समाचार चौंकाते नहीं हैं. जनता सब समझती है कि कौन कितने पानी में तैर रहा है.

5 जनवरी को ईडी ने अवैध खनन से जुड़े मनी लौन्ड्रिंग मामले में हरियाणा के कांग्रेस विधायक सुरेंद्र पंवार और पूर्व इनेलो विधायक दिलबाग सिंह के घरों पर भी तलाशी अभियान चलाया. दिलबाग सिंह के ठिकानों से बड़ी मात्रा में अवैध चीजें बरामद हुईं. बड़ी मात्रा में अवैध फौरेन मेड आर्म्स, 300 कार्टन में अवैध सामान, 100 से ज्यादा शराब की बोतलें, 5 करोड़ रुपए कैश और करीब 4 से 5 किलो बुलियन बरामद किया गया. इस के अलावा बड़ी मात्रा में संपत्ति के दस्तावेज भी दिलबाग सिंह के ठिकाने से मिले.

3 जनवरी की सुबह राजस्थान में प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग ने ताबड़तोड़ छापेमारी की. दोनों एजेंसियों ने एक पूर्व मुख्यमंत्री, 2 आईएएस और कुछ कारोबारी समूहों के ठिकानों पर छापे मारे. राज्य में 31 ठिकानों पर एकसाथ डाले गए ये छापे एक खनन घोटाले के संबंध में थे.

उदयपुर शहर में एक कारोबारी से जुड़े 27 ठिकानों पर छापेमारी कि गई. उस में बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी और मनी लौन्ड्रिंग का खुलासा हुआ.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही आयकर ने राजस्थान के पाली और जोधपुर में दनादन छापे मारे थे. उस छापामारी में राजस्थान में सोने का अब तक का सब से बड़ा खजाना मिला था. इतनी बड़ी मात्रा में सोना देख कर आयकर विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए. मारवाड़ के 3 व्यापारिक समूहों पर हुई छापेमारी की कार्रवाई में कुल 400 करोड़ रुपए से ज्यादा के कारोबार के दस्तावेज जब्त किए गए.

शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी चर्चा में रही. सीबीआई ने दिल्ली सरकार की साल 2021 की शराब नीति में अनियमितताओं के सिलसिले में उन को गिरफ्तार किया, जो अब तक जेल में हैं. उन के बाद आप पार्टी के 2 अन्य बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर शिकंजा कसा जा रहा है. इन गिरफ्तारियों को आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने राजनीति से प्रेरित बताया.

पार्टियों का कहना है कि केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों को हथियार बना कर उन राज्यों के मंत्रियों और नेताओं को टारगेट कर रही है जहां विपक्षी पार्टियां सरकार चला रही हैं.

इसी तरह छत्तीसगढ़ में ईडी काफी सक्रिय रही. एक के बाद एक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और कई नौकरशाहों को 2020 में हुए कोयले से जुड़े एक घोटाले के मामले में अक्टूबर 2022 से कुछकुछ दिनों के अंतराल पर पूछताछ के लिए समन किया जाता रहा और कई गिरफ्तारियां हुईं.

पहले की सरकारें भी ईडी और सीबीआई को हथियार के तौर पर खूब इस्तेमाल करती रहीं मगर बीते 9 सालों में इन एजेंसियों का पुरज़ोर इस्तेमाल हुआ. विपक्षियों को चुनचुन कर जेल भेजा गया लेकिन जो बीजेपी में शामिल हो गया उस के मामले डब्बाबंद हो गए.

महाराष्ट्र में नवाब मलिक और नारायण राणे का मामला देखें. बीते साल 23 फरवरी, 2022 को एनसीपी नेता नवाब मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने घंटों चली पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया. नवाब मलिक पर आरोप था कि उन्होंने बाजार से काफी कम कीमत में दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के करीबी सलीम पटेल से संपत्ति खरीदी. यह 22 साल पुराना मामला है जिस पर ईडी ने प्रिवैंशन औफ मनी लौन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत कार्रवाई की.

इस से पहले जनवरी 2021 में नवाब मलिक के दामाद समीर ख़ान को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने ड्रग से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था. इस के बाद अक्टूबर 2021 में फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को एनसीबी ने गिरफ्तार किया.

इस पूरे मामले में नवाब मलिक ने कई प्रैस कौन्फ्रैंस कर के एनसीबी और बीजेपी पर आरोप लगाए कि एनसीबी और बीजेपी ने साजिश के तहत आर्यन खान को किडनैप किया. उन्होंने इन केस को फर्जी बताया था. बीते साल अदालत ने आर्यन खान को सुबूतों के अभाव में सभी आरोपों से बरी कर दिया और समीर खान को भी जमानत दे दी, लेकिन नवाब मलिक इस वक्त जेल में हैं, खराब सेहत का हवाला दे कर वे जमानत लेने की कोशिश कर रहे हैं.

महाराष्ट्र की ही राजनीति में एक और नाम है नारायण राणे का. नारायण राणे शिवसेना और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में रहे. शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार के दौरान 1999 में वो कुछ वक्त के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. साल 2016 में बीजेपी के पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने नारायण राणे पर मनी लान्ड्रिंग का आरोप लगाया. सोमैया ने प्रवर्तन निदेशालय के तत्कालीन जौइंट डायरैक्टर सत्यव्रत कुमार को एक चिट्ठी लिख कर नारायण राणे और उन के परिवार के बिजनैस की जांच कराने की मांग की थी. नारायण राणे पर 300 करोड़ रुपए की मनी लान्ड्रिंग करने का आरोप है.

अक्टूबर 2017 में नारायण राणे कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष’ पार्टी बनाई और एनडीए के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया. इस के बाद नारायण राणे केंद्र सरकार में मंत्री बन गए.

सवाल यह कि क्या नारायण राणे के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच हुई, केंद्रीय एजेंसियों ने क्या कोई कार्रवाई की? जवाब है- नहीं.

ईडी सिर्फ उन के खिलाफ जांच जारी करती है जो विपक्षी पार्टियों में हैं.

साल 2019 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर के प्रिवैंशन औफ मनी लौन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में बदलाव ला कर ईडी को मनी लौन्ड्रिंग के मामले में स्पैशल पावर दे दी.

दिलचस्प बात यह है कि पीएमएलए में बदलाव को मनी बिल की तरह पेश किया गया. मनी बिल को राज्यसभा में पेश नहीं करना पड़ता, इसे सीधे राष्ट्रपति की सहमति ले कर लोकसभा में पेश किया जाता है और वह कानून बन जाता है.

गौर करने की बात है कि 2019 में राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. विपक्ष ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि पीएमएलए में मनी बिल जैसी कोई भी बात नहीं है, फिर भी इसे मनी बिल के तहत लोकसभा से पारित कराने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा इस को मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने की थी.

पीएमएलए के इस बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन कोर्ट ने इस संशोधन को जायज ठहराया. केंद्र सरकार का तर्क था कि गंभीर वित्तीय गड़बड़ियों की जांच के लिए यह जरूरी है कि ईडी को अधिक शक्तियां दी जाएं.

पीएमएलए के सैक्शन 17 के सब-सैक्शन (1) में और सैक्शन 18 में बदलाव कर दिया गया व ईडी को यह शक्ति दी गई कि वह इस कानून के तहत लोगों के आवास पर छापेमारी, सर्च कर गिरफ़्तारी भी कर सकती है. इस से पहले किसी अन्य एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट में पीएमएलए की धाराएं लगने पर ही ईडी जांच करती थी, लेकिन अब ईडी खुद ही एफआईआर दर्ज कर के गिरफ्तारी कर सकती है.

असम का शारदा घोटाला और हिमंत बिस्वा शर्मा का नाम आएदिन अखबार की सुर्ख़ियों में रहा. कभी असम की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हिंमत बिस्वा आज बीजेपी की सरकार में असम के मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी के चुनावी अभियान के स्टार कैम्पेनर हैं.

असम की तरुण गोगोई सरकार में सब से पावरफुल मंत्री रहे हिमंत बिस्वा शर्मा और गोगोई के बीच रिश्ते 2011 के चुनाव के बाद बिगड़ते चले गए. जुलाई 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया लेकिन तब तक उन का नाम शारदा चिट फंड घोटाले से जुड़ चुका था.

अगस्त 2014 में हिमंत बिस्वा शर्मा के गुवाहाटी स्थित आवास और उन के चैनल न्यूज लाइव के दफ्तर पर सीबीआई की छापेमारी हुई. इस चैनल की मालिक उन की पत्नी रिंकी भुयन शर्मा हैं. नवंबर 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा से सीबीआई के कोलकाता दफ्तर में घंटों तक पूछताछ की गई.

उस समय मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि हिमंत बिस्वा शर्मा ने शारदा ग्रुप के मालिक और इस मामले में मुख्य अभियुक्त सुदीप्तो सेन से 20 लाख रुपए हर महीने लिए ताकि समूह राज्य में अपना व्यापार ठीक से चला सके. जनवरी 2015 को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सारे चिटफंड के केस की जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए और अगस्त 2015 में हिमंत बिस्वा शर्मा बीजेपी में शामिल हो गए.

फरवरी 2019 में असम कांग्रेस के नेता प्रद्योत बर्दोलोई ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर के यह आरोप लगाया कि हिमंत बिस्वा शर्मा के बीजेपी में शामिल होते ही असम में शारदा चिटफंड घोटाले की जांच रोक दी गई है.

इस मामले की जांच कहां तक पहुंची है, आज इस की कोई जानकारी नहीं है. लेकिन एक बात तय है कि बीजेपी में शामिल होने और राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें कभी सीबीआई ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया. हिमंत को बीजेपी ने पूर्वोत्तर में गठबंधन दल नौर्थ-ईस्ट डैवलपमैंट अलायंस यानी नेडा का प्रमुख भी बनाया और वे बीजेपी के पूर्वोत्तर में विस्तार के हीरो माने जाते हैं.

वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे का मामला देखें. असम के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से बीते साल अगस्त में तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को प्रवर्तन निदेशालय ने कोयले की चोरी से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए बुलाया. यह तीसरी बार था जब अभिषेक बनर्जी को कोलकाता के ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया.

कोयले के करोड़ों के ग़ैरकानूनी खनन के इस मामले की जांच सीबीआई और ईडी दोनों कर रही हैं. 19 मई, 2022 को सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दायर की और 41 लोगों को अभियुक्त बनाया, हालांकि इस चार्जशीट में अभिषेक बनर्जी का नाम नहीं है.

यह मामला है नवंबर 2020 का, जब ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की विजिलैंस विंग को पश्चिम बीरभूम के इलाके से ‘कोयले की बड़े पैमाने पर चोरी’ के साक्ष्य मिले और इस आधार पर उस ने एफआईआर दर्ज कराई. आरोप है कि यहां कोयले की खदान में तड़के ही गैरकानूनी रूप से खुदाई कर के बोरियों में भर कर कोयला ट्रक, साइकिल के जरिए लोड कर के चोरी किया जा रहा था.

मामले में राजनीतिक ट्विस्ट तब आया जब 2021 में अभिषेक बनर्जी और उन की पत्नी रुजिरा बनर्जी को ईडी ने पूछताछ के बुलाया. यह समन 2021 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले किया गया था यानी पूछताछ की पृष्ठभूमि में विधानसभा चुनाव था.

ममता बनर्जी ने इस समन को ‘बीजेपी की डराने की नाकाम कोशिश’ बताया था और अब तक इस केस में जांच चल रही है.

शुभेंदु अधिकारी के मामले में क्या हुआ?

दिसंबर 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी कभी ममता बनर्जी के करीबी और टीएमसी में पावरफुल नेता थे, लेकिन 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अधिकारी ने बीजेपी जौइन कर ली और आज विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

बात है साल 2014 की. पत्रकार सैमुअल मैथ्यू ने एक स्टिंग औपरेशन किया. इस स्टिंग औपरेशन में टीएमसी के मुख्य नेता शुभेंदु अधिकारी, मुकुल राय और फिरहाद हकीम जैसे कई अन्य नेता कैमरे पर लाखों की रिश्वत लेने की बात स्वीकार करते हुए दिखे. इसे सारदा स्टिंग केस के नाम से जाना जाता है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की जीत के तुरंत बाद मई 2021 में सीबीआई ने इस केस में 4 टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया. जिस में ममता बनर्जी की कैबिनेट के मंत्री फिरहाद हकीम और पश्चिम बंगाल के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी भी थे.

इस मामले में ईडी ने सितंबर में एक चार्जशीट फाइल की और इस में फिरहाद हाकीम, सुब्रत मुखर्जी, टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पूर्व टीएमसी नेता सोवन चटर्जी के नाम शामिल किए गए.

सोवन चटर्जी ने भी बंगाल के विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी छोड़ बीजेपी जौइन की थी लेकिन कुछ महीनों बाद ही अपनी मनपसंद सीट से टिकट न मिलने पर उन्होंने बीजेपी भी छोड़ दी.

इस चार्जशीट में न तो शुभेंदु अधिकारी का नाम था और न ही मुकुल राय का. ये दोनों ही नेता अब बीजेपी में हैं जबकि इस स्टिंग औपरेशन में शुभेंदु अधिकारी 5 लाख और मुकुल राय 15 लाख रुपए की रिश्वत लेने के लिए रजामंद हुए थे.

विपक्षी नेताओं पर कसता शिकंजा

बीते साल मार्च में लोकसभा में दिए गए जवाब में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि साल 2004 से ले कर 2014 तक ईडी ने 112 जगहों पर छापेमारी की और 5,346 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई. लेकिन साल 2014 से ले कर 2022 के 8 वर्षों के बीजेपी के शासनकाल में ईडी ने 3,010 रैड कीं और लगभग एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच की गई.

बीते साल ‘इंडियन एक्सप्रैस’ ने लिखा कि पिछले 8 सालों में राजनीतिक लोगों के खिलाफ ईडी के मामले चारगुना बढ़े हैं. साल 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच ईडी ने की. इन में से 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं यानी 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ थे. अब इस की तुलना यूपीए के समय से करें तो 2004 से ले कर 2014 के 10 सालों में 26 नेताओं की जांच ईडी ने की. उन में से 14 नेता विपक्षी पार्टियों के थे.

ईडी की तरह सीबीआई के मुकदमों के आंकड़े देखें तो यूपीए के 10 सालों में 72 राजनेता सीबीआई के स्कैनर में आए और उन में से 43 नेता विपक्ष के थे यानी तकरीबन 60 प्रतिशत. जबकि साल 2014 से ले कर 2022 तक एनडीए की सरकार में 124 नेता सीबीआई के शिकंजे में आए और इन में से 118 नेता विपक्षी पार्टियों के थे यानी 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं. अब विपक्षी नेताओं के खिलाफ आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है.

मोदी सरकार पर ईडी के राजनीतिक इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं. कुछ जानकार महाराष्ट्र को इस विधि का टैस्टिंग ग्राउंड भी कहते हैं. वह घटना याद करें जब शिवसेना का एक गुट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हो गया था. इन विधायकों को पहले गुजरात और फिर रातोंरात गुवाहाटी ले जाया गया. हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बाद एकनाथ शिंदे गुट की सरकार बनी और इस के लिए जुलाई में पहला फ्लोर टैस्ट हुआ तो उद्धव गुट के नेताओं ने विधानसभा में ‘ईडीईडी’ के नारे लगाए. शिंदे गुट पर उद्धव ने आरोप लगाया कि वह ईडी के डर और पैसों के लालच में शिवसेना के विधायकों को तोड़ रहा है और बीजेपी के साथ सरकार बना रहा है.

इस नारे का जवाब देवेंद्र फडणवीस ने दिया कि- “यह ईडी की सरकार है और इस ईडी का अर्थ है एकनाथ और देवेंद्र फडणवीस की सरकार.”

जब महाराष्ट्र में यह सियासी फेरबदल चल रहा था, उसी बीच बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे शिवसेना नेता संजय राउत को ईडी ने 27 जुलाई, 2022 को समन किया. एक अगस्त, 2022 को राउत को मुंबई के गोरेगांव में पात्रा चौल रिडैवलपमैंट से जुड़े मनी लौन्ड्रिंग के एक केस में गिरफ्तार कर लिया गया.

पात्रा चौल के रिडैवलपमैंट का काम गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी महाराष्ट्र हाउसिंग डैवलपमैट अथौरिटी के साथ मिल कर कर रही थी. ईडी का कहना है कि गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन, हाउसिंग डैवलपमैंट इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) की सहायक कंपनी है.

एचडीआईएल वह कंपनी है जिस की जांच पंजाब-महाराष्ट्र कोऔपरेटिव बैंक से जुड़े 4,300 करोड़ रुपए के फ्रौड केस में हो रही है. ईडी का कहना है कि एचडीआईएल ने करोड़ों रुपए प्रवीण राउत के खाते में ट्रांसफर किए. प्रवीण राउत संजय राउत के करीबी हैं.

नवंबर 2022 में जब संजय राउत को एक सैशन कोर्ट ने जमानत दी तो उस वक्त कोर्ट ने कहा था- “कोर्ट में जो सुबूत दिए गए और चर्चाएं हुईं उन में प्रवीण राउत पर तो भ्रष्टाचार के केस हैं, लेकिन संजय राउत को बेवजह गिरफ्तार किया गया.”

अब बात कुछ उन नेताओं की भी करते हैं जो उद्धव गुट छोड़ कर शिंदे गुट में आए और उन पर लगे ईडी-सीबीआई के केसों का क्या हुआ?

शिवसेना के नेता अर्जुन खोटकर 2016-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में मंत्री रहे. ईडी उन पर महाराष्ट्र कोऔपरेटिव बैंक घोटाले की जांच कर रही है. ईडी ने जून 2022 में अर्जुन खोटकर के आवास पर छापेमारी की थी और उन की 78 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी जब्त कर ली थी.

जुलाई में उद्धव गुट छोड़ कर खोटकर शिंदे गुट में शामिल हो गए. जब वे शिंदे गुट में शामिल हो रहे थे उस वक्त उन्होंने कहा था कि ‘वे हालात के हाथों मजबूर हैं.’ शिंदे गुट में शामिल होने के बाद उन के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई ख़बर नहीं है.

लगभग ऐसा ही मामला शिवसेना की नेता भावना गवली का भी है. महाराष्ट्र में भावना गवली के डिग्री कालेज हैं और उन पर पैसों के हेरफेर का आरोप है. ईडी गवली के खिलाफ मनी लौन्ड्रिंग के एक केस की जांच कर रही थी. ईडी का आरोप है कि गवली ने एक एनजीओ को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. उन पर करोड़ों की धोखाधड़ी करने का आरोप है.

गवली शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हुईं और इस के बाद से ईडी इस मनी लौन्ड्रिंग के केस में क्या कर रही है, इस की कोई जानकारी नहीं है.

शराब नीति पर पूछताछ के लिए ईडी आजकल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को घेरने में जुटी है. हालांकि केजरीवाल 3 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पेश नहीं हुए. इस मामले में उन्होंने ईडी को अपना जवाब भेजा है. धनशोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए कानून की धारा 19 प्रवर्तन निदेशालय को यह अधिकार देती है कि लगातार 3 बार समन के बाद भी अगर कोई आरोपित पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं होता है, तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन अपराध में संलिप्तता के पुख्ता आधार होने चाहिए. अब देखना होगा कि ईडी केजरीवाल को कब गिरफ्तार करती है और कोर्ट के पटल पर उन के खिलाफ क्या पुख्ता सुबूत रखती है. बीजेपी के लिए यह गिरफ्तारी जरूरी है क्योंकि अगर लोकसभा चुनाव से पहले उन की गिरफ्तारी नहीं होती है तो यह कांटा बीजेपी को बहुत चुभने वाला है.

आखिर क्यों बच्चे सुनाने लगते हैं मां-बाप को खरीखोटी !

उर्मिला बच्चों को जबतब बताती रहतीं कि उन की दादी उन्हें शुरू से ही सुबह जल्दी उठा देती थीं, रातबिरात कोई आए तो खाना बनाने में लगा देतीं, उन्हें जीवन में सुख मिला ही नहीं. एक दिन उन्हें अजीब लगा जब बड़ी बेटी ने कहा, ‘‘क्या आप को उठा कर दादी सोई रहती थीं?’’

‘‘नहीं, वे भी काम करती थीं.’’

‘‘तो फिर आप को शिकायत क्यों? मम्मी, आप को शादी नहीं करनी चाहिए थी.’’

दूसरी बेटी ने सीधे पापा को तलब किया, ‘‘पापा, आप हमारी मम्मी और अपनी मम्मी का काम में हाथ क्यों नहीं बंटाते थे?’’

‘‘सौरी, बिटिया, तब मैं छोटा था. मुझे इतनी अक्ल नहीं थी.’’

‘‘पर पापा, क्या अब भी आप छोटे हैं?’’

ऐसी स्थितियां घरघर में आम हैं. लोग इस के लिए समय तथा जमाने को दोष देते हैं. दरअसल, आज का बच्चा अपने वातावरण के प्रति पहले से ज्यादा सजग और मुखर है. नई तरह की स्कूली शिक्षा ने उसे स्पष्ट व सधी अभिव्यक्ति की ताकत दी है. टीवी चैनलों ने भी कुछ अलग माहौल बनाया है.

यह बात नई नहीं है

बच्चे मांबाप या बड़ों को अब ही खरीखरी सुनाते या कहते हों, ऐसा नहीं है. सचाई और साफगोई आरंभ से ही अभिव्यक्ति का हिस्सा रही है. हम सब ने ऐसी कई सच्ची कथाएं और घटनाएं सुनी हैं, जैसे जब एक पिता ने बच्चे को गन्ने के खेत से गन्ना चुरा कर लाने को कहा तो उस ने तुरंत कहा कि आप ने ही सिखाया है कि चोरी करना गंदी बात होती है, फिर चोरी करने को क्यों कह रहे हैं. पुराण कथाएं भी बताती हैं कि ध्रुव, प्रह्लाद आदि बच्चों ने मातापिता की गलत बातों का विरोध किया तथा सत्य पर अड़े रहे.

बच्चे जैसा देखते हैं और हम उन्हें जैसा सिखाते हैं वैसा ही वे सीखते हैं. इसीलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चों को देख कर मांबाप के बारे में काफी कुछ जानासमझा जा सकता है.

आईना है बच्चों का व्यवहार

बच्चों का व्यवहार हमारा आईना है. हम जिस तरह रिऐक्ट करते हैं वैसे ही वे भी रिऐक्ट करना सीखते हैं. यदि हम संवेदनापूर्वक शांति के साथ किसी से कुछ कहतेसुनते हैं तो बच्चे भी वैसा ही सीखते हैं. निहारिका की बेटी किसी को कुछ कह नहीं पाती. वह डांट खा कर या मार खा कर ही चली आती है, क्योंकि उस की मां निहारिका भी किसी से कहनेसुनने में यकीन नहीं करतीं.

हां, उस का बेटा नितिन ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाता है. जो उस के साथ जैसा व्यवहार करता है उस के साथ वह भी वैसा ही व्यवहार करता है. वह विनम्र और हंसमुख है तो व्यावहारिक भी.

नितिन ने टीचर से एक रोज एक ही सवाल कई बार किया. इस बात पर लड़केलड़कियां हंसने लगे. तब उस ने खुल कर कहा, ‘‘टीचर, आप मुझे ठीक से समझा नहीं पा रही हैं. यदि आप को लगता है कि सब का समय खराब हो रहा है तो मुझे बाद में अलग से बता दें. यह जानना मैं जरूरी समझता हूं.’’

टीचर ने उसे डांटा तो वह और जोर से बोला, ‘‘टीचर, हम इतनी सारी फीस दे कर पढ़ते हैं. इस में आप को बुरा तो नहीं मानना चाहिए.’’ टीचर बिफर गईं. उसे प्रिंसिपल के पास ले गईं. पूरी बात बताई. वहां भी बच्चे ने कहा, ‘‘टीचर को हमें ढंग से पढ़ाना चाहिए. ये मुझे जितनी देर में यहां तक ले कर आईं, उस से कम समय में समस्या हल हो सकती थी.’’

पिं्रसिपल ने तुरंत वहीं बिठा कर उस टीचर की बात सुने बिना पहले समस्या हल कराई. अब टीचर के पास कहने को कुछ नहीं बचा, क्योंकि बच्चा पहले ही सब कुछ कह चुका था. अंत में बच्चा बोला, ‘‘थैंक्यू, यह तरीका ठीक है समझाने का. यह हमारी टीचर को भी समझना चाहिए न.’’

केवल बड़ा होना काफी नहीं

आज के चौकन्ने, होशियार और मनोभावों को समझने वाले बच्चों से हम परंपरागत आधार पर मानसम्मान नहीं पा सकते. आदर पाने के लिए केवल बड़ा होना ही पर्याप्त नहीं. उस के लिए बड़प्पन भी चाहिए. श्रेया ने पिता से कहा, ‘‘सुना है पापा, आप की कोई गर्ल फ्रैंड है?’’ पिता ने नकारा तो उस ने कई सबूत दिए. उस के पापा हैरान रह गए.

हर मुद्दे पर झगड़ते दंपती से उन के बच्चे कहते हैं, ‘‘इतने एजुकेटेड हो कर भी आप दोनों हमेशा लड़ते रहते हैं. इतनी इन्कम होने के बाद भी आप खुश क्यों नहीं हैं? अगर ठीक से नहीं रह सकते तो तलाक ले लीजिए. हम होस्टल में रह लेंगे. हमारी वजह से घुटघुट कर साथ मत रहिए.’’

रोहित ने दादी से स्पष्ट कहा कि जब भी वह उन के घर आए, खुश रहें. उस की पसंद की डिश बनाएं. घूमनेफिरने की जगह बताएं. अगर मम्मी से नहीं बनती है तो क्या, घर तो उस का और पापा का भी है, न आने की भला क्या बात है. पापा से भी उस ने साफ कह दिया है कि वे मम्मी से न डरें. मुझे दादी का आना बहुत पसंद है. मां से भी कहा है कि आप दादी से जलती हैं. पापा का उन्हें पैसे देना आप को अखरता है. आप दादी को नहीं चाहतीं तो मेरी बीवी को कैसे प्यार करेंगी?

बच्चों को स्नेह व सम्मान चाहिए

बाहरी विकास से भीतरी विकास भी होता है. आज का बच्चा सकारात्मकनकारात्मक भावों का पारखी है. उस के भीतर का संसार भी समृद्ध है. वह मारपीट, दुत्कार या असंवेदनशीलता बरदाश्त नहीं कर पाता. वह आहत हो कर ही खरीखोटी नहीं सुनाता बल्कि आप को आहत होते देख कर भी खरीखोटी सुनाता है. जिन बातों को हम 15-20 वर्ष की उम्र में समझते थे उन्हें वह 10-12 वर्ष की उम्र में पूरी तरह समझता है.

एक महिला कहती है, खरीखोटी सुना कर ही सही मेरे बच्चे ने मुझे बचा लिया. मैं बच्चे को बहुत सिखा कर ले गई पर कोर्ट में उस ने पापा के साथ रहने का निर्णय सुना दिया. हम उस की तर्कक्षमता पर दंग थे.  इसी कारण हम मन से एक हो गए. कोर्ट में मेरे बच्चे ने कहा :

‘मेरे पापा तलाक के बाद दोबारा शायद शादी न करें क्योंकि वे अपने लक्ष्य में डूबे हुए वैज्ञानिक हैं. उन के पास इतना समय और क्षमता नहीं है. पापा ने मम्मी पर जिस व्यक्ति को ले कर आरोप लगाया है, दरअसल, वह व्यक्ति सिर्फ इन का मित्र है. मैं ने इन की हैल्दी फ्रैंडशिप देखी है. मम्मी अगर कहीं शादी करती हैं तो भी मेरे लिए पापा का जुगाड़ नहीं कर पाएंगी. पर मैं पास रहूं या न रहूं मम्मी का प्यार हमेशा मुझे मिलेगा. मैं पापा के काम में सहयोग करूंगा. मम्मी चाहें तो मैं पापा को मना सकता हूं.’

दोहरा आचरण तो कारण नहीं?

हमारा व्यवहार भी बच्चों को खरीखोटी सुनाने को मजबूर कर सकता है. जब वे हमारे दोहरे आचरण देखते हैं तो वे कचोटते हैं. दरअसल, बच्चे खरीखरी सुनाएं तो सुन कर गौर करें. बिफरने के बजाय उस में औचित्य भी देखें. यदि कोई समाधान दिखे तो अमल में लाएं. बच्चों के साथ विनम्रता ही नहीं, ईमानदारी से भी पेश आना आज की आवश्यकता है. गलती कर के दाएंबाएं करने या टालने के बजाय सौरी फील करने में कोई हर्ज नहीं.

‘चाइल्ड इज द फादर औफ मैनकाइंड’ यानी बच्चा मानवजाति का पिता है, यह यों ही नहीं कहा गया है. वे जो देखते हैं वही अपने व्यवहार में लाते हैं. बच्चे की नकारात्मक हरकत को देख कर हम उस से नफरत करने लगते हैं लेकिन उस के पीछे के कारणों पर गौर नहीं करते.

अपनी खुशी के लिए : क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता ?

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चोट : आखिर किस बात से आहत हुआ शिवेंद्र ?

दिल्ली से सटे तकरीबन 40 किलोमीटर दूर रावतपुर नाम के एक छोटे से कसबे में अमरनाथ नाम का एक किसान रहता था. उस के पास तकरीबन डेढ़ एकड़ जमीन थी, जिस में फसल उगा कर वह अपने परिवार को पाल रहा था. पत्नी, एक बेटा और एक बेटी यही छोटा सा परिवार था उस का, इसलिए आराम से गुजारा हो रहा था.

अमरनाथ का बड़ा बेटा शिवेंद्र पढ़नेलिखने में बहुत तेज तो नहीं था, पर इंटरमीडिएट तक सभी इम्तिहान ठीकठाक अंकों से पास करता गया था.

अमरनाथ को उम्मीद थी कि ग्रेजुएशन करने के बाद उसे कहीं अच्छी सी नौकरी मिल ही जाएगी और वह खेतीकिसानी के मुश्किल काम से छुटकारा पा जाएगा.

रावतपुर कसबे में कोई डिगरी कालेज न होने के चलते अमरनाथ के सामने शिवेंद्र को आगे पढ़ाने की समस्या खड़ी हो गई. उस ने काफी सोचविचार कर बच्चों को ऊंची तालीम दिलाने के लिए दिल्ली में टैंपरेरी ठिकाना बनाने का फैसला लिया और रावतपुर में अपने खेत बंटाई पर दे कर सपरिवार दिल्ली के सोनपुरा महल्ले में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

अमरनाथ ने शिवेंद्र को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए ज्ञान कोचिंग सैंटर में दाखिला करा दिया और बेटी सुमन को पास के ही महात्मा गांधी बालिका विद्यालय में दाखिला दिला दिया. उस ने अपना ड्राइविंग लाइसैंस बनवाया और आटोरिकशा किराए पर ले कर चलाना शुरू कर दिया.

आटोरिकशा के मालिक को रोजाना 400 रुपए किराया देने के बाद भी शाम तक अमरनाथ की जेब में 3-4 सौ रुपए बच जाते थे जिस से उस का घरखर्च चल जाता था.

अमरनाथ सुबह 8 बजे आटोरिकशा ले कर निकालता और शिवेंद्र को कोचिंग सैंटर छोड़ता हुआ अपने काम पर निकल जाता. शिवेंद्र की छुट्टी शाम को 4 बजे होती थी.

अमरनाथ इस से पहले ही कोचिंग सैंटर के पास के चौराहे पर आटोरिकशा ले कर पहुंच जाता और शिवेंद्र को घर छोड़ कर दोबारा सवारियां ढोने के काम में लग जाता.

अमरनाथ सुबहशाम बड़ी चालाकी से उसी रूट पर सवारियां ढोता जिस रूट पर शिवेंद्र का कोचिंग सैंटर था और जब शिवेंद्र को लाते और ले जाते समय कोई सवारी उसी रूट की मिल जाती तो अमरनाथ की खुशी का ठिकाना न रहता.

एक दिन शाम को साढ़े 4 बजे के आसपास अमरनाथ चौराहे पर शिवेंद्र का इंतजार कर रहा था कि तभी ट्रैफिक पुलिस का दारोगा डंडा फटकारता हुआ वहां आ गया और उस से तुरंत अमरनाथ को वहां से आटोरिकशा ले जाने को कहा.

अमरनाथ ने दारोगा को बताया कि उस का बेटा कोचिंग पढ़ कर आने वाला है. वह उसी के इंतजार में चौराहे पर खड़ा है. बेटे के आते ही वह चला जाएगा.

‘‘अच्छा, मुझे कानून बताता है. भाग यहां से वरना मारमार कर हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’ दारोगा गुर्राया.

‘‘साहब, अगर मैं यहां से चला गया तो मेरा बेटा…’’

अमरनाथ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि दारोगा ने ताबड़तोड़ उस पर डंडा बरसाना शुरू कर दिया. उसी समय शिवेंद्र वहां पहुंच गया. अपने पिता को लहूलुहान देख उस की आंखों में खून उतर आया. उस ने लपक कर दारोगा का डंडा पकड़ लिया.

शिवेंद्र को देख अमरनाथ कराहते हुए बोला, ‘‘साहब, मैं इसी का इंतजार कर रहा था. अब मैं जा रहा हूं.’’

अमरनाथ ने शिवेंद्र की ओर हाथ बढ़ाते हुए उठने की कोशिश की तो शिवेंद्र ने दारोगा का डंडा छोड़ अपने पिता को उठा लिया और आटोरिकशा में बिठा कर आटो स्टार्ट कर दिया.

शिवेंद्र ने दारोगा को घूरते हुए आटोरिकशा चलाना शुरू किया तो दारोगा ने एक भद्दी सी गाली दे कर आटोरिकशा पर अपना डंडा पटक दिया.

इस घटना के 3-4 दिन बाद तक शिवेंद्र कोचिंग पढ़ने नहीं गया. हथेली जख्मी हो जाने के चलते अमरनाथ आटोरिकशा चलाने में नाकाम था, इसलिए वह घर पर ही पड़ा रहा और घरेलू उपचार करता रहा.

घरखर्च के लिए शिवेंद्र ने बैटरी से चलने वाला आटोरिकशा किराए पर उसी आटो मालिक से ले लिया जिस से उस के पिता किराए पर आटोरिकशा लेते थे, ताकि ड्राइविंग लाइसैंस का झंझट न पड़े. वह पूरे दिल से आटोरिकशा चलाता और फिर देर रात तक पढ़ाई करता.

एक दिन रात को शिवेंद्र पढ़तेपढ़ते सो गया. उस की मां की नींद जब खुली तो उस ने शिवेंद्र की किताब उठा कर रख दी. तभी उस की निगाह तकिए के पास रखे बड़े से चाकू पर गई.

सुबह उठ कर शिवेंद्र की मां ने उस से पूछा, ‘‘तू यह चाकू क्यों लाया है और इसे तकिए के नीचे रख कर क्यों सोता है?’’

अपनी मां का सवाल सुन कर शिवेंद्र सकपका गया. उस ने कोई जवाब देने के बजाय चुप रहना ही ठीक समझा. उस की मां ने जब बारबार यही सवाल दोहराया तो वह दांत पीसते हुए बोला, ‘‘उस दारोगा के बच्चे का पेट फाड़ने के लिए लाया हूं जिस ने मेरे पापा की बेरहमी से पिटाई की है.’’

शिवेंद्र का जवाब सुन कर उस की मां सन्न रह गई.

शिवेंद्र के जाने के बाद मां ने यह बात अमरनाथ को बताई. अमरनाथ ने जब यह सुना तो उस के होश उड़ गए. कुछ पलों तक वह बेचैनी से शून्य में देखता रहा, फिर अपनी पत्नी से कहा, ‘‘तू ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? उसे घर के बाहर क्यों जाने दिया? अगर वह कुछ ऐसावैसा कर बैठा तो…?’’

रात को 8 बजे जब आटोरिकशा वापस जमा कर के शिवेंद्र घर लौटा और दिनभर की कमाई पिता को दी तो अमरनाथ ने उसे अपने पास बैठा कर बहुत प्यार से समझाया, ‘‘बेटा, दारोगा ने सही किया या गलत, यह अलग बात है, मगर जो तू कर रहा है, उस से न केवल तेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी, बल्कि पूरा परिवार ही तबाह हो जाएगा.

‘‘हम सब के सपनों का आधार तू ही है बेटा, इसलिए दारोगा से बदला लेने की बात तू अपने दिमाग से बिलकुल निकाल ही दे, इसी में हम सब की भलाई है.’’

शिवेंद्र चुपचाप सिर झुकाए अपने पिता की बातें सुनता रहा. दुख और मजबूरी से उस की आंखें डबडबा आईं. बहुत समझाने पर उस ने अपनी कमर में खुंसा चाकू निकाल कर अमरनाथ के सामने फेंक दिया और उस के पास से हट गया.

अमरनाथ ने चुपचाप चाकू उठा कर अपने बौक्स में रख कर ताला लगा दिया.

अगले दिन अमरनाथ ने चोट के बावजूद खुद आटोरिकशा संभाल लिया और शिवेंद्र को ले कर कोचिंग सैंटर गया.

शिवेंद्र जब आटो से उतर कर कोचिंग सैंटर चला गया तो कुछ देर तक अमरनाथ बाहर ही खड़ा रहा. फिर कोचिंग सैंटर के हैड टीचर जिन्हें सब अमित सर कहते थे, के पास गया और उन्हें दारोगा वाली पूरी बात बताई.

अमित सर ने अमरनाथ की पूरी बात सुनी और उसे भरोसा दिलाया कि वे शिवेंद्र की काउंसलिंग कर के जल्दी ही उसे सही रास्ते पर ले आएंगे.

अमरनाथ के जाने के बाद अमित सर ने शिवेंद्र को अपने कमरे में बुलाया और उस से पुलिस द्वारा की गई ज्यादती के बारे में पूछा, तो शिवेंद्र फफक कर

रो पड़ा.

जब शिवेंद्र 5-7 मिनट तक रो चुका तो अमित सर ने उसे चुप कराते हुए सवाल किया, ‘‘क्या तुम जानते हो कि पुलिस वाले ने तुम्हारे पिता पर हाथ क्यों उठाया?’’

‘‘सर, उन की कोई गलती नहीं थी. वे चौराहे पर मेरा इंतजार कर रहे थे. यह बात उन्होंने उस पुलिस वाले को बताई भी थी.’’

‘‘मतलब, उन की कोई गलती नहीं थी. अब यह बताओ कि अगर तुम्हारे पिता की जगह पर कोई अमीर आदमी बड़ी सी महंगी कार लिए अपने बेटे का वहां इंतजार कर रहा होता तो क्या पुलिस वाला उस आदमी पर हाथ उठाता?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘इस का मतलब यह है कि गरीब होने के चलते तुम्हारे पिता के ऊपर हाथ उठाने की हिम्मत उस दारोगा ने की.’’

‘‘जी सर.’’

‘‘तो बेटा, तुम्हें उस दारोगा से बदला लेने के बजाय उस गरीबी से लड़ना चाहिए जिस के चलते तुम्हारे पिता की बेइज्जती हुई. होशियारी इनसान से लड़ने में नहीं, हालात से लड़ने में है.

‘‘अगर तुम लड़ना ही चाहते हो तो गरीबी से लड़ो और इस का एक ही उपाय है ऊंची तालीम. अपनी गरीबी से संघर्ष करते हुए खुद को इस काबिल बनाओ कि उस जैसे पुलिस वाले को अपने घर में गार्ड रख सको.

‘‘तुम मेहनत कर के आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में कामयाबी पाओ. फिर इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल कर के कोई बड़ी नौकरी हासिल करो. फिर तुम देखना कि वह दारोगा ही क्या, उस के जैसे कितने ही लोग तुम्हारे सामने हाथ जोड़ेंगे और आईएएस बन गए तो यही दारोगा तुम्हें सैल्यूट मारेगा.

‘‘तुम्हारे इस संघर्ष में मैं तुम्हारा साथ दूंगा. बोलो, मंजूर है तुम्हें यह संघर्ष?’’

अमित सर की बात सुन कर शिवेंद्र का चेहरा सख्त होता चला गया, मानो उस की चोट फूट कर बह जाने के लिए उसे बेताब कर रही हो.

शिवेंद्र ने दोनों हाथ उठा कर कहा, ‘‘हां सर, मैं लडूंगा. पूरी ताकत से लड़ूंगा और इस लड़ाई को जीतने के लिए जमीनआसमान एक कर दूंगा.’’

दारोगा के गलत बरताव से शिवेंद्र के मन पर जो चोट लगी थी उस की टीस को झेलते हुए वह कामयाबी की सीढि़यां चढ़ता गया और आईआईटी मुंबई से

जब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर के लौटा तो 35 लाख रुपए सालाना तनख्वाह का प्रस्ताव भी जेब में ले कर आया. शिवेंद्र ने अपनी तनख्वाह के बारे में जब अमरनाथ को बताया तो उस का मुंह खुला का खुला रह गया, फिर वह तकरीबन चीखते हुए बोला, ‘‘अरे शिवेंद्र की मां, इधर आ. देख तो अपना शिवेंद्र कितना बड़ा आदमी हो गया है.’’

पूरे परिवार के लिए वह दिन त्योहार की तरह बीता. शाम को काजू की बरफी ले कर शिवेंद्र अमित सर के घर पहुंचा तो उन्होंने उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाई और बोले, ‘‘मुझे खुशी है कि वक्त ने तुम्हारे दिल को जो चोट दी, उसे तुम ने सहेज कर रखा और उस का इस्तेमाल सीढ़ी के रूप में कर के तरक्की की चोटी तक पहुंचे.

‘‘अब तुम्हें पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं है. बस, यह ध्यान रखना कि किसी को तुम्हारे चलते बेइज्जत न होना पड़े, किसी गरीब को तुम से चोट न पहुंचे, यही तुम्हारा असली बदला होगा.’’

मन के बंधन : दो दिलों की अधूरी प्रेम कहानी

मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.

यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आए मुझे एक माह ही तो हुआ था. म्यूजियम और घूमनेफिरने की कई जगहों की घुमक्कड़ी हो गई, तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मजा आने लगा. आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मौल में जब मैं चहलकदमी करतेकरते थक गया, तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छहफुटा गोरा पहले से बैठा था. गोरे की आंखों की चमक गायब थी, खोईखाई आंखें मानो किसी को तलाश रही थीं.

आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.

बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.

मैं ने बूढ़े की आंखों में आंखें डालते बड़ी विनम्रता से हिंदुस्तानी इंग्लिश में पूछा, ‘‘आप किस देश से हैं?’’

मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरूरत बात करने से बचना चाहिए. लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जवाब दिया था उस से मेरे सवालों में गति आ गई. उस ने अपने देश चेकोस्लोवाकिया का नाम उच्चारित किया तो मैं ने उस का नाम पूछा. नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे बोलना संभव नहीं. सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं. सो, मैं उसे चैक के नाम से उस का परिचय आप से कराऊंगा.

उस की इंग्लिश आस्ट्रेलियन थी. पर वह संभलसंभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूं.मेरे 2 सवालों के बाद चैक ने मुझ में दिलचस्पी लेनी शुरू की, ‘‘आप तो इंडियन हैं.’’ उस की आवाज में भरपूर आत्मविश्वास था.

मेरे देश की पहचान उस ने बड़ी सरलता से और त्वरित की, इसे जान कर मुझे गर्व हुआ और खुशी भी. मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढ़ती गई, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘एल्टोना,’’ उस ने जवाब दिया. दरअसल, मेलबर्न में 10 से

15 किलोमीटर की दूरी पर छोटेछोटे अनेक उपनगर हैं. एल्टोना उन में एक है. उपनगर वेरिवी, जहां हम चैक से बतिया रहे थे, एल्टोना से 10 किलोमीटर दूर है.

चैक खानेपीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय

10 किलोमीटर की दूरी अपनी कार में तय करता है. पैट्रोल पर फुजूलखर्ची करता है. वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्योंकि वह रिटायर्ड जिंदगी जी रहा है. लेकिन सरकार से मिलने वाली पैंशन

15 सौ डौलर में गुजरबसर करने वाला फुजूलफर्ची करे, यह मेरी समझ से बाहर था. इस पराई धरती पर रहते हुए मुझे मालूम पड़ गया था कि यहां एकएक डौलर की कीमत है.

चैक की दरियादिली कहें या उस का शौक, मैं ने सोचा कि अपनी जिज्ञासा को चैक से शांत करूं.

तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला, ‘‘आप की पत्नी?’’

मैं ने मुसकराते कहा, ‘‘आप ने एक बार फिर सही पहचाना.’’

चैक अपने अनुमान पर मेरी मुहर लगते देख थोड़ी देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जवाब देने पर किसी ने उस की पीठ थपथपाई हो.

‘‘आप कितने समय से साथ रह रहे हैं?’’ उस ने पूछा.‘‘40 वर्ष से,’’ मैं ने कहा. वह बोला, ‘‘आप समय के बलवान हैं.’’

मुझे यह कुछ अटपटा लगा. पत्नी के साथ रहने को वह मेरे समय से क्यों जोड़ रहा था, जबकि यह एक सामान्य स्थिति है. इस के साथ ही मेरी जबान से सवाल निकल पड़ा, ‘‘और आप की पत्नी?’’

मेरा इतना पूछना था कि चैक के माथे पर तनाव उभर आया. चैक की आंखों ने क्षणभर में न जाने कितने रंग बदले, मुझे नहीं मालूम. पलकें बारबार भारी हुईं, पुतलियां कई बार ऊपरनीचे हुईं. मैं कुछ अनुमान लगाऊं, इस से पहले चैक के भरेगले से स्वर फूटे, ‘‘थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है.’’

मैं चैक के और करीब खिसक आया. उस के कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया, मुझे नहीं मालूम. चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गरमी को पहले कभी महसूस नहीं किया था. उस ने मन को हलका करने की मंशा से कहा, ‘‘हम 30 साल साथसाथ रहे थे.’’

मैं ने देखा, यह बात कहते चैक के होंठ कई बार किसी बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाए थे.

‘‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’’ मुझ से रुका न गया. शब्द उस के मुंह में थे, पर नहीं निकले. गला रुंध आया था. उस ने हाथों से जो इशारे किए उस से मैं समझ गया. मानो कह रहा हो, सब समयसमय का खेल है. मगर, मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी.

मैं ने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया, ‘‘आप का कोई झगड़ा हुआ था?’’ ‘‘ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था,’’ वह बोला, ‘‘वह एक दिन मेरे पास आई और बोली, ‘चैक, आई एम सौरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी. मैं ने और स्टीफन ने एकसाथ रहने का फैसला किया है.’ फिर वह चली गई.’’

‘‘आप ने उसे रोका नहीं?’’ ‘‘मैं कैसे रोकता, यह उस का फैसला था. यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रह कर ज्यादा खुश है तो मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए.’’

मैं हैरानी से उसे देख रहा था. ‘‘लेकिन हां, आप से झूठ नहीं कहूंगा. मैं ने उस के लौटने का इंतजार किया था.’’ वह आगे बोला.

उस की आंखें नम हो रही थीं. वह फिर बोला, ‘‘आखिर, हम लोग 30 साल साथ रहे थे. मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी,’’ हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए उस ने कहा, ‘‘इस दुकान में हम लोग अकसर आते थे. यह उस की पसंदीदा दुकान थी.’’

मैं समझ गया कि वेरिवी के शौपिंग कौंपलैक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘यहां उस से मुलाकात होती है?’’

‘‘मुलाकात नहीं कह सकते. वह स्टीफन के साथ यहां आती थी. बहुत खुश नजर आती थी. मैं उसे यहीं से देख लिया करता था. उसे देख कर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है. वह खुश थी. लेकिन…’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘पिछली बार मैं ने उसे देखा था तो वह अकेली थी.’’

मैं ने देखा कि रोजलिन के चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी. कुछ परेशान लग रही थी. उस ने मुझे देख लिया था. हमारी नजरें मिलीं, मगर वह बच कर निकल जाना चाहती थी. मैं ने आगे बढ़ कर अनायास ही उस का हाथ थाम लिया था, पूछा था, ‘कैसी हो?’ उस ने मेरी आंखों में देखा था, मगर कुछ बोल नहीं पाई थी. उस के हाथ फड़फड़ा कर रह गए थे. वह हाथ छुड़ा कर चली गई थी. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी, तो पूछूंगा कि वह खुश तो है.’’

‘‘आप की यह मुलाकात कब हुई थी?’’ ‘‘करीब 2 साल पहले.’’

उस की आंखें डबडबा रही थीं और मैं हैरत से उसे देख रहा था. वह पिछले 2 साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उस से पूछ सके कि ‘वह खुश तो है.’

उस दिन मैं ने उस के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उस का इंतजार खत्म हो.

मैं अपने देश लौट आया था. मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा. बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे. क्या उस की मुलाकात हुई होगी? क्या रोजलिन उस को मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उस का इंतजार कर रहा होगा?

Street Food : चिकेन मटन चाउमीन के लजीज रोल्स ठेले पर

ऐसा स्ट्रीट फूड जिस का नाम लेने भर से मुंह में पानी भर आए, वह है ठेले पर बिकने वाले रोल्स. मैदे के रोटी के बीच भरे लच्छेदार प्याज, हरा धनिया, हरी मिर्च, टोमेटो कैचप और हरी चटनी के बीच मटन या चिकेन के पीसेस जब मुंह में आते हैं तो उस के आगे बड़ेबड़े होटलों की शाही डिशेज भी फीकी मालूम पड़ती है.

दिल्ली के किसी मार्केट में चले जाइए, आप को एक दो ठेले रोल्स के तो मिल ही जाएंगे. मैट्रो स्टेशनों के नीचे तो इन की खूब बिक्री होती है. करोल बाग क्षेत्र में जहां आईएएस-आईपीएस बनाने के कोचिंग इंस्टीटूट्स की भरमार है, उन के नीचे रोल्स के ठेलों पर लम्बी लाइन लगी दिखती है. जिन पर पढ़ाकू बच्चों की ऐसी भीड़ टूटती है कि पूछो मत. सुबह से दोपहर तक एक सब्जैक्ट की कोचिंग की, बाहर निकले, रोल खाया और अगले सब्जैक्ट की कोचिंग के लिए फिर इंस्टीट्यूट में घुस गए. जो बच्चे अन्य शहरों से आ कर यहां कोचिंग कर रहे हैं वे रात को अपने पीजी में पहुंच कर खाना नहीं बनाते बल्कि ठेले से दो टेस्टी रोल बंधवा लेते हैं और वही खा कर पढ़ाई में लगे रहते हैं.

राजौरी गार्डन, लाजपत नगर, सरोजिनी नगर, तिलक नगर की मार्केट में शौपिंग के लिए गए हों और भूख लगने पर रोल नहीं खाया तो शौपिंग अधूरी लगती है. ऐसा नहीं है कि स्ट्रीट फूड का यह जबरदस्त बिकने वाला आइटम सिर्फ नौनवेज खाने वालों के लिए ही है. यह तो वैजिटेरियन खाने वालों के लिए भी ऐसा उम्दा रोल्स बनाते हैं कि दिल करता है बनाने वाले के हाथ चूम लें.

मैदे की रोटी के बीच टोमेटो कैचप और हरी चटनी के साथ गरमागरम चटपटी चाउमीन लिपटी हो तो फिर खानेवाला जब तक उस को पूरा का पूरा चट नहीं कर लेता, नज़र उठा कर नहीं देखता है. गरमागरम मलाई सोयाचाप रोल और पनीर रोल के तो कहने ही क्या. नाम सुनते ही मुंह से लार टपकने लगती है. फिर जवान बच्चे तो ऐसी ही चीज़ों के शौक़ीन होते हैं. उन से कहां टिफिन में भरी ठंडी रोटी-सब्जी खाई जाती है. ऐसे में अगर 60 से 90 रूपए तक में रोल खाने को मिल जाए तो पूरा खाना हो जाता है.

दिल्ली के मोती नगर मार्केट में एक रोल वाला कई तरह के रोल्स बनाता है. नौनवेज रोल के लिए वह 90 से 120 रुपए चार्ज करता है जबकि वेज के लिए 60 से 80 रुपए. उस के पास रोल्स की बड़ी वैराइटी हैं. सिंगल और डबल मैदा रोटी पराठे में एग रोल – एक अंडे का या अधिक अंडों का, चटपटा चाऊमीन रोल, सोया चाप रोल – मलाई वाला, पनीर रोल विथ प्याज-कैप्सिकम, चिकेन टिक्का रोल विथ प्याज एंड कैप्सिकम, चिकेन सीक कबाब रोल विथ प्याज एंड कैप्सिकम, मटन सीक कबाब रोल विथ प्याज एंड चटनी, मटन टिक्का रोल विथ प्याज, कैप्सिकम एंड चटनी, चिकेन मटन टुकड़ा रोल साथ में हरी चटनी और सौस.

आप को ज़्यादा भूख लगी हो तो पराठे डबल करवा लीजिए वरना सिंगल रोल भी काफी हेवी होता है. दिल्ली में जो लोग शाम छह-सात बजे तक औफिस में रहते हैं, वे अकसर औफिस से निकल कर मेट्रो के नीचे से रोल पैक करवाते दिखते हैं और फिर मैट्रो के सफर के दौरान मोबाइल पर रील्स देखते हुए रोल का आनंद उठाते हुए घर पहुंचते हैं.

दिल्ली मुंबई जैसी मैट्रो सिटीज में बहुतेरे युवा लड़केलड़कियां काम की तलाश में छोटे शहरों से आते हैं और यहां किराए के कमरों में या पेइंग गेस्ट के रूप में किसी के घर में रहते हैं. दिल्ली बड़ा शहर है, काम की जगहें दूर हैं तो आने जाने में भी बड़ा समय लगता है. घर पर खाना बनाओ, उस को पैक करो और अपने साथ औफिस लाओ, इस में झमेला बहुत है. ऐसे में युवाओं की बहुत बड़ी संख्या दोपहर और रात के भोजन के लिए स्ट्रीट फूड पर निर्भर है. इसलिए ठेलेवालों की आमदनी भी खूब होती है.

रोल्स बनाने वाले ठेलों की आमदनी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन ठेलों पर कोई एक आदमी काम नहीं करता, बल्कि तीन से चार लोग काम करते हैं. ये ठेला खड़ा करने के लिए नगर निगम को भी पैसे देते हैं और पुलिस को भी. इन के पास सोया चाप, चिकनमटन टिक्के और सीक कबाब बनेबनाए आते हैं, मैदे की रोटियां भी हलकी सिकी हुई बनी बनाई पैकेट्स में आती हैं. सारा सामान सुबह ही इन को सप्लाई कर दिया जाता है.

ऐसे में रोल बनाने के धंधे में ठेले वालों से ले कर कई लोग शामिल होते हैं. खानेवालों की भी कमी नहीं है इसलिए धंधा खूब मुनाफे का है, बस हाथों में ज़रा फुर्ती चाहिए क्योंकि ठेले के सामने अपने रोल के इंतज़ार में खड़े लोग अपना रोल पाने के लिए बेकरार दिखते हैं.

लखनऊ में भी रोल का बढ़ रहा चलन

रोल्स के ठेले लखनऊ में भी है. खासकर हजरतगंज, अलीगंज, गोमतीनगर, आलमबाग और 1090 के पास चटोरी गली में रोल्स मिलने लगे हैं. इन का प्रयोग ज्यादातर कोचिंग पढ़ने वाले करते हैं. इस की वजह यह होती है कि इन को ले कर खातेखाते वह सड़क पर चलते रहते हैं. इंजीनरिंग की तैयारी कर रहे दीपक कुमार का कहना है कि इस का पकड़ के खाना आसान होता है. खाने में समय नहीं बर्बाद होता. हाथ नहीं गंदे होते और कम कीमत में भूख मिट जाती है.

भोपाल में भी रोल्स के दीवाने

भोपाल के एमपी नगर जैसे दर्जनभर पाश इलाकों मे रोल्स के ठेलों पर छात्रों का हुजूम उमड़ने लगा है. कोई दर्जन भर हौकर्स कौर्नर पर रोल्स के ठेले अपना अलग आकर्षण रखते हैं. 6 नंबर हौकर्स कौर्नर की एक विक्रेता बताती हैं कि न केवल युवा बल्कि फैमिली वाले भी आमतौर पर वीक एंड पर बतौर चेंज रोल्स ट्राइ करने आते हैं यही उन का डिनर होता है जो किसी भी होटल के डिनर से काफी सस्ता पड़ता है नए भोपाल मे वैज तो पुराने भोपाल मे नौनवेज रोल की मांग ज्यादा रहती है

मुंबई की पाव भाजी और वड़ा पाव

मुंबई की सब से प्रसिद्ध स्ट्रीट फूड में वड़ा पाव, भेलपुरी, पानीपुरी, सेवपुरी, बौम्बे सैंडविच, रगड़ा-पट्टिस, पाव भाजी, औमलेट पाव और कबाब शामिल हैं. जबकि मिठाइयों में कुल्फी और आइस गोला हैं. कौर्नर औफ एमआरए मार्ग, मुसाफिर खाना रोड, मुंबई सीएसटी एरिया, भिंडी बाजार, जुहू चौपाटी, गोरेगांव चौपाटी, खाऊ गली आदि कई ऐसे स्थान हैं जहां पर मुंबई के लजीज स्ट्रीट फूड का आनंद उठाया जाता है. यहां का वड़ा पाव, समोसा पाव, भजिया पाव आदि ऐसे स्ट्रीट फूड हैं, जिसे 10 से 15 रुपए दे कर खरीदा जा सकता है और इसे एक व्यक्ति खा कर कुछ देर के लिए अपनी भूख मिटा सकता है. शाम के समय मसाला पाव भाजी और पुलाव के लिए भी यहां भीड़ लगती है. दिलचस्प बात यह है कि इस शहर में दर्जनों जगह पाव भाजी के स्टाल हैं ,आप कहीं भी पाव भाजी खा सकते हैं. मुंबई की खासियत यह है कि यहां करोड़ों कमाने वाले से ले कर रोज 100 रुपए कमाने वाला भी अपना पेट भर कर खुश रह सकता है, तभी तो इस शहर को ‘मुंबई मेरी जान’ कहते हैं.

रांची में भी रोल्स और स्ट्रीट फूड के दीवाने हैं युवा

रांची के शहीद चौक के पास ऐसे ठेले वालों की भरमार होती है. जेवियर कालेज के छात्र हों या आसपास कोचिंग सैंटर से लौटते छात्र, शहीद चौक पर आ कर ठेले वालों से चाट गोलगप्पे या रोल्स खाने का मजा जरूर लेते हैं. कम कीमत में चटपटे स्वाद के आगे बड़े रैस्टोरेंट का खाना भी फीका लगता है. न और्डर करने के बाद ज्यादा इंतजार करना होता है और न ज्यादा जेब ढीली करनी होती है. दोस्तों के साथ यहां भीड़ में खाने का आनंद ही अलग होता है. अपर बाजार और फिरायलाल चौक के आसपास भी काफी देखने को मिलते हैं ऐसे ठेले.

– साथ में लखनऊ से शैलेंद्र सिंह, भोपाल से भारत भूषण, मुंबई से सोमा घोष और रांची से गरिमा पंकज

मैदानी इलाकों में भी खूब बिक रहा है जायकेदार मोमोज

भारत में मोमोज की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी. जब बहुत बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने अपने देश से पलायन किया था. तिब्बत छोड़ कर वे रहने के लिए भारत आ गए थे. उन के साथ ही मोमोज भी भारत पहुंच गया था.

पहले मोमोज भारत के सिक्किम, मेघालय, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिमपोंग के पहाड़ी इलाकों में पहुंचा. इस के बाद जैसेजैसे इस का स्वाद लोगों की जबान को पंसद आने लगा मोमोज सब से अधिक बिकने वाला फूड हो गया.

अब यह गांव, शहर, कसबो से ले कर मैट्रो शहरों तक बिक रहा है. यह रोजगार का सब से बडा साधन भी बन गया है.

उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल जिले के नलाई तल्ली गांव में रहने वाले रणजीत सिंह अपने सपनों को पूरा करने लखनऊ आए थे. होटल और रेस्तरां में वेटर की जौब की। इस के बाद कचौङी का ठेला लगाना शुरू किया. इस में नुकसान उठाना पड़ा, तो इस के बाद रणजीत सिंह ने 2008 में लखनऊ के हजरतगंज इलाके में चाऊमीन का ठेला लगाना शुरू किया. नए साल की शुरुआत में रणजीत ने चाउमीन के साथ गिफ्ट के रूप में मोमोज देना शुरू किया.

मोमोज से बनाई अपनी पहचान

नौरमल मोमोज जहां स्टीम किए होते थे, वहीं रणजीत के मोमोज फ्राई किए होते थे. चटनी भी अलग थी. फ्राई मोमोज और चटनी का स्वाद लोगों को ऐसा पंसद आया कि रणजीत के ठेले से चाऊमीन से कहीं ज्यादा मोमोज बिकने लगा.

इस के बाद रणजीत ने अपने इस कारोबार को बढ़ाने का काम शुरू किया. 2013 में ‘नैनीताल मोमोज’ के नाम से लखनऊ के गोमतीनगर इलाके मे ढाबा खोल दिया. उस के बाद नैनीताल मोमोज रेस्तरां खोला.

आज नैनीताल मोमोज देश का सब से बडा मोमोज ब्रैंड बन गया है. 150 तरह के वेज और नौनवेज मोमोज उन के यहां मिलते हैं. अलगअलग शहरों में 30 आउटलेट्स हैं. इन में लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, मुंबई, सीतापुर, गोरखपुर, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज, बाराबंकी, बुलंदशहर, अलीगढ़ जैसे शहर शामिल हैं.

नैनीताल मोमोज की सब से खास बात यह है कि इस को तैयार करने में मल्टीग्रेन आटा, हरी सब्जियों और खास किस्म के मसालों का प्रयोग किया जाता है. मैदा प्रयोग नहीं किया जाता है, जिस से खाने वाले को अलग टेस्ट मिलता है.

रणजीत कहते हैं,”मोमोज को बनाने में मैदा प्रयोग होेने से इस को हैल्दी फूड नहीं माना जाता था. ऐसे में हम ने अपने मोमोज को हैल्दी बनाने के लिए हरी सब्जी और मल्टीग्रेन आटा, रागी का प्रयोग करना शुरू किया. इसे लोगों ने पंसद किया. अब अलगअलग स्वाद वाले 150 किस्म के मोमोज हमारे यहां तैयार होते हैं. हम उत्तराखंड के रहने वाले हैं इसलिए हम ने अपनी पहचान के मुताबिक ‘नैनीताल’ को जोड़ कर नैनीताल मोमोज की शुरुआत की.”

अपनी मेहनत से रणजीत ने ठेले से अपना सफर शुरू कर के मोमोज चेन रेस्तरां बनाने का काम किया.

कहां का है मोमोज ?

मोमोज को अलगअलग नामों से जाना जाता है. चीन में जहां इस का नाम मोमो है, वहीं तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के इलाके में इस को मोमो के नाम से जाना जाता है.

असल में मोमो शब्द चाइनीज होने के कारण इस को चाइना का फूड मान लिया जाता है. मोमो एक चाइनीज शब्द है, जिस का मतलब होता है भाप में पकी हुई रोटी. मजेदार बात यह है कि मोमो चीन का माना जाता है पर यह नेपाल और तिब्बत की डिश है. इस का आकार देखने में पहाङ जैसा बनता है. यह अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति के खानपान का एक अहम हिस्सा है. यह जगह तिब्बत बौर्डर से बिलकुल लगी हुई है. यहां के लोग मोमोज को पोर्क, सरसों की पत्तियों और हरी सब्जियों की फिलिंग से तैयार करते हैं.

मैदानी इलाकों में शुरुआत

मैदानी इलाको में इस की शुरुआत स्टीम से तैयार मोमोज के रूप में हुई. स्वाद के अनुसार इस के अंदर भरी जाने वाली चीजों में बदलाव होता गया. ₹30 में 6 पीस सब से कम कीमत ठेले पर है. होटल और रेस्तरां में यह कीमत अलगअलग है. वेजनौनवेज के हिसाब से कीमत घटतीबढ़ती रहती है.

अब इसे सब्जियों के अलावा चिकन, और पनीर की फिलिंग से भी तैयार किया जाता है. स्टीम के अलावा लोग मोमोज को फ्राई कर के, रोस्ट कर के इस का स्वाद लेते हैं। अब तो तंदूरी मोमोज, अफगानी मोमोज, कुरकुरे मोमोज और यहां तक चौकलेट मोमोज जैसी वाइड वैरायटी भी मिलने लगी है.

आसान है बनाना

खाने के सब से अधिक ठेले मोमोज के ही लगते हैं. इन को बनाना सरल होता है. सस्ते और टेस्टी होने के कारण खाने वालों को यह खूब पंसद आता है. शायद ही देश का कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां मोमोज न खाया जाता हो.

रियल लाइफ में कितनी घमंडी हैं, ये हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां, जानें यहां

हिंदी सिनेमा जगत में हमेशा से यह देखा गया है कि कलाकार जितनी कामयाबी पाते जाते हैं, उतना ही उन का घमंड बढ़ता जाता है, वे किसी को भी सरेआम कुछ कहने से परहेज नहीं करते, इस से उन की इमेज खराब अवश्य होती है, लेकिन वे अपनी आदतों को सुधार नहीं पाते. उन के एटीट्यूड को देख कर उन के फैन्स चौंक जाते हैं.

जब वे पहली फिल्म करती हैं, तो बहुत ही अदब से पेश आती है, लेकिन जब वे एक या दो फिल्में कर बौक्स औफिस पर नाम कमा लेती हैं, तो उन की दुनिया और उन के हावभाव बदलने लगते हैं. ग्लैमर को हजम कर पाना उन के लिए आसान नहीं होता. हालांकि कई ऐसी एक्ट्रैस भी हैं, जो अपने दमदार अभिनय और अच्छे स्वभाव से ही पहचानी जाती हैं और हमेशा सुर्खियों में अपने हर मूव्स के लिए बनी रहती हैं. उन के हावभाव और चालचलन को मीडिया के कैमरें हमेशा तलाशते रहते हैं, जिसे दर्शक फोलो करते रहते हैं, लेकिन इस बीच कुछ ऐसी भी अभिनेत्रियां हैं, जो अपने स्वभाव से काफी घमंडी कहलाई जाती हैं. यहां तक कि इन के अजीब बरताव की वजह से कई कंट्रोवर्सी का सामना उन्हें करना पड़ता है.

आइए जानते हैं, बौलीवुड की कुछ ऐसी घमंडी एक्ट्रैसेस के बारे में जिन के तेवर देख, लोगों के होश उड़ जाते हैं.

कैटरिना कैफ

अभिनेता सलमान खान की एक्स गर्लफ्रैंड और अब विकी कौशल की पत्नी और अभिनेत्री कैटरिना कैफ घमंडी एक्ट्रैसेस में सब से ऊपर आती है. उन के घमंडीपन का एक उदाहरण यह है कि एक बार कैटरिना एक हवाई सफर में बिजनेस क्लास में यात्रा कर रही थी. कैटरीना के आराम करने के दौरान एक 9 साल के बच्चे ने उन के पास आ कर कहा ‘आंटी औटोग्राफ प्लीज’. बच्चे के कई बार बोलने के बाद कटरीना की आंखे खुली और बच्चे पर चिल्लाने लगीं.

कैटरिना के चिल्लाने से बच्चा रोता हुआ वापस चला गया. इस के बाद प्लेन में मौजूद एक शख्स ने कैटरिना को खरीखोटी सुनाई.

अनुष्का शर्मा

क्रिकेटर विराट कोहली की पत्नी और अभिनेत्री अनुष्का ने बौलीवुड में बड़े से बड़े ऐक्टर के साथ काम किया है. उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म रब ने बना दी जोड़ी से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया था. उस दौरान इंटरव्यू देते हुए उन का सहज भाव सब को भा गया था, लेकिन अब अनुष्का शर्मा पैपराजी पर भड़कती है और मीडिया के किसी भी प्रश्न का जवाब देना नहीं चाहती.

एक बार जब उन से उन की जर्नी के बारें में पूछा गया, तो उठ कर चली गई, क्योंकि उन के हिसाब से यह बहुत ही घिसापिटा प्रश्न है, जिस का जवाब वह देना नहीं चाहती.

रेखा

फिल्म जगत की खूबसूरत अदाकारा और अभिनेत्री रेखा भी घमंडी है. इस बात पर विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि बौलीवुड में उन की खूबसूरती के आज भी चर्चे हैं, लेकिन आप को बता दें कि रियल लाइफ में रेखा बेहद रूड और मिसबिहेव करने वाली एक्ट्रैस है. रेखा को एक नहीं, बल्कि कई बार मीडिया के सामने गुस्सा करते हुए भड़कते हुए देखा गया है.

रेखा ज्यादातर तब गुस्से में लाल हो जाती है, जब कोई उन से बौलीवुड के शहंशाह अमिताभ को ले कर सवाल पूछता है या बिना शादी के सिंदूर लगाने का राज जानना चाहता है.

करीना कपूर

अभिनेत्री करीना कपूर को पैपराजी पर आपा खोते हुए देखा जाता है. इस के अलावा वह सेट पर नखरे दिखाने के लिए मशहूर है. साथ ही अपने साथी कलाकार के साथ अभद्र व्यवहार भी करती है.

एक इंटरव्यू के दौरान उन के पास एक मीडिया कर्मी के बैठने पर वह उठ कर चली गई और बाद में दूर से बैठ कर बात की.

कंगना रनौत

फिल्म क्वीन फेम अभिनेत्री कंगना वैसे तो अच्छीअच्छी बातें मीडिया के कैमरे के सामने करती है, लेकिन उन के पीछे उन का स्वरुप दिखता है. एक बार तो एक इंटरव्यू के बाद उन्होंने एक मीडिया कर्मी के विजिटिंग कार्ड को उन के थोड़ी दूर जाने पर फाड़ कर फेंक दिया और हंसने लगी. वह कम घमंडी नहीं. उन्होंने एक बार खुद कहा भी है कि इस उम्र में अगर हम घमंडी हो गए, तो किसी को क्या?

अलिया भट्ट

अभिनेत्री आलिया भट्ट ने कदमकदम पर खुद को अच्छी अभिनय कर साबित कर दिया है कि वह एक मजबूत अभिनेत्री है, लेकिन उन्होंने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ के समय ऐसा बयान दिया कि उन्हें भी घमंडी एक्ट्रैस की सूची में शामिल कर लिया गया है.

उन के विरुद्ध बायकौट ट्रैंड शुरू हुआ था और उन्हें ट्रोल भी किया गया था. उन्होंने इस फिल्म की इंटरव्यू में कहा कि अगर आप मुझे पसंद नहीं करते हैं, तो मुझे मत देखिए. ये शब्द घमंड के नहीं है तो और क्या हैं? फिल्म फ्लौप हो गई.

काजोल

अभिनेत्री काजोल के जन्मदिन पर उन के कुछ फैंस केक ले कर आए थे लेकिन एक्ट्रैस का उन के प्रति गलत रवैया दिखा. इतना ही नहीं एक्ट्रैस के घर के बार विश करने के लिए खड़े हुए फैंस पर भी काजोल काफी नाराज भी हुई थीं.

रानी मुखर्जी

खंडाला गर्ल रानी मुखर्जी भी फिल्मों में एक खुबसूरत, सौम्य महिला की भूमिका भले ही निभाती हो, लेकिन रियल लाइफ में बहुत अधिक घमंडी है. ‘चूड़ियां’ फिल्म की शूटिंग पर जब वह बनारस उसे फिल्माने गई, वहां इकट्ठी हुई भीड़ को बहुत बुराभला कही, जिस से वहां से उन्हें वापस मुंबई आना पड़ा. इतना ही नहीं पैपराजी मीडिया को वह कुछ भी कहने से परहेज नहीं करती.

जया बच्चन

वेटरन एक्ट्रैस जया बच्चन को भला कौन नहीं जानता. जया बच्चन अपने जमाने की बेहतरीन अदाकारा रही हैं. आज भी उन के अभिनय को खूब पसंद किया जाता है. यही वजह है कि आज की उन की हिंदी फिल्म ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’ में उन के अभिनय को देखने लोग हौल तक गए, लेकिन जया बच्चन अकसर अपने गुस्सैल व्यवहार के चलते सुर्खियों में आ जाती हैं. जया बच्चन को भी लोग घमंडी एक्ट्रैस कहते हैं, क्योंकि वह मीडिया के कैमरे को देखते ही भड़क उठती है और बहुत ही गुस्सैल तरीके से पेश आती है.

सर्दियों में इन मसालों को बनाएं अपनी डाइट का हिस्सा, Weight Loss में मिलेगी मदद

Kitchen Spices To Lose Weight : भागदौड़ भरी जिंदगी और खराब लाइफस्टाइल के चलते आज के समय में कई लोगों का वजन लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा सर्दियों में भी ज्यादातर लोगों के पेट की चर्बी बढ़ने लगती है. हालांकि फिटनेस और हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाने से वजन को नियंत्रित भी करा जा सकता है. लेकिन बिजी लाइफ शेड्यूल के चलते कई लोग अपने लिए ही समय नहीं निकाल पाते हैं. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे अपनाने से आपको वेट लौस करने में काफी मदद मिलेगी.

दरअसल, कई अध्ययनों में पाया गया है कि घर की रसोई में रखें कुछ मसाले से ही शरीर की फालतू चर्बी को कम किया जा सकता हैं. तो आइए जानते हैं उन मसालों के बारे में जो वजन घटाने (Kitchen Spices To Lose Weight) में काफी फायदेमंद होते हैं.

किचन के ये मसाले जलाते हैं फैट

  • इलायची

आपको बता दें कि खाना खाने के बाद इलायची का पानी पीना काफी फायदेमंद होता है. इससे न सिर्फ मेटाबॉलिज्म तेज होता है. बल्कि पेट के आसपास जमी चर्बी (Kitchen Spices To Lose Weight) भी धीरे-धीरे कम होने लगती है.

  • सौंफ

रोजाना भोजन करने के बाद सौंफ का पानी या 1 चम्मच कच्ची सौंफ चबा-चबा कर खाना भी शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है. दरअसल, सौंफ में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जिससे पेट भराभरा रहता है. इस से बारबार भूख नहीं लगती है और वजन कम करने में मदद मिलती है.

  • काली मिर्च

काली मिर्च भी वजन कम करने में काफी मदद करती हैं. इसके लिए रोजाना सुबह खाली पेट थोड़ी सी काली मिर्च, शहद और नींबू का रस मिलाकर पिएं. इससे कुछ ही समय में आपको अपने वजन (Kitchen Spices To Lose Weight) में फर्क दिखने लगेगा. साथ ही इससे सर्दियों में वायरल इंफेक्शन होने का खतरा भी कम हो जाता है.

  • अदरक

प्रतिदिन सुबह खाली पेट या रात में डिनर के बाद अदरक का पानी पीना भी शरीर के लिए काफी लाभकारी होता है. इससे बैली फैट तो कम होता ही है. साथ ही इम्यूनिटी भी मजबूत होती है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

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