बाइबिल के एक प्रचलित प्रसंग में गांव के कुछ लोग एक शाम एक पापिन यानी व्यभिचारिणी को ईसा मसीह के पास ले गए और उस के लिए सजा की मांग करने लगे. तब कायदा यानी धार्मिक कानून तो यह था कि पापिनों को सरेआम पत्थरों से मारने की सजा दी जाए. गांव वाले ईसा मसीह से इसी सजा की पुष्टि चाहते थे जिन के सामने दुविधा यह थी कि अगर वे सजा के इस तरीके को स्वीकृति देते हैं तो यह हिंसा होगी और अगर पापिन की रिहाई की बात कहते हैं तो उन पर व्यभिचार फैलाने का आरोप लगेगा.

ईसा मसीह ने ‘हलदी लगे न फिटकरी और रंग भी आए चोखा’ की कहावत वाला रास्ता अपनाते हुए कहा, ‘आप लोगों में से जो पापी न हो वह इस औरत को पहला पत्थर मारे. चूंकि सभी ने कोई न कोई पाप किया था, इसलिए रात होने तक एकएक कर सभी खिसक लिए. साबित हो गया कि पाप के पैमाने पर पूरा समाज और दुनिया एक ही कश्ती पर सवार है और पाप या व्यभिचारमुक्त समाज की उम्मीद एक परिकल्पना भर है.

ईसा मसीह ने उस औरत को जाने दिया और फिर कभी व्यभिचार न करने का उपदेश दे दिया. इस तरह तत्कालीन समाज की एक समस्या अस्थायी रूप से हल हो गई जो अब फिर मुंहबाए खड़ी है.

कोई भी उपदेशक, अवतार या संतमहात्मा इस तरह की समस्या, जो मूलतया समस्या होती ही नहीं, को हल नहीं करता बल्कि चतुराई से उसे पोस्टपोंड कर देता है जिस से भविष्य के ठेकेदार भी नाम व दाम कमाएं. आजकल यह काम असमंजस में पड़ी अदालतें कर रही हैं. चूंकि व्यभिचार कोई अपराध नहीं है इसलिए इस के लिए कोई स्थायी सजा भी नहीं है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...