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गली के मोड़ पे सूना सा इक दरवाजा

दिल के कहीं किसी कोने में कुछ दरकता सा महसूस हुआ. न जाने क्यों शिखा का मन ज़ारज़ार रोने को कर रहा था. पर उस के शिक्षित और सभ्य मन ने उसे डांट कर सख्ती से रोक लिया.

कितनी आसानी से हिमांशु ने कहा दिया था- “तुम भी न, क्या ले कर बैठ गई हो, क्या फर्क पड़ता है, तुम्हें कौन सा रहना है उस घर में, ईंट और गारे से बने उस निर्जीव से घर के लिए इतना मोह. अपने पापामम्मी को समझाओ कि फालतू में मरम्मत के नाम पर पैसा बरबाद करने की जरूरत नहीं. आज नहीं तो कल उन्हें उस घर को छोड़ कर बेटों के पास जाना ही पड़ेगा.”

निर्जीव…हिमांशु को क्या पता वह घर आज भी शिखा के तनमन में सांसें ले रहा था. पिछले साल की ही तो बात है, गरमी की छुट्टियों में शिखा को गांव वाले घर जाने का मौका मिला था. सच पूछो तो इस में नया क्या था, कुछ भी तो नहीं, साधारण सी तो बात थी. पर न जाने क्यों जर्जर होती उस घर की दीवारों को देख कर मन कैसाकैसा हो गया था. आखिर उस घर में बचपन बीता था उस का. चिरपरिचित सी दीवारें, घर का एकएक कोना न जाने क्यों शिखा को अपरचितों की तरह देख रहा था.

घर में नाममात्र के पड़े हुए फर्नीचर पर हाथ फेरने के लिए बढ़ाया हुआ शिखा का हाथ न जाने क्या सोच कर रुक गया. यादों के सारे पन्ने एकएक कर खुलने लगे. याद है उसे आज भी वह दिन. शादी के बाद पहली बार वह मम्मीपापा के साथ कुल देवता की पूजा करने आई थी. लाल महावर से रचे शिखा के पैरों ने जब घर की चौखट पर कदम रखा तो लगा मानो घर का कोनाकोना उस का स्वागत कर रहा था.

शायद इंसानों की तरह घरों की भी उम्र होती है. यह वही घर है जहां कभी रिश्तों की खिलखिलाहट गूंजती थी. बच्चों की किलकारियों से घर मंदमंद मुसकराता था. पर आज उस घर की दीवारों पर यहांवहां उखड़े पेंट नजर आ रहे थे. एक बार तो शिखा को ऐसा लगा मानो दीवारों पर उदास चेहरे उभर आए हों. घर के सामने खड़ा आम का विशाल पेड़ और उस की लंबीलंबी डालियों को देख कर आज भी उसे ऐसा लगा मानो वे गलबहियां के लिए तैयार हों. मां से छिप कर उस पेड़ की नर्म छांव में अपने भाइयों के साथ नमकमिर्च के साथ कितनी कैरियां खाई थीं उस ने.

पर पता नहीं क्यों आज उस की तरफ देखने का शिखा साहस नहीं कर सकी. शायद उस की आंखों में तैर आए मूक प्रश्नों को झेलने की शिखा में हिम्मत नहीं थी.

एकएक कर के उस घर के सारे परिंदे इस घोंसले को छोड़ कर नए घोंसलों में चले गए और यह घर चुपचाप जर्जर व उदास मन से उन्हें जाता देखता रहा. कल ही तो पापा का फोन आया था. पापा ने कितने उदास स्वर में कहा था. शिखा पीछे वाले अहाते की धरन टूट गई है, तेरी शादी के वक्त ही रंगरोगन करवाया था. तेरे भाइयों से कहा कि कुछ मदद कर दें तो वे अपना ही रोना ले कर बैठ गए. बेटा देखा नहीं जाता, तेरे बाबा और दादी की एक यही निशानी तो बची है.

क्या एक बार वह हिमांशु से बात कर के देखे पर हिमांशु के लिए तो यह सिर्फ निर्जीव और जर्जर मकान भर ही था. तो क्या मांजी..? शायद वे जरूर समझेंगी, आखिर वे भी तो…!!!

‘ये देखो देवी जी को, उलटी गंगा बहाने चली हैं. लोगों के यहां समधियाने से सामान आता है और ये वहां भेजने की बात कर रही हैं.’

‘मां जी, मैं उस घर की बेटी हूं, मेरा भी तो कुछ फर्ज है.’

शिखा का मुंह उतर गया था. घर के लोग उसे अजीब निग़ाहों से देख रहे जैसे उस ने कोई अजूबी बात कह दी हो. हिमांशु ने उसे जलती निग़ाहों से देखा. शायद उस का पुरुषत्व बुरी तरह आहत हो गया था. कमरें में जब सारी बात हो चुकी थी, फिर घर वालों के सामने यह तमाशा करने की क्या जरूरत है. वह अपनी मां के बारे में अच्छी तरह जानता था. उन्हें तो मौका मिलना चाहिए. आज शिखा की खैर नहीं, मां उसे उधेड़ कर रख देगी. हुआ भी वही.

‘शिखा, लोगों के मायके से न जाने क्याक्या आता है. पर हमारा ही समय ख़राब है कि सास बनने का सुख ही न जान सके. अरे भाई, मायके वाले कुछ दे न सके ठीक, पर दहेज में संस्कार भी न दे सके.’

शिखा की आंखें डबडबा गईं. शादी होने को 20 साल हो गए पर दहेज और संस्कार का ताना आज भी उस का पीछा न छोड़ पा रहे थे. उस ने बड़ी उम्मीद से हिमांशु की तरफ देखा. हिमांशु ने वितृष्णा से मुंह फेर लिया.

हिमांशु घर में सब से छोटे थे. बड़े भाइयों की शादियां अच्छे परिवारों में हुई थीं. अच्छे मतलब शादी में गाड़ी भर कर दहेज मिला था. मां जी की नजर में अच्छे परिवार का मतलब यही था. मां जी के पास कभी त्योहार तो कभी शगुन के नाम पर उपहारस्वरूप कुछ न कुछ समधियाने से आता ही रहता था. शिखा एक मध्यवर्गीय परिवार की इकलौती लड़की थी. पिता ने अपनी हैसियत के अनुसार सबकुछ दिया था. पर उस की जिंदगी मां जी की कसौटी पर कभी खरी न उतरी.

ऐसा नहीं था कि मां जी चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुई हों. बचपन से ले कर जवानी तक उन का जीवन संघर्षों में ही बीता था.पापा जी एक साधारण सी नौकरी ही करते थे. पर बच्चों के चलते धन की वर्षा होने लगी. मां जी की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. जो रिश्तेदार कब का उन से मुंह फेर चुके थे. एकएक कर जुड़ने लगे थे. मां जी भी उन पर खुलेहाथों से पैसा लुटातीं. शिखा ने कई बार दबे स्वर में हिमांशु से इस बात को कहा भी था कि इस तरह पैसा लुटाना कहां की समझदारी है. पर मां जी के फैसले के विरुद्ध जाने की किसी की भी हिम्मत न थी.

‘शिखा, मां का जीवन सिर्फ संघर्ष में ही बीत गया. अगर उन्हें इन सब चीजों से खुशी मिलती है तो तुम्हें क्या दिक्कत है?’

‘दिक्कत, हिमांशु, बात दिक्कत की नहीं पर मां जी जिस तरह से…’

‘तुम फालतू का दिमाग मत लगाओ. अगर भैयाभाभी को दिक्कत नहीं तो तुम क्यों फुदक रही हो.’

शिखा हिमांशु को देखती रह गई. क्या कहती, दिक्कत तो सभी को थी पर मां जी से कहने की हिम्मत किसी की भी न थी. कितनी बार चौके में जेठानियों को कसमसाते देखा है.

पिछले साल मौसी जी के इलाज के लिए मां जी ने एक लाख रुपए दे दिए थे. तो अभी पिछले महीने घर में काम करने वाली की बिटिया की शादी के नाम पर 10 हजार रुपए और पैर पूजने के नाम पर कपड़े, बरतन व न जाने क्या-क्या डे दिया. कभी मंदिर तो कभी जागरण के नाम पर हर महीने कुछ न कुछ जाता है रहता था. उन की मांगें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही थीं.

एक दिन बड़े भैया ने दबे स्वर में कहा भी था-
‘मां, आप इस तरह से कभी सामान तो कभी पैसे बांटती रहती हो, कल अगर हमें जरूरत पड़ेगी तो क्या हमें कोई देगा?’

‘मैं ने लेने के लिए थोड़ी दिया है. तेरे पापा की कमाई से तो घर ही चल जाता, वही बड़ी बात थी. पर अब जब प्रकृति ने दिया है तो फिर क्यों न करूं.’

शिखा को यह बात कभी समझ न आई कि जिन रिश्तेदारों ने कभी बुरे समय में उन का साथ तक न दिया, आज उन पर यों पैसे लुटाना कहां तक सही था. “शिखा, अपने कमरे में जाओ,” हिमांशु की आवाज सुन कर शिखा सोच की दलदल से बाहर निकल आई. पता नहीं क्यों एक अजीब सी जिद उस के मन में घर कर गई थी, आज वह बात कर के ही जाएगी.

“मां जी, गांव वाला मकान जर्जर हो गया है, उस घर से मेरा बहुत जुड़ाव है. बाबा-दादी की आखिरी निशानी है वह.”

“तो?” मां जी ने बड़े तल्ख स्वर में कहा.
शिखा अपनेआप को मजबूती बांधे से खड़ी हुई थी. हिमांशु हमेशा की तरह उसे अकेला छोड़ अपने परिवार के साथ खड़े थे. इन बीते सालों में शिखा इतना तो समझ ही चुकी थी कि आज वह खुद के लिए खड़ी नहीं हुई तो कोई भी उस के लिए खड़ा न होगा. वैसे भी, अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है. जानती थी वह कि यहां जो होगा, सो होगा. बंद कमरे में चारदीवारी के बीच महीनों तक शिखा और हिमांशु के मध्य एक शीत युद्ध भी चलता रहेगा. पर आज नहीं तो शायद वह कभी भी न कह पाएगी.

“मां जी, मैं…मैं उस घर की मरम्मत के लिए कुछ पैसा भेजना चाहती हूं?”

शिखा का गला सूख गया. पता नहीं अब कौन सा भूचाल आने वाला था. सब उसे ऐसे देख रहे थे जैसे अभी ही निगल जाएंगे.

“देख लो, क्या जमाना आ गया है. बहू बेशर्मों की तरह मायके के लिए पैसे मांग रही है. एक जमाना था लोग बेटी के घरों का पानी तक नहीं पीते थे और यह अपने मायके के लिए ससुराल से पैसे मांग रही है. तेरे भाई भी तो हैं, तेरे पापा उन से क्यों नहीं मांग लेते?”

“पापा ने उन से भी कहा था पर बड़े भैया के अपने ही बहुत सारे खर्चे हैं और छोटे वाले ने पहले ही अपने मकान के लिए लोन ले रखा है, इसलिए…”

“इसलिए, मतलब” यहां कोई पेड़ लगा है. कल बाप के मरने के बाद हिस्सा हथियाने तो सब से पहले चले आएंगे. एक बार भी नहीं सोचेंगे कि बहन का भी तो हक बनता है. जब उन्हें कोई चिंता नहीं तो तुम क्या हो, न तीन में न तेरह में. तुम काहे चिंता में गली जा रही.”

शिखा की अंतरात्मा शब्दों के बाणों से बुरी तरह छलनी हो चुकी थी पर बोली, “मां जी, बेटी का हक सिर्फ जीवनभर पाने का नहीं होता. नौ महीने तो उसे भी पेट में रखा होता है. फिर जिम्मेदारी के नाम पर यह भेदभाव क्यों? एक लड़की को जीवनभर यह समझाया जाता है कि उसे पराए घर जाना है पर वह पराया घर भी उसे ताउम्र पराया ही समझता है. जीवन गुजर जाता है एक लड़की को यह समझने में ही कि उस का अपना घर कौन सा है. आप भी तो इस घर की बहू हैं और मैं भी. पर हमारे अधिकारों और कर्तव्यों में यह भेद क्यों?

“आप खुलेहाथों से रिश्तेदारों, नौकरचाकर सभी को कुछ भी दे सकती हैं. आप से पूछने वाला कोई भी नहीं. पर जब बात बहू के मायके वालों की आती है तब दुनियादारी और संस्कार की बातें क्यों होने लगती हैं. क्या गरीब और जरूरतमंद सिर्फ सास या ससुराल के रिश्तेदार ही हो सकते हैं, बहू के नहीं. अगर गलती से बहू का मायके का कोई रिश्तेदार कमजोर हो तो बहू पूरे परिवार के लिए हंसी का पात्र क्यों हो जाती है. भाई की पढ़ाई के लिए पापा ने कैसेकैसे इंतजाम किए थे, हिमांशु से कुछ भी नहीं छिपा है. पर किसी ने एक बार भी यह जानने या समझने की कोशिश की कि इस के परिवार को भी कभी जरूरत पड़ सकती है. अब तो मायके की जमीनजायदाद में लड़कियों की भी हिस्सेदारी होती है. तो फिर मायके की जिम्मेदारियों और कर्तव्यों में हिस्सेदारी क्यों नहीं?”

शिखा अपनी ही धुन में बोले जा रही थी, “वर्षों से जमा कितनाकुछ उस ने सब के सामने उड़ेल कर रख दिया था. जेठानियां आश्चर्य से उसे देख रही थीं. मां जी धप्प की आवाज के साथ सोफे पर बैठ गईं. एक अजीब सी नफरत उस ने उन की आंखों में महसूस की. सच सभी को पसंद होता बशर्ते वह सच खुद का न हो.

घर में एक गहरा सन्नाटा पसर गया, इतना गहरा कि अपनी सांसें भी सुनाई पड़ जाएं. शब्द कहीं खो से गए थे. इतने वर्षों में शब्द तो यदाकदा चुभते ही रहते थे पर आज सब का मौन बुरी तरह चुभ गया था. किसी के पास जवाब न था और शायद इस सवाल का जवाब कभी मिले भी न. हम जीवनभर इस बात के लिए लड़ते हैं कि सही कौन है. पर सही क्या है, क्या किसी ने कभी यह सोचा. लोग कहते हैं, औरत है तो घर घर है. पर क्या उस घर के फैसले भी? समझना आसान है पर समझाना कठिन.

शिखा भरे दिल और भरे कदमों से चुपचाप अपने कमरे में चली गई.

Top 10 Best Social Story In Hindi : पढ़ें एक से बढ़कर एक टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

Special Social Stories in Hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट सोशल स्टोरी. जो आपको समाज से जुड़ी कई बातों के बारे में बताएंगी. साथी ही इन छोटी-छोटी कहानियों को पढ़ने से आपके जीवन में सकारात्मकता तो आएगी ही. साथ ही जीवन की कई परिस्थितियों का सामना करने का हौसला भी मिलेगा. दरअसल ‘सरिता’ पत्रिका मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित कहानियों से आप अपनी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं. आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सरिता की Top 10 Social Story in Hindi.

Best Social stories in hindi : वो कहानियां जो आपके जीवन में गहरी छाप छोड़ेगी

1. अपनी अपनी तैयारी

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‘‘आप ही बताइए मैं क्या करूं, अपनी नौकरी छोड़ कर तो आप के पास आ नहीं सकता और इतनी दूर से आप की हर दिन की नईनई समस्याएं सुलझ भी नहीं सकता,’’ फोन पर अपनी मां से बात करतेकरते प्रेरित लगभग झंझला से पड़े थे.

जब से हम लोग दिल्ली से मुंबई आए हैं, लगभग हर दूसरेतीसरे दिन प्रेरित की अपने मम्मीपापा से इस तरह की हौटटौक हो ही जाती है. चूंकि प्रेरित को अपने मम्मीपापा को खुद ही डील करना होता है, इसलिए मैं बिना किसी प्रतिक्रिया के बस शांति से सुनती हूं.

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2. नारायण बन गया जैंटलमैन

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कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.

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3. दूसरी औरत नहीं बनूंगी : क्या था लखिया का मुंह तोड़ जवाब?

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लखिया ठीक ढंग से खिली भी न थी कि मुरझा गई. उसे क्या पता था कि 2 साल पहले जिस ने अग्नि को साक्षी मान कर जिंदगीभर साथ निभाने का वादा किया था, वह इतनी जल्दी साथ छोड़ देगा. शादी के बाद लखिया कितनी खुश थी. उस का पति कलुआ उसे जीजान से प्यार करता था. वह उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करता. वह खुद तो दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करता था, लेकिन लखिया पर खरोंच भी नहीं आने देता था. महल्ले वाले लखिया की एक झलक पाने को तरसते थे.

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4. दबी हुई परतें : जीजा जी के जाने के बाद क्या हुआ दीदी के साथ

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हमारे संयुक्त परिवार में संजना दी सब से बड़ी थीं. बड़ी होने के साथ लीडरशिप की भावना उन में कूटकूट कर भरी थी. इसीलिए हम सब भाईबहन उन के आगेपीछे घूमते रहते थे और वे निर्देश देतीं कि अब क्या करना है. वे जो कह दें, वही हम सब के लिए एक आदर्श वाक्य होता था. सब से पहले उन्होंने साइकिल चलानी सीखी, फिर हम सब को एकएक कर के सिखाया. वैसे भी, चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाईलिखाई या स्कूल की अन्य गतिविधियां, दीदी सब में अव्वल ही रहती थीं. इसी वजह से हमेशा अपनी कक्षा की मौनीटर भी वही रहीं.

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5. समय चक्र : बिल्लू भैया ने क्या लिखा था पत्र में?

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शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…यद्यपि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी?

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6. तलाश एक कहानी की: मोहन बाबू क्षमा क्यों मांग रहे थें?

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कुरसी पर खाली बैठाबैठा बस कई दिनों से कोई अदद कहानी लिखने की सोच रहा था, लेकिन किसी कहानी का कोई सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था. कभी एक विषय ध्यान में आता, फिर दूसरातीसरा, चौथा. लेकिन अंजाम तक कोई नहीं पहुंच रहा था. यह लिखने की बीमारी भी ऐसी है कि बिना लिखे रहा भी तो नहीं जाता.

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7. बांझ: बाबा ने राधा के साथ क्या किया ?

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रोज की तरह आज की सुबह भी सास की गाली और ताने से ही शुरू हुई. राधा रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थी, लेकिन वह और कर भी क्या सकती थी? उसे तो सुनना था. वह चुपचाप सासससुर और पड़ोसियों के ताने सुनती और रोती. राधा की शादी राजेश के साथ 6 साल पहले हुई थी. इन 6 सालों में जिन लोगों की शादी हुई थी, वे 1-2 बच्चे के मांबाप बन गए थे. लेकिन राधा अभी तक मां नहीं बन पाई थी. इस के चलते उसे बांझ जैसी उपाधि मिल गई थी. राह चलती औरतें भी राधा को तरहतरह के ताने देतीं और बांझ कह कर चिढ़ातीं. राधा को यह सब बहुत खराब लगता, लेकिन वह किसकिस का मुंह बंद करती, आखिर वे लोग भी तो ठीक ही कहते हैं.

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8. ऊंची उड़ान : आकाश और संगीता के बीच क्या रिश्ता था ?

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रात के 12 बजे फोन की घंटी बजी. उस समय आकाश और संगीता शर्मोहया भूल कर एकदूसरे से लिपट कर शारीरिक संबंध बना रहे थे. दोबारा फोन की घंटी बजी. जब संगीता के कानों में घंटी की आवाज पड़ी, तो वह आकाश से बोली, ‘‘आकाश, तुम्हारा फोन बज रहा है.’’ ‘‘बजने दो. मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’ इस के बाद वे दोनों अपने काम में बिजी हो गए. कुछ समय बाद आकाश ने कहा, ‘‘बहुत मजा आया संगीता.’’ संगीता कुछ कहती, उस से पहले फोन की घंटी फिर बजी.

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9. बेटी का सुख : वह मां के बारे में क्यों ज्यादा सोचती थी

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मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

हमारे जूतेचप्पलों की खबर भी खूब रखती है. चलने में मां को तकलीफ होगी, सो डाक्टर सोल की चप्पल ले आती है. पापा के जौगिंग शूज घिस गए हैं, चलो, नए ले आते हैं. वे सफाई देते हैं, ‘अभी तो लाया था.’ ‘कहां पापा, 2 साल पुराना है, फिर आप रोज घूमने जाते हैं, आप को अच्छे ब्रैंड के जौगिंग शूज पहनने चाहिए.’ बाप के पैरों के प्रति बेटी की चिंता देख कर सोचती हूं, ‘बेटे इस से अधिक और क्या करते होंगे.’ जब हम बेटी के घर जाते हैं तब जिस क्षण हवाईजहाज के पहिए धरती को छूते हैं, उस का फोन आ जाता है, ‘जल्दी मत करना, आराम से उतरना, मैं बाहर ही खड़ी हूं.’ एअरपोर्ट के बाहर एक ड्राइवर की तरह गाड़ी बिलकुल पास लगा कर सूटकेस उठाने और कार की डिक्की में रखने में दोनों के बीच प्यारी, मीठी तकरार कानों में पड़ती रहती है, ‘पापा, आप नहीं उठाओ, मम्मी तुम बैठ जाओ, हटो पापा, आप की कमर में दर्द होगा…’

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10. रूढि़यों के साए में

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दीपों की टेढ़ीमेढ़ी कतारों के कुछ दीप अपनी यात्रा समाप्त कर अंधकार के सागर में विलीन हो चुके थे, तो कुछ उजाले और अंधेरे के बीच की दूरी में टिमटिमा रहे थे. गली का शोर अब कभीकभार के पटाखों के शोर में बदल चुका था.

दिव्या ने छत की मुंडेर से नीचे आंगन में झांका जहां मां को घेर पड़ोस की औरतें इकट्ठी थीं. वह जानबूझ कर वहां से हट आई थी. महिलाओं का उसे देखते ही फुसफुसाना, सहानुभूति से देखना, होंठों की मंद स्मिति, दिव्या अपने अंतर में कहां तक झेलती? ‘कहीं बात चली क्या…’, ‘क्या बिटिया को बूढ़ी करने का इरादा है…’ वाक्य तो अब बासी भात से लगने लगे हैं, जिन में न कोई स्वाद रहता है न नयापन. हां, जबान पर रखने की कड़वाहट अवश्य बरकरार है.

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Bollywood : हीरोइनें बनती मां और दादी, इस का राज क्या है, जाने यहां

why Heroines playing mother’s role in Films : इन दिनों सभी मिडिल ऐज की एक्ट्रैसेस मां और दादी बनना पसंद कर रही हैं क्योंकि उन्हें अब लगने लगा है कि बड़ी फिल्मों से अधिक ओटीटी फिल्में दर्शकों को पसंद आ रही हैं. इस की वजह अच्छा कंटैंट, अच्छा मेहनताना और काम की आजादी आदि है.

ऐसी भूमिका से वे कमबैक कर सफल भी हो रही हैं. यही वजह है कि करीना कपूर खान ने भी ओटीटी का रुख किया है और फिल्म ‘जाने जान’ में एक बड़े बच्चे की मां की भूमिका निभाई और इस में उन के किरदार को काफी पसंद भी किया गया. इस से पहले ऐक्ट्रैस को आखिरी बार आमिर खान के साथ फिल्म लाल सिंह चड्ढा में देखा गया था. यह फिल्म बुरी तरह फ्लौप साबित हुई थी, ऐसे में ओटीटी की फिल्में कर वे लाइम लाइट में रहना पसंद कर रही है.

नानी-दादी की बात में होती है दम

‘लस्ट स्टोरीज 2’ में 4 छोटीछोटी फिल्मों का कलैक्शन रहा है, जिस की एक शौर्ट फिल्म में आर बाल्की की कहानी में नीना गुप्ता, मृणाल ठाकुर और अंगद बेदी ने काम किया है. नीना कहानी में दादी मां के रोल में नजर आई हैं. जिस में वे अंगद और मृणाल को सैक्स के बारे में सलाह देती नजर आईं.

नीना ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने क्यों स्क्रीन पर ‘दादी मां’ बनने के लिए हामी भरी और कैसे उन के कैरेक्टर से लोग अब सैक्स की बातें करनी शुरू कर चुके हैं. उन का कहना था कि जो मैं कह रही हूं, वह अगर दादी मां नहीं कहती, तो इस का ज्यादा असर नहीं पड़ रहा होता. इसलिए जो हम फिल्म में कहना चाहते थे, वह दादी मां का कैरेक्टर कह रहा है. असल में दादी या नानी की बातें लोग ध्यान से सुनते हैं और उसे मजाक के रूप में नहीं लेते. ये सही है कि उन की फिल्म अच्छी चली और लोगों ने इसे पसंद भी किया.

नहीं करती गलती

पूर्व मिस यूनिवर्स अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने ऐक्शन से भरपूर सीरीज ‘आर्या’ में कमबैक किया और अपने अभिनय के लिए प्रशंसा बटोरी, जिस का दूसरा सीजन भी अच्छा रहा. आगे आर्या 3 भी आने वाली है. सुष्मिता को मां की भूमिका निभाने में कोई समस्या नहीं, क्योंकि उन्होंने फिल्म ‘बीवी नंबर 1’ में मुख्य भूमिका निभाना चाहती थीं, लेकिन वह भूमिका उन को नहीं मिली. उन्होंने द्वितीय लीड से ही खुद को संतुष्ट किया, लेकिन अब वे ऐसा करना नहीं चाहती हैं, उन्हें मां या दादी कोई भी भूमिका मिले वह कर लेना चाहती हैं, लेकिन उन का किरदार दमदार हो, इसे जांच लेती हैं. यही वजह है कि उन्होंने ओटीटी की आर्या को अपनी पहली पसंद बताया.

होती है चुनौती

इस कड़ी में अभिनेत्री तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर भी कम नहीं, उन दोनों ने हिंदी फिल्म ‘सांड की आंख’ में बुजुर्ग महिला की भूमिका निभाई थी. अभिनेत्री तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर 87 वर्षीय शार्पशूटर चंद्रो तोमर (87) और उन की 82 वर्षीय भाभी प्रकाशी तोमर के रूप में नजर आईं.

इस बारे में दोनों का सोचना था कि फिल्म की स्क्रिप्ट ने ही उन्हें इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उम्र की महिलाओं का किरदार करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि वे उस उम्र को इतनी कम उम्र में ही जी लेना चाहती थीं और यह भूमिका उन के लिए एक चुनौती से कम नहीं थी.

इस के अलावा अभिनेत्री रवीना टंडन को भी दादी की भूमिका निभाने में कोई हर्ज़ नहीं, क्योंकि आज दर्शकों का माइंड सेट बदला है, अभिनय में उम्र आड़े नहीं आती. वे एक अच्छी कहानी और अभिनय को देखना पसंद करती हैं किरदार को अधिक महत्व नहीं देतीं.

अभिनेत्री विद्या बालन, कंगना रनौत, काजोल और रानी मुखर्जी जैसी कई अभिनेत्रियां हैं, जो मां या दादी के किरदार को निभाना पसंद कर रही हैं और अपनी अदाकारी से दर्शकों के दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति प्रदान कर रही हैं, जिस की शुरुआत हो चुकी है.

Rambhadracharya Controversy : रामभद्राचार्य का विवादित बयान, बताया चमार कौन ?

Rambhadracharya Video Controversy : अयोध्या का राम मंदिर अभी तक पूरा बना नहीं है. 22 जनवरी को इस का उद्दघाटन होना है इस दिन रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी जिस की धमक, जोश और जुनून हिंदी पट्टी में शबाब पर है. आयोजन के मुख्य यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 दिवसीय गोपनीय अनुष्ठान कर रहे हैं जिस की सूचना खुद उन्होंने ही सोशल मीडिया के जरिए दी है.

लेकिन यह भव्य मंदिर आखिर है किस का इसे ले कर भी विवाद शबाब पर है. चंपत राय ने 4 दिन पहले ही खुलासा करते बताया था कि अयोध्या का राममंदिर रामानंदी संप्रदाय का है. अब रामानंदी संप्रदाय के मुखिया रामभद्राचार्य के एक बयान को ले कर नया फसाद छिड़ गया है. वायरल हो रहे एक वीडियो में वे यह कहते नजर आ रहे हैं कि ‘गोस्वामी जी कहते हैं कि जो रामजी को नहीं भजता वो चमार है.’ यह बात उन्होंने 8 जनवरी को बिहार के करवी अरवल में राम कथा के दौरान कही थी.

इस बयान से पूरा दलित समुदाय आहत है जो पहले से जानता था कि राममंदिर उस के लिए नहीं है, यह तो ऊंची जाति वालों का है लेकिन इस बात को मंच से कहने की जरूरत क्यों आ पड़ी और इस के पीछे मंशा क्या है इसे समझने की कोशिश दो निष्कर्षों की तरफ ले जाती है –

– एक – जो चमार हैं, दलित हैं, पिछड़े, आदिवासी हैं उन्हें अयोध्या आने की जरूरत नहीं क्योंकि उन से विष्णु अवतारों के पूजापाठ का हक काफी पहले ही छीना जा चुका है बल्कि यह तो कभी उन्हें दिया ही नहीं गया था.

– दो – जो ऊंची जाति वाले हिंदू राम को नहीं भजते आज से वे भी चमार हैं.

इस लिहाज से चारों शंकराचार्य, समूचा विपक्ष जो अयोध्या नहीं जा रहा वह और तमाम वे हिंदू जो राम को नहीं भजते चमार हैं. दो टूक कहें तो लड़ाई हमेशा की तरह शैव और वैष्णवों की है जो राममंदिर के बहाने फिर उबल रही है. करोड़ोंखरबों के इस मंदिर को रामानंदी संप्रदाय को सौंप दिया गया है. आम हिंदू को इस से कोई ख़ास सरोकार नहीं है जिस की दिली ख्वाहिश भव्य राममंदिर को बनते देखने की थी.

अब मंदिर लगभग बन ही गया है तो ये विवाद उस के गले नहीं उतर रहे हैं या वह जानबूझकर इन की अनदेखी कर रहा है यह कह पाना मुश्किल है लेकिन दूसरी बात उस के मन के ज्यादा नजदीक लगती है. उसे इस बात पर कोई एतराज नहीं है कि जो राम को नहीं भजता वह चमार है.

यानी चमार कहलाने से बचने के लिए राम को भजना जरूरी है. शिव, हनुमान, देवी या साईं बाबा जैसे दूसरे देवीदेवताओं को भजने से यह चमारपन दूर होता है या नहीं इस की घोषणा उम्मीद है जल्द ही कोई मठाधीश दक्षिणा पंथी करेगा. लेकिन तब तक सरयू का काफी पानी बह चुका होगा.

हालफिलहाल तो रामभद्राचार्य आम लोगों के निशाने पर हैं. सोशल मीडिया पर लोग उन्हें पानी पीपी कर कोस रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, रामभद्राचार्य को तत्काल गिरफ्तार किया जाना चाहिए. एक अन्य यूजर के मुताबिक दलितों के प्रति जातिसूचक शब्द, छुआछूत, घृणा और नफरत रखने वाले ऐसे जातिवादी व्यक्ति पर कठोर कार्रवाई की जाए.

एक और यूजर ने लिखा ये किसी संत की वाणी है, हिंदू समाज पहले से ही खंडखंड है , रहीसही कसर ये पूरी कर रहे हैं. 800 साल की गुलामी ऐसे ही नहीं आई क्योंकि एकता कभी नहीं बन पाई. लोकतंत्र के बाद सब ठीक हो रहा है तो इन को हजम नहीं हो रहा.

देश के दिग्गज दलित नेताओं ने इस अपमान को प्रसाद समझ ग्रहण कर लिया लेकिन भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर रावण ने सोशल मीडिया पर लिखा, यह जातीय कुंठा से ग्रसित एक पाखंडी है. जो संत के वस्त्र पहन कर भी जातिगत गालीगलौच और जातीय ऊंचनीच की बात करता रहता है. इस के बयान तमाम मेहनतकश एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों व जातियों के साथ हमारे महापुरुषों का भी अपमान है.

चंद्रशेखर रावण सहित तिलमिलाए दूसरे दलित युवाओं को बेहतर मालूम है कि केंद्र में भगवा सरकार के आते ही 2015 में रामभद्राचार्य को यों ही पद्म विभूषण सम्मान से नहीं नवाज दिया गया था. दलितों को सरेआम मंच से चमार कहने वाले इन महाराजजी को महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने आंखों के नहीं बल्कि अक्ल के अंधे तक कह डाला.

लेकिन इस भड़ास या प्रतिक्रियाओं से कुछ होगा ऐसा लगता नहीं क्योंकि रामभद्राचार्य अयोध्या के इंतजामों के मुखिया होने के साथसाथ नरेंद्र मोदी की आंख के भी तारे हैं. जनता 2024 के आम चुनाव में क्या फैसला देगी इस में अब कुछ महीने बाकी हैं लेकिन रामभद्राचार्य ने उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद अभी से दे दिया है.

रही बात सवर्णों चमारों सहित दूसरे हिंदुओ की तो सब के सब सिरे से असहाय से खड़े हैं. राममंदिर के शोर में तमाम आवाजें घुट कर रह गई हैं. जलजला वैष्णवों का है जिन्हें राम और अयोध्या के आगे न महंगाई दिख रही, न भ्रष्टाचार दिख रहा और न ही दिनोंदिन भीषण होती बेरोजगारी नजर आ रही है.

नजर तो किसी को यह भी नहीं आ रहा कि देश में लाखों मंदिर हैं और 72 साल पहले सोमनाथ के मंदिर पर भी ऐसा ही धूमधड़ाका किया गया था, उस से आम और खास लोगों को क्या हासिल हो गया. हां, इतना जरूर हो रहा है कि देश 10 साल में पिछड़ गया है और लगातार पिछड़ता ही जा रहा है. दूसरी दिक्कत वाली बात हिंदू समाज में पसरती खाई है जिसे रामभद्राचार्य सरीखे `विद्वान मौके बेमौके और चौड़ा करने वाले बयान देते रहते हैं.

Breast Cancer से बचाने में मदद करेंगे ये टिप्स, महिलाएं जरूर करें फॉलो

Breast Cancer Prevention Tips in Women : आज के समय में महिलाओं में स्तन कैंसर यानी ब्रेस्ट कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि पुरुषों में भी इसके केस देखे जाते हैं, लेकिन ज्यादातर ये महिलाओं को ही अपनी चपेट में ले रहा है. इस भयावह बीमारी में ब्रेस्ट के अंदर सेल का ग्रोथ अनियंत्रित होने लगता है, जिससे गांठ के रूप में ट्यूमर हो जाता है. अगर शुरुआत में ही कैंसर के बारे में पता चल जाता है, तो इसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन जब ये फैल जाता है तो फिर व्यक्ति की जान बचानी भी मुश्किल हो जाती है, इसलिए जरूरी है कि देश की हर एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में पता हो. आइए जानते हैं ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer Prevention Tips in Women) से बचने के उपाय.

ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के तरीके

दूध पिलाएं

बच्चों के लिए मां का दूध बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है. इसलिए बच्चे को एक-दो महीने तक मां का दूध जरूर पिलाना चाहिए. इससे ब्रेस्ट कैंसर होने का जोखिम तो कम होता है, साथ ही कई अन्य बीमारियों के होने का खतरा भी टल जाता है.

फिजिकल एक्टिविटी करें

जो महिलाएं बिल्कुल भी फिजिकल एक्टिविटी नहीं करती है. उनमें ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer Prevention Tips in Women) होने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए अपने वजन को कंट्रोल करें और नियमित रूप से एक्सरसाइज करें.

सिगरेट और अल्कोहल से बनाएं दूरी

जो महिलाएं बहुत ज्यादा सिगरेट और अल्कोहल पीती है, उनमें ब्रेस्ट कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है. इसलिए कैंसर से बचने के लिए सिगरटे और शराब से दूी बनाए रखें.

डॉक्टरों की सलाह पर करें हार्मोन का इस्तेमाल

आज के समय में सुंदर व यंग दिखने के लिए ज्यादातर महिलाएं हार्मोन दवाइयों का इस्तेमाल करती हैं लेकिन कभी भी बिना डॉक्टरों की सलाह के इनका उपयोग नहीं करना चाहिए. दरअसल, लंबे समय तक हार्मोन का प्रयोग करने से ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer Prevention Tips in Women) होने का खतरा बढ़ जाता है.

इसके अलावा जो महिलाएं रेडिएशन के संपर्क में काम करती हैं या रहती है, उन्हें भी ये बीमारी बहुत जल्द अपनी चपेट में लेती है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

Digestion Problem : अक्सर कब्ज से रहते हैं परेशान, तो रोजाना खाएं ये फूड्स

Foods to Improve Digestion : खराब लाइफस्टाइल और खानपान में लापरवाही बरतने से गैस, कब्ज और दस्त आदि पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. हालांकि दवाओं और घरेलू उपचार से पाचन को दुरुस्त किया जा सकता है, लेकिन कुछ स्थितियों में यह अत्यंत गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत भी हो सकती हैं. इसलिए अगर अक्सर आपको इस तरह की दिक्क्तें बनी रहती हैं तो समय रहते उपचार जरूरी कराएं.

पाचन तंत्र को प्राकृतिक रूप से भी स्वस्थ रखा जा सकता है. इसके लिए सबसे आसान तरीका है कि आप अपने खाने में फाइबर से भरपूर चीजों को शामिल करें. दरअसल, फाइबर युक्त फल व सब्जियां पाचन में सुधार करने में सहायक होती हैं. साथ ही कई अन्य बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है. आइए जानते हैं उन फूड्स (Foods to Improve Digestion) के बारे में, जिन्हें अपनी डाइट में शामिल करने से आपको पाचन संबंधित समस्याओं में आराम मिलेगा.

पाचन को हेल्दी रखने के लिए खाएं ये फूड्स

सेब

पाचन को स्वस्थ रखने के लिए सेब (Foods to Improve Digestion) खाना लाभदायक होता है. सेब में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो मतली और पेट की समस्याओं को दूर करते है.

सौंफ

पाचन को बेहतर रखने के लिए अपनी डाइट में सौंफ को शामिल करें. सौंफ में मौजूद गुणकारी तत्व डाइजेशन सिस्टम को हेल्द रखते है. इसके अलावा सौंफ खाने से मुंह से बदबू भी नहीं आती है.

अदरक

आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर अदरक का सेवन करने से गैस, कब्ज और दस्त आदि पाचन संबंधी सभी समस्याओं में राहत मिलती है. खासतौर पर सर्दियों के मौसम में अदरक वाली चाय पीना शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. इससे इम्यूनिटी मजबूत होती है. साथ ही वजन कम करने में भी मदद मिलती है.

पपीता

सर्दी से लेकर गर्मी तक, मार्केट में हर मौसम में पपीता मिलता है. पपीता (Foods to Improve Digestion) को प्रोटीन और फाइबर का अच्छा सोर्स माना जाता है. इसी वजह से पाचन से जुड़ी समस्याओं में इसे खाने की सलाह दी जाती हैं.

चिया सीड्स

सब्जा बीज यानी चिया सीड्स भी पाचन को बेखतर बनाने में सहायक होते हैं. दरअसल, सब्जा बीज में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जिससे गैस की समस्या से छुटकारा मिलता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

बच्चों पर गुस्सा करना हो सकता है खतरनाक, जानें कैसे

उत्तर प्रदेश के जनपद संत कबीर नगर के खलीलाबाद कोतवाली इलाके की रहने वाली चंचल की हत्या उस के ही बाप विजय कुमार ने इसलिए कर दी, क्योंकि वह अपने बाप से स्कूल की 800 रुपए फीस जमा करने की जिद कर बैठी. पिता को बेटी की यह बात नागवार लगी और उस ने गुस्से में आ कर बेटी का गला दबा दिया.

चंचल मौके पर बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद विजय कुमार ने बस्ती जनपद में अपनी ससुराल चित्राखोर में अपने साले अमरनाथ पांडेय को फोन कर के इस वारदात की जानकारी दी.

अमरनाथ अपने ड्राइवर गोपाल और बहनोई रविचंद्र को ले कर विजय के घर पहुंचा और वहां बेहोश पड़ी चंचल उर्फ कालिंदी को 30 नवंबर, 2018 की रात तकरीबन 10 बजे बोरे में भर कर उसे बस्ती जिले के लालगंज थाना क्षेत्र में ले गया और कुआनों नदी पर बने बानपुर पुल से नीचे फेंक दिया.

इस वारदात के दूसरे दिन 1 दिसंबर, 2018 की सुबह जब गांव वालों ने एक लड़की की लाश को नदी में तैरते देखा तो उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने लाश को नदी से निकलवा कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी.

लालगंज के थाना प्रभारी राजेश मिश्र ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर जब तफतीश शुरू की तो चित्राखोर से चंचल की शिनाख्त हो गई.

पुलिस के लिए केस कुछ आसान होता दिखा और उस ने तफतीश की सूई चंचल के परिवार पर फोकस कर के जांच शुरू की तो बाप विजय कुमार पर शक हुआ.

जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो विजय कुमार ने चंचल की हत्या किए जाने की बात कबूल ली. इस के बाद इस हत्या में शामिल उस के साले अमरनाथ पांडेय और लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई कार को बरामद कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से एक बात और सामने आई कि चंचल को जब नदी में फेंका गया था तब वह जिंदा थी.

इस वारदात से एक बात साफ हो गई है कि कई बार मांबाप अपने बच्चों की जिद के चलते अपना आपा खो बैठते हैं, फिर इस का गुस्सा बच्चों पर उतारने लगते हैं. इस गुस्से के चलते बच्चों को जिस्मानी और दिमागी जोरजुल्म का शिकार होना पड़ता है.

कई बार तो मांबाप के गुस्से का शिकार हो कर बच्चे या तो अपंग हो जाते हैं या फिर उन की मौत भी हो जाती है. इस के बाद मांबाप के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है.

नाजायज रिश्तों का गुस्सा

मांबाप द्वारा अपने मासूम बच्चों के ऊपर जुर्म करने की एक बड़ी वजह है नाजायज रिश्ता, क्योंकि बच्चों के चलते कई बार नाजायज रिश्तों का राज खुल जाने का डर मांबाप को होता है.

बस्ती के जिले के कप्तानगंज थाना क्षेत्र के गांव दयलापुर में नाजायज रिश्तों में रोड़ा बन रही 3 साल की मासूम सृष्टि को उस की ही मां सीमा ने गला दबा कर मार डाला था. बेटी की हत्या करने के बाद वह लाश को आंचल में छिपा कर गांव के सिवान में ले गई और भूसे के ढेर में छिपा दिया.

कप्तानगंज के तबके थानाध्यक्ष रोहित प्रसाद ने इस कांड को उजागर किया था और बताया था कि सृष्टि की मां सीमा ने ही उस की हत्या की थी.

सीमा ने पुलिस को बताया कि बैसोलिया के रहने वाले मंजीत पाठक से उस का नाजायज रिश्ता था. सृष्टि ने उन्हें संबंध बनाते हुए देख लिया था.

3 साल की मासूम सृष्टि अपने पिता को घर में दिन के वक्त किसी के आने की बात बताया करती थी इसलिए सीमा भड़क गई और डंडे से उसे पीटने लगी.

मंजीत पाठक मौके से खिसक गया था. लेकिन गुस्से से भरी सीमा अब सृष्टि को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने की ठान चुकी थी. लिहाजा, उस ने मासूम सृष्टि का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

अगर मांबाप में से कोई भी अपनी सैक्स की भूख नाजायज रिश्तों से मिटा रहा है तो इस का असर बच्चों पर न आने दें. अगर कभी ऐसा हो जाता है कि बच्चा अपने मांबाप के नाजायज रिश्तों के बारे में जान जाए तो कोशिश करें कि जिस के साथ ऐसा रिश्ता है, उस से दूरी बना लें.

अगर बच्चा आप के रिश्ते की बात किसी को बता भी दे तो भी आप बच्चे के ऊपर जुर्म करने से बचें, क्योंकि इस बदनामी को तो शायद आप भूल भी जाएंगे, लेकिन अपने नाजायज रिश्तों को छुपाने के चलते बच्चे से किए गए अपराध में न केवल उस से हाथ धो बैठेंगे, बल्कि जिंदगीभर के लिए सलाखों के पीछे भी पहुंच जाएंगे.

झल्लाहट पर रखें काबू

कई बार तो मांबाप काम के बोझ, नाकामी, औफिस की टैंशन वगैरह के चलते परेशान होते हैं. ऐसी हालत में बच्चे जब मांबाप से प्यार से भी बात करते हैं तो उन्हें अनायास ही मांबाप

के गुस्से का शिकार होना पड़ता है. कभीकभी यह गुस्सा बच्चे को पीटने

तक पहुंच जाता है. इस गुस्से के चलते ही अकसर मासूमों की जान तक चली जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता विशाल पांडेय का कहना है, ‘‘हर मांबाप की यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के पालनपोषण को ले कर सजग रहें. ऐसा देखा गया है

कि कई बार लोगों का खुद पर काबू नहीं रहता है जिस के चलते वे अपनी नाकामी और झल्लाहट अपने बच्चों के ऊपर उतारने लगते हैं.

‘‘बच्चे अपने मांबाप का विरोध करने की हालत में नहीं होते हैं और उन पर आसानी से जुर्म किया जा सकता?है. इस से बचाव के लिए हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम अपने घर और काम करने की जगह की चिंता को एकदूसरे से अलग रखें. हम अपने काम की या दूसरी चिंता घर में न लाएं. अगर परेशान भी हैं तो भी बच्चों से प्यार से बात करें, उन की बातें सुनें और जरूरी होने पर उन की मदद करें.’’

खर्च पर लगाएं लगाम

अकसर हम दूसरों की नकल कर के अपनी कमाई से ज्यादा खर्च बढ़ा लेते हैं. इस के चलते हम दिनोंदिन कर्ज के बोझ से दबने लगते हैं. फिर समय से बच्चों की फीस न भर पाना, रसोई की जरूरतों के साथसाथ बच्चों की जरूरतों को पूरा न कर पाना आम बात हो जाती है.

जब आप का बच्चा दूसरे बच्चों को अच्छा खातेपहनते देखता है तो वह भी उसी तरह रहनेखाने की जिद करने लगता है, इसलिए शुरुआती दौर से अपने बच्चों का पालनपोषण अपनी माली हालत को देखते हुए ही करें, नहीं तो आगे चल कर जैसेजैसे बच्चे की जरूरतें बढ़ेंगी तो उस की मांगें भी बढ़ती जाएंगी.

ऐसे में बारबार बच्चे द्वारा कहे जाने के बावजूद बच्चों की जरूरतें पूरी न कर पाने के चलते आप में गुस्सा और झल्लाहट बढ़ने लगती है, जो धीरेधीरे बच्चों के ऊपर जुर्म के रूप में सामने आने लगती है.

इस बात से बचें

सामाजिक कार्यकर्ता अनीता देव का कहना है, ‘‘कई बार हम बच्चों के लाड़प्यार में उन की गैरजरूरी ख्वाहिशों को पूरा करने लगते हैं. इस वजह से बच्चों में जिद की आदत बढ़ती जाती है. कई बार बच्चे ऐसी जिद भी कर बैठते हैं जिसे पूरा करना आप के बस का काम नहीं होता है.

‘‘ऐसे में बात तब ज्यादा बिगड़ती है जब बच्चे अकसर गैरजरूरी चीजों के लिए जिद करने लगते हैं और अगर मांबाप की कमाई अच्छी नहीं है तो वे इस का गुस्सा बच्चों पर उतारने लगते हैं.’’

नशे से रहें दूर

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणिमा का कहना है, ‘‘नशे में इनसान अकसर होशोहवास खो बैठता है. उस में अच्छेबुरे का फर्क करने की समझ नहीं रहती है. नशे के आदी लोगों की माली हालत तेजी से बिगड़ने लगती है जिस की वजह से वे बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पाते हैं.

‘‘अगर कभी बच्चा मांबाप से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कहता भी है, तो उसे पूरा न कर पाने की झल्लाहट में वे बच्चे को मारनेपीटने लगते हैं.

‘‘नशे में इनसान यह भी नहीं सोचता है कि बच्चे को गंभीर चोट भी लग सकती है. ऐसे में बच्चा अपंगता या मौत का भी शिकार हो सकता है.

‘‘ऐसे हालात से बचने का केवल एक ही उपाय है कि बच्चों की खातिर नशे से दूरी बनाएं और नशे के ऊपर होने वाले बेजा खर्च को बच्चों की पढ़ाईलिखाई के साथसाथ पालनेपोसने पर लगाएं.’’

परिवार को रखें छोटा

सामाजिक कार्यकर्ता अनीता देव के मुताबिक, ज्यादा बच्चे पैदा कर लेना समझदारी का काम नहीं माना जा सकता है. समझदारी का काम यह है कि छोटा परिवार रखते हुए बच्चे का सही से लालनपालन किया जाए और उन की अच्छी पढ़ाई पर ध्यान दिया जाए.

बच्चे को गुस्से का शिकार होने से बचाने के लिए मांबाप का यह फर्ज है कि वे बच्चे को अच्छा माहौल दें. उन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करें.

अगर आप की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं है तो कोशिश करें कि आप कोई भी आमदनी बढ़ाने वाले रोजगार अपनाएं. इस से आप के बच्चों के भविष्य और आप के बुढ़ापे के लिए अच्छा रहेगा.

Winter Special : सर्दियों के मौसम का उठाना चाहते हैं लुत्फ, तो इन टिप्स को करें फौलो

‘ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे,

जो हो परदेश में वो किस से रजाई मांगे.’

यह शेर मशहूर शायर व गीतकार राहत इंदौरी ने सर्दी यानी ठंडक को ले कर लिखा है. वैसे, ठंडक को ले कर कई फिल्मों में गाने फिल्माए गए हैं. कवियों और साहित्यकारों ने ठंडक को ले कर बहुत तरह की रचनाएं की हैं, जिस से साफ है कि ठंड का जीवन में कितना प्रभाव होता है. देशी कहावतें भी बहुत हैं. एक बहुत मशहूर कहावत है कि जाड़ा कहता है- ‘बच्चों से हम बोलते नहीं, जवान हमारे सगे भाई, बूढ़ों को हम छोड़ते नहीं चाहे ओढें सात रजाई.’

असल में ठंड इतनी भी डरावनी नहीं है. ठंड से डरें नहीं, ठंड के मजे लें. सब से अच्छा मौसम ठंड का ही होता है. इस सीजन में बीमारियां कम होती हैं. मौसमी फल और सब्जियां खूब मिलती हैं. खाने का भी मजा ले सकते हैं. तलीभुनी चीजें भी खाने में मजेदार होती हैं.

बहुत सारे लोग सर्दी के महीनों को अपने गरम घरों के अंदर बिताना पसंद करते हैं जबकि ठंडे मौसम में बाहर समय बिताने से मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के लाभ मिलते हैं. कुछ लोग घबराते हैं कि ठंड में बाहर रहने से बीमारी हो सकती है. इसी वजह से पेरैंट्स अपने बच्चों से घर के अंदर ही रहने के लिए कहते हैं. सर्दी में जब आप बाहर रहते हैं तो शरीर ऐक्टिव रहता है जिस से ठंड कम लगती है. मैदानी इलाकों में जैसे ही तापमान 10 डिग्री के नीचे जाने लगता है, चारों तरफ विंटर के कहर की बात होने लगती है. बहुत सारे कपड़े, गरमी के साधन, जैसे हीटर, आग और भी बहुतकुछ का प्रयोग होने लगता है.

दिमागी है ठंड का डर

अखबारों में छपने वाली मौसमी खबरों में कंपकंपाती ठंड की खबरें सब से ज्यादा होती हैं. कई बार इस तरह की खबरें देख कर और भी ठंड लगने लगती है. ठंड का मनोविज्ञान से भी जुड़ाव है. इस को जितना महसूस करेंगे, उतनी ही और लगेगी. मैदानी इलाकों के लोग 10 डिग्री के नीचे ही घबरा जाते हैं, जबकि पहाड़ी इलाकों में माइनस डिग्री में भी लोग काम कर रहे होते हैं. मैदानी इलाकों में ही देखें, तो किसान अपने खेतों की सिचाई इसी ठंड के मौसम में करता है. तमाम ऐथलीट देखे होंगे जो ठंड के मौसम में सुबहसुबह दौड़ लगाते दिख जाते हैं. ठंड जितना महसूस करेंगे, उतनी ही लगेगी.

गरमी के मौसम में सूर्य की धूप लेना आसान नहीं होता. धूप में गरमी ज्यादा होती है. जिस से स्किन पर जलन होती है. धूप से अच्छी विटामिन डी मिलती है. यह हड्डियों के स्वास्थ्य और बीमारी की रोकथाम के लिए बहुत जरूरी होती है. विटामिन डी से कई बीमारियों से बचाव होता है. सर्दी के दौरान बाहर रहने का एक और फायदा है कि हमारा शरीर गरमी की तुलना में ठंड में अधिक कैलोरी जलाता है. ऐसे में बौडी फिट रहती है. जब हम ठंड को महसूस कर के केवल घर में बैठे रहते हैं तब वजन घटने के बजाय बढ़ जाता है.

सर्दी की धूप होती है मजेदार

शरीर को गरम रखने के लिए हम अधिक ऊर्जा खर्च करते हैं. यह तब और भी बढ़ जाती है जब हम कांपने लगते हैं. इसलिए हम केवल ठंड में खड़े हो कर वजन कम नहीं कर सकते हैं. सर्दी के समय में बाहर घूमने से लाभ होता है. ऐसे में बाहर निकल कर ठंड के मजे लें. ठंड के डर से खुद को घर में कैद न करें. सर्दी में बाहर समय बिताने से मैंटल हैल्थ भी ठीक रहती है.

सीजनल अफैक्टिव डिसऔर्डर (एसएडी) एक ऐसी स्थिति है जो कई लोगों को होती है. इस में सर्दी के महीनों में अवसाद बढ़ जाता है. इस में थकान महसूस होती है. भूख बढ़ जाती है. इस का सब से अच्छा इलाज प्रकाश एक्सपोजर (यूसी डेविस) होता है.

जिन लोगों को कोई दिक्कत नहीं भी है वे भी सर्दी में अपने मूड या नींद के शैड्यूल में बदलाव कर के ठंड का मजा ले सकते हैं. इस को ‘विंटरब्लूज’ भी कहा जाता है. हर दिन थोड़ी देर टहलने या पार्क की बैंच से पक्षियों को देखने से मूड अच्छा हो जाता है. इस तरह ठंड के दिनों को और मजेदार बना सकते हैं. बाहर घूमने से रचनात्मकता में काफी सुधार होता है. जब किसी पार्क या प्राकृतिक क्षेत्र में समय बिताते हैं तो ध्यान केंद्रित करने में सफलता मिलती है. मैंटल पावर को बढ़ाने के लिए विंटर में भी घूमने का मौका न छोड़ें.

ठंड के हिसाब से घर को ढालें

सावधानी के साथ ठंड में बाहर निकलें. हमेशा परतों जैसे कपड़े पहनें, जिस से जब गरमी लगे तो एक परत उतार सकें. ठंड से पर्याप्त सुरक्षा न होने पर बाहर रहना खतरनाक है. ठंडक में भी भरपूर पानी पीना चाहिए. सर्दी में यदि लंबे समय तक घर के अंदर बंद रहेंगे तो बेचैनी महसूस करेंगे. इसलिए बाहर निकलें, सुरक्षित रहें और आनंद लें. घर को गरम रखने के लिए केवल हीटर का उपयोग न करें. यह बहुत अच्छा नहीं माना जाता है. ठंड के हिसाब से शरीर को ढालने का काम करें. रोजाना ऐक्टिविटी और ऐक्सरसाइज करें. इस से इम्यूनिटी बढ़ेगी, जो ठंड से बचाव में मददगार होगी.

हाथों और पंजों का भी खयाल रखें. जूतों को हलका ढीला कर के पहनें क्योंकि अगर ठंड में ज्यादा टाइट जूते पहनेंगे तो ब्लड फ्लो अच्छे से नहीं होगा. ठंड के मुताबिक ढलने में 3 से 7 दिन का समय लगता है. इस के लिए शरीर को तैयार करना होगा यानी इम्यून सिस्टम को मजबूत करना होगा.

कुछ खानेपीने की चीजों के जरीए भी शरीर को गरम रखा जा सकता है. तुलसी, लौंग, अदरक और कालीमिर्च से बनी चाय पिएं. ग्रीन टी, लेमन टी, ब्लैक टी पी सकते हैं. वैजिटेबल सूप भी ले सकते हैं. विटामिन सी से भरपूर चीजें, जैसे संतरा, नीबू, आंवले का जूस पिएं.

हाथपैर गरम रखने के लिए गरम मोजे और दस्ताने पहनें. सरसों का तेल गुनगुना कर के मालिश करें. तेल से मसाज करने से पंजों का ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है. इस से औक्सीजन की सप्लाई सही होती है. आयरन से भरपूर डाइट, जैसे चुकंदर, पालक, खजूर, अखरोट खाएं. इस तरह से ठंड में डर कर घर में कैद न हों, मौसम का मजा लें. ठंड से अच्छा कोई मौसम नहीं.

मैं एक लड़की से प्यार करती हूं, क्या उसके लिए मैं अपने पति को तलाक दे दूं ?

सवाल

मैं 23 साल की हूं. मेरी 3 साल की बेटी भी है. अजीब बात है, पर सच है कि मैं एक लड़की से प्यार करती हूं. वह लड़की कहती है कि मैं अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ भाग जाऊं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप पति व बच्चे का सुख भोग कर भी बेवकूफी की बात कर रही हैं. आप उस लड़की को बताएं कि पति का सुख कितना मजेदार होता है. आदमी का साथ पा कर वह लड़की भी लाइन पर आ जाएगी.

ये भी पढ़ें- ये है दुनिया की सबसे रिस्की सेक्स पोजीशन

साइंटिस्ट्स ने सबसे कॉमन सेक्स पोजीशंस में से एक को सबसे खतरनाक बताया है. साइंटिस्ट्स के मुताबिक, आधे से ज्यादा पीनाइल फ्रैक्चर्स के लिए वूमन ऑन टॉप पोजीशन जिम्मेदार है. ब्राजील के रिसर्चर्स ने तीन हॉस्पिटल्स में केसेज की स्टडी के बाद ये खुलासा किया है.

इस पोजीशन में महिलाएं अपने पूरे बॉडी वेट के साथ पेनिस को कंट्रोल करती हैं. अगर पेनेट्रेशन में जरा भी गड़बड़ी हुई तो मर्द कुछ नहीं कर पाते. इसमें महिलाओं को तो दर्द नहीं होता लेकिन पेनिस को चोट पहुंचती है. डॉगी स्टाइल सेक्स भी 29 परसेंट फ्रैक्चर्स के लिए जिम्मेदार माना गया है.

रिसर्च में, मिशनरी पोजीशन सेक्स के लिए सेफेस्ट पोजीशन के तौर पर सामने आई है. रिसर्चर्स ने हॉस्पिटल में इलाज कराने आए 44 पुरुषों का अध्ययन किया. इनमें से 28 फ्रैक्चर्स हेट्रोसेक्सुअल सेक्स से हुए, 4 होमोसेक्सुअल से और 6 पेनिस मैनिपुलेशन से. हालांकि बाकी 4 फ्रैक्चर्स का कारण डॉक्टर्स को समझ नहीं आया.

रिसर्चर्स ने नोट किया कि केसेज में चोट अनकॉमन है और जिन्हें फ्रैक्चर होता है, वे बताने से डरते हैं. ऐसे में इस तरह के फ्रैक्चर्स की असल संख्या और ज्यादा हो सकती है. रिसर्च पेपर के कंक्लूजन में लिखा है, “हमारी स्टडी के मुताबिक, वूमन ऑन टॉप पोजीशन के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स पीनाइल फ्रैक्चर्स के लिए सबसे रिस्की है. जब एक मर्द मूवमेंट को कंट्रोल करता है तो वो पेनेट्रेशन के दौरान पेनिस में दर्द को रोकने की स्थिति में होता है.”

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

कोलेस्ट्रॉल की समस्या से है परेशान, अपनाएं ये टिप्स

Cholesterol control tips : आज के बदलते लाइफ स्टाइल में जहां लोग अपनी सेहत के प्रति जागरूक होते जा रहे हैं वहीं कई बीमारियां भी बढ़ती जा रही हैं. इन्हीं बीमारियों में एक बीमारी है कोलेस्टराल का बढ़ना. यह एक ऐसी बीमारी है जिस का सीधा संबंध हमारे हृदय से है. खून मेें कोलेस्टराल की मात्रा बढ़ जाने से ही हृदय से संबंधित कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं. हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं और रक्त में कोलेस्टराल मौजूद है. सवाल उठता है कि कोलेस्टराल क्या है? शरीर में इस की क्या भूमिका है तथा इस की अधिकता को क्या सिर्फ भोजन द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता है अथवा हमेशा दवा का प्रयोग जरूरी है. भोजन द्वारा कोलेस्टराल की अधिकता से कैसे बचाव किया जा सकता है या उस को नियंत्रण में रखा जा सकता है साथ ही कोलेस्टराल से जुड़े मिथ और फैक्ट्स क्या हैं यह सब जानकारी दे रही हैं दिल्ली के पूसा रोड क्लीनिक की सलाहकार न्यूट्रीनिस्ट गीत अमरनानी.

कोलेस्टराल क्या है

यह एक मोम जैसा पीला चिपचिपा पदार्थ है जो वसा के समान है पर वसा नहीं होता. यह व्यक्ति के लिवर में तैयार होता है और प्रतिदिन लिवर 1,500 मिलीग्राम कोलेस्टराल का निर्माण करता है. कोलेस्टराल लगभग 85 प्रतिशत शरीर से बनता है और 15 प्रतिशत भोजन से.

कोलेस्टराल की भूमिका

1. शरीर की जैविक क्रियाओं के संचालन में कोलेस्टराल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है.

2. कोलेस्टराल से सेक्स हार्मोंस बनते हैं.

3. सूर्य की रोशनी के संपर्क में जब त्वचा आती है तो यह विटामिन ‘डी’ में परिवर्तित हो जाता है.

4. कोशिकाओं के कार्य संचालन में कोलेस्टराल की खास भूमिका होती है.

कोलेस्टराल के प्रकार

रक्त में 2 तरह का कोलेस्टराल पाया जाता है. एक एलडीएल (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटिंस), जिसे खराब कोलेस्टराल कहा जाता है. रक्त में इस के बढ़ने के मुख्य कारण होते हैं संतृप्त वसा का अधिक सेवन. कोलेस्टरालयुक्त आहार, लिवर में कोलेस्टराल का अधिक बनना, चीनी, शराब का अधिक सेवन आदि. कोलेस्टराल का दूसरा प्रकार एचडीएल (हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटिंस), जिसे अच्छा कोलेस्टराल कहा जाता है. जब रक्त में बुरे कोलेस्टराल की अधिकता हो जाती है और अच्छा कोलेस्टराल कम हो जाता है तभी हृदय रोग या अन्य बीमारियों से शरीर घिर जाता है.

अत: बेकार कोलेस्टराल को कम कर के तथा अच्छे कोलेस्टराल को बढ़ा कर रक्त में इस के स्तर को सामान्य या कम किया जा सकता है वह भी सही भोजन का चुनाव कर के. भोजन के सही चुनाव के साथसाथ कैलोरी भी जरूरी है.

उपयुक्त तेल का चयन करें

कोलेस्टराल को भोजन द्वारा नियंत्रित करने के लिए जरूरी है कि आप जो तेल और चरबी खाते हैं उस के बारे में जान लें तभी अपने भोजन को ज्यादा वसा से दूर रख पाएंगे. मुख्यत: तेल व चरबी को 2 भागों में बांटा जा सकता है : एक, सैचुरेटेड फैट, दूसरा, अनसैचुरेटेड फैट.

सैचुरेटेड फैट यानी संतृप्त वसा की बात करें तो यह बल्ड कोलेस्टराल को बढ़ाने वाला होता है. यह पशुजन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त वसा जैसे मक्खन, घी, दूध, चीज, क्रीम आदि में पाया जाता है. कुछ तेल जैसे नारियल का तेल, पाम आयल में भी सैचुरेटेड फैट होता है. सामान्य तापक्रम पर यह फैट जमे हुए होते हैं. अत: इन का सेवन 5 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं करना चाहिए. अब हम अनसैचुरेटेड फैट की बात करें तो यह कोलेस्टराल को कम करने में सहायक होते हैं पर यह भी 2 प्रकार के होते हैं. एक, मोनो अनसैचुरेटेड फैट और दूसरा, पौली अनसैचुरेटेड फैट. मोनो अनसैचुरेटेड फैट स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं क्योंकि ये खराब कोलेस्टराल को कम करते हैं. इस में जैतून का तेल बढि़या होता है क्योंकि यह ज्यादा गरम होने पर भी सैचुरेटेड नहीं होता है. रेपसीड आयल, तिल का तेल आदि भी मोनो अनसैचुरेटेड फैट की श्रेणी में आते हैं. पौली अनसैचुरेटेड फैट कम लाभप्रद है पर इस में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 पाए जाते हैं जो हृदय के लिए लाभकारी हैं. ये मुख्यत: सूरजमुखी के तेल, मक्की के तेल, सोयाबीन के तेल आदि में पाए जाते हैं.

कहने का मतलब है कि कोलेस्टराल के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए वानस्पतिक तेलों का प्रयोग करना चाहिए. यह कोलेस्टराल रहित होते हैं और इस में मूफा और पूफा की मात्रा अधिक होती है. वजन घटाने व कोलेस्टराल को नियंत्रण करने के लिए तेल का प्रयोग 25 से 30 प्रतिशत कैलोरी से अधिक नहीं करना चाहिए.  मेवों का सेवन करें सीमित मात्रा में मेवों में कोलेस्टराल नहीं होता है पर वसा की मात्रा अधिक होती है. अत: काजू, मूंगफली, अखरोट और बादाम का सेवन एक सीमित मात्रा में किया जा सकता है. ये दिल की बीमारियों के लिए बेहद मुफीद हैं क्योंकि इन में मिनरल सेलेनियम नामक तत्त्व पाया जाता है. शरीर में इस अत्यंत उपयोगी मिनरल की कमी नहीं होनी चाहिए अत: संभव हो तो रोज मुट्ठी भर मेवा का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.

फल, सब्जी अनाज और दालोें का सेवन खूब करें

संतरे, लाल और पीले रंग के फल, सब्जियां और गहरे रंग की बेरीज का सेवन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए. छिलकेदार दालें, चोकरयुक्त आटा, साबुत अनाज, दलिया, ईसबगोल आदि में घुलनशील फाइबर खूब पाए जाते हैं. इसी तरह सेब, नाशपाती में भी खूब घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं. यह घुलनशील फाइबर कोलेस्टराल को बांध लेते हैं और शरीर में उस के जज्ब होने की क्रिया पर रोक लगा देते हैं.

मीठे और साफ्ट ड्रिंक्स से करें परहेज

मीठी चीजों जैसे केक, पेस्ट्री, मुरब्बा, चाकलेट, जैम, शहद और कोल्ड ड्रिंक्स आदि से दूर रहें क्योंकि इन सब में कैलोरीज बहुत होती है. कहने का मतलब है कि चीनी में सरल कार्बोज के अतिरिक्त अन्य कोई पोषक तत्त्व नहीं होता है. इस के अत्यधिक सेवन से ड्राइग्लिसरिन का स्तर बढ़ जाता है साथ ही वजन में भी अनचाही वृद्धि होती है. अत: वजन पर नियंत्रण रखने के लिए मीठी चीजों से दूर रहें. ध्यान रहे, कुछ कंदमूल वाली सब्जियां जैसे शकरकंदी, चुकंदर आदि भी कम इस्तेमाल करें.

कच्चा लहसुन जरूर खाएं

अपने खाने में लहसुन का इस्तेमाल जरूर करें. यह हृदय संबंधी रोगों में काफी लाभदायक रहता है. दिन में कम से कम एक जवा लहसुन सूप, कैसररोल्स और सलाद के साथ लें अथवा एक जवा लहसुन बिना चबाए पानी के साथ सुबहसवेरे निगल जाएं. इस के सेवन से कोलेस्टराल के स्तर में गिरावट आती है साथ ही खून के थक्के जमने की प्रक्रिया भी धीमी पड़ जाती है.

सलाद खूब खाएं

सिर्फ भोजन के साथ ही सलाद का प्रयोग न करें बल्कि जब भी भूख लगे तो गाजर, मूली, ककड़ी, खीरा, प्याज, टमाटर आदि खाएं. यह अल्पाहार के लिए अच्छा विकल्प है. इन का नियमित सेवन खराब कोलेस्टराल स्तर में गिरावट लाता है.

मांसाहार का सेवन न के बराबर करें

कोलेस्टराल पर नियंत्रण रखने के लिए जरूरी है कि मांस का सेवन न करें. मांस खासकर अंगों का मांस जैसे सुअर की चरबी, कलेजी, मुर्गा, अंडे का पीला भाग न खाएं. यह सभी कोलेस्टराल से भरपूर होते हैं. मांसाहारी मछली खा सकते हैं क्योंकि उस में ओमेगा फैटी एसिड पाए जाते हैं जो खून में विद्यमान हानिकारक ट्राइग्लिसराइड की मात्रा को घटाते हैं.

जंक फूड से करें तौबा

देशीविदेशी जंक और फास्ट फूड जैसे छोलेभठूरे, बर्गर, कचौड़ी, आलू की टिक्की, समोसे, पिज्जा से भी नाता तोड़ दें.

व्यायाम जरूर करें

प्रतिदिन 30 से 45 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें. इस से रक्त में से वसा शरीर से बाहर निकलने की क्षमता में वृद्धि होती है. वसा अधिक देर रक्त में टिक नहीं पाती. उपरोक्त सावधानियां के अलावा सदैव खुश व प्रसन्न रहने की कोशिश करें. धूम्रपान न करें और न ही शराब का सेवन करें. कभीकभी जीवनशैली में बदलाव के बावजूद कोलेस्टराल का स्तर कम नहीं होता तो डाक्टर की सलाह से दवा ले कर उस को कम करना पड़ता है. जरूरी बात यह है कि सावधानी बरती जाएगी तो हमारा हृदय भी ज्यादा समय तक सुरक्षित रहते हुए सही काम करेगा.

रक्त में लिपिड स्तर को ऐसे करें कंट्रोल

1.    उचित मात्रा में भोजन करें.

2. वसा का सीमित मात्रा में सेवन करें.

3.    संतृप्त वसा का सेवन कम से कम करें.

4.    हाइड्रोजनीकृत वसा का सेवन न करें.

5.    फाइबर की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें.

6.    कोलेस्टराल की ग्रहण की गई मात्रा को कम करें.

7.    चीनी और परिष्कृत कार्बोज का सेवन कम से कम करें.

‘‘आहार में मार्जरीन और बटर दोनों का प्रयोग कम करना चाहिए’’

-गीतू अमरनानी (न्यूट्रिनिस्ट)

कोलेस्टराल नुकसानदेह कब

शरीर में कोलेस्टराल 2 तरह से बढ़ता है. एक तो ऐसा भोजन खाने से जिस में सैचुरेटेड चरबी ज्यादा होती है वह रक्त में ज्यादा कोलेस्टराल बनने का खास कारण होता है. यदि कोलेस्टराल वाला भोजन किया जाए तो उस का परिणाम दोगुना हो जाता है, क्योंकि कोलेस्टराल वाले भोजन में सैचुरेटेड चरबी ज्यादा होती है. दूसरा कारण होता है कोलेस्टराल का शरीर में अधिक मात्रा में बनना. दोनों में से कोई भी कारण हो पर नुकसान शरीर को ही उठाना पड़ता है, क्योंकि कोलेस्टराल के बढ़ने से सिर्फ हृदय रोग ही नहीं होता बल्कि मोटापा, हाई बल्डप्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियां भी हो जाती हैं.

कोलेस्टराल का पता कैसे लगाएं

शरीर में कोलेस्टराल की कितनी मात्रा सही है और कितनी नहीं इस के लिए चिकित्सक लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराते हैं. इस से प्राप्त आंकड़े शरीर में कोलेस्टराल के स्तर को दर्शाते हैं. वैसे आमतौर पर कहा जाता है कि यदि रक्त में कोलेस्टराल की मात्रा 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम है तो इस का स्तर सामान्य माना जाता है और यदि इस से ज्यादा है तो सावधानी बरतने की जरूरत होती है. वैसे निम्न वजहें हों तो डाक्टर से राय ले कर टैस्ट करा लेना चाहिए :

1. हाईब्लडप्रेशर, मोटापा या थायराइड जैसी कोई समस्या हो.

2. हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास हो.

3. रक्त में कोलेस्टराल के उच्च स्तर का पारिवारिक इतिहास हो.

4. पलकों पर हलके क्रीम कलर के धब्बों के रूप में लिपिड की परत हो.

5. ज्यादा शराब का सेवन या परिवार नियोजन के लिए गोलियां लेने की हिस्ट्री हो.

बटर की जगह मार्जरीन के इस्तेमाल से कोलेस्टराल कम होता है? मार्जरीन और बटर दोनों में ही वसा बहुत पाई जाती है. इसलिए इन का प्रयोग कम करना चाहिए. आहार के लिहाज से ब्लड में कोलेस्टराल का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि भोजन में सैचुरेटेड फैट कितने लिए गए हैं. सैचुरेटेड फैट की मात्रा को कम करने से ही कोलेस्टराल के स्तर को कम किया जा सकता है. मार्जरीन में सैचुरेटेड फैट कम होता है इसलिए यह दिल के लिए स्वास्थ्यकर है. अच्छा हो कि ‘फैट फ्री मार्जरीन’ का प्रयोग किया जाए.

क्या दुबले लोगों को भी कोलेस्टराल की चिंता करनी चाहिए?

मोटे लोगों में कोलेस्टराल लेबल फैटी फूड खाने से ज्यादा बढ़ता है परंतु पतले लोगों को भी अपना कोलेस्टराल चैक कराते रहना चाहिए. उन का वजन तो नहीं बढ़ता है पर उन्हें यह नहीं पता चलता है कि वे कितना सैचुरेटेड फैट खा रहे हैं.

क्या कोलेस्टराल फ्री आहार एक हाई हेल्दी फूड भी है?

ज्यादातर लो कोलेस्टराल फूड में भी हाई सैचुरेटेड फैट पाए जाते हैं. इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि जो आहार लें उसे चैक करें कि उस में सैचुरेटेड फैट, टोटल फैट, कोलेस्टराल और एक सर्विंग से कितनी कैलोरी प्राप्त होगी. तभी खाएं. हाई कोलेस्टराल को रोकने के लिए यदि दवा खाना शुरू कर दिया है तो फिर सबकुछ खापी सकते हैं या नहीं?

कोलेस्टराल के स्तर को कम करने के लिए दवा के अलावा भोजन में सावधानी बरतनी भी जरूरी है. दवा के साथसाथ आधे से 1 घंटे तक नियमित एक्ससाइज भी करनी चाहिए. क्या अंडे खाने से कोलेस्टराल नहीं बढ़ता है? क्या सुबह के नाश्ते मेें 2 अंडे लिए जा सकते हैं? एक अंडे में 213 मिलीग्राम कोलेस्टराल होता है. यह बहुत ज्यादा है क्योेंकि सारे दिन में 300 मिलीग्राम से अधिक कोलेस्टराल का सेवन नहीं करना चाहिए. यदि एक अंडा लेना ही है तो दिन भर भोजन में सिर्फ हरी सब्जियों का ही सेवन करें.

क्या युवावस्था में ही कोलेस्टराल की जांच जरूरी है?

अच्छा है कि युवावस्था में ही कोलेस्टराल की जांच करा लेनी चाहिए क्योंकि जिन परिवारों में दिल का दौरा पड़ने का इतिहास रहा है वहां बच्चों में भी कोलेस्टराल का स्तर ज्यादा पाया जाता है.

कोलेस्टराल के बारे में अपने डाक्टर से पूछें ये प्रश्न

1.    मेरा ड्राइग्लिसराइड लेवल क्या है?

2.    क्या मुझे अपने कोलेस्टराल और ड्राइग्लिसराइड लेवल की जांच करानी चाहिए? खासतौर से जब घर में किसी को है?

3.    क्या मेरा शरीर ‘एप्पल शेप’ है?

4.    क्या भोजन पर नियंत्रण कर के बीमारियों से बचा जा सकता है?

5.    क्या एक्सरसाइज करने से मेरा ड्राइग्लिसराइड का स्तर कम हो जाएगा?

6.    कोलेस्टराल के कारण जो भोजन मैं करूं क्या वही भोजन मेरे परिवार के लिए भी ठीक रहेगा?

7.    क्या कोलेस्टराल का बढ़ना आनुवंशिक है?

8.    हमारे बच्चों को क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए.

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