अब बैक्टीरिया रोकेगा प्रदूषण

दिसंबर 1984 में जहरीली गैस से लाखों जिंदगियां तबाह हो गईं. भोपाल की घटना को देख कर वहीं के एक छात्र ने बैक्टीरिया के माध्यम से हानिकारक गैसों को अलग करने की विधि खोज निकाली है. प्रदूषित हवा में से हानिकारक गैसों को अलग करने के लिए तमाम तरह की खोजें की गई हैं पर इस छात्र ने बैक्टीरिया ई-कोलाई के द्वारा पर्यावरण को वायु प्रदूषण से बचाने का उपाय निकाला है. यह वही बैक्टीरिया है जो आमतौर पर प्रदूषित भोजन के जरिए मनुष्य की आंत में पहुंच कर फूड पौइजनिंग का कारण बनता है. शहर के एक छात्र मयंक साहू ने ई-कोलाई बैक्टीरिया के जीन में बदलाव कर उस में ऐसी क्षमता विकसित करने में कामयाबी हासिल की है जो उद्योगों की चिमनियों और वाहनों से निकलने वाले धुएं में मौजूद हानिकारक गैसों को अवशोषित (एब्जौर्ब) कर सकेगा.

यह बैक्टीरिया इन तत्त्वों को अवशोषित कर इन्हें खाद में बदल देगा. यह खाद खेतों की मिट्टी को उर्वरक बनाने में सहायक होगी. इस मौडिफाइड बैक्टीरिया को उद्योगों की चिमनियों में एक डिवाइस के जरिए लगाया जाएगा जहां यह सल्फर डाईऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड को अवशोषित कर सके. डिवाइस में मौजूद बैक्टीरिया, सल्फर डाईऔक्साइड को सल्फर और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड को अमोनिया में बदल देते हैं. तय समय में काम करने के बाद ये बैक्टीरिया मर जाते हैं. इन मरे हुए बैक्टीरियों को डिवाइस से बाहर निकाल कर इन से सल्फर और नाइट्रोजन को अलग कर लिया जाता है. डिवाइस से निकली सल्फर और नाइट्रोजन मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक होती है.

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बायोनिक हैंड

किसी दुर्घटना में अपना हाथ खो चुके लोगों के लिए बायोनिक हैंड आशा की किरण बन कर आया है. दुनिया में पहली बार आस्ट्रिया में ऐसे 3 लोगों पर इस का सफल परीक्षण किया गया जो दुर्घटनाओं में अपना हाथ खो चुके थे. विज्ञान ने ऐसे बायोनिक हैंड के प्रत्यारोपण में सफलता  हासिल कर ली है जो दिमाग के जरिए नियंत्रित हो सकता है. आस्ट्रिया के ये लोग बायोनिक हैंड लगने के बाद आसानी से (हाथ से) सामान उठा रहे हैं. लिखना, अंडा पकड़ना जैसे कई काम अब आसानी से कर पा रहे हैं. पहले भी कई मरीजों को आर्टीफिशियल हाथ लगाए गए  हैं पर उन्होंने पूरी तरह से दिमाग के अधीन हो कर काम नहीं किया. इसी दोष को विएना मैडिकल यूनिवर्सिटी के डाक्टरों ने दूर कर दिया है. वे नए नर्व सिग्नल बनाने में सफल रहे हैं. उन्होंने शरीर के अन्य अंगों से ये सिग्नल चोटग्रस्त हाथ तक लाने का काम अच्छे से कर लिया. पुरानी प्रक्रिया में इन सिग्नल को रिकवर करना संभव नहीं हो पाता था. नए सिग्नल को फिर से उपयोगी बनाने का काम भी कम मुश्किल नहीं था. इस के लिए मरीजों को खातौर पर एक हाईब्रिड हैंड के साथ प्रशिक्षित किया गया जिस के बाद नर्व सिग्नल सक्रिय होने में एक हफ्ता लगता है. इस के लिए आर्टीफिशियल हाथ लगाने वाले मरीज के उस हाथ की क्षतिग्रस्त नसों को बदला गया. कृत्रिम नसें बनाई गईं जिन्हें ब्रेकियल प्लेक्सेस कहते हैं. इन नसों से जांघ की मांसपेशियों से बनाई नसों को कनैक्ट किया गया. यह संपूर्ण प्रकिया एक विद्युत वायरिंग के ही समान है जो शौर्ट या टूटफूट होने पर काम नहीं करती. अंत में कोहनी के नीचे के बेकार हिस्से को अलग कर बायोनिक आर्म लगाई जाती है. उस के नियंत्रण के लिए आर्म में लगे सेंसर्स को तंत्रिका नसों से जोड़ा गया ताकि दिमाग से हाथ नियंत्रित हो सके. बायोनिक सर्जरी के ऐक्सपर्ट प्रो. औस्कर एजमैन बताते हैं, ‘हम ने 3 मरीजों पर ये पूरी प्रक्रिया अपनाई और मौजूदा विधियों की तुलना में इस प्रक्रिया के परिणाम बेहतर.

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