अमेरिका आने पर स्वाभाविक था कि हम प्रवासी भारतीयों के पड़ोस में ही घर ढूंढ़ते किंतु घनिष्ठ मित्रों व हितैषियों ने समझाया कि अमेरिकी जीवन की मुख्यधारा में समावेश के लिए मध्यवर्गीय अमेरिकी पड़ोस श्रेयस्कर होगा. एक उदार हृदय अमेरिकी पड़ोसी परिवार ने जैसे हमें गोद ही ले लिया. पगपग पर उन की सहायता और अमूल्य सलाह के बल पर हम यहां की मुख्यधारा में समाहित होने के साथसाथ अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने में सफल हुए हैं. इस परिवार के रहनसहन को समझ कर हमारे दिमाग के कुछ बंद रोशनदान भी खुले हैं. सधीबंधी सोच से बाहर संभावनाओं में आस्था जगी है.
उच्च शिक्षित मध्यवर्गीय पड़ोसी दंपती किफायतशारी के कायल हैं किंतु आवश्यकताओं के लिए कतई कोताही नहीं. संतान की उच्च शिक्षा के पूरे खर्च के लिए चैक लिखने को सदैव व सहर्ष तत्पर. बेटियां भी उन्हीं का खून. 12 वर्ष की आयु से बेबी सिटिंग और 16 वर्ष की आयु से अन्य पार्टटाइम जौब्स कर के अपने एजुकेशन बेनेफिट फंड में पैसे जमा करने लगी थीं. एक बेटी अपने बलबूते पर अकाउंटिंग में डिगरी ले कर बैंक में लोन औफिसर है और बिजनैस ला में मास्टर्स कर रही है. दूसरी बेटी को नर्सिंग में बैचलर्स डिगरी के लिए स्कौलरशिप मिली और 5 वर्ष तक औपरेटिंग रूम में अनुभव के बाद मास्टर्स के लिए फैलोशिप. वह पीएचडी कर के नर्सिंग कालेज में प्रोफैसर बनना चाहती है. सिर्फ बड़ी बेटी पेनी अपने कैरियर पथ पर फोकस करने में तनिक ढीली रही. कैलिग्राफी (खुशखत लिखाई) में वह बालपन से बहुत अच्छी थी. हालांकि स्कूलों में बच्चों की लिखावट पर बहुत जोर नहीं दिया जाता. वर्डप्रोसैसर जिंदाबाद, हाथ से कुछ भी लिखने की जरूरत धीरेधीरे कम होती जाती है.