Special Social Stories in Hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट सोशल स्टोरी. जो आपको समाज से जुड़ी कई बातों के बारे में बताएंगी. साथी ही इन छोटी-छोटी कहानियों को पढ़ने से आपके जीवन में सकारात्मकता तो आएगी ही. साथ ही जीवन की कई परिस्थितियों का सामना करने का हौसला भी मिलेगा. दरअसल ‘सरिता’ पत्रिका मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित कहानियों से आप अपनी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं. आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सरिता की Top 10 Social Story in Hindi.

Best Social stories in hindi : वो कहानियां जो आपके जीवन में गहरी छाप छोड़ेगी

1. अपनी अपनी तैयारी

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‘‘आप ही बताइए मैं क्या करूं, अपनी नौकरी छोड़ कर तो आप के पास आ नहीं सकता और इतनी दूर से आप की हर दिन की नईनई समस्याएं सुलझ भी नहीं सकता,’’ फोन पर अपनी मां से बात करतेकरते प्रेरित लगभग झंझला से पड़े थे.

जब से हम लोग दिल्ली से मुंबई आए हैं, लगभग हर दूसरेतीसरे दिन प्रेरित की अपने मम्मीपापा से इस तरह की हौटटौक हो ही जाती है. चूंकि प्रेरित को अपने मम्मीपापा को खुद ही डील करना होता है, इसलिए मैं बिना किसी प्रतिक्रिया के बस शांति से सुनती हूं.

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2. नारायण बन गया जैंटलमैन

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कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.

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3. दूसरी औरत नहीं बनूंगी : क्या था लखिया का मुंह तोड़ जवाब?

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लखिया ठीक ढंग से खिली भी न थी कि मुरझा गई. उसे क्या पता था कि 2 साल पहले जिस ने अग्नि को साक्षी मान कर जिंदगीभर साथ निभाने का वादा किया था, वह इतनी जल्दी साथ छोड़ देगा. शादी के बाद लखिया कितनी खुश थी. उस का पति कलुआ उसे जीजान से प्यार करता था. वह उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करता. वह खुद तो दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करता था, लेकिन लखिया पर खरोंच भी नहीं आने देता था. महल्ले वाले लखिया की एक झलक पाने को तरसते थे.

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4. दबी हुई परतें : जीजा जी के जाने के बाद क्या हुआ दीदी के साथ

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हमारे संयुक्त परिवार में संजना दी सब से बड़ी थीं. बड़ी होने के साथ लीडरशिप की भावना उन में कूटकूट कर भरी थी. इसीलिए हम सब भाईबहन उन के आगेपीछे घूमते रहते थे और वे निर्देश देतीं कि अब क्या करना है. वे जो कह दें, वही हम सब के लिए एक आदर्श वाक्य होता था. सब से पहले उन्होंने साइकिल चलानी सीखी, फिर हम सब को एकएक कर के सिखाया. वैसे भी, चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाईलिखाई या स्कूल की अन्य गतिविधियां, दीदी सब में अव्वल ही रहती थीं. इसी वजह से हमेशा अपनी कक्षा की मौनीटर भी वही रहीं.

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5. समय चक्र : बिल्लू भैया ने क्या लिखा था पत्र में?

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शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…यद्यपि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी?

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6. तलाश एक कहानी की: मोहन बाबू क्षमा क्यों मांग रहे थें?

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कुरसी पर खाली बैठाबैठा बस कई दिनों से कोई अदद कहानी लिखने की सोच रहा था, लेकिन किसी कहानी का कोई सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था. कभी एक विषय ध्यान में आता, फिर दूसरातीसरा, चौथा. लेकिन अंजाम तक कोई नहीं पहुंच रहा था. यह लिखने की बीमारी भी ऐसी है कि बिना लिखे रहा भी तो नहीं जाता.

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7. बांझ: बाबा ने राधा के साथ क्या किया ?

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रोज की तरह आज की सुबह भी सास की गाली और ताने से ही शुरू हुई. राधा रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थी, लेकिन वह और कर भी क्या सकती थी? उसे तो सुनना था. वह चुपचाप सासससुर और पड़ोसियों के ताने सुनती और रोती. राधा की शादी राजेश के साथ 6 साल पहले हुई थी. इन 6 सालों में जिन लोगों की शादी हुई थी, वे 1-2 बच्चे के मांबाप बन गए थे. लेकिन राधा अभी तक मां नहीं बन पाई थी. इस के चलते उसे बांझ जैसी उपाधि मिल गई थी. राह चलती औरतें भी राधा को तरहतरह के ताने देतीं और बांझ कह कर चिढ़ातीं. राधा को यह सब बहुत खराब लगता, लेकिन वह किसकिस का मुंह बंद करती, आखिर वे लोग भी तो ठीक ही कहते हैं.

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8. ऊंची उड़ान : आकाश और संगीता के बीच क्या रिश्ता था ?

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रात के 12 बजे फोन की घंटी बजी. उस समय आकाश और संगीता शर्मोहया भूल कर एकदूसरे से लिपट कर शारीरिक संबंध बना रहे थे. दोबारा फोन की घंटी बजी. जब संगीता के कानों में घंटी की आवाज पड़ी, तो वह आकाश से बोली, ‘‘आकाश, तुम्हारा फोन बज रहा है.’’ ‘‘बजने दो. मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’ इस के बाद वे दोनों अपने काम में बिजी हो गए. कुछ समय बाद आकाश ने कहा, ‘‘बहुत मजा आया संगीता.’’ संगीता कुछ कहती, उस से पहले फोन की घंटी फिर बजी.

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9. बेटी का सुख : वह मां के बारे में क्यों ज्यादा सोचती थी

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मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

हमारे जूतेचप्पलों की खबर भी खूब रखती है. चलने में मां को तकलीफ होगी, सो डाक्टर सोल की चप्पल ले आती है. पापा के जौगिंग शूज घिस गए हैं, चलो, नए ले आते हैं. वे सफाई देते हैं, ‘अभी तो लाया था.’ ‘कहां पापा, 2 साल पुराना है, फिर आप रोज घूमने जाते हैं, आप को अच्छे ब्रैंड के जौगिंग शूज पहनने चाहिए.’ बाप के पैरों के प्रति बेटी की चिंता देख कर सोचती हूं, ‘बेटे इस से अधिक और क्या करते होंगे.’ जब हम बेटी के घर जाते हैं तब जिस क्षण हवाईजहाज के पहिए धरती को छूते हैं, उस का फोन आ जाता है, ‘जल्दी मत करना, आराम से उतरना, मैं बाहर ही खड़ी हूं.’ एअरपोर्ट के बाहर एक ड्राइवर की तरह गाड़ी बिलकुल पास लगा कर सूटकेस उठाने और कार की डिक्की में रखने में दोनों के बीच प्यारी, मीठी तकरार कानों में पड़ती रहती है, ‘पापा, आप नहीं उठाओ, मम्मी तुम बैठ जाओ, हटो पापा, आप की कमर में दर्द होगा…’

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10. रूढि़यों के साए में

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दीपों की टेढ़ीमेढ़ी कतारों के कुछ दीप अपनी यात्रा समाप्त कर अंधकार के सागर में विलीन हो चुके थे, तो कुछ उजाले और अंधेरे के बीच की दूरी में टिमटिमा रहे थे. गली का शोर अब कभीकभार के पटाखों के शोर में बदल चुका था.

दिव्या ने छत की मुंडेर से नीचे आंगन में झांका जहां मां को घेर पड़ोस की औरतें इकट्ठी थीं. वह जानबूझ कर वहां से हट आई थी. महिलाओं का उसे देखते ही फुसफुसाना, सहानुभूति से देखना, होंठों की मंद स्मिति, दिव्या अपने अंतर में कहां तक झेलती? ‘कहीं बात चली क्या…’, ‘क्या बिटिया को बूढ़ी करने का इरादा है…’ वाक्य तो अब बासी भात से लगने लगे हैं, जिन में न कोई स्वाद रहता है न नयापन. हां, जबान पर रखने की कड़वाहट अवश्य बरकरार है.

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