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जीवन की मुसकान

मैं और मेरे पति रायबरेली से बड़ी बेटी की ससुराल अपनी गाड़ी से जा रहे थे. बेटी के बच्चे हमारे साथ थे. रास्ते में उन को भूख लगने पर हम ने सड़क के किनारे एक अच्छे रैस्टोरैंट के पास गाड़ी रोक ली. खाने का और्डर दे दिया. बच्चों ने लैमन सोडा पीने की फरमाइश की. खाना लाने वाले लड़के को 2 लैमन सोडा लाने को कह दिया. खाना मेज पर लग गया. ‘‘लैमन सोडा भी ले आओ,’’ हम ने कहा था.

‘‘जी साहब,’’ उस ने तुरंत एक प्लेट में 2 नीबू और कटोरी में खाने वाला सोडा दिखाते हुए कहा, ‘‘साहब, यह रहा लैमन सोडा.’’ यह देख कर हम खिलखिला कर हंस पड़े. बेचारा लड़का कुछ न समझ पाया.

कैलाश, गाजियाबाद (उ.प्र.)

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बचपन में मैं और मेरा भाई एकसाथ स्कूल जाते थे. मैं कक्षा दूसरी में व भाई पहली कक्षा में पढ़ता था. हम रिकशा से आतेजाते थे. एक दिन हमारी छुट्टी हुई तो किसी बात पर मेरा व भाई का झगड़ा हो गया. हम लड़ते हुए इधरउधर हो गए. भाई तो सही रास्ते निकल गया लेकिन मैं दूसरी गली में चली गई. मैं काफी घबराई हुई थी. एक बुजुर्ग वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने मुझे देखा तो मुझ से पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ मैं ने उन्हें सबकुछ बता दिया. उन्होंने कहा, ‘‘आओ बेटी, मेरे साथ. तुम्हें सही रास्ता दिखा देता हूं.’’ यह अच्छा था कि रिकशा वाला इंतजार कर रहा था. भाई भी बैठा था. रिकशा वाले ने बताया कि यह बहुत घबरा रहा था कि मेरी बहन पता नहीं कहां रह गई, उसे आ जाने दो. फिर हम दोनों भाईबहन खुश हो कर झगड़े को भुला कर बड़े प्यार से मिले.     

काशी चौहान, कोटा (राज.)

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मैं पति के साथ इंदौरपुणे ऐक्सप्रैस ट्रेन से पुणे जा रही थी. ट्रेन बड़ौदा स्टेशन पर पहुंची. यहां 20 मिनट का हाल्ट था. मैं और मेरे पति ट्रेन से उतर कर प्लेटफौर्म पर अपने रिश्तेदार का इंतजार कर रहे थे. वे आ भी गए. हम उन से बात करने में मशगूल थे कि अचानक देखा, ट्रेन चलने लगी. मेरे पति दौड़ कर चलती ट्रेन में चढ़ गए परंतु मैं नहीं चढ़ सकी. मेरे रिश्तेदार ने कहा कि चलो, घर चलो, अगले दिन चली जाना. मैं रिश्तेदार के साथ कुछ देर प्लेटफौर्म पर इस आशा के साथ कि ट्रेन चेनपुलिंग से रुकेगी, रुकी रही. अचानक दूसरे ट्रैक पर एक ट्रेन आ कर रुकी. उस ट्रेन के गार्ड ने मुझे देखा और बोला,  ‘‘मैडम, आप को पुणे जाना है, इस ट्रेन में बैठ जाओ. मुंबई में आप की ट्रेन आएगी.’’ मैं उस ट्रेन में बैठ कर मुंबई पहुंच गई. 10 मिनट के बाद उसी ट्रैक पर मुझे इंदौरपुणे ट्रेन मिल गई और मैं पति के साथ पुणे पहुंच गई. 

राजमती जैन, उज्जैन (म.प्र.)

रजनी यौवन की

रजनी यौवन की आती है

जब उन रातों में

शर्मोहया सब फना हो जाती

उन की बांहों में

दिल से दिल की बातें होती हैं

धड़कनें महसूस होती हैं

जब उन की बांहों में

अंतर्मन खो जाता है

उन राहों में

चादर की सलवटें बयां करती हैं

उन करवटों को

जो हम ने ली संग तुम्हारे

कुछ भी न बचा बिन तुम्हारे

जीवन में हमारे

हर क्षण डूबी रहती हूं

उन यादों में

तन्हातन्हा सिमटी रहती हूं

उन चाहों में

कसकता है मन बिन तुम्हारे

आ के जीवन में भर दो चांदसितारे.

 

         – शीला बर्नवाल

अमेरिकी शिक्षा : बहुमुखी विकास

अमेरिका आने पर स्वाभाविक था कि हम प्रवासी भारतीयों के पड़ोस में ही घर ढूंढ़ते किंतु घनिष्ठ मित्रों व हितैषियों ने समझाया कि अमेरिकी जीवन की मुख्यधारा में समावेश के लिए मध्यवर्गीय अमेरिकी पड़ोस श्रेयस्कर होगा. एक उदार हृदय अमेरिकी पड़ोसी परिवार ने जैसे हमें गोद ही ले लिया. पगपग पर उन की सहायता और अमूल्य सलाह के बल पर हम यहां की मुख्यधारा में समाहित होने के साथसाथ अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने में सफल हुए हैं. इस परिवार के रहनसहन को समझ कर हमारे दिमाग के कुछ बंद रोशनदान भी खुले हैं. सधीबंधी सोच से बाहर संभावनाओं में आस्था जगी है.

उच्च शिक्षित मध्यवर्गीय पड़ोसी दंपती किफायतशारी के कायल हैं किंतु आवश्यकताओं के लिए कतई कोताही नहीं. संतान की उच्च शिक्षा के पूरे खर्च के लिए चैक लिखने को सदैव व सहर्ष तत्पर. बेटियां भी उन्हीं का खून. 12 वर्ष की आयु से बेबी सिटिंग और 16 वर्ष की आयु से अन्य पार्टटाइम जौब्स कर के अपने एजुकेशन बेनेफिट फंड में पैसे जमा करने लगी थीं. एक बेटी अपने बलबूते पर अकाउंटिंग में डिगरी ले कर बैंक में लोन औफिसर है और बिजनैस ला में मास्टर्स कर रही है. दूसरी बेटी को नर्सिंग में बैचलर्स डिगरी के लिए स्कौलरशिप मिली और 5 वर्ष तक औपरेटिंग रूम में अनुभव के बाद मास्टर्स के लिए फैलोशिप. वह पीएचडी कर के नर्सिंग कालेज में प्रोफैसर बनना चाहती है. सिर्फ बड़ी बेटी पेनी अपने कैरियर पथ पर फोकस करने में तनिक ढीली रही. कैलिग्राफी (खुशखत लिखाई) में वह बालपन से बहुत अच्छी थी. हालांकि स्कूलों में बच्चों की लिखावट पर बहुत जोर नहीं दिया जाता. वर्डप्रोसैसर जिंदाबाद, हाथ से कुछ भी लिखने की जरूरत धीरेधीरे कम होती जाती है.

पेनी और मझली बेटी की आयु के बीच 5 वर्ष का अंतराल है. घर और बच्चे संभालने में वह मां का दाहिना हाथ बनी. किचन में खुशीखुशी काम करवाती. हर हफ्ते केक या पाई बनवातेबनवाते मां से आगे निकल गई. 4 वर्ष के लिए आर्ट्स कालेज जाने का निर्णय किया तो पिता ने तुरंत चैक लिख डाला. 1 साल में ही पेनी का मन बदल गया और उस ने अकाउंटिंग में दाखिला ले लिया. जिस नामी ग्रोसरी स्टोर चेन में पहले उस ने कुछ वर्ष पार्टटाइम काम किया था उस में स्थायी पोजिशन मिल गई. मार्क से प्यार हुआ और शादी के बाद प्रेमी पति और उस के दोस्त की ‘स्टार्ट अप’ कंस्ट्रक्शन कंपनी में साथ देने के खयाल से पेनी ने इलैक्ट्रीशियन का सर्टिफिकेशन कोर्स पूरा कर डाला.

समय का पूरा सदुपयोग

बच्चे हुए तो फ्लेक्सिबल वर्क आवर्स वाली नौकरी की जरूरत पड़ी. जानेपहचाने ग्रोसरी स्टोर में नाइट शिफ्ट के लिए सीनियर बेकर की पोजिशन निकली तो उस ने वह नौकरी कर ली ताकि वह दिन में घर और बच्चों की देखभाल कर सके और रात में निश्ंिचत हो कर उन्हें पति के पास छोड़े. अच्छा वेतन, नियमित बोनस, स्टौक औप्शंस, हैल्थ इंश्योरैंस, सवैतनिक छुट्टियां, मैटरनिटी लीव आदि. सब से बढ़ कर वहां बेकिंग और केक्स व टार्ट्स पर उस के कलात्मक डैकोरेशन में उस के शौक की कद्र. और क्या चाहिए उसे?शनिवार, रविवार के बजाय मार्क के  व्यस्ततम दिन, सोमवार और शुक्रवार को पेनी औफ लेती है. सोमवार को मार्क देर से घर आ पाता है और शुक्रवार को वह अकसर जबरदस्ती उसे दोस्तों के साथ ‘बौयज नाइट आउट’ मनाने के लिए भेज देती  है. महीने, 2 महीने में एक शुक्रवार को सखियों के साथ वह ‘गर्ल्स नाइट आउट’ मनाती है. बाकी शुक्रवार को वे दोनों कहीं डिनर, डांस, कोई कौन्सर्ट या मूवी या दोस्त कपल्स के साथ बौलिंग ऐली में मौजमस्ती. बच्चे बेबी सिटर के सुपुर्द.

आर्ट के बाद पेनी का दूसरा चाव है फोटोग्राफी, जिस में वह सिद्धहस्त है. उस की कई प्रविष्टियां नैशनल जियोग्राफिक में स्थान पा चुकी हैं. वह फूड स्टाइलिस्ट भी है और चतुराई से हर डिश का मेकअप कर के उस की ऐसी फोटो खींचती है जो जीभ पर स्वाद जगा दे. पेनी की अवार्डविनिंग बेकिंग रैसिपीज और फूड फोटोज जानीमानी पत्रिकाओं में छपती रहती हैं. उस के हितैषी बारबार इस बात पर जोर देते हैं कि वह अपनी रैसिपीज का सचित्र कलैक्शन पब्लिश करे. रात के 10 बजे से सुबह 4, साढ़े 4 बजे तक काम करती है वह. नाइट शिफ्ट में काम के घंटों में रियायत मिलती है, 8 की जगह 6, लेकिन वेतन पूरे 8 घंटों का. गाहेबगाहे ओवरटाइम करना पड़े तो पेनी मना नहीं करती क्योंकि छोटे बच्चों के साथ पता नहीं कब ऐक्स्ट्रा आवर्स के बदले छुट्टी की जरूरत पड़ जाए. घर लौटते ही वह सो जाती है और सुबह के काम मार्क के जिम्मे, बच्चों को उठाना, तैयार करना, खिलापिला कर स्कूल और ‘डे केयर’ में छोड़ते हुए अपने काम पर निकल जाना. पेनी 11, साढ़े 11 बजे तक उठ कर नहातीधोती है और खापी कर शाम का डिनर बनाने के साथसाथ घर सुव्यवस्थित करती है. छोटे बच्चों का साथ है तो लौंड्री का काम भी लगभग रोज ही निकल आता है. बाजार का कोई छोटामोटा काम हुआ तो उसे करते हुए बच्चों को घर लाती है.

दूध, नाश्ता दे कर उन का होमवर्क करवाती है और नजदीक पार्क में उन्हें खेलने के लिए, कभी स्केटिंग के लिए ले जाती है. मार्क के घर लौटने से पहले वह मेज सजाती है, सलाद बनाती है और 6 बजे उस के आते ही सब डिनर के लिए बैठ जाते हैं. खाने के बाद बच्चे डैड के साथ मस्ती करते हैं, तब तक वह किचन समेटती है और अगले दिन के लिए मार्क का लंच बौक्स जमा कर फ्रिज में रख देती है. यदि बच्चे कहते हैं कि वे भी अगले दिन स्कूल में मिलने वाले हौट लंच के बजाय घर से सैंडविच, स्नैक्स व फल ले जाएंगे और स्कूल में सिर्फ जूस या दूध लेंगे तो वह उन के लंच बौक्स भी तैयार कर देती है. जब तक वह थोड़ा सुस्ताती है तब तक मार्क बच्चों को नहलाधुला कर बिस्तर के लिए तैयार करता है और उन की मनपसंद कहानी सुना कर उन के कमरे की लाइट औफ कर देता है. पतिपत्नी थोड़ा समय साथसाथ गुजारते हैं या कोई जरूरी काम हुआ तो मार्क झटपट कर आता है. नहाधो कर अखबार और जरूरी कागजपत्तर देखता है. सवा 9, साढ़े 9 बजे तक पेनी घर से निकल लेती है और मार्क कंप्यूटर पर जरूरी काम निबटा कर बच्चों के कमरे में झांकते हुए सोने चला जाता है.

सप्ताह की दिनचर्या अत्यधिक व्यस्त तो वीकेंड भी खासे व्यस्त होते हैं. सुबह तनिक देर से उठें सही, लेकिन ताजा नाश्ता आराम से कर के बच्चे दोस्तों के साथ मस्त और पति, पत्नी घर के रखरखाव के बड़े काम में जुट जाते हैं. घर की सफाई, कोई जरूरी ठोकापीटी या पेंटिंग, लौन केयर, बागबानी. अपना कोई प्रोजैक्ट या मित्र व संबंधियों के किसी प्रोजैक्ट में सहयोग. मिलनामिलाना, पार्टी या पिकनिक. लंबे वीकेंड पर बच्चों को किसी सुरम्य स्थान पर घुमा लाना. स्वयं अपने जीवन में भी रोमांस ताजा रखने के लिए छोटीमोटी रोमैंटिक वैकेशन. पति, पत्नी को ‘क्वालिटी टाइम’ देने के लिए बच्चों को बाबा, दादी, नाना, नानी या आंटीज सदा तत्पर बेबी सिटर्स. पति, पत्नी भी जिस प्रकार बन पड़े उन लोगों के लिए बहुतकुछ करने को तैयार. उन के घरों में छोटीबड़ी मरम्मत, उन के लिए किसी खास शो की टिकटें, उन की अकाउंटिंग और टैक्स प्रेपरेशन आदि.

सफल ब्लू कौलर जौब

ग्रोसरी स्टोर की मिल्कीयत बदले भी तो तजरबेकार सीनियर स्टाफ मैंबर होने के नाते पेनी की नौकरी लगभग सुरक्षित है. बहनें ‘व्हाइट कौलर’ जौब्स में और वह ‘ब्लू कौलर’ श्रेणी में. लेकिन बहनों की ही तरह सफल और महत्त्वाकांक्षी. आर्टिस्ट, फोटोग्राफर, फूड स्टाइलिस्ट, अकाउंटेंट, इलैक्ट्रीशियन, प्राइज विनिंग बेकर/डैकोरेटर पेनी इन में से किसी भी क्षेत्र में आराम से पैर जमा सकती है. बड़ी बात नहीं, जो वह मार्क के साथ अपनी ‘क्राफ्ट बेकरी’ खोले या बढ़ती जाती ग्रोसरी स्टोर चेन में से एक स्टोर की फ्रैंचाइजी ही ले डाले.

यह भी खूब रही

दिल्ली में चुनाव होने वाले थे. सभी पार्टियों वाले कालोनी में अपनीअपनी पार्टी का प्रचार करने आ रहे थे. भाजपा वाले भी आए. मैं और मेरे पति बाहर बालकनी में खड़े थे. उन लोगों ने हम से भी भाजपा को वोट देने को कहा और अपना हाथ हिलाया. अनायास मेरे मुख से धीरे से निकला, ‘‘करते हैं प्रचार भाजपा का, दर्शाते हैं हाथ कांगे्रस का.’’ पास खड़े मेरे पतिदेव मुसकरा दिए और बोले, ‘‘यह भी खूब रही.’’

अरुणा रस्तोगी, मोतियाखान (न.दि.)

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एक बार मैं नई दिल्ली से भोपाल शताब्दी ऐक्सप्रैस ट्रेन से यात्रा कर रहा था. मेरी सीट एसी बोगी में विंडो की तरफ की थी. मैं जब अपनी सीट पर पहुंचा तो वहां अधेड़ उम्र के, सूटटाई पहने एक व्यक्ति पहले से बैठे थे.

मैं ने उन से कहा, ‘‘मैं अपनी सीट पर बैठ जाऊं,’’ उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं ने कोई अनावश्यक प्रश्न कर दिया हो. फिर उन्होंने मुझ से इशारे से कहा, ‘‘यहां बैठ जाओ.’’

मैं बिना विवाद और कुछ बोले अपने मन में समझौता कर उन के पास वाली सीट पर बैठ गया. ट्रेन रवाना हो गई थी. अकसर ऐसा देखा गया है कि रेलयात्री रेल में अपने झूठे अहंकार के साथ यात्रा करते हैं. विशेषकर एसी कोच में वे सामान्य नहीं रहते. वे अखबार पढ़ने लगे. मेरे से रहा नहीं गया. मैं ने आग्रह किया, ‘‘आप की सीट के ऊपर जो सामान रखा है वह आप ने ठीक से नहीं रखा है. जरा उसे संभाल कर रख लें, वह गिर सकता है.’’ उन्होंने मेरी ओर, और फिर सामान की ओर देखा और हाथ हिला दिया. मतलब था, सब ठीक है. गाड़ी ने जैसे ही स्पीड पकड़ी, सामान उन महाशय के सिर पर गिर गया. अब उन महाशय की शक्ल देखने लायक थी.

सरन बिहारी माथुर, दुर्गापुर (प.बं.)

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मेरे पति का फ्रैंड सर्किल बहुत बड़ा है, इसलिए हमें आएदिन खाने के निमंत्रण आते रहते हैं. न चाहते हुए कई जगह जाना पड़ता है और कई बार केवल शगुन देने की रस्म अदायगी के लिए ही जाना पड़ता है. हमारे अड़ोसीपड़ोसी कहते हैं कि शर्माजी, आप खाना खाने के लिए बहुत जाते हैं, क्या बात है हमारे यहां तो इतने निमंत्रण नहीं आते. मेरे पति ने खीझ कर कहा कि नहीं, मैं निमंत्रण में नहीं जाता. मेरे पास कई मैरिज गार्डन के ग्रीन कार्ड हैं. जब भी वहां कोई कार्यक्रम होता है, वहां से मेरे पास फोन आ जाता है. पड़ोसी इस बात पर हंसे बिन नहीं रह सके.          

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

स्वस्थ जिंदगी मस्त जिंदगी

स्वस्थ जिंदगी जीने के लिए लगभग हर व्यक्ति के लिए व्यायाम करना जरूरी है. ‘मेरी जिम जाने की चाहत है लेकिन क्या करूं, समय ही नहीं मिलता.’ यह बात आमतौर पर सुनने में आती है. लेकिन अपने शरीर की सुडौलता बरकरार रखने के साथ जिंदगीभर स्वस्थ रहने के लिए अपनी व्यस्त जीवनशैली से थोड़ा समय अपने लिए अवश्य निकालें.

आज महिला को कैरियर, घरगृहस्थी, प्रसव, प्रसूति, बच्चों को पढ़ाने के अलावा सामाजिक जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं. इन सब के लिए उस का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है और स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक खानपान के साथ व्यायाम यानी ऐक्सरसाइज करना जरूरी है.

हर पुरुष व महिला के स्वास्थ्य, जीवनपद्धति, काम, व्यवसाय, उम्र आदि चीजों को ध्यान में रख कर ऐक्सरसाइज की रूपरेखा तय करनी होती है. किसी एक को बताई गई ऐक्सरसाइज, दूसरे को भी सूट करेगी, ऐसा जरूरी नहीं है. रनिंग, वेट ट्रेनिंग, स्विमिंग, कोई खेल खेलने, डांस करने में से कोई भी प्रकार हमें जिंदगीभर के लिए स्वस्थ रख सकता है. व्यायाम करते वक्त ये चीजें ध्यान में रखनी चाहिए.

हृदय व फेफड़ों की क्षमता : हमारे स्नायु और पेशी की मांग के अनुसार पोषणमूल्य व प्राणवायु मुहैया करने का काम हृदय और फेफड़े करते हैं. जैसे दौड़ते वक्त आप के पांव तक खून पहुंचना चाहिए, प्राणवायु पूर्ति होनी चाहिए, स्नायु का काम बढ़ने से निर्माण हुए लैक्टिक एसिड की आपूर्ति भी होनी चाहिए.

स्नायु की ताकत : स्नायु या स्नायु के समूह के एक ही झटके से लगाया हुआ जोर यानी स्नायु की ताकत.

स्नायु की क्षमता : वेट ट्रेनिंग करते वक्त यह क्षमता बढ़ती है.

लचीलापन : जोड़ की ज्यादा से ज्यादा घूमने की क्षमता. बौडी को खिंचाव देने वाले व्यायाम में लचीलापन जरूरी होता है.

शरीर की संरचना : पूरे शरीर के वजन में वसा का वजन कितना है यह देखा जाता है, महिला में यह 25 प्रतिशत या उस से कम होना चाहिए और पुरुषों में वह 15-25 प्रतिशत से कम होना चाहिए.इन में से 4 चीजों में अगर आप महारत हासिल करते हैं तो शरीर की संरचना सुधरती है. इस से ताजगी महसूस होती है और शरीर की संतुलन क्षमता बढ़ने से आप का बाह्य रूप निखरता है व मन शांत रहता है.

व्यायाम के 5 तत्त्व

शरीर का खिंचाव बढ़ाना : सभी व्यायाम के तत्त्वों का यह प्रमुख तत्त्व है. व्यायाम करते वक्त हम जो शरीर को खिंचाव देते हैं वह हमारी गतिविधियों के खिंचाव से ज्यादा होना चाहिए और वह चढ़ते क्रम से बढ़ाना चाहिए.

मांग के अनुसार निर्माण करना : यह व्यायाम का बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है. शरीर व उस के अवयव हम जैसी मांग करें वैसे काम करने लगते हैं. उसी तरह व्यायाम के लिए भी शरीर को अनुकूल करना पड़ता है. जैसे, अगर वेट ट्रेनिंग करना है तो वार्म अप वेट टे्रनिंग से ही करना पड़ता है. सिर्फ उस की तीव्रता प्रमुख व्यायाम से कम रखनी पड़ती है. प्रमुख व्यायाम में जो स्नायु काम करने वाले हैं, पहले वही स्नायु व्यायाम के लिए तैयार करने हैं.

छीज भरना : शरीर जुड़ने के बाद का तत्त्व, अच्छी तरह व्यायाम होने के बाद शरीर की छीज भरी जानी चाहिए वरना शरीर सक्षम नहीं रहता है. जले हुए ऊष्मांक का इस्तेमाल होता नहीं. छीज भरने के लिए सही आहार, ज्यादा पानी, पूरी नींद की जरूरत होती है.

निरंतरता : व्यायाम में स्थायित्व रखना जरूरी है, वरना सब बेकार हो जाएगा. दूसरे तत्त्व से स्नायु को स्मरणशक्ति मिलती है. व्यायाम नियमित रूप से नहीं करेंगे तो व्यायाम के बारे में स्नायु भूल जाते हैं और सभी तत्त्वों पर इस का नकारात्मक असर पड़ता है.

व्यायाम में वैविध्य रखना : लगातार एक ही प्रकार के व्यायाम की शरीर को आदत हो जाती है. इस से उस का सकारात्मक परिणाम दिखना बंद हो जाता है. व्यायाम में वैविध्य रखना चाहिए. व्यायाम की रूपरेखा तैयार कर उस के अनुसार हफ्ते में 5 से 6 दिन लगातार व्यायाम करना चाहिए.

कौन सा व्यायाम करें

हर एक के शरीर की जरूरतें अलगअलग होती हैं. उस के अनुसार व्यायाम चुनना होता है. इस के लिए प्रशिक्षक की मदद लेनी चाहिए. व्यायाम का प्रकार, समय आदि चीजें प्रशिक्षकों से मिल कर तय करनी चाहिए.

व्यायाम का वर्गीकरण

साधन के बगैर करने वाले व्यायाम–चलना, दौड़ना आदि.

साधनों के साथ करने वाले जिम के व्यायाम–रस्सी कूद.

श्वसन क्षमता बढ़ाने के लिए बिना रुके 20-25 मिनट तक तैरना, दौड़ना, साइकिल चलाना, हौकी, फुटबौल खेलने जैसी क्रियाएं करनी चाहिए.

लचीलापन बढ़ाने के लिए व्यायाम से पहले की जाने वाली स्ट्रैचिंग करनी चाहिए.

ताकत बढ़ाने के लिए वेट ट्रेनिंग सर्वोत्तम तरीका है.

उपयुक्त टिप्स

व्यायाम कोई भी हो, उस के मूलभूत तत्त्वों का पालन अवश्य करना चाहिए.

कौन सा व्यायाम करना है, यह विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के अनुसार करना चाहिए.

व्यायाम वेदनादायक न हो कर आनंददायी होना चाहिए.

तालमेल बैठने वाला व्यायाम करें लेकिन नियमित रूप से करें.

हर दिन के व्यायाम का समय निश्चित करें और उसी समय का पालन करें.

व्यायाम से पहले कुछ हलका सा खाइए, जैसे कोई फल या ड्रायफ्रूट.

भोजन के 3-4 घंटे बाद व्यायाम करें.

व्यायाम के परिधान आकर्षकता के साथ सूती और आरामदायी होने चाहिए.

मौसम के अनुसार कपड़ों में बदलाव करें. ठंडी हवा में ऊपर से जैकेट पहनें.

व्यायाम करते वक्त पसीना पोंछने के लिए पास में नैपकिन रखें.

व्यायाम की शुरुआत करने के बाद शुरुआत में बदनदर्द होता है लेकिन बाद में फायदा होता है.

व्यायाम करते वक्त मन को तरोताजा रखिए, सकारात्मक सोच रखिए.

दौड़ते रहें

चलने का वेग निरंतरता से बढ़ाए रखने का प्रयास करें.

प्रशिक्षकों से पूछ कर उचित समय तय करें.

चलते वक्त श्वसन पर नियंत्रण रखें. दीर्घ श्वसन से हृदय को व्यायाम मिलता है.

चलते वक्त इरादतन सीधा चलें. कमर न झुकाइए.

यह व्यायाम बिना खर्चे का है लेकिन जूतों पर अच्छे पैसे खर्च करें. सही माप के जूतों का चुनाव करें.

सूती जुराबों का इस्तेमाल करें.

चलने के लिए सुबह के समय का चुनाव करें. इस समय हवा में धूलमिट्टी, धुआं आदि की मात्रा कम होती है. सुबह की सूर्यकिरणों से मन प्रसन्न होता है.

संभव हो तो अकेले घूमें. चलने पर और गति पर लक्ष्य केंद्रित करें.

दौड़ना एक परिपूर्ण व्यायाम

दौड़ने जैसा परिपूर्ण व्यायाम कोई और नहीं. किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति स्वयं की प्रकृति के अनुसार दौड़ सकते हैं. वजन कम करना, शारीरिक क्षमता बढ़ाना आदि दौड़ने के महत्त्वपूर्ण फायदे हैं. इस के सिवा और भी कई फायदे दौड़ने से शरीर को होते हैं.

निरोगी हृदय : दौड़ने से हृदय के स्नायुओं को फायदा होता है, उन की ताकत बढ़ती है.

वजन कम करना : वजन कम करने के लिए दौड़ना एक अच्छा व्यायाम है. एक साधारण व्यक्ति दौड़ते वक्त लगभग हजार कैलोरीज जलाता है.

हड्डी की क्षमता बढ़ाना : व्यायाम न करने से हड्डियां कमजोर होती हैं, जैसे औस्टियोपोरोसिस. नियमित रूप से दौड़ने से, व्यायाम करने से हड्डियों की क्षमता बढ़ती है.

श्वसन संस्था में सुधार : दौड़ने से श्वसन क्रिया में सुधार होता है. श्वसन को मदद करने वाले स्नायुओं की ताकत बढ़ती है. श्वसन की क्षमता बढ़ती है.

मानसिक तनाव से मुक्ति : नियमित दौड़ने से तनाव से दूर रहने में मदद होती है. सकारात्मक मानसिकता तैयार होती है. दिनभर फ्रैश रहने में मदद मिलती है. थकावट महसूस नहीं होती है.

अनिद्रा दूर होती है : दौड़ने से पूरे शरीर को व्यायाम मिलने से अच्छी नींद आती है.

प्रसन्न रहना : दौड़ने से शरीर में बदलाव होते हैं. इस से इंसान आनंदित रहता है.

बीमारी से दूर रहना : नियमित रूप से दौड़ने से स्ट्रोक, रक्तचाप, डायबिटीज जैसी बीमारियों से दूर रहना संभव होता है.

विज्ञान कोना

अब बैक्टीरिया रोकेगा प्रदूषण

दिसंबर 1984 में जहरीली गैस से लाखों जिंदगियां तबाह हो गईं. भोपाल की घटना को देख कर वहीं के एक छात्र ने बैक्टीरिया के माध्यम से हानिकारक गैसों को अलग करने की विधि खोज निकाली है. प्रदूषित हवा में से हानिकारक गैसों को अलग करने के लिए तमाम तरह की खोजें की गई हैं पर इस छात्र ने बैक्टीरिया ई-कोलाई के द्वारा पर्यावरण को वायु प्रदूषण से बचाने का उपाय निकाला है. यह वही बैक्टीरिया है जो आमतौर पर प्रदूषित भोजन के जरिए मनुष्य की आंत में पहुंच कर फूड पौइजनिंग का कारण बनता है. शहर के एक छात्र मयंक साहू ने ई-कोलाई बैक्टीरिया के जीन में बदलाव कर उस में ऐसी क्षमता विकसित करने में कामयाबी हासिल की है जो उद्योगों की चिमनियों और वाहनों से निकलने वाले धुएं में मौजूद हानिकारक गैसों को अवशोषित (एब्जौर्ब) कर सकेगा.

यह बैक्टीरिया इन तत्त्वों को अवशोषित कर इन्हें खाद में बदल देगा. यह खाद खेतों की मिट्टी को उर्वरक बनाने में सहायक होगी. इस मौडिफाइड बैक्टीरिया को उद्योगों की चिमनियों में एक डिवाइस के जरिए लगाया जाएगा जहां यह सल्फर डाईऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड को अवशोषित कर सके. डिवाइस में मौजूद बैक्टीरिया, सल्फर डाईऔक्साइड को सल्फर और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड को अमोनिया में बदल देते हैं. तय समय में काम करने के बाद ये बैक्टीरिया मर जाते हैं. इन मरे हुए बैक्टीरियों को डिवाइस से बाहर निकाल कर इन से सल्फर और नाइट्रोजन को अलग कर लिया जाता है. डिवाइस से निकली सल्फर और नाइट्रोजन मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक होती है.

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बायोनिक हैंड

किसी दुर्घटना में अपना हाथ खो चुके लोगों के लिए बायोनिक हैंड आशा की किरण बन कर आया है. दुनिया में पहली बार आस्ट्रिया में ऐसे 3 लोगों पर इस का सफल परीक्षण किया गया जो दुर्घटनाओं में अपना हाथ खो चुके थे. विज्ञान ने ऐसे बायोनिक हैंड के प्रत्यारोपण में सफलता  हासिल कर ली है जो दिमाग के जरिए नियंत्रित हो सकता है. आस्ट्रिया के ये लोग बायोनिक हैंड लगने के बाद आसानी से (हाथ से) सामान उठा रहे हैं. लिखना, अंडा पकड़ना जैसे कई काम अब आसानी से कर पा रहे हैं. पहले भी कई मरीजों को आर्टीफिशियल हाथ लगाए गए  हैं पर उन्होंने पूरी तरह से दिमाग के अधीन हो कर काम नहीं किया. इसी दोष को विएना मैडिकल यूनिवर्सिटी के डाक्टरों ने दूर कर दिया है. वे नए नर्व सिग्नल बनाने में सफल रहे हैं. उन्होंने शरीर के अन्य अंगों से ये सिग्नल चोटग्रस्त हाथ तक लाने का काम अच्छे से कर लिया. पुरानी प्रक्रिया में इन सिग्नल को रिकवर करना संभव नहीं हो पाता था. नए सिग्नल को फिर से उपयोगी बनाने का काम भी कम मुश्किल नहीं था. इस के लिए मरीजों को खातौर पर एक हाईब्रिड हैंड के साथ प्रशिक्षित किया गया जिस के बाद नर्व सिग्नल सक्रिय होने में एक हफ्ता लगता है. इस के लिए आर्टीफिशियल हाथ लगाने वाले मरीज के उस हाथ की क्षतिग्रस्त नसों को बदला गया. कृत्रिम नसें बनाई गईं जिन्हें ब्रेकियल प्लेक्सेस कहते हैं. इन नसों से जांघ की मांसपेशियों से बनाई नसों को कनैक्ट किया गया. यह संपूर्ण प्रकिया एक विद्युत वायरिंग के ही समान है जो शौर्ट या टूटफूट होने पर काम नहीं करती. अंत में कोहनी के नीचे के बेकार हिस्से को अलग कर बायोनिक आर्म लगाई जाती है. उस के नियंत्रण के लिए आर्म में लगे सेंसर्स को तंत्रिका नसों से जोड़ा गया ताकि दिमाग से हाथ नियंत्रित हो सके. बायोनिक सर्जरी के ऐक्सपर्ट प्रो. औस्कर एजमैन बताते हैं, ‘हम ने 3 मरीजों पर ये पूरी प्रक्रिया अपनाई और मौजूदा विधियों की तुलना में इस प्रक्रिया के परिणाम बेहतर.

रोडरेज सूने होते परिवार

5 अप्रैल की रात करीब 11.30 बजे दिल्ली के स्क्रैप व्यापारी शाहनवाज अपने दोनों बेटों के साथ घर लौट रहे थे. इस बात से बेपरवाह कि यह उन का आखिरी सफर साबित होगा. तुर्कमान गेट की भीड़ भरी संकरी सड़क पर उन की बाइक से एक कार में मामूली खरोंच आ गई. छोटी सी बात का बतंगड़ कुछ यों बना कि कार सवारों ने अपनी दबंगई और हैवानियत में शाहनवाज को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने के बाद ही दम लिया. शाहनवाज ने अपने दोनों बेटों के सामने दम तोड़ा और वजह भी क्या, रोडरेज. राह चलते गाड़ी में हलकीफुलकी खरोंच, टेकओवर या साइड न मिलने के बहाने शुरू हुई कहासुनी जब जानलेवा रुख अख्तियार कर लेती है तो इस तरह की वारदात रोडरेज श्रेणी में आती है. इस रोडरेज की बला ने दिल्ली के शाहनवाज के परिवार को तबाह कर दिया. यह कोई पहली घटना नहीं है. आएदिन गांवकूचों से ले कर शहर तक की सड़कें रोडरेज की खूनी कहानियां बयां करती हैं. कुछ और बानगी देखिए :

5 मार्च, 2015 को हरियाणा में हिसार के सिंघवा राघो निवासी कुलदीप गोस्वामी अपनी पत्नी संतोष के साथ मेले से लौट रहे थे. उन के ट्रैक्टर के पीछे आ रहे कार सवार युवक ने साइड न मिलने पर अपनी कार ट्रैक्टर के आगे अड़ा कर उन दोनों को गोली मार दी. कुलदीप की तो मौके पर ही मौत हो गई जबकि संतोष के पैर में गोली लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गई. इस रोडरेज की वारदात ने एक हंसतेखेलते परिवार में मातम का जहर भर दिया.

27 फरवरी, 2015 को दिल्ली के सुल्तानपुर डबास में 2 भाइयों की गोली मार कर हत्या कर दी गई. इस वारदात के पीछे रोडरेज कारण बना. हत्या का अरोपी वहां का स्थानीय बदमाश काले था जो एक दिन पहले ही तिहाड़ जेल से छूटा था. उस की गाड़ी दोनों भाइयों की गाड़ी से टकरातेटकराते बची लेकिन काले ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 तक भारत में होने वाली मौतों में सड़क दुर्घटना बड़ा कारण होगी. भारत में हर साल सड़क दुर्घटना में 3 फीसदी इजाफा हो रहा है. प्रतिवर्ष करीब 1 लाख 10 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं जबकि 6 लाख लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं. इन दुर्घटनाओं में ज्यादातर मामले रोडरेज के होते हैं.

रोडरेज के मुख्य कारण

रोडरेज का कोई एक कारण नहीं होता. इस के कई कारण होते हैं. मसलन, तेज गति से वाहन दौड़ाना, भीड़ वाले इलाकों में ओवरटेक करना, कभी दाएं तो कभी बाएं से ओवरटेक करना, बारबार हौर्न बजाना, लाइट फ्लैश करना, गाली या अपशब्दों का प्रयोग करना, हाथ या चेहरे की भावभंगिमा द्वारा बदतमीजी करना, पीछे से या साइड से दूसरे वाहन से टकराते हुए ओवरटेक करना या किसी व्यक्ति से ही टकरा जाना आदि कारणों से यह समस्या दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है. लाड़लाड़ में मातापिता उन्हें उपहार के तौर पर या फिर उन की जिद करने पर बाइक, कार खरीद कर दे देते हैं. नाबालिग बच्चे जब बाइक पर सवार होते हैं तो उन्हें दुनिया अपने पैरों तले नजर आती है. अकसर हवा से बातें करते ऐसे बाइक सवार जान हथेली पर रख कर सवारी करते हैं. ऐसे में किसी दूसरे वाहन से भिड़ंत हो जाने पर ये जोशीले नौजवान हाथापाई पर उतर आते हैं. नतीजा कोर्टकचहरी, पुलिस थाना और कई बार खूनखराबे तक की नौबत आ जाती है. सो, मातापिता को चाहिए कि बच्चों की नाजायज जिद न मानें और जब तक कि वे बालिग न हो जाएं, उन्हें बाइक या कार चलाने की अनुमति न दें.

कैसे हो नियंत्रित

किसी के कहे हुए शब्दों पर पलटवार न करें और स्वयं को शांत रखें. अगर आप को महसूस हो कि आप से गलती हो गई है तो तत्काल क्षमा मांग लें. साथ ही नुकसान की भरपाई कर दें. इस के अलावा अकसर सड़कों पर देखने को मिलता है कि अपनीअपनी गाडि़यों से लोग बाहर निकल कर लड़ने लग जाते हैं और बात बढ़ जाती है. इसलिए जब ऐसी नौबत आए तो लड़ने के लिए कभी अपनी गाड़ी से बाहर न निकलें. टर्निंग सिग्नल अवश्य दें पर अनावश्यक हौर्न न बजाएं. ड्राइविंग करते वक्त अपने आगे वाले वाहन से हमेशा दूरी बना कर चलें. ड्राइविंग के समय कंपीटिशन न करें. अगर आप को कहीं पर जाने की जल्दी हो तो कोशिश करें कि घर से थोड़ा जल्दी निकलें. हमेशा नियत स्पीड से ही गाड़ी चलाएं. कोई ओवरटेक करने की जिद कर रहा हो तो उसे साइड दे दें ताकि क्रोध या तनाव का कारण ही न बने. वाहन चलाते समय अगर आप को कहीं खतरा महसूस हो रहा हो तो आप शांत हो कर चलते रहें और जहां भी पुलिस नजर आए, गाड़ी को साइड लगा कर उसे इस की जानकारी दें. स्वयं को सड़क का योद्धा बनने से रोकें. इस के लिए आप स्वयं से शांत रहने का वादा करें और उस पर अमल करें.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति छोटीछोटी बातों को तूल देना, झगड़ाफसाद व हत्या का कारण बन जाता है जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है. अमेरिकन थैरेपिस्ट ने 1997 में रोडरेज का कारण, मैडिकल डिसऔर्डर बताया लेकिन लोगों ने इस बात को हवा नहीं दी क्योंकि अपराधी तत्त्व अपना बचाव इस मैडिकल टर्म के तहत करने लगेंगे.

मनोवैज्ञानिक डा. अचल भगत के अनुसार, गाड़ी पावर का प्रतीक है और जब कोई एक चालक दूसरे चालक से बड़ा बनने की कोशिश करता है तब झगड़े की स्थिति बन जाती है.

दूसरी ओर मनोवैज्ञानिक डा. जितेंद्र नागपाल का मानना है कि आजकल घर और दफ्तर का तनाव हमेशा दिमाग में रहता है और जरा सा उकसाने पर ही क्षणिक पागलपन का दौरा आ जाता है. सही माने में सड़कें, ड्राइविंग करते समय भड़ास निकालने का स्थान बन रही हैं. तभी तो ड्राइवरों द्वारा अपशब्द सुननासुनाना आम बात हो रही है. स्वयं को शांत रखना बहुत जरूरी है. ऐसा करने से किसी की छोटी सी क्रिया पर क्रोध नहीं आता, साथ ही नकारात्मक व्यवहार में न उलझने की आत्मशक्ति बनती है. रोडरेज हर देश में एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है. काफी देश इस समस्या का हल ढूंढ़ने में लगे हैं. आवश्यकता है कि इस दिशा में स्पष्ट कानून बनें और उन में कठोर सजा का प्रावधान हो, साथ ही, उन कानूनों का पूरी मुस्तैदी के साथ पालन भी किया जाए व कराया जाए. जितनी रोडरेज बढ़ रही है उतनी ही मौडर्न सोसाइटी की सिविक सैंस घट रही है. यह चिंता का विषय है. सड़कों की खस्ता हालत, बेहिसाब बढ़ता ट्रैफिक, लोगों में बढ़ता तनाव आदि सब एकसाथ मिल कर रोडरेज को बढ़ावा दे रहे हैं. यों तो इंडियन पीनल कोड की धाराओं– 279, 337, 338 में लापरवाही से ड्राइविंग द्वारा जो नुकसान होता है उस की भरपाई के लिए कंपनसेशन का प्रावधान है परंतु इन धाराओं का इस्तेमाल कम ही हो पाता है.

जागरूकता जरूरी

रोडरेज को कम करने के लिए ड्राइविंग एजुकेशन पर जोर देना चाहिए. इस के लिए जगहजगह पोस्टर लगा कर इस के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है. रोडरेज के परिणामों के बारे में भी बताना चाहिए. ड्राइवरों को शिक्षा देनी चाहिए कि उन का व्यवहार कैसा हो और दूसरे चालकों से किस तरह पेश आया जाए आदि. हर वाहन चालक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह ट्रैफिक कानून का पालन करे. इस के लिए रोड ट्रांसपोर्ट अथौरिटी, ट्रैफिक पुलिस, हाईवे अथौरिटी आदि को मिल कर अपनेअपने क्षेत्र में सक्रिय होना होगा, जैसे चौराहों पर वीडियो कैमरा लगाना, सादी ड्रैस में ट्रैफिक पुलिस का घूमना तथा हाईवे पर पैट्रोलिंग करना आदि.? कानून तोड़ने वालों पर ज्यादा से ज्यादा जुर्माना लगाया जाना चाहिए.

कुछ आँखों देखि कुछ कानो सुनी

एडवांस बुकिंग

जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझते हुए भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी ने पद्मविभूषण सम्मान ले तो लिया पर ऐसे सम्मान देने की प्रक्रिया पर एतराज जताने से खुद को रोक नहीं पाए और कुछ तीखी पर सलीके की बातें कह ही बैठे. बकौल आडवाणी, ऐसे सम्मान वक्त रहते चेतन अवस्था में दिए जाने चाहिए. बात पते की नहीं बल्कि पतों की है कि कम से कम सम्मानित विभूति को यह मालूम तो हो कि उसे खिताब से क्यों नवाजा जा रहा है. आडवाणी का स्पष्ट इशारा अपने साथी और भूतपूर्व राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ भी था जिन्हें भारतरत्न देने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को खुद उन के घर जाना पड़ा था. इस छोटी बात का एक बड़ा मतलब यह भी था कि अगर उन्हें भी भारतरत्न देने का मन उन की ही सरकार बना रही हो तो 2019 के पहले दे दे.

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मुल्ला नसीरुद्दीन

 

यह बात महज कहनेसुनने की यानी किताबी है कि सच्चे कलाकार का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि वह तो कला को ही धर्म मान लेता है. ऐसा होता तो कलात्मक और व्यावसायिक अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को आम मुसलमान की तरह यह नहीं कहना पड़ता कि उन के देश यानी भारत में पाकिस्तान के प्रति नफरत बढ़ रही है और इस बाबत लोगों की बाकायदा ब्रेनवाशिंग की जाती है. पाकिस्तान में इंटरव्यू देते वक्त कई बार अच्छेअच्छे, सधे, समझदार भी लड़खड़ा जाते हैं तो नसीर का क्या दोष. वे तो बगैर नाम लिए आरएसएस को कोस रहे थे. इस बयान पर ज्यादा बवाल नहीं मचा यानी वह वायरल नहीं हुआ तो यह लोगों की समझदारी और नसीर के अलोकप्रिय होने का संकेत है और साथ ही नसीहत भी है कि धर्म से ताल्लुक रखती बातों पर न बोलें तो भी काम चल ही जाता है.

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पंच परमेश्वर

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की सालों पहले लिखी कहानी ‘पंच परमेश्वर’ आज भी चाव से पढ़ी जाने के बाद बतौर मिसाल पेश की जाती है कि इंसाफ हो तो ऐसा जो कोई धर्म, जाति या रिश्तेदारी नहीं देखता. आखिरकार मुंसिफ की कुरसी ही ऐसी होती है. पर अब इन कुरसियों का स्वभाव बदल रहा है. बात इतनी सी है कि बीती 4 अप्रैल को माननीय न्यायाधीशों के सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात्रिभोज का आयोजन किया जिस में ईसाई समुदाय के जस्टिस कुरियन जोसफ ने शामिल होने से साफ इनकार करते हुए वजह भी बता दी कि चूंकि यह कौन्फ्रैंस ईसाइयों के एक प्रमुख त्योहार के दिन रखी गई है इसलिए वे इस में शामिल नहीं होंगे. उन के लिए पाम संडे, गुड फ्राइडे और ईस्टर जैसे त्योहार अहम हैं. अब यह फैसला कौन करेगा कि यह धार्मिक पूर्वाग्रह और संकीर्णता किस की थी, नरेंद्र मोदी की या फिर जस्टिस कुरियन की या फिर दोनों की?

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अब तक 47

तबादला किसी भी सरकारी मुलाजिम की जिंदगी में बेहद तकलीफदेह घटना, जिसे हादसा कहना बेहतर होगा, होती है. आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के साथ 22 साल की नौकरी में ऐसा 47 बार हुआ. वजह, उन की ईमानदारी है जो आजकल दुर्लभ हो चली है.सोनिया गांधी के दामाद रौबर्ट वाड्रा और डीएलएफ कंपनी के जमीन सौदे का खुलासा करने वाले तबादलावीर अफसर को बजाय इनाम के सजा क्यों दी गई, इस पर शक और शोध की खासी गुंजाइश है. खेमका के घावों पर मलहम लगाते हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल बिज ने ताजा तबादले पर मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से बात करने की बात जरूर कही है लेकिन इस से खेमका की ईमानदारी, जो सिस्टम के लिए समस्या बनती जा रही है, कभी दूर होगी, लगता नहीं.      

बंगाल बना ‘रेपलैंड’?

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रानाघाट गांगनपुर में एक ईसाई मिशनरी के कौन्वैंट औफ जीसस ऐंड मैरी स्कूल में रात 2 बजे कुछ लोग घुस जाते हैं. सुरक्षाकर्मियों को मारपीट कर बांध देते हैं. स्कूल परिसर के अंदर जा कर स्कूल के एक पदाधिकारी को कमरे में बंद कर देते हैं. इस के बाद अकाउंट कक्ष की खिड़की की ग्रिल और कांच तोड़ कर 12 लाख रुपए लूटते हैं. इस बीच उठापटक की आवाज सुन कर 74 साल की बुजुर्ग नन मदर सुपीरियर की नींद खुल जाती है. भाग रहे असामाजिक तत्त्वों को वे रोकने की कोशिश करती हैं. असामाजिक तत्त्वों ने मदर को अन्य 4 लोगों के साथ एक कमरे में बंद कर दिया. इस के बाद एक के बाद एक ने उन के साथ दुष्कर्म किया और साढ़े 4 बजे सुबह स्कूल के मेन गेट पर बाहर से ताला लगा कर वे सब निकल भागे.

सीसीटीवी फुटेज में लगभग सभी अभियुक्त की तसवीर मिल जाने के बाद भी जांच आगे नहीं बढ़ती है तो ऐसे में पुलिस की जांच पर सवाल उठना लाजिमी है. रानाघाट कौन्वैंट स्कूल के मामले में एक बार फिर से कामदुनी और पार्क स्ट्रीट की परछाईं नजर आ रही है. गैंगरेप के तमाम मामलों में एक महिला मुख्यमंत्री का असंवेदनशील रवैया हर बार उभर कर सामने आया है. इस मामले को ले कर राज्य की राजनीति भी गरमा गई है. वैसे भारतीय राजनीति का दस्तूर है, हर घटना घटी नहीं कि राजनीतिक पार्टियां अपनीअपनी रोटी सेंकने में जुट जाती हैं. कोलकाता नगर निगम समेत विभिन्न नगरपालिकाओं के चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो गई हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, कांगे्रस और भारतीय जनता पार्टी के नेता रानाघाट पहुंच गए.

केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद देशभर में ईसाई मिशनरियों पर हमले की खबरें लगातार आ रही हैं. ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल के शहरी विकास मंत्री फिरहद हकीम ने इस घटना के लिए भाजपा पर निशाना साधा. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस घटना के पीछे ‘धर्मांधता की परछाईं’ नजर आ रही है.ममता बनर्जी का काफिला जब रानाघाट पहुंचा तब शांति मार्च कर रहे स्कूल की सिस्टर, पदाधिकारी, छात्रछात्राओं और अभिभावकों ने अभियुक्तों को कड़ी से कड़ी सजा देने की फरियाद के लिए मुख्यमंत्री का रास्ता रोका तो वे उखड़ गईं. सामने की पंक्ति में खड़े 9वीं के छात्र पर यह कहते हुए बरस पड़ीं, ‘एक चांटा मार कर तुम्हारा गाल फाड़ दूंगी. असभ्य कहीं के.’

इसी तरह पहले 2013 में हुई कामदुनी की घटना के बाद भी स्थानीय महिलाओं के विरोधप्रदर्शन को ममता बनर्जी ने माओवादी कार्यकलाप से जोड़ कर देखा था. पार्क स्ट्रीट गैंगरेप के बाद उत्तर 24 परगना में कामदुनी से 2013 में परीक्षा दे कर लौट रही लड़की के साथ कुछ लड़कों ने बलात्कार किया और फिर उस की हत्या कर दी. तब भी ममता गंभीर नहीं दिखीं.

गैरजिम्मेदाराना रवैया

बलात्कार के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान बंगाल की जनता को कभी रास नहीं आए हैं. बलात्कार की कई घटनाओं के बाद ममता ने एक के बाद एक जिस तरह के बयान दिए थे उन से उन की साख गिरी है. पार्क स्ट्रीट में चलती गाड़ी में महिला के साथ गैंगरेप की घटना को ममता ने साजानो घटना यानी काल्पनिक घटना कह कर उस की गंभीरता को कम कर दिया था. देर रात को महिला के नाइट क्लब जाने पर भी उन्होंने सवाल उठा दिया था. बात यहीं तक सीमित रहती तो गनीमत थी लेकिन नहीं, ममता तो ममता हैं. उन्होंने ‘रेट पर विवाद’ के कारण बलात्कार किए जाने की बात कह कर पीडि़त महिला का चरित्रहनन करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी. मामले की जांच कर रही कोलकाता पुलिस की अपराध शाखा की पहली महिला अधिकारी दमयंती सेन द्वारा मीडिया में बलात्कार की घटना

की पुष्टि करने के बाद उन का उत्तर बंगाल में स्थानांतरण कर दिया गया. एक महिला मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी से जो उम्मीद की जा सकती है उस पर पानी ही फिरा है. राज्य का गृहविभाग मुख्यमंत्री के पास ही है. राज्य की पुलिस गृहमंत्रालय के अधीन ही है. राज्य में एक के बाद एक बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं और ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया यह है कि एकाध घटना घट ही जाती है. राज्य मुख्य सचिव का रवैया भी छोटीमोटी घटना बताने जैसा ही रहा. साफ है ऐसे मामले में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रशासन का जो रवैया रहा है उस के कारण, जाहिर है, बलात्कारियों का मनोबल बढ़ा है.

पार्क स्ट्रीट की जांच में महिला पुलिस अधिकारी के स्थानांतरण से सीख ले कर राज्य पुलिस का एक गुट बलात्कार की घटना को दबाने में जुट जाता है एफआईआर ही दर्ज न हो, पहले इस की पूरी कोशिश की जाती है. पुलिस प्रशासन बलात्कार की घटना की शिकायत दर्ज करने में आनाकानी करता है. किसी तरह से अगर शिकायत दर्ज हो भी जाए तो वह जांच में घपला और लेटलतीफी कर देता है. हद तो यह है कि कुछ मामले में पुलिस पीडि़त महिला के परिजनों से उस के सद्चरित्र होने का प्रमाणपत्र तक मांगती है.

आंकड़ों की बाजीगरी

बगाल में पुलिस प्रशासन बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा कम कर के दिखाने की कोशिश करता है ताकि पुलिस प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल न खड़े हों. सचिवालय के सूत्रों का यहां तक कहना है कि राज्य में बलात्कार की घटनाओं के तथ्य को दबाने के लिए भी तमाम जुगत बिठाए जाते हैं. दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप की घटना के बाद बलात्कार के मामले में जहां पूरा देश प्रशासनिक नीति के तहत शिकायतकर्ता को सब से अधिक महत्त्व दे कर तुरंत मैडिकल टैस्ट करवाने, आरोपियों को गिरफ्तार करने और जल्द से जल्द चार्जशीट पेश कर कड़ी सजा दिलाने की वकालत करता है, वहीं बंगाल का प्रशासन उलटे रास्ते पर चलने की ठाने बैठा है. रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होगी तो आंकड़े कैसे तैयार होंगे.

चर्चित गैंगरेप कांड मौजूदा स्थिति

ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद राज्य में बलात्कार की जितनी भी घटनाएं घटीं उन में से एक भी मामला अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. कई मामलों में तो अभियुक्त पुलिस के हत्थे तक नहीं चढ़े हैं.

पार्क स्ट्रीट गैंगरेप कांड : 5 फरवरी, 2012 को पार्क स्ट्रीट में गैंगरेप की घटना के मूल अभियुक्त कादर खान की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है. मामले में गवाहों के बयान लिए जा चुके हैं. इस साल 23 मार्च को पीडि़त ईसाई महिला का देहांत हो गया.

कटुआ गैंगरेप कांड : 25 फरवरी, 2012 को बर्दवान के कटुआ गैंगरेप कांड में छठी कक्षा में पढ़ने वाली लड़की का 3 लड़कों ने सामूहिक बलात्कार किया. बलात्कारियों की धमकियों और अपमान से नजात पाने के लिए लड़की ने आग लगा कर आत्महत्या कर ली. एक अभियुक्त अभी भी फरार है. मामले में गवाही जारी है.

कामदुनी गैंगरेप कांड : 7 जून, 2013 कामदुनी गैंगरेप कांड के सभी दोषियों, जिन के तृणमूल कांगे्रस से जुड़े होने का आरोप है, की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. मामला कोलकाता हाईकोर्ट में विचाराधीन है. इस कांड के विरोध में कभी पूरा का पूरा गांव खड़ा हुआ था लेकिन लंबे समय से लगातार तृणमूल कांगे्रस के नेताओंकार्यकर्ताओं के दबाव में गांव वालों ने अपनेआप को अलग कर लिया है. पीडि़त का परिवार कामदुनी छोड़ कर जा चुका है.

मध्यमग्राम गैंगरेप कांड : 13 दिसंबर, 2013 मध्यमग्राम में पढ़ाई के लिए बिहार से यहां आ कर बसे परिवार की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. पुलिस में इस की शिकायत करने पर लगातार धमकाया जाता रहा. डर कर महल्ला बदल लेने के बाद भी लड़की को दोबारा अगवा कर फिर से सामूहिक बलात्कार किया और फिर जला कर मार डाला गया. यह मामला भी कोलकाता हाईकोर्ट में विचाराधीन है.

कांथी गैंगरेप कांड : 17 अगस्त, 2014 को पूर्व मेदिनीपुर में एक माकपा नेता की पत्नी के साथ हुए गैंगरेप के बाद हत्या के 12 अभियुक्तों को पुलिस अभी तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है. आरोप है कि सभी अभियुक्त तृणमूल कांगे्रस के नेताकार्यकर्ता हैं. पुलिस ने इन सभी को फरार घोषित कर दिया है. हालांकि चार्जशीट दाखिल की जा चुकी हैं, पर चार्जशीट में गैंगरेप और हत्या के आरोपों को शामिल नहीं किया गया है.

धुपगुड़ी बलात्कार कांड : 2 सितंबर, 2014 को जलपाईगुड़ी के प्रखंड धुपगुड़ी में 10वीं कक्षा की लड़की का पहले अपहरण, फिर बलात्कार और उस के बाद उस की हत्या करने की घटना घटी. पावर टीलर का पैसा न चुकाने को ले कर तृणमूल की महिला पार्षद के नेतृत्व में खाप पंचायत बैठी, जिस में लड़की के पिता को पीटे जाने का फरमान जारी हुआ. लड़की ने इस का विरोध किया. वहीं घटनास्थल से लड़की को उठा लिया गया. अगली सुबह रेलवे ट्रैक पर लड़की की निर्वस्त्र लाश मिली. मामले में 13 अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई है लेकिन मामले की सुनवाई अभी तक नहीं हुई है.

भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत के लिए पोर्टल

विज्ञापन आज विपणन का अहम हिस्सा बन गया है. बाजार की जरूरत के उत्पाद और फिर उन के लिए बाजार बनाने का काम अब विज्ञापनों के हवाले हो गया है. विज्ञापनों द्वारा उत्पादों का बाजार तैयार किया जा रहा है. बाजार की इस स्थिति को देखते हुए कंपनियों ने उत्पाद से ज्यादा ध्यान विज्ञापनों पर केंद्रित कर दिया है. कई बार लगता है कि उत्पाद में वह गुणवत्ता बिलकुल नहीं है जिस का गुणगान उस के विज्ञापन में किया गया है. उपभोक्ता विज्ञापन के आधार पर वस्तुएं खरीद रहा है, इसलिए उद्योगों के साथ ही विज्ञापन भी बड़े उद्योग के रूप में पनपा है. उन्हीं विज्ञापनों के सहारे हमें अखबार सस्ते मिल रहे हैं और कम पैसे में ज्यादा चैनल देखने को मिल रहे हैं.

इसी क्रम में जो अखबार ज्यादा बिकता है अथवा जो न्यूज चैनल ज्यादा देखा जाता है, उस के लिए विज्ञापन दर भी ज्यादा होती है. कंपनियां एक ही विज्ञापन के सहारे ज्यादा उपभोक्ताओं तक पहुंचना चाहती हैं. इस दौड़ में कई कंपनियां भ्रामक विज्ञापन भी बना रही हैं. अपने उत्पाद को विज्ञापन में ज्यादा गुणवत्ता के साथ पेश किया जा रहा है, जिस से उपभोक्ता लुटता है. उपभोक्ता के साथ धोखा नहीं हो, इस के लिए सरकार ने हाल ही में भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत के लिए एक पोर्टल शुरू किया है. पोर्टल पर वित्तीय सेवाएं, आवास, कृषि उत्पाद आदि की शिकायत दर्ज की जा सकती है. उत्पादों की पैकेजिंग पर भी यदि गलत सूचना दी गई है तो इस की भी शिकायत दर्ज की जा सकती है. इस में भ्रामक विज्ञापनों पर नजर रखने वाली संस्था एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल औफ इंडिया को भी भागीदार बनाया गया है. सरकार पहल तो अच्छी करती है लेकिन उस की पहल ज्यादा दिन तक प्रभावी नहीं रहती है. यह पोर्टल किस दिन दम तोड़ दे, इस का पता किसी को नहीं है. उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पोर्टल जनसेवा के लिए उपयोगी साबित होगा.

 

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