त्योहार नहीं तमाशा
विश्व कप की खुमारी अब खत्म हो चुकी है और इन दिनों इंडियन प्रीमियर लीग की खुमारी क्रिकेट प्रेमियों में सिर चढ़ कर बोल रही है. खिलाडि़यों के किस्से और मोटी रकम के किस्सेकहानियां अखबारों में खूब छप रहे हैं. चैनलों में इसे त्योहार कह कर प्रचारित किया जा रहा है. कोलकाता में इस का भव्य उद्घाटन हुआ जिस में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शिरकत की. कई नामीगिरामी हस्तियां भी स्टेडियम में क्रिकेट का खूब मजा ले रही हैं. बड़ेबड़े कौर्पोरेट घराने और उद्योगपति इस से सीधे जुड़े हुए हैं और करोड़ों रुपयों में खिलाडि़यों को खरीद कर उन्हें अपना गुलाम बना चुके हैं. इस में कई विदेशी खिलाड़ी भी हैं. यह खेल न रह कर दौलत और शोहरत का तमाशा बन गया है. इस चकाचौंध में खिलाडि़यों के वारेन्यारे हो रहे हैं क्योंकि धनकुबेरों ने उन्हें इतना धन दे दिया है कि वे मालामाल हो चुके हैं और मशीनों की तरह क्रिकेट खेल रहे हैं.
चिंता का विषय यह है कि इस का असर खिलाडि़यों के खेल पर पड़ रहा है. आईपीएल में 20 ओवरों के मैच होते हैं. इस में नए खिलाडि़यों को एक मंच मिल जाता है पर पुराने खिलाडि़यों के लिए अकूत दौलत कमाने का यह अच्छा जरिया है. यह चौकेछक्कों का खेल है जो सीरियस क्रिकेट को बरबाद कर रहा है. खिलाड़ी टैस्ट मैचों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं और धीरेधीरे हम क्लासिकल क्रिकेट से दूर होते जा रहे हैं. नए खिलाडि़यों में लगातार 5 दिन खेलने का स्टैमिना देखने को नहीं मिल रहा है.
एक बार गौतम गंभीर ने भी कहा था कि नए खिलाडि़यों में तकनीक का अभाव है. लेकिन खेल संघों के आकाओं को इस से कोई लेनादेना नहीं. शायद यही वजह है कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट में हमें अच्छे खिलाड़ी नहीं मिल पा रहे हैं. इस ओर न तो बीसीसीआई के अधिकारी ध्यान दे रहे हैं और न ही खेल संघों के अधिकारी. बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया और आईपीएल-8 के मुखिया राजीव शुक्ला को इस ओर ध्यान देना होगा नहीं तो आईपीएल की चकाचौंध में क्रिकेट तो बरबाद होगा ही, साथ ही खिलाड़ी भी कहीं के नहीं रहेंगे. उन्हें इस बात की परवा नहीं कि खेल बरबाद हो रहा है. खेल को कारोबार बना देने वालों को तो पैसों से मतलब है. धन कुबेरों के लिए तो यह विलासिता का साधन है और उन्होंने खेल को त्योहार नहीं बल्कि तमाशा बना कर रख दिया है.
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हौकी कोच की चिंता
मलयेशिया के इपोह में कांस्य पदक के लिए खेले गए मुकाबले में भारत को दक्षिण कोरिया को पेनल्टी के आधार पर हराने के साथ 24वें सुल्तान अजलान शाह कप टूर्नामैंट में कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा. भारतीय गोलकीपर पी आर श्रीजेश मैच के हीरो रहे क्योंकि उन्होंने शूटआउट में 3 गोल बचाए. वर्तमान में नए कोच पौल वान ऐस भी खिलाडि़यों में जोश भरने में सफल रहे हैं. उन के कोच बनने के बाद से भारतीय टीम का यह पहला टूर्नामैंट था. जीत से कोच ऐस बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं क्योंकि वे ऐसा मानते हैं कि कमजोर पिछली पंक्ति भारतीय पुरुष हौकी टीम की पुरानी समस्या रही है और कमजोर रक्षापंक्ति भी बड़ी चिंता रही है. इस टूर्नामैंट में कम रैंकिंग वाली कनाडा टीम को हराने में भारत को काफी मशक्कत करनी पड़ी. जीत के बाद उन्होंने कहा, ‘‘मैं टीम की रक्षापंक्ति को ले कर चिंतित हूं, और मैं भारत आने से पहले ही इसे ले कर चिंतित था. हमारा डिफैंस बहुत खराब है.’’
भारतीय हौकी में यह कोई नई बात नहीं है. ऐसा अकसर देखने को मिला है कि वह अपने आखिरी मिनटों में मैच को गंवा बैठती है. भारत के खिलाड़ी पूरा मैच अच्छा खेलते हैं लेकिन अंत में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिन से मैच उन के हाथों से फिसल जाता है. कोच पौल वान ऐस की चिंता बिलकुल जायज है. लेकिन उन के सामने बड़ी चुनौती यह भी है कि भारत हौकी में अपनी पुरानी लय में वापस लौटे और विपक्षी टीम को मात दे कर पूरे विश्व में भारत का परचम लहराए.
मैं विवाहित महिला हूं. मेरे व पति की उम्र में 9 साल का अंतर है. समस्या यह है कि पति मेरी फीलिंग्स को नहीं समझते. मैं अपने पति में ही अपना दोस्त, अपना बौयफ्रैंड देखना चाहती हूं, लेकिन वे मुझे सिर्फ अपने बच्चों की मां समझते हैं. मैं नहीं चाहती कि मेरी जिंदगी में कोई और आए. मैं अपने पति के साथ ही खुशहाल जिंदगी बिताना चाहती हूं लेकिन वे मेरी फीलिंग्स को इग्नोर कर के मुझे अकेला छोड़ देते हैं. मैं क्या करूं, सलाह दीजिए.
वैवाहिक संबंधों में उम्र का अंतर अधिक माने नहीं रखता अगर पतिपत्नी के बीच आपसी अंडरस्टैंडिंग व प्यार हो. ऐसे अनेक वैवाहिक जोड़े हैं जो उम्र के अंतर के बावजूद खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. आप अपने पति को अपना दोस्त, बौयफ्रैंड बनाना चाहती हैं तो पहले खुद उन की गर्लफ्रैंड बनें, वैसा व्यवहार करें. क्योंकि अधिकांश महिलाएं पति से तो प्रेमी बनने की अपेक्षा करती हैं लेकिन खुद विवाह व बच्चे हो जाने के बाद अपनी फिटनैस व लुक्स को अनदेखा करती हैं. वे पति की बातों को इग्नोर करती हैं. बातबात पर बहस करने लग जाती हैं. छोटीछोटी बातें बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती. धीरेधीरे रिश्तों में भी खटास आने लगती है. इसलिए ऐसा न करें. पति की नजदीकी पाने के लिए आप उन्हें आकर्षित करने के तरीके अपनाएं व उन्हें एहसास कराएं कि उन के व आप के बीच उम्र का अंतर कोई माने नहीं रखता व वे ही आप के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और पूरी तरह स्वीकार्य हैं.
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मैं विवाहित महिला हूं. समस्या यह है कि मेरा वजन बहुत कम है, जबकि अधिकांश महिलाओं का विवाह के बाद वजन बढ़ जाता है. कृपया कुछ ऐसे तरीके बताएं जिन से मैं अपना वजन बढ़ा सकूं और अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकूं.
जिस तरह से वजन घटाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है ठीक उसी तरह वजन बढ़ाने के लिए भी कुछ उपाय करने पड़ते हैं. वजन बढ़ाने के लिए आप स्वस्थ व सही तरीका अपनाएं. कई लोग वजन बढ़ाने के लिए सप्लीमैंट्स लेना शुरू कर देते हैं लेकिन इस के फायदे कम नुकसान अधिक होते हैं. वजन बढ़ाने के लिए अपनी खानपान की आदतों में बदलाव करें. आधाअधूरा भोजन न करें. स्वस्थ व संतुलित भोजन के समय में अधिक अंतराल न रखें. भोजन के अनुसार श्रम करें. डाइट में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट जैसे दूध, बादाम, मूंगफली, ब्राउन राइस, फल, सब्जियां, केले का मिल्क शेक लें. डाइट वह लें जिस में लो फैट व हाईकैलोरी हो. साथ ही, व्यायाम भी करें. इस से हार्मोंस की गतिविधि बढ़ती है व भूख लगती है जिस से स्वस्थ तरीके से वजन बढ़ाने में मदद मिलती है. यह सर्वथा सत्य है कि किसी भी चीज की अति खराब होती है. इसलिए डाइट लेते समय इस बात को ध्यान में रखें.
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मैं अविवाहित युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. वह बहुत जल्दी ही मुझ से विवाह करना चाहता है. पर मेरी समस्या यह है कि न जाने उस को क्यों लगता है कि मैं उस की मां की सेवा नहीं कर पाऊंगी, साथ ही वह मुझ से छोटीछोटी बातों पर झगड़ता भी है. मुझे सलाह दीजिए कि मैं उस लड़के से विवाह करूं या नहीं?
सब से पहले यह जानने की कोशिश कीजिए कि आप के बौयफ्रैंड को ऐसा क्यों लगता है कि आप उस की मां की सेवा नहीं कर पाएंगी. क्या आप के व्यवहार में उसे ऐसा कुछ लगा? अगर ऐसा है तो अपने व्यवहार में बदलाव लाएं. उसे प्यार से समझाने का प्रयास करें कि ऐसी बात नहीं है. मैं भी आप की मां का उतना ही ध्यान रखूंगी जितना कि आप रखते हैं. उन्हें किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने दूंगी. दूसरा यह जानने की कोशिश करें कि उस के आप से झगड़ने के कारण क्या हैं? उस के आप से झगड़ने के पीछे उस की मंशा उस का प्यार व देखभाल है, तो ठीक है. लेकिन अगर झगड़ने का कारण आप पर हावी होना है, आप में गलतियां ढूंढ़ना है तो पहले उस लड़के को अच्छी तरह जानेंपरखें, फिर कोई निर्णय लें.
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मैं 23 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. विवाह को 3 वर्ष हो चुके हैं लेकिन अभी तक मैं पिता बनने का सुख प्राप्त नहीं कर पाया हूं. विवाह से पूर्व मैं हस्तमैथुन करता था. क्या यह मेरे पिता न बन पाने का कारण हो सकता है? शंका का समाधान कीजिए व राह सुझाइए.
आप के पिता न बन पाने का संबंध आप के विवाह से पूर्व हस्तमैथुन करने की आदत से हरगिज नहीं हो सकता. यह एक सामान्य क्रिया है. पिता न बन पाने के कारणों को जानने के लिए आप सर्वप्रथम किसी विशेषज्ञ से मिल कर अपनी मैडिकल जांच कराएं और यदि विशेषज्ञ पत्नी की भी जांच कराने के लिए कहें तो उन की भी जांच कराएं व कारण का पता लगाएं. अगर जांच में सबकुछ सामान्य आता है तो हो सकता है आप सही समय पर संभोग न करते हों. क्योंकि बच्चे को जन्म देने के लिए पुरुष के शुक्राणु हमेशा लगभग एकजैसे रहते हैं लेकिन महिला के गर्भवती होने के लिए एक निश्चित अवधि होती है. 28 दिन के मासिक धर्म में 14वां दिन ओव्यूलेशन का होता है जिसे मासिक धर्म शुरू होने के बाद से गिना जा सकता है. इस दौरान 12वें से 18वें दिन के बीच संभोग करने से गर्भ ठहरने के चांसेज अधिक होते हैं. गर्भधारण की यह फर्टाइल स्टेज होती है. इस दौरान संभोग करें, इस प्रक्रिया को समझने के लिए आप चाहें तो किसी विशेषज्ञ से मिल कर उस से सलाह ले सकते हैं. आप के पिता बनने की संभावना बढ़ जाएगी.
लड़की के जवान होते ही मातापिता को चिंता सताने लगती है कि कम से कम दहेज में ज्यादा से ज्यादा पैसे व प्रतिष्ठा वाला घरवर मिल जाए तो जिम्मेदारी खत्म हो और लड़की सुखचैन से ससुराल में रहे. इस बाबत कितनी भागादौड़ी करनी पड़ती है और कैसेकैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं, यह बात वही व्यक्ति बता सकता है जो विवाहयोग्य बेटी का पिता हो. राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में निवास कर रहे जैन समुदाय में स्थिति उलट है. वहां चिंता जवान होते लड़के के मातापिता करते हैं. फर्क इतना है कि पैसे वाले माने जाने वाले इस समाज में अभिभावकों की चिंता लड़के का नकारा होना या पैसों की कमी नहीं, बल्कि यह है कि गरीब ही सही लड़की अपनी जाति की मिल जाए जिस से वंशानुगत शुद्धता बनी रहे ताकि समाज में इस बाबत सिर नीचा न करना पड़े कि लड़के की शादी दूसरी बिरादरी में करनी पड़ी.
जैन समाज में लड़कियों का टोटा नहीं है. भौगोलिक रूप से देश की आबादी के 70 लाख जैनी देशभर में फैले हुए हैं. लिहाजा, उन्हें वैवाहिक रिश्ते जोड़ने में कई तरह की कठिनाइयां पेश आने लगी हैं जिन के चलते वे वैवाहिक विज्ञापनों के अलावा मैरिज ब्यूरो की सेवाएं लेने से हिचकिचाते नहीं. आमतौर पर धनी माने जाने वाले जैन समाज में गरीबों की भी कमी नहीं है, पर इस जाति का गरीब भी किसी गैर खासतौर से हिंदुओं के मध्यवर्ग के शख्स की आमदनी की हैसियत वाला होता है. कुछ इलाकों में ही सही, जैनियों ने लड़कियों की कमी से निबटने व शादी के मामले में अमीरीगरीबी की खाई पाटना शुरू की तो देखते ही देखते यह जिम्मेदारी कुछ ठगों ने उठानी शुरू कर दी. इन में मैरिज ब्यूरो संचालक बड़े पैमाने पर शामिल हैं. दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर ये पकड़े भी गए तो मध्य प्रदेश के मालवानिमाड़ अंचलों को जोड़ते औद्योगिक शहर इंदौर में, जहां इस समुदाय के लोग काफी संख्या में रहते हैं.साल 2014 में शिकायतों की बिना पर 2 मैरिज ब्यूरो वाले ऐसे पकड़े गए थे जिन्होंने फर्जी लेकिन दिलचस्प तरीके से गैर जैनी लड़कियां पैसे वाले जरूरतमंद जैन घरानों को टिका दी थीं और रिश्ता तय कराने में भारीभरकम फीस वसूली थी.
ऐसे होता है फर्जीवाड़ा
कहनेसुनने में बात नामुमकिन लगती है कि कोई मैरिज ब्यूरो या मध्यस्थ किसी दूसरी जाति की लड़की की शादी जैन या किसी दूसरे समुदाय में करवा दे. वजह, वक्त कितना भी बदल जाए, दोनों पक्ष ठोकबजा कर जानकारी हासिल करने के बाद ही शादी करते हैं. लेकिन जैन समाज के कुछ लोग इस हालत में नहीं है. लिहाजा, आसानी से उन्हें दलालों और मैरिज ब्यूरो संचालकों के झांसे में आ कर ठगा जा रहा है. वे पछताते तब हैं जब यह राज खुलता है कि दुलहन उन की जाति की नहीं है जबकि जाति की दुलहन पाने के लिए वे शादी में लाखों रुपए लड़के वाले होते हुए भी खुशीखुशी खर्च कर चुके होते हैं.
मालवा, निमाड़ इलाकों में यह ठगी और धोखाधड़ी इतनी आम हो चली है कि जब भी किसी मैरिज ब्यूरो पर छापा पड़ता है तो लोगों का लगाया यह अंदाजा अकसर सच निकलता है कि जरूर यह जैनी लोगों का मामला होगा. बीते 10 सालों के दौरान मारे गए 15 छापे इन अंदाजों की पुष्टि करते हैं. जान कर हैरानी होती है कि इस फर्जीवाड़े की शुरुआत अब से कोई 8 साल पहले खरगौन के एक सब्जी विक्रेता कैलाश नाम के शख्स ने की थी या यों कह लें कि उस के पकड़े जाने से फर्जीवाड़ा सामने आया था. ठेले पर इंदौर की गरीब बस्तियों की गलीगली जा कर सब्जी बेचने वाले कैलाश ने मांग और आपूर्ति के अर्थशास्त्र के सिद्धांत को सीधेसीधे समाज से जोड़ कर लाखोंकरोड़ों के वारेन्यारे करते कइयों को सफलतापूर्वक चूना लगाया था.
मालवा और निमाड़ इलाके अपनी गरीबी, पिछड़ेपन और आदिवासी बाहुल्य होने के कारण भी जाने जाते हैं, जहां लड़की का होना ही अपनेआप में मातापिता के लिए तनाव की बात होती है कि जब यह बड़ी हो जाएगी तो दहेज के लिए भारीभरकम रकम कहां से जुटाएंगे. कैलाश ने इन दोनों वर्गों की परेशानियों और जरूरत को नजदीक से समझा और एक खतरनाक ख्ेल खेलना शुरू कर दिया जिस की शुरुआत उस ने प्रयोगात्मक तौर पर की. फेरी लगा कर बैगन ले लो, आलू ले लो की आवाजें लगाने वाले खुराफाती दिमाग के मालिक कैलाश की नजर जब गरीब खूबसूरत लड़कियों पर पड़ती तो एक खयाल उस के दिमाग में यह भी आता कि यह कैसी विसंगति है कि एक तरफ तो मालदार जैनी अपनी जाति की बहू हासिल करने के लिए पैसा लुटाने को तैयार बैठे हैं और दूसरी तरफ ये गरीब खूबसूरत लड़कियां हैं जिन के मातापिता पैसों के अभाव में इन के हाथ पीले नहीं कर पा रहे. इस से उसे न केवल जैनियों बल्कि तमाम लोगों की खूबसूरत बहू पाने की कमजोरी समझ आ गई थी.
पहली ही बार में उस ने अपने एक ट्रक ड्राइवर दोस्त की मदद से एक गरीब लड़की को मालदार घराने की बहू बनवाने में कामयाबी पा ली तो देखते ही देखते वह इस धंधे का माहिर खिलाड़ी बन गया. पहली सफलता के बाद ही उसे समझ आ गया कि अगर लड़की बिरादरी की हो, खूबसूरत हो और थोड़ी सलीके वाली हो तो लोग ज्यादा छानबीन नहीं करते. लिहाजा, उस ने गरीब लड़कियों के मातापिता से संपर्क साध उन्हें पूरे आत्मविश्वास से यह लालच देना शुरू कर दिया कि वह उन की एक कौड़ी खर्च करवाए बगैर बेटी को महलों की रानी बनवा देगा. यह बात ‘अंधा क्या चाहे दो आंखें’ वाली साबित हुई. कैलाश की गारंटी और आत्मविश्वास और पहले कराई गई शादी के उदाहरण के चलते जरूरतमंद गरीब लोग इस बाबत तैयार होने लगे. बड़े पैमाने पर रिश्ता जोड़ते कैलाश ने कितनों को सहीगलत जाति की लड़की दिलाई, इस की गिनती नहीं लेकिन कामयाबी के कुछ मंत्र उसे रट गए थे कि जिस लड़की के मातापिता बगैर ज्यादा झिकझिक किए तैयार हो जाएं उन्हें कुछ बातों का प्रशिक्षण देना जरूरी है जिन में अहम था जैन धर्म के रीतिरिवाजों और कायदेकानूनों से अवगत कराना.
एक सधे खिलाड़ी की तरह मालदार जैनियों से कैलाश यह झूठ बोलने लगा कि मेरी नजर में एक लड़की है जो आप की जाति की है लेकिन गरीब है. जैनियों को गरीबी पर कोई एतराज न होता था. वे खुशीखुशी शादी का खर्च उठाने को तैयार हो जाते थे और लड़की वालों को भी कुछ पैसा बतौर मदद दे देते थे. उन की अघोषित शर्त यह होती थी कि लड़की मायके से ज्यादा संबंध नहीं रखेगी. जाहिर है बहू गरीब घर की है, यह बात उजागर होने पर उन की समाज में खिल्ली उड़ती. कैलाश का खेल जनवरी 2007 में खत्म हुआ जब इंदौर के सुदामा नगर इलाके में पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर एक झुग्गी में छापा मार कर 4 लड़कियों को पकड़ा जिन्हें दुलहन बना कर बेचने की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. इन चारोंलड़कियों को कैलाश किराए की क्वालिस कार में पुणे ले जा कर मालदार घरानों में उन की शादी का सौदा पक्का कर चुका था लेकिन ऐन वक्त पर धरा गया.
खत्म नहीं हुई कहानी
एक कैलाश पकड़ा गया लेकिन धंधा मुनाफेदार था, इसलिए देखते ही देखते दर्जनों कैलाश पैदा हो गए जो गरीब खूबसूरत लड़कियों को मालदार घराने की बहू बनाने का कारोबार बाकायदा मैरिज ब्यूरो खोल कर करने लगे. लेकिन कैलाश के पकड़े जाने से लोग, खासतौर से जैनी, सतर्क हो गए थे. यह सावधानी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह पाई. फिर तो हर दूसरे साल 2-3 ऐसे गिरोह पकड़े जाने लगे. यह धंधा अभी भी कोई किसी नाम से कर रहा हो तो बात कतई हैरत की नहीं होगी. वजह, बीते साल सर्दियों में ऐसा ही एक मैरिज ब्यूरो संचालक पकड़ा गया था जिस के निशाने पर जैन समुदाय के लोग ज्यादा रहते थे. ठगी के इस धंधे में वैवाहिक विज्ञापनों को चारे की तरह इस्तेमाल किया जाता था. मालवांचल में ऐसे कितने मैरिज ब्यूरो चल रहे होंगे, यह शायद इस इलाके की पुलिस भी न बता या गिना पाए. दबी जबान में ही सही, इंदौर के एक इंस्पैक्टर ने इस बात को स्वीकारा कि कहा नहीं जा सकता कि कितने मैरिज ब्रोकर सक्रिय हैं.
खोट से खराब हुआ धंधा
हर गलत धंधे में कोई न कोई खोट रह ही जाती है जो उस की पोल खोल देती है. ऐसा ही इस धंधे में भी हुआ. कैलाश की तर्ज पर शादियों का कारोबार कर रही इंदौर की ही शारदा नाम की महिला ने एक गरीब खूबसूरत लड़की को राजस्थान के भीलवाड़ा के संपन्न घराने की बहू बनवा दिया. मगर उस के ससुराल पहुंचते ही शारदा के मन में लालच आ गया. उस ने उसी लड़की की मदद से इस परिवार के 3 लोगों का कत्ल कर के लाखों रुपए लूट लिए. दूसरी तरफ यह बात भी सामने आने लगी थी कि खरीदी गई लड़कियों से खरीदार जबरिया देह व्यापार करवा रहे हैं. लिहाजा, लोग चौकन्ने हो गए. कुछ मामलों में लड़कियों का मन ससुराल में नहीं लगा तो वे वापस घर भाग आईं. शुरुआती दौर में ब्याही गई लड़कियों ने तमाम सावधानियां बरतीं और उन की जिंदगी संवर गई. बगैर कुछ किए महज खूबसूरती की बिना पर और जाति के बारे में झूठ बोल कर वे मालदार घरानों में ऐशोआराम की जिंदगी जी रही हैं. वे अपनी तरफ से की गई इन कोशिशों में कामयाब रहीं कि राज को राज ही रखना है और निर्धन मायके का मोह नहीं करना है.
कैलाश और शारदा जैसे दलाल रईसों की इस कमजोरी को भी समझते हैं कि अगर किसी वजह से लड़की का राज खुल भी गया तो उन का कुछ बिगड़ने वाला नहीं क्योंकि अमीरों को पैसों की तरह अपनी इज्जत भी प्यारी होती है. लिहाजा, वे खुद मन मसोस कर गैर जाति की लड़की को घर से नहीं निकालेंगे और अगर कहीं निकाल भी दें तो वे (रईस) उन का कुछ बिगाड़ने की स्थिति में नहीं होंगे. उधर, बहू बन चुकी गरीब लड़की कानूनी तौर पर भी काफी भारी पड़ेगी, यह एहसास भी उन्हें था. भले ही कैलाश और दूसरे मैरिज ब्यूरो अमीरगरीब की खाई पाट रहे हों पर इस बाबत जो चार सौ बीसी वे कर रहे थे और अब उन जैसे मैरिज ब्रोकर व ब्यूरो भी कर रहे हैं, वह है तो अपराध ही, जिस से सहमत होने की कोई वजह नहीं. हां, इस से इतना जरूर समझ आता है कि अगर जाति की ही लड़की चाहने वाले अमीर, सुशील, गरीब लड़कियों को बहू बनाएं तो बात हर्ज की नहीं. इस से वे धोखा खाने के अलावा एक अपराध को बढ़ावा देने के आरोप से भी बच जाएंगे.
नम्रता
नम्रता से अच्छी कोई नीति नहीं. जहां होशियार से होशियार जबान असफल हो जाती है, वहां अच्छा व्यवहार बहुत काम कर जाता है.
विवेक
सारी स्थितियों में विवेक ही प्रमुख रहना चाहिए, जिद्दी होना एक बात है, अपने मत के विषय में दृढ़ रहना बिलकुल दूसरी बात.
विश्वास
जो आदमी यह दिखाए कि उस में कोई भी कमी नहीं है, वह या तो बेवकूफ है या पाखंडी और हमें उस का विश्वास नहीं करना चाहिए.
शक्ति
जीवन में दुर्बलताओं का स्थान नहीं, मन की शक्ति जीवन की सारी शक्तियों का स्रोत है.
शांति
जो चिंतित रहता है उसे शांति कहां? और जब शांति ही नहीं, तब सुख कहां से होगा?
बुद्धि
व्यक्ति की अपनी बुद्धि उसे मीनार में बैठे हुए पहरेदारों से कहीं ज्यादा सही रास्ता बता सकती है.
वाणी
वाणी ही मनुष्य का ऐसा आभूषण है जो अन्य आभूषणों की तरह कभी घिसता नहीं
नम्रता
नम्रता से अच्छी कोई नीति नहीं. जहां होशियार से होशियार जबान असफल हो जाती है, वहां अच्छा व्यवहार बहुत काम कर जाता है.
विवेक
सारी स्थितियों में विवेक ही प्रमुख रहना चाहिए, जिद्दी होना एक बात है, अपने मत के विषय में दृढ़ रहना बिलकुल दूसरी बात.
विश्वास
जो आदमी यह दिखाए कि उस में कोई भी कमी नहीं है, वह या तो बेवकूफ है या पाखंडी और हमें उस का विश्वास नहीं करना चाहिए.
शक्ति
जीवन में दुर्बलताओं का स्थान नहीं, मन की शक्ति जीवन की सारी शक्तियों का स्रोत है.
शांति
जो चिंतित रहता है उसे शांति कहां? और जब शांति ही नहीं, तब सुख कहां से होगा?
बुद्धि
व्यक्ति की अपनी बुद्धि उसे मीनार में बैठे हुए पहरेदारों से कहीं ज्यादा सही रास्ता बता सकती है.
वाणी
वाणी ही मनुष्य का ऐसा आभूषण है जो अन्य आभूषणों की तरह कभी घिसता नहीं
मेरी बहन के पति की छोटी सी बीमारी के चलते मृत्यु हो गई. बहन की आयु अधिक नहीं थी. पति के अचानक चले जाने पर वे बहुत सहम सी गईं. वे दिनरात रोती रहतीं और अपने खानेपीने व पहननेओढ़ने पर ध्यान न देतीं. उन्होंने अपनेआप को जैसे दुनिया से अलग ही कर लिया, सदा सफेद कपड़े पहनतीं, हारशृंगार का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. एक दिन टीवी पर खबर आ रही थी कि एक विधवा महिला को इसलिए पैंशन नहीं मिली क्योंकि फौर्म पर लगी फोटो में उस के माथे पर बिंदी लगी हुई है. इस बात की चर्चा घर में भी होने लगी कि यह क्या दलील है. बिंदी लगाना कोई जुर्म तो नहीं. फोटो पुरानी भी हो सकती है अथवा और भी कोई कारण हो सकता है. ये सब बातें बहन की 13 साल की पोती सुन रही थी, झट से बोली, ‘‘यह तो कोई बात नहीं है. आज बिंदी पर ऐतराज है, सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है. इस तरह तो सतीप्रथा को दोबारा वापस ले आया जाएगा. हमारा समाज फिर से पुरानी प्रथाओं से घिर जाएगा.’’ बहन ने पोती की बातें सुनीं तो उन के मन में उथलपुथल होने लगी.
उसी दिन से उन्होंने अपनेआप को थोड़ा बदला. सफेद कपड़ों के बदले पहले की तरह सादगी से सभी कपड़े पहनने शुरू कर दिए. खुद ही कहने भी लगीं, ‘दुख तो अंदर सदैव ही रहेगा लेकिन इन पुराने रिवाजों को छोड़ना ही पड़ेगा.’ सच है यदि जीवन ठीक रखना है तो सामाजिक बेडि़यों को काटना ही होगा.
कमलेश नागरथ, ग्रेटर कैलाश-2 (न.दि.)
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जितिया पर्व के दिन जगन्नाथ घाट पर नहाना हमारे यहां अच्छा माना जाता है. हमारे पड़ोस में रहने वाली आंटी अपनी बहू और 10 माह के पोते के साथ वहां गई थीं. घाट पर काफी भीड़ व फिसलन देख उन्होंने अपनी बहू से पोते को ले कर ऊपर ही खड़े रहने को कहा. वे खुद अकेली पानी में उतर कर नहाने लगीं. नहाते वक्त आंटी ने देखा कि 4 हट्टीकट्टी औरतें उन्हें घेर कर पानी में दबाने लगीं. वे डांटते हुए उन्हें कहने लगीं, ‘औरत हो कर वे उन्हें क्यों दबा रही हैं?’ तो सभी औरतें बेशर्मों की तरह हंसने लगीं. आंटी उन की गिरफ्त से छूट कर, थोड़ी दूरी पर जा कर नहाने लगीं. थोड़ी ही देर में जैसे ही उन्होंने अपनी गरदन पर हाथ फिराया तो पाया कि उन की 2 तोले की सोने की चेन गले में नहीं है. मुड़ कर पीछे देखा तो वे चारों औरतें नदारद थीं. यह हमारी बेडि़यों का ही नतीजा था कि न हम वहां जाते और न ही ऐसा होता.
अंजु सिंगड़ोदिया, हावड़ा (प.बं.)
बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं
ये आंसू तो मेरे तुम पर गए हैं
जो तुम ने मेरी पलकों में रखे थे
वो सपने मुझ को शूल से गड़े हैं
न रांझा है यहां, न हीर कोई
चरित्र ऐसे कथाओं में मिले हैं
जो आने के बहाने ढूंढ़ते थे
वो जाने के बहाने अब गढ़े हैं
हवाएं सावनी जो पढ़ सको तुम
उन्हीं पे आंसुओं ने खत लिखे हैं.
– आलोक यादव
अब तक की कथा :
पुलिस ईश्वरानंद के आश्रम में दबिश दे चुकी थी और आश्रम के अंदर जाने का प्रयास कर रही थी. इधर नील और उस की मां को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. अब तक तो अंधेरा ही था, अब तो सामने गहरी खाई दिखाई दे रही थी. मां के कारण उस ने दिया को हाथ तक न लगाया और अब नैन्सी भी उस के हाथों से फिसल रही थी. अब आगे…
अचानक दिया आगे बढ़ आई और उस ने सुनहरी पेंटिंग पर लगे हुए बड़े से सुनहरी बटन को दबा दिया. बटन दबाते ही दीवार में बना गुप्त दरवाजा खुल गया. सब की दृष्टि उस गलियारे में पड़ी जो फानूसों से जगमग कर रहा था. ब्रिटिश महिला पुलिस औफिसर एनी गलियारे की ओर बढ़ीं और उन्होंने सब को अपने पीछे आने का इशारा किया. गैलरी पार कर के सब लोग अब एक आलीशान दरवाजे के पास पहुंच गए थे जहां अंदर अब भी रासलीला चल रही थी. यहां भी दिया ने आगे बढ़ कर दरवाजे के खुलने का राज जाहिर कर दिया. दरवाजा क्या खुला, कई जोड़ी आंखें फटी की फटी रह गईं. सबकुछ इतना अविश्वसनीय था कि लोग अपनी पलकें झपकाना तक भूल गए थे.
अपनी अर्धनग्न चहेती शिष्याओं के साथ सामने के बड़े से मंच पर लगभग नग्नावस्था में विराजमान ईश्वरानंद का फूलों, केसर व चंदन से शृंगार किया जा रहा था. सुंदरियां उस के अंग को कोमलता से स्पर्श करतीं, चूमतीं और फिर उसे फूलों से सजाने लगतीं. सब इस कार्यक्रम में इतने लीन थे कि किसी को हौल में पुलिस के पहुंचने का आभास तक न हुआ. सैक्स का ऐसा रंगीला नाटक देख पुलिस भी हतप्रभ थी. इंस्पैक्टर ने साथ आए हुए फोटोग्राफर को इशारा किया और उस का मूवी कैमरा मिनटभर की देरी किए बिना वहां पर घटित क्रियाकलापों पर घूमने लगा.
ब्रिटिश पुलिस के लिए यह सब बहुत आश्चर्यजनक था. इत्र का छिड़काव जैसे ही दिया के नथुनों में पहुंचा उस को छींक आनी शुरू हो गईं. दिया को बचपन से ही स्ट्रौंग सुगंध से एलर्जी थी. छींकतेछींकते दिया बेहाल होने लगी. ईश्वरानंद की लीला में जबरदस्त विघ्न पड़ गया. यह कैसा अन्याय, सब का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने पीछे मुड़मुड़ कर देखना शुरू किया. जैसे ही उन की दृष्टि पुलिस वालों पर पड़ी, अब तो मानो वे ततैयों की लपेट में आ गए. ईश्वरानंद अधोवस्त्र संभालता हुआ स्टेज से भागने का प्रयास कर रहा था. जैसे ही ईश्वरानंद ने सीढि़यों से उतरने को कदम बढ़ाया वैसे ही इंस्पैक्टर ने उसे धरदबोचा.
‘‘क्यों, हमें क्यों डिस्टर्ब किया जा रहा है?’’ ईश्वरानंद ने इंस्पैक्टर की बलिष्ठ भुजाओं में से सरकने का प्रयास करते हुए हेकड़ी दिखाने की चेष्टा की.
किसी ने उस की बेवकूफी का उत्तर नहीं दिया. पुलिस अपनी ड्यूटी करती रही. चेलेचांटों सहित उसे एक कतार में खड़ा कर दिया गया. पुलिस के जवान आश्रम के प्रत्येक कमरे में घुस कर तलाशी लेने लगे. सभी संदिग्ध वस्तुओं को जब्त कर लिया गया. बहुत से भारतीय सुरक्षा से जुड़े कागजात, जाली प्रमाणपत्र, जाली पासपोर्ट…और भी दूसरी अवैध चीजें, बिना लाइसैंस की गन्स, और न जाने क्याक्या बरामद कर लिया गया. एक कमरे में से धीमीधीमी सिसकने की आवाजें सुन कर दरवाजा तोड़ डाला गया और उस में से नशे से की गई बद्तर हालत में 3 लड़कियों को निकाला गया जो जिंदा लाश की तरह थीं. उन का कटाफटा शरीर, उन के मुंह पर लगे टेप, आंखों में भय व घबराहट सबकुछ दरिंदगी की कहानी बयान कर रहे थे. दिया ने उन्हें देखा तो घबराहट के कारण उस के मुख से चीख निकल गई. अगर वह फंस गई होती तो आज उस की भी यही दशा होती.
पुलिस गुरुचेलों को गाड़ी में ठूंस कर पुलिस स्टेशन ले गई. दिया दूसरी गाड़ी में उन 3 लड़कियों के साथ बैठ कर पुलिस स्टेशन पहुंची थी. लड़कियों के मुंह पर से टेप हटा दी गई थी परंतु वे कुछ कहनेसुनने की हालत में थीं ही नहीं. ईश्वरानंद, उस के चेलेचेलियां, नील व उस की मां से कोई बात नहीं की गई. उन को यह बता कर मुख्य जेल में भेज दिया गया कि उन का फैसला कोर्ट करेगी. नैन्सी से थोड़ीबहुत पूछताछ की गई और यह कह कर उसे फिलहाल रिहा कर दिया गया था कि जरूरत पड़ने पर उसे कोर्ट या पुलिस के समक्ष हाजिर होना पड़ेगा. धर्म के बारे में दिया से मौखिक व लिखित बयान ले लिए गए थे. एनी ने पहले ही दिया से खुल कर सबकुछ पूछ ही लिया था.
अब दिया को इंडियन एंबैसी ले जाने का समय था.
‘‘कैन आय टौक टू धर्म, प्लीज,’’ दिया ने पुलिस से आग्रह किया.
धर्म को उस के सामने ले आया गया.
‘‘तुम इंडिया चली जाओगी शायद 2-4 दिन में ही?’’
‘‘हूं.’’
‘‘मुझे अपनी सजा भुगतनी है.’’
‘‘हूं.’’
‘‘कुछ तो बोलो, दिया.’’
वातावरण में पसरे मौन में दिया व धर्म की सांसें छटपटाने लगीं. आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह कैसा मिलन था? मौन ही उन की जबान बन कर भावनाओं, संवेदनाओं को एकदूसरे के दिलों तक पहुंचा रहा था.
धर्म ने दिया के गालों पर फिसलते आंसुओं को अपनी हथेली में समेट लिया. उसे गले लगाते हुए बोला, ‘‘अपनी गलतियों की सजा पा कर ही मैं भारमुक्त हो सकूंगा, दिया.’’
दिया की आंखें एक बार फिर गंगाजमुना हो आईं.
‘‘नहीं, रोते नहीं, दिया. तुम इंडिया लौट कर जाओगी, मेरी प्रतीक्षा करोगी?’’
दिया चुपचाप उसे देखे जा रही थी.
‘‘मैं जल्दी ही आऊंगा, दिया.’’
‘‘मैं प्रतीक्षा करूंगी.’’
दिया भी इंडियन एंबैसी के लिए निकल पड़ी. 3 दिन तक उसे वहां रखा गया और चौथे दिन उस की फ्लाइट थी. हीथ्रो हवाई अड्डे से सीधे अहमदाबाद की. इधर ईश्वरानंद के परमानंद आश्रम की धज्जियां उड़ गई थीं. देखते ही देखते परमानंद आश्रम के परम आनंद की खबर ब्रेकिंग न्यूज बन कर विश्वभर में फैल गई. लैंड करने के बाद दिया को हवाई अड्डे से निकलने में अधिक समय नहीं लगा. उस ने एंबैसी के अफसर को मना कर दिया था कि कृपया उस के घर पहुंचने की सूचना घर वालों को न भेजें. बाहर निकल कर वह टैक्सी में जा बैठी. भरपूर गरमी, सड़क पर दौड़ती गाडि़यां. दिया ने अपने बंगले की ओर जाने वाली सड़क ड्राइवर को बताई और कुछ ही मिनट में गाड़ी घर के बडे़ से गेट पर थी.
सुबह लगभग 9 बजे का समय. बंगले का गार्ड बगीचे में पानी देते हुए माली से बातें कर रहा था. अचानक उस की दृष्टि दिया पर पड़ी.
‘‘दिया बेबी?’’ वह चौंका. माली की दृष्टि भी ऊपर उठी.
‘‘हां, दिया बेबी ही तो हैं,’’ उस ने गार्ड की बात दोहराई.
गार्ड ने दीनू को आवाज दी, वह बरामदे में भागता आया और तुरंत मुसकराते हुए अंदर की ओर भागा. आश्चर्य और घबराहट से भर कर सभी लोग बरामदे तक भागे आए. यशेंदु भी अपनी व्हीलचेयर पर सब के पीछे तेजी से कुरसी के पहियों को चलाते हुए पहुंचे, दादी भी अपनेआप को धकेलती हुई मंदिर से बरामदे तक न जाने कैसे अपने भगवानज को छोड़ कर आ पहुंची थीं. सब से पीछे कामिनी थी जो शायद कालेज जाने की तैयारी छोड़ कर पति के पीछेपीछे तेजी से आ रही थी. दादी ने सब से आगे बढ़ कर दिया को अपने निर्बल बाहुपाश में जकड़ लिया. उस ने कोई प्रतिकार नहीं किया. स्वयं को दादी की निर्बल बांहों में ढीला छोड़ दिया. कुरसी पर बैठे एक टांगविहीन पापा को और उन के पीछे खड़ी मां की गंगाजमुनी आंखों को देख कर उस की आंखों का स्रोत फिर बहने लगा. दिया के मन में एक टीस सी उठी. वह दादी के गले से हट कर पापा के गले से चिपट गई और हिचकियां भर कर रोने लगी. काफी देर दिया पिता के गले से चिपकी रही. कामिनी ने धीरे से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह पिता से हट कर मां से जा चिपटी. कामिनी ने कुछ नहीं कहा और सहारा दे कर उसे अंदर की ओर ले आई.
दिया सब की आंखों में प्रश्नचिह्नों का सैलाब साफसाफ देख पा रही थी परंतु उत्तर देने वाले की मनोस्थिति देखते हुए सब को अपने भीतर ही प्रश्नों को रोक लेना पड़ा. दादी के मन में तो उत्सुकता, उत्कंठा और उत्साह कलाबाजियां खा रहे थे. दादी जल्दी से कुरसी खिसका कर उस के पास बैठ गईं.
‘‘दिया, नील और तेरी सास तो मजे में हैं न?’’
दादी चाहती थीं कि दिया ससुराल की सारी बातें बताए. आखिर उन की लाड़ली पोती कितने दिनों बाद विदेश से वापस आई थी. छुटकारा न होते देख दिया ने दादी की बात के लिए हां कहा और फिर बोली, ‘‘मां, मैं अपने कमरे में जाना चाहती हूं,’’ कह कर वह ऊपर अपने कमरे में आ गई.
दीनू कई बार ऊपर बुलाने आया परंतु दिया का मन बिस्तर से उठने का नहीं हुआ. नीचे सब की आंखों में प्रश्न भरे पड़े थे. दादीमां बड़ी बेचैन थीं, दिया से ढेर सी बातें करना चाहती थीं. कामिनी ने नीचे आ कर सब को समझाने की चेष्टा की.
‘‘अभी बहुत थकी हुई है. आराम कर के फ्रैश हो जाएगी तो अपनेआप नीचे आ जाएगी.’’
-क्रमश: