एडवांस बुकिंग

जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझते हुए भाजपा के पितृपुरुष लालकृष्ण आडवाणी ने पद्मविभूषण सम्मान ले तो लिया पर ऐसे सम्मान देने की प्रक्रिया पर एतराज जताने से खुद को रोक नहीं पाए और कुछ तीखी पर सलीके की बातें कह ही बैठे. बकौल आडवाणी, ऐसे सम्मान वक्त रहते चेतन अवस्था में दिए जाने चाहिए. बात पते की नहीं बल्कि पतों की है कि कम से कम सम्मानित विभूति को यह मालूम तो हो कि उसे खिताब से क्यों नवाजा जा रहा है. आडवाणी का स्पष्ट इशारा अपने साथी और भूतपूर्व राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ भी था जिन्हें भारतरत्न देने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को खुद उन के घर जाना पड़ा था. इस छोटी बात का एक बड़ा मतलब यह भी था कि अगर उन्हें भी भारतरत्न देने का मन उन की ही सरकार बना रही हो तो 2019 के पहले दे दे.

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मुल्ला नसीरुद्दीन

 

यह बात महज कहनेसुनने की यानी किताबी है कि सच्चे कलाकार का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि वह तो कला को ही धर्म मान लेता है. ऐसा होता तो कलात्मक और व्यावसायिक अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को आम मुसलमान की तरह यह नहीं कहना पड़ता कि उन के देश यानी भारत में पाकिस्तान के प्रति नफरत बढ़ रही है और इस बाबत लोगों की बाकायदा ब्रेनवाशिंग की जाती है. पाकिस्तान में इंटरव्यू देते वक्त कई बार अच्छेअच्छे, सधे, समझदार भी लड़खड़ा जाते हैं तो नसीर का क्या दोष. वे तो बगैर नाम लिए आरएसएस को कोस रहे थे. इस बयान पर ज्यादा बवाल नहीं मचा यानी वह वायरल नहीं हुआ तो यह लोगों की समझदारी और नसीर के अलोकप्रिय होने का संकेत है और साथ ही नसीहत भी है कि धर्म से ताल्लुक रखती बातों पर न बोलें तो भी काम चल ही जाता है.

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