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मुसलिम मतदाताओं की खामोशी से राजनीतिक दलों में बेचैनी

लोकसभा 2024 की चुनावी वैतरणी पार करने के लिए सभी दल एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं, मगर जीत का सेहरा किस के सिर बंधेगा, यह बड़ेबड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं भांप पा रहे. दलितों और मुसलमानों को साधने की कोशिश तो सब की है लेकिन उन के मुद्दे सिरे से गायब हैं. तीन तलाक को खत्म कर के भाजपा नीत मोदी सरकार मुसलिम औरतों की नजर में हीरो बनी थी, लेकिन अब चुनाव के वक्त तीन तलाक खारिज करने का गुणगान कर के वह मुसलिम पुरुषों को भी नाराज नहीं कर सकती. औरतें वोट डालने जाएं या न जाएं, अधिकांश मुसलिम परिवारों में यह बात पुरुष ही तय करते हैं. यही वजह है कि भाजपा की चुनावी रैलियों में तीन तलाक किसी नेता के भाषण का हिस्सा नहीं है.

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उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव मुसलमानों के दिल में जगह बनाने लिए पिछले दिनों दिवंगत हुए बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी के घर तक जा पहुंचे. उन की मौत का गम मनाया. उस के बाद मुसलिम वोट साधने के लिए लखनऊ के कई नवाबी खानदानों से भी मुलाकातें कीं, ईद की सेवइयां चखीं, लेकिन इन कवायदों का आम मुसलिम पर कितना असर होगा, वह जो बिरयानी का ठेला लगाता है, या साइकिल का पंचर जोड़ता है, या सब्जी बेचता है अथवा काश्तकारी करता है, इस का अंदाजा अखिलेश खुद नहीं लगा पाए.

असल माने में तो मत देने वाला यही तबका है. नवाबी खानदानों से तो एकाध कोई मतदान करने बूथ तक जाए तो जाए. अब कांग्रेस की बात करें तो वह अगर मुसलमानों के लिए कोई बात करती है तो भाजपाई नेता सीधे गांधी परिवार पर हमलावर हो उठते हैं और उसे मुसलमान बताने लगते हैं. इसलिए कांग्रेस भी मुसलमानों और उन के मुद्दों को ले कर मुखर नहीं है.

एक तरफ राजनीतिक दल पसोपेश में हैं कि मुसलमान किस के कितने करीब हैं, दूसरी तरफ मुसलमान अपने मत को ले कर खामोशी ओढ़े हुए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलिम बहुल इलाकों में भी खामोशी पसरी हुई है. इस खामोशी में किस की जीत छिपी है, यह मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा.

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसा शिक्षा पर रोक लगाने की कोशिश की थी और राज्यभर के सभी 16,000 मदरसों के लाइसैंस रद्द कर दिए थे. मामला हाईकोर्ट होता हुआ सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड औफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख मदरसा छात्रों पर असर पड़ेगा और छात्रों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करने का निर्देश देना उचित नहीं है.

मदरसे बंद करने के योगी सरकार की कोशिश पर सरकार में मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने सफाई पेश की. उन्होंने कहा कि सरकार चाहती थी कि मुसलिम बच्चों को भी उसी तरह सरकारी स्कूलों में हिंदी, इंग्लिश, साइंस, भूगोल, इतिहास, कंप्यूटर आदि की शिक्षा मिले जैसी हिंदू और अन्य धर्मों के बच्चों को मिलती है. बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए मदरसा शिक्षा को हतोत्साहित किया जा रहा था. बेहतर शिक्षा मुसलिम नौजवानों को मिले, इस के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में योगी सरकार हमेशा सकारात्मक काम करती रही है. मगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करेगी.

सरकार की एकतरफा कार्यवाही

वहीं इस मामले में मुसलिम धर्मगुरुओं और नेताओं की कई प्रतिक्रियाएं आईं. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. मुसलमानों के कई बड़े रहनुमाओं ने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया कि उस ने मदरसा शिक्षा को बरकरार रखा. केंद्रीय स्कूल के शिक्षक मोहम्मद अकील कहते हैं, “मदरसों में अति गरीब मुसलिम परिवारों के बच्चे पढ़ने जाते हैं. मुसलिम यतीमखानों के बच्चे भी वहां पढ़ते हैं. वहां उन को दोपहर का भोजन मिल जाता है. किताबें और कपड़े मिल जाते हैं. अधिकांश बच्चों के परिवार इतने पिछड़े, गरीब और अशिक्षित हैं कि वे अपने बच्चों को दीनी तालीम और एक वक्त की रोटी के नाम पर मसजिद-मदरसों में तो भेज देंगे मगर किसी सरकारी स्कूल में नहीं भेजेंगे. वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने को तैयार हों, इस के लिए पहले सरकार इन परिवारों की काउंसलिंग करे, इन के जीवनस्तर को सुधारे, उन में शिक्षा की आवश्यकता की समझ पैदा करे, फिर उन के बच्चों को मदरसा जाने से रोके और सरकारी स्कूल में दाखिला दे. ऐसे ही एक आदेश पर मदरसे बंद कर देने से आप इन बच्चों के मुंह से एक वक्त की रोटी भी छीने ले रहे हैं. सरकार का यह कदम बहुत ही अनुचित है. उस को पहले हिंदुओं के गुरुकुल बंद करने चाहिए, फिर मदरसों की ओर देखना चाहिए.”

भाजपा सरकार की मदरसा नीति पर भी मुसलिम तबका बंटा हुआ है. हो सकता है सरकार की मंशा मुसलिम बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की हो मगर अधिकांश इस कदम को मुसलमानों पर हमले के तौर पर ही देख रहे हैं. ऐसे में भाजपा से मुसलमान इस वजह से भी छिटक गया है.

बीते रमजान के आखिरी पखवाड़े में हिंदुओं का नवरात्र भी आरंभ हो गया था. उन के भी व्रत थे, लिहाजा सरकार ने मीटमछली की दुकानें बंद करवा दीं. यहां तक कि ठेलों पर बिरयानी बेचने वालों को भी घर बिठा दिया गया. ईद के दिन 90 फीसदी मीट की दुकानें बंद थीं. कई मुसलिम घरों में बिना नौनवेज के ईद मनी. मुसलमान ने कोई शिकायत नहीं की मगर कांग्रेस के समय को जरूर याद किया. ऐसा अनेकों बार हुआ होगा जब ईद और नवरात्र इकट्ठे पड़े लेकिन कांग्रेस के वक्त ईद के रोज मीट की दुकानें बंद नहीं हुईं.

पश्चिम बंगाल में सालोंसाल मछली बिकती है फिर चाहे नवरात्र हों या दीवाली क्योंकि वहां के हिंदुओं का मुख्य भोजन मछली है. आखिर जिस का जैसा खानपान है, वह तो वही खाएगा, उस पर रोकटोक करने वाली सरकार कौन होती है? मगर भाजपा सरकार मुसलमानों के खानपान पर पाबंदी लगाने में उस्ताद है. हलाल और झटके के मामले में भी उस ने मुसलमानों को परेशान किया. ऐसे में मुसलमान का मत भाजपा को कैसे मिल सकता है. यह मत एकजुट भी नहीं है, निसंदेह दूसरी कई पार्टियों के मध्य बंटा हुआ है.

कम होते मुसलिम प्रतिनिधि

पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां से सब से ज्यादा मुसलिम प्रतिनिधि संसद पहुंचते रहे हैं, उस मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र में चरणों के मतदान के बाद भी खामोशी है. साल 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद हुए ध्रुवीकरण के माहौल में 2014 के चुनाव में इस इलाके से एक भी मुसलिम प्रतिनिधि नहीं चुना गया.

साल 2019 में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिल कर चुनाव लड़ा तो 5 मुसलमान सांसद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों से जीत कर संसद पहुंचे थे. सहारनपुर से हाजी फजलुर रहमान, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, संभल से डा. शफीकुर्रहमान बर्क, मुरादाबाद से एस टी हसन और रामपुर से आजम खान ने जीत दर्ज की थी. लेकिन 2024 का चुनाव आतेआते राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ गठबंधन में है, राष्ट्रीय लोकदल अब भाजपा के साथ है और बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नए बदले समीकरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मुसलमान सांसद फिर से चुन कर संसद पहुंच पाएंगे? यह सवाल और गंभीर तब हो जाता है जब कई मुसलिम बहुल सीटों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुसलिम उम्मीदवार आमनेसामने हैं. सहारनपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद हैं तो बहुजन समाज पार्टी ने माजिद अली को टिकट दिया है. वहीं, अमरोहा में मौजूदा सांसद दानिश अली इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं और बसपा ने मुजाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है.

संभल में दिवंगत सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया है तो बसपा ने यहां सौलत अली को उम्मीदवार बनाया है. मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी ने मौजूदा सांसद एस टी हसन का टिकट काट कर रुचि वीरा को उम्मीदवार बनाया है जबकि यहां बसपा ने इरफान सैफी को टिकट दिया है. रामपुर में आजम खान जेल में हैं. समाजवादी पार्टी ने यहां मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दिया है जबकि बसपा से जीशान ख़ां मैदान में हैं. कई सीटों पर मुसलमान उम्मीदवारों के आमनेसामने होने की वजह से यह सवाल उठा है कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक बार फिर मुसलिम प्रतिनिधि चुन कर संसद पहुंच सकेंगे?

संसद में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में ऐसा माहौल बनाया गया है कि जहां कोई मुसलमान प्रत्याशी होता है वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की साजिश की जाती है. यह बड़ा सवाल है कि देश की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है. भाजपा नारा देती है कि ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ लेकिन असल में इस का मतलब है- ‘विपक्ष मुक्त भारत’ और ‘मुसलिम मुक्त’ विधायिका. मुसलमान भाजपा की सोच से वाकिफ है. वह खामोश है मगर उस की ख़ामोशी का यह मतलब नहीं कि सरकार बनाने या बिगाड़ने में उस की भूमिका नहीं होगी.

सर्व फैमिली शांति यंत्र

आजकल राष्ट्रीय स्तर पर बात को तोड़मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाने का चलन कुछ ज्यादा ही हो गया है. जिसे देखो वही कहने के बाद कहता फिरता है कि उस की बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. उस के कहने का मतलब वह नहीं था जिसे जानबूझ कर पेश किया जा रहा है, उस की छवि खराब करने को. अब ऐसों से कौन पूछे कि जिस की छवि ही न हो, वह खराब कैसे होगी?

एक समय था जब घर घर में बात तोड़मरोड़ कर पेश की जाती थी, एकदूसरे के सामने एकदूसरे की छवि खराब करने को, एकदूसरे पर अपनी भड़ास निकालने को. और फिर घर में शुरू हो जाती थी पारिवारिक वार. और अंत में तब न चाहते हुए भी बहू को सास के सामने थकहार कर माफी मांगते कहना पड़ता था कि हे सासुमां, मेरे कहने का मतलब वह नहीं था जो मैं ने कहा था. देवरानी ने मेरे कहे को जानबूझ कर तोड़मरोड़ आप के सामने पेश किया है. इसलिए देवरानी की ओर से मैं माफी मांगती हूं.

अब ज्योंज्यों घर के हर सदस्य के हाथ को इंटरनैट से सुसज्जित नयापुराना मोबाइल इजीली अवेलेबल हो रहा है, त्योंत्यों घर का हर बालिग नाबालिग मेंबर अपनेअपने फोन पर व्यस्त रहने लगा है. कोई अपने पूरे होशोहवास खो इस कमरे में ट्विटरिया रहा है तो कोई उस कमरे में यूट्यूब पर यूट्यूबिया रहा है. कोई फेसबुक पर टकाटक फेसबुकिया रहा है, तो कोई मैसेंजर पर मैसेंजरिया रहा है. बिन काम के व्यस्त रहना आज फैशन हो गया है. बिन काम के भी व्यस्त रहना आज की कला है। जिधर देखो, जिस की भी बात करो, किसी के पास सिर खुरकने तक का वक्त नहीं.

ऐसे में अब घर में न किसी की छवि खराब होने का खतरा, न किसी की बात को तोड़मरोड़ कर पेश करने में समय की बरबादी. न किसी के पास किसी की चुगली करने की फुरसत. न ही किसी के पास किसी के चुगली सुनने का वक्त. न किसी के पास की गई चुगलियों का विश्लेषण करने का फालतू टाइम.

हर मोबाइल वाला हाथ अब न तो मोबाइल टच करने के सिवा कुछ और टच करना चाहता है, न किसी से कुछ कहना चाहता है और न किसी का कुछ सुनना चाहता है. बस, चुपचाप अपनेअपने मोबाइली काम में रमा हुआ फैमिली, फैमिली मेंबर्स ओर से पूरी तरह वैरागी हो.

अब तो बीसियों बार खुद मोबाइल पर जमे हुए एकदूसरे से रोटी खाने तक को निवेदन करता पड़ता है. पर किसी को न भूख, न प्यास. मोबाइल पर व्यस्तता में उस की बैटरी डेड हो गई तो मोबाइल को कोसते उसे चार्जिंग में लगा कर भी फोन पर व्यस्त हो गए. अपनी बैटरी डेड हो जाए तो हो जाए, पर मोबाइल की बैटरी हरगिज डेड नहीं होनी चाहिए भाई साहब. मोबाइल का डाटा खत्म हो गया तो तत्काल दूसरे से उधार ले लिया. यह कह कर कि कल जो उस का अचानक डाटा खत्म हो जाए तो वह चुका देगा ब्याज समेत.

गए वे दिन जब घर में सुलहशांति के लिए पूजापाठ करवाने का विधान था.  घर में शांति के लिए गणेश का पूजन होता था. अब घर में शांति घर में पूजापाठ करवाने से नहीं आती, घर के सदस्यों के हाथों में मोबाइल आने से आती है. ऐसे में किसी को जो अपने घर में शांति बनाए रखनी हो तो उन को मेरी विनम्र सलाह है कि वे अपने परिवार के हर सदस्य को रोटी, कपड़ा उपलब्ध करवाने के बदले जितनी जल्दी हो सके उन्हें मोबाइल उपलब्ध करवाएं. उन के लिए चाहे मोबाइल किस्तों पर ही क्यों न लेना पड़े. घर की शांति मोबाइल के लिए लोन की किस्तें चुकाने की परेशानी से कहीं बड़ी होती है. तय मानिए, तब उन के घर में शर्तिया शांति का वास होगा. कलहकलेश का नाश होगा.

अब विश्वशांति के लिए कोई वार्ता नहीं, डाटा, मोबाइल जरूरी है. आज भयंकर से भयंकर 8 प्रहर 25 घंटे नोकझोंक वाले घर में शांति बनाए रखने का जो सब से सशक्त माध्यम कोई है तो बस, मोबाइल है. इसलिए हैसियत न होने पर भी घर में हर सदस्य को मोबाइल दिलाइए और घर में स्वर्ग सी शांति पाइए, घर को घर में बैठेबैठे स्वर्ग बनाइए. शांति के सिवाय आज जिंदगी में और चाहिए भी क्या? लोग तो शांति के लिए क्याक्या नहीं करतेफिरते हैं, अज्ञानी कहीं के…’पाकेट चंगा तो मोबाइल में गंगा.’

ड्रग्स से कम नहीं है इंटरनैट का नशा

सीमा ने औफिस पहुंच कर अपना पर्स खोला और दराज की चाभी निकालने के लिए जैसे ही अंदर वाली पौकेट में हाथ डाला, उसे अंदर महीन लकड़ी के बुरादे जैसा कुछ होने का एहसास हुआ. उसने झटके से हाथ बाहर निकाला और पर्स उलटा, तो देखा कि तेजपत्ते के कुछ पत्ते किसी ने उसके पर्स में रख दिए थे.उन में से कुछ चूरा हो गए थे. सीमा ने ध्यान से देखा तो उन पत्तों पर लाल स्याही से कुछ नंबर लिखे हुए थे.

सीमा आशंकित हो उठी. ये पत्ते कब और किसने मेरे पर्स में रखे? इन नंबरों का क्या मतलब है? किसी ने कोई जादूटोना तो नहीं किया? ऐसे अनेक सवाल उसके जेहन में कौंधने लगे. सारा दिन चिंता में बीता. शाम को घर आई और घरवालों को बताया तो उसकी मां बोली,”अरे, वो तेजपत्ते मैंने रखे थे तेरे पर्स में. तूने फेंक तो नहीं दिए?”

“आपने? मगर क्यों? और उन पर नंबर क्यों लिखे थे?”सीमा ने एकसाथ कई सवाल अपनी मां पर दागे.

”अरे,वह मैं फेसबुक पर बाबाजी की रील देखती हूं न. बाबाजी ने बताया कि तेजपत्ते के 5 पत्तों पर वह चमत्कारी नंबर लिख कर अपने पर्स में उस स्थान पर रखो जहां पैसे रखते हैं तो आय में चमत्कारिक रूप से वृद्धि होती है. इसलिए मैंने तेरे पर्स में रखे थे. तूने फेंक दिए क्या?”

”क्या मां, तुम तो यह इंटरनैट देखदेख कर पागल हो गई हो. मेरा 3 हज़ार का पर्स तुम्हारे तेजपत्तों की महक और चूरे से भर गया था. मैं सारा दिन औफिस में परेशान रही, सो अलग. तुम यह इंटरनैट देखना बंद करो. और आगे मेरे पर्स को हाथ मत लगाना.”

सीमा मां पर गुस्सा करती अपने कमरे में चली गई.

बाद में उसके पापा भी बड़ी देर तक उसकी मां को समझाते रहे कि इंटरनैट पर यह बेवकूफी की चीजें मत देखा करो. इंटरनैट देखदेख कर तुमने पूरे घर को मंदिर बना दिया है. पहले एक कोने में तुम्हारे भगवान का मंदिर था, अब पूरे घर में हर दीवार पर तुमने अपने भगवान चिपका दिए हैं.

कहीं कैलेंडर तक लगाने की जगह नहीं छोड़ी. पहले तुम शनिवार कोउस मंगते को दोचार रुपए देती थीं, अब तो हर दिन कोई नकोई झोली फैलाए हमारे दरवाजे पर खड़ा रहता है. इतना दानपुण्य करने की जरूरत नहीं है. इससे कुछ नहीं होता. यह इंटरनैट पर बैठे बाबा सिर्फ दुनिया को बेवकूफ बनाते हैं. खुद पैसा कमाते हैं और अपने जैसे और निकम्मों के लिए पैसा बनाने का रास्ता तैयार करते हैं.”

सीमा की मां चुपचाप पति की बातें सुनती रही और थोड़ी देर बाद अपने पलंग पर बैठी, फिर अपने स्मार्टफोन के इंटरनैट में डूबी दिखाई दी. दरअसल, वे इंटरनेट एडिक्ट हो चुकी हैं. कोई कितना भी समझाए,फोन और इंटरनैट उनसे नहीं छूटता.

रात के तीनतीन बजे तक इंटरनैट सर्च करती रहती हैं. घरपरिवार की उन्नति के लिए, धन के आगमन के लिए, जेवर-कपड़े के लिए कोई भी उपाय, कोई भी टोटका कोई बताए, उन्हें वह करना ही होता है.

उनकी इस आदत ने पूरे घर को परेशान कर रखा है. इस एडिक्शन के चलते अब न तो वे सुबह वाक पर जाती हैं, न घर के किसी काम में हाथ बंटाती हैं. बस, नहाधो कर नाश्ता करके पलंग या कुरसी पर पैर फैला कर पड़ी रहती हैं और फोन में आंखें गड़ाए रखती हैं. फिर उन्हें दीनदुनिया का कोई होश नहीं रहता. दरवाजे पर घंटी बज रही है, तो बजती रहे. कोई आ रहा है, कोई जा रहा है, उनसे कोई मतलब नहीं. बस,वे और उनका फोन.

मेहताजी की पत्नी का देहांत हुए 8 साल हो गए. मेहताजी अपने बेटे आशीष के साथ रहते हैं. आशीष नौकरीपेशा है. मेहताजी रिटायर हो चुके हैं. पहले मेहताजी के पास साधारण मोबाइल फोन था जिसमें इंटरनैट नहीं था. कोई 3 साल पहले आशीष ने उनको एलजी का बढ़िया स्मार्टफोन खरीद कर दिया, जिसमें इंटरनैट, कैमरा, वौयस रिकौर्डर सब है.

आशीष ने जीमेल पर उनका अकाउंट खोल कर उनके फोन में व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम सब डाउनलोड कर दिए और चलाना भी सिखा दिया. अब तो मेहताजी को नया काम मिल गया जिसमें वे सुबह से शाम तक डूबे रहते.

बड़ी जल्दी उन्होंने अपने ढेरों फेसबुक फ्रैंड्स बना लिए. खूब मैसेज का आदानप्रदान होता और खूब फोटो शेयर होने लगे. यूट्यूब देखने का चस्का लगा, तो दुनियाभर के वायरल वीडियो देखदेख कर दोस्तों से शेयर करने लगे.

पत्नी की मृत्यु के बाद से मेहताजी अपना और बेटे का खाना खुद ही बनाते हैं. उनको कुकिंग का काफी शौक भी है. इंटरनैट हाथ में आया तो कभीकभी यूट्यूब पर वीडियो देख कर नईनईरैसिपी भी ट्राई कर लेते हैं. मगर सोशल मीडिया पर हर वक़्त ऐक्टिव रहने का असर अब उनके दिमाग पर पड़ने लगा है.वे बातें भूलने लगे हैं. कौन सी बात आज हुई, कौन सी कल हुई थी या एक हफ्ते पहले हुई थी, वे सब गड्डमड्ड कर जाते हैं.

फोन के इतने एडिक्ट हो चुके हैं कि कई बार आशीष के औफिस जाने के बाद घर का दरवाजा तक लौक करना भूल जाते हैं. कभी चूल्हे पर दाल या दूध चढ़ाया और आकर यूट्यूब देखने में व्यस्त हो गए तो दाल या दूध उबल कर गिर जाता है. चूल्हा बुझ जाता है मगर गैस चलती रहती है. ऐसा एकदो बार नहीं, कई बार हो चुका है. कई बार तो रात में जब आशीष घर पर होता है तब भी वे चूल्हे पर भोजन चढ़ा कर भूल जाते हैं.

आशीष कई बार टोक चुका है कि पापा, इतना फोन में मत खो जाओ कि आसपास क्या हो रहा है, कुछ सुध ही न रहे. मगर मेहताजी मानते नहीं.फोन उनकी जान है. किचन हो, बाथरूम हो, हर जगह उनके हाथ में होता है. इसके चक्कर में मेहताजी ने आसपास दोस्तोंयारों से मिलनामिलाना भी छोड़ दिया है.

पहले सब्जीभाजी लेने मार्केट चले जाते थे, अच्छी वाक हो जाती थी मगर अब इंटरनैट में ऐसे डूबे हैं कि कोई सब्जी वाला घर के नीचे आ जाए, तो खरीद लेते हैं वरना आशीष को फोन करके कह देते हैं कि लौटते समय लेता आए.

आशीष को इससे बहुत झुंझलाहट होती है. कई बार उसकी कार दिल्ली के जाम में फंसी होती है और पापा का फोन आता है कि भिंडी लेता आए तो वह मारे गुस्से के चीख पड़ता है. अब कार लेकर मैं सब्जीमंडी जाऊं? आपका दिमाग खराब है क्या? दिन में क्यों नहीं ले आए? वह अपने पापा पर चिल्लाता है.

इंटरनैट की हद से ज्यादा सर्चिंग ने बहुत सारे घरों की व्यवस्था बिगाड़ दी है. इंटरनैट हमारी सुविधा के लिए है, पर उसके अत्यधिक उपयोग से लोग इंटरनैट की लत के जाल में फंसते जा रहे हैं.

हालत यह हो गई है कि डाटा न मिलने पर इंटरनैट की लत में पड़ा व्यक्ति परेशान हो जाता है और गुस्सा प्रकट करता है. आजकल जिस तादाद में अस्पतालों में मानसिक रोगी आ रहे हैं उनमें से अधिकांश इंटरनैट के लती हैं और उसके कारण ही उनमें दिमागी असंतुलन पैदा हो रहा है.

डाक्टर कहते हैं कि शराब या ड्रग्स जैसे नशे के एडिक्शन से इंसानी दिमाग में जो बदलाव होते हैं, ठीक वैसे ही बदलाव इंटरनैट की लत ने करने शुरू कर दिए हैं. यह चौंकाने वाला तथ्य अस्पतालों में पहुंचने वाले इंटरनैट डिसऔर्डर से पीड़ित युवाओं की जांच में सामने आया है.

ऐसे युवाओं की फंक्शनल एमआरआई में पता चला है कि इंटरनैट एडिक्शन दिमाग के उसी हिस्से की कार्यशैली को प्रभावित करता है, जिस हिस्से की कार्यशैली ड्रग्स या एलकोहल के एडिक्शन से प्रभावित होती है.

लखनऊ केजीएमयू की इंटरनैट डिसऔर्डर क्लीनिक के डा. पवन गुप्ता ने एक अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है कि फंक्शनल एमआरआई में ब्रेन के अलगअलग हिस्सों की फंक्शनिंग देखी जाती है. जो सामान्य एमआरआई में पता नहीं चलती.

इंटरनैट डिसऔर्डर के शिकार मरीजों की फंक्शनल एमआरआई में ब्रेन का स्ट्राइटल न्यूक्लियस डोपामिनर्जिक सिस्टम प्रभावित देखा गया. यह सिस्टम डोपामाइन हार्मोन रिलीज करता है जो इंसान का मूड नियंत्रित करता है.

इस सिस्टम के प्रभावित होने से एक ही काम बारबार करने का फितूर चढ़ जाता है. जिस तरह नशे का आदी नशे के बिना नहीं रह सकता, ठीक उसी तरह इंटरनैट एडिक्ट इंटरनैट के बिना नहीं रह पाता है. इससे पर्सनल लाइफ, वर्किंग लाइफ और पढ़ाई सभी प्रभावित होने लगते हैं.

जब कोई बच्चा या बड़ा इंटरनैट सर्फिंग का एडिक्ट हो जाता है तो शुरू में घरवाले इसको समझ नहीं पाते हैं. वे सिर्फ उन्हें डांटते हैं कि हर वक्तफोन या लैपटौप में खोए रहते हो, कभी दूसरे काम भी कर लिया करो. उन्हें पता ही नहीं चलता कि वह एक मानसिक बीमारी की चपेट में आ चुका है.

डाक्टर कहते हैं, जब परिवार का कोई सदस्य या आपका बच्चा दिनभर मोबाइल फोन में खोया रहे, पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान न दे, डांटने के बावजूद छिपछिप पर मोबाइल फोन चलाए या बाथरूम में देर तक फोन लेकर बैठा रहे,मोबाइल फोन उससे अलग करें तो चिड़चिड़ा हो जाए, उग्रता दिखाए, गुस्सा करे या चीजें तोड़नेफोड़ने लगे तो समझ जाना चाहिए कि वह इंटरनैट एडिक्ट हो चुका है.

ऐसा एडिक्ट रातभर जाग कर फोन चलाता रहेगा, उसको खानेपीने की सुध नहीं रहेगी, पढ़ाई में मन नहीं लगेगा, दोस्तयार छूट जाएंगे, खेलने के लिए बाहर नहीं जाएगा, घर का कोई काम नहीं करना चाहेगा.

ऐसी स्थिति में दिमाग के डाक्टर के पास ले जाना ही बेहतर है वरना कंडीशन बिगड़ती चली जाएगी. कभी इंटरनैट कनैक्शन बंद हो जाए या डाटा खत्म हो जाए तो ऐसा लती व्यक्ति बहुत ज्यादा परेशान हो उठता है. जब व्यक्ति इंटरनैट के बिना असहज महसूस करे तथा डाटा न मिलने पर उसका मूड प्रभावित हो जाए, ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति को इंटरनैट की लत है.

इंटरनैट की लत व्यक्ति को वास्तविकता से दूर कहीं काल्पनिक दुनिया में ले जाती है. इंटरनैट का उपयोग आज हम व्यापक रूप में कर रहे हैं. हमारे सभी जरूरी कार्य, जैसे फौर्म भरना, विभिन्न तरह के रजिस्ट्रेशन, मनोरंजन सभी इंटरनैट के माध्यम से होते हैं. इस वजह से ज्यादातर लोग इंटरनैट की लत का शिकार होते चले जा रहे हैं.

इंटरनैट की लत ने तबाह किया जीवन

इंटरनैट हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विश्व में सूचनाओं के आदानप्रदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इंटरनैट की संरचना की गई. इंटरनैट पर सामग्री की भरमार है. इंटरनैट के आने से पूर्व तक हमें हमारा काम करने के लिए महीनों तक सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने पड़ते थे.

इंटरनैट की मदद से आज हम घर बैठे अनेक कार्य कर सकते हैं. इंटरनैट मनोरंजन का बहुत बड़ा माध्यम है.. इस वजह से 10 में से 6 लोगों को आज इंटरनैट की लत पड़ गई है. इंटरनैट पर धर्म का धंधा खूब चल रहा है. ज्योतिषाचार्य इंटरनैट पर आपका भविष्य बता रहा है. पंडितमौलवी दुनियाभर के कर्मकांड, भूतभविष्य और शगुनअपशगुन की बातें बता रहे हैं.

इंटरनैट पर पोर्न साइट देखने का चस्का शहर से लेकर गांव तक के लोगों को है. छोटेछोटे बच्चे तक आज मांबाप की नजर बचा कर अपने फोन पर पोर्न देख रहे हैं. कई नेता-विधायक तो सदन में बैठ कर सदन की कार्रवाई के दौरान पोर्न देखते पकड़े जा चुके हैं. होस्टल या घरों में अधिकांश युवा रातों को पोर्न साइट देखने के आदी हैं. इसमें लड़कियां भी पीछे नहीं हैं.

आज इंटरनैट पर अच्छी बातों का प्रसार कम, गलत बातों का ज्यादा हो रहा है. नेता धर्म के नाम पर जनता को लड़ाने के लिए इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे हैं. धार्मिक भावनाएं उकसानी हों, कहीं भीड़ इकट्ठी करनी हो, दंगा करवाना हो, जुलूस निकलवाना हो, धरना-प्रदर्शन-आंदोलन करवाना हो तो आज इंटरनैट सूचना फैलाने का सबसे सुगम माध्यम बन चुका है.

हर तरह के फ्रौड आजकल इंटरनैट पर हो रहे हैं. फेसबुक,व्हाट्सऐप पर युवाओं के बीच प्रेमलीलाएं चल रही हैं. लोग एकदूसरे को इमोशनल बेवकूफ बना रहे हैं, ठग रहे हैं, आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं.

इंटरनैट साइबर ठगों का अड्डा बन चुका है. एक क्लिक में आपका पूरा बैंक अकाउंट खाली हो सकता है.21वीं सदी के टैक्नोलौजी युग में आपका डेटा सुरक्षित नहीं है. पासवर्ड लगा होने के बाद भी आपके मोबाइल फोन से आपका डाटा उड़ा लिया जाता है. डिजिटल इंडिया ने लोगों की जिंदगी को कुछ सुगम बनाया है तो उससे अधिक असुरक्षित भी कर दिया है.

इंटरनैट आकर्षण का मूल कारण

इंटरनैट की लत का मुख्य कारण मनोरंजन है. हम इंटरनैट की सहायता से अनेक मूवी देख सकते हैं, गाने सुन सकते हैं तथा सबसे महत्त्वर्ण बात यह कि हम दुनियाभर के लोगों से जुड़ सकते हैं. इंटरनैट पर विभिन्न साइट्स के माध्यम से दोस्त बना पानाइंटरनैट आकर्षण का मुख्य कारण है और यह इंटरनैट की लत के लिए पूर्णरूप से ज़िम्मेदार है.

इंटरनैट की लत पड़ जाने पर हम उठने के साथ डाटा औन करके नोटिफिकेशन देखते हैं तथा सोने तक यही करते हैं. इस की वजह से हम नोमोफोबिया की गिरफ्त में आ सकते हैं.

इंटरनैट के जरूरत से ज्यादा उपयोग करने पर हमारा बहुमूल्य समय नष्ट होता है. यह एक दिन की बात नहीं है. हमारे जीवन के न जाने कितने दिन यों ही इंटरनैट की लत में बरबाद होते चले जाते हैं.

इसके साथ ही हर तरह के लोग इसका उपयोग करते हैं. उन में से कुछ ऐसे हैं जिनके लिए सहीगलत के कोई माने नहीं, पैसे के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं.सो, औनलाइन इनका सामना आपसे होने पर ये किसी भी प्रकार से आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं.

तलाक की मारी औरतें कहां जाएं

वर्ष 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट में पहली बार कानूनी तौर पर विवाह में तलाक यानी संबंधविच्छेद का प्रावधान आया. वर्ष 1976 में इस में संशोधन हुआ और आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान जुड़ गया. इस के बाद से ही अदालतों में तलाक के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में तलाकशुदा लोगों की संख्या 13.6 लाख है. यह आंकड़ा बताता है कि तलाकशुदा लोगों में महिलाओं की संख्या ज्यादा हैं. इस का अर्थ यह है कि तलाकशुदा पतियों ने दूसरी शादी कर ली.

वर्ष 2011 के बाद जनगणना अभी नहीं हुई है. अनुमान है कि 2023 तक पहुंचतेपहुंचते तलाकशुदा लोगों की संख्या 23 लाख से अधिक हो चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि तलाक के लिए मुकदमे दाखिल करने वालों में पुरुषों की संख्या 54 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या 45 प्रतिशत के करीब है.

तलाक के ज्यादातर मामले पुरुषों की तरफ से आते हैं. तलाक के बाद पुरुष ही सब से ज्यादा शादी करते हैं. तलाक के बाद महिलाओं का घर बसाना मुश्किल होता है. इस की प्रमुख वजह यह भी होती है कि तलाक के बाद भी ज्यादातर मामलों में बच्चे अपनी मां के साथ रहते हैं.

दूसरी शादी में बच्चे सब से बड़ी बाधा होते हैं. पुरुष तलाकशुदा महिला के साथ तो शादी करने को तैयार रहता है पर यदि उस के बच्चे हों तो वह उस महिला के साथ दूसरी शादी करने से बचता है. इस कारण से तलाकशुदा महिलाओं के सामने शादी करने के अवसर कम हो जाते हैं.

इस का अर्थ यह है कि तलाक के बाद महिलाओं का जीवन केवल गुजारा भत्ता पर नहीं चलता. ऐसे में महिलाओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि पतिपत्नी में से केवल एक को नौकरी करनी चाहिए और एक को घर का काम करना चाहिए.

अब महिलाओं के लिए भी जरूरी है कि वे घर के काम से पहले अपने को आत्मनिर्भर बनाएं. घर के काम के लिए नौकरानी रख लें. आजकल वैसे भी किचन और घर में काम करने की इतनी मशीनें आ गई हैं जिन से घर का काम सरल हो गया है. फूड सैक्टर में इतनी तरक्की हुई है कि खाना बनाना पहले कि तरह कठिन नहीं रह गया है.

ऐसे में महिलाओं को इस का लाभ उठाना चाहिए. वे खुद को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाएं. जिस से वक्त पड़ने पर वे अपने फैसले खुद कर सकें, उन को गुजारा भत्ता पर निर्भर न रहना पड़े.

जैसे हालात हैं उसे देखते लगता है कि समाज पुरुष प्रधानता की ओर वापस जा रहा है. महिलाओं से कहा जा रहा है कि वे पूजापाठ, व्रत और तप करे. घर, परिवार पति की सेवा करे. तलाक को समय की मार मान कर स्वीकार कर लें और गुजारा भत्ता पर बुढ़ापा काट दें. अब फैसला औरतों के हाथ है कि वे आत्मनिर्भर हो कर आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती हैं या फिर गुजारा भत्ता पर जीना चाहती हैं. आत्मनिर्भर होने के लिए जरूरी है कि अपने हुनर को पहचानें और खुद को अपने पैरों पर खड़ा करें. तभी तलाक के बाद भी सम्मानपूर्ण जीवन जी सकती हैं.

मेरे पति मेरे साथ मारपीट व गालीगलौज करते हैं और दूसरी शादी की धमकी देते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं विवाहित महिला हूं. 4 साल का बेटा है. पति सरकारी नौकरी करते हैं. समस्या यह है कि ससुराल वालों के कहने पर मेरे पति मेरे साथ मारपीट व गालीगलौज करते हैं और बातबात पर दूसरी शादी करने व तलाक देने की धमकी देते हैं. घरेलू हिंसा से परेशान हो कर मैं अपने बेटे के साथ मायके रहने चली गई. कुछ समय पहले मेरे पिता का देहांत हो गया तो मैं ससुराल वापस आ गई. लेकिन पति व ससुराल वालों का मेरे प्रति रवैया अभी भी वैसा का वैसा ही है. ससुर अकसर धमकी देते हैं कि उन की पहुंच ऊपर तक है. दरअसल, मेरी ननद पुलिस में दारोगा है, इसी बात का वे मुझ पर रोब जमाते रहते हैं. मैं बहत परेशान हूं. उचित सलाह दें.

 

जवाब

पहले आप अपने पति से अकेले में प्यार से बात करें और समझाने की कोशिश करें. फिर भी बात न बने तो आप अदालत में जज के समक्ष अपनी सुरक्षा के लिए बचावकारी आदेश ले सकती हैं.

पति या ससुराल पक्ष द्वारा पत्नी का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या किसी भी प्रकार का यौन शोषण किया जाना घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है और कोई भी पीड़ित महिला या उस का पड़ोसी या परिवार का कोई भी सदस्य अपने क्षेत्र के न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज करा कर बचावकारी आदेश हासिल कर सकता है. इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में पीड़ित करने वाले को जेल के साथसाथ जुर्माना भी हो सकता है.

आप भी अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के अंतगर्त ससुराल वालों के खिलाफ केस दर्ज करा कर न केवल ससुराल में रहने का अधिकार पा सकती हैं, बल्कि मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा की मांग भी कर सकती हैं.

आप की ससुराल वाले आप के अधिकारों की अनभिज्ञता के चलते आप के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कर रहे हैं. जब आप उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी देंगी तो वे रास्ते पर आ जाएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

अप्रैल माह का दूसरा सप्ताह, कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार

अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह में बौलीवुड से जुड़े लोगों को पूरी उम्मीद थी कि इस बार बौक्स औफिस कमाल कर दिखाएगा क्योंकि इस सप्ताह दिग्गज कलाकारों के अभिनय से सजी बड़े बजट की दो फिल्में ‘मैदान’और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ प्रदर्शित हुईं, पर कलाकारों का अहम दोनों फिल्मों को ऐसा ले डूबा कि पीवीआर आयनौक्स के शेअर के भाव 1800 से गिर कर 1200 पर पहुंच गए.

ईद के अवसर पर 11 अप्रैल को अजय देवगन के अभिनय से सजी फिल्म ‘मैदान’ प्रदर्शित हुई. बोनी कपूर निर्मित और अमित शर्मा निर्देशित फिल्म ‘मैदान’5 साल से प्रदर्शन का इंतजार कर रही थी. देश को फुटबौल के खेल में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने में अहम भूमिका निभाने वाले कोच सय्यद अब्दुल रहीम की यह बायोग्राफिकल स्पोर्ट्स फिल्म है. 3 घंटे से अधिक लंबी अवधि की इस फिल्म के लिए अजय देवगन ने स्वयं प्रमोशन नहीं किया.
लोग कह रहे हैं कि 5 साल में उन की आस्था बदल चुकी है. फिल्म के निर्माता बोनी कपूर अकेले ही सोशल मीडिया पर अपनी बात करते रहे. कथानक और मेकिंग के स्तर पर फिल्म अच्छी बनी है. मगर फुटबौल के खेल में जिन की रुचि नहीं, उन्होंने इस फिल्म से दूरी बनाए रखा. फिल्म के कलाकारों ने दर्शकों तक फिल्म को पहुंचाने का प्रयास नहीं किया.

परिणामत: 250 की लागत में बनी यह फिल्म बौक्स औफिस पर 8 दिन में 28 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी. इस में से निर्माता के हाथ बामुश्किल 12 करोड़ ही आएंगे. जबकि इस सप्ताह ईद, शनिवार और रविवार की छुट्टी सहित 8 दिन मिले, क्योंकि फिल्म गुरुवार को रिलीज हुई थी.

11 अप्रैल गुरुवार को ही प्रदर्शित अक्षय कुमार व टाइगर टाइगर श्रोफ की फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ भी रिलीज हुई. 1998 में इसी नाम से अमिताभ गोविंदा की फिल्म आई थी. वह फिल्म हास्य फिल्म थी, जबकि वासु भगनानी और निर्देशक अली अब्बास जफर की यह फिल्म ऐक्शन प्रधान फिल्म है. अक्षय कुमार और टाइगर श्रोफ तो अहम के शिकार हैं. यह दोनों कलाकार पत्रकारों से मिलना अपनी तोहीन समझते हैं. सिर्फ सोशल मीडिया पर उनकी टीम ही फिल्म का प्रचार करती रही है. फिल्म के निर्माता को चिंता नहीं थी. क्योंकि उन्होंने इस फिल्म को जौर्डन सरकार से सब्सिडी ले कर जौर्डन में ही फिल्माया है.
फिल्म में बेवजह एक्शन दृश्य ठूंसे गए हैं. फिल्म में किसी भी कलाकार ने अच्छा अभिनय ‌‌नहीं किया जिस के चलते 350 करोड़ के बजट में बनी यह फिल्म 8 दिन में सिर्फ 48 करोड़ रुपए ही कमा सकी. इस में से निर्माता के हाथ में मुश्किल से 20 से 22 करोड़ ही आएंगे.

 

हिंदी फिल्मों में चरित्र के अनुसार वजन बढ़ाना और घटाने का राज क्या होता है, आइए जानें

कैरेक्टर की डिमांड और ऐक्टिंग को जीवंत रूप देने के लिए सालों से हौलीवुड और बौलीवुड के कलाकर अपने वज़न, चालढ़ाल और रूप आदि में तेजी से परिवर्तन करते रहे हैं. चरित्र की मांग के हिसाब से अपने वजन में तेजी से बदलाव लाना उन के लिए एक जुनून होता है. उन्हें देख कर आम दर्शक भी इसे करने की कोशिश करते हैं, हालांकि इस में कोई संदेह नहीं कि वजन को बढ़ाना और घटाना एक नियमित दायरे में होने से किसी प्रकार का कोई फर्क शरीर पर नहीं पड़ता, लेकिन बिना प्रोपर गाइडेंस के कुछ भी करना शरीर के लिए सही नहीं होता.

आज भी ऐसा देखा जाता है कि जब फसल की कटाई होती है, तो किसान और उस के परिवार तंदुरुस्त हो जाते हैं और ये उन के शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होता, अर्थात सही समय पर सही भोजन और काम हर किसी के लिए फायदेमंद होता है.

वजन बढ़ाना था जरूरी

पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ में परिणीति ने चमकीला की पत्नी अमरजोत कौर की भूमिका निभाई. उन की इस अदाकारी को सराहा भी जा रहा है. उन्होंने इस फिल्म के लिए 15 किलो वजन बढ़ाया है. उन्होंने एक जगह कहा है कि इस फिल्म के लिए उन्हें केवल वजन बढ़ाना ही नहीं, बल्कि निर्देशक इम्तियाज अली ने उन्हें कहा कि चेहरे पर कोई मेकअप भी नहीं होगा.
वह कहती हैं, “मुझे चमकीला में सब से खराब दिखना था, पर मैं ने उस भूमिका को स्वीकार किया. कुछ लोगों ने ऐसा करने से मना भी किया था, लेकिन मैं अभिनेत्री विद्या बालन से इंस्पायर हुईं हूं, उन्होंने ‘द डर्टी पिक्चर’ के लिए वजन बढ़ाया था और फिल्म हिट भी हुई थी.”

अच्छे ट्रैनर की जरूरत

वजन घटाने और बढ़ाने की इस लिस्ट में आमिर खान सब से ऊपर हैं. उन्होंने अधिकतर ब्लौकबस्टर फिल्में दी हैं और किसी प्रकार के प्रयोग से वे घबराते नहीं हैं. उन की सफल फिल्मों में तारे जमीं पर, गजनी, पीके, 3 इडियट्स, दंगल आदि है. उन्होंने वर्ष 2016 में रिलीज हुई फिल्म ‘दंगल’ के लिए 5 या 10 किलो नहीं, बल्कि 28 किलो वजन बढ़ाया. इतना ही नहीं महावीर सिंह फोगाट की भूमिका के लिए पहले वजन बढ़ाया और फिर दूसरी फिल्म में नौर्मल दिखने के लिए वजन घटा भी दिया.
दर्शकों को आमिर का ये अंदाज इतना पसंद आया कि फिल्म दंगल ने केवल 1000 करोड़ नहीं, बल्कि 2000 करोड़ से ज्यादा की कमाई बौक्स औफिस पर की. आमिर का इस तरह के प्रयोग के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि उन्होंने ऐसा करने के लिए हमेशा एक अच्छे ट्रैनर की सहायता ली है. उन्हें वजन बढ़ाने के लिए वो सब जंक फूड खाने पड़े, जो कभी खाने के बारें में सोचा भी नहीं था. वे कहते हैं, “मैं ने आइसक्रीम, केक, ब्लाउनीस, वड़ा पाव और समोसे सब खाए. दूसरी फिल्म के सीन्स के लिए जब वजन घटाना था, तब मुझे अमेरिकी डाक्टर निखिल धुरंधर ने पूरा कैलोरीज डाइट प्लान बनाकर दिया था, जिसे मुझे फौलो करना पड़ता था.”

हौलीवुड से प्रेरित बौलीवुड

ये चलन बौलीवुड के सितारों ने हौलीवुड के कलाकारों से अपनाया है. हौलीवुड बात करें तो वहां की मशहूर अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स ने फिल्म ‘ईट प्रे लव’ के लिए 10 पाउंड वज़न बढ़ाया. इस के लिए जूलिया हर दिन 8 से 10 पीस पिज्जा खाती थी, जिस से उन का वजन बढ़ पाया, लेकिन इस बीच एक बड़ा सवाल ये है कि, फिल्मी सितारों का वजन बढ़ाना और घटाना करते कैसे हैं, चलिए जानते हैं.

धैर्य और लगन जरूरी

इस बारे में मुंबई की फिटनैस ट्रैनर संदीप रामचन्द्र वालावलकर कहते हैं कि वजन अगर सही तरीके से घटाया जाए तो कोई समस्या शरीर में नहीं होती. फिल्मों में वजन घटाने और बढ़ाने की प्रक्रिया प्रोजैक्ट के हिसाब से होती है, मसलन प्रोजैक्ट को लौन्च होने में 6 महीने या 3 महीने का समय है, उस के हिसाब से नियमित रूटीन को फौलो करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है. इस काम में किसी प्रोजैक्ट के शुरू होने से तकरीबन 12 महीने पहले से प्लानिंग करनी पड़ती है, कम समय में ये होना संभव नहीं होता. इस में शामिल होने वाली टीम बहुत अधिक प्रोफैशनल होती है, मसलन प्रोफैशनल ट्रैनर, डाइटीशियन, डाक्टर आदि, जिसे आम इंसान अफोर्ड नहीं कर सकता. ये टीम समयसमय पर गाइड करती रहती है. किसी भी प्रोजैक्ट में उस के पीछे की टीम, डेडीकेशन और समय काफी महत्वपूर्ण होता है और इस का सही कैलकुलेशन होना जरूरी होता है, नहीं तो शरीर में इस के दुष्परिणाम दिखाई पड़ने लगते हैं.

संतुलन व्यायाम, डाइट, रेस्ट

ट्रैनर आगे कहते हैं कि इसे करने के सही प्रोसेस में 40 प्रतिशत व्यायाम, 40 प्रतिशत डाइट और 20 प्रतिशत आराम करना होता है, इन सब का तालमेल सही होना आवश्यक होता है, फिर चाहे वजन बढ़ाना हो या घटाना. इस पर पूरी प्रक्रिया निर्भर करती है. शरीर किस प्रकार की व्यायाम करती है, किस प्रकार का डाइट व्यक्ति लेता है, इस के ऊपर वजन बढ़ाना और घटाना निर्भर करता है. अगर वजन बढ़ाना है तो कार्बोहाइड्रैट की मात्रा बढ़ानी पड़ती है, प्रोटीन के साथ थोड़ा फैट भी लेना पड़ता है, ताकि वजन बढ़े. अगर वजन घटाना है तो कार्बोहाइड्रैट की मात्रा मीडियम से भी कम करनी पड़ती है, प्रोटीन बैलन्स लेना पड़ता है और जंक फूड या कुछ भी अलग से फैट की मात्रा नहीं लिया जा सकता. तब वजन कम होता है.

व्यायाम की अगर बात करें, तो वजन कम के लिए दो चीजों पर अधिक ध्यान देना पड़ता है, मसलन कार्डियो और वैट ट्रैनिंग अधिक करनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए कार्डियो का पार्ट कम वैट ट्रैनिंग मीडीयम और रेस्ट अधिक होता है, जैसे कि दो दिन का व्यायाम 1 दिन का रेस्ट, 3 दिन का व्यायाम एक दिन रेस्ट आदि. वेट लौस के लिए 5 से 6 दिन 45 मिनट से कम या अधिक व्यायाम करना पड़ता है. इन सभी में ट्रैनिंग, खाना, ब्रेक आदि महत्वपूर्ण होते हैं.

एक महीने में अधिक से अधिक 3 किलो औसतन वजन कम होता है, जबकि बढ़ना केवल 2 किलो औसतन ही होता है. अच्छा वजन बढ़ाने या घटाने का पैरामीटर यही होता है. कई विज्ञापनों में जो दिखाया जाता है कि महीने में 10 किलो कम हुआ या बढ़ गया ये सभी भ्रामक होते हैं, जो सही नहीं होता. इस के अलावा सैलिब्रिटी जब प्रोजैक्ट के अनुसार वजन घटाते और बढ़ाते हैं, तब वे पूरी तरह से उसी पर फोकस्ड रहते हैं, जिस का परिणाम उन्हें जल्दी मिलता है, लेकिन हमेशा सही ट्रैनर के साथ वजन घटाने या बढ़ाना ही उचित होता है. परिणिती और आमिर खान के अलावा कई दूसरे कलाकारों ने भी चरित्र के लिए वजन बढ़ाए और सफल हुए.

कृति सेनन

ऐक्ट्रैस कृति सेनन की फिल्म ‘मिमी’ ओटीटी पर रिलीज हुई थी, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया था. इस फिल्म में कृति ने सेरोगेट मदर का किरदार निभाया है. एक्ट्रैस को इस फिल्म के लिए उन्हें 15 किलो वजन बढ़ाना पड़ा. इस फिल्म के लिए कृति को बेस्ट एक्ट्रैस का अवार्ड भी मिल चुका है.

भूमि पेडनेकर

अपनी पहली फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में भूमि पेडनेकर ने काफी मेहनत की थी. उन्होंने अपने लुक के साथ एक्सपेरिमैंट करते हुए मोटी लड़की का किरदार निभाया था. इस फिल्म के लिए भूमि को अपना 20 किलो वजन बढ़ाना पड़ा था. इस फिल्म से उसे इंडस्ट्री में पहचान मिली.

कंगना रनौत

एक्ट्रैस कंगना रनौत ने अपनी फिल्म ‘थलाइवी’ के लिए 20 किलो वजन बढ़ाया था. एक्ट्रैस ने फिल्म के लिए काफी मेहनत की. इस के बाद उन्हें वापस अपना वजन कम करने में भी काफी समय लगा था.

विद्या बालन

एक्ट्रैस विद्या बालन ने फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ में निभाए गए सिल्क स्मिता के किरदार के लिए अपना वजन बढ़ाया था. जिस के बाद फिल्म में उन के काम को काफी ज्यादा सराहना मिली थी.

निम्रत कौर

फिल्म ‘दसवीं’ में बिमला देवी की भूमिका निभाने वाली निम्रत कौर ने इस किरदार के लिए कम से कम 15 किलो वजन बढ़ाया था. इस के लिए एक्ट्रैस को कई बार ट्रोल भी किया गया. जिस के बाद ट्रोलर्स को करारा जवाब देते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर एक नोट लिखा और कहा कि, ये सिर्फ फिल्म के लिए था.

सलमान खान

अभिनेता सलमान खान ने ‘सुल्तान’ मूवी के लिए 18 से 20 किलो वजन बढ़ाया था, जिसे उन के किरदार को सभी ने पसंद किया.

राजकुमार राव

राजकुमार राव ने बोस: डेड/अलाइव फिल्म के लिए सुभाष चंद्र बोस की भूमिका निभाई थी, जिस के लिए 10 से 12 किलो वजन बढ़ाया था. इस के लिए उन्होंने हाई फैट हाई कार्ब युक्त भोजन लिया था. इस फिल्म में राजकुमार राव की भूमिका को दर्शकों ने काफी पसंद किया.

रीता सा शजरे बहारां: भाग 3

उस ने जल्दी से हाथ छुड़ा कर सामने आते हुए कहा,आप यह सब कैसे…”

“अरे मस्तक पर सजदे का इतना बड़ा निशान ले कर घूम रहे हो, अंधा भी जान जाएगा कि…अबे  तुम सच में इतने ही भोले हो? और वह फिर खिलखिला दी. चलते हुए बाज़ार में सभी की निगाहें उस पर आ कर रुक गईं. 

“अब तुम वही फौरमैलिटी वाले सवाल मत पूछना कि तुम कौन हो और इतना सब कैसे जानती हो?उस ने फिर से उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, आओ चलें,” चलते हुए अपनी गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए बोली, कार तो चला लेते होगे?

“जी, मगर मेरा लाइसैंस रिन्यू नहीं हुआ है.”

“क्यों, यही सोच कर कि अब गाड़ी नहीं रही तो ड्राइविंग लाइसैंस का क्या,  यही न? चलो, मेरे साथ बैठो, ड्राइविंग मैं करती हूं. तुम भी याद रखोगे कि एक शानदार पायलट के साथ लौंग ड्राइव पर गए थे.”

“लौंग ड्राइव?

“क्यों डर गए क्या?वह फिर खिलखिला कर हंस दी.

“घर पर कोई इंतज़ार तो नहीं करेगा?

कोई नहीं.”

“फिर ठीक है. आओ बैठो, चलते हैं,” और उस ने कार आगे बढ़ा दी.

“मकान किराए का है या…?” 

“जी, बस वही बचा रहा. मकान नहीं, फ्लैट है. पुश्तैनी है तो बच गया.”

“हूं.” और वह बिना कुछ बोले गाड़ी चलाती रही.

“दोबारा ज़ीरो से शुरू करना बहुत मुश्किल होता है, है न? और वह कनखियों से देखती इंतज़ार करती रही कि शायद वह कुछ बोले, लेकिन वह चुप बाहर खिड़की से झांकता रहा.

“तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?

“डर, कैसा डर?

“कुछ नहीं. बस यों ही पूछ लिया.”

कुछ ही देर में गाड़ी महरौली की पहाड़ियों में किसी मकबरे के दरवाज़े पर थी. उस ने    सवालिया निगाहों से उसे देखा तो वह उतरते हुए बोली, आओ चलें.” फिर उस ने गाड़ी में से स्कार्फ निकाल कर सिर पर बांध लिया और वहीं नज़दीक एक दुकान से फूलों की टोकरी ले कर उस का हाथ थामे दरवाज़े की ओर बढ़ गई. अंदर जा कर उस ने बड़ी तन्मयता से फूल बिछाए और हाथ जोड़ कर होंठों ही होंठों में बुदबुदाने लगी. 

वह उसे ऐसा करते देख विस्मित था. कुछ देर बाद वह माथा टेक कर आते ही उस का हाथ पकड़ एकतरफ़ ले जा कर आंखें तरेरते हुए बोली, तुम ने न दुआ मांगी और न ही सिर ढका? क्यों?

उस के इस तरह से झिड़कने पर वह सिर्फ़ मुसकरा दिया. 

“जवाब दो, क्या तुम वहाबी हो? 

“आप यह सब जानती हैं?

“मेरे जानने या न जानने से कुछ फ़र्क पड़ने वाला नहीं है.”

“फिर यह सब जानने में इतना इंटरैस्ट क्यों?”

“मतलब, कम्युनिस्ट हो?

नहीं, हो तो तुम मज़हबी ही,’ वह ख़ुद से ख़ुद ही बोली. 

उस ने उस की कलाई पकड़ी और दूर ले जा कर बैठ गया.

“क्या तुम राइटर हो या पेंटर?

“क्यों?

“तुम्हारे हाथ बहुत सौफ्ट हैं.”

“आप का इंट्यूशन क्या कहता है? 

“यही कि मुझे तुम से प्यार होता जा रहा है.”

“आप की इस बात पर हंसा जा सकता है.”

“तो हंसो, रोका किस ने है? मैं भी देखना चाहती हूं कि हंसते हुए तुम कैसे दिखते हो.”

“आप ने तो कहा था कि आप प्रैक्टिकली स्ट्रौंग हैं?”

“क्या यथार्थवादी प्रेम नहीं कर सकते?

“कर सकते हैं मगर मुझ जैसे फटीचर से नहीं.”

“ख़ुद को फटीचर मत कहो,” उस की फिर वही नायकों वाली खनक गूंज गई. 

कुछ देर वह उस के चहेरे को यों ही देखता रहा, फिर बोला, “मैं बालों को खिजाब से रंगता हूं.”

“उम्र बालों से नहीं, चहरे से दिखती है.”

“मेरा तात्पर्य उम्र से नहीं, बल्कि सचाई से है, मैं सच्चा नहीं हूं जबकि आप सच्ची हैं.”

“हर वक्त गहरा सोचना ज़रूरी तो नहीं.”

“जी, आदत हो जाती है. आप भी अकेली हैं? 

“मुझ में इंट्रैस्ट ले रहे हो?

“शायद. लेकिन समझने की कोशिश ज़रूर कर रहा हूं.”

“पहले ख़ुद को तो समझ लो.”

“यहां क्यों ले कर आईं हैं आप मुझे?

“यहां सुकून है, मैं अकसर आती हूं यहां.”

“जी, कब्रिस्तान में सुकून के सिवा और कुछ होता भी नहीं.”

“कब्रिस्तान, तुम इस जगह को कब्रिस्तान कहते हो?

“और फिर क्या कहें? ज़मीन के नीचे सोए हुए लोगों के ऊपर इमारत तामीर कर दी गई और क्या, बस.” 

“मालूम नहीं, इन सोए हुए लोगों को आदमी जगाने की कोशिश क्यों करता है जबकि वहां कोई सुनने वाला नहीं होता.” 

“जब इंसान अकेला था तो भीड़ तलाशता रहा और अब जब भीड़ है तो एकांत तलाश रहा है.”

“ऐसा नहीं है जैसा तुम सोचते हो. इंसान दुनिया के छल, प्रपंच और आपाधापी से मुक्त होने के लिए ऐसी जगह पर आता है. बेशक, कुछ वक्त के लिए ही सही, साथसाथ अपने जज़्बात भी कह जाता है.” 

“आप सुलझी हुई बात कह रही हैं लेकिन सभी आप के जैसा नहीं सोचते.”

“और सभी तुम्हारे जैसा भी नहीं सोचते, रियलिस्टिक बंदे,” उस के होंठों पे मुसकान सी खिली हुई थी. दूर कहीं बादलों के गरजने की आवाज़ हुई और ठंडी हवा बहने लगी. 

“तो फिर सुकून मिला?

“तुम जैसा साथी साथ में हो तो सुकून मिल सकता है क्या?इस बार वह, बस, हंस दी. “तुम इतने रूखे तो लगते नहीं हो, लेकिन तुम्हारी सैंसिटिविटी ने तुम्हारी लचक को हाईजैक कर लिया है.”

“नहीं. नाकामी ने.”

“नाकामी का अर्थ पैसे से लगाया जाए या परिवार से?

“आप स्वतंत्र हैं समझने के लिए.”

“तुम इतने ईज़ी क्यों हो, यार?

“ईज़ी मतलब? मैं समझा नहीं?”

“यही कि दूसरों की बातों को आसानी से मान जाना, उन्हें तवज्जुह देना और साथ ही स्पेस देना.

और देखो न, मेरी भी सभी बातें तुमने आसानी से मान लीं जबकि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हैं.”

“अजनबी?

“हां, अजनबी.”

“मैं ने तो ऐसा सोचा ही नहीं.”

“मैं, कनुप्रिया  श्वेताम्बर, प्रोफैसर कनुप्रिया. और तुम?

“छोड़िए, क्या करेंगी जान कर? चलिए चलते हैं, उस ने कलाई छोड़ कर उठते हुए कहा.

“मुझ से भाग रहे हो या ख़ुद से?

“शायद, दोनों से.”

“नाम नहीं बताओगे?

“वैसे, आप लगभग सभीकुछ तो जानती हैं.”

“कह सकते हो लेकिन जानती नहीं, सिर्फ़ अनुमान लगाती हूं जो अकसर सही होते हैं. तुम अकेले रहते हो,उस ने उठते हुए कहा, “खाना तो ख़ुद बनाते होगे?

“हां.” 

“कैसा बनाते हो?

“बस, खाया जा सके, वैसा.”

“तो फिर चलो, आज से मुझे खाना बना कर खिलाओ,” और उस ने अपनी बाईं कलाई उस के दाएं हाथ में पकड़ा कर खंडहर से बाहर क़दम बढ़ाया. हलकीहलकी बारिश की फुहारें उन के स्वागत को तत्पर थीं.

 

जब वह उस के घर पहुंचा तो उसे लगा कि यह घर कुछ जानापहचाना सा है. कनुप्रिया ने कहा, जनाब, अब याद आया कि नहीं, हम जब चौथी कक्षा में थे तो तुम मेरी क्लास में ही थे और एकदो बार घर भी आए थे. मैं जब पार्किंग में गाड़ी में बैठी सोच रही थी कि कैसे दिन गुजारा जाए, तुम्हारे बालों के ठीक करने के स्टाइल से तुम्हें पहचान लिया. इतनी बातें पक्का करने के लिए कीं कि तुम वही हो न?

 

वह भौचक्का रह गया पर लगा कि जिंदगी को अब एक राह मिलेगी.

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